अन्य देशों की तुलना में भारत अलवण जल संसाधनों से सुसम्पन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिए कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है ? वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इस समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है? व्याख्या कीजिए।
भारत में जल के उपयोग की मात्रा बहुत सीमित है। इसके अलावा देश के किसी न किसी हिस्से में प्रायः बाढ़ और सूखे की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। भारत में वर्षा में अत्यधिक स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है और वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी मौसम संकेंद्रित है। भारत में कुछ नदियाँ, जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़े हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है। ये नदियाँ देश के कुल क्षेत्र के लगभग एक-तिहाई भाग में पाई जाती हैं। जिनमें कुल धरातलीय जल संसाधन का 60% जल पाया जाता है।
भारत में जल प्रबंधन की चुनौतियाँ – भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जल की उपलब्धता एक गंभीर समस्या बन गई है। सबसे गंभीर समस्या देश की निरंतर बढ़ती जनसंख्या है, जो संभवतः 2050 तक बढ़कर 1.66 बिलियन तक पहुँच जाएगी। ये निरंतर बढ़ती जनसंख्या अतिरिक्त जल की मांग करेगी। भूमि जल का दोहन एक अन्य समस्या का कारक है। उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है।
जल के गुणों का ह्रास – जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थ से रहित जल से है। जल सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों, औद्योगिक और अपशिष्ट पदार्थों से प्रदूषित होता है। इस प्रकार के पदार्थ जल के गुणों में कमी लाते हैं और इसे मानव उपयोग के योग्य नहीं रहने देते हैं। कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं और भौम जल को प्रदूषित करते हैं। देश में गंगा और यमुना दो अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ हैं।
- भूमि मालिक का अपनी जमीन के नीचे पाए जाने वाले जल के दोहन पर किसी प्रकार का नियंत्रण न होने से जल की बर्बादी होती है।
- देश में भूमिगत जल की सुरक्षा एवं संरक्षण से संबंधित समुचित प्रावधानों का आभाव है।
- देश में जल संग्रह की समुचित व्यवस्था न होने की वजह से वर्षा जल का सही उपयोग नहीं हो पाता है।
- कृषि में प्रयुक्त होने वाले कीटनाशकों, रासायनिक उर्वरकों आदि के प्रयोग को नियंत्रित किया जाना आवश्यक है।
- जल क्षेत्र में साबुन, डिटर्जेण्ट आदि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के व्यावहारिक पहलू पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि ये जल को प्रदूषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में जलाभाव की समस्या के समाधान में वैज्ञानिक तकनीक की प्रमुख भूमिका होती है। इनमें से कुछ निम्नवत हैं –
- सूक्ष्म-कार्बन तकनीक का इस्तेमाल कर पानी का शुद्धिकरण ।
- इस्पात उद्योग, ऊर्जा उद्योग, कपड़ा उद्योगों आदि से निकलने वाले अपशिष्ट जल को नदियों में प्रवेश करने से पहले प्रदूषण रहित बनाने के लिए नवीन तकनीकों का इस्तेमाल करना ।
- सिंचाई के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणाली अपनाई जाने की आवश्यकता है। ताकि सिंचाई के दौरान होने वाली जल की बार्बादी से रोका जा सके।
- सिंचाई की प्रक्रिया को रात में किया जाए ताकि वाष्पीकरण के कारण जल की न्यूनतम हानि हो ।
- जल को संरक्षित रखने हेतु चीन द्वारा प्रयुक्त होने वाले स्पंज सिटी प्रोजेक्ट के प्रयोग की आवश्यकता है, ताकि अधिक से अधिक जल को जमीन के अंदर पहुँचाया जा सके।
- चैकडैम बनाकर भी वर्षा से प्राप्त जल को बहकर चले जाने से रोका जाना चाहिए। इससे विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाने में खास योगदान प्राप्त हो सकेगा।
निष्कर्ष – भारत में जल की कमी नहीं है, लेकिन जल संसाधन विकास परियोजना की उपेक्षा के कारण जल का स्तर घटता जा रहा है। अगर इसी तरह इसकी उपेक्षा की जाती रही तो 1-2 दशक के भीतर जल की भारी कमी हो जाएगी। इसलिए यह आवश्यक है कि जल को संरक्षित किया जाए। इसके लिए हमें अच्छे से अच्छा तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि जल को बचाया जा सके। खेतों में सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाने वाला जल, उद्योगों से निकलने वाला जल आदि को प्रदूषण रहित बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। साथ ही लोगों में जल के संरक्षण एवं शुद्धता हेतु जागरूकता फैलानी चाहिए, ताकि लोग स्वयं ही इसके लिए आगे आए।
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