सार्वभौमिक स्वास्थ सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाएं है। क्या आपके विचार से निजी क्षेत्र इस कमी अथवा दूरी को भरने में सेतु के रूप में सहयोग कर सकता है ? आप कौन से अन्य उचित विकल्पों का सुझाव देंगे?

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प्रश्न – सार्वभौमिक स्वास्थ सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाएं है। क्या आपके विचार से निजी क्षेत्र इस कमी अथवा दूरी को भरने में सेतु के रूप में सहयोग कर सकता है ? आप कौन से अन्य उचित विकल्पों का सुझाव देंगे?
उत्तर : सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) का मतलब देश के किसी भी भाग में बसे नागरिक की आय के स्तर, सामाजिक स्थिति, लिंग जाति या धर्म के बिना सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना है। इसका उद्देश्य वहनीय उत्तरदायी गुणवतापूर्ण एवं यथोचित स्वास्थ्य सेवाओं के आश्वासन को सुनिचिश्ति करना है। इसमें रोकथाम, उपचार एवं पुनर्वास शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में कम से कम लगभग एक अरब लोग आवश्यकतानुसार स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को प्राप्त करने में असमर्थ हैं। सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज से जाति, धर्म, राजनीति विश्वास एवं सामाजिक आर्थिक स्थिति के भेदभाव के बिना शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का आनंद लेना हर मनुष्य का अधिकार है। प्रत्येक मनुष्य को सभ्य जीवन मानक जैसे कि स्वास्थ्य, भोजन, वस्त्र, आवास व चिकित्सा देखभाल की प्राप्ति का अधिकार है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का दोहरा लाभ प्राप्त करने के लिए एवं स्वस्थ समुदाय एवं मजूबत अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अनेक देश इसे अंगीकार कर रहे हैं।

भारत में अत्यधिक जनसंख्या होने के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर अत्यधिक दबाव देखने को मिलता है। अतः इसकी परिसीमा निध रित हो जाती है। जिससे यह सभी को पर्याप्त सुविधा पहुंचाने में असमर्थ होती है। इसकी कुछ प्रमुख परिसीमाएं निम्नवत हैं –

  1. बीमा एवं स्वास्थ्य योजनाओं का उचित क्रियान्वयन न हो पाना भी इसकी सीमा को निर्धारित करता है।
  2. कुशल और अनुभवी चिकित्सक और सहायकों की कमी प्रायः सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में देखने को मिलती है। जिससे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने में असमर्थता व्यक्त की जाती है।
  3. वित्त की कमी के कारण इस क्षेत्र में कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। भारत के जीडोपी का 2 प्रतिशत से कम स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च किया जाता है जोकि चीन, अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है।
  4. जागरुकता के अभाव में यह आम जन तक पहुंचने में असमर्थ रहा है।
  5. बुनियादी सुविधाओं का अभाव इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है। वार्ड, उपकरण मशीन इत्यादि के आभाव में स्वास्थ्य सुविधा प्रभावित होती है।
  6. दवाइयां, उपकरण इत्यादि का आयात सरकार द्वारा किया जाता है, जोकि उचित समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, ऐसे में इसका कार्य प्रभावित होता है।
देश में स्वास्थ्य व्यवस्था के संदर्भ में यूएचसी इस लिए भी विशेष महत्व रखता है, क्योंकि सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 को मंजूरी प्रदान कर दी है, जिसमें किसी प्रकार की वित्तीय कठिनाई के बगैर ही स्वास्थ्य के उच्चचम संभव स्तर की प्राप्ति की परिकल्पना की गई है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की परिकल्पना को पूर्ण करने के उद्देश्य से ही वर्ष 2014 में मिशन इन्द्रधनुष कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया था। अभी तक की सबसे बड़ी वैश्विक स्वास्थ्य पहलों में से यह एक है।
यदि निजी क्षेत्र के पास उपलब्ध कुशल संसाधन उच्च प्रौद्योगिकी विकसित संरचनात्मक ढांचे का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाए तो निश्चित तौर पर यह खाई पाटने में सेतु का कार्य करेगा। इसके अंतर्गत कुछ प्रमुख उपाय हैं जो निम्नवत हैं –
  1. निजी क्षेत्र पर सामाजिक जिम्मेवारी तय होनी चाहिए।
  2. दवाइयों के मुल्य वृद्धि में प्रभावी नियंत्रण आवश्यक होनी चाहिए। जिससे कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।
  3. योग को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि स्वस्थ जीवन शैली को विकसित किया जा सके।
  4. निजी अस्पतालों में कमजोर वर्गों के इलाज हेतु कोटा तय होनी चाहिए।
  5. विडियों कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चिकित्सकीय सुविधा दूरस्थ क्षेत्रों में पहुँचाई जा सकती है।

निष्कर्ष : अगर हम यूएचसी के मानदंडों के अनुसार चलें तो निश्चित रूप से देश की स्वास्थ्य सेवा में सुधार होगा। इसके प्रति सोच में बदलाव आएगा। हमें बीमारियों को नियंत्रित करने की योजना नहीं तैयार करनी चाहिए बल्कि इसे समाप्त करने की योजना बनानी चाहिए। स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने हेतु अच्छे स्रोतों का होना अनिवार्य है। अगर स्वास्थ्य क्षेत्र में विकास करने हेतु हम निजी क्षेत्रों के साथ सहयोगात्मक संबंध बना लें तो इसका लाभ हमें व्यापक स्तर पर मिलेगा।

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