झारखण्ड : खनिज संसाधन

झारखण्ड : खनिज संसाधन

झारखण्ड का इतिहास - inp24

> खनिजों का वर्गीकरण को सरल एवं स्पष्ट करने हेतु
(i) धात्विक खनिज,
(ii) अधात्विक खनिज,
(iii) ऊर्जा खनिज तथा
(iv) बहुमूल्य खनिज.
जैसे चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया. इस वर्गीकरण से वर्ग विशेष के खनिज की सामान्य विशेषता को समझने में पाठकों को सहूलियत होगी.
> खनिज संसाधन एवं उद्योग
खनिज भूमि संसाधन का एक हिस्सा है. भूमि संसाधन की उपयोगिता में उर्वरा से कम महत्व खनिज का नहीं है. आज जब विश्व तीव्र औद्योगीकरण के दौर में है, तो खनिज संसाधन का महत्व और भी बढ़ जाता है. सौभाग्यवश झारखण्ड खनिज सम्पदा के दृष्टिकोण से न केवल भारत में वरन् विश्व के मानचित्र पर एक अहम् स्थान रखता है. खनिज के मामले में यह राज्य भारत का सबसे सम्पन्न राज्य है. झारखण्ड में स्थित दामोदर घाटी को ‘स्टोरहाउस ऑफ मिनेरल्स’ कहते हैं. इस प्रदेश को ‘रत्नगर्भाभूमि’ भी कहा जाता है. झारखण्ड खनिज उत्पादन की दृष्टि से भारत का एक प्रमुख राज्य है, जिसका इस दृष्टिकोण से प्रथम स्थान है. कोयला एवं अभ्रक के उत्पादन में इसका स्थान पहला, बॉक्साइट में दूसरा और लोहे में तीसरा है. झारखण्ड (2013-14) में खनिज के कुल संचित भण्डार और उत्पादन की श्रेष्ठता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता
है कि यह देश के कुल कोयले का 29 प्रतिशत, अभ्रक का 58.5 प्रतिशत, ताँबा का 18 प्रतिशत, अग्निसह मृतिका का 12.2 प्रतिशत, कायोनाइट का 48 प्रतिशत उत्पादन करता है.
झारखण्ड प्रतिवर्ष लगभग 5000 मिलियन मूल्य का खनिज उत्पादित करता है. की दृष्टि से भारत के मूल्य कुल खनिज उत्पादन का 26 प्रतिशत और उत्पादन की दृष्टि से देश के कुल उत्पादन का लगभग 36 प्रतिशत भाग वर्तमान में अकेले झारखण्ड राज्य में उत्खनित किया जाता है.
झारखण्ड का निर्माण छोटा नागपुर के पठार एवं राजमहल की पहाड़ियों के योग से हुआ है और ये आर्कियन, धारवार एवं गोंडवानाकालीन चट्टानों से निर्मित है जो खनिज सम्पदा से भरपूर हैं. यहाँ तीनों तरह के खनिज – धात्विक, अधात्विक एवं ऊर्जा खनिज पाये जाते हैं.
> खनिज के दृष्टिकोण से झारखण्ड का तीन भाग में विभाजन किया जाता है –
1. दक्षिण भाग में धारवार चट्टानों में अनेक धात्विक खनिज विशेषकर लौह अयस्क का विशाल भण्डार मौजूद है.
2. मध्य में ईंधन खनिज पट्टी ( कोयला प्रधान क्षेत्र ).
3. उत्तर में अधात्विक खनिज प्रधान क्षेत्र ( अभ्रक क्षेत्र).
खनिज प्रधान ये तीनों पट्टियाँ एक-दूसरे के समानान्तर पश्चिम से पूर्व दिशा में फैली हुई हैं. झारखण्ड के उत्तरी तथा दक्षिणी झारखण्ड में धारवार की क्रम की चट्टानें मिलती हैं जो धात्विक खनिज का स्रोत हैं एवं मध्य झारखण्ड दामोदर रिफ्ट वैली का क्षेत्र की है, जिसमें गोण्डवाना क्रम की चट्टानें पाई जाती हैं. इस क्रम चट्टानों में न केवल झारखण्ड में वरन् सम्पूर्ण भारत में कोयले की प्रधानता पाई जाती है.
> झारखण्ड में उपलब्ध खनिजों के अध्ययन की सुविधा के अनुसार निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है –
(1) धात्विक खनिज
इनके अन्तर्गत लोहा, मैंगनीज, टंग्स्टन, ताँबा, सीसा, सोना, चाँदी, जस्ता, बॉक्साइट, क्रोमियम, टिन आदि आते हैं.
(2) अधात्विक खनिज
इनके अन्तर्गत अभ्रक, एस्बेस्टस, पायराइट, जिप्सम, कायोनाइट, चूना पत्थर, डोलोमाइट, फेल्सपार, क्वार्ट्ज, गंधक, ऐपेटाइट आदि आते हैं.
(3) ऊर्जा खनिज
इसके अन्तर्गत यूरेनियम, थोरियम, जिर्कोनियम, बेरोलियम, लीथीयम, कोयला आदि आते हैं.
> धात्विक खनिज
> इसे दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है – 
(1) लौह समूह के खनिज
(2) अलौह समूह के खनिज.
> लौह समूह के खनिज
इसके अन्तर्गत लौह अयस्क, मैंगनीज, क्रोमाइट, टंग्स्टन, वैनेडियम आदि आते हैं इन खनिजों में कमोवेशी मात्रा में लौह तत्व पाये जाते हैं.
> लौह अयस्क
लोहे का मुख्य अयस्क ठोस काले या गेरू का पत्थर, हैमेटाइट, मैग्नेटाइट, लिमोनाइट, सिडेराइट होता है जो प्रायः धारवार युग की जलज और आग्नेय शिलाओं से प्राप्त किया जाता है.
