सांवेगिक बुद्धि से क्या तात्पर्य हैं ? इसकी विशेषताओं एवं महत्त्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर – सांवेगिक बुद्धि (EQ) आज के युग का व्यावहारिक प्रतिमान है जिसे 1995 में प्रकाशित डेनियल गोलमैन (Daniel Goleman) की पुस्तक ‘सांवेगिक बुद्धि’ से विशेष स्थान प्राप्त हुआ। इससे पूर्व 1970’s तथा 1980’s में मूलतः जो सांवेगिक बुद्धि सिद्धान्त (Emotional Inteligence Theory) विकसित किये गये थे उनमें मनोवैज्ञानिक होवार्ड गार्डनर ( Howard Gardner) हार्वर्ड विश्वविद्यालय ( Howard), पीटर सालोवे (Peter Salovey) येल विश्वविद्यालय (Yale University) तथा जॉन ‘जैक’ मेयर (John ‘Jack’ Mayer) न्यू हेम्पशायर (New Hampshire) के नाम उल्लेखनीय हैं। आज सांवेगिक बुद्धि की प्रासंगिकता संगठनात्मक विकास एवं प्रगतिशील समाज में लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि EQ सम्बन्धी सिद्धान्त मानव व्यवहार को समझने, प्रबन्धन के तरीके, दृष्टिकोण, अन्तर्वैयक्तिक कौशल एवं क्षमता आदि को परखने में एक नई सोच विकसित करते हैं। सांवेगिक बुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण योगदान मानव संसाधन योजना व्यवसाय, नौकरी, साक्षात्कार, चयन, प्रबन्धन विकास, ग्राहक सम्बन्ध एवं सेवाएँ आदि क्षेत्रों में भी माना जाता है। सांवेगिक बुद्धि का सम्बन्ध दो प्रत्ययों से घनिष्ठ माना जाता है। ‘Love and Spirituality’ तथा ‘Multiple Intelligence Theory’. इसमें Love and Spiriuality कार्य के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना या सदृश्यता उत्पन्न करता है जबकि विविध बुद्धि सिद्धान्त ( MIT) व्यक्ति में निहित विविध योग्यताओं की अभिव्यक्ति एवं मापन करता है और ये दोनों सिद्धान्त यह मानकर चलते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का स्वयं का एक मूल्य (Value) होता है।
EQ प्रत्यय यह मानकर चलता है क परम्परागत बुद्धि (Conventional Intelligence) का प्रत्यय अत्यन्त संकीर्ण है जबकि EQ का प्रत्यय अत्यन्त व्यापक है जो हमें यह बताता है कि हम कितने सफल हैं तथा कितने सफल हो सकते हैं और कैसे ? सफलता प्राप्त करने में IQ से कहीं अधिक EQ का हाथ रहता है। हमें ऐसे अनेक लोगों से मिलने के अवसर प्राप्त होते हैं जो आकस्मिक रूप से काफी होशियार होते हैं लेकिन सामाजिक एवं अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों की दृष्टि से अयोग्य कहे जा सकते हैं क्योंकि EQ में ऐसे अनेकों व्यावहारिक एवं चारित्रिक तत्त्वों की अनदेखी की जाती है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि उच्च IQ रखने वाले व्यक्ति में सफलता स्वतः संचारित नहीं होती है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह शाश्वत् सत्य है। इस बदलते हुए परिवेश में वह प्राणी जीवित रह सकता है या अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है जो अपने आप को इन बदलती हुए परिस्थितियों में फिट (fit) रहते हुए सामान्य स्थापित कर सके। इसका अर्थ हैं ‘Survival of the fittest’ इसी तथ्य को चार्ल्स डरविन ने इस प्रकार कहा है—
“It is not the strongest of the species that survives, nor the most intelligent but the one most responsive to change.
