NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 5 क्षितिज (भाग – 1) गद्य-खंड

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NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 5 क्षितिज (भाग – 1) गद्य-खंड

गद्य-खंड

निम्नांकित गद्यांशों को पढ़े और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें –

प्रेमचंद

दो बैलों की कथा

1. जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गघा कहते हैं। गघा सचमुच बेवकूफ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसेयह पदवी दे दी हैं, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी।
(क) पाठ का नाम और उसके लेखक का नाम लिखें।
उत्तर – पाठ का नाम- ‘दो बैलों की कथा । लेखक का नाम- प्रेमचंद |
(ख) लेखक ने जानवरों में गधे को बुद्धिमान क्यों कहा है ?
उत्तर – समझदारी, बुद्धिमानी मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों में मिलती है, लेकिन जानवरों में भी गधा सबसे ज्यादा बुद्धिमान होता है, क्योंकि वह सीधा और कर्मठ होता है, उसे ज्ञान है, कि जानवर होने के कारण कर्म करना ही उसकी नियति और इसे नकारना बेवकूफी ही है।
(ग) मूर्ख आदमी को ‘गधा’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – आजकल ‘गधा’ शब्द मूर्ख व्यक्ति का प्रतीक है, क्योंकि जो व्यक्ति समय, परिस्थिति के अनुसार नहीं चलता, नहीं बदलता है, उसे लोग मूर्ख कहते है। गधा भी हर स्थिति में मूक बना काम करता रहता है, पिटता है, लेकिन बदलता नहीं है।
(घ) लेखक की दृष्टि में गधा क्या सचमुच मूर्ख है ?
उत्तर – लेखक गधे को मूर्ख नहीं मानता है। उसका मानना है कि गधे के सीधेपन को मूर्खता का यथार्थ समझा जा रहा है। वस्तुतः गधा सीधा है। मूर्ख नहीं ।
(ङ) लेखक गधे के सीधेपन के लिए क्या कहता है ?
उत्तर – लेखक के अनुसार गाय, कुत्ता आदि जानवर यथासमय हिंसक हो जाते हैं, क्रोधी बन जाते हैं पर गधा वैसा ही शाँत और मूक बना रहता है। अतः वह अत्यंत सीधा जानवर है।
(च) ब्याही हुई गाय अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कब और क्यों कर लेती है ?
उत्तर – ब्याही हुई गाय उस समय सिंहनी का रूप धारण कर लेती है जब उसके बछड़े के पास कोई आता है, हाथ लगाता है। क्योंकि उसे लगता है कि उससे उसका बछड़ा अलग करने कोई आया है। वैसे भी हर माँ अपने बच्चे के प्रति ऐसे ही भाव से जुड़ी रहती है।
(छ) गधे की कौन-सी विशेषता अन्य पशुओं से भिन्न  है ?
उत्तर – गधे की अत्यधिक सहनशीलता, सरलता, संतोष-वृत्ति, सुख-दुख को एक समान मानने की भावना उसे अन्य पशुओं से भिन्न करती है। अन्य जानवर गधे के समान सरल, सीधे, अक्रोधी और अत्यंत सहनशील नहीं होते।
(ज) ‘परले दरजे का बेवकूफ’ का आशय क्या है ?
उत्तर – बिल्कुल मूर्ख |
2. देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जीतोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते, तो शायद सभ्य कहलाने लगते । जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
(क) लेखक ने प्रवासी भारतीयों की किस दशा का वर्णन किया है ?
उत्तर – लेखक ने प्रवासी भारतीयों के सीधेपन, भोलेपन को उजागर किया है। जो कमाने के लिए विदेशों में अपने सीधेपन से काम करते रहते हैं, पैसे जोड़ते है, दुःख उठाते है लेकिन फिर भी उपेक्षित होते हैं, शोषण का शिकार होते हैं।
(ख) प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा का मूल कारण क्या है ?
उत्तर – प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा का मूल कारण है उनका सीधापन, उनकी सरलता, उनकी संवेदनशीलता । इसी कारण वे कभी व्यावहारिक नहीं बन पाते हैं । उन देशों की संस्कृति के अनुकूल नहीं बन पाते हैं और कष्ट भोगते हैं।
(ग) प्रवासी भारतीय कब सभ्य कहलाने लगते हैं ?
उत्तर – प्रवासी भारतीय तब सभ्य कहलाने लगते हैं, जब वे ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते हैं। व्यावहारिक बन कर ही सभ्य कहलाते हैं ।
(घ) जापान कब सभ्य कहलाया ?
उत्तर – जापान जब अपनी हार पर चुप नहीं बैठा, वरन् पलटकर करारा जवाब दिया, तब वह सभ्य  कहलाया ।
(ङ) भारतवासियों को अमरीका में क्यों नहीं घुसने दिया जाता ?
उत्तर – भारतवासियों को अमरीका में इसलिए नहीं घुसने दिया जाता क्योंकि वे बहुत सरल-सीधे और सहनशील होकर रहते हैं। अमरीकावासी भारतीयों पर यह आरोप लगाते हैं कि वे जीवन के आदर्श को नीचे गिराते हैं। उनका रहन-सहन बहुत निम्न स्तर का है।
(च) भारतवासी किस कारण बदनाम किए जाते हैं ?
उत्तर – भारतवासियों को यह कहकर बदनाम किया जाता है कि उनका रहन-सहन बहुत नीचा है। वे जीवन के आदर्श को कम करते हैं।
(छ) सभ्य कहलाने के लिए किस गुण की आवश्यकता होती है ? प्रमाण के साथ बताएँ ।
उत्तर – आज की दुनिया में सभ्य उसी को कहा जाता है जिसमें उग्रता हो और अपने विरोधी को मुँह तोड़ जवाब देने की क्षमता हो । सरल-सीधे और सहनशील मनुष्य को मूर्ख, गँवार और असभ्य माना जाता है। यही कारण है कि युद्ध में कुशलता दिखाने के कारण जापान को सभ्य मान लिया गया और भारतवासियों को असभ्य कहकर बदनाम किया गया ।
(ज) विदेशों में रह रहे भारतवासी किस प्रकार का आचरण करते हैं ?
उत्तर – विदेशों में रह रहे भारतवासी सीधे-सादे, परिश्रमी तथा सहनशील होकर रहते हैं। वे शराब आदि व्यसनों से दूर रहते हैं। अपनी कमाई में से बचत करना नहीं भूलते। अपना काम परिश्रमपूर्वक करते हैं। किसी से झगड़ा नहीं करते । अत्याचार को भी सहन कर लेते हैं ।
3. लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है ‘बैल’ | जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है।
(क) गधे का छोटा भाई किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – गधे का छोटा भाई ‘बैल’ को कहा गया है। बैल को जब हम ‘बछिया का ताऊ’ कहते हैं तब उसे मूर्ख के अर्थ में ही प्रयोग करते हैं ।
(ख) कुछ लोग बैल का किनमें गिनते हैं? लेखक क्या मानता है ?
उत्तर – कुछ लोग बैल को बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। पर लेखक ऐसा नहीं मानता।
(ग) बैल कैसा व्यवहार करता है ?
उत्तर – बैल कभी-कभी दूसरों को मारता भी है । वह कई बार अड़ियल रुख प्रकट करता है। यह असंतोष भी प्रकट कर देता है।
(घ) लेखक के अनुसार बैल का स्थान कहाँ है ?
उत्तर – लेखक के अनुसार बैल का स्थान गधे से नीचा है क्योंकि वह गधे जितना सहनशील नहीं है और अपना विरोध दिखा देता है।
(ङ) ‘बछिया के ताऊ’ किसे कहा जाता है और क्यों ?
उत्तर – बैल को ‘बछिया का ताऊ’ कहा जाता है। बछिया यानि गाय का बछड़ा बिलकुल सरल, निश्छल और उत्साही होता है। बैल इन गुणों में उसका भी ताऊ अर्थात् उससे कहीं बढ़ा-चढ़ा होता है। अतः अत्यधिक सरलता, निश्छलता और कर्मशीलता के उत्साह के कारण उसे बछिया का ताऊ कहा जाता है।
4. ‘झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाई जाति के थेदेखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊँचे । बहुत दिनों साथ रहते- रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी- कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थेविग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता ।
(क) झूरी के दो बैलों के नाम क्या थे ? उनका रूप-रंग, आकार कैसा था ?
उत्तर – झूरी के पास दो बैल थे। उनके नाम थे- हीरा और मोती । वे पछाईं जाति के थे। वे देखने में सुंदर थे, डील-डौल में वे बहुत ऊँचे थे। वे काम में चौकस थे।
(ख) मनुष्य किस बात से वंचित है ?
उत्तर – मनुष्य जिस श्रेष्ठता का दावा करता है, वास्तव में वह उससे वंचित है। दोनों बैलों में जो गुप्त शक्ति थी, वह मनुष्य के पास नहीं है।
(ग) झूरी के दोनों बैलों में कौन-सी गुप्त शक्ति थी ?
उत्तर – झूरी के दोनों बैलों में एक-दूसरे के मन की बात समझने की गुप्त शक्ति थी।
(घ) दोनों बैलों की आपसी मित्रता कैसी थी ?
उत्तर – दोनों बैलों में भाईचारा था। दोनों एक-दूसरे के मन की बात समझ जाते थे। दोनों एक दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते। और कभी-कभी आत्मीयता और विनोद से सींग मिला लिया करते थे ।
(ङ) विग्रह से क्या तात्पर्य हैं? दोनों के सींग मिलाने को लेखक विग्रह क्यों नहीं मानता ?
उत्तर – विग्रह से तात्पर्य है लड़ाई। दोनों प्रेमभाव से या मनोविनोद के भाव से सींग मिलाया करते थे। इसीलिए लेखक ने इसे विग्रह नहीं माना।
(च) हीरा और मोती की विशेषताओं पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – हीरा और मोती पछाईं जाति के सुंदर, सुडौल और बलिष्ठ बैल थे। लंबे समय से साथ रहने के कारण उनमें गहरी मित्रता थी। वे मौन भाषा में ही एक-दूसरे के मन की बात समझ जाते थे। वे आपस में सींग मिलाकर एक-दूसरे को चाटकर, सूँघकर या मस्ती भरी कुलेल करके एक-दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करते थे ।
(छ) सच्ची दोस्ती के कौन-से लक्षण इस गद्यांश में प्रकट हुए हैं ?
उत्तर – लेखक के अनुसार, सच्ची दोस्ती उन्हीं में होती है, जो कभी-कभी आत्मीयता और प्रेम से एक-दूसरे के साथ धौल-धप्पा करते हैं, शरारत करते हैं, क्रीड़ा करते हैं, मौज-मस्ती करते हैं। ऐसी चुहुल-भरी दोस्ती ही विश्वसनीय होती है।
5. संध्या समय दोनों बैल अपने नये स्थान पर पहुँचे । दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नाँद में लगाए गए तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर, नया गाँव, नये आदमी, उन्हें बेगानों से लगते थे।
दोनों ने अपनी मूक भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और घर की तरफ चले। पगहे बहुत मजबूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं ।
(क) बैल कब, कहाँ पहुँच गए ?
उत्तर – हीरा और मोती दोनों बैल संध्या के समय गया के घर पहुँच गए। उन्हें झूरी ने गया को सौंप दिया था ।
(ख) बैलों को क्या अनुभव हो रहा था ?
उत्तर – बैलों को गया के घर बेगाना-सा लग रहा था । यद्यपि वे दिन भर के भूखे थे फिर भी उन्होंने नाँद में मुँह तक नहीं डाला । उनका दिल भारी हो रहा था। उनका अपना घर छूट गया था ।
(ग) दोनों ने मूक भाषा में क्या सलाह की ?
उत्तर – दोनों ने मूक भाषा में इस नए घर से भाग जाने की योजना बनाई। इसी योजना के तहत वे लेट गए ।
(घ) रात के समय उन बैलों ने क्या किया ?
उत्तर – रात के समय जब गाँव के लोग सो गए तब दोनों बैलों ने अपनी-अपनी रस्सियों को तोड़ डाला। यद्यपि पैर में बंधी रस्सियाँ मजबूत थी; पर उस समय उनमें दुगनी शक्ति आ गई थी। एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं ।
(ङ) दिन-भर के भूखे होने पर भी दोनों ने नाँद में मुँह क्यों नहीं डाला ?
उत्तर – उनसे अपना घर छूट गया था। अतः उनका दिल भारी होने के कारण दिन-भर के भूखे होने पर भी उन्होंने नाँद में मुँह नहीं डाला ।
6. झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।
झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था ।
घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के तहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी । बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी ।
(क) झूरी ने कब, क्या देखा ?
उत्तर – झूरी जब प्रातःकाल सोकर उठा तब उसने देखा कि दोनों बैल (हीरा और मोती) चरनी पर खड़े हैं
(ख) झूरी ने वहाँ क्या दृश्य देखा ?
उत्तर – झूरी ने देखा कि दोनों बैलों की गरदनों में आधी-आधी रस्सी के टुकड़े लटक रहे हैं। उनके पैर कीचड़ से सने हैं और उन दोनों की आँखों में विद्रोह और स्नेह का मिला-जुला रूप झलक रहा है।
(ग) झूरी ने बैलों को देखकर क्या प्रतिक्रिया प्रकट  की ?
उत्तर – जब झूरी ने अपने दोनों बैलों को वापस आया देखा तो वह स्नेह से गद्गद हो गया। उसने दौड़कर उन्हें गले से लगा दिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का यह दृश्य बड़ा अच्छा लग रहा था ।
(घ) बाल-सभा ने क्या निश्चय किया ?
उत्तर – गाँव के लड़कों की बाल-सभा ने निश्चय किया कि इन दोनों बैलों को अभिनंदन-पत्र दिया जाना चाहिए क्योंकि इन्होंने वीरता प्रदर्शित की है। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़ तो कोई चोकर और भूसी लाया ।
(ङ) बैलों की आँखों में विद्रोमय स्नेह क्यों झलक रहा था ?
उत्तर – बैलों ने गलती से समझा था कि झूरी ने उन्हें बेच दिया है। इसलिए उनकी आँखों में इस बात के लिए विरोध और विद्रोह था। परंतु उनके मन में झूरी के प्रति स्नेह भी था। इस प्रकार उनकी आँखों में विद्रोह और स्नेह के मिले-जुले भाव थे ।
(च) हीरा और मोती का स्वागत कैसे किया गया ?
उत्तर – जब हीरा और मोती गया के घर से पगहे तुड़वाकर वापस झूरी के घर पहुँचे तो उनका बड़े प्रेम और उत्साह से स्वागत किया गया। झूरी ने उन्हें गले लगा लिया । वह उन्हें चूमने लगा। घर और गाँव के लड़के तालियाँ बजा बजाकर स्वागत करने लगे। कोई उनके अभिनंदन में घर से रोटियाँ ले आया, कोई गुड़, चोकर या भूसी ले आया।
(छ) ‘पशु-वीरों के अभिनंदन-पत्र’ से क्या आशय है ?
उत्तर – हीरा और मोती ने गया के घर से पगहे तुड़वाकर भागने का जो काम किया, वह किसी प्रकार की शूरवीरता से कम नहीं था। गाँव के बच्चे इस शूरवीरता का स्वागत करना चाहते थे। इसके लिए वे अपने-अपने घर से रोटी, चोकर, गुड़, भूसी आदि ले आए। ये वस्तुएँ हीरा-मोती के लिए अभिनंदन-पत्र के समान थीं ।
7. दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी। आहत-सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा ! नाँद की तरफ आँखें तक न उठाईं।
दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी । वह मारते-मारते थक गया; पर दोनों ने पाँव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाए, तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। हल लेकर भागा । हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाट कर बराबर हो गया । गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं, तो दोनों पकड़ाई में न आते ।
(क) दोनों बैलों अपमान क्यों और कैसे हुआ ?
उत्तर – गया ने दोनों बैलों को बहुत मोटी और मजबूत रस्सियों से बाँध दिया। उसने बैलों को शरारत का मजा चखाने के लिए उनके सामने सूखा भूसा डाल दिया। साथ ही अपने बैलों के सामने खली, चूनी सब डाल दी। इससे हीरा और मोती ने अपमान अनुभव किया ।
(ख) दोनों बैल किस भाषा को जानते थे ?
उत्तर – हीरा और मोती- दोनों बैल प्रेम की भाषा समझते थे। वे अपने मालिक की टिटकार सुनकर ही उड़ने लगते थे। उनके पाँवों में चुस्ती-फुर्ती आ जाती थी ।
(ग) दूसरे दिन बैलों को हल में क्यों जोता गया था ?
उत्तर – पहले दिन बैलों में बंधन और उपेक्षा अस्वीकारते हुए भागने का प्रयास किया था, अतः सजा रूप में दूसरे दिन उन्हें हल में जोता गया था।
(घ) हल में जोतने पर बैलों ने क्या किया और क्यों ?
उत्तर – हल में जोतने पर भी बैलों ने अपना हठ न छोड़ा। दोनों ने कदम नहीं उठाया। गया के डंडे बरसाने पर वे हल तोड़कर भाग खड़े हुए, क्योंकि उन्हें बंधन, उपेक्षा, शोषण स्वीकृत न था । अतः वे हिंसक हो गए थे।
(ङ) यहाँ गया और बैल किसका प्रतीक जान पड़ते हैं ?
उत्तर – यहाँ गया तत्कालीन बिट्रिश – शासकों तथा बैल क्रांतिकारी भारतीयों का प्रतीक जान पड़ते हैं।
(च) मोती किस कारण गुस्से में आ गया ? उसने अपना क्रोध किस प्रकार प्रकट किया ?
उत्तर – जब गया ने हीरा के नाक पर डंडे जमाए तो मोती क्रोध में आ गया । वह हल, रस्सी, जुआ, जोत सब लेकर बेतहाशा भाग पड़ा। इससे सब कुछ टूट-फूट गया । इस प्रकार उसने गया के सामने अपना क्रोध प्रकट किया।
8. आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया। दोनों चुपचाप खड़े रहे। घर के लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियाँ लिए निकली, और दोनों के मुँह में देकर चली गई। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है। लड़की भैरो की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी।
दोनों दिन-भर जोते जाते, डंडे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती।
प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था ।
(क) दोनों के सामने सूखा भूसा क्यों लाया गया ?
उत्तर – गया दोनों बैलों को मजा चखाना चाहता था इसीलिए उसने जान-बूझकर दोनों के सामने सूखा-भूसा डाल दिया ।
(ख) छोटी लड़की उन्हें दो रोटियाँ क्यों देकर चली गई ?
उत्तर – छोटी लड़की को उसकी सौतेली माँ मारती रहती थी । इन बैलों पर अत्याचार होते देख उसे इनसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी। अतः जब घर के लोग भोजन कर रहे थे, तब वह इन्हें दो रोटियाँ देकर चली गई।
(ग) एक रोटी से दोनों के हृदय को भोजन किस प्रकार मिल गया ?
उत्तर – पहले दिन बैलों में बंधन और उपेक्षा अस्वीकारते हुए भागने का प्रयास किया था, अतः सजा रूप में दूसरे दिन उन्हें हल में जोता गया था ।
(घ) वह लड़की कौन थी ? उसकी बैलों से आत्मीयता क्यों हो गई थी ?
उत्तर – वह लड़की भैरों की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उसे मारती रहती थी। अतः उन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी।
(ङ) दोनों बैलों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा था ?
उत्तर – गया के घर में दोनों बैलों के साथ बहुत बुरा व्यवहार हो रहा था। दिन भर उनसे काम लिया जाता फिर भी उन पर डंडे पड़ते थे। शाम को थान पर बाँध दिया जाता था। उन्हें खाने को सूखा भूसा दिया जाता था। दोनों बैलों की आँखों में विद्रोह झलकता था।
9. दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसे थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे; पर किसी के सामने चारा न था, सब जमीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमजोर हो गए थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे; पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती ?
(क) इससे पहले हीरा-मोती किस-किसके आश्रय में रहे थे ? वहाँ उन्हें कैसा व्यवहार मिला ?
उत्तर – काँजीहौस से पहले हीरा-मोती झूरी ओर गया के आश्रय में रहे थे। झूरी के घर में उन्हें पूरा मान-सम्मान और अपनापन मिला। गया के घर में उन्हें अपनापन तो नहीं मिला, परंतु पेट भरने के लिए अन्न जरूर मिला। वे दोनों आश्रयदाता काँजीहौस के मालिक से अच्छे थे।
(ख) काँजीहौस में पशुओं की जो दुर्दशा थी, उसका वर्णन करें।
उत्तर – काँजीहौस में पशुओं की हालत बहुत शोचनीय थी। सबके सब भूखे-प्यासे थे। उन्हें *कई दिनों से खाने को कुछ नहीं मिला था। इस कारण वे मुरदों की तरह जमीन पर पड़े थे। कमजोरी के कारण वे खड़े भी नहीं हो पाते थे।
(ग) टकटकी लगाने का क्या आशय है ?
उत्तर – किसी आशा से लगातार देखते रहना ।
(घ) किसने मिट्टी चाटना शुरू की और क्यों ?
उत्तर – हीरा और मोती ने भूख मिटाने के लिए मिट्टी चाटना शुरू कर दी ।
(ङ) आप कैसे कह सकते हैं कि यह चित्रण अंग्रेजों की जेलों की ओर संकेत करता है ?
उत्तर – यह कहानी परतंत्र भारत की दुर्दशा दिखाने के लिए लिखी गई है। काँजीहौस वह जगह है जहाँ आवारा पशु बाँधे जाते थे। इसके मालिक पशुओं के साथ ऐसी क्रूरता दिखाते थे जो कि विदेशी शासकों की क्रूरता की याद दिलाती है। अंग्रेज शासक भी भारतीय विद्रोहियों के साथ ऐसी ही क्रूरता से पेश आते थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह चित्रण अंग्रेजों की जेल की याद कराता है।
10. एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बँधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हाँ, एक बार पानी दिखा दिया जाता था । यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक न जाता था, ठठरियाँ निकल आई थीं।
एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और उनकी देखभाल होने लगी। लोग आ-आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीदार होता ?
सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया ।
(क) कौन दोनों मित्र कहाँ बंधे पड़े रहे ?
उत्तर – हीरा और मोती दोनों मित्र एक सप्ताह तक काँजीहौस में बंधे पड़े रहे।
(ख) वहाँ उनके साथ कैसा व्यवहार होता ?
उत्तर – वहाँ उनको चारे का एक तिनका भी न दिया जाता । केवल एक बार पानी दिखा दिया जाता था।
(ग) एक दिन बाड़े के सामने क्या हुआ ?
उत्तर – एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी पचास-साठ लोग वहाँ जमा हो गए। दोनों मित्रों को बाहर निकाला गया। लोग उनको देखते और मन फीका करके चले जाते।
(घ) लोग उन दोनों को देखकर क्यों चले जाते थे ?
उत्तर – दोनों बैल बहुत दुर्बल थे, ठठरियाँ निकल आईं थीं। उनसे उठा तक नहीं जाता था, ऐसे मृतक बैलों की खरीदकर वे क्या करते ? इसीलिए लोग उन दोनों बैलों को देखकर चले जाते।
(ङ) दढ़ियल आदमी को देखकर किस अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे ?
उत्तर – दढ़ियल आदमी को देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्र समझ गए कि यह कसाई है और उन्हें उनकी चमड़ी बेचने के उद्देश्य से उन्हें टटोल रहा है। इस अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे।

