Jharkhand Board | Social Science subjective question answer | Class 10Th Social Science subjective question answer

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SOCIAL SCIENCE (सामाजिक विज्ञान) : OBJECTIVE QUESTION

इकाई – 1 ( इतिहास – भारत और समकालीन विश्व – II)

1. यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

अतिलघु / अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. राष्ट्रवाद किसे कहते हैं ?
उत्तर – राष्ट्रवाद एक ऐसी मनःस्थिति है, जिसमें एक समूह के लोगों की भावना या संवेग एक साथ मिलकर एक भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं, एक जैसी भाषा बोलते हैं, जिनका एक साहित्य होता है जिसमें राष्ट्रवाद की भावनाओं से युक्त प्रत्याशाएँ होती हैं, जो जनसाधारण की परम्पराओं से जुड़ा होता है।
2. निरंकुशवाद से आप क्या समझते हैं ? 
उत्तर – निरंकुशवाद का सामान्य अर्थ एक ऐसी सरकार या शासन व्यवस्था है जिसकी सत्ता पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं होता। इतिहास में ऐसी राजशाही सरकारों को निरंकुश सरकार कहते हैं जो अत्यंत केन्द्रीकृत, सैन्य बल पर आधारित और दमनकारी सरकारें होती थीं।
3. फ्रेड्रिक सॉरयू कौन था ?
उत्तर – फ्रेड्रिक सॉरयू एक फ्रांसीसी कलाकार था जिसने चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई जिसमें एक ऐसे सपनों का संसार था, जो जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों से मिलकर बना था।
4. यंग इटली क्या है ?
उत्तर –  यह एक गुप्त संगठन था, जिसे इटली के एकीकरण के लिए ज्युसेपी • मेत्सिनी द्वारा गठित किया गया।
5. रूढ़िवादी कौन थे ? या, रूढ़िवादिता की क्या भावना थी ?
उत्तर – रूढ़िवादिता एक राजनीतिक दर्शन था जो परंपराओं, स्थापित संस्थाओं व प्रथाओं के महत्त्व पर बल देता था तथा तीव्र परिवर्तन की बजाय मंथर विकास को महत्त्व देता था। 1815 में नेपोलियन कीपर के बाद यूरोपीय सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित हुई। यद्यपि अधिकांश रूढ़िवादी लोग पूर्व-क्रांति के दिनों में नहीं लौटना चाहते थे तथापि वे नेपोलियन संहिता द्वारा राजतंत्र को मजबूत करना चाहते थे।
6. ‘एक्ट ऑफ यूनियन’ क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – इंगलैंड और स्कॉटलैंड के मध्य 1707 में ‘एक्ट ऑफ यूनियन का गठन हुआ जिसके फलस्वरूप ‘यूनाइटेड किंग्डम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन’ का गठन हुआ जिसका प्रभाव यह हुआ कि इंगलैंड ने व्यावहारिक रूप में स्कॉटलैंड पर अपना प्रभुत्व जमा लिया।
7. सीमाशुल्क संघ की स्थापना क्यों हुई?
उत्तर – (i) सन् 1834 में प्रशा की पहल पर एक सीमाशुल्क संगठन या सीमाशुल्क-संघ की स्थापना की गई जिससे कई जर्मन राज्य आकर मिल गए। इस संघ ने सीमाशुल्क नाकों को समाप्त कर दिया और मुद्रा की संख्या घटा कर दो कर दी, जो उससे पहले तीस से भी ऊपर थी। (ii) इसने आर्थिक राष्ट्रवाद के आंदोलन को जन्म दिया जिसने उस समय में पनप रही व्यापक राष्ट्रवादी भावनाओं को मजबूत बनाया।
8. नेपोलियन की संहिता क्या थी ?
उत्तर – 1804 को नागरिक संहिता जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे। उसने कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।
9. मेजिनी कौन था ?
उत्तर – मेजिनी को इटली के एकीकरण का पैगम्बर कहा जाता है। वह दार्शनिक, लेखक, राजनेता, गणतंत्र का समर्थक और कर्मठ कार्यकर्ता था। वह कार्बोनारी का सदस्य था। उसने अपने गणतंत्रवादी उद्देश्यों के प्रचार के लिए ‘यंग इटली’ तथा ‘यंग यूरोप’ की स्थापना की थी।
10. 1848 की फ्रांसीसी क्रांति के क्या कारण थे ?
उत्तर – 1830 के बाद यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हो रहे थे। शासन पर मध्यम वर्ग का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। परन्तु समाज के सर्वसाधारण वर्ग जिसमें बहुसंख्यक कृषक और श्रमिक थे, उन्हें सत्ता से अलग रखा जा रहा था। अतः उनमें असंतोष बढ़ रहा था। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप पूँजीपति और श्रमिक वर्ग एक-दूसरे के सामने थे। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर बहुसंख्यक गरीब और किसान-मजदूर संघर्ष के लिए उतावले हो गए। इस प्रकार के राष्ट्र राज्य संविधान, प्रेस की आजादी और संगठन बनाने की स्वतंत्रता जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित थे। आगे चलकर फ्रांस में भी लुई फिलिप के विरुद्ध आवाज उठने लगी जिसने फ्रांस में एक और क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रसार में नेपोलियन बोनापार्ट के योगदानों की विवेचना करें।
उत्तर – नेपोलियन बोनापार्ट ने विजित राज्यों में राष्ट्रवादी भावना जागृत कर दी। फ्रांसीसी आधिपत्य वाले राष्ट्रों में नेपोलियन संहिता, फ्रांसीसी शासन और अर्थव्यवस्था समान रूप से लागू की गई। नेपोलियन के इन कार्यों से इटली एवं जर्मनी के एकीकरण का मार्ग सुगम हो गया और वहाँ राष्ट्रवाद का विकास हुआ। दूसरी ओर नेपोलियन के युद्धों और विजयों से अनेक राष्ट्रों में फ्रांसीसी आधिपत्य के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई । एवं आक्रोश बढ़ा। इससे भी राष्ट्रवाद का विकास हुआ।
यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रसार की शुरुआत 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से हुआ। नेपोलियन ने अपनी विजयों एवं नीतियों से राष्ट्रवादी भावना को आगे बढ़ाया। नेपोलियन के आधिपत्य के विरुद्ध भी राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ। मेररनिक की नीतियों ने भी राष्ट्रवादी – भावना को बढ़ावा दिया। इस तरह समस्त यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रसार-प्रचार करने में नेपोलियन बोनापार्ट का अमूल्य योगदान रहा।
2. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर – जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उसने एकीकरण के लिए ‘रक्त और तलवार’ की नीति अपनाई। डेनमार्क, आस्ट्रिया और फ्रांस के साथ युद्धों द्वारा प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण 1871 में संभव हुआ।
बिस्मार्क जर्मनी के एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति के महत्त्व को समझता था। अतः इसके लिए उसने ‘रक्त और शस्त्र’ की नीति का अवलम्बन किया। अतः बिस्मार्क ने हर संभव उपाय से धन एकत्र करके प्रशा की सैन्य शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया। इस कार्य में उसे अद्भुत सफलता मिली। सैनिक सुधार की योजना पूरी करके उसने अल्प समय में ही सेना को सुसंगठित करके अत्यंत शक्तिशाली बना लिया। बिस्मार्क ने अपनी नीतियों से प्रशा का सुदृढ़ीकरण किया और इस कारण प्रशा आस्ट्रिया से किसी भी मायने में कम नहीं रह गया था। कालांतर में उसने 1830 के आस्ट्रिया-प्रशा संधि का विरोध करना शुरू किया, जिसमें प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण नहीं किया जाना था । फलस्वरूप प्रशा के नेतृत्व में जर्मन एकीकरण की भावना जोर पकड़ने लगी। अब बिस्मार्क जर्मन एकीकरण की योजना बनाने लगा। इसके लिए 1864 और 1871 के बीच उसको तीन युद्ध करने पड़े जिनके फलस्वरूप जर्मनी की एकता कायम हुई।
3. इटली के एकीकरण में मेजिनी, काबूर और गैरीबाल्डी के योगदानों को बताएँ।
उत्तर – इटली का एकीकरण मेजिनी, कावूर और गैरीबाल्डी के सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप हुआ।
मेजिनी – मेजिनी तरुणावस्था से ही गुप्त राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था। वह कार्बोनारी का सदस्य बन गया। 1831 में उसने ‘यंग इटली’ और 1834 में ‘यंग यूरोप’ नामक गुप्त क्रांतिकारी संगठन स्थापित किए। मेटरनिक के पतन (1848) के बाद वह इटली के एकीकरण के प्रयास में लग गया, परंतु विफल होकर वह इटली से चला गया।
कावूर – राजा विक्टर इमैनुएल के मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में उसने सार्डिनिया की आर्थिक और सैनिक स्थिति सुदृढ़ की। 1859 में फ्रांस की सहायता से ऑस्ट्रिया को पराजित कर कावूर ने लोम्बार्डी पर अधिकार कर लिया। मध्य इटली स्थित अनेक राज्यों को सार्डिनिया में मिला लिया गया। कावूर के प्रयासों से इटली के एकीकरण का महत्त्वपूर्ण चरण पूरा हुआ।
गैरीबाल्डी – अपनी ‘लाल कुर्ती’ और स्थानीय किसानों की सहायता से उसने 1860 में सिसली पर अधिकार कर लिया। बाद में उसने नेपल्स पर भी अधिकार कर लिया। इन्हें सार्डिनिया में मिला लिया गया। इस प्रकार, इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण पूरा हुआ।

2. इंडो-चायना में राष्ट्रवादी आंदो

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. वियतनाम के केवल एक तिहाई विद्यार्थी ही स्कूली पढ़ाई सफलतापूर्वक पूरी कर पाते थे। व्याख्या कीजिए। 
उत्तर – वियतनाम में शिक्षा काफी महंगी थी। इसलिए गरीब अपने बच्चों को फीस देकर नहीं पढ़ा सकते थे। काफी संख्या में वियतनामी छात्रों को परीक्षा में जान-बूझकर फेल भी कर दिया जाता था। इसलिए वहा एक तिहाइ विद्यार्थी ही स्कूली पढ़ाई सफलतापूर्वक कर पाते थे।
2. फ्रांसीसियों ने मेकाँग डेल्टा क्षेत्र में नहरें बनवाना और जमीनों को सुखाना शुरू किया। 
उत्तर – फ्रांसीसी मेकाँग डेल्टा क्षेत्र में खेती का विस्तार करना चाहते थे । इसलिए उन्होंने इस क्षेत्र में जमीनों को सुखाना आरंभ कर दिया। सिंचाई की सुविधा प्रदान करने के लिए बहुत सी नहर खुदवाई गई और भूमिगत जलधाराएँ बनाई गई। इसके लिए कई लोगों को जबरदस्ती काम पर लगाया गया। इस व्यवस्था से चावल के उत्पादन में असाधारण वृद्धि हुई। फलस्वरूप 1931 तक वियतनाम संसार में चावल का तीसरा बड़ा निर्यातक बन गया।
3. सरकार ने आदेश दिया कि साइगॉन नेटिव गर्ल्स स्कूल उस लड़की को वापस कक्षा में ले, जिसे स्कूल से निकाल दिया गया था।
उत्तर – 1926 में साइगॉन नेटिव गर्ल्स स्कूल (वियतनाम) में एक विवाद उठ खड़ा हुआ। यह विवाद एक वियतनामी लड़की की सीट बदलने से पैदा हुआ। उसे कक्षा में अगली सीट से उठाकर पिछली सीट पर जाकर बैठने के लिए कहा गया। क्योंकि उस सीट पर एक फ्रांसीसी लड़की को बैठना था। जब लड़की ने सीट छोड़ने से इंकार किया, तो स्कूल के कोलोन पिंसीपल ने उसे स्कूल से निकाल दिया। अन्य विद्यार्थियों ने इसका जम कर विरोध किया। इस पर उन्हें भी स्कूल से निकाल दिया गया। इस विवाद ने एक बहुत बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। लाग खुले आम जुलूस निकालने लगे। स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी। अतः फ्रांसीसी सरकार ने हार कर प्रिंसीपल को आदेश दिया कि लड़की को पुनः स्कूल में ले । फलस्वरूप प्रिंसीपल को लड़की को वापस दाखिला देना पड़ा।
4. हेनोई के आधुनिक, नवनिर्मित इलाकों में चूहे बहुत थे ।
उत्तर – हेनोई के फ्रांसीसी आबादी वाले क्षेत्र को सुन्दर और साफ-सुथरा बनाया गया था। वहाँ जल निकासी की उचित व्यवस्था थी। इसके लिए विशाल सीवर बनाये गए थे। यही सीवर चूहों के पनपने के स्थल बन गये। ये सीवर चूहों के आवागमन के लिए भी आदर्श थे। इनमें से होते हुए चूहे पूरे शहर में बिना रोक-टोक के घूमते रहते थे। वे फ्रांसीसियों के घरों में घुस जाते थे। अतः 1902 में उन्हें पकड़ने का अभियान चलाया गया। इस काम पर वियतनामियों को लगाया गया। उन्हें हर चूहे के बदले इनाम दिया जाने लगा। चूहों की संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 30 मई, 1902 को एक ही दिन में 20,000 चूहे पकड़े गए।
5. टोंकिन फ्री स्कूल की स्थापना के पीछे कौन-से विचार थे? वियतनाम में औपनिवेशिक विचारों के लिहाज से यह उदाहरण कितना सटीक है ?
उत्तर – टोंकिन फ्री स्कूल की स्थापना के पीछे फ्रांसीसी सरकार का उद्देश्य वियतनामी बच्चों को आधुनिकता का पाठ पढ़ाना था ताकि वियतनामी बच्चे पश्चिमी लोगों के रंग में रम जाएँ। टोंकन फ्री स्कूल में विज्ञान, स्वच्छता और फ्रांसीसी भाशा की कक्षाएं भी शमिल थीं। इसके लिए अलग से शाम को कक्षाएँ लगाई जाती थीं और सकी फीस भी अलग से ली जाती थी। वियतनामी बच्चों को सुन्दर दिखने के लिए छोटे-छोटे बाल रखने की सलाह दी जाती थीं। जबकि वे पारंपरिक रूप से लंबे बाल रखते थे। इस उदाहरण से पता चलता है कि फ्रांसीसी उपनिवेशक वियतनामी लोगों की मूल पहचान को समाप्त कर देना चाहते थे, ताकि उनमें साम्राज्यवादी विरोधी भावना न उभर सके।
6. उपनिवेशकों का ‘सभ्यता मिशन’ क्या था ?
उत्तर – वियतनाम का उपनिवेशवाद केवल आर्थिक शोषण पर आधारित नहीं था परन्तु इसके पीछे ‘सभ्य’ बनाने का विचार भी क्रियाशील था। भारत में अंग्रेजों की तरह फ्रांसीसियों का दावा था कि वे वियतनाम के लोगों को आधुनिक सभ्यता से परिचित करा रहे हैं। उनकी राय थी कि यूरोप में सबसे विकसित सभ्यता कायम हो चुकी है। अतः वे मानते थे कि उपनिवेशों में आधुनिक विचारों का प्रसार करना यूरोपियों का ही दायित्व है।
7. हो ची मिन्ह भूल भुलैया मार्ग से क्या तात्पर्य है ? वियतनाम के युद्ध में इसका क्या महत्त्व है ?
अथवा, हो ची मिन्ह मार्ग पर वियतनामियों ने अमेरिका के विरूद्ध किस तरह लोहा लिया ? 
उत्तर – हो ची मिन्ह भूलभुलैया मार्ग फुटपाथों तथा सड़कों का एक विशाल नेटवर्क था जिसके माध्यम से देश के उत्तर से दक्षिण की ओर सैनिक व रसद भेजे जाते थे।
महत्त्व –
(i) हो ची मिन्ह मार्ग को देखते ही इस बात को अच्छी तरह समझा जा सकता है कि वियतनामियों ने अमेरिका के विरुद्ध किस प्रकार युद्ध लड़ा।
(ii) इससे स्पष्ट होता है कि वियतनाम के लोगों ने अपने सीमित संसाधनों का कितनी सूझबूझ से भरी सैन्य शक्ति के विरुद्ध उपयोग किया।
(iii) इस मार्ग द्वारा प्रत्येक मास लगभग 20,000 उत्तरी वियतनामा सैनिक दक्षिणी वियतनाम पहुंचने लगे थे।
8. वियतनाम के केवल एक तिहाई विद्यार्थी ही स्कूली पढ़ाई सफलतापूर्वक कर पाते थे। व्याख्या करें । [N.C.E.R.1.} अथवा, कुल एक तिहाई विद्यार्थी ही वियतनाम में स्कूली शिक्षा पास कर पाते थे। क्यों ? 
उत्तर – यह प्रायः जानबूझकर अपनाई गई नीति के कारण था कि विद्यार्थियों को फेल कर दिया जाता था, विशेषतः अंतिम वर्ष में, ताकि वे उच्च नौकरियाँ प्राप्त करने की योग्यता न पा सकें। प्राय: दो-तिहाई विद्यार्थियों को फेल दिया जाता था। क्या अभिप्राय है?
9. ‘विद्वानों का विद्रोह’ से क्या अभिप्राय है ? 
उत्तर – अठारहवीं सदी से ही बहुत सारे धार्मिक आंदोलन पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव और उपस्थिति के विरुद्ध जागृति फैलाने का यल कर रहे थे। सन् 1868 का विद्वानों का विद्रोह फ्रांसीसी कब्जे और ईसाई धर्म के प्रसार के विरुद्ध प्रारंभिक आंदोलनों में से था। इस आंदोलन की बागडोर शाही दरबार के अफसरों के हाथ में थी । ये अफसर कैथलिक धर्म और फ्रांसीसी सत्ता के प्रसार से नाराज थे। उन्होंने न्यू अन और हा तिएन प्रांतों में विद्रोहों का नेतृत्व किया और एक हजार से अधिक ईसाइयों का वध कर डाला। कैथलिक मिशनरी 17वीं सदी के शुरुआत से ही स्थानीय लोगों को ईसाई धर्म से जोड़ने में लगे हुए थे और 18वीं सदी के अंत तक आते-जाते उन्होंने लगभग 3,00,000 लोगों को ईसाई बना लिया था। फ्रांसीसियों ने 1968 के आंदोलन को कुचल डाला परन्तु इस विद्रोह ने उनके विरुद्ध अन्य देशभक्तों में उत्साह का संचार अवश्य कर दिया।
10. ‘होआ-हाओ’ आन्दोलन की विवेचना संक्षेप में करें ।
उत्तर – होआ-हाओ आंदोलन एक बौद्धिष्ट धार्मिक क्रांतिकारी आंदोलन था जो 1939 में वियतनाम में आरंभ हुआ था। इसकी उत्पत्ति उपनिवेशवाद विरोधी विचारों से हुई थी। इसका केन्द्र मेकोंग डेल्टा था। इस आंदोलन के प्रणेता हुइन्ह फूसी था। उसके समर्थकों की संख्या बहुत बड़ी थी। हुइन्ह फूसो के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सरकार ने कठोर दमनात्मक कार्रवाई की और इस आंदोलन को दबा दिया। परन्तु वे वियतनाम में राष्ट्रवाद के वेग को रोक न सके।
11. हिन्द- चीन में फ्रांसीसी प्रसार का वर्णन करें।
उत्तर – 17वीं शताब्दी में अनेक फ्रांसीसी व्यापारी और कैथोलिक धर्मप्रचारक हिन्द-चीन पहुँचे। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से वे हिन्द-चीन की राजनीति में सक्रिय हो गए। 1787 में कोचीन-चीन तथा 1862 में अनाम के साथ फ्रांस ने संधि कर अपना प्रभाव बढ़ाया। 1863 में कंबोडिया फ्रांस का संरक्षित राज्य बन गया। 1867 में कोचीन-चीन में फ्रांसीसी उपनिवेश की स्थापना हुई। 1884 में अत्राम फ्रांस का संरक्षित राज्य बना तथा 1887 में फ्रांस ने फ्रेंच इंडो-चाइना की स्थापना की।
12. नापाम और ऐजेन्ट ऑरेंज क्या था?
उत्तर – ये घातक रासायनिक हथियार थे जिनका उपयोग अमेरिका ने वियतनामी युद्ध में किया। नापाम में गैसोलिन मिला था जो ज्वलनशील होने के कारण त्वचा से चिपककर जलता रहता था। एजेंट ऑरेंज खतरनाक जहर था। उसे जिन ड्रमों में रखा जाता था उनपर नारंगी (ऑरेंज) रंग की पट्टियाँ बनी होती थीं। इनके प्रयोग से धन-जन की भारी हानि हुई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. हिन्द- चीन उपनिवेश की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर – हिन्द-चीन में फ्रांसीसियों द्वारा उपनिवेश स्थापना के अनेक उद्देश्य अथवा कारण थे। इनमें निम्नलिखित उद्देश्य प्रमुख थे
(i) आर्थिक उद्देश्य : हिन्द-चीन एक कृषि प्रधान क्षेत्र था। इस सम्पूर्ण इलाके की मुख्य फसल चावल थी। रबर, चाय और कॉफी के उत्पादन के लिए भी यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण था । उत्तर में कई तरह के खनिज पदार्थ पाए जाते थे। इनमें टिन, लोहा, कोयला, जस्ता, टंगस्टन, क्रोमियम आदि मुख्य थे। इनका उपयोग फ्रांसीसी अपने उद्योगों के विकास में करना चाहते थे। यहाँ वाणिज्य व्यापार के विकास की भी काफी संभावनाएँ थीं। फ्रांसीसी यहाँ के कृषि उत्पादों का उपयोग अपने हित में करना चाहते थे | हिन्द- चीन में फ्रांसीसी उत्पाद के लिए बड़ा बाजार भी मिल सकता था।
(ii) व्यापारिक सुरक्षा : फ्रांस द्वारा हिन्द-चीन को अपना उपनिवेश बनाने का दूसरा उद्देश्य डच एवं ब्रिटिश कम्पनियों के व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना था। भारत और चीन में अंगरेज उन्हें व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ते जा रहे थे। अतः व्यापारिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से हिन्द-चीन फ्रांसीसियों के लिए अधिक सुरक्षित थे क्योंकि यहाँ अंगरेजी व्यापार और प्रभाव की कमी थी। अतः सुरक्षात्मक आधार के रूप में उन्हें हिन्द-चीन क्षेत्र उचित लगा जहाँ से वे भारत और चीन को कठिन परिस्थितियों में संभाल सकते थे।
(iii) असभ्यों को सभ्य बनाने का उद्देश्य : उपनिवेशों की स्थापना का उद्देश्य यह भी था कि अन्य यूरोपीय देशों की तरह फ्रांसीसी भी पिछड़ों एवं असभ्यों’ को सभ्य बनाना अपना दायित्व मानते थे। फलस्वरूप फ्रांस भी औपनिवेशिक दौड़ में शामिल हो गया।
2. हिंद- चीन में शांति के लिए राष्ट्रपति निक्सन की पाँच-सूत्री योजना क्या थी ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – वियतनामी गृहयुद्ध में अमेरिका की भागीदारी को लेकर उसकी कटु आलोचना हो रही थी। इसलिए, 1965 से ही शांति वार्ता के प्रयास होने लगे थे, परंतु वे विफल रहे। माई ली की घटना के बाद आलोचना और दबाव से विवश होकर निक्सन ने 1970 में पाँच-सूत्री प्रस्ताव (योजना) प्रस्तुत किया। इसके अनुसार, (i) हिन्द-चीन में सभी पक्षों को युद्धविराम करते हुए यथापूर्व स्थिति बनाए रखनी थी। (ii) अंतरराष्ट्रीय प्रेक्षकों और संबद्ध देशों को देखना था कि युद्धविराम का उल्लंघन नहीं हो। (iii) युद्ध-विराम के दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास नहीं करेगा। (iv) युद्ध-विराम के दौरान सभी प्रकार की लड़ाइयाँ, बमबारी और आतंकी कार्रवाइयाँ बंद रहेंगी। (v) युद्ध-विराम का अंतिम लक्ष्य समस्त हिन्द- चीन में संघर्ष का अंत होना चाहिए। निक्सन की यह योजना स्वीकार्य नहीं थी, अतः इसे अस्वीकृत कर दिया गया। अमेरिकी सेना ने पुनः बमबारी आरंभ कर दी। 1972 में निक्सन ने आठ सूत्री योजना प्रस्तुत की।

3. भारत में राष्ट्रवाद

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. चम्पारण सत्याग्रह का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर – बिहार के चम्पारण जिले में निलहे साहब किसानों को “तीनकठिया” प्रणाली के अन्तर्गत नील की खेती के लिए बाध्य करते थे। निलहे किसानों का आर्थिक और शारीरिक शोषण भी करते थे। किसानों के उत्पीड़न का समाचार पाकर अपने अनेक सहयोगियों के साथ गाँधीजी 1917 में चंपारण गए। निलहों के शोषण और दमन के खिलाफ उन्होंने आंदोलन चलाया। 1918 में एक कानून “चम्पारण एग्रेरीयन कानून” पारित कर निलहों का अत्याचार दबा दिया गया और तीनकठिया प्रणाली समाप्त कर दिया गया। गाँधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। इसलिए इसे चम्पारण सत्याग्रह भी कहा जाता है।
2. असहयोग आंदोलन प्रथम जन-आंदोलन था। कैसे ?
उत्तर – गाँधीजी के नेतृत्व में चलाया जानेवाला यह प्रथम जनआंदोलन था। इसमें असहयोग और बहिष्कार की नीति प्रमुखता से अपनाई गई। इस आंदोलन का से व्यापक जनाधार था। शहरी क्षेत्र में मध्यम वर्ग तथा ग्रामीण क्षेत्र में किसानों और आदिवासियों का इसे व्यापक समर्थन मिला। श्रमिक वर्ग की भी इसमें भागीदारी रही। इस प्रकार, यह पहला जनआंदोलन बन गया।
3. दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर – गाँधीजी ने नमक कानून भंग कर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का निश्चय किया। इसके लिए 12 मार्च 1930 को वे अपने 78 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा (नमक यात्रा) पर निकले। दांडी पहुँचकर 6 अप्रैल 1930 को उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसी के साथ नमक सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा आंदोलन) आरंभ हुआ और शीघ्र ही यह पूरे देश में फैल गया।
4. सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर – सविनय अवज्ञा आंदोलन के परिणाम
(i) जनआंदोलन का विस्तार हुआ। इसमें समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया।
(ii) पहली बार बड़ी संख्या में महिलाएँ घरों से बाहर निकलीं एवं आंदोलन में शरीक हुईं ।
(iii) आर्थिक बहिष्कार की नीति से ब्रिटिश आर्थिक हितों को क्षति पहुँची।
(iv) सरकार पहली बार काँग्रेस से समझौता करने पर विवश हुई।
5. भारत में राष्ट्रवाद के उदय के सामाजिक कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के सामाजिक कारण – (i) अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध असंतोष (ii) आर्थिक कारण (iii) अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार (iv) मध्यम वर्ग का उदय (v) साहित्य एवं समाचार पत्रों का योगदान (vi) सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव (vii) पश्चिमी सभ्यता से संपर्क (viii) प्राचीन संस्कृति का ज्ञान (ix) प्रजातीय विभेद की नीति (x) भारत का राजनीतिक एकीकरण ।
6. ‘वहिष्कार’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – ‘बहिष्कार’ विरोध का एक गाँधीवादी रूप है। बहिष्कार का अर्थ है? किसी के साथ सम्पर्क रखने और जुड़ने से इन्कार करना, गतिविधियों में हिस्सेदारी से स्वयं को अलग रखना तथा उसकी चीजों को खरीदने तथा इस्तेमाल करने से इन्कार करना।
17. रॉलेट एक्ट क्या था? “
उत्तर – भारतीय क्रांतिकारियों की बढ़ती हुई क्रांतिकारी गतिविधियों से आशंकित होकर लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने न्यायाधीश सरसिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की। रॉलेट समिति की अनुशंसा पर 1919 में रॉलेट कानून बना। इस ऐक्ट के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग चलाए अनिश्चित समय के लिए बन्दी बना सकती थी। उसे अपील, दलील या वकील करने का कोई अधिकार नहीं था।
8. जतरा भगत के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में लिखें।
उत्तर – वर्तमान झारखण्ड के छोटानागपुर क्षेत्र में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में ओराँव जनजातियों के बीच टाना भगत आंदोलन चला। इसका नेता जतरा भगत था। यह आंदोलन मूल रूप से सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था। उसने ओरॉवों को माँस-मदिरा एवं आदिवासी नृत्यों का परित्याग करने को कहा। साथ ही एकेश्वरवाद पर बल दिया। उसने जमींदारों और साहूकारों का विरोध करने को भी कहा। यह . आंदोलन अहिंसक था जो 1914 से 1920 तक चला।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गाँधी के योगदानों का उल्लेख करें।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गाँधी सर्वाधिक लोकप्रिय हुए क्योंकि राष्ट्रीयत आंदोलन के महत्त्वूपर्ण कालखंड 1919 से 1947 ई० के युग में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गाँधी द्वारा ही किया गया और जिसमें वह सफल भी रहे। उन्होंने सर्वप्रथम बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष किया। गाँधीजी ने ‘सत्याग्रह’ का सहारा लेकर सरकार को विवश किया कि वे नील की खेती करने वाले किसानों को सुविधाएँ प्रदान करें। 1919 ई० में जालियाँवाला बाग की घटना के बाद गाँधीजी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया। 1920 ई० में महात्मा गाँधी ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध ‘असहयोग आंदोलन’ की नींव रखी जिसमें बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया तथा इसे आशा से अधिक सफलता मिली। चौरा-चौरी की घटना के बाद गाँधीजी ने इसे स्थगित कर दिया और 1930 ई० में दाण्डी यात्रा कर नमक कानून का उल्लंघन किया तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ किया। 1934 ई० तक यह आंदोलन चलता रहा। 1942 ई० में गाँधीजी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा की तथा भारतीयों को ‘करो या मरो’ का मंत्र दिया। इस आंदोलन ने स्पष्ट कर दिया कि भारत को अधिक दिनों तक गुलाम बनाए रखना, संभव न हो सकेगा।
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीयता की भावना को गाँव-गाँव तक पहुँचाया तथा काँग्रेस द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों में परिवर्तित कर राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती प्रदान की।
2. सविनय अवज्ञा आंदोलन क्या था? यह क्यों शुरू किया गया।
उत्तर – अत्यधिक महंगाई से उत्पन्न अराजक स्थिति के बीच अँग्रेजो धारा नमक कानून लागू करने से जनता में आक्रोश व्याप्त था। गाँधी जी ने आन्दोलन को हिंसात्मक होने से बचाने और सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से डांडी यात्रा के द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की। यह 1930 से 1934 ई० तक चला। सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधीवादी प्रतिरोध का एक रूप था।
सविनय अवज्ञा से गाँधी जी का अभिप्राय अंग्रेजों की शांतिपूर्वक अवज्ञा करना – अथवा उनके आदेशों की अवहेलना करना था। उनहोंने सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ डांडी मार्च एवं नमक कानून का उल्लंघन कर किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन से इस अर्ध में भिन्न था कि जहाँ असहयोग आंदोलन में लोगों को अंग्रेजों के साथ सहयोग करने से मन किया गया था वहीं सविनय अवज्ञा आन्दोलन में लोगों को औपनिवेशिक कानून का उल्लंघन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत देश के विभिन्न भागों में नमक कानून का उल्लंघन किया गया, सरकारी नमक के कारखानों के सामने प्रदर्शन किया गया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की गयी, विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी किसानों ने लगान तथा चौकीदारी कर चुकाने से इन्कार कर दिया, गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफा देने लगे तथा लोगों ने लकड़ी तथा अन्य वनोत्पादों को बीनने तथा मवेशियों को चराने के लिए आरक्षित वनों में फंसकर वन कानूनों का उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार डांडी मार्च से शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया।
3. साइमन कमीशन क्या था? भारत में उसका विरोध क्यों किया गया ? 
उत्तर – (i) 1927 ई० में ब्रिटेन की टोरी सरकार ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन के जबाव में एक वैधानिक आयोग का गठन किया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जता है। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे।
(ii) इस आयोग का कार्य भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना एवं तनुरूप सुझाव देना था। इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे।
(iii) भारत में इसका विरोध इसलिए किया गया कि इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। सारे सदस्य अंग्रेज थे। 1928 में जब साइमन कमीशन भरत पहुँचा तो उसका स्वागत ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारों से किया गया।
(iv) काँग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।
(v) पंजाब में लाला लाजपत राय ने इस आयोग के विरुद्ध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। पुलिस ने उन पर इतनी लाठियाँ बरसायीं कि इस प्रकार से उनकी मृत्यु हो गयी।
4. जालियाँवाला बाग हत्याकांड पर संक्षिप्त निबंध लिखिए। अथवा, जलियाँवाला बाग हत्याकांड कव, कहाँ क्यों हुआ ?
उत्तर – (i) 13 अप्रैल, 1919 को जालियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ। उस दिन अमृतसर में बहुत सारे गाँव वाले सालाना बैसाखी मेले में शिरकत करने के लिए जालियाँवाला बाग मैदान में जमा हुए थे।
(ii) लोग सरकार द्वारा लागू किये गये दमनकारी कानून रॉलेट एक्ट’ का विरोध प्रकट करने के लिए एकत्रित हुए। यह मैदान चारों तरफ से बंद था। शहर से बाहर होने के कारण लोगों को यह पता नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है।
(iii) जनरल डायर हथियार बंद सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा। सेन मैदन से बाहर निकलने के सारे रास्तों को बंद कर दिया। इसके बाद उसके सिपाहियों ने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं। सैकड़ों लोग मारे गये।
(iv) प्रभाव – भारत के इतििास की यह सबसे दर्दनाक घटना था। इससे भारत भर मे रोष की लहर फूट निकली। लोग सड़कों पर उत्तर गये और हड़तालें होने लगीं। लोगों ने सरकारी इमारतों पर हमला किया और जगह-जगह पर लोगों की पुलिस से भिड़न्त हुई। लोगों को आतंकित ओर अपमानित करने की मंशा से सरकार ने इन विरोधों को निर्ममता से कुचला।’
5. पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर – (i) युद्ध-व्यय की पूर्ति के लिए ब्रिटेन ने अपने उपनिवेशों पर अतिरिक्त कर भार आरोपति किये, जिसके परिणामस्वरूप उपनिवेशों में विकट आर्थिक एवं राजनीति स्थित उत्पन्न हुई। सरकार की आर्थिक नीतियों से वस्तुओं की कीमतें अप्रत्याशित रूप बढ़ गयीं।
(ii) भारी संख्या में भारतीय सैनिकों को युद्ध में झोंक दिया गया। गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया ।
(iii) उपर्युक्त परिस्थितियों के प्रति सरकार का रूख न सिर्फ उदासीन बल्कि असहयोगात्मक रहा, जिसके परिणामस्वरूप लोगों में सरकार के प्रति असंतोष और विद्रोह का भाव पनपा तथा लोग राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए मजबूर हुए।
6. असहयोग आंदोलन असफल क्यों हुआ?
अथवा, ‘वहिष्कार’ से क्या अभिप्राय है? गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर – ‘बहिष्कार’ विरोध का एक गाँधीवादी रूप है। बहिष्कार का अर्थ है – किसी के साथ सम्पर्क रखने और जुड़ने से इन्कार करना, गतिविधियों में हिस्सेदारी से स्वयं को अलग रखना तथा चीजों को खरीदने तथा इस्तेमाल करने से इन्कार करना।
असहयोग आंदोलन की असफलता के कारण –
(i) योग्य नेतृत्व का अभाव – आंदोलन की शुरुआत गाँधी जी ने की तथा शीघ्र ही यह आंदोलन देश के कोने-कोने में फैल गया। लोगों ने अति उत्साह से इस आंदोलन में भाग लिया, लेकिन देश के अन्य भागों में योग्य नेतृत्व के आव में वे सही दिशा से भटक गये।
(ii) आर्थिक कारण — विदेशी कपड़ों का बहिष्कार बड़े पैमाने पर किया गया तथा लोगों को खादी का प्रयोग करने को प्रेरित किया गया। लेकिन खादी का कपड़ा, मिलों में भारी पैमाने पर बनने वाले कपड़े की अपेक्षा काफी महँगा था। गरीब इसे खरीद नहीं सकते थे। अतः जल्दी ही बहिष्कार की उमंग फीकी की अपेक्षा काफी महँगा था। गरीब इसे खरीद नहीं सकते थे। अतः जल्दी ही बहिष्कार की उमंग फीकी पड़ गयी।
(iii) वैकल्पिक व्यवस्था का अभाव – ब्रिटिश संस्थानों के बहिष्कार से नयी समस्याएँ पैदा हुई। स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों का बहिष्कार तो कर दिया गया लेकिन वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना नहीं हुई। इसके परणामस्वरूप शिक्षक और विद्यार्थी पुनः स्कूल में लौट गये तथा वकील दुबारा अदालतों में दिखायी देने लगे।
(iv) हिंसा का मार्ग अपनाना – यद्यपि आंदोलन का प्रारंभ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार से हुआ, लेकिन शीघ्र ही आंदोलन ने हिंसा का मार्ग पकड़ लिया। हिंसा की चरम परिणति चौरी- चौरा कांड के रूप में हुई जब उग्र आंदोलनकारियों ने एक थाने में आग लगा दी।

