स्थान प्रबंधन से क्या तात्पर्य है ? विद्यालय में जगह प्रबंधन की समस्याओं पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – स्थान प्रबंधन से क्या तात्पर्य है ? विद्यालय में जगह प्रबंधन की समस्याओं पर प्रकाश डालें ।

उत्तर – विद्यालय जगह प्रबंधन का अर्थ है, विद्यालय के लिए भूमि की उपलब्धि की मात्रा, भूमि की स्थिति, विद्यालय किस स्तर तथा प्रकार का है, भूमि का प्रयोग, भूमि पर कितनी मंजिल का भवन बनाया जाना है, भूमि पर कितने कक्षा-कक्ष होंगे तथा अन्य कक्षा कार्यशाला के लिए कितनी भूमि चाहिए । विद्यालय में पाठान्तर क्रियाओं के लिए भूमि की उपलब्धता । विद्यालय सबके लिए खेल का मैदान, विद्यालय छात्रावास बनाना है अथवा नहीं । इन सब के लिए प्रबंधन करना, विद्यालय प्रबंध प्रक्रिया आ जाता है ।

विद्यालय में जगह प्रबंधन की समस्याएँ तथा कठिनाइयाँ :

विद्यालय जगह संबंधी परम्परागत दर्शन (Traditional Philosophy of School Space Management)

  1. तपोवन – प्राचीन भारत में शिक्षा के स्थान प्रायः प्रकृति की गोद में ऋषियों के आश्रमों में जिन्हें ‘तपोवन’ की संज्ञा भी दी जाती है स्थित थे। तपोवन हमें सन्देश देते हैं- शान्ति का, त्याग का, उच्च भावना का तथा सादगी का । शुद्ध वातावरण पर बल दिया जाता था । विद्यालय का स्थान ऋषियों के आश्रम थे । ऊँचे-ऊँचे भवनों की आवश्यकता नहीं थी। आश्रमों में आवासी शिक्षा की व्यवस्था थी ।
  2. टैगोर के विचार – टैगोर ने आध्यात्मिक वातावरण या इसी परम्परा के अनुसार सदा प्रकृति तथा तपोवन के आदर्शों पर बल दिया तथा उनके शिक्षा संबंधी प्रथम प्रयोग ‘शान्ति निकेतन’ में इसका प्रतिबिम्ब दिखाई दिया है ।
  3. नेहरू जी के विचार – इसी सन्दर्भ में हमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू के शब्द जो उन्होंने 9 अक्टूबर 1958 को बुनियादी शिक्षा के प्रबंधन के सम्बन्धित प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए आए प्रतिनिधियों के समक्ष कहे, याद आ रहे हैं :
    “जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं बिना भवनों के स्कूल आरम्भ करूँगा। अंतिम विश्लेषण के अनुसार यह कहा जा सकता है कि प्रशिक्षित डॉक्टर या परिचारक ही औषधालय या स्वास्थ्य-केन्द्र स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हम भवनों के विषय में बहुत सोच-विचार करते हैं और मानवीय पहलू को भुला देते हैं। हमें साधारण भवनों के बारे में विचार करना चाहिए । सार्वजनिक कार्य विभाग के स्तर को भुला देना चाहिए, जोकि न तो सन्तोषजनक है और न व्यावहारिक । शिक्षा विभागों को सार्वजनिक कार्य विभाग की लीक से अलग हटकर चलना चाहिए। हमारे पास 20 x 20 अथवा 25′ x 25′ के कमरे वाले कर्ण रेखावत् चार भागों में विभाजित सस्ते मकान होने चाहिए । यह कमरा साधन-सामग्री के कमरे के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए न कि कक्षा- कमरे के रूप में। चारों दीवारों में से प्रत्येक पर बाहर की ओर श्यामपट्ट होना चाहिए और इन दीवारों के बाहर चारों दिशाओं में अध्ययन कार्य जारी रहना चाहिए । यदि आवश्यकता हो तो एक मंच व छायादार स्थान भी जुटाया जा सकता है और धीरे-धीरे गाँव के सहयोग द्वारा पक्का भवन भी अस्तित्व में आ सकता है । हमें अपनी स्थितियों के अनुसार ये तरीके अपनाने हैं और उनको इतना सस्ता बनाना है कि हम अधिक साधन-सामग्री और वेतन देने की ओर ध्यान लगा सकें । “
  4. मौलाना आजाद के विचार – मौलाना आजाद जो कि स्वतंत्र भारत में प्रथम शिक्षा मंत्री थे, उन्होंने नेहरू जी के विचारों का समर्थन करते हुए कहा, “हमारे पास जितनी पूँजी है वह स्कूल भवनों के निर्माण की अपेक्षा शिक्षा के विस्तार तथा प्रसार में खर्च की जानी चाहिए | हमारे देश की जलवायु ऐसी है कि वर्ष के अधिकांश भाग में कक्षाएँ खुली हवा अर्थात् ‘गगन तले’ लगाई जा सकती हैं।” उन्होंने सुझाव दिया कि यदि स्कूल की छुट्टियाँ मानसून के साथ संबंधित कर दी जाएँ तो हमें सम्पूर्ण स्कूल भवन की आवश्यकता को बहुत सीमा तक कम कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि स्कूल भवन के निर्माण की साधारण विधियों का प्रयोग करके भी लागत में बचत कर सकते हैं। हम कुछ स्थान कच्चे कमरों के लिए उपयोग कर सकते हैं । कमरों की देखभाल का काम स्थानीय समुदाय को सौंप सकते हैं ।
  5. के. जी. सैयदीन के विचार – गगन तले स्कूल (Open Air Schools)-भारत सरकार के तत्कालीन शिक्षा परामर्शदाता के. जी. सैयदीन के मतानुसार “वर्तमान स्थिति में हमें गगन तले स्कूलों की स्थापना करनी चाहिए। ऐसा करना केवल आर्थिक आधार पर ही नहीं, अपितु शैक्षिक दृष्टिकोण से भी उचित है । ऐसा करने से बच्चे प्रकृति के सम्पर्क में आऐंगे।”

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