भारत में मोदी सरकार के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों में से प्रमुख है, गंगा नदी की सफाई, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन तथा घटती जा रही कृषि भूमि और स्वास्थ्य के बढ़ते हुए खतरे | इन समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों की विवेचना कीजिए, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।

प्रश्न – भारत में मोदी सरकार के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों में से प्रमुख है, गंगा नदी की सफाई, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन तथा घटती जा रही कृषि भूमि और स्वास्थ्य के बढ़ते हुए खतरे | इन समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों की विवेचना कीजिए, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
उत्तर – हाल ही केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह सपष्ट किया गया है कि गंगा और देश की अन्य प्रमुख नदियों का 3/4 भाग अत्याधिक प्रदूषित है। प्रदूषित नदियों के अलावा सरकारी सहयोग की कमी कई अन्य गंभीर समस्याओं को जन्म दे रही है। प्राकृतिक संसाधन जैसे पानी, जंगल खनिज इत्यादि को भी इससे नुकसान हो रहा है और संक्रमणीय बीमारियाँ जैसे स्वास्थ्य जोखिमों को बढ़ावा मिल रहा है। निपाह, जिका आदि जैसी जानलेवा बीमारियों के पनपने की आशंका बढ़ती जा रही है।

इन सभी समस्याओं से निपटने हेतु वित्तीय संसाधनों को अत्यधिक आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी सहायता के साथ-साथ निजी संगठनों की भी सम्मिलित भागीदारी होनी आवश्यक है। हाल के दिनों में प्रौद्योगिकी के स्तर पर तेजी से विकास हो रहा है। ताकि इन समस्याओं से निपटा जा सके।

इस समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित तकनीकी पहलूओं पर विचार किया जा सकता है।

गंगा नदी के प्रदूषण से संबंधित समस्याओं से निपटने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं –

सीवेज उपचार के लिए बायोमेडिएशन- बायोमेडिएशन एक प्रक्रिया है जो सूक्ष्मजीवों के विकास को प्रोत्साहित करने और लक्षित प्रदूषकों को कम करने के लिए पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव करके प्रदूषित माध्यम का उपचार करने के लिए उपयोग की जाती है, जिसमें पानी मिट्टी और उप-सतह शामिल है। सीवेज उपचार संयंत्रों के लिए अनिवार्य बायोमेडिएशन नदियों में अपशिष्ट निपटान को काफी कम कर सकता है।

