उत्तर – बाल्यावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना करें।
प्रश्न – उत्तर – बाल्यावस्था में सामाजिक विकास की विवेचना करें।
उत्तर – यह छः सात वर्ष से ग्यारह बारह वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में सामाजिक विकास के अन्तर्गत उन्हीं गुणों और विशेषताओं का विकास होता है जिनका प्रारम्भ पूर्व बाल्यावस्था में हुआ था। इस अवस्था में बालक का शारीरिक, मानसिक, गत्यात्मक और भाषा आदि का विकास काफी कुछ हो जाने के कारण बच्चा खेल की ओर अधिक उन्मुख हो जाता है, वह अपनी इच्छाओं और विचारों को भाषा के द्वारा ढंग से व्यक्त करने लग जाता है। इस अवस्था में वह अनेक कौशलों को भी दूसरे बच्चों के सम्पर्क में आकर सीखता है। बच्चों का सामाजिक क्षेत्र बढ़ जाता है। उसका घर से बाहर के बच्चों में और अधिक मन लगता है। इस अवस्था में लड़कियों का घर से बाहर खेलना उतना अधि क पसन्द नहीं किया जाता है। बालकों की छः से दस वर्ष की अवस्था Gang Age कही जाती है। इस अवधि में बालक का सामाजिक विकास तीव्र गति से होता है। इस अवधि में बालक किसी साथी समूह (Peer Group) का सदस्य बन जाता है। जिस प्रकार से परिवार का प्रभाव बालक के सामाजिक विकास पर महत्त्वपूर्ण ढंग से पड़ता है ठीक उसी प्रकार से साथी समूह का प्रभाव पड़ता है। यह साथी समूह बालकों की सामाजिक अभिवृत्तियों के विकास को भी महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। हेवीघर्स्ट (H.R. Havighurst, 1957) ने साथी समूह को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “The peer group is an aggregation of people of approximately the same age who feel and act together.” बालक कभी एक साथी समूह का सदस्य रहता है तो कभी दूसरे का और कभी-कभी इन समूहों से मुक्त होकर स्वतन्त्र रूप से व्यवहार करता है। बालकों का भिन्न-भिन्न साथी समूहों में सम्मिलित होना उनकी मित्रता पर आधारित न होकर उनके खेल की क्रियाओं या खेलों पर अधिक आध ारित होता है। लगभग आठ वर्ष की अवस्था तक बालक सामूहिक खेलों में बहुत अधिक भाग लेता है।
सामाजिक व्यवहार के कुछ प्रतिमान
(Some Patterns of Social Behaviour)
( 1 ) सामाजिक अनुमोदन (Social Approval) – बालक दूसरे बालक का अपने खेल, अपने व्यवहार, अपने कपड़े और अपनी भाषा आदि के सम्बन्ध में अनुमोदन (Approval) प्राप्त करना चाहता है। सामाजिक अनुमोदन की भावना उन बच्चों में अधिक होती है, जिनमें असुरक्षा और अनुपयुक्ता की भावना अधिक मात्रा में होती है । कायरता ईर्ष्या और अति-आश्रितता, आदि लक्षण जिन बच्चों में अधिक होते हैं उनमें भी सामाजिक अनुमोदन की भावना अधिक देखी गई है। लगभग आठ से दस वर्ष की अवस्था में इस भावना का तीव्र गति से विकास होता है और ग्यारह वर्ष की अवस्था में उसमें घटाव प्रारम्भ हो जाता है। लड़कियों में अनुमोदन की भावना में ह्रास लगभग आठ वर्ष की अवस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है।
