कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?
प्रश्न – कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?
उत्तर – भक्त कवि की जीवात्मा परमात्मा का जलपात्र है जिसमें परमात्मा के (उनके) गुण जलरूप में संगृहीत हैं। परमात्मा ने कवि के जीवात्मा रूपी जलपात्र में मदिरारूपी आनंद को सँभालकर रखा है।
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