निर्देशन से आप क्या समझते हैं ? विवेचना कीजिए ।
(1) निर्देशन का शाब्दिक अर्थ(2) निर्देशन का परिभाषीय अर्थ(3). निर्देशन का व्यापक अर्थ
(1) निर्देशन का शाब्दिक अर्थ – निर्देशन शब्द का शाब्दिक अर्थ है – निर्देश देना । निर्देशन आदेश से भिन्न होता है। जहाँ आदेश में अधिकार होता है वहीं निर्देशन में सलाह होती है । निर्देशन के विषय में कहा गया है—” यह किसी बालक या व्यक्ति को दी जाने वाली सलाह या सहायता है । यह सलाह या सहायता नैतिक, आध्यात्मिक तथा व्यावसायिक क्षेत्र में बड़ों द्वारा छोटों को दी जाती है । ”
इस प्रकार निर्देशन एक ऐसी विशिष्ट सेवा है जिसके आधार पर जीवन से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं के समाधान में सहायता प्रदान की जाती है ।
(2) निर्देशन का परिभाषीय अर्थ (Definition of Guidance) – निर्देशन के अर्थ के विषय में विद्वानों में एकमतता नहीं है, फिर भी इसके अर्थ के और अधिक स्पष्टीकरण हेतु कुछ परिभाषाएँ दृष्टव्य हैं—
जी. ई. स्मिथ के अनुसार, “निर्देशन के लिए ‘गाइडेन्स’ शब्द उचित नहीं है, अपितु इसके लिए ‘गाइडेन्स सर्विसेज’ शब्द प्रयुक्त करना चाहिए ।” उनके अनुसार निर्देशन की परिभाषा है—‘‘निर्देशन प्रक्रिया सेवाओं के उस समूह से सम्बद्ध है जो व्यक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में सन्तोषजनक व्यवस्थापन के लिए आवश्यक पर्याप्त चयन, योजना एवं व्याख्या के लिए अपेक्षित अवस्थाओं एवं ज्ञान को ग्रहण करने में सहायता प्रदान करती है । ”
कैरोल एच. मिलर ने स्मिथ की ही भाँति निर्देशन की परिभाषा इन शब्दों में की – “निर्देशन सेवाओं का सम्बन्ध विद्यालय के सम्पूर्ण कार्यक्रमों के अन्तर्गत आने वाले उन संगठित क्रियाकलापों से है जो विद्यार्थियों के वैयक्तिक विकास की आवश्यकताओं में सहयोग देने के उद्देश्य से आयोजित किए जाते हैं । ”
गुड के अनुसार— ” निर्देशन व्यक्ति के दृष्टिकोणों एवं उसके बाद के व्यवहार को प्रभावित करने के उद्देश्य से स्थापित गतिशील आपसी सम्बन्धों का एक प्रक्रम है । ”
शर्ले हैमरिन के अनुसार — “व्यक्ति के स्वयं के पहचानने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना, जिससे वह अपने जीवन में आगे बढ़ सके । इस प्रक्रिया को निर्देशन कहा जाता है । ”
आर्थर जे. जोन्स के अनुसार — “निर्देशन एक प्रकार की सहायता है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को उसके समकक्ष आने वाले विकल्पों के चयन, समायोजन एवं समस्याओं के समाधान के प्रति सहायक होता है । यह निर्देशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति में स्वाधीनता की प्रवृत्ति एवं अपने उत्तरदायी बनने की योग्यता में वृद्धि लाती है । यह विद्यालय अथवा परिवार की परिधि में आबद्ध न रहकर एक सार्वभौम सेवा का रूप धारण कर लेती है | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, जैसे— परिवार, व्यापार एवं उद्योग, सरकार, सामाजिक जीवन, अस्पताल व कारागृहों में व्यक्त होती है । वस्तुतः निर्देशन का क्षेत्र प्रत्येक ऐसी परिस्थिति में विद्यमान होता है जहाँ इस प्रकार के व्यक्ति हों, जिन्हें सहायता की आवश्यकता हो और जहाँ सहायता प्रदान करने की योग्यता रखने वाले व्यक्ति हों।” ।
जे. एम. ब्रिवर के अनुसार — “निर्देशन एक ऐसा प्रक्रम है जो व्यक्ति में अपनी समस्याओं को हल करने में स्वयं निर्देशन की क्षमता का विकास करता है ।