( 2 ) सुझाव ग्रहणशीलता (Suggestibility) -उत्तर- बाल्यावस्था में सुझाव ग्रहणशीलता सर्वाधिक पाई जाती है। लगभग सात-आठ वर्ष का बच्चा सर्वाधित सुझाव ग्रहणशील होता है। अपन साथी समूह के लोगों से तथा विशेष रूप से साथी समूह के नेता से वह सर्वाधिक प्रभावित होने के कारण सर्वाधिक सुझााव ग्रहण करता है। इस अवस्था में विपरीत सुझाव ग्रहणशीलता (Contra-suggestibility) भी पाई जाती है। इसमें बच्चों को जो सुझाव दिए जाते हैं, वह ठीक उन सुझावों के विपरीत कार्य या व्यवहार करता है। यह एक प्रकार का निषेधात्मक व्यवहार है। बालक अपने साथी समूह के प्रति तो सुझाव ग्रहणशील होता है परन्तु वयस्कों के प्रति उसमें विपरीत सुझाव ग्रहणशीलता पाई जाती है। लगभग नौ-दस वर्ष की अवस्था में बालकों में यह विपरीत सुझाव ग्रहणशीलता चरमसीमा पर होती है।
( 3 ) स्पर्धा और प्रतियोगिता (Rivalry and Competition)– सामुदायिकता की अवस्था (Gang Age) में बालक अपने निजी उद्देश्यों के लिए प्रतियोगिता और स्पधा करता है। अपने साथी समूह में प्रत्येक बालक दूसरे से आगे निकलने की होड़ करता है। ऐसा वह बड़ों का समर्थन और स्वीकृति प्राप्त करने के लिए करता है (G.G. Thompsom, 1963)। इस आयु के बालकों में प्रतियोगिता के कई रूप दिखाई देते हैं; जैसे
(i) बालक अपने ही समूह के अन्य बालकों से प्रतियोगिता और स्पर्धा करते हैं। इससे आपस से झगड़ा हो जाता है और समूह का संगठन दुर्बल हो जाता है।
(ii) समूह-समूह में प्रतियोगिता और स्पर्धा उस समय होती है जब दो खेल के समूह एक ही खेल में अलग-अलग टीमों में खेलते हैं अथवा दो समूह एक ही खेल एक ही स्थान पर खेलते हैं। इस प्रकार की प्रतियोगिता और स्पर्धा से समूह का संगठन मजबूत होता ।
(iii) एक दल या समूह की दूसरे किन्हीं बड़े बच्चों अथवा वयस्कों से प्रतियोगिता हो सकती है। इस प्रकार की प्रतियोगिता से बालकों में स्वतन्त्रता के भाव उत्पन्न होते हैं।
( 4 ) खेल (Sports) – अच्छा खिलाड़ी बालक तभी बन सकता है जब वह खेल में दूसरे बच्चों के साथ अच्छी तरह सहयोग करता हो । यद्यपि खेल बालक घर से प्रारम्भ करता है परन्तु खिलाड़ी बनना उसे सामूहिक जीवन की देन है। अच्छे खिलाड़ी के लिए यह भी आवश्यक होता है कि वह उदार हो। उदारता उसकी अभिवृत्तियों में होनी अधिक आवश्यक है। बालक का समाजिक विकास उतना ही अधिक अच्छा होता है। बालक जितना ही अधिक अच्छा खिलाड़ी होता है।
( 5 ) पक्षपात और सामाजिक विभेदीकरण (Prejudice and Social Discrimination) – बालक जब विभिन्न साथी समूहों का सदस्य बनता है तब वह सामाजिक विभेदीकरण भी सीख जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में सामाजिक विभेदीकरण में बच्चे अपने समूह के सदस्यों को उपयुक्त तथा दूसरे समूह के बच्चों को हीन समझते हैं। थोड़े ही दिनों में वह यौन, धर्म, प्रजाति, आयु और सामाजिक आर्थिक स्तर, आदि के आधार पर सामाजिक विभेदीकरण करने लग जाते हैं। अध्ययनों (j.B. Cooper, 1968; E. Ogletree, 1969; N.E. Werner & I. M. Evans, 1968) से यह स्पष्ट हुआ है कि बालकों में पक्षपात की भावना का विकास तीन से पाँच वर्ष की अवस्था में सर्वाधिक होता है। पक्षपात सम्बन्धी व्यवहार इन अभिवृत्तियों के बाद में उत्पन्न होता है। लगभग तीन-चार वर्ष की अवस्था में बालकों में पक्षपात सम्बन्धी अभिबृत्तियाँ उत्पन्न होने लगती हैं तथा पक्षपात सम्बन्धी व्यवहार चार वर्ष की अवधि के बाद ही प्रारम्भ होता है।
