लैंगिक भेदभाव से संबंधित व्यवहार की विवेचना करें ।
प्रश्न – लैंगिक भेदभाव से संबंधित व्यवहार की विवेचना करें ।
उत्तर – लैंगिक भेदभाव और उनसे सम्बन्धित व्यवहारों की पहचान कभी-कभी तो तुरन्त हो जाती है, परन्तु कभी-कभी ये व्यवहार मूक अवस्था में होते हैं तो उनकी पहचान करना कठिन हो जाता है, जैसे- साधन-सम्पन्न परिवारों में स्त्रियों को अच्छे वस्त्र औरआभूषणों से लादकर रखा जाता है, परन्तु अपनी इच्छा से किसी भी कार्य को करने की स्वतन्त्रता नहीं होती । सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण जिससे स्त्री महज शो पीस रह जाती है, न तो उसके अस्तित्व और न ही उसके विचारों और स्वतन्त्रता का आदर होता है, वे चलने-फिरने वाली गुड़िया बनकर बड़ी-बड़ी पार्टियों की रौनक़ और ग्लेमर बन जाती हैं, जिसे भ्रमवश कुछ लोग मान बैठते हैं कि स्त्रियों की स्थिति उन्नत दशा में है । परन्तु सोने के पिंजड़े में बन्द पक्षी को भले ही मोती चुगने को मिल जाये फिर भी उन्मुक्त गगन में उड़ने की इच्छा कभी त्याग नहीं सकता ।
लैंगिक भेदभावों को कुछ जगह चिन्हित करना अत्यन्त सरल होता है, क्योंकि ये वहाँ स्पष्ट रूपों में परिलक्षित होते हैं, जैसे— मारना, पीटना, अपशब्द, गाली-गलौज, गलत इरादे से छूना, अभद्र गीत गाना तथा छींटाकशी आदि ।
लैंगिक भेदभावों को करने वाले लोग जैसे सब कहीं हैं उसी प्रकार यह व्यवहार किसी भी स्थान पर हो सकता है । इसके लिए किसी एक स्थान या व्यक्ति को दोषी नहीं माना जा सकता है और इसके रूपों में भी भिन्नता होती हैं। कभी-कभी यह क्रूर रूप में तो कभी संवेदनात्मक तो कभी-कभी महिलाओं के हितों की दुहाई के रूप में हमारे समझ प्रस्तुत होते हैं
लैंगिक भेदभावों से सम्बन्धित व्यवहार जो घर तथा बाहर किये जाते हैं, वे निम्न प्रकार हैं–
1. बालिकाओं को प्रत्येक समय यह अहसास दिलाना कि वे लड़की हैं ।
2. बालकों की अपेक्षा उनको हीन मानना ।
3. घर तथा पारिवारिक जनों के समक्ष बालकों की गलती होने पर भी बालिकाओं को दण्ड ।
4. अध्ययन हेतु समुचित सुविधाओं का अभाव तथा लड़कों की अपेक्षा कम शुल्क तथा कम सुविधायुक्त विद्यालयों में प्रविष्ट करवाना ।
5. बालिकाओं को पारिवारिक कार्यों में कम महत्त्व देना ।
6. खान-पान तथा रहन-सहन में बालिकाओं के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार ।
7. कार्य का बोझ होना ।
8. शीघ्र विवाह इत्यादि की चिन्ता के द्वारा भी बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा हीनता का बोध होता है ।
9. घर से बाहर सार्वजनिक स्थलों पर छींटाकशी, अभद्र भाषा, गाली-गलौज, शौचालयों इत्यादि में लिंगीय टिप्पणियाँ एवं चित्रांकन द्वारा ।
10. परिजमों तथा रिश्तेदारों द्वारा अश्लील व्यवहार, बात तथा अंगों को छूना ।
11. घूरना और गलत तरह से मुस्कराना ।
12. वस्त्रादि पर टिप्पणी ।
13. रोड तथा सुनसान रास्तों पर लड़कियों को देखकर अश्लील हरकतें करना ।
14. द्विअर्थी बातें तथा गीत गाना |
15. कार्यस्थल पर कार्य के बहाने देर तक रोकना और गलत हरकतें करना ।
16. मादक पदार्थों को पीने हेतु बाध्य करना ।
17. सुनसान स्थान पर ले जाना ।
18. डराना, धमकाना, एम. एम. एस. तथा सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बदनाम करने की धमकी देना ।
19. झूठे प्यार में फँसाकर गलत कार्य करवाना ।
20. लड़कियों की कमजोरी तथा पारिवारिक समस्याओं का लाभ उठाकर उनका शोषण करना ।
21. दहेज की माँग करना और मुँहमाँगी राशि न मिलने पर लड़की में कमी निकालना तथा विवाहोपरान्त घरेलू हिंसा का शिकार बनाना ।
22. परिवार में लड़की जन्म देने वाली बहू को कम मान-सम्मान मिलना और देखरेख में कमी ।
23. लिंग की जाँच करवाना तथा लड़की होने पर गर्भपात हेतु विवश करना । लड़की नहीं लड़के को जन्म देने का दबाव डालना और ऐसा नहीं होने पर दूसरे विवाह की धमकी देना ।
24. विद्यालयों में लड़कियों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार करना ।
25. विद्यालयी क्रियाओं में बालिकाओं की सहभागिता में भेदभाव ।
