झारखण्ड : पर्यटन एवं पर्यावरण

झारखण्ड : पर्यटन एवं पर्यावरण

> पर्यटन एवं पर्यावरण
झारखण्ड की धरातलीय उच्चावच पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. यह प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है प्रकृति का नयनाभिराम दृश्य, नदियों का हरिआच्छादित क्षेत्र से असमतल पहाड़ियों पर बलखाती प्रवाह, इनके मध्य नदियों के अपरदन क्रिया से निर्मित जलप्रपात, मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करती हैं. यहाँ के प्रकृति प्रदत्त छटा के संग आदिवासियों की लोक-संस्कृति पर्यटकों के लिए सुरुचिपूर्ण माहौल प्रस्तुत करता है. पर्यटन के दृष्टिकोण से इस राज्य की महत्ता यहाँ के तीर्थस्थल गर्म जलस्रोत, ऐतिहासिक औद्योगिक केन्द्र बढ़ाता है. झारखण्ड के पर्यटन के मुख्य केन्द्र इस प्रकार हैं
> झारखण्ड के मुख्य जलप्रपात
(1) दसम जलप्रपात (राँची) – यह राँची के दक्षिण-पूर्व में बहने वाली नदी द्वारा राँची के पाट प्रदेश पर अपरदन क्रिया से निर्मित जलप्रपात है इसकी ऊँचाई लगभग 40 मीटर है.
( 2 ) बूढ़ाघाघ जलप्रपात – राँची के जमीरा पाट से उतरने वाली बूढ़ी नदी पर स्थित है. यह राँची जिले में स्थित है.
(3) हुंडरू जलप्रपात – राँची के पाट प्रदेश पर स्वर्ण रेखा नदी द्वारा निर्मित यह जलप्रपात झारखण्ड का सबसे ऊँचा जलप्रपात है. इसकी ऊँचाई लगभग 74 मीटर है.
(4) सदनी घाघ जलप्रपात – गुमला जिले के शेख नदी पर स्थित यह प्रपात 60 मीटर की ऊँचाई से पाट प्रदेश से गिरता है.
(5) जोन्हा जलप्रपात – पूर्वी राँची पठार पर जोन्हा एवं रारू नदी के संगम स्थल पर स्थित है.
(6) रजरप्पा जलप्रपात – हजारीबाग पठार पर रजरप्पा के पास (हजारीबाग) दामोदर नदी पर भेड़ा नदी लटकती घाटी वाली प्रपात बनाती है.
(7) हिरणी जलप्रपात – पूर्वी सिंहभूम जिले में.
(8) पेरू अघाघ प्रपात – राँची पठार के दक्षिणी सीमा पर कारो नदी द्वारा निर्मित पेरू अघाघ जलप्रपात राँची जिले में है.
( 9 ) सुंगा प्रपात – पलामू जिले में. –
(10) मिरिचय्या प्रपात – पलामू जिले में. –
(11) मोती झरना प्रपात – दुमका जिले में राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित एक प्रपात है. 2
(12) गौतम घाघ प्रपात – पलामू जिले में स्थित यह प्रपात 35 मीटर ऊँचा है.
(13) घघरी जलप्रपात – नेतरहाट पठार पर एक छोटी-सी नदी घघरी द्वारा निर्मित यह जलप्रपात 41 मीटर ऊँचा है.
ये जलप्रपात स्थानीय एवं बंगाल के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है.
> गर्म जल का कुण्ड
ज्वालामुखी के उद्गार के कुछ समय बाद दरार या छिद्र से गर्म जल एवं वाष्प के निरन्तर निकलने की प्रक्रिया ही गर्म जल का कुण्ड कहलाता है. यह जल सिलिका युक्त रहता है. इसमें गंधक की मात्रा उपस्थित रहने के कारण चर्म रोग में स्नान करना लाभकारी होता है. गर्म कुण्ड के जलों का तापमान 50 डिग्री से 90 डिग्री सेन्टीग्रेड तक होता है. झारखण्ड के हजारीबाग, धनबाद. पलामू एवं दुमका जिले में गर्म जल के कुण्ड पाये जाते हैं. हजारीबाग जिले के बरकट्टा के निकट बलकप्पी में एक सूर्यकुण्ड है जो अविभाजित बिहार का सर्वाधिक गर्म जल कुण्ड था. झारखण्ड के इस सर्वाधिक गर्म जल कुण्ड का तापमान लगभग 88 डिग्री सेन्टीग्रेड है. यहाँ प्रतिवर्ष मकर संक्रान्ति से ( 14 जनवरी से ) दस दिन तक का मेला लगता है. इस समय यहाँ पर्यटकों का भी जमावड़ा रहता है. धनबाद जिले में तीन स्थान पर गर्म जल कुण्ड हैं जिनमें तेतुलिया के गर्म कुण्ड प्रसिद्ध हैं. ततहा नामक स्थान पर भी गर्म जल कुण्ड का स्रोत है. यह पलामू जिले में स्थित हुतार कोयला क्षेत्र के अन्तर्गत पड़ता है. दुमका जिले में राजमहल पहाड़ी एवं छोटा नागपुर पठार के संगम स्थल पर गर्म जल का स्रोत है इन सभी गर्म जल स्रोतों का स्थानीय लोगों के लिए धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है. यहाँ समय-समय पर पर्यटकों का आगमन तीव्र हो जाता है.
