NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 6 विनिर्माण उद्योग (भूगोल – समकालीन भारत -2)
NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 6 विनिर्माण उद्योग (भूगोल – समकालीन भारत -2)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
विनिर्माण उद्योग
1. विनिर्माण क्या है ?
उत्तर – कच्चे पदार्थों को मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करने तथा अधिक मात्रा में उनका उत्पादन करने की प्रक्रिया को वस्तु निर्माण या विनिर्माण कहा जाता है।
2. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारकों के नाम बताएँ।
उत्तर – (क) कच्चे माल की उपलब्धि,
(ख) शक्ति के विभिन्न साधन,
(ग) अनुकूल जलवायु ।
3. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले किन्हीं तीन मानवीय कारकों के नाम बताएँ ।
उत्तर – (क) सस्ते श्रमिकों की उपलब्धि,
(ख) संचार एवं परिवहन के साधन,
(ग) पूँजी व बैंक की सुविधाएँ ।
4. आधुनिक उद्योगों के प्रमुख अवयव क्या हैं ?
उत्तर – कच्चा माल, पूँजी, प्रशिक्षित श्रमिक, ऊर्जा, यातायात की सुविधाएँ आदि ।
5. भारत में कृषि पर आधारित प्रमुख उद्योग कौन से हैं ?
उत्तर – कपड़ा उद्योग, चीनी उद्योग, वनस्पति तेल उद्योग, कागज उद्योग, पटसन वस्त्र उद्योग आदि।
6. हल्के उद्योग किन्हें कहते हैं ?
उत्तर – हल्के उद्योग से तात्पर्य यह है कि जिस उद्योग में लागत कम लगती है और श्रमिक भी काफी कम संख्या में काम करते हैं तथा इनमें उपयोग होने वाले कच्चा माल का उपयोग कम मात्रा में होता है। उदाहरण स्वरूप- बिजली के पंखे, सिलाई की मशीन |
7. महाराष्ट्र के चार महत्त्वपूर्ण सूती वस्त्र उद्योग केंद्रों के नाम बताएँ ।
उत्तर – महाराष्ट्र के चार महत्त्वपूर्ण सूती वस्त्र उद्योग केंद्र –
(क) मुंबई, (ख) शोलापुर, (ग) पूणे और (घ) नागपुर ।
8. भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण दो चीनी उत्पादक राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर – भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण दो चीनी उत्पादक राज्य
(क) उत्तर प्रदेश और (ख) महाराष्ट्र ।
9. भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान के चार उत्पादक केंद्रों के नाम बताएँ ।
उत्तर – भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान के चार उत्पादक केंद्र
(क) बंगलौर, (ख) हैदराबाद, (ग) चेन्नई और (घ) दिल्ली ।
10 उत्तरप्रदेश के चार महत्त्वपूर्ण ऊनी वस्त्र उद्योगों के नाम लिखें।
उत्तर – उत्तरप्रदेश के चार महत्त्वपूर्ण ऊनी वस्त्र उद्योग
(क) कानपुर, (ख) शाहजहाँपुर, (ग) आगरा और (घ) मिर्जापुर।
11. कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के दो-दो लोहा और इस्पात संयंत्रों के नाम बताएँ l
उत्तर – कर्नाटक के लोहा इस्पात संयंत्र –
(क) भद्रावती स्टील प्लांट,
(ख) विजयनगर स्टील प्लांट |
पश्चिम बंगाल के लोहा इस्पात संयंत्र –
(क) दुर्गापुर स्टील प्लांट,
(ख) इंडियन आयरन स्टील कंपनी, वर्नपुर, हीरापुर, कुल्टी (आसनसोल) ।
12. लोहे और इस्पात को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – लोहाइस्पात एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि इस पर अनेक अन्य उद्योगों का विकास निर्भर करता है जैसे भारी इंजीनियरी और मशीनी औजार, जलयान निर्माण उद्योग, भारी मोटर गाड़ियाँ निर्माण उद्योग, वायुयान उद्योग, इलेक्ट्रोनिक वस्तुएँ एवं भारी विद्युत उपस्कर, रेलवे इंजन, उर्वरक, रक्षा सामग्री आदि ।
13. सीमेंट उद्योग की दो प्रमुख आवश्यकताओं के नाम लिखें।
उत्तर – बिजली और चूने का पत्थर आदि सीमेंट उद्योग की दो प्रमुख आवश्यकताएँ हैं। चूने के पत्थर को पीसने के लिए बिजली की बड़ी आवश्यकता पड़ती है इसलिए बिजली की उपलब्धि के बिना इस उद्योग का लगाया जाना कठिन होता है। बिजली और चूने के पत्थर के अतिरिक्त सस्ते मजदूरों का मिलना भी उपयोगी सिद्ध होता है।
14. भारत में सबसे अधिक कारीगर सूती उद्योग में लगे हुए हैं। क्यों ? इसके दो कारण लिखें ।
उत्तर – (क) सूती उद्योग भारत का सबसे पुराना उद्योग है। यह उद्योग काफी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र सम्मिलित हैं।
(ख) वस्त्र उद्योग में अनेक कारीगरों की आवश्यकता पड़ती है। कुछ लोग कपास से बिनौले अलग करने में कुछ सूत कातने, कुछ सूत बुनने में, कुछ रंगाई करने में और कुछ छपाई आदि के कार्यों में लग जाते हैं।
15. औद्योगिक प्रदूषण पर्यावरण को किस प्रकार निम्नीकृत करता है ? दो उदाहरणों सहित व्याख्या करें ।
उत्तर – (क) कारखानों से निकलने वाला गन्दा, तेजाबी और जहरीला जल जब निरन्तर आस-पास की भूमि में फैलता रहता है तो वह उन भूमियों को बिल्कुल बेकार कर देता है। ऐसी भूमियाँ कृषि योग्य नहीं रहती।
(ख) कारखानों से निकला हुआ कूड़ा-कचड़ा भूमि और जल प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बन जाता है ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
विनिर्माण उद्योग
1. आधारभूत उद्योग क्या है। उदाहरण देकर बताएँ ।
उत्तर – तैयार माल की प्रकृति के आधार पर उद्योगों का विभाजन निम्नांकित वर्गों में कर सकते हैं
(क) मूल उद्योग – वे महत्त्वपूर्ण उद्योग, जिन पर अन्य अनेक उद्योग आधारित होते हैं, मूल उद्योग या बुनियादी उद्योग कहलाते हैं। जैसे- लोहा और इस्पात उद्योग तथा भारी मशीन निर्माण उद्योग इसी वर्ग के उद्योग हैं।
(ख) उपभोक्ता उद्योग – वे उद्योग जो वस्तुओं का उत्पादन मुख्यतः लोगों के उपभोग के लिए करते हैं, उपभोक्ता उद्योग कहलाते हैं। माडर्न बेकरी, दिल्ली दुग्ध योजना और फाउंटेन पेन उद्योग उपभोक्ता उद्योग के उदाहरण हैं।
2. उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं ?
उत्तर – (क) उद्योगों ने चार प्रकार के प्रदूषण को जन्म दिया है –
(a) वायु प्रदूषण, (b) जल प्रदूषण, (c) भूमि प्रदूषण तथा (d) ध्वनि प्रदूषण |
(ख) उद्योगों से निकलने वाला धुआँ वायु तथा जल दोनों को प्रदूषित करता है। वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से अवांछनीय गैसों की मात्रा बढ़ जाती है तथा वायु प्रदूषित हो जाती है।
(ग) वायु में धूल, धुआँ तथा धुंध मिले रहते हैं। इससे वायुमंडल प्रभावित होता है।
(घ) उद्योगों से निकला कचरा विषाक्त होता है और भूमि तथा मिट्टी को प्रदूषित करता है।
(ङ) खराद तथा आरा मशीनों से आवाज तथा प्रदूषक दोनों भारी मात्रा में निकलते हैं। इससे पूरा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।
(च) जिस समय पर्यावरण के विभिन्न तत्व प्रदूषित हो जाते हैं तो पूरा पर्यावरण क्षति हो जाता है।
3. उद्योगों का क्या महत्व है ?
