बिहार के प्रमुख ऊर्जा स्रोतों का वर्णन कीजिए और किसी एक स्रोत का विस्तृत वर्णन कीजिए। अथवा, उच्चावच-प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए ।

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प्रश्न – बिहार के प्रमुख ऊर्जा स्रोतों का वर्णन कीजिए और किसी एक स्रोत का विस्तृत वर्णन कीजिए। अथवा, उच्चावच-प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – बिहार ऊर्जा के क्षेत्र में एक पिछड़ा राज्य है। फलतः इस क्षेत्र में इसे देश के दूसरे राज्यों से सहयोग लेना पड़ता है। यहाँ के ऊर्जा स्रोतों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- (i) परम्परागत ऊर्जा स्रोत और (ii) गैर-परम्परागत ऊर्जा के स्रोत। –
परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के अन्तर्गत तापीय विद्युत और जल विद्युत सम्मिलित हैं। बिहार में कई तापीय विद्युत केन्द्र हैं। इनमें कहलगाँव (भागलपुर), काँटी (मुजफ्फरपुर) और बरौनी (बेगूसराय) तापीय विद्युत केन्द्र प्रमुख हैं। कहलगाँव एवं काँटी के लिए कोयला झारखण्ड राज्य के खानों से प्राप्त किया जाता है। बरौनी के लिए कच्चा माल और डीजल बरौनी तेल शोधक कारखाने से मिलता है। ये सभी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन के द्वारा संचालित हैं। कहलगाँव सुपर थर्मल पावर बिहार की सबसे बड़ी तापीय विद्युत परियोजना है, जिसकी स्थापना 1979 में की गई थी। इसकी उत्पादन क्षमता 840 मेगावाट है।
बिहार जल विद्युत परियोजना के विकास के लिए 1982 में बिहार राज्य जल विद्युत निगम का गठन किया गया। इसके द्वारा 2055 मेगावाट उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। बिहार में जल बिद्युत उत्पादन करने के लिए अभी चार योजना कार्यरत हैं। इनसे मात्र 44.10 मेगावांट जल विद्युत का उत्पादन होता है। इन योजनाओं में डेहरी (रोहतास) में स्थित पश्चिमी सोन परियोजना, बारुण (औरंगाबाद) पूर्वी सोन लिंक नहर परियोजना, वाल्मिकीनगर (पश्चिमी चम्पारण) तथा कटैया परियोजना शामिल हैं। इसके अतिरिक्त छः निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाएँ भी हैं जिनमें कलेर (अरवल), अगनूर बगहा (पं. चम्पारण), ओबरा (औरंगाबाद) तेनपुर डेहरी (रोहतास) का डेलबाग, नासरीगंज (रोहतास), नोरखा (रोहतास) का जयनगर जल विद्युत परियोजनाएँ हैं।
अथवा,
मानचित्र पर उच्चावच प्रदर्शन की अनेक विधियाँ हैं, जिनमें प्रमुख विधियाँ निम्नांकित हैं –
(i) हैश्यूर विधि : उच्चावच निरूपण के लिए इस विधि के अन्तर्गत मानचित्र में छोटी, महीन एवं खंडित रेखाएँ ढाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं। खड़ी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अधिक छोटी, मोटी एवं एक-दूसरे से सटी हुई रेखाएँ बनाई जाती हैं। मंद ढालों के लिए ये रेखाएँ पतली एवं दूर-दूर बनाई जाती हैं। समतल क्षेत्र को खाली छोड़ दिया जाता है ।
(ii) पर्वतीय छायांकन विधि : इस विधि के अन्तर्गत प्रकाश और छाया की मदद ली जाती है। धरातल के ऊपर प्रकाश पड़ने से जो छायाचित्र उभरता है उसी के अनुसार विभिन्न रंगों से उसे छायांकित किया जाता है।
(iii) तल चिह्न विधि : वास्तविक सर्वेक्षण द्वारा किसी स्थान की समुद्र तल से मापी गई ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिह्न को तल चिह्न कहा जाता है। मानचित्र पर ऐसे ऊँचाई को प्रदर्शित करने के लिए ऊँचाई फीट या मीटर किसी एक इकाई में लिखा जाता है।
(iv) स्थानिक ऊँचाई विधि : तल चिह्न की मदद से किसी स्थान-विशेष की मापी गई ऊँचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि में बिन्दुओं द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दिया जाता है।
(v) स्तर- रंजन विधि : यह एक विस्तृत क्षेत्र के उच्चावच विवरण को दिखाने की साधारण विधि है। इस विधि से धरातल का चित्रण करने में विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है।
(vi) त्रिकोणमितीय स्टेशन विधि : उच्चावच प्रदर्शन की इस विधि में मानचित्र में त्रिकोणमितीय स्टेशन की स्थिति को एक त्रिभुज द्वारा दिखाया जाता है। इस त्रिभुज के नजदीक उस स्टेशन की धरातल पर समुद्र तल से ऊँचाई लिख दी जाती है।
(vii) समोच्च रेखा विधि : समोच्च रेखा मानचित्र पर खींची गई वह काल्पनिक रेखा है जो समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाती है। इन रेखाओं को क्षेत्र में सम्पन्न किए गए वास्तविक सर्वेक्षण के आधार पर खींची जाती है।

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