आधुनिक भारत : संकल्पनाएँ, विचार एवं शब्दावली (MODERN INDIA : CONCEPTS, IDEAS AND TERMS)

आधुनिक भारत : संकल्पनाएँ, विचार एवं शब्दावली (MODERN INDIA : CONCEPTS, IDEAS AND TERMS)

भारतीय पुनर्जागरण
19वीं शताब्दी में राजा राममोहन राय दयानन्द सरस्वती और विवेकानन्द द्वारा जो धार्मिक व सामाजिक सुधार आन्दोलन चलाया गया था, वह भारतीय पुनर्जागरण कहलाता है जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म व समाज में आयी बुराइयों को समाप्त करना था. इस आन्दोलन ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना को पैदा किया था. भारतीय पुनर्जागरण से स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ तथा जातिभेद के बन्धन ढीले पड़े.
आर्थिक उपक्षय (पलायन )
अंग्रेज सरकार द्वारा भारत से इंगलैण्ड को धन भेजना ही ‘आर्थिक उपक्षय’ कहलाता है. इंगलैण्ड सरकार ने प्लासी के युद्ध के बाद भारत से धन भेजना प्रारम्भ किया. यह धन युद्ध-हर्जाना ‘ब्याज’ खदानों से प्राप्त लाभ, होम चार्जेस, सैन्य खर्च के रूप में भारतीयों से वसूल किया जाता था और फिर उसे इंग्लैण्ड भेज दिया जाता था. दादाभाई नौरोजी ने सबसे पहले इस अपक्षय की ओर भारतीयों का ध्यान आकर्षित किया तथा इसे भारत के लिए हानि बताया. आर्थिक अपक्षय के परिणामस्वरूप भारत में उद्योगों का विकास नहीं हो पाया, करों का भार बढ़ गया, उत्पादन में कमी, व्यापार में हानि तथा जनता में गरीबी फैली.
निस्पंदन सिद्धान्त ( Filtration Theory )
यह सिद्धान्त शिक्षा से सम्बन्धित है, जिसके अनुसार शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को जाये और इस वर्ग से छनछन कर शिक्षा का प्रभाव जनसाधारण तक पहुँचे. यह नीति आर्थिक विषमताओं तथा सीमित साधनों के कारण अपनाई गई. इस नीति की असफलता का मुख्य कारण यह था कि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को सरकारी पद मिल जाता था और वह अन्य लोगों को शिक्षित करने का प्रयास नहीं करता था.
राज्य अपहरण नीति
यह नीति लॉर्ड डलहौजी द्वारा प्रतिपादित की गई थी जिसे ‘गोद निषेध की नीति’ के नाम से जाना जाता है. इसके अनुसार यदि किसी राजा के कोई सन्तान न हो तो वह गोद लेने का अधिकारी नहीं है. इस नीति द्वारा लॉर्ड डलहौजी ने सतारा, जैतपुर, सम्भलपुर, झाँसी आदि राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया था. इस नीति के परिणामस्वरूप एक तरफ तो ब्रिटिश राज्य का विस्तार हुआ तो दूसरी भारतीय राज्यों में अंग्रेजों के प्रति असन्तोष पैदा हुआ, जिसकी परिणति 1857 ई. के विद्रोह के रूप में हुई.
वाणिज्यवाद
व्यापार व उद्योग को नियमित करके सोना व चाँदी प्राप्त करने की नीति ही ‘वाणिज्यवाद’ कहलाती है. ‘वाणिज्यवाद’ शब्द के आविष्कारकर्ता ‘एडम स्मिथ’ हैं. वाणिज्यवाद के अन्तर्गत ऐसी नीतियाँ अपनायी जाती हैं. जिनके आधार पर राष्ट्र आर्थिक क्षेत्र में समृद्धि प्राप्त कर सके. इसमें आयात को हतोत्साहित किया जाता है तथा निर्यात को प्रोत्साहन दिया जाता है.
