Jharkhand Board | Hindi subjective question answer | Class 10Th Hindi subjective question answer
HINDI (हिन्दी) : SUBJECTIVE QUESTION
खण्ड – ‘क’ (अपठित बोध : गद्यांश एवं काव्यांश)
1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
भारत में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश को खाद्यात्र मामले में आत्मनिर्भर बनाना था, लेकिन इस बात की आशंका किसी को नहीं थी कि रासायनिक और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल न सिर्फ खेतों में, बल्कि खेतों से बाहर मंडियों तक में होने लगेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग खाद्यान्न की गुणवत्ता के लिए सही नहीं है, लेकिन जिस रफ़्तार से देश की आबादी बढ़ रही उसके मद्देनजर फ़सलों की अधिक पैदावार जरूरी थी। समस्या सिर्फ रासायनिक खादों के प्रयोग की ही नहीं है। देश के ज़्यादातर किसान परंपरागत कृषि से दूर होते जा रहे हैं।
दो दशक पहले तक हर किसान के यहाँ गाय, बैल और भैंस खूटों से बँधे मिलते थे। अब इन मवेशियों की जगह ट्रैक्टर-ट्राली ने ले ली है। परिणामस्वरूप गोबर और घूरे की राख से बनी कंपोस्ट खाद खेतों में गिरनी बंद हो गई। पहले चैत-बैसाख में गेहूँ की फ़सल कटने के बाद किसान अपने खेतों में गोबर, राख और पत्तों से बनी जैविक खाद डालते थे। इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती थी, बल्कि इससे किसानों को आर्थिक लाभ के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाली फसल मिलती थी।
प्रश्न –
(क) हमारे देश में हरित क्रांति का उद्देश्य क्या था ?
(ख) खाद्यान्त्रों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किनका प्रयोग सही नहीं था ?
(ग) विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता के लिए क्या आवश्यक मानने लगे और क्यों ?
(घ) हरित क्रांति ने किसानों को परंपरागत कृषि से किस तरह दूर कर दिया ?
(ङ) हरित क्रांति का मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर क्या असर हुआ? इसे समाप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर –
(क) हमारे देश में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य था— मामले में आत्मनिर्भर बनाना। देश को खाद्यान्न के
(ख) खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने हेतु रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक नहीं था।
(ग) विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता हेतु रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक मानते थे क्योंकि देश की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही थी। इसका पेट भरने के लिए फ़सल के भरपूर उत्पादन की आवश्यकता थी।
(घ) हरित क्रांति के कारण किसान खेती के पुराने तरीके से दूर होते गए। वे खेती में हल-बैलों की जगह ट्रैक्टर की मदद से कृषि कार्य करने लगे। इससे बैल एवं अन्य जानवर अनुपयोगी होते गए।
(ङ) हरित क्रांति की सफलता के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से जमीन प्रदूषित होती गई, जिससे वह अपनी उपजाऊ क्षमता खो बैठी। इसे समाप्त करने के लिए खेतों में घूरे की राख और कंपोस्ट की खाद के अलावा जैविक खाद का प्रयोग भी करना चाहिए।
2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
ताजमहल, महात्मा गाँधी और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र – इन तीन बातों से दुनिया में हमारे देश की ऊँची पहचान है। ताजमहल भारत की अंतरात्मा की, उसकी बहुलता की एक धवल धरोहर है। यह सांकेतिक ताज आज खतरे में है। उसको बचाए रखना बहुत जरूरी है।
मजहबी दर्द को गाँधी दूर करता गया। दुनिया जानती है, गाँधीवादी नहीं जानते ॐ हैं। गाँधीवादी उस गाँधी को चाहते हैं जो कि सुविधाजनक है। राजनीतिज्ञ उस गाँधी को चाहते हैं जो कि और भी अधिक सुविधाजनक है। आज इस असुविधाजनक गाँधी का पुनः आविष्कार करना चाहिए, जो कि कड़वे सच बताए, खुद को भी औरों को भी।
अंत में तीसरी बात लोकतंत्र की। हमारी जो पीड़ा है, वह शोषण से पैदा हुई है, लेकिन आज विडंबना यह है कि उस शोषण से उत्पन्न पीड़ा का भी शोषण हो रहा है। यह है हमारा जमाना, लेकिन अगर हम अपने पर विश्वास रखें और अपने पर स्वराज लाएँ तो हमारा जमाना बदलेगा। खुद पर स्वराज तो हम अपने अनेक प्रयोगों से पा भी सकते हैं, लेकिन उसके लिए अपनी भूलें स्वीकार करना, खुद को सुधारना बहुत आवश्यक होगा
प्रश्न –
(क) संसार में भारत की प्रसिद्धि का कारण क्या है ?
(ख) गाँधीवादी आज किस तरह के गाँधी को चाहते हैं?
(ग) हमारे देश के लिए ताजमहल का क्या महत्त्व है? आज इसे किस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है?
(घ) राजनीतिज्ञ किस गाँधी की आकांक्षा रखते हैं ? वास्तव में आज कैसे गाँधी की जरूरत है ?
(ङ) जमाना बदलने के लिए क्या आवश्यक है ? इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर –
(क) संसार में भारत की प्रसिद्धि के तीन कारण हैं- ताजमहल, महात्मा गाँधी और लोकतांत्रिक प्रणाली ।
(ख) गाँधीवादी आज उस गाँधी को चाहते हैं जो सुविधाजनक है।
(ग) हमारे देश के लिए ताजमहल का विशेष महत्त्व है। यह हमारे देश की अंतरात्मा की उसकी बहुलता की धरोहर है। आज प्रदूषण के कारण यह खतरे की स्थिति से गुजर रहा है। इसकी रक्षा करना आवश्यक हो गया है।
(घ) राजनीतिज्ञ उस गाँधी की आकांक्षा रखते हैं जो और भी सुविधाजनक हो । वास्तव में आज ऐसे गाँधी की आवश्यकता है जो खुद को भी कड़वा सच बताए और दूसरों को भी बताए ।
(ङ) जमाना बदलने के लिए हमें स्वयं पर स्वराज लाना होगा। इसे पाने के लिए हमें अपने पर अनेक प्रयोग करने होंगे, अपनी भूलें स्वीकारनी होंगी तथा खुद को सुधारना होगा।
3. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आजादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है ? क्या एकआज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है
उसमें ?
बेशक समाज जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ
खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न –
(क) नारी की वास्तविक आज़ादी कब होगी?
(ख) कामयाबी, नैतिकता शब्दों से प्रत्यय अलग करके मूलशब्द भी लिखिए।
(ग) कैसे कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की है ?
(घ) दूरदराज़ के क्षेत्रों में लेखक को महिलाओं की आज़ादी पर संदेह क्यों लगता है?
(ङ) नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वह कमज़ोर क्यों पड़ जाती है?
उत्तर –
(क) नारी की वास्तविक आज़ादी तब होगी जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह मन से आज़ादी महसूस कर सकेगी।
(ख) शब्द मूलशब्द प्रत्यय
कामयाबी कामयाब ई
नैतिकता नीति इक, ता
(ग) वर्तमान समय में नारी प्रौदयोगिकी, सेना, वायुसेना, विज्ञान आदि क्षेत्र में तरह-तरह के रूपों में सफलता के झंडे गाड़ रही है। उसने हर क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ी है। इस तरह कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की हैं।
(घ) दूरदराज के क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में महिलाओं की आज़ादी के बारे में लेखक को इसलिए संदेह लगता है क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में महिलाएँ स्वतंत्र मनुष्य की भाँति अपना फैसला स्वयं लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने का साहस नहीं कर पा रही हैं।
(ङ) नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो इसलिए कमज़ोर पड़ जाती है क्योंकि तब इसकी राह में धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता की बात सामने आ जाती है और परिवार की स्थिरता के लिए उसे समर्पण भाव अपनाना पड़ता हैं।
4. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तिलक ने हमें स्वराज का सपना दिया और गाँधी ने उस सपने को दलितों और स्त्रियों से जोड़कर एक ठोस सामाजिक अवधारणा के रूप में देश के सामने ला रखा। स्वतंत्रता के उपरांत बड़े-बड़े कारखाने खोले गए, वैज्ञानिक विकास भी हुआ, बड़ी-बड़ी योजनाएँ भी बनीं, किंतु गाँधीवादी मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता सीमित होती चली गई। दुर्भाग्य से गाँधी के बाद गाँधीवाद को कोई ऐसा व्याख्याकार न मिला जो राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भों में गाँधी के सोच की समसामयिक व्याख्या करता । सो यह विचार लोगों में घर करता चला गया कि गाँधीवादी विकास का मॉडल धीमे चलने वाला और तकनीकी प्रगति से विमुख है। उस पर ध्यान देने से हम आधुनिक वैज्ञानिक युग की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। कहना न होगा कि कुछ लोगों की पाखंडी जीवन शैली ने भी इस धारणा को और पुष्ट किया।
इसका परिणाम यह हुआ कि देश में बुनियादी तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तो आई पर देश के सामाजिक और वैचारिक ढाँचे में जरूरी बदलाव नहीं लाए गए। सो तकनीकी विकास ने समाज में व्याप्त व्यापक फटेहाली, धार्मिक कूपमंडूकता और जातिवाद को नहीं मिटाया।
प्रश्न –
(क) गाँधी जी ने स्वराज के सपने को सामाजिक अवधारणा का रूप कैसे दिया ?
(ख) स्वतंत्रता, प्रतिबद्धता शब्दों में प्रयुक्त उपसर्ग, मूलशब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।
(ग) स्वतंत्रता के बाद गाँधीवादी मूल्यों की क्या दशा हुई और क्यों ?
(घ) गाँधीवादी मूल्य आजादी के बाद लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु क्यों नहीं बन सके ?
(ङ) गाँधीवादी मूल्यों की उपेक्षा का परिणाम क्या हुआ ?
उत्तर –
(क) गाँधी जी ने स्वराज के सपने को सामाजिक अवधारणा का रूप देने के लिए देश की महिलाओं और दलितों को जोड़ा।
(ख) शब्द उपसर्ग मूलशब्द प्रत्यय
स्वतंत्रता स्व तंत्र ता
प्रतिबद्धता प्रति बद्ध ता
(ग) स्वतंत्रता के बाद लोगों द्वारा गाँधीवादी मूल्यों की उपेक्षा शुरू कर दी गई क्योंकि गाँधी जी की मृत्यु के बाद गाँधीवाद का कोई ऐसा व्याख्या करने • वाला न मिला जो राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक संदर्भों में गाँधी जी के विचारों की समसामयिक व्याख्या करता ।
(घ) आजादी के बाद गाँधीवादी मूल्य लोगों के आकर्षण का केंद्र बिंदु इसलिए नहीं बन सके क्योंकि लोग यह मानने लगे कि गाँधीवादी विकास का मॉडल धीरे चलने वाला है। इससे हम वैज्ञानिक युग की दौड़ में पीछे रह जाएँगे।
(ङ) गाँधीवादी मूल्यों की उपेक्षा का यह परिणाम हुआ कि देश ने बुनियादी, तकनीकी और औद्योगिक प्रगति तो की पर देश के सामाजिक- वैचारिक ढाँचे में बदलाव न लाने के कारण गरीबी, धर्मांधता और जातिवाद के जहर को कम नहीं किया जा सका।
5. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया। उसकी दृष्टि में मनुष्य के भीतर जो आंतरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना, बहुत निकृष्ट आचरण है। भारतवर्ष ने उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। इस देश के कोटि-कोटि दरिद्र जनों की हीन अवस्था को सुधारने के लिए अनेक कायदे-कानून बनाए गए। जिन लोगों को इन्हें कार्यावित करने का काम सौंपा गया वे अपने कर्तव्यों को भूलकर अपनी सुख-सुविधा की ओर ज़्यादा ध्यान देने लगे। वे लक्ष्य की बात भूल गए और लोभ, मोह जैसे विकारों में फँसकर रह गए। आदर्श उनके लिए मजाक का विषय बन गया और संयम को दकियानूसी मान लिया गया। परिणाम जो होना था, वह हो रहा है-लोग लोभ और मोह में पड़कर अनर्थ कर रहे हैं, इससे भारतवर्ष के पुराने आदर्श और भी अधिक स्पष्ट रूप से महान और उपयोगी दिखाई देने लगे हैं। अब भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी।
प्रश्न –
(क) मन समाए विकारों को किसके सहारे वश में किया जाता है ?
(ख) विलोम लिखिए – निकृष्ट, आंतरिक ।
(ग) हमारे देश में चरम और परम किसे माना जाता है ? यह मान्यता पाश्चात्य देशों से किस तरह अलग है?
(घ) देश में करोड़ों लोग गरीबी में क्यों जी रहे हैं?
(ङ) आदर्श एवं संयम को दकियानूसी कौन मान बैठे? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर –
(क) मन में समाए विकारों को संयम के बंधन के सहारे वश में किया जाता है।
(ख) निकृष्ट उत्कृष्ट; आंतरिक वाह्य ।
(ग) हमारे देश में जीवन मूल्यों और आदर्शों चरम और परम माना जाता है। पश्चिमी देशों में शारीरिक सुख और भौतिक वस्तुओं के संग्रह को जीवन लक्ष्य माना जाता है, पर हमारे देश में मानसिक सुख एवं मूल्यों को।
(घ) देश में करोड़ों लोग गरीबी में इसलिए जी रहे हैं क्योंकि गरीबी को दूर करने के लिए जो कानून बने और उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी जिन पर सौंपी गई, वे अपना कर्तव्य और लक्ष्य भूलकर अपनी सुख-सुविधा में लग गए।
(ङ) आदर्श एवं संयम को दकियानूसी वे लोग मानने लगे जो सुख-सुविधा की ओर ज़्यादा ध्यान दे रहे थे। इससे लोग लोभ और मोह में पड़कर अनर्थ कर रहे हैं; भ्रष्ट साधनों से धन अर्जित कर रहे हैं और देश में अराजकता फैल रही है।
6. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था में न कोई छोटा होता है न बड़ा, न कोई अमीर न कोई गरीब । देश का संविधान सबके लिए समान है। नागरिक अधिकारों पर सबका समान हक है। लोकतंत्र पारिवारिक-सामाजिक सभी स्तरों स्त्री-पुरुष को एक नजर से देखता है। अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने, अपनी बात बेझिझक कहने का सबको समान अधिकार है। आजादी मिलने के बाद इस लोकतंत्रात्मक पद्धति के आधार पर हम सभी क्षेत्रों में आगे बढ़े हैं। नारी जागृति आई है, शिक्षा, स्वास्थ्य राजनीति – सभी क्षेत्रों में विकास हुआ है। ऐसी स्थिति में भी जब हम निराशाजनक बातें करते हैं कि तंत्र ठप्प हो गया है, यह पद्धति असफल हो गई है— यह ठीक नहीं । वास्तव में दोष तंत्र का नहीं – दोष हमारे नजरिये का है। हमारी अपेक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं जिन्हें संतुष्ट करने के लिए एक क्या अनेक तंत्र असफल हो जाएँगे। हमारा देश विशाल आबादी वाला एक विशाल देश है।
इसे चलाने वाला तंत्र भी उतना ही विशाल और समर्थ चाहिए और जैसा कि नाम से स्पष्ट है लोकतंत्र में हम ही तंत्र हैं। जब हर नागरिक इतना शिक्षित हो जाए कि अपने देश, समाज, परिवार, हर व्यक्ति सबके प्रति निष्ठा से अपना दायित्व निभाता रहे तब लोकतंत्र की सफलता सामने आएगी। जरूरी है कि हमारी सोच सकारात्मक हो। हम सोचें कि इतनी उदारता, इतनी ग्रहणशीलता और किसी तंत्र में नहीं है जितनी लोकतंत्र में है, मानवता का इतना संतुलित सर्वांगीण विकास किसी और तंत्र में हो भी नहीं सकता।
प्रश्न –
(क) ‘तंत्र ठप हो गया है’ – ऐसा कहना किसका दोष प्रकट करता है ?
(ख) मानवता का सबसे संतुलित विकास किस तंत्र में हो सकता है ?
(ग) गद्यांश के आधार पर लोकतंत्र की विशेषताएँ लिखिए।
(घ) लोकतंत्र के संबंध में निराशाजनक बातें क्यों नहीं करनी चाहिए ?
(ङ) लोकतंत्र की सफलता किन तत्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर –
(क) ‘लोकतंत्र ठप हो गया है’ — ऐसा कहना हमारे नजरिये का दोष प्रकट करता है।
(ख) मानवता का सबसे संतुलित विकास लोकतंत्र में ही हो सकता है।
(ग) लोकतंत्र में सभी समान होते हैं। नागरिक अधिकारों पर सबका समान हक होता है। इस तंत्र में पारिवारिक-सामाजिक सभी स्तरों पर स्त्री-पुरुष बराबर होते हैं। सभी को अपनी बातें कहने तथा अधिकारों के इस्तेमाल का अधिकार होता है।
(घ) लोकतंत्र के बारे में निराशाजनक बातें इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमारी अपेक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं कि उसे पूरा करने के लिए कई तंत्र असफल हो जाएँगे। भारत जैसे विशाल देश में इसे चलाने वाला तंत्र भी विशाल और समर्थ होना जरूरी है।
(ङ) लोकतंत्र लोगों का तंत्र है। इसकी सफलता के लिए हर नागरिक का शिक्षित होना, अपने देश, परिवार, समाज के प्रति दायित्वों का निर्वाह करना तथा सकारात्मक सोच रखना अति आवश्यक है।
7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
गरीबी, जाति और धर्म की सीमाओं को भेद जाती है। भारत की जनसंख्या का • बहुत बड़ा हिस्सा गरीब है या गरीबी के आसपास है। इसलिए देश के प्रशासकों ने इस समस्या के समाधान के लिए आर्थिक विकास और सामाजिक
न्याय को राष्ट्रीय लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया है इससे समाज में आर्थिक विषमता घटेगी। हमारे संविधान की प्रस्तावना में भी गणतंत्र के विशेषणों में ‘समाजवादी’ शब्द सम्मिलित है। इसके फलस्वरूप भारतीय समाज के कमजोर वर्गों को आर्थिक आधार पर विशेष सलक पाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। कृषि-मजदूरों, छोटे किसानों, देहाती-शहरी गरीबों के लिए योजनाबद्ध विकास के कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। ये कार्यक्रम जाति के आधार पर नहीं, समानता असमानता के आधार पर हैं।
सभी प्रकार के पिछड़ेपन को, भले ही वह आर्थिक हो या सामाजिक या • सांस्कृतिक, दूर करना निश्चित रूप से न्यायपूर्ण एवं स्वीकार करने योग्य लक्ष्य है। आर्थिक पिछड़ेपन सामाजिक असमानता के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इस समस्या का उपचार करने के लिए सरकार ने एक रणनीति अपनाई-कानून बनाने के रूप में। जिसका उल्लंघन करने वालों को सजा का प्रावधान है।
एक उदाहरण लें— ‘अस्पृश्यता अपराध कानून के अंतर्गत अस्पृश्यता को दंडनीय अपराध माना गया और इसके परिणामस्वरूप देश से अस्पृश्यता प्रायः समाप्त हो गई है। इतना अवश्य है कि इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना है।
प्रश्न –
(क) ‘गरीबी, जाति और धर्म की सीमाओं को भेद जाती है।’ का आशय क्या है ?
(ख) अस्पृश्यता समाप्त होने का कारण क्या है ?
(ग) गरीबी की समस्या के समाधान के लिए प्रशासकों ने क्या किया? उनके प्रयास का फल क्या होगा ?
(घ) संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ विशेषण सम्मिलित करना इस समस्या के समाधान के लिए कितना कारगर सिद्ध होगा?
(ङ) पिछड़ापन दूर करने की मुहिम को कानून से जोड़ना क्या कारगर सिद्ध होगा? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) ‘गरीबी जाति और धर्म की सीमाओं को भेद जाती का आशय है-यह सभी जातियों और धर्मावलंबियों को समान रूप से प्रभावित करती है ।
(ख) अस्पृश्यता समाप्त होने का कारण अस्पृश्यता अपराध कानून बनाकर इसे दंडनीय घोषित करना है।
(ग) गरीबी की समस्या दूर करने के लिए प्रशासकों ने आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को राष्ट्रीय लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया। उनके इस प्रयास से आर्थिक विषमता घटने की संभावना है।
(घ) संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी विशेषण शामिल करने से समाज के कमजोर वर्गों कृषि-मजदूरों, छोटे किसानों, देहाती शहरी गरीबों के विकास के लिए कार्यक्रम बनाए जाते हैं, जो समानता असमानता पर आधारित होते हैं। यह प्रयास कारगर सिद्ध होगा।
(ङ) पिछड़ापन दूर करने की मुहिम को कानून से जोड़ने पर इसके उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान हो जाता है। इसका उदाहरण अस्पृश्यता अपराध कानून है जिससे अस्पृश्यता समाप्त हो गई।
अपठित काव्यांश
1. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली ।
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के
जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोके राह, समय में ताब कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में ।
प्रश्न –
(क) एहसासहीन जनता की तुलना किससे की गई है?
(ख) कवि किसके सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है?
(ग) ‘जंतर-मंतर सीमित हों चार ख़िलौनों में’ का भाव क्या है?
(घ) क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने का क्या परिणाम होता है?
(ङ) कवि ने देवता किसे कहा है? वह कहाँ रहता है?
उत्तर –
(क) एहसासहीन जनता की तुलना उस फूल से की गई है जिसे जब चाहें, तोड़कर दूसरे के सामने प्रस्तुत कर दिया जाता है।
(ख) कवि तैंतीस करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है।
(ग) भाव यह है कि अपनी माँगों के लिए आवाज़ उठाती जनता को बातों का खिलौना देकर बहला दिया जाता है।
(घ) क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने पर व्यवस्था में भूकंप आ जाता है, तूफ़ान आ जाता है। उसकी हुंकार से शासन की नींव हिल जाती है। उसकी शक्ति से सत्ता नष्ट हो जाती है। तब समय में भी इतनी ताकत नहीं रहती कि उसे रोका जा सके।
(ङ) कवि ने हमारे देश के साधारण लोगों, मज़दूरों, किसानों आदि को देवता कहा है। ऐसे देवता देवालयों और राजप्रासादों में न रहकर सड़कों के किनारे मिट्टी खोदते और खेतों-खलिहानों में काम करते हुए मिल जाते हैं।
2. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा ।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ?
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में ।
हो रक्त बूंद भर भी जब तक हमारे तन में ।
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा ।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ?
कोई दलित न जग में हमको पड़े दिखाई।
स्वाधीन हों सुखी हों सारे अछूत भाई ?
सबको गले लगा ले यह शुद्ध मन हमारा ।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ॥
धुन एक ध्यान में है, विश्वास है विजय में।
हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में ?
कैसे उजाड़ देगा कोई चमन हमारा ?
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ?
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे?
जब तक पहुँच न लेंगे तब तक न साँस लेंगे।
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ?
प्रश्न –
(क) कवि की हार्दिक इच्छा क्या है?
(ख) ‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
(ग) ‘हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में’ यहाँ ‘तफ़ान’ और ‘प्रलय’ किसके प्रतीक हैं ?
(घ) कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसका स्वरूप कैसा होगा ?
(ङ) कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए क्या-क्या करना चाहता है और क्यों ?
उत्तर –
(क) कवि की हार्दिक इच्छा यह है कि वह मरते समय तक देश की सेवा करता रहे।
(ख) ‘हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग) ‘हम तो अचल रहेंगे तूफान में प्रलय में’– यहाँ ‘तूफ़ान’ और ‘प्रलय’ राह की मुश्किलों के प्रतीक हैं।
(घ) कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसमें कोई भी दीन-दुखी और दलित नहीं होगा। समाज के अछूत समझे जाने वाले दलित जन भी आपस में भाई-भाई होंगे और वे एक-दूसरे को प्रेम से गले लगाएँगे।
(ङ) कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए शरीर में एक भी साँस रहने तक आगे बढ़ना चाहता है। वह लक्ष्य तक पहुँचे बिन’ पाँस तक नहीं लेना चाहता है। कवि उस लक्ष्य के सहारे चाहता है कि विश्व के लोग भारत का गुणगान करें।
3. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
हम जंग न होने देंगे!
विश्व शांति के हम साधक हैं,
जंग न होने देंगे!
कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी,
खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी,
आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा,
एटम से फिर नागासाकी नहीं जलेगी
युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे!
हथियारों के ढेरों पर जिनका है डेरा,
मुँह में शांति, बगल में बम, धोखे का फेरा,
कफ़न बेचने वालों से कह दो चिल्लाकर,
दुनिया जान गई है उनका असली चेहरा,
कामयाब हों उनकी चालें, ढंग न होने देंगे!
हमें चाहिए शांति, ज़िंदगी हमको प्यारी,
हमें चाहिए शांति, सृजन की है तैयारी,
हमने छेड़ी जंग भूख से, बीमारी से,
आगे आकर हाथ बटाए दुनिया सारी,
हरी-भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे !
प्रश्न –
(क) कवि किस तरह की दुनिया चाहता है ?
(ख) ‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ का आशय क्या है ?
(ग) ‘कफन बेचने वाले’ कहकर कवि ने किनकी ओर संकेत किया है ?
(घ) ‘एटम’ के माध्यम से कवि ने क्या याद दिलाया है? उसका सपना क्या है ?
(ङ) कवि ने किसके विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है? उसका यह कार्य कितना उचित है ?