” स्टूप्स तथा वालक्विस्ट के अनुसार — “ निर्देशन व्यक्ति के अपने लिए एवं समाज के लिए अधिकतम लाभदायक दिशा में उसकी सम्भावित अधिकतम क्षमता तक विकास में सहायता प्रदान करने वाला निरन्तर चलने वाला प्रक्रम है । ”
लीफियर, टसेल और विजिल के अनुसार– “निर्देशन एक शैक्षिक सेवा है जो विद्यालय में प्राप्त दीखा का अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली उपयोग करने में विद्यार्थियों की सहायता प्रदान के लिए आयोजित की जाती हैं। ”
डब्ल्यू. एल. रिन्कल एवं आर. एल. गिलक्रस्ट के अनुसार– “निर्देशन का आशय है छात्र में उपयुक्त एवं प्राप्त हो सकने योग्य उद्देश्यों के निर्धारण कर सकने तथा उन्हें प्राप्त करने हेतु वांछित योग्यताओं का विकास कर सकने में सहायता प्रदान करना व प्रेरित करना । इसके आवश्यक अंग इस प्रकार हैं— उद्देश्यों का निरूपण, अनुकूल अनुभवों का प्रावधान करना, योग्यताओं का विकास करना तथा उद्देश्यों की प्राप्ति करना । बृद्धिमत्तापूर्ण निर्देशन के अभाव में शिक्षण को उत्तमशिक्षा की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है तथा अच्छे शिक्षण के अभाव में दिया गया निर्देशन भी अपूर्ण होता है । इस प्रकार शिक्षण एवं निर्देशन एक-दूसरे के पूरक है ।
डेविड वी. टिडेमैन के अनुसार– “निर्देशन का लक्ष्य लोगों को उद्देश्यपूर्ण बनाने में, न केवल उद्देश्यपूर्ण क्रिया में सहायता देना है । ”
आर. एच. मैथ्यूसन के अनुसार — ” निर्देशन के शैक्षिक और विकासात्मक पक्षों पर बल देते हए अधिगम की प्रक्रिया के सन्दर्भ में इसका महत्त्वपूर्ण बनाया है । ”
बरनार्ड तथा फुलमर के अनुसार — ” निर्देशन के अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ आ जाती हैं जो व्यक्ति की आत्मसिद्धि में सहायक होती हैं । ”
स्टीफेलरी तथा स्टीवार्ट के अनुसार निर्देशन समस्या समाधान हेतु चयन एवं समायोजन निर्धारण हेतु एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को दी गई सहायता है । निर्देशन का लक्ष्य ग्रहणकर्त्ता में अपनी स्वतन्त्रता तथा अपने प्रति उत्तरदायित्व की भावना का विकास है। यह एक सार्वभौमिक सेवा है जो कि केवल विद्यालय या परिवार एक सीमित नहीं है । यह जीवन के सभी पक्षों – घर, व्यापार, उद्योग, शासन, सामाजिक जीवन, चिकित्सालय, कारागार में व्याप्त है। वास्तव में इसका अस्तित्व उन सभी स्थानों में है जहाँ व्यक्ति हैं जो कि सहायता चाहते हैं और जहाँ ऐसे लोग हैं जो सहायता दे सकते हैं । ”
(3) निर्देशन का व्यापक अर्थ – कुछ विद्वान निर्देशन को शिक्षा की भाँति ही व्यापक प्रक्रिया स्वीकार करते हैं । निर्देशन का क्षेत्र असीमित है, क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बद्ध है। निर्देशन का जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह एक प्रक्रम है जिसका उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति के वांछित विकास में सहायता पहुँचाता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है । निर्देशन के द्वारा व्यक्ति को इस प्रकार सहायता पहुँचायी जाती है कि व्यक्ति स्वयं को समझे, उसकी क्षमताओं, रुचियों तथा अन्य योग्यताओं का अधिकतम सम्भावित उपयोग उसके विकास में हो सके । अपने समय के परिवेश में आने वाली विभिन्न परिस्थितियों में यह अपना समायोजन कर सके । व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से अपनी समस्याओं का समाधान खोजने एवं विभिन्न परिस्थितियों में बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय ले सके ।
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