NCERT Solutions Class 10Th Hindi Chapter – 5 क्षितिज (भाग – 2) काव्य – खण्ड

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

NCERT Solutions Class 10Th Hindi Chapter – 5 क्षितिज (भाग – 2) काव्य – खण्ड

काव्य – खण्ड

निम्नांकित काव्यांशों को पढ़े और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें –

सूरदास

पद

1. मन की मन ही माँझ रही । 
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही । 
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही। 
अब इन जोग सँदेसनि सुनि- सुनि, बिरहिनि बिरह दही। 
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही । 
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही ।।  
(क) गोपियाँ किस कारण अब तक मन की व्यथा सह रही थीं ?
उत्तर – गोपियाँ अब तक अपने मन की व्यथा इसलिए सह रही थीं क्योंकि उन्हें अब तक अपने प्रिय कृष्ण के लौट आने की आशा थी । वे अवधि गिनते हुए आशान्वित थीं।
(ख) ‘जोग-संदेश’ ने उन पर क्या प्रभाव डाला ?
उत्तर – उद्धव ने ब्रज में आकर गोपियों योग का संदेश सुनाया गोपियों पर इसकी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई । उनका चित्त शांत होने के स्थान पर विरहाग्नि में जल उठा। वे पहले ही विरह की पीड़ा झेल रही थीं अब उसकी आग में दहक उठीं ।
(ग) शिकायतकर्ता अपने मन की बात कह क्यों नही पा रहा ?
उत्तर – शिकायतकर्ता गोपियाँ हैं। वे कृष्ण से अनन्य प्रेम करती हैं। उनके विरह को कृष्ण के सिवा और कोई नहीं समझ सकता। परन्तु कृष्ण निष्ठुर होकर मथुरा में बैठ गए हैं। अन्य किसी को विरह की बात बताई नहीं जा सकती। उसमें संकोच होता है और कोई लाभ भी नहीं होता ।
(घ) अब गोपियों की क्या दशा है ? 
उत्तर – अब गोपियाँ धीर हो रही हैं। अब वे भला धैर्य क्यों धारण करें। अब तो मर्यादा का बंधन भी टूटता जा रहा है।
(ङ) गोपियाँ क्या व्यथा सह रही थीं और किसके बल पर सह रही थीं ? 
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण के वियोग की व्यथा सह रही थीं। वे यह सोचकर व्यथा सह रही थीं कि कुछ समय बाद कृष्ण अवश्य ब्रज में लौट आएँगे।
(च) ‘धार बही’ का क्या आशय है ? 
उत्तर – ‘धार बही’ का आशय है- योग-संदेश की प्रबल भावना ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – गोपियाँ स्वीकारती हैं कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में ही दब कर रह गईं। वे कृष्ण के समक्ष अपने प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं कर पाईं | हमसे वह प्रेम की बात कहीं नहीं गई, पता नहीं कोई इसे कैसे कह पाता है। हम उनके आगमन की अवधि को गिन-गिनकर अपने तन-मन की व्यथा को सहती रही हैं। हम तो प्रतीक्षारत थीं । तुमने अर्थात् उद्धव ने हमें आकर योग का संदेश सुना दिया। इसे सुन-सुनकर हम गोपियाँ विरह की आग में जली जा रही हैं। हम तो पहले से ही वियोगिनी थीं तुम्हारे योग के उपदेश ने हमें विरहाग्नि में जलाकर दग्ध कर दिया । जिस ओर हम पुकार करना चाहती थीं, उसी ओर से यह योग की धारा बहने लगी। हम तो तुमसे अपनी व्यथा की गुहार लगाना चाहती थीं और तुमने प्रेम-धारा के स्थान पर योग-संदेश की धारा बहा दी। बताओ अब हम कैसे धैर्य धारण करें। अब हमारी कोई मर्यादा शेष नहीं रह गई है।
2. हमारैं हरि हारिल की लकरी । 
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी । 
जागत सोवत स्वप्न दिवस- निसि, कान्ह-कान्ह जक री। 
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी । 
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी । 
यह तौ ‘सूर तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी ।।
(क) गोपियाँ अपने हरि की तुलना हारिल की लकड़ी से क्यों करती हैं ?
उत्तर – हारिल पक्षी अपने पंजों में एक लकड़ी को दिन-रात थामें रहती है। वह किसी भी सूरत में लकड़ी को छोड़ता नहीं है। यही स्थिति गोपियों की है। वे दिन-रात कृष्ण को मन में बसाए रखती हैं। किसी भी सूरत में उसे भूलती नहीं हैं। इस समानता के कारण गोपियाँ कृष्ण को हारिल की लकड़ी कहती हैं ।
(ख) योग की आवश्यकता किन्हें है ? क्यों ?
उत्तर – योग की आवश्यकता उनको है जिनका मन चकरी की तरह चंचल है, स्थिर नहीं है। योग से उनके चंचल मन को नियंत्रण में लाया जा सकता है।
(ग) योग को गोपियाँ किसके समान बताती हैं ? क्यों ?
उत्तर – योग को गोपियाँ कड़वी ककड़ी के समान बताती हैं, क्योंकि यह स्त्रियों के लिए अव्यावहारिक है। इसे निगला नहीं जा सकता ।
(घ) गोपियों की मनोदशा का वर्णन करें ।
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण के प्रेम में पूरी तरह दीवानी हैं। वे दिन-रात, सोते-जागते, यहाँ तक कि सपने में भी कन्हैया का नाम रटती रहती हैं। उन्हें कृष्ण के बिना संसार में और कुछ अच्छा नहीं लगता। कृष्ण के बदले में दी गई कोई भी चीज कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ प्रतीत होती है।
(ङ) ‘जिनके मन चकरी’ से क्या आशय है ?
उत्तर – इसका आशय है- ऐसे लोग जिनके मन स्थिर नहीं हैं। जो कृष्ण के प्रेम में दीवाने नहीं हैं। जो किसी के प्रति आस्थावान न होकर इधर-उधर भटकते फिरते हैं।
(च) गोपियाँ दिन-रात, सोते-जागते किस भाव में डूबी रहती हैं ? 
उत्तर – गोपियाँ दिन-रात, सोते-जागते कृष्ण के प्रेम में डूबी रहती हैं।
(छ) ‘करुई ककरी’ का उपमान किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ? 
उत्तर – ‘करुई ककरी’ का उपमान योग- संदेश के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(ज) गोपियाँ योग मार्ग के बारे में क्या कहती हैं ?
उत्तर – गोपियाँ योग-मार्ग को कड़वी ककड़ी के समान ‘कटु’ तथा व्याधि के समान ‘बला’ मानती हैं। उनके लिए योग-मार्ग उन्हें कृष्ण से दूर ले जाने वाला है, इसलिए व्यर्थ है।
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हमारे कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार हम कृष्ण का आश्रय नहीं छोड़ सकतीं। हमने अपने प्रिय कृष्ण को मन-वचन-कर्म अर्थात् पूरी तरह से, पक्की तरह से पकड़ रखा है। हमने तो सोते-जागते, दिन में रात में कृष्ण-कृष्ण की रट लगा रखी हैं अर्थात् हम तो पूरी तरह से कृष्णमय हो गई हैं। उद्धव ने गोपियों को जो योग का उपदेश दिया था उसके बारे में उनका यह कहना है कि यह योग सुनते ही कड़वी ककड़ी के समान प्रतीत होता है। इसे निगला नहीं जा सकता। हे उद्धव! तुम तो हमारे लिए ऐसी बीमारी ले आए हो जो हमने न तो कहीं देखी और न कहीं सुनी। इस योग की आवश्यकता तो उनको है जिनका मन चकरी के समान घूमता रहता है अतः इसे उन्हीं को सौंप दो। हम तो पहले से ही कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम बनाए हुए हैं। हमारा मन भ्रमित नहीं है।
3. हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। 
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए । 
इक अति चतुर हुते पहिलेँ ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए । 
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए । 
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए । 
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए । 
ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए । 
राज धरम तो यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए ।। 
(क) गोपियाँ किस पर क्या कटाक्ष करती हैं ? 
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण पर कटाक्ष करती हैं कि अब उन्होंने भी राजनीति का पाठ पढ़ लिया है अर्थात् वे राजनीतिज्ञों की तरह व्यवहार करने लगे हैं।
(ख) गोपियाँ अब फिर से क्या पा लेंगी ?
उत्तर – गोपियों के दिल को कृष्ण चुराकर ले गए थे। अब वे योग के माध्यम से अपने दिल को पुनः प्राप्त कर लेंगी। वे उसे फिर से पाने में सफल हो जाएँगी।
(ग) गोपियाँ राजधर्म की कौन-सी बात बताती हैं ?
उत्तर – गोपियाँ उद्धव के सम्मुख राजधर्म की बात बताते हुए कहती हैं कि राजधर्म में प्रजा को नहीं सताया जाता । अप्रत्यक्ष रूप से गोपियाँ कृष्ण पर व्यंग्य कर रही हैं कि वे राजधर्म का पालन नहीं कर रहे और हमें (प्रजा को) सता रहे हैं ।
(घ) गोपियाँ कृष्ण के व्यवहार में कौन-सी राजनीति देखती हैं ?
उत्तर – गोपियों को कृष्ण का व्यवहार छलपूर्ण प्रतीत होता है। गोपियों की नजरों में कृष्ण सोचते हैं कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे । अर्थात् कृष्ण को गोपियों के पास भी न जाना पड़े और गोपियों की विरह-व्यथा भी शांत हो जाए। इसलिए उन्होंने उनका हितैषी बनते हुए प्रेम-संदेश की बजाय योग-संदेश भेज दिया ताकि क गोपियों का मन वहाँ लगा रहे ।
(ङ) ‘बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए’ में क्या व्यंग्य छिपा है ? 
उत्तर – इस पंक्ति में कृष्ण की कूटनीति पर व्यंग्य है। कृष्ण जानते हैं कि गोपियाँ कृष्ण – प्रेम के बिना कुछ नहीं चाहतीं, फिर भी उन्होंने ऊधौ को योग-संदेश देकर भेज दिया। कृष्ण के इस व्यवहार में गोपियों को कृष्ण की नासमझी नजर आती है। इसलिए वे ‘बढ़ी बुद्धि जानी’ कहकर उनका तिरस्कार करती हैं।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – गोपियाँ कहती हैं- हे उद्धव! अब कृष्ण ने राजनीति भी पढ़ ली है। भौंरे (उद्धव) के बात कहते ही हम सब बात समझ गईं। हमें सभी समाचार मिल गए। एक तो कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर थे और अब ग्रंथ भी पढ़ लिए। यह उनकी बढ़ी हुई बुद्धि का ही प्रमाण है कि उन्होंने हमारे लिए योग का संदेश भेजा है। आगे के लोग भी बड़े भले थे जो परहित के लिए भागे चले आए। अब हम अपने मन को फिर से पा लेंगी, जिसे किसी और (कृष्ण) ने चुरा लिया था। वे हमारे ऊपर अन्याय क्यों करते हैं जिन्होंने दूसरों को अन्याय से छुड़ाया है। गोपियाँ उद्धव को राजधर्म की याद दिलाती हैं। राजधर्म यह कहता है कि प्रजा को सताया नहीं जाना चाहिए ।