उत्तर –
(क) कवि ऐसी दुनिया चाहता है, जहाँ युद्ध का नामोनिशान न हो और सर्वत्र शांति हो ।
(ख) ‘खलिहानों में नहीं मौत की फ़सल खिलेगी’ का आशय है कि युद्ध अब अपार जनसंहार का कारण नहीं बनेगा।
(ग) कफन बेचने वालों कहकर कवि ने उन देशों की ओर संकेत किया है जो घातक अस्त्र-शस्त्र की खरीद-फरोख्त करते हैं।
(घ) एटम के माध्यम से कवि ने अमेरिका द्वारा नागासाकी और हिरोशिमा पर गिराए गए बम की ओर संकेत किया है। उसका सपना यह है उसने युद्धरहित दुनिया का स्वप्न देखा है, वह किसी भी दशा में नहीं टूटना चाहिए।
(ङ) कवि ने भूख और बीमारी से जंग छेड़ रखी है। इसका कारण यह है कि कवि को शांतिपूर्ण जीवन पसंद है। वह नवसृजन की तैयारी में व्यस्त है। इस जंग में वह विश्व को भागीदार बनाकर दुनिया में खुशहाली देखना चाहता है।
4. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
जैसे धधके आग ग्रीष्म के लाल पलाशों के फूलों में,
वैसी आग जगाओ मन में, वैसी आग जगाओ रे ।
जीवन की धरती तो रूखी मटमैली ही होती है,
तन- तरु-मूल सिंचाई, अतल की गहराई में होती है।
किंतु कोपलों जैसे ज्वाला में भी शीश उठाओ रे,
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे ।
एक आग होती है मन को जो कि राह दिखलाती है,
सघन अँधेरे में मशाल बन दिशि का बोध कराती है,
किंतु द्वेष की चिनगारी से मत घर-द्वार जलाओ रे,
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे ।
आज ग्रीष्म की ऊष्मा कल को रिमझिम राग सुनाएगी,
तापमयी दोपहरी, संध्या को बयार ले आएगी;
रसघन आँगन में हिलकोरे, ऐसा ताप रचाओ रे;
ऐसी आग जगाओ मन में, ऐसी आग जगाओ रे ।
प्रश्न –
(क) कवि किनसे कैसी ज्वाला जलाने के लिए कह
रहा है ?
(ख) वृक्षों की कोपलें हमें क्या प्रेरणा देती हैं?
(ग) ‘जीवन की धरती तो रूखी मटमैली’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
(घ) कवि ने दो प्रकार की आग का उल्लेख किया है। कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए?
(ङ) आज जलाने से कवि को किस सुखद परिणाम की आशा है? काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर –
(क) कवि देश के नवयुवकों से ग्रीष्म ऋतु में धधकते पलाश के लाल फूलों-सी क्रांति जगाने के लिए कह रहा है।
(ख) वृक्षों की कोपलें हमें ज्वालाओं में भी सिर ऊँचा उठाए रखने की प्रेरणा देती हैं।
(ग) ‘जीवन की धरती तो रूखी मटमैली’ में रूपक अलंकार है। आग
(घ) काव्यांश में कवि ने दो प्रकार की आग का उल्लेख किया है। पहली वे वह ज्ञान है जिससे मन को दिशा दिख जाती है और अँधेरे में मार्ग प्रकाशित होता है किंतु वह दूसरी आग अर्थात् द्वेष की ज्वाला से दूर रहना चाहता है ताकि इससे किसी का घर न जले।
(ङ) आग जलाने से कवि जिस सुखद परिणाम की आशा करता है, वे हैं –
(a) दुख सहने और संघर्ष करने से ही सुखद समय आएगा।
(b) जिस प्रकार गरम दोपहरी के बाद सुहानी शाम आती है उसी प्रकार क्रांति का परिणाम भी सुखद ही होगा।
(c) हर घर आँगन में खुशी का वातावरण होगा।
5. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
शीश पर मंगल कलश रख
भूलकर जन के सभी दुख
चाहते हो तो मना लो जन्म दिन भूखे वतन का।
जो उदासी है हृदय पर,
वह उभर आती समय पर,
पेट की रोटी जुड़ाओ,
रेशमी झंडा उड़ाओ,
ध्यान तो रक्खो मगर उस अधफटे नंगे बदन का ।
तन कहीं पर, मन कहीं पर,
धन कहीं, निर्धन कहीं पर,
फूल की ऐसी विदाई,
शूल को आती रुलाई
आँधियों के साथ जैसे हो रहा सौदा चमन का ।
आग ठंडी हो, गरम हो,
तोड़ देती है, मरम को,
क्रांति है आनी किसी दिन,
आदमी घड़ियाँ रहा गिन, राख कर देता सभी कुछ अधजला दीपक भवन का
जन्म दिन भूखे वतन का।
प्रश्न –
(क) देश की स्वतंत्रता का उत्सव मनाना कब अर्थहीन हो जाता है ?
(ख) कवि किस उदासी की बात कर रहा है ?
(ग) ‘अधजला दीपक भवन का’ किसका प्रतीक है?
(घ) कवि देश के शासकों से क्या कहना चाहता है और क्यों ?
(ङ) कवि को ऐसा क्यों लगता है कि किसी दिन क्रांति होकर रहेगी? इसका क्या परिणाम होगा ?
उत्तर –
(क) देश की स्वतंत्रता का उत्सव मनाना तब अर्थहीन हो जाता है, जब देश की जनता भूखी और उदास हो ।
(ख) कवि जनता की अभावग्रस्तता, मूलभूत सुविधाओं की कमी आदि से उत्पन्न उदासी की बात कर रहा है।
(ग) अधजला दीपक भवन का भूखे-प्यासे दुखी और अभावग्रस्त लोगों का प्रतीक है।
(घ) कवि देश के शासकों से यह कहना चाहते हैं कि वे आज़ादी का उत्सव मनाएँ, रेशमी झंडा लहराएँ पर उन गरीबों के लिए रोटी और अधनंगे बदन वालों के लिए वस्त्र का इंतजाम करें का भी ध्यान रखें। वह ऐसा इसलिए कह रहा है क्योंकि शासकों को संवेदनहीनता के कारण भूखी जनता का ध्यान नहीं रह गया है।
(ङ) देश की बदहाल स्थिति देखकर कवि को लगता है कि देश की जनता शोषण, अभावग्रस्तता, दुख और आपदाओं से जैसे समझौता कर रही है। जिस दिन उसका धैर्य जवाब देगा उसी दिन क्रांति हो जाएगी तब यह आक्रोशित जनता यह व्यवस्था नष्ट करके रख देगी।
6. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
बहती रहने दो मेरी धमनियों में
जन्मदात्री मिट्टी की गंध,
मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा,
सदा-सदा को वांछित रह सकने वाले
पसीने की खारी यमुना
शपथ खाने दो मुझे ।
केवल उस मिट्टी की
जो मेरे प्राणों का आदि है,
अंत है।
सिर झुकाओ मेरा
केवल उस स्वतंत्र वायु के सम्मुख
जो विश्व का गरल पीकर भी
बहता है
पवित्र करने को कण-कण
क्योंकि
मैं जी सकता हूँ।
केवल उस मिट्टी के लिए,
केवल इस वायु के लिए।
मैं मात्र सांस लेती
खाल होना नहीं चाहता।
प्रश्न –
(क) ‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप क्या है ?
(ख) मात्र साँस लेती खाल का आशय क्या है ?
(ग) पवित्र करने को कण-कण में कौन-कौन सा अलंकार है?
(घ) मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? उसने मातृभूमि की मिट्टी से अपना लगाव कैसे प्रकट किया है ?
(ड) कवि अपना सिर किसके सामने झुकाना चाहता है और किसके लिए जीना चाहता है?
उत्तर –
(क) ‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप मातृभूमि के प्रति गहन अनुराग की उत्कट भावना है।
(ख) मात्र साँस लेती खाल का आशय है- अपने स्वार्थ में डूबकर निष्प्राणों जैसा जीवन बिताना।
(ग) पवित्र करने को कण-कण में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा’ के माध्यम से कवि पीड़ित मानवता के उद्धार की बात कहना चाहता है। उसने मिट्टी को अपने प्राणों का आदि मध्य और अंत बताकर अपना लगाव प्रकट किया है।
(ङ) कवि अपना सिर उस वायु के सामने झुकाना चाहता है जो विश्व का जहर पीकर भी बहती रहती है। इसी वायु का सेवन करके वह इसी वायु और मातृभूमि की मिट्टी के लिए जीना चाहता है।
7. निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
तेरे मेरे बीच कही है एक घृणामय भाईचारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा।।
बँटवारे ने भीतर-भीतर ?
ऐसी-ऐसी डाह जगाई।
जैसे सरसों के खेतों में
सत्यानाशी उग-उग आई
तेरे मेरे बीच कहीं है टूटा-अनटूटा पतियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ?
अपशब्दों की बंदनवारें ।
अपने घर हम कैसे जाएँ
जैसे सौंपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनाएँ ।
तेरे-मेरे बीच कहीं है भूला- अनभूला गलियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ॥
बचपन की स्नेहिल तसवीरें ।
देखें तो आँखें दुखती हैं
जैसे अधमुरझी कोंपल से
ढलती रात ओस झरती है?
तेरे-मेरे बीच कहीं है बूझा अनबूझा उजियारा |
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ?
प्रश्न –
(क) कविता में किस बँटवारे की बात कही गई है?
(ख) ‘तेरे मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव क्या है ?
(ग) सरसों के खेत और सत्यानाशी किनके प्रतीक हैं?
(घ) अपशब्दों की बंदनवारें हमारे संबंध और रहन-सहन को किस तरह प्रभावित कर रही हैं?
(ङ) बचपन की तस्वीरें देखकर कवि को कैसा लगता है? ऐसे में कवि को किस बात की आशा जग रही है?
उत्तर –
(क) कविता में दो भाइयों के बीच हुए बँटवारे और उससे उत्पन्न स्थिति की बात कही गई है।
(ख) ‘तेरे मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव यह है कि संबंधों में इतनी घृणा हो गई है कि भाईचारा के लिए इसमें कोई जगह नहीं है।
(ग) ‘सरसों के खेत’ मिल जुलकर रहने वालों और ‘सत्यानाशी’ एकता देखकर ईर्ष्या से जल-भुन जाने वालों के प्रतीक हैं।
(घ) अपशब्दों की बंदनवारों के कारण लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। आज स्थिति यह है कि साँपों के जंगल में पक्षी कैसे अपना घर बना सकते हैं। अब तो लोग एक-दूसरे से मिलने में कतराने लगे हैं।
(ङ) बचपन की तस्वीरें देखकर लगता है कि पहले लोगों में बहत भाईचारा था। वे मिल-जुलकर रहते थे। वैसी स्थिति अब स्वप्न बन गई है। ऐसे में कवि को आशा है कि दिलों में आई ये दूरियों की मलिनता समाप्त हो जाएगी और नए संबंधों की शुरुआत होगी।
खण्ड – ‘ख’ (व्याकरण)
क्रिया-भेद : अकर्मक / सकर्मक
1. नीचे दी गई क्रियाओं से एक-एक वाक्य बनाएँ।
(क) नामबोधक क्रिया
(ख) पूर्वकालिक क्रिया
(ग) अकर्मक क्रिया
(घ) सकर्मक क्रिया
(ङ) एककर्मक क्रिया
(च) द्विकर्मक क्रिया
(छ) सहायक क्रिया
(ज) सहकारी क्रिया
(झ) संयुक्त क्रिया
(ञ) प्रेरणार्थक क्रिया
(ट) पुनरुक्त क्रिया
(ठ) रंजक क्रिया
उत्तर –
(क) नामवोधक क्रिया – नागेश ने उसका घर हथिया लिया।
(ख) पूर्वकालिक क्रिया – मैंने स्नान कर खाना खाया।
(ग) अकर्मक क्रिया – श्रेया नहीं सोती ।
(घ) सकर्मक क्रिया – दिवाकर कहानी पढ़ रहा है।
(ङ) एककर्मक क्रिया – सुरेश ने मुझे मारा। –
(च) द्विकर्मक क्रिया – पिताजी ने मुझे एक सुंदर सी कलम दी।
(छ) सहायक क्रिया – वह मेरे घर आया है।
(ज) सहकारी क्रिया – मैं पुस्तक पढ़ चुका हूँ। [‘पढ़’ प्रधान क्रिया, ‘सहकारी क्रिया और ‘है’ सहायक क्रिया]
(झ) संयुक्त क्रिया- -मीरा में, कृष्ण के प्रति प्रेम बढ़ता गया। [यहाँ ‘बढ़’ (ना) और ‘जा'(ना) क्रियाओं की संयुक्ति हुई है। संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया प्रधान होती है और दूसरी क्रिया सहकारी ]
(ञ) प्रेरणार्थक क्रिया-मजदूर मास्टर साहब से पत्र पढ़वाता है।
(ट) पुनरुक्त क्रिया – मिल-जुलकर विवाद का निपटारा कर लेना चाहिए।
(ठ) रंजक क्रिया – शोर के चलते जिया उठ बैठी।
2. नामधातु क्रिया में बदलें।
(i) टक्कर, चिकना, गाँठ, लाज, थरथर, चक्कर, खर्च, फिल्म
उत्तर – टकराना, चिकनाना, गाँठना, लजाना, थरथराना, चकराना, खर्चना, फिल्माना
(ii) झूठ, खटखट, गर्म, लात, बात, जूता, लाठी, हाथ
उत्तर – झुठलाना, खटखटाना, गर्माना (गरमाना), लतियाना, बतियाना, जुतियाना, लठियाना, हथियाना
3. नीचे दिए गए वाक्यों की क्रियाओं को मॉडल के अनुसार बदलिए । मॉडल (अ) – मुन्ना सो गया। (माँ) – माँ ने मुन्ने को सुला दिया।
(क) छात्र पढ़ रहे हैं। (शिक्षक)
उत्तर – शिक्षक छात्रों को पढ़ा रहे हैं।
(ख) सामान अब पहुँचना चाहिए। (अभिमन्यु)
उत्तर – अभिमन्यु को अब सामान पहुँचाना चाहिए।
(ग) मैंने कहानी सुन ली। (दीदी)
उत्तर – दीदी ने मुझे कहानी सुना दी।
(घ) हम देर से पहुँचे। (टमटम)
उत्तर – टमटमवाले ने हमें देर से पहुँचाया।
मॉडल (व) – अतुल कमरे में आया। (जाना) – अतुल कमरे में आ गया।
(क) मुझे आपकी चिट्ठी मिली। (जाना)
उत्तर – मुझे आपकी चिट्ठी मिल गई।
(ख) मैंने उसे मनाया। (लेना)
उत्तर – मैंने उसे मना लिया।
(ग) कल रात मेरे घर चोरी हुई। (हो जाना)
उत्तर – कल रात मेरे घर चोरी हो गई।
(घ) उसने सारी बात बताई। (देना)
उत्तर – उसने सारी बात बता दी।
4. ‘खुजलाना’, ‘लजाना’ और ‘भरना’ क्रिया का प्रयोग अकर्मक और सकर्मक की तरह करें।
उत्तर – खुजलाना- मेरी हथेली खुजलाती है। (अकर्मक)
मैं हथेली खुजला रहा हूँ। (सकर्मक)
लजाना – लड़की लजाती है। (अकर्मक)
भाभी अपनी ननद को लजाती है। (सकर्मक)
भरना – बूँद-बूँद से घड़ा भरता है। (अकर्मक)
लड़का घड़ा भरता है। (सकर्मक)
5. करना, होना, देना, खाना, आना, जाना, मारना और लेना से एक-एक से मिश्रधातु का निर्माण करें।
उत्तर –
करना- काम करना (पीछा करना, प्यार करना)
होना – काम होना (प्यार होना, पीछे होना, आगे होना)
देना – कष्ट देना ( दर्शन देना, काम देना)
खाना – धक्का खाना (मार खाना, हवा खाना)
आना- पसंद आना (काम आना, याद आना)
जाना – सो जाना (भाग जाना, खा जाना, पी जाना)
मारना – हाथ मारना (चक्कर मारना, आँख मारना)
लेना – नाम लेना (काम लेना)
6. निम्नांकित का एक-एक उदाहरण दें।
तात्कालिक कृदंत, पूर्वकालिक कृदंत, वर्तमानकालिक कृदंत भूतकालिक कृदंत, कर्तृवाचक कृदंत, क्रियार्थक कृदंत
उत्तर –
तात्कालिक कृदंत – पत्र पढ़ते ही वह उछलने लगा।
पूर्वकालिक कृदंत-अंशु खाना खाकर सो गया।
वर्तमानकालिक कृदंत-वहता हुआ पानी स्वच्छ होता है।
भूतकालिक कृदंत – दी गई बुद्धि काम नहीं आती।
कर्तृवाचक कृदंत-लिखनेवाले से पूछो कि उसने ऐसा क्यों लिखा।
क्रियार्थक कृदंत- खेलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
7. संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण से नामधातु की रचना करें।
उत्तर –
संज्ञा से नामधातु : लालच – ललचाना, चक्कर- चकराना
सर्वनाम से नामधातु : अपना ( संबंधवाचक सर्वनाम) – अपनाना
विशेषण से नामधातु : चिकना – चिकनाना, लँगड़ा- लँगड़ाना
8. रेखांकित समापिका क्रियाओं को असमापिका क्रियाओं में परिवर्तित करें।
(i) बर्फ धीरे-धीरे पिघल रही है।
उत्तर – धीरे-धीरे पिघलती हुई बर्फ अपना अस्तित्व समाप्त कर देती है।
(ii) शरदिंदु मैदान में दौड़ता है।
उत्तर – शरदिंदु मैदान में दौड़ता हुआ आ रहा
(iii) मैं अपने शिक्षक से प्रतिदिन मिलता हूँ।
उत्तर – मैं अपने शिक्षक से प्रतिदिन मिला करता हूँ।
9. संज्ञा, विशेषण और क्रियाविशेषण के रूप में कृदंती शब्दों के उदाहरण दें।
उत्तर – संज्ञा – सुबह टहलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
विशेषण- चलती गाड़ी से वह कूद पड़ा।
क्रियाविशेषण- वह पढ़ते-पढ़ते सो गया।
10. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(i) में पढ़ ………….करता हूँ। (संयुक्त क्रिया से)
(ii) तुम जल्दी ………… । (रंजक क्रिया से)
(iii) माँ नौकरानी से दूध …….. है। (प्रेरणार्थक क्रिया से)
(iv) …….. हुआ फूल बड़ा आकर्षक लगता है। (असमापिका क्रिया या क्रिया के कृदंती रूप से)
उत्तर – (i) लिया (ii) आ जाना (iii) पिलवाती (iv) खिलता।
अव्यय
परिभाषा- अव्यय का अर्थ है जिसका कुछ व्यय न हो। अतः अव्यय वे शब्द हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि व्याकरणिक कोटियों के प्रभाव से कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे— आज, न, तेज, धीरे, किन्तु, पर आदि । – अव्यय के पाँच भेद होते हैं
- क्रिया विशेषण- जो अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया – विशेषण अव्यय कहते हैं। जैसे- रमा तेज दौड़ती है। यहाँ ‘तेज’ अव्यय ‘दौड़ना’ क्रिया की विशेषता बताता है। अतः क्रिया-विशेषण अव्यय है।
क्रिया-विशेषण अव्यय पाँच प्रकार के होते हैं । यथा –
- कालवाचक – जिससे समय का बोध हो— अब, तब, आज, कल, परसों, फिर कभी, अभी, दिनभर, प्रतिदिन और सदा आदि ।
- स्थानवाचक – जिससे जगह, स्थान का बोध हो – अन्यत्र, यहाँ, वहाँ, कहाँ, इधर, उधर, बाहर, आगे पीछे, किधर ।
- रीतिवाचक – निःसंदेह, अवश्य, वास्तव में, यथासंभव कदाचित, – अचानक, अनायास, झटपट, ऐसे, वैसे, जैसे तैसे, हाँ, सच, नहीं, मत, ठीक, जी हाँ, तो, ही, बस, इसलिए, अतः आदि ।
- परिणामवाचक – जिससे परिमाण या मात्रा का बोध हो— बहुत, थोड़ा, खूब कुछ, लगभग, अधिक, कम, इतना, केवल कितना, जितना आदि।
- प्रश्नवाचक – जिससे प्रश्न का बोध हो – कब, कहाँ, कैसे, क्यों
- सम्बन्धवोधक – जो अव्यय वाक्य के पदों को एक-दूसरे से सम्बन्ध बतलाते हैं, सम्बन्धबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे- गणेश की बुद्धि के आगे सभी नतमस्तक हैं। यहाँ ‘आगे’ सम्बन्धबोधक अव्यय है क्योंकि गणेश की बुद्धि और लोगों के नतमस्तक होने का सम्बन्ध बतलाता है। अन्य सम्बन्धबोधक उपरान्त, ऊपर, नीचे, नजदीक, संग आदि।
- समुच्चयवोधक – जो अव्यय दो शब्द, वाक्यांशों अथवा वाक्यों को जोड़ते हैं, वे समुच्चयबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे- हमें अपने देश और अपनी संस्कृति पर गर्व है। यहाँ ‘और’ समुच्चयबोधक अव्यय है क्योंकि दो वाक्यों जोड़ता है।
समुच्चयबोधक अव्यय हैं— तथा, और, या, परन्तु, बल्कि, ताकि, इसलिए, यद्यपि और कि आदि।
- विस्मयादिबोधक – जो अव्यय हर्ष, शोक, आश्चर्य, तिरस्कार तथा सम्बोधन आदि मनोभावों को प्रकट करते हैं, विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे – अहा! कितना मनोरम दृश्य है (हर्ष) । हाय ! इसकी दशा कितनी दुर्लभ है। (करुणा) । विस्मयादिबोधक अव्यय हैं- अहा, हाय, वाह, अजी, भला और छि आदि।
- निपात – वैसे अव्यय जो वाक्य में किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष बल देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। जैसे- क्या आप भी मुम्बई चलेंगे। वहाँ मत जाओ। यहाँ ‘भी’ और ‘मत’ विशेष बल डालते हैं, अतः निपात हैं।
प्रमुख निपात इस प्रकार हैं-
(क) स्वीकारार्थक निपात – इनसे स्वीकार या स्वीकृति का बोध होता है। जैसे— हाँ, जी हाँ, जी।
(ख) नकारार्थक निपात – इनमें अस्वीकृति का बोध होता है। जैसे- जी नहीं, नहीं, न ।
(ग) निषेधवोधक निपात – इनसे मनाही का बोध होता है। जैसे— मत, नहीं।
(घ) प्रश्नवोधक, निपात – इनसे प्रश्न किये जाते हैं। जैसे— क्या, कौन, किस ।
(ङ) वलप्रदायीं निपात – इनसे किसी बात पर बल पड़ता है। जैसे-तो, ही, भी, तक, सिर्फ, भर, केवल ।
(च) तुलनावोधक निपात – इनसे तुलना की जाती है। जैसे—सा।
(छ) अवधारणावोधक निपात – इनसे अवधारणा का बोध होता है। जैसेलगभग, ठीक, करीब, तकरीबन ।
(ज) आदरवोधक निपात – इनसे आदर की भावना प्रकट होती है। जैसे – जी।
(झ) विस्मयादिवोधक निपात – इससे विस्मय प्रकट होता है। जैसेकाश! अहा ! वाह ! तो! ओ हो !
रचना की दृष्टि के चाक्य भेद
रचना के आधार पर वाव तीन प्रकार के होते हैं –
(i) सरल वाक्य – एक उद्देश्य एवं एक विधेय वाले वाक्य | जो
(ii) संयुक्त वाक्य – दो या दो से अधिक स्वतंत्र उपवाक्य समुच्चयबोधक अव्यय द्वारा जुड़े होते हैं।
(iii) मिश्र वाक्य – एक प्रधान उपवाक्य, अन्य आश्रित उपवाक्य |
1. निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए |
(i) मकान कितना सुंदर है! [विधिवाचक वाक्य में बदलिए]
(ii) वह पढ़ने में तेज नहीं है। [विधिवाचक वाक्य में बदलिए ||
(iii) जो पढ़ेगा सो अवश्य पास करेगा। [ सरल वाक्य में बदलिए |]
(iv) अपनी-अपनी आस्था के अनुसार नित्य पूजा करनी चाहिए। [आज्ञार्थक वाक्य में बदलिए |]
(v) टोपीवाला बाबू कहाँ गया? [मिश्र वाक्य में बदलिए।]
उत्तर –
(i) मकान बहुत सुंदर है।
(ii) वह पढ़ने में कमजोर है।
(iii) पढ़नेवाला अवश्य पास करेगा।
(iv) अपनी आस्था के अनुसार नित्य पूजा करो।
(v) वह बाबू कहाँ गया जिसने टोपी पहन रखी थी ?
2. निम्नांकित वाक्यों को मिश्र वाक्यों में वदलिए ।
(i) उसने श्रम नहीं किया। वह परीक्षा में फेल हो गया।
(ii) शिक्षक ने विलंब से आए छात्र को वर्ग से निकाल दिया।
(iii) मैंने बालक को आम तोड़ते देखा।
(iv) आपकी पसंद की पुस्तक कौन-सी है?
उत्तर –
(i) वह व्यक्ति जिसने श्रम नहीं किया, परीक्षा में फेल हो गया।
(ii) शिक्षक ने उस छात्र को वर्ग से निकाल दिया जो विलंब से आया था।
(iii) मैंने उस बालक को देखा जो आम तोड़ रहा था।
(iv) वह कौन-सी पुस्तक है जिसे आप पसंद करते हैं?
3. निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए।
(i) गली में शोर होने पर लोग घरों से बाहर निकल गए। [ संयुक्त वाक्य और मिश्र वाक्य में बदलिए]
(ii) अध्यापक अपने शिष्यों को अच्छा बनाना चाहता है। [मिश्र वाक्य में बदलिए]
(iii) मैंने एक बहुत मोटा व्यक्ति देखा। [ मिश्र वाक्य में बदलिए]
(iv) एक दिन वे वहाँ आकर रामेश्वर की प्रशंसा करने लगे। [ संयुक्त वाक्य में बदलिए ।]
उत्तर –
(i) संयुक्त वाक्य आए। – -गली में शोर हुआ और लोग घरों से बाहर निकल आए।
मिश्र वाक्य – जब गली में शोर हुआ तब लोग घरों से बाहर निकल आए।
(ii) अध्यापक चाहता है कि उसके शिष्य अच्छे बनें।
(iii) मैंने एक व्यक्ति को देखा जो बहुत मोटा था।
(iv) एक दिन वे वहाँ आए और रामेश्वर की प्रशंसा करने लगे।
वाच्य
1. निर्देश के अनुसार वाच्य परिवर्तन करें।
(क) रामेश्वरी चिट्ठी लिखती है। (कर्मवाच्य)
(ख) अस्मिता सो नहीं पाती। (भाववाच्य)
(ग) शिवबालक से पत्र लिखा जाता है। (कर्तृवाच्य)
(घ) बालिका कमरे में सो रही है। (भाववाच्य)
(ङ) मैं अब चल नहीं सकती। (भाववाच्य)
उत्तर –
(क) रामेश्वरी से चिट्ठी लिखी जाती है। (कर्मवाच्य)
(ख) अस्मिता से सोया नहीं जाता। (भाववाच्य)
(ग) शिवबालक पत्र लिखता है। (कर्तृवाच्य)
(घ) बालिका द्वारा कमरे में सोया जा रहा है। (भाववाच्य)
(ङ) मुझसे अब चला नहीं जाता। (भाववाच्य)
[ ध्यान दें : वाच्य तीन प्रकार के होते हैं— कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य | कर्तृवाच्य अकर्मक और सकर्मक, दोनों प्रकार की क्रियाओं में होता है। कर्मवाच्य केवल सकर्मक क्रियाओं में होता है। भाववाच्य की क्रिया प्रायः अशक्तता के अर्थ में आती है। अशक्तता के अर्थ में सकर्मक और अकर्मक- दोनों प्रकार की क्रियाओं के अपूर्ण क्रियाद्योतक कृदंत के साथ बनना क्रिया के कालों का भी उपयोग होता है। जैसे- चिट्ठी लिखते नहीं बनती। रोटी खाते नहीं बनती।
2. भाववाच्य में बदलें।
(i) पक्षी उड़ता है।
उत्तर – पक्षी से उड़ा जाता है।
(ii) बच्चे खेलेंगे।
उत्तर – बच्चों से खेला जाएगा।
(iii) सुधा नहीं सोती।
उत्तर – सुधा से सोया नहीं जाता।
3. कर्मवाच्य में बदलें।
(i) कल्पना पुस्तक पढ़ती है।
उत्तर – कल्पना द्वारा (से) पुस्तक पढ़ी जाती है।
(ii) रंजन ने चिट्ठी लिखी।
उत्तर – रंजन द्वारा (से) चिट्ठी लिखी गई।
(iii) कुमार गेंद नहीं खेलता।
उत्तर – कुमार से गेंद नहीं खेला जाता।
4. नीचे दिए गए वाक्यों का वाच्य बदलें।
(i) रातभर कैसे जागा जाएगा !
(ii) आपको सूचित किया जाता है।
(iii) दूध पिया नहीं जा रहा है ।
(iv) मृणालिनी अपने गुरुओं द्वारा प्रशंसित हुई।
उत्तर –
(i) मैं रातभर जगने में असमर्थ हूँ। (कर्तृवाच्य, भाववाच्य से)
(ii) हम आपको सूचित करते हैं। (कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य से)
(iii) मैं दूध पी नहीं पा रहा हूँ। (कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य से)
(iv) गुरुओं ने मृणालिनी की प्रशंसा की। [कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य से]
5. वाच्य बदलकर लिखें।
(i) कमजोरी के कारण वह उठ नहीं सकती।
(ii) बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए।
(iii) आज बच्चों द्वारा जगह-जगह पेड़ लगाए गए।
उत्तर –
(i) बीमारी के कारण उससे उठा नहीं जाता। (भाववाच्य, कर्तृवाच्य से)
(ii) सरकार द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए। (कर्मवाच्य, कर्तृवाच्य से)
(iii) आज बच्चों ने जगह-जगह पेड़ लगाए । (कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य से)
6. निर्देशानुसार वाच्य बदलें।
(i) वह दौड़ी। (कर्मवाच्य)
(ii) अभिज्ञान से पत्र लिखा जाता है। (कर्तृवाच्य)
(iii) पक्षी रात में पेड़ों पर सोते हैं। (भाववाच्य)
(iv) कलाकार मूर्ति गढ़ता है। (कर्मवाच्य)
उत्तर –
(i) उसके द्वारा दौड़ लगाई गई । (कर्मवाच्य)
(ii) अभिज्ञान पत्र लिखता है। (कर्तृवाच्य)
(iii) पक्षियों से रात में पेड़ों पर सोया जाता है। (भाववाच्य)
(iv) कलाकार से ( द्वारा) मूर्ति गढ़ी जाती है। (कर्मवाच्य)
खण्ड – ‘ग’ (पाठ्य-पुस्तकें)
क्षितिज भाग-2
1. पद
1. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ?
उत्तर – गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने उत्तर दिए हैं —
- उन्होंने कहा कि उनकी प्रेम-भावना की बात उनके मन में ही रह गई है, वे उसे न कृष्ण से कह पायीं और न अन्य किसी से कहने में समर्थ हो सकीं।
- वे अब तक कृष्ण के आने की प्रतीक्षा में ही जीती रहीं, किन्तु उन्होंने स्वयं न आकर तुम्हारे माध्यम से योग-सन्देश भिजवा दिया, इससे उनकी विरह-व्यथा और बढ़ गयी है।
- वे कृष्ण से अपनी रक्षा की गुहार लगाना चाह रही थीं, उनसे प्रेम-सन्देश पाने की आकांक्षी हो रही हैं। परन्तु वहीं से योग-सन्देश की धारा को आया देखकर रही बची चाहना भी धरी की धरी रह गयी।
- वे कृष्ण से अपेक्षा करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को रखेंगे, किन्तु उन्होंने योग-सन्देश भेजकर प्रेम की रही-सही मर्यादा को ही तोड़ दिया।
2. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर – गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को निम्नलिखित युक्तियों के माध्यम से व्यक्त किया है –
- उन्होंने स्वयं को कृष्ण रूपी गुड़ में चिपटी हुई चीटियाँ कहा है।
- वे अपने आप को हारिल पक्षी के समान मानती हैं, जिसने कृष्ण प्रेम रूपी लकड़ी को मजबूती से पकड़ रखा है।
- वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण को अपने मन में धारण किए हुए हैं।
- वे कृष्ण-प्रेम में दीवानी होकर दिन-रात, सोते-जागते कृष्ण नाम को ही रटती रहती हैं।
- वे कृष्ण से दूर ले जाने वाले योग-सन्देश को सुनते ही व्यथित हो उठती हैं।
3. गोपियों ने अपने वाक्-चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक् चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – गोपियाँ वाक्- चातुर्य में प्रवीण हैं। वे बातें बनाने में किसी को भी पछाड़ देती हैं। इसीलिए उद्धव उनकी बातों को सुनकर ठगे-से रह जाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उनके हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेमनिष्ठा, आत्मीयता, भावुकता एवं सहजता का भाव व्याप्त है। वे अपनी तर्कशीलता एवं प्रगल्भता से उद्धव की बोलती बन्द कर देती है। सच्चे प्रेम में इतनी शक्ति होती है कि बड़े-से-बड़े ज्ञानी उसके सामने घुटने टेक देते हैं।
4. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
उत्तर – गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य छिपा हुआ है कि गोपियाँ दिखावे के रूप में उनकी प्रशंसा कर रही हैं, किन्तु व्यंग्य रूप में यह कहना चाहती हैं कि तुम बड़े अभागे हो जो तुम प्रेम का अनुभव ही नहीं कर सके. और न ही किसी को अपना सके। तुमने प्रेम का आनन्द ही नहीं जाना, इसलिए तुमसे बड़ा अभागा और कौन हो सकता है?
5. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर – उद्धव के व्यवहार की तुलना जल में रहने वाले कमल के पत्तों से और जल में पड़ी तेल की गगरी से की गयी है, क्योंकि जल में रहकर जिस प्रकार कमल के पत्ते उससे प्रभावित नहीं होते हैं, उसी प्रकार तेल की गगरी पानी में डुबोने पर भी उस पर जल की एक बूंद भी नहीं टिकती है। उद्धव भी इनके समान हैं जो कृष्ण का साथ पाकर भी उनके प्रेम से प्रभावित नहीं हो सके।
6. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ?
उत्तर – गोपियों के अनुसार राजा का धर्म यह होना चाहिए कि वह अपनी प्रजा को अन्याय से बचाए। उन्हें सताए जाने से रोके और दुःख-वेदना से उनकी रक्षा करे ।
2. राम-लक्ष्मण- पशुराम
1. परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – राम के स्वभाव की विशेषताएँ – राम स्वभाव से कोमल और विनयी हैं। इसीलिए उनके मन में अपने बड़ों के प्रति श्रद्धा और आदर है। वे स्वयं को परशुराम का दास बताते हैं। वे व्यर्थ की बातों में न पड़कर लक्ष्मण को समझाते भी हैं और परशुराम का दिल जीत लेते हैं।
लक्ष्मण के स्वभाव की विशेषताएँ – लक्ष्मण का स्वभाव राम के विपरीत है। वे उग्र, वीर और साहसी हैं। वे अपने व्यंग्य बाणों से परशुराम को छलनी कर देते हैं, जिस कारण परशुराम भड़क उठते हैं। इसके साथ ही ने वाचाल, मर्यादा का उल्लंघन करने वाले और आक्रामक स्वभाव के हैं।
2. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा-सौन्दर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर – तुलसी रससिद्ध कवि हैं। तुलसी की भाषा शुद्ध-साहित्यिक उन्होंने भाषा को प्रौढ़ साहित्यिक स्वरूप प्रदान किया है तथा संवाद – योजना के द्वारा पात्रानुसार कोमल, मधुर एवं व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग कलात्मक रूप में किया है। तुलसीदास ने तत्सम शब्दों के तद्भव रूप रखकर श्रुति – माधुर्य का समावेश किया है। आपने चौपाई-दोहा छन्दों में रचना कर भाषा को सुगेय और लोकप्रिय बनाया है। छन्दों के चरणान्त में वर्णों का दीर्घ या गुरु रूप में प्रयोग कर नाद-सौन्दर्य की वृद्धि की है। तुलसी के काव्य में अनुप्रास, अतिशयोक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश, वक्रोक्ति, रूपक, मानवीकरण, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग सहजता के साथ हुआ है। उन्होंने वीर तथा हास्य रस के साथ ही मुहावरों, सूक्तियों और व्यंग्योक्तियों का भी सुन्दर प्रयोग किया है।
3. परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौनसे तर्क दिए ?
उत्तर – परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष टूट जाने पर तर्क देते हुए कहा कि यह धनुष पुराना व कमजोर था। यह तो राम के छूते ही टूट गया। इसमें राम का कोई दोष नहीं है। वैसे भी एक पुराने और अनुपयोगी धनुष को तोड़ने से हमें क्या लाभ हो सकता है और आपकी क्या हानि हो गई है? ऐसे धनुष के टूटने पर क्रोध करना ठीक नहीं है।
3. सवैया और कवित्त
1. कवि देव के पठित कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतराज वसंत के बालरूप का वर्णन परम्परागत वसन्त वर्णन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर – वसंत के परम्परा वर्णन को प्रेमोद्दीपन के रूप में वर्णित किया जाता है, जैसे-नायक-नायिका का परस्पर मिलना, झूले झूलना, रूठना – मनाना आदि। परन्तु इस कवित्त में ऋतुराज वसंत को कामदेव के नन्हे बालक के समान दिखा गया है। इस नन्हे से शिशु को पालने में झुलाने, बतियाने, फूलों का झिंगूला पहनाने, नजर उतारने, जगाने आदि का काम प्रकृति के विभिन्न उपादानों द्वारा किया जाना बताया जा रहा है। इसलिए यह वर्णन परम्परागत वसंत-वर्णन से भिन्न है।
2. पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – रीतिकालीन कवि देव मुख्य रूप से दरबारी कवि थे। अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करना ही उनकी कविता का मुख्य उद्देश्य और यही उनका कवि-कर्म था। इसीलिए उन्होंने अपनी कविताओं में वैभव-विलास और सौन्दर्य के चित्र खींचे हैं। पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताओं को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है—
- रीतिकालीन कवियों की भाँति देवरचित काव्य में कल्पना शक्ति की मनोरम झाँकियाँ देखने को मिलती हैं। वृक्षों का पालना, पत्तों का बिछौना, फूलों का झबला, हवा द्वारा पालने को हिलाना, चाँदनी रात को आकाश में बना सुधा. मन्दिर, दही का समुद्र, दूध का झाग जैसा आँगन का फर्श, आरसी से अम्बर आदि उनकी उर्वर कल्पना शक्ति के ही परिचायक हैं।
- पठितांश में सवैया और कवित्त छन्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा सरस, मधुर, कोमल तथा संगीतात्मकता से पूरित ब्रजभाषा है।
- पठितांश में अनप्रास. रूपक, उपना व्यतिरेक आदि अलंकारों का सहज, स्वाभाविक प्रयोग द्रष्टव्य है।
- देव रूप-वर्णन में जहाँ अनोखे हैं वहीं वे प्रकृति-चित्रण में सिद्धहस्त हैं।
3. कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मन्दिर का दीपक क्यों कहा है ?
उत्तर – कवि देव ने ‘श्रीब्रजदूलह’ शब्द का प्रयोग श्रीकृष्ण के लिए किया है। जिस प्रकार ‘दीपक’ के जलने से मन्दिर में प्रकाश फैल जाता है, उसी प्रकार कृष्ण की उपस्थिति से सारे ब्रज प्रदेश में आनन्द और उल्लास का प्रकाश फैल जाता है। इसी कारण इन्हें संसार रूपी मन्दिर का दीपक कहा गया है।
4. चाँदनी रात की सुन्दरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है ? कवि देव की कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर – कवि ने चाँदनी रात की सुन्दरता को निम्नलिखित रूपों में देखा –
(i) यह स्फटिक शिला से बने मन्दिर के रूप में लगती है।
(ii) यह दही के उमड़ते समुद्र के रूप में दिखाई देती है।
(iii) यह दूध के झाग से बने फर्श के रूप में दिखाई देती है।
(iv) यह स्वच्छ, शुभ्र दर्पण के रूप में दिखाई देती है।
4. आत्मकथ्य
1. कवि ने जो सख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर – मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में ।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
कवि ने अपनी प्रेमिका को आलिंगन में लेने का सुख देखा था जो आलिंगन में आते-आते उससे दूर भाग गया। वे मधुर चाँदनी में प्रेमभरी बातें कर रहे थे, आपस में खिल-खिला रहे थे। उसकी प्रिया के गालों की लालिमा उषाकालीन लालिमा से भी सुन्दर प्रतीत हो रही थी।
2. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ?
उत्तर – कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है, क्योंकि जहाँ उसे अपनी दुर्बलताओं और कमियों का उल्लेख करना पड़ेगा, वहीं आत्मकथा लिखने से उसकी पुरानी यादें ताजा हो जायेंगी, जिससे आत्मकथा पढ़ने वाले उसके बारे में जान जायेंगे और वह स्वयं उपहास एवं व्यंग्य का पात्र बन जायेगा।
3. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहता है कि निजी प्रेम के मधुर क्षण सबके सामने कहने के लिए नहीं होते हैं, क्योंकि दाम्पत्य प्रेम की कहानी व्यक्ति की निजी सम्पत्ति होती है, इसलिए आत्मकथा में उन क्षणों के बारे में कुछ लिखना अनावश्यक है। वैसे भी उसका दाम्पत्य जीवन पूरी तरह सफल नहीं रह पाया।
4. स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर – स्मृति को पाथेय अर्थात् रास्ते का भोजन या सहारा या संबल बनाने का आशय यह है कि कवि अपने बीते जीवन की मधुर एवं सुखद स्मृतियों के सहारे ही जीना चाहता है।
5. उत्साह और अट नहीं रही
1. प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?
उत्तर – प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन विभिन्न रूपों में किया है, क्योंकि उसे फागुन में प्रकृति की शोभा सर्वत्र छायी हुई प्रतीत होती है और वह उससे हर स्थिति में प्रभावित हो रहा है। उसे प्रकृति की व्यापकता और सौन्दर्य के दर्शन पेड़-पौधों में आये नव-किसलयों, खिले हुए फूलों आदि सभी में दिखाई दे रही है। फूलों की सुगन्ध मतवाली वायु के साथ प्रसरित होकर प्रकृति में ही नहीं, तन-मन पर भी छा रही है और उसका सीधा प्रभाव लोगों पर पड़ रहा है जिससे उनके मन उमंगित हो रहे हैं। कवि इसके सौन्दर्य से अपनी आँखें हटा नहीं पा रहा है, वह इसकी व्यापकता को ही केवल देखता रहता है।
2. कवि वादल से फुहार, रिमझिम या वरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों ?
उत्तर – कवि बादल से फहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर गरजने के लिए इसलिए कहता है क्योंकि गरजना क्रान्ति का सूचक है। कवि इससे सामाजिक जीवन में परिवर्तन लाने के लिए क्रान्ति की आवश्यकता बताना चाहता है।
3. कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ क्यों रखा गया है ?
उत्तर – इस कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ इसलिए रखा गया, क्योंकि यह बादलों की गर्जना और उमड़-घुमड़ से मेल खाता है। बादलों में भीषण गति होती है, उसी से वह धरती की तपन को हर कर उसे शीतलता प्रदान करते हैं। कवि ऐसी ही गति, ऐसी ही भावना और क्रान्तिकारिणी शक्ति की आकांक्षा रखता है जिससे दुःखपीड़ित जनता को सुख प्राप्त हो सके।
4. कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से क्यों नहीं हट रही है ?
उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से इसलिए नहीं हट रही है, क्योंकि उस समय वसन्त ऋतु के आगमन से सारी प्राकृतिक शोभा मनोहारी एवं रंग-बिरंगी हो जाती है। कवि का मन उस शोभा को लगातार देखते रहना चाहता है। इसलिए वह इसकी सुन्दरता को निहारता ही रहता है। चाहकर भी वह अपनी आँखों को उस पर से हटा नहीं पाता है।
5. फागुन में ऐसा क्या होता है जो वाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर – फागुन में वसन्त ऋतु का प्रसार होने से सारा वातावरण मादकता से पूरित होता है। उसकी यह मादकता और सुहावनापन उसे अन्य ऋतुओं से भिन्न कर देता है। फागुन में रंग-बिरंगी प्राकृतिक शोभा से मादकता छा जाती है। पेड़ पौधों की डालें नवीन पत्तों से जहाँ सुशोभित हो जाती हैं, वहीं वे मनोहारी फूलों से सुसज्जित होकर चारों ओर पवन के झोंकों के साथ अपनी सुगन्ध बिखेरने लगती हैं। पक्षियों का ही क्या ? मानव-मन भी उमंगित होकर चहकने लगता है।
6. यह दंतुरहित मुस्कान और फसल
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1.
उत्तर –
2.
उत्तर –
1. बच्चे की दंतुरित मुस्कान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर यह प्रभाव पड़ता है कि वह उसे देखकर प्रसन्न हो उठता है। उसका उदास मन सुन्दर कल्पनाओं में डूब जाता है। उसे लगता है कि मानो उसकी झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। मानो पत्थर जैसे दिल में प्यार की धारा उमड़ पड़ी हो या बाँस और बबूल के पेड़ जैसे नीरस जीवन में प्रफुल्लता और कोमलता रूपी शेफालिका के फूल झरने लगे हों।
2. बच्चे की मुस्कान और बड़े व्यक्ति की मुस्कान में क्या अन्तर है ?
उत्तर – बच्चे की मुसकान निर्मल, निश्छल एवं मोहक होती है। उसमें किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता है। जबकि बड़ों की मुसकान कुटिल और बनावटीपन से पूरित होती है। उसमें स्वार्थ छिपा रहता है।
3. कवि के अनुसार फसल क्या है ?
उत्तर – कवि के अनुसार फसल पानी, मिट्टी, सूरज की किरण (धूप), हवा की थिरकन और मानव-परिश्रम के सन्तुलित संयोग से उपजती है। इसमें सभी नदियों के जल का जादू समाया हुआ है। सभी प्रकार की मिट्टियों के गुण-धर्म निहित हैं। सूरज की धूप और हवा के झोंकों का प्रभाव समाया हुआ है। इन सबके योगदान के साथ ही किसानों और मजदूरों का भी परिश्रम जुड़ा हुआ है। इन सबके सम्मिलित योगदान का प्रतिफल फसल है।
4. फसल को हाथों के स्पर्श की ‘गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ?
उत्तर – इससे कवि यह व्यक्त करना चाहता है कि फसल को उगाने में मानव के हाथों का स्नेहिल श्रम लगा होता है, क्योंकि जब किसान और मजदूर अपने हाथों से श्रम करके फसल को उगाते और बढ़ाते हैं, तभी फसल तैयार होती है। फसल का फलना-फूलना ही किसानों के श्रम की गरिमा और महिमा है जिसके कारण फसलें बढ़कर तैयार होती हैं।
7. छाया मत छूना
1. छाया मत छूना कविता के सार तथा सन्देश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित कविता ‘छाया मत छूना’ में बताया गया है कि जीवन में सुख-दुःख दोनों की उपस्थिति अनिवार्य रूप से रहती है। विगत सुख को याद करके वर्तमान में दुःख को गहरा नहीं करना चाहिए । विगत सुख से चिपक कर वर्तमान से पलायन करने की अपेक्षा कठिन यथार्थ से सामना करना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस सन्देश के साथ कवि यही कहते हैं। कि इस संसार में न तो यश का कोई मूल्य है, न धन-वैभव का, न मान-सम्मान से कोई सन्तुष्टि मिलती है और न पूँजी से। मनुष्य इस संसार में रहते हुए भी इनके पीछे जितना दौड़ता है, उतना ही वह भटंकता जाता है। क्योंकि भौतिकता- विलासिता मन को भटकाती है। प्रभुता या बड़प्पन पाने की कामना भी एक विडम्बना ही है। यह पाने की कोशिश करते रहना भी एक मृगतृष्णा या छलावा मात्र ही है। इसलिए छाया या कल्पनाओं में सुख तलाशने की बजाय जीवन के यथार्थ को झेलने को तैयार रहना चाहिए।
2. छाया मत छूना कविता में दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कविता में व्यक्त दुःख के निम्नलिखित कारण बताये गये हैं —
- हम हमेशा पुरानी स्मृतियों के पीछे भागते हैं। इससे हम वर्तमान को और अधिक दुःखी बना लेते हैं।
- हम छायाओं में डूबकर वर्तमान को न तो अच्छी तरह जी पाते हैं और न भविष्य को ही सुदृढ़ बना पाते हैं।
- हम कल्पित सुखों की मृगतृष्णा में उलझकर रह जाते हैं। इससे हमारा भटकाव बढ़ जाता है और उचित अवसर पर लाभ रूपी सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। हमारी स्थिति वसन्त के बीत जाने के बाद खिले फूल के समान रह जाती है।
3. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है ?
उत्तर – कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है, क्योंकि यही जीवन का सत्य और वास्तविकता है। विगत जीवन की स्मृतियों से बँधा रहना और वर्तमान से पलायन करना व्यर्थ है। मनुष्य को जीवन के कठोर सत्य का साहस से सामना करना चाहिए। जीवन के सत्य को स्वीकार करने में ही भलाई है। विगत स्मृतियाँ उसके वर्तमान और भविष्य दोनों को ही खराब करती हैं।
4. ‘छाया’ शब्द यहाँ किस सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर – यहाँ ‘छाया’ शब्द पुरानी स्मृतियों के लिए प्रयुक्त हुआ है। कवि छाया को छूने के लिए इसलिए मना करता है, क्योंकि वह वास्तविकता से परे है। इसलिए इनको अपने वर्तमान से बाँधना दुःख को ही बढ़ावा देना है, क्योंकि विगत मधुर स्मृतियों के सहारे जीवन नहीं जिया जा सकता है। जीवन तो वर्तमान की स्थिति में ही जिया जा सकता है।
5. ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ?
उत्तर – राजस्थान की रेत पर धूप के चमकने से जल की भ्रान्ति होती है और हिरण उसे जल समझकर पीने के लिए भागता फिरता है लेकिन उसे कहीं पर भी पानी नहीं मिलता है। अतः प्रकृति के इस भ्रामक रूप को मंगतष्णा कहा जाता है। इस कविता में इसका प्रयोग अयथार्थ स्थिति अर्थात् भ्रम और छलावा के अर्थ में हुआ है। व्यक्ति भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए जितना अधिक दौड़ता है, उतना ही अधिक वह भटकता चला जाता है। अतः प्रभुता या बड़प्पन पाने की लालसा केवल मृगतृष्णा ही है।
8. कन्यादान
1. माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी ?
उत्तर – माँ को अपनी बेटी अंतिम पूँजी इसलिए लग रही थी, क्योंकि कन्यादान के बाद वह अपनी ससुराल चली जायेगी। ऐसी स्थिति में वह अकेली रह जायेगी, फिर वह अपने सुख-दुःख किसके साथ बाँटेगी।
2. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी ?
उत्तर – माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी
- अपने रूप-सौन्दर्य पर कभी गर्व न करना, अर्थात् उसकी प्रशंसा पर रीझकर धोखे में मत रहना ।
- आग का सदुपयोग करना, अत्याचार एवं अन्याय का दृढ़ता से सामना करना।
- वस्त्र और आभूषणों से भ्रमित न होना और न अपना व्यक्तित्व खोना।
- अपनी सरलता, कोमलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना, कि ससुराल वाले उसका गलत ढंग से फायदा उठाएँ।
3. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है ?
उत्तर – हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात आज के जमाने में करना उचित नहीं है, क्योंकि कन्या कोई बेजान वस्तु नहीं है जिसका दान किया जाये। कन्या का अपना पृथक् व्यक्तित्व होता है। इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि जो वस्तु दान में दी जाती है, वह न तो ली जाती है और न उससे सम्बन्ध रखा जाता है। कन्या विवाह के बाद पुनः अपने माता-पिता के पास आती है और उन्हीं के साथ रहती भी है। इस आधार पर भी उसके साथ दान की बात करना उचित नहीं है। इसी आधार पर कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी पुत्री के विवाह के समय अपनी पुत्री का कन्यादान नहीं किया था।
9. संगतकार
1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है ?
उत्तर – संगतकार के माध्यम से कवि उन व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह. रहा है जो दूसरों की सफलता की पृष्ठभूमि में रहकर अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। योग्य एवं प्रतिभासम्पन्न होने पर भी वे स्वयं को महत्त्व न देकर मुख्य व्यक्ति या मुख्य कलाकार के महत्त्व को बढ़ाने में ही सहायक के रूप में अपनी भूमिका निभाना अपना धर्म समझते हैं।
2. संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं ?
