बुद्धि से क्या तात्पर्य हैं ? इसके प्रकार की विवेचना करें।
उत्तर – बुद्धि शब्द का प्रयोग हम साधारण बोलचाल की भाषा में कई अर्थों में करते हैं। उदाहरणार्थ, ‘अभिषेक, कैसा बुद्धिमान बालक है ? ‘अनुराग’ से अधिक बुद्धिमान है? ‘अभिनव’ का दिमाग बहुत तेज है? ‘अमिताभ’ का बौद्धिक विकास अभी नहीं हुआ है। इन वाक्यों का विश्लेषण करने पर प्रश्न उठता है— क्या बुद्धि वास्तव में कोई शक्ति है ? क्या इसका सम्बन्ध मस्तिष्क से है ? क्या यह कोई विकासशील वस्तु है ? बुद्धि को अनेक प्रकार से क्यों परिभाषित किया जाता है ? इन प्रश्नों के उत्तर में कहा जा सकता है कि जिस मानसिक तत्त्व के कारण बालकों के सीखने की क्षमता में अन्तर उपस्थित हो जाता है, , जिस तत्त्व के कारण उनकी स्मृति में भिन्नता दिखाई देती है, जिस तत्त्व के कारण किसी समस्या को हल करने में वैयक्तिक अन्तर दिखाई देता है, उस कारण को समझाने के लिये जो अर्थ (explanation) हम देते हैं, उस अर्थ को ही बुद्धि की संज्ञा दी जाती है। दूसरे शब्दों में, बुद्धि एक ऐसा मानसिक तत्त्व है जिसके कारण दो बालकों को एक ही ढंग से पढ़ाये जाने पर उनके समझने के स्तर में अन्तर आ जाता है, जिसके कारण ही दो व्यक्तियों की स्मरण शक्ति में भिन्नता दिखाई देती है, जिसके ही कारण दो व्यक्ति एक ही समस्या को हल करने में अलग-अलग योग्यता का प्रदर्शन करते हैं। संक्षेप में, बुद्धि एक अर्थ (explanation) है जिसे अंग्रेजी में construct के नाम से पुकारा जाता है। वैयक्तिक विभिन्नता के प्रत्यय को विद्वान अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हैं, इसलिये बुद्धि जो केवल अर्थ मात्र है, उसे भी अनेक प्रकार से परिभाषित किया जाता है। अब चूँकि, बुद्धि वैयक्तिक विभिन्नताओं का एक अर्थ मात्र है, अतः इसकी कोई भौतिक सत्ता नहीं है, भौतिक सत्ता न होने के कारण उसके आयाम (dimensions) भी भौतिक नहीं हैं, वे तो केवल कुछ गुण मात्र हैं। जो विशेष लक्षण, समस्या समाधान, चिन्तन आदि में एक व्यक्ति को दूसरे से भिन्न बना देते हैं, बुद्धि के आयाम कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा सीखी हुई वस्तु को धारणा में अधिक समय तक रख सकता है अथवा एक व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा समस्या का हल तुरन्त ढूँढ लेता है अथवा एक व्यक्ति दूसरे की अपेक्षा अधिक तर्कपूर्ण ढंग से चिन्तन कर सकता है, तो व्यक्तिक विभिन्नता के ये लक्षण, जिन्हें हम स्मृति, समस्या समाधान शक्ति अथवा तर्क पूर्ण चिन्तन कह सकते हैं, बुद्धि के आयाम माने जा सकते हैं। इन आयामों का संवहन इन्द्रियों से नहीं होता लेकिन व्यक्ति के आचरण को देखकर उनके अस्तित्व का आभास अवश्य लग जाता है। जिस प्रकार, किसी कमरे की लम्बाई को हम आसानी से माप सकते हैं उसी प्रकार, किसी बालक को किसी नई समस्या को हल करते देखकर यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि उसमें समस्या को हल करने की कितनी शक्ति विद्यमान है। इस प्रकार, बुद्धि के विभिन्न आयामों एवं विशेष लक्षणों का अनुमान व्यक्ति के कार्य अथवा आचरणों को देखकर लगा लेते हैं। यदि बुद्धि के इन आयामों अथवा विशेष लक्षणों का निर्धारण कर लिया जाये तो बुद्धि का मापन भी किया जा सकता है।
बुद्धि के स्वरूप की व्याख्या अनेक प्रकार से की गई है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं –
एडम्स (Adams) का कहना है, “सांसारिक जीवन के उपयोग में आने वाला हमारा ज्ञान या विचार ही बुद्धि है । ” इसी प्रकार बैलर्ड (Ballard) के अनुसार, “बुद्धि वह मानसिक योग्यता है जो ज्ञान, रुचि, आदत रूपी साधनों के माध्यम से नापी जाती है । ” इसके विपरीत मैकडूगल बुद्धि को ज्ञानात्मक शक्ति नहीं मानता। उसके अनुसार, “बुद्धि एक क्रियात्मक मानसिक शक्ति है। ”
