कश्मीर मुद्दे पर भारत के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद इस मुद्दे को सुलझाने में पाकिस्तान की भूमिका कभी भी सकारात्मक या सहयोगात्मक नहीं रही है। हाल की घटनाओं के प्रकाश में समीक्षा करें और इस मुद्दे को हल करने के लिए संभावित उपाय सुझाएं।
आज ‘कश्मीर’ शब्द दक्षिण एशिया में मृत्यु, विनाश और धार्मिक नरसंहार का पर्याय बन गया है। यद्यपि कश्मीर मुद्दे की जड़ें भारत और पाकिस्तान के बीच एक क्षेत्रीय विवाद की है तथापि यह वर्षों से एक बहुआयामी मुद्दे के रूप में विकसित हुआ है। कश्मीर भारत और पाकिस्तान के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। सिल्क रूट (पाकिस्तान और चीन के बीच की प्राथमिक भूमि का लिंक) कश्मीर से होकर गुजरता है। यह इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन का भारत के साथ सीमा विवाद है और चीन पाकिस्तान के लिए एक प्रमुख राजनयिक और सैन्य सहयोगी भी है। सिल्क रूट चीन को उसके सबसे बड़े क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भारत के प्रति आक्रामक मुद्रा बनाए रखने में सहायता देता है। कश्मीर में कई अन्य क्षेत्र हैं जिनका काफी ज्यादा भू-राजनीतिक महत्व है। ऐसा ही एक क्षेत्र काराकोरम दर्रे में सियाचिन ग्लेशियर है। यह एकमात्र बाधा है जो पाकिस्तानी और चीनी सेनाओं को कश्मीर से विलग करती है। अपने सामरिक और राजनीतिक महत्व के अलावा, सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों से पाकिस्तान और भारत दोनों कश्मीर पर दावा करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के सामने सबसे बड़ा मुद्दा कश्मीर संकट बन गया है।
- 1947 के बाद से, भारत और पाकिस्तान ने चार युद्ध लड़े हैं – सबसे हालिया 1999 में कारगिल संघर्ष – जिनमें से तीन मुख्य रूप से या कश्मीर के बारे में लड़े गए हैं। हालाँकि भारत ने 1990 के दशक के अंत में बड़े पैमाने पर सशस्त्र अलगाववादियों व घुसपैठियों को हराया, एक निम्न स्तर का विद्रोह आज भी जारी है।
- इस तथ्य के बावजूद कि कारगिल संघर्ष के बाद, 2003 में एक युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, सीमा पार से पाकिस्तान की ओर से नियमित रूप से युद्धविराम का उल्लंघन हुआ है, इस तरह की प्रवृत्ति 2009 के बाद से बढ़ रही है। युद्धविराम समझौते के उल्लंघन के कारण दोनों पक्षों के सुरक्षा बलों के साथ-साथ नागरिक भी हताहत और घायल हुए हैं ।
- भारत में शासन परिवर्तन के बाद युद्धविराम समझौते के उल्लंघन के प्रति एक अलग दृष्टिकोण रहा है। नई सरकार की हार्डलाइन नीति के कारण, अकारण गोलीबारी का बड़े पैमाने पर प्रतिशोध लिया गया है ।
- इस प्रकार प्रयासों के बावजूद नियंत्रण रेखा के पार से आतंकवादियों की घुसपैठ की संख्या में वृद्धि हुई है।
- 2014 में आये विनाशकारी बाढ़ के बाद कश्मीरी लोगों और व्यवस्था के बीच बढ़ती दूरी के साथ, घाटी में फिर से असंतोष बढ़ रहा था। आतंकवादी संगठन हिजब-उल-मुजाहिदीन के आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के कारण घाटी में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और स्थिति लगभग अस्थिर हो गई। घाटी में विरोध प्रदर्शन और पथराव की घटनायें लगभग दैनिक दृश्य बन गयी हैं।
- पाकिस्तान ने स्थिति का लाभ उठाते हुए राज्य में भारतीय व्यवस्था और सैन्य बलों के खिलाफ लड़ने वाले तत्त्वों को सभी प्रकार के संभावित समर्थन प्रदान करके विरोध प्रदर्शनों को हवा दी है। पाकिस्तान के पीएम, वास्तव में, एक कदम आगे चले गए और 2016 की संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान वानी को शहीद और कश्मीर के लोगों के संघर्ष को आजादी के लिए संघर्ष घोषित कर दिया।
- यह कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख के साथ तालमेल रखता है, अर्थात कश्मीर के मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने और कश्मीरी लोगों के भाग्य का फैसला करने के लिए भारतीय प्रशासन के तहत शासित कश्मीर में जनमत संग्रह कराना। भारत द्वारा इस रुख को खारिज कर दिया गया है क्योंकि भारत कहता है कि यह 1972 के शिमला समझौते का सीधा उल्लंघन है, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि सभी मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान द्विपक्षीय सहयोग से होगा।
