कुछ महत्त्वपूर्ण लोकोक्तियाँ | JNV Class 6th Hindi solutions

कुछ महत्त्वपूर्ण लोकोक्तियाँ | JNV Class 6th Hindi solutions

अपनी-अपनी ढफली अपना-अपना राग (सबकी अलग-अलग राय होना) : अनेक विरोधी दलों के होने से कोई किसी की नहीं सुनता, आखिर अपनीअपनी ढपली अपना-अपना राग जो ठहरा ।
अन्धा क्या जाने वसंत की बहार (अनभिज्ञ आदमी को आनन्द नहीं मिल सकता) : ललित तो पाँचवीं पास है, उसे कामायनी में क्या दिलचस्पी ? अन्धा क्या जाने वसंत की बहार ।
अन्धा क्या चाहे, दो आँखें (मुँह माँगी वस्तु मिलना) : दीपू को गणित के अध्यापक की आवश्यकता थी कि एक दिन अचानक वह उसका किरायेदार बनकर आ गया। अन्धा क्या चाहे दो आँखें । “
अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत ( नुकसान होने के पश्चात् पछताने से क्या लाभ) : पूरे साल तो आवारागर्दी की, अब फेल होने पर क्यों रोते हो । अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
अन्त भला तो सब भला ( अच्छे काम का अन्त अच्छा ही होता है) : सूरज बाबू तुम्हें कितना भी परेशान करें, पर अंत में तुम्हारा काम तो उन्होंने ही किया । अन्त भला तो सब भला ।
आधा तीतर, आधा बटेर (बेमेल वस्तुओं का एक साथ होना) : अरे ! ये क्या फैशन है, धोती-कुर्ते के साथ हैट-बूट | लगता है आधा तीतर, आधा बटेर ।
आ बैल मुझे मार ( जान बूझकर विपत्ति मोल लेना) : पहले जब इतने सारे रिश्तेदारों को बुला लिया, तो अब खर्चे का रोना क्यों रोते हो | सचमुच तुमने तो आ बैल मुझे मार वाला ही काम किया ।
आग लगने पर कुआँ खोदना (विपत्ति पूरी तरह आ जाने पर बचाव के उपाय करना) : पूरे साल तो बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया नहीं और जब परीक्षा सिर पर है तो अध्यापक से ट्यूशन के लिए कहते हो । आग लगने पर कुआँ खोदते हो ।
आम का आम गुठलियों का दाम (दुगुना लाभ) : जितने में नई कार खरीदी थी, उतने की ही दो साल बाद बिक गई, दो साल उपयोग भी खूब किया। इसी को तो कहते हैं आम के आम गुठलियों के दाम ।
आगे कुआँ पीछे खाई (दोनों ओर मुसीबत) : अगर दोस्त की मदद करता हूँ तो पत्नी नाराज होती है और अगर नहीं करता हूँ, तो दोस्त नाराज होता है। मेरे लिए तो आगे कुआँ पीछे खाई है।
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती (बड़े काम के लिए विशेष प्रयत्न की आवश्यकता होती है) : कारखाना लगाने के लिए कुल चार-पाँच हजार की बात मत करो, ओस चाटे प्यास नहीं बुझती ।
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर (किसी कठिन काम में कष्टों को सहना ही पड़ता है) : जब समाज सेवा करने की ठान ली है तो छोटेमोटे कष्टों से क्यों घबराते हो। जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर ।
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया ( भाग्य की विचित्रता) : भूषण बाबू का एक बेटा पुलिस अफसर है तो दूसरा साधारण सा जेबकतरा । इसी को कहते हैं- ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया ।
एक पन्थ दो काज (एक ही उपाय से दो लाभ) : मैं एक समारोह के सिलसिले में दिल्ली जा रहा हूँ तो वहाँ कुतुब मीनार और लालकिला भी देखने जाऊँगा । इससे एक पन्थ दो काज हो जाएगा।
एक अनार सौ बीमार (चीज कम पर चाहने वाले अधिक) : गाँव भर में एक डॉक्टर है पर मरीज हर घर में पड़े हैं। यहाँ तो एक अनार सौ बीमार वाली बात है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती (बात दोनों ओर से होती है) : सारा दोष बहू का नहीं हो सकता। तुम्हारी माँ ने भी कुछ कहा होगा, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती ।
एक तो करेला, दूसरा नीम चढ़ा (एक दोष के होते दूसरा लग जाना) : तुम पहले ही नहीं पढ़ते थे अब तुमने विद्यालय जाना भी बंद कर दिया, यानि एक तो करेला, दूसरा नीम चढ़ा ।
कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली (दो व्यक्तियों की प्रतिष्ठा में जमीनआसमान का अन्तर) : दो कविताएँ लिखकर अपनी तुलना सुमित्रानन्दन पन्त से करना चाहते हो–कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली ।
कंगाली में आटा गीला (एक कष्ट पर दूसरा कष्ट) : एक तो वैसे ही बेरोजगारी ने उसका जीना हराम कर रखा था, उस पर चोरी ने कंगाली में आटा गीला वाली कहावत सिद्ध कर दी ।
काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती (बेईमानी बार-बार नहीं फलती) : मसालों में मिलावट करके सेठ मगनलाल कई बार जनता को ठग चुका था, मगर अबकी बार पकड़ा गया। आखिर काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती ।
काला अक्षर भैंस बराबर (अनपढ़ आदमी) : मैं अपनी निरक्षर पत्नी को क्या पत्र लिखूँ, उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
का वर्षा जब कृषि सुखाने (अवसर बीत जाने पर सहायता व्यर्थ है):  जब मुझे रुपयों की आवश्यकता थी तब तो आपने दिए नहीं, अब मैं इन रुपयों का क्या करूँ ? का वर्षा जब कृषि सुखाने ।
कोयले की दलाली में मुँह काला (बुरों का साथ देने पर कलंक ही लगता है) : मैं सड़क पर हुल्लड़ मचा रहे लोगों को देखने क्या रुक गया कि अचानक मौके पर आई पुलिस ने अन्य लोगों के साथ मुझे भी पकड़ लिया। सच है, कोयले की दलाली में मुँह काला ।
खग ही जाने खग की भाषा (साथी ही साथी का स्वभाव जानता है): मेरी अपेक्षा तुम ही अनुभवी से बात करो, वह तुम्हारी सहेली है। खग ही जाने खग की भाषा ।
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे (किसी निरपराधी व्यक्ति पर क्रोध करना) : सारा दोष बेटी का है और डाँट लगा रहे हो नौकर को। खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे ।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया (अधिक मेहनत करने पर कम फल मिलना) : सारा दिन मेहनत करने पर भी मात्र दस रुपये मजदूरी के मिले, सोचा था कि बीस मिलेंगे। सच ही किसी ने कहा है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया ।
गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास (अवसरवादी होना) : तुम्हारा विश्वास कैसे कर लूँ, तुम तो एक बात पर टिकते नहीं। तुम्हारे लिए तो किसी ने ठीक ही कहा है— गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास ।
गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज (बनावटी परहेज) : तुम्हारा भी अजीब रवैया है कि अण्डे नहीं खाते, मगर केक-पेस्ट्री शौक से खाते हो। तुम पर यह उक्ति बिल्कुल सही बैठती है कि गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज ।
घर का भेदी लंका ढाए (आपस की फूट से घर तबाह हो जाता है) : हमारी ही पार्टी के लोगों ने विपक्षी पार्टियों के सामने हमारी सारी पोल खोल दी । सच है, घर का भेदी लंका ढाए ।
घर की मुर्गी दाल बराबर (घर की चीज की कद्र नहीं होती) : तुम्हारे बड़े भैया तो खुद वकील हैं। फिर सलाह लेने के लिए तुम दूसरों के पास जाते क्यो हो ? ठीक ही कहा है। घर की मुर्गी दाल बराबर ।
चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए (बहुत कंजूस होना) : मनोहर लाल एक सप्ताह से बीमार है पर खर्चे के कारण डाक्टर को नहीं बुलाना चाहता । उसके लिए तो ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ वाली बात है।
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात ( सुख के दिन सदा नहीं रहते) : पिता की दौलत पर जितने आराम करना है कर लो, पर याद रखो । चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात ।