> भारत में चार प्रकार के लौह अयस्क पाये जाते हैं
(1) मैग्नेटाइट अयस्क – इसकी प्राप्ति धारवार एवं कडुप्पा शैलक्रम से होती है. इसमें धातु का अंश 72 प्रतिशत तक होता है. इस धातु में टाइटेनियम, वैनेडियम एवं क्रोमियम के अंश भी पाये जाते हैं.
( 2 ) हैमेटाइट अयस्क – यह अयस्क भी धारवार एवं कडुप्पा क्रम से प्राप्त होता है. इसमें धातु का प्रतिशत 60 से 70 तक होता है. यह ऑक्सीजन एवं लोहे का मिश्रण होता है.
(3) सिडेराइट अयस्क – यह निम्न गोंडवाना क्रम में पायी जाती है. इसमें धातु का अंश 10 से 40 प्रतिशत तक होता है.
(4) लैटेराइट अयस्क – लैटेराइट शैलों के ऋतुक्षरण के फलस्वरूप लौह की प्राप्ति इस अयस्क से की जाती है.
झारखण्ड में अधिकतर लोहा हैमेटाइट अयस्क से प्राप्त होता है. इस प्रकार का अयस्क झारखण्ड-उड़ीसा में दो मेखलओं में मिलता है; जैसे – गुरु महिसानीबादाम पहाड़ क्षेत्र और बरमजादा समूह. गुरु महिसाना क्षेत्र का विस्तार मुख्यतः उड़ीसा में है.
बरमजादा समूह झारखण्ड के सिंहभूम जिले तथा संलग्न उड़ीसा के क्योंझर एवं सुन्दरगढ़ जिलों में फैला है. यहाँ देश के सर्वाधिक भण्डार लगभग 384.6 करोड़ टन के जमाव पाये जाते हैं. इस समूह के पश्चिम में चीटिया, मोटांग, पोंगा, टिटी-सिबुरू और होकलातबरू में लगभग 26.1 करोड़ टन के जमाव हैं. मुख्य समूह में करमपरी, विजय, घाटकुटी निक्षेप, मेघातातूबुरू. किसबुरू तथा गुआ की खानें हैं. ये सभी सिंहभूम जिले में हैं. इसी का कुछ भाग उड़ीसा में है. , मुख्य समूह के पूर्वी भाग में सिंहभूम जिले में नोआमुण्डी और उड़ीसा के क्योंझर जिले में ठकुरानी और पूर्वी जोदा में 54.9 करोड़ टन के जमाव हैं. मुख्य समूह का दक्षिणी भाग उड़ीसा में पड़ता है.
इस समूह के लोहे का उपभोग टिस्को, जमशेदपुर, इस्को, दुर्गापुर एवं राउरकेला इस्पात कम्पनियों द्वारा किया जाता है.
मैग्नेटाइट किस्म के लौह अयस्क जो आग्नेय अथवा कायान्तरित शैलों में पाया जाता है. झारखण्ड में सिंहभूम जिलों में पाया जाता है. झारखण्ड में लौह अयस्क के सम्बन्ध में सिंहभूम जिला का लगभग एकाधिकार है. थोड़ा-बहुत लौह अयस्क रानीगंज कोयला क्षेत्र में गोण्डवाना क्रम के चट्टानों से धनबाद के निकट प्राप्त होता है. सिंहभूम का कोल्हन श्रेणी हैमेटाइट अयस्क का मुख्य स्रोत है.
झारखण्ड में भारत का कुल 25-7 प्रतिशत लौह अयस्क का भंडार है. उत्पादन के दृष्टिकोण से मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा के बाद इसका तीसरा स्थान है. लौह अयस्क का भण्डार सिंहभूम जिले में भारत के कुल सम्भावित संचित भण्डार का 20 प्रतिशत निहित है. झारखण्ड के आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार झारखण्ड में कुल लौह अयस्क का भण्डार 4596.621 मिलियन टन है.
> मैंगनीज
इसका यह धारवार की अवसादी शैलों में पायी जाती है. मुख्य अयस्क साइलोमैलीन और ग्रेनाइट है. इनमें धातु का अंश क्रमशः 45 से 60 प्रतिशत एवं 62 प्रतिशत तक होता यह लौह समूह का खनिज है. मैंगनीज लोहे की भाँति ही एक बड़ा प्रस्तर होता है. जिस लौह प्रस्तर में 5 प्रतिशत से कम मैंगनीज मिलता है, वह लोहा कहलाता है और जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक मैंगनीज होता है. वह मैंगनीज कहलाता है. जिस प्रस्तर में लोहा एवं मैंगनीज दोनों ही अधिक होते हैं, उसे मैंगनीज लोहा अयस्क कहते हैं.
मैंगनीज का प्रयोग धातु में होता है, किन्तु इसमें स्वयं कई अशुद्धियाँ रहती हैं; जैसे- सिलीका, अल्यूमिना, मैग्नेशिया एवं फॉस्फोरस, अतः धातु शोधन के पूर्व इसका शोधन जरूरी है. झारखण्ड में प्राप्त मैंगनीज की किस्म अच्छी मानी जाती है. इसके अयस्क में धातु का अंश 52 प्रतिशत तक होता है.
सिंहभूम जिले के क्योंझर बोनोई क्षेत्र में यह लौह अयस्क के साथ पाया जाता है. इस जिले के मुख्य उत्पादक बिर मित्रापुर, गुआ कालेंडा, चाईबासा, बंसाडेटा, जामवा एवं पहाड़पुर हैं. यहाँ यह पूर्ण कैम्ब्रियन युग की क्वार्ट्ज एवं गारनेट चट्टानों में मिलता है.
मैंगनीज उत्पादन में मध्य प्रदेश का प्रथम स्थान एवं महाराष्ट्र का स्थान द्वितीय है. झारखण्ड में सिंहभूम के अतिरिक्त धनबाद और हजारीबाग जिलों में भी मैंगनीज की खान हैं.
