‘पटना कलम चित्रकारी’ की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – ‘पटना कलम चित्रकारी’ की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – मुगल साम्राज्य के पतन की अवस्था में शाही दरबार में कलाकारों को संरक्षण न मिलने के कारण इनका पलायन अन्य क्षेत्रों में होने लगा था। इस क्रम में चित्रकला के विभिन्न क्षेत्रीय रूप भी विकसित हुए। इन्हीं में से एक पटना कलम या पटना शैली भी है। इस कला शैली का विकास 18वीं सदी के मध्य से लेकर 20वीं सदी के आरंभ तक हुआ। औरंगजेब द्वारा दरबार से कला के विस्थापन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नवाबों के यहां आश्रय लिया। ये कलाकार मुर्शिदाबाद चले गए, लेकिन मुर्शिदाबाद के खत्म होने के बाद ये दरबारी कलाकार पटना और पूर्णिया आ अए। इन्ही पलायित चित्रकारों के एक समूह ने पटना के मच्छरहट्टा, लोदी कटरा, मुंगेलपुरा दीवान मुहल्ला आदि क्षेत्रों में बसकर पटना कलम के रूप में चित्रकला के क्षेत्रीय रूप को विकसित किया ।

इस शैली की शुरुआत करीब 1760 के आसपास हुई थी। इस शैली में एक ओर मुगलशाही शैली का प्रभाव है तो दूसरी ओर तत्कालीन ब्रिटिश कला का प्रभाव है। इस शैली के तत्कालीन कलाकारों ने कलकत्ता के कलाकारों से संपर्क के फलस्वरूप इस शैली का विकास किया। इसी कारण मुगल तत्व, यूरोपीय तत्व एवं स्थानीय भारतीय तत्वों के सम्मिश्रण के कारण इस शैली की अलग पहचान है।

इस चित्र शैली के प्रमुख चित्रकारों का नाम है-

सेवकराम, हुलासलाल, जयराम दास, शिवदयाल लाल, दल्लूराम, गुरसहाय लाल, यमुना प्रसाद आदि । शिवदयाल लाल द्वारा निर्मित मुस्लिम निक्राह का दृश्य, महादेव लाल द्वारा निर्मित ‘रागिनी गांधारी चित्र’ अविस्मरणीय है। लालचंद, गोपालचंद एवं दल्लुलाल को हाथी दांत पर चित्रकारी में महारथ हासिल था। इस शैली के एक उत्कृष्ट कलाकार राधेमोहन प्रसाद ने पटना आर्ट कॉलेज की नींव रखी । ईश्वरी प्रसाद वर्मा पटना कलम शैली में अंतिम कलाकार थे। 20वीं सदी के अंत में उनके निधन से पटना कलम शैली का समापन हो गया।

पटना कलम शैली की विशेषताएं निम्नवत हैं

  • पटना कलम के चित्र लघुचित्रों की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अधिकतर कागज और कहीं-कहीं हांथीदांत पर बनाया गया है।
  • सामान्यतः इन चित्रों में दैनिक जीवन के दृश्यों और जनसाधारण के जीवन का ही चित्रण हुआ। लकड़ी काटता हुआ बढ़ई, मछली वेचती हुई औरत, लोहार, सुनार, पालकी उठाये हुए कहार, खेत जोतता हुआ किसान, साधु संन्यासी आदि के चित्र सामान्तः इस शैली में देख जा सकते हैं।
  • इनके अलावा पशु पक्षियों को भी दिखाया गया है और विभिन्न प्रकार के फूलों का भी चित्रण हुआ है। ऐसे चित्रों में पृष्ठभूमि का महत्व नहीं है।
  • मनुष्य के चित्रों में ऊंची नाक, भारी भवें, पतले चेहरे, गहरी आँखें तथा पुरुषों की घनी मूँछें दिखाई गई हैं।
  • तस्वीर को बनाने में पेन्सिल से खाका बनाकर रंग भरने के बदले ब्रश से ही तस्वीर बनाने और रंगने का काम हुआ है। अधिकतर गहरे भूरे, गहरे लाल, हल्के पीले और गहरे नीले रंगों का प्रयोग इन चित्रों में हुआ है।
  • मुगल दरबार की शाही शैली से पटना कलम कई आधार पर भिन्नता रखता है। इन चित्रों में सजीवता और सामान्य जीवन से इनका घनिष्ठ संबंध सबसे महत्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा रंगों के उपयोग और छायांकन के तरीकों में भी अंतर स्पष्ट है ।
  • इस शैली में पृष्ठभूमि एवं लैंडस्केप का कम प्रयोग किया गया है। इसमें पृष्ठभूमि एवं प्राकृतिक दृश्यों को बढ़ाना महंगा पड़ता है और इसकी पूर्ति करने वाला कोई नहीं था । अतः इन लोगों ने कम खर्चीली पद्धति को अपनाया।
  • पटना कलम शैली में मुगल शैली के विपरीत सजीवता पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें मुगल शैली के अंतर्गत राजे रजवाड़े से संबंधित विषय वस्तु के विपरीत सामान्य जीवन के पक्ष पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त रंगों के उपयोग एवं छालांकन के तरीकों में भी स्पष्ट अंतर दिखता है।लगभग एक दशक तक प्रचलित रहने के पश्चात 19वीं सदी में इस शैली का पतन प्रारंभ हो गया। इसका प्रमुख कारण था इसकी मांग में कमी आने लगी, इसके संरक्षकों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। डॉ० अब्दुल हदी द्वारा पटना कलम पर लिखी गई एक पुस्तक में इन सभी मुद्दों पर चर्चा की गई है। वर्ष 2010 में बिहार सरकार द्वारा अपने इस सांस्कृतिक धरोहर के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए पटना कलम के चित्रों की थीम पर केलेंडर प्रकाशित किया गया। पटना आर्ट कॉलेज, पटना म्यूजियम एवं खुदाबक्श लाईब्रेरी में इस शैली के चित्र सुरक्षित रखे गए हैं।यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि पटना कलम और मधुबनी पेंटिंग्स जैसी प्रसिद्ध चित्रकला को आज वो संरक्षण या स्थान नहीं मिल पाया जिसका वे वास्तविक हकदार थे । यद्यपि मधुबनी पेंटिंग्स तो आज प्रचलित भी है, लेकिन पटना कलम चित्रकारी तो बिल्कुल समाप्त हो गई है। इसे देश, राज्य और विदेशों में मधुबनी चित्रकला से ही कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। मधुबनी चित्रकला को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित कर संरक्षित किया जा रहा है, लेकिन पटना कलम के साथ ऐसा नहीं है।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *