पुनर्वास विधायन पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – भारतीय संविधान सभी व्यक्तियों को समता, स्वतंत्रता, न्याय और सम्मान सुनिश्चित करता है । साथ ही विकलांग व्यक्तियों सहित सभी के लिए एक समावेशी समाज का अधिदेश देता है । विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के दृष्टिकोण में हाल के वर्षों में सकारात्मक परिवर्तन आया । ऐसा महसूस किया जाता रहा है कि अधिकांश विकलांग समान अवसर और पुनर्वास उपकरण मिलने पर बेहतर जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इसलिए उनकी क्षमताओं के आधार पर उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने पर विशेष बल दिया गया है । इसी क्रम में भारत सरकार ने विकलांग व्यक्तियों के लिए तीन विधायन अधिनियमित किए हैं। ये विधान हैं ।
(i) भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 (ii) निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 (iii) राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999
1. भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 [The Rehabilitation . Council of India Act, 1992 (RCI Act, 1992)] – पुनर्वास व्यावसायियों के प्रशिक्षण को नियमित करने, केन्द्रीय पुनर्वास पुस्तिका के अद्यतन रखने एवं पुनर्वास से जुड़े अन्य शैक्षिक मुद्दों को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम बनाया । इसे संक्षिप्त में RCI Act, 1992 कहा जाता है । ‘वहारूहल इस्लाम समिति’ की सिफारिशों पर परिषद् को कानूनी दर्जा देने के लिए दिसम्बर 1991 में एक विधेयक संसद में पारित किया गया जिसे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 22 जून, 1993 को अधिसूचित किया ।
इस अधिनियम में कुल तीन अध्याय हैं । इसके अध्याय 1 में भारतीय पुनर्वास परिषद् से जुड़ी विभिन्न तकनीकी शब्दावली को परिभाषित किया गया है ।
परिभाषाएँ : 1. ‘अध्यक्ष’ से अभिप्रेत अधिनियम की धारा 3 की उपधारा 3 है ।
2. ‘परिषद्’ से अधिनियम की धारा 3 के अधीन गठित भारतीय पुनर्वास परिषद् अभिप्रेत हैं ।
3. विकलांग से अभिप्रेत है
(i) दृष्टि विकलांग, (ii) श्रवण विकलांग, (iii) चलन नि:शक्तता, (iv) मानसिक’ मंदता
4. ” श्रवण विकलांगता” से अभिप्रेत है बधिरता के साथ बेहतर कर्ण में 70 डेसीबेल या अधिक श्रवण शक्ति का ह्रास या दोनों कर्ण के श्रवण शक्ति की पूरी क्षति ।
5. “चलन निःशक्तता” से हड्डियों, जोड़ों या मांसपेशियों की कोई ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निबंधन है ।
6. “मानसिक मंदता” से अभिप्रेत है किसी व्यक्ति के चित्त की अवरुद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था जो विशेष रूप से बुद्धि की अवसामान्यता द्वारा परिलक्षित होती है ।
7.” दृष्टि विकलांगता” उस अवस्था को निर्दिष्ट करती है जहाँ कोई व्यक्ति निम्नलिखित अवस्था में किसी से ग्रसित हो :
(i) दृष्टि का पूर्ण अभाव, (ii) सुधारक लेंसों के साथ बेहतर नेत्र में दृष्टि की तीक्ष्णता जो 6/60 यसा 20/200 (स्नेलन) से अधिक न हो । (iii) दृष्टि की सीमा जो 20 डिग्री कोण वाली या उससे बदतर है ।
8. रजिस्टर से अधिनियम की धारा 23 की उपधारा 1 के अधीन रख-रखाव की जाने वाली केन्द्रीय पुनर्वास रजिस्टर अभिप्रेत है ।
9. भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम की धारा 2 की उपधारा 1 (n) के तहत ‘पुनर्वास व्यवसायी’ से निम्नलिखित व्यवसायियों से अभिप्रेत है :