उत्तर – उद्योगों का महत्व –
(क) उद्योग किसी देश की अर्थ-व्यवस्था और लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं ।
(ख) उद्योगों के द्वारा लोगों के दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जाता है और उद्योग लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
(ग) उद्योगों के द्वारा निर्मित वस्तुएँ देश-विदेश में बेचकर विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है, जिससे राष्ट्रीय धन में वृद्धि होती है।
4. स्पष्ट करें कि कृषि और उद्योग किस प्रकार साथ-साथ बढ़ रहे हैं ?
उत्तर – (क) कृषि, उद्योगों के विकास के लिए अनेक प्रकार के कच्चे माल का उत्पादन करती है और औद्योगिक उन्नति के लिए एक ठोस आधार का निर्माण करती है ।
(ख) दूसरी ओर उद्योगों के कारण ही कृषि के उत्पाद में वृद्धि सम्भव हो पाई है। उद्योगों की विविधता तथा इनके विकास के फलस्वरूप ही कृषि का आधुनिकीकरण सम्भव हो सका है।
5. भारत में कृषि पर आधारित उद्योग कौन से हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था में उनका क्या महत्व है ?
उत्तर – जो उद्योग कृषि पर आधारित होते हैं उनको कृषि आधारित उद्योग कहते हैं। इन कृषि पर आधारित उद्योगों का भारत की अर्थव्यवस्था में अपना विशेष महत्व निम्नांकित हैं –
(क) वे दैनिक जीवन में काम आने वाली अनेक वस्तुओं का निर्माण करते हैं और लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
(ख) कृषि प्रधान देश के लिए कृषि पर आधारित उद्योगों का अपना विशेष महत्व है। कच्चा माल हमारे देश में ही प्रयोग हो जाता है और तैयार होने पर उसकी कीमत कई गुणा बढ़ जाती है। ऐसे में हमारी आय में कई गुणा बढ़ोत्तरी हो जाती है।
6. रसायन उद्योग का क्या अर्थ है ? रसायन उद्योग का महत्व बताएँ ।
उत्तर – रसायन उद्योग का अर्थ- वह उद्योग जो भारी रसायनों से अनेक उत्पाद जैसे औषधियाँ, रंगाई का सामान, कीटनाशक दवाएँ, प्लास्टिक, पेंट आदि बनाता है उसे रसायन उद्योग कहते हैं ।
रसायन उद्योग का महत्व – भारत में अनेक रासायनिक पदार्थों का उत्पादन किया जाता है जैसे दवाइयाँ, कीटनाशक दवाइयाँ, रंगने के मसाले, रंग, प्लास्टिक आदि। कीटनाशक दवाइयों का कृषि के क्षेत्र में अपना विशेष महत्व है।
7. किन कारणों से भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हुए हैं ?
