भारतीय पुनर्वास परिषद पर निबंध लिखें ।
उत्तर – सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (तब कल्याण मंत्रालय) ने मई 1986 में एक सोसाइटी के रूप में भारतीय पुनर्वास परिषद की स्थापना की। बाद में बहारूहल समिति की सिफारिशों पर परिषद को कानूनी दर्जा देने के लिए दिसम्बर 1991 में एक विधेयक संसद में पारित किया गया जिसे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 22 जून 1993 को अधिसूचित किया । उसे 31 जुलाई 1993 से प्रभावी भारतीय पुनर्वास अधिनियम 1982 के अन्तर्गत एक सांविधिक विकास के रूप में परिवर्तित कर दिया गया ।
वैधानिक तौर पर भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 की धारा 3 की उपधारा (1) और (3) के अंतर्गत भारतीय पुनर्वास परिषद् के गठन का प्रावधान है। इस प्रावधान के तहत परिषद् में एक अध्यक्ष और कई सदस्य होंगे। केन्द्र सरकार समाज सेवा अथवा पुनर्वास क्षेत्र के किसी अनुभवी व्यक्ति को बतौर अध्यक्ष नियुक्त करता है । अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल नियुक्ति की तिथि से दो वर्षों का अथवा अगला अध्यक्ष नियुक्त कर दिए जाने तक , जो भी लम्बी हो, होता है ।
अध्यक्ष के अलावा कल्याण, स्वास्थ्य एवं वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधियों को भी परिषद् के सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने का प्रावधान है। साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के एक-एक प्रतिनिधियों को भी बतौर सदस्य नियुक्त किया जाता है। राज्य या संघ शासित प्रदेश के समाज कल्याण विभाग के दो प्रतिनिधियों को सदस्य बनाया जाता है। इसके अलावा स्वैच्छिक संस्थाओं में कार्यरत अधिकतम छ: पुनर्वास व्यवसायियों को भी सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है। भारतीय चिकित्सा अधिनियम, 1956 के अधीन पंजीकृत एवं विकलांगता पुनर्वास के क्षेत्र में सक्रिय अधिनियम चार चिकित्सकों और तीन सांसदों (दो लोकसभा एवं एक राज्य सभा सदस्य), को भी परिषद् का सदस्य नियुक्त किया जाता है । इसके अलावा विकलांगता क्षेत्र के अनुभवी अधिकतम तीन सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी सदस्य के रूप में मनोनीत किया जाता है जबकि परिषद् का सदस्य सचिव पदेन सदस्य होता है। साल में कम से कम एक बार परिषद् का बैठक होना जरूरी है ।
अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कर्तव्य (Powers and Duties of the Chairperson) – भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम, 1992 विनियम 1997 की धारा 4 के तहत अध्यक्ष को निम्न शक्तियाँ प्राप्त हैं ।
- अध्यक्ष परिषद् और उसकी समितियों द्वारा उचित कार्यकरण और परिषद् या समिति द्वारा लिए गए विनिश्चयों के कार्यान्वयन तथा इन विनियमों या अधिनियमों के उपबंधों के अधीन उस पर अधिरोपित कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उत्तरदायी होगा ।
- वह परिषद् के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों पर ऐसा पर्यवेक्षण और प्रशासनिक नियंत्रण, जैसा कि अधिनियम के अधीन कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए अपेक्षित हो, प्रयोग करने के लिए उत्तरदायी होगा ।
- परिषद् का, इसके कार्यकलापों पर साधारण नियंत्रण होगा और उसे सभी शक्तियों के प्रयोग करने तथा इन विनियमों और अधिनियमों के उपबंधों से संगत परिषद् के सभी कार्यों और कृत्यों का पालन करना ।
- परिषद् लेखा रखेगी, बजट प्राक्कलनों को तैयार तथा मंजूर करेगी, व्यय मंजूर करेगी। साथ ही परिषद् के लेखाओं के विनिधान पर नियंत्रण रखना ।
- परिषद् किसी विन्यास या न्यास निधि या किसी अभिदान या संदान का प्रबंध और प्रशासन प्रतिगहन करना ।
- केन्द्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के पश्चात् किसी विदेशी अभिकरण से सहायता माँगना ।
- परिषद् की संपत्ति का रख-रखाव ।
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