NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (भूगोल – समकालीन भारत -2)

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NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 1 संसाधन एवं विकास (भूगोल – समकालीन भारत -2)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

संसाधन एवं विकास

1. उत्पत्ति के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण करें। 
उत्तर – जैव और् अजैव ।
2. समाप्यता के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण करें।
उत्तर – नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य ।
3. संसाधन किसे कहते हैं ?
उत्तर – आर्थिक विकास के लिए मानव जिन साधनों का उपयोग करता है, वे सभी ‘संसाधन’ कहलाते हैं। उदाहरण – मिट्टी, वन, कल-कारखाने।
4. प्राकृतिक संसाधन क्या हैं ?
उत्तर – प्रकृति द्वारा प्रदत्त वे सभी वस्तुएँ जो मनुष्य द्वारा उपयोग में लाई जाती हैं उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। जैसे- वन, भूमि, पर्वत, पठार आदि ।
5. प्राकृतिक संसाधन कितने प्रकार के है ?
उत्तर – प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के हैं- जैविक तथा अजैविक । भूमि जल तथा मृदा अजैविक संसाधन हैं जबकि वन, जीव-जन्तु जैविक संसाधन हैं।
6. मानव निर्मित संसाधनों के चार उदाहरण दें । 
उत्तर – मानव निर्मित संसाधनों के उदाहरण
(क) बाँध, (ख) उद्योग, (ग) मशीन, (घ) मकान।
7. नवीकरणीय संसाधन किसे कहते हैं ? इसके दो उदाहरण दें । 
उत्तर – वे सभी संसाधन जो कभी समाप्त नहीं होते तथा एक बार प्रयोग करने के उपरांत उन्हें निश्चित समय में दोबारा प्राप्त किया जा सकता है नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं ।
नवीकरणीय संसाधनों के दो उदाहरण –
(क) जल, (ख) पेड़-पौधे और जीव-जन्तु |
8. अनवीकरणीय संसाधन किसे कहते हैं ? इसके दो उदाहरण दें । 
उत्तर – वे सभी संसाधन जो एक बार प्रयोग के उपरांत समाप्त हो जाते हैं तथा उन्हें निश्चित समयावधि में दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अनवीनीकरणीय संसाधन कहलाते हैं ।
अनवीकरणीय संसाधनों के दो उदाहरण –
(क) खनिज, (ख) गैस एवं कोयला ।
9. लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है ? 
उत्तर – लौह अयस्क गैर-नवीकरणीय संसाधन है।
10. ज्वारीय ऊर्जा किस प्रकार का संसाधन है ?
उत्तर – ज्वारीय ऊर्जा नवीकरणीय संसाधन है।
11. परंपरागत ऊर्जा के दो स्रोतों का नाम लिखें।
उत्तर – (क) कोयला, (ख) पेट्रोलियम ।
12 संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक हैं ?