> अभयारण्य एवं नेशनल पार्क
झारखण्ड एक वनाच्छादित प्रदेश है अतः यहाँ जंगली जानवरों की शरणस्थली के रूप में नेशनल पार्क एवं अभयारण्य का विकास किया गया है. झारखण्ड में 11 अभयारण्य एवं एक नेशनल पार्क है.
(1) बेतला नेशनल पार्क
झारखण्ड का यह एकमात्र नेशनल पार्क है. इसकी स्थापना सन् 1986 में सितम्बर माह में की गई थी. यह पलामू जिले में स्थित है. इस नेशनल पार्क का विस्तार 231.67 वर्ग किमी में है. भारत सरकार इस पार्क को शेर संरक्षण कार्यक्रम में शामिल किया है. भारत में यह कार्यक्रम 1973 में प्रारम्भ किया गया था. इस राष्ट्रीय पार्क में शेर के अलावा, लंगूर, सांभर, बत्तख, चीतल, भालू एवं अन्य जंगली जानवर हैं. झारखण्ड का यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है.
(2) हजारीबाग नेशनल पार्क
” यह नेशनल पार्क हजारीबाग जिले में स्थित है. हजारीबाग शहर से यह लगभग 25 किमी दूर है. इसकी स्थापना सन् 1976 के मई माह में की गई थी. इस प्रकार यह इस प्रदेश का सबसे पुराना उद्यान है. इस उद्यान में अनेक प्रकार के वन्य प्राणी हैं जिन्हें रात में मोटरगाड़ियों से निकट से देखा जा सकता है. इस वन्य प्राणी उद्यान का क्षेत्रफल 186-25 वर्ग किमी है.
(3) पलामू अभयारण्य
पलामू जिले में अवस्थित इस अभयारण्य की स्थापना सन् 1976 के जुलाई माह में हुई थी. यह उस प्रदेश का सबसे बड़ा उद्यान है. इसका विस्तार 794-3 वर्ग किमी क्षेत्र में है.
(4) महुआ डांड़ वोल्फ अभयारण्य
यह अभयारण्य पलामू जिले में अवस्थित है. यहाँ भेड़िया की प्रधानता है. इसकी स्थापना सन् 1976 के जून माह में हुई थी. इस अभयारण्य का विस्तार 63.25 वर्ग किमी क्षेत्र में है.
(5) दलमा अभयारण्य
दलमा श्रेणी राँची पठार के दक्षिणी भाग में विस्तृत है. इस अभयारण्य की स्थापना सन् 1978 के जून माह में की गई थी. यह जमशेदपुर से लगभग 40 किमी दूर स्थित है. पश्चिम सिंहभूम में अवस्थित इस अभयारण्य में अनेक वन्य प्राणी हैं, किन्तु हाथी की बहुलता है. इसका विस्तार 195 वर्ग किमी क्षेत्र में है. इस अभयारण्य के मध्य से स्वर्ण रेखा नदी गुजरती है जो क्षिप्रिकाओं का निर्माण करती है. ये क्षिप्रिकाएँ भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है.
(6) तोपचांची अभयारण्य
यह अभयारण्य धनबाद जिले में अवस्थित है. इस अभयारण्य के मध्य में एक तालाब है जो पर्यटकों के लिए मुख्यतः दिसम्बर जनवरी माह में, आकर्षण का केन्द्र होता है. क्षेत्रफल की दृष्टि से एक छोटा अभयारण्य है. इसका विस्तार मात्र 8.75 वर्ग किमी क्षेत्र में है.
( 7 ) लावालौंग अभयारण्य
यह हजारीबाग जिले में अवस्थित है तथा 207 वर्ग किमी में विस्तृत है. इस अभयारण्य में बाघ, चीता, हिरण एवं नीलगाय पाये जाते हैं.
(8) कोडरमा अभयारण्य
यह अभयारण्य हजारीबाग में अवस्थित है. इसका विस्तार 177-35 वर्ग किमी क्षेत्र में है.
(9) पारसनाथ अभयारण्य
इसरी के निकट (जी. टी. रोड पर) गिरिडीह जिले में स्थित इस अभयारण्य का पर्यटकों के लिए विशेष महत्व है. पारसनाथ झारखण्ड  की सर्वोच्च पहाड़ी शिखर है. इस स्थान पर दिगम्बर जैनों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. इस अभयारण्य का विस्तार 42-33 वर्ग किमी क्षेत्र में
(10) पालको अभयारण्य
यह अभयारण्य गुमला जिले में स्थित है जिसका विस्तार लगभग 183 वर्ग किमी क्षेत्र में है..
(11) राजमहल फासिल अभयारण्य
इस प्रकार का अभयारण्य, झारखण्ड में अकेला है. यह साहेबगंज में स्थित है.
(12) उधवा झील पक्षी विहार
साहेबगंज में अवस्थित इस अभयारण्य का पर्यटकों लिए विशेषकर पक्षी प्रेमियों के लिए विशेष महत्व है. यहाँ जाड़े में प्रवासी पक्षी भी दृष्टिगोचर होते हैं.
राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वन्य प्राणी का संरक्षण एवं विकास रहा है, किन्तु परोक्ष तौर पर इसका उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देना भी रहा है. झारखण्ड के उद्यानों एवं अभयारण्य प्रारम्भ से ही पर्यटकों का लोकप्रिय पर्यटन स्थल रहा है.
> प्रमुख धार्मिक / पर्यटन स्थल
(1) देवघर
देवघर जिले में स्थित यह स्थान हिन्दुओं का एक अति महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. भारत के 12 ज्योतिर्लिंग (शिवलिंग) में एक इस स्थान पर स्थापित की गई है. शिव भक्तों के लिए श्रावण मास में इस मन्दिर का विशेष महत्व है. सन् 1556 ई. में गिद्दौर स्टेट के संस्थापक पूरनमल ने इसके मुख्य मन्दिर का निर्माण करवाया था. मुख्य मन्दिर के निकट शिव तालाब है. मुख्य मन्दिर के इर्द-गिर्द अनेक मन्दिर हैं. शाम को मुख्य मन्दिर में शृंगार होता है जो दर्शनीय है. इस तालाब में श्रद्धालु स्नान कर मुख्य मन्दिर में पूजा-अर्चना करते हैं. देवघर झारखण्ड एवं बिहार के सभी मुख्य शहरों से रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. इसे बाबाधाम या बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है.
(2) बासुकीनाथ
बाबाधाम (देवघर) से लगभग 45-20 किमी दूर स्थित हिन्दुओं का यह तीर्थस्थल दुमका जिले में स्थित है सावन मास में देवघर की तरह यहाँ भी हिन्दू श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है. देवघर तथा बासुकीनाथ में नेपाल, बिहार, पूर्वी यू. पी., बंगाल से काफी तादात में पर्यटक आते है.
(3) पारसनाथ
गिरिडीह जिले में इसरी के निकट स्थित जैन मतावलम्बियों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. यहाँ पर स्थित सम्मेद शिखर का जैन मतावलम्बियों के लिए विशेष महत्व है. यहाँ जैनियों के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने शरीर त्याग किया था. इन्हीं के नाम पर इस स्थल का नाम पारसनाथ पड़ा जो पार्श्वनाथ का अपभ्रंश रूप है. मधुबन पारसनाथ से 20-22 किमी दूर स्थित है. यह स्थल भी जैनियों का मुख्य तीर्थस्थल है.
(4) रजरप्पा
हजारीबाग जिले के रामगढ़ के निकट रजरप्पा कोयला क्षेत्र में स्थित यह स्थल अपनी प्राकृतिक अवस्थिति एवं छिनमस्तिके मन्दिर के लिए विख्यात है. यह स्थान दामोदर एवं भेड़ा नदी के संगम पर बसा हुआ है. दोनों नदियों द्वारा निर्मित रजरप्पा जलप्रपात पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है. दामोदर नदी द्वारा नदीय अपरदन से निर्मित पॉट होल भी पर्यटकों एवं भूगोलवेत्ताओं के लिए दर्शनीय है. इस स्थान का सर्वाधिक आकर्षण एवं धार्मिक प्राणियों के लिए महत्वपूर्ण छिनमस्तिके की मन्दिर है.
(5) नगर उँटारी का शिव मन्दिर
गढ़वा जिले में स्थित नगर उंटारी से लगभग एक किमी दूर स्थित राजा पहाड़ी पर शिव मन्दिर है. यहाँ शिवरात्रि के समय मेला का आयोजन किया जाता है. इस मेले में सोनभद्र ( उ. प्र.) तक से तीर्थयात्री आते हैं.
(6) नगर उँटारी का वंशीधर मन्दिर
नगर उँटारी के राजकिले के बगल में स्थित वंशीधर मन्दिर में श्रीकृष्ण एवं राधिका की मूर्ति है. श्रीकृष्ण की मूर्ति 35 मन है जो सोने की है एवं राधिका की मूर्ति अष्ट धातु से निर्मित है.
