झारखण्ड : अपवाह प्रणाली एवं सिंचाई

झारखण्ड : अपवाह प्रणाली एवं सिंचाई

झारखण्ड का इतिहास - inp24

> अपवाह प्रणाली एवं सिंचाई
झारखण्ड के अपवाह तन्त्र में बड़ी आकार वाली नदियाँ नहीं है. यहाँ की अधिकांश नदियाँ छोटे आकार की हैं. ये नदियाँ सदानीरा नहीं हैं, क्योंकि इनका स्रोत अमरकंटक के पहाड़ी या छोटा नागपुर के पठार हैं. ये नदियाँ धरातलीय बनावट के अनुसार बहती हैं. ये नदियाँ बिहार के धरातलीय स्वरूप को विकसित करने में निर्णायक भूमिका अदा करती हैं. झारखण्ड की नदियाँ यहाँ के उद्योग स्थापना में सहायक हैं. प्रायः सभी प्रमुख उद्योग नदी किनारे अवस्थित हैं. ये नदियाँ सिंचाई, मत्स्यपालन, पन बिजली की प्राप्ति का साधन हैं. झारखण्ड की अधिकांश नदियाँ उत्तर की ओर प्रवाहित होकर गंगा में मिल जाती हैं या फिर स्वतन्त्र रूप से पूर्व की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं. यहाँ की प्रमुख नदियों में सोन, दामोदर, उत्तरी कोयल, दक्षिण कोयल, शंख, स्वर्ण रेखा, खरकई, किऊल, फल्गू, पुनपुन इत्यादि.
> सोन
यह अमरकंटक से निकलकर उत्तर-पूर्व बहते हुए झारखण्ड के गढ़वा जिले में प्रवेश करते हुए बिहार में औरंगाबाद जिले में प्रवेश कर जाती है. यह गंगा में दानापुर के निकट मिल जाती है. झारखण्ड में यह 100-120 किलोमीटर ही बहती है. उत्तरी कोयल इसमें मिलती है. यह झारखण्ड के उत्तर-पश्चिम हिस्से को बिहार से पृथक् करती है.
> दामोदर
दामोदर पलामू की दक्षिणी-पूर्वी पहाड़ियों से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती हुई धनंबाद से आगे बंगाल में प्रवेश करती है एवं 541 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद कोलकाता से लगभग 50 किलोमीटर उत्तर, हुगली से मिल जाती है. दामोदर की सहायक नदियों में बराकर, बोकारो, कोना, भेड़ा आदि प्रमुख हैं. झारखण्ड की यह सबसे बड़ी नदी है.
> स्वर्ण रेखा
यह पिस्का नगड़ी (राँची से पश्चिम) से निकलकर पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हुई मुरी के समीप दक्षिण की ओर मुड़ती है. बहरा गोड़ा के समीप पश्चिम बंगाल में प्रवेश के बाद दक्षिण की ओर मुड़ते हुए उड़ीसा में प्रवेश करती है. अन्ततः बंगाल की खाड़ी में गिरती है. जुमार, रारू, कांची, खरकई, संजय आदि इसकी प्रमुख नदियाँ हैं.
> बराकर
यह नदी बरकट्टा (हजारीबाग ) के निकट से निकलते हुए कोडरमा, गिरिडीह, धनबाद जिले से गुजरती हुई मैथान के आगे दामोदर नदी में मिल जाती है.
> पुनपुन
यही पलामू की चोरहा पहाड़ी से निकलकर फतुहा के निकट गंगा में मिलती है.
> फल्गू 
यह नदी छोटा नागपुर के पठार से निकलती है.
> किऊल
इस नदी का उद्गम हजारीबाग जिले के खगड़ीसा के निकट है.
> उत्तरी कोयल खगडीह
यह लोहरदगा के उत्तर से निकलकर उत्तर की ओर बहते हुए पलामू से गुजरते हुए सोन नदी में मिल जाती है. दक्षिण कोयल तथा कारो दक्षिण की ओर प्रवाहित तोरपा से आगे एक-दूसरे में मिल जाती है. शंख तथा दक्षिण कोयल उड़ीसा में एक-दूसरे से मिलकर ब्राह्मणी के नाम से प्रवाहित होती है.