उत्तर – पृथ्वी पर कुछ संसाधन ऐसे हैं जो समाप्त नहीं होते हैं। कुछ संसाधन ऐसे भी हैं जो कभी भी समाप्त हो सकते हैं। जो समाप्त होने वाले संसाधन हैं उनका संरक्षण आवश्यक है जैसे- पेट्रोलियम, कोयला आदि । इन संसाधनों को संरक्षण प्रदान नहीं किया गया तो आने वाले पीढ़ी के लिए समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
13. नियोजन की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर – संसाधन सीमित हैं। हमारे देश में उनका वितरण असमान है। अतः संसाधनों के विकास के लिए नियोजन आवश्यक है। संसाधन नियोजन के तीन स्तर हैं –
(क) संसाधनों के अन्वेषण की तैयारी,
(ख) विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता का मूल्यांकन,
(ग) संसाधनों के शोषण की योजना |
14. जैविक और अजैविक संसाधनों के दो-दो उदाहरण दें। 
उत्तर – वन और जीव-जन्तु जैविक संसाधन हैं जबकि भूमि, जल, मृदा आदि अजैविक संसाधन हैं ।
15. सतत् पोषणीय विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर – सतत् पोषणीय आर्थिक विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए हो और वर्तमान विकास की प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकता की अवहेलना न करे ।
16. आयु के आधार पर जलोढ़ मृदाएँ कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर – आयु के आधार पर जलोढ़ मृदाएँ दो प्रकार की हैं
(क) पुराना जलोढ़ (बांगर), (ख) नया जलोढ़ (खादर)
बांगर मृदा में ‘कंकड़’ ग्रंथियों की मात्रा ज्यादा होती हैं ।
खादर मृदा में बांगर मृदा की तुलना में ज्यादा महीन कण पाए जाते हैं ।
17. पंजाब में भूमि के निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर – पंजाब में भूमि के निम्नीकरण का मुख्य कारण अत्यधिक सिंचाई है l
18. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है ? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर – पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इस प्रकार की मृदा की मुख्य विशेषताएँ हैं
(क) जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से होता है।
(ख) जलोढ़ मिट्टी सभी फसलों के लिए उपयुक्त होती है और काफी उपजाऊ होती है।
(ग) यह देश की महत्त्वपूर्ण मृदा है जो देश के एक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई है
19. मृदा किस प्रकार बनती हैं ?
उत्तर – मृदा का अपरदन कई प्रकार से होता है जैसे –
(क) नदियों द्वारा लाये गये अवसादों से,
(ख) ज्वालामुखी उद्गारों से,
(ग) जैविक कारणों (जन्तुओं और पौधों की क्रियाओं) से ।
20. तीन राज्यों के नाम बताएँ जहाँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है ?
उत्तर – तीन राज्य जहाँ काली मृदा पाई जाती है- गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश । ऐंसी मिट्टी में मुख्य रूप से कपास की फसल उगाई जाती है।
21. जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं ? उदाहरण दें ।
उत्तर – जैव संसाधन वे हैं जिनमें जीवन व्याप्त होता है, जैसे- मनुष्य, पशु और वनस्पति आदि ।
अजैव संसाधन वे हैं जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं। जैसे- चट्टानें एवं धातुएँ आदि ।
22. मृदा का अपरदन किस प्रकार होता है ?
उत्तर – मृदा का अपरदन प्रवाहित जल और पवन द्वारा होता है। मृदा अपरदन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों और पर्वतीय भागों में भी अधिक होता है।
23. भूक्षरण या भूमि निम्नीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर – कुछ प्राकृतिक कारणों (जैसे- मृदा अपक्षय आदि) तथा मानव की गतिविधियों द्वारा भूमि अनुपजाऊ होती जा रही है। इसे भूक्षरण कहते हैं । वनों की कटाई तथा पशुओं की अधिक चराई इसके दो मुख्य कारण हैं।
24. काली मिट्टी की दो विशेषताएँ लिखें ।
उत्तर – काली मिट्टी की दो विशेषताएँ –
(क) इस मिट्टी में नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है ।
(ख) कैल्सियम कार्बोनेट, पोटाश, मैग्नीशियम काबोनेट और चूना इसके मुख्य पोषक तत्व हैं
25. लैटेराइट मिट्टी की दो विशेषताएँ लिखें ।
उत्तर – लेटेराइट मिट्टी की दो विशेषताएँ –
(क) इसमें चूने और मैग्नेशियम का अंश कम होता है।
(ख) नाइट्रोजन की कमी और फास्फोरिक एसिड की मात्रा अधिक होती है।
26. काली मिट्टी कौन-सी फसलों के लिए उपयुक्त है ? 
उत्तर – काली मिट्टी कपास, तिलहन आदि फसलों के लिए उपयुक्त है।
27. भारत के किन राज्यों में काली मिट्टी पाई जाती है ?
उत्तर – काली मिट्टी भारत के आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उतर प्रदेश आदि राज्यों में पाई जाती है ?
28. लाल मिट्टी की रचना कैसे होती है ?
उत्तर – लाल मिट्टी की रचना ग्रेनाइट और नींस जैसी रवेदार चट्टानों से होती है। लोहे के यौगिकों की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है।
29. किस प्रांत में सीढ़ीदार खेती की जाती है ?