(7) भद्रकाली मन्दिर
यह मन्दिर चतरा जिलान्तर्गत इटखोरी थाना में महाने नदी पर स्थित है. यहाँ मकर संक्रान्ति के समय मेला लगता है. इसके इर्द-गिर्द गुप्तकालीन अवशेष की प्राप्ति हुई है जिनमें से बुद्ध सम्बन्धी प्रस्तर प्रतिमा मिली है. इटखोरी का महत्व बौद्ध मतावलम्बियों के लिए बढ़ रहा है. ऐसी मान्यता है कि इटखोरी वह स्थल है जहाँ महात्मा बुद्ध गृह त्याग के बाद कुछ समय के लिए साधना पर बैठे थे, क्योंकि गृह त्याग के बाद सब उन्हें खोजते हुए पहुँचे एवं घर वापस चलने का आग्रह किया जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया तथा यहाँ से आगे बढ़ गये. उन्हें खोजने आये लोगों ने महात्मा बुद्ध को खोया हुआ मानकर पूछने पर बोले ‘इत् खोई’ (यहाँ खोये) जो अपभ्रंशित होते हुए इटखोरी हो गया.
(8) झारखण्ड धाम
राजधनवार (गिरिडीह) से 14 किमी पूरब तथा जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर जंगलों एवं नदियों के बीच अवस्थित झारखण्ड धाम नवगठित झारखण्ड राज्य का एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है जहाँ यह विराजमान है. यहाँ स्व-उत्पत्ति शिवलिंग है. यहाँ महाशिवरात्रि के दिन मेला जैसा माहौल रहता है इस दिन देश के दूर-दराजों से लोग आते हैं. झारखण्डधाम को देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम का बड़ा भाई माना जाता है.
मन्दिर के बगल में खुदाई के दौरान ईंट का जो अवशेष मिला है उससे पता चलता है कि यह मन्दिर मौर्यकाल के समय का बना हुआ है. यहाँ मिली ईंटों का स्वरूप सारनाथ मन्दिर के महाविद्यालय में मिली ईंटों से काफी हद तक मिलती हैं. कहते हैं कि शिवपुराण में भी इसका वर्णन है.
(9) बुंड
राँची जिले में स्थित यह स्थल सूर्य मन्दिर के कारण स्थानीय लोगों में प्रसिद्ध है.
(10) नेतरहाट
नेतरहाट पाट पर स्थित यह शहर पलामू जिले में स्थित है. इसे छोटा नागपुर की रानी भी कहते हैं. यह झारखण्ड का मुख्य हिल स्टेशन है. इसकी जलवायु समशीतोष्ण है. पर्यटकों के मुख्य आकर्षण का केन्द्र घाघरी तथा सदनी घाघ जलप्रपात, मैंगनोलिया प्वाइन्ट, सूर्योदय एवं सूर्यास्त का काल है.
(11) जमशेदपुर
झारखण्ड के इस मुख्य औद्योगिक शहर का पर्यटकों के लिए विशेष महत्व है. यहाँ के दर्शनीय स्थल, जुबली पार्क, जो अपने गुलाब फूलों के विविध किस्मों एवं वन्य प्राणियों के लिए प्रसिद्ध है, डिमना डैम, दलमा अभयारण्य तथा ईचागढ़ पक्षी विहार है.
(12) हजारीबाग
हजारीबाग शहर से कुछ दूर स्थित नेशनल पार्क एवं कन्हेरी हिल मुख्य पर्यटक स्थल है. इसे हजार बागों का शहर भी कहते हैं.
(13) राँची
झारखण्ड की राजधानी है, जो पूर्व में बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. राँची शहर एवं इसके इर्द-गिर्द अनेक स्थल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है, जैसे- राँची पहाड़ी तालाब, जिसमें नौकायन का आनन्द उठाया जा सकता है, बिरसा भगवान पार्क, बिरसा मृग विहार, मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र, रॉक गार्डन, टैगोर (मोहरावादी) हिल तथा मळलीवर मुख्य पर्यटन केन्द्र हैं.
इन स्थलों के अतिरिक्त कुछ अन्य स्थल भी पर्यटन, विशेषकर वर्षा के प्रारम्भ में पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रयुक्त होता है. इनमें तिलैया डैस, कोनार डैम, तेनुघाट डेम, मैथान डैम, पंचेत डैम, लुगु पर्वत में आदि मुख्य पर्यटक एवं पिकनिक स्थल हैं.
झारखण्ड में पर्यटन की सम्भावनाएँ अनन्त हैं, किन्तु यह अनेक समस्याओं से ग्रसित है. झारखण्ड के पर्यटन उद्योग की समस्याएँ इस
1. पर्यटक स्थलों विशेषकर जलप्रपातों के पास रात्रि विश्राम, रेस्तरां एवं आवागमन की सुविधा काफी कम है.
2. कानून एवं व्यवस्था की समस्या.
3. अभयारण्यों एवं नेशनल पार्क के निकट रहने वाले लोगों द्वारा इन परियोजनाओं का विरोध.
4. पर्यटकों की पर्याप्त सूचना का अभाव.
5. उत्तम परिवहन एवं संचार सुविधाओं का अभाव.
