वर्त्तमान में भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें दूर करने हेतु सुझाव दें। साथ ही भारतीय कृषि के विकास हेतु सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रमुख कार्यक्रमों की चर्चा करें ।
- मॉनसून की अस्थिरता फसल उत्पादन को प्रभावित करती है : भारतीय कृषि काफी हद तक मानसून पर निर्भर है। मानसून में उतार-चढ़ाव की स्थिति में फसलों के उत्पादन में भी उतार-चढ़ाव होता है। इस प्रकार, हम एक वर्ष ऐसा देखते हैं जिसमें एक अच्छी फसल होती है, और उसके बाद के वर्ष में अनाज की कमी होती है। इससे कीमत के साथ-साथ रोजगार में भी उतार-चढ़ाव होता है।
- फसल प्रतिरूप – भारत में कृषि समस्याओं के समाधान के लिए फसल चक्र का अच्छा होना एक बेहतर उपाय है। जब अनाज उगाया जाता है, तो यह मिट्टी की उर्वरता को प्रभावित करता है। मिट्टी की उर्वरता कम होने जैसी कृषि समस्याओं का समाधान यह हो सकता है कि अनाज उगाए जाने और खेती के बाद उसी भूखंड पर दलहन उगाया जा सकता है।
- भूमि का स्वामित्व – भारत में भूमि का स्वामित्व बहुत ही विविध है। भूमि का एक बड़ा हिस्सा अमीर किसानों, साहूकारों और जमींदारों के पास है। कई छोटे किसानों के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है, जो उन्हें बनाए रखने ( Sustain) के लिए पर्याप्त नहीं है। यदि वे एक वर्ष में लाभ नहीं कमा पाते हैं, तो उन्हें साहूकारों से ब्याज की अत्यधिक दरों पर पैसा उधार लेना पड़ता है, और अगर वे पैसे वापस नहीं कर पाते हैं तो वे कर्ज में फंस जाते हैं। एक अन्य समस्या यह है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि और संयुक्त परिवार प्रणाली के टूटने से भूखंडों का और अधिक विभाजन हो गया है। इनमें से कई भूखंड खेती योग्य नहीं हैं, और बड़े खेत जो पहले खेती किए गए थे, अब बंजर पड़े हैं।
- मजदूरों की स्थिति – मजदूरों की स्थिति दयनीय है। कृषि के महत्व को समझते समय, मजदूरों / छोटे किसानों की स्थितियों को समझना और उनकी मदद करना होगा, ताकि वे एक ऐसा जीवन जी सकें, जो कम से कम निर्वाह स्तर से ऊपर हो ।
- बीज की खराब गुणवत्ता – कृषि समस्याओं को संबोधित करते हुए, हमें बीज की गुणवत्ता पर विचार करना होगा। बीज की गुणवत्ता काफी हद तक मायने रखती है क्योंकि फसल की उपज बीज पर निर्भर करती है। ऐसे बीज जो ‘सुनिश्चित गुणवत्ता’ वाले हैं, वे बेहद महंगे हैं और भारत के अधिकांश किसानों की पहुंच से बाहर हैं। इसप्रकार अच्छे बीजों के अभाव में फसलों की पैदावार खराब होती है और गरीब किसानों का ऋण के दुष्चक्र से बचना मुश्किल होता है।
- अपर्याप्त उर्वरक और खाद का उपयोग – खाद का अपर्याप्त उपयोग, जो किसानों के लिए आसानी से उपलब्ध है, उस सीमा तक नहीं किया जाता है जितना उनका उपयोग किया जा सकता है। वनस्पति अपशिष्ट, गाय के गोबर के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों का भी उतना उपयोग नहीं किया जाता है जितना उनका उपयोग होना चाहिए, जिस कारण कृषि उत्पादन चीनी या जापानी कृषि की तुलना में कम होता है।
- मशीनरी का कम उपयोग – कृषि के महत्व को समझते हुए, हमें कृषि उपकरणों के उपयोग पर विचार करना होगा। कई किसान अभी भी हल और अन्य स्वदेशी खेती के साधनों का उपयोग करते हैं, हालांकि आधुनिक कृषि यंत्र काफी आसानी से उपलब्ध हैं । किसानों द्वारा इस मशीनरी का उपयोग नहीं किये जाने के दो कारण हैं पहला वे इसे खरीदने का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं। दूसरा कारण यह है कि मशीनरी के व्यवहार्य उपयोग के लिए भूमि के भूखंड बहुत छोटे हैं।
- मृदा अपरदन – आज भारत कृषि की जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, वह जल और वायु के कारण मृदा की गुणवत्ता में कमी आना है। भूमि के इन बड़े खण्डों का उचित उपचार किया जाना चाहिए और उन्हें पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए ।
- कृषि विपणन – कृषि की एक प्रमुख समस्या इसका विपणन है, खासकर छोटे किसानों द्वारा । कृषि से होने वाली कम आय काफी हद तक इस कारण से है कि किसानों को अपनी उपज बहुत ही सस्ते दर पर बिचौलियों को बेचनी पड़ती है, जिससे उन्हें बहुत कम लाभ होता है। भूमि जोत में परिवर्तन के कारण, भूखंड बहुत छोटे हो गए हैं, जिससे प्रति एकड़ उत्पादकता कम होती है।
कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए सुझाव –
- उर्वरको के अधिक उपयोग, उन्नत बीज, कीटनाशक, कृषि औजार और पशुधन में सुधार, दोहरे फसल की शुरूआत और अधिक उत्पादकता वाले फसल चक्र आदि द्वारा कृषि कार्यप्रणाली के महत्व को रेखांकित करना ।
- सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और युद्धस्तर पर मिट्टी के कटाव और जल भराव की समस्याओं से निपटना।
- किसान को उसकी मेहनत का पूरा फल मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए विपणन और ऋण सुविधाओं में सुधार।
- अर्थव्यवस्था के गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को विकसित करके मिट्टी पर समान दबाव से राहत ।
- सामान्य और तकनीकी शिक्षा देकर किसानों की गुणवत्ता में सुधार करना ।
- मौजूदा भू-जोतों को आर्थिक परिमाण (size) में लाना अनुचित और अक्षम भूमि प्रणाली में सुधार करना और यह सुधार सिर्फ कागज पर ही नहीं होना चाहिए बल्कि प्रभावी रूप से क्रियान्वित भी किया जाना चाहिए।
- राजनीतिक और प्रशासनिक समुच्चय में सुधार ताकि कृषि समस्याओं से अधिक प्रभावी ढंग से निपटा जा सके ।
- लगान या मालगुजारी को काम करके तथा अनुपस्थित भूस्वामियों के पूर्णत: उन्मूलन द्वारा काश्तकारी कानूनों को वास्तविक जोतदारों के अधि क अनुकूल बनाया जाना चाहिए ।
- जोतों को समेकित करना एवं जहाँ तक संभव हो यांत्रिक सहकारी कृषि सम्बंधी पहल करना तथा पुराने प्रचलित तकनीकों को आधुनिक तकनीकों द्वारा पूर्णतः प्रतिस्थापित करना
- कृषि सम्बंधी अभिरुचि वाले धनाड्य व्यक्तियों के संसाधनों एवं उद्यमों को आकर्षित किया जाना जिससे की फार्मिंग में भी निजी निवेश को प्रेरित किया जा सके।
इस क्षेत्र में हाल की प्रमुख सरकारी पहलों में से कुछ इस प्रकार हैं –
- भारत सरकार भारत से कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एयर कार्गो सहायता प्रदान करने की योजना बना रही है।
- भारत सरकार ने सहकारी कृषि को डिजिटल तकनीक से लाभान्वित करने के लिए प्राथमिक कृषि साख समिति के कम्प्यूटरीकरण के लिए 2000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
- भारतीय किसानों की मदद के लिए मृदा स्वास्थ्य ऐप और स्वास्थ्य कार्ड का वितरण। 2017-18 के दौरान देश में 100 मिलियन से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) वितरित किए गए हैं।
- सूखे के स्थाई समाधान के लिए कृषि सिंचाई स्रोतों के कृषि विकास में नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए नया एग्री-उड़ान (AGRI-UDAAN) कार्यक्रम शुरू किया गया।
- भारत सरकार ने 50,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) शुरू की है। सरकार ने मेगा फूड पार्क विकसित करने के लिए 6,000 करोड़ रुपये के निवेश हेतु प्रतिबद्ध है।
- भारत सरकार ने खाद्य उत्पादों के विपणन और खाद्य उत्पाद ई-कॉमर्स में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी है।
- कृषि उपज को बेचने के लिए एक नया मंच ई-रकम लॉन्च किया गया । यह मेटल स्क्रैप ट्रेड कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सेंट्रल रेल साइड वेयरहाउस कंपनी लिमिटेड (CRWC) की एक संयुक्त पहल है।
- भारत सरकार ने किसानों के लिए यूरिया सब्सिडी 2020 तक बढ़ा दी। 2018-19 के लिए यूरिया सब्सिडी 45,000 करोड़ रुपये (6.95 बिलियन अमरीकी डालर) अनुमानित है।
भारत ने 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसने एक किसान परिवार की औसत आय को 2015-16 में 96,703 रुपये से 2022-23 तक वर्तमान मूल्य पर 219,724 रुपये तक बढ़ाने की भी योजना बनाई है। भारत में कृषि के बुनियादी ढांचे जैसे कि सिंचाई की सुविधा, भण्डारण और कोल्ड स्टोरेज में निवेश बढ़ने से अगले कुछ वर्षों में बेहतर उपज और विकास की उम्मीद है। कृषि विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आगामी कुछ वर्षों में भारत दाल के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा। यह मुख्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि द्वारा समर्थित तथा समय से पहले तैयार या परिपक्व होने वाली दलहनों की नई किस्में तैयार करने वाले वैज्ञानिकों की बड़ी मेहनत के कारण संभव हुआ है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here