थॉमस हॉब्स ( Thomas Hobbes )

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थॉमस हॉब्स ( Thomas Hobbes )

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बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजनीतिक दार्शनिक थॉमस हॉब्स का जन्म इंग्लैण्ड में विल्टशायर के माम्जबरी नामक स्थान पर 5 अप्रैल सन् 1588 ई. को हुआ था। यहीं उसकी प्रारंभिक शिक्षा भी हुई। 15 वर्ष की आयु से पहले ही उसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भेज दिया गया। लेकिन इस शिक्षा से वह उदासीन बना रहा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी छोड़ने के पश्चात् वह विलियम कैवेन्डिस के पुत्र एवं उत्तराधिकारी का संरक्षक और अध्यापक हो गया। हॉब्स के जीवन पर इस परिवार का विशेष रूप से प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसी परिवार के जरिये हॉब्स बेन, जोन्सन, बेकन और क्लेरेंडन से परिचित हुआ । यहाँ उसका दृष्टिकोण राजतंत्रवादी बना रहा ।
हॉब्स महोदय ने स्वयं लिखा है कि वह और भय दोनों जुड़वाँ भाई हैं। इस भय के पीछे एक मूल कारण यह था कि इंग्लैण्ड जब युद्ध के भय से आतंकित था, उसी समय हॉब्स की माँ ने समय से पूर्व ही हॉब्स को इस मानव रूपी संसार में जन्म दिया था। फलत: भय ने हॉब्स के मन में जीवन भर के लिए घर कर लिया था। हॉब्स का जीवन संघर्षपूर्ण परिवेश में बीता सन् 1642 ई. से सन् 1949 ई. में हुए इंग्लैण्ड का गृह युद्ध अपनी आँखों से देखा था। जिसने हॉब्स के मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डाला और उसका यह विश्वास दृढ़ हो गया कि शक्तिशाली राजतंत्र के बिना देश में शांति तथा सुव्यवस्था की स्थापना नहीं की जा सकती है।
गिलक्राइस्ट महोदय ने लिखा है कि, “इस गृह युद्ध के परिणामों से वह बहुत दुःखी हुआ। इससे उसका यह निश्चित मत बना कि इस देश की मुक्ति का एक ही मार्ग है – शक्तिशाली निरंकुश राजसत्ता की स्थापना।”
चार्ल्स प्रथम को सन् 1649 ई. में फांसी की सजा प्रदान की गयी। इस घटना से हॉब्स इतना डर गया कि वह भी राजतंत्रवादियों के साथ फ्रांस भाग गया। उसने सन् 1651 ई. में अपने ग्रंथ लेवियाथन को प्रकाशित किया। इस ग्रंथ का तेजी से प्रसार हुआ। परंतु लेबियाथन के विचार धर्म निरपेक्ष तथा कैथोलिक धर्म के विरुद्ध होने से फ्रांस के कैथोलिक शासकों ने इसे पसंद नहीं किया। कैथोलिक जनता की प्रतिक्रिया से हॉब्स के प्राणों को एक बार पुनः खतरा अनुभव हुआ। भय वश हॉब्स ने शीघ्र ही फ्रांस से भागकर इंग्लैण्ड में तत्कालीन शासक क्रामवैल तथा संसदीय दल के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया। उसने सन् 1655 ई. में De Corpore तथा 1658 ई. में De Homine की रचना की। परंतु इन रचनाओं में धर्म निरपेक्षता तथा भौतिकवादिता की धारणा अपनाने के कारण हॉब्स को धर्मपंथियों तथा आध्यात्मिकवादियों के विरुद्ध संकट का सामान करने का भय बना रहा। सन्
1660ई. में जब उसका शिष्य चार्ल्स द्वितीय इंग्लैण्ड का शासक हुआ तो हॉब्स का डर व भय कुछ कम हुआ। चार्ल्स ने हॉब्स के साथ गुरुवत् व्यवहार करते हुए उसे पेंशन देना शुरू कर दिया और अन्त में सन् 1679 ई. में इस मानव रूपी संसार से विदा हो गया है। इस समय इनकी अवस्था 92 वर्ष थी।
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