4. भूमंडलीकृत विश्व का बनना

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 19वीं सदी में यूरोपीय लोग भागकर अमेरिका क्यों जाने लगे थे ?
उत्तर – (i) 19वीं सदी तक यूरोप में गरीबी और भूख का साम्राज्य था। (ii) नगरों में भीड़ थी और वहाँ भयानक रोग व्यापक रूप में फैले हुए थे। (iii) धार्मिक विवाद आम थे और धार्मिक असंतुष्टों को दौडत किया जा रहा था। अतः लोग यूरोप छोड़कर अमेरिका में प्रवास करने लगे थे।
2. अफ्रीकी मजदूरों को प्रशिक्षित करने तथा कब्जे में रखने के लिए यूरोपीय मालिक क्या ढंग अपनाते थे ?
उत्तर – (i) भारी टैक्स लगाए जाते जिन्हें चुकाने के लिए बागानों तथा खानों में वेतन के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी। (ii) किसानों को उनकी जमीन से हटाने के लिए उत्तराधिकार कानून भी बदल दिए गए। अब परिवार के केवल एक सदस्य को पैतृक संपत्ति मिलेगी और अन्य लोगों को श्रम बाजार में धकेला जाता था। (iii) खानकर्मियों को बाड़ों में बंद कर दिया जाता और उनके स्वतंत्र घूमने-फिरने पर पाबंदी लगा दी गई।
3. उदाहरण देकर गिरमिटिया श्रमिक का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – यह एक प्रकार की बंधुआ मजदूरी होती थी जिसके अनुसार मालिक किसी मजदूर व्यक्ति को विशेष समय और धन के अनुबंध पर किसी भी देश या घर में काम करवाने के लिए प्रयुक्त कर सकता था।
19वीं सदी में लाखों भारतीय तथा चीनी मजदूर विश्व के विभिन्न भागों के बागानों, खानों, सड़कों तथा रेलवे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए गए। भारत में गिरमिटिया मजदूरों को अनुबंध पर लिया जाता था और उन्हें मालिक के बागानों में पाँच वर्ष तक काम करने के बाद वापस भारत में ले आने की बात कही जाती थी।
4. नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली क्या है ?
उत्तर – यह विकासशील देशों द्वारा 1970 के दशक में प्रस्तुत किए गए प्रस्तावों का एक समुच्चय था जिसके उद्देश्य निम्नलिखित थे –
(i) अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर विकासशील देशों के पक्ष में पुनर्विचार ।
(ii) विकासशील देश एक ऐसी व्यवस्था चाहते थे जो उन्हें उनके प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण दिला सके।
(iii) विकासशील देश ऐसी व्यवस्था निश्चित करना चाहते थे जिससे उन्हें कच्चे माल के सही दाम मिलें और अपने तैयार माल को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए बेहतर पहुँच मिले।
(iv) विकासशील देशों को बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों को संचालित नियंत्रित करने का अधिकार मिले। P
5. ‘पहला विश्व युद्ध आधुनिक औद्योगिक युद्ध था?” व्याख्या करें। 
उत्तर – युद्ध में मशीनगनों टैंकों, हवाई जहाजों और रासायनिक हथियारों का भयानक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। ये सभी चीजें आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थीं। युद्ध के लिए दुनिया भर से असंख्य सिपाहियों की भर्ती की जानी थी और उन्हें विशाल जलपोतों व रेलगाड़ियों में भर कर युद्ध के मोर्चों पर ले जाया जाना था। इस युद्ध ने मौत और विनाश की जैसी विभीवका रची उसकी औद्योगिक युग से पहले और औद्योगिक शक्ति के बिना कल्पना नहीं की जा सकती थी। युद्ध में 90 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 2 करोड़ घायल हुए।
6. 19वीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – (i) विश्व अर्थव्यवस्था का रूपांतरण प्रौद्योगिकी ने सभी प्रकार के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेलवे, भाप के जहाज, टेलिग्राफ आदि। महत्त्वपूर्ण आविष्कार थे जिनके बिना 19वीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार नहीं दिया जा सकता था।
(ii) बाजारों की परस्पर संबद्धता – परिवहन में नए निवेश व सुधारों से तीव्रगामी रेलगाड़ियाँ, हल्की बोगियाँ और विशालकाय जलपोतों को कम खर्च पर उत्पादों को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में सुगमता से पहुँचाने में सहायता की।
(iii) मांस के व्यापार पर प्रभाव– 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था अपितु जिंदा जानवर भेजे जाते जिन्हें यूरोप ले जाकर काया जाता था। जीवित जानवर जलपोतों में अधिक जगह पैरते थे। समुद्री यात्रा में कई पशु मर जाते, बीमार हो जाते, भार कम हो जाता या फिर अखाद्य बन जाते। अतः मांस के दाम बहुत ऊंचे और निर्धन यूरोपीयों की पहुँच परे थे। उच्च कीमतों के कारण माँग तथा उत्पादन बहुत कम था। परन्तु रेफ्रिजरेशन युक्त जलपोतों ने मांस को एक क्षेत्र से दूसरे तक परिवहन करना सुगम बना दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. महामंदी के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसके लिए उत्तरदायी प्रमुख घटकों (कारणों) को विवेचित करें। 
अथवा, महामंदी के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – आर्थिक महामंदी का अर्थ किसी देश की ऐसी आर्थिक दशा से है जब उत्पादन में भारी वृद्धि, लोगों की क्रयशक्ति में तीव्र गिरावट और मुद्रा के वास्तविक मूल्य में कमी आ जाए। ऐसी आर्थिक महामंदी 1929 में अमेरिका में आई थी और इसने समस्त विश्व को ग्रास बना लिया जिसके कारण इसे महामंदी कहा जाता है।
(i) युद्ध द्वारा उत्पन्न स्थितियाँ- प्रथम युद्ध काल में सेना से संबंधित वस्तुओं की माँग में वृद्धि के कारण भारी औद्योगिक प्रसार किए गए। युद्ध के बाद उद्योग अपनी सामान्य स्थिति में आ गए। सैनिक व युद्ध संबंधी माल की माँग में तीव्र कमी के कारण आर्थिक महामंदी का जन्म हुआ।
(ii) कृषि में अधिक उत्पादन- महामंदी के लिए उत्तरदायी घटकों में से एक कृषि सम्बंधी अति-उत्पादन भी था। इससे कृषि वस्तुओं की कीमतों में भारी कमी आई। कीमतें घटने से कृषि संबंधी आय भी घट गई जिसके कारण किसानों ने अपना उत्पादन बढ़ाने की कोशिश की ताकि वे अपनी समग्र आय स्तर को बनाए रखने के लिए भारी मात्रा में उत्पादों को बाजार में ला सकें। इससे बाजा में कृषि उत्पादों की आमद बदी, कीमतें और नीचे चली गई और खरीददारों अभाव में उपज सड़ने लगी।
(ii) ऋणों की कमी–1920 के दशक के मध्य में बहुत से देशों ने अमेरिका से ऋण लेकर अपनी निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया था। जब स्थिति ठीक थी तो अमेरिका से ऋण जुटाना सरल था लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिकी उद्यमियों में खलबली मच गई। 1928 के पूर्वाद्ध तक विदेशों में अमेरिका का ॠण एक अरब डॉलर था। साल भर के भीतर यह ऋण घटकर केवल चौथाई रह गया था। जो देश अमेरिकी ऋण पर सबसे ज्यादा निर्भर थे, उनके सामने गहरा संकट आ खड़ा हुआ।
(iv) अनेकविध प्रभाव- बाजार से ऋणदाताओं के उठ जाने से अनेकविध प्रभाव सामने आए। यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी गए, मुद्रा लुढ़क गई और ब्रिटिश पाउंड भी इस झटके से नहीं बच सका । लैटिया अमेरिका और अन्य स्थानों पर कृषि व कच्चे माल की कीमतें तेजी से गित अमेरिकी सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के आयातित पदार्थों पर दोगुना सीमाशुल्क वसूलने लगी जिससे विश्व व्यापार की कमर टूट गई।
2. सत्रहवीं सदी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चुनें। एक उदाहरण एशिया तथा एक अमेरिका से चुनिए।
उत्तर – (i) आहार का आदान-प्रदान – आहार विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अनेक उदाहरण प्रस्तुत करता है। ऐसा विश्वास है कि नूडल्स चीन से पश्चिम में जाकर स्पैधेती बन गए।
(ii) कीटाणुओं का आदान-प्रदान- 16वीं सदी के मध्य तक आते-आते पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं विजय का सिलसिला शुरू हो चुका था। उन्होंने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया था। यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक शक्ति से नहीं जीतती थीं। स्पेनिश विजेताओं के सबसे शक्तिशाली हथियारों में परंपरागत सैनिक हथियार तो कोई था ही नहीं यह हथियार तो चेचक जैसे कीटाणु थे जो स् सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ जा पहुंचे थे। लाखों वर्ष से दुनिया से अलग-थलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी। फलतः नए स्थान पर चेचक घातक सिद्ध हुई। एक बार संक्रमण शुरू होने के बाद यह पूरे महाद्वीप में फैल गई। जहाँ यूरोपीय लोग नहीं पहुंचे थे, वहाँ के लाग भी इसके चपेट में आने लगे। इसने पूरे के पूरे समुदाय को खत्म कर डाला जिससे घुसपैठियों की जीत का मार्ग प्रशस्त होता गया।
3. खाद्य की उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दिखाने के लिए इतिहास में से दो उदाहरण दीजिए।  
उत्तर – (i) विभिन्न बाजारों में सस्ते भोजन की उपलब्धता –  परिवहन में सुधारों, तीव्रगामी रेलों, हल्की बोगियों और विशाल जलपोतों ने भोजन को कम दरों पर संचालित करना शुरू कर दिया ताकि वे खेतों से सीधे अंतिम बाजार तक तुरंत पहुँच सकें।
(ii) मांस पर प्रभाव – 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप के लिए मांस जीवित पशुओं के रूप में जलपोतों द्वारा भेजा जाता था और वहाँ जाकर उन्हें काटा जाता था। पशु समुद्री जहाज में अधिक जगह घेरते थे परन्तु रेफ्रिजरेशन वाले जलपोतों के आविष्कार ने मांस के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक परिवहन में सहायता की।
अब पशु अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड में काटे जाने लगे और तब उनका ठंडा किया गया माँस यूरोप के लिए भेजा जाने लगा। रेफ्रिजरेशन वाले जलपोतों की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं—(a) इससे जलपोतों की लागत घट गई और यूरोप में मांस की कीमतें गिर गई। (b) यूरोप का निर्धन वर्ग अब विभिन्न पूर्ण भोजन ले सकता था। (c) पहले की ब्रैड और आलू की इकरसता टूटी और अब माँस (मक्खन तथा अंडे) भी उपलब्ध होने लगा था।
4. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से संबंधित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर – (i) व्यापार प्रवाह – व्यापार प्रवाह का अध वस्तुआ का व्यापार है। औद्योगीकरण से पूर्व भारत कपास के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक था। ब्रिटिश निर्माताओं ने औद्योगीकरण के साथ-साथ अपना विस्तार शरू कर दिया और उद्योगपतियों ने सरकार को आयात पर नियंत्रण लगाकर देश के स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा करने पर बल दिया। ब्रिटेन में कपड़े के आयात पर सीमाशल्क लगा दिया गया। फलतः देश में भारतीय बारीक सूत का आयात कम हो गया।
(ii) श्रम – प्रवाह – इसमें रोजगार की खोज में लोगों का प्रवास शामिल है। 19वीं सदी में लाखों भारतीय श्रमिक बागानों, खानों, सड़कों तथा रेल निर्माण की परियोजनाओं में काम करने के लिए विश्व के विभिन्न भागों में गए। भारत में गिरमिटिया श्रमिकों को अनुबंध पर काम करने के लिए ले जाया जाता था जिसकी शर्त थी कि पांच वर्ष तक काम करने के बाद बागान मालिक उन्हें वापस भारत आने देंगे।
भारतीय गिरमिटिया अप्रवासियों के मुख्य लक्ष्य कैरिबियाई द्वीप समूह (विशेषतः त्रिनिदाद, गुयाना और सुरीनाम) मॉरिशस और फिजी थे। तमिल अप्रवासी अपने घर के पास श्रीलंका व मलय चले जाते थे। गिरमिटिया मजदूरों को असम के चाय बागानों के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता था।
(iii) पूँजी – प्रवाह – में पूँजी की गतिशीलता शामिल है जिसे अल्प या दीर्घ अवधि के लिए सुदूर क्षेत्रों में निवेश किया जाता है। शिकारीपूरी श्रॉफ और नेट्टुकोट्टई चेट्टियार उन कई बैंकरों और व्यापारियों में से थे जो मध्य एवं दक्षिण पूर्व एशिया में नियांतोन्मुखी खेती के लिए ऋण देते थे। इसके लिए वे या तो जेब से पैसा लगाते थे या यूरोपीय बैंकों से ऋण लेते थे।
अफ्रीका में यूरोपीय उपनिवेशकारों के पीछे-पीछे भारतीय व्यापारी और महाजन भी जा पहुँचे। वहाँ हैदराबादी सिंघी जैसे कुछ ऋणदाता थे जो यूरोपीय उपनिवेश से भी आगे जा निकले।
5. जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-77 को किस आधार पर बेटन वुड्स का जुड़वां संतानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है? व्याख्या करें।
उत्तर – जी – 77 विकासशील देशों का संगठन है। ये मुख्यतः एशिया तथा अफ्रीका के नवस्वतंत्र राष्ट्र हैं। इन्हें मुख्यत: 20वीं शताब्दी के अंतिम पाँच-छ: दशों में साम्राज्यवादी देशों से मुक्ति मिली थी।
बेटेन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया ? ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई०एम०एफ०) तथा अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (विश्व बैंक) की स्थापना की गई थी। इन्हीं दो संस्थाओं को ब्रेटन वुड्स की जुड़वां संतानें कहा जाता है। इनका उद्देश्य सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटना तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुनर्निर्माण के लिए पैसा जुटाना था। इन संस्थाओं ने औपचारिक रूप से 1947 में काम करना आरंभ किया।
इस अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था से पश्चिम के औद्योगिक राष्ट्रों तथा जापान के लिए व्यापार तथा आय में वृद्धि के नये मार्ग खुल गए। 1950 से 1970 के बीच विश्व व्यापार की वार्षिक विकास दर 8 प्रतिशत से भी अधिक रही। इस दौरान विश्व की आय में लगभग 5 प्रतिशत की दर से वृद्धि होती रही। विकास दर में बहुत कम उतार-चढ़ाव आए। इस अवधि में अधिकांश औद्योगिक देशों में बेरोजगारी औसत रूप से 5 प्रतिशत से भी कम रही। इसके अतिरिक्त तकनीक और उद्यम का विश्वव्यापी प्रसार हुआ। ये लक्षण लगभग सभी विकसित देशों में दिखाई दिए।
दूसरी ओर विकासशील देश विकसित देशों के बराबर पहुँचने का हर संभव प्रयास करते रहे। इसीलिए उन्होंने आधुनिक तकनीक से चलने वाले संयंत्रों और उपकरणों के आयात पर अत्यधिक पूजो व्यय की परन्तु उन्हें पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तेज प्रगति से कोई लाभ नहीं हुआ। अतः उन्होंने एक नयी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली के लिए आवाज उठाई । एन.आई.ई.ओ. (NIEO) से उनका अभिप्राय एक ऐसी व्यवस्था से था जिसमें उन्हें – (i) औपनिवेशिक शक्तियों के शोषण से मुक्ति मिले। (ii) अपने संसाधनों पर सच्चे अर्थों में उनका नियंत्रण स्थापित हो सके। (iii) उन्हें विकास के लिए अधिक सहायता मिले। (iv) उन्हें कच्चे माल के उचित दाम मिलें और वे अपने तैयार माल को विकसित देशों के बाजारों में बेच सकें। अपने लक्ष्य को पाने के लिए विकासशील राष्ट्र जी-77 के रूप में संगठित हो गए। इसी आधार पर जो-७७ को ब्रेटन वुड्स को जुड़वां संतानों को प्रतिक्रिया कहा जाता है।

5. औद्योगीकीकरण का युग

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए। व्याख्या करें।
उत्तर – स्पिनिंग जैनी का आविष्कार जेम्स हरग्रीब्ज ने 1764 में किया था। इस मशीन ने कताई प्रक्रिया तेज कर दी और श्रमिकों की मांग घट गई। इस मशीन द्वारा अकेला कारीगर अनेक पूनियाँ बना सकता था और एक ही समय में कई धागे बना सकता था। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि बुनकरों की माँग घटने से वे अधिकतर लोग बेरोजगार होने लगे।
बेरोजगारी के इसी डर के कारण भारतीय महिला कामगारों ने, जो हाथ की कताई पर निर्भर थीं, स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले शुरू कर दिए।
2. कपास के कारखाने का निर्माण किसने किया? इससे उत्पादन के सुधार में कैसे सहायता मिली ?
उत्तर – रिचर्ड आर्कराइट ने कपास के कारखाने का निर्माण किया था।
  1. महँगी मशीनों को खरीद कर स्थापित किया जाता था और कारखाने का रख-रखाव किया जाता था।
  2. कारखाने के भीतर सभी प्रक्रियाएँ एक छत व प्रबंधन के नीचे लाई गई। इससे उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्ता का निरीक्षण और श्रमिकों पर नजर रखना सुगम हो गया। गाँवों में उत्पादन के समय में सारे काम सहज नहीं थे।
3. 19वीं सदी के प्रारम्भ में भारतीय वुनकरों की क्या समस्याएँ थी?
उत्तर – (i) ब्रिटेन में औद्योगिकरण के कारण उनका नियांत बाजार ठप हो गया। (ii) ब्रिटिश व्यापारियों ने मशीनों कपड़े भारत में निर्यात करने शुरू कर दिए जिससे उनके स्थानीय बाजार सिकुड़ गए। (iii) इंग्लैंड में कच्ची कपास के निर्यात के कारण भारत में कच्चे माल की कमी हो गई। (iv) जब अमेरिकी गृह-युद्ध छिड़ा और अमेरिका से कपास की आपूर्ति बंद हो गई तो इंग्लैंड भारत की ओर देखने लगा। भारत से कच्ची कपास का निर्यात बढ़ गया तो यहाँ कच्ची कपास के दाम आकाश छुने लगे। भारतीय बुनकरों की आपूर्ति ठप्प हो गई और वे उच्चतर दामों पर का खरीदने को विवश हो गए।
4. भारत में कारखानों के विकास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – भारत में सबसे पहले कपास और पटसन के कारखानों को स्थापना हुई। पहली कपड़ा मिल 1854 में बंबई में लगी थी। 1864 में इनकी संख्या चार हो गई हो गई। कपड़ा मिल के बाद 1855 में बंगाल में पटसन मिल स्थापित हुई। 1862 में बंगाल में ही एक और पटसन मिल स्थापित की गई। उत्तरी भारत में 1860 के दशक में कानपुर में एलिन मित प्रारंभ हुई और एक वर्ष बाद अहमदाबाद में प्रथम कपड़ा मिल लगाई गई। 1874 ‘तक मद्रास की पहली कताई तथा बुनाई मिल ने उत्पादित शुरू कर दिया।
5. अंग्रेज भारतीय व्यापारी उद्योगपतियों के साथ किस प्रकार भेदभाव करते थे?
उत्तर –
  1. जिस बाजार में भारतीय व्यापारियों को काम करना था। वह सीमांत से सीमिततर होता गया।
  2. भारतीयों को यूरोप में निर्मित माल का व्यापार व व्यवसाय करने से प्रतिबंधित कर दिया गया और उन्हें मांग करने पर अधिकांश कच्चे माल, खाद्यत्र, कच्ची कपास, अफीम, गेहूँ, नील आदि का इंग्लैंड को निर्यात करना पड़ता था।
  3. आधुनिक जलपोतों के आने से भारतीय व्यापारियों को जहाजरानी व्यवसाय से हटा दिया गया। यूरोपीय व्यापारी उद्योगपतियों के पास वाणिज्य के अपने विशेष केन्द्र थे और भारतीयों को इनका सदस्य बनने की अनुमति नहीं थी।
6. जॉवर (Jobber) किसे कहते थे?
उत्तर – मिलों की संख्या बढ़ने के साथ मजदूरों की मांग भी बढ़ रही थी और रोजगार चाहने वालों की संख्या रोजगारों के मुकाबले हमेशा अधिक रहने के कारण नौकरी पाना कठिन था। मिलों में प्रवेश भी निषिद्ध था। उद्योगपति नए मजदूरों की भर्ती के लिए प्रायः एक जॉबर रखते थे। जॉवर प्राय: कोई पुराना और विश्वस्त कर्मचारी होता था। वह अपने गाँव से लोगों को लाता था, उन्हें काम का भरोसा देता था, उन्हें शहर में बसने के लिए सहायता करता था और मुसीबत में आर्थिक सहायता भी करता था। इस प्रकार जॉबर शक्तिशाली और मजबूत व्यक्ति बन गया था। बाद में जॉबर मदद के बदले पैसे व उपहार मांगने लगे और मजदूरों के जीवन को नियंत्रित करने लगे।
7. आदि-औद्योगिक व्यवस्था की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
  1. यह उत्पाद की विकेन्द्रित व्यवस्था थी। व्यापारी रहने वाले तो शहरों के थे परन्तु उनका काम प्रायः ग्राम्य क्षेत्रों में फैला था।
  2. यह ऐसी व्यवस्था थी जिसे व्यापारियों ने नियंत्रित कर रखा था और वस्तुओं का उत्पादन उन उत्पादकों द्वारा हो रहा था जो अपने खेतों में परिवारों के बीच रहकर काम कर रहे थे।
  3. इस व्यवस्था में पूरे परिवार को शामिल करके काम किया जाता था।
  4. श्रमिक गाँवों में रहते थे और अपने छोटे खेतों पर खेती भी करते थे।
8. 19वीं सदी के अंत में कपड़ा उद्योग के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी क्यों हुई?
उत्तर –
  1. नए आविष्कार – 18वीं सदी में कई ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया (कर्डिग, ऐंठना व कताई और लपेटने) के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी। प्रति मजदूर उत्पादन बढ़ गया जिससे मात्रा के साथ गुणवत्ता भी बढ़ गई और पहले से अधिक मजबूत धागा व रेशों का उत्पादन होने लगा।
  2. कपड़ा मिल की स्थापना- रिचर्ड आर्कराइट ने सूती कपड़ा मिल की स्थापना की थी। अब महंगी नई मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था। कारखाने में सारी प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथ में आ गदथी। इससे उत्पादन प्रक्रिया पर निगराना, गुणवत्ता का ध्यान रखना और मजदूरों का निरीक्षण सुगम हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था, तब तक ये सारे कार्य सहज नहीं थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कछ उद्योगपति मशीनों के वजाए हाथों के काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?
अथवा, नयी प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए कई उत्पादक उत्सुक क्यों नहीं थे? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उन्नीसवाँ शताब्दी तक यूरोप मशीनी युग में प्रवेश कर चुका था। बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हो गए थे और नई प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने लगा था। फिर भी यूरोप के कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता देते थे। इसके लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे-
  1. नयी प्रौद्योगिकी महँगी थी, अतः उत्पादक तथा उद्योगपति उनके प्रयोग के प्रति सावधान रहते थे।
  2. मशीनें प्रायः खराब हो जाती तो उन्हें ठीक करने पर भारी पैसा लगता था।
  3. वे उतनी कार्यकुशल नहीं थीं जैसा दावा उनके निर्माता व आविष्कारक करते थे।
  4. निर्धन किसान तथा अप्रवासी भारी संख्या में नगरों की ओर काम की खोज़ में पहुँचने लगे। अतः श्रमिकों की आपूर्ति मांग से कहीं अधिक थी। अतः श्रमिक कम वेतन पर मिल रहे थे।
  5. हाथ की कारीगरी द्वारा उत्पादों में विविधता लाई जा सकती थी। मशीनों से एकरूप उत्पाद ही बड़ी संख्या में बनाए जा सकते थे। बाजार में प्रायः बारीक डिजाइन और खास आकार वाली चीजों को काफी माँग रहती थी। उदाहरणतः ब्रिटेन में 19वीं सदी के मध्य में 500 तरह के हथौड़े और 45 तरह की कुल्हाड़ियाँ बनती थीं। इनके निर्माण में यांत्रिक प्रौद्योगिकी की नहीं अपितु मानव-कौशल की जरूरत थी।
2. 18वीं सदी के अंत तक सूरत की वंदरगाह हाशिए पर पहुँच गया। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
  1. अधिकतर यूरोपीय कंपनियों के पास भारी संसाधन थे जिसके कारण भारतीय व्यापारी तथा व्यवसायी उनसे प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई का अनुभव कर रहे थे।
  2. यूरोपीय कंपनियाँ स्थानीय दरबारों से विभिन्न राहतें पाकर शक्ति ग्रहण करती जा रही थीं।
  3. कई कंपनियों को व्यापार का एकाधिकार मिल गया था। इन सबके परिणामस्वरूप सूरत और हुगली को बंदरगाहें कमजोर पड़ गईं जहाँ से स्थानीय व्यापारी व्यापार चलाते थे। इन बंदरगाहों से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी आई। पहले जिस ऋण से व्यापार चलता था वह खत्म होने लगा। धीरे-धीरे स्थानीय बैंकर दिवालिया हो गए। 17वीं सदी के अंतिम वर्षों में सूरत बंदरगाह से होने वाले व्यापार का कुल मूल्य 1.6 करोड रुपये था। 1740 के दशक तक यह गिरकर केवल 30 लाख रह गया। समय पाकर सूरत और हुगली कमजोर पड़ गए और बंबई व कलकत्ता उभरने लगे।
3. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय वुनकरों से सती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया?
उत्तर – ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित हो जाने के बाद कंपनी ने भारतीय व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए कई पग उठाए। उसने प्रतिस्पर्धा समाप्त करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास तथा रेशम से बने वस्वों की नियमित आपूर्ति के लिए एक नयी व्यवस्था लगू की। यह काम निम्नलिखित कई चरणों में किया गया-
  1. गुमाश्तों की नियुक्ति – कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को समाप्त करने तथा बुनकरों पर अधिक-से-अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया। बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी नियुक्त कर दिए गए। उन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।
  2. बुनकरों द्वारा अन्य व्यापारियों को माल वेचने पर रोक-कंपनी को माल बेचने वाले बुनकरों पर अन्य खरीददारों के साथ कारोबार करने पर रोक लगा दी गई। इसके लिए उन्हें पेशगी धन दिया जाने लगा। काम का ऑर्डर पाने वाले बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए ऋण दे दिया जाता था। ऋण लेने वाले बुनकरों का अपना कपड़ा गुमाश्ते को ही देना पड़ता था। वे उसे किसी अन्य व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।
  3. बुनकरों से कठोर व्यवहार-गुमाश्ते बुनकरों से अपमानजनक व्यवहार करते थे। वे सिपाहियों तथा चपरासियों को अपने साथ लेकर आते थे और माल समय पर तैयार न होने पर बुनकरों को दंड देते थे। बुनकरों को प्रायः बुरी तरह पीटा जाता था और कोड़े लगाए जाते थे। अब बुनकर न तो दाम पर मोलभाव कर सकते थे और न ही किसी अन्य सौदागार को अपना माल बेच सकते थे। उन्हें कंपनी जो कीमत देती थी वह बहुत कम थी। परन्तु ऋण-राशि के कारण कंपनी से बंधे हुए थे।
4. पहले विश्व युद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा ?
अथवा, भारतीय उद्योगों पर प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर –
  1. जब ब्रिटिश मिलें युद्धकाल में सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादन में व्यस्त थीं, तब भारत में मैनचेस्टर का आयात कम हुआ।
  2. अचानक भारतीय मिलों की आपूर्ति के लिए विशाल बाजार मिल गया।
  3. युद्ध लंबा खिंच गया तो भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए बोरियाँ, वदी, तंबू, चमड़े के जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा अन्य कई सामान बनने लगे।
  4. नए कारखाने लगाए गए और पुरानों में कई पालियों में काम होने लगा। बहुत से नए मजदूरों को काम पर रखा गया और प्रत्येक को पहले से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता था। युद्ध काल में औद्योगिक उत्पादन तेजी से बढ़ा।
5. ‘औद्योगीकरण एक मिश्रित वरदान था।’ सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर – औद्योगीकरण के सकारात्मक प्रभाव-
  1. सस्ती वस्तुएँ—मशीनों द्वारा बनी वस्तु सस्ती व उत्तम होती थीं। अतः उपनिवेश के लोग सस्ती, उत्तम तथा विभिन्न प्रकार की वस्तुएं खरीद सकते थे।
  2. नये उद्यमी—औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय उद्यमियों को कारखानों में अवसर प्रदान किए। यद्यपि ये नये खिलाड़ी थे तथापि वे अच्छा धन कमाने लगे थे।
  3. औद्योगिक क्षेत्र का विकास–विदेशियों के आगमन से पूर्व बहुत से लोग कृषि पर लगे हुए थे परन्तु औद्योगीकरण ने उन्हें दूसरे क्षेत्रों में काम के अवसर प्रदान किए।
  4. श्रमिकों का जीवन – औद्योगीकरण की प्रक्रिया अपने साथ नवोदित आद्योगिक श्रमिकों के लिए कष्ट भी लेकर आई।
  5. वुनकरों पर प्रभाव – बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखने के लिए कंपनी ने पेशगी की व्यवस्था प्रारम्भ की। एक बार आर्डर मिलने पर, बुनकरों को उत्पादन के लिए कच्चा माल खरीदने को ऋण दिया जाता था। जो ऋण लेते थे, उन्हें अपना तैयार माल गुमाश्तों को देना पड़ता था। वे इसे किसी अन्य व्यापारी को नहीं बेच सकते थे। बुनकरों के लिए पेशगी की प्रणाली हानिकारक सिद्ध हुई।
    (a) बुनकरों ने मोल-भाव के अवसर खो दिए थे।
    (b) अधिकतर बुनकर अपनी भूमि बँटाई पर देकर सारा समय बुनाई में ही लगाने लगे। बुनाई में प्रायः उनका पूरा परिवार ही खप जाता था।
  6. व्यावसायियों तथा व्यापारियों पर प्रभाव – मशीन द्वारा बने कपड़ों के भारत में आयात पर भारतीय व्यापारियों की अर्थव्यवस्था पर कुछ गंभीर प्रभाव पड़े –

    (a) निर्यात वाजार का ठप होना- औद्योगीकरण से पूर्व भारतीय व्यापारी विश्व के विभिन्न देशों में अपने उत्पाद निर्यात करते थे परन्तु मशीन से बने कपड़े के आने से उनका विश्व बाजार ठप्प हो गया।

    (b) स्थानीय वाजार का सिकुड़ना- मशीन से बने कपड़े उत्तम तथा सस्ते थे। अतः निर्माता उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने में असफल रहे। अतः विश्व बाजार के साथ-साथ उनका स्थानीय बाजार भी ठंडा पड़ने लगा।