सत्याग्रह
अपने विरोधियों को दुःखी बनाने के बजाय स्वयं अपने ऊपर दुःख डालकर सत्य की विजय प्राप्त करना ही ‘सत्याग्रह’ सत्याग्रह की पद्धति गांधीजी की अपूर्व देन है. असहयोग, सविनय अवज्ञा, हिजरत, अनशन तथा हड़ताल आदि सत्याग्रह के विभिन्न रूप हैं. अन्याय के विरुद्ध अपनाया जाने वाला यह श्रेष्ठ साधन है.
द्वैध शासन (Dyarchy)
द्वैध शासन का आशय दोहरे शासन से है, जिसमें शासन दो क्षेत्रों में विभाजित हो और इन दोनों क्षेत्रों का प्रशासन दो ऐसे पदाधिकारियों द्वारा किया जाये जिनके स्वरूप व उत्तरदायित्व में भिन्नता हो. 1919 ई. के एक्ट द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन स्थापित किया गया. इसका उद्देश्य भारतीयों को अधिकार व उत्तरदायित्व प्रदान करना था.
स्वदेशी
यह एक आन्दोलन था, जो 1905 ई. में बंगाल विभाजन के परिणामस्वरूप शुरू हुआ था. इस आन्दोलन ने भारतीय वस्तुओं के उपयोग को प्रोत्साहन दिया तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जिसके परिणामस्वरूप इंगलैण्ड के व्यापार को हानि हुई.
साम्प्रदायिकतावाद
साम्प्रदायिकतावाद एक विचारधारा है जो यह मानती है कि कुछ लोग किसी एक विशेष धर्म को मानते हैं, इसलिए उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हित भी समान हैं. किसी धर्म के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हित किसी दूसरे धर्म के मानने वालों के हितों से भिन्न होते हैं. इसमें विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के हितों को परस्पर विरोधी और शत्रुतापूर्ण समझा जाता है.
अग्रवर्ती नीति (Forward Policy)
अंग्रेजी सरकार ने रूस के आक्रमण से भारत को बचाने के लिए जो नीति अपनाई उसे ‘अग्रवर्ती नीति’ कहा जाता है. ‘लॉर्ड पामर्स्टन’ और ‘आकलैण्ड’ इस नीति के पक्षधर थे. इनका विचार था कि रूस भारत पर आक्रमण करना चाहता है और इस कारण भारत सरकार को आगे बढ़कर उसका मुकाबला करना चाहिए. भारत को इसके लिए फारस तथा अफगानिस्तान से सन्धियाँ करनी चाहिए. इसके लिए यह आवश्यक समझा गया कि अफगानिस्तान के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप किया जाये तथा उसकी विदेश नीति पर अधिकार किया जाये तथा रूस का मुकाबला अफगानिस्तान की सीमाओं पर किया जाये. इस नीति द्वारा भारत सरकार को अफगानिस्तान से प्रथम व द्वितीय अफगान युद्ध लड़ना पड़ा. अँग्रेजों का यह कार्य अनैतिक एवं अव्यावहारिक माना गया.
वामपंथ
यह एक विचारधारा है, जिसके विचार साम्यवाद या समाजवाद से प्रभावित होते हैं. इस शब्द की उत्पत्ति फ्रांस से हुई है. वामपंथी प्रचलित विचारधारा की विरोधी होती है. भारत में भी 20वीं सदी में रूसी क्रान्ति के परिणामस्वरूप वामपंथ का उदय हुआ, जिसका नेतृत्व नेहरू व सुभाष चन्द्र बोस ने किया था.
संघवाद
छोटे-छोटे इकाई राज्य मिलकर एक इकाई राज्य की स्थापना इस प्रकार करते हैं कि कुछ सम्मिलित कार्य नवनिर्मित राज्य को सौंप देते हैं और शेष कार्यों के लिए स्वतन्त्र रहते हैं. यह व्यवस्था राजनीतिक प्रयास की होती है. संघवाद में लिखित संविधान, शक्तियों का विभाजन और स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक होता है. भारत में 1935 ई. के एक्ट द्वारा एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की गई.
उपनिवेशवाद
किसी एक शक्तिशाली देश द्वारा दूसरे देश पर अधिकार करना तथा उसकी स्वतन्त्रता का हनन करना, उसका आर्थिक शोषण करना, उसकी सभ्यता एवं संस्कृति पर अधिकार करना आदि उपनिवेशवाद के अन्तर्गत आता है. इंगलैण्ड ने उपनिवेशवाद के अन्तर्गत ही भारत की स्वतन्त्रता का हनन किया था.
औद्योगीकरण
पैमाने के मशीनी उत्पादन अर्थव्यवस्था के सारे क्षेत्रों में मुख्यतः उद्योग में बड़े रचना प्रक्रिया को औद्योगीकरण कहते हैं. इसमें मेहनतकश लोगों का शोषण होता है, छोटे उत्पादकों की तबाही होती है तथा उपनिवेशों की लूट होती है. इंगलैण्ड के औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारत के कुटीर उद्योग का ह्रास हुआ तथा भारत से कच्चा माल ले जाया गया.
परमोच्च शक्ति
परमोच्च शक्ति का प्रयोग भारत में ब्रिटिश शासन के लिए किया जाता था, जिस पर भारतवासियों का कोई नियन्त्रण नहीं था. इस पर किसी का भी नियन्त्रण नहीं था और यह ब्रिटेन के ताज द्वारा नियन्त्रित थी. भारत सम्बन्धी सभी प्रकार के निर्णय लेने का इसे अधिकार था.
आर्थिक राष्ट्रवाद
इसके अन्तर्गत कोई अपने उपनिवेशों में अपने आर्थिक हितों व व्यापार का संरक्षण करता है. इसमें अन्य देश के व्यापार व उद्योग-धन्धों को अपनी नीतियों द्वारा नष्ट करके ज्यादा-से-ज्यादा आर्थिक शोषण किया जाता है. ब्रिटेन ने भारत का आर्थिक शोषण किया था तथा यहाँ के व्यापार को नुकसान पहुँचाया था.
जातीयता
जातीयता में एक ही जाति के लोग अपनी-अपनी जाति की समस्याओं व हितों का संरक्षण करते हैं. जब एक जाति के हित दूसरी जाति के हितों से टकराते हैं, तो जातिवाद की समस्या पैदा होती है. इसमें लोग जाति के आधार पर अलगअलग समूहों में विभाजित हो जाते हैं. राष्ट्रीय आन्दोलन के समय भारत में जातिवाद का रूप बहुत प्रखर था, जो आगे जाकर भारत विभाजन का कारण बना.
पुनर्जागरणवाद
यह एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति होती है. इसमें कला, साहित्य, विज्ञान व लोगों के भौतिक जीवन में उन्नति होती है.
आधुनिकीकरण
समाज में नये नैतिक मूल्यों का आना तथा अन्धविश्वासों व बाह्य आडम्बरों से मुक्त विचारधारा आधुनिकीकरण कहलाती है. आधुनिकीकरण में शिक्षा, साहित्य, कला व राष्ट्रीय विचारधारा व स्वतन्त्रता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. खानपान, रहन-सहन व पिछले समाजों से कुछ बेहतर व कुछ नया आधुनिकीकरण कहलाता है. भारत में ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप भारत का आधुनिकीकरण हुआ, जिसमें अंग्रेजी शिक्षा व पश्चिमी साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
उपयोगितावाद
यह ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित का सिद्धान्त’ है, जिसके अनुसार वही उद्देश्य वांछनीय है, जो उपयोगी है और उपयोगी वह है जो अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित का साधन है.