चोर की दाढ़ी में तिनका (अपराधी स्वयं भयभीत रहता है) : चोरी होने की बात सुनते ही नौकरानी ने सफाई देनी आरम्भ कर दी, मैं तुरन्त समझ गया कि चोर की दाढ़ी में तिनका है ।
चोर का साथी गिरहकट (अपने जैसा साथी मिल जाना) : मुनीलाल दुराचारी तो था ही, अब उसे शराबी और जुआरी साथी भी मिल गए, चोर का साथी गिरहकट ।
जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि ( कवि की कल्पना का अन्त नहीं होता) : कवियों की न पूछो, उनके बारे में तो एक ही बात कही जाती है-जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि ।
जल में रहकर मगर से बैर (जहाँ रहना वहीं के लोगों से बैर करना) : अफसर के लिए तो काम करना ही पड़ेगा, क्योंकि जल में रहकर मगर से बैर नहीं किया जा सकता।
जाको राखे साइयाँ मार सकै न कोय (जिसका भगवान रक्षक है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता) : किसी ने नेताजी पर गोली चलाई पर वे बच गए। कहते हैं—जाको राखे साइयाँ मार सकै न कोय ।
जाके पैर ” फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई (जिसने दुःख न भोगा हो, वह किसी के कष्ट को क्या जाने) : शाम्भवी ने शुभ्रा से कहा “तुमको क्या पता मेरे कष्टों का” । जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई ।
जिसकी लाठी उसकी भैंस (बलवान ही अधिकार जमाता है) : जाटों ने हरिजनों की भूमि छीनकर सिद्ध कर दिया कि जिसकी लाठी उसकी भैंस ।
जिस थाली में खाना उसी में छेद करना (कृतघ्न पुरुष): खोखा बाबू अपने नौकर को अपने पुत्र की भाँति स्नेह देते थे, मगर एक दिन उसी नौकर ने उनके घर से सब कुछ चुरा लिया। सचमुच उस नौकर ने जिस थाली में खाया उसी में छेद किया।
जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ (दोनों एक समान दुष्ट एवं भयंकर प्रकृति वाले) : आप रामू और श्यामू की बातों का विश्वास मत कीजिएगा, क्योंकि दोनों एक से बढ़कर एक दुष्ट हैं। उनके लिए तो किसी ने ठीक ही कहा है— जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ
जो तोको काँटा बुवे ताहि बोय तू फूल (बुरा करने वाले के साथ भी भलाई करे) : पड़ोसी भले कितने भी जली कटी सुनाएँ मगर उनका बुरा नहीं करना चाहिए। आपने सुना ही होगा – जो तोको काँटा बुवे ताहि बोय तू फूल।
तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर (आय के अनुसार खर्च करना) : आदमी को अपने खर्च पर अंकुश रखना चाहिए, तभी जीवन की गाड़ी आराम से चलती है। सुना होगा – तेते पाँव पसारिए, जेती लम्बी सौर।
दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम (संशय के कारण दोनों तरफ से हानि) : बेटे को या तो दुकान पर बिठा लो या पढ़ाई पूरी करने दो वरना उसकी हालत भी ‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’ वाली हो जाएगी ।
दूध का दूध, पानी का पानी (स्पष्ट रूप से न्याय करना) : जज साहब ने क्या इन्साफ किया, दूध का दूध पानी का पानी कर दिया ।
तेली का तेल जले और मसालची का दिल (एक को खर्च करते देख दूसरा परेशान) : उमानाथ जी ने बेटी की शादी पूरी धूमधाम से की मगर उनके पड़ोसी परेशान नजर आने लगे। किसी ने खूब कहा कि तेली का तेल जले और मसालची का दिल ।
दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है (एक बार धोखा खाने वाला हमेशा आशंकित रहता है) : व्यापार में एक बार साझीदार से घाटा उठाने के बाद प्रभाकर अब नया व्यापार सोच-समझ कर ही करता है। ठीक ही कहा है – दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है ।
दूर के ढोल सुहावने ( दूर की वस्तु का सुन्दर लगना) : माया नगरी मुम्बई की तारीफ सुनकर हम वहाँ घूमने गए, मगर वहाँ तो हर तरफ गन्दगी नजर आई | सच है— दूर के ढोल सुहावने होते हैं ।
