मैडम मैरी क्यूरी का जीवन परिचय | Marie Curie Biography In Hindi
मैडम मैरी क्यूरी का जीवन परिचय | Marie Curie Biography In Hindi
मैरी क्यूरी
(7.11.1867 – 4.7.1934)
जीवन में किसी चीज से भयभीत होने की नहीं, उसे केवल समझने की आवश्यकता है। अतः यह अधिक समझने का समय है, ताकि हम कम भयभीत हों ।
सन् 1903 में नोबेल पुरस्कार से अलंकृत होनेवाली वह पहली महिला वैज्ञानिक थीं । इसके अतिरिक्त दो नोबेल पुरस्कार पानेवाली भी वह एकमात्र महिला थीं। दूसरी बार उन्हें यह पुरस्कार सन् 1911 में मिला और यह भी कि कई विज्ञान विषयों में पुरस्कार पाने वाली वह प्रथम महिला थीं। मैरी स्क्लोडोव्सका क्यूरी पोलैंड में जनमी फ्रांसीसी रसायनज्ञ एवं भौतिकीविद् ने अपने पति पियरे क्यूरी के साथ मिलकर विश्व को रेडियोएक्टिव की सौगात भी दी थी ।
मारिया सैलोमिया स्क्लोडोव्सका के रूप में उनका जन्म 7 नवंबर, 1867 को पोलैंड के वारसा में हुआ था, जो तत्कालीन रूसी साम्राज्य का एक अंग था । वह व्लादिस्लाव एवं ब्रोनिस्लावा स्क्लोडोव्सका की पाँचवीं एवं सबसे छोटी संतान थीं; उनकी तीन अन्य पुत्रियों— जोफिया ब्रोनिस्लावा तथा हेलेना एवं एक पुत्र जोजफ था ।
मैरी के नाना जोजफ स्क्लोडोव्सकी को पोलिश साहित्य की प्रमुख हस्ती बोलेस्लाव को पढ़ाने का गौरव प्राप्त था । मारिया के पेरेंट्स के दोनों परिवार अत्यंत देशभक्त थे | पोलिश राष्ट्रीय अभ्युदय, मुख्यतया जनवरी, 1863-64 के अभ्युत्थान के दौरान उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने देश को रूसी साम्राज्य के पंजे से मुक्त कराने के लिए दान कर दी थी ।
मैरी के पिता व्लादिस्लाव गणित एवं भौतिकी के अध्यापक होने के साथ-साथ कुछ समय के लिए वारसा की दो व्यायामशालाओं के निदेशक भी थे। पोलैंड के विद्यालयों में जब प्रयोगशालाएँ बंद कर दी गईं तो व्लादिस्लाव अपने बच्चों को प्रयोग सिखाने हेतु सारे उपकरणों को अपने घर उठा लाए। बाद में रूसी अधिकारियों ने उन्हें पोलैंडवादी रवैए के कारण बर्खास्त कर दिया। इससे परिवार की आय काफी हद तक प्रभावित हुई और वे लगभग कंगाल हो गए।
मैरी की माँ ब्रोनिस्लावा भी एक शिक्षिका थीं और वारसा के एक कन्या आवासीय विद्यालय की प्रमुख थीं, परंतु मैरी के जन्म के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी । वे कैथोलिक धर्मावलंबी थीं, जबकि उनके पति नास्तिक थे । मैरी जब 10 वर्ष की थीं, उनकी सबसे बड़ी बहन जोफिया की टाइफस से मात्र 15 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। दो वर्ष बाद टीवी की बीमारी से उनकी माँ भी चल बसीं।
दो मौतों के बाद मैरी के मन में धर्म के प्रति अनास्था का भाव जाग्रत् हुआ और उन्होंने कैथोलिकवाद को पूरी तरह त्याग दिया।
वर्ष 1877 में मैरी ने एक बोर्डिंग स्कूल में जाना प्रारंभ किया, जिसके बाद उन्होंने लड़कियों की व्यायामशाला में प्रवेश ले लिया। 12 जून, 1883 को सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने अपना कोर्स पूरा कर लिया, जिसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक भी प्रदान किया गया।
