निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा।
प्रश्न – निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा।
(क) देश के स्वतंत्र होने पर शासन की ओर से अनेक जन कल्याणकारी योजनाओं का श्रीगणेश किया गया और शासकीय कर्मचारियों ने उनकी पूर्ति में भरसक योग दिया। फिर भी इस बात का अनुभव किया जा रहा है कि शासन-तंत्र में पूरी कार्य तत्परता का अभाव है। जितनी तेजी से प्रगति की जा सकती है, उतनी हो नहीं पाती। इसके पीछे कर्मचारियों का यह दुराग्रह रहता है कि कम काम करें। कभी-कभी भ्रष्टाचार भी प्रगति के पथ में बाधक बन जाता है। देश के वर्तमान संकट में कर्मचारियों को शासन-सूत्र चलाने में पूरे उत्साह से योग देना चाहिए। क्या यह संभव नहीं है कि वे अपनी कार्यगति को बढ़ाएँ और अतिरिक्त समय में कार्य करके पिछली फाइलों को शीघ्रतिशीघ्र निबटा दें। इससे वे देश के प्रति अपनी भूमिका को अधिक सफलता से निभा सकेंगे। यह देखकर और भी आश्चर्य होता है कि शासकीय कर्मचारी ही कभी-कभी सरकार की खुली आलोचना करते हैं। राष्ट्र की कमियों के प्रति उनका भी उत्तरदायित्व है, इसे वे जैसे भूल जाते हैं। हमारा अनुरोध है कि उन्हें शासन की आलोचना न करके जनमत को सरकार के अनुकूल बनाना चाहिए। किन्तु यह बात नहीं है कि उन्होंने इस दिशा में कुछ किया ही न हो। जब से देश में आपात स्थिति की घोषणा की गयी, तब से वे इस दिशा में जागरूक हो गये।
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें –
(i) देश के स्वतंत्र होने पर क्या किया गया ?
(ii) शासन- तंत्र में किस चीज का अभाव है ?
(iii) देश की प्रगति में मुख्य बाधा क्या है?
(iv) शासकीय कर्मचारियों को क्या करना चाहिए?
(v) आपात स्थिति का क्या लाभ हुआ ?
अथवा,
(ख) एक बार बेनिस नगर की यात्रा करते हुए गैलीलियो ने सुना कि हालैण्ड में किसी व्यक्ति ने कोई नई खोज की है। वह व्यक्ति हालैंड का चश्मे की शीशे बतानेवाला कोई व्यापारी था। एक दिन दुकान पर चश्मा बनाते समय उसने देखा कि नतोदर और उन्नतोदर तलों (लैंसों) को जोड़कर यदि आँख के सामने रखा जाए, तो दूर की वस्तुएँ बहुत समीपस्थ दिखाई पड़ती हैं। गैलीलियों के लिए इतना जान लेना पर्याप्त था। उसने स्वयं इस सम्बन्ध में कुछ प्रयास आरंभ कर दिए। उसने शीशों में विभिन्न परिवर्तन करके उन्हें एक नली में इस ढंग से लगा दिया कि उनमें से देखने से दूर की वस्तुएँ काफी बड़ी और समीपस्थ दिखाई पड़ने लगीं। इस यंत्र को दूरबीन का नाम दिया। 21 अगस्त, 1960 ई॰ को गैलीलियों ने पहली बार दूरबीन तैयार की। सितारों को संदेश’ नामक पुस्तक में दूरबीन की खोज की कहानी लिखी। उसी के शब्दों में— “कुछ महीने पहले समाचार मिला कि हालैंड निवासी एक व्यक्ति के द्वारा ऐसा शीशा बनाया गया है, जिससे दूर की वस्तुएँ नजदीक दिखाई पड़ती हैं। मैं स्वयं भी ऐसे यंत्र के निर्माण में लग गया। मैंने एक नली बनाई और उसके दोनों सिरों पर एक-एक शीशा लगाया। उनमें एक कानवेक लैंस था और दूसरा कानवेक्स। इसके बाद मैं उसी नली के सिरे पर आँख रखकर नली में से होकर आनेवाली वस्तुओं की आकृति को देखा। नली के माध्यम से वस्तुएँ मुझे एक-तिहाई दूरी पर और तीन गुना बड़ी दिखाई दीं फिर मैंने दूसरी बड़ी दूरबीन बनाई। इसमें से दूर की वस्तुएँ लगभग एक हजार गुना बड़ा और तीस गुना नजदीक दिखाई देने लगीं। “
निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर दें –
(i) गैलीलियो को दूरबीन बनाने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
(ii) दो प्रकार के ताल (लैंस) कौन-कौन से होते हैं?
(iii) गैलीलियो की पहली दूरबीन में क्या-क्या गुण था ?
(iv) दूसरी दूरबीन की शक्ति पहली दूरबीन से कितनी अधिक थी?
(v) गैलीलियो की किस पुस्तक का नाम इस गद्यांश में लिया गया है ?
उत्तर –
(क) (i) देश के स्वतंत्र होने पर शासन की ओर से अनेक जन कल्याणकारी योजनाओं का श्रीगणेश किया गया।
(ii) शासन- तंत्र में पूरी कार्य-तत्परता का अभाव है।
(iii) देश की प्रगति में मुख्य बाधा भ्रष्टाचार है।
(iv) शासकीय कर्मचारियों को राष्ट्र की कर्मियों के प्रति उनका भी उत्तरदायित्व बनता है,
उसे निभाना चाहिए। (v) जब से देश में आपात स्थिति की घोषणा की गयी तब से वे शासन की आलोचना न करके जनमत को सरकार के अनुकूल बनाने के दिशा में जागरूक हो गए।
अथवा,
(ख) (i) एक दिन दुकान पर चश्मा बनाते समय उन्होंने देखा कि नतोदर और उन्नतोदर तलों को जोड़कर यदि आँख के सामने रखा जाए तो दूर की वस्तुएँ बहुत समीपस्थ दिखाई पड़ती है, यहाँ से गैलीलियो को दूरबीन बनाने की प्रेरणा मिली । (ii) दो प्रकार के ताल (लैंस) होते हैं – एक नतोदर लैंस और दूसरा उन्नतोदर लैंस। (iii) गैलीलियो की पहली दूरबीन में दूर की वस्तुएँ काफी बड़ी और समीपस्थ दिखाई पड़ने लगीं। (iv) दूसरी दूरबीन की शक्ति पहली दूरबीन से वस्तुएँ लगभग एक हजार गुना और तीस गुना नजदीक दिखाई देने लगीं। (v) ‘सितारों को संदेश’ नामक पुस्तक इस गद्यांश में लिया गया है।
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