उत्तर – भारत में उत्तराखण्ड में सीढ़ीदार अथवा सोपानी खेती की जाती है।
30. उत्खात भूमि क्या है ?
उत्तर – बहता हुआ जल मिट्टी को काटते हुए गहरी नालियाँ बना लेता है जिन्हें अवनलिकाओं के नाम से जाना जाता है। ऐसी भूमि कृषि योग्य नहीं रह जाती है, अतः इसे उत्खात भूमि के नाम से जाना जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

संसाधन और विकास

1. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए ? 
उत्तर – पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्नांकित कदम उठाने चाहिए –
(क) वन रोपण या काफी मात्रा में पेड़ों के लगाने से अपरदन की प्रक्रिया को रोकी जा सकती है। पेड़ों का बंजर भूमि तथा पहाड़ी ढालों पर लगाना अधिक लाभदायक सिद्ध होता है। इस ढंग से वायु अपरदन को भी रोका जा सकता है।
(ख) पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर अवनालिका अपरदन को रोका जा सकता है। इससे जल प्रवाह का समुचित प्रयोग किया जा सकता है।
(ग) पर्वतीय ढालों पर बाँध बनाकर जल प्रवाह को समुचित ढंग से खेती के काम में लाया जा सकता है। मिट्टी रोध बाँध अवनालिकाओं (या पानी से बनने वाली गहरी खाइयों) के फैलाव को रोक सकते हैं।
(घ) भूमि संरक्षण के लिए आवश्यक है कि वहाँ हो रहे मिट्टी के अपरदन प्रसार को पहचान कर उसकी रोक के लिए उपयुक्त ढंग अपनाए जाएँ ।
(ङ) मृदा के अपरदन को रोकने का एक अन्य साधन भी है पशुओं द्वारा चराई, विशेषकर पहाड़ी भागों में सीमा से अधिक न हो ।
2. भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें। वर्ष 1960-61 से वन के अंतर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है ?
उत्तर – भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है क्योंकि मानव की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भूमि से ही पूरी होती है । अतः मानव की समृद्धि भूमि के उचित उपयोग द्वारा ही संभव है। भारत में भूमि उपयोग का वर्तमान प्रारूप भू-आकृतिक बनावट, जलवायु, मिट्टी तथा मानवीय क्रियाकलापों का परिणाम है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है जिसका 93% भाग का ही भूमि उपयोग आँकड़े उपलब्ध है। विवरण निम्नांकित है –
(क) भारत के कुल क्षेत्रफल के 51% भाग पर कृषि की जाती है यदि इसमें परती भूमि को भी शामिल कर लिया जाए तो यह बढ़कर लगभग 54% हो जाएगा।
(ख) वनों के अन्तर्गत भूमि का हिस्सा लगभग 22% है जो कि पारिस्थितिकी संतुलन के लिए आवश्यक 33% से काफी कम है।
(ग) हमारे देश में 4% चारागाह भूमि है । यद्यपि भारत में पशुओं की संख्या विश्व में सर्वाधिक है। अतः पशु संख्या के अनुपात में चारागाह भूमि भी कम है।
(घ) लगभग 6.2% भूमि बंजर भूमि है जो कृषि के लिए अयोग्य है।
(ङ) इसके अतिरिक्त शेष भूमि गैर कृषि कार्य जैसे बस्तियाँ, नगर, नदी, तालाब, सड़कें, रेलमार्ग, मंदिर, मस्जिद इत्यादि के अंतर्गत उपयोग में आती है।
वर्ष 1960-61 से वनों के अंतर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि न होने के निम्नांकित कारण हैं –
(क) भारत में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण अतिरिक्त जनसंख्या के भरण पोषण के लिए भूमि का उपयोग किया जा रहा है।
(ख) वनों की अंधाधुंध कटाई हुई है तथा अपेक्षाकृत नए पेड़ कम लगाए गए हैं l
(ग) उद्योगों का विस्तार, खनन, बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के विकास के कारण वनों का ह्रास हुआ है।
(घ) नगरों, बस्तियों, सड़कों एवं रेलमार्गों के विस्तार के कारण भी वन क्षेत्र के विस्तार में कभी आई है।
3. प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ ? 
