विद्यालय में प्रधानाचार्य के महत्वपूर्ण स्थान एवं उनके गुणों पर प्रकाश डालें ।
प्रश्न – विद्यालय में प्रधानाचार्य के महत्वपूर्ण स्थान एवं उनके गुणों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर- इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानाचार्य स्कूल की आत्मा है । वह ही स्कूल का प्राण है। वह विद्यालय के विभिन्न अंगों को एक सूत्र में बाँधता है । वह एक प्रकाश . स्तम्भ है जो मीलों ज्ञान की रोशनी देता है । विद्यालय में उसकी वही स्थिति हो जो सेना में सेनापति की तथा नाव पर नाविक की ।
प्रधानाचार्य के महत्वपूर्ण पद तथा कार्य के बारे में कुछ विशेषताओं के मत नीचे दिए गए हैं।
(i) वह एक ‘प्रर्वत्तक’ है जिसे अपने स्कूल के भविष्य की कल्पना करनी है तथा समुदाय को अपनी योजना के अनुरूप बदलना है । वह प्रत्येक माँ-बाप के लिए एक ‘सामाजिक चिकित्सक’ है जिसको स्वेच्छाचारी बच्चे की देख-रेख की आवश्यकता है, वह प्रत्येक छात्र के लिए ‘मित्र’ है। उसकी शक्ति, उसके कार्य, यहाँ तक कि उसके सत्कार्यों का किसी भी भौतिक छड़ी से नहीं मापा जा सकता । -विल फ्रेंच तथा अन्य (Will French and Others)
(ii) प्रधानाध्यापक किसी जहाज के कप्तान की भाँति स्कूल में अपना मुख्य स्थान रखता है।
– डब्ल्यू. एम. रायबर्न (W.M. Ryborn)
(iii) स्कूल में प्रधानाचार्य का वही महत्वपूर्ण स्थान है जो घड़ी में कमानी का, मशीन में तेज अग्रचक्र का और वाष्पयान में इंजन का होता है।
(iv) महान प्रधानाध्यापक महान स्कूलों का निर्माण करते हैं तथा स्कूल प्रसिद्धि पाते हैं।
(v) प्रधानाध्यापक का व्यक्तित्व ही स्कूल के चारों ओर प्रतिबिम्बित होता है। स्कूल ‘लाख’ है और प्रधानाचार्य उस पर लगाई जाने वाली ‘मुहर’ है । पी. सी. रेन (P.C. Wren)
(vi) प्रधानाध्यापक पर स्कूल का सुसंचालन निर्भर है ।
– माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53
(vii) शिक्षा की प्रक्रिया में स्कूल के प्रधानाध्यापक अथवा प्रिंसिपल का विशेष महत्व है। स्कूल पद्धति की सफलता उसी की कलापूर्ण एवं सन्तुलनात्मक योग्यता पर निर्भर करती है ।
-डॉ. जसवन्त सिंह
(viii) स्कूल की कोई भी योजना तब तक उपादेयता ग्रहण नहीं कर सकती जब तक कि उसका निर्माण दूरदर्शिता तथा योग्यता के आधार पर न किया गया हो । प्रधानाध्यापक को ही दूरदशर्शिता एवं योग्यता से कार्य करने का श्रेय दिया जा सकता है।
–केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार समिति (Central Advisory Board of Education)
(ix) अच्छे तथा बुरे मुख्याध्यापक के अनुसार स्कूल उन्नति अथवा अवनति प्राप्त करते । महान अध्यापक महान स्कूलों को जन्म देते हैं । -डॉ. सी. जीवनायकम । प्रधानाध्यापक प्रधानाचार्य स्कूल व्यवस्था में गुम्बद का आधार रूप पत्थर होता स्कूल की बाह्य तथा आन्तरिक व्यवस्था की एक कड़ी है ।
– डॉ. एस. एन. मुकर्जी
(x) भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66) के अनुसार, “भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाकक्षों में हो रहा है।” अर्थात् कक्षाकक्षों में पढ़ने वाले विद्यार्थी भारत के भावी निर्माता हैं और इन निर्माताओं को बनाने वाला, मार्गदर्शन करने वाला तथा नेतृत्व करने वालों में प्रधानाचार्य का महत्वपूर्ण स्थान है । वर्तमान भारत में उसके नेतृत्व का रूप प्रजातान्त्रिक ही होना चाहिए न कि तानाशाही ।’
मुख्याध्यापक केवल छात्रों तथा शिक्षकों को ही नेतृत्व प्रदान नहीं करता है अपितु समुदाय को, विशेषकर ग्रामीण तथा पिछड़े इलाकों को भी । भारत की अधिकांश जनता अनपढ़ है, रूढ़िवादी है, अन्धविश्वासी है। अतः उन्हें सशक्त तथा प्रभावी नेतृत्व प्रधानाचार्य द्वारा ही मिल सकता है ।
प्रधानाध्यापक के नेतृत्व के गुणों के बारे में विद्वानों के विचार (Views of Scholars on the Qualities of Leadership of a Headmaster)
(i) वह एक सच्चरित्र व्यक्ति, श्रेष्ठ संयोजक, कुशल प्रबंधक होना चाहिए । वह अपनी सामान्य विद्वता के कारण अपने सहयोगियों के सम्मान का पात्र हो ।
– डॉ. एस. एन. मुकर्जी
(ii) आधुनिकतम शिक्षा संबंधी विचारधाराओं एवं अन्वेषणों के अध्ययन पर आधारित मुख्याध्यापक की सन्तुलित दार्शनिकता निर्भर होनी चाहिए ।
– डॉ जसवन्त सिंह
(iii) मुख्याध्यापक को प्रगतिशील दृष्टिकोण रखना चाहिए ।
– सुल्तान मोहीउद्दीन
(iv) एक श्रेष्ठ मुख्याध्यापक या प्रिंसिपल वास्तव में योग्य विद्वान ही नहीं होता, अपितु वह सहानुभूतिमय, सदाचारी होकर छात्रों के प्रति सद्व्यवहारपूर्ण भी होता है। छात्रों के भौतिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति सजग रह कर उन्हें उचित प्रणाली में ढालना उसका मुख्य कर्त्तव्य है ।
– डा. वी. एस. एस. झा
(v) आदर्शवादी मुख्याध्यापक अपनी परम्परागत रूढ़ियों को तिलांजलि देकर अध्यापकों पर डाले जाने वाले रौब, भय और निरीक्षण को त्यागकर उन्हें अशक्त सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं करता । वह योजनाओं की परिकल्पना करके ऐसी युक्तियाँ निकालता है, जिनसे अध्यापक प्रेरणा प्राप्त करके प्रशिक्षित होते जाते हैं। वह उन्हें प्रोत्साहित करके उन पर विश्वास करता है। इस आधार पर वह व्यावसायिक नैतिकता का बीजारोपण करके उनमें शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान के प्रति रुचि उत्पन्न करा देता है। इसी के सहारे वे नवीन विचारों, आदर्शों, उन्नतियों, प्रणालियों, विधियों और संगठनों आदि का परीक्षण करके उन्हें अपनाने की क्षमता प्राप्त करते हैं । – डी. आई. लाल
(vi) उसे दृढ़-चरित्रशील ही नहीं, अपितु सबका श्रद्धापात्र भी बनाना चाहिए । व्यवसाय, छात्रों, मानव-प्रकृति और सहयोगी अध्यापकों में विश्वास रखना उसका कर्त्तव्य है ।
(vii) मुख्याध्यापक को सामूहिक संघ का नेता होने के कारण सर्वोत्तम एवं सर्वांगीण रूप में योग्यतम होने का कर्त्तव्य निभाना चाहिए । -रायबर्न
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