नारीवाद विचारधारा के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
प्रश्न – नारीवाद विचारधारा के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
उत्तर – इस नारीवादी का उदय उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ, क्योंकि ब्रिटेन के प्रमुख विचारक जे. एस. मिल ने सर्वप्रथम नारीवाद का उल्लेख अपनी पुस्तक ‘Subjection of Women, 1869’ में किया था। इस सम्बन्ध में उनका विचार था कि “स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध का आधार प्रेम, सौहार्द और मित्रता है । स्त्री-पुरुष सहचर है । कोई किसी पर अपना प्रमुख स्थापित नहीं कर सकता। दोनों को समाज में पूरा हक मिला हुआ है । अतः स्त्री पर पुरुष का कोई वर्चस्व स्वीकार नहीं किया जा सकता है । ” इसी आधार पर जे. एस. मिल द्वारा महिला मताधिकार का समर्थन किया गया था और इसलिए ‘नारी मुक्ति आन्दोलन’ का प्रर्वतक भी माना गया है ।
विश्व की प्रथम नारीवाद महिला विदुषी स्टानेक्राफ्ट द्वारा नारी शिक्षा पर विशेष रूप से बल दिया गया था। इस सम्बन्ध में उन्होंने लिखा था कि “महिलायें हर जगह दुर्दशा की शिकार हो रही हैं। उनकी मासूमियत बनाये रखने के स्थान पर सच्चाई उनसे छिपाई जाती है और इससे पहले कि उनका सामर्थ्य विकसित हो, उन पर एक कृत्रिम चरित्र थोप दिया जाता है, उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है; जिससे उनकी बुद्धि का विकास नहीं हो पाता और उन्हें बच्चे पालने तथा घर का काम करने जैसे कार्यों में जोत दिया जाता है। उसका कार्य क्षेत्र व्यक्तिगत सीमाओं में बंधकर रह जाता है।” इसके अलावा विभिन्न विचारकों का मत इस प्रकार है-
- स्त्रियों का पुरुषों के प्रति दृष्टिकोण- वर्त्तमान पितृसत्तात्मक समाज में स्त्रियों के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए सुप्रसिद्ध नारीवाद सुश्री साइमन डी. बीवेयर द्वारा अपनी पुस्तक ‘Second sex’ में कहा गया है कि “ स्त्री पैदा नहीं होती बल्कि बना दिया जाता है”। इस सम्बन्ध में उनका विचार है कि ‘स्त्री चाहे गरीब, अमीर, अशिक्षित या शिक्षित हो उसको अपनी लड़ाई का सामना स्वयं करना होगा ।” यद्यपि वे स्त्रियों की दुर्दशा के लिए पति को उत्तरदायी, मानते हैं । लेकिन इसके लिए वे स्त्री को भी दोषी मानती हैं। उनके विचार में नारी को स्वयं भी अपने अधिकारों की लड़ाई स्वयं लड़नी चाहिए ताकि कोई पुरुष उसका शोषण न कर सके ।
- पितृतन्त्र की राजनैतिक स्थिति – ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध एक अन्य नारीवाद समीक्षक कंट मिलेट ने अपनी पुस्तक ‘Sexual Politics, 1985’ में पितृतन्त्र की राजनैतिक स्थिति. का उल्लेख किया है । इसमें पुरुष की प्रधानता तथा नारी के शोषण की समीक्षा की गयी है । उनके अनुसार “वर्त्तमान व्यवस्था में नारी की स्थिति को कमजोर बताया गया और उनको पुरुषों का गुलाम बनने के लिए विवश किया गया ।” इस व्यवस्था से नारी को अलग करने की जो विचारधारा है उसको ही नारीवाद कहा गया ।
- नारी अधिकारों की माँग – वर्तमान समाज में नारी-अधिकारों की माँगों के महत्त्व स्पष्ट करते हुए प्रमुख विचारक सुश्री बेट्टी फ्रीडन ने ‘दि फेमिनेस्ट मिस्टिक’ नामक पुस्तक में लिखा है कि “पति का पत्नी पर अधिकार स्थापित करना उनको कुछ कामों तक सीमित करना स्त्रियों के प्रति उनका मुख्य षड्यन्त्र है।” इसको एक विशेष राजनीतिक के रूप में उनके द्वारा अधिकारों की माँग के रूप से की गयी ।
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