(i) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) – सामाजिक बुद्धि से तात्पर्य उसी प्रकार की सामान्य मानसिक क्षमता से होता है, जिसके सहारे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को ठीक ढंग से समझता है तथा व्यवहारकुशलता भी दिखाता है। ऐसे लोगों के सामाजिक सम्बन्ध (Social Relationship) काफी अच्छे होते हैं तथा समाज में इनकी प्रतिष्ठा भी . अधिक होती है। इनमें सामाजिक कौशलता (Social Skill) उच्च स्तर की होती है। जिन व्यक्तियों में सामाजिक बुद्धि होती है, उनमें अन्य लोगों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार करने की क्षमता, अच्छा आचरण करने की क्षमता एवं समाज के अन्य लोगों से मिल-जुलकर सामाजिक कार्यों में हाथ बँटाने की क्षमता अधिक होती है। ऐसी बुद्धि होने के बावजूद वह अपने सामाजिक जीवन को सफल बनाने में सहायक नहीं हो पाता है; क्योंकि वह इसके अभाव में समाज में प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवहार नहीं कर सकता। स्पष्ट है कि सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) एक ऐसी बुद्धि है जो व्यक्ति को सामाजिक परिस्थितियों में समायोजित होने में मदद करती है। इसी अर्थ में ड्रेवर एवं वालरस्टीन (Drever & Wallerstein, 1984) ने सामाजिक बुद्धि को परिभाषित करते हुए कहा है, “सामाजिक बुद्धि, बुद्धि का एक प्रकार है जो किसी व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों एवं सामाजिक सम्बन्धों के प्रति व्यवहार में निहित होता है।’
सामाजिक बुद्धि को मापने का प्रयास भारतीय मनोवैज्ञनिकों तथा विदेशी मनोवैज्ञानिकों, दोनों ही द्वारा दिया गया है। भारत में घोष (Ghost, 1959) ने बंगाली भाषा में सामाजिक बुद्धि मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया है तथा गंगोपाध्याय (Gangopadhyay, 1974) ने भी सामाजिक बुद्धि मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया है। उसी तरह अमरीका के गिल्फोर्ड तथा बर्क (Guilfored & burke, 1926) तथा क्रॉनबैक (Cronbach, 1979) ने भी सामाजिक बुद्धि को मापने का एक परीक्षण विकसित किया है।
संक्षेप में, अपने समाज के अनुकूल व्यवस्थित करने की योग्यता ही ‘सामाजिक बुद्धि’ है। यह दूसरे लोगों के साथ प्रभावपूर्ण व्यवहार करने की क्षमता है। दूसरों के साथ सदाचारण करने, उनसे मिल-जुलकर रहने, उनके साथ विकास के कार्यों में भाग लेने और सामाजिक कार्यों में रुचि लेने की योग्यता ही ‘सामाजिक बुद्धि’ है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सामाजिक बुद्धि नितान्त आवश्यक होती है। बहुत से व्यक्ति ऐसे भी देखे जाते हैं, जिनमें अमूर्त बुद्धि तो प्रतिभा की सीमा तक होती है; किन्तु सामाजिक बुद्धि के अभाव के कारण वे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। फिर प्रायः अमूर्त बुद्धि और सामाजिक बुद्धि का विकास साथ-साथ होता है, जो एक दूसरे को प्रभावित करती है ।
(ii) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)— अमूर्त विषयों के बारे में चिन्तन करने की क्षमता को ही अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) कहा जाता है। ऐसी बुद्धि में व्यक्ति शब्द, प्रतीक तथा अन्य अमूर्त चीजों के सहारे अच्छे से चिंतन कर लेता है। इस ढंग की क्षमता दार्शनिकों, कलाकारों, कहानीकारों आदि में अधिक होती है। ऐसे लोग प्रायः अपने विचारों, कल्पनाओं एवं मानसिक प्रतिमाओं (Mental Images) के सहारे बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान कर लेते हैं। जिन छात्रों में अमूर्त बुद्धि अधिक होती है, उनकी शैक्षिक उपलब्धियाँ (Academic Achievement) अधिक श्रेष्ठ (Superior) होती हैं। जिन व्यक्तियों में अमूर्त बुद्धि अधिक होती है, वे सफल कलाकार, पेन्टर, गणितज्ञ एवं कहानीकार आदि बनते हैं। टरमैन (Terman, 1937 ) के अनुसार अमूर्त बुद्धि का महत्त्व छात्रों के लिए अन्य दूसरी प्रकार की बुद्धि से अधिक होता है। अमूर्त बुद्धि को कुछ लोगों ने सैद्धान्तिक बुद्धि (Theoretical Intelligence) भी कहा है।