उत्तर – संसाधनों का अधिक उपयोग प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास से संबंधित है। प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संसाधनों का दोहन भारी पैमाने पर संभव हुआ तथा आर्थिक विकास के लिए अधिक से अधिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ी । संसाधनों की उपलब्धता अपने आप में विकास का कारण नहीं बन सकती, जब तक कि उसे उपयोग में लाने लायक प्रौद्योगिकी अथवा कौशल का विकास नहीं किया जाय । जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी का विकास होता गया संसाधनों का दोहन भारी पैमाने पर किया जाने लगा। जितना अधिक संसाधनों का दोहन हुआ आर्थिक विकास भी उतना आगे बढ़ा । औपनिवेशिक काल में संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर हुआ क्योंकि साम्राज्यवादी देशों ने अपने उच्च प्रौद्योगिकी के माध्यम से संसाधनों का दोहन किया। इससे साम्राज्यवादी देशों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई। भले ही इसका लाभ उपनिवेशों को प्राप्त नहीं हुआ।
4. भूमि अपरदन या भूक्षरण को रोकने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिए ?
उत्तर – भूमि अपरदन को रोकने के उपाय –
(क) पर्वतीय भागों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए ।
(ख) मरूस्थलीय भागों में वनों को लगाकर मृदा का संरक्षण किया जा सकता है।
(ग) अधिक चराई वाले क्षेत्रों में घास को उगाकर मृदा के कटाव को कम किया जा सकता है।
(घ) अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में खेतों पर मेड़ बनाकर खेती की जानी चाहिए ।
5. मिट्टी के संरक्षण से आप क्या समझते हैं? मिट्टी का संरक्षण क्यों आवश्यक है ? 
उत्तर – मृदा का अपरदन रोककर उसके मूल गुणों को बनाए रखने को मृदा का संरक्षण 5 कहते हैं ।
भारत कृषि-प्रधान देश है। इसे कृषि प्रधान बनाने में मृदा का विशेष योगदान है। भारतीय मृदा बहुत ही उपजाऊ, गहरी एवं विविधता लिए है, जिससे भारत में न केवल विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, बल्कि कई फसलों के उत्पादन एवं निर्यात में यह संसार का अग्रणीय निर्यातक देश बन सकता है । यह सब कुछ तब संभव है, जबकि हम अपनी मृदा का संरक्षण बराबर करते रहे ।
6. प्राकृतिक सम्पदा अथवा संसाधनों का क्या महत्व है ?
उत्तर – प्राकृतिक सम्पदा अथवा संसाधनों का महत्व –
(क) वे हमारी कृषि सम्बन्धी गतिविधियों के मुख्य साधन हैं।
(ख) वे हमारे उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं।
(ग) हमारी सभी व्यापारिक गतिविधियाँ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में उन पर निर्भर करती हैं ।
(घ) वे प्राकृतिक सौन्दर्य को बनाए रखते हैं और जैवमण्डल के विभिन्न जीवों के साथ संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
7. संसाधनों के वर्गीकरण के विभिन्न आधार क्या है ? 