( 6 ) उत्तरदायित्व (Responsibility) छोटा बच्चा माता-पिता पर आश्रित होता है परन्तु भाषा के विकास और गत्यात्मक विकास के साथ-साथ उसकी आश्रितता कम होती जाती है। जैसे-जैसे उसे सीखने के अवसर प्राप्त होते रहते हैं वह थोड़े ही दिनों में अपनी आयु के अनुसार अपने कार्य करने लग जाता है। बच्चे में उत्तरदायित्व की भावना का विकास कितना होगा, किस प्रकार का होगा और किस आयु से प्रारम्भ होगा, यह बहुत कुछ उसके उस प्रशिक्षण पर निर्भर करता है जो उसे लगभग तीन-साढ़े तीन वर्ष की अवधि तक प्राप्त होता है। अध्ययनों में देखा गया है कि बड़े आकार के परिवारों में बच्चे अपना उत्तरदायित्व अपेक्षाकृत शीघ्र समझने लग जाते हैं। वह अपना कार्य तो अपने आप करने ही लग जाते परन्तु अपने से छोटे बच्चों को भी लगभग चार-पाँच वर्ष की अवस्था से संभालने लग जाते हैं। उत्तर-बाल्यावस्था में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में उत्तरदायित्व की भावना अधिक पाई जाती है। कोच (H. L. Koch, 1960) ने अपने अध्ययनों में यह देखा कि जिन बच्चों को आत्म-विश्वास (Self-confidence) प्राप्त करने सम्बन्धी अवसर और प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है, उनमें उत्तरदायित्व की भावना का विकास पिछड़ जाता है और यह प्रौढ़ावस्था तक पीछे ही रहते हैं।
(7) सामाजिक सूझ (Social Insight)—सामाजिक सूझ का अर्थ है- सामाजिक परिस्थितियों के अर्थ को समझना या उनका प्रत्यक्षीकरण करना। ली (H. Lee, 1960) का विचार है कि एक व्यक्ति का सामाजिक समायोजन तभी उच्च हो सकता है जबकि समाज की विभिन्न परिस्थितियों में दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार, भाव और विचारों आदि को समझ सके तथा उनके सम्बन्ध से पूर्व कथन कर सके, परन्तु यह तभी सम्भव है जबकि उस व्यक्ति में सामाजिक सूझ हो । सामाजिक सूझ का विकास आयु बढ़ने के साथ-साथ होता है। सामाजिक सूझ सामाजिक प्रत्यक्षीकरण पर अधारित है। उत्तर – बाल्यावस्था और आगे की विकास अवस्थाओं में भी लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में सामाजिक सूझ अधिक होती है। अधिक समायोजित बच्चों में सामाजिक अन्तर्दृष्टि अधिक होती है। हरलॉक (1978) ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि “The more popula the child, the more social insight he develops. The more perceptive he is, the more popular he is likely to be.”
( 8 ) यौन विरोधी – भाव ( Sex Antagonism)– बचपनावस्था में लड़के और लड़कियों में सामंजस्य होता है, वे आपस में एक-दूसरे के साथ खेलते हैं। अध्ययनों (H.W.Reese, 1966,: W.D.Ward; 1968) में यह देखा गया है कि बालकों में विपरीत सेक्स के बच्चों की क्रियाओं के प्रति वरीयता (Preference) पाई जाती है। कुछ लड़कियाँ लड़कों की क्रियाओं को पसन्द करती हैं और कुछ लड़के लड़कियों की क्रियाओं को पसन्द करते हैं। यह प्रवृत्ति वय: सन्धि अवस्था तक अधिक प्रत्यक्ष हो जाती है। इसके साथ ही लगभग पाँच-छ: वर्ष की अवस्था से लड़के-लड़कियों में कुछ कुछ विरोधी भाव उत्पन्न होने लगते हैं जो उत्तर- बाल्यावस्था में काफी अधिक बढ़ जाते हैं। लड़के-लड़कियाँ आपस में एक-दूसरे की रुचियों, कौशलों और क्रियाओं को पसन्द नहीं करते हैं। लड़के-लड़कियों से अपने को अधिक क्रियाशील, कौशलयुक्त और लड़कियों को हीन समझने लग जाते हैं। यौन विरोधी-भाव की अधिकता के कारण लड़के या लड़कियों में उच्चता और हीनता की भावनाएँ विकसित हो सकती हैं। इस प्रकार की भावनाओं का लड़के और लड़कियों के व्यवहार पर विपरीत प्रभाव ही पड़ता है।
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