तुलसीदास

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद 

1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि कोउ एक दास तुम्हारा ।। 
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ।। 
सेवकु सो जो करै सेवकाई । अरिकरनी करि करिअ लराई ।। 
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा । सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ।। 
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा । न त मारे जैहहिं सब राजा ।। 
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने ।। 
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ।। 
येहि धनु पर ममता केहि हेतू । सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू ।। 
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार । 
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ।। 
(क) कवि और कविता का नाम लिखें । 
उत्तर – कवि का नाम- तुलसीदास,
कविता का नाम- राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद |
(ख) श्रीराम ने परशुराम को क्या उत्तर दिया ? 
उत्तर – श्रीराम ने परशुराम को यह उत्तर दिया कि शिव-धनुष को तोड़ने वाला आपका (परशुराम का) ही कोई दास होगा।
(ग) परशुराम’ की इस उत्तर पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर – परशुराम ने शिव-धनुष को तोड़ने वाले को अपना दास (सेवक) मानने से इंकार कर दिया। उनके अनुसार सेवक वह होता है जो सेवा करे । यह काम तो शत्रु का है। । शत्रुता करने वाले से तो लड़ाई ही की जाती है। जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है l
(घ) लक्ष्मण ने किस शैली में परशुराम को क्या उत्तर दिया ?
उत्तर – लक्ष्मण नै मुसकुराते हुए व्यंग्यात्मक शैली में यह उत्तर दिया कि बचपन में हमने ऐसी कई धनुहियाँ तोड़ी हैं अर्थात् हमारे लिए यह एक सामान्य सी बात है, तब आपने कभी क्रोध नहीं किया । फिर इस धनुष पर आपकी इतनी ममता क्यों है ?
(ङ) परशुराम ने लक्ष्मण से क्या कहा ?
उत्तर – परशुराम ने लक्ष्मण से कहा कि वह मृत्यु के वश में है अतः वह सोच समझकर नहीं बोल रहा। भगवान शिव का धनुष क्या एक मामूली धनुष है जिसे बिना प्रयास के तोड़ा जा सकता है। यदि धनुष तोड़ने वाला व्यक्ति उनके सामने नहीं आयेगा तो वे सभी राजाओं की हत्या कर देंगे ।
(च) इस अंश के आधार पर परशुराम के स्वभाव पर टिप्पणी करें ।
उत्तर – इस अंश को पढ़कर पता चलता है कि परशुराम महाक्रोधी थे। वह अपनी वीरता की डींग हाँकने में बहुत तेज थे। वह गरजने वाले बादल समान बड़बोले थे। उन्हें बस थोड़ी-सी उत्तेजना से ही आग-बबूला किया जा सकता था। वे हल्की-सी बात पर भड़क उठते थे और अपनी वीरता के किस्से सुनाने लगते थे । स्वयं को सहस्रबाहु का संहारक कहकर अकड़ना और बात-बात पर सामने वाले को मार डालने की धमकी देना उनके स्वभाव के अंग बन चुके थे।
(छ) परशुराम ने सभा के बीचोंबीच आकर सभा को क्या धमकी दी ?
उत्तर – परशुराम ने सभा के बीचोंबीच आकर सबको धमकी दी कि जिसने भी उनके गुरु शिव का धनुष तोड़ा है, वह सभा से अलग होकर उनके सामने आ जाए। वरना वे सभी राजाओं का वध कर डालेंगे।
(ज) परशुराम ने श्रीराम से क्या कहा ?
उत्तर – परशुराम ने रामजी से कहा कि जिस व्यक्ति ने भगवान शिव का धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान उनका शत्रु है ।
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – जब मुनि परशुराम ने अत्यंत क्रोध में भरकर राजा जनक से पूछा कि इस शिवधनुष को किसने तोड़ा है तब राम ने सभी को भयभीत जानकर स्वयं उत्तर दियाहे नाथ! (मुनि परशुराम) शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई एक दास होगा अर्थात् मैं आपका दास हूँ। कहिए, मेरे लिए क्या आज्ञा है, मुझसे कहिए। यह सुनकर मुनि परशुराम क्रोध में भरकर बोले- सेवक तो वह होता है जो सेवा का काम करे। शत्रुता का काम करने वाले से तो लड़ाई ही की जाती है। हे राम! सुनो, जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। वह (धनुष तोड़ने वाला) इस समाज को छोड़कर स्वयं अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएँगे। मुनि के ऐसे वचन सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कराए और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले- गोसाईं! बचपन में हमने ऐसी बहुत से धनुहियाँ तोड़ डालीं, तब आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इसी धनुष पर आपकी ममता किस कारण से है ? यह सुनकर भृगुवंश की ध्वजास्वरूप परशुराम जी कुपित होकर कहने लगे –
अरे राजपुत्र! काल के वश होने के कारण तुझे बोलने की कुछ भी समझ नहीं है। सारे संसार में विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या धनुही के समान है ?
2.  लखन कहा हसि हमरे जाना । सुनहु देव सब धनुष समाना।। 
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें ।। 
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू । मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ।। 
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ।।
बालकु बोलि बधौं नहि तोही । केवल मुनि जड़ जानहि मोही ।। 
बाल ब्रह्मचारी अति कोही । बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ।। 
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ।। 
सहसबाहुभुज छेदनिहारा । परसु बिलोकु महीपकुमारा ।। 
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर । 
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ।। 
(क) परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए ?
उत्तर – लक्ष्मण ने कहा- सभी धनुष एक समान है फिर पुराने धनुष के टूटने पर क्या लाभ-हानि ? यह तो छूते ही टूट गया अतः राम का क्या दोष ?
(ख) प्रस्तुत पद्यांश के आधार पर लिखें कि परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा ?
उत्तर – मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूँ। क्षत्रिय कुल के शत्रु के रूप में विश्व भर में विख्यात हूँ। अपनी भुजा बल पर इस धरती को राजाओं से रहित कर मैंने उसे ब्राह्मणों को दान में दिया है। यह फरसा बड़ा भयानक है।
(ग) परशुराम ने लक्ष्मण को धमकाते हुए क्या कहा ?
उत्तर – अपने फरसे की ओर देखकर बोले- अरे दुष्ट ! क्या तूने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना ? मैं तुझे बालक जानकर नहीं मार रहा। अरे मूर्ख! तू मुझे निरा मुनि ही समझता है।
(घ) लक्ष्मण ने हँसकर क्या कहा ?
उत्तर – लक्ष्मण ने हँसकर यह कहा कि हे देव ! हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान हैं। ह हम धनुष तोड़ते समय किसी प्रकार की लाभ-हानि नहीं देखते। श्रीराम ने तो इसे नए के भ्रम में देखा और यह तो छूते ही टूट गया। आप व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं l
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम से क्या कहा ?
उत्तर – लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि धनुष पुराना था। वह रामजी के स्पर्श करते ही टूट गया। इसमें रामजी का कोई दोष नहीं है है।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – लक्ष्मण हँसकर परशुराम से बोले- हे देव ! सुनिए, हमारी जानकारी में तो सब धनुष एक-से ही होते हैं। फिर इस पुराने धनुष को तोड़ने में किसी की हानि क्या 5008 3 1 और लाभ क्या ? राम ने भी इसे नए धनुष के धोखे में तोड़ा, – और मुनि जी ! यह धनुष तो छूते ही टूट गया। इसमें तो राम का कोई दोष भी नहीं। इसलिए आप बिना बात क्यों गुस्सा करते हैं ?
लक्ष्मण के ये व्यंग्य-वचन सुनकर अपने फरसे की ओर देखते हुए परशुराम बोलेअरे! मूर्ख! लगता है, तूने मेरे स्वभाव के बारे में कुछ नहीं सुना। मैं तुझे बच्चा  मानकर तेरा वध नहीं हूँ। तूने मुझे निरा मुनि ही मान लिया है। अरे, मैं बचपन से ही ब्रह्मचारी हूँ। मैं स्वभाव से प्रचंड क्रोधी हूँ। सारे संसार को पता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का घोर शत्रु हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर अनेक बार पृथ्वी को सारे राजाओं से रहित कर रखा है, अर्थात् मैं धरती के सारे राजाओं का वध कर चुका हूँ और पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दान कर चुका हूँ । ओ राजकुमार लक्ष्मण ! मेरे फरसे की ओर देख। इसने सहस्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था।
अरे राजा के बालक लक्ष्मण ! तू मुझसे भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डाल। अपनी मौत न बुला। मेरा फरसा बहुत भयंकर है। यह गर्भो में पल रहे बच्चों का भी नाश कर डालता है।
3. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी ।। 
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु । चहत उड़ावन फूँकि पहारू ।। 
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।। 
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी । जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ।। 
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई । हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ।। 
बधें पापु अपकीरति हारें । मारतहू पा परिअ तुम्हारें ।। 
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा । ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।। 
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर । 
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ।। 
(क) परशुराम की गर्वोक्ति का लक्ष्मण पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – परशुराम की गर्वोक्ति को लक्ष्मण ने हँस कर उड़ा दिया। उन्होंने उनकी गर्वोक्ति पर चुटकी लेते हुए कहा- आप स्वयं को महान योद्धा मानते हो और मुझे बार-बार फरसा दिखाते हो । संभवतः आप पहाड़ को फूँक मारकर उड़ा देना चाहते हो अर्थात् हम तो पहाड़ हैं और आपकी गीदड़भभकी से उड़ने वाले नहीं हैं। हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं हैं जो तर्जनी उँगली देखते ही मुरझा जाएँ अर्थात् हम आपसे डरने वाले नहीं हैं । लक्ष्मण ने डटकर प्रतिवाद किया।
(ख) लक्ष्मण ने अपने कुल की किस परंपरा का उल्लेख किया ? 
उत्तर – लक्ष्मण ने परशुराम के सम्मुख अपने कुल की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा * कि उनके कुल में देवता, ब्राह्मण, ईश्वर भक्त और गाय पर वे अपनी शूरवीरता नहीं दिखाते ।
(ग) लक्ष्मण ने ऐसा क्या कह दिया कि मुनि परशुराम का क्रोध बहुत बढ़ गया ?
उत्तर – लक्ष्मण ने व्यंग्यपूर्ण वाणी में परशुराम को यह कह दिया कि आपको यह धनुष-बाण और फरसा रखने की कोई आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि आपके वचन ही इतने कटु हैं कि वे करोड़ों वज्रों के समान वार करते हैं ।
(घ) लक्ष्मण का आक्षेप सुनकर परशुराम पर क्या प्रतिक्रिया हुई ? 
उत्तर – लक्ष्मण का आक्षेप सुनकर परशुराम (भृगुवंशमणि) क्रोध से भर उठे और अपनी बात गंभीर वाणी में कहने लगे।
(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम को ‘मृदु बानी’ में क्यों संबोधित किया ?
उत्तर – लक्ष्मण परशुराम के बड़बोलेपन को हँसी-खेल में उड़ा देना चाहते थे। वे उनकी बातों का उत्तर बातों से देकर लज्जित करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कोमल शब्दों में व्यंग्य-वाणी का सहारा लिया ।
(च) ‘ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा’ किसे कहा गया है ?
उत्तर – यह वचन लक्ष्मण ने परशुराम को कहा।
(छ) लक्ष्मण ने परशुराम की वाणी के किस गुण पर व्यंग्य किया है ? 
उत्तर – लक्ष्मण ने परशुराम की वाणी को कठोरता, क्रूरता और निर्ममता पर व्यंग्य किया है। वे बहुत कठोर वचन कहते थे ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – लक्ष्मण हँसकर मृदुवाणी में बोले- अहो मुनीश्वर, आप अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हो। बार-बार मुझे अपना फरसा दिखाते हो और फूँक से पहाड़ को उड़ाना चाहते हो। पर यह समझ लो कि यहाँ कोई कुम्हड़बतिया (कद्दू के फूल के फल बनने के समय का छोटा कोमल रूप) नहीं है जो तर्जनी उँगली को देखते ही मर (मुरझा) जाएगी। मैंने आपके कुठार और धनुषबाण को देखकर ही कुछ गर्व सहित कहा था । भृगुवंशी समझकर और यज्ञोपवित देखकर, जो कुछ आपने कहा, उसे मैंने अपने क्रोध को रोककर सह लिया। देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गौ-इन पर हमारे कुल में शूरवीरता नहीं दिखाई जाती । क्योंकि इन्हें मारने पर पाप लगता है और इनसे हार जाने पर बदनामी होती है। इसलिए यदि आप मारें तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए । आपका तो एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान कठोर है | आप व्यर्थ ही धनुष-बाण और कुठार (फरसा) धारण किए हुए हैं (अप्रत्यक्ष में निंदा)। इन्हें (धनुष-बाण और कुठार) देखकर यदि मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो उसे हे धीरमति महामुनि ! क्षमा कर दीजिए। यह सुनकर भृगुवंश मणि परशुराम जी रोष के साथ गंभीर वाणी में बोले ।
4. कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु । कुटिलु कालबस निज कुल घातकु ।। 
भानुबंस राकेस कलंकू निपट निरंकुसु अबुधु असंकू ।। 
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं ।।
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा । कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा ।। 
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा । तुम्हहि अछत को बरनै पारा।। 
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी ।। 
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू ।। 
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा । गारी देत न पावहु सोभा ।। 
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु । 
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।। 
(क) परशुराम किसको संबोधित कर क्या कह रहे हैं ?
उत्तर – परशुराम मुनि विश्वामित्र को संबोधित कर कह रहे हैं कि यह बालक (लक्ष्मण) अत्यंत दुष्ट है, काल के वश में है तथा अपने कुल का नाश कराने वाला है । सूर्यवंश में यह कलंक है। यह उदंड, मूर्ख और निडर है। यह अभी क्षण भर में मारा जाएगा। यदि आप इसे बचाना चाहते हो तो इसे हमारे बल, प्रताप और क्रोध से अवगत करा दीजिए ।
(ख) परशुराम की बातें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य में क्या कहा ?
उत्तर – परशुराम की गर्वपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य में कहा कि हे मुनि ! आपके रहते हुए भला आपके सुयश का बखान और कौन कर सकता है। आपने अपने मुख से इसका बखान अनेक प्रकार से कर लिया है। यदि अभी भी कुछ कहना शेष रह गया है तो वह भी कह डालिए। अपना क्रोध रोककर कष्ट मत सहिए । आप वीरव्रती हैं अतः आपको गाली देना शोभा नहीं देता।
(ग) लक्ष्मण ने शूरवीर की क्या पहचान बताई ?
उत्तर – लक्ष्मण ने शूरवीर की पहचान बताते हुए कहा कि शूरवीर समर भूमि में अपना कारनामा करके दिखाते हैं। वे अपनी बड़ाई स्वयं नहीं करते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही अपना बड़ाई करते हैं। व्यंग्य – आप कार्य के समान व्यवहार कर रहे हैं
(घ) इस काव्यांश के आधार पर परशुराम के स्वभाव पर क्या प्रकाश पड़ता है ? 
उत्तर – इस काव्यांश के आधार पर कहा जा सकता है कि परशुराम अत्यंत क्रोधी हैं। वे गर्वोक्ति करने में बढ़-चढ़ रहे हैं।
(ङ) परशुराम ने विश्वामित्र को क्या शिकायत की और क्यों ?
उत्तर – परशुराम ने विश्वामित्र को लक्ष्मण की उद्दंडता के बारे में शिकायत की। उन्होंने कहा कि लक्ष्मण मूर्ख है, कुलनाशक है, अपने कुल का कलंक है। वह अज्ञानी, निरंकुश और उद्दंड है।
क्योंकि वास्तव में परशुराम लक्ष्मण से उलझना नहीं चाहता । इसलिए वह विश्वामित्र से शिकायत करके उसकी उद्दंडता को रोकना चाहता है।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – परशुराम बोले– हे विश्वामित्र ! सुनो, यह बालक (लक्ष्मण) बड़ा ही कुबुद्धि और कुटिल है। काल के वश होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंश रूपी पूर्णचंद्र का कलंक है। यह बिल्कुल उद्दंड, मूर्ख और निडर है। अभी क्षण भर में यह बालक काल का ग्रास बन जाएगा अर्थात् मारा जाएगा। मैं पुकार कर कह देता हूँ, फिर मुझे दोष मत देना । यदि तुम इसे बचाना चाहते हो तो उसे हमारे र बल, प्रताप और क्रोध के बारे में बताकर रोक लो, इसे मना कर दो। तब लक्ष्मण जी ने कहा- हे मुनि ! आपके सुयश का आपके रहते दूसरा कौन वर्णन कर सकता है। आपने तो अपने मुँह से ही अपनी करनी का नाना प्रकार से बखान कर दिया है। यदि इतने पर भी संतोष न हुआ तो फिर से कुछ कह डालिए । रोष रोककर असह्य दुःख मत झेलिए। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले, धैर्यवान और क्षोभरहित हैं। गाली देना आपको शोभा नहीं देता ।
शूरवीर तो युद्ध में अपनी करनी करके दिखाते हैं, कहकर अपनी बड़ाई स्वयं नहीं करते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही अपने प्रताप की बड़ाई किया करते हैं अर्थात् डींग हाँका करते हैं।
5. तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा । बार बार मोहि लागि बोलावा ।। 
सुनत लखन के बचन कठोरा । परसु सुधारि धरेउ कर घोरा ।। 
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू ।। 
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा । अब येहु मरनिहार भा साँचा ।। 
कौसिक कहा छमिअ अपराधू । बाल दोष गुन गनहिं न साधू ।। 
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे पराधी गुरुद्रोही ।। 
उतर देत छोड़ौँ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे ।।
न त येहि काटि कुठार कठोरे । गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे।। 
गाधिसू नु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ |
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।। 
(क) परशुराम ने किसे बधजोगू कहा और क्यों ?
उत्तर – परशुराम ने लक्ष्मण को वध के योग्य कहा है। क्योंकि लक्ष्मण ने परशुराम के बड़बोलेपन और खोखली धमकियों की मजाक उड़ाई थी। इस अपमान के कारण परशुराम उत्तेजित हो उठे।
(ख) परशुराम को उत्तेजित देखकर विश्वामित्र ने क्या कहा ?
उत्तर – परशुराम को उत्तेजित देखकर विश्वामित्र ने उन्हें शांत किया। विश्वामित्र ने कहा- मुनि आप तो साधु हैं। साधुजन बच्चों के गुण-दोष पर ध्यान नहीं देते। अतः आप लक्ष्मण को बच्चा मानकर क्षमा कर दें ।
(ग) लक्ष्मण ने परशुराम को क्या कहा और क्यों कहा ?
उत्तर – परशुराम लक्ष्मण को बार-बार मार डालने की धमकी दे रहे थे। वे कुछ करने के बजाय बड़ी-बड़ी बातें बोले जा रहे थे। उनकी इन्हीं खोखली बातों का मजाक उड़ाने के लिए लक्ष्मण ने कहा- परशुराम जी ! आप तो मानो मृत्यु को हाँक कर मेरे ऊपर डाले दे रहे हो।
(घ) ‘अयमय खाँड़ न ऊखमय’ का तात्पर्य स्पष्ट करें। 
उत्तर – इसका तात्पर्य है- तुम्हारे सामने गन्ने के रस से बनी खाँड़ नहीं है, बल्कि लोहे से बना खाँडा है। अर्थात् जिस लक्ष्मण को तुम सामान्य राजकुमार समझ रहे हो, वह प्रबल पराक्रमी वीर है। इसके साथ टक्कर लेना अपनी मुँह की खाना है।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय ( व्याख्या) स्पष्ट करें । 
उत्तर – लक्ष्मण परशुराम से बोले- ‘आप तो मानो से बोले- ‘आप तो मानो मृत्यु को हाँक लगा-लगाकर मेरे लिए बुला रहे हो।’ लक्ष्मण के ये कठोर व्यंग्य-वचन सुनते ही परशुराम ने अपने भयंकर फरसे को सुधार कर सीधा कर लिया। वे बोले- अब लोग इस बालक के वध के लिए मुझे दोष न दें । यह कटु वचन कहने के कारण वध के योग्य है। मैं तो इसे बालक समझकर बहुत बचाता रहा। परंतु अब यह सचमुच ही मारने योग्य हो चुका है। बात बिगड़ती देखकर विश्वामित्र ने परशुराम को कहा- परशुराम जी ! आप तो साधु हैं। साधुजन बालकों के गुण-दोषों पर अधिक ध्यान नहीं दिया करते । इसलिए इसे क्षमा कर दें। परशुराम बोले- विश्वामित्र जी ! आप जानते हैं कि मैं बहुत निर्दयी और क्रोधी हूँ। मेरे हाथों में तेज कुल्हाड़ी भी है। सामने मेरे गुरु का अपमान करने वाला अपराधी खड़ा है और वह बार-बार जवाब पर जवाब दिए जा रहा है। इतना होने पर भी मैं अगर इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ तो केवल तुम्हारे प्रेम और सद्भाव के कारण। नहीं तो मैं अब तक इसे इस कठोर कुल्हाड़ी से काटकर थोड़े ही परिश्रम से गुरु ऋण से उऋण हो गया होता ।
विश्वामित्र ने मन में हँसकर कहा- देखो, मुनि परशुराम को कैसे हरा-ही-हरा सूझ रहा है। अर्थात् वे सब क्षत्रियों को हराने के कारण राम-लक्ष्मण को भी सामान्य क्षत्रिय मान रहे हैं और उन्हें आसानी से मार डालने के सपने देख रहे हैं। वे यह नहीं जानते कि उनके सामने गन्ने के रस से बनी खाँड नहीं बल्कि लोहे का बना हुआ तेज खाँडा (तलवार) है। अर्थात् राम-लक्ष्मण सामान्य वीर न होकर बहुत पराक्रमी योद्धा हैं। मुनि जी अज्ञानियों की तरह इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे हैं।
6. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा । को नहि जान बिदित संसारा ।। 
माता पितहि उरिन भये नीकें । गुररिनु रहा सोचु बड़ जी कें ।। 
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा । दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा ।। 
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली । तुरत देउँ मैं थैली खोली।। 
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सब सभा पुकारा।। 
भुगुबार परसु देखाबहु मोही । बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही।। 
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े ।। 
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे । रघुपति सयनहि लखनु नेवारे ।। 
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु । 
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ।।
(क) परशुराम की गर्वपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य में क्या कहा ? 
उत्तर – परशुराम की बातें सुनकर लक्ष्मण ने व्यंग्य में यह कहा कि हे मुनि ! सारा संसार आपके शील-व्यवहार से परिचित है। तुमने माता के ऋण से तो छुटकारा पा लिया। हाँ अब गुरु का ऋण आप पर अवश्य है। उस ऋण को आप हमारे मत्थे मढ़ रहे हो। काफी दिन बीत गए हैं अतः ब्याज भी बढ़ गया होगा। आप किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए, मैं सारा चुकता कर दूँगा।
(ख) लक्ष्मण के व्यंग्यपूर्ण वचन सुनकर परशुराम पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर – लक्ष्मण के व्यंग्यपूर्ण वचन सुनकर परशुराम क्रोध मुद्रा में आ गए और हाथ में फरसा सँभाल लिया। यह देखकर सारी सभा में हाहाकार मच गया क्योंकि किसी अनर्थ की संभावना उत्पन्न हो रही थी।
(ग) लक्ष्मण ने परशुराम के व्यवहार पर क्या प्रतिक्रिया प्रकट की ?
उत्तर – लक्ष्मण ने करारा उत्तर देते हुए कहा- आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं और मैं आपको ब्राह्मण समझकर बचा रहा हूँ। आपका पाला कभी शूरवीरों से पड़ा ही नहीं । आप तो अपने घर के ही वीर हैं अर्थात् अपने घर में ही शेर हैं, बाहर आकर देखिए ।
(घ) लक्ष्मण के उत्तर पर सभा में तथा राम पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर – लक्ष्मण के उत्तर पर सभा कह उठी- यह अनुचित है, अनुचित है। राम ने बात को बढ़ती देखकर संकेत से लक्ष्मण को चुप हो जाने के लिए कहा।
(ङ) परशुराम के गुरु कौन थे ? वे गुरु ऋण किस प्रकार उतारना चाहते थे ? 
उत्तर – परशुराम के गुरु भगवान शिव थे । वे शिव-धनुष तोड़ने वाले का वध करके गुरु-ऋण से उऋण होना चाहते थे।
(च) लक्ष्मण किस ऋण और ब्याज की बात कर रहे हैं ? 
उत्तर – लक्ष्मण परशुराम के गुरु ऋण और उसके ब्याज की बात कर रहे हैं। उनके अनुसार, परशुराम अपने गुरु शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं इसके लिए वह उनके धनुष को तोड़ने वाले का वध करना चाहते हैं। यह काम होने में बहुत देर हो चुकी है, इसलिए वह लक्ष्मण को मारकर शीघ्र ही उसका ब्याज चुकाना चाहते हैं।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – लक्ष्मण ने परशुराम को व्यंग्य में कहा- हे मुनि ! भला आपके शील को कौन नहीं जानता। यह संसार भर में विख्यात है। आप अपने माता-पिता के ऋण से तो अच्छी प्रकार से उऋण हो ही ग हो ही गए हैं, अब तो गुरु का ऋण शेष रह गया है, सो आपके मन में उसकी बड़ी चिंता है। वह हमारे माथे पर काढ़ा गया है अर्थात् निकाला गया है। इसे बहुत दिन बीत हैं ब्याज भी मा बहुत बढ़ गया होगा। Bअब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए, मैं तु तुरत थैली खोलकर दे दूँगा अर्थात् हिसाब चुकता कर दूँगा।
यह लक्ष्मण जी के कटु वचन सुनकर परशुराम ने अपने फरसे को सँभाल देखकर सारी सभा ‘हाय-हाय’ करके पुकार उठी। तब लक्ष्मण जी बोलेभृगुश्रेष्ठ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं, पर हे राजाओं के शत्रु! मैं ब्राह्मण समझकर बचा रहा हूँ। आपको कभी रणवीर और बलवान वीर मिले ही नहीं। हे ब्राह्मण देव आप अपने घर में ही श्रेष्ठ यह सुनकर सब लोग पुकार उठे- यह अनुचित है, यह अनुचित है। तब श्रीराम ने आँख के इशारे से लक्ष्मण को रोक दिया ।
लक्ष्मण जी के उत्तर परशुराम की क्रोधाग्नि में आहुति के समान काम कर रहे थे। इस क्रोधाग्नि को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्रीरामचंद्र ने जल के समान ( शांत करने वाले) वचन बोले ।

