पाठ्यान्तर क्रियाओं संबंधी भ्रान्तियाँ एवं सीमाओं का वर्णन करें ।

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प्रश्न – पाठ्यान्तर क्रियाओं संबंधी भ्रान्तियाँ एवं सीमाओं का वर्णन करें । 
उत्तर – पाठ्यान्तर क्रियाओं संबंधी भ्रान्तियाँ तथा सीमाएँ (Misunderstandings and Limitations of Co-curricular Activities.)
(i) स्थानीय परिस्थिति की अवहेलना – कई स्कूल विभिन्न प्रकार की पाठ्यान्तर क्रियाएँ केवल इसी आधार पर करते हैं कि वे अन्य विद्यालयों में सफल हुई हैं । स्थानीय परिस्थितियों और विद्यालय के वातावरण तथा छात्रों की आवश्यकताओं और क्षमताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता ।
(ii) अनेक स्थान तथा धन का अभाव – अनेक ऐसे स्कूल हैं जिनके पास न खेल के मैदान हैं और न ही सामूहिक ड्रिल के लिए कोई प्रांगण, विशेषकर अधिक जनसंख्या वाले नगरों में स्कूलों के पास धन का अभाव होता है जिसके कारण पाठ्यान्तर क्रियाओं के लिए उचित सामग्री नहीं मिल पाती ।
(iii) अधिकारियों की अरुचि तथा छात्रों की क्षमता में अविश्वास – स्कूल के अधिकारियों को छात्र-छात्राओं की क्षमताओं और योग्यताओं में विश्वास नहीं होता। वैसे भी वे छात्रों को अधिकार देने में संकोच करते हैं ।
(iv) सीमित गतिविधियाँ – कई बार स्कूल केवल वार्षिक उत्सव, कोई एक टूर्नामेंट अथवा किसी वाद-विवाद या भाषण प्रतियोगिता का ही प्रबंध करते हैं तथा इसी में संतोष व्यक्त करते हैं। छात्रों की विभिन्न अरुिचियों के अनुरूप वे विभिन्न गतिविधियों का आयोजन नहीं कर पाते ।
(v) भाग लेने वाले छात्रों की सीमित संख्या प्रायः देखा जाता है कि पाठ्यान्तर क्रियाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या अत्यन्त सीमित होती है ।
(vi) प्रतियोगिता जीतना ही ध्येय – बहुत से स्कूलों में कार्यक्रम पर इसलिए बल दिया जाता है कि प्रतियोगिता को जीतना है ।
(vii) पाठ्यक्रम के विषयों के साथ समन्वय न होना- प्रायः पाठ्यान्तर क्रियाओं के कार्यक्रम का समन्वय पाठ्यक्रम के विषयों तथा कक्षा कार्य के साथ नहीं किया जाता ।
(viii) समय-सारणी में उचित स्थान न देना- कई स्कूल इन कार्यक्रमों को फालतू मानकर समय-सारणी में स्थान नहीं देते। उपयुक्त स्थान न देने से इन गतिविधियों का महत्व कम हो जाता है। कई बार ये क्रियाएँ ऐसे ढंग से की जाती हैं, मानो खानापूरी करनी हो ।
(ix) अध्यापक वर्ग पर कार्य – भारः इन क्रियाओं के संचालन से अध्यापकों पर कार्य – भार अधिक पड़ता है। अतः वे इन क्रियाओं को केवल अनावश्यक भार के रूप में ही मानते हैं ।
(x) इस क्षेत्र में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी – अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाएँ इस क्षेत्र में लगभग नहीं के बराबर कार्य कर रही हैं ।
(xi ) पुस्तकीय ज्ञान पर बल – देश में अभी भी कई पिछड़े विचारों वाले प्रधानाध्यापक हैं जो पुस्तकीय ज्ञान को ही सब कुछ समझते हैं। उनके विचार में इस प्रकार की पाठ्यान्तर क्रियाओं की आवश्यकता नहीं है ।
(xii ) गतिविधियों पर अनुचित बल – बहुधा स्कूलों में इन क्रियाओं को इस मात्रा में अपनाया जाता है कि अध्ययन-कार्य पर कुप्रभाव पड़ता है। प्रत्येक समय वहाँ किसी न किसी प्रकार का कोई उत्सव मनया जा रहा होता हैं । सन्तुलित गतिविधियों के संयोजन के अभाव में विद्यालय कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ता
(xiii) मूल्यांकन का अभाव – पाठ्यान्तर क्रियाएँ जिस प्रयोजन से आरम्भ की गई थीं, वह प्रयोजन कहाँ तक पूरा हुआ है, इस दृष्टि से इनका मूल्यांकन नहीं किया जाता ।
अधिक छात्रों के भाग न लेने के कारण
(i) स्कूल में इन क्रियाओं के उचित प्रबंध का न होना ।
(ii) बड़े नगरों में खेलों के मैदानों का अभाव ।
(iii) क्रियाओं के अनुपयुक्त समय ।
(iv) पढ़ाई में बाधा ।
(v) परीक्षा में इनकी अवहेलना ।
(vi) योग्य स्काउट मास्टरों का अभाव ।
(vii) पुस्तकीय ज्ञान पर विशेष बल ।
(viii) आर्थिक कठिनाइयाँ ।
छात्रों की रुचि बढ़ाने के उपाय
(i) वर्ष के अन्त में विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र देना ।
(ii) क्रियाओं के लिए अंक रखना तथा वार्षिक परीक्षाफल में जोड़ना ।
(iii) पारितोषिक देना ।
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