उत्तर – संसाधनों का वर्गीकरण निम्नांकित आधारों पर किया जा सकता है –
(क) उत्पत्ति के आधार पर – जैव और अजैव
(ख) समाप्यता के आधार पर – नवीकरणीय और अनवीकरणीय
(ग) स्वामित्व के आधार पर – व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय, वैश्विक
(घ) विकास के स्तर के आधार पर ।
8. संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता की विवेचना करें ।
उत्तर – जनसंख्या की वृद्धि और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का निरंतर उपयोग हुआ है। यदि उपभोग की यही गति रही तो एक दिन आर्थिक विकास रुक जाएगा और मानव सभ्यता का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा । अतः संसाधनों का संरक्षण अनिवार्य हो गया है ।
संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता निम्नांकित कारणों से है –
(क) मानव-आवास के कारण बसे प्रदेशों में भूमि दुर्लभ हो गई है। कृषि के लिए उपयोगी भूमि पर मकान बन रहे हैं । अतः यह आवश्यक हो गया है कि उपलबध भूमि का योजनाबद्ध उपयोग किया जाए ।
(ख) भूमिगत जल के निरंतर उपयोग से जल-स्तर नीचा हो गया है जिससे कृषि पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए भूमिगत जल का संरक्षण आवश्यक हो गया है।
(ग) वनों का निरंतर कटाई से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा हैं यदि वनों के संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो प्रदूषण इतना अधिक बढ़ जाएगा कि मानव जीवन खतरे में पड़ जाएगा।
(घ) खनिज संसाधनों तथा शक्ति संसाधनों के बिना कारखाने लगाना और चलाना असंभव हो जाएगा। इसलिए खनिज संसाधनों का उपयोग बड़ी सूझ-बूझ से करना होगा ।
9. स्वामित्व के आधार पर संसाधनों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से होते हैं ? 
उत्तर – स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को निम्नांकित भागों में बाँटा जाता है –
(क) व्यक्तिगत संसाधन- व्यक्तिगत स्वामित्व के अधीन भूमि, मकान, बाग-बगीचे आदि ।
(ख) सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन- गाँव की शामिलात भूमि (चारण भूमि, शमशान भूमि, तालाब आदि), शहर की सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्थल, खेल के मैदान आदि ।
(ग) राष्ट्रीय संसाधन- राष्ट्रीय सीमाओं के अन्दर आने वाली सड़कें, नहरें, रेलवे लाइनें, सारे खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन, सरकारी भूमि एवं सरकारी भवन आदि ।
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन- अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा अधिकृत 200 कि०मी० की दूरी से परे खुले महासागरीय संसाधन।
10. विकास के स्तर के आधार पर संसाधन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर – विकास के स्तर के आधार पर संसाधन के प्रकार निम्नांकित हैं –
(क) संभावी संसाधन और (ख) विकसित संसाधन।
संभावी संसाधन वे संसाधन हैं जो किसी भी प्रदेश में विद्यमान होते हैं परन्तु उनका उपभोग नहीं किया जाता, जैसे- राजस्थान में सौर ऊर्जा और गुजरात में पवन शक्ति के अपार भंडार हैं परन्तु अभी तक ठीक ढंग से उनका विकास नहीं हुआ है। वे संसाधन जिनका मूल्यांकन किया जा चुका है और उनका प्रयोग भी हो रहा है उन्हें विकसित संसाधन कहते हैं ।
11. संसाधनों के संरक्षण का क्या अभिप्राय है ? संसाधनों के संरक्षण के दो उद्देश्य बताएँ ।
उत्तर – प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत और योजनाबद्ध उपयोग को ही संसाधनों का संरक्षण कहते हैं ।
संसाधनों के संरक्षण के दो उद्देश्य –
(क) इसका पहला उद्देश्य यह है कि वर्तमान पीढ़ी को इन संसाधनों का पूरा लाभ प्राप्त कराया जाए।
(ख) इसका दूसरा मुख्य उद्देश्य यह है कि हम अपनी पीढ़ी के हितों को ध्यान में रखने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति का भी पूरा-पूरा ध्यान रखें।
12. संसाधन नियोजन का क्या अर्थ है ? संसाधन नियोजन के किन्हीं दो स्तरों का उल्लेख करें।
उत्तर – संसाधन नियोजन का अर्थ- संसाधन नियोजन एक तकनीक या कौशल है जिसके द्वारा हम अपने संसाधनों का उचित प्रयोग कर सकते हैं। क्योंकि ये संसाधन सीमित हैं और हमारे देश में उनका वितरण भी असमान है इसलिए संसाधनों के विकास के लिए नियोजन अति आवश्यक है।
संसाधन नियोजन के दो स्तर –
(क) पहला स्तर संसाधनों को ढूंढना जो कि एक बड़ी सीमित मात्रा में होते हैं और एक विस्तृत और अनजान क्षेत्रों में फैले हुए होते हैं ।
(ख) संसाधन नियोजन का दूसरा स्तर वह है जब ऐसे संसाधनों को ढूंढ कर उनसे अनेक प्रकार की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। और विभिन्न प्रकार की सेवाओं को उपलब्ध कराया जाता है।
13. भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को सुलझाने के उपायों की व्याख्या करें । 
उत्तर – भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को निम्नांकित तरीकों से सुलझाया जा सकता है –
(क) वनरोपण या पेड़ पौधों को लगाकर अधिक वर्षा वाले और मरुस्थलीय भागों में भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है।
(ख) चरागाह भूमि का उचित प्रबंधन करके भी भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है |
(ग) रेतीले टीलों में काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाने की प्रक्रिया से भी भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है ।
(घ) बंजर भूमि के उचित प्रबंधन, खनन नियंत्रण और औद्योगिक जल परिष्करण के द्वारा भी भूमि निम्नीकरण को कम किया जा सकता है।
14. कब और क्यों रियो डी जेनेरो का पृथ्वी सम्मेलन हुआ ? 