उत्तर – भारत में रसायन उद्योग तेजी से विकसित हो रहा है तथा फैल रहा है। यह उद्योग एशिया का तीसरा बड़ा तथा विश्व में आकार की दृष्टि से 12वें स्थान पर है। इसमें लघु तथा बृहत् दोनों प्रकार की विनिर्माण इकाइयाँ सम्मिलित हैं। अकार्बनिक और कार्बनिक दोनों क्षेत्रों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई है।
(क) अकार्बनिक रसायनों में सलफ्यूरिक अम्ल (उर्वरक, कृत्रिम वस्त्र, प्लास्टिक, गोंद, रंग-रोगन, डाई आदि के निर्माण में प्रयुक्त) नाइट्रिक अम्ल, क्षार, सोडा ऐश, (काँच, साबुन, शोधक या अपमार्जक, कागज में प्रयुक्त होने वाले रसायन) तथा कास्टिक सोडा आदि शामिल हैं। इन उद्योगों का देश में विस्तृत फैलाव है ।
(ख) कार्बनिक रसायनों में पेट्रोरसायन शामिल हैं जो कृत्रिम वस्त्र, कृत्रिम रबर, प्लास्टिक, रंजक पदार्थ, दवाईयाँ, औषध रसायनों के बनाने में प्रयोग किये जाते हैं। ये उद्योग तेल शोधन शालाओं या पेट्रोरसायन संयंत्रों के समीप स्थापित हैं।
8. उर्वरक उद्योग पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा, उर्वरक उद्योग का क्या महत्व है ? भारत के उर्वरक उद्योग के विकास को स्पष्ट करें।
उत्तर – भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए एवं जनता का जीवन-स्तर ऊँचा करने के लिए उत्पादन में वृद्धि के लिए उर्वरकों की बहुत आवश्यकता है। अब तक के उर्वरक के प्रमुख केन्द्र सिन्दरी, नांगल, नागपुर, दुर्गापुर, हल्दिया, कोच्चि चेन्नई, राउरकेला आदि स्थानों पर स्थित हैं। क्योंकि इनके समीप कच्चा माल जैसे कोयला, पेट्रोल, बिजली, प्राकृतिक गैस आदि आसानी से उपलब्ध हैं।
9. भारत में सीमेंट उद्योग के विकास और वितरण का विवरण दें।
उत्तर – निर्माण कार्यों जैसे- घर, कारखाने, पुल, सड़कें, हवाई अड्डा, बाँध तथा अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के निर्माण में सीमेंट आवश्यक है। इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे— चूना पत्थर, सिलिका, एल्यूमिना और जिप्सम की आवश्यकता होती है रेल परिवहन के अतिरिक्त इसमें कोयला तथा विद्युत ऊर्जा भी आवश्यक है।
इस उद्योग की इकाइयाँ गुजरात में लगाई गई हैं क्योंकि यहाँ से इसे खाड़ी के देशों के बाजार की उपलब्धता है। पहला सीमेंट उद्योग सन् 1904 में चेन्नई में लगाया गया था। स्वतंत्रता के पश्चात् इस उद्योग का प्रसार हुआ। सन् 1989 से मूल्य व वितरण में नियंत्रण समाप्ति तथा अन्य नीतिगत सुधारों से सीमेंट उद्योग ने क्षमता, प्रक्रिया व प्रौद्योगिकी व उत्पादन में अत्यधिक तरक्की की है। भारत में विविध प्रकार के सीमेंटों का उत्पादन किया जाता है। गुणवत्ता में सुधार के कारण, भारत की बड़ी घरेलू माँग के अतिरिक्त, पूर्वी एशिया, मध्यपूर्व, अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया के बाजारों में माँग बढ़ी है। यह उद्योग उत्पादन तथा निर्यात दोनों ही रूपों में प्रगति पर है।
10. चीनी उद्योग पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
उत्तर – चीनी उद्योग की स्थापना भारत में सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश और बिहार में निजी क्षेत्र के अधीन हुई। इन दोनों प्रान्तों में गन्ना अधिक उत्पन्न होता है। यहाँ बिजली काफी उपलब्ध हो जाती है। मजदूरी भी यहाँ सस्ती है। अब धीरे-धीरे महाराष्ट्र और अन्य दक्षिणी राज्यों में चीनी मिलें खोलने की प्रवृत्ति पैदा हो रही है। दक्षिणी भारत में पैदा होने वाले गन्ने में चीनी की मात्रा अधिक है। चीनी उद्योग मौसमी उद्योग है। इसलिए इसकी ठीक व्यवस्था सहकारी समितियों द्वारा हो सकती है। दक्षिणी भारत, विशेषकर महाराष्ट्र में सहकारी समितियाँ काफी संगठित और सफल हैं।
11. भारत में चीनी उद्योग के दक्षिण की ओर स्थानांतरण की प्रवृति की कारणों की व्याख्या करें ।