(i) ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थीरैपिस्ट, (ii) चिकित्सा मनोवैज्ञानिक, (iii) हियरिंग एड एंड इयर मोल्ड टेक्नीशियन, (iv) रिहैबिलिटेशन इंजीनियर और तकनीशियन (v) विशेष शिक्षक, (vi) विकलांगता क्षेत्र में कार्यरत व्यावसायिक परामर्शदाता रोजगार अधिकारी और प्लेसमेंट अधिकारी, (vii) बहुद्देशीय पुनर्वास थेरापिस्ट, (viii) स्पीच पैथोलॉजिस्ट, (ix) रिहैबिलिटेशन साइकोलॉजिस्ट, (x) रिहैबिलिटेशन सोशल वर्कर, (xi) रिहैबिलिटेशन प्रैक्टिशनर इन मेंटन रिटार्डेशन, (xii) ओरिएन्टेशन एंड मोबिलिटी स्पेशलिस्ट, (xiii) कम्यूनिटी बेस्ट रिहैबिलिटेशन प्रोफेशनल्स (xiv) रिहैबिलिटेशन कॉउन्सेर्ल्स, एडमिनिस्ट्रेटर्स, (xv) प्रोथेटिस्ट्स एंड आर्थोटिस्ट, (xvi) रिहैबिलिटेशन वर्कशॉप मैनेजर्स, (xvii) अन्य
विशेष शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत उपरोक्त सभी व्यवसायियों एवं विशेषज्ञों को भारतीय पुनर्वास परिषद् के केन्द्रीय पुनर्वास रजिस्टर में अपना नाम पंजीकृत कराना निहायत जरूरी है | बगैर पंजीकरण प्रमाण-पत्र के पुनर्वास व्यवसाय करना दंडनीय अपराध है। भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 की धारा 13 में यह अनुबंध है कि बिना पंजीकरण के पुनर्वास व्यावसायिक सेवा प्रदान करना एक दंडनीय अपराध है। पंजीकृत पुनर्वास व्यवसायी अथवा कार्मिक भारत में कहीं भी अपना व्यवसाय कर सकता है । वह पुनर्वास व्यवसाय से जुड़े किसी भी कानून सम्मत प्रमाण-पत्रों को प्रमाणित कर सकता है। साथ ही विकलांगता से जुड़े हुए किसी मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45 के तहत किसी भी न्यायालय में विशेषज्ञ के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है ।
2. निःशक्त व्यक्ति ( समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी ) अधिनियम, 1995 (The Person with Disabilities (Equal Opportunities, Protection of Rights and Full Participation) Act, 1995 – एशियाई और प्रशांत क्षेत्र संबंधी आर्थिक और सामाजिक आयोग द्वारा निःशक्त व्यक्तियों की एशियाई और प्रशांत क्षेत्र दशाब्दी 1993-2002 को आरंभ करने के लिए 1 दिसम्बर से 5 दिसम्बर, 1992 को पेइचिंग में बुलाए गए अधिवेशन में एशियाई और प्रशांत क्षेत्र में निःशक्त व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता संबंधी उद्घोषणा को अंगीकार किया गया चूँकि भारत उक्त उद्घोषणा का एक हस्ताक्षरकर्ता है; इसलिए भारत सरकार ने पूर्वोवत उद्घोषणा को कार्यान्वित करने के लिए निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 बनाया। सक्षिप्त रूप से इसे अपंगता अधिनियम या विकलांगता अधिनियम भी कहा जाता है । 1 जनवरी, 1996 से यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़ पूरे देश में लागू है। इस अधिनियम में 14 अध्याय और 74 धाराएँ हैं। इसके अध्याय 1 में अपंगता से जुड़ी विभिन्न तकनीकी शब्दावली को परिभाषित किया गया है ।
(क) ‘समुचित सरकार से अभिप्रेत है- (i) केन्द्रीय सरकार या उस सरकार द्वारा पूर्णत: या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किसी स्थापन या छावनी अधिनियम, 1924 के अधीन गठित किसी छावनी बोर्ड के संबंध में केन्द्रीय सरकार ।
(ii) किसी राज्य सरकार या उस सरकार द्वारा पूर्णतः या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किसी स्थापना, या छावनी बोर्ड से भिन्न किसी स्थानीय प्राधिकारी के संबंध में राज्य सरकार ।
(iii) केन्द्रीय समन्वय समिति और केन्द्रीय कार्यपालिका समिति की बाबत, राज्य सरकार और
अंधता (Blindness) – धारा 2 (ख) के मुताबिक ‘अंधता’ उस अवस्था को निर्दिष्ट. करती है जहाँ कोई व्यक्ति निम्नलिखित अवस्था में से किसी से ग्रसित है, अर्थात्-
(i) दृष्टि का पूर्ण अभाव या (ii) सुधारक लेंसों के साथ बेहतर दृष्टि की तीक्ष्णता जो 6/60 या 20/200 (स्नेलन) से अधिक न हो; या (iii) दृष्टि क्षेत्र की सीमा जो 20 डिग्री कोण वाली या उससे बदतर है ।
प्रमस्तिक घात (Cerebral Palsy) – 2 (ङ) के अनुसार “प्रमस्तिष्क घात से किसी व्यक्ति की अविकासशील अवस्थाओं का समूह अभिप्रेत है, जो विकास की प्रसवपूर्ण, प्रसवकालीन या बाल अवधि में होने वाला दिमागी आघात या क्षति से पारिणामिक अप्रसामान्य प्रेरक नियंत्रण स्थिति द्वारा अभिलक्षित होता है ।
निःशक्ता (Disability ) – 2 (झ) के तहत निःशक्तता से अभिप्रेत है – (i) अन्धता, (ii) कम दृष्टि, (iii) कुष्ठ रोग मुक्त, (iv) श्रवण शक्ति का ह्रास, (v) चलन निःशक्तता, (vi) मानसिक मंदता, (vii) मानसिक रुग्णता
श्रवण शक्ति का ह्रास (Hearing Impariment) – अपंगता अधिनियम की धारा 2 (ठ) 2 (1) के तहत “श्रवण शक्ति का ह्रास ” से अभिप्रेत है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में साठ डेंसीवेल । या अधिक की हानि हो गई हो ।
कुष्ठ रोग मुक्त व्यक्ति (Leprosy Cured) – 2 (ढ़) के तहत “कुष्ठ रोग मुक्त व्यक्ति”, से कोई ऐसा अभिप्रेत है, जो कुष्ठ से रोग मुक्त हो गया है किन्तु –
(i) हाथों या पैरों में संवेदना की कमी और नेत्र और पलक में संवेदना की कमी और आंशिक घाट से ग्रस्त है, किन्तु प्रकट विरूपता से ग्रस्त नहीं है ।
(ii) प्रकट विरूपता और आंशिक घाट से ग्रस्त है, किन्तु उसके हाथों और पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है, जिससे वह सामान्य आर्थिक क्रियाकलाप कर सकता है ।
(iii) अत्यन्त शारीरिक विरूपता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो उसे कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है ।
और “कुष्ठ रोग मुक्त” पद का अर्थ तदनुसार लगया जाएगा ।
चलन निःशक्ता (Locomotor Disability ) – धारा 2 (ण) के तहत चलन निःशक्तता” से हड्डियों, जोड़ों या मांसपेशियों की कोई ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निबंधन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क घात है ।
धारा 2 (त) के तहत “चिकित्सा प्राधिकारी” से कोई ऐसा अस्पाल या संस्था अभिप्रेत है जो समुचित सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए विनिर्दिष्ट की जाए।
धारा 2 (थ) के तहत “मानसिक रुगणता” मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकार अभिप्रेत है ।
धारा 2 (द) के तहत “मानसिक मंदता” अभिप्रेत है, किसी व्यक्ति के चित्त की अवरुद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था जो विशेष रूप से बुद्धि की अवसामान्यता द्वारा अभिलक्षित होती है ।
धारा 2 (न) के तहत “निःशक्त व्यक्ति” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित किसी निःशक्तता के कम से कम चालीस प्रतिशत से ग्रस्त है ।
धारा 2 (प) के तहत “कम दृष्टि वाला व्यक्ति” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी उपचार या मानक अपवर्तनीय संशोधन के पश्चात् भी दृष्टि क्षमता का ह्रास हो गया है, किन्तु जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है ।
धारा 2 (ब) के तहत “पुनर्वास ” ऐसी प्रक्रिया के प्रति निर्देश करता है जिसका उद्देश्य निःशक्त व्यक्तियों को उनका सर्वोत्तम शारीरिक, संवेदी, बौद्धिक, मानसिक या सामाजिक कृत्यकारी स्तर प्राप्त करने में और उसे बनाए रखने में समर्थ बताना है ।
धारा 2 (भ) के तहत “विशेष रोजगार कार्यालय” से कोई ऐसा कार्यालय या स्थान अभिप्रेत है जो सरकार द्वारा रजिस्टर रख कर या अन्यथा निम्नलिखित की बाबत जानकारी का संग्रहण करने और देने के लिए स्थापित और अनुरक्षित किया गया है, अर्थात्
(i) ऐसे व्यक्ति, जो निःशक्तता से ग्रस्त व्यक्तियों में से कर्मचारियों को काम में लगाना चाहते हैं। (ii) ऐसे निःशक्त व्यक्ति, जो नियोजन चाहते है; और (iii) ऐसे रिक्त स्थान, जिनके लिए नियोजन चाहने वाले निःशक्त व्यक्तियों की नियुक्ति की जा सकती है ।
विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा :
धारा 27 के तहत समुचित सरकारें और स्थानीय प्राधिकारी, अधिसूचना द्वारा निम्नलिखित के लिए स्कीमें बतनाएँगे, अर्थात्
(क) ऐसे नि:शक्त बालकों की बाबत, जिन्होंने पाँचवी कक्षा तक शिक्षा पूरी कर ली है, किन्तु पूर्णकालिक आधार पर अपना अध्ययन चालू नहीं रख सके हैं, अंशकालिक कक्षाओं संचालन करना ।
(ख) सोलह वर्ष और उससे ऊपर की आयु समूह के बालकों के लिए क्रियात्मक साक्षरता की व्यवस्था के लिए विशेष अंशकालिक कक्षाओं का संचाल करना ।
(ग) ग्रामीण क्षेत्रों में उपलभ्य जनशक्ति का उपयोग करके उन्हें समुचित अभिविन्यास शिक्षा देने के पश्चात् अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करना ।
(घ) खुले विद्यालयों या खुले विश्वविद्यालयों के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना ।
(ङ) अन्यान्य क्रियात्मक इलेक्ट्रॉनिक या अन्य संचार साधनों के माध्यम से कक्षा और परिचर्चाओं की निःशुल्क व्यवस्था करना ।
वही अधिनियम को धारा 28 में विकलांग बच्चों के लिए समुचित माहौल के निर्माण और शिक्षण सामग्रियों की उपलब्धता संबंधी उपबंध है ।
धारा 28 के अनुसार समुचित सरकारें, ऐसी नई सहायक युक्तियों शिक्षा सहाय यंत्रों और विशेष शिक्षण सामग्री या ऐसी अन्य वस्तुओं को, जो किसी निःशक्त बालक को शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए आवश्यक हों, डिजाइन और उनका विकास करने के लिए अनुसंधान करेंगी या गैर-सरकारी अभिकरणों द्वारा अनुसंधान कराएँगी । वहीं धारा 29 के अनुसार समुचित सरकारें पर्याप्त संख्या में, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाएँ स्थापित करेंगी और निःशक्तता में विशेषज्ञता वाले शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विकास करने के लिए, राष्ट्रीय संस्थाओं और अन्य स्वैच्छिक संगठनों को सहायता प्रदान करेंगी जिससे कि निःशक्त बालकों के विशेष विद्यालयों और एकीकृत विद्यालयों के लिए अपेक्षित प्रशिक्षित जनशक्ति उपलब्ध हो सके जबकि धारा 30 में कहा गया है कि पूर्णगामी उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, समुचित सरकारें अधिसूचना द्वारा एक व्यापक स्कीम तैयार करेंगी। इस स्कीम में निम्नलिखित बातें शामिल होंगी ।
(क) निःशक्त बालकों के लिए परिवहन सुविधाएँ या उनके माता-पिता या अभिभावकों को वैकल्पिक वित्तीय प्रोत्साहन, जिससे कि उनके निःशक्त बालक विद्यालयों में जा सकें ।
(ख) व्यावसायिक और वृत्तिक प्रशिक्षण देने वाले विद्यालयों, महाविद्यालयों या अन्य संस्थानों से वास्तु-1 – विद्या संबंधी बाधाओं को हटाना ।
(ग) विद्यालय जाने वाले निःशक्त बालकों के लिए पुस्तकों, वर्दियों और अन्य सामग्री का प्रदाय करना ।
(घ) निःशक्त विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देना ।
(ङ) निःशक्त बालकों के पुनवार्स की बाबत उनके माता-पिता की शिकायतों को दूर करने के लिए समुचित मंच स्थापित करना ।
(च) दृष्टिहीन विद्यार्थियों और कम दृष्टि वाले विद्यार्थियों के फायदे की लिए पूर्ण त गणित संबंधी प्रश्नों को हटाने के लिए परीक्षा पद्धति में उपयुक्त परिवर्तन करना ।
(छ) निःशक्त बालकों के फायदे के लिए पाठ्यक्रम की पुनःसंरचना करना ।
(ज) श्रवण शक्ति के ह्रास वाले विद्यार्थियों के फायदे के लिए उनके पाठ्यक्रम के भाग के रूप में केवल एक भाषा को लेने हेतु उन्हें सुधार बनाने के लिए पाठ्यक्रम की पुनः संरचना करना ।
इसके अलावा सभी शिक्षा संस्थाएँ, नेत्रहीन विद्यार्थियों या कम दृष्टि वाले विद्यार्थियों के लिए लेखकों की व्यवस्था करेंगी/करवाएँगी (धारा-31) ।
विकलांगों का नियोजन- निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 के अध्याय 6 में विकलांग व्यक्तियों को नियोजन के अवसर उपलब्ध कराने हेतु उपबंध है । इस अधिनियम को धारा 32 के तहत समुचित सरकारें –
(क) स्थापनों में, ऐसे पदों का पता लगाएँगी, जो निःशक्त व्यक्तियों के लिए आरक्षित किए जा सकते हैं ।
(ख) तीन वर्ष से अनधिक नियतकालिक अन्तरालों पर पता लगाए गए पदों की सूची का पुर्नावलोकन करेंगी और प्रौद्योगिकी संबंधी विकासों को ध्यान में रखते हुए सूची को अद्यतन करेंगी जबकि धारा 33 के अंतर्गत प्रत्येक समुचित सरकार, प्रत्येक स्थापन में निःशक्त व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग के लिए उतनी प्रतिशत रिक्तियाँ नियम करेंगी जो तीन प्रतिशत से कम न हों, जिसमें से प्रत्येक निःशक्तता के लिए पता लगाए गए पदों में से एक प्रतिशत निम्नलिखित से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए आरक्षित होगा, अर्थात्-
(i) अंधता या कम दृष्टि, (ii) श्रवण शक्ति का ह्रास और (iii) चलन निःशक्तता या प्रमस्तिष्क घात ।
परंतु समुचित सरकार, किसी विभाग या स्थापन में किए जा रहे कार्य की किस्म को ध्यान में रखने हुए, अधिसूचना द्वारा, ऐसी शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, जो उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, किसी स्थापना को इस धारा के उपबंधों से छूट दे सकेगी ।
3. राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-निःशक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (The National Trust Welfare for Persons with Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Multiple Disabilities Act, 1999 ) – निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 के विधायन के चार वर्ष बाद राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-शक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 अस्तित्व में आया । इसे राष्ट्रीय न्यास अधिनियम भी कहा जाता है। इस अधिनियम में कुल 9 अध्याय हैं। पहले अध्याय में विकलांगता से जुड़े शब्दों को परिभाषित किया गया है ।
- स्वपरायणता (Autism) (क) “स्वपरायणता” से विषम कौशल विकास की वह अवस्था अभिप्रेत है जो मुख्य रूप से किसी व्यक्ति के संप्रेषण और सामाजिक योग्यताओं को प्रभावित करती है जो आवृत्तिमूलक और सांस्कारिक व्यवहार से परिलक्षित होती है (ख) “बोर्ड” से धारा 3 के अधीन गठित न्यासी बोर्ड अभिप्रेत है ।
- प्रमस्तिष्क घात (Cerebral Palsy) – “प्रमस्तिष्क घात” किसी व्यक्ति की अविकाशील अवस्थाओं का समूह अभिप्रेत है । जो विकास की प्रसवपूर्ण, प्रसवकालीन या बाल अवधि में होने वाले दिमागी आघात या क्षति के परिणामस्वरूप अप्रसामन्य प्रेरक नियंत्रण स्थिति द्वारा अभिलक्षित होता है ।
- मानसिक मंदता (Mental Retardation) “मानसिक मंदता” से किसी व्यक्ति के मस्तिष्क के अवरूद्ध या अपूर्ण विकास की दशा अभिप्रेत है जो विशेष रूप से बुद्धि की असामान्यता से अभिलक्षित होती है ।
- “बहु-निःशक्तता” (Multiple Disability) से निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की धारा 2 के खंड (झ) में परिभाषित दो या अधिक निःशक्तताओं का समुच्चय अभिप्रेत है ।
- “निःशक्त व्यक्ति” (Persons with Disability) – से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता या ऐसी अवस्थाओं में से किन्हीं दो या अधिक अवस्थाओं के समुच्चय से संबंधित किसी भी अवस्था से ग्रस्त है और इसके अंतर्गत गुरुतर बहु – नि:शक्तता से ग्रस्त व्यक्ति भी है ।
- “गुरुतर बहु-नि:शक्तता” से ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत हैं जो एक या अधिक बहु-नि:शक्तताओं में अस्सी प्रतिशत या उससे अधिक है ।
- “न्यास” से धारा-3 की उपधारा (1) के अधीन गठित राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु – नि:शक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अभिप्रेत है ।
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