उत्तर – रियो डी जेनेरो का पृथ्वी सम्मेलन 1992 ई० में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में हुआ ताकि विश्व भर के देशों के सतत पोषणीय विकास के लिए, 21 वीं शताब्दी को ध्यान में रखते हुए, सोच-विचार किया जा सके। इसमें यह तय हुआ कि समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं तथा सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा कैसे पर्यावरणीय क्षति, गरीबी और रोगों से निपटा जाए ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

संसाधन और विकास

1. संसाधनों का उपयोग करते समय हमें किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
अथवा, संसाधनों के संरक्षण के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिए। 
उत्तर – संसाधनों का उपयोग करते समय हमें निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –
(क) प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग करते समय हमें उनकी प्रकृति प्रकार और निक्षेपों के भण्डारों को ध्यान में रखना चाहिए।
(ख) यदि भण्डार सीमित हैं तो हमें उनकी कुछ मात्रा आने वाले समय और भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखनी चाहिए।
(ग) महासागरीय जल, सौर ऊर्जा और जलवायु जैसे संसाधन नवीकरणीय हैं। ये प्रकृति के उत्तम उपहार हैं। हमें यह देखना चाहिए कि कही इनका दुरूपयोग न हो ।
(घ) अनवीकरण योग्य संसाधन का उचित मात्रा में ही उपयोग किया जाना चाहिए।
(ङ) अपशिष्ट सामग्री का पुनः चक्रण या पुनः उपयोग।
(च) संरक्षण के नियमों को कड़ाई से लागु करना।
2. संसाधनों के अन्धाधुन्ध उपयोग से क्या-क्या समस्याएँ पैदा हो सकती हैं ? 