अगले दो वर्ष मैरी ने अपने रिश्तेदारों के साथ बिताए और उसके बाद अपने पिता के पास वारसा चली गईं। वे उच्च शिक्षा हेतु आवेदन करने में असमर्थ थीं, क्योंकि उन दिनों लड़कियों को अधिक पढ़ने की अनुमति नहीं दी जाती थी, लेकिन शीघ्र ही उन्हें और उनकी बड़ी बहन ब्रानिस्लावा को फ्लाइंग यूनिवर्सिटी नामक एक संस्थान मिल गया, जिसमें लड़कियों को प्रवेश दिया जाता था। वह ऐसा संगठन था, जो रूस के विरुद्ध पोलैंडनिष्ठ पाठ्यक्रम संचालित करता था ।
यूनिवर्सिटी में कुछ समय बिताने के बाद मैरी की बड़ी बहन ब्रोनिस्लावा ने मेडिकल शिक्षा हेतु पेरिस जाने का प्रबंध कर लिया। इस बीच मैरी ने अपनी बहन को आर्थिक सहायता देने के इरादे से वारसा में अध्यापिका (गवर्नेस) के रूप में काम करने का निर्णय ले लिया। इसके बाद वे मध्य पोलैंड के पूर्वी भाग में गवर्नेस के रूप में सुजुकी चली गईं। वहाँ अपने पिता के रिश्तेदारों के यहाँ अध्यापिका बन गईं। उसी दौरान उन्हें मोरावस्की के पुत्र काजीमिर्ज मोरावस्की से प्यार हो गया। परिवार ने उनके संबंधों का कठोरता से विरोध किया और काजीमिर्ज ने भी उस मामले में मैरी का अधिक साथ नहीं दिया, अत: उनका प्यार समय से पूर्व ही समाप्त हो गया, वरना उनकी प्रेम कहानी बड़ी सुंदर होती। काजीमिर्ज ने अपने भविष्य पर ध्यान देना प्रारंभ कर दिया और वह क्राकोव विश्वविद्यालय में गणित के प्रसिद्ध प्रोफेसर वन गए।
सन् 1890 में मैरी की बहन ब्रोनिस्लावा ने पेरिस के सामाजिक कार्यकर्ता एवं जानेमाने फिजीशियन (चिकित्सक) काजीमिर्ज ड्लुस्की के साथ विवाह कर लिया। उन्होंने मैरी को पेरिस आने का निमंत्रण दिया, परंतु अपने कॉलेज की फीस का प्रबंध न कर पाने के कारण मैरी ने उनके पास जाने से इनकार कर दिया। अगला डेढ़ वर्ष मैरी ने स्वाध्याय एवं पुस्तकें पढ़ने में बिताया। वे वापस वारसा चली गईं और एक बार फिर गवर्नेस की नौकरी कर ली और उसके साथ-साथ फ्लाइंग यूनिवर्सिटी में पढ़ाई भी करती रहीं। इसके अतिरिक्त उन्होंने वारसा के उद्योग एवं कृषि संग्रहालय में प्रवेश लेकर एक वर्ष तक उसकी प्रयोगशाला में अपना रसायनशास्त्र का प्रायोगिक वैज्ञानिक प्रशिक्षण भी प्राप्त करती रहीं।
अपने पिता, जो अब अच्छी स्थिति में थे, से आर्थिक सहायता पाकर मैरी सन् 1891 में फ्रांस चली गई। उस समय उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि किसी अच्छाई के लिए वे वहाँ बस जाएँगी। पोलैंड में उनका नाम मारिया था, परंतु पेरिस में उन्हें मैरी कहा जाने लगा। वर्ष के उत्तरार्ध में उन्हें सॉरबॉन्न अथवा वर्तमान पेरिस विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया। उन्होंने विश्वविद्यालय के समीप किराए के घर में रहकर रसायनशास्त्र, भौतिकी एवं गणित का अध्ययन किया । पेरिस में पहले साल अपनी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण मैरी को कई बार भूखा रहना पड़ता था, जिससे वे अचेत हो जाती थीं।
सन् 1893 में मैरी को फिजिक्स में डिग्री मिल गई, जिसके बाद उन्हें प्रोफेसर गैब्रिएल लिपमैन, जिन्हें सन् 1908 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ, की प्रयोगशाला में नौकरी मिल गई। अगले वर्ष मैरी को दूसरी डिग्री मिल गई, जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