6. काम, आराम और जीवन

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. नारियों पर नगरीय जीवन का क्या प्रभाव था ?
उत्तर –
  1. ब्रिटेन में उच्च और मध्य वर्गीय स्त्रियों को बढ़ता हुआ उच्चस्तरीय अकेलापन भोगना पड़ रहा था हालांकि घरेलू नौकरियों ने मामूली वेतन पर घर का खाना बनाकर, साफ-सफाई और बच्चों की देखभाल का जिम्मा लेकर उनका जीवन सरल बना दिया था।
  2. वेतन पर काम करने वाली स्त्रियों का अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण था। विशेषतः निम्नतर सामाजिक वर्गों में। कई समाज सुधारकों का मानना था कि एक संस्था के रूप में परिवार टूट चुका है और इसके पुनर्निर्माण व सुरक्षा के लिए स्त्रियों को घरों में वापस धकेलना आवश्यक है।
  3. नगरीय जीवन में पुरुषों का वर्चस्व था और स्त्रियों को घरों में लौट जाने के लिए विवश किया जाता था।
  4. कई परंपरावादी लोग नारी की सार्वजनिक स्थलों पर उपस्थिति के विरुद्ध थे।
2. सोलहवीं सदी में दुनियाँ सिकुड़ने लगी थी। इसका क्या मतलय है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर – 16वीं सदी में दुनियाँ सिकुड़ने लगी क्योंकि यह काल औद्योगिक क्रांति एवं उपनिवेशवाद प्रभावित था। लोग गाँव से पलायन कर काम धंधे की खोज म शहरों में विस्थापित होने लगे। शहरों में उनके रहने-खाने एवं स्नान की अत्यंत ही संकुचित व्यवस्था थी। कई शहर नियोजित ढंग से नहीं बसे थे। अत: लोगों ने रहने के लिए चालों का सहारा लिया। लंदन जैसे नियोजित शहरों में जनसंख्या एकाएक बदी ही, मुंबई जैसे अनियोजित शहर भी जनाधिक्य से संकुचित होने लगे। नगर, बस्तियाँ आदि अस्तित्व में आए। गाँवों की जनसख्या नगण्य हो गई। लोगों ने काम एवं बेहतर सुविधा के लिए शहरों की तरफ रूख किया।
3. अठारहवीं सदी के मध्य से लंदन की आवादी क्यों फैलने लगी।
उत्तर – 1750 तक इंग्लैंड और वेल्स का हर 9 में से 1 आदमी लंदन में रहता था। यह एक बहुत ही विशाल शहर था, जिसकी जनसंख्या 6,75,000 तक पहुँच चुकी थी। 19वीं शताब्दी में भी लंदन की आबादी इसी प्रकार बढ़ती रही। 1810 से 1880 के बीच इस शहर की आबादी चार गुना हो गई। 18वीं शताब्दी के मध्य से लंदन की आवदी के फैलने के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
  1. विभिन व्यवसाय- -लंदन के रोजगार की कमी नहीं थी। 19वीं शताब्दी में यहाँ लगभग हर व्यवसाय के लोग रहते थे। गैरेथ स्टेडमैन के अनुसार, ‘उनीसवीं शताब्दी का लंदन क्लार्कों तथा दुकानदारों, छोटे तथा बड़े कारीगरों सिपाहियों, नौकरों, दैनिक श्रम करने वाले मजदूरों तथा फैरीवालों का शहर था।’ यहां भिखारियों की भी कमी नहीं थी। यह तथ्य लंदन में फैलती आबादी को ही दर्शाता है।
  2. लंदन की गोदी- रोजगार की दृष्टि से लंदन की गोदी बहुत ही महत्वपूर्ण थी। यह बड़ी संख्या के कामगारों को रोजगार दे सकती थी।
  3. विभिन्न उद्योग-लंदन में कई प्रकार के बड़े उद्योग विकसित थे। ये उद्योग थे- परिधान और जूता उद्योग, लकड़ी एवं फर्नीचर उद्योग, धातु एवं इंजीनियरिंग उद्योग, छपाई और स्टेशनरी उद्योग तथा शल्य चिकित्सा उद्योग, घड़ी उद्योग तथा कीमती धातुओं का सामान बनाने वाले उद्योग। ये उद्योग बाहर के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र थे।
  4. विशाल कारखानों की संख्या में वृद्धि–प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के दौरान लंदन में मोटरकारों तथा बिजली उपकरणों का निर्माण भी होने लगा। धीरे-धीरे विशाल कारखानों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि शहर तीन चौथा नौकरियाँ इन्हीं कारखानों में सिमट गईं। सच तो यह है शहर की चमक-दमक, चहल-पहल और रोजगार ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया। लोग गांव को छोड़ शहरों की ओर आकर्षित होने लगे। फलस्वरूप लंदन की आबादी फैलने लगी।
4. वंबई फिल्म उद्योग कब अस्तित्व में आया? इस उद्योग ने राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में कैसे योगदान दिया?
उत्तर – हरीशचंद्र सखाराम भाटवाडेकर ने 1896 में बंबई में बंबई के हैगिंग ससगार्डन्स में हुई कुश्ती की एक प्रतियोगिता में भाग लिया और यह 1896 में भारत की पहली फिल्म बनी। शीघ्र ही 1913 में दादा साहेब फाल्के ने ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म बनाई। फिल्म उद्योग में अधिक लोग लाहौर, कलकत्ता, मद्रास से बंबई आए थे और इन्हीं लोगों के कारण ही फिल्म उद्योग का ऐसा राष्ट्रीय स्वरूप बना।
5. मुम्बई में निवास कर रहे लोगों के सामाजिक जीवन पर चर्चा करें।
उत्तर –
  1. बंबई एक भीड़-भाड़ वाला शहर था क्योंकि कि वहाँ एक व्यक्ति के पास निवास के लिए केवल 9.5 वर्ग गज स्थान था।
  2. 70% कामकाजी लोग बंबई की भीड़भाड़ वाली चॉलों में रहते थे। चॉलें बहुमंजिला भवन होती थीं जिन्हें 1860 के दशक में नगर के ‘नेटिव’ हिस्सों में बनाना शुरू किया गया।
  3. पर बहुत छोटे थे जिसके कारण गलियों और पड़ोस को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और सामाजिक उत्सवों समारोहों के लिए प्रयुक्त करते थे।
  4. दमित वर्ग के लोगों के लिए घर ढूँढ पाना अति कठिन था।
6. 19वीं सदी में धनी लंदनवासियों के निर्धनों के लिए मकान बनाने की जरूरत का समर्थन क्यों किया?
उत्तर –
  1. मजदूरों का झोपड़पट्टियों में रहना बहुत खतरनाक था। वे 29 वर्ष को औसत आयु तक जीवित रहते जबकि इसकी तुलना में उच्च तथा मध्यमवर्गीय लोगों में औसत जीवन दर 55 थी।
  2. ऐसी झोंपड़पट्टियाँ न केवल निवासियों के लिए हानिकारक थीं अपितु सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी चुनौती थीं और इनसे कोई भी महामारी आसानी से फैल सकती थी।
  3. घटिया मकानों में अग्निकांड का खतरा रहता था और ये अग्निकांड आसपास के क्षेत्रों को भी विनाश की चपेट में ले लेते थे।
  4. 1917 की रूसी क्रांति के बाद विशेष रूप से यह समझा जाने लगा कि घटिया मकान कोई भी सामाजिक विनाश कर सकते हैं और झोपड़पट्टियों के निर्धन निवासियों को विद्रोह के लिए उसका सकते हैं।
  5. उपयुक्त आवासों की कमी के कारण जनसंख्या स्तर बढ़ने लगा था।
7. वंबई की बहुत सी फिल्में शहर में बाहर से आने वालों के जीवन पर आधारित क्यों होती थी ?
उत्तर –
  1. बंबई की अनेक फिल्में शहर में आने वाले अप्रवासियों और उनके दैनिक जीवन में पेश आने वाली कठिनाइयों के बारे में ही हैं। बम्बई फिल्म उद्योग के कई लोकप्रिय गीत शहर के अंतर्विरोधी आयामों को उजागर करते हैं। फिल्म सी आई डी (1958) में नापक का मित्र गाता है, ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ, जरा हटके, जरा बचके, ये है बॉम्बे मेरी जान।’ फिल्म गेस्ट हाउस (1959) में मोहभंग का स्वर सुनाई देता है, जिसका जूता, उसी के सर, दिल है छोटा बड़ा शहर, अरे वाह रे वाह तेरी बंबई।
  2. फिल्म उद्योग में काम करने वाले भी प्रायः लाहौर, कलकत्ता, मद्रास आदि शहरों से आए थे। इतनी सारी जगहों से आए लोगों के कारण ही फिल्म उद्योग का ऐसा राष्ट्रीय स्वरूप बना था। लाहौर से आए लोगों ने हिन्दी फिल्म उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण हसन मंटो जैसे अनेक प्रसिद्ध लेखक हिन्दी सिनेमा से जुड़े थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. 19वीं सदी के मध्य में बंबई की आबादी में भारी वृद्धि क्यों हुई?
उत्तर –
  1. 1819 में बंबई को बॉम्बे प्रेसिडेंसी की राजधानी बना दिया गया जिससे अधिकाधिक लोग इस नगर की ओर आकर्षित हुए।
  2. कपास और अफ्रीका के उद्योग में वृद्धि के कारण भारी संख्या में व्यापारी तथा बैंकर विभिन कारीगरों और दुकानदारों के साथ-साथ बंबई में निवास करने चले आए।
  3. विभिन्न उद्योगों की स्थापना का कपड़ा उद्योग के विकास से विभिन्न पड़ोसी क्षेत्रों, विशेषकर निकटवर्ती रत्नागिरी जिले से लोग अधिकाधिक संख्या में अप्रवासी बनकर आने लगे।
  4. बम्बई यूरोपीय देशों के साथ भारतीय व्यापार का केन्द्रबिन्दु बन गया था।
  5. रेलवे की सुविधा आ जाने से शहर में उच्चतर संख्या में अप्रवासियों का आगमन शुरू हो गया।
  6. कच्छ के शुष्क क्षेत्रों में अकाल के कारण भारी संख्या में लोग बंबई की ओर भागने लगे।
  7. जब बंबई भारतीय फिल्मों का गढ़ बन गई तो कलाकार, नाटककार, नाट्य-लेखक, कवि, गायक, कथाकार इसकी भारी भीड़भाड़ को अनदेखा कर इस शहर की ओर आने लगे थे।
2. लोगों को मनोरंजन के अवसर उपलब्ध कराने के लिए इंग्लैंड में उन्नीसवीं सदी में मनोरंजन के कौन-कौन से साधन सामने आये ?
उत्तर – इंग्लैंड में 19वीं सदी में समाज के सभी वर्गों के लि नोरंजन के साधन उपलव्य थे। इनमें से मुख्य साधन निम्नलिखित थे-
मनोरंजन के परंपरागत साधन-
  1. धनी ब्रिटेनवासियों के लिए बहुत पहले से ही ‘लंदन सीजन’ की परंपरा चली आ रही थी। अठारहवीं शताब्दी के अतिम दशकों में 300-400 संभ्रांत परिवारों के लिए ऑपेरा, रंगमंच और शास्त्रीय संगीत आदि कई प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन किए जाते थे।
  2. मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग अपना खाली समय पब या शराबपरों में बिताते थे। इस अवसर पर वे समाचारों का आदान-प्रदान करते थे और कभी-कभी राजनीतिक विषयों पर भी बातचीत करते थे। मनोरंजन के नये साधन-धीरे-धीरे आम लोगों के लिए भी मनोरंजन के नए तरीके सामने आने लगे। इनमें से कुछ सरकारी धन से आरंभ किए गए थे।
  3. लोगों को इतिहास का बोध कराने के लिए और ब्रिटेन की उपलब्धियों से परिचित कराने के लिए बहुत से पुस्तकालय, कला दीर्घाएँ और संग्रहालय खोले गए। म्यूजियम में आने वालों की वार्षिक संख्या केवल 15,000 थी। परन्तु 1810 से इस संग्राहलय में प्रवेश शुल्क समाप्त कर दिया गया जिसके जिसके दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी।
  4. निचले वर्ग के लोगों में संगीत सभा काफी लोकप्रिय थी।
  5. बीसवीं सदी तक विभिन्न वर्गों के लोगों के लिए सिनेमा भी मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन बन गया।
  6. ब्रिटेन के कारखाना मजदूर छुट्टी के दिनों में समुद्र किनारे बैठकर खुली धूप और स्वच्छ वायु का आनंद लेते थे।
3. पेरिस में हॉस्मानीकरण का क्या अर्थ है? इस तरह के विकास को आप किस सीमा तक सही या गलत मानते हैं?
उत्तर – पेरिस का हॉस्मानीकरण- -इसका सीधा अर्थ है कि पेरिस के नये शहर का प्रारूप इसके मुख्य वास्तुकार द्वारा तैयार किया गया था। नेपोलियन III (नेपोलियन बोनापार्ट का भतीजा) के आदेश पर हॉसमान ने 17 वर्ष (1852 से 1869 तक) इस नए पेरिस शहर का पुन निर्माण करवाया था। सीधी, चौड़ी सड़कें (या बुलेबस अर्थात् छायादार सड़क) खुले मैदान बनाए गए और बड़े-बड़े पेड़ लगाए गए। 1870 तक पेरिस की सड़कों में से 20% हॉस्मान की योजना के अनुसार बनाई जा चुकी थी। इसके अतिरिक्त रात में गश्त शुरू की गई, बस अड्डों व पानी के नलों की व्यवस्था की गई।
हॉस्मानीकरण का विरोध – इस प्रकार के विकास का कई लोगों ने विरोध किया। लगभग 350,000 लोग पेरिस के मध्य से विस्थापित कर दिए गए। कुछ लोगों का कहना था कि उनके शहर को दानवी ढंग से रूपांतरित कर दिया गया है। कुछ ने पुरानी जीवन शैली समाप्त होने व उच्चवर्गीय संस्कृति को स्थापना पर गहरा दुःख व्यक्त किया। अन्य का मानना था कि हॉस्मानीकरण से सड़कों व वहाँ के जीवन की हत्या हुई है और उसकी जगह एक खाली व ऊबाऊ शहर खड़ा कर दिया गया है।
हॉस्मानीकरण के समर्थन में तर्क- नया पेरिस नगर शीघ्र ही एक नागरिक गर्व का प्रतीक बन गया क्योंकि नयी राजधानी समस्त यूरोप के लिए ईर्ष्या का विषय बन चुकी थी। पैरिस बहुत से ऐसे वास्तुशिल्पीय, सामाजिक व बौद्धिक प्रयोगों का केन्द्र पूरी दुनिया पर अपना प्रभाव डालते रहे।
4. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के वीच लंदन में औरतों के लिए उपलब्ध कामों में किस तरह के बदलाव आए? ये बदलाव किन कारणों से आए ?
उत्तर – उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के बीच लंदन में औरतों के लिए उपलब्ध कामों में कई बदलाव आए-
  1. मशीनों के आगमन से बदलाव-(i) अठारहवीं शताब्दी के अंत में तथा उन्नीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में बहुत-सी औरतें फैक्ट्रियों में काम करती थीं। परन्तु ज्यों-ज्यों तकनीक में सुधार आया और मशीनें आ गईं, कारखानों में औरतों की नौकरियाँ छिनने लगीं। अब वे घरेलू कामों में सिमट कर रह गई। 1861 की जनगणना के अनुसार लंदन में लगभग अढ़ाई लाख घरेलू नौकर थे। इनमें औरतों की संख्या बहुत अधिक थी। उनमें से अधिकांश हाल ही में शहरों में आई थीं। (ii) बहुत-सी औरतें परिवार की आय बढ़ाने के लिए अपने मकानों का प्रयोग करती थीं। वे अपने मकान में या तो किसी को किराये पर रख लेती थीं या घर पर ही रहकर सिलाई-बुनाई कपड़े धोने या माचिस बनाने जैसे काम करती थी।
  2. युद्धकालीन उद्योगों में काम- बीसवीं सदी में स्थिति में एक बार फिर बदलाव आया। अब औरतों को युद्धकालीन उद्योगों और दफ्तरों में काम मिलने लगा। इसका कारण यह था कि प्रथम विश्वयुद्ध में बहुत से लोगों को सेना में भर्ती कर लिया गया था जिससे श्रम का अभाव हो गया था।
    इस प्रकार औरतें घरेलू काम छोड़ कर फिर बाहर आने लगी।
5. विशाल शहरी आवादी के होने से निम्नलिखित पर क्या प्रभाव पड़ता था? ऐतिहासिक उदाहरणों के साथ समझाइए-(क) जमींदार (ख) कानून-व्यवस्था संभालने वाला पुलिस अधीक्षक (ग) राजनीतिक दल का नेता।
उत्तर – (क) विशाल शहरी आबादी का जमींदार पर प्रभाव- औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप भारी संख्या में लोग लंदन में आ गए जिससे नगर की जनसंख्या में कई गुणा वृद्धि हुई। इस स्थिति ने लंदन के निवासियों के लिए कई समस्याएँ पैदा कर दी, जबकि निजी जमींदारों जैसे कुछ वर्ग इससे लाभ कमाने में जुट गए। उन्होंने जरूरतमंद लोगों को भारी दामों पर अपनी जमीनें बेचनी शुरू कर दी। उन्होंने अपनी जमीनों पर सस्ते फ्लैट बनाए और उन्हें निर्धन लोगों को किराए पर लगाकर किराए के रूप में बहुत बड़ा धन कमाया।
(ख) विशाल शहरी आवादी का पुलिस अधीक्षक पर प्रभाव- लंदन की विशाल आबादी ने पुलिस अधिक्षक को कानून-व्यवस्था बनाने की चुनौती के रूप में कई समस्याएँ दें दीं-
  1. जब झोंपड़पट्टियों में आग लग जाती तो अनेक घर जल जाते और असंख्य लोग मारे जाते। ऐसे में पुलिस की स्थिति पर नियंत्रण पाना कठिन हो जाता था।
  2. कामगारों के बेहतर वेतन, बेहतर आवासीय सुविधाओं और मताधिकार के लिए किए जाने वाले विभिन्न आंदोलनों से पुलिस की सिरदर्दी बढ़ जाती थी।
(ग) विशाल शहरी आवादी का राजनीतिक दल के नेता पर प्रभाव- भारी जनसंख्या के कारण लंदन में कानन-व्यवस्था बनाए रखना दुर्गम हो चुका था। राजनीतिक दल सरकार के विरूद्ध आंदोलन के लिए सदैव भीड़ को उकसाते रहते थे। व्यस्कों के लिए मताधिकार के लिए चालिस्ट आंदोलन तथा 10 घंटे काम के आंदोलन जैसे कई 19वीं सदी के आंदोलन प्रत्यक्षतः लंदन की अति भीड़भाड़ का परिणाम थे।

7. मुद्रण, संस्कृति और आधुनिक दुनिया

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. यूरोप में वुडब्लॉक विधि क्यों प्रचलित हुई ?
अथवा, हस्तलिखित पांडुलिपियों की क्या कमियाँ थी ?
उत्तर –
  1. हस्तलिखित पांडुलिपियों से बढ़ती हुई पुस्तकों की माँग कभी भी पूरी नहीं हो सकती थी।
  2. नकल उतारना बहुत खर्चीला, श्रमसाध्य तथा समय लेने वाला व्यवसाय था।
  3. पांडुलिपियाँ प्रायः नाजुक होती थीं और उनके लाने-ले जाने, रख-रखाव में बहुत सी कठिनाइयाँ थीं। 15वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में बड़े पैमाने पर वुडबलॉक की छपाई का प्रयोग करके ताश के पत्ते, कपड़े और छोटी-छोटी टिप्पणियों के साथ धार्मिक चित्र छापे जा रहे थे।
2. ‘हाथ की छपाई की अपेक्षा मशीनी छपाई ने मुद्रण में क्रांति ला दी थी।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
  1. 1450 से 1550 तक के 100 वर्षों में यूरोप के अधिकतर देशों में छापेखाने स्थापित हो चुके थे।
  2. काम की खोज तथा नए को शुरू करने में सहायता करने के लिए जर्मनी से प्रिंटरों ने दूसरे देशों में जाना शुरू कर दिया। जैसे ही अनेक प्रिंटिंग प्रेसें स्थापित हुई, पुस्तकों के उत्पादन में भारी उछाल आ गया।
  3. 15वीं सदी के दूसरे हिस्से में यूरोप में 2 करोड़ छपी पुस्तकों की प्रतियों की बाद आ चुकी थी। यह संख्या 16वीं सदी में लगभग 20 करोड़ प्रतियाँ हो गई।
3. ‘मुद्रण ने ज्ञानोदय के चिंतकों के विचारों को लोकप्रिय बनाया’ स्पष्ट करें।
उत्तर – सामूहिक रूप में उनका लेखन परंपरा, अंधविश्वास तथा तानाशाही पर विवेचनात्मक टिप्पणियाँ करता था। उन्होंने रीति-रिवाजों की जगह विवेक के शासन पर बल दिया। उन्होंने मांग की कि प्रत्येक बात निर्णय विवेक के आलोक में होना चाहिए। उन्होंने पवित्र गिरजाघरों के अधिकारियों तथा सरकार की तानाशाही शक्ति पर प्रहार किए और इस प्रकार प्रथाओं पर आधारित सामाजिक व्यवस्था की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगाया। वाल्तेयर और रूसो जैसे दार्शनिकों की पुस्तकें भारी मात्रा में पढ़ी जाने लगीं। जिन्होंने उनकी पुस्तकें पढ़ी, उन्होंने उन्हीं की आँख से देखा और ये आँखें प्रश्नपूर्ण, विवेचनात्मक तथा तर्कपूर्ण थीं।
4. बहुत सारे मजदूर स्पिनिंग जेनी के इस्तेमाल का विरोध क्यों कर रहे थे?
उत्तर – सन् 1764 में स्पिनिंग जेनी का आविष्कार जेम्स हरग्रीब्ज द्वारा हुआ। इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी जिसके कारण अब मजदूरों की माँग घट गयी। एक ही पहिये को घुमाकर एक मजदूर सारी स्पीडल को घुमा देता था और एक साथ कई धागों का निर्माण शुरू हो जाते थे। बेरोजगारी के डर से वैसे मजदूर जो हाथों से धागा काटकर गुजारा करते थे घबड़ा गये और मजदूरों ने इन नई मशीनों को लगाने का विरोध किया। महिला मजदूरों का विरोध एवं तोड़-फोड़ काफी समय तक चलती रहा। उन्होंने ऐसे कारखानों पर आक्रमण भी किया।
5. वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – वर्नाकुलर एक्ट 1878 के तत्वावधान में ब्रिटिश सरकार द्वारा भाषाई अखबारों पर नियमित नजर रखने का प्रावधान किया गया। तत्कालीन पत्रों में दास-व्यापार, हड़ंप नीति आदि से सम्बन्धित भारतीय लेखों से ब्रिटिश साम्राज्य खफा था। अतः वह एक्ट लगाया गया था।
6. कारण दें-
महात्मा गाँधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर – महात्मा गाँधी ने ये शब्द 1922 में असहयोग आंदोलन (1920-22) के काल में कहे थे क्योंकि उनके अनुसार वाणी की स्वतंत्रता, प्रेस की आजादी और संगठन की आजादी के बिना कोई भी राष्ट्र नहीं पनप सकता। यदि देश को बाहरी वर्चस्व से मुक्ति दिलानी है तो इन स्वतंत्रताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण समझना चाहिए। यदि ये तीनों आजादियाँ नहीं होंगी तो फिर राष्ट्रवाद भी नहीं होगा। राष्ट्रवाद को अपने संजीवन के लिए ये तीनों स्वतंत्रताएँ अवश्य चाहिए। महात्मा गाँधी इस तथ्य को जानते थे, इसीलिए वे इन आजादियों की विशेषत: वकालत करते थे। इनके अभाव में कोई राष्ट्रवाद के विषय में सोच भी नहीं सकता।
7. यूरोप में मुद्रण संस्कृति का विकास कैसे हुआ ?
उत्तर –
  1. 11वीं सदी में चीन से रेशम मार्ग के रास्ते कागज यूरोप पहुँचा था। इसके साथ ही लिपिकों द्वारा पांडुलिपियों के उत्पादन का कार्य एक सामान्य कारोबार बन गया।
  2. 1295 में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में कई साल तक खोज करने के बाद इटली लौटा तो अपने साथ वुडब्लॉक मुद्रण की तकनीक भी लेकर आया। अब इतालवी लोगों ने वुडब्लॉक मुद्रण द्वारा पुस्तकें छापना शुरू कर दिया। यह तकनीक यूरोप के अन्य भागों में भी प्रचलित हो गई।
  3. 15वीं सदी के प्रारम्भ में यूरोप में कपड़ा छापने तथा सादा व संक्षिप्त टिप्पणी के साथ धार्मिक चित्र छापने के लिए वुडब्लॉक मुद्रण का प्रयोग व्यापक रूप में होने लगा।
  4. परन्तु इससे लोगों की मांग की पूर्ति नहीं हो पाती थी। पुस्तके छापने के लिए इससे भी तेज और सस्ती मुद्रण तकनीक की जरूरत थी। ऐसा छपाई की एक नई तकनीक के आविष्कार से ही संभव था। 1430 के दशक में स्ट्रैसबर्ग के योहान गुटेन्बर्ग ने पहली प्रसिद्ध प्रिंटिंग प्रेस विकसित की।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत और ज्ञानोदय होगा?
उत्तर –
  1. मुद्रण-संस्कृति के आगमन के बाद आम लोगों में वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों के विचार अधिक महत्व रखने लगे। प्राचीन तथा मध्यकालीन वैज्ञानिकों की पांडुलिपियों को संग्रहीत व प्रकाशित किया जाने लगा।
  2. मानचित्र तथा अन्य सटीक वैज्ञानिक चित्र व्यापक रूप में छापे गए। जब आइजैक न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कार प्रकाशित करने शुरू किए तो उनके लिए विज्ञान-बोध के रंग में रंगा एक विशाल पाठक-वर्ग तैयार हो चुका था। टॉमस पेन, वॉल्तेयर और ज्याँजाक रूसो जैसे दार्शनिकों की पुस्तकें भी भारी मात्रा में छपने और पढ़ी जाने लगीं। स्पष्ट है कि विज्ञान तर्क और विवेकवाद के उनके विचार लोकप्रिय साहित्य में भी जगह पाने लगा।
  3. 18वीं सदी के मध्य तक यह आम विश्वास बन चुका था कि पुस्तकों द्वारा प्रगति व ज्ञानोदय संभव है। कइयों का मानना था कि पुस्तकें विश्व बदल सकती हैं और निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिला ऐसा युग लाएँगी, जब विवेक और बुद्धि का राजा होगा। 18वीं सदी के फ्रांसीसी उपन्यासकार प्रगति का सर्वाधिक शक्तिशाली औजार है, इससे बन रही जनमत को आँधी में निरंकुशवाद उजड़ जाएगा।
  4. मुद्रण ने ज्ञानोदय-विचारकों के विचारों को लोकप्रिय बनाया जिन्होंने गिरजाघर के अधिकारियों पर हमले किए और सरकार की तानाशाही शक्ति का विरोध किया जैसे वॉल्तेयर और रूसो ।
  5. मुद्रण ने संवाद तथा वाद-विवाद की एक नई संस्कृति को जन्म दिया और लोगों को तर्कशील बनाते हुए विचारों और आस्थाओं पर प्रश्न-चिह्न लगाना सिखाया।
2. कुछ लोग पुस्तकों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर – मुद्रित पुस्तकों का सभी ने स्वागत नहीं किया और जिन्होंने किया भी, उनके दिलों में भी एक डर था। कइयों की धारणा थी कि छपी पुस्तक के व्यापक प्रसार और छपे शब्द की सुगमता से आम लोगों के दिमाग पर ऋणात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्हें आशंका थी कि यदि मुद्रित और पढ़ी जाने वाली सामग्री पर कोई नियंत्रण न होगा तो लोगों में विद्रोही और अधार्मिक विचार उपजने लगेंगे। यदि ऐसा हुआ तो ‘मूल्यवान’ साहित्य की सत्ता ही नष्ट हो जाएगी। धर्मगुरुओं और सम्राटों तथा कई लेखकों एवं कलाकारों द्वारा व्यक्त यह चिंता नवमुद्रित और नव प्रसारित साहित्य की व्यापक आलोचना का आधार बनी।
अब इसके प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में जीवन के एक क्षेत्र में होने वाले प्रभावों की चर्चा अर्थात् धर्म के प्रसंग का विवरण निम्नांकित है-
  1. धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी 95 स्थापनाएँ लिखीं। इसकी एक मुद्रित प्रति विटेलबर्ग के चर्च के द्वार पर टाँगी गई। इसमें उन्होंने चर्च को शास्वार्थ के लिए चुनैती दी थी। शीघ्र ही उनके लेख बड़ी संख्या में छापे और पढ़े जाने लगे। फलतः चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेट धर्मसुधार की शुरुआत हुई।
  2. कई रूढ़िवादी हिन्दुओं का विचार था कि शिक्षित लड़की विधवा हो जाएगी और मुस्लिमों की धारणा थी कि शिक्षित स्त्री उर्दू रोमांसों को पढ़कर भ्रष्ट हो जाएगी। इस निषेध का उल्लंघन करन वाली कई महिलाओं के उदाहरण मिलते हैं।
3. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या सहायता की ?
उत्तर –
  1. 19वीं सदी के प्रारंभ में धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक मुद्दों पर गंभीर वाद-विवाद होने लगे थे। लोगों के औपनिवेशिक समाज के विषय में विभिन्न मत थे। कुछ तो वर्तमान रीति-रिवाजों की आलोचना करते हुए उनमें सुधार चाहते थे जबकि कुछ अन्य समाज सुधारकों के तर्कों के विरूद्ध थे। ये सारे वाद-विवाद मुद्रण में और सार्वजनिक रूप में सामने आए। मुद्रित पुस्तिकाओं और अखबारों ने न केवल नए विचारों का प्रचार-प्रसार किया बल्कि उन्होंने बहस की प्रकृति भी तय कर दी। इन सब से राष्ट्रवाद के विकास में सहायता मिली।
  2. मुद्रण ने समुदाय के बीच केवल मत-मतांतर पैदा नहीं किए अपितु इसने समुदायों को अंदर से और विभिन्न भागों को पूरे भारत से जोड़ने का काम भी किया। समाचार पत्र एक स्थान से दूसरे स्थान तक समाचार पहुँचाते थे जिससे अखिल भारतीय पहचान उभरती थी।
  3. कई पुस्तकालय भी मिल-मजदूरों तथा अन्य लोगों द्वारा स्थापित किए गए ताकि वे स्वयं को शिक्षित कर सकें। इससे राष्ट्रवाद का संदेश प्रचारित करने में सहायक मिली।
  4. दमनकारी कदमों के बावजूद राष्ट्रवादी अखबार भारत के कई भागों में भारी संख्या में पल्लवित हुए। वे औपनिवेशिक शासन का विरोध करते हुए राष्ट्रवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित करते थे।
4. 19वीं सदी में भारत में गरीब जनता वर्ग पर मुद्रण संस्कृति के प्रसार का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर –
  1. सार्वजनिक पुस्तकालय – 19वीं सदी में मुद्रण निर्धन लोगों तक पहुँचा। प्रकाशकों ने छोटी और सस्ती पुस्तकें छापनी शुरू कर दीं। इन पुस्तकों को चौराहों पर बेचा जाता था। ईसाई मिशनरियों तथा संपन्न लोगों द्वारा सार्वजनिक पुस्तकालय भी खोले गए।
  2. वर्गभेद के मुद्दे को उछालना- 19वीं सदी के अंत में कई लेखकों ने वर्गभेद के मुद्दे पर लिखना शुरू किया।
    1. ज्योतिबा फूले एक समाज सुधारक थे। उन्होंने निम्न जाति की शोचनीय दशा के बारे में लिखा। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘गुलामगिरी’ (1871) में जाति-व्यवस्था के अन्यायों के विषय में लिखा।
    2. 20वीं सदी में बी०आर० अंबेडकर ने भी जाति-व्यवस्था के विरूद्ध डटकर लिखा। उन्होंने छुआछूत के विरोध में भी लिखा।
    3. ई०वी० रामास्वामी नायकर, जिन्हें पेरियार भी कहते हैं, ने मद्रास में व्याप्त जाति व्यवस्था के विषय में लिखा।
इन लखकों का लेखन पूरे भारत के लोगों द्वारा पढ़ा जाता था। स्थानीय विरोध आन्दोलनों और संप्रदायों में भी प्राचीन धर्मग्रंथों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का भविष्य निर्मित करने के लिए पत्र-पत्रिकाएँ व गुटके छापे।
5. महिलाओं पर मुद्रण संस्कृति के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
उत्तर –
  1. नारी-शिक्षा-लेखकों ने महिलाओं के जीवन व भावनाओं को लेकर लिखना प्रारम्भ किया जिससे महिला पाठकों की संख्या बढ़ने लगी। वे शिक्षा में रुचि लेने लगी और उनके लिए कई स्कूल व कॉलेज अलग से खोले गए। कई पत्रिकाओं ने भी नारि-शिक्षा के महत्व की चर्चा करनी शुरू कर दी।
  2. महिला लेखिकाएँ-19वीं सदी के प्रारम्भ में पूर्वी बंगाल में रशसुंदरी देवी, एक परंपरित परिवार की घरेलू विवाहिता, ने रसोईघर में छिपकर पढ़ना सीखा बाद में उसने आत्मकथा ‘अमर जीवन’ (अर्थात मेरा जीवन) लिखी जो 1876 में छपी थी। 1860 के दशक से कैलाशबाशिनी देवी जैसी कई बंगला महिला लेखिकाओं ने महिलाओं के अनुभवों पर लिखना शुरू किया कि कैसे वे घरों में बंदी व निरक्षर बनाकर रखी जाती हैं, घर भर के काम का बोझ ढोती हैं और जिनकी सेवा करती हैं, उन्हीं द्वारा दुत्कारी जाती हैं। 1880 में आज के महाराष्ट्र में ताराबाई शिंदे और पंडिता रमाबाई ने सवर्ण नारियों विशेषतः विधवाओं की शोचनीय दशा के विषय में जोश और रोषपूर्वक लिखा। तमिल लेखिकाओं ने भी नारी के निम्न स्तरीय जीवन के विषय में विचार व्यक्त किया।
  3. हिन्दी लेखन और महिलाएँ-उर्दू, तमिल, बंगला और मराठी मुद्रण संस्कृति तो पहले ही आ चुकी थी परन्तु हिन्दी मुद्रण 1870 के दशक में गंभीरतापूर्वक प्रारंभ हुआ। शीघ्र ही इसका एक बड़ा भाग नारी-शिक्षा के प्रति समर्पित होने लगा।
  4. नयी पत्रिकाएँ – 20वीं सदी के प्रारंभ में महिलाओं द्वारा लिखित पत्रिकाएँ लोकप्रिय हुई जिनमें नारी-शिक्षा, विधवा-जीवन, विधवा पुनर्विवाह और राष्ट्रीय आन्दोलन जैसे विषयों पर चर्चा होती थी। कुछ ने तो महिलाओं के लिए फैशन का ज्ञान देना भी शुरू कर दिया।
  5. महिलाओं के लिए उपदेश-राम चड्ढा ने औरतों को आज्ञाकारी पलियाँ बनने का उपदेश देने के उद्देश्य से ‘स्त्रीधर्म-विचार’ पुस्तक लिखी। ऐसे ही संदेश को लेकर खालसा पुस्तिका सभा ने सस्ती पुस्तिकाएँ छापी। इनमें से अधिकतर ‘अच्छी स्त्री के गुणों पर वार्तालाप के रूप में थीं।