उत्तर – संसाधन प्रकृति की महान देन है, जो मनुष्य के अस्तित्व और विकास के लिए अति आवश्यक है परन्तु यदि इनका अन्धाधुन्ध उपयोग किया जाता रहा तो इससे अनेक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं –
(क) पहली समस्या तो यह पैदा हो जाएगी कि हमारे संसाधन जल्दी-जल्दी समाप्त होते चले जाएँगे।
(ख) दूसरी समस्या यह हो जाएगी कि अपने लालच के कारण समाज के कुछ वर्ग इन संसाधनों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेंगे जबकि समाज के अन्य वर्ग उनके प्रयोग से वंचित रह जाएँगे। इसका यह परिणाम होगा कि समाज दो वर्गों- संसाधन सम्पन्न और संसाधनहीन या अमीर और गरीब वर्गों में बंट कर रह जाएगा।
(ग) संसाधनों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से कई वैश्विक संकट पैदा हो जाएँगे जैसेपर्यावरण प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण, भूमण्डलीय तापन का बढ़ना तथा ओजोन परत का गायब होते जाना। यह सभी चीजें मानव के विनाश का कारण बन सकती हैं।
3. भारत में पाई जाने वाली मृदाओं के प्रमुख प्रकारों का संक्षेप में विवरण दें। 
अथवा, भारत में जलोढ़ और काली मृदाओं के वितरण संक्षेप में लिखें। 
उत्तर – भारत जैसे विशाल देश में कई प्रकार की मृदाएँ पाई जाती हैं जैसे लैटराइट मृदा, लाल मृदा, जलोढ़ मृदा आदि ।
जलोढ़ मृदा – जलोढ़ मृदा देश के एक बड़े क्षेत्र में पाई जाती है। यह मुख्यतः उत्तरी मैदानों, तटीय मैदानों तथा छत्तीसगढ़ बेसन में विशेष रूप से मिलती है। यह मृदा बहुत अधिक उर्वर होने के कारण कृषि के लिए बहुत उपयोगी है। यह मृदा निरन्तर चलने वाली नदियों द्वारा लाए गए माल-मसाले (अर्थात् रेत, गाद, मृत्तिका आदि) से बनती है। ऐसी मृदा सतलुज, गंगा ब्रह्मपुत्र (जो उत्तरी-पूर्वी भारत में बहती है), महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी (जो तमिलनाडु में बहती है) आदि नदियों की घाटियों में अधिकतर मिलती है। उत्तरी मैदान की जलोढ़ मृदा दो प्रकार की होती है- बांगर और खादर।
काली मृदा – यह लावा के फैलाव से बनी हुई है, इसलिए इसका रंग काला होता है। काली मृदा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, काठियावाड़ (गुजरात), कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु में पाई जाती है। काली मृदा को रेगड़ मृदा भी कहते हैं। कही ये मृदा गहरी और कही कम गहरी होती है । यह मृदा काफी उर्वर होती है और कपास की खेती के लिए विशेषतः उपयोगी होती है। इस मृदा में दालों आदि का उत्पादन उत्तम होता है ।
लाल और पीली मृदा – इस मृदा में लोहे की मात्रा अधिक होती है, इसलिए इसका रंग लाल होता है। यह मृदा तमिलनाडु, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखण्ड में पाई जाती है। इसका विकास पठारों पर पाए जाने वाले शैलों से जलवाष्प परिवर्तनों के प्रभाव से होता है । यह मृदा उर्वर होती है और कृषि योग्य होती है। निम्न भागों में लाल मृदा पाई जाती है
लेटराईट मृदा – लेटराईट मृदा मुख्यतः दक्कन की पहाड़ियों, कर्नाटक, केरल उड़ीसा, असम व मेघालय के कुछ भागों में पाई जाती है। इस प्रकार की मृदा का निर्माण अधिक वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन क्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। यह मृदा की धरातल पर पड़ी लाल परत-सी दिखाई पड़ती है और कृषि के योग्य न होने के कारण इसे वनरोपण के लिए अधिक उपयुक्त माना गया है। इस मृदा के क्षेत्रों में यूकेलिप्टस, काजू तथा अनेक पेड़ों के वन लगाए गए हैं।
पर्वतीय व वनीय मृदा – इस प्रकार की मृदाएँ प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। ऐसी मृदाएँ वनस्पति और जैविक अंशों के एकत्रित होने से बनती है। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती हैं। इस प्रकार की मिट्टियों का विस्तार पहाड़ी राज्यों विशेषकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, पूर्वी श्रेणियों अरुणाचल प्रदेश एवं मेघालय में देखा जा सकता है।
मरुस्थलीय मृदा – ऐसी मृदाएँ शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पाई जाती हैं। ऐसी मृदा में रेत के कण अधिक होते हैं इसलिए यह उतनी उपजाऊ नहीं होती। परन्तु सिंचाई की सुविधा मिल जाने से इन मृदाओं का भी उपयोग किया जा सकता है, जैसे राजस्थान के गंगानगर क्षेत्र में किया जा रहा है। मरुस्थलीय मृदाएँ राजस्थान, पंजाब, हरियाणा के एक विस्तृत क्षेत्रों में मिलती हैं।

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