आज का युग प्रतियोगिता का युग है जहाँ व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कदम-कदम पर प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है चाहे वह व्यावसायिक (professional) जीवन हो, सामाजिक जीवन हो या व्यक्तिगत (personal) जीवन हो । व्यक्ति को हर क्षेत्र में स्वयं को दूसरों से बेहतर सिद्ध करना पड़ता है तथा विपरीत परिस्थितियों से उबरना पड़ता है। प्राचीन काल से ही बुद्धि को ही सफलता की कौटी माना जाता रहा है। ऐसा माना जाता रहा है कि जिस व्यक्ति में जितनी अधिक IQ तथा उसकी सफलता में घनात्मक सह-सम्बन्ध होता है। अर्थात् यदि IQ अधिक है तो व्यक्ति के सफल होने की समस्याएँ बढ़ जाती हैं। दूसरे शब्दों में, अधिक IQ वाले व्यक्ति को कमाण्ड वाले व्यक्ति से अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। अब प्रश्न उठता है कि क्या एक औसत IQ वाला व्यक्ति जीनियस IQ वाले व्यक्ति से अधिक सफल हो सकता है ? तो इसका उत्तर है हाँ और ऐसा अन्तर E-Quotient अथवा सांवेगिक बुद्धि के कारण होता है। क्योंकि IQ आपको सिर्फ एकादमिक क्षेत्र में ही अच्छा अंक प्रदान कर सकता है। जबकि EQ आपको अपने जीवन की परीक्षा में अच्छे अंक दिलवाता है। सांवेगिक रूप से बुद्धिमान लोग बदलते वातावरण में शीघ्र समायोजित हो जाते हैं इसलिये उनके जीवित रहने की सम्भावनाएँ भी प्रबल हो जाती हैं। इस प्रकार के व्यक्ति केवल तथ्यों से ही काम नहीं लेते बल्कि वे तथ्यों के साथ-साथ भावनाओं से. भी काम लेते हैं। अथार्त् वे क्या (What) पर अधिक बल देने के बजाय ‘क्यों’ (why) और कैसे (How) पर अधिक बल देते हैं। वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अलग होता है इसलिये व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए सबके साथ एक जैसा व्यवहार न करके अलग-अलग तरीके से व्यवहार किया जाता है। वे अपनी भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं का भी ध्यान रखते हैं। आज के परिवेश में सफल होने के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि आपके अन्दर अच्छी सम्प्रेक्षण एवं संगठनात्मक क्षमतायें (communication and organization skill) हों ताकि आप दूसरों से अच्छी तरह से व्यवहार (deal) कर सकें तथा सही प्रकार से निर्णय ले सकें।
EQ के बारे में गोलमैन (Goleman) ने बताया था कि व्यक्ति को जीवन में 20% सफलता IQ के कारण तथा 80% सफलता E.I. के कारण मिलती है। विदेश की एक बड़ी कम्पनी में मैनेजर से अपने कर्मचारियों को रैंक (Rank) प्रदान करने के लिये कहा गया जो उसने Ranking देने में उच्च IQ को कसौटी न मानकर उनके अच्छे सम्बन्ध (relationships) तथा ग्राहकों को खुश करने के तरीकों को कसौटी माना। प्राय: स्कूल कॉलेजों में हम देखते हैं कि छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों पर अधिक बल देते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि टेस्ट तो सिर्फ प्रश्नों का एक सेट मात्र है जिसे हम सफलता की कसौटी मान लेते हैं। ऐसे बहुत कम स्कूल कॉलेज देखने को मिलते हैं जहाँ E.I. पर कोई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हों। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Emotional Intelligent’ में डेनियल ने लिखा है कि एक होनहार छात्र ने (Genius) अपने प्रोफेसर को सिर्फ इसलिये चाकू मार दिया था क्योंकि उसने उसे परीक्षा में कुछ कम अंक दिये थे। तो प्रश्न उठता है कि क्या इस प्रकार की बुद्धि भी हमारी असली सफलता की कसौटी बन सकती है ?