8. उपन्यास, समाज और इतिहास

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. उपन्यास विभिन्न संस्कृतियों को किस प्रकार निकट लाते है।
उत्तर – उपन्यास आम लोगों की भाषा का प्रयोग करता है। लोगें की भिन्न-भिन्न बोलियों से निकटता बनाकर उपन्यास एक राष्ट्र के विभिन्न उपन्यास भाषा की अलग-अलग शैलियों से भी सामग्री लेते हैं। किसी एक ही उपन्यास में एक साथ शास्त्रीय व सड़क छाप भाषा को उपन्यास की अपनी जनभाषा के साथ मिलाकर प्रस्तुत किया जा सकता है। राष्ट्र की भाँति उपन्यास भी कई संस्कृतियों को परस्पर जोड़ते हैं।
2. शारलॉट मॉण्ट कौन थीं? उन्होंने अपने उपन्यासों में महिलाओं को किस रूप में चित्रित किया है ?
उत्तर – शारलॉट बॉण्ट एक अंग्रेजी उपन्यासकार थीं। उनके उपन्यासों में ऐसी महिलाओं का वर्णन है जो सामाजिक मानदंडों के साथ तालमेल करने से पूर्व उन्हें तोड़ फेंकती हैं। इन कहानियों से पाठिकाओं को विद्रोह करने वाली पात्रों से सहानुभूति हो जाती है। उनके उपन्यास ‘जेन आयर’ में युवती जेन को स्वतंत्र विचारों व दृढ़ व्यक्तित्व के रूप में चित्रित किया गया है। यद्यपि उस काल की स्त्रियों को चुप और शालीन बने रहने का संस्कार दिया जाता था तथापि जेन दस वर्ष की आयु में ही बड़ों के पाखंड का मुंहतोड़ उत्तर देकर चौंका देती है। यह बुरा व्यवहार करने वाली अपनी आंट से कहती है— ‘लोग आपको नेक औरत समझते हैं, लेकिन वास्तव में आप बुरी हैं … आप चतुर हैं। इस जीवन में तो मैं आपको आंट नहीं कह सकूँगी।’
3. हिन्दी उपन्यास में देवकीनंदन खत्री के योगदान पर विचार को लिखें।
उत्तर – देवकी नंदन खत्री- वे भारत में रहस्यात्मक उपन्यास के जनक जाते हैं। उनके लेखन ने हिन्दी उपन्यास के लिए पाठक वर्ग को तैयार किया माना जाता है कि उनको हाथों-हाथ बिकी रचना ‘चंद्रकांता संतति’, जो फंतान के तत्त्वों से बुनी रूमानी कृति थी, ने उस समय के शिक्षित वर्ग में हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि को लोकप्रिय बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। यद्यपि ‘पढ़ने के आनंद’ के उद्देश्य से लिखा गया था, फिर भी इससे पाठक-वर्ग में चाहत और उनके भय के बारे में भी दिलचस्प सुराग मिलता है।
4. उपन्यासों की कुछ महत्वपूर्ण प्रवृत्तियों का वर्णन करें, जिनके कारण इन्हें पाठकों में लोकप्रियता मिली।
उत्तर –
  1. उपन्यासों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे साधारण लोगों के विषय में थे और साधारण लोगों समुदायों की साझा दुनिया रचता है। इस तरह द्वारा पढ़े जाते थे। वे आम आदमी के दैनिक जीवन से संबंधित थे।
  2. अधिकांश उपन्यास आम आदमी के जीवन पर केंद्रित थे।
  3. 19वीं सदी में यूरोप औद्योगिक युग में प्रविष्ट कर गया। इससे समाज का सामाजिक व आर्थिक दाँचा बदल गया। अधिकतर उपन्यासकारों ने औद्योगीकरण के लोगों के जीवन पर भयानक प्रभावों को दिखाया है।
  4. उपन्यास में देशीय भाषा का प्रयोग किया जाता था जो कि आम लोगों द्वारा बोली जाती थी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. इनकी व्याख्या करें-
(क) ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या बढ़ी थी।
(ख) राविंसन क्रूसो के वे कौन से कृत्य हैं, जिनके कारण यह हमें ठेठ उपनिवेशकार दिखाई देने लगता है?
(ग) 1740 के वाद निर्धन लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।
उत्तर – (क)
  1. 18वीं सदी के उपन्यासों का सबसे रोमांचक पहलू यह था कि उन्हें महिलाओं ने भी पढ्ना लिखना शुरू कर दिया था। इस सदी में मध्य वर्ग अधिक समृद्ध बन गए थे। महिलाओं को उपन्यास पढ़ने और लिखने के लिए अधिक समय मिलने लगा था। इन उपन्यासों ने महिलाओं के संसार, उनकी भावनाओं, पहचान, अनुभवों तथा समस्याओं के विषय में खोज करनी शुरू कर दी थी।
  2. कई उपन्यास घरेलू जीवन से संबंद्ध थे, ऐसा कथ्य जिसके विषय में नारियों को आधिकारिक तौर पर कुछ कहने की सामर्थ्य थी। उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा, घरेलू जीवन के विषय में लिखा और पाठकों में अपनी पहचान बनाई।
  3. जेन ऑस्टिन के उपन्यासों में 19वीं सदी के प्रारंभिक ब्रिटेन के ग्रामीण कुलीन समाज की झलक मिलती है। इनसे ऐसे समाज के विषय में सोचने की प्रेरणा मिलती है जहाँ महिलाओं को धनी या संपत्ति वाले दूल्हे खोजकर ‘अच्छी’ शादियाँ करने के लिए उत्साहित किया जाता था। उनके उपन्यास प्राइड एंड प्रेज्युडिस का प्रथम वाक्य है, यह एक सार्वभौम सत्य है कि कोई अकेला आदमी यदि संपन्न है तो उसे एक पत्नी की चाहत अवश्य होगी।
(ख) डैनियल डेफो कृत रॉबिन्सन क्रूसो (1719) का नायक साहसिक यात्री होने के साथ-साथ दास-व्यापारी है। एक द्वीप पर जहाजी दुर्घटना के बाद पड़ा हुआ वह गैर-गोरे लोगों को बराबर का मानव नहीं बल्कि हीनतर जीव मानता है। वह एक ‘देसी’ को मुक्त कराकर उसे अपना दास बनाता है। वह उससे उसका नाम पूछना भी जरूरी नहीं समझता, बस अपनी ओर से उसे फ्राइडे कहता है। पर उस समय क्रूसो का व्यवहार अमान्य या असामान्य नहीं समझा गया, क्योंकि उस दौर में अधिकतर लेखक उपनिवेशवाद को एक कुदरती परिघटना मानते थे। उपनिवेशवाद को एक कुदरती परिघटना मानते थे। उपनिवेशीकृत लोगों को आदिमानव, बर्बर और मनुष्य से क्षुद्र माना जाता था और उन्हें सभ्य व पूर्ण मनुष्य बनाने के लिए उपनिवेशवाद जरूरी है।
(ग)
  1. 1740 में पुस्तकालयों की स्थापना के बाद लोगों के लिए पुस्तकें सुलभ हो गई।
  2. तकनीकी सुधार से छपाई की लागत में कमी आ गई और बाजारीकरण के नए तरीकों ने पुस्तकों की बिक्री बढ़ा दी।
  3. फ्रांस में प्रकाशकों को लगा कि उपन्यासों को घंटे के हिसाब से किराए पर चलाने से अधिक लाभ होता है। उपन्यास बृहद स्तर पर उत्पादित और बेची जाने वाली सर्वप्रथम वस्तुओं में से एक था।
  4. उपन्यासों में रची जा रही दुनिया विश्वसनीय दिलचस्प और सच लगती थी।
  5. इन्हें अकेले भी पढ़ा जा सकता था और मित्रों-संबंधियों के साथ मिल-बैठकर बोलकर भी चर्चित किया जा सकता था।
  6. ग्राम्य क्षेत्रों में प्रायः इकट्ठे होकर बड़े ध्यान से किसी एक को उपन्यास पढ़ते और दूसरों को सुनते देखा जा सकता था तथा वे पात्र के जीवन के साथ गहरी पहचाना बना लेते थे।
2. तकनीक और समाज में आए उन वदलावों के बारे में वताइए जिनके कारण 18वीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
उत्तर – 18वीं सदी में यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई। इससे तकनीक एवं समाज में भी बदलाव आये। इसके निम्नलिखित कारण थे-
  1. 18वीं सदी में मुद्रण के आविष्कार ने उपन्यास को लोकप्रिय बना दिया क्योंकि अब उपन्यासों का थोक उत्पादन सुगम था। प्राचीन काल में पांडुलिपियाँ हस्तलिखित होती थीं अतः उनकी उपलब्धता सीमित होती थी।
  2. उपन्यासों में कई सामाजिक पहलू चित्रित होते थे जैसे प्रेम और विवाह, नर-नारी के लिए उपयुक्त आचरण आदि। फलत: आम आदमी इनकी ओर आकर्षित हुआ।
  3. उपन्यास मध्यवर्गीय लोगों, जैसे-दुकानदार और क्लर्क, के साथ-साथ अभिजात तथा भद्र समाज-दोनों के लिए आकर्षण बिंदु बने।
  4. उपन्यासों में न केवल सामाजिक बुराइयों पर हमले किए गए परंतु उनसे मुक्ति पाने के लिए उपाय भी सुझाए गए ताकि उन्हें सभी प्रकार के लोग पसंद कर सकें।
3. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
(क) उड़िया उपन्यास
(ख) उपन्यास परीक्षा-गुरू में चित्रित दर्शायी गई नए मध्य वर्ग की तस्वीर।
उत्तर – (क) 1877-78 में नाटककार रामशंकर राय ने ‘सौदामिनी’ नामक प्रथम उड़िया उपन्यास का धारावाहिक प्रकाशन शुरू किया। परन्तु वे इसे पूरा न कर सके। 30 वर्ष के अंदर उड़ीसा में फकीर मोहन सेनापति (1843-1918) के रूप में एक बड़ा उपन्यासकार पैदा हुआ। उनके एक उपन्यास का नाम छह माणों आठौ गुंठौ (1902) था जिसका शाब्दिक अर्थ है- छह एकड़ और बत्तीस गढ़े जमीन। इस उपन्यास के साथ एक नए किस्म के उपन्यास की धारा शुरू हुई जो जमीन और उस पर अधिकार के प्रश्न से संबंद्ध थी। उपन्यास में रामचंद्र मंगराज की कहानी है जो एक जमींदार के मैनेजर की नौकरी करता है। यह मैनेजर अपने आलसी और पियक्कड़ मालिक को ठगता है और नि:संतान बुनकर पति-पली भगिया और सारिया की उर्वर जमीन को हथियाने की युक्ति सोचता रहता है। मंगराज बुनकर दंपत्ति को बेवकूफ बनाकर उन्हें ऋण में दबा लेता है जिससे जमीन उसकी हो जाए। यह उपन्यास मील का पत्थर सिद्ध हुआ और इसने सिद्ध कर दिया कि उपन्यास द्वारा ग्राम्य मुद्दों को भी गहरी सोच का अहम हिस्सा बनाया जा सकता है। यह उपन्यास लिखकर उन्होंने बंगाल तथा अन्य स्थानों पर बहुत से लेखकों के लिए मार्ग खोल दिया था।
(ख) परीक्षा गुरू (1882) उपन्यास में नवोदित मध्यवर्गीय भीतरी व बाहरी दुनिया का परिचय दिया गया है। उसके चरित्रों को औपनिवेशिक शासन से कदम मिलाने में कैसी कठिनाइयाँ आती हैं और वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर क्या सोचते हैं, यही उपन्यास का कंध्य है। औपनिवेशिक आधुनिकता की दुनिया उनको एक साथ भयानक तथा आकर्षक दिखाई देती है। उपन्यास पाठक को जीने के ‘सही तरीके’ बताता है और हर विवेकशील व्यक्ति से आशा करता है कि वे समाज-चतुर और व्यावहारिक बनें पर साथ ही अपनी संस्कृति व परंपरा में जमे रहकर सम्मान व गरिमा का जीवन जिएँ।
उपन्यास के पात्र अपने कर्म से दो अलग संसारों के मध्य की दूरी कम करने का प्रयास करते हैं- वे नयी कृषि तकनीक अपनाते हैं, व्यापार-कर्म को आधुनिक बनाते हैं, भारतीय भाषा के प्रयोग बदलते हैं ताकि वे पाश्चात्य विज्ञान व भारतीय बुद्धि दोनों को अभिव्यक्त करने में सक्षम हो सकें। युवाओं से अखबार पढ़ने की ‘स्वस्थ आदत’ डालने की अपील की जाती है। परन्तु उपन्यास में इस बात पर जोर है कि यह सब मध्यवर्गीय गृहस्थी के पारंपरिक मूल्यों से समझौता किए बिना हो। यह उपन्यास अधिक पाठक न जुठा सका क्योंकि शायदे इसकी शैली बहुत उपदेशात्मक थी।
4. 19वीं सदी के ब्रिटेन में आए कुछ सामाजिक परिवर्तनों की चर्चा कीजिए, जिनके विषय में टॉमस हाड़ी ने लिखा था।
उत्तर –
  1. टॉमस हार्डी एक अंग्रेजी उपन्यासकार थे जिन्होंने औद्योगीकरण के कारण गायब होते ग्राम्य समुदायों के विषय में लिखा।
  2. उन्होंने उस समय के ग्रामीण कृषक समुदायों के विषय में लिखा जब अंग्रेजी ग्राम्य समाज तेजी से बदल रहा था। औद्योगीकरण के कारण किसान जो अपने हाथों से कठोर परिश्रम किया करते थे, गायब हो रहे थे जबकि बड़े किसानों ने अपनी जमीनों की बाड़ाबंदी कर दी थी, मशीनें खरीदी और मजदूर लगाकर बाजार के लिए उत्पादन शुरू कर दिया।
  3. अपने उपन्यासों में हार्डी ने लिखा था कि किस प्रकार औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने ग्राम्य समुदायों को तोड़ डला और कैसे ग्रामीण संस्कृति के मूल्य पर एक नयी नगरीय संस्कृति विकसित हो गई है।
  4. ‘फॉर फ्राम द मैडनिंग क्राउड’ हार्डी का अति प्रसिद्ध उपन्यास था। इस उपन्यास में उन्होंने लुप्त हो रही ग्राम्य संस्कृति के विषय में अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं और गैबरियल ओक नामक पात्र के माध्यम से इसका समाज पर पड़ने वाला प्रभाव दिखाया है।
5. बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह कोशिश की गई।
उत्तर –
  1. बंगाल में कई उपन्यास मराठों व राजपूतों को लेकर लिखे गए। इनसे अखिल भारतीयता का अहसास पैदा हुआ। उनका कल्पित राष्ट्र रूमानी, साहस, वीरता और त्याग से ओत-प्रोत था। ये ऐसे गुण थे जिन्हें 19वीं सदी के दफ्तरों और सड़कों पर पाना कठिन था। गुलाम जनता ने ऐसे उपन्यासों में अपनी चाहत को साकार करने का माध्यम दूँढा ।
  2. भूदेव मुखोपाध्याय (1827-94) कृत अँगुरिया बिनिमॉय (1857) बंगाल में लिखा जाने वाला पहला ऐतिहासिक उपन्यास था। इसके नायक शिवाजी धूर्त और कुटिल औरंगजेब से कई बार लोहा लेते हैं। उनके साहस और जीवन का प्रेरणास्रोत यह विश्वास है कि वे हिंदुओं की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले राष्ट्रवादी हैं।
  3. बंकिम का आनंदमठ (1882) मुस्लिमों से लड़कर हिंदू साम्राज्य स्थापित करने वाले हिंदू सैन्य संगठन की कहानी कहता है। इस एक उपन्यास ने तरह-तरह के स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।
  4. साहस और शौर्यसंपन्न अतीत के स्मरण के माध्यम से उपन्यास को एक साझे राष्ट्र की अनुभूति को लोकप्रिय बनाने में मदद मिली । साझा समाज दिखाने का एक और तरीका यह था कि उपन्यास में हर वर्ग या स्तर के चरित्र गढ़े जाएँ।
6. 19वीं सदी के यूरोप और भारत, दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली महिलाओं के विषय में जो चिंता पैदा हुई, उसे संक्षेप में लिखें। इन चिंताओं से इस बारे में क्या पता चलता है कि उस समय औरतों को किस प्रकार देखा जाता था ?
उत्तर –
  1. जब महिलाओं ने उपन्यास पढ़ना और लिखना शुरू किया तो अनेक लोगों को भय था कि अब वे अपने घर में पली, माता तथा अन्य परंपरागत भूमिकाओं को त्याग देंगी तथा परिवार ध्वस्त हो जाएँगे।
  2. यह विस्मय की बात नहीं कि कई पुरुषों ने उपन्यास पढ़ने और लिखने वाली महिलाओं पर संदेह किया। यह संदेह पूरे समुदाय में फैला था। ईसाई धर्म प्रचारक और संभवत: बंगला के प्रथम उपन्यास करुणा ओ फूलमनीर बिबरण (1852) की लेखिका हाना मूलेन्स अपने पाठकों को बताती हैं कि वे गुप्त रूप से लिखा करती थीं। 20वीं सदी में शैलबाला घोश जया इसलिए लिख पाईं कि उन्हें उनके पति का संरक्षण प्राप्त था। जैसा कि हमें दक्षिण भारत के उदाहरण से पता है, यहाँ भी लड़कियों व महिलाओं को उपन्यास पढ़ने से निरुत्साहित किया जाता था।

इकाई-2 (भूगोल- समकालीन भारत-II)

1. संसाधन एवं विकास

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. संसाधन क्या है ? दो उदाहरण दें।
उत्तर – हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है। कोयला, जल, वायु, खनिज आदि, संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं।
2. ‘भूमि एक प्रमुख संसाधन है।’ इस कथन को समझायें।
उत्तर – भूमि एक प्रमुख संसाधन है-
  1. भूमि पर ही मनुष्य सहित सभी प्रकार के जीव पैदा होते हैं, पलते हैं, बढ़ते हैं और अपनी आवश्यकताएँ पूर्ण करते हैं।
  2. भूमि हमारी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। जैसे भोजन, वस्त्र और आवास ।
  3. बिना भूमि के कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। इसलिये भूमि बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा हमारे लिये उपयोगी है। प्रकृति ने हमारे लिये भूमि प्रदान की है। यह एक प्रमुख संसाधन है।
3. वनों का क्षेत्र वढ़ाना क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर – हमारे देश में वन भूमि अनुपात से कम है। पारिस्थितिक सन्तुलन को बनाये रखने के लिये वनों का क्षेत्र बढ़ाना बहुत आवश्यक है। इससे हमें निम्नलिखित लाभ हैं-
(i) वन्य जीवन और उनके संरक्षण में सहायक है।
(ii) सूखा की घटनाओं को कम करता है।
(iii) उपमृदा में जल को सोखने का काम करता है।
(iv) वर्षाऋतु में नदी जल के प्रवाह को नियन्त्रित करने में सहायक है।
(v) मृदा संरक्षण में सहायता करता है।
(vi) बाढ़ जल के आयतन को कम करने में सहायक है।
4. लाल मृदा एवं लैटेराइट मृदा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर –
लाल मृदा लैटेराइट मृदा
(i) लाल मृदा आग्नेय और रूपान्तरित चट्टानों के क्षेत्र में मिलती है। (i) यह मृदा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
(ii) यह अपक्षय के कारण बनती है। (ii) निक्षालन प्रक्रिया से इन मृदाओं का निर्माण होता है।
(iii) इस मृदा में दानेदार कण होते हैं। (iii) इस मृदा में बारीक कण होते हैं।
(iv) यह मृदा मध्य प्रदेश, उड़ीसा तमिलनाडु आदि में पाई जाती है। (iv) यह पश्चिमी घाट तथा मेघालय में मिलती है।
5. जलोढ़ मृदा तथा काली मृदा में अन्तर बतायें।
उत्तर –
जलोढ़ मृदा काली मृदा
(i) यह मृदा नदी द्वारा लाई गई है। (i) यह मृदा लावा से बनी है।
(ii) यह मृदा उत्तरी मैदानों और तटीय मैदानों में पाई जाती है। (ii) यह मृदा दक्कन पठार के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है।
(iii) यह छिद्रदार मृदा होती है। (iii) यह मृदा चिकनी तथा अछिद्रदार होती है।
(iv) इस मृदा में सूखे में दरार नहीं पड़ती। (iv) सूखे की स्थिति में इसमें दरार पड़ जाती हैं।
6. जैविक और अजैविक संसाधनों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर – जैविक और अजैविक संसाधनों में अंतर-
जैविक संसाधन अजैविक संसाधन
(i) वे संसाधन जो पृथ्वी के जैनमंडल से प्राप्त होते हैं। (i) वे संसाधन जिनका निर्माण अजैविक तत्त्वों से होता है।
(ii) इनको कार्बनिक संसाधन भी कहते हैं। (ii) इनको अकार्बनिक संसाधन भी कहते हैं।
(iii) ये नवीकरणीय है। (iii) ये अनवीकरणीय संसाधन है।
(iv) ये बाह्य पर्यावरण से प्रभावित है। (iv) ये पर्यावरण से मुक्त हैं।
7. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
उत्तर – (क) सीढ़ीदार तथा समोच्च जुताई-पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार तथा समोच्च जुताई मृदा संरक्षण का प्रभावशाली तथा सबसे पुराना तरीका है। पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी सीढ़ियाँ बना दी जाती हैं। दाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाएँ बना दी जाती है।
(ख) वन लगाना-वनों के अधीन क्षेत्र को बढ़ाना मृदा संरक्षण का सबसे बेहतर तरीका है। पेड़ों की कटाई को रोककर नए क्षेत्रों में अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने के प्रयत्न करने चाहिए।
(ग) पशुओं की चराई को सीमित करना-मृदा के अपरदन को रोकने के लिए पशुओं को विभिन्न चरागाहों में ले जाना चाहिए।
8. निम्नलिखित प्रकार की मृदा से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण फसलों के नाम बताएँ-(क) जलोढ़ मृदा (ख) काली मृदा (ग) मरुस्थली मृदा (घ) लेटराइट मृदा।
उत्तर – (क) जलोढ़ मृदा-गेहूँ तथा चावल।
(ख) काली मृदा— कपास तथा गन्ना ।
(ग) मरुस्थली मृदा- जौ तथा रागी।
(घ) लेटराइट मृदा- कहवा तथा चाय।
9. जैव तथा अजैव संसाधन क्या हैं? कुछ उदाहरण दें।
उत्तर – (क) जैव-“वे सभी संसाधन, जिनकी प्राप्ति जीवमंडल से होती है और जिनमें जीवन व्याप्त है, जैव संसाधन कहलाते हैं।” जैव संसाधन हैं— वन, प्राणिजात आदि।
(ख) अजैव-“वे सभी संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं।” अजैव संसाधन नवीकरण योग्य तथा अनवीकरण योग्य भी होते हैं। भूमि तथा जल नवीकरण योग्य अजैव संसाधन हैं जबकि लोहा तथा बॉक्साइट अनवीकरण योग्य अजैव संसाधन हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है?
उत्तर – इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास ने संसाधनों की मांग में अत्यधिक तेजी ला दी है। यह बात आगे दिए गए विवरण से स्पष्ट हो जाएगी-
  1. प्रौद्योगिक विकास- -मानव ने आज हर क्षेत्र में नई-नई तकनीकें खोज निकाली हैं। इनके फलस्वरूप उत्पादन की गति बढ़ गई है। आज उपभोग की प्रत्येक वस्तु का उत्पादन व्यापक स्तर पर होने लगा है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ वस्तुओं की मांग भी बढ़ गई है। इसके अतिरिक्त उपभोग की प्रकृति भी बदल गई है। आज प्रत्येक उपभोक्ता पहली वस्तु को त्याग करके उसके स्थान पर उच्च कोटि की वस्तु का उपयोग करना चाहता है। इन सबके लिए अधिक-से-अधिक कच्चे माल को आवश्यकता पड़ती है। अतः कच्चे माल की प्राप्ति के लिए हमारे संसाधनों पर बोझ बढ़ गया है।
  2. आर्थिक विकास- आज संसार में आर्थिक विकास की होड़ लगी हुई है। विकासशील राष्ट्र अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जुटे हैं। इसके लिए वे अपने उद्योगों का विस्तार कर रहे हैं तथा परिवहन को बढ़ावा दे रहे है। इसका सीधा संबंध संसाधनों के उपयोग से ही है। दूसरी ओर विकसित राष्ट्र अपने आर्थिक विकास से प्राप्त धन-दौलत में और अधिक वृद्धि करना चाहते हैं। यह वृद्धि संसाधनों के उपभोग से ही संभव है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका संसार के औसत से पांच गुणा अधिक पेट्रोलियम का उपयोग करता है। अन्य विकसित देश भी पीछे नहीं है।
    सच तो यह है कि प्रौद्योगिक तथा आर्थिक विकास अधिक-से-अधिक संसाधनों के उपभोग की जननी है।
2. मृदा अपरदन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – प्राकृतिक शक्तियों विशेषतया पवन तथा जल द्वारा भूमि की ऊपरी परत हटने को मृदा अपरदन कहा जाता है। तेज बढ़नेवाला जल तथा तेज बहनेवाली हवाएँ मृदा के शक्तिशाली एजेंट हैं। ये मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत को अपने साथ बहा कर ले जाते हैं और भूमि को कृषि के लिए अनुपयोगी बना देते हैं। ऐसी भूमि को उत्खात भूमि कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में भूमि का अपरदन खतरे का कारण बन गया है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात की कृषि भूमि के बड़े भाग खड्ड-बीहड़ों में परिवर्तित हो गए हैं।
अवनालिका अपरदन तो सबसे अधिक विचित्र प्रकार का अपरदन है। इसने देश की 40 लाख हेक्टेयर भूमि को अनुपजाऊ बना दिया है। बाँधों के निर्माण से पानी के बहाव को कम करके, अधिक पेड़ लगाकर, पशुओं की चराई पर रोक लगाकर तथा उचित कृषि तकनीक को अपनाकर मृदा के अपरदन को रोका जा सकता है।
3. मृदा अपरदन क्या है ? भारत में प्रचलित मृदा अपरदन के प्रमुख प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर – पवन तथा जल जैसी प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूमि की ऊपरी परत के तेजी से बहाव को मृदा अपरदन कहते हैं। सामान्यतया मृदा के बनने और अपरदन की क्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं तथा दोनों में संतुलन होता है। प्राकृतिक तथा मानवीय कारकों द्वारा यह संतुलन बिगड़ जाता है।
मृदा अपरदन के प्रकार-
(क) जल अपरदन- -जल मृदा अपरदन का शक्तिशाली एजेंद्र है। जल के कारण होनेवाले अपरदन के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
  1. चादर अपरदन- -जब मृदा की ऊपरी परत विस्तृत क्षेत्र में बहते जल द्वारा बह जाती है, तो उसे चादर अपरदन कहते है।
  2. छोटी नदी अपरदन- यह चादर अपरदन का दूसरा चरण होता है। यदि अपरदन बिना रुके काफी समय के लिए होता रहे, तो छोटी उंगली के आकार की नालियाँ विकसित हो जाती हैं; जो कुछ सेमी गहरी होती हैं। समय के साथ-साथ इन नदियों की संख्या बढ़ती जाती है तथा ये गहरी और चौड़ी हो जाती हैं और पेड़ की शाखाओं तथा तने के समान लगने लगती हैं। इसे छोटी नदी अपरदन कहते हैं।
  3. अवनलिका अपरदन- यह चादर अपरदन का तीसरा चरण है। मृदा के अधिक अपरदन के साथ छोटी नदियाँ गहरी तथा बड़ी हो जाती हैं और अन्ततः अवनलिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। अवनलिका अपरदन का प्रमुख कारण वनस्पति का नष्ट होना है। विशेष रूप से पेड़ों का कटना, जिनकी जड़ें मिट्टी को बाँधे रखती हैं। अवनलिकाएँ कृषि भूमि का कटाव कर देती हैं तथा पूरा क्षेत्र उत्खात भूमि में बदल जाता है।
4. भू-क्षरण की व्याख्या करें तथा इसे नियंत्रित करने के लिए कुछ कदमों का सुझाव दें।
अथवा, मृदा अपरदन अथवा भू-क्षरण को रोकने के लिए किन चार उपायों को वताइए।
उत्तर – भू-क्षरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा भूमि कृषि के अयोग्य हो जाती है। मनुष्यों ने अपने व्यक्तिगत लालच के कारण प्राकृतिक पर्यावरण का क्षरण किया है। मानवीय क्रियाओं ने प्राकृतिक पर्यावरण का क्षरण किया है। मानवीय क्रियाओं ने प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूमि को नुकसान पहुँचाने की गति को तेज कर दिया है।
भू-क्षरण को नियंत्रित करने के उपाय-
  1. वन लगाना- -वनों के अधीन क्षेत्र को बढ़ाना भूमि संरक्षण का सबसे बेहतर उपाय है। पेड़ों की कटाई को रोकना चाहिए तथा नए क्षेत्रों में पेड़ लगाने के प्रयल करने चाहिए।
  2. पशुओं की चराई को सीमित करना- मृदा के अपरदन को रोकने के लिए पशुओं को विभिन्न चरागाहों में ले जाना चाहिए । चारे की फसलों को बड़े मात्रा में लगाना चाहिए।
  3. बाँधों का निर्माण-नदियों पर बाँधों का निर्माण कर नदी बादों का मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इससे जल की गति को नियंत्रित करण भू-क्षरण से रोका जा सकता है।
  4. समोच्च जुताई-ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने से दाल के साथ-साथ जल बहाव की गति घटती है जिससे भूमि कटाव में कमी आती है।
5. औद्योगिक प्रदूषण पर्यावरण को किस प्रकार निम्नीकृत करता है ? पर्यावरण के निम्नीकरण को नियंत्रित करने वाले तीन उपायों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उद्योगों का देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। किन्तु उद्योगों ने प्रदूषण को बढ़ाया है और पर्यावरण का क्षरण किया है। उद्योगों ने चार प्रकार के प्रदूषणों-वायु, जल, भूमि और शोर-को पैदा किया है। उद्योगों से निकलने वाले धुएँ ने वायु और जल दोनों को बुरी तरह प्रदूषित किया है। कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाईआक्साइड जैसी अवांछित गैसों की अधिकता वायु प्रदूषण का कारण बनती है। वायु को प्रदूषित करने वाले ठोस व तरल दोनों ही प्रकार के पदार्थ होते हैं। वायु प्रदूषण जीव-जन्तुओं, पौधों, पदार्थों तथा वायुमंडल को प्रभावित करता है।
जल प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक अपशिष्ठ हैं, जिन्हें नदियों में छोड़ा जाता है। ये जैविक और अजैविक दोनों ही प्रकार के पदार्थ होते हैं। वायु प्रदूषण जीव-जंतुओं, पौधों, पदार्थों तथा वायुमंडल को प्रभावित करता है।
जल प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक अपशिष्ठ हैं, जिन्हें नदियों में छोड़ा जाता है। ये जैविक और अजैविक दोनों ही प्रकार के होते हैं। कोयला, रंग, कीटनाशक, साबुन, उग्ररक, प्लास्टिक की वस्तुएँ तथा रबर आदि जल के सामान्य प्रदूषक हैं । लुगदी, वस्त्र, रासायन, पेट्रोलियम, परिष्कारणशालाएँ, चर्मशोधन तथा इलैक्ट्रोप्लेटिंग जल को प्रदूषित करनेवाले प्रमुख उद्योग हैं।
पर्यावरण के निम्नीकरण को नियंत्रित करने के उपाय—
  1. प्रदूषण को कम करने के लिए उद्योगों में ‘पृथकारी छन्ना’ का प्रयोग करना चाहिए।
  2. उद्योगों में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए स्क्रवर यंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
  3. उद्योगों से निकलने वाले धुएँ के लिए बहुत ऊँची चिमनियों को स्थापित किया जाना चाहिए।

2. जल संसाधन

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. जीवन में जल का महत्व लिखें।
उत्तर –
  1. यह विश्वास किया जाता है कि सर्वप्रथम जीव जल में ही आरम्भ हुआ।
  2. जल जीवन की प्रथम अनिवार्य आवश्यकता है।
  3. जल के उपयोग की माँग बढ़ती जा रही है क्योंकि इसकी आवश्यकता पीने और घरेलू कार्यों के लिये होती है।
  4. यह भिन्न औद्योगिक कार्यों के लिये उपयोग में आता है।
  5. कृषि में इसकी माँग बढ़ती जा रही है क्योंकि जनसंख्या बढ़ रही है।
  6. आधुनिक जीवन के साथ बढ़ता हुआ नगरीकरण दिन-प्रतिदिन अधिक पानी की माँग करता है। इस सबके बाद म्यूनिसिपल सीवेज और गंदगी को बहाने के लिये जल का उपयोग होता है।
2. वहुउद्देशीय योजनाओं द्वारा परिपूरित किन्हीं पाँच उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के उद्देश्य-
(i) बाढ़ नियंत्रण और मृदा संरक्षण।
(ii) जल-विद्युत तैयार करना।
(iii) सिंचाई के लिए नहरें निकालना।
(iv) मत्स्य पालन।
(v) नगरीय जल आपूर्ति करना।
(vi) जल परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराना।
3. भारत में सिंचाई क्यों आवश्यक है ? भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन कौन-से हैं ?
उत्तर – भारत में निम्नलिखित कारणों से सिंचाई की आवश्यकता है-
(i) जल का असमान वितरण।
(ii) मानसून का अनियमित, अपर्याप्त तथा कमजोर होना।
भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन-
(i) नहरें (ii) कुएँ (iii) नलकूप (iv) तालाब।
4. वर्षा जल संग्रहण के क्या लाभ हैं ?
उत्तर – वर्षा जल संग्रहण के लाभ-
(i) इसे पेय जल के रूप में साफ करके प्रयोग में लाया जा सकता है।
(ii) इससे भौम जल स्तर में वृद्धि होती है तथा जल का एक विशाल भंडार तैयार होता है।
5. पृष्ठीय जल तथा भूमिगत जल में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर –
पृष्ठीय जल भूमिगत जल
(i) इसमें नदी, झील, नहर आदि का जल सम्मिलित है। (i) इसमें कुएँ तथा नलकूप सम्मिलित हैं। इनसे बाहर जल निकाला जाता है।
(ii) यह कहीं भी उपलब्ध हो सकता हैं। (ii) यह मुलायम और गहरी मृदा में पाया जाता है।
(iii) मौसम का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। (iii) वर्षा ऋतु में जल स्तर बढ़ जाता है और शुष्क ऋतु में कम हो जाता है।
(iv) भारत में 167 मिलियन हेक्टेयर मीटर है। (iv) इसकी मात्रा लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर मीटर है।
6. ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर – ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ एक गैर-सरकारी संस्था द्वारा चलाया गया आन्दोलन है जो आदिवासी किसानों, पर्यावरण बचाओ लोगों द्वारा सरदार सरोवर बाँध के निर्माण के खिलाफ गुजरात में चलाया गया। यह विभिन्न पर्यावरण मुद्दों पर जोर देता है। इसने गरीब नागरिकों के ऊपर ध्यान केन्द्रित किया था विशेष विस्थापित लोगों की सुविधाओं के लिये।
7. वाँध क्या है? वे जल संरक्षण एवं प्रबंधन में कैसे सहायक हैं?
उत्तर – बाँध सामान्यतः नदियों में बहते जल को रोकने, दिशा बदलने या बहाव पर नियंत्रण करने की युक्ति है। इसके परिणामस्वरूप जलाशय, झील या जल भरण बनता है जिसके जल का उपयोग आवश्यकता के अनुसार किया जाता है।
बाँध में एक ढलवां हिस्सा होता है जिससे होकर जल प्रवाहित होता है। बाँध का निर्माण नदियों, पर किया जाता हैं तथा वर्षा जल को निचले मैदानी क्षेत्र में एकत्रित कर लिया जाता है। इस एकत्रित जल को नहरों के माध्यम से खेतों तक पहुँचाया जाता है। इस प्रकार बाँध जल संरक्षण एवं प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बाँधों का उपयोग बहुउद्देशीय होता है, जो निम्नलिखित हैं-
(i) बाढ़ नियंत्रण और मृदा संरक्षण ।
(ii) जल विद्युत तैयार करना।
(iii) सिंचाई के लिए नहरें निकालना।
(iv) नगरीय जल आपूर्ति करना ।
8. जल संसाधनों का संरक्षण एवं प्रबंधन क्यों आवश्यक है ? इसके लिए क्या करना होगा ?
उत्तर – जल जीवन का आधार है। पृथ्वी पर जल की उपलब्धता सीमित है। अत: जल का संरक्षण एवं प्रबंधन आवश्यक है। जल का संरक्षण और प्रबन्धन इसलिए भी आवश्यक है कि जल की जो सीमित मात्रा उपलब्ध है विभिन कारणों से प्रदषित हो रही है। वर्तमान में जल संकट एक गंभीर समस्या बन गयी है जिसका समाधान जल स्रोतों के उचित संरक्षण और प्रबंधन के माध्यम से किया जा सकता है।
इसके लिए निम्नांकित कदम उठाये जाने चाहिए-
(i) अधिक जल संग्रह के लिए अधिक जलाशयों का निर्माण।
(ii) भूमिगत जल में वृद्धि करना।
(iii) नदी जल ग्रिड बनाना।
(iv) वर्षा जल का संग्रहण करना।