उनका वास्तविक वैज्ञानिक कॅरियर तब शुरू हुआ, जब उन्हें राष्ट्रीय उद्योग प्रोत्साहन समिति की ओर से विभिन्न प्रकार के स्टील की चुंबकीय मात्राओं की जाँच का दायित्व सौंपा गया, परंतु उसके लिए एक प्रयोगशाला की आवश्यकता थी, जिसे पाना कठिन था। प्रोफेसर जोजफ वीरसुवोस्की ने मैरी की समस्या के विषय में सुना तो उन्होंने फौरन उनका परिचय पियरे क्यूरी से करा दिया, जो उस समय ई. एस. पी. सी. आई. पेरिस टेक. में अध्यापन कर रहे थे। वहीं पहली बार मैरी की भेंट अपने भावी पति से हुई।
कुछ समय तक एक साथ काम करने के बाद पियरे एवं मैरी दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति भावनाएँ जाग्रत हुईं। पियरे ने जल्द ही मैरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, परंतु मैरी ने इनकार करते हुए उन्हें बताया कि अपना काम पूरा होने के बाद वे पोलैंड वापस जाना चाहती हैं। अपनी योजनानुसार मैरी ने सन् 1894 में वारसा लौटकर क्राकोव विश्वविद्यालय में अपने लिए प्रोफेसर के पद हेतु आवेदन किया, परंतु महिला होने के बहाने जब उन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया गया तो मैरी सचमुच क्रोधित हो गईं। उसके बाद पियरे ने मैरी को पत्र के माध्यम से पी-एच.डी. करने की सलाह दी, जिसे मानते हुए वे पेरिस लौट आईं। इस बीच पियरे ने भी चुंबकीयता (मैगनेटिज्म) पर अपना शोध-पत्र पूरा कर लिया और उन्हें मार्च, 1895 में डॉक्टरेट मिल गई।
26 जुलाई, 1895 को मैरी ने पेरिस के एक उपनगर सियाक्स में पियरे क्यूरी से सिविल मैरिज कर ली । मैरी के लिए वह एक नई शुरुआत थी । मैरी को इसका अधिक अंदाजा नहीं था कि जो जीवन वे जीने जा रही हैं, वह उनके भाग्य को पूरी तरह बदलकर रख देगा। उन दोनों की दो बेटियों हुईं—आयरीन और ईव, जिनका जन्म क्रमश: 1897 एवं 1904 में हुआ। मैरी ने उन्हें कुछ समय के लिए अपने साथ पोलैंड ले जाकर अपनी मातृभाषा की शिक्षा भी दी।
मैरी की पहली खोज लगभग 1896 में हुई। उससे एक वर्ष पूर्व विल्हेल्म रोएंटिगन ने अपने प्रयोगों के परिणामस्वरूप एक्स-रे की सफल पहचान की थी । हेनरी बेक्वेरल ने भी पाया कि यूरेनियम साल्ट से निस्सरित तत्त्वों में भी एक्स-रे जैसे तत्त्व होते हैं । इस खोज ने मैरी को यूरेनियम साल्ट पर अपने खुद के शोध करने हेतु प्रेरित किया। इस काम में उसने अपने पति द्वारा कुछ समय पूर्व निर्मित इलेक्ट्रॉमीटर का प्रयोग किया ।
यह ऐसा यंत्र है, जिसका प्रयोग वैद्युत करंट मापने के लिए किया जाता है । मैरी ने पहले पाया कि यूरेनियम किरणों के आसपास की हवा विद्युत् संचालन करती है और आगे चलकर उसे यह भी ज्ञात हुआ कि यूरेनियम मिश्रणों की क्रिया उसकी आणविक अंतर्क्रिया का परिणाम नहीं, बल्कि कोई ऐसी चीज थी, जो अणु के भीतर हो रही थी । इसने बाद के वैज्ञानिकों को अणु के भीतर स्थित तत्त्वों की जाँच हेतु प्रेरित किया ।
अपनी बड़ी बेटी आयरीन के जन्म के बाद मैरी ने एक शिक्षिका के रूप में इकोल नॉर्मेल सुपीरियर में नौकरी कर ली । इसके साथ-साथ मैरी ने भौतिकी एवं रसायन संकाय के समीप एक छप्पर में अपना शोध एवं परीक्षण भी जारी रखा । वह एक समुचित प्रयोगशाला नहीं थी और उसमें वांछित संवातन (वेंटिलेशन) भी नहीं था । अतः वहाँ काम करते समय मैरी एवं उसके पति को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। मुख्य कठिनाई रेडियोधर्मिता के संपर्क में आने को लेकर थी । चूँकि दोनों रेडियोसक्रिय तत्त्वों के साथ काम कर रहे थे और उन्हें रेडियोधर्मिता (रेडिएशन) के हानिकारक प्रभावों का ज्ञान नहीं था, अतः वे बिना कोई सावधानी बरते काम करती रहीं, जिसकी कीमत मैरी को बाद में चुकानी पड़ी ।
मैरी और पियरे पिचब्लेंडी एवं टार्बरनाइट नामक दो खनिजों पर काम कर रहे थे । इन खनिजों को संभवत: यूरेनियम तत्त्व युक्त माना गया, परंतु कुछ अधिक प्रयोगों के बाद मैरी ने पाया कि यह संभव है कि खनिजों के अंदर कुछ अधिक तत्त्व मौजूद हों । सन् 1898 में मैरी ने पता लगाया कि थोरियम भी एक रेडियोधर्मी तत्त्व है, परंतु मैरी के शोध प्रबंध की प्रस्तुति के शीघ्र बाद उसे बताया गया कि उससे दो महीने पहले ही गर्हर्ड कार्ल स्मिट ने थोरियम पर अपना शोध प्रकाशित कर दिया था ।
तत्पश्चात् क्यूरी दंपती के जीवन में एक बड़ी घटना हुई। जुलाई, 1898 में उन्होंने पोलैंड के नाम पर पोलोनियम नामक तत्त्व की खोज की घोषणा की और तत्काल उस पर अपना शोधप्रबंध भी प्रकाशित कर दिया। कुछ महीनों बाद उन्होंने एक अन्य तत्त्व की खोज की, जिसका नाम उन्होंने रोमन शब्द रे पर रेडियम रखा। इस खोज की घोषणा उन्होंने 26 दिसंबर, 1898 को की। लगभग उसी दौरान उन्होंने शब्द रेडियोधर्मिता के बारे में सोचा।
पिचब्लेंडी से पोलोनियम एवं रेडियम तत्त्वों को अलग करना अत्यंत कठिन था और इसके लिए मैरी को सालोसाल कड़ी मेहनत करनी पड़ी, तब जाकर कहीं डिफरेंशियल क्रिस्टलाइजेशन पद्धति से थोड़ा सा यूरेनियम साल्ट निकल पाया। लगभग 1902 के आसपास वे रेडियमक्लोराइड निकालने में सफल हुईं, परंतु सन् 1910 में पिचब्लेंडी से शुद्ध रेडियम अलग किया, परंतु वे पोलोनियम का पृथक्करण कभी पूर्ण नहीं कर सकी।
सन् 1902 में मैरी के पिता की मृत्यु हो गई, जिसके कारण वे कुछ समय के लिए पोलैंड गईं। अगले वर्ष उन्हें पेरिस विश्वविद्यालय से उनके प्रोफेसर गैब्रिएल लिपमैन के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि मिली ।
इस समय तक पियरे एवं मैरी कुछ ख्याति अर्जित कर चुके थे, जिसके कारण उन्हें अनेक संस्थानों द्वारा अपने अनुसंधान पर वक्तव्य देने हेतु आमंत्रित किया जाने लगा। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने अपनी उपलब्धियों पर चार वर्षों के दौरान सन् 1898 से 1902 के मध्य अनेक वैज्ञानिक शोध-पत्र प्रकाशित किए।
सन् 1903 में मैरी क्यूरी को भौतिकी के क्षेत्र में उनका पहला नोबेल पुरस्कार उनके पति पियरे क्यूरी एवं एक अन्य वैज्ञानिक हेनरी बेक्वेरल के साथ संयुक्त रूप से प्राप्त हुआ । कहा जाता है कि नामांकन के दौरान मैरी को सूची में शामिल नहीं किया गया था, परंतु उनके पति को जैसे ही इस बारे में पता चला, उन्होंने सुनिश्चित किया कि मैरी का नाम भी सूची में हो । इस प्रकार वह नोबेल पुरस्कार पानेवाली पहली महिला बनीं । यद्यपि इन पुरस्कारों की शुरुआत केवल दो वर्ष पहले ही हुई थी, फिर भी अपने नामांकनों में किसी महिला को शामिल करने के प्रति उनकी उदासीनता ने उसे मैरी के लिए उससे भी बड़ी उपलब्धि बना दिया।
