स्त्री शिक्षा के विकास के लिए प्रावधानों का वर्णन करें ।
प्रश्न – स्त्री शिक्षा के विकास के लिए प्रावधानों का वर्णन करें ।
उत्तर – स्त्री शिक्षा के विकास हेतु परम्परागत उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण को त्यागकर स्वतंत्रता एवं समानता के आधार पर अपने दृष्टिकोण में परिवर्त्तन करना होगा । उसमें वर्त्तमान युग के अनुरूप नवीनता एवं प्रगतिशीलता लानी होगी । तभी पतित एवं उपेक्षित नारी का समुचित विकास सम्भव हो सकेगा । स्त्री शिक्षा के प्रति समाज की परम्परागत दृष्टि को बदलने हेतु सरकार का तथा उसे समाज में पुरुष तुल्य अधिकार दिलाने हेतु संवैधानिक, कानूनी एवं प्रशासनिक स्तर पर आवश्यक प्रावधान करने होंगे। साथ ही तदनुरूप क्रियान्वयन के लिए अनेक कार्यक्रम बनाने होंगे व उनको कार्य रूप देना होगा।
स्त्री – शिक्षा के समुचित विकास के लिए अधोलिखित प्रावधान करने होंगे
- विद्यालयों की स्थापना – देश में बिना क्षेत्रीयता, जाति, वर्ग आदि के भेद-भाव के सर्वत्र विद्यालयों की स्थापना की जाय। जहाँ सह-शिक्षा से आपत्ति न हो वहाँ सह-शिक्षा वाले विद्यालय और जहाँ लड़कियों के लिए पृथक विद्यालय पसन्द किये जाए वहाँ बालिका विद्यालयों के लिए पृथक् विद्यालयों की व्यवस्था की जाय । उच्च स्तर पर सह – शिक्षा पर आधारित महाविद्यालय खोले जायें। ताकि स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को समझ सकें और उन्हें भावी जीवन में ताल-मेल रखने में सरलता रहे ।
- सभी शैक्षिक वर्गों में शिक्षा का अवसर – बालिकाओं को उन सभी वर्गों और विषयों में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाय जो बालकों के लिए ही आवश्यक माने जाते हैं । लिंग भेद के आधार पर स्त्रियों को किसी विषय विशेष को पढ़ने से न वंचित किया जाय और न बाध्य किया जाय ।
- व्यावसायिक शिक्षा – आर्थिक मान्यताएँ, जीवन स्तर को प्रोन्नति एवं आर्थिक स्वतंत्रता के दृष्टिकोण ने महिला वर्ग को व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करके धनोपार्जन करने के लिए आकर्षित किया है। आजकल हर वर्ग की महिलाओं में व्यवसायिक कुशलता प्राप्त करके धर्नाजन की इच्छा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए ।
- प्रौढ़ शिक्षा – व्यावसायिकता के दृष्टिकोण से शिक्षा व्यवस्था करने में स्त्रियोचित रुचि की शिक्षा-व्यवस्था करना आवश्यक होगा । वे प्रौढ़ाएँ जो शिक्षा प्राप्त कर चुकी थीं; परन्तु किन्हीं कारणों से पूर्ण शिक्षा नहीं पा सकी थीं, आवश्यकता पड़ने पर पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता पाना चाहती हैं। उनके लिए प्रौढ़ – शिक्षा की व्यवस्था करना आवश्यक है। प्रौढ़ शिक्षा की निरन्तरता एवं व्यावसायिक कुशलता की उत्पत्ति के लिए स्त्री शिक्षा के स्वरूप पर विचार करना होगा। शिक्षा से वंचित महिलाओं के लिए भी प्रौढ़ – शिक्षा के कार्यक्रमों का प्रावधान किया जाय ।
- विशिष्ट शिक्षा – व्यावसायिक एवं विशिष्ट शिक्षा के दृष्टिकोण से स्त्रियोचित शिक्षाएँ, अध्यापक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा एवं ललित कलाओं के प्रशिक्षण आदि का प्रावधान हो । गृह विज्ञान एवं गृहशास्त्र के विषय स्त्रियों की शिक्षा के अनिवार्य अंग हों, तो अच्छा है। प्रारम्भिक पंचवर्षीय योजनाओं में यद्यपि इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया गया है, किन्त यह अपर्याप्त रहा। अब इन विशिष्ट शिक्षा व्यवस्थाओं को दृष्टिमध्य रखकर विशेष प्रावधान करने की आवश्यकता है। प्रौढ़ाएँ, चाहे नगर की हों या ग्रामों की, सभी के लिए सामाजिक सेवा सहकारिता एवं गृहोपयोगी शिक्षा का प्रावधान करना आवश्यक है ।
- अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान – स्त्री शिक्षा के विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि स्त्रियों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था का प्रावधान हो जिससे कि आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावक स्त्रियों को शिक्षा देने के लिए आकर्षित हों। बहुत अच्छा हो कि माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा प्रत्येक भारतीयं स्त्री के लिए अनिवार्य बना दी जाय ।
- छात्रवृत्ति का प्रावधान– भारत में अभिभावक आर्थिक एवं सामाजिक कारणों से कन्याओं को शिक्षा दिलाने में संकोच करते हैं। उन्हें स्त्री – शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए प्रत्येक छात्रा के लिए बिना किसी जाति, धर्म या वर्ग के भेद-भाव के मासिक अथवा वार्षिक छात्रवृत्ति का प्रावधान किया जाय ।
प्रतिभाशाली छात्राओं के लिए विशेष प्रतिभाशाली छात्रवृत्ति प्रदान करने की व्यवस्था की जाय । यदि स्त्रियों को उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित करना चाहते हैं तो उच्च शिक्षा में छात्राओं को छात्रवृत्ति की सुविधा से वंचित न किया जाय ।
- आरक्षण – विद्यालयों और नौकरियों मे स्त्रियों के लिए आरक्षण का प्रावधान हो । शिक्षा एवं जीविकोपार्जन में अवसर देखकर स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करने के लिए अवश्य सचेत होंगी; साथ ही अभिभावक भी जाग्रत होंगे ।
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