लिंग समानता हेतु समाजिक प्रावधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
प्रश्न – लिंग समानता हेतु समाजिक प्रावधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – स्वतंत्रता के पश्चात, धर्म जाति, लिंग तथा निवास स्थानादि के आधार पर किये जाने वाले भेदभावों को समाप्त करने के लिए संवैधानिक प्रावधान किये गये, जिससे सभी की उन्नति हो सके तथा वास्तविक अर्थों में लोकतन्त्र की सुदृढ़ता की नींव रखी जा सके । जाति, धर्म, तथा लिंगीय असमानता को समाप्त करने वाले कुछ संवैधानिक प्रावधान निम्न प्रकार हैं—
अनुच्छेद 14 के अनुसार –“संविधान विधि के समक्ष सभी को समान स्थिति प्रदान करता है। “
अनुच्छेद 15 के अनुसार– “किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूल, वंश जाति, लिंग जन्म स्थान अथवा इसमें से किसी के अधिकार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा ।”
अनुच्छेद 16 के अनुसार– “राज्याधीन नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी । “
अनुच्छेद 17 के अनुसार — “अस्पृश्यता का अन्त किया गया है । “
अनुच्छेद 18 के अनुसार– “उपाधियों की समाप्ति की गयी है । “
अनुच्छेद 29 के अनुसार- “राज्य द्वारा घोषित अथवा राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरकि को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं रखा जायेगा । “
अनुच्छेद 30 के अनुसार—“शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी विद्यालय के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है । “
अनुच्छेद 38 के अनुसार– “राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए भरसक प्रयास करेगा जिसमें सभी को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय प्राप्त हो । ”
अनुच्छेद 39 के अनुसार—“असमानता की समाप्ति हेतु निम्नांकित प्रावधान किये गये हैं –
- “नागरिकों अर्थात् पुरुषों व नारियों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त हो सकें । “
- “देश के साधनों अथवा समुदाय की भौतिक सम्पत्ति का स्वामित्व तथा नियंत्रण इस प्रकार से बँटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन प्राप्त हो सके । “
- “आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन के साधनों का सर्वसाधारण हेतु अहितकारी केन्द्रण न हो सके । “
- “पुरुषों और नागरिकों को समान कार्य हेतु समान वेतन हो । “
- “श्रमिक, पुरुषों, नारियों तथा बालकों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो तथा आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे राजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हों । “
- “शैशव और किशोर अवस्था का शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से संरक्षण हो । “
अनुच्छेद 41 के अनुसार- “राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार यथाशक्ति काम पाने, शिक्षा पाने तथा बेकारी, बुढ़ापा और अंगहानि तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में सार्वजनिक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का कार्यसाधक उपबन्ध करेगा ।
अनुच्छेद 42 के अनुसार– “राज्य काम की यथोचित तथा मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता हेतु उपबन्ध करेगा।”
अनुच्छेद 43 के अनुसार “राज्य श्रमिकों के निर्वाह, मजदूरी तथा शिष्ट जीवन स्तर आदि का प्रबन्ध करेगा ताकि अवकाश और आराम के समुचित उपभोग की दिशाओं तथा सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति की दशाओं को प्राप्त कराया जा सके ।”
इस प्रकार आधुनिक भारत में जाति व्यवस्था के दुष्परिणामों को देखते हुए सर्वहारा वर्ग व स्थापना का प्रयास किया गया । जातिगत व्यवस्था की असमानता आर्थिक आधार पर न होक सामाजिक तथा सांस्कृतिक है । इन वर्गों में स्त्रियों की दशा और भी पिछड़ी, असमानतापूर्ण तथा चिन्ताजनक है। संविधान में निम्न समझी जाने वाली जातियों और उनकी स्त्रियों को सामाजिक, आर्थिक, न्याय तथा शैक्षिक समानता प्रदान करने के लिए पर्याप्त प्रावधान किये हैं ।
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