संविधान की काया

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संविधान की काया

भारत का संविधान | The constitution of India

संघ और राज्य क्षेत्र

भारत राज्यों का संघ है। इस समय भारत में जो 28 राज्य और 7 संघ – राज्य क्षेत्र हैं वह इस प्रकार हैं—
राज्य : आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, नगालैंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, सिक्किम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल ।
संघ – राज्य क्षेत्र : दिल्ली, अंदमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, पांडिचेरी तथा चंडीगढ़ l

राजनीतिक व्यवस्था

भारत के संविधान का ढांचा लोकतंत्रात्मक है। जनता संसद और राज्यों की विधानपालिकाओं के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है । इन चुने हुए प्रतिनिधियों में जिस दल या नेता को बहुमत का समर्थन प्राप्त हो उसकी सरकार बन जाती है। सरकार के मंत्रिगण सामूहिक रूप से लोक सभा अथवा राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।
हमारी राजनीतिक व्यवस्था संघात्मक है। संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा किया गया है। संघ की और प्रत्येक राज्य की अलग विधानपालिकाएं और सरकारें हैं। किंतु, सारे देश में नागरिकता एक है ।

नागरिकता

संविधान निर्माताओं ने एक भारतीय बंधुत्व तथा एक अखंड राष्ट्र का निर्माण करने के अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, इकहरी नागरिकता का प्रावधान रखा। सभी नागरिकों के, चाहे उनका जन्म किसी भी राज्य में हुआ हो, बिना किसी भेदभाव के देश भर में एक से अधिकार तथा कर्तव्य हैं।