देव

सवैया

1. पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई । 
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई । 
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई । 
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई ।। 
(क) कवि और कविता का नाम लिखें । 
उत्तर – कवि का नाम- देव, कविता का नाम- सवैया ।
(ख) इस सवैये का वर्ण्य विषय क्या है ? 
उत्तर – इस सवैये का वर्ण्य विषय है- श्रीकृष्ण के अप्रतिम सौंदर्य का बखान करना । यह वर्णन उनके सामंती सौंदर्य को दर्शाता है।
(ग) श्रीकृष्ण के किन-किन आभूषणों के बारे में क्या कहा गया है ? 
उत्तर – श्रीकृष्ण ने पैरों में पाजेब ( नूपुर) तथा कमर में करधनी पहन रखी है। ये दोनों आभूषणों बड़ी मधुर ध्वनि कर रहे हैं। यह ध्वनि मन को भाती है।
(घ) श्रीकृष्ण के शरीर के सौंदर्य का वर्णन करें।
उत्तर – श्रीकृष्ण का रंग साँवला है। उनके साँवले शरीर पर पीतांबर की शोभा देखते ही बनती है। उनके गले में बन के फूलों की माला सुशोभित हो रही है। उनके माथे पर मुकुट है तथा उनके नेत्र बड़े और चंचल हैं। श्रीकृष्ण के मुखचंद्र पर हँसी चाँदनी के समान बिखरी रहती है।
(ङ) कृष्ण को दीपक क्यों कहा गया है ? वे ब्रजदूलह क्यों हैं ?
उत्तर – श्रीकृष्ण इस जग रूपी मंदिर के दीपक हैं। उन्हें दीपक इसलिए कहा गया है क्योंकि उनसे लोगों को प्रकाश मिलता है। उनकी हँसी प्रकाश देने वाली प्रतीत होती है। उनको ब्रजदूलह इसलिए कहा गया है क्योंकि वे समस्त ब्रज के प्रिय हैं।
(च) ‘जग-मंदिर-दीपक’ किन्हें कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – संसार यदि एक मंदिर है तो कृष्ण उस मंदिर में जलते हुए दीपक के समान हैं। वे संसार में सबसे सुंदर और उज्ज्वल होने के कारण जग-मंदिर के दीपक प्रतीत होते हैं।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें। 
उत्तर – कवि बताता है कि श्रीकृष्ण के पैरों में पाजेब हैं और वे मधुर ध्वनि में बज रहे हैं। उनकी कमर में तगड़ी बँधी है जिसकी धुन भी बड़ी मधुर है। श्रीकृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र शोभायमान हो रहे हैं। उनके गले में बनमाल शोभित हो रही है। श्रीकृष्ण के माथे पर मुकुट है और नेत्र बड़े और चंचल हैं। श्रीकृष्ण के मुख रूपी चंद्र पर मुस्कराहट चाँदनी के समान बिखरी रहती है। इस संसार रूपी मंदिर में वे दीपक के समान सुंदर प्रतीत होते हैं। वे ब्रज के दूल्हा हैं और देव की सहायता करने वाले हैं।