26. सामाजिक तथा सामुदायिक क्रियाओं में महिलाओं की सहभागिता की पुरुषों की अपेक्षा उपेक्षा ।
27. महिलाओं से सम्बन्धित मुद्दों तथा सुरक्षा के विषयों पर गम्भीरता का अभाव ।
लैंगिक भेदभाव तथा समस्याएँ : घर और बाहर (Genderer Differient and Problems : House and Out) — लैंगिक भेदभाव और उनसे जुड़ी कुछ समस्याओं का सामना घर और बाहर स्त्रियों को करना पड़ता है, वे निम्न प्रकार हैं-
1. बालिकाओं का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाना ।
2. बाल विवाह तथा पर्दा- प्रथा आदि का प्रचलन ।
3. स्त्रियों की दशा निम्नतम रह जाना ।
4. रुचियों तथा योग्यता के अनुरूप कार्यों का न मिल पाना ।
5. पारिवारिक दायित्वों का बँटवारा करने में अक्षमता ।
6. आर्थिक सशक्तीकरण न हो पाना ।
7. साक्षरता दर में कमी तथा जीवन की गुणवत्ता का ह्रास ।
8. योग्य सन्तानों का अभाव ।
9. सामाजिक मूल्यों का पतन ।
10. सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में अवरोध की समस्या ।
लैंगिक भेदभाव घर तथा बाहर: सुझाव (Genderer Different House and out : Suggestions)— लैंगिक भेदभावों के प्रभाव से कोई राष्ट्र अछूता नहीं है । वर्तमान में भाषा, रंग, स्थान, प्रजाति तथा जाति इत्यादि के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है, परन्तु लैंगिक भेदभाव सबसे भयावह और व्यापक है, क्योंकि व्यक्ति चाहे जो भी भाषा बोले, जो भी रंग हो, जिस स्थान तथा जाति और प्रजाति से सम्बन्ध रखता हो, परन्तु उन समूहों में स्त्रियों और पुरुषों की संख्या कमोवेश समानान्तर होती है । स्त्री-पुरुष में भेदभाव मानवता और विश्व की आधी शक्ति, श्रम, सम्भावना और आकांक्षा का अनादर है, जिसके कुछ दुष्परिणाम समाज के सम्मुख आने लगे हैं और अब पहल की जाने लगी है कि स्त्रियों को उनकी वंचित और दीन-हीन दशा से ऊपर उठाने की । अन्तर्राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग तथा मानवाधिकार संगठन इन विषयों पर सचेत रहते हैं । घर और बाहर हो रहे किसी भी प्रकार के भेदभाव जिसमें शारीरिक, मानसिक, शैक्षिक, खान-पान, रहन-सहन, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा धार्मिक आदि सम्मिलित हैं, उनको कम करने हेतु सुझाव निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत किये जा रहे हैं—
1. स्त्रियों को आत्मविश्वास से परिपूर्ण करना ।
2. स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने और कौशल तथा दक्षता प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करना ।
3. स्त्रियों को उनकी दीन-हीन दशा से अवगत कराना तथा इसे विधि का विधान समझने वाली स्त्रियों को जागरूक करना ।
4. स्त्रियों को स्त्रियों के प्रति शोषण तथा अपमानजनक घटनाओं, सामाजिक कुरीतियों को निषिद्ध करने के लिए तैयार कराना ।
5. बेटा और बेटी की परवरिश समान रूप से करना ।
6. लड़के लड़कियों की अपेक्षा शक्तिशाली और श्रेष्ठ होते हैं, इस भाव को समाप्त करना ।
7. बालिकाओं पर लगायी गयी सामाजिक पाबन्दियों, सामाजिक ताने – बाने, परम्पराओं, ब्रतों और त्योहारों को मनाने की एकांगी जिम्मेदारी को समाप्त करना ।
8. कन्या भ्रूणहत्या तथा दहेज के दानव को प्रतीकात्मक रूप में भी स्थान न दिया जाना ।
9. सामूहिक स्थलों पर सादा वर्दी में महिला पुलिस की तैनाती ।
10. अपराधियों पर कड़ी कार्यवाही ।
11. शोषित स्त्री के प्रति सामाजिक संवेदना तथा सहयोग का भाव ।
12. स्त्रियों और बालिकाओं के लिए असुरक्षित स्थलों की पहचान कर वहाँ पुलिस चौकियों की स्थापना तथा सी. सी. टी. वी. कैमरे लगाना ।
13. स्त्री स्वयं सहायता समूहों का निर्माण पंचायत स्तर पर ।
14. कार्यस्थल पर स्त्रियों के समानता का व्यवहार करना ।
15. समान कार्य हेतु समान वेतन के नियम का पालन ।
16. संविधान में वर्णित लिंग की समानता, कानूनी सहायता और नियमों का प्रसार साधारण लोगों में ।