संघ कार्यपालिका

राष्ट्रपति का पद तथा शक्तियां: भारत संघ की कार्यपालिका का प्रमुख यानी हमारे देश की सरकार का मुखिया राष्ट्रपति है।
हमारे संविधान की योजना में राष्ट्रपति का पद सर्वाधिक सम्मान, गरिमा तथा प्रतिष्ठा का है। वह राज्य का अध्यक्ष होता है। भारत सरकार की समूची कार्रवाई उसके नाम से की जाती है। रक्षाबलों की सर्वोच्च कमान उसमें निहित होती है और उसका प्रयोग कानून के द्वारा होता है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति वह प्रधानमंत्री की सलाह से करता है ।
संसद के दोनों सदनों के साथ-साथ राष्ट्रपति भी संसद का अभिन्न अंग होता है । वह दोनों सदनों को अधिवेशन के लिए बुलाता है। उनके अधिवेशनों का समापन करता है। लोक सभा को भंग कर सकता है। प्रति वर्ष प्रथम सत्र के प्रारंभ में तथा हर आम चुनाव के बाद वह दोनों सदनों के सदस्यों को एक साथ संबोधित करता है। राष्ट्रपति, अन्यथा भी, संसद के दोनों सदनों को संदेश भेज सकता है, उनमें से प्रत्येक को अथवा दोनों को संबोधित कर सकता है। यह जरूरी है कि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित सभी विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाए, तभी वे कानून बन सकते हैं ।
आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है और इन अध्यादेशों का वही प्रभाव होगा जो संसद द्वारा पारित विधियों का होता है। राष्ट्रपति राज्य सभा के लिए 12 सदस्यों का नाम- निर्देशन भी करता है । वह ऐसे व्यक्तियों में से होने चाहिए जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाजसेवा जैसे विषयों के बारे में विशेष ज्ञान का व्यावहारिक अनुभव हो ।
राष्ट्रपति किसी व्यक्ति के दंड अथवा मृत्युदंड को माफ या कम कर सकता है या रोक सकता है।
यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए तो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।
राष्ट्रपति आपात स्थिति की घोषणा तभी कर सकता है जब लिखित रूप में उसे संदेश प्राप्त हो जाए कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने उसे ऐसा करने की सलाह देने का निर्णय कर लिया है ।
भले ही संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का दायित्व है कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करे, फिर भी ऐसे कुछ धुंधले क्षेत्र हैं जहां अब भी राष्ट्रपति को अपने विवेक तथा बुद्धि का उपयोग करना पड़ता है। वे हैं :
1. प्रधानमंत्री की नियुक्ति, जब ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि किसी भी एक पार्टी को लोक सभा सदस्यों के बहुमत का स्पष्ट समर्थन प्राप्त न हो । जाहिर है कि राष्ट्रपति ऐसे प्रधानमंत्री की सलाह पर नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति नहीं कर सकता है जो चुनाव में हार गया हो या जिसने लोक सभा का समर्थन गंवा दिया हो ।
2. पदधारी की अचानक मृत्यु की दशा में प्रधानमंत्री की नियुक्ति (यथा, इंदिरा गांधी की हत्या से उत्पन्न स्थिति में), जहां सत्तारूढ़ विधानमंडल पार्टी नेता का चुनाव करने के लिए तत्काल बैठक न कर सकती हो, जहां मंत्रिमंडल के मंत्रियों के बीच कोई निश्चित वरिष्ठताक्रम न हो और जहां मंत्रिमंडल से बाहर के किसी नाम का सुझाव दिया गया हो ।
3. ऐसी मंत्रिपरिषद की सलाह पर लोक सभा का विघटन जिसने लोक सभा में बहुमत का समर्थन गंवा दिया हो या जिसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दिया गया हो।
4. उस स्थिति में मंत्रियों की बर्खास्तगी जब मंत्रिपरिषद् ने लोक सभा का विश्वास गंवा दिया हो पर वह इस्तीफा देने के लिए तैयार न हो ।
हमारा राष्ट्रपति एक चयन मंडल द्वारा चुना जाता है। चयन मंडल में संसद के दोनों सदनों के तथा राज्यों की विधान सभाओं के चुने हुए सदस्य होते हैं। कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने का पात्र तभी होगा जब वह ( क ) भारत का नागरिक हो, (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो, और (ग) लोक सभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो । राष्ट्रपति अपने पदग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा। वह उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा। राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण न कर ले ।
संविधान के अतिक्रमण के आधार पर महाभियोग चलाकर राष्ट्रपति को उसके पद से संसद के दोनों सदनों द्वारा हटाया जा सकता है।
उपराष्ट्रपति : भारत के राष्ट्रपति के बाद सर्वोच्च स्थान उपराष्ट्रपति को दिया गया है। उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा। वह राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा, यदि राष्ट्रपति की मृत्यु, पद – त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसका पद खाली हो जाए। यदि राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य कारण से अपने कार्यों को पूरा न कर सके तो उपराष्ट्रपति उसके कार्यों को पूरा करेगा।
उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले चयन मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है। उपराष्ट्रपति की पदावधि पांच वर्षों की होती है।
मंत्रिपरिषद : राष्ट्रपति को अपने दायित्वों का निर्वाह करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती है । इस परिषद का मुखिया प्रधानमंत्री होता है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति वह प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है ।
प्रधानमंत्री : संसदीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री का अद्वितीय स्थान है। उसके पास सबसे अधिक शक्तियां होती हैं । वह संसद तथा कार्यपालिका, दोनों पर नियंत्रण रखता है। मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष होने के नाते प्रधानमंत्री सरकार का भी अध्यक्ष होता है । सभी मंत्री उसकी सिफारिश पर नियुक्त किए जाते हैं तथा हटाए जाते हैं। प्रधानमंत्री मंत्रियों के बीच कार्य का आवंटन करता है। साथ ही, वह इच्छानुसार उनके विभागों में परिवर्तन कर सकता है।