राहुल सांकृत्यायन

ल्हासा की ओर

1. वह नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता है। फरी-कलिङपोङ् का रास्ता जब नहीं खुला था, तो नेपाल ही नहीं हिन्दुस्तान की भी चीजें इसी रास्ते तिब्बत जाया करती थीं। यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फौजी चौंकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत-से फौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसे ही परित्यक्त एक चीनी किला था। वहाँ हम चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी । वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं बहुत निम्नश्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें ।
उत्तर – पाठ का नाम- ल्हासा की ओर
लेखक का नाम – राहुल सांकृत्यायन ।
(ख) नेपाल के रास्ते का इतिहास बताइए ?
उत्तर – नेपाल से तिब्बत जाने का रास्ता पहले सैनिक रास्ता था । जहाँ से व्यापार का सामान और सैनिक आते-जाते थे। यहाँ चीनी पलटन रहती थी।
(ग) तिब्बत में यात्रियों के लिए क्या गुण-दोष हैं ?
उत्तर – तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफें भी और कुछ आराम भी था । वहाँ जाति-पाति, छुआ-छूत का सवाल नहीं था, औरतें परदा नहीं करती थी।
(घ) पहले कौन-सा रास्ता प्रयोग में लाया जाता था ?
उत्तर – पहले जब फरी-कलिङ्पोङ का रास्ता नहीं खुला था तब नेपाल से तिब्बत जाया करती थीं। यह व्यापारिक के साथ सैनिक रास्ता भी था ।
(ङ) यहाँ जगह-जगह क्या बना हुआ है ? उनका क्या प्रयोग है ?
उत्तर – यहाँ जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं। इनमें कभी चीनी सेना रहती थीं। इनमें से बहुत से फौजी मकान गिर चुके हैं। अब इनमें कुछ किसानों ने कब्जा जमा लिया है अन्य कुछ घर भी आबाद हैं ।
(च) लेखक कहाँ ठहरा ?
उत्तर – लेखक एक परित्यक्त चीनी किले में ठहरा । वहाँ वह चाय पीने के लिए ठहरा ।
2. परित्यक्त चीनी किले जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी माँगने आया। हमने वह दोनों चिटें उसे दे दीं । शायद उसी दिन हम थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गए। यहाँ भी सुमति के जान-पहचान के आदमी थे और भिखमंगे रहते भी ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली । पाँच साल बाद हम इसी रास्ते लौटे थे और भिखमंगे नहीं, एक भद्र यात्री के वेश में घोड़ों पर सवार होकर आए थे; किंतु उस वक्त किसी ने हमें रहने के लिए जगह नहीं दी, और हम गाँव के एक सबसे गरीब झोपड़े में ठहरे थे। बहुत कुछ लोगों की उस वक्त की मनोवृत्ति पर ही निर्भर है, खासकर शाम के वक्त छड़ पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रखते हैं।
(क) सुमति कौन था और उसके जानने वाले हर रास्ते में क्यों मिल जाते थे ?
उत्तर – सुमति लेखक के साथ यात्री-रूप में जा रहा था, जो भिक्षु था । अतः सब ओर उसके यजमान मिल जाते थे ।
(ख) भद्र – वेश के लेखक को क्यों नहीं पहचाना गया था?
उत्तर – लेखक जिस रास्ते में था, वहाँ केवल निम्न श्रेणी के लोगों और भिखमंगों को ही सम्मान मिलता था । भद्र-वेश वाले लोगों से वहाँ के लोग दूर रहते थे। अतः लेखक को भी अनदेखा किया जाए ।
(ग) लेखक जहाँ ठहरा था, वहाँ के लोगों की मनोवृति के बारे में बताएँ ।
उत्तर – लेखक जहाँ ठहरा था, वहाँ के लोग खा-पीकर नशे में चूर रहने वाले लोग थे वे शाम को छड़ पीकर मस्त हो जाते थे।
(घ) पाँच साल बाद स्थिति में क्या परिवर्तन आ गया ?
उत्तर – पाँच साल बाद लेखक इसी रास्ते से लौटकर आया। उस समय उसने भद्र यात्री की वेशभूषा पहन रखी थी तथा वह घोड़े पर सवार था । इसके बावजूद उसे ठहरने के लिए अच्छी जगह नहीं मिली। वह सबसे गरीब झोंपड़े में ठहरा ।
(ङ) वहाँ के लोग किस प्रवृत्ति के है ?
उत्तर – वहाँ के लोग मनमौजी मनोवृत्ति के हैं। वे शाम के समय छंग पीकर पड़े रहते हैं। उस समय बहुत कम लोगों के होश-हवास ठीक रहते हैं।
(च) ‘परित्यक्त चीनी किला’ किसे कहा गया है ? वहाँ लेखक किसलिए गया था ?
उत्तर – नेपाल-तिब्बत मार्ग पर कई सैन्य किले बने हुए थे। इनमें कभी चीनी सैनिक रहते थे। आजकल इनमें कोई नहीं रहता। ऐसे ही एक किले को ‘परित्यक्त चीनी किला’ कहा गया है। लेखक वहाँ चाय पीने के लिए गया था ।
(छ) ‘राहदारी’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – ‘राहदारी’ का तात्पर्य है- तिब्बत में जाने के लिए पुल से नदी पार करने का अनुमति- पत्र, जो मजिस्ट्रेट के हाथ से लिखित होता था।
(ज) लेखक गरीब झोंपड़े में कब और क्यों ठहरा था ?
उत्तर – आज से पाँच साल पहले लेखक इसी रास्ते तिब्बत आया था। तब वह भिखमंगे के वेश में न होकर भद्र पुरुष के वेश में था और घोड़े पर सवार था। उस समय बहुत ढूँढ़ने पर भी उसे ठहरने की अच्छी जगह नहीं मिली थी। इसलिए उसे मजबूरी में एक गरीब झोंपड़े में ठहरना पड़ा था ।
3. अब हमें सबसे विकट डाँड़ा थोङ्ला पार करना था। डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता। सरकार खुफिया विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता। डकैत पहिले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं। हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते हैं। डाकू यदि जान से न मारे तो खुद उसे अपने प्राणों का खतरा है।
(क) डकैत लूटने से पहले आदमी को मारते क्यों हैं ?
उत्तर – डकैत जानते हैं कि यहाँ लोग पिस्तौल या बंदूक रखते हैं। इसलिए उन्हें अपनी जान का खतरा रहता है। यही कारण है कि वे पहले आदमी को मारते हैं, फिर लूटते हैं।
(ख) तिब्बत में सबसे खतरनाक जगहें कौन सी हैं ? और क्यों ?
उत्तर – तिब्बत में सबसे खतरनाक जगहें डाँड़े हैं। ये 16.17 हजार फीट ऊँचे होते हैं। इसी कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव नहीं होते।
(ग) यह जगह किन लोगों के लिए अच्छी है ? और क्यों ?
उत्तर – इस तरह की जगह डाकुओं के लिए बहुत अच्छी है। वे यात्रियों का खून करके आसानी से लूट लेते हैं। वे पकड़ में भी नहीं आते।
(घ) यहाँ लोगों की सुरक्षा का क्या इंतजाम है ?
उत्तर – यहाँ लोगों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। यहाँ की सरकार खुफिया विभाग और पुलिस पर खर्च नहीं करती। यहाँ कोई किसी की गवाही भी नहीं देता।
(ङ) कानून की यहाँ क्या स्थिति है ?
उत्तर – यहाँ कानून की स्थिति खराब है। यहाँ हथियार का कोई कानून नहीं है। अतः लोग पिस्तौल, बंदूक को लाठी की तरह लिए फिरते हैं। यहाँ जान का खतरा बना रहता है।
(च) डाँड़े डाकुओं के लिए सबसे सुरक्षित क्यों हैं ?
उत्तर – तिब्बत के इन डाँड़ों में दूर-दूर तक गाँव नहीं है, आबादी नहीं है। पहाड़ों के कोनों तथा नदी के मोड़ों के कारण दूर-दूर तक आदमी दिखाई नहीं देता। यहाँ पुलिस का भी प्रबंध कम है। इस कारण डाकू इन्हें अपने लिए सुरक्षित स्थल मानते हैं।
(छ) निर्जन स्थलों पर हुए खून की सजा होना क्यों कठिन है ?
उत्तर – निर्जन स्थलों पर हुए खून की सजा निम्नांकित कारणों से होना कठिन है
यहाँ मृत आदमी की कोई परवाह नहीं करता। सरकार भी यहाँ पुलिस और गुप्तचर का प्रबंध नहीं करती।
निर्जन प्रदेश होने के कारण गवाह भी नहीं मिल पाते।
(ज) डकैत लूटने से पहले आदमी को मारते क्यों है ?
उत्तर – डकैत जानते हैं कि यहाँ लोग पिस्तौल या बंदूक रखते हैं। इसलिए उन्हें अपनी जान का खतरा रहता है। यही कारण है कि वे पहले आदमी को मारते हैं, फिर लूटते हैं।
4. अब हम तिड़ी के विशाल मैदान में थे, जो पहाड़ों से घिरा टापू-सा मालूम होता था, जिसमें दूर एक छोटी-सी पहाड़ी मैदान के भीतर दिखाई पड़ती है। उसी पहाड़ी का नाम है तिी-समाधि-गिरी। आसपास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे। वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे। मैंने सोचा, यह तो हफ्ता भर उधर ही लगा देंगे। मैंने उनसे कहा कि जिस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आसपास के गाँवों में मत जाओ इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपये दे दूँगा । सुमति ने स्वीकार किया ।
(क) सुमति के यजमानों की क्या दशा थी ?
उत्तर – सुमति के यजमानों की संख्या बहुत अधिक थी। लगभग सभी गाँवों में उनके यजमान थे।
(ख) वे क्या काम कर रहे थे ?
उत्तर – सुमति अपने यजमानों को कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे बाँट रहे थे । बोधगया से लाए कपड़े के खत्म होने पर वे किसी भी कपड़े से बोध गया का गंडा बना लेते। वे अपने हर यजमान को गंडा देना चाह रहे थे।
(ग) सुमति कौन था ?
उत्तर – सुमति मंगोल जाति का एक बौद्ध भिक्षु था। वास्तविक नाम था लोब्जङ् शेख । इसका अर्थ होता है- सुमति प्रज्ञ । अतः लेखक ने उसे ‘सुमति के नाम से पुकारा। यह लेखक को ल्हासा की यात्रा के दौरान मिल गया था ।
(घ) ‘तिडरी- समाधि-गिरी’ कहाँ स्थित थी ?
उत्तर – तिडरी के विशाल मैदान के चारो ओर पहाड़ ही पहाड़ हैं। उसके बीचोबीच भी एक पहाड़ी स्थित है, जो कि टापू जैसी प्रतीत होती है। इसी का नाम है-  तिडरी-समाधि-गिरी ।
(ङ) तिङ्ग्री की भौगोलिक स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर – तिङ्ग्री में एक विशाल मैदान है। उसके चारो ओर पहाड़ ही पहाड़ हैं। उस मैदान के बीचोंबीच भी एक पहाड़ है। अतः वहाँ ऐसा प्रतीत होता है मानो वह पहाड़ों से घिरा हुआ कोई टापू हो। मैदान के बीच जो पहाड़ी स्थित है, उसी का नाम है तिङ्क्री-समाधि-गिरी है।
5. तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी कराता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का इंतजाम देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता। शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु (नम्से) बड़े भद्र पुरुष थे । वह बहुत प्रेम से मिले हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी ख्याल करना चाहिए था।
(क) तिब्बत में जमीन की क्या स्थिति है ?
उत्तर – तिब्बत में जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी हुई है। इन जागीरों का काफी हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है अर्थात् उनका नियंत्रण है।
(ख) वहाँ खेती का काम कौन करता है ?
उत्तर – तिब्बत की जागीरों की जमीन पर हरेक जागीरदार पर हरेक जागीरदार खुद भी खेती कराता है। इसके लिए बेगार में मजदूर मिल जाते हैं। खेती का इंतजाम कोई न कोई भिक्षु देखता है।
(ग) लेखक किस प्रकार की वेषभूषा में था ?
उत्तर – लेखक अत्यंत साधारण वेशभूषा में था। इसके बावजूद शेकर की खेती के मुखिया ने उसका काफी सम्मान किया। वे एक भद्र पुरुष थे।
(घ) तिब्बत में खेती का प्रबंध करने वाले भिक्षुओं की क्या स्थिति होती थी ?
उत्तर – तिब्बत में खेती का प्रबंध करने वाले भिक्षुओं की स्थिति किसी राजा से कम नहीं होती । जागीर के लोग उसे अन्नदाता के रूप में सम्मान देते हैं ।
(ङ) तिब्बत की जागीर व्यवस्था पर प्रकाश डालें।
उत्तर – तिब्बत की सारी जमीन छोटी-बड़ी जागीरों में बँटी हुई है। इनमें से अधिकतर जागीरें बौद्ध मठों और विहारों के हाथों में हैं। हरेक जागीरदार अपनी-अपनी जागीर में खेती कराता है। उसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का प्रबंध करने के लिए कोई भिक्षु भेजा जाता है। जागीर के लोग उसे राजा का समान आदर देते हैं ।
(च) शेकर की खेती के भिक्षु कौन थे ? उनके स्वभाव और व्यवहार का वर्णन करें।
उत्तर – शेकर विहार की खेती के भिक्षु का नाम था- नम्से। वे स्वभाव से बहुत विनम्र, भद्र तथा स्नेही थे। वे लेखक को बड़े प्रेम से मिले। यद्यपि उनसे मिलते समय लेखक भिक्षु के वेश में था, फिर भी उन्होंने लेखक का पूरा सम्मान किया ।

श्यामाचरण दुबे

उपभोक्तावाद की संस्कृति

1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। एक नयी जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन दर्शन उपभोक्तावाद का दर्शन । उत्पादन बढ़ाने पर जोर है चारों ओर। यह उत्पादन आपके लिए है, आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोग भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नयी स्थिति में । उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
उत्तर – पाठ का नाम- उपभोक्तावाद की संस्कृति ।
लेखक का नाम- श्यामाचरण दूबे ।
(ख) ‘सुख’ की व्याख्या में क्या बदलाव आया है ?
उत्तर – पहले आत्मिक सुख-ही- सुख था किन्तु आज उपभोग भोग ही सुख है ।
(ग) कौन-सा जीवन दर्शन आ रहा है ?
उत्तर – उपभोक्तावाद का नया जीवन दर्शन आ रहा है । यह हमारी जीवन शैली पर अपना अधिकार जमाता चला जा रहा है। इसमें उत्पादन बढ़ाने पर जोर है। सारे उत्पाद हमारे लिए बताए जा रहे हैं ।
(घ) धीरे-धीरे क्या बदल रहा है ?
उत्तर – धीरे-धीरे सारा माहौल बदल रहा है । अब एक नई संस्कृति उभर रही है।
(ङ) हम क्या भूल जाते है ?
उत्तर – हम यह बात भूल जाते हैं कि हमारे जाने-अनजाने आज का माहौल हमारे चरित्र को बदल रहा है। अब हम उत्पादों के प्रति समर्पित होते चले जा रहे हैं ।
(च) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – लेखक बताना चाहते हैं कि धीरे-धीरे हमारा मूल रूप, हमारे संस्कार आदि सब कुछ बदल रहे हैं। आधुनिकतावाद ने हमारे वर्चस्व को आ घेरा है। एक सी जीवन-शैली समाज में घर करती जा रही है जिसे लेखक ने उपभोक्तावाद का दर्शन कहा है। पहले आत्म-तुष्टि, कर्म व संघर्ष सुख के आधार थे, परंतु आज विलासिता व सुखोपभोग की भावना ही ‘सुख’ का पर्याय बन गई है। विज्ञापनों का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि अनजाने में यह हमारे चरित्र को बदल रहा है। इनके प्रभाव के कारण हमारे नैतिक आदर्श बदल रहे हैं। हम धीरे-धीरे इनके प्रति समर्पित होते जा रहे
 हैं ।
2. अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं। चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हों। यह है एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज की । यह विशिष्टजन का समाज है पर सामान्यजन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते हैं। उनकी दृष्टि में, एक विज्ञापन की भाषा में, यही है राइट च्वाइस बेबी।
(क) प्रतिष्ठा के हास्यास्पद रूप से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – अपने अंतिम संस्कार और अंतिम विश्राम-स्थल के लिए अच्छा प्रबंध करना ऐसी झूठी प्रतिष्ठा है जिसे सुनकर हँसी आती है।
(ख) विशिष्ट जन का समाज किसे कहा गया है ?
उत्तर – उपभोक्तावादी समाज के अंग वे हैं जिनके पास खूब धन है। वे विशिष्ट जन हैं। अतः उपभोक्तावादी समाज विशिष्ट समाज कहलाता है।
(ग) विशिष्ट जन-समाज का सामान्य जन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – विशिष्ट जन-समाज का सुख-वैभव देखकर सामान्य जन भी उसका अनुकरण करने की सोचते हैं। वे भी उपभोक्तावादी संस्कृति की ओर बढ़ने लगते हैं।
(घ) अमरीका में आज ऐसा क्या हो रहा है जिसके अनुकरण की चर्चा भारत में हो रही है ?
उत्तर – अमरीका में लोग सुख-साधनों के पीछे पागल हो रहे हैं। यहाँ तक कि वे अपने अंतिम संस्कार और अंतिम विश्राम (समाधि) की व्यवस्था भी करने लगे हैं। लेखक को लगता है कि आने वाले समय में भारत में भी यह सब होने वाला है।
(ङ) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – आज अमरीका में लोग अपनी प्रतिष्ठा के लिए कुछ भी करने को तैयार हो रहे हैं । यहाँ तक कि वे अपने अंतिम संस्कार का भी प्रबंध स्वयं कर रहे हैं। कल को यह सब भारत में भी हो सकता है। प्रतिष्ठा कई प्रकार की होती है। बहुत सी प्रतिष्ठाएँ तो ऐसी होती हैं जिन पर हँसी आती है। जैसे मरने के बाद अपने अंतिम विश्राम की व्यवस्था करना । यह उपभोक्तावादी समाज की छोटी-सी झलक है |
3. सामंती संस्कृति के तत्त्व भारत में पहले भी रहे हैं। उपभोक्तावाद इस संस्कृति से जुड़ा रहा है। आज सामंत बदल गये हैं, सामंती संस्कृति का मुहावरा बदल गया है। हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें; परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं। हमारी नयी संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं। हमारा समाज ही अन्य निर्देशित होता जा रहा है। विज्ञापन और प्रसार के सूक्ष्म तंत्र हमारी मानसिकता बदल रहे हैं। उनमें सम्मोहन की शक्ति है, वशीकरण की भी ।
(क) उपभोक्तवाद किस संस्कृति से जुड़ा रहा है और क्यों ?
उत्तर – उपभोक्तावाद सामंती संस्कृति से जुड़ा है। यह ठीक है कि आज सामंत बदल गए हैं, नए-नए सामंत पैदा हो रहे हैं। सामंती संस्कृति का मुहावरा बदल गया है।
(ख) हमारी परंपराओं की क्या स्थिति है ?
उत्तर – इस नई संस्कृति के विकास के कारण हमारी परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, उनमें गिरावट आई है। हमारी आस्थाएँ भी बदल रही हैं। अब पहले जैसी स्थिति नहीं है।
(ग) कड़वा सच क्या है ?
उत्तर – कड़वा सच यह है कि हम बौद्धिक गुलामी स्वीकार करते चले जा रहे हैं। हम पश्चिम के उपनिवेश बनते जा रहे हैं। हम पाश्चात्य संस्कृति का अंधा अनुकरण कर रहे हैं।
(घ) हमारा समाज किससे निर्देशित हो रहा है, क्यों ?
उत्तर – हमारा समाज अन्य लोगों तथा उनकी संस्कृति से निर्देशित हो रहा है। हमारा नियंत्रण समाप्त हो चला है । विज्ञापन हमारी मानसिकता बदलने में सफल हो रहे हैं। विज्ञापनों में सम्मोहन शक्ति है, वे हमारी दिशा भ्रमित कर देते हैं ।
(ङ) संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण होने का क्या दुष्परिणाम हुआ ?
उत्तर – संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण होने के कारण हम दिगभ्रमित हो रहे हैं। हमारा समाज दूसरों के इशारे पर नाच रहा है। विज्ञापन ने हमारी मानसिकता बदल दी है। उसने हमें सम्मोहित तथा वशीभूत कर लिया है।
(च) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – सामंती संस्कृति के तत्त्व हमारे भारतीय समाज में पहले से ही थे । उपभोक्तावाद का दर्शन इसी सामंती संस्कृति से जुड़ा है। आज मूल्य, तथा आदर्श का अर्थ बदल रहा है। हमारी सांस्कृतिक गरिमा, वैभव सभी कुछ खो गये हैं। परंपराएँ व मर्यादाएँ टूट चुकी हैं। अपनी ही बुद्धि पर हम अंधविश्वास करने लगे हैं । आधुनिकता की झूठी चकाचौंध हमें भ्रमित कर दिशाहीन कर रही है। प्रतिष्ठा के नए मायने उभर कर आ रहे हैं। धनवान् व्यक्ति ही प्रतिष्ठित है क्योंकि वह सामर्थ्यवान् है । विज्ञापनों ने हमारे संस्कारों से स्खलित कर दिया है। उनमें सम्मोहन व वशीकरण की ऐसी अचूक शक्ति है जिसमें समूची मानव जाति खो चुकी है ।
4. अंततः इस संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा? यह गंभीर चिंता का विषय है। हमारे सीमित संसाधनों का घोर अपव्यय हो रहा है। जीवन की गुणवत्ता आलू के चिप्स से नहीं सुधरती । न बहुविज्ञापित शीतल पेयों से। भले ही वे अंतर्राष्ट्रीय हों। पीजा और बर्गर कितने ही आधुनिक हो, हैं वे कूड़ा खाद्य । समाज में वर्गों की दूरी बढ़ रही है, सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का हास तो हो ही रहा है, हम लक्ष्य भ्रम में भी पीड़ित हैं। विकास के विराट उद्देश्य पीछे हट रहे हैं, हम झूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं। मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले रहे हैं। व्यक्ति केंद्रकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। भोग की आकांक्षाएँ आसमान को छू रही हैं। किस बिंदु पर रुकेगी यह दौड़ ?
(क) यहाँ किस संस्कृति की बात हो रही है ? यह चिंता का विषय क्यों है ?
उत्तर – यहाँ उपभोक्तावादी संस्कृति की बात हो रही है। इस संस्कृति का फैलाव गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इससे हमारे सीमित संसाधनों का अपव्यय हो रहा है।
(ख) इस गद्यांश में किन-किन पदार्थों को बेकार का बताया गया है और क्यों ?
उत्तर – इस गद्यांश में आलू के चिप्स, शीतल पेयों, पीजा, बर्गर आदि को कूड़ा खाद्य सामग्री कहा गया है। इनके खाने का कोई लाभ नहीं है, बल्कि ये अस्वास्थ्यकर हैं।
(ग) इस संस्कृति से क्या नुकसान हो रहा है ?
उत्तर – इस संस्कृति से यह नुकसान हो रहा है कि सामाजिक सरोकार घट रहे हैं, आक्रोश और अशांति बढ़ रही है, मर्यादाएँ टूट रही हैं, नैतिक मानदंड ढीले पड़ रहे हैं, परमार्थ पर स्वार्थ हावी होता चला जा रहा है।
(घ) लेखक की चिंता क्या है ?
उत्तर – लेखक की चिंता यह है कि यह स्वार्थवादिता तथा भोग की आकांक्षाएँ किस बिंदु पर जाकर रुकेंगी या रुकेंगी भी नहीं। मनुष्य का भविष्य क्या होगा ?
(ङ) ‘कूड़ा खाद्य’ किन्हें कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – लेखक ने आलू के चिप्स, शीतल पेय और बर्गर आदि को ‘कूड़ा खाद्य’ कहा है। उसके अनुसार, ये स्वास्थ्य के लिए लाभकारी न होकर हानिकारक हैं।
(च) जीवन की गुणवत्ता का संबंध किससे नहीं है ?
उत्तर – जीवन की गुणवत्ता आलू के चिप्स खाने, विज्ञापनों द्वारा प्रचारित शीतल पेय पीने या बर्गर आदि खाने से तय नहीं होती ।
(छ) ‘सांस्कृतिक अस्मिता’ किसे कहते हैं ? उसका हास क्यों हो रहा है ?
उत्तर – सांस्कृतिक अस्मिता का अर्थ है- सांस्कृतिक पहचान। वे विशेषताएँ, जिनके कारण कोई व्यक्ति किसी विशेष समाज का सदस्य माना जाता है। जैसे भारतीयों का पहनावा, खान-पान, अतिथि सत्कार आदि गुण हमारी सांस्कृतिक पहचान है। आजकल भोगवाद की भावना इतनी प्रबल है कि हम अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं को छोड़ते जा रहे हैं।
(ज) ‘झूठी तुष्टि के तात्कालिक लक्ष्य से क्या आशय  है ?
उत्तर – मनुष्य को भोग के साधनों से कभी संतुष्टि नहीं मिल सकती। फिर वह इन्हीं में सुख मानकर स्वयं को तसल्ली दे लेता है कि वह सुखी है। इसलिए इसे ‘झूठी तुष्टि’ कहा है । इस तुष्टि को पाने के तात्कालिक लक्ष्य हैं- भोग के आधुनिक साधन अर्थात् टी०वी०, फ्रिज, कम्प्यूटर आदि ।
(झ) दिखावे की संस्कृति के क्या दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं ?
उत्तर – दिखावे की संस्कृति के अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। कुछ परिणाम निम्नांकित हैं
– समाजिक अशांति फैल रही है ।
– सांस्कृतिक पहचान नष्ट हो रही है।
– लोग विकास के विशाल लक्ष्य से भटककर दिग्भ्रमित हो रहे हैं।
– लोग भोग के साधनों के पीछे अंधे हो गए हैं।
– नैतिक मर्यादाएँ टूट रही हैं
– व्यक्तिवाद, स्वार्थ, भोगवाद आदि कुप्रवृत्तियाँ प्रबल हो रही हैं।