झारखण्ड की नदियों ने अनेक जलप्रपातों का निर्माण किया है, जिसमें हुण्डरू, जोंहा, दशम, हिरणी, घाघरी, लोध, मोतीझरा, गौमतघाघ, रजरप्पा आदि प्रमुख हैं.
> सिंचाई
झारखण्ड की कृषि मानसून पर आधारित है और मानसून स्वयं अनिश्चित है. ऐसे में सिंचाई की महत्ता बढ़ जाती है. कृषि के लिए सालभर जल की उपलब्धता हेतु सिंचाई ही एकमात्र विकल्प है. झारखण्ड बिहार की तरह कृषि प्रधान राज्य है. यहाँ की 75 प्रतिशत जनता कृषि पर आधारित है. कृषि यहाँ के अधिकांश लोगों की जीविका का मूल साधन है. झारखण्ड की भूमि समतल नहीं है, नदियों में सालभर पानी नहीं रहता है. ऐसे में यहाँ सिंचाई की अधिक जरूरत है, किन्तु सिंचाई साधनों के समुचित विकास की कठिनाइयों के कारण छोटा नागपुर की • कुल कृषि भूमि का मात्र 10 प्रतिशत भाग ही सिंचित है. झारखण्ड राज्य में औसत वर्षा लगभग 1372 मिमी है, परन्तु चार मानसून महीनों में फैली रहती है तथा वर्षा की प्रकृति सामान्य नहीं रहती है. झारखण्ड राज्य में कुल सिंचित क्षेत्र मात्र 8-10 प्रतिशत है.
> सिंचाई के साधन
झारखण्ड में सिंचाई का सर्वाधिक मुख्य साधन नहर एवं आहर है. ऐसा यहाँ की धरातलीय प्रकृति के कारण है. पथरीली भूमि के कारण कुआँ या नहर खोदना तो सहज और न ही सस्ता है. सिंचाई के अन्य साधनों में तालाब, कुआँ, आहर एवं पाइन मुख्य हैं.
> नहर
झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र का 21.45 प्रतिशत भाग नहर द्वारा सिंचित है. यहाँ की नहरें अनित्यवाही हैं, क्योंकि यहाँ का धरातल ऊबड़-खाबड़ है, जिससे नहर निर्माण कष्टकर है. फिर भी कुछ नहरों का निर्माण किया गया है.
> कनाडा बाँध की नहरें
संथाल परगने में मयूराक्षी नदी पर मैसनजोर’ नामक स्थान पर एक 1095 मीटर लम्बा और 46 मीटर ऊँचा बाँध बनाया गया है. इस नहर से चावल की खेती में सुविधा होती है.
इस नहर के अतिरिक्त झारखण्ड के उत्तरी नदी क्षेत्र में तथा सिंहभूम में कुछ छोटी नहरों से सिंचाई की जाती है. मयूराक्षी बाँध योजना (कनाडा बाँध की नहरें) से झारखण्ड के सीमित क्षेत्रों को ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, क्योंकि यह बाँध योजना झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल राज्य की सीमा पर स्थित है. बोकारो जिले में भूमिगत नहर मार्ग द्वारा कोनार नदी के जल को सिंचाई के लिए के उपलब्ध कराने की योजना को शुरू करने की झारखण्ड की प्रथम सरकार द्वारा घोषणा की गई है.
> तालाब
झारखण्ड का क्षेत्र कठोर भूमि का क्षेत्र है. अतः यहाँ तालाब की खुदाई कष्टकर है. यहाँ अपारगम्य शैलों की उपस्थिति के कारण तालाब की गुणवत्ता उत्तम है. फिर भी उच्चावच सादृश्यता नहीं होने के कारण तालाब द्वारा सिंचाई क्षेत्र कुल सिंचित क्षेत्र का मात्र 18.9 प्रतिशत है. तालाब द्वारा सिंचित क्षेत्र 40680 हेक्टेयर है.
> कुआँ
झारखण्ड में कुआँ द्वारा भी सिंचाई को प्रधानता प्राप्त है. यहाँ कुल सिंचित भूमि का 12.75 प्रतिशत क्षेत्र कुओं द्वारा सिंचित है. कुआँ द्वारा कुल सिंचित भूमि 27,450 हेक्टेयर है. इस सिंचित भूमि का 96 प्रतिशत भाग सम्मिलित रूप से हजारीबाग, राँची, संथाल – परगना प्रमण्डल एवं गिरिडीह तथा पलामू जिले में स्थित है.
> नलकूप
अखण्डित बिहार में शक्ति चालित नलकूपों द्वारा सिंचाई सर्वप्रथम 1944-45 में डेहरी सासाराम में किया गया था. विद्युत् के प्रसार के साथ ही नलकूपों की सिंचाई का महत्व तथा उपयोग का प्रचलन बढ़ता गया, इसकी उपयोगिता मानसून की असफलता एवं रबी तथा गरम फसलों के उत्पादन के समय महसूस की जाती है.
झारखण्ड की धरातलाकृति नलकूपों के निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है. यही कारण है कि नलकूपों से यह मात्र 6.3 प्रतिशत भूमि सिंचित होती है. झारखण्ड के जिलों को यदि नलकूपों द्वारा सिंचाई के आधार पर क्रम में रखना चाहें तो प्रथम स्थान पलामू, द्वितीय स्थान राँची, तृतीय स्थान संथाल परगना एवं चतुर्थ स्थान गिरिडीह जिलों को दिया जा सकता है.
> अन्य साधन
सिंचाई के अन्य साधनों में आहर, पाइन आदि हैं. झारखण्ड में सिंचाई की दृष्टि से इन साधनों का प्रथम स्थान है. यहाँ पाइन द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र 87,300 हेक्टेयर है, जो कुल सिंचित क्षेत्र का 40-58 प्रतिशत है. पाइन आहर द्वारा सिंचित क्षेत्र सर्वाधिक पलामू जिला एवं संथाल परगना प्रमण्डल में है, क्योंकि इन्हीं दो क्षेत्रों में समतल क्षेत्र का अनुपात अन्य पठारी जिलों की अपेक्षा अधिक है. झारखण्ड के कुछ क्षेत्रों की सिंचाई नदी घाटी योजनाओं से भी होती है.
> बहुउद्देशीय परियोजनाएँ 
सर्वप्रथम यू. एस. ए. में टैनेसी घाटी योजना ना योजना अपनायी गई. जिसकी सफलता से प्रभावित होकर भारत ने भी बहुउद्देशीय परियोजनाओं को अपनाया. इसके अन्तर्गत भारत सरकार ने अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएँ शुरू कीं. दामोदर घाटी योजना भारत की प्रथम बहुउद्देशीय परियोजना थी. तत्कालीन प्रधानमन्त्री नेहरू ऐसी परियोजनाओं को आधुनिक भारत का मन्दिर एवं तीर्थस्थल कहते थे. झारखण्ड में दो बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं – दामोदर घाटी परियोजना एवं स्वर्ण रेखा परियोजना.
> दामोदर घाटी परियोजना
दामोदर नदी छोटा नागपुर की खमेर पाट पहाड़ियों से 610 मीटर की ऊँचाई से निकलती है. यह 530 किलोमीटर लम्बी है तथा खण्ड में 290 किलोमीटर बहने के बाद पश्चिम बंगाल में 240 किलोमीटर बहकर हुगली नदी में गिर जाती है. इसकी ऊपरी घाटी में वर्षाकाल में अत्यधिक वर्षा होने से इसमें भयंकर बाढ़ आती है तथा अपने किनारे की मिट्टी को कर बहा ले जाती है, जो कृषि के दृष्टिकोण से काफी नुकसानदायक है.
यह नदी बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध रही है. इसे ‘बंगाल का शोक’ कहा जाता था. अस्तु 7 जुलाई, 1948 को दामोदर घाटी निगम की स्थापना की गई. इस बहुउद्देशीय योजना के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
1. सिंचाई एवं भूमि का वैज्ञानिक उपयोग एवं प्रबन्ध करना.