विधानपालिका

भारत संघ की सर्वोच्च विधायिका का नाम है संसद | जैसा कि संसदीय लोकतंत्र प्रणाली में स्वाभाविक है, देश के प्रशासन में भारत की संसद को प्रमुख स्थान प्राप्त है। भारत की संसद राष्ट्रपति तथा दो सदनों से मिलकर बनी है। सदनों के नाम हैं राज्य सभा तथा लोक सभा । लोक सभा का विघटन हो सकता है जबकि राज्य सभा एक स्थायी सभा है।
राज्य सभा : राज्य सभा अपने नाम के अनुरूप राज्यों की परिषद है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य करते हैं। प्रतिनिधियों की संख्या राज्य की आबादी पर निर्भर करती है। संविधान के अनुसार राज्य सभा में 250 से अधिक सदस्य नहीं होंगे। उसमें राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित बारह सदस्य तथा राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा चुने गए 238 सदस्य होते हैं। राज्य सभा में इस समय 245 सदस्य हैं।
राज्य सभा एक स्थायी सभा है। राज्य सभा के सदस्यों कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। हर दो वर्ष बाद एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उन स्थानों के लिए ताजा चुनाव होते हैं।
लोक सभा : दूसरा सदन लोक सभा यानी लोक सदन है। इसका निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से करती है। भारत का हर नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष है, लोक सभा के चुनावों में वोट देने का अधिकारी है। संविधान में लोक सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 निश्चित की गई है ।
राज्य सभा का सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की आयु कम-से-कम 30 वर्ष और लोक सभा की सदस्यता के लिए 25 वर्ष होनी चाहिए। कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के और सदस्य होने के योग्य नहीं होगा यदि वह (1) भारत का नागरिक नहीं है अथवा अन्यथा किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा रखता है; (2) दिवालिया है अथवा पागल है और उसके बारे में सक्षम न्यायालय की घोषणा विद्यमान है; (3) भारत सरकार के या राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, सिवाय मंत्री पद के अथवा उस पद के जिसके बारे में संसद ने विधि द्वारा छूट दी है; और (4) संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन अयोग्य ठहराया गया है।
संसद के अधिकारी : संविधान में लोक सभा के लिए अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का और राज्य सभा के लिए सभापति तथा उपसभापति का उपबंध किया गया है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। उपसभापति का चुनाव राज्य सभा अपने सदस्यों में से करती है।
भारत में, अध्यक्ष का प्रमुख दायित्व है कि वह सदन की कार्यवाही का सहज तथा सुव्यवस्थित संचालन करे। अध्यक्ष निश्चित करता है कि लोक सभा के एकमात्र अधिकारक्षेत्र के भीतर आने वाले वित्तीय विधेयक कौन से हैं। जब भी किसी अन्य विधेयक के बारे में दोनों सदनों के बीच मतभेद होने पर संयुक्त बैठक बुलाई जाती है तो वह ऐसी संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है ।
संसद के सत्र : राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को अधिवेशन के लिए बुलाता है। लेकिन दो सत्रों के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा। सामान्यतया प्रतिवर्ष संसद के तीन सत्र होते हैं अर्थात बजट सत्र (फरवरी – मई), वर्षाकालीन सत्र (जुलाई-सितंबर) और शीतकालीन सत्र ( नवंबर – दिसंबर ) । लेकिन राज्य सभा के बजट सत्र का विभाजन दो सत्रों में कर दिया जाता है और उनके बीच तीन से चार सप्ताह का अंतराल होता है । अतः उसके वर्ष में चार सत्र हो जाते हैं ।
बजट : राष्ट्रपति से अपेक्षा की जाती है कि वह प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए अनुमानित प्राप्तियों तथा व्यय का विवरण रखवाएगा। इसे ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ या बजट कहा जाता है।
विनियोग विधेयक : लोक सभा द्वारा अनुदान की मांगों को स्वीकार कर लिए जाने के बाद भारत की संचित निधि में से विनियोग के लिए विधेयक निश्चित किया जाता है। अनुदानों की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियों को लोक सभा अनुमति प्रदान करती है तथा व्यय को संचित निधि पर पारित किया जाता है ।
संसद की भाषा : संविधान में घोषणा की गई है कि संसद में कार्य हिंदी तथा अंग्रेजी में किया जाएगा। लेकिन पीठासीन अधिकारी किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है।
संसदीय विशेषाधिकार : विशेषाधिकार की परिभाषा की जा सकती है कि वह ऐसा अधिकार है, जो दूसरों के पास नहीं होता। संसदीय विशेषाधिकार संसद के दोनों सदनों, उसके सदस्यों तथा समितियों के वे विशेष अधिकार हैं जिनके बिना वे अपने कृत्यों का निर्वहन उस रीति से नहीं कर सकते जिसकी उनसे आशा की जाती है।
संसद के कार्य : परंपरा से विधायिका का मुख्य कार्य विधान बनाना है। संसद संविधायी शक्तियां भी रखती है। जहां संसद विशेष बहुमत द्वारा संविधान के विविध अनुच्छेदों में स्वयं संशोधन कर सकती है, वहां कतिपय मामलों में राज्यों की सहमति आवश्यक होती है।