झारखण्ड में पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु इस उद्योग से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करना होगा तथा राष्ट्रीय एक्शन प्लान-92 की तरह राज्यस्तरीय एक्शन प्लान का गठन कर उनके सुझाये गये सुझावों पर अमल करना चाहिए. झारखण्ड में पर्यटन के विकास हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं
1. पर्यटन के साथ यहाँ के आदिवासी संस्कृति का संगम किया
2. नूतन पर्यटक बाजार की खोज की जानी चाहिए.
3. पर्यटन स्थलों पर आवासीय समस्याओं का समाधान करना चाहिए. इस हेतु निजी अतिथि गृहों, पर्यटन आवास, वन आवास आदि जैसे अनुपूरक व्यवस्था की जानी चाहिए.
4. पर्यटकों को सुरक्षा प्रदान की जाए.
5. पर्यटन स्थल से सम्बन्धित यात्रा कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
6. पर्यटकों हेतु दूरसंचार एवं सूचना की उत्तम व्यवस्था की जानी चाहिए.
7. आवागमन हेतु सड़क एवं रेलमार्ग में सुधार किया जाना चाहिए.
8. झारखण्ड के मुख्य पर्यटक स्थलों की जानकारी देशी एवं विदेशी पर्यटकों को विभिन्न सूचना केन्द्रों के माध्यम से दी जाए.
9. समय-समय पर यहाँ राजगीर महोत्सव, जैसे महोत्सव का आयोजन किया जाना चाहिए.
(14) अंगराबारी
यह राँची से 40 किमी दूरी पर खूँटी में स्थित है. इस मन्दिर में भगवान गणपति, राम-सीता, हनुमान एवं शिव की मूर्तियाँ स्थापित हैं. इस मन्दिर को अब अमरेश्वरधाम के नाम से भी जाना जाता है.
> पर्यावरण
झारखण्ड प्रकृति का एक अनुपम उपहार प्रकृति के तीन महत्वपूर्ण तत्व जल, जंगल एवं जमीन से यह प्रदेश सम्पन्न रहा. यहाँ की सभ्यता तथा संस्कृति वनों से अभिप्रेरित थी. आदिवासियों की जीवनचर्या जंगल से प्रारम्भ होती थी. पर्यावरण की दृष्टि से यह क्षेत्र एक सन्तुलित एवं प्रदूषण रहित क्षेत्र विकास प्रक्रिया था. कालान्तर में जैसे आरम्भ हुई, इस प्रदेश में नयी-नयी परियोजनाएँ शुरू की गईं. औद्योगीकरण प्रक्रिया तीव्र हुई, खनन कार्य होने लगे, वृक्षों के कटाव की प्रक्रिया तीव्र हो गई. ये तमाम क्रिया तीव्र कलाप पर्यावरण एवं स्थानीय परितन्त्र पर कुठाराघात किया. मनुष्य जैसेजैसे विकसित होता गया, प्रकृति से दूर होता गया. विकास का आयाम (एप्रोच) स्थायी विकास (Sustain Development) नहीं रहकर तात्कालिक सुख रहा, जिससे आर्थिक विकास तो हुआ, किन्तु पर्यावरण की शर्त पर झारखण्ड का सुरम्य पर्यावरण प्रदूषण का शिकार है. अनियोजित आर्थिक विकास का दुष्परिणाम आज दृष्टिगोचर होने लगा. यहाँ का जल, जंगल, जमीन एवं वायु दुष्प्रयोग का शिकार है. ये सभी बुरी तरह से प्रदूषित हो चुके हैं. कहीं-कहीं तो स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि यह प्राकृतिक पुनर्चक्रण की चरम सीमा तक पहुँच गई है. पूर्वजों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन किया गया, जिसका खामियाजा वर्तमान एवं आने वाली पीढ़ी को भोगना है. स्वस्थ पर्यावरण की सर्वाधिक अहम् भूमिका निभाने वाले जंगल सिमट गए. अतः आँकड़ों के आधार पर झारखण्ड के कुल क्षेत्रफल का 27 प्रतिशत जंगल है, किन्तु उपग्रहीय सर्वेक्षणों के अनुसार यह प्रतिशतता और भी कम है, अर्थात् विकास का सर्वाधिक असर जंगल पर पड़ा जिससे जल एवं जमीन दोनों प्रभावित हुआ. पर्यावरण प्रदूषण के निम्नलिखित मुख्य आयाम हैं —
(1) वायु प्रदूषण,
(2) जल प्रदूषण, तथा
(3) भूमि प्रदूषण.
(1) वायु प्रदूषण
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच. ओ.) के अनुसार वायु में उपस्थित तत्व से मानव एवं पर्यावरण दुष्प्रभावित हों, तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं. वायु प्रदूषण के स्रोत प्रायः निम्नलिखित होते हैं-
1. औद्योगिक इकाई एवं ताप विद्युत् गृहों द्वारा वायु में छोड़े गये औद्योगिक प्रदूषण; जैसे- सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, क्लोरीन, नाइट्रस ऑक्साइड आर्सेनिक, ओजोन एवं अन्य अनेक गैसें जो विभिन्न उद्योगों की चिमनियों द्वारा पर्यावरण में उगलती जा रही हैं.