जाबिर हुसैन

साँवले सपनों की याद

1. सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक खामोश वादी की तरफ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली । अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए। लेकिन यह सफर पिछले तमाम सफरों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिन्दगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत ओर दिल का धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा।
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें ।
उत्तर – पाठ का नाम- साँवले सपनों की याद ।
लेखक का नाम- जाबिर हुसैन ।
(ख) सालिम अली के हुजूम का वर्णन अपने शब्दों में करें ।
उत्तर – जब सालिम अली अपनी अंतिम यात्रा पर चले तो मानो सभी पशु-पक्षी अपने रक्षक को विदाई देने के लिए चल दिए हों।
(ग) यह सफर पिछले तमाम सफरों से भिन्न कैसे है ?
उत्तर – यह सफर पिछले तमाम सफरों से इस मायने में भिन्न है क्योंकि पिछले सफरों में सालिम अली किसी पक्षी की खोज में जाते थे और काम करके लौट आते थे, पर इस सफर के बाद वे लौटने वाले नहीं हैं। यह उनका अंतिम पलायन है।
(घ) अब सालिम अली कहाँ विलीन हो रहे हैं ?
उत्तर – अब सालिम अली प्रकृति की गोद में विलीन हो रहे हैं। अब वे वहाँ से लौट नहीं पाएँगे। अब वे जिंदगी का आखिरी गीत गाकर मौत की गोद में जा सोएँगे ।
(ङ) ‘पंखों पर सवार साँवले सपनों का हुजूम किसे कहा गया है ?
उत्तर – पक्षियों के रहस्य-भरे संसार को खोजने तथा बचाने में लगे कल्पनाशील और जिज्ञासु पक्षी-वैज्ञानिकों को ‘पंखों पर सवार साँवले सपनों का हुजूम’ कहा गया है।
(च) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली की अंतिम यात्रा को याद करता हुआ लेखक कहता है- ऐसा लगता है मानो सुनहरे पक्षियों के पंखों पर साँवले सपनों का एक झुंड सवार है। यह समूह मौत की सूनी घाटी की तरफ उड़ता जा रहा है। कोई उन्हें रोक नहीं सकता।
आशय यह है कि सालिम अली जीवन के अंत तक पक्षियों के सुंदर रहस्यों को जानने की नई नई इच्छा और कल्पना सँजोए हुए चलते रहे । यहाँ तक कि उन्होंने अपनी अंतिम जीवन-यात्रा भी इन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए की ।

2. वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनो और आबशारों को वो प्रकृति की नजर से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है ?

(क) रोमांच का सोता फूटने का क्या आशय है ?
उत्तर – रोमांच का सोता फूटने का आशय है- आनंद की गुदगुदी होना ।
(ख) आबशारों का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – निर्झर, झरना ।
(ग) सालिम अली पक्षियों को किन नजरों से देखना चाहते थे ?
उत्तर – सालिम अली समर्पित पक्षी-प्रेमी थे । वे पक्षियों की दुनिया को अपने आनंद के लिए नहीं, बल्कि उनके आनंद को बनाए रखने के लिए देखते हैं। इस कारण वे पक्षियों को उन्हीं की दृष्टि से देखते थे।
(घ) लोग प्रकृति को किन नजरों से देखते हैं और क्यों ?
उत्तर – लोग प्रकृति को, पहाड़ों को, झरनों को, जंगलों को, पक्षियों को अपनी नजर से देखते हैं। वे इनके होने में अपना भला-बुरा, अपना सुख-दुख, अपना हानि-लाभ देखते हैं। क्योंकि कारण यह है कि अधिकांश लोगों की दृष्टि अपने स्वार्थ तक सीमित है।
(ङ) मनुष्य पक्षियों की मधुर आवाज सुनकर रोमांच का अनुभव क्यों नहीं कर सकता?
उत्तर – पक्षियों की भाषा अलग होती है। मानव उसे समझ नहीं सकता। पक्षी अपनी ‘अनुभूति’ को जिन स्वरों या क्रियाओं से व्यक्त करता है, उसे समझना मनुष्य के लिए संभव नहीं है। इसलिए वह उनकी मधुर आवाज सुनकर रोमांचित नहीं हो सकता।
3. कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। वृंदावन कभी कृष्णा की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है  क्या !
(क) लेखक किस घटना का स्मरण करा रहा है ?
उत्तर – लेखक इस गद्यांश में वृंदावन में रचाई गई कृष्ण की लीला का स्मरण करा रहा है। कृष्ण की बाँसुरी सभी को मदमस्त कर देती थी तथा सारा वातावरण संगीतमय हो जाता था ।
(ख) कौन, किस घटनाक्रम की याद दिला देगा ?
उत्तर – आज भी यदि कोई वृंदावन जाए तो यमुना नदी का साँवला पानी कृष्ण के समय घटे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देता है। लोगों की आँखों के सामने उस समय घटी घटनाएँ पूरी तरह साकार हो उठती हैं ।
(ग) कौन, कब जाएगा और क्या करेगा ?
उत्तर – जब प्रातःकाल सूरज निकलने से पहले पतली गलियों उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तब ऐसा लगातार है कि उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई (कृष्ण) सामने आ जाएगा और बंसी की आवाज सुनकर लोगों के कदम थम जाएँगे।
(घ) इस गद्यांश की भाषा-शैली पर टिप्पणी करें ।
उत्तर – इस गद्यांश की भाषा चित्रात्मक एवं लालित्यपूर्ण है। इसमें प्रवाह है।
(ङ) वृंदावन कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली क्यों नहीं होता ?
उत्तर – वृंदावन ऐसा तीर्थ-स्थल है, जहाँ वर्ष-भर भक्तगण दर्शन के लिए आते रहते हैं। वे यहाँ आकर कृष्णमय हो जाते हैं । अतः सुबह-शाम उनके मन में कृष्ण की बाँसुरी का स्वर बजता रहता है। इसलिए वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली नहीं होता।
(च) वृंदावन में सुबह सबेरे क्या अनुभूति होती है और क्यों ?
उत्तर – वृंदावन में सुबह-सुबह सूरज निकलने पर ऐसा अनुभव होता है मानो अभी-अभी कहीं से कन्हैया आ जाएगा और उसकी मनमोहक बंशी का स्वर सुनकर सबके कदम रुक जाएँगे। क्योंकि सब भारतीयों के मन में कृष्ण के बंशी-वादन का दृश्य समाया हुआ है। इसलिए जब वे वृंदावन की गलियों में जाते हैं तो उनकी वही भावना साकार हो उठती है।
(छ) वृंदावन में संध्या-समय क्या अनुभूति होती है और क्यों ?
उत्तर – वृंदावन में संध्या के समय सूरज के ढलने पर ऐसी अनुभूति होती है मानो अभी यहाँ कहीं से कृष्ण आ जाएँगे और मधुर मुरली बजाने लगेंगे। क्योंकि सभी भारतवासियों ने बचपन से ही यह सुन रखा है कि श्री कृष्ण गाएँ चराकर वापस आते समय बंशी बजाया करते थे।
4. उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नजरों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे, जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ एक हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी । यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी। इसके गढ़ने में उनकी जीवन साथी तहमीना ने काफी मदद पहुँचाई थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।
(क) ‘बर्ड वाचर’ क्या होता है। सालिम अली को ‘बर्ड वाचर’ क्यों कहा गया ?
उत्तर – ‘बर्ड वाचर’ का अर्थ होता है पक्षियों को देखने वाला परीक्षक । सालिम अली को पक्षियों से बहुत प्रेम था। वे अपनी आँखों पर दूरबीन लगाए बारीकी से पक्षियों को देखा करते थे। अतः उन्हें ‘बर्ड वाचर’ कहा गया है।
(ख) सालिम अली को अपने काम में किसने सहायता की ?
उत्तर – सालिम अली को उनके काम में उनकी जीवन साथी तहमीना ने काफी मदद पहुँचाई थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थी।
(ग) सालिम अली की नजरों की क्या विशेषता थी ?
उत्तर – सालिम अली की नजरों में जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता था। वे प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता था । वे प्रकृति को अपने प्रभाव में ले आते थे।
(घ) सालिम अली के लिए प्रकृति कैसी थी ?
उत्तर – सालिम अली के लिए प्रकृति में हर तरफ हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी।
(ङ) तहमीना कौन थी ? उन्होंने क्या मदद पहुँचाई ?
उत्तर – तहमीना सालिम अली की पत्नी थी, जो स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठिन रही थीं । प्रकृति की हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया को उनके लिए गढ़ने में तहमीना ने सालिम अली को मदद पहुँचाई थी ।
(च) सालिम अली ने अपने लिए कौन-सी दुनिया गढ़ी थी ?
उत्तर – सालिम अली ने अपने लिए प्रकृति के आँगन में खेलते पक्षियों की रहस्य-भरी दुनिया गढ़ी थी ।
5. डी एच लॉरेंस की मौत के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अनुरोध किया कि वह अपने पति के बारे में कुछ लिखे। फ्रीडा चाहती तो ढेर सारी बातें लॉरेंस के बारे में लिख सकती थी। लेकिन उसने कहा- मेरे लिए लॉरिंस के बारे कुछ लिखना असंभव-सा है। मुझे महसूस होता है, मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है। मुझसे भी ज्यादा जानती है। वो सचमुच इतना खुला -खुला और सादा- दिल आदमी था । मुमकिन है, लॉरेंस मेरी रगों में, मेरी हड्डियों में समाया हो। लेकिन मेरे लिए कितना कठिन है, उसके बारे में अपने अनुभवों को शब्दों का जामा पहनाना । मुझे यकीन है मेरी छत पर बैठी गौरैया उसके बारे में, और हम दोनों ही के बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी रखती है।
(क) रगों और हड्डियों में बसने से क्या आशय है ?
उत्तर – रगों और हड्डियों में बसने का आशय है- जीवन में समा जाना ।
(ख) लॉरेंस के बारे में कौन अधिक जानता था ? इससे लॉरेंस के किस गुण का पता चलता है ?
उत्तर – लॉरेंस के बारे में सबसे अधिक जानने वाली थी गौरैया। वह गौरैया, जो लॉरेंस की छत पर आती थी और लॉरेंस उसके साथ काफी समय बिताते थे। इस तरह वह गौरैया लॉरेंस की अंतरंग संगिनी बन गई थी।
(ग) फ्रीडा कौन थी ? उन्होंने लॉरेंस के बारे में कुछ भी लिखने से इन्कार क्यों किया ?
उत्तर – फ्रीडा डी० एच० लॉरेंस की पत्नी थी। उसने लॉरेंस के बारे में लिखने से इसलिए इन्कार कर दिया क्योंकि उसे लगता था कि लॉरेंस के बारे में जितना अच्छा छत पर बैठी गौरैया जानती थी, उतना अच्छा वह नहीं जानती थी।
(घ) डी० एच० लॉरेंस के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – डी० एच० लॉरेंस अंग्रेजी के अच्छे उपन्यासकार तथा कवि थे। उन्हें प्रकृति से गहरा प्रेम था। वे प्रकृति के कवि के रूप में जाने जाते हैं। फ्रीडा लॉरेंस उनकी पत्नी थी। लॉरेंस स्वभाव से बहुत खुले तथा सीधे-सादे इन्सान थे। उन्हें गौरैया तथा अन्य पक्षियों से बहुत लगाव था।
(ङ) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – लेखक को डी० एच० लॉरेंस की याद आती है जिनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से उनके विषय में कुछ लिखने को कहा गया वे कहती हैं कि वे अपने पति के प्रेम, व्यवहार को शब्दों में बाँधने में असमर्थ हैं। उनका जीवन खुली किताब जैसा था जिसे उनकी छत पर बैठने वाली गौरैया भी उनसे कहीं अच्छी तरह जानती है।
6. जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गौरैया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ ले जाती रही। जिंदगी की ऊचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गये थे।
सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित है, उन्हें महसूस होता है कि वो आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे ।
(क) नीले कंठ की गौरैया से सालिम अली का क्या रिश्ता था ?
उत्तर – नीले कंठ की गौरैया सालिम अली की एयरगन से क्या घायल हुई, उसने सारी जिंदगी सालिम अली को नए-नए रास्तों की ओर प्रेरित किया अर्थात् उसी हादसे से सालिम अली की दिशा बदल गई।
(ख) सालिम अली की पहचान प्रकृति की दुनिया में किस रूप में है ?
उत्तर – प्रकृति की दुनिया में सालिम अली एक भ्रमणशील, पक्षी-प्रेमी के रूप जाने जाते है।
(ग) जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली एक पहेली क्यों बने रहेंगे ?
उत्तर – जटिल प्राणी समझते हैं कि महानता जटिलता में या विशिष्टता में या अनोखेपन में होती है। जबकि सालिम अली बिलकुल सरल-सीधे और भोले मनुष्य थे। इसलिए सालिम अली का जीवन उन्हें पहेली के समान रहस्यमय प्रतीत होता होगा कि यह मनुष्य इतना सरल है तो यह महान कैसे हो सकता है
(घ) सालिम अली की तुलना टापू से न करके अथाह सागर से क्यों की गई है ?
उत्तर – सालिम अली का ज्ञान टापू के समान सीमित नहीं था। उनका ज्ञान गहरे सागर के समान असीम, गहरा और विस्तृत था ।
(ङ) किस घटना ने सालिम अली को नई-नई खोजों के लिए प्रेरित किया ?
उत्तर – एक बार बचपन में सालिम अली की एयरगन से एक नीले कंठ वाली गौरैया घायल होकर गिर पड़ी। इस घटना ने उन्हें पक्षी-प्रेमी बना दिया। वे गौरैया तथा अन्य पक्षियों के बारे में नई-नई खोज करने में जुट गए ।
(च) लॉरेंस और सालिम अली में क्या समानता थी ?
उत्तर – लॉरेंस और सालिम अली दोनों प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे। वे प्रकृतिमय हो गए थे। उनका स्वभाव भी अत्यंत सरल-सीधा और भोला हो गया
था ।
(छ) सालिम अली ने पूरा जीवन कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य किया ?
उत्तर – सालिम अली ने अपना सारा जीवन पक्षियों के बारे में नई-नई खोज करने तथा उनकी सुरक्षा के उपाय खोजने में लगा दिया।
(ज) इस गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – सालिम अली पक्षियों के माध्यम से खोज के नए-नए रास्ते अपनाते रहे और एक विशेष स्थान प्राप्त करने के बाद भी उनका विश्वास एक क्षण के लिए नहीं डगमगाया। वे प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त जीवन का प्रतिबिम्ब थे । अन्त में लेखक बताता है कि सालिम अली का प्रकृति अनुभव अथाह सागर के समान था। उनको जानने वाले लोग यही सोच रहे थे कि सालिम अली अपनी अंतिम यात्रा पर न जाकर पक्षियों की खोज में जा रहे हैं और शीघ्र ही लौट आएँगे ।

चपला देवी

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

1. सन् 1857 ई० के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे, तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। देवी मैना बिठूर में पिता के महल में रहती थी; पर विद्रोह दमन करने के बाद अंग्रेजों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया । उसका रोमांचकारी वर्णन पाषाण हृदय को भी एक बार द्रवीभूत कर देता है।
(क) पाठ और लेखिका का नाम लिखें ।
उत्तर – पाठ का नाम- नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया । लेखिका का नाम- चपला देवी ।
(ख) मैना कौन थी और उसके साथ किसने क्या किया ?
उत्तर – मैना धुंधूपंत नाना साहब की पुत्री थी, जिसे क्रूर अंग्रेजों ने अग्नि में भस्म कर दिया था।
(ग) मैना बिठूर के महल में कैसे रह गई ?
उत्तर – जिन दिनों नाना साहब कानपुर में रहकर स्वतंत्रता आंदोलन में जुटे हुए थे, उनकी बेटी मैना बिठूर के राजमहल में रहती थी। स्वतंत्रता आंदोलन अचानक असफल हो गया। नाना साहब को कानपुर छोड़कर तुरंत भागना पड़ा। जल्दी में वे अपनी बेटी को न ले जा सके। इस कारण वह बिठूर के महल में ही रह गई।
(घ) मैना को किस अपराध में जला डाला गया ?
उत्तर – मैना निरपराध और निरीह कन्या थी। उसका कसूर केवल इतना था कि वह नाना साहब की बेटी थी। नाना साहब ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। इसी का बदला लेने के लिए उन्होंने मैना को जलती आग में डालकर भस्म कर डाला ।
(ङ) ‘निरीह’ का अर्थ बताते हुए बताएँ कि यह किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
उत्तर – ‘निरीह’ का अर्थ है- बेचारा मासूम । यह शब्द मैना के लिए प्रयुक्त किया गया है।
(च) नाना साहब अपने साथ अपनी पुत्री को क्यों नहीं ले जा सके । ?
उत्तर – सन् 1857 में विद्रोही नेता नाना साहब कानपुर में असफल हो गए थे अतः भागना ही उनका एकमात्र उपाय था । अतः वे अपनी पुत्री मैना को अपने साथ नहीं ले जा सके।
2. कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के बाद अंग्रेजों का सैनिक दल बिठूर की ओर गया । बिठूर में नाना साहब का राजमहल लूट लिया गया; पर उसमें बहुत थोड़ी सम्पत्ति अंग्रेजों के हाथ लगी। इसके बाद अंग्रेजों ने तोप के गोलों से नाना साहब का महल भस्म कर देने का निश्चय किया। सैनिक दल ने जब वहाँ तोपें लगायीं, उस समय महल के बरामदे में एक अत्यन्त सुन्दरी बालिका आकर खड़ी हो गयी। उसे देखकर अंग्रेज सेनापति को बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि महल लूटने के समय वह बालिका वहाँ कहीं दिखाई न दी थी ।
(क) अंग्रेजों का सैनिक दल कब, कहाँ गया ?
उत्तर – अंग्रेजों का सैनिक दल कानपुर में भीषण हत्याकांड करने के पश्चात् नाना साहब के निवास स्थान बिठूर की ओर गया ।
(ख) वहाँ जाकर उस दल ने क्या काम किया ?
उत्तर – बिठूर पहुँचकर अंग्रेजों के सैनिक दल ने नाना के महल को लूट लिया । यद्यपि उन्हें महल की लूट में बहुत कम संपत्ति हाथ लगी।
(ग) अंग्रेज सेनापति को किस बात पर आश्चर्य हुआ और क्यों ?
उत्तर – अंग्रेज सेनापति ‘हे’ को बरामदे में अचानक आई सुंदर बालिका को देखकर आश्चर्य हुआ। आश्चर्य इसलिए हुआ क्योंकि वह लूट के समय वहाँ दिखाई नहीं दी थी ।
(घ) नाना साहब का राजमहल क्यों लूटा गया ?
उत्तर – नाना साहब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक थे। अंग्रेज सरकार उन्हें संग्राम का नेतृत्व करने की सजा देना चाहती थी। इसलिए उनका राजमहल लूट लिया गया ।
(ङ) अंग्रेजों ने नाना साहब के महल को भस्म क्यों करना चाहा ?
उत्तर – अंग्रेजों ने नाना साहब के महल को भस्म करने का निश्चय इसलिए किया ताकि अंग्रेजों का विरोध करने वालों का नाम- निशान तक मिट जाए ।
(च) महल में अचानक आई बालिका कौन थी ?
उत्तर – महल में अचानक प्रकट हुई बालिका नाना साहब की पुत्री मैना थी ।
3. आपके विरुद्ध जिन्होंने शस्त्र उठाये थे, वे दोषी हैं, पर इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका क्या अपराध किया है ? मेरा उद्देश्य इतना ही है, कि यह स्थान मुझे बहुत प्रिय है, इसी से मैं प्रार्थना करती हूँ, कि इस मकान की रक्षा कीजिए। सेनापति ने दुःख प्रकट करते हुए कहा कि कर्तव्य के अनुरोध से मुझे यह मकान गिराना ही होगा। इस पर उस बालिका ने अपना परिचय बताते हुए कहा कि”मैं जानती हूँ, कि आप जनरल ‘हे’ हैं। आपकी प्यारी कन्या मेरी से और मुझ से बहुत प्रेम-सम्बन्ध था। कई वर्ष पूर्व मेरी मेरे पास बराबर आती थी। और मुझे हृदय से चाहती थी। उस समय आप भी हमारे यहाँ आते थे और मुझे अपनी पुत्री के ही समान प्यार करते थे। मालूम होता है, कि आप वे सब बातें भूल गये हैं। मेरी की मृत्यु से मैं बहुत दुःखी हुई थी; उसकी एक चिट्ठी मेरे पास अब तक है।’
(क) बालिका कौन थी ? उसने सेनापति ‘हे’ से क्या प्रार्थना की ?
उत्तर – बालिका नाना साहब की पुत्री मैना थी, जो सेनापति ‘हे’ से प्रार्थना कर रही थी कि वे बिठूर के किले को न तोड़े बल्कि उसकी रक्षा करें।
(ख) ‘इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका क्या अपराध किया ?’ कथन का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – ‘इस जड़ पदार्थ मकान ने आपका क्या अपराध किया है ?’ मैना के इस कथन का आशय यह है कि दोषी को ही सजा मिलनी चाहिए न कि उससे जुड़ी अन्य वस्तुओं को चाहे वह जड़ हो या चेतन।
(ग) मैना का सेनापति ‘हे’ को उनकी बेटी ‘मेरी’ के साथ अपने संबंध को बताने के पीछे क्या उद्देश्य था ?
उत्तर – मैना सेनापति ‘हे’ को उनकी बेटी ‘मेरी’ के साथ अपने संबंध को बताने के पीछे उन्हें समझाना ही मैना का उद्देश्य था कि भावना में आकर और पुराने संबंधों को याद कराकर अपने मकान की रक्षा करवाना चाहती थी ।
(घ) बालिका ने अपना परिचय किस रूप में दिया ?
उत्तर – बालिका ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वह उनकी पुत्री मेरी की प्रिय सखी है। वह मेरे यहाँ आया करती थी। उसके साथ आप भी आया करते थे और मुझे अपनी पुत्री के समान प्यार करते थे। मेरी की मृत्यु से उसे भी बहुत दुख पहुँचा है। उसके पास मेरी एक चिट्ठी अभी तक सुरक्षित है। ये सब बातें अपनी अंतरंगता जताने के लिए कही गई थीं।
(ङ) सेनापति ने किस बात पर दुख प्रकट किया और क्यों ?
उत्तर – सेनापति ‘हे’ ने इस बात पर दुख प्रकट किया वह बालिका के अनुरोध को मानकर महल की रक्षा नहीं कर पाएगा । वह कर्तव्य से बँधा है।
4. उस समय लण्डन के सुप्रसिद्ध “टाइम” पत्र में छठी सितम्बर को यह एक लेख में लिया गया, –“बड़े दुःख का विषय है, कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी, जिस पर समस्त अंग्रेज-जाति का भीषण क्रोध है। जब तक हम लोगों के शरीर में रक्त रहेगा, तक तक कानपुर में अंग्रेजों के हत्याकाण्ड का बदला लेना हम लोग न भूलेंगे। उस दिन पार्लमेण्ट की ‘हॉउस ऑफ लार्ड्स’ सभा में सर टामस ‘हे’ की एक रिपोर्ट पर बड़ी हँसी हुई, जिसमें सर हे ने नाना की कन्या पर दया दिखाने की बात लिखी थी । ‘हे’ के लिए निश्चय ही यह कलंक की बात है- जिस नाना ने अंग्रेज नर-नारियों का संहार किया, उसकी कन्या के लिए क्षमा ! अपना सारा जीवन युद्ध में बिताकर अन्त में वृद्धावस्था में सर टॉमस ‘हे’ एक मामूली महाराष्ट्र बालिका के सौन्दर्य पर मोहित होक अपना कर्त्तव्य ही भूल गये ! हमारे मत से नाना के पुत्र, कन्या, तथा अन्य कोई भी सम्बन्धी जहाँ कहीं मिले, मार डाला जाये । नाना की जिस कन्या से ‘हे’ का प्रेमालाप हुआ है, उसको उन्हीं के सामने फाँसी पर लटका देना चाहिए।”
(क) अंग्रेज जाति नाना साहब को ‘दुर्दात’ क्यों मानती थीं ?
उत्तर – 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में कानपुर में अंग्रेज नर-नारियों की क्रूर हत्या की गई थी। इसके लिए अंग्रेज जाति क्रांतिकारियों को दोषी मानती थी। उनकी नजरों में नाना साहब क्रांतिकारियों के नेता थे। उन्हीं की प्रेरणा से यह हत्याकांड हुआ था । इसीलिए वे उन्हें ‘दुर्दात’ यानि क्रूर अत्याचारी मानते थे।
(ख) नाना साहब के संबंध में किस पत्र में क्या कहा गया ?
उत्तर – लण्दन के सुप्रसिद्ध ‘टाइम्स’ पत्र में 6 दिसम्बर को नाना साहब के बारे में लिखा गया कि बड़े दुःख का विषय है कि भारत सरकार आज तक उस दुर्दान्त नाना साहब को नहीं पकड़ सकी।
(ग) ब्रिटिश पार्लियामेंट में किसकी हँसी हुई और क्यों ? ‘हे’ के लिए क्या बात कलंक थी ?
उत्तर – ब्रिटिश पार्लियामेंट के ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ में ‘हे’ की रिपोर्ट का मजाक उड़ाया गया और उसे कलंक की बात कहा गया कि वह नाना की पुत्री के रूप- जाल में फँसकर उसके लिए क्षमादान चाह रहे हैं। शायद वृद्धावस्था में जनरल ‘हे’ अपना कर्तव्य भुला बैठे हैं।
(घ) जनरल ‘हे’ को क्या करने का निर्देश दिया गया ?
उत्तर – जनरल ‘हे’ को यह निर्देश दिया गया कि नाना के सभी संबंधियों को खत्म कर दिया जाए। नाना की पुत्री को ‘हे’ के सामने ही फाँसी पर चढ़ा दिया जाए।
(ङ) अंग्रेज लोग नाना साहब की बेटी मैना पर इतने कुपित क्यों थे ?
उत्तर – अंग्रेज लोग नाना साहब की बेटी मैना पर इसलिए कुपित थे क्योंकि उसके पिता स्वतंत्रता-संग्राम के विद्रोही नेता थे। इन्हीं के नेतृत्व में कानपुर में अंग्रेजों का हत्याकांड हुआ था।
(च) किसने सेनापति ‘हे’ को कलंकित कहा और  क्यों ?
उत्तर – ‘टाइम्स’ संपादक में छपे एक लेख के लेखक ने सेनापति ‘हे’ के दया प्रस्ताव को कलंक की बात कहा। क्योंकि उसकी नजर में नाना साहब ने कानपुर में अंग्रेज नर-नारियों का क्रूरता से वध करवाया था । बदले में उसका तथा उसकी पुत्री का भी वध कर देना चाहिए। दूसरे, लेखक ने अपनी ओर से कल्पना कर ली कि शायद सेनापति ‘हे’ उस महाराष्ट्रीय कन्या के सौंदर्य पर मोहित हो गए हैं ।
5. मैना उसके मुँह की ओर देखकर आर्त्तस्वर में बोली- “मुझे कुछ समय दीजिए, जिसमें आज मैं जी भरकर रो लूँ” ।
पर पाषाण-हृदयवाले जनरल ने उसकी अन्तिम इच्छा भी पूरी होने न दी। उसी समय मैना के हाथ में हथकड़ी पड़ी और वह कानपुर के किले में लाकर कैद कर दी गयी ।
उस समय महाराष्ट्रीय इतिहास – वेत्ता महादेव चिटनवीस के “बाखर” पत्र में छपा था, “कल कानपुर के किले में एक भीषण हत्याकाण्ड हो गया । नाना साहब की एकमात्र कन्या मैना धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर दी गयी । भीषण अग्नि में शाँत और सरल मूर्ति उस अनुपमा बालिका को जलती देख सबने उसे देवी समझ कर प्रणाम किया।”
(क) मैना ने किससे कहा “मुझे कुछ समय दीजिये, जिसमें आज मैं यहाँ जी-भरकर रो लूँ।” ?
उत्तर – मैना ने जनरल अउटरम से कहा कि “मुझे कुछ समय दीजिए जिसमें आज मैं यहाँ जी भरकर रो लूँ ।”
(ख) जनरल अउटरम को पाषाण हृदयी क्यों कहा गया ?
उत्तर – जनरल अउटरम को पाषाण हृदयी इसलिए कहा, क्योंकि उन्होंने नाना साहब के भवन को नष्ट करने के बाद बेटी मैना को भी मारने से नहीं हिचका ।
(ग) मैना देवी की शहादत की खबर कहाँ छपी ?
उत्तर – मैना देवी की शहादत की खबर महाराष्ट्रीय इतिहास वेत्ता महादेव चितनवीस के ‘बाखर’ पत्र में छपी।
(घ) कानपुरवासियों ने किसे देवी समझकर प्रणाम किया और क्यों ?
उत्तर – कानपुरवासियों ने नाना साहब की बेटी मैना को जलती आग में भस्म होते देखा। उन्होंने उस पवित्र बालिका को देवी के रूप में माना तथा उसे प्रणाम किया।
(ङ) मैना को किस प्रकार मार डाला गया ?
उत्तर – मैना को धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर डाला गया । इस प्रकार उसकी क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई ।
(च) मैना को किस प्रकार मार डाला गया ?
उत्तर – मैना को धधकती हुई आग में जलाकर भस्म कर डाला गया। इस प्रकार उसकी क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई।
(छ) मैना ने कौन-सी अंतिम इच्छा प्रकट की। उस पर अउटरम ने क्या प्रतिक्रिया की ?
उत्तर – मैना ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में बस इतना ही चाहा कि वह अपने टूटे हुए महल पर जी भरकर रोना चाहती है। पत्थर दिल अउटरम ने इसकी भी आज्ञा नहीं दी। उसने उसे हथकड़ी पहनाई और कानपुर के किले में कैद कर लिया।