कुशल अकर्मण्यता की नीति (Policy of Masterly Inactivity)
यह अफगानिस्तान के प्रति अपनाई गई एक नीति थी जिसका पालन जॉन लोरेन्स ने किया था. इस नीति के समर्थकों का विचार था कि रूस भारत से बहुत दूर है. इस कारण भारत सरकार के लिए भय का कोई कारण नहीं है. रूस यदि भारत पर आक्रमण करना चाहता है, तो इसका कारण यह है कि—यूरोप में ब्रिटेन व रूस के सम्बन्ध खराब हैं. अतः पूर्व की ओर रूस की प्रगति को रोकने के लिए आवश्यक है कि ब्रिटेन यूरोप में रूस के साथ कोई समझौता करे. अफगानिस्तान के मामले में भारत सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी. वह वहाँ के प्रत्येक शासक को स्वीकार करेगी और उसके साथ मित्रता के सम्बन्ध स्थापित करेगी. अमीर के साथ कोई संधि नहीं की जायेगी और न अफगानिस्तान में कोई अंग्रेज रेजीडेण्ट रखने की माँग की जायेगी. इस प्रकार इस नीति के अनुसार अंग्रेज अमीर को मित्र तो बनाये रखना चाहते थे, परन्तु उनके साथ स्थाई संधि करने को तत्पर न थे और न उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करना चाहते थे.
वणिकत्ववाद (Mercantilism)
यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के बाद आयी जागृति ने यूरोपीय देशों को इस नीति का अनुसरण करने पर विवश कर दिया, क्योंकि इन देशों में उत्पादन बहुत अधिक था तथा खपत कम. इंगलैण्ड ने भी इस नीति का सहारा लिया तथा कच्चा माल भारत से मँगाकर ( सस्ती कीमत पर ) उसे इंगलैण्ड में तैयार कर पुनः महँगी दर पर भारत में बेचा जाने लगा. इस नीति में भारत में आयात किये जाने वाले माल पर कोई कर नहीं लगाया गया था जिससे कि भारतीय व्यापारियों को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ रहा था. साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद इसी के अंग हैं.
आर्थिक निष्कासन ( Economic Drain)
दादा भाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक ‘पॉवर्टी एण्ड अन ब्रिटिश रूल इन इण्डिया’ में सर्वप्रथम इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया. इसके द्वारा उन्होंने बताया कि किस तरह भारतीय धन अंग्रेजों द्वारा भारत से बाहर ले जाया जा रहा है जिससे कि भारत निरन्तर गरीब होता जा रहा है. इस कारण से भारत में पूँजी का संचय नहीं हो पाया और भारतीय उद्योग-धन्धों का पतन होने लगा. भारत की इस विपन्नता के लिए धन का निष्कासन ही उत्तरदायी था.
प्राच्यवाद (Orientialism)
यह वह विचारधारा है, जो सर्वप्रथम भूमध्यसागरीय यूरोपीय देशों में पनपी जिसके अनुसार यूरोपीय राष्ट्रों ने राष्ट्रवाद को उभारने के लिए अपने अतीत का गौरव गान किया. 19वीं सदी में भारतीय विद्वानों ने भी भारतीयों को अपने अतीत से प्रेरणा लेकर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.
अ-औद्योगीकरण (De-industralisation)
अंग्रेजों ने जब भारत में अपने पाँव अच्छी तरह से जमा लिये तब उन्होंने भारतीय उद्योगों का शोषण करने के लिए ‘मुक्त व्यापार’ की नीति का अनुसरण किया. यह नीति भारतीय उद्योगों के लिए घातक सिद्ध हुई, क्योंकि मशीनों द्वारा निर्मित इंगलैण्ड के माल के सामने भारतीय माल महँगा होने के कारण टिक नहीं सका. अतः भारतीय व्यापारियों को अपने उद्योग-धन्धे बन्द करने पड़े, जिससे भारत का अ-औद्योगीकरण हो गया.