2. गृहणियों द्वारा जीवाश्म युक्त ईंधन के प्रयोग से उत्पन्न प्रदूषण.
3. मशीनों एवं वाहनों द्वारा निःसृत धुआँ.
झारखण्ड में उद्योगों की स्थापना के दौरान पर्यावरणीय पहलू पर विचार नहीं किया गया, जिसका दुष्परिणाम यह है कि यहाँ की वायु बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है. वायु प्रदूषण की मात्रा दामोदर घाटी में सर्वाधिक है. दामोदर घाटी में स्थित ताप सिर्फ ताप विद्युत् केन्द्रों यथा चन्द्रपुरा, बोकारो तेनुघाट तथा पतरातु (हजारीबाग) में ताप विद्युत् केन्द्रों द्वारा प्रतिवर्ष 10 x 106 किग्रा धुआँ (धूलकण) 3 x 106 किग्रा सल्फर डाइऑक्साइड तथा 2.5 × 10 किग्रा नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित होता है. इसी प्रकार झरिया एवं वेरमो कोयला क्षेत्र में धूलकण वातावरण में उगली जा रही हैं. यहाँ के लोग फेफड़े, पेट एवं ब्लड प्रेशर के शिकार हो गये हैं. फेफड़े की बीमारी; जैसे- दमा, ब्रोंकाइटिस, सिल्कीकोसीस, न्यूमोका नियोसिस आदि रोगों के रोगी ज्यादा हैं. यहाँ की वायु प्रदूषित करने में गोनियां का विस्फोटक कारखाना, बोकारो स्टील प्लाण्ट एवं जमशेदपुर का स्टील प्लाण्ट, एल्यूमिनियम, ताँबा उद्योग, रेडियोधर्मी तत्वों की खुदाई भी है. इन उद्योगों से निःसृत गैस ओजोन स्तर को प्रभावित कर रही है.
समय रहते वर्तमान नूतन सरकार नहीं चेती तो स्थिति अति भयावह हो जाएगी, जिसके लिए प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों एवं वाहनों एवं उद्योगों पर नियन्त्रण कायम करने हेतु दिशा निर्देश तय करना ही होगा, जिससे कि ये अपने उत्पादन प्रक्रिया में तकनीकी सुधार कर प्रदूषण पर नियन्त्रण करें. अभी हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने डीवीसी के बोकारो थर्मल में स्थित एक इकाई को तब तक बन्द रखने का आदेश दिया है, जब तक वह प्रदूषण पैदा करने वाले गैसों पर नियन्त्रण हेतु कोई वैकल्पिक व्यवस्था न कर ले.
(2) जल प्रदूषण
कहते हैं ‘जल ही जीवन है’ और झारखण्ड में प्रदूषित जल ने जीवन की सार्थकता को ही खतरे में डाल दिया है. यहाँ के सभी छोटे-बड़े नदी प्रदूषित हैं. इनके प्रदूषण का मुख्य कारण –
1. घरेलू सीवेज,
2. औद्योगिक अवशिष्ट,
3. कृषि का रासायनिक अगम.
जल प्रदूषण ने झारखण्ड के जैव-विविधता के लिए भी खतरा प्रस्तुत किया है. यदि झारखण्ड की प्रायः सभी प्रमुख नदियाँ मसलन दामोदर एवं स्वर्ण रेखा इतना प्रदूषित होने से इन दोनों नदियों को गुणवत्ता एवं उपयोगिता के दृष्टिकोण से निम्न वर्ग में वर्गीकरण किया गया है, अर्थात् इन नदियों के जल जानवरों एवं प्राणियों के योग्य नहीं रह गया है. दामोदर नदी के प्रदूषण में इन नदियों एवं इनकी सहायक नदियों के इर्द-गिर्द स्थित उद्योग एवं इस्पात उद्योग आदि अनेक उद्योग हैं. एक अनुमान के अनुसार इस नदी के एवं सहायक नदियों पर स्थित ताप विद्युत् केन्द्र प्रतिवर्ष लगभग 25 लाख टन अवशिष्ट पदार्थ दामोदर में प्रवाहित करती है. ताप विद्युत् उद्योग के अतिरिक्त कोल वाशरी, विस्फोटक उद्योग, रिफ्रेक्टरी उद्योग, सीसा उद्योग एवं इस्पात उद्योग आदि अनेक उद्योग इस नदी के जल को प्रदूषित कर रहे हैं. इस प्रदेश की दूसरी प्रमुख नदी स्वर्ण रेखा है, जो औद्योगिक संकूल जमशेदपुर में स्थित विविध उद्योगों एवं जादूगोड़ा स्थित यूरेनियम कॉर्पोरेशन के उत्सर्जित पदार्थ से बुरी तरह प्रदूषित है. जल प्रदूषण से यहाँ का भूगर्भीय जल भी प्रभावित हुआ है. विभिन्न उद्योगों द्वारा उत्सर्जित फ्लाइ गैस वर्षा काल में बारिस के जल के माध्यम से सतही जल में मिल जाते हैं. अनुमानतः ठोस उत्सर्जन की मात्रा प्रति लीटर जल में 100 मिग्राम से कम होना चाहिए, किन्तु इस प्रदेश के सतही जल में 3-4 ग्राम / लिटर तक पायी जाती है. भूगर्भीय जल का पीने एवं स्नान हेतु प्रयोग निम्न आय वर्ग वाले समूह की नियति है, जिससे पेट तथा त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ इस क्षेत्र के लोगों में आम हैं. स्वच्छ पेयजल की समस्या इस राज्य की एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या है. पलामू जिले के भूगर्भीय जल स्रोत में फ्लोरीन पाया गया है, जिससे फ्लरोसीस रोग से ग्रसित मरीज पाये जाते हैं.