हरिशंकर परसाई

प्रेमचंद के फटे जूते

1. मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ- फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी ? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी- इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं हैं। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।
मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही हैं ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नही है ? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है !
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें ।
उत्तर – पाठ का नाम — प्रेमचंद के फटे जूते।
लेखक का नाम- हरिशंकर परसाई |
(ख) लेखक की दृष्टि किसके जूते पर अटक गई ?
उत्तर – लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के फटे जूते पर अटक गई।
(ग) पोशाकों के बारे में लेखक की क्या सोच थी ?
उत्तर – पोशाकों के बारे में लेखक का सोचना था कि स्थान, कर्म विशेष के आधार पर पोशाकें बदल जाती हैं।
(घ) ‘साहित्यिक पुरखे लेखक ने किसे और क्यों  कहा ?
उत्तर – साहित्यिक पुरखे शब्द लेखक ने प्रेमचंद के लिए कहा, क्योंकि हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है।
(ङ) फटे जूते देखकर लेखक किस सोच में पड़ गया ?
उत्तर – फटे जूते देखकर लेखक सोचने लगा कि अगर फोटो खिंचाते समय प्रेमचंद की यह दुर्दशा है तो वास्तविक जीवन में उनका क्या हाल होगा ! फिर मन में यह विचार भी आया कि प्रेमचंद का जीवन दोगला नहीं है। अतः उनकी वास्तविकता और दिखावट में कोई अंतर नहीं होगा।
(च) पोशाकें बदलने के गुण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – पोशाकें बदलने के गुण का आशय है- अवसर के अनुसार भिन्न रूप अपना लेना । स्वयं को अवसर के अनुसार प्रस्तुत करना । अपनी छवि को विभिन्न अवसरों पर भिन्न रूप में रखना ।
2. तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है !
(क) फोटो खिंचवाने के लिए लोग क्या-क्या कहते  हैं ?
उत्तर – फोटो खिंचवाने के लिए लोग उधार का सामान, वस्त्रादि माँग लाते हैं ।
(ख) प्रेमचंद फोटो खिंचवाने के लिए कुछ माँग कर क्यों नहीं लाए ?
उत्तर – प्रेमचंद सादी और सहज प्रवृति के थे उन्हें कृत्रिमता और दिखावा पसंद न था अतः फोटो खिंचवाने के लिए उधार के वस्त्र, जूते आदि की नहीं सोची ।
(ग) इत्र चुपड़कर फोटो खिंचवाने वाले लोगों पर क्या व्यंग्य किया गया है ?
उत्तर – दिखावे की प्रवृत्ति तथा कृत्रिम व्यक्तित्व वाले अपनी असलियत को छुपाते हैं। जो लोग इत्र चुपड़कर फोटो खिंचवाते हुए। उनके व्यक्तित्व से स्पष्ट है कि वे मूर्ख हैं, दिखावाकर रहे हैं क्योंकि फोटो में कौन-सी खूशबू आनी है ।
(घ) ‘गंदे-से- गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है । ‘कथन का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – वर्तमान-युग प्रदर्शन का युग है। आज व्यक्ति दिखावे की जिंदगी जी रहा है। असलियत मानो कहीं मुँह छिपाए पड़ी है। अतः ऐसे में घटिया और क्षुद्र व्यक्तित्व वाले व्यक्ति भी दिखावे के बल पर अपने गंदे, घिनौनेपन को छिपा रहे हैं। आज ऐसे लोगों को फोटो भी खुशबू देती है अर्थात् उनका गंदापन छिप जाता है ।
(ङ) कौन फोटो का महत्त्व नहीं समझता ? लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर – प्रेमचंद फोटो के महत्त्व को नहीं समझते थे। लेखक ने प्रेमचंद का एक फोटो देखा, जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ थे किंतु उनके जूते फटे हुए तथा बेतरतीब थे। इसलिए उन्होंने सोचा कि प्रेमचंद फोटो के महत्त्व को नहीं जानते थे ।
3. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है।
(क) एक जूते पर पचीसों टोपियाँ कैसे न्यौछावर होती हैं ?
उत्तर – जूता प्रतीक है ताकत का और टोपी प्रतीक है इज्जत का एक ताकतवर इंसान के आगे साधारण लोग सिर झुकाते ही हैं। इस प्रकार एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं ।
(ख) लेखक को कौन-सी विडम्बना चुभ रही है ?
उत्तर – लेखक को यह विडंबना चुभ रही है कि वह इतने महान साहित्यकार की इतनी विपन्न अवस्था देख रहा है कि उनके पास पहनने के लिए ठीक से जूता तक नहीं है। यह एक विडंबनापूर्ण स्थिति है।
(ग) किसकी कीमत हमेशा ज्यादा रही है और क्यों ?
उत्तर – जूते की कीमत हमेशा ज्यादा रही है क्योंकि एक जूते पर पचीसो टोपियाँ न्यौछावर होती है।
(घ) प्रेमचंद क्या-क्या कहलाते थे ?
उत्तर – प्रेमचंद एक महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक आदि अनेक उपाधियों से विभूषित थे। वे इन्हीं नामों से जाने जाते थे।
(ङ) इस कथन में क्या व्यंग्य किया गया है ?
उत्तर – इस कथन में यह व्यंग्य है कि ताकतवर हमेशा समाज में महत्त्वपूर्ण स्थिति पाता रहा है। वह सामान्य लोगों को दबाता रहा है। जूते की ताकत के सामने लोग सिर झुकाते देखे जाते हैं।
(च) यहाँ ‘टोपी’ और ‘जूते’ का क्या प्रतीकार्थ हो सकता है ?
उत्तर – यहाँ ‘टोपी’ का आशय है- ‘मान-सम्मान’ या ‘सम्मानित व्यक्ति’ । ‘जूते’ का आशय है— नीचे लोग या तुच्छ प्राणी । इस गद्यांश में इसी प्रतीकार्थ का प्रयोग हुआ है ।
(छ) तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे । इसमें निहित व्यंग्य स्पष्ट करें।
उत्तर – इसमें मुंशी प्रेमचंद की दुर्दशा पर व्यंग्य किया है। प्रेमचंद टोपी के समान देश के शीर्षस्थ साहित्यकार थे। उनका खूब आदर-सत्कार होना चाहिए था। उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी होनी चाहिए थी। परंतु इस समाज में ‘जूते’ की कीमत अधिक आँकी जाती है। जिनका स्थान और मान-सम्मान कम होना चाहिए, उन्हें धन के कारण अधिक मान-सम्मान दिया जाता है। यहाँ तक कि टोपी को जूते के सामने झुकना पड़ता है। प्रेमचंद के साथ भी यही हुआ। वे सम्मानित साहित्यकार होते हुए भी धनी – संपन्न लोगों की तुलना में कम सुविधाएँ जुटा सके। उन्हें गरीबी में जीना पड़ा।
4. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है । अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठा के नीचे तल फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएग, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं !
(क) लेखक और प्रेमचंद के जूते में क्या अंतर है ?
उत्तर – लेखक का जूता ऊपर से सही है लेकिन तले से फट गया है, जबकि प्रेमचंद का जूता तले से ठीक है लेकिन ऊपर से फटा हुआ है, जिससे अँगुली झाँक रही है।
(ख) लेखक अपने और प्रेमचंद के जूते की तुलना से क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर – लेखक अपने और प्रेमचंद के जूते की तुलना से यह समझाना चाहता है कि आज व्यक्ति दिखावे और कृत्रिमता की प्रवृत्ति में ऐसा फँसा हुआ है कि उसके लिए चाहे उसे स्वयं कितना ही नुकसान उठाना पड़े लेकिन वह अपना दिखावा नहीं छोड़ना चाहता है
(ग) ‘तुम पर्दे का महत्त्व नहीं जानते’कथन से लेखक का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – इस कथन के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि पर्दा जो कि झूठी महानता, दिखावे का प्रतीक है, उसके महत्व के बारे में प्रेमचंद कुछ नहीं जानते हैं। अर्थात् वे दिखावे की प्रवृत्ति से परे हैं
(घ) इस स्थिति में क्या पर्दा बना हुआ है और प्रेमचंद क्या नहीं समझते ?
उत्तर – लेखक स्थिति से एक पर्दा बना हुआ है कि लेखक के जूते का फटा हिस्सा ढका हुआ है। वह बाहर दिखाई नहीं देता। यह पर्दा बनाए रखना चाहता है जबकि प्रेमचंद इस प्रकार के पर्दे में विश्वास नहीं रखते थे। वे लुकाववे -छिपाव को 5 ठीक नहीं समझते थे।
(ङ) लेखक का अपना जूता कैसा है ?
उत्तर – लेखक का अपना जूता भी अच्छी हालत में नहीं है यद्यपि यह ऊपर से अच्छा दिखाई देता है पर अँगूठे के नीचे का तला फट गया है। हाँ, अँगुली बाहर नहीं निकली है।
(च) ‘अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है’ में छिपा व्यंग्य स्पष्ट करें।
उत्तर – लेखक ने प्रकट रूप में अपनी दुर्दशा को ढक रखा है, परंतु अंदर ही अंदर वह भी बुरी हालत में है। दीखने में उसकी आर्थिक स्थिति प्रेमचंद से अच्छी है किंतु सच यही है कि वह भी अंदर ही अंदर इस समस्या से पीड़ित है।
(छ) प्रेमचंद फटा जूता भी ठाठ-से क्यों पहन सके ? लेखक ऐसा क्यों नहीं कर सकता ?
उत्तर – प्रेमचंद सहज थे। उन्होंने गरीबी को स्वीकार कर लिया था। इसके लिए उनके मन में हीनता-ग्रंथि नहीं थी। इसलिए वह अपनी गरीबी को छिपाना भी नहीं चाहते थे। न ही इसे अपनी कोई बड़ी कमी मानते थे। इसलिए वे गरीबी के बावजूद ठाठ से जिए ।
लेखक को अपनी गरीबी में हीनत और कमी नजर आती है। इसलिए वह गरीब होते हुए स्वयं को दीनहीन मानने लगता है। अतः वह फटा जूता ठाठ से नहीं
पहन पाता।
5. मुझे लगता है, तुम किसी सख़्त चीज को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज जो परत-पर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया । कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया।
तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी तो निकल सकते थे। टीलों से समझौता भी तो हो जाता है। सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती है।
तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम धरम’ वाली कमजोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुसकरा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बँधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी !
(क) लेखक को जूता फटने का क्या कारण प्रतीत होता है ?
उत्तर – लेखक को प्रेमचंद का जूता फटने का यह कारण प्रतीत होता है कि उन्होंने किसी सख्त चीज से ठोकर मारकर अपना जूता फाड़ लिया है । यह सख्त चीज वर्षों के जमाव का कारण होगी।
(ख) ‘टीला’ क्या हो सकता है ?
उत्तर – ‘टीला’ उन सामाजिक कुरीतियों का प्रतीक है जो प्रेमचंद के मार्ग में बाधक बनकर खड़ी हो गई थी । प्रेमचंद ने उनसे टक्कर ली ।
(ग) प्रेमचंद चाहते तो क्या कर सकते थे ? लेखक क्या उदाहरण देकर अपनी बात समझाता है ?
उत्तर – प्रेमचंद चाहते तो विरोधों से बचकर निकल सकते थे। उस समय के टीलों, तथाकथित समाज के ठेकेदारों से समझौता कर सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया, सभी नदियाँ पहाड़ों से नहीं टकरातीं, कोई रास्ता बदलकर भी निकल जाती है। तुम भी ऐसा कर सकते थे।
(घ) प्रेमचंद की क्या कमजोरी थी ?
उत्तर – प्रेमचंद की यह कमजोरी थी अथवा उनके व्यक्तित्व की महानता थी कि वे गलत बातों से कभी समझौता नहीं करते थे। वे नियम-धर्म के पक्के व्यक्ति थे।
(ङ) होरी कौन था ? उसकी कमजोरी क्या थी ?
उत्तर – होरी प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ का पात्र था ? उसकी कमजोरी यह थी कि वह नेम धरम के लिए मर गया, लेकिन नेम धरम न छोड़ा।
(च) प्रेमचंद होरी की भांति समझौता क्यों नहीं कर पाए थे ?
उत्तर – प्रेमचंद होरी की भांति समझौता इसलिए नहीं कर पाए थे, क्योंकि प्रेमचंद भी यथार्थ, सहजता, सरलता, स्वाभाविकता के पक्षधर थे। वे अवसरवादी, प्रदर्शनकारी न थे ।
(छ) लेखक के अनुसार, प्रेमचंद किस प्रकार का जीवन जिए ?
उत्तर – लेखक के अनुसार, प्रेमचंद संघर्षशील लेखक थे। उन्होंने समाज की कुरीतियों का पर्दाफाश किया। शोषण, गरीबी, महाजनी प्रथा आदि बुराइयों का विरोध किया | उन्होंने समस्याओं से बचकर निकलने का प्रयत्न नहीं किया। वे समझौतावादी नहीं थे।
(ज) ठोकर मारने का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – ठोकर मारने का आशय है- संघर्ष करना, चोट करना।
(झ) रास्ते में खड़े टीले से क्या आशय है ?
उत्तर – रास्ते में खड़े टीले का आशय है संकट के विरुद्ध खड़े होना।
6. मैं समझता हूँ। तुम्हारी अँगुली का इशारा भी समझता हूँ और यह व्यंग्य-मुस्कान भी समझता हूँ।
तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकरार बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे ?
मैं समझता हूँ। मैं तुम्हारे फटे जूते की बात समझता हूँ अँगुली का इशारा समझता हूँ तुम्हारी व्यंग्य-मुसकान समझता हूँ !
(क) प्रेमचंद को किनके चलने की चिंता है ?
उत्तर – प्रेमचंद को अपने युग के उन लेखकों के चलने की चिंता है जो दिखावटी जीवन जीने के कारण अंदर ही अंदर सिमटते जा रहे हैं। वे संकटों को स्वीकार करने का आत्मबल खोते जा रहे हैं। प्रेमचंद को लगता है कि संकटों का खुलकर आमना-सामना किए बिना लेखन या अन्य कोई श्रेष्ठ कर्म नहीं किया जा सकता।
(ख) प्रेमचंद मुस्कराकर क्या व्यंग्य कर रहे हैं ?
उत्तर – प्रेमचंद मुस्कराकर कह रहे हैं कि मैंने तो मुसीबतों को ठोकरे मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। मेरी अँगुली जूता फाड़कर बाहर निकल आई, परंतु पाँव बचा रहा। इसलिए मैं आगे चलता रहा। आशय यह है कि मैं कुरीतियों से जुझा। मैंने संकट सहे। गरीबी झेली। किंतु अपने आत्मबल को बचाए रखा। इसी के बल पर मैं आगे भी साहित्य लेखन कर रहा हूँ। परंतु जो लोग दिखावटी जीवन जीने में अपने आत्मबल को खो रहे हैं, उनका क्या होगा ? वे आगे और साहित्य लेखन कैसे करेंगे ?
(ग) ‘अँगुली छिपाने’ और ‘तलुआ घिसाने’ का क्या गूढ़ आशय है ?
उत्तर – ‘अँगुली छिपाने का आशय है- अपनी दुर्दशा को ढौंपना ‘तलुआ घिसाने’ का आशय है- अंदर ही अंदर क्षीण होना अपनी शक्तियों को नष्ट करना। ।
(घ) लेखक के अनुसार, प्रेमचंद किन पर व्यंग्य कर रहे हैं ?
उत्तर – लेखक के अनुसार, प्रेमचंद उन सभी लोगों पर हँस रहे हैं जो ऊपर से अपनी कमजोरियों को छिपा रहे है किंतु अंदर ही अंदर उनसे पीड़ित हैं। वे उन पर भी हँस रहे हैं, जो सामने आई कुरीतियों और मुसीबतों से बचकर अगल-बगल से निकल रहे हैं।