3. कृषि

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ‘न्यूनतम सहायता मूल्य’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – ‘न्यूनतम सहायता मूल्य सरकार द्वारा घोषित वह मूल्य है जिस मूल्य पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है। न्यूनतम सहायता मूल्य, किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य है। सरकार द्वारा इसे किसानों के हित में लागू किया जाता है।
2. कर्तन दहन प्रणाली क्या है ? राज्य अथवा क्षेत्र का नाम बताकर इसके स्थानीय नाम बताएँ।
उत्तर – कर्तन दहन प्रणाली के अंतर्गत किसान जमीन के टुकड़े को साफ करके कुछ वर्ष के लिए उस पर फसलें उगाता है और फिर दूसरे टुकड़े को ढूंढ लेता है।
कर्तन दहन प्रणाली के स्थानीय नाम-
(i) झूम-असम, मेघालय, मिजोरम तथा नागालैंड।
(ii) पामलू-मणिपुर ।
(iii) दीपा-छत्तीसगढ़ तथा अंडमान और निकोबार।
3. गहन जीविका कृषि क्या है? इसके दो लक्षण लिखें।
उत्तर – इस प्रकार की कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ जोती जाने वाली भूमि सीमित होती है तथा जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।
गहन जीविका कृषि के लक्षण-
(i) प्रति हैक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।
(ii) किसान आधुनिक तकनीकों जैसे उर्वरकों, कीटनाशकों तथा अच्छी फसल देने वाले बीजों को अपनाते हैं ताकि अच्छी फसल प्राप्त की जा सके।
4. गहन कृषि तथा विस्तृत कृषि में दो अंतर लिखें।
उत्तर –
गहन कृषि विस्तृत कृषि
(i) अधिक निवेश तथा नई तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन बढ़ाया जाता है। (i) अधिक से अधिक क्षेत्र को कृषि के अधीन लाकर उत्पादन बढ़ाया जाता है।
(ii) ऐसी कृषि सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में भी की जाती हैं, जहाँ अधिक भूमि उपलब्ध न हो। (ii) ऐसी कृषि कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।
5. व्यापारिक कृषि क्या है ? उपयुक्त उदाहरण दें।
उत्तर – व्यापारिक कृषि का उद्देश्य फसलों को बाजार में बेचना है। इस प्रकार की कृषि में विशेष फसलें बोई जाती हैं। दो प्रकार की व्यापारिक कृषि फसलें हैं-
(i) व्यापारिक खाद्यान कृषि तथा (ii) रोपण कृषि।
व्यापारिक खाद्यान्न कृषि में गेहूँ प्रमुख फसल है, जो पंजाब, हरियाणा में उगाया जाता है। रोपण कृषि को अंग्रेजों ने आरम्भ किया था। उन्होंने नील, चाय, कहवा और तम्बाकू की कृषि आरम्भ की।
चाय की कृषि आसाम में तथा कहवा नीलगिरि की पहाड़ियों में उत्पन्न किया जाता है।
6. डेयरी कृषि का क्या महत्त्व है ? भारत में डेयरी के असंतोषजनक विकास के दो कारण दीजिए।
उत्तर – डेयरी कृषि का महत्त्व यह है कि यह दूध की आपूर्ति उन क्षेत्रों को करता है जहाँदूध की कमी है। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों की मदद होती है। इसके असन्तोष विकास के दो कारण निम्न हैं-
(i) घटिया तकनीक तथा डेयरी मशीन आदि के लिए पूँजी की कमी।
(ii) अच्छे किस्म के पशुओं की कमी।
(iii) प्रतिकूल जलवायु
(iv) प्रति व्यक्ति दूध का कम उत्पादन।
7. पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव की रोकथाम के लिए क्या-क्या कदमउठाने चाहिए?
उत्तर – पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव की रोकथाम के लिए निम्नांकित कदम उठाना चाहिए-
(i) वृक्षारोपण–पहाड़ी ढालों पर एवं बंजर भूमि में वृक्षारोपण करनाचाहिए।
(ii) सीढ़ीदार खेत- पहाड़ी क्षेत्रों में एवं ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती करनी चाहिए।
(iii) वाँध निर्माण- -जलप्रवाह को रोकने के लिए ढलानों पर बाँध निर्मित करना चाहिए।
(iv) पशुचारण पर नियंत्रण- पहाड़ी ढलानों पर नियंत्रित पशुचारण से मृदा कटाव पर अंकुश संभव है।
उपर्युक्त विधियाँ अपनाने से ही पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा कटाव पर नियंत्रण संभव है।
8. दिन-प्रतिदिन कृषि के अन्तर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसकेपरिणामों की कल्पना कर सकते हैं?
उत्तर –
(i) यह खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेगी।
(ii) इससे उद्योगों तथा अन्य क्षेत्रों पर दबाव बढ़ेगा क्योंकि लोग कृषि क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित हो रहे हैं।
(iii) कच्चे पदार्थ की कमी के कारण कृषि-आधारित उद्योगों को नुकसान होगा।
(iv) इससे भूमि का निम्नीकरण होगा।
9. फसलों की अदला-बदली तथा बहु-फसलीय कृषि में अन्तर स्पट करें।
उत्तर –
फसलों की अदला-बदली बहु-फसलीय कृषि
(i) फसलों की अदला-बदली की प्रक्रिया भूमि की उर्वरता बनाए रखती है। इसमें फसलें क्रम में उगाई जाती हैं। (i) एक ही मौसम के दौरान एक ही खेत में, एक से अधिक फसलों के उगाने को बहु-फसलीय कृषि कहते हैं।
(ii) उदाहरण के लिए एक मौसम में गेहूँ उगाया जाता है और दूसरे में गन्ना। (ii) उदाहरण : गेहूँ तथा सरसों

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों माना जाता है ?
अथवा, भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्त्व है?
उत्तर –
  1. कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार इसलिए कहा गया है, क्योंकि 67% जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कृषि पर निर्भर है।
  2. इस उद्योगों को कच्चा माल मिलता है।
  3. कृषि उत्पादों का निर्यात करके भारत विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।
  4. राष्ट्रीय आय में इसका योगदान 29% है।
  5. यह हमारी 1027 मिलियन जनसंख्या को भोजन प्रदान करती है।
2. चावल से खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर –
  1. तापमान- -यह एक खरीफ फसल है जिसे उच्च तापमान तथा अधिक नमी की आवश्यकता होती है। इस पौधे के वर्धन के लिए 25°C तापमान की आवश्यकता होती है जिसमें उगाने के समय तथा काटने के समय कुछ विभिन्नताओं की आवश्यकता होती है।
  2. वर्षा-चावल को अत्यधिक वर्षा की आवश्यकता होती है अर्थात् 100 सेमी से अधिक। इसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है, परन्तु जहाँ सुनिश्चित सिंचाई की व्यवस्था हो । सिंचाई की सहायता से हरियाणा तथा पंजाब में भी चावल उगाया जाता है।
  3. मृदा-चावल को विभिन्न मृदाओं में उगाया जा सकता है। जैसे- सिल्ट, दुम्मट आदि परन्तु अभेद्य चिकनी मिट्टी वाली जलोढ़ मृदा में यह बेहतर उगाया जाता है।
  4. उत्पादन के क्षेत्र-चावल भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है परन्तु अधिकतर यह नदी घाटियों, डेल्टाई प्रदेशों तथा तटीय मैदानों में उगाया जाता है।
    चावल उत्पादक प्रमुख राज्य हैं- पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, उड़ीसा, कर्नाटक, असम तथा महाराष्ट्र।
3. गेहूँ की कृषि के लिए किस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है? भारत के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण गेहूँ उत्पादक राज्यों के नाम लिखें।
उत्तर –
  1. तापमान-गेहूँ की फसल उगाने के लिए शीत तथा नमी वाले मौसम और पकने के समय गर्म तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. वर्षा–इसके लिए 50-75 सेमी वर्षा वर्षा की आवश्यकता होती है। 15 दिन बीजने के बाद तथा 15 दिन पकने के पहले वर्षा आवश्यक तथा लाभदायक होती है। सर्दियों की हल्की बौछारों अथवा सुनिश्चित सिंचाई से बम्पर फसल होती है।
  3. मृदा-हल्की दुम्मट मृदा की आवश्यकता होती है। इसे काली मृदा में भी उगाया जा सकता है।
महत्त्वपूर्ण उत्पादक – पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश गेहूँ के प्रमुख उत्पादक हैं।
4. मक्के की उपज के लिए तीन भौगोलिक आवश्यकताओं तापमान, वर्षा तथा मृदा का वर्णन करें। भारत के तीन मक्का उत्पादक राज्यों का वर्णन करें।
उत्तर –
  1. तापमान – -इसके लिए 21-27°C तक के तापमान की आवश्यकता होती है।
  2. वर्षा– यह 50-100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है तथा सुनिश्चित सिंचाई होने पर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।
  3. मृदा-इसके लिए अच्छे जल निकास वाले जलोढ़ उपजाऊ मृदा अथवा लाल दुम्मट की आवश्यकता होती है।
प्रमुख उत्पादक – कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश प्रमुख उत्पादक हैं।
5. गन्ना की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
उत्तर –
  1. तापमान – गन्ने की कृषि के लिए उष्ण तथा आई जलवायु की आवश्यकता है। इसके लिए 21-27°C तापमान की जरूरत है। बहुत अधिक तापमान इसके वर्धन के लिए नुकसानदायक होता है और कम तापमान इसके विकास को रोकता है। यह फसल पाले को सहन नहीं कर पाती। पकने पर इसे कम तापमान की आवश्यकता होती है।
  2. वर्षा-75 सेमी से 100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में इसका वर्धन सबसे बेहतर होता है। बहुत अधिक वर्षा होने पर इसकी मिठास की मात्रा कम हो जाती है।
  3. मृदा-इस पौधे को हल्की दुम्मट तथा लाल दुम्मट जैसी विभिन्न मृदाओं में उगाया जा सकता है। परन्तु सबसे बेहतर मृदा गंगा के मैदानों की जलोढ़ मृदा तथा दक्षिणी भारत की काली मृदा है। गन्ना मृदा की उर्वरता को समाप्त कर देता है। इसलिए अधिक उपज के लिए खाद का प्रयोग आवश्यक होता है।
उत्पादन के क्षेत्र – उत्तर प्रदेश गन्ने का प्रमुख उत्पादक है। गंगा के मैदान में अन्य राज्य हैं- बिहार, पंजाब तथा हरियाणा।
6. भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण फसलों नाम बताएँ। इनके वर्धन के लिए आवश्यक उपयुक्त जलवायविक (भौगोलिक) दशाओं का वर्णन करें। इस फसल को उत्पादित करने वाले प्रमुख राज्यों के नाम बताएँ।
उत्तर – चाय तथा कहवा ।
जलवायविक दशाएँ-
  1. तापमान -चाय का पौधा उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में भली-भाँति उगाया जा सकता है। चाय की झाड़ियों को उगाने के लिए वर्ष भर ऊष्ण, नम और पालारहित जलवायु की आवश्यकता होती है। चाय की झाड़ियों को 25°C से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है।
  2. वर्षा–चाय के पौधे को 150 सेमी से 250 सेमी के बीच भारी वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्ष भर समान रूप से होने वाली वर्षा इसके विकास में सहायक होती है।
  3. मृदा—इस पौधे को हल्की दुम्मट मृदा की जरूरत होती है। मृदा रामस तथा लौह-मात्रा में संपन्न होनी चाहिए। चाय मृदा की उर्वरता समाप्त कर देती है इसलिए रासायनिक उर्वरकों तथा खाद की अवश्यकता होती है।
उत्पादक – प्रमुख चाय उत्पादक राज्य हैं— असम, पश्चिम बंगाल, (दार्जिलिंग की पहाड़ियाँ जलपायगुड़ी जिले) तमिलनाडु तथा केरल। इनके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, मेघालय, आंध्रप्रदेश तथा त्रिपुरा भी चाय उत्पादक राज्य है।
7. रवड़ के उत्पादन के लिए आवश्यक अनुकूल जलवायविक दशाओं का उल्लेख करें। रवड़ उत्पादक राज्यों के नाम भी बताएँ।
उत्तर –
  1. तापमान – यह उष्ण कटिबंधीय वनों के पेड़ हैं तथा इन्हें 25°C अधिक तापमान की लगातार आवश्यकता होती है। इसलिए इस पेड़ को बहुत ऊँचाई वाले स्थानों पर नहीं उगाया जा सकता।
  2. वर्षा—इसे भारी तथा पूरा वर्ष समान रूप से होने वाली वर्षा की आवश्यकता होती है। इस पेड़ को 200 सेमी से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
  3. मृदा—इस पेड़ के लिए जलोढ़ अथवा लेटराइट मृदा की आवश्यकता होती है।
उत्पादक क्षेत्र – प्राकृतिक रबड़ के उत्पादन में भारत को विश्व का पांचवा स्थान प्राप्त है। रबड़ उत्पादन में केरल अग्रणी है। रबड़ उत्पादन के अधीन कुल क्षेत्र का लगभग 91% क्षेत्र केरल के हिस्से में है। तमिलनाडु, कर्नाटक तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा हिमालय की गारो पहाड़ियाँ प्रमुख रबड़ उत्पादक हैं।
8. कपास के उत्पादन के लिए आवश्यक जलवायविक (भौगोलिक) दशाओं का उल्लेख करें। भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों का वर्णन भी करें।
उत्तर –
  1. तापमान – -कपास को उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के वर्धन के समय 21-27°C तापमान तथा खिली धूप की आवश्यकता होती है। पौधे को तैयार होने के लिए कम से कम पाला रहित दिनों की एक लम्बी वर्धन अवधि की जरूरत होती है।
  2. वर्षा-मध्यम से हल्की वर्षा की जरूरत होती है। 50 सेमी से 80 सेमी के बीच की वर्षा पर्याप्त होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की सहायता से इस फसल को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
  3. मृदा-कपास विभिन्न मृदाओं में उगाई जा सकती हैं परन्तु डक्कन पठार की काली मृदा, जिसमें नमी बनाए रखने की क्षमता होती है, सबसे अधिक उपयोगी होती है। यह सतलुज-गंगा के मैदान की जलोढ़ मृदा में भी भली-भाँति उगाई जा सकती है।
उत्पादन का क्षेत्र प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र हैं-गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा मध्य प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में लंबी स्टेपल किस्म उगाई जाती है।
9. भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर – भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण का प्रभाव-
  1. ब्रिटिश शासन में भारतीय कृषि वैश्वीकरण से प्रभावित थी। भारतीय किसान दक्षिण भारत में मसाले और कपास उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किये गये। वे व्यापारिक फसलें जैसे नील, चाय, कहवा, तम्बाकू आदि पैदा करने के लिए भी प्रोत्साहित किये गये क्योंकि इन उत्पादों की यूरोप के बाजार में भारी माँग थी।
  2. बिहार किसान नील की खेती करने के लिए बाध्य किये गये । भारतीय किसान अपने लिए खाद्यान्न नहीं उगा सकते थे।
  3. आधुनिक समय में 1990 ई० के बाद वैश्वीकरण का युग आया और उसने विश्व के आर्थिक परिवेश को ही बदल दिया। इसमें भारत भी सम्मिलित था। भारत चावल, कपास, रबर, चाय, कहवा, मसाले का विश्व में प्रमुख उत्पादक है। विश्व बाजार में कड़ी प्रतियोगिता है। इसलिए भारतीय किसान अपने उत्पाद की लागत (खर्च) भी नहीं प्राप्त कर पाते जबकि विकसित देशों ने अपने किसानों को गेहूँ और अन्य फसलें उगाने के लिए आर्थिक सहायता दी है।
    इसलिए वे कृषि उत्पाद कम मूल्य पर निर्यात करते हैं।
  4. उच्च उत्पाद वाली किस्मों के बीज, रासायनिक खाद और कीटनाशक, सिंचाई सुविधाएँ फसलों के उत्पादन के लिये आधारभूत सुविधाएँ हैं। भारतीय कृषि में पिछले दशकों में काफी परिवर्तन हुए हैं। सबसे अधिक परिवर्तन 1960 ई० में उच्च उत्पाद वाली किस्मों के बीजों से हुआ। इससे कई गुना निवेश साधनों व बाजार आदि सुविधाओं में बढ़ ‘गया। इस विकास ने कृषि उत्पादकता को बढ़ा दिया तथा बाजार में खाद्यान्न की आपूर्ति बढ़ गई। हरित क्रान्ति के बाद श्वेत क्रान्ति आयी फिर पीली और नीली क्रान्ति आई जिससे दूध, तिलहन और मछली उत्पादन में वृद्धि हुई।
  5. जहाँ तक बाह्य व्यापार का सम्बन्ध है, 1990 ई० के दशक में कृषि व्यापार में कुछ नियमों में ढील दी गई जो 1991 ई० के सुधार के बाद भी लागू रही। इसके बाद उदारीकरण के अंतर्गत अनेक सुधार हुए। अब कुछ मदों जैसे कपास, प्याज आदि को छोड़कर सभी कृषि उत्पादों का निर्यात किया जाने लगा।
10. भारत में जलोढ़ और काली मृदाओं के वितरण संक्षेप में लिखें।
उत्तर – जलोढ़ मृदा की विशेषताएँ निम्नांकित हैं–
(i) यह बहुत उपजाऊ होती है।
(ii) यह बहाकर लाई गई मृदा होती है।
(iii) इस मृदा में पोटाश, फॉस्फोरस तथा चूने का सही अनुपात होता है।
काली मृदा की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
(a) यह मृदा ‘लावा’ से बनी होती है।
(a) यह चिकनी होती है।
(c) इस मृदा में कैल्शियम कार्बोनेट, मैगनीशियम, पोटाश और चूना पाए जाते है।
जलोढ़ मृदा- जलोद मृदा भारत के अधिकांश भागों में पाई जाती है। यह छिद्रदार मृदा होती है, यह मृदा मुख्यतः नंदी द्वारा बहाकर लाई जाती है तथा बहुत उपजाऊ होती है। इस मृदा में सूखने पर दरार नहीं पड़ती। गेहूँ की फसल के लिए यह बहुत उपयुक्त है।
काली मृदा-यह रंग में काली होती है। इसके कण बहुत महीन होते हैं। यह मृदा चिकनी तथा अछिद्रगदार होती है, सूखने की स्थिति में इसमें दरार पड़ जाती है। दक्कन के पठार के उत्तरी पश्चिमी भागों में यह मुख्यतः पाई जाती है तथा लावा से बनी होती है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए पूर्णरूपेण उपयोगी है।

4. खनिज और ऊर्जा संसाधन

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. लौह एवं अलौह खनिजों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर – लौह एवं अलौह खनिजों में अन्तर–
लौह खनिज अलौह खनिज
(i) जिन खनिजों में लोहे का अंश पाया जाता है तथा उसका उपयोग लोहा एवं अन्य इस्पात बनाने में किया जाता है, वे लौह खनिज कहलाते हैं; जैसे लौह अयस्क, निकिल, टंगस्टन, मैंगनीज आदि। (i) जिन खनिजों में लोहे का अंश न्यून या बिल्कुल नहीं होता है, वे अलौह खनिज कहलाते हैं, जैसे—सोना, सीसा, अभ्रक इत्यादि।
(ii) ये स्लेटी, धुसर, मटमैला आदि रंग के होते हैं। (ii) ये अनेक रंग के हो सकते हैं।
2. धात्विक एवं अधात्विक खनिजों में अंतरों का उल्लेख करें।

उत्तर – धात्विक एवं अधात्विक खनिजों में निम्नलिखित अन्तर हैं–

धात्विक खनिज अधात्विक खनिज
(i) धात्विक खनिज को गलाने पर धातु प्राप्त होता है। (i) अधात्विक खनिज को गलाने पर धातु प्राप्त नहीं हो सकता।
(ii) धात्विक खनिज प्राय: अयस्क के रूप में पाए जाते हैं। (ii) अधात्विक खनिज अयस्क के रूप में नहीं पाए जाते हैं।
(iii) धात्विक खनिज कठोर एवं चमकीले होते हैं। (iii) अंधात्विक खनिज की अपनी चमक होती है।
(iv) धात्विक खनिज आग्नेय चट्टानों में मिलते हैं। (iv) अधात्विक खनिज प्राय: परतदार चट्टानों में मिलते हैं।
3. खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर – खनिजों के संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से हैं-
  1. खनिजों के भंडार सीमित हैं।
  2. खनिज अनवीकरणीय संसाधन हैं अर्थात एक बार समाप्त हो जाने के ‘बाद उनके निर्माण में लाखें वर्ष लग जाते हैं।
  3. वर्तमान में खनिजों का चरम दोहन किया जा रहा है, जिसके कारण उनके शीघ्र समाप्त हो जाने की संभावना बनी हुई है। इससे आगे आने वाली पीढ़ी खनिजों के उपयोग से वंचित हो जायेगी।
4. ऊर्जा संसाधनों के संरक्षण के उपाय बताइए।
उत्तर – ऊर्जा संसाधनों के सरंक्षण के उपाय-
  1. ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग के विकल्प विकसित किए जाने चाहिए।
  2. ऊर्जा की बचत ही ऊर्जा का उत्पादन है। अतः जहाँ तक संभव हो सके ऊर्जा की बचत की जानी चाहिए।
  3. गैर-परंपरागत ऊर्जा के साधनों के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
5. भारत में कोयले के वितरण पर प्रकाश डालें।
उत्तर – एन्थ्रासाइट तथा बिटुमिनस उच्च कोटि के कोयला माने जाते हैं क्योंकि इनमें कार्बन का प्रतिशत अधिक होता है। इनके जलने से धुंआ कम निकलता है।
एन्थ्रासाइट जम्मू एवं कश्मीर में पाया जाता है। बिटुमिनस गोंडवाना क्षेत्र-झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में मिलता है। लिग्नाइट मध्यम श्रेणी का कोयला है। इसे भूरा कोयला भी कहते हैं। भारत के लिग्नाइट में कोयले की अपेक्षा राख का प्रतिशत कम होता है। लिग्नाइट कोयला राजस्थान, तमिलनाडु, असम जम्मू-कश्मीर में मिलता है। पीठ सबसे निम्न कोटि का कोयला होता है। इसमें भुऔ अधिक और ताप कम होता है। यह झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ में प्रमुखता से पाया जाता है।

5. विनिर्माण उद्योग

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. लोहा तथा इस्पात उद्योग के लिए आवश्यक आधारभूत वस्तुओं का वर्णन करें।
उत्तर – इस उद्योग के लिए लौह अयस्क, कोकिंग कोल तथा चूना पत्थर अनुपात लगभग 4:2:1 का है। इस्पात को कठोर बनाने के लिए इसमें मंगनी की कुछ मात्रा की आवश्यकता होती है।
2. विनिर्माण उद्योग का क्या महत्त्व है?
उत्तर –
(i) ये लोगों को रोजगार देते हैं।
(ii) ये कृषि पर निर्भरता को कम करते हैं।
(iii) ये क्षेत्रीय असंतुलन को कम करते हैं ।
(iv) निर्मित वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा का अर्जन होता है।
3. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन भौतिक कारक बताइए और चर्चा करें कि ये कारक कैसे उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करते हैं।
उत्तर – उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करनेवाले तीन भौतिक कारक हैं-
  1. कच्चा माल- -इसकी उपलब्धता किसी उद्योग को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण है।
  2. ऊर्जा-ऊर्जा की नियमित आपूर्ति उद्योग के केन्द्रीकरण के लिए आवश्यक है।
  3. जलवायु-जलवायु के अनुकूल ही उद्योगों की स्थापना की जाती है। जैसे सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र, गुजरात एवं बंगाल में ही स्थापित हैं।
4. औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कोई तीन मानवीय कारक बताइए।
उत्तर – उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले तीन मानवीय कारक निम्नांकित हैं-
  1. पूँजी–कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई बड़े औद्योगिक केन्द्र हैं क्योंकि बड़े-बड़े पूंजीपति इन शहरों में रहते हैं।
  2. सरकारी नीतियाँ- उद्योगों के भावी वितरण, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करके उद्योगों की स्थापना सरकारी नीतियों पर ही आधारित हैं।
  3. वाजार–विनिर्माण की सारी प्रक्रिया व्यर्थ हो जाती है यदि तैयार माल बाजार तक न पहुँच सके। तैयार माल को बाजार में बेचने के लिए बाजार का निकट होना आवश्यक है। इसमें परिवहन लागत भी कम पड़ती है।
5. राष्ट्रीय पटसन नीति 2005 के प्रमुख उद्देश्य क्या थे? पटसन के लिए घरेलू माँग में वृद्धि क्यों हुई?
उत्तर – राष्ट्रीय पटसन नीति 2005 के उद्देश्य-
(i) उत्पादकता बढ़ाना,
(ii) गुणवत्ता,
(iii) पटसन उत्पादक किसानों को अच्छा मूल्य दिलाना।
(iv) प्रति हैक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाना।
पटसन के लिए घरेलू माँग में वृद्धि इसलिए हुई क्योंकि-
(i) पैकिंग की अनिवार्य प्रयोग की नीति ।
(ii) बढ़ते वैश्विक पर्यावरण अनुकूलन, जैव निम्नीकरणीय पदार्थों के लिए विश्व की बढ़ती जागरूकता।
6. सीमेंट उद्योग का विस्तार तेज गति से हो रहा है। इसके लिए उत्तरदायी किन्ही चार कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर –
(i) मूल्य में नियंत्रण समाप्ति।
(ii) वितरण में नियंत्र समाप्ति।
(iii) सरकार द्वारा गुणवत्ता में सुधार के कारण माँग का बढ़ना।
(iv) मध्य पूर्व अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया के देशों में निर्यात का बढ़ना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारत में पटसन उद्योग के विकास और वितरण की चर्चा करें।
उत्तर – भारत में पटसन उद्योग प्रमुखतः प० बंगाल, बिह तथा उड़ीसा में केन्द्रित है। जूट (पटसन) की खेती इन राज्यों में होने के कारण अधिकांश जूट-मिले यहाँ स्थापित हैं। अन्य कारण- (i) सस्ते मजदूर, (ii) परिवहन की सुविधाएँ, (iii) जल की उपलब्धता आदि हैं।
पटसन उद्योग के समुचित विकास तथा वितरण के लिए सन् 2005 में सरकार ने राष्ट्रीय पटसन नीति बनायी, जिसका उद्देश्य (i) प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाना, (ii) किसानों को अच्छा मूल्य दिलाना, (iii) मिलों में तैयार माल का उत्पादन बढ़ाना, (iv) गुणवत्ता तथा (v) वितरण की समुचित व्यवस्था करना।
इस प्रकार पटसन उद्योग का समुचित विकास तथा वितरण सुनिश्चित किया गया।
2. उद्योग पर्यावरण को किस प्रकार प्रदूषित करता है?
उत्तर –
  1. वायु प्रदूषण-उद्योग चार प्रकार के प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं- वायु, जल, भूमि तथा ध्वनि। उद्योगों द्वारा छोड़ा गया धुआँ वायु तथा जल को बुरी तरह प्रभावित करता है। अधिक अनुपात में अनचाही गैसों की उपस्थिति जैसे सल्फर डाइऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण का कारण है। वायु में निलंबित कणनुमा पदार्थों में ठोस व द्रवीय दोनों ही प्रकार के कण होते हैं, जैसे धूलि, स्प्रे, कुहासा तथा धुआँ। मानव-निर्मित प्रदूषण के साधन सामान्यतः औद्योगिक तथा ठोस अपशिष्ट होते हैं। वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य, पशुओं, पौधों, इमारतों तथा पूरे पर्यावरण पर दूष्प्रभाव डालते हैं।
  2. जल प्रदूषण- जल प्रदूषण के अनेक साधन हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक अपशिष्ट हैं। जिन्हें नदियों में छोड़ा जाता है। ये कार्बनिक तथा अकार्बनिक दोनों होते हैं। कोयला, रंजक साबुन, कीटनाशक, उर्वरक, प्लास्टिक तथा रबड़ जल के सामान्य प्रदूषक हैं। जल को प्रदूषित करने वाले प्रमुख उद्योग हैं—लुग्दी, वस्त्र, रसायन, तेल शोधनशालाएँ, इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग आदि। औद्योगिक अपशिष्ट भूमि तथा मृदा को भी प्रदूषित करते हैं।
  3. ध्वनि प्रदूषण-अवांछित ध्वनि भी प्रदूषण है। औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, कारखानों के उपकरण, जेनरेटर, लकड़ी चीरने के कारखाने, गैस यात्रिकी तथा विद्युत ड्रिल भी अधिक ध्वनि उत्पन्न करते हैं। ध्वनि प्रदूषण से श्रवण असक्षमता बढ़ती है।
3. समवित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन है। इस उद्योग की क्या समस्याएँ है? किन सुधारों के अंतर्गत इसकी उत्पादन क्षमता वढ़ी है।
उत्तर –
समन्वित इस्पात संयंत्र मिनी इस्पात संयंत्र
(i) इनमें कच्चे माल को एक स्थान पर एकत्रित करने से लेकर इस्पात बनाने, उसे दालने और उसे आकार देने तक की प्रत्येक क्रिया की जाती है। (i) ये विकेन्द्रित द्वितीयक इकाइयाँ हैं, जिनमें एक या दो क्रियाएँ ही होती है।
(ii) इन केन्द्रों में बड़े निवेश की आवश्यकता होती है। (ii) इनमें कम निवेश की आवश्यकता होती है।
(iii) ये स्थानीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मांग भी पूरी करते है। (iii) ये केवल स्थानीय मांग को पूरा करते है।
(iv) भारत में 10 मुख्य समवित उद्योग है। (iv) भारत में 400 से अधिक मिनी इस्पात संयंत्र है।
उद्योग की समस्याएँ-
  1. पूँजी-लोहा तथा इस्पात को अधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता कि भारत जैसे विकसशील देश के सामर्थ्य में नहीं है। विदेशी सहायता से अनेक सार्वजनिक समवित इस्पात केन्द्रों की स्थापना की गई है।
  2. आधुनिकीकरण- सार्वजनिक उपक्रम 35 वर्ष पुराने हैं। उनकी मशीनें असक्षम हो चुकी हैं, इसीलिए उनकी उत्पादकता विकसित देशों की अपेक्षा बहुत कम है।
  3. कम उत्पादकता- -भारत में प्रति व्यक्ति श्रम उत्पादकता 90-100 टन है, जो कि विश्व में सबसे कम है। जापान, कोरिया तथा कुछ अन्य प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों की प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष श्रम उत्पादकता लगभग 600-700 टन है।
4. उद्योगों के कारण जल प्रदूषण किस प्रकार होता है? चार सूत्र देकर समझाएँ ।
उत्तर –
  1. उद्योग रंग, अपमार्जक, अम्ल, लवण तथा भारी धातुएँ जैसे सीसा, पारा, कीटनाशक, उर्वरक, कार्बन, प्लास्टिक और रबड़ जल में वाहित करते हैं।
  2. उद्योग फ्लाई ऐश, फोस्फो-जिप्सम तथा लोहा-इस्पात की अशुद्धियों को जल में फेंकते हैं।
  3. उद्योगों द्वारा अत्यधिक भूमिगत जल निकालने से जल प्रदूषण होता है।
  4. उद्योगों के कारण भूमि निम्नीकरण होता है। मृदा तथा जल प्रदूषण का निकट का संबंध है। मलबे का ढेर विशेषकर काँच, हानिकारक रसायन, औद्योगिक बहाव, पैकिंग, लवण तथा कूड़ा–कर्कट मृदा को अनुपजाऊ बनाता है। वर्षा जल के साथ ये प्रदूषक जमीन से रिसते हुए भूमिगत जल तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित कर देते हैं।
5. उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा करें।
उत्तर –
  1. विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग तथा जल का दो या दो से अधिक उत्तरोत्तर अवस्थाओं में पुनर्चक्रण द्वारा पुनः उपयोग।
  2. जल की आवश्यकता पूर्ति हेतु वर्षा जल संग्रहण |
  3. नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना। औद्योगिक अपशिष्ट का शोधन तीन चरणों में किया जा सकता है— (क) यांत्रिक साधनों द्वारा प्राथमिक शोधन-इसमें अपशिष्ट पदार्थों की छटाई, उनके छोटे-छोटे टुकड़े करना, ढकना तथा तलछट जमाव आदि सम्मिलित हैं। (ख) जैविक प्रक्रियाओं द्वारा द्वितीयक शोधन। (ग) जैविक, रासायनिक तथा भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा तृतीयक संशोधन। इसमें अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण द्वारा पुनः प्रयोग योग्य बनाया जाता है।
  4. जहाँ भूमिगत जल का स्तर कम हो, वहाँ उद्योगों द्वारा इसके अधिक निष्कासन पर कानूनी प्रतिबंध होना चाहिए।
  5. वायु में निलवित प्रदूषण को कम करने लिए कारखानों में ऊँची चिमनियाँ, चिमनियों में एलेक्ट्रोस्टैटिक अवक्षेपण, स्क्रबर उपकरण तथा गैसीय प्रदूषक पदार्थों को जड़त्वीय रूप से पृथक करने के लिए उपकरण होना चाहिए।
  6. कारखानों में कोयले की अपेक्षा तेल व गैस के प्रयोग से धुएँ से निष्कासन में कमी लाई जा सकती है।
  7. ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए मशीनों व उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है तथा जेनरेटरों में साइलेंसर लगाया जा सकता है। ऐसी मशीनरी का प्रयोग किया जाए जो ऊर्जा सक्षम हों तथा कम ध्वनि प्रदूषण करे। ध्वनि अवशोषित करने वाले उपकरणों के इस्तेमाल के साथ कानों पर शोर नियंत्रण उपकरण भी पहनने चाहिए।
6. हल्के तथा भारी उद्योग में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – कच्चे माल तथा तैयार माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण किया जा सकता है।
  1. भारी उद्योग-जो उद्योग भारी तथा अधिक परिमाण में कच्चे माल का उपयोग करते हैं और जिनके उत्पाद भी भारी तथा अधिक परिमाण वाले होते हैं तथा जिनमें परिवहन की लागत अधिक आती है, इस वर्ग में आते हैं। उदाहरण-लोहा और इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग तथा सीमेंट उद्योग।
  2. हल्के उद्योग-इस वर्ग के अंतर्गत वे उद्योग आते हैं, जिनके कच्चे माल तथा तैयार माल हल्के होते हैं तथा जिनमें महिला श्रमिकों को भी नौकरी पर रखा जा सकता है, जैसे- घड़ियाँ, पेन, सिलाई मशीन, रेडियो तथा टेलीविजन बनाना।

6. राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. सड़क परिवहन के तीन गुण बताएँ।
उत्तर –
  1. सड़कों के लिए रेलवे की अपेक्षा पूँजी निवेश की आवश्यकता कम होती है।
  2. इनका निर्माण बहुत ऊंचे स्थानों या किसी भी स्थान पर किया जा सकता है।
  3. सड़क परिवहन सुविधाजनक तथा साधारण व्यक्ति की पहुँच के अन्दर होता है तथा 24 घंटे उपलब्ध होता है।
  4. इसकी देखभाल की लागत कम आती है।
  5. इसके माध्यम से ही कृषि का विकास होता है।
2. रेल परिवहन कहाँ पर अत्यधिक सुविधाजनक परिवहन साधन है तथा क्यों ?
उत्तर – उत्तरी मैदानों में, रेल परिवहन सबसे सुविधाजनक परिवहन का साधन है क्योंकि– (क) विस्तृत समतल भूमि उपलब्ध है। (ख) जनसंख्या की सघनता। (ग) संपन्न कृषि के संसाधन।
3. सीमांत सड़कों के तीन महत्त्व बताइए।
उत्तर – (क) इन सड़कों ने दुर्गम क्षेत्रों में अभिगम्यता बढ़ा दी है। (ख) इन सड़कों ने सीमान्त गाँवों को प्रमुख शहरों तथा नगरों से जोड़ दिया है। (ग) इन सड़कों ने सेनाओं की आवाजाही को सुगम बना दिया है।
4. व्यापार से आप क्या समझते हैं ? स्थानीय व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर –राज्यों व देशों में व्यक्तियों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान व्यापार कहलाता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार स्थानीय व्यापार
(i) दो या दो से अधिक देशों के बीच का व्यापार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। (i) एक देश के गाँवों, शहरों, नगरों तथा राज्यों के बीच व्यापार को स्थानीय व्यापार कहते हैं।
(ii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। (ii) स्थानीय व्यापार के लिए राष्ट्रीय मुद्रा की आवश्यकता होती है।
5. रेल गेज क्या है? रेल गेज के तीन प्रकार लिखें।
उत्तर – रेलवे लाइन के अन्दरूनी किनारों के बीच के अंतर को रेल गेज कहते है।
(i) बड़ी लाइन – 1.676 मीटर
(ii) मीटर लाइन – 1.00 मीटर
(iii) छोटी लाइन – 0.762-0.61 मीटर।
6. पक्की तथा कच्ची सड़कों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर –
पक्की सड़कें कच्ची सड़कें
(i) ये सीमेंट, कंक्रीट व तारकोल द्वारा निर्मित होती हैं। (i) ये मिट्टी से बनी होती हैं।
(ii) ये बारहमासी सड़कें होती हैं। (ii) वर्षा ऋतु में इनका प्रयोग नहीं हो सकता।
(iii) अधिकांश शहरी सड़कें पक्की होती हैं। (iii) अधिकांश ग्रामीण सड़कें कच्ची होती हैं।
7. सीमांत सड़कों की कोई चार विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर –
  1. भारत सरकार प्राधिकार के अधीन एक सीमा सड़क संगठन है, जो देश के सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण व उनकी देख-रेख करता है।
  2. यह संगठन 1960 ई० में बनाया गया, जिसका कार्य उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी क्षेत्रों में सामाजिक महत्त्व की सड़कों का विकास करना था।
  3. इन सड़कों के विकास से दुर्गम क्षेत्रों में अभिगम्यता बढ़ी है।
  4. ये सड़कें इन क्षेत्रों के विकास में भी सहायक हुई हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. परिवहन तथा संचार के साधन किसी देश की जीवन रेखा तथा अर्थव्यवस्था क्यों कहे जाते हैं। 
उत्तर – रेडियो, टेलीविजन, ई-मेल, टेलीग्राम आदि संचार के साधन हैं जबकि रेलवे विमान सेवा, बसें, ट्रक, कारें आदि प्रमुख परिवहन के साधन हैं।
  1. संबंध बनाने के लिए परिवहन के साधन देश की जीवन रेखाएँ है। ये देश के एक भाग को अन्य भागों से जोड़ते हैं तथा सभी स्थानों पर आवश्यक उत्पादों को पहुँचाने में सहायक होते हैं।
  2. अर्थव्यवस्था का विकास- -ये उद्योगों का कच्चा माल लाने तथा तैयार माल को रेलवे तथा सड़कों द्वारा ढोने में सहायक होते हैं । कृषि भी परिवहन पर बहुत अधिक निर्भर करती है।
  3. राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक एकता- भारत एक विस्तृत देश है। परिवहन जाल विभिन्न जातियों, मतों, रंगों, धर्मो, भाषाओं और क्षेत्रों के लोगों को एक दूसरे के निकट लाता है।
  4. प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण-ये बेहतर प्रौद्योगिकी का स्थानांतरण एक देश से दूसरे देश तथा एक राज्य से दूसरे राज्य में करने में मदद करते हैं।
  5. बाजार से संबंध-संचार के साधन व्यापारियों को अन्य व्यापारियों से संबंध बनाए रखने में मदद करते हैं तथा परिवहन के साधन आवश्यक उत्पाद प्रदान करते हैं।
  6. स्नायुतंत्र – संचार के साधन मानव शरीर में स्नायु तंत्र के समान काम करते हैं। केवल इस माध्यम से हम देश-विदेश में हो रही घटनाओं को जान सकते हैं।
2. आज रेलवे इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर –
  1. भारतीय रेलवे देश के कुल भारी सामान का 80% तथा लंबी दूरी के यात्रियों को ले जाता है।
  2. लोहा तथा इस्पात उद्योग पूर्णतः रेलवे पर निर्भर करता है क्योंकि इस उद्योग को अपने कच्चे माल तथा तैयार माल को ढोने के लिए परिवहन सुविधा की आवश्यकता होती है।
  3. साधारणतः रेलवे ही पेट्रोलियम तथा उसके उत्पादों को बन्दरगाहों से तेल शोधनशालाओं तक तथा शोधशालाओं से उनके उपभोग के स्थान तक ले जाते हैं।
  4. भारतीय रेलवे ने बहुत बड़ी संख्या में देश के लोगों को रोजगार प्रदान किए हैं।
  5. रेलवे विभिन्न लोगों तथा राज्यों को एक साथ जोड़कर देश में एकता स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  6. ये अधिक मात्रा में भारी वस्तुओं को उनके उत्पादन के स्थान से पत्तनों तक तथा पत्तनों से उत्पादन के स्थान तक ले जाते हैं।
  7. रेलवे आपात्कालीन परिस्थितियों में भी दूध, चारा, फौज, गोला-बारुद आदि उनके जरूरत के स्थानों तक पहुँचाता है।
  8. ये डाक सेवाएँ भी प्रदान करते हैं।
3. भारत में सड़क परिवहन का महत्त्व क्या है ? राष्ट्रीय महामार्ग राज्य महामार्गों से किस प्रकार भिन्न हैं? भिन्नता के चार सूत्र लिखें।
उत्तर – सड़क परिवहन का महत्त्व-
  1. यात्रियों व माल का लाना और ले जाना-उद्योग तथा कृषि के विकास के लिए परिवहन तंत्र एक आवश्यक अंग है। सामान तथा कच्चे माल को ढोने में सड़कें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये वस्तुओं के उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी का काम करते हैं।
  2. एकता–भारत के विविध आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में परिवहन का श्रेष्ठ तंत्र लोगों को एक-दूसरे के निकट लाता है। इससे लोगों के बीच परस्पर निर्भरता बढ़ती है।
    राष्ट्रीय महामार्ग राज्य महामार्ग
    (i) ये एक राज्य को दूसरे राज्य से जोड़ते हैं। (i) ये मार्ग राज्य की राजधानी को जिला मुख्यालयों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों से जोड़ते हैं।
    (ii) इन महामार्गों का निर्माण कार्य तथा रख-रखाव केन्द्रीय सरकार द्वारा करवाया जाता है। (ii) इन मार्गों का निर्माण तथा रख-रखाव राज्य सरकारों द्वारा करवाया जाता है।
    (iii) ये राष्ट्रीय महत्त्व की सड़के हैं। (iii) ये राज्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    (iv) राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 52,000 किमी है। (iv) इन राजमार्गों की कुल लम्बाई 1.3 लाख किमी है।
4. परिवहन में पाइपलाइन के महत्व के संबंध में पाँच सूत्र लिखें।
उत्तर –
  1. पाइपलाइन द्वारा परिवहन में होने वाली देरी तथा नुकसान कम हो जाते हैं। अनेक उर्वरक कारखाने तथा ताप बिजली पर पाइप लाइन द्वारा गैस की आपूर्ति से लाभ उठा रहे हैं।
  2. पाइप लाइन को बिछाते समय प्रारम्भ में बहुत धन व्यय होता है, लेकिन बाद में इन्हें चालू रखने में बहुत कम खर्च होता है।
  3. इससे गैस तथा तेल की आपूर्ति निरन्तर होती है।
  4. इस पाइपलाइन को समुद्र के अन्दर तथा दुर्गम भू-भागों में बिछाया जा सकता है।
  5. सुदूर आंतरिक भागों में स्थित शोधन शालाएँ जैसे बरौनी, मथुरा, पानीपत तथा गैस पर आधारित उर्वरक कारखानों की स्थापना पाइपलाइनों के जाल के कारण ही संभव हो पाई है।
5. जल मागों का क्या महत्त्व है?
उत्तर –
  1. यह भारी तथा स्थूलकाय वस्तुएँ ढोने में अनुकूल हैं।
  2. यह परिवहन साधनों में ऊर्जा सक्षम तथा पर्यावरण अनुकूल है।
  3. इनके टूट-फूट के तत्त्व बहुत कम हैं।
  4. देश का 95% व्यापार समुद्रों द्वारा किया जाता है।
  5. राष्ट्रीय जल मार्गों के विकास के साथ, प्राकृतिक व्यापार के लिए, परिवहन का यह प्रमुख साधन बन गया है।

इकाई-3 (राजनीति विज्ञान-लोकतांत्रिक राजनीति-II)

1. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. वेल्जियम में सत्ता की साझेदारी की व्यवस्था के बारे में चर्चा करें।
उत्तर – बेल्जियम में 59% जनता डच बोलती है। वहाँ फ्रेंच बोलने पर प्रतिबंध है। वहाँ फ्रेंच भाषी को शक, अविश्वास एवं हेय दृष्टि से देखा जाता है। यह प्रतिबंध गृह युद्ध का आसार बनाता है। डच एवं फ्रेंच भाषा की विभिन्नता सामुदायिक विभाजन का आधार बन जाती है। सत्ता में भी डच जनता का प्रतिनिधि ज्यादा है।
2. सत्ता की साझेदारी क्या है ?
उत्तर – सत्ता में साझेदारी का अर्थ है-सरकारी क्रियाकलापों में जनता की भागीदारी तथा सरकार के निर्णयों एवं नीति-निर्माण में भाग लेना। इस प्रक्रिया को जनता द्वारा प्रभावित किया जाना चाहिए, ताकि नीतियाँ जनता की इच्छा के अनुरूप हों, नीतियों के क्रियान्वयन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो एवं शासन जनोन्मुखी, उत्तरदायी तथा जनइच्छा से संचालित हो। इस तरह, सत्ता में जनता की भागीदारी के ये मुख्य पहलू हैं।
3. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी क्या महत्त्व रखती है?
उत्तर – सत्ता में जनता की साझेदारी लोकतंत्र का आधार है। जब जनता को राज्य के काम-काज में भागीदारी मिलती है तो जनता राज्य के मामले में अधिक रुचि लेती है। इससे राजनीतिक सत्ता को जनसमर्थन और सहयोग प्राप्त होता है। राजनीतिक व्यवस्था अधिक स्थिर होती है और उसका स्थायित्व बढ़ जाता है। इससे क्रांति, विरोध और संशय की जगह जनसंतुष्टि, सहयोग और विश्वास बढ़ता है। इससे राष्ट्र को एकजुटता प्राप्त होती है।
4. लोकतंत्र तथा सत्ता की साझेदारी में क्या संबंध है?
उत्तर – लोकतंत्र का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को अपने निर्वाचित प्रतिनिधि के द्वारा निर्णय लेने का अधिकार तथा सत्ता देना। सत्ता की साझेदारी का अर्थ है कि शासन में समान प्रतिनिधित्व देने के लिए विभिन्न सामाजिक दलों में सत्ता को विभाजित करना। सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र की आत्मा है, जिसमें सांस्कृतिक तथा भाषा के भेदभाव के बिना सभी लोगों को राजनीतिक व्यवस्था में शामिल किया जाता है।
5. सत्ता की साझेदारी के नैतिक कारण का उल्लेख करें।
उत्तर – सता की साझेदारी दरअसल लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतंत्र का मतलब ही होता है कि जो लोग इस शासन व्यवस्था के अंतर्गत हैं, उनके बीच सत्ता को बाँटा जाए और ये लोग इसी डर से रहें। सत्ता की साझेदारी के मूलभूत सिद्धांत
(i) विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकार अर्थात् गठबंधन सरकार ।
(ii) अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा |
(iii) सता का विकेन्द्रीकरण ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. सत्ता की साझेदारी क्यों जरूरी है?
उत्तर –
  1. टकराव को रोकने के लिए-सता की साझेदारी जरूरी इसलिए है क्योंकि इससे सामाजिक समूहों के बीच टकराव का अंदेशा कम हो जाता है। चूँकि सामाजिक टकराव आगे बढ़कर अक्सर हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता का रूप ले लेता है इसलिए सत्ता में हिस्सा दे देना राजनैतिक व्यवस्था के स्थायित्व के लिए अच्छा है। बहुसंख्यक समुदाय की इच्छा को बाकी सभी पर थोपना तात्कालिक तौर पर लाभकारी लग सकता है पर आगे चलकर यह देश की अखंडता के लिए घातक हो सकता है। बहुसंख्यकों का आतंक सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए ही परेशानी पैदा नहीं करता, अक्सर यह बहुसंख्यकों के लिए भी बर्बादी का कारण बन जाता है।
  2. लोकतंत्र की आत्मा- -सता की साझेदारी वास्तव में लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतंत्र का अर्थ ही होता है कि जो लोग इस शासन-व्यवस्था के अंतर्गत हैं, उनके बीच सत्ता को बाँटा जाए और ये लोग इसी दर से रहें। इसलिए वैध सरकार वही है जिसमें अपनी भागीदारी के माध्यम से सभी समूह शासन व्यवस्था से जुड़ते हैं।
2. आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के विभिन्न तरीके क्या है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर –
  1. सत्ता का क्षैतिज वितरण – लोकतंत्र में शासन के विभिन्न अंग, जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा रहता है। इसे हम सत्ता का क्षैतिज वितरण कहेंगे क्योंकि इसमें सरकार के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी-अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं। ऐसे बँटवारों से यह सुनिश्चित हो जाता है कि कोई भी एक अंग सत्ता का असीमित उपयोग नहीं कर सकता। हर अंग दूसरे पर अंकुश रखता है। इससे विभिन संस्थाओं के बीच सत्ता का संतुलन बनता है।
  2. सरकार के बीच विभिन्न स्तरों पर बँटवारां- इसके अंतर्गत सरकार के बीच भी विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बँटवारा हो सकता है। जैसे, पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार हो और फिर प्रांत या क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग सरकार रहे। पूरे देश के लिए बनने वाली ऐसी सामान्य सरकार को अक्सर संघ या केन्द्र सरकार कहते हैं।
  3. विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा- लोकतंत्र में विशेष रूप से बहु-जातीय समाज में, धार्मिक तथा भाषाई समूहों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। बेल्जियम में ‘सामुदायिक सरकार’ इस व्यवस्था का एक अच्छा उदाहरण है। कुछ देशों के संविधान और कानून में इस बात का प्रावधान है कि सामाजिक रूप से कमजोर समुदाय और महिलाओं को विधायिका और प्रशासन में हिस्सेदारी दी जाए।
  4. राजनीतिक पार्टियों, दवाव समूहों तथा आंदोलनों के बीच सत्ता का बँटवारा— लोकतंत्र में, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों, दबाव समूहों तथा आंदोलनों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। लोकतंत्र लोगों के सामने सत्ता के दावेदारों के बीच चुनाव का विकल्प देता है। यह विकल्प विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के रूप में उपलब्ध होता है, जो कि चुनाव लड़ती हैं। पार्टियों की यह आपसी प्रतिद्वंद्विता ही यह सुनिश्चित करती है कि सत्ता एक व्यक्ति या समूह के हाथ में न रहे।

2. संघवाद

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. “संघीय शासन व्यवस्थाएँ दो तरीकों से गठित होती है।” उन दो तरीकों के नाम बताएँ तथा प्रत्येक का एक उदाहरण भी दें।
उत्तर –
  1. दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करना— संयुक्त राज्य अमेरीका।
  2. बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना-भारत।
2. भारत में संघवाद की एक ऐसी विशेषता बताएँ जो बेल्जियम के संघवाद से मिलती-जुलती हो और एक ऐसी विशेषता जो अलग हो ।
उत्तर – भारत तथा बेल्जियम के बीच संघवाद से मिलती-जुलती विशेषता- भारत तथा बेल्जियम दोनों सबको साथ लेकर चलने वाले संघ हैं, जहाँ केन्द्र सरकारें राज्य सरकारों से अधिक शक्तिशाली होती हैं।
भारत और बेल्जियम के बीच संघवाद की अलग विशेषता – बेल्जियम में तीन प्रकार की सरकारें हैं-केन्द्र की सरकार, राज्य स्तर की सरकार तथा सामुदायिक सरकार। सामुदायिक सरकार के पास सांस्कृतिक, शैक्षिक तथा भाषा संबंधी मामलों की सत्ता होती है। परन्तु भारत में, तीसरे प्रकार की अर्थात् सामुदायिक सरकार नहीं होती। यहाँ केवल दो प्रकार की सरकारें है। पहली प्रकार की सरकार राज्य स्तर पर होती है।
3. संघ सूची और समवर्ती सूची में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर –
संघ सूची समवर्ती सूची
(i) संघ सूची में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, बैकिंग, संचार और मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं। (i) इस सूची में वे विषय सम्मिलित हैं, जो केन्द्र तथा सरकारों की साझी दिलचस्पी में आते हैं।
(ii) इन विषयों के बारे में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार को है। (ii) इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार दोनों को है।
(iii) इस सूची में 97 विषय हैं। (iii) इस सूची में 47 विषय हैं।
4. विकेन्द्रीकरण क्या है ? विकेन्द्रीकरण का महत्त्व अथवा जरूरत क्या है ?
उत्तर – जब केन्द्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं।
  1. विकेन्द्रीकरण के पीछे बुनियादी सोच यह है कि अनेक मुद्दों और समस्याओं से निपटारा स्थानीय स्तर पर ही बढ़िया ढंग से हो सकता है। लोगों को अपने इलाके की समस्याओं की बेहतर समझ होती है। लोगों की इस बात की अच्छी जानकारी होती है कि पैसा कहाँ खर्च किया जाए और चीजों का अधिक कुशलता से उपयोग किस तरह किया जा सकता है।
  2. स्थानीय स्तर पर लोगों का फैसलों में सीधे भागीदार बनना भी संभव हो जाता है। इससे लोकतांत्रिक भागीदारी की आदत पड़ती है। स्थानीय सरकारों की स्थापना स्व-शासन के लोकतांत्रिक सिद्ध वास्तविक बनाने का सबसे अच्छा तरीका है।
5. पंचायती राज क्या है ? इसका महत्त्व क्या है ?
उत्तर – ग्रामीण स्थानीय सरकार पंचायती राज के नाम से जानी जाती है।
महत्त्व-
(i) यह लोगों को निर्णय लेने में सीधे रूप से भाग लेने में मदद करता है।
(ii) यह सत्ता के विकेन्द्रीकरण में मदद करती है।
(iii) यह केन्द्र सरकार के काम के दबाव को कम करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारत की संघीय शासन व्यवस्था की चर्चा कीजिए।
उत्तर – संघीय शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
  1. सरकार के दो या अधिक स्तर- -संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च सत्ता केन्द्रीय प्राधिकार और उसकी विभिन्न आनुगिक इकाइयों के बीच बँट जाती है। आमतौर पर संघीय व्यवस्था में दो स्तर पर सरकारें होती हैं। इसमें एक सरकार पूरे देश के लिए होती है तथा दूसरी सरकार राज्य या प्रांत स्तर की होती है।
  2. एक नागरिक समूह अलग-अलग अधिकार क्षेत्र – अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं, पर कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार-क्षेत्र होता है।
  3. संविधान की सर्वोच्चता- संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्र स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं। इसलिए सरकार के प्रत्येक स्तर का अस्तित्व तथा प्राधिकार संवैधानिक रूप से सुरक्षित होते हैं।
  4. सुदृढ संविधान-संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती। ऐसे बदलाव दोनों स्तर की सरकारों की सहमति से ही हो सकते हैं।
  5. अदालतों के सर्वोच्च प्राधिकार आदलतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है। विभिन्न स्तर के सरकारों के बीच अधिकारों के विवाद की स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय निर्णायक की भूमिका निभाता है।
2. शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या मुख्य अंतर हैं ?
इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें
उत्तर – किसी भी लोकतांत्रिक शासन को सत्ता के विभाजन के आधार पर दो भागों में बाँटा जाता है-संघात्मक शासन एवं एकात्मक शासन। दोनों प्रकार के शासनों में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं।
  1. एकात्मक शासन में शक्तियों का विभाजन नहीं होता, सभी शक्तियाँ केंद्र के पास रहती हैं। इसके विपरीत, संघात्मक शासन में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है।
  2. संघात्मक शासन में एक लिखित संविधान अवश्य होता है। परंतु, एकात्मक शासन के लिए यह आवश्यक नहीं है।
  3. संघात्मक शासन में बहुधा दोहरी नागरिकता होती है जबकि एकात्मक शासन में एकहरी ।
अमेरिका, भारत, बेल्जियम और स्विट्जरलैंड संघात्मक राज्य के उदाहरण हैं जबकि ब्रिटेन, फ्रांस और श्रीलंका एकात्मक शासन के।
3. संघीय सरकार की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर – संघीय सरकार की निम्न विशेषताएँ हैं।
  1. लिखित संविधान- लिखित संविधान से केंद्र और राज्य सरकारों का कार्यक्षेत्र स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट रहता है।
  2. कठोर संविधान-कठोर संविधान होने से कोई सरकार अपने हित में सरलता से इसमें संशोधन नहीं कर सकती है।
  3. संविधान की सर्वोच्चता- संविधान की सर्वोच्चता से संघीय पद्धति की रक्षा होती है, क्योंकि संविधान का उसपर अंकुश बना रहता है।
  4. शक्तियों का विभाजन-संघीय सरकार में संविधान द्वारा ही केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है।
  5. स्वतंत्र न्यायपालिका– संघीय सरकार में न्यायपालिका ही संविधान का संरक्षक होती है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को संविधान के विरुद्ध कार्य करने का अधिकार नहीं होता है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सांविधानिक विवादों का निपटारा वही करती है।

3. लोकतंत्र और विविधता

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ‘सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। व्याख्या करें।
उत्तर – सामाजिक विभाजन अधिकांशतः जन्म पर आधारित होता है। सामान्य तौर पर अपना समुदाय चुनना हमारे वश में नहीं होता। हम सिर्फ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो जाते हैं कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है। पर जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में लगभग रोज करते हैं। हम अपने आस-पास देखते हैं कि चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष, लंबा हो या छोटा-सबकी चमड़ी का रंग अलग-अलग है उनकी शारीरिक क्षमताएँ या अक्षमताएँ अलग-अलग है।
2. सामाजिक विभाजन राजनीति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? दो उदाहरण दें।
उत्तर –
  1. राजनीतिक दल सामाजिक विभाजन की बात करते है, विभिन्न समुदायों से अलग-अलग वायदे करते हैं, विभिन्न समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयास करते हैं और विभिन्न समुदायों की उचित माँगों और जरूरतों को पूरा करने वाली नीतियाँ भी बनाते हैं।
  2. अधिकांश देशों में सामाजिक विभाजन मतदान को प्रभावित करता है। समुदाय के लोग आमतौर पर किसी एक दल को दूसरों के मुकाबले ज्यादा पसंद करते हैं। कई देशों में ऐसी पार्टियाँ है, जो सिर्फ एक ही समुदाय पर ध्यान देती हैं।
3. सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप कब ले लेती है?
उत्तर – सामाजिक विभिन्नता का अर्थ है- जाति, धर्म, भाषा अथवा संस्कृति के कारण लोगों के समूहों में अंतर होना। यह सामाजिक विभाजन तब बन जाती है जब कुछ सामाजिक विभिन्नताएँ किसी अन्य सामाजिक विभिन्नताओं से मिल जाती हैं। दूसरे शब्दों में, जब दो या दो से अधिक सामाजिक विभिन्नताएँ मिल जाती हैं तो एक सामाजिक विभाजन बन जाता है। उदाहरण के लिए अमरीका में अश्वेतों तथा श्वेतों में अंतर उनकी भिन्न जाति के कारण है, जो कि सामाजिक विभिन्नता है। यह सामाजिक विभाजन तब बनता है, जब आय संबंधी कारकों को भी देखा जाने लगता है। अश्वेत गरीब तथा बेघर होते हैं, जबकि श्वेत अमीर तथा शिक्षित होते हैं। यह लोगों को विभाजित कर देता है तथा उन्हें महसूस होने लगता है कि वे भिन्न समुदाय से संबंधित हैं।
4. ‘सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।’ व्याख्या करें।
उत्तर – भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है। अतः यहाँ सभी काम संविधान की रूपरेखा के आधार पर होते हैं। भारत जैसे बड़े देश में ही सामाजिक विभाजन होता है। यहाँ की संस्कृति वर्गवत् होते हुए भी देशत्व की भावना से जुड़ी है।
5. ‘भारत एक संघ है क्योंकि केन्द्र और राज्य सरकारों के अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से दर्ज हैं और अपने-अपने विषयों पर उनका स्पष्ट अधिकार है।’ विवेचना करें।
उत्तर – भारत में सरकार की शक्तियों का बँटवारा केन्द्र और राज्यों में स्पष्ट रूप से विभाजित है। दोनों के क्षेत्र स्वतंत्र हैं। संघीय राज्यों में कार्यपालिका, विधान सभा का अंग नहीं होती और न ही कार्यपालिका के सदस्य विधान मंडल में सदस्य होते हैं।
6. अधिकांश देशों में किसी न किसी प्रकार का सामाजिक विभाजन दिखाई देता है। व्याख्या करें।
उत्तर – आज अधिकतर समाजों में कई किस्म के विभाजन दिखाई देते हैं। देश बड़ा हो या छोटा, इससे कोई विशेष अंतर नहीं होता। भारत काफी बड़ा देश है और वहाँ अनेक समुदायों के लोग हैं। जर्मनी और स्वीडन जैसे समरूप समाज में भी, जहाँ मोटे तौर पर अधिकतर लोग एक ही नस्ल और संस्कृति के हैं, दुनिया के दूसरे हिस्सों से पहुंचने वाले लोगों के कारण तेजी से बदलाव आ रहा है। ऐसे लोग अपने साथ अपनी संस्कृति लेकर पहुँचते हैं। उनमें अपना अलग समुदाय बनाने की प्रवृत्ति होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम निश्चित करने वाले तीन कारणों की चर्चा करें।
उत्तर –
  1. लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना-सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम निश्चित करने में इस कारक का महत्त्वपूर्ण हाथ है। अगर लोग खुद को सबसे अलग और विशिष्ट मानने लगते हैं, तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है। जब तक उत्तरी आयरलैंड के लोग खुद को सिर्फ प्रोटेस्टेंट या कैथोलिक के तौर पर देखते रहेंगे, तब उनका शांत हो पाना संभव नहीं। अगर लोग अपनी बहु-स्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा या सहयोगी मानते हैं, तब कोई समस्या नहीं होती। जैसे, बेल्जियम के अधिकतर लोग खुद को बेल्जियाई ही मानते हैं, भले ही वे डच या जर्मन बोलते हों। इस नजरिए से उन्हें साथ-साथ रहने में मदद मिलती है। जबकि भारत मिश्रित संस्कृतियों का देश है, परन्तु राष्ट्रवाद की भावना हमें आपस में जोड़े रखती है।
  2. राजनीतिक दलों द्वारा माँगों को उठाना-सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान के दायरे में आने वाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुंचाने वाली माँगों को मान लेना आसान है। श्रीलंका में ‘श्रीलंका केवल सिंहलियों के लिए’ की माँग तमिल समुदाय की पहचान और हितों के खिलाफ थी। गोस्लाविया में विभिन्न समुदायों के नेताओं ने अपने जातीय समूहों की तरफ से ऐसी माँगें रख दीं, जिन्हें एक देश की सीमा के भीतर पूरा करना असंभव था।
  3. सरकार का रूख-यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सरकार इन माँगों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। अगर शासन सत्ता में साझेदारी करने को तैयार हो और अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को पूरा करने का प्रयास ईमानदारी से किया जाए तो सामाजिक विभाजन मुल्क के लिए खतरा नहीं बनते। अगर शासन राष्ट्रीय एकता के नाम पर किसी ऐसी माँग को दबाना शुरू कर देता है तो अक्सर उल्टे और नुकसानदायक परिणाम ही निकलते हैं। ताकत के दम पर एकता बनाए रखने की कोशिश अक्सर विभाजन की ओर ले जाती है और ऐसा ही श्रीलंका में हुआ।
2. सामाजिक विभिन्नताओं के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर –
  1. जन्म-जन्म सामाजिक विभिन्नताओं के लिए उत्तरदायी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। भारत में एक व्यक्ति को निम्न जाति का माना जाता है क्योंकि उसका जन्म निम्न वर्ग के परिवार में हुआ था। श्वेत अश्वेतों से भेद-भाव उनके रंग के कारण करते हैं और रंग भी जन्म से ही नियंत्रित होता है।
  2. पसंद या चुनाव पर आधारित विभिन्नताएँ – कुछ चीजें हमारी पसंद या चुनाव के आधार पर भी होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग नास्तिक होते हैं। वे ईश्वर पर अथवा किसी धर्म में विश्वास नहीं करते। पेशे के चुनाव के कारण भी विभिन्नताएं पैदा होती हैं। विभिन्न पेशों तथा आर्थिक गतिविधियों के कारण भी लोगों में विभिन्नताएँ पैदा होती हैं।
  3. धर्म पर आधारित विभिन्नताएँ-कभी-कभी सामाजिक विभिन्नता का कारण धर्म भी हो सकता है। यह बड़ी सामान्य बात है कि एक ही धर्म से सम्बन्ध रखने वाले लोग महसूस करने लगते हैं कि वे एक ही समुदाय से संबंध नहीं रखते क्योंकि उनकी जाति या पंथ भिन्न है।
  4. आर्थिक स्थिति पर आधारित विभिन्नताएँ- आर्थिक स्थिति भी सामाजिक विभिन्नताओं के लिए उत्तरदायी एक कारण हो सकती है। एक ही समुदाय अथवा धर्म अथवा पंथ से संबंध रखने वाले अमीर तथा गरीब लोग एक-दूसरे के साथ ज्यादा घनिष्ठ संबंध नहीं रख पाते क्योंकि वे सोचने लगते हैं कि उनमें विभिन्नता है।

4. जाति, धर्म और लैंगिक मसले

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भ्रूणहत्या क्या है? क्या कानून इसे रोकने में सफल हुआ है?
उत्तर – आज भी पुत्री का जन्म शोक का विषय बना हुआ है। अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता से गर्भ में ही शिशु (भ्रूण) के लिंग की जानकारी प्राप्त हो जाती है। पुत्री के जन्म की संभावना के कारण गर्भ में ही उसकी हत्या कर दी जाती है। इसे ही भ्रूणहत्या कहते हैं। इसे रोकने के लिए कानून बन चुके हैं, परंतु अभी तक आशातीत सफलता नहीं मिली है। इसपर रोक के लिए कानून के साथ-साथ लोगों की सोच भी बदलनी होगी।
2. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, कैसे ?
उत्तर – प्रथम, भारतीय संविधान में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। दूसरे, भारत के सभी नागरिकों को स्वेच्छा से किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुसार आचरण करने या प्रचार करने की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। तीसरे, हमारा संविधान धार्मिक समानता एवं स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यहाँ धार्मिक आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव को भी अवैधानिक घोषित किया गया है।
3. सामाजिक विभाजन में जाति की क्या भूमिका है?
उत्तर – जब कोई विविधत या विभिन्नता अन्य से श्रेष्ठ समझने लगे और इस आधार पर समाज में भेदभाव किया जाने लगे तो सामाजिक विभाजन की उत्पत्ति होती है। जन्म पर आधारित वर्तमान जाति व्यवस्था एक असंतुलित व्यवस्था है जिसमें कुछ जातियाँ अपने को श्रेष्ठ एवं अन्य को तुच्छ समझती है। इसी सामाजिक विभाजन व्यापक रूप में विद्यमान है।
4. ‘विविधता में एकता’ का अर्थ बताएँ।
उत्तर – विविधता लोकतंत्र का एक स्वाभाविक गुण है। ‘विविधता में एकता’ भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक खास विशेषता है। बेल्जियम भी इसका एक उत्कृष्ट नमूना है। जब भी भारत की अखंडता खतरे में पड़ी अथवा प्राकृतिक आपदा आई तो सभी जाति एवं धर्मावलंबियों ने आपसी वैर-भाव को भुलाकर एक साथ मिलकर संकट की स्थिति का हिम्मत के साथ मिल-जुलकर सामना किया। यह ‘विविधता में एकता’ का एक आदर्श उदाहरण है।
5. सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आप क्या करेंगे?
उत्तर – लोगों के दिल में यह भावना लानी होगी कि भारत उनका है और हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी सभी भारतवासी हैं। देशहित सर्वोपरि है और हम सबको मिल-जुलकर रहना है। मिल-जुलकर रहने से ही सद्भाव कायम रह सकता है। पर्व-त्योहार में भी हम दूसरे संप्रदाय के लोगों से मिलते रहें।
6. श्रम के लैंगिक विभाजन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – वर्तमान समाज में काम के विभाजन का एक ऐसा तरीका जिसके अंतर्गत घर के भीतर के सारे कार्य महिलाओं द्वारा सम्पादित की जाती हैं या वे अपनी देख-रेख में घर के नौकरों या नौकरानियों द्वारा सम्पादित कराती हैं, श्रम का लैंगिक विभाजन कहलाता है।
7. भारत में लड़कियों की घटती संख्या का प्रमुख कारण क्या-क्या है?
उत्तर – भारत में लड़कियों की संख्या में गिरावट के निम्नलिखित कारण हैं-
  1. भारतीय हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार माता-पिता को मृत्यु के बाद मुक्ति तभी होगी जब वे पुत्र को जन्म दिये रहेंगे। इसी कारण लड़के की चाहत में लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है।
  2. भारतीय समाज में व्याप्त दहेज प्रथा भी लिंगानुपात में कमी के प्रमुख कारण रहा है।