दो नावों पर पैर रखना (दुविधा में होना) : बेटी से या तो नौकरी करवा लो या उसे पढ़ाई पूरी कर लेने दो। सुना होगा दो नावों पर पैर रखने से कुछ हासिल नहीं होता ।
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का (कहीं का न रहना) : कार्तिक माता-पिता से लड़कर अपने ससुराल गया तो वहाँ भी ज्यादा दिन न रह पाया । धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का ।
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी (असम्भव शर्त लगाना) : सुनीता से कुछ पेपर ‘टाइप’ करने को कहा तो कहने लगी कि इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर पर ही टाइप करूँगी । यह तो न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी वाली बात हो गई ।
नया नौ दिन पुराना सौ दिन (नए की अपेक्षा पुराना अच्छा होता है) : सरकारी मकान कुछ ही सालों में गिर गया तो हमें अपने पुश्तैनी मकान में जाना पड़ा। सच है कि नया नौ दिन, पुराना सौ दिन ।
नाच न जाने आंगन टेढ़ा (अपनी अयोग्यता छिपाने के लिए वस्तु में दोष निकालना) : सुनीधि को नाचने के लिए कहा तो कहने लगी- “संगीत ठीक नहीं है।” ठीक ही कहा गया है—नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी (झगड़े की जड़ ही नष्ट कर देना) : सारा झगड़ा अगर इस पेड़ को लेकर है तो इसे ही काट या बेच क्यों नहीं देते। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।
नौ नकद न तेरह उधार (काफी उधार के स्थान पर थोड़ा नकद अच्छा) : अगले महीने दो हजार देने के वायदे की जगह अगर तुम आज बारह सौ भी देते हो तो मेरा काम चल जाएगा–नौ नकद न तेरह उधार ।
नौ की लकड़ी नब्बे खर्च (जितने मूल्य की चीज नहीं, उससे अधिक उसकी मरम्मत में लगना) : अरे यार ! इस पुरानी कार को बेच क्यों नहीं डालते, कब तक मरम्मत करवाओगे? ये तो नौ की लकड़ी नब्बे खर्च वाली बात कर रहे हो।
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी (अपराधी कब तक बच पाएगा) : डाकू जब पुलिस के हाथ न आ पाया तो पुलिस यह सोचकर ही उसे ढूँढती है कि बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी।
मुँह में राम बगल में छुरी (कपटी व्यक्ति) : कहने को तो रामानंद जी अपनी समाजसेवा के लिए पूरे शहर में विख्यात थे, मगर अपनी पुत्रवधू को कम दहेज के कारण घर से निकाल दिया यानी मुँह में राम बगल में छुरी ।
बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले न भीख (माँगना अच्छी बात नहीं) : गायत्री नौकरी माँगने कई जगह गई मगर हर जगह उसे कोरा जवाब मिला । एक दिन घर बैठे अच्छी नौकरी का आमंत्रण मिल गया – बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख ।
बिल्ली के भागों छीका टूटा (अचानक लाभ होना) : सुरेश बेरोजगार था और उसे पैसे की तंगी थी। अचानक एक दिन उसकी मौसी ने जायदाद उसके नाम कर दी – मानो बिल्ली के भागों छीका टूटा ।
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद (अयोग्य व्यक्ति किसी गुणवान व्यक्ति का गुण नहीं जान सकता) : कभी कश्मीर के सेब खाए हैं जो इसे खट्टा बता रहे हैं? सच ही कहा है— बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ।
भागते चोर की लंगोटी भली (सब कुछ नष्ट होते देख कुछ बचा लेना ही काफी है) : किराएदार एक साल का किराया दिए बिना ही भाग गया मगर अपने कीमती सोफा, पलंग आदि छोड़ गया। मैंने सोचा – भागते चोर की लंगोटी भली ।
भैंस के आगे बीन बजाना (मूर्ख के सामने उपदेश देना) : कल के सम्मेलन में अनेक विद्वान् उपस्थित थे, किन्तु वहाँ उपस्थित अनेक लोग या तो बातें कर रहे थे या ऊँघ रहे थे। मुझे लगा कि भैंस के आगे बीन बज रही है ।