17 सार्वजनिक स्थलों, जैसे—विद्यालय, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, चिकित्सालयों आदि में महिला हैल्प लाइन के नम्बर अंकित करना तथा सहायता केन्द्रों की स्थापना ।
18. स्त्रियों को उपेक्षित करने वाली परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों का विरोध करना ।
19. बालिकाओं को व्यवसायोन्मुखी शिक्षा तथा रोजगारपरक पाठ्यक्रमों में प्रविष्ट कराना ।
20. स्त्रियों को स्वावलम्बी बनाने हेतु सरकार द्वारा योजनाओं का संचालन एवं सस्ते ऋण की व्यवस्था ।
21. प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था ।
22. स्त्रियों की आय सीमा तथा जमीन आदि विषयों में छूट प्रदान करना ।
23. बालिकाओं को पैतृक सम्पत्ति में कुछ हिस्सा अनिवार्य रूप से प्रदान करना जिससे वे सशक्त होंगी ।
24. माता-पिता तथा समाज के बालकों और पुरुषों को स्त्रियों तथा बालिकाओं के सम्मान हेतु विवश करना और ऐसा न करने वालों पर कठोर सामाजिक प्रतिबन्ध लगाना ।
25. बालिकाओं को प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर की शिक्षा निःशुल्क कर देना ।
26. महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए और उनका शोषण कम हो इसलिए महिला आरक्षण का पालन सख्ती से किया जाना चाहिए ।
27. बालिकाओं को लैंगिक व्यवहारों को कैसे पहचाना जाये, और इस प्रकार की स्थिति में किससे सहायता प्राप्त की जाये, इत्यादि विषयों से अवगत कराया जाये । घर में होने वाले लैंगिक दुर्व्यवहारों में प्राय: यह देखा जाता है कि सामाजिक भय के मारे बालिका किसी से कुंछ नहीं कह पाती है और इस प्रकार अपराध करने वालों का मनोबल बढ़ता है ।
28. भारत में स्त्रियों की दशा तथा अन्य देशों में स्त्रियों की दशा तथा उनकी घर और बाहर सुरक्षा के लिए किये गये प्रावधानों से सीख लेना ।
29. माता-पिता या अभिभावक का बालिकाओं के अत्यन्त करीब होना जिससे वे उसकी समस्यायें जान सकें ।
30. अप्रत्यक्ष रूप से बालिकाओं की सहेलियों और मिलने-जुलने वालों तथा फोन इत्यादि पर नजर रखना ।
31. धर्म तथा जाति इत्यादि का समाज पर नियन्त्रण होता है, अतः उनका सहयोग महिलाओं की सुरक्षा तथा सशक्तीकरण हेतु प्राप्त करना चाहिए ।
32. सरकारी, गैर-सरकारी, समाजसेवी, व्यक्तिगत तथा सामूहिक सभी प्रकार की सहायता की प्राप्ति ।
33. विद्यालय को घर तथा बाहर की सुरक्षा का प्रभावी अभिकरण के रूप में विकास ।
लैंगिक भेदभाव व्यक्ति की मनःस्थिति और असुरक्षा के द्योतक हैं । जहाँ स्त्री को कमजोर मानकर उस पर अपनी श्रेष्ठता थोप दी जाती है। ऐसा व्यवहार केवल बाहर या अजनबी ही नहीं करते, बल्कि परिवारीजन और घर की चहारदीवारी में भी होता है। गर्भ में कन्या भ्रूण की हत्या, दहेज के लिए बहू को जलाना, बेटी को पढ़ने न भेजना और बेटे की जरूरतें पूरी करने के लिए बेटियों की छोटी-छोटी इच्छाओं को सूली पर चढ़ा देना, परिजनों, रिश्तेदारों तथा पड़ोसियों द्वारा यौन शोषण, ये सब कोई बाहरी नहीं करता अपितु कोई अपना करता है । ऐसी स्थिति में समझ में नहीं आता कि किस प्रकार आवाज उठायी जाये। आँकड़ों के अनुसार महिलाओं को शारीरिक शोषण करने वालों में अधिकांशतया उनके करीबी या रिश्तेदार होते हैं । इस प्रकार घर में और विकृत मानसिकता वाले अपनों से ही महिलाओं को लड़ना है और इस लड़ाई में परिवार, समाज, समुदाय, धर्म, जाति, संस्कृति इत्यादि जो अत्यधिक प्रभावी भूमिका का निर्वहन करते हैं, सामाजिक नियंत्रण का कार्य करते हैं, इस सभी अभिकरणों के साथ राज्य, शासन, प्रशासन और को कदम कानून से कदम मिलाकर महिलाओं को शारीरिक, मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी । तभी आधी आबादी का योगदान प्राप्त होगा, जिससे प्रगति और विकास का पहिया तीव्रता से घूमेगा । आशा है कि घर तथा बाहर महिलाओं की सुरक्षा का कार्य एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च अधिकारी वर्ग अपना परम कर्त्तव्य समझेगा, क्योंकि स्त्रियाँ समाज की अस्मिता तथा गौरव की परिचायक होती हैं ।
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