द्वितीय भाषा या अन्य भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के उद्देश्य का वर्णन करें।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – द्वितीय भाषा या अन्य भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के उद्देश्य का वर्णन करें।
उत्तर – द्वितीय भाषा या अन्य भाषा के रूप में हिन्दी भाषा शिक्षण का उद्देश्य हिन्दी ही वह भाषा है जिससे राष्ट्रीय एकता स्थापित हो सकती है। महात्मा गाँधी ने गुजराती होते हुए भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया था। दयानन्द सरस्वती जैसे सन्त ने इसे आर्य भाषा कहा। उनका कहना था कि देश में विचारों के आदान-प्रदान की भाषा हिन्दी होनी चाहिए। इस प्रकार अन्य दार्शनिकों, चिंतकों को एवं शिक्षाविदों ने जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं थी उन्होंने भी हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा माना था। इनमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, केशवचन्द सेन, सुभाष चन्द्र बोस, सुब्रह्मणयम भारती, राजगोपालाचारी, तिलक, गाँधी दयानन्द सरस्वती, लाला लाजपत राय आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण को उद्देश्य को तीन स्तरों पर निर्धारित किया जा सकता है –
क्षेत्रीय स्तर → राष्ट्रीय स्तर → अंतराष्ट्रीय स्तर
प्रत्येक स्तर पर भाषा के रूप में हिन्दी भाषा को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहाँ अनेक धर्म और सम्प्रदाय, देशी तथा विदेशी भाषाएँ प्रचलित हैं। किन्तु हिन्दी भाषा का क्षेत्र सर्वाधिक व्यापक है। इस व्यापकता को देखते हुए भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्र-भाषा का गौरवपूर्ण स्थान दिया गया परन्तु प्रादेशिक संकीर्णता के कारण सह सम्भव नहीं हो सका। राष्ट्र निर्माण और भावात्मक एकता के विकास हेतु द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी भाषा शिक्षण के प्रावधान किए गए। द्वितीय या अन्य भाषा शिक्षण के रूप में हिन्दी शिक्षण के उद्देश्यों को निम्नवत् बिन्दुवार देखें-
(1) राष्ट्रीयता का विकास – हिन्दी भाषा का प्रयोग भारत के सभी प्रदेशों में किसी न किसी रूप में किया जाता है। हिन्दी भाषा का क्षेत्र भी काफी व्यापक है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, दिल्ली आदि जहाँ हिन्दी भाषी प्रदेश हैं वहीं गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब आदि भू-भागों में भी हिन्दी भाषा किसी न किसी रूप में व्यवहत होती है। अतः राष्ट्र को एकसूत्र में बाँधने का कार्य हिन्दी भाषा द्वारा ही सम्भव है। इन्हें यों देखें
(i) देश वासियों में परस्पर विचारों के आदान-प्रदान में सहजता हेतु हिन्दी भाषा का शिक्षण आवश्यक है।
(ii) राष्ट्र के प्रति गौरव और सम्मान की भावना की जागृति हेतु हिन्दी भाषा का ज्ञान आवश्यक है।
(iii) राष्ट्रीय एकता एवं भावनात्मक एकता के विकास में हिन्दी भाषा सक्षम है।
(iv) भारत जैसे विशाल देश को जहाँ भाषायी धरातल पर अनेक विविधताएँ मौजूद हैं, हिन्दी शिक्षण द्वारा एक सूत्र में आबद्ध किया जा सकता है।
(2) सांस्कृतिक विकास- हमारा देश भारत विविधता में एकता का देश कहलाता है। इस विविधता में एकता की स्थापना दृढ़ सांस्कृतिक आधार के बिना असम्भव है। हमारी संस्कृति, विरासत और परम्पराएँ जो कि वैदिक वाड्मय में सुरक्षित हैं और जो हमारी परम्पराओं को समृद्ध बनाने में सहायक है उनका ज्ञान हिन्दी भाषा शिक्षण द्वारा ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान भी हिन्दी भाषा द्वारा ही सम्भव है। हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है। भारतीय संस्कृति का ज्ञान हिन्दी भाषा के ज्ञान द्वारा ही सम्भव है। भाषा सम्पूर्ण संस्कृति के आचरण का आधार है। अतः द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण सांस्कृतिक विकास का आधार है, जो हमारे आचरण की परिचायक है।
(3) हिन्दी साहित्य के आस्वादन हेतु द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी भाषा शिक्षण का महत्त्वपूर्ण एक उद्देश्य हिन्दी साहित्य का आस्वादन है। हिन्दी साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना में सर्वाधिक समृद्ध है। हिन्दी साहित्यकारों की एक सुदीर्घ, परम्परा रही है, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश में एकता, अखण्डता, तथा सौहार्द्र की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिन्दी भाषा ने न केवल एकता और देशप्रेम का संदेश दिया अपितु पर्यावरण, प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य की अलौकिक रसानुभूति द्वारा भावात्मक एकता एवं आत्मीयता की अभिवृद्धि में भी सहायक रही है। भक्ति साहित्य के द्वारा