सहायक संधि (मैत्री ) ( Subsidiary Alliance)
सहायक सन्धि की प्रणाली का प्रारम्भ भारत में लॉर्ड वेलेजली (1798-1805 ई.) द्वारा किया गया. इस सन्धि को स्वीकार करने वाला राज्य अपनी विदेश नीति के साथ-साथं युद्ध एवं मैत्री करने के अधिकार को अंग्रेजों के सुपुर्द कर देता था. बदले में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कम्पनी अपनी एक सेना उस राज्य में रखती थी तथा उसकी सुरक्षा का दायित्व वह वहन करती थी तथा कम्पनी का प्रतिनिधि (रजिडेण्ट) उस राज्य के दरबार में रहता था. राज्य कम्पनी की सेना के खर्चे के लिए कुछ भूमि कम्पनी को देती थी.
शुभ संदेशवाहन (Evangelicalism)
इंजीली चर्घ के सिद्धान्तों के समर्थक या प्रतिपादक, इंजीलीवादी आस्थावान लोग, धर्म ग्रन्थों और उनकी सत्ता, विशेषकर न्यूटेस्टामेन को ही सर्वोपरि मानते हैं. ये गिरजे की संस्थागत सत्ता का विरोध करते हैं.
18 व 19वीं सदी में यह प्रोटेस्टेंट गिरजाघरों में आन्दोलन चला, जिनमें पाप कृत्यों की आत्मिक अनुभूति पर जोर दिया गया. इन आन्दोलनकारियों के अनुसार ईश्वर से अपराध के लिए क्षमा याचना का माध्यम ईसा मसीह ही हो सकते हैं, अन्य क्रियाकाण्ड या क्रियाकलाप नहीं.
भूदान (Bhudan)
यह एक आन्दोलन था, जिसे संत विनोबा भावे ने चलाया. इस आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य यह था कि जिन लोगों के पास कृषि हेतु भूमि नहीं है उन्हें ऐसे लोग अपनी भूमि में से कुछ भूमि स्वेच्छा से दें, ताकि इन लोगों का भी भरण-पोषण आसानी से हो सके तथा समाज में समानता लाई जा सके. यह आन्दोलन सर्वोदय के सिद्धान्त पर आधारित था.
मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)
इस अवधारणा के प्रतिपादक जे. एम. कीन्स थे. इस व्यवस्था में निजी क्षेत्र की स्थापना के साथ-साथ सरकार द्वारा भी भारी मात्रा में निवेश किया जाता है तथा देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए अधः संरचना (Infra Structure ) का निर्माण सरकार द्वारा किया जाता है. सार यह है कि इसमें पूँजीवादी व समाजवादी दोनों व्यवस्थाओं के प्रमुख तत्वों का समावेश रहता है. विश्व में भारत इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है.
पंचशील (Panchsheel)
यह सिद्धान्त आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधान – मन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने विश्व शांति बनाये रखने के लिए दिया था. इसके सिद्धान्त अग्रलिखित हैं—
1. सभी राष्ट्र एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता व सम्प्रभुता का सम्मान करें.
2. कोई राज्य एक-दूसरे पर आक्रमण न करे.
3. कोई राज्य दूसरे राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे.
4. प्रत्येक राज्य दूसरे राज्य के साथ समानता का व्यवहार करे.
5. सभी राष्ट्र शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त में विश्वास करें.
भारतीय वामपन्थ (Indian Left)
भारत में वामपन्थ की शुरूआत रूसी क्रान्ति के कुछ समय बाद ही प्रारम्भ हो गयी थी और बड़े-बड़े औद्योगिक शहरों में साम्यवादी सभाएँ गठित हो गयीं, यहाँ वामपन्थी आन्दोलन की दो धाराएँ – (1) साम्यवाद, (2) कांग्रेस समाजवादी पार्टी विकसित हुईं. अन्तर्राष्ट्रीय कारणों से साम्यवादियों ने भारतीय स्वतन्त्रता का विरोध व बाद में भारत के विभाजन का समर्थन किया, जबकि समाजवादी दल (कांग्रेस) लोकतन्त्रीय समाजवाद को मानता था.

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