राज्यों का शासन

राज्यों में शासन की व्यवस्था आमतौर पर संघ का ही अनुसरण करती है। राज्य स्तर पर भी वैसी ही संसदीय शासन प्रणाली है जिसमें एक संवैधानिक अध्यक्ष होता है। मंत्रिगण विधानमंडल के जन- निर्वाचित सदन के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
कार्यपालिका : हर राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। राज्यपाल के लिए पदावधि पांच वर्ष की है। लेकिन वह राष्ट्रपति की इच्छा पर पद धारण करता है। राज्यपाल के कार्यकाल की कोई गांरटी नहीं है। राष्ट्रपति उसे किसी भी समय पद से हटा सकता है ।
राज्यपाल की अनुमति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता, भले ही उसे दोनों सदन पारित कर दें। राज्यपाल उस अवधि के दौरान अध्यादेश जारी कर सकता है जब विधान सभा अथवा दोनों सदनों का (जहां विधानमंडल के दो सदन हों) सत्र न चल रहा हो ।
राज्यपाल से अपेक्षा की जाती है कि वह विधानमंडल के सदन अथवा सदनों के समक्ष बजट या वार्षिक वित्तीय विवरण रखवाए। राज्यपाल को क्षमा आदि प्रदान करने का अधिकार दिया गया है।
विधानमंडल : किसी राज्य का विधानमंडल राज्यपाल तथा विधान सभा से मिलकर बनेगा, सिवाय उन कुछ राज्यों के जहां विधान सभा और विधान परिषद के रूप में दो सदन हैं ।
किसी राज्य की विधान सभा में पांच सौ से अधिक तथा साठ से कम सदस्य नहीं होंगे। उन्हें प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना जाएगा। विधान सभा की अवधि पांच वर्ष होती है। विधान परिषद शाश्वत सदन है। उसका विघटन नहीं होता, लेकिन उसके एक-तिहाई सदस्य हर दो वर्ष के बाद निवृत्त हो जाते हैं ।
संघ – राज्य क्षेत्र : संघ – राज्य क्षेत्र ऐसे होते हैं जिनका प्रशासन सीधा संघ के हाथ में होता है। सात संघ – राज्य क्षेत्र हैं अर्थात दिल्ली, अंदमान और निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, पांडिचेरी तथा चंडीगढ़। हाल तक जो महानगर परिषद तथा कार्यकारी पार्षदों वाला दिल्ली संघ-राज्य क्षेत्र कहलाता था, अब वह विधानमंडल तथा मंत्रिपरिषद वाला राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बन गया है ।
संसद विधि द्वारा संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासन की व्यवस्था कर सकती है। उसके अधीन संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति अपने द्वारा नियुक्त प्रशासन के माध्यम से करता है। संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक राज्यों के राज्यपालों की भांति अध्यादेश जारी कर सकता है।