उत्तर – काफी समय तक उत्तरी भारत ही चीनी उद्योग का केन्द्र बना रहा है। अकेले उत्तर प्रदेश में भारत की चीनी की आधी मिलें विद्यमान हैं। परन्तु अब धीरे-धीरे दक्षिण भारत में चीनी मिलें खोलने की प्रवृत्ति पैदा हो रही है। इसके लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं –
(क) प्रयोग से सिद्ध हुआ कि दक्षिण भारत में पैदा होने वाले गन्ने में चीनी की मात्रा अधिक है।
(ख) अनेक प्रांतों जैसे महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों ने अब गन्ने की उपज की ओर अधिक दिलचस्पी शुरू कर दी है।
(ग) चीनी निर्यात की वस्तु है। क्योंकि समुद्र तटीय सुविधाएँ दक्षिण में अधिक उपलब्ध हैं, उत्तर में नहीं, इसलिए दक्षिण में चीनी उद्योग के उन्नति करने के अधिक अवसर हैं ।
12. चीनी उद्योग के उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र में विकसित होने के कोई चार कारण बताएँ ।
उत्तर – उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग के विकास के कारण भारत में उत्तर प्रदेश चीनी उद्योग में सबसे आगे है। भारत में तैयार होने वाली चीनी का लगभग आधा भाग अकेले उत्तर प्रदेश में तैयार होता है। इसके निम्नांकित मुख्य कारण हैं
(क) उत्तर प्रदेश गन्ने का घर है। वहाँ की भूमि उपजाऊ है, धूप खूब पड़ती है और वार्षिक वर्षा भी 100 से०मी० से अधिक है। ये सभी चीजें गन्ने के उत्पादन में बहुत सहायक होती हैं।
(ख) चीनी उद्योग के लिए आवश्यक बिजली भी वहाँ काफी उपलब्ध हो जाती है।
(ग) मजदूरी भी वहाँ सस्ती है। कुछ अपने क्षेत्र के मजदूर और विशेषकर बिहार राज्य से मजदूर बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं ।
(घ) उत्तर प्रदेश एवं बिहार की जनसंख्या भी काफी है इसलिए तैयार होने वाली बहुत-सी चीनी की खपत वहाँ हो जाती है।
13. भारत की अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं ?
उत्तर – भारत की अधिकांश जूट मिलों के पश्चिम बंगाल में स्थित होने के कारण –
(क) पश्चिम बंगाल में पटसन की खेती काफी होती है। इसलिए इन उद्योगों के लिए कच्चा माल मिल जाता है।
(ख) कोलकाता बहुत बड़ा महानगर है जिसके कारण पटसन से बनने वाली बोरी और वस्त्रों की खपत हो जाती है ।
(ग) बंगाल में आबादी अधिक होने के कारण इन उद्योगों के लिए सस्ते मजदूर मिल जाते हैं ।
(घ) बंगाल में यातायात के साधनों का काफी विकास हो चुका है इसलिए यहाँ के उद्योगों तक कच्चा माल को लाने और जूट से बने सामान को बाहर भेजने में आसानी होती है ।
14. भारत की सूचना प्राद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की चर्चा करें ।
उत्तर – इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अन्तर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन, टेलीफोन, सेल्यूलर टेलीकॉम, टेलीफोन एक्सचेंज, पेजर, रडार, कम्प्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अनेक अन्य उपकरण तक बनाए जाते हैं । बंगलौर भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में उभरी है । इलेक्ट्रॉनिक सामान के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादन केन्द्र मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई कोलकाता तथा लखनऊ हैं। इसके अतिरिक्त 18 सॉफ्टवेयर प्राद्योगिकी पार्क, जो सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा तथा उच्च आँकड़े संचार सुविधा प्रदान करते हैं । इस उद्योग का प्रमुख महत्त्व रोजगार उपलब्ध करवाना भी है। 31 मार्च 2005 तक, सूचना प्रौद्योगिक उद्योग में लगे व्यक्तियों की संख्या 10 लाख से अधिक थी। अगले तीन से चार वर्षों में यह संख्या आठ गुणा होने की संभावना है। इसमें 30 प्रतिशत महिलाएँ हैं। यह उद्योग विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने का कारण हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास है।
15. भारत में सूती वस्त्र उद्योग मुंबई तथा अहमदाबाद में अधिक केंद्रित क्यों है ?