संक्षेप में, पुस्तकीय ज्ञान के प्रति अपने को व्यवस्थित करने की योग्यता ‘अमूर्त बुद्धि’ कहलाती है। विद्यालय के वातावरण में बुद्धि-परीक्षा सबसे अधिक सफल सिद्ध होती है। इस परीक्षा के द्वारा यह सफलतापूर्वक बताया जा सकता है कि बालक में कौन-कौन सी विशिष्ट योग्यताएँ हैं तथा रुझान – परीक्षा के द्वारा बालक की रुचि और रुझान के बारे में हमें लाभदायक जानकारी प्राप्त होती हैं। अमूर्त बुद्धि स्वयं अपने को ज्ञानोपार्जन के प्रति रुझान, पढ़ने-लिखने और शब्दों एवं प्रतीकों के रूप में आने वाली समस्याओं को हल करने के द्वारा अपने को अभिव्यक्त करती है। यह वह शक्ति है जो शब्दों और प्रतीकों के प्रति प्रभावशाली व्यवहार के रूप में व्यक्त होती है। जिस व्यक्ति में इस प्रकार की बुद्धि होगी, वह विद्यालय के ज्ञानोपार्जन के वातावरण में सबसे अधिक सफल होगा।
कोई भी व्यक्ति अमूर्त बुद्धि की कितनी मात्रा से युक्त है, इसकी जानकारी निम्नांकित विधि से की जा सकती है.-
इससे सिद्ध होता है कि अमूर्त बुद्धि त्रिमुत्री है। स्तर, क्षेत्र और वेग अथवा गति ही उसकी तीन विभिन्न विमाएँ हैं। यदि इस अमूर्त बुद्धि में किसी प्रकार की कमी हो, तो इससे यह तात्पर्य नहीं कि व्यक्ति की अन्य दो प्रकार की बुद्धि में भी किसी प्रकार की कमी होगी। अमूर्त बुद्धि से कम होने पर भी अन्य प्रकार की बुद्धि ठीक हो सकती है। बुद्धि की मात्रा विभिन्न व्यक्तियों में उनकी अनुभव करने, समझने और याद करने की शक्ति के अनुसार कम या अधिक होती है। बुद्धि की यह विभिन्नता तर्क में प्रयुक्त प्रतीकों में सदुपयोग के ऊपर भी बहुत आधारित होती है।
(iii) मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) – मूर्त बुद्धि से तात्पर्य इस प्रकार की मानसिक क्षमता से होता है, जिसके सहारे व्यक्ति मूर्त या ठोस वस्तुओं के महत्त्व को समझता है, उनके बारे में सोचता है तथा अपनी इच्छा एवं आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन लाकर, उन्हें उपयोगी बनाता है। इसे व्यावहारिक बुद्धि (Practical Intelligence) भी कहा जाता है। जिन बालकों में मूर्त बुद्धि अधिक होती है, उनमें हस्तकलाओं (Manual Dexterity) की क्षमता अधिक होती है तथा वे आगे चलकर एक सफल इंजीनियर या कुशल कारीगर बनने में सफलता प्राप्त करते हैं।
इनके अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की भी बुद्धि होती है जिसे गामक बुद्धि कहा गया है –
(iv) गामक अथवा यान्त्रिक बुद्धि (Motor or Mechanical Intelligence) – गामक बुद्धि यन्त्रों तथा मशीनों के साथ अनुकूलन की योग्यता है। इनके होने से व्यक्ति एक कुशल कारीगर, मिस्त्री, चालक अथवा दक्ष इंजीनियर हो सकता है। यह ऐसी शक्ति है, जिसके द्वारा व्यक्ति उन परिस्थितियों में, जिनका सम्बन्ध यन्त्रों अथवा भौतिक पदार्थों से होता है, अपने को सुव्यवस्थित कर लेता है। एक बालक, जिसमें अपनी साइकिल ठीक करने, घण्टी को स्वयं बना लेने, यान्त्रिक औजारों के ठीक-ठीक प्रयोग करने की क्षमता है, तो उस बालक के बारे में यह कहा जाएगा कि उसमें यान्त्रिक बुद्धि है। विभिन्न व्यक्तियों में उनकी गामक बुद्धि में भी अन्तर पाया जाता है। कोई व्यक्ति छोटे से और स्थूल यन्त्र को भी ठीक नहीं कर सकता, थोड़ी-सी साइकिल बिगड़ गई उन्हें पता ही नहीं, क्या खराबी है। साइकिल वाले की दुकान के लिए चले जा रहे हैं। दूसरा व्यक्ति है, अपने घर की बिजली की व्यवस्था स्वयं ठीक कर लेता है; साइकिल, घड़ी, मोटर भी ठीक कर लेता है। यद्यपि यह क्षमता अभ्यास के द्वारा बढ़ाई जा सकती है; किन्तु बहुत से लोग लम्बे अभ्यास के उपरान्त भी कुशल कारीगर, मिस्त्री एवं इंजीनियर नहीं बन पाते, जबकि दूसरे व्यक्ति थोड़े ही अभ्यास से उन कामों में दक्ष हो जाते हैं। जिन व्यक्तियों में गामक बुद्धि का विकास कम होता है, वे खेलों और अन्य शारीरिक कार्यों में भी कुशलतापूर्वक भाग नहीं ले सकते तथा हीन और दब्बू प्रकृति के होते हैं। गामक बुद्धि एक प्रकार से मूर्त बुद्धि का ही एक स्वरूप है।
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