जहाँ हिन्दू मुस्लिम ऐक्य को स्थापित करने तथा आत्मिक शुद्धि द्वारा आध्यात्मिक विकास का सम्यक् प्रयास किया गया है, वहीं देशभक्ति की भावना का संचार भी है। हिन्दी साहित्य प्रेरक प्रसंगों, शिक्षाप्रद कहानियों तथा सरस कविताओं, नाटकों, यात्रावृतांत, संस्मरण आदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं का अकूत भण्डार है। यह रस की ऐसी धारा है, जिसमें डुबकी लगाकर न केवल पथ प्रशस्त हो सकता है अपितु आध्यात्मिक विकास द्वारा सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है, जो शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। इस प्रकार हिन्दी भाषा का ज्ञान प्राप्त अहिन्दी प्रदेश के लोग हिन्दी साहित्य को समझ सकते हैं एवं इसके, रसास्वादन का आनंद उठा सकते हैं।
(4) संपर्क भाषा – हिन्दी भाषा देशवासियों में परस्पर सम्पर्क तथा विचारों के आदान-प्रदान हेतु सशक्त भाषा है। अतः द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण का उद्देश्य विभिन्न प्रांतों के बीच सम्पर्क स्थापित करना है ताकि वे एक-दूसरे की भावनाओं से परिचित वे हो सकें।
(5) अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम – हिन्दी भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि भूमण्डलीकरण के इस दौर में तकनीकी विकास एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विभिन्न उत्पादों के प्रसार-प्रचार में हिन्दी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आज का युग विज्ञापन का युग है। अपने उत्पादों हेतु विदेशी कम्पनियाँ भी धड़ल्ले से हिन्दी का उपयोग कर रही हैं। ऐसे में हिन्दी का ज्ञान आम देशवासियों हेतु आवश्यक है।
(6) विश्व भाषा या अंतर्राष्ट्रीय भाषा – हिन्दी विश्व की दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। आज वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास ने विश्व के राष्ट्रों को एक-दूसरे के निकट ला दिया है। कोई राष्ट्र अकेला रहकर जीवित नहीं रह सकता है। इसलिए विश्व के राष्ट्रों से सम्पर्क तथा विचारों का आदान-प्रदान करना आवश्यक हो गया है। इसलिए ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है जिससे विश्व के राष्ट्र आपस में विचारों एवं नीतियों का आदान-प्रदान कर सकें।
जिस भाषा के माध्यम से एक देश दूसरे देश के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं वह भाषा अन्तर्राष्ट्रीय भाषा कहलाती है। हिन्दी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को जाता है। उन्होंने हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषाओं में स्थान दिलाया । केन्द्रीय हिन्दी संस्थान राष्ट्रीय स्तर तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासरत हैं, जिससे भारत में अहिन्दी प्रदेश के निवासी हिन्दी को सीखें। इस प्रकार द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी भाषा को सशक्त बनाना है।
(1) ज्ञानात्मक उद्देश्य – ज्ञानात्मक उद्देश्य का तात्पर्य द्वितीय भाषा के रूप में छात्रों को भाषा एवं साहित्य का ज्ञान देना है। प्रायः निम्नलिखित बातों का ज्ञान आवश्यक है –
(i) बोल-चाल की भाषा का ज्ञान,
(ii) हिन्दी साहित्य की पहचान,
(iii) राष्ट्रीयता का विकास,
(iv) सांस्कृति विकास,
(v) भाषा का मौखिक एवं लिखित ज्ञान ।
(2) कलात्मक उद्देश्य — इन उद्देश्यों का सम्बन्ध भाषा के कौशलों से है, जो इस प्रकार है-
(i) सुनकर अर्थ ग्रहण करना,
(ii) शुद्ध एवं स्पष्ट वाचन,
(iii) पढ़कर अर्थ ग्रहण करना,
(iv) बोलकर भावाभिव्यक्ति करना,
(v) लिखकर भावाभिव्यक्ति करना ।
(3) रसात्मक उद्देश्य – रसात्मक उद्देश्य का तात्पर्य छात्रों में भाषा के साहित्य के प्रति आनंद की अनुभूति पैदा करना है। हिन्दी शिक्षण के माध्यम से इसके उद्देश्य इस प्रकार हैं
(i) हिन्दी साहित्य का आस्वादन,
(ii) भाषा साहित्य के प्रति संवेदनशीलता |
(4) अभिवृत्यात्मक उद्देश्य इस उद्देश्य का तात्पर्य छात्रों में उपयुक्त दृष्टिकोण एवं अभिवृत्तियों का विकास किया जाना है। हिन्दी शिक्षण के माध्यम से प्राप्त उद्देश्य इस प्रकार हैं –
(i) भाषा और साहित्य में रुचि,
(ii) सद्वृत्तियों का विकास
इस प्रकार द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण छात्रों में आस्था, श्रद्धा, साहित्य प्रेम, देश-प्रेम, सहृदयता एवं संवेदनशीलता के विकास में सहायक है। इन प्रवृत्तियों के विकास से छात्रों में सामाजिकता एवं सांस्कृतिक भावनाओं के विकास के साथ स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास जैसे प्रेरणाप्रद भावों का विकास होता है। साथ ही विश्व स्तर पर भारतीयता के गौरव का परिचायक भी है ।
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *