बाल्यवस्था से क्या तात्पर्य है ?

प्रश्न – बाल्यवस्था से क्या तात्पर्य है ? (What do you mean by Childhood. ?)
उत्तर – (i) शारीरिक और गत्यात्मक विकास (Physical and Motor Development) — इस अवस्था में भी शैशवावस्था की भाँति शारीरिक और गत्यात्मक विकास का क्रम सिर से पैरों की ओर होता है अर्थात् सिर के क्षेत्र में यह विकास अधिक, फिर धड़ क्षेत्र में और अन्त में पैरों के क्षेत्र में होता है। लगभग 6 साल की अवस्था तक के बच्चे के हाथ-पैर, सिर और धड़ का अनुपात लगभग वही हो जाता है जैसाकि वयस्क व्यक्तियों में बालक का शारीरिक विकास तथा गत्यात्मक विकास पूरी बाल्यावस्था तक चलता करता है। उसके शारीरिक विकास के साथ उसकी हड्डियाँ कठोर होती जाती हैं। 6 साल की अवस्था से उसके स्थायी दाँत उगने शुरू हो जाते हैं। 6 साल की अवस्था तक बालक के मस्तिष्क का विकास वयस्क व्यक्ति के मस्तिष्क का लगभग 90% हो जाता है। 12 साल की अवस्था तक उसके 24 से 26 स्थाई दाँत निकल आते हैं। 8 वर्ष की अवस्था में बालक में माँसपेशियों का भार शरीर के सम्पूर्ण भार का 27% होता है और 12 वर्ष की अवस्था में यह भार लगभग 30% होता है। 5 साल की अवस्था में बालक का भार जन्म की अपेक्षा पाँच गुना हो जाता है और 11 वर्ष की अवस्था में अमेरिकन लड़के का औसत भार 85.5 पौण्ड और लड़की का भार 88.5 पौण्ड हो जाता है। 5 साल की अवस्था में बालक की लम्बाई जन्म की अपेक्षा दुगनी हो जाती है, परन्तु 5 साल से 11 साल तक लम्बाई कम गति से बढ़ती है। 11 वर्ष की अवस्था में अमेरिकन लड़के की औसत ऊँचाई 58 इंच होती है।
(ii) स्वतन्त्रता (independence ) – बालक की माँ पर आश्रितता ही बालक और माँ में घनिष्ठ सम्बन्धों के स्थापन का प्रमुख आधार है। जैसे-जैसे बालक की आयु बढ़ती जाती है, उसकी माँ पर आश्रितता कम होती जाती है। बालक की स्वतन्त्रता माँ के प्रतिबन्ध और उसकी स्वीकृति पर आधारित होती है। लगभग 10 साल की अवस्था तक बच्चे अपने माता-पिता के साथ परतन्त्रता को कम करने के लिए प्रयास करते हैं, परन्तु लड़कियों में इस प्रकार का व्यवहार नहीं देखा गया है ।
(iii) तादात्मीकरण और भले-बुरे की भावना (Identification & Conscience) – बालक स्वतन्त्र बनने के प्रयासों में तादात्मीकरण करता है। तादात्मीकरण के द्वारा वह दूसरे लोगों के अनुरूप बनने का प्रयास करता है। प्रारम्भ में जब वह अपने आपकों पर्यावरण से भिन्न समझने लगता है तो वह संसार की अपेक्षा अपने आपकों छोटा और असहाय समझने लगता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, वह अपने माता-पिता की शक्तियों को पहचानता जाता है और उनके अनुरूप बनने का प्रयास भी करता जाता है। लगभग 3 वर्ष की अवस्था तक अधिकांश हावभावों को अपने माता-पिता से सीखता है। वह जब और बड़ा हो जाता है तो वह अपने माता-पिता की अभिवृत्तियों को सीखता है ओर मूल्यों को सीखता है। वह अनुकरण और तादात्मीकरण के द्वारा अपने संरक्षकों की अभिप्रेरणाओं, नैतिक मानक तथा अन्य व्यक्तित्व विशेषताओं को सीखता है। 6 साल की अवस्था तक वह अपने संरक्षकों के अतिरिक्त अपने साथ खेलने वाले बच्चों, अपने धार्मिक समूह और अपने समाज के लोगों के व्यवहारों का अनुकरण करता है और उनके साथ तादात्मीकरण करता है। 5-6 साल की अवस्था तक गरीब-अमीर, काला- सफेद, आदि शब्दों के अर्थों को अच्छी तरह से सीख जाता है। तादात्मीकरण का बालक के सामाजीकरण में बहुत अधिक महत्त्व है। लगभग 3 वर्ष की आयु से बच्चे में भले-बुरे की भावना भी जाग्रत होने लगती है। यदि अभिभावक शारीरिक ढंग के द्वारा भले-बुरे प्रमापों का ज्ञान कराते हैं, तो बच्चे में भले-बुरे की भावना उतनी ही जल्दी जाग्रत नहीं होती है जितना कि प्यार से समझाकर और मौलिक दण्ड द्वारा सिखाया जाए।
(iv) साथी समूह और यौन कार्य (Peers and Sex Roles) प्रारम्भ में बच्चे की सामाजिक अन्तःक्रियाएँ केवल परिवार तक सीमित रहती हैं, परन्तु 3 वर्ष की अवस्था तक यह समूह खेल का आनन्द लेने लग जाता है और उसकी रुचि दूसरे बच्चों में भी बढ़ने लग जाती है। प्रारम्भ में बच्चा दूसरे बच्चों के खेल को चुपचाप देखता रहता है, दूसरे बच्चों को खेलते देख वह प्रसन्न होता है, परन्तु कुछ आयु बढ़ने पर दूसरे बच्चों के साथ घुल-मिलकर खेलना प्रारम्भ कर देता है। 5-6 वर्ष की अवस्था में बच्चा अपने साथी समूह के साथ सहयोगात्मक खेलों को भी खेलने लग जाता है। 4-5 साल की अवस्था में बच्चा केवल छोटे समूहों में खेलना पसन्द करता है। लगभग 8 साल की अवस्था तक बच्चे के खेल के साथी उसके लिए मॉडल का कार्य करते हैं। बच्चा साथी समूह के मॉडलों से अनेक व्यक्तित्व लक्षणों को सीखता है। 6-7 वर्ष की अवस्था में बच्चा अपने साथी समूह में यौन में अन्तरों को पहचानने लग जाता है और खेल मे विपरीत लिंग के लोगों को अलग करने लग जाता है, परन्तु 10-11 वर्ष की अवस्था तक लड़के-लड़कियों की बातचीत खेल और मित्रता से कोई अधिक अन्तर नहीं आता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति विभिन्न यौन कार्यों को भी सीखने लग जाता है। बहुधा यह देखा गया है कि लड़का अपने पिता के कार्यों को सीखता है और लड़की माँ के कार्यों को सीखती है। 5-6 वर्ष की अवस्था में बच्चे पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली समझने लगते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि बच्चे डॉक्टर- डॉक्टर, स्कूल-मास्टर, गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलते हैं। इन खेलों में बच्चे विभिन्न सेक्स रोल्स को सीखते ही नहीं हैं, बल्कि इन सेक्स रोल्स को अदा भी करते हैं। उदाहरण के लिए, डॉक्टर के खेल में कोई लड़का ही डॉक्टर बनता है अथवा लड़की जब डॉक्टर का रोल अदा करती है तो डॉक्टरनी ही बनती है। एक अध्ययन (Mischel, 1966) में यह देखा गया है कि लड़कों से लोग आशा करते हैं कि वे Strong, Courageous, Assertive और Ambitious बनेंगे तथा लड़कियों के लिए यह आशा की जाती है कि वे सामाजिक, साफ-सुथरी और अच्छे व्यवहार वाली बनेंगी।
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