- 2016 के जनवरी में पठानकोट हवाई अड्डे पर हमले के बाद, रिश्ते में एकबार फिर से कड़वाहट शुरू हो गया था, खासकर तब जब इस संदर्भ में देखा गया कि भारतीय पीएम ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष से मिलने के लिए पाकिस्तान की अनिर्धारित यात्रा का आयोजन किया। कश्मीर पहले से ही उबाल पर था और पाकिस्तान द्वारा इस स्थिति में आग लगाने के लिए ईंधन, सितम्बर 2016 में उरी में सेना के शिविर पर हमले को अंजाम देकर दिया गया, जिसमें 19 भारतीय सैनिक मारे गए थे, भारतीय पीएम ने यह घोषणा की कि बातचीत और आतंकवाद हाथ से हाथ से हाथ मिलकर नहीं चल सकते।
- इसके बाद भारतीय सेना द्वारा एलओसी पार सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकी ढांचे को निशाना बनाया गया।
- फिर पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट क्षेत्र में (आतंकी क्षेत्र) सैन्य कार्यवाही को अंजाम दिया गया।
- पहली बार भारत ने सिंधु जल संधि के साथ छेड़छाड़ की, एक संधि जो 55 साल से अधिक समय से कड़वे व खट्टे संबंधों के बावजूद टिकी है। इस प्रकार, भारत का अपना रुख यह है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करता है, तब तक राष्ट्रों के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती है।
- दूसरी ओर, पाकिस्तान भारत के साथ बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन वह कश्मीर मुद्दे को शामिल करके चर्चा करना चाहता है, जिसे वह हर बार उठाता रहता है।
संभव उपाय –
- भारत और पाकिस्तान पड़ोसी हैं और पड़ोसियों को बदला नहीं जा सकता। इस प्रकार, यह दोनों राष्ट्रों के हित में है कि वे सभी मुद्दों को बातचीत के पटल पर लाएं और उनका सौहार्दपूर्वक समाधान निकालें।
- भारत चाहता है कि पाकिस्तान अपनी धरती से प्रायोजित होने वाले आतंकवाद पर अधिक मजबूती से कार्रवाई करे।
- साथ ही, भारत चाहता है कि पाकिस्तान जल्द से जल्द 26/11 के मुकदमे को समाप्त करे ताकि पीड़ितों को समय से न्याय मिले और साजिशकर्ताओं को उचित सजा मिल सके ।
- भारत की चिंताए वास्तविक हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घोषित आतंकवादी पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं और नफरत फैलाने वाले भाषणों के साथ-साथ आतंकवादी हमलों को अंजाम दे रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा पाकिस्तान पर अपनी धरती का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने हेतु करने का आरोप लगाया गया है। पाकिस्तान इस स्थिति से इनकार नहीं कर सकता है और इस प्रकार, पाकिस्तान को आतंकवाद से संबंधित मुद्दों पर सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
- अगर सीमा पर शांति स्थापित हो जाये और कश्मीर पर कोई समाधान निकलता है, तो चीन अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरने वाला चीनपाकिस्तान आर्थिक गलियारा निश्चित रूप से कश्मीर, उसके लोगों और राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभान्वित कर सकता है। कश्मीर मध्य एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य कर सकता है।
- तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान – पाकिस्तान – भारत (TAPI) पाइपलाइन जो तुर्कमेनिस्तान से शुरू होता है और अफगानिस्तान, पाकिस्तान से गुज़रता है तथा अंत में भारत में पहुँचता है। पाकिस्तान और भारत दोनों की राष्ट्रीय ऊर्जा जरूरतों को सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
- ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन एक अन्य परियोजना है, जो वर्तमान में ठप है। यदि संबंध सौहार्दपूर्ण हो, तो यह पाइपलाइन भी दोनों राष्ट्रों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है।
- एक स्थायी और शांतिपूर्ण अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत दोनों के हित में है। आतंकवाद से भारत और पाकिस्तान दोनों देश प्रभावित हो रहे हैं और अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के बीच पारगम्य सीमा आतंकवादियों को सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करती है। साथ ही, पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध अफगानिस्तान के लिए सीधी सड़क पहुंच प्रदान कर सकते हैं। वर्तमान में, भारत को किसी भी व्यापारिक सामान को भेजने हेतु ईरान से होकर अफगानिस्तान जाना पड़ता है और साथ ही अफगानिस्तान को भी ऐसा ही करना पड़ता है ।
- दोनों देशों के बेहतर सम्बंधों की स्थिति में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और इस एसोसिएशन द्वारा की गई पहल अधिक प्रासंगिकता धारण करने लगेगी, क्योंकि वर्तमान में यह संगठन अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाया है, भारत-पाकिस्तान के रिश्ते में खटास के चलते किसी भी शिखर सम्मलेन में दोनों देशों के विवाद बाधा के रूप में कार्य करते हैं ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here