अरस्तू (Aristotle) ने कहा भी है — “Anyone can become angry- that is easy but to be angry with the right person to the right degree at the right time for the rigth purpose and in the right way, this is absolutely not easy.” गोलमैन ( Goleman) ने ये भी कहा है कि जो व्यक्ति अपने अन्दर भावनात्मक कौशल विकसित कर लेते हैं उनके अपने जीवन में प्रभावशाली बनने तथा अधिक संतुष्ट होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों का E.Q. कम होता है उनका जीवन अपनी परेशानियों को गिनने में ही कट जाता है क्योंकि उनका ध्यान ‘How’ की जगह ‘what’ पर अधिक रहता है। मानव जाति के प्रारम्भ में मनुष्य को ऐसे अनेकों निर्णय लेने थे जिनके लेने से उनकी जान बच सकती थी और कुछ निर्णय ऐसे थे जिनके लेने से उनकी जान जा सकती थी। अध्ययनों में पाया गया कि मनुष्य के मस्तिष्क के दो भाग होते हैं, एक emotional mind तथा दूसरा rational mind, ऐसा माना जाता है कि emotional mind rational mind की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी से कार्य करता है। अगर मनुष्य का अपने emotional mind पर नियन्त्रण होता तो शायद आज मानव जाति का कोई अस्तित्व ही नहीं होता। दुर्भाग्य से बुरी emotional skills तथा बढ़ते अपराधों की दर ( crime rate) में सीधा सम्बन्ध है। यही कारण है कि जिन बालकों की emotional skill ठीक से विकसित नहीं हो पाती, वे शीघ्र ही समाज विरोधी गतिविधियों का शिकार बन जाते हैं। बुरी भावात्मक एवं बुरी सामाजिक दक्षताएँ हमारे ध्यान को केन्द्रित होने में बाधक होती है तथा ( frustration ) को पैदा करती है जिससे लोगों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ते हैं, साथ ही हमारी उपलब्धि भी कम होती है। अतः हमारा दायित्व है कि हम बालक में प्रारम्भ से ही भावात्मक कौशल विकसित करें साथ ही, उसे दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना भी सिखाया जाये। आत्म-नियन्त्रण व आत्मसात् में कमी या देरी (delay of gratification) ये सब भावात्मक कौशल के ही पहलू हैं। अगर हमें जीवन में सफल होना है तो दूसरों की भावनाओं का समझना बहुत आवश्यक है। अच्छे भावात्मक कौशल एक अच्छे नेता की पहचान होते हैं। हम अपने जीवन में ऐसे अनेकों लोग देखते हैं जिन्होंने स्कूल, कॉलेजों में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किये पर अनेक बहुत ही कम दोस्त होते हैं और जीवन के अधिकतर सम्बन्धों को निभाने में वे विफल रहते हैं। स्वस्थ सम्बन्ध एक खुशहाल जीवन का सार व आधार होते हैं। इसलिये अपने अन्दर IQ के स्थान पर EQ या EI को विकसित करने पर अधिक बल देना चाहिये क्योंकि एक आपको ‘बुद्धिमान’ बनाता है तो दूसरा ‘समझदार’ किसी ने सही कहा है – “It is with the heart that one sees rightly, what is essential is often invisible to eyes.”
- आत्म-जागृति (Self-Awareness) — ऐसे व्यक्तियों को अपने संवेगों की ठीक से पहचान होती है तथा वे यह भी जानते हैं कि ये संवेग हमारे विचारों तथा व्यवहारों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। व्यक्ति अपनी क्षमताओं एवं कमियों के बारे में बखूबी जानता तथा आत्म-विश्वास में पूर्ण होता है। वे अपनी भावनाओं को स्वयं के ऊपरी हावी नहीं होने देते तथा उन पर पूर्ण नियन्त्रण रखते हैं क्योंकि उन्हें अपनी अन्तर्दृष्टि पर पूर्ण विश्वास होता है। वे स्वयं का ईमानदारी से मूल्यांकन करते हैं। इसलिये अधिकांश लोग आत्म-जागृति (ज्ञान) को सांवेगिक बुद्धि का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग मानते हैं।