2. (जल) विद्युत् शक्ति उत्पादन में वृद्धि कर औद्योगीकरण को सफल बनाना.
3. बाढ़ों पर नियन्त्रण.
4. जल जनित बीमारियों की रोकथाम में सहायता करना.
5. जल परिवहन का विकास.
6. मत्स्यपालन.
7. वन संरक्षण, वृक्षारोपण, घरेलू ईंधन का प्रबन्ध करना. 
8. भूमि का क्षरण रोककर उसे कृषि योग्य बनाना.
9. औद्योगिक विकास.
इस परियोजना के अन्तर्गत आठ बाँध होंगे जिनसे विद्युत् गृह सम्बद्ध होंगे एवं एक बड़ा अवरोधक बनाया गया है. ये बाँध क्रमशः बराकर नदी पर मैथन, बाल पहाड़ी एवं तिलैया बाँध है. दामोदर नदी पर पंचेत हिल, ऐयर एवं बरमो बाँध, बोकारो बाँध एवं कोनार पर कोनार बाँध है. दुर्गापुर के पास एक बड़ा अवरोधक है. इसके अतिरिक्त कोनार नदी पर अन्य दो बाँध बनाने की योजना है.
> तिलैया बाँध
यह बाँध कोडरमा जिले में बराकर नदी पर उसके तथा दामोदर के संगम से 210 किलोमीटर ऊपर सन् 1953 में बनाया गया. यह बाँध 350 मीटर लम्बा और 33 मीटर ऊँचा है. इसके जलाशय में लगभग 54 हजार हेक्टेयर मीटर जल एकत्रित किया जाता है. इससे लगभग 75 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है. इस बाँध पर एक भूमिगत विद्युत् शक्तिगृह बनाया गया है, जिसकी विद्युत् बनाने की क्षमता 60,000 के. डब्ल्यू. है. यह विद्युत् शक्ति कोडरमा एवं हजारीबाग की अभ्रक खानों को दी जा रही है.
> कोनार बाँध
यह बाँध दामोदर नदी के संगम से 24 किलोमीटर पूरब में कोनार नदी पर सन् 1955 में बनाया गया है. यह बाँध 885 मीटर लम्बा एवं 48 मीटर ऊँचा है. इस बाँध का निर्माण मुख्य रूप से बोकारो के ताप विद्युत् गृह को ठण्डा जल पहुँचाने के लिए किया गया है. इस बाँध 40,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भी होगी. बाँध के ठीक नीचे 40,000 के. डब्ल्यू. क्षमता का एक भूगर्भ स्थित विद्युत् गृह बनाया गया है (विचाराधीन).
> मैथान बाँध
यह बाँध बराकर नदी पर दामोदर नदी के संगम के कुछ ही ऊपर बनाया गया है. यह 4357 मीटर लम्बा एवं 55 ऊँचा है. इस बाँध में 13610 लाख घन मीटर जल एकत्रित कर लगभग 1-25 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है. बाँध के निकट भूगर्भ स्थित विद्युत् गृह (जल) की संस्थापित क्षमता 60,000 के. डब्ल्यू. है. यह बाँध सन् 1957 में तैयार हुआ था.
> पंचेत पहाड़ी बाँध
झारखण्ड के धनबाद तथा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले की सीमा पर दामोदर-बराकर नदी के संगम स्थल से 5 किलोमीटर पूर्व में 1,497 लाख घन मीटर जल संग्रहण की क्षमता वाले 2550 मीटर लम्बे तथा 45 मीटर ऊँचे बाँध का निर्माण 1959 में किया गया.
इस चार प्रमुख बाँधों के अतिरिक्त बोल पहाड़, बोकारो, ऐयर तथा बरमो में भी बाँध बनाने की योजना है. दामोदर घाटी नहर प्रणाली के अन्तर्गत निकाली गई सभी नहरों की कुल लम्बाई 2,495 किमी है. जो पश्चिम बंगाल में स्थित है.
