बिहार के विशेष संदर्भ में 1857 की क्रांति के महत्व की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।

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प्रश्न – बिहार के विशेष संदर्भ में 1857 की क्रांति के महत्व की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर – 1857 के विद्रोह को ‘सिपाही विद्रोह’ के नाम से भी जाना जाता है। जिसकी शुरुआत 10 मई, 1857 को उत्तर प्रदेश के मेरठ छावनी थी। शीघ्र ही यह विद्रोह से हुई बिहार सहित उत्तर भारत के बहुत बड़े हिस्से में फैल गया।

बिहार में हुए 1857 के विद्रोह को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है –

  • पटना में विद्रोह के समय पीर अली और उनके सहयोगियों का योगदान
  • दानापुर का विद्रोह
  • कुंवर सिंह के नेतृत्व के बिहार क्रांति का संचालन।

12 जून, 1857 अविभाजित बिहार के देवघर जिले के गांव रोहिणी में सैनिकों के विद्रोह के साथ संघर्ष आरंभ हुआ। दो अंग्रेज अधिकारी मारे गये, मगर विद्रोह विफल रहा और इन तीन भारतीय सैनिकों को मृत्यु दंड दे दिया गया जिन्होंने विद्रोह में भाग लिया था।

3 जुलाई को पटना में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष आरंभ हुआ। इसका नेतृत्व पीर अली ने किया। बिहार में अफीम व्यापार के एजेण्ट : ‘लायेल’ (Lyell) ने विद्रोह के दमन का प्रयास किया, लेकिन इस विद्रोह के दौरान वह मारा गया। यह ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता को एक कड़ी चुनौती थी, क्योंकि बिहार सहित गाजीपुर और बनारस में अंग्रेज बड़ी मात्रा में अफीम की खेती करते थे, और यह ईस्ट इंडिया कंपनी को राजस्व का एक बड़ा स्रोत भी था। इस कारण कंपनी ने अपनी पूरी ताकत यहाँ इस विद्रोह को दबाने में लगा दिया।

पटना के कमिश्नर टेलर ने विद्रोह के दमन के लिए कठोर उपाय किये। उसने पटना के निवासियों पर अनेक प्रतिबंध लगा रखे थे। पीर अली (को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें फांसी दे दी गई। पीर अली को फांसी का समाचार मिलते ही 25 जुलाई को दानापुर की तीन बटालियनों ( ( 7वीं, 8वीं और 40वीं) ने विद्रोह कर दिया और उन्होंने आरा के जगदीशपुर निवासी कुंवर सिंह से इस विद्रोह का नेतृत्व करने का आग्रह किया। (और इस तरह बिहार में 1857 का विद्रोह कुंवर सिंह के नेतृत्व में आरंभ हो गया। कुंवर सिंह ने बड़ी संख्या में अपने समर्थकों, जिसमें उनके भाई अमर सिंह और रितनरेन सिंह उनके भतीजे निशान सिंह और जय कृष्णा सिंह ठाकुर दयाल सिंह और विश्वेर सिंह शामिल थे। यहां यह उल्लेख करना अनिवार्य है कि बड़ी संख्या में जमींदारों ने भी इस विद्रोह में अंग्रेजों के विरूद्ध हिस्सा लिया था, लेकिन कुछ बड़े जमींदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया था और विद्रोह को दमन करने में उनकी मदद की थी।

30 जुलाई को सरकार ने तत्कालीन सारण, तिरहुत, चम्पारण और पटना जिलों में सैनिक शासन लागू कर दिया। अगस्त महीने में भागलपुर में भी विद्रोह भड़क उठा। विद्रोहियों ने गया पहुंचकर वहाँ कैद 400 लोगों को मुक्त करा लिया । सैनिक रोहतास और सासाराम क्षेत्र के विद्रोही जमींदारों से जा मिले। राजगीर, बिहार शरीफ, गया और अन्य क्षेत्रों में भी विद्रोह आरंभ हो गये मगर इन्हें जल्द ही दबा दिया गया। पलामू क्षेत्र में विलम्ब शाही और पीताम्बर शाही के नेतृत्व में विद्रोह हुआ, मगर यह असफल रहा।

कुंवर सिंह ने लगभग चार हजार सैनिकों के सहयोग से संघर्ष आरंभ किया। बाद में उनके समर्थकों की संख्या बढ़कर दस हजार तक हो गई। सबसे पहले उन्होंने आरा पर अधिकार कर वहां नागरिक सरकार की स्थापना की। लेकिन अंग्रेजों ने आरा को विद्रोहियों के कब्जे से मुक्त करा लिया। सभी विद्रोहियों की संपत्ति जब्त कर ली गई। समस्त पश्चिमी बिहार में उपद्रव फैल गया। कैमूर पहाड़ियों में मोर्चाबंदी करके बाबू अमरसिंह जो कुंवर सिंह को छोटे भाई थे ने लम्बे समय तक सरकार के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। इस बीच बाबू कुंवर सिंह ने मिर्जापुर के निकट विजयगढ़ में पड़ाव डाला। वहाँ से रेवा और बांदा के क्षेत्रों से होते हुए वे काल्पी पहुंचे। उन्होंने तात्या टोपे से सम्पर्क बनाने का प्रयास किया। तत्पश्चात वे लखनऊ पहुंचे, जहां अवध के दरबार से उन्हें सम्मान और सहयोग मिला। दिसम्बर 1857 में कुंवर सिंह ने नाना साहब के साथ मिलकर अंग्रेजों से युद्ध किया। तत्पश्चात उन्होंने आजमगढ़ में अंग्रेजों को पराजित किया। गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने कुंवर सिंह के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई का कड़ा आदेश दिया और अंग्रेजों का सैनिक दबाव उन पर पड़ने लगा। बलिया के समीप अंग्रेजों के साथ युद्ध में विजयी होने के बाद जगदीशपुर की ओर लोटने के प्रयास में कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल, 1858 को केप्टन ली ग्रांड के नेतृत्व में आई ब्रिटिश सेना को बुरी तरह पराजित किया।

क्रांति को जिस उद्देश्य के लिए शुरू किया गया था उसे पूरा नहीं किया जा सका। बिहार सहित देश के अधिकांश जमींदार एवं राजवाड़े अंग्रेजों को सहयोग दे रहे थे। जिसके कारण देश में अंग्रेजी दासता की स्थिति बनी रही। इन सब के बावजूद क्रांति के कई तात्कालिक एवं दूरगामी परिणाम परिलक्षित हुए।

बिहार सहित संपूर्ण देश में जमींदारों और रजवाड़ों के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाई गई । सामंतवाद एवं साम्राज्यवाद के बीच मजबूत गठजोड़ स्थापित हो गया। कालांतर में होने वाले आंदोलनों को संतुलित करने के लिए साम्राज्यवाद ने इन तत्वों का प्रयोग किया। बिहार के रजवाड़े अंग्रेजों के सहयोगी बने रहे। किसानों मजदूरों का शोषण बढ़ता गया।

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