- आत्म नियन्त्रण (Self-Regulation)– इस प्रकार की योग्यता से तात्पर्य संवेगों तथा उत्तेजनाओं को नियन्त्रण से है। ऐसे व्यक्ति जो आत्म-नियंत्रित होते हैं वे आसानी से क्रोधित नहीं होते हैं और न ही ईर्ष्या करते हैं, न ही उत्तेजित होते हैं और न ही लापरवाहीपूर्ण निर्णय लेते हैं। वे किसी कार्य को या क्रिया को करने से पूर्व भली-भांति उस पर विचार करते हैं। आत्म-नियंत्रण के गुणों के अन्तर्गत गहन विचार, सहज परिवर्तन, सामंजस्य तथा ‘न’ करने की योग्यता आदि आते हैं। अतः सांवेगिक बुद्धि से सम्पन्न व्यक्ति अपनी भावनाओं को स्वस्थ तरीके से नियन्त्रित करता है, पहल करता है तथा बदलती परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित कर लेता है।
- अभिप्रेरणा (Motivation)- ऐसे व्यक्ति जिनमें सांवेगिक बुद्धि का स्तर पर्याप्त उच्च होता है वे प्राय: प्रेरणा से परिपूर्ण होते हैं। उनमें उच्च स्तर के विकासशील कार्य करने की क्षमता है। वे चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करते हैं तथा उनमें कार्य करने में आनन्द का अनुभव करते हैं तथा जो कोई भी कार्य अपने हाथ में लेते हैं उसमें प्रभावपूर्ण तरीके से सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसे लोग हर समय जोश एवं उत्साह से भरे रहते हैं। ऐसे व्यक्ति दीर्घकालीन सफलता के लिये तात्कालिक परिणामों की परवाह नहीं करते हैं और उनकी अनदेखी आसानी से कर देते हैं क्योंकि इनका एकमात्र उद्देश्य लक्ष्य प्राप्ति होता है।
- परानुभूति (Empathy) — सम्भवतः सांवेगिक बुद्धि का यह दूसरा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है। परानुभूति का तात्पर्य यह है कि जो लोग आपके ईद-गिर्द रहते हैं आप उनमें अपनी पहचान बना सकें तथा उनकी इच्छाओं, विचारों एवं आवश्यकताओं को आसानी से समझ सकें। इस गुण से युक्त व्यक्ति दूसरों की भावनाओं को आसानी से समझ जाते हैं भले ही ये भावनाएँ स्वाभाविक न हों। इसका परिणाम यह होता है कि ऐसे लोग प्रबन्धन के क्षेत्र में महारथ हासिल करते हैं। ऐसे लोग दूसरों को समझने में जल्दबाजी से काम नहीं लेते और अपना जीवन शान्त व ईमानदारी के साथ जीते हैं। वे मधुर सम्बन्ध बनाना जानते हैं, अपनी बात को स्पष्ट तरीके से दूसरों के सामने रखना जानते हैं, दूसरों को प्रभावित करना जानते हैं, टीम वर्क (Team-work) में काम करना जानते हैं तथा संघर्षों को सुझाना जानते हैं। इसीलिये इस Domain को Relationship Management भी कहा गया है।
- सामाजिक चेतना (Social Awareness ) सामान्यत: ऐसे लोगों से बातचीत करना तथा उन्हें पसन्द करना सहज होता है जिनमें अच्छी सामाजिक कुशलता होती है। यह सांवेगिक बुद्धि का एक अन्य अच्छा संकेत है। ऐसे लोग जिनमें जबरदस्त सामाजिक दक्षता होती है वे अच्छे Team Player के रूप में जाने जाते हैं। वे अपनी सफलता पर केन्द्रित होने के स्थान पर पहले दूसरों की सहायता में विश्वास रखते हैं ताकि वे उन्नति कर सकें तथा चमक सकें। ऐसे लोग झगड़ों को आसानी से निपटा लेते हैं, अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से दूसरों तक पहुँचा सकते हैं तथा अच्छे सम्बन्धों को बनाने तथा बनाये रखने में निपुण साबित होते हैं। इन्हें किसी समूह या संगठन की शक्ति गतिकी (Power Dynamics) का पूरा ज्ञान होता है। इस प्रकार किसी भी समूह के नेता में अपने अन्दर की नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करने के लिये सांवेगिक बुद्धि एक सही रास्ता हो सकती है।