उत्तर – संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा बड़े-बड़े नेताओं, अभिनेताओं और संत-महात्माओं के साथ भी इसी प्रकार का सहयोग करते दिखाई देते हैं। ये सभी सहायक के रूप में कार्य करते हुए अपने-अपने नेताओं, अभिनेताओं और संत-महात्माओं का महत्त्व बढ़ाने में लगे रहते हैं।
3. संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं ?
उत्तर – संगतकार निम्नलिखित रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं
- संगतकार मुख्य गायक-गायिकाओं के स्वर में अपना स्वर मिलाकर उनके स्वर को बल प्रदान करते हैं।
- मुख्य गायक-गायिकाओं के कहीं गहरे चले जाने पर उनके मुखड़े को पकड़कर वे उन्हें वापस मूल स्वर पर ले आते हैं।
- वे मुख्य गायक-गायिकाओं की थमी हुई, टूटती-बिखरती आवाज को बल देकर उनका सहयोग करते हैं। उन्हें अकेला नहीं पड़ने देते हैं।
4. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है तवं उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं?
उत्तर – सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान कई बार व्यक्ति लड़खड़ा जाता है। यदि इस स्थिति में उसे कोई सहारा मिल जाए तो वह व्यक्ति अपने में सँभल जाता है, अन्यथा वह गिर जाता है। उसको इस लड़खड़ाती स्थिति से बचाने के लिए उसके सहयोगी ही अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं। वे उसको हैं। उसको उसकी शक्ति और क्षमता से परिचित कराते हैं। उसके उत्साह का वर्धन करते हैं। उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
10. नेताजी का चश्मा
1. सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?
उत्तर – सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे, क्योंकि उसके मन में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। वह चश्मे वाला न तो सेनानी था, न नेताजी का साथी था फिर भी वह नेताजी सुभाषचन्द्र का बहुत सम्मान करता था । वह सुभाषचन्द्रजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति देखकर आहत था, इसलिए वह अपनी ओर से नेताज़ी की मूर्ति पर चश्मा लगाता था। उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे सुभाषचन्द्र का साथी या सेना का कैप्टन कहकर पुकारते थे। चाहे वे मजाक उड़ाने की मुद्रा में उसे कैप्टन कहते हों लेकिन वह कस्बे का अगुआ था।
2. पान वाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – पान वाले की दुकान चौराहे पर थी। वह दुकान पर आने वाले को जहाँ पान खिलाता था वहीं स्वयं भी अपने मुँह में पान लूंसे रहता था। वह काला, मोटा और खुश मिजाज आदमी था। उसकी तोंद निकली हुई थी। जब भी कोई व्यक्ति आकर उससे कोई बात पूछता था तो वह बताने से पहले पीछे मुड़कर थूकता था। फिर बताता था। बताने के साथ-साथ वह हँसता भी जाता था जिससे उसकी तोंद भी थिरकने लगती थी और उसके पान वाले लाल-काले दाँत खिल उठते थे। वह बात बनाने और हँसी उड़ाने से भी उस्ताद था। इसके साथ ही वह भावुक भी था। कैप्टन की मृत्यु का समाचार सुनाकर स्वयं उदास हो गया था और उसकी आँखों में आँसू भी आ गये थे।
3. कैप्टन वार-वार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।
उत्तर – कैप्टन के मन में अपार देशभक्ति की भावना थी । वह देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले नेताजी के प्रति अत्यधिक सम्मान रखता था। इसी कारण वह बिना चश्मे वाली नेताजी की मूर्ति पर बार-बार आकर चश्मा लगा देता था। इससे उसकी देशभक्ति का परिचय मिलता था।
4. आशय स्पष्ट कीजिए-
“बार-बार सोचते, क्या होगा कौम का जो अपने देश के खातिर घर-गृहस्थी, जवानी – जिंदगी सव कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए विकने के मौके ढूँढ़ती है।”
उत्तर – जो कौम अपने देश के बलिदानियों का सम्मान करना नहीं जानती, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता। जिन लोगों ने देश की खातिर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया निश्चित ही वे सम्मान के पात्र हैं, लेकिन देश के बहुत से लोग उन पर भी हँसते हैं। एक छोटे से कस्बे में यदि कैप्टन नामक एक चश्मे वाला वृद्ध व्यक्ति सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाता रहा तो भी लोग उसकी देश भक्ति पर हँसते रहे और उसे पागल एवं सनकी कहते रहे। जहाँ ऐसे स्वार्थी लोग रहते हों, उस देश का भविष्य कैसे सँभलेगा, क्योंकि वे अपने प्रचार-प्रसार में ही रुचि लेते हैं ।
5. “वो लँगड़ा क्या जायेगा फौज में पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पान वाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर – कैप्टन देशभक्त था। हालदार साहब उसकी देशभक्ति के प्रति नतमस्तक थे। जब उन्होंने कैप्टन के बारे में जानना चाहा कि क्या वह व्यक्ति नेताजी का साथी है अथवा आजाद हिन्द फौज का सिपाही है, तब पानवाला उपेक्षापूर्ण ढंग से जवाब देता है कि “वो लंगडा क्या जायेगा फौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पान वाले की इस टिप्पणी पर मेरी प्रतिक्रिया यह है कि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि कैप्टन एक देशभक्त था।
वह देशभक्ति की भावना से पूरित होकर ही सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति की आँखों पर चश्मा लगाता रहता था, ऐसे व्यक्तियों की कमियाँ या कुरूपता को नहीं देखना चाहिए और न उनकी हँसी उड़ानी चाहिए। यदि हम उसकी तरह देशभक्ति न कर सकें तो भी हमें उसका कम से कम सम्मान तो करना ही चाहिए। अतः पान वाले की वह टिप्पणी उचित नहीं थी।
11. बालगोबिन भगत
1. खेतीवारी से जुड़े गृहस्थ वालगोविन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर – खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत साधु जैसा जीवन व्यतीत करते थे। उनका जीवन सरल था। वे बहुत कम कपड़े पहनते थे। वे अपना जीवन ‘साहब’ की सेवा में समर्पित कर चुके थे। इसलिए वे अपने आप को भगवान् का बन्दा बताते थे। वे अपनी उपार्जित वस्तु को सबसे पहले कबीर साहब के मठ पर ले जाते थे। वहाँ से प्रसाद रूप में वापस मिलता था, उसी से अपना गुजारा करते थे। इसके साथ ही वे अपने जीवन को भी भगवान् की देन मानते थे। वे साधुओं की तरह ईश्वर और गुरु की प्रशंसा के गीत गाते रहते थे। वे दूसरों की चीजों को व्यवहार में लाना तो दूर, छूते तक नहीं थे। यहाँ तक कि वे राग-द्वेष से ऊपर उठे हुए साधु थे।
2. भगत की पुत्रवधु उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर – भगत की पुत्रवधू यह भली-भाँति जानती थी कि पुत्र की मृत्यु के बाद अब वे अकेले रह गये हैं। उनकी सेवा-सुश्रूषा करने वाला उसके अलावा अब कोई नहीं है। अब वे वृद्ध भी हो चुके हैं। इसलिए वे अब अपने खाने-पीने की ओर ध्यान नहीं दे पायेंगे। ऐसी परिस्थिति में उन्हें अकेला छोड़ना ठीक नहीं है। इसलिए सेवाभाव से पूरित होकर वह अपना शेष वैधव्य जीवन उनके चरणों की छाया में ही बिताना चाहती थी।
3. भगत ने अपने वेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त की ?
उत्तर – भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर शोक व्यक्त न करके आनन्द की अनुभूति की, क्योंकि उनका मानना था कि इस संसार में ईश्वर की इच्छा ही सर्वोपरि है। अब पुत्र की आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी आत्मा अपने प्रेमी परमात्मा से मिल गई, इससे बढ़कर आनन्द क्या हो सकता है? उन्होंने अपने पुत्र के शव को एक सफेद चद्दर से ढक दिया। कुछ फूल उस पर बिखेर दिए और एक दीपक उसके सिरहाने जला दिया। वे उसके सामने जमीन पर आसन लगाकर बैठ गये और तल्लीन होकर गीत गाने लगे। इसके साथ ही उन्होंने अपनी विलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।
4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – भगत का व्यक्तित्व एक साधु के अनुरूप था। वे साठ वर्ष से ऊपर गोरे-चिट्टे और मझोले कद के व्यक्ति थे। उनका चेहरा सफेद बालों से ढका हुआ सदा जगमगाता रहता था। वे कपड़े बहुत कम पहनते थे। उनकी कमर पर केवल एक लंगोटी रहती थी और सिर पर कबीरपंथियों वाली कनफटी टोपी। जाड़ा आने पर शरीर पर काली कमली ओढ़ लेते थे। उनके मस्तक पर रामानंदी चंदन चमकता रहता था जो नाक के एक छोर से शुरू होकर ऊपर की ओर चलता जाता था। वे गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते थे। इस वेशभूषा में उनका व्यक्तित्व एक साधु जैसा प्रतीत होता था। इसके साथ ही वे प्रभु-भक्ति में लीन होकर ‘ खंजड़ी पर भक्तिगीत गाते रहते थे।
5. पाठ के आधार पर वालगोविन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – बालगोबिन भगत अपनी मनोवृत्ति के अनुसार प्रभु-भक्ति के मधुर गीत गाया करते थे। एक पद वे पहले गाते थे और उनकी प्रेमी-मंडली उसे थी। धीरे-धीरे उनका स्वर ऊँचा होने लगता और एक निश्चित ताल एक निश्चित गति में आ जाती । स्वर उतार-चढ़ाव से परित हो जाता। संगीत और गायन का एक ऐसा मधर-आ वातावरण बन जाता कि खंजड़ी लिये बालगोबिन नाचने लगते और उनके साथ लोगों के तन-मन नाचने लगते। इसके साथ ही उनके संगीत के जादुई प्रभाव से खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पैर एक विशेष लय में चलने लगते थे। यहाँ तक कि चाहे विकट सर्दी हो या गर्मी, वह उन्हें गायन से अलग या प्रभावित नहीं कर पाती थी।
12. लखनवी अंदाज
1. नवाव साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघ कर ही खिड़की से वाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है ?
उत्तर – नवाब साहब ने ऐसा इसलिए किया होगा, क्योंकि वे अपने आपको एक खानदानी रईस बताकर अपना प्रभाव जमाना चाहते थे। उनके मन में नवाबी प्रदर्शित करने का अहम्पूर्ण भाव समाया था, जिससे वे नज़ाकत और अमीरी प्रकट कर रहे थे। जब वे एकान्त में बैठे खीरा खाने की तैयारी कर रहे थे तभी लेखक के आने पर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल गया और उन्होंने क काटे और उन पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खा बुरक दी। दुनिया की रीति से हटकर खीरे की फाँकों को होंठों तक ले जाकर उन्हें सँघा और फिर एक-एक कर उन्हें खिड़की के बाहर फेंक दिया। इस प्रकार करके उन्होंने लेखक के मन पर लखनवी नवाबी की मिथ्या धाक जमानी चाही थी।
2. विना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर – हमारे मत में बिना विचार, घटना और पात्रों के अभाव में कहानी नहीं लिखी जा सकती, क्योंकि कहानी लिखने के लिए ये तीनों बातें आवश्यक होती हैं। बिना विचार के कहानी बन ही नहीं सकती। बिना घटना के कहानी का कथानक आगे बढ़ नहीं सकता और बिना पात्रों के माध्यम कहानी कही नहीं जा सकती। अतः यशपाल का यह कथन नयी कहानी पर व्यंग्य मात्र ही है, क्योंकि कहानी में कोई-न-कोई विचार होना उद्देश्य रूप में आवश्यक होता है। इसलिए हम यशपाल के “विचार से सहमत नहीं हैं।
3. ‘लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ?
उत्तर – लेखक को सेकण्ड क्लास के डिब्बे में आया देखकर एकान्त में पालथी मार कर बैठे नवाब साहब की आँखों में असन्तोष छा गया। उन्होंने लेखक से कोई बात नहीं की और उसकी ओर देखा भी नहीं। वे अनज़ान से बनकर खिड़की से बाहर की ओर झाँकने लगे। साथ ही डिब्बे की स्थिति पर गौर करने लगे। इससे लेखक को प्रतीत हुआ कि डिब्बे में बैठे नवाब साहब उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं हैं।
13. मानवीय करुणा की दिव्या चमक
1. इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की छवि एक आत्मीय गले संन्यासी की उभरती है। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक था। उनका रंग गोरा और नका उनके चेहरे पर सफेद झलक देती हुई दादी थी। उनकी आँखें नीली थीं। वे हमेशा कर सफेद चोगा धारण करते थे। वे स्नेह और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थे। उनके मन में परिचितों के प्रति असीम स्नेह समाया हुआ था।
2. आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा ?
उत्तर – हमारे विचार से बुल्के ने भारत आने का मन इसलिए बनाया होगा, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिकता के सम्बन्ध में सुना होगा। इसी से उनके मन में भारत के प्रति अपार श्रद्धा और आदर जागा। इसके साथ ही वे यहाँ रहकर भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा से परिचित होना चाहते थे। उन्होंने अपने के धर्म-गुरु से संन्यास लेते हुए भी यही शर्त रखी थी कि उन्हें भारत जाने दिया जाए। वे भारत में रहकर काम करना चाहते थे।
3. फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी ?
उत्तर – फादर कामिल बुल्के का जीवन देवदार के वृक्ष के समान विशाल था। वे ‘परिमल’ नामक साहित्यिक संस्था के सम्मानित एवं वयोवृद्ध सदस्य थे । वे संस्था के सभी सदस्यों को परिवार जैसा मानते थे और परिवार के मुखिया की तरह सभी पर अपना वात्सल्य लुटाते थे। उनकी कृपा की छाया उनकी शरण में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर छायी रहती थी, क्योंकि वे घरों में उत्सवों और संस्कारों पर | पुरोहितों की भाँति उपस्थित रहते थे। यही कारण है कि उनकी उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी।
4. फादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग क्यों कहा गया है ?
उत्तर – फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे, क्योंकि उन्होंने भारत में रहकर अपने आप को पूरी तरह भारतीय बना लिया था। उन्होंने कोलकाता और इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई की। हिन्दी विषय में एम० ए० किया और हिन्दी तथा संस्कृत विषयों का अध्यापन कराते हुए सेंट जेवियर्स कालेज में विभागाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारतीय संस्कृति की प्रतीक राम-कथा की उत्पत्ति और विकास का शोध कार्य किया। उनका जीवन और आचरण भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप था। उन्हें हिन्दी से बेहद लगाव था। इसके साथ ही यहाँ के लोगों के उत्सवों और संस्कारों में पुरोहितों के समान उपस्थित रहते थे। इन आधारों पर हम कह सकते हैं कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग थे।
5. लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है ?
उत्तर – लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक इसलिए कहा है कि उनके पावन मन में सभी परिचितों के प्रति सद्भावना और अपार स्नेह समाया हुआ था। वे मानवीय गुणों से मण्डित, सहज हृदय इन्सान थे और सभी के प्रति उनके हृदय से स्नेहिल धारा प्रवाहित होती रहती थी और उनकी करुणा का प्रसाद सभी को बराबर मिलता रहता था। वे परिचितों के हर सुख-दुःख में साथी होते थे। उन्होंने लेखक के पुत्र के मुंह में अन्न भी डाला और उसकी मृत्यु पर उसे सान्त्वना भी दी। मानवीय करुणा की तरल चमक उनके चेहरे पर हर वक्त दिखाई देती थी।
6. फादर बुल्के ने संन्यासी की परम्परागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे ?
उत्तर – फादर बुल्के सच्चे अर्थों में एक संन्यासी थे। उनमें मानवीय गुणों का समावेश था। वे परोपकारी थे। उनके हृदय में दूसरों के लिए करुणा एवं वात्सल्य भाव समाया हुआ था । वे संन्यासी होकर भी परिचितों से विशेष लगाव रखते थे। वे उनके सुख-दुःख में शामिल होते थे और उन्हें अपने गले लगाने को आतुर रहते थे। वे कभी भी किसी को अपने से दूर तथा अलग प्रतीत नहीं होने देते थे। इसलिए लोग उन्हें आत्मीय संरक्षक मानते थे।
14. एक कहानी यह भी
1. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परन्तु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं । इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर – यह सत्य है कि मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है, क्योंकि सुख-दुःख में सबसे पहले आस-पडोस के ही लोग काम आते हैं और सहयोगी बनते हैं। लेकिन वर्तमान में पाश्चात्य सभ्यता और टी०वी० संस्कृति के प्रभाव ने महानगरों की कल्चर में रहने वाले लोगों को इतना आत्मकेन्द्रित बना दिया है कि वे आस-पड़ोस के जीवन से मानो बेगाने हो गये हैं। धन कमाने की लालसा उनके मन में इतनी बढ़ गयी है कि उन्हें यही पता नहीं चलता कि उनके पड़ोस में कौन रहता है? सम्पर्क की बात तो अलग रह जाती है। इसलिए वे ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं।
2. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा, वे थे, लेखिका के पिताजी और लेखिका की हिन्दी की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल। पिताजी ने लेखिका को राजनैतिक बहसों में शामिल करके देश और समाज के प्रति जागरूक बनाया। इसके साथ ही उन्होंने उसे रसोईघर और सामान्य घर गृहस्थी के कामों से दूर रखकर प्रतिभाशाली व्यक्तित्व प्रदान किया। हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को क्रियाशील, जागरूक और आन्दोलनकारी बनाने में अपनी अहम् भूमिका निभायी। उन्होंने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के मन में बैठे संस्कारों को कार्य रूप दे दिया। इसके साथ ही उन्होंने लेखिका को क्रान्तिकारी और विद्रोही बनाया |
3. ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर वताइये कि लेखिका के अपने पिता से क्या वैचारिक मतभेद थे ?
उत्तर – लेखिका के पिताजी का स्वभाव क्रोधी, शक्की व अहंवादी था। वे लेखिका को देश-समाज के प्रति जागरूक बनाना चाहते थे लेकिन वे उसे घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहते थे। लेखिका को पिता की यह सीमा स्वीकार नहीं थी, वह सक्रिय रूप से आन्दोलनों में भाग लेना चाहती थी। लेखिका ने पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया था। इससे लेखिका की उनसे वैचारिक टकराहट थी।
15. नौबतखाने में इबादत
1. विस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ हिन्दू और मुसलमानों की मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। एक ओर वे सच्चे मुसलमान थे। वे मुस्लिम धर्म के सभी त्योहारों और उत्सवों को पूरी श्रद्धा के साथ मनाते थे। पाँचों समय की नमाज श्रद्धा के साथ अदा करते थे। मुहर्रम भी बड़ी श्रद्धा से मनाते थे। मुहर्रम की आठवीं तारीख को वे पैदल चलते, नौहा बजाते थे। इसके साथ ही वे काशी विश्वनाथ और बालाजी के मन्दिर में शहनाई बजाते थे। गंगा के प्रति सच्ची श्रद्धा रखते थे। काशी से बाहर रहते हुए भी विश्वनाथ व बालाजी के मन्दिर की ओर मुँह करके प्रणाम किया करते थे। इसलिए वे मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
2. विस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें, जिन्होंने उनको संगीत साधना को समृद्ध किया।
उत्तर – विस्मिल्ला खाँ के संगीत-जीवन को निम्नलिखित परम्पराओं और लोगों ने समृद्ध करने में अपना सहयोग दिया रसूलन बाई और बतुलन बाई की गायिकी ने उन्हें संगीत की ओर आकर्षित किया, क्योंकि जब भी वे बालाजी के मंदिर जाते थे, तब रास्ते में गुजरते समय उन्हें तरह-तरह के बोल, ठुमरी, टप्पे, दादरा आदि सुनने को मिलते थे। जिससे उनके मन में संगीत के प्रति ललक जगी।
3. ‘विस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।’ तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ संगीत-कला के अनन्य उपासक थे। वे शहनाई बजाने की कला में प्रवीण थे। उन्होंने अस्सी वर्ष तक लगातार शहनाई बनाई। वे शहनाई वादन में बेजोड़ थे। वे गंगा-तट पर बैठकर घंटों रियाज करते थे। वे अपनी कला को ईश्वर की उपासना मानते थे। वे इसके विकास के लिए खुदा से सुर बखाने की माँग करते थे। इसके साथ ही वे अपने पर झल्लाते भी थे, क्योिं उनके अनुसार उन्हें अब तक शहनाई को सही ढंग से बजाना क्यों नहीं आया? इससे स्पष्ट होता है कि वे सच्चे कला उपासक थे।
4. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर – शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए जिस रोड का प्रयोग किया जाता है, वह डुमराँव में सोन नदी के किनारे ही पाई जाती है। इसके साथ ही डुमराव प्रसिद्ध शहनाई कादक विस्मिल्ला खाँ का जन्म स्थान भी है।
5. विस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उनकी शहनाई से हमेशा ही मंगलध्वनि निकलती रही। वे काशी के विश्वनाथ, बालाजी मन्दिर में अनेक मांगलिक उत्सव-पर्यो पर शहनाई बजाते थे। इसके साथ ही उनसे बढ़कर और दूसरा सुरीला शहनाई वादक नहीं हुआ है।
6. सुषिर-वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी ?
उत्तर – सुषिर-वाद्यों से अभिप्राय है- मुँह से फूंककर बजाए जाने वाले वाद्य। यह वाद्य छेद वाले और अन्दर से खोखलीय पोली नली वाले होते हैं। जैसे – बाँसुरी, शहनाई, नागस्वरम्, बीन आदि। नाड़ी या रोड से युक्त वाद्यों को ‘नय’ कहा जाता है। शहनाई की ध्वनि सबसे मधुर होने से इसे ‘शाहनेव’ अर्थात् सुषिर वाद्यों में ‘शाह’ की उपाधि दी गयी, क्योंकि यह वाद्य सभी सुषिर वाद्यों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
7. काशी में हो रहे कौन से परिवर्तन विस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे ?
उत्तर – काशी में पुरानी परम्पराएँ लुप्त हो रही थीं। खान-पान की पुरानी चीजें (देशी घी से बनी कचौड़ी जलेबी) बेचने वाले व मलाई बर्फ वाले वहाँ से चले गये थे; न ही अब संगीत, साहित्य और अदब का वैसा मान रह गया था। हिन्दुओं और मुसलमानों का पहला जैसा मेल-जोल नहीं रहा। इसके साथ ही संगीतकारी का वैसा मान भी नहीं रहा। ये सभी बातें विस्मिल्ला खाँ को व्यथित करती थीं।
पाठ्य पुस्तक– कृतिका
1. माता का अंचल
1. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गये हों।
उत्तर – पाठ में ऐसे अनेक रोचक प्रसंग आए हैं जो हमारे दिल को छू गये हैं। उन प्रसंगों में से हमें सबसे अच्छा दिल को छूने वाला प्रसंग वह लगा, जब चूहे की जगह साँप बिल में से निकल आया और बच्चे उसे देखकर रोते चिल्लाते बेतहाशा भागने लगे; कोई औंधा गिरा, कोई अटांचिट। किसी का सिर फटा, किसी के दाँत टे। सभी गिरते पड़ते भागे । किसी की सारी देह लहूलुहान हो गयी। पैरों के तलवे काँटो से छलनी हो गये। बालक भोलानाथ एक सुर से दौड़ा आया, घर में घुस गया और माँ की गोद में शरण ली। इसी प्रकार अन्य प्रसंगों में पिता द्वारा मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में भाग लेना। बच्चे भोज, शादी या खेती का खेल खेलते हैं। बच्चे का पिता भी बच्चा बनकर उनके साथ शामिल हो जाता है। यह प्रसंग मन को छूने वाले लगते
2. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल तत्कालीन परम्परागत दैनिक जीवन से जुड़े हुए थे और उनकी खेल सामग्री भी घर में उपलब्ध दीए, माचिस की तिल्ली, टूटी-फूटी वस्तुएँ, रस्सी आदि से तैयार की जाती थी। वे घरौंदा बनाने दुकान चलाने, बारात का खेल आदि खेलते थे और उन्हीं में आनन्द की अनुभूति करते थे। परन्तु आज के बालक जो खेल खेलते हैं वे इनसे पूर्णतः भिन्न हैं। हमारे खेलने के लिए क्रिकेट का सामान, किचेन सेट, डॉक्टर सेट, तरह-तरह के वीडियो गेम व कम्प्यूटर गेम आदि बहुत-सी चीजें हैं जो इनकी तुलना में एकदम अलग हैं। भोलानाथ जैसे बच्चों की खेलने की सामग्री आसानी से सुलभता से बिना खर्च किये ही प्राप्त हो जाती है जबकि आज के बच्चों का खल सामग्री बाजार से खरीदना पड़ता है।
3. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है ?
उत्तर – यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चों को खेलने में अपार आनंद की अनुभूति होती है। वह खेल में भूख-प्यास भी भूल जाता है। लेखक जब मइयाँ के द्वारा बालों में तेल डालने, उन्हें गूंथने और काला टीका लगाने पर बाल इच्छा के विपरीत सिसकने लगता है और सिसकते हुए जब बाहर आता है तब बाहर खड़े अपने साथियों को देखकर उसे खेलने की याद और उसके आनन्द की अनुभूति होने लगती है। इसलिए वह सिसकना भूल जाता है।
4. ‘माता का अँचल’ पाठ में माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – इस पाठ में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत ही स्वाभाविक एवं मनमोहक वर्णन हुआ है। बच्चे के पिता उसे अतिशय प्यार करते हैं। वह उसे अपने पास सुलाते हैं। सुबह उठकर उसे नहलाते-धुलाते हैं। पूजा में अपने साथ बैठाते हैं। गंगा में मछलियों को आटा खिलाने, उसे कन्धे पर बैठाकर अपने साथ ले जाते हैं। उसे झूला झुलाते हैं। उसके साथ खेलते-खेलते हार जाते हैं। जीत में उसका हौसला बढ़ाते हैं। प्यार से उसकी खट्टी-मीठी चुम्बी लेते हैं। उसके अन्य खेलों में बच्चे जैसा बनकर शामिल होते हैं। उसे आनन्दित करते हैं और स्वयं भी आनन्दित होते हैं। उसे बैठकर स्वयं अपने हाथों से भोजन कराते हैं। इसके साथ ही बच्चे की माता भी मानो ममता की मूर्ति है। वह पिता के द्वारा बच्चे को भोजन करवाने पर भी ममत्व भाव से पूरित होकर उसे खाना खिलाती है। उसके सिर में तेल डालती है बालों को नाँधती है। नजर से बचाने के लिए उसके काला टीका लगाती है। बच्चा जब भयभीत हालत में उसकी गोद में शरण लेता है तब वह भावुक हो उठती है और काँपने लगती है। बच्चे की दशा देखकर वह स्वयं रोने लगती है। उसकी चोटों पर हल्दी लगाती है। इन सब क्रियाओं में माता के ही नहीं, पिता के भी वात्सल्य भाव की झलक मिलती है।
5. ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह आपके वचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है ?