महादेवी वर्मा

मेरे बचपन के दिन

1. बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता है। कभी-कभी लगता है, जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियाँ बहुत बदल जाती हैं। अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्रायः दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा पूजा की। हमारी कुल-देवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी। हिंदी का कोई वातावरण नहीं था।
(क) पाठ और लेखिका का नाम लिखें।
उत्तर – पाठ का नाम मेरे बचपन के दिन ।
लेखिका का नाम- महादेवी वर्मा
(ख) बचपन की स्मृतियों में विचित्र आकर्षण होता है ?
उत्तर – बचपन में की गई अटखेलियाँ, क्रिड़ाएँ बड़ी सहज, स्वाभाविक और मनोरंजक होती है उनमें कृत्रिमता या व्यवहारिकता का लेशमात्र अंश नहीं होता है। अतः आगे चलकर बचपन की स्मृतियाँ यथार्थ जीवन के समक्ष विचित्र जान पड़ती है ।
(ग) भाषागत दृष्टि से महादेवी के परिवार की क्या स्थिति थी ?
उत्तर – भाषागत दृष्टि से महादेवी के बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी। हिंदी कोई नहीं जानता था।
(घ) लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई लड़की न होने का क्या कारण था ?
उत्तर – लेखिका के परिवार में लड़की के जन्म को अशुभ माना जाता था। इसीलिए उसे पैदा होते ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि लेखिका के परिवार में दो सौ वर्ष तक कोई लड़की नहीं थी।
(ङ) लेखिका के बाबा ने दुर्गा पूजा क्यों की ?
उत्तर – लेखिका के परिवार में कोई लड़की नहीं थी । अतः लड़की प्राप्त करने की कामना से उनके बाबा ने अपनी कुल देवी दुर्गा की पूजा की ।
(च) लेखिका के उत्पन्न होने पर उसकी खातिर क्यों हुई ?
उत्तर – लेखिका के जन्म पर पारिवारिक परिवेश बदल चुका था तथा उनके बाबा ने कुल-देवी दुर्गा से कन्या की मनौती माँगी थी। इसीलिए लेखिका के उत्पन्न होने पर उसकी खातिर हुई।
(छ) लेखिका अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई इसका आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – लेखिका के परिवार में पिछले दो सौ वर्षों से लड़कियों के साथ अन्याय होता आ रहा था। उन्हें पैदा होते ही मार दिया जाता था। महादेवी के जन्म के लिए इनके बाबा ने कुल देवी दुर्गा की पूजा की थी। तब जाकर कई पीढ़ियों के बाद महादेवी का जन्म हुआ।
(ज) महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर – महादेवी के जन्म के समय समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता था। उन्हें जन्म लेते ही मार दिया जाता था । यदि वे पैदा हो जाती थीं तो उनके साथ भेदभाव किया जाता था। उन्हें लड़कों की तुलना में बहुत कष्ट सहने पड़ते थे। उनकी दशा शोचनीय थी ।
2. हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी। उसके उपरांत गाँधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार चलता था । कवि-सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ लेकर जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्षर होते थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई होता था । कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे। मुझको प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था । सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें।
(क) 1917 में स्वतंत्रता संग्राम का क्या स्वरूप था ?
उत्तर – 1917 में स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो चुका था। गाँधी जी के नेतृत्व में सत्याग्रह आरंभ हो गया था। जन-जागरण के लिए तथा हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कवि-सम्मेलन आरंभ हो चुके थे। इलाहाबाद का आनंद भवन स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन चुका था।
(ख) सन् 1917 के आसपास होने वाली कवि सम्मेलन की एक झलक दें । ।
उत्तर – सन् 1917 के आसपास इलाहाबाद में हिंदी के कवि-सम्मेलन हुआ करते थे । उन दिनों सम्मेलनों की अध्यक्षता अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, श्रीधर पाठक, जगन्नाथ ‘रचनाकर’ जैसे महान कवि किया करते थे। लेखिकाओं में सुभद्रा कुमारी चौहान प्रसिद्ध हो चुकी थीं। महादेवी वर्मा भी मंचों पर स्थान पाने लगी थीं ।
(ग) महादेवी ने किस-किसकी अध्यक्षता में कवि सम्मेलन में भाग लिया ?
उत्तर – महादेवी जी ने हरिऔध, श्रीधर पाठक, जगन्नाथ दास रत्नाकर आदि की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन में भाग लिया ।
(घ) उस समय हिंदी – कविता का कैसा वातावरण था ?
उत्तर – यह 1917 के आस-पास का समय था । हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा था। गाँधी जी का सत्याग्रह भी चल रहा था। आनंद भवन संघर्ष का केंद्र बना हुआ था। उस समय कवि सम्मेलन होते रहते थे। इनमें लेखिका भी भाग लेती थी ।
(ङ) इस गद्यांश में किन-किन कवियों का किस रूप में नामोल्लेख हुआ है ? महादेवी की क्या स्थिति थी ?
उत्तर – इस गद्यांश में हरिऔध, श्रीधर पाठक तथा रत्नाकर के नामों का उल्लेख है। वे प्रायः कवि-सम्मेलनों के अध्यक्ष हुआ करते थे। लेखिका भी इनमें कविता पाठ करती थी। उन्हें प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। उन्हें सौ से अधिक पद पुरस्कार स्वरूप मिले थे।
3. उसी बीच आनंद-भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरा भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको ।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे ?” अब मैं क्या कहती? मैंने दे दिया और लौट आई। दुख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है? पर कविता सुनाने को उन्होंने नहीं कहा। लौटकर अब मैंने सुभद्रा जी से कहा कि कटोरा तो चला गया। सुभद्रा जी ने कहा, ‘और जाओ दिखाने!’ फिर बोली, ‘देखो भाई, खीर तो तुमको बनानी होगी। अब तुम चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ, चाहे फूल के कटोरे में— फिर भी मुझे मन ही मन प्रसन्नता हो रही थी कि पुरस्कार में मिला अपना कटोरा मैंने बापू को दे दिया।
(क) स्वतन्त्रता संग्राम में महादेवी किस प्रकार सहायता करती थीं ?
उत्तर – महादेवी स्वतन्त्रता संग्राम के समय अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाती थीं और ‘बापू’ के आने पर उन्हें दे देती थीं ।
(ख) महादेवी के पास चाँदी का कटोरा कहाँ से आया था ?
उत्तर – महादेवी के पास चाँदी का कटोरा कवि-सम्मेलन के द्वारा आया, जो उन्हें पुरस्कार रूप में मिला था।
(ग) सुभद्रा कुमारी ने महादेवी से चाँदी के कटोरे के संबंध में क्या चाहा था ?
उत्तर – सुभद्रा कुमारी ने महादेवी से चाँदी के कटोरे के संबंध में कहा कि तुम मुझे इसमें खीर बनाकर खिलाना।
(घ) एक बार लेखिका बापू के पास क्या लेकर गई और क्यों ?
उत्तर – लेखिका एक दिन बापू से मिलने गई। वे उन्हें अपना वह चाँदी का कटोरा दिखाने ले गई जो उसे पुरस्कार स्वरूप मिला था ।
(ङ) बापू ने लेखिका से क्या कहा ? लेखिका को किस बात का दुःख हुआ ?
उत्तर – एक बार लेखिका को कविता पाठ पर पुरस्कार स्वरूप चाँदी का एक कटोरा मिला। वह उसे बापू को दिखाने ले गई। बापू ने उनसे कहा-‘अच्छा दिखा तो मुझको। बापू ने उनका कटोरा अपने पास रख लिया ।
लेखिका को दुःख इस बात का हुआ कि बापू ने कविता के बारे में कुछ नहीं कहा, न उसे सुनाने के लिए कहा ।
(च) महादेवी अपना कटोरा खोकर भी प्रसन्न क्यों थीं ?
उत्तर – महादेवी को पुरस्कार में मिले चाँदी के कटोरे से प्रेम था। वह कटोरा गाँधीजी ने अपने पास रख लिया। फिर भी महादेवी प्रसन्न थीं। उनके मन में आया कि चलो, मेरा कटोरा देश के काम आएगा, स्वतंत्रता आंदोलन के काम आएगा।
(छ) महादेवी का कटोरा छिन जाने पर सुभद्रा कुमारी चौहान ने क्या प्रतिक्रिया की ?
उत्तर – जब सुभद्रा कुमारी चौहान को पता चला कि बापू ने महादेवी का चाँदी का कटोरा अपने पास रख लिया है तो उन्होंने न खुशी प्रकट की, न निराशा । उन्होंने मनोविनोद के लिए इतना कहा- “और जाओ दिखाने x x देखो भाई, खीर तो तुमको बनानी है। अब तुम चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ चाहे फूल के कटोरे में।”
4. मैं जब विद्यापीठ आई, तब तक मेरे बचपन का वही क्रम चला जो आज तक चलता आ रहा है। कभी-कभी बचपन के संस्कार ऐसे होते हैं कि हम बड़े हो जाते हैं, तब तक चलते हैं। बचपन का एक और भी संस्कार था कि हम जहाँ रहते थे वहाँ जवारा के नवाब रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। वे बेचारे एक बँगले में रहते थे। उसी कंपाउंड में हम लोग रहते थे। बेगम साहिबा कहती थीं- ‘हमको ताई कहो !’ हमलोग उन ‘ताई साहिबा’ कहते थे। उनके बच्चे हमारी माँ को चची जान कहते थे। हमारे जन्मदिन वहाँ मनाए जाते थे। उनके जन्मदिन हमारे यहाँ मनाए जाते थे। उनका एक लड़का था । उसको राखी बाँधने के लिए वे कहती थीं। बहनों को राखी बाँधनी चाहिए। राखी के दिन सवेरे से उसको पानी भी नहीं देती थीं। कहती थीं राखी के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए । बार-बार कहलाती थीं ‘भाई भूखा बैठा है राखी बँधवाने के लिए ।
(क) बचपन के संस्कार कैसे होते हैं ?
उत्तर – बचपन के संस्कार बहुत मजबूत एवं पक्के होते हैं। वे आजीवन चलते रहते हैं । बड़े होने पर भी वे प्रभाव बनाए रखते हैं ।
(ख) बचपन के किस संस्कार का यहाँ उल्लेख है ?
उत्तर – यहाँ बचपन के सांप्रदायिक एकता के संस्कार का उल्लेख है । लेखिका के पड़ोस में जवारा के नवाब रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। वे एक बंगले में रहते थे। उनके यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था।
(ग) ‘ताई साहिबा’ कौन थी ? उनका स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – नवाब साहब की बेगम को सभी लोग ‘ताई साहिबा’ कहते थे । वे यही चाहती भी थीं। उनका स्वभाव बहुत अच्छा था । लेखिका और ताई साहिबा के बच्चों के जन्मदिन मिलकर इकट्ठे मनाए जाते थे।
(घ) राखी के अवसर पर उनका क्या कहना था ?
उत्तर – राखी का ताई साहिबा विशेष ध्यान रखती थीं। उनका एक लड़का था । लेखिका से वह उसे राखी बँधवाती थीं। अपने बेटे को वे सुबह से ही भूखा-प्यासा रखती थीं। उनका कहना था कि जब तक बहन राखी न बाँध ले तब तक भाई को निराहार ही रहना चाहिए। वे बार-बार राखी बाँधने के लिए बुलावा भेजती थीं।
(ङ) जवारा के नवाब और महादेवी के परिवार की घनिष्ठता का वर्णन करें ?
उत्तर – जवारा के नवाब और महादेवी के पारिवारिक संबंध बड़े मधुर थे। दोनों परिवार जन्म दिन एक साथ मनाते थे। रक्षा बंधन के त्योहार पर राखी बाँधने-बँधवाने का रिवाज था । तीज पर, मुहर्रम पर नेक दिए जाते थे। यहाँ तक कि महादेवी के छोटे भाई का नामकरण भी उनके द्वारा ही हुआ।
5. वह प्रोफेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे, गोरखपुर यूनिवर्सिटी के भी रहे। कहने का तात्पर्य यह है कि मेरे छोटे भाई का नाम वही चला जो ताई साहिबा ने दिया। उनके यहाँ भी हिंदी चलती थी, उर्दू भी चलती थी। यों, अपने घर में वे अवधी बोलते थे । वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत निकट थे । आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था। आज वह सपना खो गया ।
शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और होती ।
(क) प्रोफेसर मनमोहन वर्मा कौन थे ? उन्हें यह नाम किसने दिया था ?
उत्तर – प्रोफेसर मनमोहन वर्मा महादेवी वर्मा के छोटे भाई थे। उन्हें यह नाम जवारा के नवाब की बेगम साहिबा ने दिया था ।
(ख) ताई साहिबा के घर की भाषा का उल्लेख करें।
उत्तर – ताई साहिबा के घर में हिंदी बोली जाती थी, उर्दू भी चलती थी। वैसे घर में अवधी की ही प्रधानता थी ।
(ग) ‘शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और होती-लेखिका किस सपने की बात कर रही हैं और क्यों ?
उत्तर – महादेवी ने सम्प्रदाय की संकीर्ण भावना से परे प्रेम, सौहार्द, मानवता का जो वातावरण बचपन में देखा यह बाद में नहीं देख सकी। इसीलिए वे बचपन के इस सपने को आज तक भुला न सकी । यदि यही सपना सच हो जाता तो आज भारत-विभाजन की जो पीड़ा भोग रहा है, वह न भोगता । वहाँ द्वेष के वातावरण की जगह प्रेम का वातावरण होता ।
(घ) महादेवी के बचपन और वर्तमान स्थिति में क्या अंतर आ चुका है ?
उत्तर – महादेवी के बचपन में सांप्रदायिक मेलजोल का वातावरण था। हिंदू-मुसलमान का भेदभाव नहीं था। बेगम साहिबा का परिवार उनके परिवार के साथ बहुत निकटता अनुभव करता था ।
(ङ) बेगम साहिबा के घर में कौन-सी भाषा बोली जाती थी ?
उत्तर – बेगम साहिबा के घर हिंदी, उर्दू तथा अवधी तीनों भाषाएँ बोली जाती थीं। वे अपने घर में अवधी का प्रयोग करते थे।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

एक कुत्ता और एक मैना

1. आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव के मन में आया कि शान्ति निकेतन को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाएँ। स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था । शायद इसलिए, या पता नहीं क्यों, तै पाया कि वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में कुछ दिन रहें। शायद मौज में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया हो। वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। उन दिनों ऊपर तक पहुँचने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं, और वृद्ध और क्षीणवपु रवीन्द्रनाथ के लिए उस पर चढ़ सकना असंभव था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सका।
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
उत्तर – पाठ का नाम- एक कुत्ता और एक मैना । लेखक का नाम- हजारीप्रसाद द्विवेदी ।
(ख) गुरुदेव शाँति निकेतन क्यों छोड़ना चाहते थे ?
उत्तर – गुरुदेव दर्शनार्थियों से बड़े परेशान थे। शाँति निकेतन में बहुत से दर्शनार्थी आते थे। अंतः वे शाँति-निकेतन छोड़ना चाहते थे।
(ग) शाँति-निकेतन छोड़कर गुरुदेव कहाँ जाकर रहने लगे। ?
उत्तर – गुरुदेव शाँति निकेतन छोड़कर श्री निकेतन में जाकर रहने लगे।
(घ) गुरुदेव कौन थे ? उनके मन में क्या बात आई ?
उत्तर – गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर थे। एक बार उनके मन में आया कि कुछ महीनों के लिए शाँतिनिकेतन को छोड़कर और कहीं रहने चला जाए ।
(ङ) गुरुदेव ने ऐसा क्यों सोचा होगा ?
उत्तर – गुरुदेव ने ऐसा इसलिए सोचा होगा क्योंकि उन दिनों उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा था। संभवतः वे स्थान परिवर्तन करना चाह रहे हों ताकि एक स्थान पर रहना बोरियत पैदा न कर दे । यह भी हो सकता है कि मौज में आकर उन्होंने ऐसा निर्णय लिया हो ।
(च) गुरुदेव को श्रीनिकेतन ले जाना कठिन क्यों था ?
उत्तर – श्रीनिकेतन तीन मंजिला मकान था। ऊपर तक जाने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ ही थीं। उन सीढ़ियों पर चढ़कर जाना बूढ़े और कनजोर गुरुदेव के लिए अत्यंत कठिन था। बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया गया ।
2. शुरू-शुरू में मैं उनसे ऐसी बाँग्ला में बात करता था, जो वस्तुतः हिंदी – मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी। किसी बाहर के अतिथि को जब मैं उनके पास ले जाता था तो कहा करता था, ‘एक भद्र लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन ।’ यह बात हिंदी में जितनी प्रचलित है, उतनी बाँग्ला में नहीं। इसलिए गुरुदेव जरा मुसकरा देते थे। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा बहुत अधिक पुस्तकीय है और गुरुदेव ने उस ‘दर्शन’ शब्द को पकड़ लिया था। इसलिए जब कभी मैं असमय में पहुँच जाता था तो वे हँसकर पूछते थे दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या?” यहाँ यह दुख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शनार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय, स्थान- अस्थान, अवस्था अनवस्था की एकदम परवा नहीं करते थे और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे ‘दर्शनार्थियों से गुरुदेव कुछ भीत भीत से रहते थे।
(क) गुरुदेव लेखक के वचन सुनकर क्यों मुस्करा पड़ते थे ?
उत्तर – गुरुदेव रवींद्रनाथ को लेखक के मुँह से निकला ‘दर्शनार्थी’ शब्द बहुत हास्यास्पद लगता था। ‘दर्शन करने आना’ जैसा प्रयोग बँगला भाषा में प्रचलित नहीं था । इसलिए इस प्रयोग पर गुरुदेव को हँसी आती  थी ।
(ख) गुरुदेव दर्शनार्थियों से डरे-डरे क्यों रहते थे ?
उत्तर – रवींद्रनाथ टैगोर केवल दर्शन पाने की इच्छा वाले लोगों से दो कारणों से डरे-डरे रहते थे –
(i) वे प्रायः असमय आते थे जिसके कारण रवींद्रनाथ को परेशानी होती थी।
(ii) वे स्वयं को दर्शन की वस्तु नहीं बनाना चाहते थे, परंतु लेखक की प्रशंसा भी नहीं खोना चाहते थे ।
(ग) ‘दर्शन’ शब्द के अर्थ लिखें।
उत्तर – दर्शन का साधारण अर्थ होता है गोचर वस्तुओं को देखना तथा अदृश्य, अलौकिक, रहस्यमयी पदार्थों को देखना ।
(घ) गुरुदेव ने ‘दर्शन’ शब्द पकड़ लिया था – कथन से लेखक का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – गुरुदेव के पास उनकी वृद्धावस्था में बहुत से लोग उनके दर्शन हेतु आते थे। जिनसे गुरुदेव बचना चाहते थे । अतः जब भी कोई उनसे उनका परिचित भी मिलने आता तो वे घबराकर यही कह उठते थे कि क्या ‘दर्शनार्थी’ हो । अतः वे ‘दर्शन’ शब्द को ही पकड़कर बैठ गए।
(ङ) दर्शनार्थियों के स्वभाव पर प्रकाश डालें।
उत्तर – भारतीय दर्शनार्थी बड़े ही भावुक और संवेदनशील होते हैं, जो समय- असमय, स्थान-अस्थान अवस्था – अनवस्था की चिंता नहीं करते हैं। वे किसी के रोकने पर भी वे रुकते नहीं है ।
(च) लेखक को अपनी गलती का अहसास कब हुआ और कैसे हुआ ?
उत्तर – लेखक को दर्शनार्थी लाने संबंधी अपनी गलती का बोध तब हुआ, जब उसने गुरुदेव को व्यंग्य से मुसकराते देखा। यह व्यंग्य दो कारणों होता था –
(i) असमय आने पर,
(ii) पुस्तकीय भाषा का प्रयोग करने पर ।
3. मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आँख मूँदकर अपरिसीम आनंद, वह मूक हृदय का प्राणपण आत्मनिवेदन मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज वह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है। जब गुरुदेव का चिताभस्म कलकत्ते (कोलकाता) से आश्रम में लाया गया, उस समय भी न जाने किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ शांत गंभीर भाव से उत्तरायण तक गया। आचार्य क्षितिमोहन सेन सबके आगे थे। उन्होंने मुझे बताया कि वह चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर चुपचाप बैठा भी रहा।
(क) लेखक ने किस घटना को आश्चर्यजनक कहा है और क्यों ?
उत्तर – लेखक ने देखा कि गुरुदेव की चिताभस्म को कोलकाता से उनके आश्रम में लाया गया तो गुरुदेव का भक्त कुत्ता भस्म के साथ-साथ चल रहा था। वह भी अन्य लोगों के साथ-साथ उत्तरायण दिशा तक गया । यहाँ तक कि वह कुछ देर तक चिताभस्म के कलश के पास बैठा रहा । कुत्ते के मन में ऐसी गहरी मानवीय सहानुभूति आश्चर्यजनक थी ।
(ख) कौन-सी घटना विश्व की महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में आ गई और क्यों ?
उत्तर – जब लेखक गुरुदेव द्वारा रचित कुत्ते के आत्मनिवेदन से संबंधित कविता पढ़ता है तो उसकी आँखों के सामने एक घटना आ जाती है। उसे याद आता है कि कैसे गुरुदेव का भक्त कुत्ता उन्हें दो मील की दूरी से ढूँढ़ता – ढूँढता तिनमंजिले मकान पर आ पहुँचा था। तब गुरुदेव ने उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फेरा तो कुत्ते का रोम-रोम आनंद से पुलकित हो उठा था।
(ग) तितल्ले की कौन-सी घटना लेखक के सामने प्रत्यक्ष हो जाती है और किस अवसर पर ?
उत्तर – गुरुदेव का कुत्ता उन्हें ढूँढ़ता-ढूँढता दो मील की दूरी पार करके उनके तिनमंजिले मकान के तितल्ले पर आ पहुँचा था । तब गुरुदेव ने बड़े प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा था और कुत्ते ने उसमें असीम आनंद का अनुभव किया था। यह कुत्ते का ‘प्राणपण आत्मनिवेदन’ था । इसी घटना को लेखक ने विश्व की महिमाशाली घटना कहा है।
(घ) आप कैसे कह सकते हैं कि पशुओं में भी मानवीय संवेदना होती है ?
उत्तर – पशुओं में भी मानवीय संवेदना होती है। इसका प्रमाण है- गुरुदेव के कुत्ते का व्यवहार । गुरुदेव का कुत्ता न केवल गुरुदेव के जीते जी उनका प्रेम पात्र बना रहा, बल्कि मृत्यु के बाद भी उनसे जुड़ा रहा । वह शोकग्रस्त समाज के समान गंभीर भाव से गुरुदेव की चिताभस्म के साथ चलता रहा। वह चिताभस्म के समाने भी बैठा रहा।
4. गुरूदेव ने बात-चीत के सिलसिले में एक बार कहा, “अच्छा साहब, आश्रम के कौए क्या हो गए? उनकी आवाज सुनाई ही नहीं देती ?” न तो मेरे साथी उन अध्यापक महाशय को यह खबर थी और न मुझे ही। बाद में मैंने लक्ष्य किया कि सचमुच कई दिनों तक आश्रम में कौए नहीं दीख रहे हैं। मैंने तब तक कौओं को सर्वव्यापक पक्षी ही समझ रखा था। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले आदमी भी कभी-कभी प्रवास को चले जाते हैं या चले जाने को बाध्य होते हैं। एक लेखक ने कौओं की आधुनिक साहित्यिकों से उपमा दी हैं, क्योंकि इनका मोटो है ‘मिसचीफ फार मिसचीफ सेक’ (शरारत के लिए ही शरारत) तो क्या कौओं का प्रवास भी किसी शरारत के उद्देश्य से ही था ? प्रायः एक सप्ताह के बाद बहुत कौए दिखाई दिए।
(क) कौओं के बारे में लेखक की क्या धारणा थी ?
उत्तर – लेखक के अनुसार कौए सर्वव्यापक पक्षी होते थे, लेकिन बाद में उसे ज्ञान हुआ कि ये तो प्रवास को कभी-कभी चले जाते हैं या चले जाने को बाध्य हो जाते हैं।
(ख) एक अन्य लेखक ने कौओं की क्या आधुनिक साहित्यिक उपमा दी है ?
उत्तर – एक अन्य लेखक ने कौओं की आधुनिक साहित्यिक उपमा देते हुए कहा – ‘मिसचिफ् फॉर मिसचिफ सेक’ अर्थात् शरारत के लिए ही शरारत।
(ग) कौए के संबंध में लेखक की कौन-सी धारणा गलत निकली ?
उत्तर – कौए के बारे में लेखक ने सोचा था कि ये शायद ‘सर्वव्यापक’ होते हैं, अर्थात् सब जगह हमेशा पाए जाते हैं। किंतु जब उन्हें पता चला कि कौए भी प्रवासी पक्षी हैं तो उनकी धारणा गलत सिद्ध हो गई ।
(घ) आधुनिक साहित्यकारों की तुलना कौओं से क्यों की गई है ?
उत्तर – आधुनिक साहित्यकारों की तुलना कौओं से इसलिए की गई है क्योंकि वे बिना किसी उद्देश्य के बोलते हैं। वे शरारत के लिए शरारत करते हैं। बोलने के लिए बोलते हैं।
(ङ) गुरुदेव ने साथी अध्यापक से क्या प्रश्न किया ?
उत्तर – गुरुदेव ने साथी अध्यापक से यह प्रश्न किया कि आश्रम के कौओं को क्या हो गया ? अब उनकी आवाज सुनाई नहीं पड़ रही है ।
5. सो, इस प्रकार की मैना कभी करुण हो सकती है, यह मेरा विश्वास ही नहीं था । गुरुदेव की बात पर मैंने ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण भाव है। शायद यह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर – सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था । या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिड़ाल के आक्रमण के समय पति को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है। हाय, क्यों इसकी ऐसी दशा है!
(क) लेखक ने मैना को विधुर पति या आहत पत्नी क्यों माना ?
उत्तर – लेखक ने देखा कि मैना घायल है। वह अकेले विहार कर रही है। उसके मुख पर करुणा और स्वाभिमान दोनों हैं। न आँखों में धोखा खाने का क्रोध है और न वैराग्य । इसलिए उसकी यह कल्पना ठीक ही है कि वह अवश्य घायल विधवा पत्नी है या विधुर पति ।
(ख) मैना के बारे में लेखक ने क्या-क्या कल्पनाएँ की ?
उत्तर – लेखक ने लँगड़ी मैना के बारे में दो कल्पनाएँ की
(i) पहली कल्पना यह की कि शायद यह कोई विधुर पति है जो पिछली स्वयंवर -सभा के युद्ध में घायल और पराजित हो गया था।
(ii) दूसरी कल्पना यह की यह कोई विधवा पत्नी है, जिसका पति विड़ाल से लड़ते-लड़ते शहीद हो चुका है और वह भी थोड़ी-सी घायल होकर अकेले दिन काट रही है।
(ग) मैना के बारे में लेखक की क्या राय थी ? उन्हें किस बात पर विश्वास नहीं हो सका ?
उत्तर – मैना के बारे में लेखक की यही राय थी कि उसमें कृपा-भाव होता है। उसके मुख पर अनुकंपा का भाव होता है। परंतु गुरुदेव ने अकेली मैना को लँगड़ाते हुए देखा उसके चेहरे पर करुण भाव लिखा प्रतीत हुआ। लेखक कभी यह सोच ही नहीं सकता था कि मैना में कभी करुण भाव हो सकता है।
(घ) लेखक को क्या विश्वास न था ?
उत्तर – लेखक को यह विश्वास न था कि मैना भी कभी करुण हो सकती है। गुरुदेव के कहने पर उसने इसके बारे में सोचा।
(ङ) मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने कविता में क्या लिखा है ?
उत्तर – मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने मैना की दयनीय दशा पर कविता लिखी है। वह एक पैर से लंगड़ा रही है। वह संगहीन होकर कीड़ों का शिकार करती रहती है।
6. “उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग होकर अकेली रहती है ? पहले दिन देखा था सेमर के पेड़ के नीचे मेरे बगीचे में जान पड़ा जैसे एक पैर से लँगड़ा रही हो। इसके बाद उसे रोज सवेरे देखता हूँसंगीहीन होकन कीड़ों का शिकार करती फिरती है। चढ़ जाती है बरामदे में। नाच-नाचकर चहलकदमी किया करती है, मुझसे जरा भी नहीं डरती। क्यों है ऐसी दशा इसकी ? समाज के किस दण्ड पर उसे निर्वासन मिला है, दल के किस अविचार पर उसने मान किया है? कुछ ही दूरी पर और मैनाएँ बक-झक कर रही हैं, घास पर उछल-कूद रही है, उड़ती फिरती हैं शिरीषवृक्ष की शाखाओं पर। इस बेचारी को ऐसा कुछ भी शौक नहीं है। इसके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है, यही सोच रहा हूँ। सवेरे की धूप में मानो सहज मन से आहार चुगती हुई झड़े हुए पत्तों पर कूदती फिरती है सारा दिन। किसी के ऊपर इसका कुछ अभियोग है, यह बात बिल्कुल नहीं जान पड़ती। दुराकी चाल में वैराग्य का गर्व भी तो नहीं है, दो आग-सी जलती आँखें भी तो नहीं दिखतीं।” इत्यादि ।
(क) मैना को देखकर लेखक के मन में क्या विचार आता है ?
उत्तर – मैना को देखकर लेखक के मन में विचार आया कि वह दल से अलग होकर अकेली क्यों है। समाज के किस दण्ड पर उसे निर्वासन मिला है उसकी ऐसी दशा क्यों है। उसके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है।
(ख) मैना दिन भर क्या करती रहती थी ?
उत्तर – मैना कीड़ों का शिकार करती फिरती थी। कभी बरामदें में चढ़ जाती थी । नाच-नाचकर चहलकदमी करती थी ।
(ग) कवि को यह क्यों लगा कि मैना के जीवन में कोई गाँठ पड़ी है ?
उत्तर – यह मैना सबसे अलग रहती थी अन्य मैनाएँ घास पर उछल-कूद करती, बकझक करती, उड़ती-फिरती, शाखाओं पर बैठती पर इस बेचारी को ऐसा कुछ भी शौक नहीं है।
(घ) लँगड़ी मैना को अकेले फुदकते देखकर रवींद्रनाथ टैगोर ने उसके बारे में क्या-क्या कल्पनाएँ कीं ?
उत्तर – लँगड़ी मैना को अकेले फुदकते देखकर रवींद्रनाथ टैगोर ने कल्पना की कि शायद इसने कोई पाप किया है। इस कारण समाज ने इसका बहिष्कार कर रखा है। या यह मूर्खतापूर्वक समाज से रूठी हुई है। या इसके हृदय में कोई बात है, जिसे यह मन-ही-मन बसाए हुए है।
(ङ) समाज के किस दंड पर उसे निर्वासित मिला है – कथन का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – लेखक ने जब लँगड़ी मैना को उसके दल से अलग देखा तो वह करूणा से भर गया और वह उस सामाजिक सत्य को जानने में विचार-मग्न हो गया कि आखिर इस मैना ने समाज का कौन-सा नियम तोड़ दिया, जिसके कारण उसे बहिष्कृत कर दिया गया है।
(च) लेखक को लँगड़ी मैना अन्य साथियों से किस प्रकार भिन्न जान पड़ी ?
उत्तर – लेखक को लगा कि यह लँगड़ी मैना अपनी जाति की अन्य मैनाओं से भिन्न है। अन्य पक्षी उछल-कूद कर रहे हैं, बक-झक कर रहे हैं, किंतु यह एकांत में विहार कर रही है। न यह किसी के संग खेलती है, न शिरीष वृक्ष की शाखाओं पर उड़ती फिर रही है।
(छ) ‘गाँठ पड़ना का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘गाँठ पड़ना’ का आशय है – मन ही मन किसी बात पर सोचते रहना किंतु उसे प्रकट न करना ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रेमचंद