5. जनसंघर्ष और आंदोलन

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. दवाव-समूहों तथा राजनीतिक दलों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर –
दवाव-समूह राजनीतिक पार्टियाँ
(i) ये चुनाव नहीं लड़ते। (i) ये चुनाव लड़ती हैं।
(ii) इनका प्रत्यक्ष उद्देश्य राजनीतिक सत्ता पर नियंत्रण करने का नहीं होता। (ii) इनका प्रत्यक्ष उद्देश्य राजनीतिक सत्ता पर नियंत्रण करने का होता है।
(iii) दबाव-समूहों का निर्माण तब होता है जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं। (iii) सामूहिक पार्टियाँ समूह के कल्याण के लिए कुछ नीतियाँ  तथा कार्यक्रमों पर समझौता करती  हैं।
2. लोकतंत्र में वर्ग-विशेषी हित समूहों की भूमिका का उल्लेख करें।
उत्तर –
  1. जब विभिन्न समूह सक्रिय हों तो कोई एक समूह समाज के ऊपर प्रभुत्व कायम नहीं कर सकता। यदि कोई एक समूह सरकार के ऊपर अपने हित में नीति बनाने के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके प्रतिकार में दबाव डालेगा कि नीतियाँ उस तरह से न बनाई जाएँ। इससे परस्पर विरोधी हितों के बीच सामंजस्य बैठाना तथा शक्ति संतुलन करना संभव होता है।
  2. अपने वर्ग के हितों के लिए काम करते हुए वे अन्यों को भी अपने माँगे रखने के लिए प्रेरणा देते हैं।
3. दवाव-समूह क्या है ? उदाहरण दें।
उत्तर – दबाव समूह संगठन होते हैं, जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियों के समान दबाव-समूह का लक्ष्य सत्ता पर प्रत्यक्ष नियंत्रण करने अथवा उसमें हिस्सेदारी करने का नहीं होता। दबाव समूह का निर्माण तब होता है, जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं।
नेशनल स्टूडेंटस यूनियन, ऑल इंडिया सिक्ख स्टूडेंट फेडरेशन तथा जमात-इ-इस्लामिक आदि ।
4. दवाव-समूह की किन्हीं दो विशेषताओं को लिखें।
उत्तर – दबाव-समूह की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
  1. दबाव-समूह की प्रथम विशेषता यह है कि यह अपने हितों की रक्षा के लिए राजनीति में सक्रिय हिस्सा लेता है लेकिन यह किसी पार्टी- विशेष का प्रत्यक्ष सदस्य नहीं होता है।
  2. दबाव-समूह का चरित्र गैर-राजनीतिक होता है। इसके सदस्यों की संख्या राजनीतिक दलों की तरह अधिक नहीं होती बल्कि कम होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. दवाव-समूह तथा आंदोलन-राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर –
  1. जनता के मसले उठाकर- -दबाव-समूह और आंदोलन अपने लक्ष्य तथा गतिविधियों के लिए जनता का समर्थ और सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए सूचना अभियान चलाना, बैठक आयोजित करना अथवा अर्जी दायर करना जैसे तरीकों का सहारा लिया जाता है। ऐसे अधि कतर समूह मीडिया को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं ताकि उनके मसलों पर मीडिया ज्यादा ध्यान दे।
  2. सरकारी काम-काज में भाग लेकर – ऐसे समूह अक्सर हड़ताल अथवा सरकारी कामकाज में बाधा पहुँचाने जैसे उपायों का सहरा लेते हैं। मजदूर सगठन, कर्मचारी संघ तथा अधिकतर आंदोलनकारी समूह अक्सर ऐसी युक्तियों का इस्तेमाल करते हैं कि सरकार उनकी मांगों की तरफ ध्यान देने के लिए बाध्य हो।
  3. राजनीतिक दलों पर प्रभाव- -हालाँकि दबाव-समूह और आंदोलन दलीय राजनीति में सीधे भाग नहीं लेते लेकिन वे राजनीतिक दलों पर असर डालना चाहते हैं। अधिकतर आंदोलन किसी राजनतिक दल से सम्बद्ध नहीं होते।
  4. राजनीतिक दल की एक शाखा- -कुछ मामलों में दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं अथवा उनका नेतृत्व राजनीतिक दल के नेता करते हैं। कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए भारत के अधिकतर मजदूर-संगठन और छात्र संगठन या तो बड़े राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए हैं अथवा उनकी संबद्धता राजनीतिक दलों से है। ऐसे दबाव-समूहों के अधिकतर नेता किसी-न-किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और नेता होते हैं।
  5. नए दल—कभी-कभी आंदोलन राजनीतिक दल का रूप ले लेते हैं। उदाहरण के लिए ‘विदेशी’ लोगों के विरुद्ध छात्रों ने ‘असम आंदोलन’ चलाया और जब इस आंदोलन की समाप्ति हुई तो इस आंदोलन ने ‘असम गण परिषद’ का रूप ले लिया। सन् 1930 और 1940 के दशक में तमिलनाडु में समाज-सुधार आंदोलन चले थे। डी०एम०के० और ए.आई.डी.एम.के. जैसी बड़ी पार्टियों की जड़ें इन समाज-सुधार आंदोलनों में ढूँढी जा सकती हैं।
2. दवाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी संबंधों का स्वरूप कैसा होता है, वर्णन कीजिए।
उत्तर – दबाव-समूह और आंदोलन दलीय राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेते हैं परन्तु समय-समय पर विभिन्न प्रश्नों और समस्याओं को सुलझाने और अपने सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए राजनीतिक दलों में निम्नलिखित प्रकार से संबंध रहते हैं–
दवाव-समूहों का राजनीतिक दलों द्वारा निर्माण होना – कई बार राजनीतिक दलों द्वारा दबाब समूहों का निर्माण किया जाता है। ऐसे दबाव-समूह दल की एक शाखा के रूप में काम करते हैं। जैसे-भारत में विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् आदि दलों के भाग हैं और उनका नेतृत्व दल के नेता ही करते हैं। इसी प्रकार मजदूर संगठन भी कांग्रेस और भारतीय कम्युनिष्ट दल से संबंधित हैं।
आंदोलन का राजनीतिक दल का रूप धारन करना- कभी-कभी आंदोलन राजनीतिक दल का रूप धारण कर लेते हैं। जैसे-असम में विदेशी लोगों के विरुद्ध आंदोलन की समाप्ति पर ‘असम गण परिषद्’ का निर्माण हुआ। 1930 और १९४० के दशक में समाज-सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप डी.एम.के और ए.आई.ए.डी.एम. के जैसे दलों का निर्माण हुआ।
दवाव-समूह, आंदोलन और राजनीतिक दलों में संवाद व परामर्श का होना- साधारणतया दबाव-समूह, आंदोलन और राजनीतिक दलों में विरोधाभास होता है फिर भी इनमें आपस में बातचीत और विचार-विमर्श चलता रहता है। इस बातचीत में विभिन्न प्रश्न और समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयत्न किया जाता है। कई बार इन दबाव-समूहों में ही नए नेताओं का निर्माण होता है।
इस प्रकार दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के मध्य आपसी संबंधी कई प्रकार का स्वरूप ग्रहण करते हैं।

6. राजनीतिक दल

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. राजनीतिक दल का क्या अर्थ है ? दो उदाहरण दें।
उत्तर – ‘राजनीतिक दल लोगों का एक समूह होता है, जो चुनाव लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है।’ यह समूचे राष्ट्र के हितों को ध्यान में रखकर कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तय करता है। सब के लिए क्या अच्छा है, इसके बारे में सभी के विचार अलग-अलग हो सकते हैं। इसलिए राजनीतिक दल लोगों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि उनकी नीतियाँ औरों से बेहतर हैं।
वे लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं। उदाहरण- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी।
2. दल-बदल कानून क्या है?
उत्तर – जब कोई सांसद या विधायक किसी राजनीतिक दल के टिकट पर जीत हासिल कर लेता है और वह उस पार्टी से अलग होकर किसी अन्य पार्टी की सदस्यता हासिल करता है तो इसे दल-बदल कहते हैं। दल-बदल के द्वारा विभिन्न राजनीतिक दलों के जन-प्रतिनिधि धन और पद के लालच में सरकार को अस्थिर बनाने लगे। यही कारण है कि 1980 के दशक में भारतीय संसद ने कानून बनाकर प्रतिनिधियों द्वारा दल को बदलने पर पाबंदी लगा दी। इसे ही दल-बदल कानून के नाम से जाना जाता है।
3. राजनीतिक दल को ‘लोकतंत्र का प्राण’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – राजनीतिक दल को ‘लोकतंत्र का प्राण’ कहा जाता है क्योंकि ये प्रतिनिधियों के निर्वाचन में मुख्य रूप से भाग लेते हैं और ये दल ही लोकतांत्रिक शासन को व्यावहारिक रूप प्रदान करते हैं। राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखते हैं तथा सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं। राजनीतिक दल ही जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण देते हैं। ये शासन को निरंकुश होने से रोकते हैं।
4. राजनीतिक दलों को प्रभावशाली बनाने के चार उपाय बताएँ।
उत्तर – भारत के जनीतिक दल ही नहीं बल्कि विश्व के किसी भी राजनीतिक दल को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
  1. विधायकों एवं सांसदों के दल-बदल को कानून बनाकर सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  2. अगर उम्मीदवारों को उनके आपराधिक प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय द्वारा चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया गया है तो न्यायालय के आदेश का सम्मान किया जाना चाहिए।
  3. राजनीतिक दल समाज के महिलाओं और युवाओं को उचित प्रतिनिधत्व देकर अपने प्रभाव में वृद्धि कर सकते हैं।
  4. राजनीतिक दलों को प्रभावशाली बनाने के लिए एक अन्य सुझाव यह है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने सगे-संबंधियों को अनुचित लाभ न दिया जाए।
5. प्रांतीय दल या क्षेत्रीय दल क्या हैं?
उत्तर –
  1. इनका अस्तित्व तथा कामकाज क्षेत्रीय स्तर पर होता है।
  2. इसे पिछले आम चुनावों में कम-से-कम तीन राज्यों में 6% या इससे अधिक वोट हासिल होने चाहिए।
  3. एक प्रांतीय पार्टी का क्षेत्रीय दृष्टिकोण होता है। यह क्षेत्रीय मामलों, क्षेत्रों के लोगों की विशेष समस्याओं को महत्त्व देती है तथा इसका प्रभाव केवल क्षेत्र के लोगों पर ही होता है।
  4. एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान पर महत्त्व देती है, जिसका यह संरक्षण करना तथा जिसे यह बढ़ावा देना चाहती है। यह अधिक से अधिक स्वशासन चाहती है।
  5. क्षेत्रीय पहचान के नाम पर ये विभिन्नताओं पर जोर देती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. राजनीतिक दलों की आवश्यकता क्या है ?
उत्तर – राजनीति दलों की निम्नलिखित आवश्यकताएँ हैं-
  1. नीतियों को बनाना- बिना राजनीतिक दलों के लोकतंत्र के बारे में कल्पना करना ही असंभव है क्योंकि अगर दल न हों तो सारे उम्मीदवार स्वतंत्र या निर्दलीय होंगे। तब इनमें से कोई भी बड़े नीतिगत बदलाव के बारे में लोगों से चुनावी वायदे करने की स्थिति में नहीं होगा।
  2. सरकार की संदिग्ध उपयोगिता- सरकार बन जाएगी पर उसकी उपयोगिता सिद्ध होगी। निर्वाचित प्रतिनिधि सिर्फ अपने निर्वाचन क्षेत्रों में किए गए कामों के लिए जवाबदेह होंगे। लेकिन देश कैसे चले कोई उत्तरदायी नहीं होगा।
  3. प्रतिनिधित्व आधारित लोकतंत्र — राजनीतिक दलों का उदय प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था के उभार के साथ जुड़ा है। बड़े समाजों के लिए प्रतिनिधित्व आधारित लोकतंत्र की जरूरत होती है।
  4. जनमत बनाने के लिए-जब समाज बड़े और जटिल हो जाते हैं, तब उन्हें विभिन्न मुद्दों पर अलग-अलग विचार समेटने और सरकार की नजर में लाने के लिए किसी माध्यम या एजेंसी की जरूरत होती है।
2. राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
उत्तर – भारतीय राजनीतिक दलों के प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं- (i) राजनीतिक दलों के अन्दर लोकतांत्रिक व्यवस्था का अभाव है। (ii) भारत के प्राय: राजनीतिक दलों में कुशल नेतृत्व का संकट है। (iii) भारतीय राजनीय व्यवस्था में वंशवाद अपनी गहरी पैठ बना चुकी है। इसकी समाप्ति राजनीतिक दलों के सामने प्रमुख चुनौती के रूप में खड़ी है। (iv) राजनीतिक दलों के काले धन एवं अपराधियों के बढ़ते प्रभाव के कारण चुनौतियाँ गंभीर हैं।
3. राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढंग से करें, उसके लिए इन्हें मजबूत बनाने के कुछ सुझाव दें? 
उत्तर –
  1. दल-बदल से रोकना–विधायकों और सांसदों को दल-बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। निर्वाचित प्रतिनिधियों के मंत्रीपद या पैसे के लोभ में दल-बदल करने में आई तेजी को देखते हुए ऐसा किया गया। नए कानून के अनुसार अपना दल बदलने वाले सांसद या विधायक को अपनी सीट भी गंवानी पड़ेगी। इस नए कानून से दल-बदल में कमी आई है पर इससे पार्टी में विरोध का कोई स्वर उठाना और भी मुश्किल हो गया है। पार्टी का नेता जो कोई फैसला करता है, सांसद और विधायक को उसे मानना ही होता है।
  2. शपथ-पत्र -उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए एक आदेश जारी किया है। इस आदेश के द्वारा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी संपत्ति का और अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथ-पत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस नयी व्यवस्था से लोगों को अपने उम्मीदवारों के बारे में बहुत सी पक्की सूचनाएँ उपलब्ध होने लगी हैं, पर उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचनाएँ सही हैं या नहीं, यह जाँच करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
  3. चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम- चुनाव आयोग ने एक आदेश के जरिए सभी दलों के लिए सांगठनिक चुनाव कराना और आयकर का रिटर्न भरना जरूरी बना दिया है।

7. लोकतंत्र के परिणाम

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ‘लोकतांत्रिक सरकार एक वैध सरकार है।’ व्याख्या करें।
उत्तर –
  1. लोकतांत्रिक सरकार लोगों द्वारा निर्वाचित लोगों की अपनी सरकार होती है।
  2. विश्व भर में, लोग अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का शासन चाहते हैं।
  3. विभिन्न एजेंसियों द्वारा किए गए विभिन्न सर्वेक्षण भी यही दर्शाते हैं कि अधिकांश लोग लोकतंत्र सरकार का समर्थन करते हैं।
  4. लोकतंत्र लोगों को अपने शासक के चुनाव का विकल्प प्रदान करता है।
2. ‘लोकतंत्र अपने नागरिकों के बीच की आय की असमानता को कम नहीं कर सकता।’ इस कथन को तर्क दीजिए।
उत्तर – लोकतंत्र लोगों की सरकार है इसलिए लोकतंत्र व्यवस्थाओं से आर्थिक असमानता को कम करने की अपेक्षा की जाती है। विश्व के अधिकांश देश इस मामले में असफल रहे हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में मुट्ठी भर धनकुबेर आय और संपत्ति में अपने अनुपात से बहुत ज्यादा हिस्से पाते हैं। समाज के निचले हिसे के लोगों को काफी कम साधन मिलते हैं।
वास्तविक जीवन में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानताओं को कम करने में ज्यादा सफल नहीं हो पाई हैं। आप भारत का उदाहरण ले सकते हैं जहाँ लोकतांत्रिक सरकार के 50 वर्षों बाद भी, जनसंख्या का 26% अभी भी गरीबी रेखा के नीचे रहता है। हमारे मतदाताओं में गरीबों की संख्या बढ़ी है, इसलिए कोई भी पार्टी उनके मतों से हाथ धोना नहीं चाहेगी। फिर भी लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकारें गरीबी के सवाल पर उतना ध्यान देने को तत्पर नहीं जान पड़तीं जितनी कि आप उनसे उम्मीद करते हैं। कुछ अन्य देशों में हालत इससे भी ज्यादा खराब हैं। बांग्लादेश में आधी से ज्यादा आबादी गरीबी में जीवन गुजारती है।
3. लोकतंत्र में सभी को एक ही वोट का अधिकार है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र में किसी तरह का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता।
उत्तर – सभी को एक वोट का अधिकार है इसका यह अर्थ नहीं है कि लोकतंत्र में किसी तरह का प्रभुत्व और टकराव नहीं होता-
  1.  कोई भी समाज विभिन्न समाहें में टकराव को पूर्ण तथा स्थायी रूप से नहीं खत्म कर सकता, पर हम इन अंतरों और विभेदों का आदर करना सीख सकते हैं और इनके बीच बातचीत से सामंजस्य बैठाने का तरीका विकसित कर सकते हैं। इस काम के लिए लोकतंत्र सबसे अच्छा है। गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आमतौर पर अपने अंदरूनी सामाजिक मतभेदों से आँखें फेर लेती हैं या उन्हें दबाने की कोशिश करती हैं। इस प्रकार सामाजिक अंतर, विभाजन और टकरावों को संभालना निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का एक बड़ा गुण है।
  2. जबकि लोकतंत्र में सभी नागरिकों को मत देने का अधिकार होता है परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि किसी का प्रभुत्व नहीं होता क्योंकि लोकतंत्र में वास्तविक सत्ता कुछ नेताओं के हाथ में ही होती है। ये नेता सामान्यतया परिवार के सदस्यों से प्रभावित होते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. लोकतंत्र किस प्रकार उत्तरदायी, जिम्मेवार तथा वैध सरकार का गठन करता है ?
उत्तर – लोकतंत्र एक उत्तरदायी एवं वैध सरकार का गठन करता है। लोकतंत्र में जनता ही शासकों का निर्वाचन करती है और उनपर नियंत्रण भी रखती है। उत्तरदायी रहकर काम नहीं करनेवाली सरकार को जनता अंगले निर्वाचन में हटा देती है। इसलिए, प्रत्येक सरकार के लिए आवश्यक होता है कि वह जनता की समस्याओं का समाधान करे। जनता की इच्छा और भावना का आदर करे। शासक यह समझे कि जनता सरकार से क्या चाहती है, अन्यथा सरकार को अपदस्थ कर दिया जा सकता है।
लोकतंत्र एक वैध सरकार का गठन करता है। इसके समस्त निर्णय कानूनी प्रक्रिया से लिए जाते हैं। कार्यों के संपादन की भी निर्धारित प्रक्रिया होती है। इससे बाहर जाने और मनमानेपन पर न्यायपालिका की नजर होती है। जनता को विरोध करने की शक्ति होती है। इसलिए, लोकतंत्र में पारदर्शिता रहती है।
2. लोकतंत्र किन परिस्थितियों में सामाजिक विविधताओं को सम्भालता है और इनके साथ सामंजस्य बैठाता है?
उत्तर – यह गौर करना जरूरी है कि लोकतंत्र का सीधे-सीधे अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान रखना होता है। उसके साथ काम करने की जरूरत होती है। तभी सरकार जन-सामान्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर पाती है। बहुमत और अल्पमत की राय कोई स्थायी चीज नहीं होती। यह भी समझना जरूरी है कि बहुमत के शासन का अर्थ धर्म, नस्त अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का मतलब होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं या बहुमत में हो सकते हैं। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक प्रत्येक नागरिक को किसी न किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का मौका मिलता है। अगर किसी को जन्म के आधार पर बहुसंख्यक समुदाय का हिस्सा बनने से रोका जाता है तब लोकतांत्रिक शासन उस व्यक्ति या समूह के लिए समावेशी नहीं रह जाता।

8. लोकतंत्र की चुनौतियाँ

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. आतंकवाद और अलगाववाद लोकतंत्र की चुनौतियाँ हैं। स्पष्ट करें।
उत्तर – आतंकवाद और अलगाववाद लोकतंत्र की प्रमुख चुनौतियाँ हैं। वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों को इन गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। आतंकवाद एवं अलगाववाद से लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। इससे देश की एकता एवं अखंडता प्रभावित होती है और दुश्मन देश इसका लाभ उठाकर राष्ट्र को संकट में डाल सकते हैं। इन चुनौतियों के कारण देश के विकास पर होनेवाला व्यय विधि-व्यवस्था में ही लगाना पड़ता है। इससे जनहित के कार्य बाधित होते हैं। अतः, आतंकवाद एवं अलगाववाद से निपटने के लिए विश्व स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए विश्व के देशों की सक्रियता एवं सहभागिता आवश्यक है।
2. गठबंधन की राजनीति कैसे लोकतंत्र को प्रभावित करती है?
उत्तर – जब किसी लोकतांत्रिक राज्य में आम चुनाव सम्पन्न होता है और किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो सरकार बनाने के लिए छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा आपस में गठबंधान किया जाता है। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल अपनी आकांक्षाओं और लाभों की संभावनाओं के मद्देनजर ही गठबंधन करने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे प्रशासन पर सरकार की पकड़ ढीली हो जाती है। गठबंधन सरकार के माध्यम से क्षेत्रीय माँगों को पूरा करने में मदद मिलती है।
3. भारतीय लोकतंत्र की कन्हीं चार समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर – (i) भारत में शिक्षा का अभाव है जिससे यहाँ की जनता अपने अधिकार
और कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं रहती। (ii) हमारे देश में सामाजिक समानता की
जगह जाति, धर्म, ऊँच-नीच का भेदभाव अधिक है। (iii) भारत की जनता मतदान के महत्व को नहीं समझ पाती है, अतः मतदान का दुरुपयोग होता है। (iv) भारत में आर्थिक समानता का अभाव है। आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता
4. लोकतंत्र की दो महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर – लोकतंत्र की निम्नांकित दो महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
  1. लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती-प्रत्येक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था संघीय ढाँचे को सक्रिय बनाकर, स्थानीय संस्थाओं को अधिक अधिकार देकर तथा समाज के कमजोर वर्ग, जिनमें महिलाएँ भी सम्मिलित हैं, को शासन में उचित साझेदारी देकर इस चुनौती का सामना कर सकती है।
  2. लोकतंत्र को सशक्त बनाने की चुनौती- प्रत्येक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के सामने लोकतंत्र को सशक्त बनाने की चुनौती रहती है। इस चुनौती के समाधान के लिए लोगों की साझेदारी सत्ता में सुनिश्चित करना तथा धनी एवं प्रभुत्ववाले लोगों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।
5. जातिवाद का क्या अर्थ है? इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर – जाति शब्द को समाज के अलग-अलग वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता है। जाति एक अंतवैवाहिक समूह है जो अपने सदस्यों पर कुछ प्रतिबंध रखता है इस अर्थ में जातिवाद यह कहता है कि हरेक जातीय समूह दुसरे से अलग समुदाय है। इसलिए ही अलग-अलग जातीय समूह एक-दूसरे से अलग हैं तथा उनके हित भी एक-दूसरे से अलग हैं। जाति व्यवस्था में समाज अलग-अलग अंतर्वैवाहिक समूहों में हुआ था। इसलिए जातिवाद एक विचारधारा है जो यह कहता है कि व्यक्ति की जाति और जातियों से उच्च है तथा इसकी और जातियों पर सत्ता स्थापित होनी चाहिए। इसके परिणाम सामाजिक विभाजन के रूप में सामने आते हैं। समाज अलग-अलग हिस्सों में बँट जाता है तथा इससे समाज में तनाव तथा संघर्ष शुरू होता जाता है।
6. अशिक्षा लोकतंत्र के लिए अभिशाप है। कैसे ?
उत्तर – अशिक्षा लोकतंत्र की सफलता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि शिक्षा ही व्यक्तियों को अपने अधिकार और कर्तव्यों की सही जानकारी करा सकती है। शिक्षा के अभाव में मतदाता अपने मताधिकार का दुरुपयोग कर बैठते हैं। मताधिकार के दुरुपयोग से लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाती है। अशिक्षा के चलते लोग सरकार के कामों में कोई दिलचस्पी नहीं रखते। लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा का प्रसार आवश्यक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारत में लोकतंत्र के अधिकारों की चर्चा करें।
उत्तर – भारत में सुदृढ लोकतंत्र के निर्माण के लिए अनेक लोकतांत्रिक अधिकार प्रदान किया जाना आवश्यक है-
  1. मौलिक अधिकार-लोकतंत्र में अपने नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार, किसी भी धर्म को मानने का अधिकार, कोई भी कार्य करने का अधिकार दिया जाए तो वह अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी पर भी असर पड़ेगा। इससे लोकतंत्र सुदृढ़ होगा।
  2. शिक्षित जनता-लोग पढ़े-लिखे होने चाहिए ताकि वह देश तथा संसार की समस्याओं को समझ सकें। उन्हें वोट देने के महत्त्व का पता होना चाहिए। जो लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं वह उन्हें प्राप्त मौलिक अधिकारों को भी अच्छे ढंग से प्रयोग नहीं कर सकते हैं। इसलिए जनता पढ़ी-लिखी होनी चाहिए ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
  3. आर्थिक समानता- -अगर हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं तो अधिक आर्थिक असमानता से लोकतंत्र पर गलत प्रभाव पड़ता है।
  4. प्रेस की स्वतंत्रता-लोकतंत्र को मजबूती देने के लिए प्रेस सरकार के नियंत्रण से पूर्णतया स्वतंत्र होनी चाहिए। अगर प्रेस स्वतंत्र होगी तो वह सरकार की गलत नीतियों का भंडाफोड़ तथा अच्छी नीतियों को जनता के सामने लाएगी।
    इस प्रकार यह जनमत बनाकर लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करती है।
2. लोकतंत्र की सफलता की किन्हीं चार आवश्यक शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर – लोकतंत्र को निम्नलिखित ढंगों से मजबूती प्रदान की जा जा सकती है-
  1. मौलिक अधिकार – लोकतंत्र को अपने नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार, किसी भी धर्म को मानने का अधिकार, कोई भी कार्य करने का अधि कार दिया जाए तो वह अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी पर भी असर पड़ेगा। इससे लोकतंत्र सुदृढ़ होगा।
  2. शिक्षित जनता- -लोग पढ़े-लिखे होने चाहिए ताकि वह देश तथा संसार की समस्याओं को समझ सकें। उन्हें वोट देने के महत्त्व का पता होना चाहिए। जो लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं वह उन्हें प्राप्त मौलिक अधि कारों को भी अच्छे ढंग से प्रयोग नहीं कर सकते हैं । इसलिए जनता पढ़ी-लिखी होनी चाहिए ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
  3. आर्थिक समानता- -अगर हम लोकतंत्र को मजबूत करना चाहते हैं तो अधिक आर्थिक असमानता से लोकतंत्र पर गलत प्रभाव पड़ता है।
  4. प्रेस की स्वतंत्रता- -लोकतंत्र को मजबूती देने के लिए प्रैस सरकार के नियंत्रण से पूर्णतया स्वतंत्र होनी चाहिए। अगर प्रेस स्वतंत्र होगी तो वह सरकार की गलत नीतियों का भंडाफोड़ तथा अच्छी नीतियों को जनता के सामने लाएगी। इस प्रकार यह जनमत बनाकर लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं।
3. लोकतंत्र की व्यापक चुनौतियों की चर्चा करें।
उत्तर –
  1. मूलभूत चुनौतियाँ- लोकतांत्रिक देशों को लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर जाने और लाकतांत्रिक सरकार गठित करने के लिए जरूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इनमें मौजूदा गैर-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियंत्रण को समाप्त करने और एक संप्रभु तथा कारगार शासन-व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।
  2. विस्तार की चुनौती-अधिकांश स्थापित लोकतांत्रिक व्यस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार-संपन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका यह भी मतलब है कि कम से कम ही चीजें लोकतांत्रिक नियंत्रण के बाहर रहनी चाहिए। भारत और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में अमेरिका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।
  3. लोकतंत्र को मजबूत वनाना- -तीसरी चुनौती लोकतंत्र को मजबूत करने की है। हर लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने किसी न किसी रूप में यह चुनौती ही है। इसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं और बरतावों को मजबूत बनाना शामिल है। यह काम इस तरह से होना चाहिए कि लोग लोकतंत्र से जुड़ी अपनी उम्मीदों को पूरा कर सकें। लेकिन अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतंत्र अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं इसलिए यह चुनौती दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप ले लेती। संक्षेप में कहें तो इसका मतलब संस्थाओं की कार्य पद्धति को सुधारना और मजबूत करना होता है ताकि लोगों की भागीदारी और नियंत्रण में वृद्धि हो। इसके लिए फैसला लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के नियंत्रण और प्रभाव को कम करने की जरूरत होती है।

इकाई – 4 (अर्थशास्त्र – आर्थिक विकास की समझ-II)

1. विकास

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. मानव विकास का क्या अर्थ है ?
उत्तर – यह लोगों की इच्छाओं तथा उनके जीवन स्तर में वृद्धि लाने की एक प्रक्रिया है ताकि वे एक उद्देश्यपूर्ण तथा सक्रिय जीवन जी सकें। जबकि राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय मानव विकास को इंगित करते हैं, परन्तु इनमें कुछ अन्य तत्त्व भी सम्मिलित हैं। जैसे- उपभोग, स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा, स्वतंत्रता, सुरक्षा, अहिंसक वातावरण आदि।
2. मानव विकास में किनका योगदान है?
उत्तर – मानव विकास में योगदान देने वाले अनेक आर्थिक कारक हैं- (i) एक लंबा तथा स्वस्थ जीवन बिताना। (ii) शिक्षा, जानकारी तथा ज्ञान पाना। (iii) उच्च जीवन स्तर होना। (iv) स्वतंत्रता, सुरक्षा, शिक्षा आदि मूलभूत अधिकारों का मिलना। (v) समानता तथा मानवीय अधिकारों का मिलना।
3. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर –
(i) यह भावी पीढ़ियों की जरूरतों का ख्याल रखती है।
(ii) यह प्राकृतिक संसाधनों के कुशल प्रयोग को बढ़ावा देती है।
(iii) यह जीवन की गुणवत्ता पर जोर देती है।
4. विकसित तथा अविकसित देशों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर –
विकसित देश अविकसित देश
(i) इन देशों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती है। (i) इन देशों की प्रति व्यक्ति आय कम होती है।
(ii) लोगों का जीवन स्तर ऊँचा होता है। (ii) लोगों का जीवन स्तर निम्न होता है।
(iii) उदाहरण – अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि। (iii) उदाहरण – नेपाल, पाकिस्तान आदि।
5. मानव विकास तथा आर्थिक विकास में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर –
मानव विकास आर्थिक विकास
(i) यह विकास का व्यापक पक्ष है क्योंकि इसमें वित्तीय तथा गैर-वित्तीय पक्षों को भी सम्मिलित किया जाता है। (i) यह विकास की संकीर्ण पक्ष है क्योंकि इसमें केवल वित्तीय पक्ष को लिया जाता है।
(ii) यह मात्रात्मक तथा गुणात्मक विकास की प्रक्रिया है। (ii) इसमें केवल मात्रात्मक विकास सम्मिलित है।
(iii) मानव विकास सभी विकासों का अंतिम लक्ष्य है। (iii) यह मानव विकास को पाने का साधन है।
6. आपके गाँव या शहर या स्थानीय इलाके के विकास के लक्ष्य क्या होने चाहिए?
उत्तर – शहर के विकास के निम्नलिखित लक्ष्य होने चाहिए-(i) सड़कों व परिवहन व्यवस्था का उचित प्रबंध, (ii) जल की उत्तम व्यवस्था, (iii) बिजली की 5 व्यवस्था, (iv) शिक्षा व्यवस्था, (v) सफाई की व्यवस्था ।
7. कुछ ऐसे उदाहरण दीजिए जहाँ आय के अतिरिक्त अन्य कारक हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
उत्तर – धन या द्रव्य से भौतिक वस्तुएँ खरीद कर हमारा जीवन सुखमय बनता है परन्तु हमारे जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू भी हैं। जैसे-मित्रों की भूमिका या नौकरी के लिए अच्छे वेतन के अतिरिक्त नियमित रोजगार, सुरक्षा की भावना, नियमित समय का भी महत्त्व होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. आर्थिक विकास क्या है ? आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में अंतर बताइए।
उत्तर – मानव सभ्यता के विकास के क्रम से ही आर्थिक विकास भी हुआ है। विकास का अर्थ समयानुकूल बदलता रहता है। पहले आर्थिक विकास का अर्थ राष्ट्रीय आय में वृद्धि समझा जाता था। इसके बाद प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि को विकास का सूचक समझा जाने लगा। लेकिन वर्तमान समय में विकास का मतलब प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवन की गुणवत्ता अथवा जीवन-स्तर में सुधार तथा कुपोषण, बेरोजगारी एवं गरीबी में कमी करना समझा जाता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो० रोस्टोव के अनुसार, “आर्थिक विकास एक ओर श्रम-शक्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी ओर जनसंख्या में वृद्धि के बीच का सम्बंध है। प्रो० मेयर एवं वाल्डविन का कहना है कि “आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।” अतः स्पष्ट है कि आर्थिक विकास एक परिवर्तन की प्रक्रिया है जिससे अर्थव्यवस्था के स्वरूप में परिवर्तन होता है एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय भी बदलती रहती है।
आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि में सूक्ष्म अन्तर पाया जाता है। आर्थिक वृद्धि शब्द का प्रयोग विकसित देशों के लिए किया जाता है जबकि आर्थिक विकास शब्द का प्रयोग विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए किया जाता है।