उत्तर – मुंबई और अहमदाबाद केंद्रों में सूतीवस्त्र उद्योग के विकास के निम्नांकित कारण हैं –
(क) कच्चे माल की प्राप्ति – महाराष्ट्र तथा गुजरात की काली मिट्टी में बड़ी मात्रा में कपास की खेती होती है। अतः सूती वस्त्र के लिए आसानी से कपास प्राप्त हो जाता है।
(ख) जलवायु – ये केंद्र समुद्र के निकट स्थित है जहाँ सम तथा आर्द्र जलवायु धागा कातने तथा चुनने के लिए उपर्युक्त है।
(ग) बंदरगाह की सुविधा – उत्तम किस्म के कपास उद्योगों के लिए मशीन विदेशों से आयात करने तथा तैयार माल या सिले- सिलाये कपड़े सूती कपड़े के निर्यात की सुविधा मुंबई बंदरगाह से प्राप्त होता है।
(घ) यातायात एवं शक्ति के साधनों की सुविधा- ये दोनों केंद्र देश के अन्य भागों से रेल सड़क तथ वायुमार्ग द्वारा जुड़े हैं। यहाँ ताप विद्युत तथा जलविद्युत के विकास से शक्ति के साधन उपलब्ध हैं। अतः सूतीवस्त्र उद्योग का विकास अधिक हुआ है ।
16. छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेन्द्रित हैं। कारण बताएँ ।
उत्तर – छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेंद्रित हैं। इस प्रदेश में इस उद्योग के विकास के लिए अधिक अनुकूल सापेक्षिक परिस्थितियाँ हैं। इनमें (क) लौह अयस्क की कम लागत, (ख) उच्च कोटि के कच्चे माल की निकटता, (ग) सस्ते श्रमिक और (घ) स्थानीय बाजार में इनके माँग की विशाल संभाव्यता सम्मिलित है ।
17. भारत संसार का एक महत्वपूर्ण लौह-इस्पात उत्पादक देश है तथापि इनके पूर्ण संभाव्य का विकास नहीं हो पाया है। कारण बताएँ ।
उत्तर – भारत संसार का एक महत्त्वपूर्ण लौह-इस्पात उत्पादक देश है तथापि हम इनके पूर्ण संभाव्य का विकास नहीं कर पाए हैं।
इसके कारण हैं –
(क) उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता,
(ख) कम श्रमिक उत्पादकता,
(ग) उर्जा की अनियमित पूर्ति तथा
(घ) अविकसित अवसंरचना आदि ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
विनिर्माण उद्योग
1. समन्वित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन्न है ? इस उद्योग की क्या समस्याएँ हैं ? किन सुधारों के अंतर्गत इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ी है ?