क्यूरी दंपती के लिए वह अच्छा वर्ष था। उन्हें नौकरियों के बेहतर प्रस्ताव प्राप्त होने शुरू हो गए। पियरे को सॉरबॉन्न में भौतिकी विभाग का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव मिला। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से वहाँ एक उत्तम प्रयोगशाला के निर्माण करने का अनुरोध किया। इस कार्य को पूरा करने में उन्हें दो वर्ष लग गए।
19 अप्रैल, 1906 को एक सड़क दुर्घटना में पियरे की मृत्यु हो गई। अचानक मिली इस खबर ने मैरी को हिलाकर रख दिया, लेकिन वह उन्हें जीवन में आगे बढ़ने से नहीं रोक पाई ।
पति की मृत्यु के एक माह बाद विश्वविद्यालय की ओर से पियरे का पद मैरी को देने का प्रस्ताव किया गया, जिसे उन्होंने वहाँ विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रयोगशाला स्थापित करने की आशा में स्वीकार कर लिया। इस नौकरी के साथ वे सॉरबॉन्न की पहली महिला प्रोफेसर भी बन गईं।
लगभग सन् 1909 में पास्चर इंस्टीट्यूट के तत्कालीन निदेशक ने मैरी क्यूरी के लिए प्रयोगशाला बनाने का निर्णय किया, क्योंकि सॉरबान्न ने जो प्रयोगशाला बनाने का दावा किया, वह कहीं थी ही नहीं। अतः जब मैरी ने सॉरबॉन्न छोड़ने की धमकी दी तो उन्होंने पास्चर इंस्टीट्यूट से उसके लिए रेडियम इंस्टीट्यूट बनाने हेतु हाथ मिला लिया, जो आगे चलकर ‘क्यूरी इंस्टीट्यूट’ के रूप में जाना गया।
सन् 1910 में मैरी अंतत: खनिज से रेडियम मेटल अलग करने में सफल हो गई। यह उसके जीवन में उसके द्वारा किया गया सबसे कठिन काम था। इस अवधि के दौरान उसने रेडियोसक्रिय उत्सर्जन को मापने के एक अंतरराष्ट्रीय मानक की रूपरेखा भी तैयार की । कालांतर में उसे दंपती के सम्मान में क्यूरी नाम दिया गया।
सन् 1911 में दि रॉयल एकेडेमी ऑफ साइंसेज (शाही विज्ञान अकादमी) ने क्यूरी को रसायनशास्त्र में दूसरा नोबेल पुरस्कार प्रदान किया। प्रशस्ति में कहा गया, रेडियम के पृथक्करण द्वारा रेडियम एवं पोलोनियम की खोज एवं इस महत्त्वपूर्ण तत्त्व के मिश्रणों तथा प्रकृति के अध्ययन के माध्यम से रसायनशास्त्र की प्रगति के लिए उनकी उल्लेखनीय सेवाओं हेतु मैरी क्यूरी को यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है। दो नोबेल पुरस्कारों से अलंकृत होनेवाली वे प्रथम महिला बन गईं।
अपना पुरस्कार प्राप्त करने के फौरन बाद मैरी को अस्पताल में भरती कराया गया, जहाँ उन्हें गुरदे की बीमारी होने का पता चला। लगभग चौदह महीने तक काम से दूर रहने के बाद मैरी दिसंबर, 1912 में वापस लौटीं ।
पेरिस में रेडियम इंस्टीट्यूट अगस्त, 1914 में बनकर तैयार हो गया, परंतु सन् 1919 से पूर्व समुचित रूप से कार्य करना प्रारंभ नहीं किया, इसका कारण शायद प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान खड़ी होनेवाली समस्याएँ थीं ।
अपने परिवार की भाँति मैरी भी अत्यंत देशभक्त थीं। युद्ध के दौरान उन्होंने शल्य चिकित्सकों की सहायता हेतु युद्धक्षेत्र में मोबाइल रेडियोलॉजिकल केंद्र बनाने का सुझाव दिया, यहाँ तक कि उन्होंने इस कार्य हेतु एक्स-रे उपकरणों एवं वाहनों को भी अपने कब्जे में ले लिया। रणक्षेत्र में स्थापित उन सचल इकाइयों को नन्ही क्यूरियाँ कहा गया, परंतु यह सब उनके रेडक्रॉस रेडियोलॉजी सेवा का निदेशक बनने के बाद हुआ, क्योंकि सन् 1914 के उत्तरार्ध में वे इन इकाइयों को स्थापित करने में समर्थ थीं।