उत्तर – इस पाठ में बच्चों की जिस दुनिया का वर्णन किया गया है, वह लगभग एक सौ बीस वर्ष पुरानी है। उस समय की दुनिया में बच्चों में सरलता थी। उन्हें देखादेखी जो भी खेलने की सामग्री मिल जाती थी, वे उसी से खेलकर अपना मनोरंजन कर लेते थे। उनके खेल मनोरंजन में उनका साथ उनके पिता भी निभाते थे। अब हमारे बचपन की दुनिया उस दुनिया से पूरी तरह भिन्न है। हमें अपने पिता का प्यार लेखक के पिता की तरह नहीं मिला, क्योंकि मेरे नौकरीपेशा पिता सुबह जल्दी ही तैयार होकर नौकरी पर चले जाते और रात को थककर कार्यालय से आते।
खाना खाकर कुछ समय इधर उधर टहलने के नाम पर घूमते फिर सो जाते। इतना जरूर होता है कि खाने की मेज पर कुछ प्यार भरी या काम की बातें अवश्य कर लेते या फिर दिनभर के हालचाल या पढ़ाई के बारे में पूछ लेते। समय मिलने पर वे स्कूटर पर बैठाकर बाजार ले जाते हैं और टॉफी, चॉकलेट या जो खाने की इच्छा हुई उसे खिला लाते हैं। या फिर घर पर ही बैठकर कुछ समय के लिए पढ़ाई करने में सहयोग दे देते। पढ़ना और पढ़कर आगे बढ़ना यही उनकी सोच होती और वे उनकी सोच के अनुसार ही आचरण करते हैं। खेल खेलने की इच्छा तो मन की मन में ही रह गयी।
2. जॉर्ज पंचम की नाम
1. ‘और देखते ही देखते नयी दिल्ली की कायापलटे होने लगी।’ नयी दिल्ली की कायापलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किये गये होंगे ?
उत्तर – नई दिल्ली की कायापलट करने की दृष्टि से सड़कों की मरम्मत कराई गयी होगी। उन पर डामर डलवाकर चमकाया गया होगा। उनके किनारों पर संकेत गई होगी। सरकारी चिह्न, नाम-पट्ट आदि लगवाकर रोशनी की उत्तम व्यवस्था इमारतों पर, पर्यटन स्थलों पर रंग-रोगन किया गया होगा। उनकी सजावट की गयी होगी। सफाई व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया होगा। सरकारी इमारतों के लॉन में लगे फब्बारे सुधारे और चलवाये गये होंगे। ट्रेफिक पुलिस की सुव्यवस्था के साथ ही मेहमान नवाजी की विशेष व्यवस्था की गयी होगी।
2. जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है ?
उत्तर – जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक इस ओर संकेत करना चाहता है कि भारतीय नेता और बलिदानी भारतीय बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी है, अर्थात् वे अधिक सम्माननीय हैं। हमारे देश में उस व्यक्ति की नाक ऊँची होती है अर्थात् वह सम्मान का हकदार बनता है जो देश के लिए त्याग-बलिदान करता है। जॉर्ज पंचम जैसे निर्दय और हृदयहीन शासक को कभी भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया।
3. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या वदहवासी दिखाई देती है, वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है ?
उत्तर – सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहकासी दिखाई देती है, उसमें सरकारी तंत्र की स्वाभिमान से रहित गुलाम और औपनिवेशिक मानसिकता का बोध होता है। उससे पता चलता है कि जिन्होंने हमें गुलाम बनाकर रखा, आजाद होने के बाद भी हम उनके गुलाम हैं। सरकारी लोग उस जॉर्ज पंचम के नाम से चिन्तित हैं जिसने न जाने कितने ही कहर ढहाए। उसके अत्याचारों को याद न कर उसके सम्मान में जुट जाते हैं। सरकारी तन्त्र अपनी अयोग्यता, अदूरदर्शिता, मूर्खता और चाटुकारिता को दर्शाता है।
4. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आयी है ? लिखिए।
उत्तर – इस पाठ में नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात लेखक ने विभिन्न बातों द्वारा व्यक्त की है। रानी एलिजाबेथ अपने पति के साथ भारत दौरे पर आ रही थीं। ऐसे मौके में जॉर्ज पंचम की नाक का न होना उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने जैसा था। यदि जॉर्ज पंचम की नाक नहीं लगाई जाती तो ब्रिटिश सरकार के नाराज हो जाने का शब्दों में लेखक ने स्पष्ट करते हुए कहा है खोज करने के लिए मेहनत तो करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा- ‘आने वाला जमाना खुशहाल होगा।’ यहाँ तक कि जॉर्ज पंचम की नाक का सम्मान भारत के महान् नेताओं एवं साहसी बालकों के सम्मान से भी ऊँचा था। इसलिए तो उनकी नाक हटाने को सब तैयार हो गए पर जॉर्ज पंचम की नाक लगाना ज्यादा जरूरी था। • यही बात लेखक ने कई स्थानों पर बताने का प्रयत्न किया है।
5. अखवारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया ?
उत्तर – अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को बड़ी कुशलता के साथ छापा। उन्होंने अखबारों में केवल इतना ही छापा-नाक का मसला हल हो गया है और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है। इसके अतिरिक्त अखबारों में नाक के विषय को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई न ही किसी समारोह के होने की खबर को छापा गया।
6. जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे ?
उत्तर – जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप इसलिए थे, क्योंकि जार्ज पंचम की बुत पर जिंदा नाक लगाना अपमानजनक कृत्य था। वे इसका विरोध चुपचाप कर रहे थे। यही कारण था किसी स्वागत समारोह का कोई समाचार और चित्र अखबार में नहीं छपा था।
3. साना-साना हाथ जोड़िए
1. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर – गंतोक की परम्परा के अनुसार श्वेत पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर उसकी आत्मा की शान्ति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर फहराई जाती हैं। ये श्वेत पताकाएँ शान्ति और अहिंसा की प्रतीक होती हैं। इन पर मंत्र लिखे हुऐ होते हैं। ये संख्या में एक सौ आठ होती हैं जिन्हें फहरा कर उतारा नहीं जाता और वे धीरे-धीरे अपने आप नष्ट हो जाती हैं। इसके साथ ही रंगीन पताकाएँ किसी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने पर लगाई जाती हैं।
2. इस यात्रा वृत्तान्त में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – इस यात्रा वृत्तान्त में लेखिका ने हिमालय के विभिन्न रूपों के बड़े मनोरम चित्र खींचे हैं। लेखिका को हिमालय का स्वरूप पल-पल बदलता नजर. आता हैं। प्रकृति इतनी मोहक है कि लेखिका किसी बुत-सी ‘माया’ और ‘छाया’ के खेल को देखती रह जाती है। हिमालय की तीसरी बड़ी चोटी कंचनजंघा का दर्शन जब लेखिका बालकनी से करती है। मौसम अच्छा होने के बावजूद उसे आसमान में हल्के-हल्के बादलों ने ढक रखा था। उस समय उसे कंचनजंघा के दर्शन तो नहीं हुए, लेकिन उस समय उसे उतने फूल दिखाई पड़े कि उसे लगा कि वह मानो फूलों के बाग में आई है। इसके साथ ही उसे लगता है कि छोटी-छोटी पहाड़ियाँ विशाल पर्वतों में बदलने लगती हैं। घाटियाँ गहराती-गहराती पाताल नापने लगती हैं। नदियाँ चौड़ी होने लगती हैं और चारों ओर प्राकृतिक सुषमा बिखरी नजर आती है।
3. सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है ? उल्लेख करें।
उत्तर – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में अनेक प्रकार के लोगों का योगदान होता है। सबसे पहले इस दृश्य में उस ट्रैवल की भूमिका अहम् होती है जो सैलानियों को उस स्थान पर भ्रमण करवाने के लिए वाहन व ठहरने आदि की व्यवस्थाएँ करता है। इसके बाद वाहन चालक तथा परिचालक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है जो सैलानियों को उनके निर्धारित स्थान तक पहुँचाते हैं फिर गाइड उन्हें घुमाता हुआ पर्यटन स्थल की जानकारी देता है।
उस जानकारी काल में सैलानियों को बड़ा वाहन छोड़कर जीप जैसे छोटे वाहन का भी सहारा लेना पड़ता है। प्रायः जीप जैसे वाहनों के चालक जितेन नार्गे की भाँति ड्राइवर-कम-गाइड होते हैं। इसके अतिरिक्त उनके ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था करने वाले होटलकर्मी तथा पर्यटन स्थल पर छोटी-छोटी अन्य सुविधाएँ जैसे बर्फ पर चलने के लिए लम्बे-लम्बे बूटं व अन्य जरूरी सामान, किराये पर देने वाले दुकानदार, हस्तशिल्प व कलाकृतियाँ बेचने वाले, फोटोग्राफर और वहाँ के स्थानीय निवासियों व जन-जीवन का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
4. ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए।
उत्तर – ‘कटाओ’ सिक्किम का एक खूबसूरत किन्तु वीरान पहाड़ी स्थान है, जहाँ प्रकृति अपने पूरे वैभव के साथ दृष्टिगोचर होती है। यहाँ पर लेखिका को बर्फ का आनन्द लेने के लिए जब घुटनों तक के लम्बे बूटों की आवश्यकता महसूस हुई, तब उसने देखा कि वहाँ झाँगु की तरह किराये पर मुहैया कराने वाली एक भी दुकान नहीं है। तब लेखिका को लगा कि कटाओ में किसी दुकान का न होना भी वहाँ के लिए वरदान है, क्योंकि यहाँ झांगु की तरह दुकानों की कतारें लग गयीं तो यहाँ का भी नैसर्गिक सौन्दर्य तो खत्म होगा ही, यहाँ आबादी भी बढ़ेगी और सैलानियों की भीड़ भी। अन्ततः यहाँ भी प्रदूषण फैलेगा।
5. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था ?
उत्तर – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन में सम्मोहन जगा रहा था। सितारों के गुच्छे रोशिनियों की एक झालर्सी बना रहे थे। इस सुन्दरता ने उस पर ऐसा जादू-सा कर दिया था कि लेखिका को सब कुछ ठहरा हुआ-सा और अर्थहीन-सा लग रहा था। उसके भीतर-बाहर जैसे एक शून्य – सा व्याप्त हो गया था। वह सुख की अतीन्द्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।
6. ‘गंतोक को मेहनतकश वादशाहों’ का शहर क्यों कहा गया है ?
उत्तर – गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों’ का शहर इसलिए कहा गया है; क्योंकि इस पर्वत-स्थल पर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यहाँ के निवासियों को कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। अनेक असुविधाओं के बीच भी वे अपना जीवन बादशाहों के समान मस्त अंदाज में बिताते हैं, जरा भी हीनता या दीनता की भावना नहीं रखते हैं। उन्होंने गंतोक को कड़ी मेहनत से मनोरम बनाया है।
7. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है ?
उत्तर – यहाँ के हिम शिखर जल-स्तम्भ के समान हैं। सर्दियों में यहाँ प्रकृति बर्फबारी करके हिमशिखरों के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में यही बर्फ की शिलाएँ पिघल-पिघल कर जलधारा का रूप ले लेती हैं। इस पानी से लोगों की प्यास बुझती है। यह जल संचय की एक अद्भुत व्यवस्था है।
8. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जन-जीवन के वारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दी? लिखिए।
उत्तर – जितेन नार्गे एक समझदार और मानवीय संवेदनाओं से युक्त जीप का गाइड-कम-ड्राइवर था। लेखिका उसी जीप में सवार होकर सिक्किम की यात्रा कर रही थी। उसने ही लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, भौगोलिक स्थिति तथा जन-जीवन के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दी थीं। उसने ही बताया था कि यहाँ उन्हें हिमालय की गहरी घाटियाँ एवं फूलों की वादियाँ देखने को मिलेंगी। यहाँ की दुकानों पर दलाईलामा की टंगी तस्वीरें दिखाई देंगी। सिक्किम प्रदेश चीन की सीमा से सटा हुआ है। इसकी घाटियों में ताश के घरों की तरह पेड़-पौधों के बीच छोटे-छोटे घर होते हैं। यहाँ हिमालय का सौन्दर्य पल-पल परिवर्तित होता जान पड़ता है। यहाँ के लोग बहुत ही मेहनती होते हैं इसीलिए इसे मेहनतकश बादशाहों का नगर कहा जाता है। यहाँ की स्त्रियाँ भी कठोर परिश्रमी होती हैं। वे अपनी पीठ पर बँधी डोकों (बडी टोकरी) में कई बार अपने बच्चे को भी साथ रखती हैं। यहाँ की स्त्रियाँ चटक रंग के कपड़े पहनना पसन्द करती हैं। उनका परिधान ‘बोकू’ है। यहाँ के लोग अधिकतर बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, जो किसी ‘बुद्धिस्ट’ की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा की शान्ति के लिए पहाड़ी रास्तों पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ बाँधते हैं और रंगीन पताकाएँ किसी शुभ अवसर पर यहाँ फहरायी जाती हैं।
9. जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के वारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर – जितेन नार्गे सिक्किम यात्रा के समय लेखिका का गाइड था । वह गाइड होने के साथ-साथ जीप ड्राइवर भी था। एक कुशल गाइड में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है –
- इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि एक कुशल गाइड को वाहन चलाने में भी कुशल होना चाहिए। जितेन में यह गुण था ।
- इसके साथ ही एक कुशल गाइड को अपने क्षेत्र की भौगोलिक तथा विभिन्न स्थानों के बारे में जानकारियाँ होनी चाहिए। जितेन को सिक्किम के बारे में पूरी जानकारियाँ थीं।
- इसके साथ ही गाइड भ्रमणकर्ता के साथ आत्मीयता का सम्बन्ध बना लेता है। इससे उसकी बातें अधिक विश्वसनीय बन जाती हैं।
- गाइड की वाणी प्रभावशाली होनी चाहिए। इसके साथ ही वह लच्छेदार बातें करना भी जानता हो। ये गुण जितेन में थे। इसीलिए जितेन लेखिका को वहाँ के लोगों के दुःख-दर्द के बारे में भी बताता था।
- गाइड को कुशल व बुद्धिमान व्यक्ति होना आवश्यक है ताकि विषम परिस्थितियों का सामना अपनी कुशलता और बुद्धिमानी से कर सके।
- एक कुशल गाइड को चाहिए कि वह भ्रमणकतो के हर प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम हो । अतः हा जा सकता है कि जितने में एक कुशल गाइड के सभी गुण समाये हुए थे।
पत्र – लेखन
औपचारिक पत्र
1. जुर्माना माफ कराने के लिए प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखें।
सेवा में,
प्रधानाचार्य
उच्च विद्यालय, लातेहार ।
दिनांक : 25.03.2023
विषय – जुर्माना माफ कराने के लिए प्रार्थना पत्र ।
महाशय,
के निवेदन करना है कि मैं दिसंबर माह परीक्षा में नकल करते पंकड़ा गया था। अंग्रेजी के अध्यापक ने मुझे नकल करते पकड़ लिया। उन्होंने मुझ पर नकल करने का दोषी पाकर ₹10 जुर्माना लगा दिया। मैं अपने निंदनीय कार्य के लिए बड़ी-लज्ज का अनुभव कर रहा हूँ। मान्यवर, इस भूल के लिए मेरे पिताजी को दंडित न करें। मैं विनम्रतापूर्वक और सच्चे हृदय से अपनी भूल स्वीकार करता हूँ और इसके लिए शत्-शत् बार क्षमा याचना करता हूँ। साथ ही आपको यह विश्वास दिलाता हूँ कि भविष्य में मैं ऐसी भूल नहीं करूंगा। मेरी आपसे सविनय प्रार्थना है कि आप कृपा करके मेरा जुर्माना माफ कर दें। इसके लिए मैं आपका आजीवन कृतज्ञ
आपका आज्ञाकारी शिष्य
अशोक कुमार
कक्षा – 10 (अ)
2. पोस्टमास्टर को मनीआर्डर गुम होने पर शिकायत पत्र लिखें।
सेवा में,
डाकपाल महोदय
मुख्य डाकघर, जमशेदपुर।
दिनांक : 25.03.2023
विषय – मनीआर्डर गुम होने की शिकायत ।
महोदय,
निवेदन है कि 20 दिन पहले आपके मुख्य डाक घर से पाँच सौ रुपए का मनीआर्डर करवाया था। यह धनादेश मैंने अपने माता-पिता के पास श्री रामजी, धर्मतल्ला, कोलकाता, के पते पर भेजा था। बीस दिन हो गए हैं। अभी तक वह धनादेश नहीं पहुँचा है, न ही वापस मुझे मिला है और नहीं इस विषय की कोई सूचना मुझे प्राप्त हुई है। इस कारण परेशानी खड़ी हो गयी है। धनादेश की रसीद सं० – 317, दिनांक- 05.03.2022 है। मैं इसकी एक छायाप्रति भी आपके पास भेज रहा हूँ। कृपया .शीघ्रतिशीघ्र इस लापता धनादेश की जाँच करके उक्त पते पर भिजवा दें, तथा मुझे सूचित करें। आशा है कि आप शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद
भवदीय
अतुल कुमार
धनबाद।
3. चार दिनों की छुट्टी के लिए प्रधानाध्यापक के पास एक आवेदन पत्र लिखें।
सेवा में,
प्रधानाचार्य
जिला स्कूल, देवघर।
दिनांक : 25.03.2023
विषय – चार दिन के अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र |
महोदय,
कल अचानक मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया। स्कूल से लौटते हुए चिलचिलाती धूप लगने से मुझे जोर का सिर दर्द हुआ, जिससे मैं बेचैन हो उठा। मुझे अब काफी शारीरिक कमजोरी अनुभव हो रही है। मैं स्कूल आने की स्थिति में नहीं हूँ। डॉक्टर ने मुझे पूर्ण विश्राम का परामर्श दिया है।
कृपया मुझे आज का अवकाश प्रदान कर अनुगृहीत करें।
आपका आज्ञाकारी छात्र
मुकेश कुमार
कक्षा – 10 स
4. प्रधानाध्यापक के पास छात्रावास में स्थान के लिए आवेदन-पत्र लिखें।
सेवा में,
प्रधानाचार्य
जिला स्कूल, लातेहार ।
दिनांक : 25.03.2023
विषय — छात्रावास में स्थान के लिए। –
महोदय,
निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय के दशम् वर्ग का छात्र हूँ और मेरा घर यहाँ काफी दूर है। वहाँ से रोज-रोज आना-जाना मेरे लिए संभव नहीं है और इसमें मेरी ढ़ाई में बाधा पड़ने की संभावना है। अतः अनुरोध है कि विद्यालय के छात्रावास में झे स्थान देने की कृपा करें। आपकी इस कृपा के लिए मैं सदा आभारी रहूँगा।
धन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
विकास
दसवीं कक्षा
5. प्रधानाचार्य को आर्थिक सहायता के लिए प्रार्थना पत्र लिखें। अथवा, अपने प्रधानाचार्य को आवेदन पत्र लिखकर अपना मासिक शुल्क कम करने की प्रार्थना करें।
सेवा में,
प्रधानाचार्य
उच्च विद्यालय, राँची (झारखंड) ।
दिनांक : 25.03.2023
विषय – आर्थिक सहायता के लिए प्रार्थना पत्र ।
महाशय,
निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में दसवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। गत वर्ष पिताजी का आकस्मिक निधन हो गया था। आर्थिक दृष्टि से सारा परिवार उन्हीं पर निर्भर था। उनके देहांत से हमारी आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय हो गयी है। मेरी दूसरों के घरों में छोटे-मोटे काम करके जैसे-तैसे अपना तथा भाई-बहनों का पालते हैं। ऐसी स्थिति में मेरे लिए अपनी पढ़ाई का खर्चा चलाना असंभव हैं। मैं -अपनी पढ़ाई का क्रम बनाए रखकर, एम० ए० की परीक्षा पास करूँ। मैं नवीं तक सभी श्रेणियों में सदैव अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता रहा हूँ। मैंने अनेक बार भाषणं तथा -विवाद प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते हैं। मेरी आपसे प्रार्थना है कि मुझे की ओर से आर्थिक सहायता दिलवाने की कृपा करें जिससे मेरी पढ़ाई का खर्च चल सके। मैं सदैव आपका आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी छात्र
उमेश कुमार
कक्षा X ‘ब’
6. अपने मुहल्ले में नियमित पेयजल की आपूर्ति हेतु नगरपालिका अध्यक्ष को एक अनुरोध पत्र लिखें।
सेवा में,
अध्यक्ष, नगरपालिका, सिमडेगा
दिनांक : 25.03.2023
विषय – पेयजल की अनियमित आपूर्ति के संबंध में।
महाशय,
आज पूरा नगर पेयजल की अनियमित आपूर्ति से परेशान है। नगर के अधिकतर चापाकल खराब पड़े हैं। नलों में दस-दस दिनों तक पानी नहीं आता। पानी
आता भी है, तो आधे-एक घंटे के लिए। लोग आधी रात से ही पानी भरने के लिए बाल्टी, बरतन आदि लेकर लाइनों में खड़े रहते हैं। पानी के लिए लड़ाई भी हो जाती है। अतः श्रीमान् से मेरी प्रार्थना है कि इस मुहल्ले की पेयजल आपूर्ति नियमित करने की कृपा करें ।
भवदीय
मुकुल आनंद
सिमडेगा
7. अपने विद्यालय में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था हेतु प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखें।
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय उच्च विद्यालय, डालटेनगंज।
दिनांक : 25.03.2023
विषय – विद्यालय में पीने के पानी की समुचित व्यवस्था |
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि हमारे विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था अत्यन्त असंतोषंजनक है। पीने के पानी का केवल एक ही नल है। गर्मी के दिनों में नल पर छात्र-छात्राओं की बहुत भीड़ हो जाती है। कई बार पानी पीने के लिए दस मिनट तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इससे हमारी पढ़ाई में विघ्न पड़ता है। कृपया पीने के पानी के दो-तीन और नलों की व्यवस्था की जाए जिससे विद्यार्थियों को कुछ राहत मिल सके।
आपका विश्वासी
ज्ञानेन्द्र कुमार
8. कुछ दिनों से आपके क्षेत्र में अपराध बढ़ने लगे हैं। उनकी रोकथाम के लिए थानाध्यक्ष को पत्र लिखें।
सेवा में,
थानाध्यक्ष
लोवर बाजार, राँची
दिनांक : 25.03.2023
विषयअपराधों की रोकथाम के लिए थानाध्यक्ष को पत्र ।
महाशय,
पिछले कुछ महीनों से सिविल लाइंस क्षेत्र में अपराधों की संख्या बढ़ गयी है। दिन-दहाड़े चलते हुए राहगीरों को लूटा जाता है और तो और गोली मार दी जाती है। बलात्कार से संबंधित घटनाएँ रोजमर्रा की हो गयी है। दिन-रात चोरी का भय बना रहता है। अतः आपसे अनुरोध है कि इस क्षेत्र में पुलिस गश्त का उचित प्रबंध कर बढ़ते अपराधों की रोकथाम की जाए ।
धन्यवाद
भवदीय
धीरज कुमार, राँची
9. अपने नगर के विद्युत प्रदाय संस्थान के महाप्रबंधक को पत्र लिखें, जिसमें परीक्षा के दिनों में वार-वार विजली चले जाने के कारण उत्पन्न असुविधा का वर्णन किया गया हो।
अथवा, अपने मुहल्ले में चरमराई हुई विद्युत व्यवस्था को ठीक करने के लिए विद्युत अभियंता को एक पत्र लिखें।
सेवा में,
महाप्रबंधक
विद्युत संस्थान, राँची
दिनांक : 25.03.2023
विषय- बिजली आपूर्ति में बाधा।
महाशय,
निवेदन है कि आजकल हम छात्रों की वार्षिक परीक्षाएँ चल रही हैं। लेकिन नगर की बिजली व्यवस्था बिल्कुल खराब है। दिन हो या रात, हम बिजली के होने का भरोसा नहीं कर सकते। कभी-कभी शाम को 5 से 10 बजे तक बिजली गायब रहती है। यह हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ है। कृपया हमारी परीक्षाओं का ध्यान रखते हुए बिजली आपूर्ति नियमित करने की कृपा करें।
धन्यवाद
भवदीय
सुजीत कुमार, टॉवर चौक, देवघर।
10. अपने मुहल्ले की सफाई कराने हेतु स्वास्थ्य अधिकारी को प्रार्थना पत्र लिखें।
अथवा, अपने मुहल्ले में सड़कों एवं नालियों की समुचित सफाई व्यवस्था उपलब्ध कराने हेतु नगरपालिका अध्यक्ष को एक अनुरोध पत्र लिखें।
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी
राँची नगर निगम, राँची।
दिनांक : 25.03.2023
विषय – मुहल्ले की सफाई कराने हेतु प्रार्थना पत्र ।
महाशय,
हम आपका ध्यान मुहल्ले की सफाई संबंधी दुरव्यवस्था की ओर खींचना चाहते है आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि हमारे मुहल्ले की सफाई हेतु नगर निगम का कोई सफाई कर्मचारी दस दिनों से काम पर नहीं आ रहा है। घरों की सफाई करने वाले कर्मचारियों ने भी मुहल्ले में स्थान-स्थान पर गंदगी और कूड़े-करकट के ढेर लगा दिए हैं।
आज स्थिति यह है कि मुहल्ले का वातावरण अत्यंत दूषित तथा दुर्गंधमय गया है। मुहल्ले से गुजरते समय नाक बंद कर लेनी पड़ती है। चारों ओर मक्खियों की भिनभिनाहट है। रोगों के कीटाणु प्रतिदिन बढ़ रहे हैं।