2. भारतीय अर्थव्यवस्था की क्षेत्रक

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. प्रछन्न वेरोजगारी क्या है ? उदाहरण देकर व्याख्या करें।
उत्तर – यह एक परिस्थिति है जिसमें एक प्रक्रिया में आवश्यकता से अधिक श्रमिक काम कर रहे होते हैं। इसमें प्रत्येक व्यक्ति कुछ काम कर रहा है परन्तु किसी को भी पूर्ण रोजगार नहीं प्राप्त है। उदाहरण के लिए एक हैक्टेयर भूमि को जोतने के लिए 10 मजदूरों की आवश्यकता है, परन्तु 10 की अपेक्षा वहाँ 15 मजदूर काम कर रहे हैं। इस परिस्थिति में 5 मजदूर छिपे हुए बेरोजगार हैं। ऐसी अवस्था में यदि अतिरिक्त मजदूरों को हटा भी दिया जाता है तो उत्पादन प्रभावित नहीं होता।
2. आर्थिक गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती है ?
उत्तर –आर्थिक गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत की जाती है-
(i) संगठित क्षेत्रक तथा (ii) असंगठित क्षेत्रक
3. सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रक में तुलना का अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर –
सार्वजनिक क्षेत्रक निजी क्षेत्रक
(i) इसका नियंत्रण तथा प्रबंधन सरकार द्वारा होता है। (i) इसका नियंत्रण तथा प्रबंधन एकल व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होता है।
(ii) इस क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य जन कल्याण होता है। (ii) इसका मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है।
(iii) यह क्षेत्रक लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य खाद्य सुरक्षा आदि मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करता है। (iii) यह क्षेत्रक लोगों को उपभोक्ता वस्तुएँ प्रदान करता है।
(iv) उदाहरण – भारतीय रेलवे, डाकघर तथा बी०एस०एन०एल०। (iv) उदाहरण – रिलायंस, टिस्को आदि।
4. बुनियादी सेवाएँ क्या हैं?
उत्तर – किसी भी देश में अनेक सेवाओं, जैसे-अस्पताल, यशैक्षिक संस्थाएँ, डाक एवं तार सेवा, थाना, कचहरी, ग्रामीण प्रशासनिक कार्यालय, नगर निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कंपनी इत्यादि की आवश्यकता होती है। इन्हें बुनियादी सेवाएँ माना जाता है।
5. असंगठित क्षेत्रक क्या है?
उत्तर – ये वे क्षेत्र हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होते। ये छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों जो अधिकांशतः सरकारी नियंत्रण से बाहर होती हैं, ये निर्मित होते हैं। इस क्षेत्रक के नियम तथा विनियम होते हैं परन्तु उनका अनुपालन नहीं होता।
6. प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियाँ क्या हैं? उदाहरण भी दें।
उत्तर – प्राथमिक क्षेत्रक की गतिविधियों में वे सभी व्यवसाय सम्मिलित हैं, जो कि मनुष्य के प्राकृतिक पर्यावरण से जुड़े हुए हैं। शिकार, मत्स्यन, डेयरी, कृषि, खनन आदि प्राथमिक क्षेत्र की गतिविधियाँ हैं। आइए, इस तथ्य को एक उदाहरण के माध्यम से समझे-पशु पालन अथवा डेयरी प्राथमिक क्षेत्र की एक गतिविधि है। इस गतिविधि में किसान पशुओं की जैविक प्रक्रिया एवं चारा आदि की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। इसका उत्पादन दूध भी एक प्राकृतिक उत्पाद है।
प्राथमिक क्षेत्र की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह अन्य सब गतिविधियों के लिए आधार बनाती है।
7. द्वितीयक क्षेत्र की गतिविधियाँ क्या हैं? उदाहरण भी दें।
उत्तर – द्वितीयक क्षेत्र की गतिविधियों के अंतर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के जरिए अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्राथमिक क्षेत्र का अगला कदम है। कपास से कपड़ा, गन्ने चीनी तथा लौह अयस्क से इस्पात बनाना इस गतिविधि के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। ये सब द्वितीयक क्षेत्र की गतिविधियाँ हैं क्योंकि तेयार माल सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होता, वरन् उसे बनाना पड़ता है, इसलिए विनिर्माण की कोई प्रक्रिया आवश्यक है।
आइए कपड़े का उदाहरण लें। जैसे-कपास का उत्पादन प्रकृति द्वारा होता है, परन्तु हम इसका सीधा प्रयोग नहीं कर सकते। कपास को प्रयोग रूप में परिवर्तित करने के लिए विनिर्माण की कोई प्रक्रिया आवश्यक है। यह प्रक्रिया किसी कारखाने या घर में सामान्य उपकरणों से हो सकती है।
8. तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियाँ क्या हैं? उदाहरण भी दें।
उत्तर – तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियों में सभी सेवाओं वाले व्यवसाय सम्मिलित हैं। परिवहन, संचार, व्यापार, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा प्रबंधन तृतीयक क्षेत्र के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
ये गतिविधियाँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग या मदद करती हैं। इसीलिए इन्हें सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के उद्देश्य क्या है ?
उत्तर –
  1. इस योजना के लक्ष्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति तथा गरीब महिलाओं तक पहुँचना है, जो अत्यधिक गरीब हैं।
  2. उन सभी लोगों, जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, को सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है।
  3. इस योजना के अंतर्गत ग्राम पंचायत सही प्रमाणों के बाद कुछ घरों को पंजीकृत करती है तथा पंजीकृत घरों को रोजगार कार्ड जारी किए गए हैं। यह रोजगार कार्ड एक कानूनी दस्तावेज है, जिससे व्यक्ति को 15 दिन के अंदर रोजगार पाने का अधिकार है। यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में असफल रहती है, तो वह लोगों को रोजगार भत्ता देगी।
2. तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से भिन्न कैसे है? सोदाहरण व्याख्या करें।
उत्तर – ये गतिविधियों प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं, बल्कि उत्पादन-प्रक्रिया में सहयोग या मदद करती हैं। जैसे-प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रकों और ट्रेनों द्वारा परिवहन करने की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी वस्तुओं को गोदामों में भंडारित करने की आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन और व्यापार में सहूलियत के लिए टेलीफोन पर दूसरों से वार्तालाप करने या पत्राचार या बैंकों से कर्ज लेने की भी आवश्यकता होती है। परिवहन, भंडारण, संचार, बैंक सेवाएँ और व्यापार तृतीयक गतिविधियों के कुछ उदाहरण हैं।
3. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर – तृतीयक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण हैं। मैं उपयुक्त कथन से सहमत नहीं हूँ क्योंकि ये गतिविधियाँ प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं, बल्कि उत्पादन-प्रक्रिया में सहयोग या मदद करती हैं। जैसे-प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए ट्रकों और ट्रेनों द्वारा परिवहन करने की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी वस्तुओं को गोदामों में भंडारित करने की आवश्यकता होती है। हमें उत्पादन और व्यापार में सहूलियत के लिए टेलीफोन पर दूसरों से वार्तालाप करने या पत्राचार या बैंकों से कर्ज लेने की भी आवश्यकता होती है। परिवहन, भंडारण, संचार।

3. मुद्रा और साख

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. वस्तु विनिमय प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – वह प्रणाली जिसमें मुद्रा का उपयोग किये बिना लोग अपनी आवश्यकता की वस्तुओं की पूर्ति वस्तुओं के विनिमय के माध्यम से करते हैं, विनिमय प्रणली के नाम से जानी जाती है। यह प्रणाली उस समय प्रचलित थी जब मुद्रा का प्रचलन प्रारम्भ नहीं हुआ था।
2. ‘वस्तु विनिमय प्रणाली’ के दोष/कठिनाईयाँ बताएँ।
उत्तर – वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष अथवा कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं-
(i) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कमी।
(ii) मूल्य के समान मापन की कमी।
(iii) स्थगित भुगतान के मानक की कमी।
(iv) मूल्य संचय की कमी।
3. व्यावसायिक अथवा व्यापारिक बैंक किसे कहते हैं?
उत्तर – व्यावसायिक बैंक वह संस्था है जो लाभ के उद्देश्य से मुद्रा के जमा, लेन-देन तथा ॠण की सेवाएं प्रदान करता है। इसके लिए वह जनता, फर्मों तथा सरकार से जमा स्वीकार करता है। उनके चेक या आदेश पर भुगतान (आहरण) करता है। जमा का प्रयोग ऋण या निवेश के लिए करता है। जमा का प्रयोग ॠण या निवेश के लिए करता है।
4. ‘केन्द्रीय बैंक’ से क्या अभिप्राय है? हमारे देश के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखें।
उत्तर – देश की मौद्रिक-व्यवस्था के शीर्ष पर स्थित बैंक को केन्द्रीय बैंक कहा जाता है, जिसका मुख्य कार्य देश की मौद्रिक नीतियों की रचना, संचालन, नियमन, निर्देशन और नियंत्रण होता है। हमारे देश के केन्द्रीय बैंक का नाम-रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है।
5. देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर – देश की अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका-
(i) बैंकों में लोग अपनी बचत को जमा करते हैं जहाँ उस पर मार्ग प्रशस्त करता है।
(ii) बैंक जरूरतमंदों को ऋण देकर उनके आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
(iii) बैंकों में अधिक लोग काम में लगे होते हैं। इस प्रकार बैंक बेरोजगारी की समस्या को हल करने में भी मदद करते हैं।
(iv) बैंक देश में मुद्रा के परिचालन को नियंत्रित करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?
उत्तर – भारतीय रिजर्व बैंक निम्नलिखित प्रकार से अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नजर रखता है-
  1. बैंको को अपनी जमा राशि का 15 प्रतिशत भाग नकद के रूप में रखना पड़ता है। भारतीय रिजर्व बैंक देखता है कि क्या बैंक इतनी राशि नकद के रूप में रख रहे हैं या नहीं।
  2. भारतीय रिजर्व बैंक बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों पर भी निगरानी रखता है ताकि वह अमीर और गरीब में किसी प्रकार का भेदभाव न करें और सबको समान रूप से ऋण दें। बैंकों के लिए आवश्यक है कि वह समय-समय की जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक को दे। इस प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों पर निगरानी रखता है ताकि सभी बैंक बिना किसी भेदभाव के सबको समान शतों पर ऋण सुविधा प्रदान करे।
2. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर – मुद्रा वस्तु विनिमय प्रणाली में मध्यवर्ती भूमिका प्रदान करके आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या सुलझाती है। जैसे एक व्यक्ति के पास कोई भी वस्तु नहीं है परंतु वह बाजार से कपड़ा खरीदना चाहता है तो मुद्रा का प्रयोग कर वह कपड़ा खरीद सकता है। इस प्रकार दोहरे संयोग की समस्या का समाधान हो जाता है।
3. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं?
उत्तर – अतिरिक्त मुद्रा वाले लोग अपना अतिरिक्त धन बैंकों में जमा करवा देते हैं जहाँ से उन्हें ब्याज मिलता है और धन भी सुरक्षित रहता है। बैंक जमा राशि का 15 प्रतिशत अपने पास नकद रखते हैं और शेष राशि को ऋण देने के लिए प्रयोग करते हैं। जरूतरमंद व्यक्ति बैंकों से उधार लेते हैं। बैंक जमाकर्ता को जो ब्याज देता है उधार देने वालों से उससे अधिक ब्याज लेता है। ब्याज में अंतर बैंक की आय का प्रमुख स्रोत होता है। प्रकार बैंक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच मध्यस्थता करता है।
4. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?
उत्तर – भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर निम्नलिखित प्रकार से नजर रखता है-
  1. देश की मौद्रिक नीति का निर्माण रिजर्व बैंक के द्वारा होता है।
  2. प्रत्येक व्यावसायिक बैंक को एक निश्चित अनुपात में नगदी रिजर्व भारतीय रिजर्व बैंक में रखनी पड़ती है।
  3. व्याज-दर, बैंक दर, नकद रिजर्व अनुपात (C.R.R.), रेपो रेट इत्यादि का निर्धारण रिजर्व बैंक के द्वारा किया जाता है।
  4. रिजर्व बैंक इस बात पर नहर रखता है कि बड़े उद्योगपतियों के अतिरिक्त छोटे किसानों एवं उद्यमियों को भी कर्ज मिले। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि अर्थव्यवस्था की मौद्रिक गतिविधियों पर नियंत्रण के बिना आर्थिक विकास संभव नहीं है।
5. व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – व्यावसायिक बैंक का तात्पर्य उन बैंकों से है जो देश में आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य करते हैं। किसी भी देश की बैंकिंग प्रणाली में व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। अर्थव्यवस्था की प्रगति एवं जनता की सुविधा के लिए ये बैंक अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। व्यावसायिक बैंकों के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
  1. जमा प्राप्त करना : व्यावसायिक बैंकों का प्रधान कार्य जनता से जमा प्राप्त करना है। लोग अपनी आय का वह हिस्सा जो उपभोग पर खर्च करने के बाद बचाते हैं, बैंकों में जमा करते हैं जिसके बदले बैंक उन्हें ब्याज देती है। पुनः जमा राशि को कर्ज के रूप में देकर मुनाफा कमाती है। व्यावसायिक बैंकों में निम्नलिखित चार प्रकार के खातों में रकम जमा किया जाता है-(a) स्थायी जमा खाता (b) चालू खाता (c) बचत बैंक खाता (d) गोलक खाता।
  2. ऋण देना : व्यावसायिक बैंक विभिन्न उत्पादक कार्यों के लिए अपने ग्राहकों को ऋण प्रदान करते हैं। व्यावसायिक बैंकों का ऋण प्रायः अल्पकालीन होता है। बैंक अपने ग्राहकों को दिये गये ऋण पर उनसे ब्याज वसूलते हैं। व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित प्रकार के ऋण देते हैं–(a) अधिविकर्ष (b) नकद साख (c) ऋण एवं अग्रिम (d) विनिमय बिलों अथवा हुण्डियों का बट्टा करना (c) याचना तथा अल्प-सूचना ऋण।
  3. सामान्य उपयोगिता सम्बंधी कार्य : ऊपर लिखित मुख्य कार्यों के अलावा बैंक कुछ गौण कार्य भी करता है जिसे सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है। वे इस प्रकार हैं-(a) यात्री चेक एवं साख प्रमाण-पत्र जारी करना (b) लॉकर की सुविधा देना (c) ATM एवं क्रेडिट कार्ड सुविधा (d) व्यावसायिक सूचना तथा आर्थिक आँकड़े एकत्रित करना (e) विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय (f) मुद्रा को एक जगह से दूसरी जगह पर भेजने की सुविधा प्रदान करना।
  4. एजेन्सी के कार्य : व्यावसायिक बैंक ग्राहकों की एजेन्सी के रूप में भी कार्य करते हैं। इसके अन्तर्गत बैंक-(a) प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय (b) चेक, बिल एवं ड्राफ्ट का संकलन (c) ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण (d) ब्याज, ऋण की किस्त, बीमे की किस्त का भुगतान (e) ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ सम्पादित करती है।

4. वैश्विकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय या एकीकरण किया जाता है जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी और श्रम या मानवीय पूँजी का निरंतर प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण के अन्तर्गत पूँजी, वस्तु एवं प्रौद्योगिकी का निर्बाध रूप से एक देश से दूसरे देश में प्रवाह होता है। ब्रैंको मिलनोविक के अनुसार वैश्वीकरण का अर्थ पूँजी, वस्तु, प्रौद्योगिकी एवं लोगों के विचार का स्वतंत्र प्रवाह होता है। कोई भी ऐसा वैश्वीकरण आंशिक ही माना जाएगा जिसमें मानवीय संपदा के प्रवाह में रुकावट आये।
2. विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेश में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर –
विदेशी व्यापार विदेशी निवेश
(i) विदेशी व्यापार में वस्तुएँ तथा सेवाएँ एक देश से दूसरे में जाती है (i) विदेशी निवेश में बहुराष्ट्रीय कंपनी अथवा एक देश दूसरे देश में निवेश करता है।
(ii) इसके फलस्वरूप विभिन्न देशों के बाजारों का एकीकरण होता है। (ii) यह औद्योगीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है।
3. वैश्वीकरण का प्रभाव एक समान नहीं है। इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर –
  1. वैश्वीकरण गरीबी की समस्या का समाधान करने में असफल रहा।
  2. वैश्वीकरण तथा प्रतिस्पर्धा के दबाव ने श्रमिकों के जीवन में बहुत परिवर्तन ला दिया है। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा का सामना करने के कारण अधिकतर नियोक्ता आजकल श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलापन पसंद करते हैं। इसका अर्थ है कि श्रमिकों के रोजगार सुरक्षित नहीं है।
  3. केवल संपन्न तथा शिक्षित लोगों ने ही वैश्वीकरण से लाभ उठाया है।
  4. वैश्वीकरण ने अमीर तथा गरीब के अंतर को बढ़ा दिया है।
4. भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? इन अवरोधकों को सरकार क्यों हटाना चाहती है?
उत्तर – सरकार ने विदेशी प्रतिस्पर्धा से देश में उत्पादकों की रक्षा करने के लिए प्रतिबंध लगाए। इस समय उद्योगों का उदय हो रहा था और इस अवस्था में आयात से प्रतिस्पर्धा इन उद्योगों को बढ़ने नहीं देती।
  1. भारतीय कंपनियों को और अधिक कुशल बनाने के लिए प्रतिबंध हटा लिया गए।
  2. भारतीय कंपनियों का प्रतिस्पर्धा में आना होगा ।
  3. अब कंपनियाँ नई प्रौद्योगिकी आयात करने के लिए स्वतंत्र हैं।
5. श्रम कानूनों में लचीलापन कंपनियों में कैसे मदद करेगा?
उत्तर – संगठित क्षेत्र की कपिनयों को कुछ नियमों का अनुपालन करना पड़ता है। जिसका उद्देश्य श्रमिक अधिकारों का संरक्षण करना है। हाल के वर्षों में सरकार ने कंपनियों को अनेक नियमों से छूट लेने की अनुमति दे दी है। अब नियमित आधार पर श्रमिकों को रोजगार देने के बजाए कंपनियों में जब काम का अधिक दबाव होता है तो लोचदार ढंग से छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को कार्य पर रखती हैं। कंपनी में श्रम की लागत में कटौती करने के लिए ऐसा किया जाता है। फिर भी विदेशी कंपनियाँ अभी भी संतुष्ट नहीं है और श्रम कानूनों में और अधिक लचीलेपन की माँग कर रही हैं।
6. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ क्या हैं? उदाहरण की सहायता से समझाएँ।
उत्तर – एक बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण अथवा स्वामित्व रखती है। उदाहरण के लिए-पेप्सी, सैमसंग, ओनिडा, ग्लैक्सो, पॉडस, एल०जी० आदि।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की प्रक्रियाएँ अनेक देशों में फैली हुई हैं। उनकी मूल कंपनी एक देश में स्थित होती है तथा सहायक कंपनियाँ विश्व के अनेक देशों में फैली होती हैं। उदाहरण के लिए आई०टी०टी०, औद्योगिक उपकरण बनाने वाली एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुसंधान केंद्र में अपने उत्पादों का डिजाइन तैयार करती है। उसके पुर्जे चीन में विनिर्मित होते हैं। फिर जहाज में लादकर मेक्सिको और पूर्वी यूरोप ले जाया जाता है और तैयार उत्पाद को विश्व भर में बेचा जाता है। इस बीच कंपनी की ग्राहक सेवा का भारत में स्थित कॉल सेंटरों के माध्यम से संचालन किया जाता।
7. व्यापार का क्या महत्व है?
उत्तर – (i) यह उत्पादकों को घरेलू बाजार से परे पहुँचने के अवसर प्रदान करता है। (ii) वस्तुएँ तथा सेवाएँ एक देश से दूसरे दों में पहुँचती हैं। (iii) बाजार में वस्तुओं के विकल्पों में वृद्धि होती है। (iv) विभिन्न बाजारों में एक ही प्रकार की वस्तुओं के मूल्य समान हो जाते हैं। (v) विभिन्न उत्पादकों में परस्पर प्रतिस्पर्धा होती है।
8. उदारीकरण से क्या अभिप्राय है? इससे व्यापारियों को क्या लाभ पहुँचा ?
उत्तर – (क) सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहा जाता है।
(ख) (i) उदारीकरण के पश्चात् व्यापारी मुक्त रूप से निर्णय ले सकते हैं कि उन्हें क्या आयात या निर्यात करना है। (ii) व्यापार पर सरकार का नियंत्रण कम हो गया। (iii) विदेशी कंपनियां अपने कार्यालय और कारखाने भारत में स्थापित कर सकती हैं।
9. प्रतिस्पर्धा से लोगों को क्या लाभ हुआ है ?
उत्तर – प्रतिस्पर्धा हर क्षेत्र में गुणवत्ता में सुधार लाती है। व्यापार या वस्तुओं के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप हर उत्पादक अपने उत्पाद को सुधारने व लोगों की आवश्यकता के अनुकूल बनाने का प्रयत्न करता है। उत्पादक उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कम कीमत, गुणवत्ता में सुधार तथा बाजार में उत्पाद की उपलब्धता का ध्यान रखेगा। इससे उपभोक्ताओं या लोगों को न केवल विकल्प मिलेगा बल्कि अच्छे उत्पादों की प्राप्ति भी होगी।
10. विश्व व्यापार संगठन (WTO) क्या है? यह कब और क्यों स्थापित किया गया?
उत्तर – विश्व व्यापार संगठन एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना जनवरी, 1995 ई० में की गई। इस संगठन का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। वर्तमान समय में 149 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है। यह संगठन सभी देशों को मुक्त व्यापार की सुविधा देता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. ‘वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं?’ अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – वैश्वीकरण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध की भावना का संचार हो। वैश्वीकरण की भावना से वैश्विक आधार पर तीव्र एकीकरण का वातावरण निर्मित होता है। विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, निवेश और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप ही सम्भव हुआ। आज सम्पूर्ण विश्व परस्पर काफी निकटता अनुभव सभी देश विश्व-परिवार के सदस्य के समान हो गए हैं।
वैश्वीकरण द्वारा मुख्य रूप से निम्नांकित उपलब्धियाँ विश्व स्तर पर परिलक्षित हुई है –
(i) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विकास
(ii) प्रौद्योगिकी का विकास
(iii) संचार तथा परिवहन के साधनों का विकास।
2. दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किस प्रकार उत्पादन या उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती है।
उत्तर – दूसरे देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ निम्न प्रकार से उत्पादन या उत्पादन पर नियंत्रण स्थापित करती है- (i) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूसरे देशों में उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं। विशेष रूप से जहाँ पर बाजार नजदीक हो और कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम आदि उपलब्ध हो। (ii) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उत्पादन के लिए कार्यालयों और कारखानों की स्थापना करती है। (iii) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विभिन्न देशों की स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती है। कई बार वह स्थानीय कंपनियों को खरीदकर उत्पादन का प्रसार करती हैं। (iv) बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का ऑर्डर देती हैं और जिन्हें अपने ब्रांड के नाम से बेचती हैं।
3. व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण वैश्वीकरण प्रक्रिया में कैसे सहायता पहुंचाता है ?
उत्तर – उदारीकरण का अर्थ है- उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में उदारीकरण नीति को अपनाना। व्यापार और निवेश नीतियों के उदारीकरण ने वैश्वीकरण प्रक्रिया में अनेक प्रकार से सहायता पहुँचाई है-
  1. 1991 से, भारत सरकार ने विदेश व्यापार तथा विदेश निवेश के प्रति उदारीकरण की नीति को अपनाया है। विदेश निवेश तथा विदेश व्यापार पर से प्रतिबंधों को हटा लेने से विदेशी कंपनियाँ यहाँ अपने कारखाने तथा कार्यालय स्थापित कर रही हैं। इसी प्रकार भारतीय कंपनियाँ भी अपने कारखाने तथा कार्यालय अन्य देशों में स्थापित कर रही हैं।
  2. उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारत तथा विदेश के व्यवसायी यह निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं कि उन्हें क्या उत्पादित करना है, क्या आयात अथवा निर्यात करना है।
  3. व्यापार के उदारीकरण तथा निवेश के परिणामस्वरूप भारत सरकार ने अनेक विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना की जहाँ विदेशी कंपनियों के लिए सब प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराई तथा आरंभिक पाँच वर्षों के लिए करों में छूट दी गई।
  4. विदेशी कंपनियों को श्रम-कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति दे दी। ताकि वे छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को काम पर रख सकें तथा अपने उत्पादन की लागत में कटौती कर सकें। व्यापार के उदारीकरण तथा निवेश नीतियों के सभी उपरलिखित कदमों ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया की बहुत मदद की है।
4. विकसित देश विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण क्यों चाहते हैं? क्या आप मानते हैं कि विकासशील देशों को भी बदले में ऐसी माँग करनी चाहिए?
उत्तर –
  1. विकसित देश ऊँची दर का लाभ अर्जित करने के लिए विकासशील देशों में निवेश करते हैं।
  2. विकसित देशों के अनुसार व्यापार अवरोधक हानिकारक होते हैं क्योंकि ये व्यापार तथा निवेश में रुकावट डालते हैं।
    विकसित देश चाहते हैं कि सभी विकासशील देश अपने व्यापार की नीतियों को उदार बनाएँ परंतु विकसित देशों ने अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है। विकासशील देश समान हितों वाले अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर विकसित देशों के प्रभाव का विरोध कर सकते हैं। उचित तथा सही नियमों के लिए वे विश्व व्यापार संगठन तथा अन्य संगठनों से बातचीत कर सकते हैं।
5. श्रमिकों पर वैश्वीकरण तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रभाव का उल्लेख करें।
उत्तर –
  1. वैश्वीकरण तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण केवल कुशल तथा शिक्षित श्रमिकों को लाभ हुआ है। जहाँ पहले कारखाने श्रमिकों को स्थायी आधार पर रोजगार देते थे, वहीं वे अब स्थायी रोजगार देते हैं।
  2. श्रमिकों को बहुत लंबे कार्य-घंटों तक काम करना पड़ता है और अत्यधिक माँग की अवधि में नियमित रूप से रात में भी काम करना पड़ता है।
  3. हालांकि वस्त्र निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अधिक लाभ कमाने में मदद मिली है, परन्तु वैश्वीकरण के कारण मिले लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं दिया गया है।
  4. यही नहीं, संगठित क्षेत्र में क्रमशः कार्य परिस्थितियाँ असंगठित क्षेत्र के समान होती जा रही हैं। संगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को अब कोई संरक्षण और लाभ नहीं मिलता है, जिसका वे पहले उपभोग करते थे।

5. उपभोक्ता अधिकार

अतिलघु / लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. उपभोक्ता के किन्हीं तीन अधिकारों को बताइए और प्रत्येक पर कुछ पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर – उपभोक्ता के तीन अधिकार हैं-
(i) वस्तु की गुणवत्ता की जाँच करने का।
(ii) उत्पादन तिथि ज्ञात करने का।
(iii) तौल की जानकारी प्राप्त करने का।
2. उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 के निर्माण की जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर –
(i) त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित करने के लिए।
(ii) उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों की जानकारी देना।
(iii) उपभोक्ताओं के शोषण को कम करना।
3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की जरूरत का वर्णन करें।
उत्तर –
  1. एक कंपनी ने अपने उत्पाद को माता के दूध से बेहतर बताया और वर्षा तक विश्व भर में बचा। परन्तु वर्षों के अंत में संघर्ष के पश्चात् उनको स्वीकार करना पड़ा कि उनका दावा गलत था।
  2. सिगरेट कंपिनयों को भी यह मनवाने के लिए कि सिगरेट से कैंसर होता है, काफी समय लगा। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि गलत प्रचार के द्वारा कंपनियाँ अपने उत्पाद बेचती हैं परन्तु अगर उपभोक्ता जागरूक है तो वह इस प्रकार के गलत प्रचार के बहकावे में नहीं आ सकता। उपभोक्ता को अपने अधिकारों के बारे में पता होगा तो कोई व्यवसायी उसका शोषण नहीं कर सकेगा। अतः उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता है।
4. उपभोक्ता अधिकार के रूप में ‘सुरक्षा के अधिकार’ का उल्लेख करें।
उत्तर – जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं, तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है, क्योंकि ये जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक होते हैं। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और विनियमों का पालन करें। ऐसी बहुत सी वस्तुएँ और सेवाएँ हैं, जिन्हें हम खरीदते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से खास सावधानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए प्रेशर कुकर में एक सेफ्टी वाल्व होता है, जो यदि खराब हो तो भयंकर दुर्घटना का कारण हो सकता है। सेफ्टी बाल्व के निर्माता को इसकी उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए।
5. उपभोक्ता अधिकार के रूप में ‘चयन के अधिकार’ का उल्लेख करें।
उत्तर – उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं को पाने का अधिकार है। यदि एकल विक्रेता है तो उपभोक्ताओं को अधिकार है कि उन्हें उचित मूल्य पर संतोषजनक गुणवत्ता भी मिले। यह अधिकार हमें विश्वास दिलाता है कि कोई उत्पादक उपभोक्ता को किसी विशेष वस्तु अथवा ब्रांड को खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
6. उपभोक्ता अधिकार के रूप में ‘क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार’ के बारे में उल्लेख करें।
उत्तर – यह सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है। अनुचित व्यापार कार्यों तथा शोषण के विरुद्ध उपभोक्ता को क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार है। यदि एक उपभोक्ता को कोई क्षति पहुँचाई जाती है तो क्षति की मात्रा के आधार पर उसे क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार होता है।
7. उपभोक्ता अदालतें क्या होती हैं? उनका महत्त्व क्या है ?
उत्तर – भारत में उपभोक्ता आंदोलन ने विभिन्न संगठनों के निर्माण में पहल की है जिन्हें सामान्यतया उपभोक्ता अदालत या उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के नाम से जाना जाता है। ये उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन करती हैं कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज कराएँ। बहुत से अवसरों पर ये उपभोक्ता अदालत में व्यक्ति विशेष (उपभोक्ता) का प्रतिनिधित्व भी करती हैं। ये स्वयंसेवी संगठन जनता में जागरुकता पैदा करने के लिए सरकार से वित्तीय सहयोग भी प्राप्त करते हैं।
8. उपभोक्ता के कर्त्तव्यों के बारे में लिखें।
उत्तर – उपभोक्ता जब कोई वस्तु खरीदता है तो यह आवश्यक है कि वह उस वस्तु की रसीद अवश्य ले ले एवं वस्तु की गुणवत्ता, ब्रांड, मात्रा, शुद्धता, मानक, माप-तौल उत्पाद/निर्माण की तिथि, उपभोग की अंतिम तिथि, गारंटी या वारंटी पेपर, गुणवत्ता का निशान जैसे आई०एस०आई० एगमार्क, बुलमार्क, हॉलमार्क और मूल्य की दृष्टि से किसी प्रकार के दोष, अपूर्णता पाते हैं तो सेवाएँ लेते समय अतिरिक्त सतर्कता एवं जागरूकता रखें।
9. उपभोक्ता शोषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – वह व्यक्ति जो बाजार में कोई वस्तु खरीदता है अथवा उस सेवा के लिए भुगतान करता है उपभोक्ता कहलाता है। जब एक उपभोक्ता किसी तरीके से धोखा पाते हैं, या तो दुकानदार या उत्पादक द्वारा कम गुणवत्ता अथवा घटिया वस्तुएँ उसे दी जाएँ तथा इन वस्तुओं और सेवाओं के लिए अधिक मूल्य लिया जाए, तो इसे उपभोक्ता शोषण कहते हैं।
10. उपभोक्ता कौन है ? संक्षेप में वताइए।
उत्तर – उपभोक्ता बाजार का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है जो बाजार में उपलब्ध वस्तुओं का अपने हित में उपयोग करता है। यह किसी भी अर्थव्यवस्था के संचालन में सहायक अंग होता है अर्थात् अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने में यह सहायता प्रदान करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

1. भारत में उपभोगता आन्दोलन की शुरूआत किन कारणों से हुई? इससे विकास के बारे में लिखें।
उत्तर –
  1. भारत में ‘सामाजिक बल’ के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
  2. अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों व खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।
  3. 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से संबंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी के आयोजन का कार्य करने लगी थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाया।
  4. हाल में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि निजी व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं के शोषण के अनेक मामले सामने आए। विभिन्न उपभोक्ता दलों की प्रक्रियाओं ने भारत सरकार को उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 पारित करने पर मजबूर किया जो कोपरा (COPRA) नाम से प्रसिद्ध है।
2. बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
उत्तर –
  1. कमजोर उपभोक्ता–नियमों तथा विनियमों के बिना उपभोक्ता विक्रेताओं के विरुद्ध लड़ने के लिए बिना हथियारों के हो जाएँगे। कमजोर नियमों तथा विनियमों के कारण निजी उपभोक्ता अपने आप को कमजोर स्थिति में पाता है। खरीदी गई वस्तु या सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है, तो विक्रेता सारा उत्तरदायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है।
  2. उपभोक्ताओं का शोषणबाजार में उपभोक्ताओं का शोषण कई रूपों में होता है। उदाहरणार्थं कभी-कभी व्यापारी अनुचित व्यापार करने लग जाते हैं, जैसे दुकानदार उचित वजन से कम वजन तोलते हैं या व्यापारी उन शुल्कों को जोड़ देते हैं, जिनका वर्णन पहले न किया गया हो या मिलावटी/दोषपूर्ण वस्तुएँ बेची जाती हैं, ऐसी परिस्थितियों से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए नियमों और विनियमों की आवश्यकता है।
  3. अनुचित बाजार-जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं और उपभोक्ता कम मात्रा में खरीददारी करते हैं और बिखरे हुए होते हैं, तो बाजार उचित तरीके से कार्य नहीं करता है। विशेष रूप से यह स्थिति तब होती है, जब इन वस्तुओं का उत्पादन बड़ी कंपनियाँ कर रही हों। अधिक पूँजीवाली, शक्तिशाली और समृद्ध कंपनियाँ विभिन्न प्रकार से चालाकी पूर्वक बाजार को प्रभावित कर सकती हैं।
  4. गलत सूचना-उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए ये कंपनियाँ समय-समय पर मीडिया और अन्य स्रोतों से गलत सूचना देते हैं।
3. कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
उत्तर –
  1. सीमित जानकारी- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादकों तथा विक्रेताओं को बाजार की माँग और पूर्ति के लिए वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित करने की छूट होती है। कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं होता। ऐसी स्थिति में उपभोक्ताओं को उत्पाद के बारे में पूर्ण तथा सही जानकारी देना बहुत महत्तवपूर्ण होता है। उत्पादों के विभिन्न पक्षों जैसे – मूल्य, गुणवत्ता, बनावट, प्रयोग की शर्तों आदि की जानकारी न होने पर उपभोक्ता गलत चुनाव कर लेता है तथा धन गंवा बैठता है।
  2. गलत जानकारी – कंपनियाँ उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए विज्ञापनों पर बहुत अधिक धन खर्च करती हैं। वे उपभोक्ताओं को अपने उत्पादों की जानकारी देना चाहती हैं जो कि वास्तव में झूठी जानकारी होती है।
  3. सीमित प्रतिस्पर्धा-उद्योगों के विकासशील होने के कारण बाजार में प्रतिस्पर्धा की कमी होती है, जो कि उपभोक्ताओं के शोषण का कारणबनती है।
  4. उपभोक्ताओं में निरक्षरता तथा अज्ञानता – अधिकांश विकासशील तथा अल्पविकसित अर्थ व्यवस्थाओं में निरक्षरता की दर बहुत अधिक होती है, इसलिए उत्पादक उपभोक्ताओं को आसानी से ठग लेते हैं।
  5. कम विक्रेता-जब उत्पादक थोड़े और शक्तिशाली होते हैं तो बाजार उचित तरीके से काम नहीं करते। यदि उत्पादक शक्तिशाली होते हैं तो वे मूल्य, गुणवत्ता और आपूर्ति पर नियंत्रण कर सकते हैं।
4. उपभोक्ताओं के कौन-कौन अधिकार हैं? प्रत्येक अधिकार को उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर – भारत सरकार ने सन् 1986 ई० में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया। इस अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को शोषण, परेशानी अथवा नुकसान से बचाना है। यह अधिनियम वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों पर लागू होता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को निम्नलिखित अधिकार दिये गए हैं-
  1. सुरक्षा का अधिकार : इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को ऐसे माल के विपणन के विरुद्ध संरक्षित किन जाने का अधिकार है जो जीवन और सम्पत्ति के लिए हानिकारक है।
  2. सूचित किये जाने का अधिकार : उपभोक्ताओं का दूसरा अधिकार सूचना का अधिकार है। वस्तुओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं मूल्य के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार है।
  3. चयन करने का अधिकार : उपभोक्ताओं का यह अधिकार है कि वह अलग-अलग निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्रांड, गुण; रंग, किस्म, आकार या मूल्य की वस्तुओं में किसी भी वस्तु का चयन अपनी पसंद के अनुसार करें।
  4. सुने जाने का अधिकार : उपभोक्ता को यह अधिकार है कि वह अपने हितों को प्रभावित करने वाली बातों को उपयुक्त मंचों के सामने प्रस्तुतकरे।
5. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की मुख्य विशेषताओं को लिखें।
उत्तर – भारत सरकार द्वारा पारित उपभोक्ता की सुरक्षा और संरक्षण हेतु, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक महत्वपूर्ण अधिनियम है, जिसमें उपभोक्ता को बाजार में बेची जानेवाली वस्तुओं के संबंध में संरक्षण का अधिकार दिया गया है।
उपभोक्ता संरक्षण के दायरे में सभी वस्तुओं सेवाओं तथा व्यक्तियों, चाहे वह निजी क्षेत्र के हो या सार्वजनिक क्षेत्र को शामिल किया जाता है। इसके तहत उपभोक्ताओं को यह जानने का अधिकार होता है कि वह वस्तु की सेवा की गुणवत्ता, परिणाम क्षमता, शुद्धता, मानक और मूल्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके। इसके अतिरिक्त यह भी अधिकार है कि वह इस बात की भी परख कर लें कि उसे जो वस्तु या सेवा मिल रही है, वह खतरनाक तो नहीं है, ताकि वह अपना बचाव कर सके। उपभोक्ता किसी भी टेलीफोन या मोबाइल से मुफ्त में उपभोक्ता संरक्षण संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकता है।

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