दो बैलों की कथा

1. कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी ? 
उत्तर – कांजीहौस वह स्थान है जहाँ लावारिस पशुओं को जो फसलों को नष्ट करते हों या फिर लोगों को परेशान करते हों, उन्हें कैद किया जाता है। वहाँ भैंस, बकरियाँ, घोड़े, गधे आदि मवेशी कैद किए गए थे। वहाँ कैद किए गए पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती थी, जिससे यह पता चल सके कि सभी पशु मवेशीखाने में उपस्थित हैं। हाजिरी लेकर यह पता लगाया जाता था कि कहीं कोई पशु भाग तो नहीं गया।
2. छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया ?
उत्तर – छोटी बच्ची का हीरा और मोती के प्रति प्रेम एवं आत्मीयता का संबंध होना बहुत ही स्वाभाविक था, क्योंकि उस बच्ची की सौतेली माँ उस पर खूब अत्याचार किया करती थी। मानसिक यातनाएँ देती थी । वह प्रेम व स्नेह की भूखी थी। बच्ची दोनों बैलों की व्यथा एवं आंतरिक पीड़ा को भावात्मक धरातल पर समझती थी। अतः अपना प्रेम प्रकट करने के लिए वह प्रतिदिन दोनों बैलों को एक-एक सूखी रोटी खिला दिया करती थी ।
3. कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति विषयक मूल्य उभर कर आए है ? 
उत्तर – प्रस्तुत कहानी में हीरा व मोती नामक दो बैलों के माध्यम से प्रेमचंद ने कई नीति विषयक मूल्यों को उभारा है जैसे –
(क) हीरा और मोती की मित्रता के माध्यम से लेखक ने बताना चाहा है कि सच्चा मित्र वही है जो संकट आने पर एक दूसरे का साथ दे । हीरा और मोती भी विपत्ति आने पर एक होकर उसका सामना करते हैं।
(ख) मोती जब बच्ची की माँ को मारना चाहता है तब हीरा के कथ्य द्वारा समाज में नारी जाति के प्रति आदर व सम्मान का भाव दृष्टिगत होता है।
(ग) हीरा और मोती के दो बार गया के पास भाग कर अपने स्वामी के पास आने में स्वामी भक्ति की भावना का आभास मिलता है।
(घ) काँजीहाँस में कैद अन्य पशुओं को आजाद कराने में तथा सींग मारकर गधों को बाहर करने में परोपकार की भावना दिखाई पड़ती है।
(ङ) हीरा और मोती के इस कथन में कि जिन पशुओं को हमने स्वतंत्र कराया है, वह भी हमें आशीर्वाद देंगे- इस कथन द्वारा ईश्वर के प्रति आस्था व विश्वास का भाव उमड़ता है।
4. प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद के गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ ‘मूर्ख’ का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है ? 
उत्तर – प्रायः लोग गधे को रूढ़ अर्थ ‘मूर्ख’ के संदर्भ में प्रयुक्त करते हैं, पर लेखक ने गधे की स्वभावगत विशेषताएँ बताते हुए उसे सीधा और सहिष्णु की वजह से उसे यह पदवी दी गई है। गधे में तो वे सभी गुण पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं, जो ऋषि-मुनियों में अपेक्षित माने जाते हैं।
5. किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी ?
उत्तर – निम्नांकित घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी मित्रता थी
(क) दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग मिला लिया करते थे।
(ख) दोनों बैल हल या गाड़ी में जोते जाने पर यही चेष्टा करते थे कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ उसी की गर्दन पर रहे।
(ग) दोनों बैल अपनी मूक भाषा में सलाह करके गया के यहाँ से रस्सियाँ तुड़ाकर वापस झूरी के यहाँ आ पहुँचे।
(घ) विरोधस्वरूप दोनों बैलों ने गया के हल में जोते जाने पर पाँव भी न उठाया था ।
(ङ) दोनों बैलों ने मिलकर खेत में मटर चरी ।
(च) दोनों बैलों ने मिलकर साँड को मार गिराया ।
(छ) मोती हीरा को काँजीहौंस में अकेला छोड़कर नहीं भागा जबकि उसके सामने ऐसा करने का अवसर था ।
(ज) दोनों बैल दढ़ियाल आदमी से जान छुड़ाकर इकट्ठे भागे थे।
6. “लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।” लेखक ने हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति किस सामाजिक विडंबना को इंगित किया है ?
उत्तर – हीरा के उपरोक्त कथन के माध्यम से हमें ज्ञात होता है कि प्रेमचंद नारी को सम्मान की दृष्टि देखते थे। नारी स्वयं को अनेक रूपों में ढाल कर अपने उत्तरदायित्वों का पूरी निष्ठा से निर्वाह करने वाली है। वह अलग बात है कि परिस्थितिवश उसके स्वभाव में थोड़ा-बहुत परिवर्तन आ जाए तो उसे हीन दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। माना कि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। फिर भी प्रेमचंद ने नारी को त्याग, श्रद्धा और प्रेम की साकार मूर्ति के रूप में स्वीकार किया है।
7. किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है ?
उत्तर – किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य का घनिष्ठ संबंध होता है । आपसी लगाव के कारण दोनों का एक-दूसरे के बिना रहना दुखदायी हो जाता है। झूरी जब अपने दोनों बैलों हीरा और मोती को अपने से अलग करता है तो वह बड़ा बेचैन होता है और हीरा-मोती भी उसके विषय में उल्टा ही सोचते हैं। लेकिन जब हीरा और मोती भागकर वापस उसके पास आ जाते हैं तो वह बड़ा प्रसन्न होता है । तरह-तरह के दुःख उठाने और बिकने के बाद भी हीरा और मोती अपने पहले मालिक झूरी को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते हैं। किसान अपने पशुओं को परिवार के सदस्यों के समान स्नेह और देखभाल करता है तो पशु भी उसके आत्मीयता युक्त भाव से स्नेह के बंधन में बंधकर सदैव उसके साथ रहना चाहते हैं।
8. ‘इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आर्शीवाद देंगे- मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए। 
उत्तर – हीरा तो रस्सी में बँधा था और मोती ने सींग मार-मार कर काँजीहौस की आधी दीवार को गिरा दिया था । दीवार के टूटते ही वहाँ बंद नौ-दस प्राणी (जानवर) भाग गए। मोती हीरा की वजह से नहीं भागा । मोती को इस बात पर गर्व है कि उसके प्रयास से नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। इस घटना से मोती को यह विशेषता पता चलती है कि वह परोपकारी है। वह सच्चा मित्र भी है क्योंकि वह अपने स्वार्थ के लिए हीरा को अकेला छोड़कर नहीं भागा, जबकि वह चाहता तो भाग सकता था। मोती साहसी भी है ।
9. मटर के खेत में घुसने की क्या सजा दोनों बैलों को मिली ?
उत्तर – दोनों बैलों के सामने मटर का खेत ही था । मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो चार ग्रास ही खाए थे कि दो आदमी लाठियाँ लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्रों को घेर लिया । हीरा तो मेड़ पर था, निकल गया । मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धँसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया । हीरा ने देखा संगी संकट में है तो लौट पड़ा । फँसेंगे तो दोनों फँसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया ।
10. दढ़ियल व्यक्ति कौन था ? वह क्या चाहता था ? बैलों को वह कैसा आदमी लगा ?
उत्तर – दढ़ियल व्यक्ति नीलामी में बैलों को खरीदने आया था । वह बैलों की दशा भाँप लेना चाहता था। उस दढ़ियल आदमी ने जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर थी, दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बात करने लगा। उसका चेहरा देखकर अन्तर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।
11. ” अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – यहाँ प्रेमचंद ने बताया है कि हीरा और मोती मूक-भाषा में विचारों का आदान-प्रदान करते थे। वे बिना कुछ कहे एक-दूसरे के भाव और विचार समझ लेते थे। हमेशा साथ-साथ रहने के कारण दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी और दोनों ने ही एक-दूसरे को अच्छी तरह से जान और समझ लिया था। प्रेम, आत्मीयता और घनिष्ठता के गुणों के बल पर ही वे एक-दूसरे के मन की बात जान लेते थे। यही उनकी शक्ति थी जिसके कारण श्रेष्ठ जीवन मनुष्य भी उनसे पिछड़ गया।
12. “उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि प्रेम और सहानूभूति का सहारा मिलने पर प्राणी बड़े से बड़े दुःख भी भूल जाता है। जब भैरों की बेटी भूख से व्याकुल हीरा और मोती को एक-एक रोटी खिलाती है तो इस सहानुभूति को पाकर उनकी आत्मा प्रसन्न हो जाती है और आनन्दनुभूति के बल पर स्वयं को तृप्त अनुभव करते हैं।
13. ‘दो बैलों की कथा में लेखक ने दुर्दशा के किन कारणों का चित्रण किया है ? 
उत्तर – ‘दो बैलों की कथा’ में मुंशी प्रेमचंद ने बताया है कि आज के इस संसार में सरलता, सीधापन, सहनशीलता आदि गुणों का कोई मूल्य नहीं है। इनके कारण मनुष्य का शोषण ही होता है। आज का मनुष्य शक्तिशाली को सम्मान देता है, संघर्षशील को सभ्य मानता है। लेखक ने स्वयं प्रश्न उठाया है कि अफ्रीका और अमरीका में भारतीयों का सम्मान क्यों नहीं है ? क्योंकि वे सीधे-सादे परिश्रमी हैं। वे चोट खाकर भी सहन कर जाते हैं। इसके विपरीत जापान ने युद्ध में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके दुनिया भर में सम्मान अर्जित कर लिया ।
कहानी में हीरा-मोती अपनी सरलता और सहनशीलता के कारण शोषण के शिकार होते हैं। जैसे ही वे सींग चलाते हैं या विद्रोह करते हैं, उन पर अच्याचार होने कम हो जाते हैं ।
14. सच्चे मित्रों की क्या पहचान होती है ? क्या हीरा-मोती अच्चे मित्र हैं ?
उत्तर – सच्चे मित्र आपस में खूब घुल-मिलकर रहते हैं। वे कभी-कभी आपस में धौल-धप्पा, शरारत या कुलेल – क्रीड़ा भी करते हैं। इससे उनका प्रेम बढ़ता है। वे गहरे मित्र बनते हैं। प्रेमचंद के शब्दों में- “इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की-सी रहती है, जिस पर कुछ विश्वास नहीं किया जा सकता।”

राहुल सांकृत्यायन

ल्हासा की ओर

1. थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें स्थान नहीं दिला सका। क्यों ?
उत्तर – थोङ्ला से पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद भी लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला क्योंकि उनके साथ मंगोल भिक्षु सुमति था, जिनकी वहाँ अच्छी जान-पहचान थी। श्रद्धा भाव के कारण लोगों ने उनके ठहरने का उचित प्रबन किया किंतु पाँच साल बाद वे भद्र यात्री के वेश में घोड़ों पर सवार होकर उसी रास्ते से आए तो लोगों ने किसी अनिष्ठ के होने की आशंका से उन्हें ठहरने के लिए स्थान नहीं दिया।
2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था ?
उत्तर – उस समय तिब्बत में हथियारों का कानून न होने के कारण लोग लाठी की जगह पिस्तौल और बंदूक लेकर घूमते थे। दुर्गम घाटियों और हथियारों के कानून के न होने पर डकैत राह चलते लोगों को पहले मारते थे और बाद में उसकी तलाशी लेते थे। हर समय लोगों ने अपने प्राणों पर खतरा मँडराता दिखाई देता था।
3. लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया ? 
उत्तर – लेखक ने लङ्कोर जाने के लिए सुमति से दो घोड़े लाने के लिए कहा क्योंकि लङ्कोर जाने के लिए करीब 17.18 हजार फीट की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। चढ़ाई के बाद उतराई इतनी कठिन न थी, परंतु लेखक को लगा कि वह जिस घोड़े पर सवार है, कदाचित् वह चढ़ाई की थकान के कारण धीरे उतराई कर रहा है। जब लेखक जोर देने लगा तो घोड़ा और सुस्त पड़ गया। यहीं कारण था कि लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से पिछड़ गया।
4. लेखक ने शेकर विहार में सुमति का उनके यजमान के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
उत्तर – लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमान के पास जाने से रोका परंतु दूसरी बार उन्होंने सुमति को इसलिए नहीं रोका क्योंकि लेखक वहाँ एक सुंदर मंदिर में पहुँच गए थे जहाँ पर उन्हें ‘बुद्धवचन – अनुवाद’ की 103 हस्तलिखित पोथियाँ रखी मिली थीं। लेखक का साहित्यकार मन उन पोथियों को देखकर अपनी ज्ञान-पिपासा शांत करने के लिए व्यग्र हो उठा। वह उन पोथियों का अध्ययन करने में जुट गए ।
5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? 
उत्तर – अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान लेखक को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि प्रथम उन्हें ठहरने का उचित स्थान भद्र वेश में होने पर भी नहीं मिला क्योंकि वहाँ के लोग वेशभूषा देखकर व्यक्ति के प्रति धारणा बनाया करते थे। फिर आगे लेखक थोङ्ला की कथानक पहाड़ियों में से गुजरे जहाँ हथियार कानून न होने के धारण उन्हें काफी भय लगा । इस प्रकार लङ्कोर के मार्ग में लेखक अपने अन्य साथियों से बिछड़ गया। शाम को फिर वह सुमति से मिला जहाँ उसे उसके क्रोध का सामना करना पड़ा।
6. प्रस्तुत यात्रा वृत्तांत के आधार पर बताइए की उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?
उत्तर – तिडरी एक विशाल मैदान में स्थापित था, जो पहाड़ियों से घिरा एक टापू के समान लगता था। वहाँ की सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था लेखक को आकर्षित करती है। वहाँ के लोग सुमति से भावात्मक रूप से जुड़े थे । तिड़ी वासी बोधगया से लाए कपड़े खत्म होने पर उसे फेंकते नहीं बल्कि बोधगया का गंडा ( मंत्र पढ़कर गाँठ लगाया हुआ धागा या कपड़ा) बना लेते थे। फिर इन गंडों को लोगों में बाँटने की परंपरा भी देखी जा सकती है। सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से तिब्बत की जमीन जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का अधिकतर हिस्सा मठों (विहारों) के हाथों में है। अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती स्वयं भी कराता है जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाया करते हैं। खेती का इंतजाम देखने के लिए भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर आदमियों के लिए राजा से कम नहीं।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी तिी निवासी काफी समृद्ध हैं क्योंकि वहाँ एक मंदिर में ‘बुद्धवचन अनुवाद की 103 हस्तलिखित पोथियाँ प्राप्त होती हैं, जो मोटे अक्षरों में कागजों पर लिखी हुई थी। एक-एक पोथी 15.15 सेर से कम की न थी।
7. तिब्बत में जमीन की क्या स्थिति है ?
उत्तर – तिब्बत में जमीन का अधिकतर भाग छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटा है। इन जागीरों का काफी हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी कराता है। इसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का इंतजाम देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता।
8. सुमति किसका इंतजार कर रहा था ? लेखक के देर से पहुँचने पर उसने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की ?
उत्तर – सुमति लेखक का बहुत देर से इंतजार कर रहा था। लेखक काफी देर से पहुँचा तो सुमति ने गुस्सा प्रकट किया। मंगोलों का मुँह वैसे ही लाल होता है। सुमति गुस्से में बोला— “मैने दो टोकरी कंडे फूँक डाले, तीन-तीन बार चाय को गर्म किया। लेकिन वस्तुस्थिति जानते ही वह ठंडा पड़ गया।
9. यात्रा – वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य / शहर से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर – तिब्बत पहाड़ी प्रदेश है। यह समुद्र तट से सोलह-सत्रह हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इसके रास्ते ऊँचे-नीचे और बीहड़ हैं। पहाड़ों के अंतिम सिरों और नदियों के मोड़ पर खतरनाक सूने प्रदेश बसे हुए हैं। यहाँ मीलोंमील तक कोई आबादी नहीं होती। दूर तक कोई आदमी नहीं दिखाई पड़ता। एक ओर हिमालय की बर्फीली चोटियाँ दिखाई पड़ती हैं, दूसरी ओर ऊँचे-ऊँचे नंगे पहाड़ खड़े हैं। तिङ्ग्री नामक स्थान तो अद्भुत है। इसमें एक विशाल मैदान है जिसके चारों ओर पहाड़ ही पहाड़ हैं और बीचोंबीच भी एक पहाड़ी है। इस पहाड़ी पर एक मंदिर है, जिसे पत्थरों के ढेर, जानवरों के सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया है।
10. भारत की तुलना में तिब्बती महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालें। 
उत्तर – भारत की तुलना में तिब्बती महिलाओं की स्थिति अधिक सुरक्षित कही जा सकती है। भारतीय महिलाएँ पुरुषों से परदा करती हैं। वे किसी अपरिचित को अपने घर में घुसने की अनुमति नहीं देतीं। उनके घर के अंदर तक जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। कारण यह है कि वे स्वयं को असुरक्षित अनुभव करती हैं। तिब्बत की महिलाएँ न तो परदा करती हैं और न किसी अपरिचित से भयभीत होती हैं। बल्कि वे सहज रूप से उन पर विश्वास करके उनका स्वागत ही करती हैं।
11. लेखक को भिखमंगे का वेश बनाकर यात्रा क्यों करनी पड़ी ? 
उत्तर – तिब्बत के पहाड़ों में लूटपाट और हत्या का भय बना रहता है। अधिकतर हत्याएँ लूटपाट के इरादे से होती थीं। लेखक ने डाकुओं से सुरक्षित होने का यह उपाय किया। उसने भिखमंगे का वेश बनाया। जब भी कोई संदिग्ध आदमी सामने आता, वह ‘कुची-कुची’ (दया-दया) ‘एक पैसा’ कहकर भीख माँगने लगता। इस प्रकार उसने अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए भिखमंगे का वेश अपनाया।
12. ‘नम्से’ कौन था ? उसकी चारित्रिक विशेषता पर प्रकाश डालें।
उत्तर – ‘नम्से’ बौद्ध भिक्षु था। वह शेकर विहार नामक जागीर का प्रमुख भिक्षु था। अन्य प्रबंधक भिक्षुओं के समान उसका जागीर में खूब मान-सम्मान था। नम्से बहुत ही भद्र पुरुष था । उसमें अधिकारी या प्रबंधक होने का मिथ्या अहंकार नहीं था । वह लेखक को बड़े प्रेम से मिला । यद्यपि लेखक की वेशभूषा भिखमंगे जैसी थी। फिर भी नम्से ने उसके साथ प्रेमपूर्वक बातें कीं।