नालियों की सफाई न होने के कारण मच्छरों का प्रकोप इस सीमा तक तक बढ़ गया है कि दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गयी है।
वर्षा ऋतु प्रारंभ होने वाली है। यथासमय मुहल्ले की सफाई न होने पर मुहल्ले की दुरव्यवस्था का अनुमान लगाना कठिन है। महोदय से आग्रह है कि यथाशीघ्र हमारे मुहल्ले का निरीक्षण करें तथा सफाई का नियमित प्रबंध करें। आपकी ओर से उचित कार्यवाही के लिए हम आपके आभारी रहेंगे।
प्रार्थी
कॉलोनीवासी
वार्ड सं० 30, राँची
11. अपने क्षेत्र में पेड़-पौधों की अनियंत्रित कटाई को रोकने के लिए जिलाधिकारी को पत्र लिखें।
सेवा में,
जिलाधिकारी
झारखण्ड वन्य संस्थान, राँची
दिनांक : 25.03.2023
विषय – पेड़-पौधों की कटाई रोकने के संदर्भ में ।
महोदय,
मैं राँची का निवासी हूँ। मेरे क्षेत्र में इन दिनों वन्य पेड़-पौधों की निर्मम कटाई हो रही है। इस तरफ किसी वन्य पदाधिकारी का भी ध्यान नहीं जा रहा है। देश का नागरिक होने के नाते मेरा यह कर्तव्य बनता है कि मै आपका ध्यान इस तरफ आकृष्ट करूँ। हालाँकि इस क्षेत्र में वन्य पेड़-पौधों की कटाई पर प्रतिबंध है परंतु यह दुःख का विषय है कि पेड़-पौधों की कटाई किसी भी प्रकार रुक नहीं पा रही है। मैं आशा करता हूँ कि आप मेरी उपर्युक्त शिकायत पर ध्यान देंगे और वन विभाग के भ्रष्ट पदाधिकारियों, कर्मचारियों एवं बाहुबली पहुँचवाले रंगदारों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करेंगे ताकि वन्य पेड़-पौधों की अवैध कटाई रोकी जा सके और इस सुंदर पृथ्वी का स्वास्थ्य सुरक्षित कर सके।
आपसे शीघ्र कार्रवाई की अपेक्षा के साथ,
आपका
निखिल कुमार, राँची
12. अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी को एक प्रार्थना पत्र लिखें। अथवा, मलेरिया से वचाव हेतु अपने जिले के स्वास्थ्य अधिकारी को एक पत्र लिखें।
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
राँची नगर निगम, राँची।
दिनांक : 25.03.2023
विषय- मच्छरों का बढ़ता प्रकोप ।
महाशय,
इस पत्र के माध्यम से मैं अपने थड़पखना मुहल्ले की बजबजाती गंदी नालियों से उत्पन्न मच्छरों के भयंकर प्रकोप की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। बरसात तो बरसात है, अन्य मौसमों में भी इस घनी आबादी वाले क्षेत्र की नालियाँ गंदे जल से भरी रहती है। जमा हुआ पानी मच्छरों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि करता है।
अतः आपसे सादर अनुरोध है कि इस क्षेत्र की सफाई के साथ ही साथ मलेरिया निरोधक दवाइयों के छिड़काव की अविलम्ब व्यवस्था कराई जाए। आशा है, आप मेरी प्रार्थना को स्वीकार करेंगे और उचित प्रबंध द्वारा इस क्षेत्र के निवासियों को मलेरिया के प्रकोप से बचा लेंगे।
विश्वासभाजन
रत्नेश कुमार
थड़पखना, राँची
अनौपचारिक पत्र
1. वार्षिक परीक्षा की तैयारी का वर्णन करते हुए पिताजी को एक पत्र लिखें।
छात्रावास
उच्च विद्यालय, डाल्टेनगंज,
दिनांक : 25.03.2023 :
पूज्य पिताजी
सादर प्रणाम ।
आपका पत्र मिला। आप मेरी वार्षिक परीक्षा की तैयार के बारे में जानने को उत्सुक हैं। पिताजी, आपकी प्रेरणा एवं निर्देशों के अनुसार ही मैं अपनी वार्षिक परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ। अब क्योंकि परीक्षा निकट है, मैंने पढ़ने का समय बढ़ा दिया है। अब मेरा ज्यादा ध्यान पाठों को दुहराने पर तथा प्रश्नों को बिना देखे हल करने के अभ्यास पर केन्द्रित है।
मैं देख रहा हूँ कि इससे मेरा आत्मविश्वास काफी बढ़ता जा रहा है। कोई दिक्कत होने पर शिक्षक से सहायता लेता हूँ। कक्षा में भी आजकल अभ्यास परीक्षाएँ होती रहती हैं। आपके आशीर्वाद से इनमें मुझे प्रायः हर बार कक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त हो रहे हैं। आशा है, मैं परीक्षा में अच्छे अंक लाकर आपकी अकांक्षा पर खरा उतरूँगा।
इस संदर्भ में भैया को भी निश्चित रहने की कहिएगा। माँ को मेरा प्रणाम कह देंगे।
आपका पुत्र
विजय
2. अपने भाई के विवाह में शामिल होने के लिए मित्र को पत्र लिखें।
राँची
दिनांक : 25.03.2023
प्रिय मित्र विमल,
तुम्हें यह सूचना देते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि मेरे भाई का विवाह 18 मई, 2022 को होना निश्चित हुआ है। बारात धुर्वा से रातु रोड़ (राँची) जाएगी। तुम 17 मई तक अवश्य यहाँ पहुँच जाना। उन दिनों विद्यालय में भी अवकाश रहेगा। अतः तुम्हें
माता-पिता से अनुमति लेने में भी असुविधा नहीं होगी। अपने आगमन की तिथि के विषय में पत्र द्वारा सूचना अवश्य देना। चाचाजी एवं चाचीजी को सादर चरण स्पर्श तथा अंशु को स्नेह ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
निलेश
3. मित्र को ग्रीष्म अवकाश साथ व्यतीत करने के लिए निमंत्रित करें।
बादशाह, लॉज, राँची
दिनांक : 25.03.2023
प्रिय मित्र मुकेश,
तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि तुम वार्षिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हो। 20 मई से तुम्हारा ग्रीष्मावकाश है। तुम इस छुट्टी में लगभग 15 दिनों के लिए राँची आ जाओ। इस बार पिताजी दक्षिण भारत की सैर के लिए जा रहे हैं। यदि तुम मेरे साथ होगे तो मुझे बहुत अधिक खुशी होगी। मेरे पिताजी भी तुम्हें साथ ले जाने के इच्छुक हैं। तुम अपने पिताजी से अनुमति लेकर अपने आने की तिथि सूचित करना ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
अंकित कुमार
4. अपने पिता के पास पत्र लिखकर अपने सहपाठियों के साथ किसी महत्वपूर्ण स्थानों के भ्रमण के लिए अनुमति माँगे ।
बोकारो
दिनांक : 25.03.2023
पूज्य पिताजी
सादर प्रणाम
विद्यालय के छात्रावास में रहते हुए अच्छा तो लग रहा है, फिर भी न जाने क्यों मैं कुछ बँधा-बँधा-सा अनुभव कर रहा हूँ। कभी-कभी ऊब जाता हूँ। लेकिन आनेवाली दशहरे की छुट्टी की याद आते ही राहत की साँस लेता हूँ। विद्यालय के शिक्षक एवं अन्य छात्र भी अवकाश की आवश्यकता महसूस करते हैं और रोजमर्रा की जिंदगी की जकड़न से छुटकारा चाहते हैं। खैर, छुट्टियाँ होती ही हैं और होंगी भी। लेकिन इस वर्ष सभी छात्र, शिक्षक और विद्यालय के प्रबंधक एकमत होकर आगामी अवकाश का बिहार भ्रमण के लिए उपयोग करना चाहते है। यों, यात्रा हम एक स्थल विशेष की ही करना चाहते हैं, लेकिन यात्रा के में निकटवर्ती स्थलों को भी छूते जाना चाहते हैं। हमलोग बस से राजगीर जाना चाहते हैं। हमारे साथ हमारे शिक्षक भी रहेंगे। लड़कियाँ भी अपने अपने अभिभावक से अनुमति माँग चुकी है। अभिभावक या पिता की अनुमति अनिवार्य है। हमलोग सात से दस दिनों तक घूमेंगे। हम राजगीर के दर्शनीय स्थल का दर्शन करेंगे। साथ-साथ नालंदा और पावापुरी भी देखते आयेंगे। आशा है, आप भ्रमण की अनुमति देंगे, क्योंकि यह यात्रा पूर्णतः निरापद होगी ।
बड़ों को प्रणाम, छोटे को प्यार |
आपका प्यारा बेटा
मोहित
5. समय के सदुपयोग और परिश्रम पर बल देते हुए अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखें।
देवघर
दिनांक : 25.03.2023
प्रिय रमेश,
शुभाशीष ।
कल ही तुम्हारा मित्र प्रमोद मुझसे मिला था। उसकी बातों से मुझे यह आभास हुआ कि इन दिनों तुम समय का पूर्ण उपयोग नहीं कर रहे हो तथा पढ़ाई में मेहनत भी नहीं कर रहे हो। राजेश, अभी तुम्हारा एक-एक मिनट अत्यंत कीमती है। अच्छे परीक्षाफल के द्वारा ही तुम अपने भविष्य की ठोस आधारशिला रख सकते हो। याद रखो, जो व्यक्ति अपने जीवन का प्रत्येक क्षण सदुपयोग करता है वह भाग्यवान बनता चला जाता है। जो अनवरत परिश्रम करता है वही उन्नति की सीढ़ियों पर
निरन्तर चला जाता है। ऐसा व्यक्ति ही जीवन में सदा प्रसन्न, सन्तुष्ट और सम्पन्न रहता है। विद्यार्थी के लिए तो समय के सदुपयोग और सही दिशा में कड़ी मेहनत की और भी अधिक आवश्यकता है।
आशा है इन बातों को ध्यान में रखोगे। स्वर्णिम भविष्य तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है।
शुभकामानाओं के साथ।
तुम्हारा,
विवेक
6. अपने मित्र के वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम आने पर बधाईपत्र लिखें।
परीक्षा भवन
दिनांक : 25.03.2023
मित्रवर मनोज,
स्नेह कल समाचारपत्र में तुम्हारा नाम पढ़ा। पढ़कर अपार प्रसन्नता हुई कि तुमने पूरे प्रदेश में वाद-विवाद प्रतियोगिता के सर्वश्रेष्ठ वक्ता का सम्मान प्राप्त किया है। यह सम्मान वास्तव में तुम्हारे लिए गौरव का विषय है। यह समाचार पत्र पढ़कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ, बल्कि ऐसा लगा कि तुम्हें अपनी प्रतिभा का यह सम्मान मिलना ही था। ईश्वर करे, तुम्हारी वह वक्तृता दिनों-दिन बढ़ती जाए।
तुम्हारा मित्र
मेहुल
7. माताजी को अपनी पढ़ाई के विषय में जानकारी देते हुए पत्र लिखें।
रातु रोड, राँची
दिनांक : 25.03.2023
पूज्य माताजी,
सादर चरण स्पर्श ।
आपका स्नेह – पूर्ण पत्र मिला। पढ़कर मन आनंद से भर गया। आपका स्वास्थ्य अब पहले से अच्छा है, यह पढ़कर मन को सुख-चैन मिला। आगामी 15.03.2022 से मेरी वार्षिक परीक्षाएँ प्रारंभ हो रही हैं। अब हमारे लिए विद्यालय में छुट्टियाँ हैं। अब मैं अपने सभी विषयों की आवृत्ति कर रहा हूँ। जो याद करता हूँ, उसे लिखकर भी देख लेता हूँ। अभी तक की तैयारी से मुझे पूरा संतोष और विश्वास है कि मेरा परिणाम अच्छा ही रहेगा। आपका आशीर्वाद तो मेरे साथ है ही। अब मैं अगला पत्र परीक्षा समाप्त होने पर ही लिखूँगा।
भैया को सादर नमस्कार तथा छोटे भाई बहनों को सस्नेह मेरी शुभकामनाएँ। शेष सब कुशल है।
आपका प्यारा बेटा
राहुल
8. अपने मित्र के पास एक पत्र लिखें जिसमें झारखण्ड के ऐतिहासिक स्थल के बारे में वर्णन हो ।
बोकारो
दिनांक : 25.03.2023
प्रिय रवि,
सप्रेम नमस्ते ।
अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुमलोग स्वस्थ एवं प्रसन्न हो । हमलोग भी यहाँ सकुशल हैं। तुमने झारखण्ड के किसी ऐतिहासिक स्थल के बारे में जानने की जिज्ञासा प्रकट की है। मैं इसी सन्दर्भ में तुम्हें बताने जा रहा हूँ। राँची शहर से मात्र 10 किमी दूरी पर प्रकृति के सुन्दर वातावरण में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्वामी जगन्नाथ जी का प्राचीन मंदिर अवस्थित है। यह मंदिर यहाँ राजा शाहदेव जी द्वारा लगभग 100 वर्ष पूर्व बनवाया गया था। यह प्राचीन मंदिर झारखण्ड की धरोहर है। प्रतिदिन यहाँ दर्शनार्थियों का मेला लगा रहता है। पहाड़ी पर मंदिर पास खड़ा होकर देखने पर राँची का मनोहारी विहंगम दृश्य हृदय को स्पर्श करता है। प्रतिवर्ष आषाढ़ मास में यहाँ रथ यात्रा का आयोजन होता है। इस अवसर पर झारखण्ड का सबसे बड़ा मेला भी लगता है। इस अवसर पर तुम एक बार अवश्य आओ। पूज्य चाची जी को मेरा प्रणाम निवेदित करना ।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
रमेश कुमार
9. अपने पिता के पास एक पत्र लिखकर पुस्तक खरीदने हेतु दो सौ रुपए की माँग करें।
दुमका
दिनांक : 25.03.2023
पूज्यवर पिताजी
सादर प्रणाम,
मुझे आपका पत्र अभी-अभी मिला है। आपने मुझे अपना समाचार लिखने को कहा है। आपको यह जानकर खुशी होगी कि मैं सकुशल हूँ। मैं आपसे कहना चाहूँगा कि मुझे कुछ किताब की कमी के कारण पढ़ाई में कठिनाई का अनुभव हो रहा है। क्या आप कृपा करके मुझे दो सौ रुपए किताब खरीदने हेतु भेज देंगे। आप शीघ्र मनीऑर्डर द्वारा दो सौ रुपए भेज दें ताकि मैं पुस्तकें खरीद सकूँ और अपनी पढ़ाई सुचारु रूप से जारी रखें।
बड़े लोगों को मेरा प्रणाम तथा छोटों को आशीर्वाद ।
आपका पुत्र
पीरज कुमार
निबंध लेखन
1. मेरा राज्य : झारखंड
परिचय, इतिहास, सीमा, निवासी एवं साधन, उपसंहार
परिचय – हमारा नया राज्य झारखंड है। झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर, 2000 ई० को हुआ। बिहार के दक्षिणी भाग को अलग करके झारखंड राज्य बनाया गया है।
इतिहास – झारखंड का अर्थ होता है । ‘झार-झंखारों और खनिज संपदाओं का क्षेत्र ।’ जहाँ झार-झंखार और खनिज फैला हो, उसे झारखंड कहते हैं। झारखंड राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में झार-झंखार और खनिज फैले हैं। झारखंड भारत का 28वाँ राज्य है।
सीमा – झारखंड राज्य के उत्तर में बिहार है। इसके दक्षिण में उड़ीसा राज्य है। इसके पूरब में पश्चिम बंगाल है। इसके पश्चिम में छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश राज्य हैं। इस राज्य की लंबाई पूरब से पश्चिम की ओर 463 किलोमीटर है। इसकी चौड़ाई उत्तर से दक्षिण की ओर 380 किलोमीटर है।
निवासी – झारखंड राज्य की राजधानी राँची है। राँची एक बहुत बड़ा शहर है। झारखंड राज्य में राँची, जमशेदपुर, दुमका, बोकारो, धनबाद आदि बड़े शहर हैं। झारखंड आदिवासियों का क्षेत्र है। यहाँ उराँव, संथाल, मुण्डा आदि आदिवासी जातियाँ रहती हैं। यहाँ संथाली, मुण्डारी, हो, बंगला एवं हिंदी भाषाएँ बोली जाती हैं।
साधन — झारखंड राज्य की जमीन पठारी और पथरीली है। यह एक पुराना पठार है। यहाँ पर खेती के लायक जमीन बहुत ही कम हैं। यहाँ धान और गेहूँ की खेती होती हैं। धान यहाँ की प्रमुख फसल है। झारखंड राज्य में खनिजों का भंडार है। भारत में सबसे अधिक खनिज झारखंड में पाया जाता है। कोयला, लोहा, मैंगनीज, बॉक्साइट, अभ्रक, काइनाइट, यूरेनियम, ताँबा आदि यहाँ के प्रमुख खनिज हैं। यहाँ लोहे के बड़े-बड़े उद्योग फैले हैं। जमशेदपुर में लोहे का सबसे बड़ा कारखाना है। झारखंड में बहुत से धर्मशाला भी हैं। देवघर, वासुकीनाथ मंदिर, रामरेखा धाम (सिमडेगा) आदि प्रमुख धर्मस्थान हैं। हुंडरू और दसम के जल प्रपात देखने योग्य हैं। इसके अलावे नेतरहाट, काँके, हटिया जमशेदपुर आदि दर्शनीय स्थल हैं।
2. बिरसा मुण्डा
भूमिका, बाल्यावस्था एवं शिक्षा कार्यक्षेत्र, अंग्रेजों से संघर्ष, उपसंहार
भूमिका – झारखण्ड राज्य के राँची जिले में एक आदिवासी समुदाय रहता है। इस समुदाय का नाम ‘मुण्डा समुदाय’ है। मुण्डा समुदाय के लोग मुण्डारी बोली बोलते हैं। बिरसा मुण्डा ‘मुण्डा समुदाय के महान एवं वीर क्रांतिकारी थे। इनका जन्म राँची जिले में ‘अड़की’ प्रखण्ड के ‘उलीहातू’ गाँव में 15 नवम्बर, 1875 ई० में हुआ था।
बाल्यावस्था एवं शिक्षा – इनकी प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा मध्य विद्यालय में हुई। ये उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके। बचपन से ही बिरसा क्रांतिकारी विचारों के बालक थे। वे सदा न्याय का पक्ष लेकर खड़े हो जाते थे। न्याय का साथ देना इनका स्वभाव था। वे बहुत बहादुर और साहसी थे। बचपन में वे खूब बाँसुरी बजाते थे। अपने से बड़ों का खूब आदर करते थे। बच्चों के प्रति उनके हृदय में गहरा प्यार था।
कार्य — बड़े होने पर खेती-बारी करते और पशुओं को चराते थे। उस समय भी वे अपने साथियों को अच्छी सीख देते थे। वे झूठ बोलने, चोरी करने और शराब पीने को पाप समझते थे। वे सबों को इसी का उपदेश देते थे। आदिवासी लोग उनके गुणों से प्रभावित हुए। सभी उनका आदर करने लगे। इसीलिए आदिवासी लोग इन्हें ‘भगवान बिरसा’ कहने लगे। वे स्वयं मांस-मछली नहीं खाते थे और लोगों को भी इन्हें खाने से मना करते थे। वे सबों को प्रेम और भाईचारे का उपदेश देते थे।
अंग्रेजों से संघर्ष – जंगल की ठीकेदारी को लेकर अंग्रेजों से बिरसा भगवान का झगड़ा हो गया। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया । ‘माइल’ पहाड़ी पर अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच भयानक लड़ाई हुई। इस लड़ाई में आदिवासियों की हार हुई। भगवान बिरसा को अंग्रेजों ने पकड़कर जेल में डाल दिया। कुछ दिनों तक जेल में रहने के बाद जेल से छूट गए। जेल से निकलते ही बिरसा भगवान ने फिर विद्रोह कर दिया। आदिवासियों का नेतृत्व बिरसा भगवान ने किया। बिरसा भगवान फिर पकड़े गए। जेल में बिरसा भगवान का स्वास्थ्य खराब हो गया। अस्वस्थ अवस्था में ही उनकी मृत्यु जेल में 9 जून, 1900 ई० में हो गई ।
उपसंहार – बिरसा भगवान महान क्रांतिकारी थे। आदिवासी समाज को दुर्गुणों से बचाना चाहते थे। वे आदिवासियों के हक की लड़ाई जीवन भर लड़ते रहे। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका नाम सदा अमर रहेगा। आदिवासी उनकी पूजा भगवान की तरह करते हैं। इस दुनिया में उसी का नाम अमर होता है, जो अपने समाज और राष्ट्र के लिए अपना जीवन अर्पित कर देते हैं।
3. विद्यार्थी और अनुशासन
अनुशासन से अभिप्राय, अनुशासन का महत्त्व, अनुशासनहीनता का कारण, निष्कर्ष ।
अनुशासन से अभिप्राय – अनुशासन जीवन की त्रित व्यवस्था है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में और हर मनुष्य में अनुशासन का होना वांछित है। विद्यार्थियों में अनुशासन की अनिवार्यता है। इसके अभाव में भाव-प्रवण, अपरिपक्व विद्यार्थी अपने श्रेय पथ से भटक सकते हैं।
अनुशासन का महत्त्व – विद्यार्थी जीवन जीवन का ऊषाकाल है। यहाँ से ज्ञान की रश्मियाँ फूटकर सम्पूर्ण जीवन को अलोकित करती हैं। जीवन के निर्माणकाल में अगर अनुशासनहीनता हो तो भावी जीवन के रंगीन सपने पूरे नहीं हो पाते हैं। जीवन के इस काल में विद्यार्थियों के जो संस्कार बनेंगे ये स्थायी हो जाएगें । अतः सावधानी की अत्यन्त आवश्यकता है। स्पष्ट है कि भावी जीवन की आधारशिला दृढ हो ।
अनुशासनहीनता का कारण — आज विद्यार्थी जीवन की जो दशा है उसके लिए समाज का कलुषित वातावरण उत्तरदायी है। विद्यार्थी जन्मना उच्छृंखल और अनुशासनहीन नहीं होते। वे अपने परिवेश की उपज हैं। आज की शिक्षा प्रणाली कम दूषित नहीं है। यह प्रणाली चरित्र निर्माण, उच्च संस्कार और उच्चतर जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयास नहीं करती है। अध्यापकों के आचरण में जीवन के महान गुण दिखाई नहीं पड़ती हैं। फिर विद्यार्थियों पर किनके गुणों का प्रभाव पड़े? विद्यार्थियों के सम्मुख त्याग, तपस्या, सदाचार और उच्च जीवन मूल्यों का का कोई निदर्शन नहीं मिल पाता है। उनके गुरु आदर्श जीवन के उदाहरण प्रस्तुत कर नहीं पाते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्रणाली, पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध, दूरदर्शन एवं चलचित्र सब विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता के कारक तत्त्व हैं। दूरदर्शन के चलते सांस्कृतिक प्रदूषण एवं चलचित्रों के कारण अपराधीकरण को बल मिल रहा है। इन कारणों से नवयुवकों में रुचि – विकृति पैदा हो रही है। हमारे देश की दलगत राजनीति ने भी नवयुवकों को गुमराह किया है। हर दल अपने स्वार्थ की पूर्ति में युवा समाज का अनुचित दोहन कर रहा है। छात्र समाज भी अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रति निष्ठा के कारण विभक्त हैं। इन कारणों से पहले की तुलना में अनुशासनहीनता बढ़ी है।
उपसंहार – विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता देश के भविष्य के लिए गंभीर खतरा है। इससे सामाजिक शांति भंग होगी और अपराधमूलक घटनाओं में वृद्धि होगी। दिशाहीन युवा समाज अराजकता पर उतर आएगा। अतः उन्हें अनुशासित करने के लिए गंभीर कदम उठाने होंगे। बहुमुखी प्रयास होने पर ही विद्यार्थियों में अनुशासन बना रहेगा। स्वयं विद्यार्थियों को भी अनुशासन की आवश्यकता समझते हुए आवश्यक कदम उठाने होंगे। जिस पीढ़ी पर देश के भविष्य का दारोमदार है उसे स्वस्थ एवं संयत बनाना ही होगा।
4. समय का महत्व,
अथवा, समय अमूल्य धन है
अथवा, समय का सदुपयोग
अथवा, का वर्षा जब कृषि सुखाने
अथवा, फिर पछताय होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत ।
समय का महत्व, समय का सदुपयोग आवश्यक समय की अगवानी आवश्यक, उचित समय पर उचित कार्य ।
समय का महत्व — फ्रैंकलिन का कथन है – तुम्हे अपने जीवन से प्रेम है, तो समय को व्यर्थ मत गँवाओं क्योंकि जीवन इसी से बना है। समय ही तो जीवन है। ईश्वर एक बार एक ही क्षण देता है और दूसरा क्षण देने से पहले उसको छीन लेता है। समय ही एक ऐसी वस्तु है जिसे खोकर पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। समय का कोई मोल नहीं हो सकता। श्रीमन्नारायण ने लिखा है- समय धन से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। हम रुपया-पैसा तो कमाते ही हैं और जितना अधिक परिश्रम करें उतना ही अधिक धन कमा सकते हैं। परंतु क्या हजार परिश्रम करने पर भी चौबीस घंटों में एक भी मिनट बढ़ा सकते हैं? इतनी मूल्यवान वस्तु का से फिर क्या मुकाबला ! इससे समय की महत्ता पर स्पष्ट प्रकाश पड़ता है।
समय का सदुपयोग आवश्यक – समय के सदुपयोग का अर्थ है – उचित कार्य पूरा कर लेना। जो लोग आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर टालते हैं, वे एक प्रकार से अपने लिए जंजाल खड़ा करते चले जाते हैं। मरण को टालते-टालते एक दिन सचमुच मरण आ ही जाता है। जो व्यक्ति उपयुक्त समय पर कार्य नहीं करता, वह समय को नष्ट करता हैं। एक दिन ऐसा आता है, जबकि समय उसको नष्ट कर देता है। जो छात्र पढ़ने के समय नहीं पढ़ते, वे परिणाम आने पर रोते हैं।
समय की अगवानी आवश्यक – समय रुकता नहीं है। जो समय के निकल जाने पर उसके पीछे दौड़ते हैं, वे जिंदगी में सदा घिसटते-पिटते रहते हैं। समय सम्मान माँगता है। इसलिए कबीर ने कहा है। उचित समय पर उचित कार्य –
काल करै सो आज कर आज करै सो अब।
पल में प्रलय होयेगा बहुरी करेगा कब ॥
जो व्यक्ति समय का सम्मान करना जानती है, वह अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ा लेती है। यदि सभी गाड़ियों अपने निश्चित समय से चलने लगें तो देश में कितनी कार्यकुशलता बढ़ जायगी। यदि कार्यालय के कार्य ठीक समय पर संपन्न हो जाय, कर्मचारी समय के पाबंद हों तो सब कार्य सुविधा से हो सकेंगे। यदि रोगी को ठीक समय पर दवाई न न मिले तो उसकी मौत भी हो सकती है। अतः हमें समय की गंभीरता को समझना चाहिए। गाँधी जी एक मिनट देरी से आने वाले व्यक्ति को क्षमा नहीं करते थे। आप ही सोचिए, सृष्टि का यह चक्र कितना नियमित है, कितना समय का पाबंद है? यदि एक भी दिन धरती अपनी धुरी पर घूर्णन में देरी कर जाए तो परिणाम क्या होगा? विनाश और महाविनाश । अतः हमें समय की महत्ता को समझना चाहिए।
5. विज्ञान का चमत्कार
अथवा, विज्ञान वरदान या अभिशाप
वरदान रूप में, अभिशाप के रूप में, निष्कर्ष ।
विज्ञान वरदान के रूप में विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं, बहरों को सुनने की ताकत । लाईलाज रोगों की रोकथाम की है तथा अकाल मृत्यु पर विजय पाई है। विज्ञान की सहायता से यह युग बटन-युग बन गया है। बटन दबाते ही वायु-देवता हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र-देवता वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कहीं शीत-उष्ण वायु झोंके सुख पहुँचाने लगते हैं। बस, गाड़ी, वायुयान आदि ने स्थान की दूरी को बाँध दिया है। टेलीफोन द्वारा तो हम सारी वसुधा से बातचीत करके उसे वास्तव में कुटुंब बना लेते हैं। हमने समुद्र की गहराईयों भी