उत्तर – समन्वित इस्पात उद्योग और मिनी इस्पात उद्योग में अन्तर –
(क) समन्वित इस्पात उद्योग आकार में मिनी इस्पात उद्योगों की तुलना में काफी बड़े होते हैं ।
(ख) समन्वित इस्पात उद्योगों में इस्पात से सम्बन्धित सभी कार्य एक ही कम्पलैक्स में होते हैं। कच्चे माल से लेकर इस्पात बनाने, इसे ढालने तथा उसे आकार देने तक ।
जबकि मिनी इस्पात कारखानों में रद्दी इस्पात व स्पंज आयरन का प्रयोग होता है जो इसे संकलित इस्पात उद्योगों से मिलता है ।
(ग) जबकि समन्वित इस्पात कारखाने में सभी प्रकार का इस्पात तैयार होता है वहीं मिनी इस्पात कारखाने में केवल मृदु व मिश्रित इस्पात का निर्माण होता है।
इस्पात उद्योग की समस्याएँ –
(क) इसको चीन जैसे इस्पात निर्यातक देशों की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करना पड़ता है।
(ख) इसे उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धि का भी सामना करना पड़ता है।
(ग) अविकसित अवसंरचना भी इसके मार्ग में कई रुकावटें पैदा करती है।
(घ) कम श्रमिक उत्पादकता भी एक समस्या है ।
(ङ) ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति भी इसके लिए कठिनाई पैदा कर देती है।
निम्नांकित सुधारों ने इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाया है –
(क) उदारीकरण ने इस उद्योग को काफी प्रोत्साहन दिया है।
(ख) निजी क्षेत्र में अनेक उद्यमियों ने भी अपने प्रयत्नों से इस उद्योगों को काफी प्रोत्साहन दिया है।
(ग) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी इस उद्योग को पनपने में काफी सहायता मिली है। परन्तु विकास के साधनों को नियम करने और अनुसंधान से इस इस्पात उद्योग की प्रगति को और तेज किया जा सकता है।
2. उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा करें ।
उत्तर – उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के विभिन्न उपाय –
(क) जल शक्ति का प्रयोग – हमें कोयले, लकड़ी या खनिज तेज से पैदा की गई बिजली जो हवा प्रदूषित करती है, के स्थान पर जल द्वारा पैदा की गई बिजली का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे में वातावरण में कम धुआँ जाएगा जिससे वह काफी शुद्ध रहेगा।
(ख) तापीय बिजली पैदा करने में अच्छी प्रकार के कोयले का प्रयोग – बहुत से वैज्ञानिकों का ऐसा सुझाव है कि यदि कोयले से तापीय बिजली पैदा करनी हो तो उत्तम श्रेणी के कोयले का प्रयोग करना चाहिए जो कम धुआँ छोड़े। ऐसे में वातावरण का प्रदूषण कम होगा।
(ग) कारखानों को नगरों से दूर ले जाना- ऐसे सभी फैक्ट्रियों को जो वातावरण में धुआँ एवं जहरीली गैसें छोड़ते हैं उन्हें शहरों से दूर ले जाना चाहिए ताकि वे नगरों के वातावरण को और प्रदूषित न करे। इस दिशा में उच्चतम न्यायालय ने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है। जब दिल्ली सरकार को यह आदेश दिया कि वे प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को कार्पोरेशन की सीमाओं से बाहर ले जाए।
(घ) प्रदूषित जल को नदियों में छोड़ने से पहले जल को उपचारित करना चाहिए – यदि फैक्ट्रियों के जल को नदियों में फेंकना ही हो तो उसे पहले उपचारित कर लिया जाए तो प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।
(ङ) प्रदूषित जल की पुनः चक्रीय क्रिया – अच्छा हो यदि फैक्ट्रियों से निकले प्रदूषित जल को वहीं इकट्ठा करके रासायनिक प्रक्रिया द्वारा उसे साफ किया जाए और बार-बार प्रयोग में लाया जाए। ऐसे में नदियों और आसपास की भूमि का प्रदूषण काफी हद तक रुक जाएगा।