> क्रोमाइट
क्रोमियम इसका मुख्य अयस्क है. क्रोमाइट लोहे एवं क्रोमियम की भस्मों का सम्मिलन है. इसमें 68 प्रतिशत क्रोमिक ऑक्साइड और 32 प्रतिशत लौह ऑक्साइड होता है. यह झारखण्ड में कायान्तरित शैल समूह से प्राप्त होता है. यह मुख्यतः पश्चिम सिंहभूम जिले के चाईबासा के पश्चिम में 50 प्रतिशत अयस्क वाला क्रोमाइट जो हाटू एवं सरायकेला में मिलता है. झारखण्ड में यह मुख्यतः चार पहाड़ियों से प्राप्त किया जाता है— रोरोबुरू, कितावुरू, किन्सीवुरू और चिंतागवुरू.
यह प्रायः खुली हुई खानों से प्राप्त होता है. इसका प्रयोग भट्टियों के अस्तरों में तापरोधी ईंटों के निर्माण में आता है एवं इस्पात उद्योग में किया जाता है.
> टंग्स्टन
इसका मुख्य खनिज बुलफ्राम है जो टंग्स्टन और मैंग्नीज की भस्मों का रासायनिक सम्मिलन है. यह बिल्लौरी पत्थर की घाटियों में पाया जाता है, जो ग्रेनाइट के पास की भूमि में पाई जाती है.
टंग्स्टन कठोर, भारी एवं उच्च द्रवणांक (3382°C) वाली धातु है, जिसका उपयोग विद्युत् बल्बों में होता है. भारत में टंगस्टन सर्वाधिक राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल में मिलता है. झारखण्ड में सिंहभूम जिले के काली माटी क्षेत्र में एवं हजारीबाग जिले के कई स्थानों पर टंग्स्टन का पता चला है.
> अलौह धातु समूह खनिज
लौह अंश विहीन धातु इसके अन्तर्गत आते हैं; जैसे- ताँबा, टिन, सीसा, बॉक्साइट इत्यादि.
> ताँबा
यह अधिकतर आग्नेय, अवसादी एवं कायान्तरित शैलों से प्राप्त होता है. ताँबे के मुख्य अयस्क चेल्को पाइकाइट, चलकोसाइट, बोनाइट जो सल्फाइड के रूप में है. क्यूप्राइट ऑक्साइड के रूप में है एवं कार्बोनेट रूप में मैचेलाइट एवं अजूराइट है. इन खनिजों में धातु का अंश 3 से 6 प्रतिशत तक रहता है.
झारखण्ड में तीन कडप्पा क्रम के शैलों में मिलते हैं. झारखण्ड ताँबा उत्पादन में अग्रणी है. यहाँ देश के कुल उत्पादन का करीब 18.5 प्रतिशत ताँबा भंडार है. झारखण्ड में ताँबा के उत्पादन में निरन्तर कमी आ रही है, 1988 में ताँबा का उत्पादन 14 लाख मीट्रिक टन था, जो 1995 में घटकर 11 लाख मीट्रिक टन हो गया. झारखण्ड की महत्वपूर्ण खानें पूर्वी सिंहभूम जिले में हैं. यहाँ ताँबे का मुख्य क्षेत्र झारखण्ड-ओडिशा में लगभग 120 किलोमीटर लम्बी पट्टी में है, जो दुआ पुरम से आरम्भ होकर दालभूम के सरायकेला, खरसवां आदि को पार करती हुई राखा और मोसावनी होती हुई बहरागोड़ा में समाप्त होती है. इस क्षेत्र की मुख्य खानें मोसावनी, धोवानी, सुट्टा, केंदाडीह, पाथर गोड़ा एवं राखा है. यहाँ ताँबा निकालने का कार्य 1924 में इण्डियन कॉपर कॉम्पलैक्स कर रही है. इस कम्पनी की मुख्य खानें और कारखाना घाटशिला नामक स्थान के निकट है. ताँबा अयस्क शुद्ध करने की एक परियोजना राखा में लगाई गई है. घाटशिला के निकट ही भौ भण्डार में कम्पनी का ताँबों के खनिजों के शोधन हेतु एक कारखाना 1930 में स्थापित किया गया. पूर्वी सिंहभूम के अतिरिक्त हजारीबाग के बारागुंडा, जराडीह, पारसनाथहसातु क्षेत्र में एवं संथाल परगना के शेरबिल और वैशाखी क्षेत्र में मानभूम के कल्याणपुर क्षेत्र में भी कुछ ताँबा मिलता है.
> सीसा
सीसा प्रायः चाँदी एवं जस्ते के साथ मिला हुआ पाया जाता है. इसका मुख्य खनिज गलेना है जो परतदार चट्टानों में मिलता है.
झारखण्ड में यह हजारीबाग, दुमका एवं पलामू जिले के कुछ स्थानों पर पाया जाता है.
> टिन
यह कैसीटराइट नामक खनिज संस्तर से प्राप्त होता है जो आग्नेय चट्टानों में पायी जाती है. इसका उपयोग कांसा बनाने में होता है जो ताँबे के साथ मिश्रित कर एवं सोल्डर बनाने के लिए ताँबे एवं सीसे के साथ बैबिट धातु बनाने के लिए सुरमा के साथ मिश्रित किया जाता है. भारत अपनी टिन की आवश्यकता पूर्ति प्रधानतः आयात से पूरा करता है. आयात का प्रमुख स्रोत मलेशिया है. झारखण्ड में टिन की खानों का पता राँची के सिल्ली एवं पहाड़सिंह तथा हजारीबाग के सिमरातनटी, पीठारा तथा चप्पतंड में लगा है, किन्तु इनकी खुदाई शुरू नहीं हुई है.