> दुर्गापुर अवरोध बाँध
93 मीटर लम्बा 12 मीटर ऊँचा है. इस बाँध से निकाली गई नहरों से 4 लाख हेक्टयर भूमि की सिंचाई होती है. इस बाँध में दोनों किनारों पर नहरें निकाली गई हैं. दाहिने ओर की नहरें 64 किमी और बायीं ओर की नहरें 173 किमी लम्बी हैं. यह दामोदर नदी को कोलकाता से 48 किमी ऊपर की ओर हुगली नदी से मिलाती है. इस नहर से कोलकाता एवं घाटी के बीच में कोयला आदि वस्तुएँ ढोने की सुविधा हो गयी है. इस बाँध से निकाली गयी नहरों और शाखाओं की कुल लम्बाई 2,495 किमी है.
इस परियोजना से पश्चिम बंगाल के हावड़ा, हुगली एवं पाकुड़ा में 1.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा रही है.
इस परियोजना के द्वितीय चरण में बर्मो, सेयर, बोकारो एवं बाल पहाड़ी स्थानों पर जल विद्युत् शक्ति के लिए बाँध बनाये जायेंगे. इस परियोजना के अन्तर्गत झारखण्ड में (दो) ताप विद्युत् गृह केन्द्र क्रमशः बोकारो एवं चन्द्रपुरा तथा (तीन) जल विद्युत् गृह केन्द्र पंचेत, तिलैया एवं मैथन में स्थापित किया गया है.
> स्वर्ण रेखा बहुउद्देशीय परियोजना
झारखण्ड की यह दूसरी एवं महत्वपूर्ण परियोजना है जो स्वर्ण रेखा एवं उसके सहायक नदियों पर स्थित है. यह झारखण्ड, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल की संयुक्त योजना है. इस पर कुल 480-90 करोड़ रुपए व्यय होने का अनुमान है, जिसमें बिहार 378-48 करोड़, उड़ीसा 97.57 करोड़ तथा पश्चिम बंगाल 4-85 करोड़ रुपए का योगदान करेगा. इसमें कुल 2-25 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होगी जिसमें 1,60,000 हेक्टेयर, झारखण्ड में, 90,000 हेक्टेयर उड़ीसा में 5,000 हेक्टेयर पश्चिम बंगाल में होगी.
इस परियोजना के तहत् हुंडरू जलप्रपात से जल विद्युत् उत्पन्न करने हेतु एक संयन्त्र लगाया गया है जिससे कुल 120 मेगावाट बिजली उत्पादन होता है.
> जल संसाधन एवं संरक्षण
जल जीवन का आधार है. इसका उपयोग न केवल पेयजल एवं कृषि में है, वरन् जल विद्युत् के प्रत्यक्ष उपभोग में एवं अन्य सभी उद्योगों में परोक्ष रूप से है. इसका उपयोग, उद्योग, मत्स्यपालन, यातायात, मनोरंजन एवं वन्य जीवों के सरंक्षण के लिए आवश्यक है. जल संसाधन एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है, जिसे प्रकृति ने झारखण्ड को देने में कोताही नहीं की है. जल संसाधन के दो मुख्य स्रोत हैं— भूमिगत एवं धरातलीय. इन दोनों स्रोतों के मध्य घनिष्ठ अन्तर्सम्बन्ध पाया जाता है झारखण्ड में धरातलीय जल संसाधन की क्षमता भूमिगत जल संसाधन की अपेक्षा ज्यादा है. भूमिगत जल संसाधन की क्षमता कम होने के कारण यहाँ नलकूपों की सम्भावना चकुलिया क्षेत्रों में ही सम्भव है.
अखण्ड बिहार के 21 रिभर बेसिन की कुल क्षमता 325-77 मिलियन क्यूविक मीटर है, इसमें से झारखण्ड के 7 बेसिन की क्षमता मात्र 18-18 मिलियन क्यूविक मीटर होती है, अर्थात् सकल क्षमता का लगभग 5-6 प्रतिशत.