(3) भूमि प्रदूषण
औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण आबादी में तीव्र गति से वृद्धि हुई. झारखण्ड सरकार के लिए जल प्रदूषण विशेषकर पेयजल की समस्या एक बड़ी समस्या है, जो सुरसा की भाँति मुँह बाये खड़ी है जिस ओर सरकार को यथाशीघ्र ध्यान देने हैं.
औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण आबादी में तीव्र गति से वृद्धि हुई जो भूमि प्रदूषण का मुख्य कारक बना. भूमि विभिन्न उद्योगों द्वारा उत्सर्जित धूलकण एवं गैस द्वारा प्रदूषित होती है. भूमि प्रदूषण में वनों का कटाव, भूमिक्षरण, नदी घाटी परियोजना, उद्योगों द्वारा उत्सर्जित धूलकण आदि कारक सहायक रहे हैं. वन पर्यावरण का प्रमुख अंग है जो मृदा को आवरण प्रदान करता है तथा जलवायु को प्रभावित करता है. वनोन्मूलन का मुख्य कारण नदी घाटी परियोजनाएँ, खनन-क्रिया तथा स्थानीय लोगों द्वारा वन कटाव एवं झूम-कृषि पद्धति है. सन् 1952 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार स्वस्थ पर्यावरण हेतु कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33 प्रतिशत क्षेत्र पर वन का विस्तार होना चाहिए. इस लक्ष्य को 1986 ई. की वन नीति में पूर्ण अनुमोदित किया गया और पहाड़ी, पठारी तथा हिमालय तथा हिमालय क्षेत्र के लिए 60 प्रतिशत भूमि पर मैदानी क्षेत्र के 20 प्रतिशत भूमि पर वन का विस्तार होना चाहिए. आज झारखण्ड में मात्र 29-61 प्रतिशत भूमि पर वन हैं जो लक्ष्य (60 प्रतिशत) से काफी कम है. एक अनुमान के अनुसार पिछले 40 वर्षों में वन क्षेत्रों में लगभग 40 प्रतिशत की कमी हुई है. वनोन्मूलन का सीधा प्रभाव मृदाक्षरण एवं वर्षा की मात्रा पर पड़ता है. मृदाक्षरण कृषि को प्रभावित करता है. मृदाक्षरण झारखण्ड जैसे राज्य में अति कष्टकारक हो जाता है, क्योंकि इसे कृषि प्रधान राज्य में मात्र 1/3 भूमि पर कृषि होती है, जिसमें से इसका 1/4 भाग मृदाक्षरण से प्रभावित है, जबकि दामोदर घाटी का लगभग 2/3 भाग मृदा क्षरण से प्रभावित है. मृदाक्षरण में मृदा के ऊपरी परत का ही अपरदन होता है जो कृषि के दृष्टिकोण से सर्वाधिक उपयोगी होता है. अनुमानतः 1/8 इंच मृदा की परत के निर्माण में सैकड़ों वर्ष लग जाते हैं. इस तथ्य से मृदा क्षरण का दुष्प्रभाव समझा जा सकता है.
वनोन्मूलन से मृदाक्षरण के साथ-साथ भूगर्भीय जल भण्डार भी प्रभावित होता है. वनों की कमी से वर्षा जल भूगर्भ में न जाकर ऊपर-ऊपर बह जाती है जिससे मृदाक्षरण भी होता है. विगत वर्षों में राँची के आसपास औसत से अधिक वर्षा हुई, किन्तु भूगर्भीय जल स्तर में अपेक्षतया काफी कम वृद्धि (तेजी) हुई. वर्षा जल के भूमि की सतह पर प्रवाह के कारण सतही जल प्रणाली के जल स्तर में वृद्धि हो जाती है जिससे नदी की निचली घाटियों में अकस्मात बाढ़ आ जाती है. 1998 में जमशेदपुर एवं 1999 ई. में राँची में बाढ़ इसी का दुष्परिणाम था.