जैसा कि हम जानते हैं आज की दुनिया में स्मार्ट लोग न तो अत्यधिक सफल होते हैं और न ही अपने जीवन से संतुष्ट रहते हैं। हम सम्भवतः ऐसे लोगों को भी जानते हैं जो एकात्मक रूप से अत्यधिक होनहार होते हैं लेकिन सामाजिक क्षेत्र में अत्यन्त पिछड़े। वे अपने कार्यक्षेत्र में भी पिछड़े रहते हैं तथा व्यक्तिगत सम्बन्धों में भी। जीवन में सफल होने के लिए IQ ही पर्याप्त नहीं है। IQ आपको कॉलिज में प्रवेश दिलाने में सहायक हो सकती है लेकिन यह EQ ही है जो परीक्षा भवन में आपके तनाव एवं मनोवेगों को नियन्त्रित करने में सहायता प्रदान करेगी।
इस प्रकार, सांवग्निक बुद्धि का महत्त्व अग्र बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
- कार्य निष्पादन (Your Performance at Work) — सांवेगिक बुद्धि आपके कार्यक्षेत्र सम्बन्धी सामाजिक जटिलताओं को हल करने की दृष्टि से एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य कर सकती है। यह दूसरों को प्रेरित करने का कार्य कर सकती है तथा जीवन में आगे बढ़ने में प्रोत्साहन दे सकती है। आपके व्यवसाय को गति प्रदान कर सकती है। वस्तुत: आजकल जब बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने यहाँ कर्मचारियों की नियुक्ति करती हैं तो वे साक्षत्कार के समय अभ्यर्थी की सांवेगिक बुद्धि को पर्याप्त महत्त्व देती हैं तथा EQ का भलीभांति परीक्षण करती हैं। वे यह मानकर चलती है कि अभ्यर्थी की सांवेगिक बुद्धि उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी की उनकी तकनीकि योग्यता।
- शारीरिक स्वास्थ्य (Your Physical Health) — यह सही है कि यदि आप अपने तनाव के स्तर को कम नहीं कर सकते हैं तो आप कई प्रकार की गम्भीर शारीरिक समस्याओं की चपेट में आ सकते हैं। अनियन्त्रित तनाव जिन रोगों को जन्म देते हैं उनमें प्रमुख है, उच्च रक्तचाप, रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system), हृदय आघात का खतरा, नपुसंकता या बांझपन (Infertility), तथा उम्र का तेजी से बढ़ना ( Speed-up Aging process) आदि। इसलिये सांवेगिक बुद्धि में वृद्धि का पहला कदम यह है कि व्यक्ति को तनाव से छुटकारा पाने के उपाय सीखने चाहिये।
- मानसिक स्वास्थ्य (Your Mental Health) — अनियन्त्रित तनाव आपके मानसिक . स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। यह आपको चिन्ताओं एवं अवसादों के घेरे में ले सकता है जिससे बाहर निकल पाना आसान नहीं होता। इस प्रकार यदि आप अपने मनोभावों को ठीक से नहीं समझ पाते हैं या उन्हें नियन्त्रित नहीं कर पाते हैं तो आप मूडी कहलायेंगे और लोग आपकी ओर कोई विशेष ध्यान भी नहीं दे पायेंगे जो आपको समाज से अलग-थलग भी कर सकती है तथा आप अकेलेपन का भी शिकार हो सकते हैं। आप आत्म-केन्द्रित होकर ही रह जायेंगे ।
- सम्बन्ध (Your Relationships)- यदि आप अपने मनोभावों को ठीक से समझ पाते हैं तथा उन्हें ठीक से नियन्त्रित कर पाते हैं तो आप दूसरों के मनोभावों को भी ठीक से समझ पायेंगे। आप समझने में सफल होंगे कि दूसरे आपके बारे में कैसा सोचते हैं, उनकी आपके बारे में क्या राय है आदि-आदि। आप अपनी बात को दूसरों के सामने प्रभावपूर्ण तरीके से एवं रख पायेंगे तथा सम्बन्धों में निकटता एवं प्रगाढ़ता लाने में सफल हो सकते हैं जिसकी आपको अपने कार्यक्षेत्र तथा निजी जीवन में महत्त्वपूर्ण सार्थकता होती है तथा अनिवार्य भी। सम्बन्धों में सहजता एवं घनिष्ठता जीवन की सह को सरल बना देती है।
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