अगले वर्ष मैरी ने रेडियम से उत्सर्जित रंगहीन रेडियोसक्रिय सुइयाँ बनाईं। उन्हें रोगियों के घावों का इलाज करने लिए प्रयोग किया गया। दावा किया गया कि मैरी के कारण प्रत्यक्षतः 10 लाख से अधिक सैनिकों को बचा लिया गया। मैरी ने फ्रेंच नेशनल बैंक को अपनी नाबेल पुरस्कार राशि एवं पदकों को समर्पित करने का प्रस्ताव दिया, परंतु उन्होंने उसे लेने से इनकार कर दिया। फिर भी उन्होंने उनको आधिकारिक रूप से बताए बिना उनकी सहायता की। मैरी ने ‘रेडियोलॉजी इन वार’ नामक पुस्तक भी लिखी, जो सन् 1919 में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में विश्वयुद्ध के दौरान उनके समस्त अनुभवों को संकलित किया गया है।
अपने जीवन के उत्तरार्ध वर्षों में मैरी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान तथा अनेक संस्थानों की ओर से उनकी सदस्यता ग्रहण करने के प्रस्ताव भी प्राप्त हुए। उन्हें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति वारेन जी. हार्डिंग द्वारा सन् 1921 में आमंत्रित भी किया गया, जिन्होंने उपहार के रूप में उन्हें अमेरिका में संगृहीत एक ग्राम यूरेनियम प्रदान किया। सन् 1923 में उन्होंने अपने पति की जीवनी पूरी की, जिसे नाम दिया गया ‘पियरे क्यूरी’ | उन्हें वारसा में रेडियम संस्थान की स्थापना का श्रेय भी दिया जाता है, जो सन् 1932 में विधिवत् प्रारंभ हुआ। उनकी अंतिम पुस्तक रेडियोएक्टिविटी सन् 1935 में मरणोपरांत प्रकाशित हुई ।
सन् 1934 के प्रारंभ से ही मैरी का स्वास्थ्य क्षीण होने लगा। 4 जुलाई, 1934 को दक्षिणपूर्वी फ्रांस के छोटे से कस्बे पैस्सी में स्थित सानसेलमोज सैनिटोरियम में मैरी की मृत्यु हो गई। वे अप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित थीं। ऐसा माना जाता है कि यह रोग उन्हें लंबे समय तक रेडियोधर्मिता के संपर्क में रहने के कारण हुआ। मैरी को सियाक्स कब्रिस्तान में उनके पति की कब्र के निकट दफनाया गया। यद्यपि सन् 1995 में सम्मानस्वरूप उनके अवशेषों को पैंथियॉन, पेरिस में स्थानांतरित कर दिया गया।
मैरी की मृत्यु के कुछ वर्षों बाद उनकी पुत्री ईव क्यूरी ने उनकी जीवनी लिखी, जिसे नाम दिया गया ‘मादाम क्यूरी’। इस पुस्तक के कारण कभी-कभी मैरी को ‘मैडम मैरी क्यूरी’ के रूप में भी जाना गया ।
उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए उनके नाम पर अनेक संस्थान एवं सड़कों का निर्माण किया गया और दुनिया भर में उनकी अनेक प्रतिमाएँ स्थापित की गईं।
मैरी क्यूरी एक निडर महिला थीं । रेडियोधर्मिता के हानिकारक परिणामों से अनजान केवल उसे खोजने के मूल उद्देश्य के साथ वे इस यात्रा पर निकल पड़ीं। जैसा कि एक बार उन्होंने कहा था, जीवन में किसी चीज से भयभीत होने की नहीं, उसे केवल समझने की आवश्यकता है । अत: यह अधिक समझने का समय है, ताकि हम कम भयभीत हों।
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