श्यामाचरण दुबे

उपभोक्तावाद की संस्कृति

1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – लेखक का कहना है कि उपभोक्तावाद के दर्शन ने आज सुख की परिभाषा बदल दी है। आज के समय में बढ़ते हुए उत्पादों का भोग करना ही सुख कहलाता है। दूसरे शब्दों में जिन उत्पादों से हमारी इच्छा पूर्ति होती है, उस इच्छा पूर्ति को सुख कहते हैं । लेखक का कहना है कि उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम अपने चरित्र को भी बदल रहे हैं ।
2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ?
उत्तर – आज की उपभोक्तावादी संस्कृति सामान्य व्यक्ति के दैनिक जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। आज हम विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं। हम उसकी गुणवत्ता को नहीं देखते हैं। संपन्न वर्ग की होड़ करते हुए सामान्य जन भी उसे पाने के लिए लालायित दिखाई देता है। दिन-प्रतिदिन परंपराओं में गिरावट आ रही हैं, आस्थाएँ समाप्त होती जा रही हैं। आधुनिकता के झूठे मानदंडों को अपना रहे हैं। अंधी प्रतिस्पर्धा में अपनी वास्तविकाता को खोकर दिखावेपन को अपनाते जा रहे हैं। विज्ञापन के सम्मोहन में फँस कर हम उसके वश में होते जा रहे हैं।
3. गाँधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है ? 
उत्तर – गाँधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि दिखावे की संस्कृति के फैलने से सामाजिक अशांति और विषमता बढ़ती जा रही है। हमें अपने समाज में स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभाव बनाए रखने होंगे। यदि ऐसा न किया गया तो हमारी सामाजिक नींव हिल जाएगी। उपभोक्ता संस्कृति हमारे लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।
4. गाँधी जी ने उपभोक्तावादी संस्कृति को देखकर क्या कहा था ? 
उत्तर – गाँधी जी ने कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजे-खिड़की खुले रखें, पर अपनी बुनियाद पर कायम रहें। उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है। यह एक बड़ा खतरा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।
5. फैशन के मामले में पुरुष भी पीछे नहीं हैं। कैसे ?
उत्तर – सामान्यतः फैशन का संबंध महिलाओं से जोड़ा जाता था, पर अब इस दौड़ में पुरुष भी पीछे नहीं हैं। पहले पुरुषों का काम साबुन और तेल से चल जाता था पर अब उन्हें आफ्टर शेव लोशन, कोलोन तथा परफ्यूम आदि सभी कुछ चाहिए । घड़ी भी अब समय वाली नहीं रह गई है, यह हैसियत जताने वाली हो गई है।
6. टूथपेस्टों के बारे में क्या-क्या बताया जाता है ?
उत्तर – कोई टूथपेस्ट दाँतों को मोती सा चमकीला बनाता है तो कोई मुँह की दुर्गंध हटाने वाला बताया जाता है। किसी पेस्ट में मैजिक वाला फार्मूला तो कोई ऋषि-मुनियों द्वारा स्वीकृत खनिज तत्वों के मिश्रण से बना है। पेस्ट अच्छा है तो ब्रुश भी अच्छा होना चाहिए ।
7. “जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।” आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि आज हम वस्तु की गुणवत्ता को न देखकर, विज्ञापन की चमक-दमक में फँस जाते हैं तथा संपन्न वर्ग की देखा-देखी हम भी उन्हें पाने के लिए लालायित रहते हैं। परिणामस्वरूप उस उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम आज के माहौल में ढ़लते जा रहे हैं ।
8. “प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यस्पद ही क्यों न हो।” आशय स्पष्ट करें । 
उत्तर – कहने का आशय है कि संपन्न और प्रतिष्ठित व्यक्ति कोई भी काम कर सकता है। वह उसके व्यक्तित्व को निखारे में मदद करता है। लेकिन वही काम किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो वह हँसी का पात्र बन जाता है ।
9. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी०वी० पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं, क्यों ?
उत्तर – विज्ञापनों का रूप अत्यंत सम्मोहक होता है। हम इसके आकर्षण जाल में उलझ ही जाते हैं। व्यक्ति अपनी आवश्यकता को देखकर नहीं, विज्ञापन के वशीभूत होकर उस वस्तु को खरीदने के लिए बेचैन हो जाता है। उसे लगता है कि इस चीज की उसे भी जरूरत है, भले ही वह चीज हमारे लिए उपयोगी न हो। विज्ञापन का मोहजाल ऐसा ही चमत्कारी है।
10. आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होना चाहिए या उसका विज्ञापन ? तर्क के साथ स्पष्ट करें।
उत्तर – हमारे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होना चाहिए, न कि उसका विज्ञापन |
प्रायः विज्ञापन में लुभावनी प्रतीत होने वाली चीजें बेकार ही निकलती हैं। गुणवत्ता वाली वस्तु तो बिना विज्ञापन के भी खूब बिकती हैं। कम गुणवत्ता वाली चीज का ज्यादा आकर्षक विज्ञापन करके उसे बेचने का प्रयास किया जाता है। विज्ञापन के वशीभूत होकर खरीदी चीज से हमें प्रायः पछताना पड़ता है।
11. पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति पर विचार व्यक्त करें ।
उत्तर – इस पाठ में दिखावे की संस्कृति पर कटाक्ष किया गया है। दिखावे की इस संस्कृति ने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच दूरी को बढ़ाया है। लोगों की सामाजिक सरोकारों में कमी आती जा रही है। इस बढ़ते अंतर ने लोगों में आक्रोश और अशांति को बढ़ाया है। इससे दिखावे की प्रवृत्ति पर शीघ्र नियंत्रण करना होगा अन्यथा हमारी मूल संस्कृति की नींव हिल जाएगी। यह संस्कृति भोग को बढ़ावा दे रही है जो हमारी भारतीय संस्कृति से मेल नहीं खाती।
12. आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाज और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखें।
उत्तर – आज की उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों के स्वरूप को बदलकर रख दिया है, अब हम रीति-रिवाजों को उतनी तत्परता के साथ नहीं निबाहते जैसा पहले करते थे। अब हम स्वार्थी होते जा रहे हैं। ये रीति-रिवाज हमें उत्साहित नहीं करते । इसी प्रकार त्योहारों के प्रति भी हमारे दृष्टिकोण में अंतर आ गया है। अब त्योहार मनाना एक रस्म निभाने जितना रह गया है। अब हम त्योहारों के आने की प्रतीक्षा नहीं करते। इस सब का कारण है कि बदली हुई मानसिकता। अब हम स्वार्थ केंद्रित होते चले जा रहे हैं। सामाजिक सरोकारों के प्रति हमारी रुचि घटती चली जा रही है। यह प्रवृत्ति घातक है। इससे हम अपनी जड़ों से हट जाएँगे । मेरा अपना अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। अपने आस-पास के वातावरण में मैं रीति-रिवाजों और त्योहारों के प्रति कोई उत्साह नहीं देखता।
13. उपभोक्तावादी की संस्कृति में विज्ञापनों की क्या भूमिका है। स्पष्ट करें।
उत्तर – उपभोक्तावादी की संस्कृति में विज्ञापन सेना का काम करते हैं। वे उपभोक्तावाद को भड़काते हैं। नकली माँग खड़ी करते हैं। लोगों की लालच बढ़ाते हैं जिससे वे न चाहते हुए भी वस्तुएँ खरीदते और भोगते चले जाते हैं। हर विज्ञापन वस्तुओं को नए ढंग से पेश करता है। इससे उपभोक्ता को पुरानी वस्तु बेकार लगने लगती है। पेस्ट या साबुन को ही लें। इनके विभिन्न प्रकार उपभोक्ता को पागल बना डालते हैं।
14. संस्कृति की नियंत्रक शक्तियाँ कौन-सी हैं, जो क्षीण हो चली हैं ? 
उत्तर – भारतीय संस्कृति की नियंत्रक शक्तियाँ हैं- भारतीय धर्म, परंपराएँ तथा आस्थाएँ। आज इन्हीं पर से विश्वास उठ गया है। आज न तो धर्म पर विश्वास रहा है, न मंदिर पर, न पुजारी पर और संन्यासी पर। इस कारण पुरानी परंपराएँ और आस्थाएँ खंडित हो चली हैं। लोग अब इनके अनुसार नहीं चलते, बल्कि पश्चिम से आई उपभोक्तावादी संस्कृति के अनुसार चल रहे हैं।
15. भारत की सांस्कृतिक अस्मिता किस कारण नष्ट हो रही है ? 
उत्तर – भारत की सांस्कृतिक अस्मिता का अर्थ है- भारत की सांस्कृतिक पहचान। यह पहचान उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रसार के कारण नष्ट हो रही है। भोगवाद में पड़ने के कारण भारतीय लोग अपना धर्म, अपनी परंपराएँ, अपनी नैतिक विशेषताएँ और मर्यादाएँ खो रहे हैं। वे भारतीयता छोड़कर ‘उन्नत इनसान’ बनने की होड़ में पड़ गए हैं।

जाबिर हुसैन

साँवले सपनों की याद

1. किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी-प्रेमी बना दिया ?
उत्तर – जब पहली बार उनकी एयरगन से एक नील कंठ की गोरैया घायल हुई तब से सालिम अली के जीवन की दिशा बदल गई। वे करुणा से भर उठे । वे पक्षी प्रेमी बन गए एवं उनके परीक्षक बन गए ।
2. सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित खतरों का चित्र खींचा तो उनकी आँखें नम क्यों हो गई थीं ?
उत्तर – सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सामने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यह कहा कि एक दिन केरल की साइलेंट बैली रेगिस्तान के हवा के झोंकों से तहस-नहस हो जाएगी। जब प्रकृति से उनका भावात्मक संबंध जोड़ा, तब उनकी आँखें नम हो गई ।
3. लॉरेंस की पत्नी फ्रीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि “मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है ?”
उत्तर – सालिम अली ने अपनी आत्म-कथा का नाम रखा था ‘फाल ऑफ अ स्पैरो । मुझे याद आ गया, डी०एच० लॉरेंस की मौत के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अनुरोध किया कि वह अपने पति के बारे में बताये तो उसने कहा- “मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ लिखना असंभव-सा है। मुझे महसूस होता है, मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती हैं। मुझसे भी ज्यादा जानती है। वो सचमुच खुला खुला और सादा- दिल आदमी थे । वह जानती थी कि वे पक्षियों से प्रेम करते थे ।
4. “साँवले सपनों की याद” पाठ में लेखक ने सालिम अली के व्यक्तित्व का जो चित्र खींचा है उसे अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर – लेखक जाबिर हुसैन ने सालिम अली के व्यक्तित्व का चित्र खींचते हुए बताया है कि सालिम अली प्रकृति को प्रकृति की नजर से देखते थे। सुख-दुःख के समन्वय से युक्त जीवन अनुभव की गहनता को लिए हुए थे। उम्र ज्यादा होने के कारण शरीर दुबला हो गया था किंतु आँखों की रोशनी ज्यों-की-त्यों थी। उन्होंने अपने लिए कड़ी मेहनत से प्रकृति की हँसती-खेलती दुनिया अपनाया था। वे एकांत क्षणों दूरबीन लेकर प्रकृति को निहारते रहते थे। अपने अनुभवों के बल पर उन्हें प्रकृति और प्राणियों के संरक्षण की चिंता रहती थी। पक्षियों से उन्हें विशेष लगाव था । वे स्वाभाविक जीवन से जुड़े व्यक्तित्व थे। पक्षियों के विषय में नई-नई जानकारियाँ पाने की इच्छा ने उन्हें भ्रमणशील और यायावर बना दिया था। निष्कर्ष रूप में हम यही कह सकते हैं कि सालिम अली प्रकृति-प्रेमी, और अपना सम्पूर्ण जीवन प्रकृति की खोज के नए-नए रास्तों पर समर्पित करने वाले व्यक्ति थे ।
5. “साँवले सपनों की याद शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी करें ।
उत्तर – प्रत्येक रचना का अपना एक शीर्षक होता है और वह शीर्षक उसकी कथा वस्तु या भाव पर निर्भर होता है। प्रस्तुत संस्मरण लेखक जाबिर हुसैन ने सालिम अली की मृत्यु से उत्पन्न दुख और अवसाद को व्यक्त करने के लिए लिखा है। उनकी दुखद स्मृति अब धुंधले सपने के समान लगती है। अतः ‘साँवले सपनों की याद’ शीर्षक पूर्णतः सार्थक है।
6. “साँवले सपनों की याद पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तर – ‘साँवले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
(क) उन्होंने हिन्दी के साथ-साथ उर्दू के शब्दों का अत्यधिक प्रयोग किया है।
(ख) वर्ड वाचर, साइलेंट वैली जैसे अंग्रेजी शब्दों का अत्यधिक प्रयोग किया है ।
(ग) भाषा वेगवती नदी की तरह बहती हुई प्रतीत होती है।
(घ) भावाभिव्यक्ति की शैली दिल को छूती है ।
7. सालिम अली का अन्य पक्षी प्रेमियों से टकराव का क्या कारण था ?
उत्तर – सालिम अली अन्य किसी की बात को आँख मींचकर स्वीकार नहीं करते थे चाहे वह कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो। वह पर्यवेक्षण के परिणामों की बार-बार जाँच करते थे। इससे उनके विचारों एवं राय को अधिक माना जाने लगा। इसी कारण कई बार उनका टकराव वरिष्ठ पक्षी प्रेमियों से हो गया ।
8. सालिम अली को ‘बर्ड वाचर’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर – सालिम अली जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई अन्य हुआ हो । वे एकांत क्षणों में भी दूरबीन लिए रहते थे। वे दूर तक फैली प्रकृति मे पक्षी को खोजते तलाशते रहते थे। वे किसी न किसी नतीजे पर पहुँचकर ही दम लेते थे।
9. “वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे। आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि लॉरेंस जिस प्रकार प्रकृति और पक्षियों के बीच नैसर्गिक जीवन जी रहे थे, उसी प्रकार सालिम अली ने भी अपना जीवन प्रकृति और पक्षियों को समर्पित कर दिया था। अतः अब वे नैसर्गिक जीवन जी रहे थे ।
10. कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा ?” आशय स्पष्ट करें। 
उत्तर – इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह बताना चाह रहा है कि देह में से एक बार प्रायः निकल जाने के बाद कोई उसमें प्राय, भाव, आनंद, उत्साह का संचार वही कर सकता है। हर मुमकिन कोशिश भी वहाँ व्यर्थ है ।
11. सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे।” आशय स्पष्ट करें। 
उत्तर – इस पंक्ति में सालिम अली के प्रकृति व पक्षी प्रेम को महत्ता दी गई है और कहा गया है कि उन्होंने पक्षियों की इतनी सेवा की उन्हें इतनी बारीकी से जाना कि उन्होंने प्रकृति की दुनिया में अपनी मिसाल कायम की। वे मात्र टापू न बनकर -अथाह सागर बनकर उभरे हैं।
12. प्रस्तुत पाठ सालिम अली की पर्यावरण के प्रति चिंता को भी व्यक्त करता है। पर्यावरण को बचाने के लिए आप कैसे योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर – पर्यावरण को बचाने के लिए हम निम्नांकित योगदान दे सकते हैं
  • हम अपने पर्यावरण को कम-से-कम दूषित करें। प्लास्टिक के सामान का उपयोग न करें ।
  • कूड़ा-कचरा बाहर फेंकने की बजाय उसे जला डालें या उपयुक्त जगह पर डालें ।
  • पशुओं के साथ क्रूरता का व्यवहार न करें।
  • पशु-पक्षियों के भोजन का भी कुछ प्रबंध करें।
  • अपने आसपास हरियाली उगाएँ और उसकी रक्षा करें।
13. सालिम अली के अनुसार, मनुष्य को प्रकृति की तरफ किस दृष्टि से देखना चाहिए ?
उत्तर – सालिम अली के अनुसार, प्रकृति स्वयं में महत्त्वपूर्ण है। उसे उसी की दृष्टि से देखना चाहिए, अर्थात् हमें प्रकृति की खुशहाली और सुरक्षा की चिंता करनी चाहिए। हमें अपने सुख-विलास के लिए उसका उपयोग करने की नहीं सोचनी चाहिए ।
14. सालिम अली ने पर्यावरण संरक्षण के लिए किस रूप में भूमिका निभाई ? 
उत्तर – सालिम अली ने पर्यावरण संरक्षण के लिए निम्नांकित कार्य किए –
  • उन्होंने जीवन-भर पक्षियों के विषय में खोजें की तथा सुरक्षा के बारे में अध्ययन किए।
  • उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिलकर केरल की साइलेंट वेली के पर्यावरण को उजड़ने से रोकने की प्रार्थना की।
  • उन्होंने हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर रहने वाले पक्षियों के कल्याण के लिए कार्य किया ।

चपला देवी

नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

1. बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को कौन-कौन तर्क देकर महल की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया ?
उत्तर – बालिका मैना ने सेनापति ‘हे’ को निम्नांकित तर्क देकर महल की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया–
(क) इस जड़ पदार्थ महल ने आपका कोई अपराध नहीं किया है, अतः इसका विध्वंस नहीं होना चाहिए ।
(ख) जिन्होंने आपके विरुद्ध शस्त्र उठाए हैं, मैं भी उन्हें दोषी मानती हूँ। आप उन्हें सजा दीजिए।
(ग) यह स्थान मुझे बहुत प्रिय है ।
(घ) मैं आपकी पुत्री मेरी की सहेली हूँ। वह यहाँ आया करती थी और तब आप भी यहाँ आते थे।
2. मैना जड़ पदार्थ मकान को बचाना चाहती थी और अंग्रेज उसे क्यों नष्ट करना चाहते थे ?
उत्तर – मैना वहाँ रहती थी । वह मकान मैना को बहुत प्रिय था । अतः वह उसे बचाना चाहती थी। अंग्रेज उसे नष्ट कर देने पर तुले हुए थे क्योंकि वह नाना साहब का निवास स्थान था और अंग्रेज नाना साहब पर बहुत क्रोधित थे। अंग्रेज हर उस चीज को नष्ट कर देना चाहते थे जिसका संबंध नाना के साथ था ।
3. सर टामस ‘हे’ के मैना पर दया भाव दिखाने के क्या कारण थे ?
उत्तर – पहले तो सर टामस ‘हे’ नाना के महल को तोड़ना चाहते थे, पर बाद में वे नाना की पुत्री मैना पर दया भाव दिखाने लगे। इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किए। इसका कारण यही था कि मैना उनकी मृत पुत्री मेरी की सहेली थी। उसका मैना के साथ प्रेम संबंध था। मेरी उस मकान में आती-जाती रहती थी। खुद ‘हे’ भी वहाँ बराबर आते थे। वे मैना को अपनी पुत्री के समान प्यार करते थे। मैना के पास अभी तक मेरी के हाथ से लिख चिट्ठी सुरक्षित थी। इन सब बातों से जनरल ‘हे’ भावुक हो उठे होंगे और उन्होंने मैना पर दया भाव दिखाने का निश्चय किया होगा ।
4. मैना की अंतिम इच्छा थी कि वह उस प्रासाद के ढेर पर बैठकर जी भरकर रो ले लेकिन पाषाण हृदय वाले जनरल ने किस भय से उसकी इच्छा पूर्ण न होने दी?
उत्तर – मैना का उस महल के साथ बहुत लगाव था । उसे उसके सामने ही नष्ट कर दिया गया था। वह उस खंडहर प्रासाद के ढेर पर बैठकर रो लेना चाहती थी और उसने इसके लिए इजाजत भी माँगी । पर पाषाण हृदय जनरल आउटरम ने उसकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं होने दी। जनरल को भय था कि उसकी जरा-सी ढील से अंग्रेज सरकार नाराज हो सकती है। ब्रिटिश पार्लियामेंट का ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ इस पर नजर रखे हुए था । वे नाना साहब की किसी भी बात के मामले में जरा भी चूक को गंभीरता से लेते थे। जनरल आउटरम को इसकी सजा भुगतनी पड़ सकती थी ।
5. बालिका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं ? वर्णन करें ।
उत्तर – (क) साहस – बालिका मैना साहसी है । वह अंग्रेज जनरल से तनिक भी भयभीत नहीं होती
(ख) तर्कशील – बालिका मैना तर्क करना खूब जानती है। वह जनरल ‘हे’ के सम्मुख खूब तर्क करती है और उसे प्रभावित भी कर लेती है।
(ग) भावुक- बालिका मैना भावुक है। वह अपने निवास स्थान के प्रति विशेष लगाव रखती है और उसे हर कीमत पर बचाना चाहती है।
(घ) आत्मबलिदानी- मैना कानपुर के किले में अपना अमर बलिदान दे देती है।
6. लार्ड केनिंग के तार में क्या हिदायत दी गई थी ? उस पर किसने क्या कार्यवाही की ?
उत्तर – तार में लिखा था- “लंदन के मंत्रिमंडल का यह मत है कि नाना की स्मृति चिह्न तक मिटा दिया जाए। इसलिए वहाँ की आज्ञा के विरूद्ध कुछ नहीं हो सकता।” उसी क्षण क्रूर जनरल आउटरम की आज्ञा से नाना साहब के सुविशाल राजमंदिर पर तोप के गोले बरसने लगे। घंटे भर में वह महल मिट्टी में मिला दिया गया।
7. इस पाठ में किस घटना का वर्णन किया गया है ?
उत्तर – सन् 1857 के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब कानपुर में असफल होने पर जब भागने लगे तो वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। देवी मैना बिठुर में पिता के महल में रहती थी, पर विद्रोह दमन करने के बाद अंग्रेजों ने बड़ी ही क्रूरता से उस निरीह और निरपराध देवी को अग्नि में भस्म कर दिया। उसका रोमांचकारी वर्णन पाषाण हृदय को भी एक बार द्रवीभूत कर देता है।
8. अंग्रेज सेना ने बिठूर का राजमहल तोड़ने का निश्चय क्यों किया ? 
उत्तर – 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में कानपुर में अनेक अंग्रेज मारे गए थे। अंग्रेज सेनाधिकारी इस हत्याकांड से कुपित थे। लंदन की सरकार भी बदले की भावना से जल रही थी । अतः तत्कालीन ब्रिटिश सरकार का आदेश था कि जिस नाना साहब की प्रेरणा से यह हत्याकांड हुआ है उनका सर्वनाश कर दिया जाए। उसकी एक-एक निशानी नष्ट कर दी जाए। उसके सगे-संबंधियों को भी मार डाला जाए। इसलिए उनके बिठूर वाले राजमहल को तोड़ दिया गया ।
9. मैना और सेनापति ‘हे’ में भावनात्मक रिश्ते कैसे बने ? 
उत्तर – मैना सेनापति ‘हे’ की पुत्री मेरी की बाल सखी थी। दोनों का आपस में गहरा प्रेम था। मेरी उसके महल में कई बार आ चुकी थी। ‘हे’ भी उसके घर आए थे। तब वे मैना को पुत्री के समान मानते थे । ‘हे’ इस बात को भूले हुए थे तथा मैना को नहीं पहचान पा रहे थे। जैसे ही मैना ने ‘हे’ को अपना परिचय दिया तथा मेरी के साथ अपने प्रेम की याद दिलाई, ‘हे’ को मृत ‘मेरी’ की याद आ गई। उनके मन में ममता जाग गई। उन्हें फिर से लगा कि मैंना उनकी बेटी के समान है। इस प्रकार दोनों में भावनात्मक रिश्ते बन गए ।
10. सेनापति ‘हे’ ने मैना तथा राजमहल को बचाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए ? 
उत्तर – सेनापति ‘हे’ ने मैना तथा उसके राजमहल को बचाने के लिए निम्नांकित प्रयास किए –
  • उन्होंने जनरल अउटरम से विनती की कि मैना तथा विठूर के राजमहल को बचा लिया जाए।
  • उन्होंने जनरल लार्ड केनिंग को इस विषय में तार-संदेश भिजवाया ।
11. मैना की अंतिम इच्छा क्या थी जिसे अंग्रेज जनरल पूरा न कर सके ? 
उत्तर – मैना की अंतिम इच्छा यह थी कि वह अपने टूटे हुए राजमहल पर बैठकर थोड़ी देर के लिए रो लेना चाहती थी जिससे कि उसका दिल हलका हो जाए। परंतु पत्थर दिल अउटरम ने उसकी इस छोटी-सी इच्छा को भी पूरा न किया। उसने मैना को तुरंत हथकड़ी डालकर गिरफ्तार कर लिया।