नाप डाली हैं और आकाश की ऊँचाईयों भी। हमारे टी.वी., रेडियो, वीडियो में मनोरजंन के सभी साधन कैद हैं। सचमुच विज्ञान वरदान ही तो है।
विज्ञान ‘अभिशाप’ के रूप में मनुष्य ने जहाँ विज्ञान से सुख के साधन जुटाए हैं, वहाँ दुख के अंबार भी खड़े कर लिए हैं। विज्ञान के द्वारा हमने अणु बम, परमाणु बम तथा अन्य ध्वंसकारी शस्त्र अस्त्रों का निर्माण कर लिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री इकट्ठी हो चुकी है कि उससे सारी पृथ्वी को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्या बहुत बुरी तरह फैल गई है। नित्य नए असाध्य रोग पैदा होते जा जो वैज्ञानिक साधनों के अंधाधुंध प्रयोग करने के दुष्परिणाम हैं।
प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव-मन पर हुआ है। पहले जो मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था, मस्त और बेपरवाह था, वह अब छली, स्यार्थी, चालाक, भौतिकतावादी तथा तनावग्रस्त हो गया है। उसके जीवन से संगीत गायब हो गया है, धन की प्यास जाग गई है। नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं। है
निष्कर्ष – वास्तव में विज्ञान को वरदान या अभिशाप बनाने वाला मनुष्य है। जैसे अग्नि से हम रसोई भी बना सकते हैं और किसी का घर भी जला सकते हैं, जैसे चाकू से हम फलों का स्वाद भी ले सकते हैं और किसी की हत्या भी कर सकते हैं, उसी प्रकार विज्ञान से हम सुख के साधन भी जुटा सकते हैं और मानव का विनाश भी कर सकते हैं। अतः विज्ञान को वरदान या अभिशाप बनाना मानव के हाथ में है। इस संदर्भ में एक उक्ति याद रखनी चाहिए
‘विज्ञान अच्छा सेवक है लेकिन बुरा हथियार ।’
6. मेरे जीवन का लक्ष्य
भूमिका, मेरा लक्ष्य, लक्ष्य क्यों, तैयारी।
भूमिका – प्रत्येक मानव का कोई-न-कोई लक्ष्य होना चाहिए। बिना लक्ष्य के मानव उस नौका के समान है जिसका कोई खेवनहार नहीं है। ऐसी नौका कभी भी भँवर में डूब सकती है और कहीं भी चट्टान से टकराकर चकनाचूर हो सकती है। लक्ष्य बनाने से जीवन में रस आ जाता है।
मेरा लक्ष्य – मैंने यह तय किया है कि मैं पत्रकार बनूँगा। आजकल सबसे प्रभावशाली स्थान है— प्रचार माध्यमों का | समाचार पत्र, रेडियों, दूरदर्शन आदि चाहें तो देश में आमूल-चूल बदलाव ला सकते हैं। मैं भी ऐसे महत्त्वपूर्ण स्थान पर पहुँचना चाहता हूँ जहाँ से मैं देशहित के लिए बहुत कुछ कर सकूँ। पत्रकार बनकर मैं देश को तोड़ने वाली ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करूँगा, समाज को खोखला बनाने वाली कुरीतियों के खिलाफ जंग छेडूंगा और भ्रष्टाचार का भण्डाफोड़ करूँगा।
लक्ष्य क्यों – मेरे पड़ोस में एक पत्रकार रहते हैं— श्री प्रभात मिश्र। वे इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता तथा भ्रष्टाचार विरोधी विभाग के प्रमुख पत्रकार हैं । उन्होंने पिछले वर्ष गैस एजेन्सी की धाँधली को अपने लेखों द्वारा बंद कराया था । उन्हीं के लेखों के कारण हमारे शहर में कई दीन दुखी लोगों को न्याय मिला है। उन्होंने बहू को जिन्दा जलाने वाले दोषियों को जेल में भिजवाया, नकली दवाई बेचने वाले का लाइसेंस रद्द करवाया, प्राइवेट बस वालों की मनमानी को रोका तथा बस सुविधा को सुचारु बनाने में योगदान दिया। इन मैं उनका बहुत आदर करता हूँ। मेरा भी दिल करता है कि मैं उनकी तरह श्रेष्ठ पत्रकार बनूँ और नित्य बढ़ती समस्याओं पता है कि पत्रकार बनने में खतरे हैं तथा पैसा भी बहुत नहीं है। परन्तु मैं पैसा के लिए या धन्धे के लिए पत्रकार नहीं बनूँगा। मेरे जीवन का लक्ष्य होगासमाज की कुरीतियों और भ्रष्टाचार को समाप्त करना । यदि मैं थोड़ी-सी बुराइयों को भी हटा सका तो मुझे बहुत संतोष मिलेगा। मैं हर दुखी को देखकर दुखी होता हूँ, हर बुराई को देखकर उसे मिटा देना हूँ। मैं स्वस्थ समाज देखना चाहता हूँ। इसके लिए पत्रकार बनकर हर दुख-दर्द को मिटा देना मैं अपना धर्म समझता हूँ।
तैयारी – केवल सोचने भर से लक्ष्य नहीं मिलता है। मैंने इस लक्ष्य को पाने के लिए कुछ तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। मैं दैनिक समाचार पत्र पढ़ता रेडियो-दूरदर्शन के समाचार तथा अन्य सामाजिक विषयों को ध्यान से सुनता हूँ। मैंने हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा का गहरा अध्ययन करने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं ताकि लेख लिख सकूँ। यह दिन दूर नहीं, जब मैं पत्रकार बनकर समाज की सेवा करने का सौभाग्य पा सकूँगा।
7. समाचार पत्र का महत्त्व
भूमिका, लोकतंत्र का प्रहरी प्रचार का सशक्त माध्यम, उपसंहार
भूमिका- समाचार पत्र वह कड़ी है, जो हमें दुनिया से जोड़ती है। जब हम समाचार पत्र में देश-विदेश की खबरें पढ़ते हैं, तो हम पूरे विश्व के अंग बन जाते हैं। उससे हमारे हृदय का विस्तार होता है।
लोकतंत्र के प्रहरी – समाचार पत्र लोकतंत्र का सच्चा पहरेदार है। उसी के माध्यम से लोग अपनी इच्छा, विरोध और आलोचना प्रकट करते हैं। यही कारण है। कि राजनीतिज्ञ समाचार पत्रों से बहुत डरते हैं। नेपोलियन ने कहा – ‘मैं लाखों विरोधियों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार पत्रों से अधिक भयभीत रहता हूँ।’ समाचार-पत्र जनमत तैयार करते हैं। उनमें युग का बहाव बदलने की ताकत होती है। राजनेताओं को अपने अच्छे-बुरे कार्यों का पता इन्हीं से चलता है।
प्रचार का सशक्त माध्यम – समाचार पत्र व्यापार को बढ़ाने में परम सहायक सिद्ध हुए हैं। विज्ञापन की सहायता से व्यापारियों का माल देश में ही नहीं विदेशों में भी बिकने लगता है। रोजगार पाने के लिए भी अखबार उत्तम साधन है। हर बेरोजगार का सहारा अखबार में निकले नौकरी के विज्ञापन होते हैं। इसके अतिरिक्त सरकारी या गैर-सरकारी फर्मे अपने लिए कर्मचारी ढूँढ़ने के लिए अखबारों का सहारा लेती हैं। व्यापारी नित्य के भाव देखने के लिए तथा शेयरों का मूल्य जानने के लिए अखबार का मुँह जोहते हैं।
जे० पार्टन का कहना है – समाचार पत्र जनता के लिए विश्वविद्यालय हैं। उनसे हमें केवल देश-विदेश की गतिविधियों की जानकारी ही नहीं मिलती, अपितु महान विचारकों के विचार पढ़ने को मिलते हैं। उनसे विभिन्न त्योहारों और महापुरुषों का महत्व का पता चलता है। महिलाओं को घर-गृहस्थी सम्हालने के नये-नये नुस्खे पता चलते हैं। प्रायः अखबार में ऐसे कई स्थाई स्तंभ होते हैं, जो हमें विभिन्न जानकारियाँ मिलती हैं।
आजकल अखबार मनोरंजन के क्षेत्र में भी आगे बढ़ चले हैं। उसमें नयी-नयी कहानियाँ, किस्से, खेलकूद, दूरदर्शन, भविष्य कथन, मौसम आदि की अनेक जानकारियाँ देती हैं।
उपसंहार – समाचार पत्र के माध्यम से आप मनचाहे वर-वधू ढूँढ सकते हैं। अपना मकान, गाड़ी, वाहन खरीद बेच सकते हैं। खोये गए बंधु को बुला सकते हैं। अपना परीक्षा परिणाम जान सकते हैं। इस प्रकार समाचार पत्रों का महत्व बहुत अधिक हो गया है।
8. कम्प्यूटर विज्ञान का अद्भुत वरदान
भूमिका, कम्प्यूटर के उपकरण, कम्प्यूटर का कार्य, उपसंहार
भूमिका – वर्तमान युग कम्प्यूटर युग है। यदि भारतवर्ष पर नजर दौड़ाकर देखें तो हम पाएँगे कि आज जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रवेश हो गया है। बैंक, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, डाकखाने, बड़े-बड़े उद्योग, कारखाने, व्यवसाय, हिसाब-किताब, रुपए गिनने की मशीनें तक कम्प्यूटरीकृत हो गई हैं। अब भी यह कम्प्यूटर का प्रारंभिक प्रयोग है। आने वाला समय इसके विस्तृत फैलाव का संकेत दे रहा है।
कम्प्यूटर के उपकरण – इस ‘पागल गति’ को सुव्यवस्था देने की समस्या आज की प्रमुख समस्या है। कहते हैं, आवश्यकता आविष्कार की जननी है। इस आवश्यकता ने अपनी अव्यवस्था को व्यवस्था में बदल सकता है। हड़बड़ी में होने वाली मानवीय भूलों के लिए कम्प्यूटर रामबाण औषधि है। क्रिकेट के मैदान में अम्पायर की निर्णायक भूमिका हो, या लाखों-करोड़ों-अरबों की लम्बी-लम्बी गणनाएँ, कम्प्यूटर पलक झपकते ही आपकी समस्या हल कर सकता है। पहले इन कामों के करने वाले कर्मचारी हड़बडाकर काम करते थे; एक भूल से घबडाकर और अधिक गड़बड़ी करते थे। परिणामस्वरूप काम कम, तनाव अधिक होता था। अब कम्प्यूटर की सहायता से काफी सुविधा हो गई है।
कम्प्यूटर का कार्य – कम्प्यूटर ने फाइलों की आवश्यकता कम कर दी है। कार्यालय की सारी गतिविधियाँ फ्लॉपी में बंद हो जाती है। इसलिए फाइलों के स्टोरों की जरूरत अब नहीं रही। अब समाचार पत्र भी इन्टरनेट के माध्यम से पढ़ने की व्यवस्था हो गई है। विश्व के किसी कोने में छपी पुस्तक, फिल्म, घटना की जानकारी इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। एक समय था, जब कहते थे कि विज्ञान ने संसार को कुटुम्ब बना दिया है। कम्प्यूटर ने तो मानो उस कुटुम्ब को अपने कमरे में उपलब्ध करा दिया है। संभव है, कम्प्यूटर की सहायता से आप मनचाहे सवाल का जवाब
दूरदर्शन या इंटरनेट से ले पाएँ । शारीरिक रूप से न सही, काल्पनिक रूप से जिस जिस प्रदेश का आनंद उठाना चाहें, उठा सकें।
आज टेलीफोन, रेल, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि उपकरणों के बिना नागरिक जीवन जीना कठिन हो गया है। इन सबके निर्माण या क्रियान्वयन में कम्प्यूटर का योगदान महत्त्वपूर्ण है। रक्षा उपकरणों, हजारों मील की दूरी पर सटीक निशाना बाँधने, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तुओं को खोजने में कम्प्यूटर का अपना महत्त्व है।
उपसंहार- आज कम्प्यूटर ने मानव जीवन को सुविधा, सरलता, सुव्यवस्था और सटीकता प्रदान की है। अतः इसका महत्त्व बहुत अधिक है।
9. वेरोजगारी की समस्या
भूमिका, अर्थ, कारण, दुष्परिणाम, समाधान
भूमिका – आज भारत के सामने अनेक समस्या चट्टान बनकर प्रगति का रास्ता रोके खड़ी हैं। उनमें से एक प्रमुख समस्या है – बेरोजगारी । महात्मा गाँधी ने इसे समस्याओं की समस्या कहा था।
वेरोजगारी का अर्थ – बेरोजगारी का अर्थ है – योग्यता के अनुसार काम का न होना। भारत में मुख्यतयाः तीन प्रकार के बेरोजगार हैं। एक वे, जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। वे पूरी तरह खाली बैठे रहते है। दूसरे जिनके पास कुछ समय काम होता है, परन्तु मौसम या काम का समय समाप्त होते ही वे बेकार हो जाते हैं। ये आंशिक बेरोजगार कहलाते हैं। तीसरे वे, जिन्हें योग्यता के अनुसार काम नहीं मिला। जैसे कोई एम०ए० करके रिक्शा चला रहा है या बी०ए० करके पकौड़े बेच रहा है ।
कारण – बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है — जनंसख्या – विस्फोट । इस देश में रोजगार देने की जितनी योजनाएँ बनती हैं, वे सब अत्यधिक जनसंख्या बढ़ने के कारण बेकार हो जाती हैं। एक अनार सौ बीमार वाली कहावत यहाँ पूरी तरह चरितार्थ होती है। बेरोजगारी का दूसरा कारण है – युवकों में बाबूगिरी की होड़ । नवयुवक हाथ का काम करने में अपना अपमान समझते हैं। विशेषकर पढ़े-लिखे युवक दफ्तरी जिंदगी पसंद करते हैं। इस कारण वे रोजगार हेतु कार्यालय की धूल फाँकते रहते हैं। बेकारी का तीसरा बड़ा कारण है – दूषित शिक्षा प्रणाली । हमारी शिक्षा प्रणाली नित नए बेरोजगार पैदा करती जा रही है। व्यावसायिक प्रशिक्षण का हमारी शिक्षा में अभाव है। चौथा कारण है— गलत योजनाएँ। सरकार को चाहिए कि वह लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे। मशीनीकरण को उस सीमा तक बढ़ाया जाना चाहिए जिससे कि रोजगार के अवसर कम न हों। इसीलिए गाँधीजी ने मशीनों का विरोध किया था, क्योंकि एक मशीन कई कारीगरों के हाथों को बेकार बना डालती है। सोचिए, अगर साबुन बनाने का लाइसेंस बड़े उद्योगों को न दिया जाए तो उससे हजारों-लाखों युवक यह धंधा अपनाकर अपनी आजीविका पा सकते हैं। – दुष्परिणाम अतीव भयंकर हैं। खाली दिमाग
दुष्परिणाम – बेरोजगारी के शैतान का घर । बेरोजगार युवक कुछ भी गलत-शलत करने पर उतारू हो जाता है। वही शांति को भंग करने में सबसे आगे होता है। शिक्षा का माहौल भी वही बिगाड़ते हैं जिन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लगता है।
समाधान – बेकारी का समाधान तभी हो सकता है, जब जनसंख्या पर रोक लगाई जाय। युवक हाथ का काम करें। सरकार लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे । शिक्षा व्यवसाय से जुड़े तथा रोजगार के अधिकाधिक अवसर प्राप्त हो । –
10. भारतीय किसान
सरल जीवन परिश्रमी, अभाव, दुरवस्था के कारण, निष्कर्ष
गाँधीजी ने कहा था— भारत का हृदय गाँवों में बसता है। गाँवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। ये किसान ही नगरवासियों के अन्नदाता हैं, सृष्टि-पालक हैं।
सरल जीवन – भारत के किसान का जीवन बड़ा सहज तथा सरल होता है। उसमें किसी प्रकार की कृत्रिमता नहीं होती। वह अपने जीवन की आवश्यकताओं को सीमित रखता है। रूखा-सूखा भोजन करके भी वह स्वर्गीय सुख का अनुभव करता है। माँ प्रकृति की गोद में उसे बड़ा संतोष मिलता है। प्रकृति से निकट का संबंध होने के कारण भारतीय किसान हृष्ट-पुष्ट तथा स्वस्थ रहता है। वह स्नेहशील, दयालु तथा दूसरों के सुख-दुःख में हाथ बँटाता है। वह सात्विक जीवन जीता है।
परिश्रमी – भारत का किसान बड़ा परिश्रमी है। वह गर्मी-सर्दी तथा वर्षा की परवाह किए बिना अपने कार्य में जुटा रहता है। जेठ की दोपहरी, वर्षा ऋतु की
उमड़ती-घुमड़ती काली मेघ-मालाएँ तथा शीत ऋतु की हाड़ कँपा देने वाली वायु भी उसे अपने कर्तव्य से रोक नहीं पाती। भारतीय किसान का जीवन कड़ा तथा कष्टपूर्ण है।
अभाव – भारतीय कृषक का जीवन अभावमय है। दिन-रात कठोर परिश्रम करने पर भी वह जीवन की आवश्कताएँ नहीं जुटा पाता। न उसे – भर भोजन मिलता है और न शरीर ढंकने के लिए पर्याप्त वस्त्र । अभाव और विवशता के बीच ही वह जन्मता है तथा इसी दशा में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। >
दुरवस्था के कारण – निरक्षरता भारतीय कृषक की पतनावस्था का मूल कारण है। शिक्षा के अभाव के कारण वह अनेक कुरीतियों से घिरा है। अंधविश्वास और रूढ़ियाँ उसके जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं। आज भी वह शोषण का शिकार है। वह धरती की छाती को फाड़ कर, हल चला कर अन्न उपजाता है, किंतु उसके परिश्रम का फल व्यापारी लूट ले जाता है। उसकी मेहनत दूसरों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है।
निष्कर्ष – देश की उन्नति किसान के जीवन में सुधार से जुड़ी है। किसान ही इस देश की आत्मा है। अतः उसके उत्थान के लिए हमें हर संभव प्रयत्न करना चाहिए। किसान के महत्व को जानते हुए ही लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था— ‘जय जवान जय किसान’। जवान देश की सीमाओं को सुरक्षित करता है, तो किसान उस सीमा के भीतर बस रहे जन-जन को समृद्धि प्रदान करता है।
11. नारी सशक्तिकरण
भूमिका, भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरुरत है ?, भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँ, उपसंहार
भूमिका – नारी सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है।
भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरुरत है? – महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। महिलाओं के लिये प्राचीन काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में दाल दिया गया था। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियो को पूजने की परंपरा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के विकास की जरुरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जो देश के विकास का आधार बनेंगी ।
भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएँमहिलाओं के रास्ते में आने वाली इसी तरह की कई सारी बाधाओं के विषय में नीचे समझाया गया है।
(1) सामाजिक मापदंड- पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है। इस तरह के वातावरण में रहने के कारण महिलाएं खुद को पुरुषों से कमतर समझने लगती है और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती है।
(2) कार्यक्षेत्र में शारीरिक शोषण – कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादे प्रभावित होते है। यह समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए और भी समस्याएँ उत्पन्न करता है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़ने में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।
(3) लैंगिग भेदभाव – भारत में अभी भी कार्यस्थलों महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैलसे लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कमतर ही माना जाता है।
उपसंहार – भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये ।
12. परोपकार
परोपकार का अर्थ, परोपकार से लाभ, परोपकार की शर्ते, निष्कर्ष
परोपकार अथवा परहित सरिस धरम नहिं भाई।
परोपकार की महत्ता बताते हुए कबीर ने कहा है
वृक्ष कबहुँ नहिं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने साधु न धरा सरीर ।।
परोपकार का अर्थ – परोपकार अर्थात् दूसरों की निःस्वार्थ भलाई करना । इससे बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं होता। पुराणों में महाभारतकार महाकवि व्यास ने दो ही मुख्य बातें कही है- परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप | सचमुच दूसरों की निःस्वार्थ भलाई से बढ़कर मनुष्य जीवन की कोई और सार्थकता नहीं है। केवल अपने लिए तो नालियों के कीड़े मकोड़े भी जी लेते हैं किंतु मनुष्य तो वह है जो सभी जीवों के लिए जीता और मरता है। परोपकार मानव जीवन का धर्म है। परोपकार को नैतिक गुण कहा गया है। इसमें छल-कपट और स्वार्थ- साधना की लिप्सा नहीं रहती।
परोपकार से लाभ – परोपकार मनुष्य में उच्च भावनाओं का विकास करता है। इससे मनुष्य का मानसिक उत्थान होता है। परोपकारी तुच्छ स्वार्थ एवं छल-प्रपंच से ऊपर उठकर ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के आदर्श को अपने जीवन में अपनाता है तथा लोगों का प्रिय पात्र बनता है। मानव जीवन की सार्थकता परोपकार में ही है। यही मनुष्य में ईश्वरीय गुणों का विकास करता है और समाज में ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ की भावना का प्रसार करता है, तुलसी ने भी कहा है “परहित सरिस धरमु नहिं भाई”।
परोपकार की शर्तें – परोपकार करने के पहले आवश्यक है कि परोपकारी का जीवन प्रेम से भरा हुआ हो। जो स्वयं समृद्ध होगा, वही कुछ दे सकेगा। दूसरे, जिसका हमें उपकार करना है, उसके प्रति आत्मीयता होनी चाहिए। पराया मानकर किया गया उपकार दंभ को जन्म देता है।
निष्कर्ष- – अगर सही अर्थों में मनुष्य बनना है, क्षुद्र स्वार्थों का परित्याग कर मानवीय गुणों से अपने को पूर्ण करना है तो व्यक्ति को परोपकार की भावना अवश्य ही अपनानी होगी।
13. राष्ट्रीय एकता
अर्थ और महत्त्व, भारत में विभिन्नता, अनेकता में एकता, राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्व, परस्पर संघर्ष के दुष्परिणाम, समाधान।
अर्थ और महत्त्व – राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य है – राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न विचारों और भिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना । ‘एकता’ शब्द ‘अविरोध’ को प्रकट करता है। अर्थात् देश में भिन्नताएँ हों, फिर भी सभी नागरिक राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत हों। देश के नागरिक पहले ‘भारतीय’ हों, फिर हिंदू या मुसलमान । राष्ट्रीय एकता का भाव देश रूपी भवन में सीमेंट का काम करता है। जैसे भवन में ईंट, लोहा, बजरी आदि भिन्न-भिन्न पदार्थ होते हैं, और सीमेंट उन्हें जोड़े रहता है। उसी प्रकार राष्ट्रीय एकता का भाव समूचे राष्ट्र को शक्तिशाली, शांत और समृद्ध बनाता है।
भारत में विभिन्नता- भारत अनेकताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्मों, जातियों, वर्गों, संप्रदायों और भाषाओं के लोग निवास करते हैं। यहाँ के लोगों का
रहन-सहन, खान-पान और पहनावा भी भिन्न है। भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ भी कम नहीं हैं।
अनेकता में एकता – भारत में विभिन्नता होते हुए भी एकता या अविरोध विद्यमान है। यहाँ सभी जातियाँ घुल-मिलकर रहती रही हैं। यहाँ प्रायः लोग एक-दूसरे के धर्म का आदर करते हैं। आदर न भी करें तो दूसरे के प्रति सहनशील हैं। भारत की यह दृढ़ मान्यता है कि ‘एकं सत्यं विप्राः बहुधा वदन्ति ।’ अर्थात् सत्य एक है। उस तक पहुँचने के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। गीता में उसी दृष्टि को श्रेष्ठ कहा गया है जो अनेकता में से एकता को पहचानती है।
राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्व – भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए अनेक खतरे हैं। सबसे बड़ा खतरा है – कुटिल राजनीति । यहाँ के राजनेता ‘वोट बैंक बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीज बोते हैं, कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्य धारा से अलग करते हैं। कभी किसी विशेष जाति, प्रांत या भाषा के हिमायती बनकर देश को तोड़ते हैं। जम्मू काश्मीर का विशेष दर्जा हो, खालिस्तान की माँग हो, आसाम या गोरखालैंड की पृथकता का आंदोलन हो, सबसे ऊपर वोट के प्रेत मँडराते नजर आते हैं। इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर रखना चाहते हैं। राष्ट्रीय एकता में अन्य बाधक तत्त्व हैं- विभिन्न धार्मिक नेता, जातिगत असमानता, आर्थिक असमानता आदि।
परस्पर संघर्ष के दुष्परिणाम – जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय घटक संघर्ष करते हैं तो उसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है। मामला आरक्षण का हो या अयोध्या के राम मंदिर का, उसकी गूंज पूरे देश के जनजीवन को कुप्रभावित करती है। इतिहास प्रमाण है। आरक्षण के नाम पर देशभर में युवक जले, सड़कें रुकीं, संपत्तियाँ नष्ट हुईं। अयोध्या का प्रकरण देश की सीमाओं को पार करके विदेशों में रह रहे लोगों को भी कँपा गया।
समाधान – प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय एकता को बल कैसे मिले ? संघर्ष का शमन कैसे हो? इसका एकमात्र उत्तर यही है कि –
शांति नहीं तब तक जब तक
सुख-भाग न सबका सम हो ।
नहीं किसी को बहुत अधिक हो
नहीं किसी को कम हो । (कुरुक्षेत्र से)