  • नदियों में प्रदूषण की निरंतर निगरानी और हस्तक्षेपवादी पहलों के बेहतर लक्ष्यीकरण के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) प्रौद्योगिकी जैसी रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकियों को लागू करना ।
  • गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे जल उपचार संयंत्रों की स्थापना की जाए जिससे ग्रामीण एवं शहरी बसावट का प्रदूषित जल नदी में न मिले।
  • गंगा नदी के किनारे विद्युत शव दाह गृहों का निर्माण किया जाए ताकि शवों के बड़े पैमाने पर दाह संस्कार के द्वारा होने वाले नदियों के प्रदूषण को रोका जा सके।
  • गंगा नदी की प्राकृतिक परिस्थितिकीय संरचना को संरक्षित करने के लिए इसमें पाए जाने वाले जीव जंतुओं को संरक्षित किया जा सके।
  • बड़े-बड़े पनविद्युत परियोजना के स्थान पर लघु पनविद्युत परियोजनाओं पर जोर दिया जाए। बड़ी परियोजनाएँ नदी के प्रवाह को अवरुद्ध कर कई तरह की समस्याओं, प्रदूषण एवं परिस्थितिकीय असंतुलन को उत्पन्न कर सकती हैं।
  • गंगा नदी के किनारे वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए। गंगा नदी के गाद की नियमित सफाई की जानी चाहिए।
घटती जा रही कृषि भूमि के संदर्भ में – 
  • वैज्ञानिक प्रौद्योगिकियों की मदद से सिंचाई प्रणाली को तर्कसंगत बनाना समय की आवश्यकता है। अनुचित सिंचाई भूमि की उपजाऊ परतों के क्षरण के मामले में महत्त्वपूर्ण भूमि की क्षति का कारण बनती है। ड्रिप सिंचाई जैसी नियंत्रित सिंचाई प्रणाली को कृषि भूमि की प्रजनन क्षमता को संरक्षित करने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • खेतों के प्रबंधन के लिए अच्छी तरह से मिट्टी का पूर्व में अध्ययन आवश्यक है। केन्द्र सरकार ने मिट्टी से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराने हेतु ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की है। जिला स्तर पर किसान विज्ञान केन्द्र (केवीके) द्वारा स्थानीय समुदाय और संस्थाओं के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं को सुरक्षित करके इस योजना को और मजबूत किया जाना चाहिए। खेती के संबंध में वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए जिला स्तर पर कार्यशालाएँ भी आयोजित की जा सकती हैं।
  • हाल ही में नैनो टेक्नोलॉजी का उभरता एवं विस्तृत होता क्षेत्र नैनो टेक्नोलॉजी आधारित मिट्टी संशोधन जैसी नवीन कृषि प्रौद्योगिकी के विकास में मदद करती है। इस तकनीक के माध्यम से मिट्टी में उपस्थित अपोषक तत्त्वों को समाप्त किया जा सकता है, जो पौधों के विकास को रोकते हैं। हैं। कृषि विज्ञान सूचना की निगरानी के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) को भी नियोजित किया जा सकता है।
  • चावल की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि इसकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है और पर्यावरण के कारण इसमें आ प्रभावों को कम किया जा सके।
  • मरूस्थलीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाने हेतु मरूस्थलों की सीमाओं पर व्यापक वानिकी ।

प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु – 

एकीकृत जल प्रबंधन – कुशल ऑन-फार्म वाटर कल्चर, स्टोरेज, पंपिंग, फील्ड एप्लिकेशन और ड्रेनेज टेक्नोलॉजी कृषि क्षेत्र में पानी की चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकते हैं। जल प्रबंधन प्रौद्योगिकी में नल ट्यूब, कुएँ, ऑन साइट स्टोरेज टैंक और प्रभावी सिंचाई विधियाँ शामिल हैं। ड्रिप सिंचाई, जिसमें पौधों के जड़ में सीधे पानी पहुँचाया जाता है, सिंचाई प्रौद्योगिकी का सबसे प्रभावी रूप है, लेकिन वर्तमान में यह महंगा है। टेलीमेडिसिन प्रणाली का उपयोग कर दूरी की बाधाओं को कम करके चिकित्सा सेवा में सुधार कर आम लोगों तक पहुँचाना जो आमातौर पर दूरस्थ ग्रामीण समुदायों में लगातार उपलब्ध नहीं होता है। यह तकनीक भारत में बेहद प्रासंगिक है क्योंकि देश में छोटी-छोटी ग्रामीण बस्तियाँ बहुत अधिक है और वहाँ स्वास्थ्य सेवा की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इस कारण स्वास्थ्य गुणवत्ता में सुधार के दृष्टिकोण से इसका अत्यधि क महत्त्व है।

  • स्वास्थ्य देखभाल प्रबंधन में 3-डी मुद्रण को बढ़ावा देने के लिए कम लागत, सुविधाजनक अंग प्रत्यारोपण इत्यादि का फायदा लिया जा सकता है। भारतीय स्वास्थ्य उद्योग में गैर-संक्रमणीय बीमारियों के बोझ को बढ़ाने की पृष्ठिभूमि में इसकी अत्यधिक संभावना है।
  • नियामक अनुपालन को बनाए रखते हुए हेल्थकेयर भुगतानकर्ता और प्रदाता क्लिनिकल परीक्षण डेटा और इलेक्ट्रॉनिक चिकित्सा रिकॉर्ड प्रबंधित करने के लिए ब्लॉकचेन और आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) का उपयोग कर सकते हैं। इससे भारतीय स्वास्थ्य उद्योग में नवीन बदलाव आएगा।

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