> बॉक्साइट
इस खनिज से एल्यूमिनियम प्राप्त किया जाता है. झारखण्ड में बॉक्साइट की सबसे महत्वपूर्ण खानें राँची एवं पलामू जिलों में हैं. राँची के वनस्पति पलामू के बॉक्साइट उत्तम है. उत्तम श्रेणी के कुल भण्डार 4-2 करोड़ टन के हैं. राँची एवं लोहरदगा के निकट 80 निजी खानें हैं. भारत में बॉक्साइट उत्पादन की दृष्टिकोण से इस राज्य का प्रथम तथा भण्डार के दृष्टिकोण से द्वितीय स्थान है. मुरी एवं लोहरदगा में इसे साफ करने के कारखाने हैं. देश के कुल उत्पादन का 32-4 प्रतिशत (2007) यहाँ उत्पादन होता है.
> अधात्विक खनिज
> अभ्रक
यह एक गुणकारी खनिज है, जो आग्नेय एवं कायान्तरित शैलों से प्राप्त होता है. इसका मुख्य प्रकार मस्कोबाइट, रूबी एवं बायोटाइट अभ्रक हैं जो प्रायः पैग्मेटाइट नामक आग्नेय चट्टानों में ही मिलते हैं. झारखण्ड अभ्रक उत्पादन एवं भण्डार दोनों में विश्व में अग्रणी है. यहाँ से विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 35 प्रतिशत अच्छी किस्म का अभ्रक प्राप्त होता है. भारत में अभ्रक उत्पादन के तीन मुख्य क्षेत्र हैं – झारखण्ड आन्ध्र प्रदेश एवं राजस्थान जो उत्पादन के दृष्टिकोण से क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर हैं. झारखण्ड में भारत में कुल उत्पादन का लगभग 58 प्रतिशत तक उत्पादन होता है. यहाँ अभ्रक का क्षेत्र हजारीबाग, कोडरमा, गिरीडीह एवं दुमका जिले में है. इसका विस्तार 150 किमी लम्बा एवं 25 किमी चौड़ी पेट्टी में है. बिहार के गया, नवादा, भागलपुर, मुंगेर तक है. इस क्षेत्र में 600 खानें हैं जो अधिकांश कोडरमा के वन क्षेत्र में हैं यहाँ से बंगाल रूवी या लाल अभ्रक निकलता है, जो उत्तम प्रकार का अभ्रक है. कुछ अभ्रक सिंहभूम एवं पलामू जिलों में मिलता है.
> चूना पत्थर
झारखण्ड में चूना पत्थर की प्राप्ति मुख्यतः विन्ध्यन युग की चट्टानों से की जाती है. यहाँ चूना पत्थर के मुख्य स्रोत जिले हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, पलामू, राँची तथा सिंहभूम हैं. इसका भण्डार 563 मिलियन टन है. इसका प्रयोग मुख्यतः सीमेंट, इस्पात, चीनी, रसायन, कागज एवं वस्त्र उद्योग में होता है. झारखण्ड में उच्च श्रेणी का चूना पत्थर संथाल परगना में मिलता है. रोहतास में स्थित कैमूर पठार का संभाग चूना पत्थर का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है. पलामू जिला के भवनाथपुर के निकट विंध्यन चूना पत्थर के निक्षेप अवस्थित हैं. ये निम्न विन्ध्य में आधारित समुदाय के कजराहट शैल समूहों से सम्बन्धित है.
> डोलोमाइट
जब चूने के पत्थर में 45 प्रतिशत से अधिक मैग्नीशियम होता है, तो वह डोलोमाइट कहलाता है. इसका प्रयोग धवन भट्टियों एवं रिफ्रेक्ट्री उद्योग में कच्चे माल के रूप में किया जाता है. डोलोमाइट का मुख्य उत्पादक जिला पलामू है. पलामू में पुरादा. एवं डाल्टनगंज से इसकी प्राप्ति होती है. इसके अतिरिक्त पश्चिमी सिंहभूम के चाईबासा के निकट भी पाया जाता है.
> फेल्सपार
यह मुख्यतः पेगमाटाइट में क्वार्ट्ज के साथ पाया जाता है. इसका उपयोग सिरामिका, शीशा और रिफ्रेक्टरी उद्योग में होता है. गिरिडीह जिला में यह पाया जाता है.
> एस्बेस्टस
मैग्नीशियम, सिलीका एवं जल के मिश्रित रूप एस्बेस्टस कहलाता है. यह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं. क्राइसोलाइट एवं एम्फीबोल – जो आग्नेय शिलाओं तथा जहरमोरा डोलोमाइट चूनेपत्थर से प्राप्त होती है. यह एक रेशेदार खनिज है जिसका उपयोग छत की सीट, कपड़ा इत्यादि बनाने में होता है. सिंहभूम में जोजो हाटू, राटो तथा गुरदा गाँवों के निकट एवं राँची तथा संथाल परगना (दुमका) में भी इसके पाये जाने की सम्भावना है.
> कायोनाइट 
एल्यूमीनियम एवं सिलीका का मिश्रित रूप कायोनाइट कहलाता है. यह मुख्यतः कायान्तरित शैलों से प्राप्त होता है. इसका उपयोग काँच, सिरेमिक, तापरोधी सीमेण्ट, विद्युत्, पोर्सलीन, इत्यादि में होता है. विश्व का सबसे बड़ा भण्डार भारत में है जो झारखण्ड के सिंहभूम जिले में है. इसका निष्काष्ण का काम यहाँ हिन्दुस्तान कॉपर कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाता है. यहाँ का मुख्य क्षेत्र 128 किलोमीटर लम्बी पेटी सिंहभूम जिले के सरायकेला से खरसांवा होता हुआ शिखाई डुंगरी तक फैला है.
> स्टेटाइट
स्टेटाइट, टॉल्क एवं सोप स्टोन एक ही किस्म के खनिज हैं. यह खनिज विशेषतः मैग्नेशिया, सिलीका एवं जल का सम्मिश्रण होता है. झारखण्ड में यह सिंहभूम तथा हजारीबाग जिलों में आर्कियन तथा धारवार काल की निर्मित चट्टानों में मिलता है.