झारखण्ड में कुल 7 बेसिन हैं जिनमें उपलब्ध जल क्षमताओं को 2025 तक विस्तारित करने पर, श्रेय, कोयल बेसिन को छोड़कर झारखण्ड के शेष बेसिन में पानी की कमी ( मानक मापदण्ड ) होगी, जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
> झारखण्ड की नदी घाटियाँ निम्नलिखित हैं –
उत्तरी कोयल बेसिन, दक्षिण कोयल बेसिन, दामोदर, बराकर बेसिन, स्वर्ण रेखा, खरकई बेसिन, अजय बेसिन एवं मयूराक्षी बेसिन दामोदर नदी बेसिन के जल का लगभग पूर्णतः प्रयोग हो गया है. इस बेसिन में कोयला उद्योग एवं कोयला पर आधारित विभिन्न ताप विद्युत् केन्द्र, स्टील उद्योग आदि हैं. हाल ही में एन.टी.पी.सी. द्वारा नार्थ कर्णपुरा थर्मल पॉवर स्टेशन स्थापित करने की योजना है, जिसे पानी की कमी महसूस होगी. यह अति प्रदूषित नदी श्रेणी है, जो झारखण्ड की पर्यावरण के लिए घातक है.
दामोदर रिभर बेसिन की तरह स्वर्ण घाटी बेसिन भी औद्योगीकरण के दुष्प्रभाव से ग्रसित है. इस बेसिन में टिस्को जैसे औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं. जमशेदपुर के सैकड़ों उद्योग इस नदी के जल पर आधारित हैं, जिससे कि टिस्को को जल की कमी महसूस हो रही है. अपने जलापूर्ति हेतु इस नदी पर डिमना डैम का निर्माण किया गया है. टिस्को एवं अन्य औद्योगिक इकाइयों के जलापूर्ति हेतु स्वर्ण रेखा परियोजना द्वारा चांडिल डैम का निर्माण किया गया है.
जल संसाधन के विभिन्न स्रोतों के अति उपयोग एवं दुरुपयोग से आज झारखण्ड में स्वच्छ पेयजल की समस्या, सिंचाई की कमी, परम सिंचन क्षमता की स्थिति बेहतर नहीं है. औद्योगिक एवं कृषि विकास के साथ स्वस्थ जीवन स्तर एवं पर्यावरण के लिए 2000 क्यूविक मीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष उपलब्ध होना आवश्यक है. पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार 1000-2000 क्यूविक मीटर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष वाले क्षेत्र को पानी की कमी का क्षेत्र माना गया है और 1000 क्यूविक मीटर से कम पानी के क्षेत्र में कृषि, औद्योगिक विकास और लोगों के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो जाता है.
स्थिर बेसिनों के जल संसाधन की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण अनुमान है कि 2024 तक झारखण्ड में अन्न की तीव्र कमी महसूस की जाएगी. अतः इस कृषि प्रधान राज्य हेतु जल संरक्षण की उत्तम व्यवस्था होना जरूरी है.
> सरकारी प्रयास
झारखण्ड सरकार ने मार्च के अन्दर बन्द पड़ी कोनार नहर परियोजना को चालू करने का (21 जनवरी, 2001) आश्वासन दिया है. कोनार नहर परियोजना के चालू हो जाने से 63 हजार एकड़ भूमि में सिंचाई कार्य हो सकेगा. इस वर्ष 7 बड़े तालाब, 76 चैक डैम एवं 73 लिफ्ट एरिगेशन का कार्य पूर्ण करने की योजना है.

 मुख्य बातें

> झारखण्ड की नदियाँ कम लम्बाई वाली हैं.
> झारखण्ड की कोई भी नदी 600 किमी से अधिक
लम्बी नहीं है.
> झारखण्ड की नदियों को स्रोत प्रायद्वीपीय पठार या पहाड़ हैं, अतः यहाँ की नदी सदावाहिनी नहीं होती है.
> दामोदर नदी झारखण्ड की सबसे लम्बी नदी है.
> इस नदी का उद्गम खमार का पाट है, यह झारखण्ड से प्रवाहित होते हुए पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है.
> दामोदर नदी को ‘बंगाल का शोक’ भी कहा जाता था.
> दामोदर की प्रमुख सहायक नदियाँ – भेड़ा, कोनार, बोकारो, बराकर आदि हैं.
> सोन झारखण्ड की उ. प. कोना को, बिहार-झारखण्ड को, सीमांकित करती है.
> सोन नदी का बड़ा हिस्सा बिहार में प्रवाहित होता है.