न्यायपालिका

भारत के समूचे गणराज्य के लिए एक न्यायिक प्रणाली है। सर्वोच्च न्यायालय के रूप में उच्चतम न्यायालय है। वह संघ तथा राज्यों के बीच के तथा राज्यों के आपसी संबंधों के मामलों के निपटारे के लिए है।
उच्चतम न्यायालय : भारत का एक उच्चतम न्यायालय है जिसमें इस समय एक मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश हैं। राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के बाद, जिनमें वह परामर्श करना उचित समझे, उच्चतम न्यायालयों के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा ।
सामान्यतया उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त किया जाता है। उच्चतम न्यायालय का हर न्यायाधीश तब तक पद पर बना रहता है जब तक वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता । इस समय मुख्य न्यायमूर्ति को 33,000 रुपए प्रति मास तथा अन्य सभी न्यायाधीशों को 30,000 रुपए प्रति मास वेतन के रूप में मिलते हैं। उसमें किराए से मुक्त आवास, देश के भीतर यात्रा, यात्रा – व्यय, पेंशन आदि भत्ते, सुविधाएं तथा विशेषाधिकार शामिल नहीं हैं।
उच्चतम न्यायालय देश का सर्वोच्च न्यायालय है। अतः उसकी कार्यवाहियों, कार्यों तथा निर्णयों के अभिलेख रखे जाते हैं ताकि कानून क्या है, इसके समर्थन में जरूरत पड़ने पर उन्हें साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। किसी न्यायालय में उनकी प्रामाणिकता को चुनौती नहीं दी जा सकती।
लोकहित संबंधी मुकदमे : जनता को कोई भी व्यक्ति, भले ही उसका उस मामले से सीधा संबंध न हो, उच्च न्यायालय में गुहार कर सकता है। एक पत्र के द्वारा भी न्यायालय के द्वार तक पहुंचा जा सकता है। लोकसेवी व्यक्ति/नागरिक को या समाजसेवी संगठनों को छूट मिल गई है कि वे आम जनता के हित में न्यायिक राहत की मांग कर सकें।
न्यायपालिका की स्वाधीनता : मानव अधिकारों को सुनिश्चित करने तथा लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए स्वाधीन तथा निष्पक्ष न्यायपालिका आवश्यक है। केवल एक स्वाधीन न्यायपालिका ही व्यक्ति तथा संविधान के अधिकारों के अभिभावक के रूप में प्रभावशाली ढंग से कार्य कर सकती है।
उच्च न्यायालय : संविधान के अनुसार हर राज्य में एक उच्च न्यायालय होगा। लेकिन दो या अधिक राज्यों के लिए साझे उच्च न्यायालय की स्थापना भी हो सकती है। न्यायालय को सभी शक्तियां प्राप्त होंगी। उच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है। अधिनियम के अधीन उच्च न्यायालय का हर न्यायाधीन वेतन के रूप में 25,000 रुपये प्रति मास प्राप्त करता है और राज्य का मुख्य न्यायमूर्ति वेतन के रूप में 30,000 रुपये प्रति मास प्राप्त करता है । इसके अलावा, वे निःशुल्क सरकारी आवास, भत्ते तथा अन्य सुविधाओं के हकदार हैं ।
प्रत्येक उच्च न्यायालय मुख्य न्यायमूर्ति और ऐसे अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्त करना आवश्यक समझे ।
अधीनस्थ न्यायालय : जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के परामर्श से राज्यपाल करता है । वह व्यक्ति जो सरकारी सेवा में पहले से ही नहीं है, उसके पास जिला न्यायाधीश के पद का पात्र होने के लिए ‘वकालत’ का कम-से-कम सात वर्ष का अनुभव होना चाहिए। जिला न्यायालयों तथा उनके अधीनस्थ अन्य न्यायालयों पर उच्च न्यायालय का पूर्ण प्रशासनिक
नियंत्रण होगा।
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