> ग्रेफाइट
इसे काला सीसा या प्लम्बगो भी कहते हैं. यह कार्बन का एक अपरूप है. इसमें सिलीका एवं सिलीकेट जैसी अशुद्धियाँ मिली रहती हैं. यह कायान्तरित शैलों में पाया जाता है. इसका उपयोग सीसे की पेंसिलें बनाने, रंग-रोगन बनाने तथा अणुशक्ति रिऐक्टरों में मोडरेटर के रूप में किया जाता है.
झारखण्ड में यह पलामू जिले में पाया जाता है. मुख्य प्राप्ति क्षेत्र सोकरा, खानडीह एवं राजहरा है. आन्ध्र प्रदेश ग्रेफाइट का मुख्य उत्पादक प्रदेश है.
> एपेटाइट
यह एक उर्वरक खनिज है. इसका उपयोग सुपर फॉस्फेट बनाने में टिस्को (Tata Iron & Steel Company) द्वारा एवं फॉस्फोरस युक्त पिग आयरन बनाने में किया जाता है.
झारखण्ड में एपेटाइट की प्राप्ति मुख्य रूप से सिंहभूम जिले में सरायकेला क्षेत्र के दादकी डीह एवं ढालभूम जिले के खजुरदारी क्षेत्र के बीच से होती हुई ओडिशा में मयूरभंज तक चला गया 64 किमी लम्बे क्षेत्र में एपेटाइट शैलों में नसों के रूप मुख्य उत्पादक क्षेत्र तीन मेखलाओं में बँटे हैं-नामदूप मेखला, जो इटागढ़ से राजदह तक पाथरगोड़ा मेखला (बुरू क्षेत्र) जो राखा खान से धोबानी तक विस्तृत है और सुंगरी मेखला जो मोसाबनी से खेजूदारी तक विस्तृत है. सिंहभूम क्षेत्र के ताँबे की मेखला के समानान्तर ही एपेटाइट युक्त चट्टानें फैली हैं. यहाँ 15 लाख टन एपेटाइट के भण्डार सुरक्षित हैं. एपेटाइट के उत्पादन एवं भण्डार के मामले में झारखण्ड प्रथम स्थान पर एवं आन्ध्र प्रदेश द्वितीय स्थान पर है. से
> चीनी मिट्टी
इसकी प्राप्ति प्रायः ग्रेनाइट की फैल्सपार नामक खनिज के क्षेत्र से प्राप्त होती है. भारत में अनेक जगह यह पाया जाता है, किन्तु सर्वोत्तम चीनी मिट्टी सिंहभूम जिले में तथा राजमहल की पहाड़ियों में मिलती है, जो झारखण्ड में स्थित है. झारखण्ड में ये पलामू, राँची एवं सिंहभूम जिले में मिलती है.
> अग्नि-सह-मृतिका
उच्च ताप सहने की क्षमता के कारण इसका प्रयोग तापरोधी ईंट बनाने एवं भट्टियों को पोतने में होता है. इसकी उत्पत्ति अवसादी शैलों से हुई मानी जाती है. झारखण्ड के दामोदर घाटी क्षेत्र में एवं दुमका में पाया जाता है. मैथान के निकट कुमारधूबी फायर ब्रिक्स एण्ड सिलीका वर्क्स नामक कारखाना है. इसका उपयोग अग्निरोधी ईंटें बनाने के लिए किया जाता है.
> ऊर्जा खनिज
> कोयला
यह कार्बन का एक अवरूप है, जो भारत में प्रायः गोण्डवानाकालीन शैलक्रम में पाया जाता है. कोयला प्राचीन काल से ही ऊर्जा का महत्वपूर्ण साधन रहा है. यह चार प्रकार का होता है, जिसकी उत्तमता कार्बन की मात्रा पर निर्भर करती है.
(1) एंथ्रेसाइट कोयला – इसमें कार्बन का अंश 80 से 95 प्रतिशत तक होता है. यह सर्वोत्तम कोयला होता है.
(2) बिटुमिनस कोयला – इसमें कार्बन का अंश 75 से 80 प्रतिशत तक होता है.
(3) लिग्नाइट कोयला – इसमें 45 से 55 प्रतिशत कार्बन का अंश होता है.
(4) पीट कोयला – इसमें कार्बन का अंश काफी कम एवं आर्द्रता अधिक होती है.
झारखण्ड का मध्य हिस्सा अर्थात् दामोदर घाटी क्षेत्र, कोयला क्षेत्र है, जो गोण्डवानाकालीन है. इस काल के कोयला क्षेत्रों में अधिकांशतः बिटुमिनस कोयला मिलता है.
यह प्रान्त कोयले के उत्पादन एवं भण्डार दोनों की दृष्टि से देश का अग्रणी राज्य है. यहाँ कोयले का भण्डार देश के कुल कोयला भंडार का 27.37% है.
> झारखण्ड के मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं
(1) दामोदर घाटी क्षेत्र – झरिया क्षेत्र, गिरीडीह क्षेत्र, बोकारो क्षेत्र, करनपुरा क्षेत्र, बराकर क्षेत्र.
(2) अजय घाटी क्षेत्र – जयंती, सहजोरी, कुण्डित, करैया.
(3) राजमहल कोयला क्षेत्र.
(4) उत्तरी कोयल घाटी कोयला क्षेत्र.
दामोदर नदी घाटी क्षेत्र भारत का सबसे महत्वपूर्ण एवं बड़ा कोयला क्षेत्र है. झारखण्ड के कुल कोयला क्षेत्र का लगभग 95 प्रतिशत कोयला एवं 100 प्रतिशत कोक युक्त कोयला इसी क्षेत्र से प्राप्त होता है, जबकि देश का 87 प्रतिशत कोकयुक्त कोयला का संचित भण्डार झारखण्ड में है. कोयला की सहज प्राप्ति एवं रेलमार्ग के विकास के कारण दामोदर घाटी क्षेत्र में अनेक उद्योगों का विकास सम्भव हुआ, जिसके कारण इसे भारत का रूर प्रदेश माना जाता है.
झरिया क्षेत्र एवं दामोदर घाटी क्षेत्र झारखण्ड का मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र है. यहाँ से राज्य के कुल उत्पादन का 60 प्रतिशत कोयला प्राप्त होता है. इस कोयला क्षेत्र को 18 कोयला की तहों में बाँटा गया है. एक नम्बर की तह नीचे एवं 18 नम्बर की तह सबसे ऊपर है. यह क्षेत्र समस्त भारत का 44.5 प्रतिशत कोयला उत्पन्न करता है. यहाँ का कुल अनुमानित भण्डार 1698 करोड़ टन है जिसमें से घटिया किस्म के 1151 करोड़ मीट्रिक टन के और कोक बनाने योग्य कोयले के 547 करोड़ मीट्रिक टन के हैं.
बोकारो कोयला क्षेत्र दो भागों में बँटा है – पूर्वी बोकारो और पश्चिमी बोकारो. दोनों का क्षेत्रफल मिलकर 374 वर्ग किमी है. यहाँ भी कोकयुक्त कोयला मिलता है.
> गिरिडीह क्षेत्र
यहाँ की कोयले की मुख्य विशेषता यह है कि इससे अति उत्तम प्रकार का स्टीम कोक तैयार होता है जो धातु शोधन के उपयुक्त है. यहाँ का अनुमानित भण्डार 2 करोड़ टन का है.
> करनपुरा क्षेत्र
 यह ऊपरी दामोदर घाटी में फैला है. इस क्षेत्र के दो भाग हैं. उत्तरी करनपुरा एवं दक्षिणी करनपुरा. इसमें कोयले का भण्डार कम है. अभी हाल में उत्तरी करनपुरा में नेशनल थर्मल पॉवर कॉर्पोरेशन ने एक सुपर थर्मल पॉवर प्लाण्ट लगाने की घोषणा की है जिसकी क्षमता 1920 एम. डब्ल्यू. होगी.
 झारखण्ड का शेष 5 प्रतिशत कोयला राजमहल क्षेत्र,  अजयघाटी क्षेत्र एवं उत्तरी कोयल से प्राप्त होता है.
> यूरेनियम
इसका मुख्य खनिज पिच ब्लैण्ड है जिसमें यूरेनियम का अंश 50 से 80 प्रतिशत तक होता है. अन्य खनिजों में यूरेनाइट, सामर काइट, थोरियानाइट है. झारखण्ड में यह खनिज पूर्व – कैम्ब्रियन एवं आर्कियन शैलों में अन्य खनिजों के साथ मिलता है. उत्पादन के दृष्टिकोण से सिंहभूम (झारखण्ड का अग्रणी जिला है). जादूगोड़ा में एक यूरेनियम कारखाना स्थापित किया गया है.
> थोरियम एवं जिर्कोनियम
यह दोनों पदार्थ मानोजाइट नामक खनिज प्रस्तर से प्राप्त होते हैं, जो हजारीबाग एवं राँची जिलों के कई स्थानों में उपलब्ध हैं.
> बेरीलियम
इसकी प्राप्ति बेरिल नामक खनिज प्रस्तर से होती है, जो अभ्रक पट्टी के साथ कोडरमा, झूमरी तलैया तथा गिरिडीह में पाया जाता है.
> जिरकन
इसकी प्राप्ति जिर्कोनियम अयस्क से होती है. बिहार के राँची और हजारीबाग जिलों में यह कांप मिट्टी में मिलता है.
> वैनेडियम
यह एक प्रमुख धातु है जिसका उपयोग मुख्यतः वैनेडियम इस्पात बनाने के लिए किया जाता है. वैनेडियम युक्त मैग्नेटाइट अयस्क सिंहभूम जिले में धूबल बेरा ग्राम के निकट मिलती है.
> मोनाजाइट मॉलिब्डेनम
इसका मुख्य खनिज मॉली- डिनाइट है. इसका उपयोग विशेष किस्म के इस्पात बनाने में होता है. झारखण्ड में इसकी प्राप्ति – हजारीबाग जिले में उमरी महाबाग और बारागुंडी क्षेत्रों से होती है.
> बहुमूल्य खनिज
झारखण्ड में सोना तथा चाँदी अत्यल्प मात्रा में मिलता है. भूवैज्ञानिकों के अनुसार छोटा नागपुर के दक्षिणी भाग में स्वर्णयुक्त चट्टानों की परतें मौजूद हैं. स्वर्ण रेखा नदी के बालूकण में स्थानीय लोगों द्वारा सोना प्राप्त किया जाता है. चाँदी की प्राप्ति सीसा तथा जस्ता जैसे खनिजों के साथ मिले-जुले रूप में होता है. अतः हजारीबाग, पलामू, राँची एवं सिंहभूम जिले के विभिन्न स्थानों से थोड़ी बहुत मात्रा में इन्हीं खनिजों के साथ चाँदी प्राप्त होती है. धनबाद के निकट टुण्डू नामक स्थान पर सीसा शोधन कारखाने में चाँदी प्राप्त की जाती है.
> मुख्य बातें
> झारखण्ड खनिज सम्पदा के दृष्टिकोण से सर्वाधिक सम्पन्न राज्य है.
> भारत की लगभग 40 प्रतिशत खनिज सम्पदा झारखण्ड से प्राप्त होती है.
> दामोदर घाटी को खनिजों का भण्डार गृह ( Store House of Minerals) भी कहते हैं इसे ‘रत्नगर्भा भूमि’ भी कहा जाता है.
> झारखण्ड के राजस्व प्राप्ति का एक बड़ा हिस्सा खनिज से प्राप्त होता है.