(च) कठोर नियमों के पास किए जाने की आवश्यकता- जो उद्योग उपर्युक्त उपचारों को न अपनाए उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है। उन्हें आसपास के वातावरण को खराब करने नहीं देना चाहिए और प्रदूषण फैलाने से रोकना चाहिए। उन पर भारी जुर्माने भी किए जाने चाहिए ताकि जन-साधारण के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ न हो सके।
3. भारतीय सूती वस्त्र उद्योग किन तीन समस्याओं का सामना कर रहा है? इन समस्याओं के हल करने के लिए तीन उपाय बताएँ ।
उत्तर – भारतीय सूती वस्त्र उद्योग सामने तीन समस्याएँ
(क) पहली समस्या यह है कि इस उद्योग की तकनीक बहुत पुरानी और बेकार हो चुकी है।
(ख) सूती कपड़े की मिलें बहुत पुरानी हो चुकी हैं जिस कारण उनके बनाएँ रखने पर बहुत खर्च आता है । भवन और मशीनरी भी जीर्ण अवस्था में हैं जिनके कारण उत्पादन खर्च बहुत आ जाता है परिणामस्वरूप बेकारी और औद्योगिक उड़ता उत्पन्न हो जाती है।
(ग) हमारे देश में पैदा होने वाली कपास लम्बे रेशे वाली नहीं होती, इसलिए हमें लम्बे रेशे वाली कपास का विदेशों विशेषकर मिश्र से आयात करना पड़ता था।
समस्याओं को हल करने के उपाय –
(क) हमें पुरानी तकनीक में सुधार करके सूती वस्त्र बनाने की नवीनतम तकनीक को अपनाना चाहिए।
(ख) सूती कपड़े की मिलों एवं कारखानों में निपुणता और बचत लानी होगी ताकि फिजुल खर्च को रोका जा सके । यह इसलिए आवश्यक है कि हमें मिलें बन्द न करनी पड़े और कारीगरों की छटनी करने की नौबत न आए ।
(ग) हमें अपने देश में ही लम्बे रेशे की कपास का उत्पादन करना चाहिए ताकि विदेशी मुद्रा की बचत के साथ-साथ कपड़ा भी बढ़िया बनाया जा सके।
4. लोहा और इस्पात उद्योग केवल प्रायद्वीपीय भारत में ही क्यों स्थित हैं ?
उत्तर – प्रायद्वीपीय भारत प्राचीन कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित है जो खनिज सम्पदा की दृष्टि से सम्पन्न है। इस क्षेत्र में भारत के छः प्रमुख लौह इस्पात केन्द्र स्थित हैं जो निम्नांकित हैं –
जमशेदपुर, बोकारो, कुल्टी बर्नपुर, दुर्गापुर, राउरकेला, भिलाई।
प्रायद्वीपीय भारत में लौह-इस्पात केन्द्र के स्थित होने के कारण निम्न हैं –
(क) कच्चे माल की उपलब्धता- लौह उद्योग का कच्चा माल भारी होता है तथा अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है इसलिए लौह उद्योग कच्चे माल के क्षेत्र के निकट ही स्थापित किये जाते हैं। प्रायद्वीपीय भारत लौह-अयस्क, मैंगनीज, चूना-पत्थर आदि खनिजों में धनी है।
(ख) जलापूर्ति – इस उद्योग में जल अधिक मात्रा में उपयोग होता है जिसकी पूर्त्ति इस क्षेत्र में प्रवाहित दामोदर, महानदी, गोदावरी एवं इसकी सहायक नदियों के द्वारा होती है।
(ग) शक्ति के संसाधन- उर्जा के साधन के रूप में कोयला एवं जल विद्युत का अधिक उपयोग होता है जो इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
(घ) परिवहन एवं व्यापार इस क्षेत्र में सड़क एवं रेल मार्ग का अच्छा विकास हुआ है, साथ ही समुद्री पत्तन की भी सुविधा है जैसे- कोलकाता, विशाखापत्तनम, चेन्नई एवं मुम्बई ।
(ङ) सस्ते श्रमिक घनी जनसंख्या के कारण सस्ते दर पर श्रमिक उपलब्ध हो जाते हैं।
कर्नाटक के दो लौह और इस्पात संयंत्र के नाम भद्रावती और विजयनगर तथा पश्चिम बंगाल के दो लौह और इस्पात संयंत्र के नाम बर्नपुर और दुर्गापुर हैं।
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