हरिशंकर परसाई

प्रेमचंद के फटे जूते

1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं ? 
उत्तर – हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया हैउससे ज्ञात होता है कि प्रेमचंद सरल, सहज, सारे व्यक्तित्व वाले हैं। वे दिखावे की प्रवृति से परे यथार्थ के पक्षधर दिखाई देते हैं ।
2. “प्रेमचंद के फटे जूते” नामक व्यंग्य पाठ में आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर – प्रस्तुत व्यंग्य को पढ़ने के बाद लेखक की कई बातें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। लेखक पारखी नजर रखता है। वह प्रेमचंद की फोटो देखकर यह अनुमान लगा लेता है कि ऐसा व्यक्तित्व दिखावे से कोसों दूर है। उसे प्रेमचंद के चेहरे पर लज्जा, संकोच की जगह बेपरवाही और विश्वास दिखाई देता है । वह प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान को व्यंग्य कहता है ।
उनके द्वारा फोटो का महत्त्व समझाने की बात भी आकर्षित करती है। आज लोग उधार माँगकर अपने जीवन के अहम् कार्यों को करते हैं। लोग इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाना चाहते हैं ।
लेखक द्वारा दिखावे में विश्वास रखने की बात भी आकर्षित करती है। वे स्वयं दुख उठाते हुए भी दूसरों को उसका आभास भी नहीं होने देना चाहते हैं ।
3. पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?
उत्तर – ‘टीला’ रास्ते की रुकावट का प्रतीक है। जैसे बहती नदी में खड़ा कोई टीला सारे बहाव को रोक देता है, उसी भाँति अनेक बुराइयाँ, कुरीतियाँ और भ्रष्ट आचरण जीवन की सहज गति को बाधित कर देते हैं । इस पाठ में ‘टीला’ शब्द का प्रयोग शोषण, अन्याय छुआछूत, जाति-पाँति, महाजनी सभ्यता आदि बुराइयों के लिए हुआ है ।
4. लोग फोटो को अधिक सुंदर क्यों बनाना चाहते हैं ?
उत्तर – लोग दुनिया के सामने अपने आपको अति सुंदर और भला दिखाना चाहते हैं इसलिए जब वे अपना फोटो खिंचवाते हैं तो पूरी तरह जँचकर आते हैं। फोटो के लिए कपड़े, जूते उधार माँगने पड़े तो उधार ले आते हैं, अर्थात् लोग स्वयं को जैसे हैं, वैसे स्वीकार न करके, उससे सुंदर दीखना चाहते हैं ।
5. लेखक ने प्रेमचंद के जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है ?
उत्तर – लेखक के अनुसार, प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों पर जोर-जोर से ठोकरें मारीं । उन्होंने कुरीतियों से बचने की कोशिश नहीं की। इस कारण उनके जूते फट गए। आशय यह है कि समाज की बुराइयों से संघर्ष के कारण उन्हें समाज से धन-वैभव नहीं मिल पाया । श्रीमानों ने उनका समर्थन नहीं किया। यदि वे धनी लोगों को प्रसन्न करने के लिए लिखते थे तो उन्हें धन-वैभव अवश्य मिलता।
6. प्रेमचंद और होरी की किस कमजोरी को रेखांकित किया गया है ?
उत्तर – इस पाठ में प्रेमचंद और होरी की एक ही कमजोरी बताई गई है। वे दोनों अपने नेम धरम के पक्के थे। उन्होंने कभी अपनी नैतिकता और मर्यादा नहीं छोड़ी। समाज ने उन पर कितने अत्याचार किए, उनकी उपेक्षा की, फिर भी वे अपने पथ पर अडिग रहे। उन्होंने अपनी सादगी, भलाई और सज्जनता नहीं त्यागी। इस कारण वे जीवन-भर अभावग्रस्त रहे।
7. “जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर – टोपी सिर पर अर्थात् इज्जत के स्थान पर पहनी जाती है। वह मान-सम्मान का प्रतीक है, जबकि जूता पैरों में पहना जाता है। वह दिखावे का प्रतीक है। दिखावा सदैव इज्जत, मान-सम्मान से ज्यादा हावी रहा है। इसलिए लेखक ने कहा कि जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। आज जूते कि कीमत और बढ़ गई है अर्थात् दिखावे, प्रदर्शन की भावना और ज्यादा बढ़ गई है। आज इज्जत की कोई महत्ता नहीं रही है। अतः यहाँ दिखावे की प्रवृति पर व्यंग्य किया गया है।
8. “तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं। इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर – पर्दा दिखावे का प्रतीक है, झूठी शान का प्रतीक है। अतः लेखक ने कहा है कि तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते अर्थात् व्यवहारिकता नहीं जानते। हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं अर्थात् हमें दिखावे और व्यवहार की ही भाषा आती है।
9. “जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो ?” इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर – इन पंक्तियों में लेखक प्रेमचंद के व्यक्तित्व के अनुरूप बताता है कि प्रेमचंद को जिन दिखावे वाले, झूठी शान वाले, कृत्रिम व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों से खार जाते हैं, चिढ़ते हैं उन्हें डाँटने, प्रताड़ित करने के लिए मानो अपने फटे-जूते से अँगुली दिखाकर, उन्हें चिढ़ा रहे हैं, उन पर व्यंग्य कस रहे हैं।
10. आप की दृष्टि में वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ? 
उत्तर – आज लोग वेशभूषा पर सर्वाधिक ध्यान देने लगे हैं। उनके अनुसार व्यक्ति की पहचान वेशभूषा से ही होती है। अब गुणों की कद्र न होकर, वेशभूषा की कद्र होती है। लोग अच्छी वेशभूषा पर अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च करते हैं और झूठी शान दिखाते हैं।
11. प्रेमचंद सहज जीवन में विश्वास रखते थे। सिद्ध करें।
उत्तर – प्रेमचंद सहज जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वे अंदर और बाहर की वेशभूषा में भी अंतर नहीं करते थे। वे अपनी गरीबी, फटेहाली और दुर्दशा को स्वीकार कर चूके थे। उसे छिपाना या उससे दूर हटना उनके स्वभाव में नहीं था। इसलिए उन्होंने फोटो खिंचवाते समय भी बनावटी वेशभूषा धारण करने का प्रयत्न नहीं किया ।
12. प्रेमचंद की व्यंग्य-मुस्कान लेखक को क्यों कचोटती है ?
उत्तर – प्रेमचंद के चेहरे की व्यंग्य-भरी मुसकान लेखक को इसलिए कचोटती है क्योंकि लेखक ने भी अपनी फटेहाल को ढँकने की कोशिश की । इस कारण उसके जूते के तलवे घिसते रहे और पाँव चलने योग्य न रहे। आशय यह है कि लेखक ने समाज द्वारा मिले दुख-दर्द को खुलकर प्रकट करने की बजाय उसे छिपाने की कोशिश की। इस कारण उसका आत्मबल क्षीण हो गया । प्रेमचंद ने मानो इस आत्मबल की कमी को पहचान लिया। इस कारण प्रेमचंद की व्यंग्य-मुसकान उसे और अधिक कचोटती है।

महादेवी वर्मा

मेरे बचपन के दिन

1. लेखिका के जन्म के पूर्व लड़कियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर – लेखिका के जन्म के पूर्व लड़कियों की दशा काफी शोचनीय थी। उस समय लड़कियों के जन्म पर उनकी हत्या कर दी जाती थी व उन्हें ‘परमधाम’ भेज दिया जाता था। उस समय लड़कियों के प्रति सामाजिक नियम काफी कठोर थे। उन्हें शिक्षा के समान तो क्या किंचित अवसर प्रदान भी नहीं किए जाते थे। वह किसी प्रकार के कार्यों में स्वतंत्र होकर भाग नहीं ले सकती थीं। उनके विकास के संबंध में सामाजिक विचार काफी संकीर्ण थे |
2. लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं ?
उत्तर – लड़कियों के जन्म के संबंध आज परिस्थितियाँ काफी बदल चुकी हैं। आज लड़कियों व लड़कों में सामाजिक-पारिवारिक अंतर नहीं किया जाता। उन्हें ज्ञान प्राप्ति के समान अधिकार प्रदान किए जाते हैं। रोजगार के उचित अवसर प्रदान किए जाते हैं। आज लड़कियाँ किसी भी कार्य में लड़कों से पीछे नहीं। वह उनके कंधे-से-कंधा मिलाकर समाज व देश की प्रगति में सहयोग दे रही हैं । लेखिका का उपर्युक्त कथन इस बात को प्रमाणित करता है कि आज लड़की के जन्म पर उसकी हत्या न करके उसके उज्ज्वल भविष्य के प्रयास के लिए हम उन्मुख होते हैं ।
3. लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाई ?
उत्तर – लेखिका के परिवार में उनके बाबा ही फारसी और उर्दू जानते थे। वे चाहते थे कि लेखिका भी उर्दू-फारसी सीख ले। परंतु लेखिका की न तो उसमें रूचि थी और न ही उन्हें यह लगा कि वे इसे सीख पाएँगी । एक दिन मौलवी साहब पढ़ाने आए तो वे चारपाई के नीचे छीपी। उसके बाद वे नहीं आए। इस तरह लेखिका उर्दू-फारसी नहीं सीख पाई ।
4. लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर – लेखिका की माता सुसंस्कृत एवं सभ्य विचारों से सम्पन्न महिला थीं जो पूजा-पाठ एवं नैतिक आचार-विचार से संपन्न थीं। उन्होंने लेखिका को भी नैतिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से ‘पंचतंत्र’ की कहानियाँ पढ़ने हेतु प्रेरित किया। वे लेखिका को विदुषी बनाना चाहती थीं क्योंकि स्वयं वे भी (लेखिका की माता) लेख लिखा करती थी। संगीत -विद्या का भी उन्हें ज्ञान था क्योंकि वह मीरा के पद विशेष रूप से गाया करती थीं। इसके उनकी संगीत के प्रति रुचि व ईश्वर प्रेम का पता चलता है । प्रातः समय ईश्वर भक्ति के भजन गाया करती थीं । संध्या समय भी ईश्वर पूजा के नाम पर मीरा के पद दोहराया करती थीं। अपनी माता से सीखते हुए लेखिका ने भी ब्रज भाषा में लिखना आरंभ किया ।
5. जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है ?
उत्तर – जवारा के नवाब के साथ महादेवी वर्मा के पारिवारिक संबंध सगे-संबंधियों से भी अधिक बढ़कर थे । जवारा की बेगम ने ही इनके भाई का नामकरण भी किया । वह हर त्योहार पर उनके साथ घुलमिल जाती थी। ऐसे आत्मीय संबंधों की आज के समय में कल्पना भी नहीं की जा सकती। आजकल तो हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे के दुश्मन ही बने हुए हैं ।
6. महादेवी वर्मा की काव्य- प्रेरणा क्या थी ?
उत्तर – महादेवी वर्मा को कविता लिखने की प्रेरणा माँ से मिली। उनकी माता धार्मिक भजन लिखा भी करती थीं और गाया भी करती थीं। यहीं से उन्हें ब्रज भाषा में लिखने की प्रेरणा मिली। जब वे क्रास्थवेट कॉलेज, इलाहाबाद में भरती हुई तो वहाँ उनका परिचय प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान से हुआ। दोनों के साथ-साथ रहने से उनका काव्य लिखने का उत्साह बढ़ता चला गया। वे कवि-सम्मेलनों में जाने लगीं। अपनी रचनाएँ ‘स्त्री-दर्पण’ नामक पत्रिका में भेजने लगीं ।
7. महादेवी के छोटे भाई के जन्म के अवसर पर ताई साहिबा ने क्या फरमाइश की ?
उत्तर – महादेवी के यहाँ जब छोटा भाई हुआ, तो ताई साहिबा ने पिताजी से कहा, ‘देवर साहब से कहो, वे मेरा नेग ठीक करके रखें। मैं शाम को आऊँगी ।’ वे कपड़े-वपड़े लेकर आईं। हमारी माँ को वे दुलहन कहती थीं कहने लगीं “दुलहन, जिनके ताई-चाची नहीं होती हैं वो अपनी माँ के कपड़े पहनते हैं, नहीं तो छह महीने तक चाची-ताई पहनाती हैं। मैं इस बच्चे के लिए कपड़े लाई हूँ। यह बड़ा सुंदर है । “
8. महादेवी किस सपने के पूरा होने पर भारत की दशा बदलने की बात कहती हैं ? 
उत्तर – महादेवी हिन्दू-मुस्लिम एकता का सपना पूरा होने की बात करती हैं। न केवल हिन्दू-मुसलमान, बल्कि वे किसी भी प्रकार के भेदभाव से रहित जीवन जीना चाहती हैं। उनका विश्वास है कि यदि ऐसा हो जाए तो भारत का नक्शा बदल सकता है। भारत हर दृष्टि से उन्नत, शांत और समृद्ध देश बन सकता है।
9. महादेवी को बचपन की कौन सी घटना याद आती है ? कटोरे को देखकर सुभद्रा ने क्या फरमाइश की ?
उत्तर – लेखिका महादेवी को बचपन की एक बार की घटना याद आती है कि एक कविता पर उन्हें चाँदी का कटोरा मिला। बड़ा नक्काशीदार, सुंदर | उस दिन सुभद्रा नहीं गई थीं। सुभद्रा प्रायः नहीं जाती थीं कवि-सम्मेलन में। मैंने उनसे आकर कहा, ‘देखो, यह मिला।
सुभद्रा ने कहा, ठीक है, अब तुम एक दिन खीर बनाओ और मुझको इस कटोरे में खिलाओ ।’
10. लेखिका ने छात्रावास में मराठी किससे सीखी ?
उत्तर – सुभद्रा जी छात्रावास छोड़कर चली गईं। तब उनकी जगह एक मराठी लड़की जेबुन्निसा महादेवी के कमरे में रहने लगी । वह कोल्हापुर से आई थी। जेबुन लेखिका का बहुत-सा काम कर देती थी । वह उसकी डेस्क साफ कर देती थी, किताबें ठीक से रख देती थी और इस तरह उन्हें कविता के लिए कुछ और अवकाश मिल जाता था । जेबुन मराठी शब्दों से मिली-जुली हिंदी बोलती थी लेखिका भी उससे कुछ-कुछ मराठी सीखने लगी थी। वहाँ एक उस्तानी जी थींजीनत बेगम ।
जेबुन तब ‘इकड़े-तिकड़े’ या ‘लोकर-लोकर’ जैसे मराठी शब्दों को मिलाकर कुछ कहती तो उस्तानी जी से टोके बिना न रहा जाता था – ‘वाह ! देसी कौवा, मराठी बोली ।
11. महादेवी के परिवार में कन्याओं के साथ कैसा व्यवहार होता था ? 
उत्तर – महादेवी के बाबा और माता-पिता कन्याओं के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते थे । बाबा ने तो कुल-देवी दुर्गा की आराधना करके महादेवी को माँगा था। माता-पिता ने भी महादेवी को खूब पढ़ाया-लिखाया, संस्कार दिए । परन्तु उनके पुरखों का कन्याओं के साथ व्यवहार ठीक नहीं था। पिछले 200 वर्षों से उनके कुल में यह कुपरंपरा थी कि कन्या को जन्म लेते ही मार दिया जाता था ।
12.  स्वतंत्रता आंदोलन में कवि सम्मेलनों का क्या योगदान था ?
उत्तर – 1917 ई० के आसपास भारत में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। कांग्रेस सारे देश को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार कर रही थी। इसी सिलसिले में हिंदी के कवि-सम्मेलन आयोजित किए जाते थे। हरिऔध, श्रीधर पाठक, रत्नाकर जैसे राष्ट्रीय कवि इन सम्मेलनों की शोभा बढ़ाते थे। इन्हीं के प्रयासों में हिंदी भाषा और स्वदेश के प्रति प्रेम जागा ।

हजारी प्रसाद द्विवेदी

एक कुत्ता और एक मैना

1. गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कहीं और रहने का मन क्यों बनाया ? 
उत्तर – गुरुदेव के शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं और जाने का मन सम्भवतः अपने खराब स्वास्थ्य के कारण बनाया होगा या फिर किसी भाव के वशीभूत होकर उन्होंने ऐसा निर्णय किया होगा ।
2. मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। 
उत्तर – मूक प्राणी मनुष्य से कम संवेदनशील नहीं होते। यह कथन उस समय स्पष्ट हुआ से जब गुरुदेव रवींद्रनाथ शांतिनिकेतन को छोड़कर श्रीनिकेतन में आकर रहने लगे थे तब उनका कुत्ता बिना किसी के कुछ बताये अपने आप ही दो मील दूर अपने स्नेह-दाता के पास पहुँच गया। जब गुरुदेव की चिताभस्म कोलकाता के आश्रम में लाई गई तब भी पता नहीं किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया आश्रमवासियों के साथ उनके निवास स्थान तक आया । वह थोड़ी देर चुपचाप उन कलश के पास बैठा जिसमें गुरुदेव की चिताभस्म थी । इस प्रकार तथ्यों से ज्ञात होता है कि मूक प्राणी भी मनुष्य से संवेदनशील नहीं हैं ।
3. गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझ पाया ?
उत्तर – सर्वप्रथम लेखक ने जब उस करुण मैना को फुदकते देखा तो उसे दुख व विषाद को वे न समझ सके किंतु रवींद्रनाथ जी उस मैना के आंतरिक विषाद तथा दुख मर्म को जानते थे और इसीलिए उन्होंने उस मैना के मौन दुख को अपनी कविता द्वारा वाणी प्रदान की। इस कविता को बाद में जब लेखक ने पढ़ा तो उस मैना की करुण मूर्ति अत्यंत स्पष्ट होकर लेखक के सामने उपस्थित हुई। तब लेखक को यह एहसास हुआ कि शायद उसने उस मैना को देखकर भी नहीं देखा। परंतु आज कविता-पाठ के उपरांत और मैना के अपार दुख व करुणा को देखकर लेखक गुरुदेव की मैना संबंधी कविता के मर्म को समझ सके।
4. रवींद्रनाथ टैगोर दर्शनार्थियों से भयभीत क्यों रहते थे ?
उत्तर – रवींद्रनाथ टैगोर दर्शनार्थियों की श्रद्धा को समझते थे। वह उनके मन को ठोस नहीं पहुँचाना चाहते थे। परंतु दर्शनार्थी समय-असमय पहुँच जाया करते थे। गुरुदेव को उनके सामने न चाहते हुए भी बैठना पड़ता था। इसलिए वे भयभीत रहने लगे।
5. कुत्ते के ‘प्राणपण आत्मनिवेदन’ को गुरुदेव ने किस रूप में लिया ? 
उत्तर – गुरुदेव ने कुत्ते के प्राणपण आत्मनिवेदन को स्वामिभक्ति के रूप में न लेकर, आध्यात्मिक महिमा के रूप में लिया। उनके अनुसार कुत्ता भक्त हृदय है । वह मनुष्य के भीतर बसी चैतन्य शक्ति को अलौकिक महिमा को अनुभव कर सकता है। इसलिए वह चुपचाप अपने अहेतुक प्रेम को उस पर समर्पित कर सकता है। यह आत्मा का आत्मा के प्रति समर्पण है। इतना समर्पण तो मनुष्य के जीवन में भी कठिनाई से उतरता है। “
6. गुरुदेव ने मैना के प्रति अपनी कविता में क्या भाव व्यक्त किए ? 
उत्तर – गुरुदेव ने कविता में कहा कि न जाने यह मैना अपने समूह से अलग क्यों रहती है ? यह दिनभर अकेले कीड़ों का शिकार करती फिरती है और निडरता से मेरे बरामदे में चहलकदमी किया करती है। न जाने यह समाज से क्यों कटी हुई है ? किस कारण यह सबसे रूठी हुई है ? यह अन्य मैनाओं के साथ मिलकर उछल-कूद या बक-झक नहीं करती। इसके हृदय में कोई-न-कोई गाँठ है। परंतु न तो इसकी आँखों में किसी के प्रति शिकायत है, न क्रोध है और वैराग्य । लगता है, यह अभागी अपने यूथ से भ्रष्ट होकर समय काट रही है।
7. “इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता । आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि एक सामान्य व्यक्ति ऊपरी आवरण को ही देख पाता है जबकि कवि अपनी दिल की गहराई को देखने वाली आँखों से मूक-प्राणी के करुणा को पहचान और समझ लेता है। बुद्धिमान होते हुए भी मनुष्य दूसरे मनुष्य के विषय में कुछ भी नहीं जान पाता है। कवि मानव में पाए जाने वाले गुणों को भाषाहीन जंतुओं में ढूँढ लेता है। कहा भी गया है कि जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।
8. रवींद्रनाथ टैगोर ‘दर्शनार्थी’ शब्द सुनकर क्यों मुसकराते थे ?
उत्तर – जब भी कोई अपरिचित व्यक्ति लेखक के साथ रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने आता था, लेखक रवींद्रनाथ को यही कहता था- ‘एक सज्जन आपके दर्शन के लिए आए हैं। हिंदी में ‘दर्शन’ करने का आशय है ‘मिलने के लिए’ । परंतु बँगला भाषा में यह शब्द अटपटा लगता था। इसका अर्थ निकलता था- ‘दर्शन करने के लिए’ यह सोचकर गुरुदेव को अपने पर तथा दर्शनार्थी पर हँसी आती थी । इसलिए वे मुसकरा पड़ते थे।
9. कुत्ता दो मील की दूरी पार करके किस प्रकार गुरुदेव के तिमंजिले मकान में पहुँच गया ?
उत्तर – गुरुदेव का कुत्ता गुरुदेव के प्रति अपार भक्ति रखता था । यह भक्ति भावना ही उसे गुरुदेव के तिमंजिले मकान की ओर खींच लाई । प्रश्न यह है कि वह बिना रास्ता जाने कैसे पहुँच गया । लेखक के अनुसार, वह अपने सहज बोध के बल पर गुरुदेव के मकान तक पहुँच गया ।
10. गुरुदेव द्वारा कुत्ते के लिए रची गई कविता में क्या भाव थे ?
उत्तर – गुरुदेव द्वारा कुत्ते के प्रति लिखी गई कविता में निम्नांकित भाव थे –
यह भक्त कुत्ता प्रतिदिन प्रातः मेरे स्नेह-स्पर्श की प्रतीक्षा में आसन के पास बैठा रहता है। मेरा स्पर्श पाकर इसका अंग-अंग आनंदित हो जाता है। मूक प्राणियों के संसार में केवल यही प्राणी मनुष्यता को पहचान सकता है तथा पूरे प्राणपण से उसके प्रति समर्पित हो सकता है। यही मनुष्यता के प्रति निस्वार्थ प्रेम कर सकता है और अपनी दीनता को व्यक्त करता रहता है। इसकी भाषाहीन करुण व्याकुलता जो कुछ समझ पाती है, उसे समझा नहीं पाती।

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