>  झारखण्ड प्रतिवर्ष लगभग 5000 मिलियन मूल्य का खनिज उत्पादित करता है.
> मूल्य के दृष्टिकोण से झारखण्ड अकेले, भारत कुल का 26 प्रतिशत उत्खनित करता है. खनिज उत्पादन
> झारखण्ड की खनिज सम्पदा की दृष्टि से सम्पन्नता का कारण इसकी भूगर्भिक संरचना है.
> झारखण्ड में पाये जाने वाले चट्टान आर्कियन, धारवार एवं गोंडवानाकालीन हैं, जो खनिजों से भरपूर हैं.
> यहाँ तीनों प्रकार की खनिज धात्विक, अधात्विक एवं ऊर्जा सम्बन्धी पाई जाती है.
> धात्विक खनिजों की प्राप्ति मुख्यतः दक्षिणी भाग में धारवार चट्टानों से होती है.
> धारवार चट्टानों से मिलने वाला मुख्य खनिज लौह अयस्क है.
> मध्य झारखण्ड में गोण्डवाना क्रम की चट्टानें पाई जाती हैं, जो कोयला प्रधान क्षेत्र है.
> झारखण्ड के उत्तरी भाग में अधात्विक खनिजों की प्रधानता है. इस क्षेत्र में अभ्रक की बहुलता है.
> झारखण्ड में पाई जाने वाली मुख्य धात्विक खनिज – लोहा, मैंगनीज, टंग्स्टन, ताँबा, सीसा, सोना, चाँदी, जस्ता, बॉक्साइट, क्रोमियम, टिन आदि.
> मुख्य अधात्विक खनिज- अभ्रक, एस्बेस्टस, पायराइट, जिप्सम, कायोनाइट चूना पत्थर, डोलोमाइट, फेल्सपार, क्वार्ट्ज, गंधक, ऐपेटाइट आदि.
> मुख्य ऊर्जा खनिज– कोयला, यूरेनियम, थोरियम, जिर्कोनियम, बेरीलियम, लीथियम आदि.
> लोहा झारखण्ड में पायी जाने वाली धात्विक खनिजों में सबसे प्रमुख खनिज है.
> झारखण्ड में अधिकतर लोहा की प्राप्ति हैमेटाइट अयस्क से प्राप्त होती है. यह अयस्क धारवार एवं कडुप्पा क्रम से प्राप्त होता है.
> हैमेटाइट अयस्क में धातु का प्रतिशत 60 से 70 तक होता है.
> झारखण्ड में हैमेटाइट लौह अयस्क का नियम बरमजादा-समूह से मुख्यतौर पर प्राप्त किया जाता है.
> बरमजादा समूह का झारखण्ड के सिंहभूम एवं ओडिशा के क्योंझर तथा सुन्दरगढ़ जिले में है. ★
>  बरमजादा समूह में देश के सर्वाधिक भण्डार सुरक्षित हैं.
> झारखण्ड में लौह अयस्क के मामले में सिंहभूम के क्षेत्र का लगभग एकाधिकार प्राप्त है.
> अत्यल्प मात्रा में लौह अयस्क की प्राप्ति रानीगंज कोयला क्षेत्र में गोंडवाना क्रम के चट्टानों से धनबाद के निकट प्राप्त होता है.
> सिंहभूम का कोल्हान श्रेणी हैमेटाइट अयस्क का मुख्य स्रोत है.
> झारखण्ड में भारत का कुल उत्पादन का 27-58 प्रतिशत लौह-अयस्क का उत्पादन होता है.
> लौह अयस्क के उत्पादन के दृष्टिकोण से भारत में मध्य प्रदेश का प्रथम, ओडिशा का द्वितीय एवं झारखण्ड का तृतीय स्थान है.
> सिंहभूम में भारत के कुल सम्भावित संचित भण्डार का 20 प्रतिशत निहित है.
> मैंगनीज धारवार युग की अवसादी शैलों में पायी जाती है.
> साइलोमैलीन, मैंगनीज का मुख्य अयस्क है.
> मैंगनीज लौह समूह का खनिज है, जिस लौह प्रस्तर में 5 प्रतिशत से कम मैंगनीज मिलता है. वह लोहा कहलाता है और जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक मैंगनीज होता है, वह मैंगनीज कहलाता है.
> मैंगनीज का प्रयोग धातु-शोधन में किया जाता है.
> मैंगनीज मुख्य रूप से सिंहभूम में पाया जाता है. इस जिले में मैंगनीज के मुख्य उत्पादक स्थल हैं – बिरमित्रापुर, गुआकालेंडा, चाईबासा, बसाडेटा, जामदा तथा पहाड़पुर.
> क्रोमाइट नामक धातु का मुख्य अयस्क क्रोमियम है. यह एक लौहयुक्त खनिज है.
> क्रोमाइट, झारखण्ड में कायान्तरित शैल समूह से प्राप्त होता है.
> क्रोमियम अयस्क का मुख्य उत्पादक जिला पश्चिम सिंहभूम है.
> टंग्स्टन का मुख्य खनिज अयस्क बुलफ्राम है.
> टंग्स्टन का द्रवणांक 3382° सेंटीग्रेड होता है.
> भारत में टंग्स्टन सर्वाधिक राजस्थान एवं पश्चिम बंगाल में मिलता है. झारखण्ड में टंग्स्टन सिंहभूम एवं हजारीबाग में मिलता है.
> सीसा अलौह धातु समूह का खनिज है, जो ताँबे एवं जस्ते के साथ मिला हुआ पाया जाता है.
>  सीसा का मुख्य अयस्क गैलेना है.
> टिन कैसीटराइट नामक खनिज संस्तर से प्राप्त होता है. यह आग्नेय चट्टानों में पायी जाती है.