वनों के विनाश से झारखण्ड की जलवायु भी प्रभावित हुई. राँची को पहले हिल स्टेशन के रूप में प्रयोग किया जाता था, किन्तु अब यहाँ गर्मी के दिनों में भीषण गर्मी पड़ती है एवं सापेक्षित आर्द्रता 10 प्रतिशत से भी कम रहती है, यह कम वर्षा का सूचक है. वनोन्मूलन से जैवविविधता भी प्रभावित हुई है. भूमि प्रदूषण एवं वनोन्मूलन का विकृत रूप पलामू एवं गढ़वा में सूखे के रूप में इस वर्ष देखा गया. अतः सरकार समय रहते सन् 1986 की राष्ट्रीय वन नीति के तथ्यों पर अमल करे एवं वृक्षारोपण के कार्यक्रम में तेजी लाए.
प्रदूषित पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार का दायित्व सरकार को सर्वोपरि है, किन्तु इस कार्य में जन सहभागिता होना अनिवार्य है. अन्यथा कार्यक्रम सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह जाएगा.
> मुख्य बातें
> झारखण्ड में पर्यटन के दृष्टिकोण से यहाँ की नदियों द्वारा निर्मित जलप्रपात उल्लेखनीय हैं.
> हुंडरू का जलप्रपात झारखण्ड का सर्वाधिक ऊँचा जलप्रपात है, जो लगभग 74 मीटर ऊँचा है. यह राँची के पाट प्रदेश पर स्वर्ण रेखा नदी द्वारा निर्मित जलप्रपात है.
> झारखण्ड के अन्य प्रमुख जलप्रपात हैं
दशमवाय जलप्रपात – कांची नदी द्वारा निर्मित.
बुढा घाव – जलप्रपात – बुढ़ी नदी द्वारा निर्मित.
सदनी घाव जलप्रपात – शंख नदी द्वारा निर्मित.
जोन्हा जलप्रपात – जोन्हा एवं रारू नदी के संगम पर स्थित.
रजरप्पा जलप्रपात – दामोदर नदी पर भेड़ा नदी द्वारा निर्मित.
फेरुआ घाघ जलप्रपात – कोरा नदी द्वारा निर्मित.
घघरी जलप्रपात – घघरी नदी द्वारा निर्मित.
> झारखण्ड में सूर्यकुण्ड, तेतुलिया एवं ततहा नामक स्थान पर गर्म जल कुण्ड हैं.
> झारखण्ड में पर्यटकों के लिए यहाँ के अभयारण्य एवं नेशनल पार्क भी महत्वपूर्ण हैं.
> झारखण्ड के मुख्य अभयारण्य एवं नेशनल पार्क हैं.
– बेतला नेशनल पार्क – (पलामू)
– हजारीबाग नेशनल पार्क – (हजारीबाग)
– पलामू अभयारण्य – (पलामू)
– महुआ डांड़ वोल्फ अभयारण्य – (पलामू)
– दलमा अभयारण्य – (पश्चिमी सिंहभूम)
– तोपचांची अभयारण्य – (धनबाद)
– कोडरमा अभयारण्य – (कोडरमा)
– पारसनाथ अभयारण्य – (गिरिडीह)
– पालको अभयारण्य – (गुमला)
– राजमहल फौसिल अभयारण्य – (साहेबगंज)
– उधवा झील पक्षी विहार – (साहेबगंज)
> झारखण्ड में कुछ दर्शनीय स्थल अपने धार्मिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक महत्ता के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है.
> देवघर – झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित इस शिव मन्दिर में भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक स्थित है.
> बासुकीनाथ बुंडु – दुमका जिले में स्थित इस स्थल पर प्रसिद्ध शिव मन्दिर है.
> झारखण्ड में हिन्दुओं एवं जैनों का अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है पारसनाथ, रजरप्पा, बुंडु, झारखण्ड धाम, भद्रकाली मन्दिर, नगर उँटारी आदि.
> झारखण्ड के अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों में जमशेदपुर, हजारीबाग, राँची, नेतरहाट इत्यादि हैं.
> पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है जिससे झारखण्ड भी ग्रसित है.
> झारखण्ड में वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण का मुख्य कारण अनियोजित उद्योगों का विकास रहा है.
> झारखण्ड में भूमि प्रदूषण का कारण, वनोन्मूलन, भूमिक्षरण, नदी-घाटी परियोजनाएँ तथा उद्योगों द्वारा उत्सर्जित धूलकण आदि रहा है.
> झारखण्ड में पर्यावरण प्रदूषणों में वनोन्मूलन, की प्रक्रिया सहायक रही है.
>  झारखण्ड के कुल क्षेत्रफल के मात्र 27 प्रतिशत क्षेत्र पर वन हैं.
> अनुमानतः पिछले 40 वर्षों में लगभग 40 प्रतिशत वन क्षेत्रों में कमी हुई है,
> वनोन्मूलन के कारण झारखण्ड की जलवायु में उष्णता में भी वृद्धि हुई है.
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