अर्थात् देश में सभी असमानता लाने वाले कानूनों को समाप्त किया जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू कानून आदि अलगाववादी कानूनों को तिलांजलि दी जाए। उसकी जगह एक राष्ट्रीय कानून लागू किया जाए। सब नागरिकों को एक समान अधिकार प्राप्त हों। किसी को किसी नाम पर भी विशेष सुविधा या विशेष दर्जा न दिया जाय। भारत में तुष्टिकरण की नीति बंद हो ।
राष्ट्रीय एकता को बनाने का दूसरा उपाय यह है कि हृदयों में परस्पर आदर का भाव जगाया जाए। यह काम साहित्यकार, कलाकार, विचारक और पत्रकार कर सकते हैं। वे अपनी लेखनी और कला से देशवासियों को एकता का मंत्र पढ़ा सकते हैं।
14. सरहुल
भूमिका, सरहुल मनाने कि क्रिया, उपसंहार
भूमिका – सरहुल उराँव नामक आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्योहार कृषि आरंभ करने का त्योहार है। इस त्योहार को ‘सरना’ के सम्मान में मनाया जाता है। सरना वह पवित्र कुंज है, जिसमें कुछ शालवृक्ष होते हैं। यह पूजन-स्थान का कार्य करता है। निश्चित दिन गाँव का पुरोहित, जिसे पाहन कहते हैं, सरना- पूजन करता है। इस अवसर पर मुर्गे की बलि दी जाती है तथा हँड़िया (चावल से बनाया गया मद्य) का अर्घ्य दिया जाता है।
त्योहार की क्रिया— त्योहार के दौरान फूलों के फूल सरना पर लाए जाते हैं और पुजारी जनजातियों के सभी देवताओं का प्रायश्चित करता है। एक सरना वृक्ष का एक समूह है जहां आदिवासियों को विभिन्न अवसरों में पूजा होती है। कई अन्य लोगों के बीच इस तरह के एक ग्रोथ को कम से कम पाँच सा वृक्षों को भी शोरज के रूप में जाना जाना चाहिए, जिन्हें बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह गाँव के देवता की पूजा
है जिसे जनजाति के संरक्षक माना जाता है। नए फूल तब दिखाई देते हैं जब लोग गाते और नृत्य करते हैं। देवताओं की साला फूलों के साथ पूजा की जाती है।
पेड़ों की पूजा करने के बाद, गाँव के पुजारी को स्थानीय रूप से जाने-पहल के रूप में जाना जाता है एक मुर्गी के सिर पर कुछ चावल अनाज डालता है स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि मृगी भूमि पर गिरने के बाद चावल के अनाज खाते हैं, तो लोगों के लिए समृद्धि की भविष्यवाणी की जाती है, लेकिन अगर मुर्गी नहीं खाती, तो आपदा समुदाय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसके अलावा, आने वाले मौसम में पानी में टहनियाँ की एक जोड़ी देखते हुए वर्षा की भविष्यवाणी की जाती है। ये उम्र पुरानी परंपराएँ हैं, जो पीढ़ियों से अनमोल समय से नीचे आ रही हैं।
सभी झारखंड में जनजाति इस उत्सव को महान उत्साह और आनन्द के साथ मनाते हैं। जनजातीय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रंगीन और जातीय परिधानों में तैयार करना और पारंपरिक नृत्य करना। वे स्थानीय रूप से बनाये गये चावल- बीयर, हांडिया नाम से पीते हैं, चावल, पानी और कुछ पेड़ के पत्तों के कन्सेक्शन से पीसते हैं और फिर पेड़ के चारों ओर नृत्य करते हैं। हालाँकि एक आदिवासी त्योहार होने के बावजूद, सरहुल भारतीय समाज के किसी विशेष भाग के लिए प्रतिबंधित नहीं है ।
उपसंहार – इस प्रकार के सरल नादात्मक शब्दों से निःसृत गीतों में उल्लास सरल, निष्कपट, आनन्दमूर्ति आनन्द – विहल त्योहार है। जैसे की रस-भीनी बयार इठलाती रहती है। जितने मनुष्य हैं, वैसा ही इनका सरल, निश्छल तथा हिन्दुओं की होली है, मुसलमानों की ईद है, ईसाइयों का क्रिसमस है, वैसे ही उराँव लोगों का सरहुल है। सरहुल सामूहिक उत्सव का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहाँ हर कोई प्रतिभागी है।
15. नारी शिक्षा
भूमिका, विविध मत, भारत में नारी शिक्षा का महत्व, इतिहास, वर्तमान में नारी शिक्षा, उपसंहार
भूमिका – प्राचीन भारत के इतिहास पर अवलोकन करने से हमें ज्ञात होता है कि यहाँ नारी को आदरपूर्ण स्थान दिया जाता है। हमारे पूर्वजों का कथन था – “यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवताः”
विविध मत – समय बदलने के साथ लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। सभ्यता और संस्कृति के विकास के लिए नर-नारी का समान महत्त्व है। इस बात को आज सारी दुनिया मान रही है। नारी ने अपनी प्रतिभा और क्षमता को पुरुषों के बराबर सिद्ध कर दिखाया है। नारी शिक्षा आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत बन गई।
भारत में नारी शिक्षा का महत्व – -नारी शिक्षा के विषय में उनकी सोच इसी प्रकार से प्रभावित होती हैं। पहले पुरुष नारी शिक्षा का प्रबल विरोध करते थे लेकिन अब दबे-छिपे ढंग से नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। जबकि दूसरी ओर समानता की बात करने वाले लोग नारी शिक्षा के महत्त्व और आवश्यकता की जमकर वकालत करते हैं। वैदिक काल में नारी सम्मान की भावना प्रबल थी। गार्गी, मैत्रेयी, अरुंधती आदि महान नारियों का समाज में सम्मानजनक स्थान था।
इतिहास – अंग्रेजों के आने के साथ भारत का शेष दुनिया से सीधा सम्पर्क हुआ। उस समय के महान सुधारक जैसे ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द आदि ने इस ओर महत्त्वपूर्ण कार्य किया। स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े महान नेताओं ने भी इस ओर ध्यान दिया, आज की परिस्थिति में सरकार और समाज दोनों नारी शिक्षा के महत्त्व को समझ रहे हैं। इसी शिक्षा के बल पर अंतरिक्ष विज्ञान तक में नारी ने अपना योगदान दिया है। जीवन के हर क्षेत्र में वह अपनी योग्यता प्रदर्शित कर रही है।
वर्तमान में नारी शिक्षा – नारी समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई, परिवार की निर्माता है। उसके शिक्षित होने पर परिवार संस्कारवान और सुसंस्कृत होता है। यह प्रभाव राष्ट्र के चरित्र पर पड़ता है। शिक्षित नारी में विभिन्न सामाजिक बुराइयों से लड़ने का विश्वास और ताकत होती है। वह राष्ट्र और समाज को उन्नति के पथ पर आगे ले जाती है।
उपसंहार – स्पष्ट है कि नारी शिक्षा के महत्व और आवश्यकता को हम झुठला नहीं सकते हैं। अगर हम वास्तविक विकास करना चाहते हैं तो इस ओर मजबूती के साथ कदम बढ़ाना होगा।
16. प्रदूषण – कारण और निवारण
भूमिका, प्रदूषण का अर्थ, प्रदूषण के प्रकार, कारण, दुष्परिणाम, प्रदूषण रोकने उपाय।
भूमिका – विज्ञान के इस युग में मानव को जहाँ कुछ वरदान मिले हैं, वहाँ कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण भी एक ऐसा अभिशाप है जो विज्ञान की कोख से जन्मा है और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर है। प्रदूषण का अर्थ – प्रदूषण का अर्थ है प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलना, न शांत वातावरण मिलना। प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं।
प्रमुख प्रदूषण हैं — वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण
प्रदूषण के प्रकार – वायु प्रदूषण – महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला हुआ है। वहाँ चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआँ, मोटर वाहनों का काला धुआँ इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में साँस लेना दूभर हो गया है। मुबंई की महिलाएँ धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती हैं तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती हैं। ये कण साँस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं। यह समस्या वहाँ अधिक होती है जहाँ सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।
जल प्रदूषण – कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नदी-नालों में घुल-मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं।
ध्वनि प्रदूषण – मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परंतु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउडस्पीकरों की कर्णभेदी ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया हैं।
प्रदूषण के कारण – प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिकाधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।
दुष्परिणाम – उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लंबी साँस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियाँ फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुँचकर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा होती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।
प्रदूषण रोकने के उपाय – विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से बचने के लिए हमें अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाना चाहिए ताकि हरियाली अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखाने को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचने चाहिए।
17. खेलकूद का महत्त्व
भूमिका, खेलों के विविध रूप, जीवन में खेलकूद का महत्त्व, उपसंहार ।
भूमिका – स्वामी विवेकानंद के अनुसार, ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।’ शारीरिक और मानसिक बल में सुंदर और उपयुक्त संतुलन बनाए रखने का एकमात्र साधन है— ‘खेल’। खेल हमारे जीवन के सर्वांगीण विकास के साधन हैं। खेल मनुष्य के शारीरिक विकास के तो सर्वस्वीकृत तथा सर्वमान्य साधन हैं; साथ ही खेल के मैदान में हम अनुशासन, संगठन, आज्ञा-पालन, साहस, आत्मविश्वास तथा एकाग्रचित्तता जैसे गुणों को भी प्राप्त करते हैं। जो व्यक्ति अपने में इन गुणों का विकास कर लेता है वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त कर लेता है। अच्छे स्वास्थ्य के अनेक साधन हैं, जैसे— व्यायाम, खेलकूद, जिम्नास्टिक आदि। व्यायाम तथा जिम्नास्टिक से शरीर स्वस्थ तो अवश्य रहता है परंतु इनसे मनोरंजन नहीं होता। ये दोनों साधन नीरस हैं। इसके विपरीत खेलों से व्यायाम के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है। यही कारण है कि विद्यार्थियों की रुचि व्यायाम की
अपेक्षा खेलकूद में अधिक होती है। वे खेलकूद में भाग लेकर अपना स्वास्थ्य ठीक रखते हैं।
खेलकूद के विविध रूप- खेलकूद और व्यायाम का क्षेत्र बहुत व्यापक हैं तथा इसके अनेकानेक रूप हैं। रस्साकशी, कबड्डी, खो-खो, ऊँची कूद, लम्बी कूद, तैराकी, हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, बैडमिन्टन, टेनिस, स्कैटिंग आदि खेलकूद के विविध रूप हैं। इनसे शरीर में रक्त का तीव्र संचार होता है और अधिक ऑक्सीजन के कारण प्राण शक्ति बढ़ती है, इसलिए ये शरीर को पुष्ट बनाने के लिए कुछ नियमित व्यायाम करते हैं; जैसे- प्रातः काल खुली वायु में घूमना या दौड़ना, रस्सी कूदना, दण्ड और बैठकें लगाना, मुगदर घुमाना अथवा योगासनों द्वारा शरीर-साधना करना ।
खेलकूद का महत्त्व – मानसिक विकास की दृष्टि से खेलकूद बहुत महत्त्वपूर्ण है। खेलकूद से पुष्ट और स्फूर्तिमय शरीर ही मन स्वस्थ बनाता है। खेलकूद हमारे मन को प्रफुल्लित और उत्साहित बनाए रखते हैं। खेलों से नियम पालन का स्वभाव विकसित होता है और मन एकाग्र होता है। शिक्षा प्राप्ति में ये सभी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
खेलकूद चारित्रिक विकास में भी योग देते हैं। खेलकूद में सहिष्णुता, धैर्य और साहस का विकास होता है तथा सामूहिक सद्भाव और भाईचारे की भावना पनपती है। इन चारित्रिक गुणों से एक मनुष्य ही सही अर्थों में शिक्षित और श्रेष्ठ नागरिक बनता है। शिक्षा प्राप्ति के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को भी हम खेल में आने वाले अवरोधों की भाँति हँसते-हँसते पार कर लेते हैं और सफलता की मंजिल तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार जीवन की अनेक घटनाओं को हम खिलाड़ी की भावना से ग्रहण करने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
उपसंहार – आज देश-विदेश में अनेक स्तरों पर खेलों का आयोजन किया जाता है। राष्ट्रीय, एशियाई और ओलंपिक खेलों का नियमित आयोजन होता है। आज भारत के युवाओं को अपनी रुचि के खेलों में भाग लेना चाहिए। इनसे वे स्वास्थ्य प्राप्ति के साथ-साथ अपने देश का नाम भी उज्ज्वल कर सकते हैं। एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले सतपाल तथा पी० टी० उषा आदि का बहुत ही मान-सम्मान हुआ। ओलंपिक में लिएंडर पेस, कर्णम मल्लेश्वरी तथा राज्यवर्द्धन राठौर द्वारा पदक जीतने पर भी देश में खुशी की लहर दौड़ गई। प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि वह अपने जीवन में किसी न किसी खेलकूद में श्रेष्ठता लाने का प्रयास करे।
18. दूरदर्शन का प्रभाव
भूमिका, लाभ, हानियाँ, निष्कर्ष
भूमिका – आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारों में सबसे अधिक आकर्षक यंत्र है — दूरदर्शन | इसके माध्यम से दूर स्थान से प्रसारित ध्वनि चित्र सहित दर्शकों के पास पहुँच जाती है। दूरदर्शन का प्रभाव रेडियो से अधिक स्थायी है। पिछले दो दशकों में दूरदर्शन ने भारत में बहुत लोकप्रियता प्राप्त की है।
लाभ – भारत जैसे विशाल देश में दूरदर्शन की महत्ता असंदिग्ध है। आज हमारे देश के सामने अनेकानेक समस्याएँ मुँह बाएँ खड़ी हैं। दूरदर्शन के माध्यम से उन समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट कर उनके समाधान की दिशा में प्रयत्न किया जा सकता है। ज्ञान-विज्ञान, ज- शिक्षा तथा खेती-बाड़ी संबंधी विषयों के संबंध में जानकारी द्वारा लोगों का ज्ञानवर्धन किया जा सकता है। देश में मद्यपान के कुप्रभावों, परिवार नियोजन की आवश्यकता, भारतीय जीवन में विविधता होते हुए भी एकता इत्यादि विषयों पर विभिन्न कार्यक्रम दिखाकर लोगों को अधिक जागरूक बनाया जा सकता है। इस दिशा में हमारा दूरदर्शन अब रुचि लेने लगा है, यह प्रसन्नता का विषय है।
दूरदर्शन के द्वारा जनसामान्य को शिक्षित बनाया जा सकता है तथा अपेक्षित कार्यक्रमों के द्वारा जहाँ लोगों को मनोरंजन किया जा सकता है, वहाँ उनके दृष्टिकोण को वैज्ञानिक तथा स्वस्थ बनाया जा सकता है।
हानियाँ – दूरदर्शन की हानियाँ जितनी पाश्चात्य देशों में प्रकट होकर सामने आई हैं, उतनी अभी भारत में नहीं आई हैं। वहाँ दूरदर्शन के कारण सामाजिक जीवन जड़ हो गया है। लोग दूरदर्शन के कार्यक्रमों के बारे में तो जानते हैं, परंतु अपने पड़ोसी के बारे में नहीं जानते। वहाँ आत्म-सीमितता और अकेलेपन का दोष बढ़ता जा रहा है।
दूरदर्शन से एक हानि यह भी है कि यह देखने वाले व्यक्ति को पंगु-सा बना देता है। सब कुछ चलचित्रों के माध्यम से उसके पास घर में ही पहुँच जाता है और वह चुपचाप कुर्सी पर बैठा अथवा बिस्तर पर लेटा उसका दर्शक मात्र रह जाता है। घटनाएँ उस तक पहुँच जाती है परंतु स्वयं वह उन्हें देखने का वास्तविक अनुभव प्राप्त नहीं कर सकता। वह देखता है कि किन्हीं दूर देशों में युद्ध में बम वर्षा हो रही है अथवा गोलियाँ चल रही हैं या दो देशों के खिलाड़ी खेल रहे हैं, रन या गोल बन रहे हैं, मैदान में उपस्थित दर्शक तालियाँ बजा रहे हैं, परंतु इस प्रक्रिया को वह मात्र देख सकता है, स्वयं उसमें भागीदार नहीं बन सकता।
निष्कर्ष – दूरदर्शन से आत्म-सीमितता, जड़ता पंगुता, अकेलापन आदि दोष बढ़े हैं। कई देशों में दूरदर्शन के कारण अपराध भी बढ़े हैं। परंतु इसमें दोष दूरदर्शन का नहीं, कार्यक्रम प्रसारण समिति का है। दूरदर्शन तो हमारे हाथ में एक ऐसा सशक्त साधन है, जिसके समुचित उपयोग से हम जीवन को और अधिक सुखद, स्वस्थ और सुंदर बना सकते हैं।
19. वृक्षारोपण
भूमिका, वनों से लाभ, वनों के कटने से कई तरह की खनियाँ, वृक्षारोपण कार्यक्रम, उपसंहार
भूमिका – हमारे देश भारत की संस्कृति एवं सभ्यता वनों में ही पल्लवित तथा विकसित हुई है। यह एक तरह से मानव का जीवन सहचर है। वृक्षारोपण से प्रकृति का संतुलन बना रहता है। वृक्ष अगर ना हो तो सरोवर (नदियाँ) में ना ही जल से भरी रहेंगी और ना ही सरिता ही कल कल ध्वनि से प्रभावित होंगी। वृक्षों की जड़ों से वर्षा ऋतु का जल धरती के अंग में पहुँचता है। यही जल स्रोतों में गमन करके हमें अपर जल राशि प्रदान करता है। वृक्षारोपण मानव समाज का सांस्कृतिक दायित्व भी है क्योंकि वृक्षारोपण हमारे जीवन को सुखी संतुलित बनाए रखता है।
वनों से लाभ – वनों से हमे भवन निर्माण की सामग्री मिलती है। औषधीय, जड़ी बूटियाँ, गोंद, घास तथा जानवरों का चारा भी वनों से ही प्राप्त होता है।
वन तापमान को सामान्य बनाने में सहायक एवं भूमि को बंजर होने से रोकता है। वनों से लकड़ी, कागज, फर्नीचर, दवाईयाँ, सभी के लिए हम वनों पर ही निर्भर हैं। वन हमें दूषित वायु को ग्रहण करके शुद्ध एवं जीवनदायक वायु प्रदान करता है। जितनी वायु और जल जरूरी है उतना ही आवश्यक वृक्ष होते हैं। इसलिए वनों के साथ ही वृक्षारोपण सभी जगह करना जरूरी है और कई तरह के लाभ देने वाले वनों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य ।
वनों के कटने से कई तरह की हानियाँ – आज मानव अपनी भौतिक प्रगति की तरफ आतूर है। वह अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए बेधड़क वृक्षों की कटाई कर रहा है। औद्योगिक प्रतिस्पर्धा और जनसंख्या के चलते वनों का क्षेत्रफल प्रतिदिन घटता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ हेक्टेयर इलाके के वन काटे जाते हैं। अकेले भारत में ही 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वनों को काटा जा रहा है। वृक्ष के कटने से पक्षियों का चहचहाना भी कम होता जा रहा है। पक्षी प्राकृतिक संतुलन स्थिर रखने में प्रमुख कारक है। परंतु वृक्षों की कटाई से तो वो भी अब कम ही दिखने लगे हैं।
वृक्षारोपण कार्यक्रम – हमारे देश भारत में वृक्षारोपण के लिए कई संस्थाएँ, पंचायती राज संस्थाएँ, राज्य वन विभाग, पंजीकृत संस्था, कई समितियाँ ये सब वृक्षारोपण के कार्य कराती हैं। कुछ संस्थाओं तो वृक्ष को गोद लेने की परंपरा कायम कर रही है। शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी वृक्षारोपण को भी स्थान दिया गया है। पेड़ लगाने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
उपसंहार – आज हमारे देशवासी वनों तथा वृक्षों की महत्ता को एक स्वर से स्वीकार कर रहे हैं। वन महोत्सव हमारे राष्ट्र की अनिवार्य आवश्यकता है। देश की समृद्धि में हमारे वृक्ष का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इसलिए इस राष्ट्र के हर नागरिक को अपने लिए और अपने राष्ट्र के लिए वृक्षारोपण करना बहुत जरूरी है।
20. राष्ट्रीय एकता
अर्थ और महत्त्व, भारत में विभिन्नता, अनेकता में एकता, राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्व, परस्पर संघर्ष के दुष्परिणाम, समाधान।
अर्थ और महत्त्व – राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य है- राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न विचारों और भिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे
का बना रहना। ‘एकता’ शब्द ‘अविरोध’ को प्रकट करता है। अर्थात् देश में भिन्नताएँ हों, फिर भी सभी नागरिक राष्ट्र-प्रेम से ओतप्रोत हों। देश के नागरिक पहले भारतीय हों, फिर हिंदू या मुसलमान राष्ट्रीय एकता का भाव देश रूपी भवन में सीमेंट का काम करता है। जैसे भवन में ईंट, लोहा, बजरी आदि भिन्न-भिन्न पदार्थ होते हैं, और सीमेंट उन्हें जोड़े रहता है। उसी प्रकार राष्ट्रीय एकता का भाव समूचे राष्ट्र को शक्तिशाली, शांत और बनाता है।
भारत में विभिन्नता – भारत अनेकताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्मों, जातियों, वर्गों, संप्रदायों और भाषाओं के लोग निवास करते हैं। यहाँ के लोगों का रहन-सहन, खान-पान और पहनावा भी भिन्न है। भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ भी कम नहीं हैं।
अनेकता में एकता – भारत में विभिन्नता होते हुए भी एकता या अविरोध विद्यमान है। यहाँ सभी जातियाँ घुल-मिलकर रहती रही हैं। यहाँ प्रायः लोग एक-दूसरे के धर्म का आदर करते हैं। आदर न भी करें तो दूसरे के प्रति सहनशील हैं। भारत की यह दृढ़ मान्यता है कि एकं सत्यं विप्राः बहुधा वदन्ति ।’ अर्थात् सत्य एक है। उस तक पहुँचने के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं। गीता में उसी दृष्टि को श्रेष्ठ कहा गया है जो में से एकता को पहचानती है।
राष्ट्रीय एकता के वाधक तत्त्व – भारत की राष्ट्रीय एकता के लिए अनेक खतरे हैं। सबसे बड़ा खतरा है- कुटिल राजनीति। यहाँ के राजनेता ‘वोट बैंक’ बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीज बोते हैं, कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्य धारा से अलग करते हैं। कभी किसी विशेष जाति, प्रांत या भाषा के हिमायती बनकर देश को तोड़ते हैं। जम्मू काश्मीर का विशेष दर्जा हो, खालिस्तान की माँग हो, आसाम या गोरखालैंड की पृथक्ता का आंदोलन हो, सबसे ऊपर वोट के प्रेत मँडराते नजर आते हैं। इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर रखना चाहते हैं। राष्ट्रीय एकता में अन्य बाधक तत्त्व है— विभिन्न धार्मिक नेता. जातिगत असमानता, आर्थिक असमानता आदि।
परस्पर संघर्ष के दुष्परिणाम – जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय संघर्ष करते हैं तो उसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है। मामला आरक्षण का हो या अयोध्या के राम-मंदिर का, उसकी गूंज पूरे देश के जनजीवन को कुप्रभावित करती है। इतिहास प्रमाण है। आरक्षण के नाम पर देशभर में युवक जले, सड़कें रुकी, संपत्तियाँ नष्ट हुई। अयोध्या का प्रकरण देश की सीमाओं को पार करके विदेशों में रह-रहे लोगों को भी कैंप भेजा गया।
समाधान – प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय एकता को बल कैसे मिले ? संघर्ष का शमन कैसे हो? इसका एकमात्र उत्तर यही है कि शांति नहीं तब तक जब तक सुख-भाग न सबका सम हो। नहीं किसी को बहुत अधिक हो नहीं किसी को कम हो । (कुरुक्षेत्र से) अर्थात् देश में सभी असमानता लाने वाले कानूनों को समाप्त किया जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू कानून आदि अलगाववादी कानूनों को तिलांजलि दी जाए। उसकी जगह एक राष्ट्रीय कानून लागू किया जाए। सब नागरिकों को एकसमान अधिकार प्राप्त हों। किसी को किसी नाम पर भी विशेष सुविधा या विशेष दर्जा न दिया जाय। भारत में तुष्टिकरण की नीति बंद हो । राष्ट्रीय एकता को बनाने का दूसरा उपाय यह है कि हृदयों में परस्पर आदर का भाव जगाया जाए। यह काम साहित्यकार, कलाकार, विचारक और पत्रकार कर सकते हैं। वे अपनी लेखनी और कला से देशवासियों को एकता का मंत्र पढ़ा सकते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..