> सोन नदी का उद्गम अमरकंटक की पहाड़ी है, जो मध्य प्रदेश में स्थित है.
> स्वर्ण रेखा नदी का उद्गम स्थल राँची का पठार है. इसकी मुख्य सहायक नदी रारु, कांची, खरकई, आदि हैं.
> बराकर नदी का उद्गम स्थल बरकट्ठा के निकट ‘हजारीबाग का पठार’ है.
> यह पूर्व में झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को पृथक् करता है.
> उत्तरी कोयल, शंख, दक्षिणी कोयल, पुनपुन, फल्गु, किऊल आदि नदियों की मुख्य विशेषता है कि ये झारखण्ड से निकलती हैं.
> झारखण्ड की नदियों के प्रवाह मार्ग में उच्चावच्च भिन्नता होने के कारण इनके द्वारा जलप्रपात का निर्माण किया जाता है.
> झारखण्ड एक कृषि प्रधान राज्य होने के कारण यहाँ सिंचाई की महत्ता बढ़ जाती है.
> झारखण्ड की कुल कृषि भूमि का मात्र 10 प्रतिशत ही सिंचित है.
> झारखण्ड में वर्षा का 80 प्रतिशत भाग जून से सितम्बर के मध्य में हो जाता है.
> झारखण्ड के उन सभी भागों में जहाँ औसत सालाना वर्षा 1200 मिमी से कम है, सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है.
> झारखण्ड में सिंचाई के साधन के रूप में छोटे-छोटे साधनों का; जैसे- आहार, पाइन आदि का अधिकतम प्रयोग होता है,
> इन छोटे-छोटे साधनों से कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 40 प्रतिशत भाग सिंचित होता है.
> सिंचाई के अन्य महत्वपूर्ण साधन में नहर है. इसके द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र का 21-45 प्रतिशत भाग सिंचित होता है.
> झारखण्ड की मुख्य नहरों में कनाडा बाँध की नहरें प्रमुख हैं. नहरों में कोनार की भूमिगत नहर, उत्तरी कोयल पर नहरें प्रमुख हैं,
> झारखण्ड में सिंचाई के अन्य प्रमुख स्रांत-तालाब, कुआँ एवं नलकूप हैं.
> भारत के शुरूआती बहुउद्देशीय परियोजनाओं में दामोदर घाटी योजना प्रमुख है.
> दामोदर नदी का उद्गम झारखण्ड में है, किन्तु ये पश्चिम बंगाल पहुँचकर वहाँ के लिए शौक बन जाता था.
> ‘बंगाल के शोक’ को नियन्त्रित करने हेतु 1948 में दामोदर घाटी निगम की स्थापना कर इस बहुउद्देशीय योजना की शुरूआत की गई.
> यह परियोजना संयुक्त राज्य अमरीका के टेनेसी घाटी योजना नामक बहुउद्देशीय योजना पर आधारित थी.
> दामोदर घाटी योजना के अन्तर्गत 8 बाँध बनाने की योजना थी.
> पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर नामक स्थान पर एक बड़ा अवरोधक बनया गया है.
> यह पश्चिम बंगाल, झारखण्ड एवं केन्द्र की संयुक्त योजना है.
> स्वर्ण रेखा नदी पर स्वर्ण रेखा बहुउद्देशीय योजना की शुरूआत की गई है.
> यह झारखण्ड, ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल की संयुक्त योजना है.
> इस परियोजना के तहतू हुंडरू जलप्रपात से विद्युत् उत्पन्न किया जाएगा.
> दामोदर घाटी योजना के अन्तर्गत बोकारो थर्मल, चन्द्रपुरा, दुर्गापुर एवं मेजिया से ताप विद्युत् तथा मैथन एवं पंचेत से पन बिजली पैदा की जाती है.
> दामोदर नदी बेसिन के जल का पूर्ण प्रयोग हो गया है.
>  दामोदर झारखण्ड की सर्वाधिक प्रदूषित नदी है.
> जल संसाधन के विभिन्न स्रोतों के अति उपयोग से आज झारखण्ड में स्वच्छ पेयजल की समस्या है.
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