मन चंगा तो कठौती में गंगा (मन शुद्ध हो तो तीर्थों पर जाने की जरूरत नहीं) : मन की शांति क्या सिर्फ हरिद्वार में ही मिलती है, वह तो यहाँ भी मिल सकती है। अगर मन चंगा तो कठौती में गंगा ।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत (मन बलवान होने से ही मनुष्य बलवान होता है) : परीक्षा में असफल होने पर दुःखी क्यों होते हो? सुना नहीं – मन के हारे हार है, मन की जीते जीत ।
मान न मान, मैं तेरा मेहमान (जबरदस्ती गले पड़ना) : इसने एक महीने से घर पर डेरा डाल रखा है, जाने का नाम ही नहीं लेता । मान न मान, मैं तेरा मेहमान ।
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक (अपने साथियों तक ही सहायता पहुँच पाना) : पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अमेरिका से आगे नहीं ले जाता, आखिर मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक ।
यह मुँह और मसूर की दाल (योग्यता से अधिक प्राप्त करने का इच्छुक) : कमाते हो दो हजार रुपये महीना और ख्वाब देख रहे हो मारुति खरीदने की यानी यह मुँह और मसूर की दाल ।
सहजे पके सो मीठा होय (धीरे से हुए काम पक्का होता है) : जल्दी में किया गया कोई काम सफल नहीं होता, क्योंकि सहज पके सो मीठा होय ।
रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया (दुर्दशा होने पर भी अभिमान न जाना): शास्त्रार्थ में हारकर भी पंडित उमाकांत अपनी विद्वता का ढिंढोरा पीटते फिर रहे हैं। इससे तो यही लगता है कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे (ऐसी युक्ति, जिससे काम भी बन जाए और हानि भी न हो) : उस व्यक्ति से आप सीधे लड़ते क्यों हैं, कोई ऐसी युक्ति निकालिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
सिर मुँड़ाते ही ओले पड़े (काम आरम्भ करते ही बाधा पड़ना) : मैंने जैसे ही मकान बनवाना आरम्भ किया, सीमेंट के भाव बढ़ने लगे। सिर मुँड़ाते ही ओले पड़े ।
हमारी बिल्ली और हमीं से म्याऊँ (जिसपर आश्रित उसी पर रौब जमाना) : दो साल तक मेरे पास रहकर मुझसे ही शिक्षा ग्रहण की और अब मुझे ही शास्त्रार्थ में हराने की बात करते हो ? वाह भई! हमारी बिल्ली और हमीं से म्याऊँ ।
हाथ कंगन को आरसी क्या (प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता) : मैं स्वयं अपनी बेटी की क्या तारीफ करूँ, आप स्वयं परख लीजिए | हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या ।
हाथ पर दही नहीं जमता (कार्य के होने में थोड़ा समय तो लगता है) : इतना मोटा उपन्यास एक दिन में कैसे लिखा जा सकता है। आपने नहीं सुना क्या कि हथेली पर दही नहीं जमता ?
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और (जो कहे कुछ और करे कुछ) : इस नेताजी का तो विश्वास करना बेवकूफी है। इनके लिए तो ‘हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और’ वाली कहावत सही है।
हीरे की कद्र जौहरी ही जाने (गुणवान व्यक्ति ही गुणवान को पहचानता है) : मालती की प्रतिभा से अभिभूत होकर गुरुजी ने उन्हें अपनी शिष्या बनाना स्वीकार कर लिया। सच है हीरे की कद्र जौहरी ही जाने ।
हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा होय (कुछ किए बिना काम होना) : राय जी ने फ्लैट खरीदने से पहले ही उसे दस हजार के मुनाफे पर बेच दिया। इसे ही कहते हैं— हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा होय ।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात (तेजस्वी पुरुष के लक्षण बाल्यकाल में ही प्रकट होने लगते हैं) : लाल बहादुर शास्त्री बचपन से ही प्रतिभाशाली थे, जो आगे चलकर देश के योग्य प्रधानमंत्री साबित हुए – होनहार बिरवान के होत चीकने पात ।
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