> टिन का प्रयोग ताँबा के साथ मिलाकर काँसा बनाने में तथा ताँबे एवं सीसे के साथ मिलाकर सोल्डर बनाने में किया जाता है.
> भारत में टिन का उत्पादन अत्यल्प होता है. अतः मलेशिया से टिन का आयात किया जाता है.
> झारखण्ड में टिन का भण्डार राँची एवं हजारीबाग के निकट मिला है.
> बॉक्साइट अल्युमिनियम का अयस्क है.
> राँची एवं पलामू बॉक्साइट उत्पादन का मुख्य क्षेत्र है.
> भारत में बॉक्साइट उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड का प्रथम तथा भण्डार के दृष्टिकोण से द्वितीय स्थान है.
> ताँबा का मुख्य अयस्क चेल्कोपाइराइट, चेल्कोसाइट, मैचेलाइट एवं अजूराइट है.
> झारखण्ड में ताँबा कडप्पा क्रम के शैलों में मिलता है.
> भारत में सर्वाधिक ताँबा का उत्पादन झारखण्ड में होता है.
> देश के कुल ताँबा उत्पादन का 26 प्रतिशत झारखण्ड में होता है.
> झारखण्ड में ताँबे की महत्वपूर्ण खानें पूर्व सिंहभूम जिले में हैं.
> झारखण्ड में ताँबे की प्राप्ति ओडिशा से सटे क्षेत्र में एक लम्बी पट्टी से होती है जिसका विस्तार दुआपुरम से सरायकेला-खरसवां, राखा, मोरावनी तथा बहरागोड़ा तक है.
>  झारखण्ड में सर्वप्रथम 1924 से ताँबा निकालने का काम इण्डियन कॉपर कॉम्पलैक्स (Indian Copper Complex) द्वारा किया जा रहा है.
> ताँबा अयस्क शुद्ध करने की यहाँ राखा एवं भौभण्डार ( घाटशिला) में दो कारखाने स्थापित किये गये हैं.
> अभ्रक पैग्मेटाइट नामक आग्नेय चट्टानों से मिलता है.
> अभ्रक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – मस्कोवाइट, रूबी (लाल अभ्रक तथा वायोटाइट ).
> झारखण्ड में बंगाल रूबी चाय या लाल अभ्रक की प्रधानता है जो उत्तम प्रकार का अभ्रक है.
> झारखण्ड का भारत में अभ्रक उत्पादन में लगभग एकाधिकार है, यहाँ भारत के कुल उत्पादन का 46 प्रतिशत उत्पादन होता है.
> विश्व में अभ्रक उत्पादन के दृष्टिकोण से झारखण्ड का स्थान अग्रणी है. अर्थात् भारत विश्व का सर्वाधिक अभ्रक उत्पादक देश है.
> अकेले झारखण्ड का विश्व अभ्रक उत्पादन में 35 प्रतिशत हिस्सा है.
> झारखण्ड में अभ्रक का क्षेत्र हजारीबाग, कोडरमा, गिरीडीह एवं दुमका जिला है.
> चूना पत्थर का प्रयोग सीमेण्ट, इस्पात, चीनी, रसायन, कागज एवं वस्त्र उद्योग में होता है.
> झारखण्ड में चूना पत्थर की प्राप्ति विंध्यन युग की चट्टानों से की जाती है.
> झारखण्ड में चूना पत्थर उत्पादक जिले – हजारीबाग, पलामू राँची तथा सिंहभूम.
> डोलोमाइट का मुख्य उत्पादक जिला पलामू है.
> डोलोमाइट चूने के पत्थर के साथ पाया जाता है. जब चूने के पत्थर में मैग्नीशियम की मात्रा 45 प्रतिशत से अधिक होती है, तो वह डोलोमाइट कहलाता है.
> फेल्सपार का भण्डार गिरीडीह जिला में है.
> मैग्नीशियम, सिलीका एवं जल के सम्मिलित रूप एस्बेस्टस कहलाता है.
> झारखण्ड में सिंहभूम, राँची एवं दुमका जिले से ऐस्बेस्टस की प्राप्ति होती है.
> कायोनाइट अल्यूमिनियम एवं सिलीका का मिश्रित रूप है.
> कायोनाइट की प्राप्ति मुख्यतः कायान्तरित शैलों से प्राप्त होता है.
> कायोनाइट का विश्व में सबसे बड़ा भण्डार झारखण्ड के सिंहभूम में है.
> भारत के कुल उत्पादन का 48 प्रतिशत अकेले झारखण्ड में होता है.
> कायोनाइट निष्कासन का काम हिन्दुस्तान कॉपर कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाता है.
> स्टेटाइट मैग्नशिया, सिलीका एवं जल का सम्मिश्रण होता है.
> स्टेटाइट, आर्कियन तथा धारवार क्रम के चट्टानों से सिंहभूम तथा हजारीबाग जिलों में प्राप्त होता है.
> ग्रेफाइट कार्बन का एक अपरूप है, जिसका प्रयोग अणुशक्ति रिएक्टरों में मोडरेटर के रूप में किया जाता है.
> ग्रेफाइट का प्राप्ति क्षेत्र पलामू है.
> ग्रेफाइट का मुख्य उत्पादक प्रदेश आन्ध्र प्रदेश (भारत) है.
> एपेटाइट एक उर्वरक खनिज है. इसके उत्पादन एवं भण्डारण में झारखण्ड  प्रथम स्थान पर एवं आन्ध्र प्रदेश द्वितीय स्थान पर है.
> एपेटाइट मुख्य रूप से सिंहभूम में पाया जाता है. यहाँ इसकी पट्टी ताँबा के पट्टी के समानान्तर है.
>  झारखण्ड में एपेटाइट की तीन मेखला हैं – नामदूप मेखला (इटागढ़ से राजहद तक), पाथर गोड़ा मेखला राखा से धोवानी तक ) तथा सुंगरी मेखला (मोसावानी से खेजूंदारी तक).
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *