निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दें –

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प्रश्न – (अ) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दें –
बंगाल तथा बिहार के नील उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। विशेषकर बिहार में नीलहे गोरों द्वारा तीनफठिया व्यवस्था प्रचलित की गयी थी, जिसमें किसानों को अपनी भूमि के 3/20 हिस्से पर नील की खेती करनी होती थी। यह सामान्यत: सबसे उपजाऊ भूमि होती थी। किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती थी। यद्यपि 1908 ई॰ में तीनकठिया व्यवस्था में कुछ सुधार जाने की कोशिश की गई थी, परन्तु इससे किसानों की गिरती हुई हालत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। बागान मालिक किसानों को अपनी उपज एक निश्चित धन राशि पर केवल उन्हें ही बेचने के लिए बाध्य करते थे और यह राशि बहुत ही कम होती थी। इस समय जर्मनी के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन करना शुरू कर दिया था जिसके परिणाम स्वरूप विश्व के बाजारों में भारतीय नील की माँग गिर गई। चम्पारण के अधिकांश बागान मालिक यह महसूस करने लगे कि नील के व्यापार में अब उन्हें अधिक मुनाफा नहीं होगा। इसलिए मुनाफे को बनाये रखने के लिए उन्होंने अपने घाटों को किसानों पर लादना शुरू कर दिया। इसके लिए जो रास्ते उन्होंने अपनाए उसमें किसानों से यह कहा गया कि यदि वे उन्हें एक बड़ा मुआवजा दे दें तो किसानों को नील की खेती से मुक्ति मिल सकती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने लगान में अत्यधिक वृद्धि कर दी।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें –
(क) नील उत्पादक किसानों की स्थिति कैसी थी ?
(ख) किसान नील की खेती क्यों नहीं कराना चाहते थे ?
(ग) 1908 ई० में क्या सुधार लाने की कोशिश की गई थी ?
(घ) कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन किसने शुरू कर दिया था ?
(ङ) चम्पारण के बागान मालिक क्या महसूस करने लगे?
(च) किसानों को नील की खेती से मुक्ति के लिए कौन से रास्ते बताये गये ?
(ब) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दें
राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ होता है “राष्ट्रीय चेतना का उदय”। ऐसी राष्ट्रीय चेतना का उदय जिसमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकीकरण का आभास हो। 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। उस समय भारत को एकता के सूत्र में बाँधने वाले तत्त्वों का अभाव था। समान न्याय व्यवस्था का अभाव था। राष्ट्रीय एकता में कमी का अर्थ है उस अनुभूति का अभाव जो भारत में रहने वाले सभी लोगों को समान लक्ष्य एवं समान सरोकार से जोड़े। 19वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में कई ऐसे तत्त्व उभरे जिससे ये कमी दूर होती गयी एवं भारत एक सम्पूर्ण संगठित राष्ट्र का स्वरूप ग्रहण करने लगा। यही राष्ट्रवाद है एवं इसी राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति स्वतंत्रता संग्राम है।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें-
(क) राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ क्या होता है ?
(ख) किस शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था?
(ग) भारत में एकता के सूत्र में बाँधने वाले किन तत्त्वों का अभाव था?
(घ) भारत सम्पूर्ण संगठित राष्ट्र का स्वरूप किस शताब्दी में ग्रहण करने लगा ?
उत्तर –
(अ) (क) नील उत्पादक किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। (ख) तीनकठिया व्यवस्था के कारण आर्थिक स्थिति जर्जर हो रही थी, अतः खेती नहीं करना चाहते थे। (ग) 1908 में तीनकठिया व्यवस्था में * सुधार लाने की कोशिश की गई। (घ) जर्मन वैज्ञानिकों ने कृत्रिम नीले रंग का उत्पादन शुरू कर दिया था। (ङ) चम्पारण के बागान मालिक महसूस करने लगे। (च) बड़ा मुआवजा देने के लिए कही, तब ही मुक्ति संभव थी।
(ब) (क) राष्ट्रीय चेतना का उदय। (ख) 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में। (ग) समान न्याय व्यवस्था, राष्ट्रीय एकता, अनुभूति में अभाव आदि तत्त्वों का अभाव। (घ) 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में!

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