कवित्त

1. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के, 
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी है । 
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’, 
कोकिल हलावै- हुलसावै कर तारी दे ।। 
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन, 
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै। 
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि, 
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै ।। 
(क) कवि और कविता का नाम लिखें । 
उत्तर – कवि का नाम- देव,
कविता का नाम- कवित्त ।
(ख) वसंत रूपी शिशु कहाँ, किस प्रकार सोया हुआ है ?  
उत्तर – वसंत रूपी शिशु पेड़ की डाल पर नए-नए पत्तों रूपी बिछौने पर फूलों का झिंगोला पहनकर सोया हुआ है।
(ग) इस शिशु की सेवा में कौन-कौन किस रूप में लगे हैं ? 
उत्तर – इस शिशु को पवन झुला रहा है, मोर और तोता इससे बतिया रहे हैं, कोयल ताली बजा-बजाकर इसे हिलाती और डुलाती है। ये सभी पक्षी उसकी सेवा में लगे हैं।
(घ) कंजकली किस रूप में, क्या कर रही है ?
उत्तर – कंजकली अर्थात् कमल की कली रूपी नायिका सिर पर लताओं रूपी साड़ी ओढ़कर इस वसंत रूपी शिशु की नजर उतार रही है। जिस प्रकार राई- नोन से बालक की नजर उतारी जाती है उसी प्रकार यह नायिका पराग से इस बालक की नजर उजार रही है।
(ङ) इस बालक को जगाने का काम कौन करता है ? 
उत्तर – इस वसंत रूपी बालक को प्रातःकाल जगाने का काम गुलाब चुटकी बजाकर करता है ।
(च) कवि को पेड़, पत्ते और सुमन किस रूप में दिखाई पड़ते हैं ?
उत्तर – कवि को लगता है कि पेड़ और उसकी डालें वसंत रूपी शिशु के सोने के लिए पालना है। पत्ते मानो उस शिशु के लिए आरामदायक बिछौना है। सुमन मानो उस शिशु का कामदार झिंगूला है ।
(छ) लताओं को देखकर कवि क्या कल्पना करता है ?
उत्तर – सुसज्जित फूलों वाली ऊँची-ऊँची लताओं को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है मानो यह नायिका की जरीदार और फूलदार साड़ी है जिसे उसने सिर तक ओढ़ रखा है।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – दरबारी कवि देव वसंत ऋतु की कल्पना कामदेव के नव-शिशु के रूप में करते हैं। वे कहते हैं- पेड़ और उसकी डालें वसंत रूपी शिशु के लिए पलना हैं। वृक्षों के नए पत्ते उस पलने पर बिछा हुआ बिछौना हैं। फूलों से लदा हुआ झिंगूला उसके तन को बहुत अधिक शोभा दे रहा है। स्वयं वायु आकर उसका पलना झुला रही है। मोर और तोता मधुर स्वर में उससे बातें करके हाल बाँट रहे हैं। कोयल आ-आकर उसे हिलाती है तथा तालियाँ बजा बजाकर प्रसन्न करती है। कुंज के फूलों से लदी लताएँ मानो सुसज्जित साड़ी है, जिसे नायिका ने सिर तक ओढ़ा हुआ है। वह पराग के कणों को उड़ाकर मानो राई- नोन की रस्म पूरी कर रही है, ताकि वसंत रूपी शिशु को किसी की नजर न लगे । इस प्रकार वसंत मानो कामदेव जी का नन्हा बालक है, जिसे जगाने के लिए सवेरा हर रोज गुलाब चुटकी दिया करता है ।
2. फ्रंटिक सिलानि सौं सुधार्यो सुधा मंदिर, 
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद । 
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’, 
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद । 
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति, 
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद । 
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै, 
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद ।।
(क) ‘उदधि दधि’ की कल्पना स्पष्ट करें।
उत्तर – धरती और आकाश के बीच में इतनी उज्ज्वल चाँदनी है कि कवि को लगता है मानो यह दही का समुद्र उफन रहा है। पानी का समुद्र कहने से रंगहीनता का प्रभाव बनता है। जबकि चाँदनी दूधिया होती है। इसलिए कवि ने दही के समुद्र कल्पना की है।
(ख) तारों को देखकर कवि क्या कल्पना करता है ?
उत्तर – जगमगाते तारों को देखकर कवि को लगता है कि जगमगाते महल के चमकदार फर्श पर राधा की सखियाँ सजी-धजी खड़ी हैं। वे अभी रासलीला रचाएँगी।
(ग) राधिका किस प्रकार प्रतीत होती है ?
उत्तर – कवि को राधिका दर्पण में झलकती उजली आभा जैसी प्रतीत होती है। चंद्रमा तो मात्र उसकी परछाईं के समान है।
(घ) कवि की कल्पना शक्ति पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – कंजकली अर्थात् कमल की कली रूपी नायिका सिर पर लताओं रूपी साड़ी ओढ़कर इस वसंत रूपी शिशु की नजर उतार रही है। जिस प्रकार राई- नोन से बालक की नजर उतारी जाती है उसी प्रकार यह नायिका पराग से इस बालक की नजर उतार रही है ।
(ङ) कवि द्वारा कल्पित ‘सुधा मंदिर’ की कल्पना स्पष्ट करें। 
उत्तर – कवि ने पूनम की रात को आकाश में सब ओर फैली उजली चाँदनी को देखा तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानो आकाश में कोई चाँदनी महल बन गया हो। कवि ने चाँदनी के प्रकाश को मनोरम बनाने के लिए उसे ‘सुधा-मंदिर’ कह दिया है । इस प्रकार चाँदनी के प्रभाव की मधुरता को भी प्रकट किया गया है।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि चाँदनी रात में काल्पनिक मंदिर को स्फटिक शिला से बने मंदिर के रूप में देखता है। इस मंदिर को संगमरमर की शिलाओं को सुधारकर अमृत मंदिर के रूप में बनाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि दही का समुद्र बहुत अधिक उमंग के साथ उमड़ता चला आ रहा है। इस मंदिर में बाहर से भीतर तक कहीं भी दीवार दिखाई नहीं दे रही है। इस मंदिर के आँगन में फर्श ऐसा लग रहा है मानो दूध का फेन (झाग) फैल गया हो। इस सफेद मंदिर में तारे के समान तरुणी (नायिका) खड़ी है और झिलमिला रही है। इसमें मोतियों का प्रकाश (ज्योति) मल्लिका के फूलों के रस में मिलता प्रतीत होता है। सारा वातावरण सफेद प्रतीत होता है। आकाश शीशे के समान है। इस आइने में चंद्रमा राधा प्यारी का प्रतिबिंब के समान प्रतीत होता है। उसकी आभा उजियारी लगती है।

जयशंकर प्रसाद

आत्मकथ्य

1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी ।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती ।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीति ।
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम- जयशंकर प्रसाद,
कविता का नाम- आत्मकथ्य |
(ख) यह मधुप कौन है ? यह क्या कहता है ?
उत्तर – यह मधुप मनरूपी भौंरा है। यह गुनगुनाकर अपनी कहानी कह जाता है। पता नहीं यह कहानी कौन-सी है ?
(ग) मुरझाकर गिरती पत्तियाँ किस ओर संकेत करती हैं ?
उत्तर – मुरझाकर गिरती पत्तियाँ विश्व की सारहीनता को व्यक्त करती हैं। इस प्रकार व्यक्ति की वेदना का कहीं अंत नहीं है ।
(घ) ‘गंभीर अनंत-नीलिमा’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – ‘गंभीर अनंत-नीलिमा’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि यह दुनिया बहुत बड़ी है। यहाँ अनगिनत लोग बसते हैं और अपना – अपना जीवन जीते हैं |
(ङ) ‘असंख्य जीवन – इतिहास’ से क्या आशय है ?
उत्तर – ‘असंख्य जीवन – इतिहास’ का आशय है- अनगिनत आत्मकथाएँ । संसार में अनेक लोगों ने अपने-अपने जीवन की कथाएँ लिखी हैं ।
(च) कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं कहना चाहता ?
उत्तर – कवि कहता है कि वह साधारण व्यक्ति है। वह नहीं चाहता कि अपने जीवन के व्यक्तिगत क्षणों के विषय में दूसरे लोगों को बताए क्योंकि लोग उसका उपहास करेंगे ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय ( व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है कि फूलों पर गुंजार करने वाला भ्रमर गुनगुनाकर न जाने अपने मन की कौन-सी वेदना की अभिव्यक्ति कर जाता है। यह पता नहीं चलता है कि वह उस समय क्या कहता है। घनी पत्तियाँ मुरझाकर जमीन पर गिर रही हैं। ये आज बहुत अधिक घनी हो रही हैं। तात्पर्य है कि यह विश्व सारहीन है अतः व्यक्ति की वेदना का कहीं भी अंत नहीं है। आगे कवि कहता है कि इस गंभीर और आर-पार रहित (अनंत) नीले आकाश के नीचे अनगिनत जीवन के इतिहास बनते-बिगड़ते रहते हैं और यह एक विचित्र बात है कि वे सब अपने आप में अपनी स्थिति पर व्यंग्य करते हैं अर्थात् जीवन की अनेक रेखाएँ अपने अस्तित्व पर स्वयं हँसती रहती हैं। इस पर भी (जबकि व्यक्ति का अस्तित्व ही भ्रमपूर्ण कहते हो कि मैं अपनी दुर्बलता को कह डालूँ। मैं अपने ऊपर बीतने वाली व्यथा को सुना दूँ। मेरी जीवन रूपी गागर तो खाली है, अतः तुम शायद मेरी कथा सुनकर कुछ पाओगे, इसमें मुझे संदेह है
2. किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले –
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले ।
यह विडंबना ! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की ।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की ।
(क) कवि को क्या आशंका है ?
उत्तर – कवि को आशंका यह है कि उसकी कथा सुनने वाला अर्थात् उसका प्रिय ही त तो वह नहीं है जिसने उसके जीवन की गागर खाली की हो । कहीं उसी ने तो नहीं कवि की गागर से रस लेकर अपनी गागर में भर लिया हो । कवि के जीवन का रस प्रिय के जीवन में जा पहुँचा हो ।
(ख) कवि ‘खाली करने वाले किसे कह रहा है और क्यों ?
उत्तर – कवि अपने उन मित्रों को खाली करने वाले’ कह रहा है, जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा। क्योंकि कवि के निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है, उनके साथ के साहित्यिक मित्रों ने ही उनकी खुशी और उन्नति में बाधा डाली हो । इस प्रकार उन्होंने उसके जीवन को वंचित करने की कोशिश की हो।
(ग) कौन है जो कवि के रस से अपनी गगरी भर गया ?
उत्तर – कवि के निजी और साहित्यिक मित्र ही उसके जीवन के रस से अपनी गगरी भरने वाले हैं। कवि का संकेत है कि उनके आस-पास भँवरे की तरह मँडराने वाले मित्रों ने उनके काव्य-रस को सोखकर स्वयं को उन्नत बना लिया ।
(घ) कवि किस बात को विडंबना कह रहा है और क्यों ?
उत्तर – कवि अपने स्वभाव की सरलता को दोष नहीं देना चाहता। यदि वह अपनी सरलता को अपने कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। क्योंकि कवि अपनी सरलता को लेकर प्रसन्न है। यदि उसे सरलता के कारण कई कष्ट भी झेलने पड़े, तो भी वह इसमें बुरा नहीं मानता।
(ङ) कवि की बीती रातें कैसी थीं ?
उत्तर – कवि की बीती रातें बहुत ही अच्छी थीं। वह अपने प्रिय के साथ मधुर चाँदनी रात में बैठकर खूब खिलखिलाकर हँसता था। उस वातावरण में बड़ी मीठी-मीठी बातें होती थीं।
(च) खिल-खिला कर हँसते हुए होने वाली बातों का क्या आशय है ?
उत्तर – खिल-खिला कर हँसते हुए होने वाली बातों का आशय है- प्रेम के सुमधुर क्षण; अपनी प्रेमिका के संग जिए हुए प्रेमिल क्षण |
(छ) ‘मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर – कवि को यौवन की स्वर्णिम बेला में अपनी प्रिया का भरपूर प्रेम मिला था। उन मधुर रातों की कहानी अन्तहीन है। इस तथ्य को इस पंक्ति के माध्यम से स्पष्ट किया गया है ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है कि हे प्रिय ! कहीं ऐसा न हो कि तुम्ही मेरी गागर को खाली करने वाले हो। तुम मेरी जीवन रूपी गागर से रस लेकर अपनी गागर भरने वाले हो । अतः जब तुम मुझे खाली करके स्वयं को भरते हो तो तुम मुझे कैसे भरोगे ? कवि कहता है कि यह जीवन एक छलावा है। सबसे बड़ा आश्चर्यजनक छल तो यह है कि मैं अपनी सरलता की हँसी उड़ाऊँ। मैं दूसरों की प्रवंचनाओं और भूलों को दूसरों को दिखलाऊँ। अपने जीवन में आने वाली प्रवंचना को याद करके मैं उन मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वलता गाथा को कैसे गाऊँ, जो जीवन में कभी आई थीं। मैं उन रातों की बातों को कैसे बताऊँ, जिनमें हम खिलखिलाकर हँसते थे अर्थात् दुःख के समय सुख को याद करना अपने ऊपर हँसने के समान है।
3. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया ।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया ।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में ।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की ।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?
(क) कवि किसकी प्रतीक्षा करता रह गया ?
उत्तर – कवि उस सुख के आने की प्रतीक्षा करता ही रह गया जिसकी कल्पना करके वह स्वप्न से जाग गया। वह सुख कवि के आलिंगन में आते आते मुसकुराकर भाग गया अर्थात् उसके निकट आते-आते रह गया।
(ख) ‘अरुण-कपोलों’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि कहता है कि प्रेयसी के लाल-लाल गालों की सुंदर मतवाली छाया में उषा भी अपना सुहाग-सुख तलाशती थी । प्रेयसी के गालों की लालिमा उषा के लिए भी ईर्ष्या का विषय था ।
(ग) वह कौन हो सकता है जो कवि के आलिंगन में आते-आते भाग गया ?
उत्तर – वह ह कवि की प्रेमिका (या पत्नी) ही है जिसका वह आलिंगन करते-करते रह गया। उसकी प्रेमिका मुसकरा कर उससे दूर चली गई। कवि ने तीन बार विवाह किए थे। तीनों पत्नियाँ एक के बाद एक चल बसीं। कवि उन्हीं पत्नियों की बात कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न पाया कि वे उससे दूर चली गईं।
(घ) कवि को क्या आशंका है ?
उत्तर – कवि को यह आशंका है कि कथा सुनाने का आग्रह करने वाला उसके जीवन रूपी गुदड़ी की सिलाइयों को उधेड़कर देखेगा अर्थात् वह उसके जीवन की ra समीक्षा करेगा ।
(ङ) अरुण-कपोलों और अनुरागिनी उषा का क्या सम्बन्ध बताया गया है ?
उत्तर – कवि ने ‘अरुण-कपोल’ के लिए ‘अनुरागिनी उषा’ का उपमान प्रस्तुत किया है। उसने प्रेमिका के अरुण-कपोलों को अनुरागिनी उषा की लालिमा से बहुत अधिक – वसुंदर और लाल दिखाया है। इस तुलना के कारण अरुण-कपोलों का सौंदर्य कई गुना बढ़ गया है।
(च) ‘कवि सीवन को उधेड़ कर देखना’ किसे कह रहा है ?
उत्तर – कवि अपनी आत्मकथा लिखने को ‘सीवन को उधेड़कर देखना’ कह रहा है। कवि का आशय यह है कि यदि वह सच्ची आत्मकथा लिखेगा तो लोगों को उसके जीवन का एक-एक रहस्य पता चल जाएगा। लोग उसके एक-एक दुख और के अभाव को देखकर उसके जीवन को चिथड़े-चिथड़े कर डालेंगे।
(छ) ‘कथा’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर – ‘कथा’ का आशय है- गुदड़ी । इसका प्रतीकार्थ है- कवि का जीवन गुदड़ी के समान नगण्य है। उसमें किसी प्रकार की महानता नहीं है। वह बहुत साधारण मनुष्य है।
(ज) कवि की प्रेमिका के कपोल कैसे थे ?
उत्तर – कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे मतवाले और लाल थे कि स्वयं ऊषा की लाली भी उससे कुछ लाली उधार लेती थी ।
(झ) उसकी स्मृति पाथेय बनी है’ का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है – अब वह अपनी सुंदर प्रेमिका / पत्नी की यादों के सहारे ही जीवन जी रहा है ।
(ञ) कवि के जीवन का आधार क्या है ?
उत्तर – कवि की प्रेम-भरी यादें ही उसके जीवन का आधार है। वह अपने विफल प्रेम के बारे में सोच-सोचकर जीवन के दिन काट रहा है।
(ट) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि अपनी आत्मकथा सुनाते हुए कहता है- जिन सुखों के सपने देख-देखकर मैं जाग जाता था, वे मुझे कभी मिल नहीं पाए । मैं जिस भी प्रिय का आलिंगन करने के लिए बाहें आगे बढ़ाता, वह प्रिय मुसकरा कर भाग जाता रहा। मेरी कामनाएँ कभी सफल नहीं हो पाईं।
मेरी प्रेमिका के लाल-लाल गाल इतने मतवाले और सुंदर थे कि प्रेममयी ऊषा भी अपनी सुगंधित मधुर लालिमा उसी से उधार लिया करती थी। आशय यह है कि मेरी प्रेमिका के लाल कपोल ऊषाकालीन लालिमा से भी मनोरम थे।
आज उसी प्रेममयी प्रेमिका की यादें ही मुझ थकित यात्री के लिए संबल बनी हुई हैं। उन्हीं के सहारे मेरा जीवन चल रहा है। तो हे मित्र ! क्या तुम मेरी उन यादों को उधेड़-उधेड़ क कर उनके भीतर झाँकना चाहते हो ? मेरी आत्मकथा पढ़कर उनका मेरे भूले हुए दर्द को फिर से जगाना चाहते हो ? मेरी फटी हुई जिंदगी को तार-तार करके देखना चाहते हो !
4. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा ?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा ।
(क) कवि अपनी कथा क्यों नहीं कहना चाहता ?
उत्तर – कवि अपनी कथा इसलिए नहीं कहना चाहता क्योंकि इससे किसी का भला नहीं होने वाला। अभी इस कथा को कहने का उचित समय भी नहीं आया है। अभी कवि की मौन व्यथा थककर सोई है अर्थात् शांत पड़ी है। अभी उसे जगाने का अवसर नहीं है।
(ख) ‘अभि समय भी नहीं’ से कवि का क्या आशय रहा होगा ?
उत्तर – इसके दो आशय हो सकते हैं
(i) अभी कवि के जीवन में ऐसा कोई महान अवसर नहीं आया, जिसे लोगों में बाँटा जा सके। अभी उसने ऐसी कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं की जिसके बारे में जानकर लोगों को कोई प्रेरणा मिले।
(ii) अभी उसके मन की व्यथाएँ सोई पड़ी हैं। चित्त शांत है। अतः यह आत्मकथा लिखने का उचित अवसर नहीं है। जब व्यथाएँ व्यक्त होने के लिए व्याकुल होंगी, तब आत्मकथा लिखने का उचित अवसर आएगा।
(ग) कवि क्यों कहता है- ‘सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?’
उत्तर – कवि को लगता है कि उसके जीवन में कुछ भी महान नहीं है। उसे जानकर कुछ नहीं सीखा जा सकता। उसके जीवन में सरलता और भोलेपन के सिवा कुछ भी नहीं है। इसलिए वह कहता है कि ऐसे जीवन के बारे में कुछ जानना व्यर्थ है।
(घ) ‘छोटे-से-जीवन’ और ‘बड़ी कथाएँ’ का गूढ़ आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि स्वयं को बहुत सामान्य व्यक्ति कहता है। इसलिए वह अपने जीवन को छोटा-सा जीवन कहता है । ‘बड़ी कथाएँ’ का आशय है- महान बातें, ऊँची बातें । कवि अपनी सामान्य जिंदगी को बड़ी-बड़ी बातें करके बनावटी रूप से महान नहीं सिद्ध करना चाहता।
(ङ) ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है कि मेरे जीवन की व्यथाएँ दुख झेलते-झेलते थक कर मौन हो चुकी हैं। आशय यह है कि मैंने अनेक कष्ट सहे हैं। परन्तु अब मेरा चित्त थककर मौन और शांत पड़ा है। अब मैं आत्मकथा लिखकर उन्हें फिर से हरा नहीं करना चाहता।
(च) कवि की कठिनाई क्या है ?
उत्तर – कवि की कठिनाई यह है कि उसका जीवन तो बहुत छोटा है। वह इस छोटे जीवन की बड़ी कथाएँ किस प्रकार कहे ।
(छ) कवि अपनी कथा कहने की बजाए कौन-सा पथ अपनाना चाहता है ?
उत्तर – कवि अपनी कथा कहने की बजाए औरों की कथाएँ सुनाना चाहता है।
(ज) कवि ने किस प्रकार विनय प्रकट की है ?
उत्तर – कवि ने स्वयं को सामान्य, छोटा-सा और साधारण कहकर अपनी विनय प्रकट की है।
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रसाद जी कहते हैं- मेरा जीवन बहुत सामान्य-सा है। मैं तुच्छ-सा मनुष्य हूँ। मैं अपने साधारण जीवन की बड़ी-बड़ी यशगाथाएँ कैसे लिखूँ। इससे तो अच्छा यही है कि मैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ। अपने बारे में मौन रहूँ।
कवि मित्रों को संबोधित करते हुए कहता है— भला तुम मेरी भोली-भाली, सीधी-सादी आत्मकथा को सुनकर क्या करोगे ? उसमें तुम्हारे काम की कोई बात नहीं है। और अभी मैंने ऐसी कोई महानता भी अर्जित नहीं की है जिसके बारे में अपने अनुभव लिखूँ । एक बात और है, मेरे जीवन के सारे दुख-दर्द और अभाव अब शांत हैं। इसलिए मेरे मन में कुछ भी लिखने की उमंग नहीं है।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

उत्साह

1. बादल, गरजो !
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ !
ललित ललित, काले घुँघराले
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले !
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल, गरजो !
(क) कवि और कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि का नाम- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,
कविता का नाम- उत्साह ।
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा – श्री
पट नहीं रही है।
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,
कविता का नाम– अट नहीं रही है।
(ख) ‘साँस लेना’ किस स्थिति का परिचायक है ?
उत्तर – फागुन महीने का खुलकर साँस लेना अपनी शोभा को खुलकर प्रकट करने का  परिचायक है। इसका एक अर्थ है- सुगंधित हवाओं का चलना ।
(ग) ‘अट नहीं रही है’ का क्या आशय है ?
उत्तर – ‘अट नहीं रही है’ का आशय है कि फागुन मास (वसंत) की शोभा इतनी अधिक है कि वह न तो प्रकृति में समा पा रही है और न तन पर।
(घ) फामुन की आभा का प्रभाव कहाँ-कहाँ दिखाई देता है ?
उत्तर – फागुन की आभा का प्रभाव सर्वत्र है । फागुन की सुगंध से प्रत्येक घर है। फागुन प्रत्येक व्यक्ति के मन को उत्साह एवं आनंद से भर देता है। वह लोगों रहा  के मन में ‘नई-नई कल्पनाएँ जगाता है।
(ङ) फागुन के सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में करें ।
उत्तर – फागुन का सौंदर्य प्रकृति में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। वृक्षों की डालियाँ पत्तों से लद गई हैं। कहीं वे हरी हैं तो कहीं लाल हैं। किसी-किसी के गले में फूलों की माला पड़ी हुई है। जगह-जगह यह शोभा इतनी अधिक है कि समा नहीं पा रही है। फागुन की शोभा बहुत अधिक है।
(च) कवि की आँख किससे नहीं हट रही और क्यों ?
उत्तर – कवि की आँख फागुन की शोभा से नहीं हट रही है। क्योंकि फागुन में खिले रंग-बिरंगे फूल, हरियाली और आकाश की स्वच्छता उसे मोहित कर रही है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय ( व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि बताता है कि फागुन मास का सौंदर्य इतना अधिक है कि उसकी शोभा समा नहीं पा रही है । यह शोभा प्रकृति के साथ-साथ शरीर पर भी दृष्टिगोचर हो रही है।
कवि फागुन का मानवीकरण करता है। उसे साँस लेते हुए दर्शाता है। वह अपनी सुगंध को सर्वत्र भर देता है। घर-घर इससे महक उठता है। चारों ओर फागुन का व्यापक सौंदर्य झलकता है। इससे मन कल्पनाओं के पंख लगाकर उन्मुक्त गगन में उड़ने को उत्सुक हो उठता है। कवि सर्वत्र फागुन के सौंदर्य का दर्शन करता है। उसकी आँखें इस सौंदर्य से अघाती नहीं। वह अपनी नजर इससे हटा नहीं पाता। पेड़-पौधों की डालियाँ हरे-हरे पत्तों से लद गई हैं कहीं हरी है तो कहीं लाल आभा झलकती प्रतीत होती है। लोगों के गलों में धीमी-धीमी सुगंध वाले फूलों की माला पड़ी हुई है। प्रकृति फूलों से भरपूर है। चारों तरफ फागुन का सौंदर्य और उल्लास दिखाई पड़ता है। फागुन की शोभा जगह-जगह दिखाई दे रही है, वह समाए नहीं समा रही ।

नागार्जुन

यह दंतुरित मुसकान

1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…..
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल ?
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम- नागार्जुन’,
कविता का नाम– यह दंतुरित मुसकान ।
(ख) दंतुरित मुसकान किसे कहा गया है ?
उत्तर – नए-नए दाँत निकालने वाले शिशु की मुसकान को ‘दंतुरित मुसकान कहा गया है। ऐसे अबोध शिशु की मुसकान बहुत मनमोहक और निर्दोष होती है।
(ग) शिशु के धूल-सने शरीर को देखकर कवि को कैसा प्रतीत होता है ?
उत्तर – शिशु के धूल-सने शरीर को देखकर कवि को लगता है मानो उसकी झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों । आशय यह है कि शिशु की सहज सुंदरता को देखकर वह प्रसन्न हो उठता है।
(घ) बच्चे की मुसकान मृतक में भी जान कैसे डाल देती है ?
उत्तर – बच्चे की मुसकान निराश या हताश व्यक्ति में भी आशा और प्रसन्नता का संचार करती है। उसे उत्साहित करती है।
(ङ) कवि के अनुसार शिशु के स्पर्श से क्या-क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर – शिशु के स्पर्श से ही कठोर पत्थर पिघलकर जल बन गया है या कठोर व्यक्ति का हृदय पिघल जाता है और उसके स्पर्श से ही काँटेदार पेड़ों से भी शेफालिका के फूलों की वर्षा होने लगी है ।
(च) “छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?” इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – शिशु का सौंदर्य ऐसा अद्भुत है कि स्पर्श मात्र से कठोर या रसहीन व्यक्ति के हृदय में भी रस उमड़ आता है, उसे देखकर उसका हृदय उठता है।
(छ) मृतक में जान डालने की शक्ति किसमें है ? मृतक में जान डालने का क्या आशय है ?
उत्तर – नए-नए दाँत निकालने वाले शिशु की मुसकान में मृतक में भी जान डालने की.शक्ति होती है। मृतक में जान डालने का आशय है— गंभीर और उदास मनुष्य को प्रसन्न करने की शक्ति ।
(ज) ‘छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात’ पंक्ति का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है कि जब छोटे शिशु को हँसते हुए देखता है तो उसे लगता है कि कमल तालाब को छोड़कर उसकी झोपड़ी में खिल गए हैं ?
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि बच्चे को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम्हारे अभी नए-नए दाँत आए हैं। इन छोटे-छोटे दाँतों से झलकती मुसकान इतनी मनमोहक है कि यह निर्जीव व्यक्ति के हृदय में भी जान डाल देती है। इस मुसकान को देखकर मृतक में भी प्राणों का संचार होने लगता है। तुम्हारा यह धूल-मिट्टी से सना शरीर कमल के समान शोभायमान हो रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कमल का फूल सरोवर ( तालाब) में नहीं, मेरी झोंपड़ी में खिला है। ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारा कोमल स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघलकर जल बन गया है। तुम्हारे शरीर का कोमल स्पर्श बाँस और बबूल जैसे रसहीन काँटेदार वृक्षों भी शेफालिका के फूलों की वर्षा होने लगी है। कवि का मन भी बाँस और बबूल की भाँति शुष्क और ढूँठ हो गया था, अब बच्चे की मुसकान को देखकर उसका मन भी शेफालिका की भाँति सरस और सुंदर हो गया है।
2. तुम मुझे पाए नहीं पहचान ?
देखते ही रहोगे अनिमेष !
थक गए हो ?
आँख लूँ मैं फेर ?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार ?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी दंतुरित मुसकान
(क) बालक किसे अनिमेष देखता रह जाता है और क्यों ?
उत्तर – बालक अपने पिता को अनिमेष (लगातार पलक झपके बिना) देखता रह जाता है क्योंकि वह उसे पहली बार देखता है अतः अतिथि मान बैठता है। वह उसे पहचाने की कोशिश करता ही जान पड़ता है।
(ख) कवि आँख फेर लेने की बात क्यों कहता है ?
उत्तर – कवि आँख फेर लेने की बात इसलिए करता है क्योंकि ब बालक लगातार उसे देख रहा था। अतः वह थक गया होगा। अतः उसको विश्राम देने की दृष्टि से कवि स्वयं आँख फेर लेना चाहता है ।
(ग) कवि शिशु को देख पाने का अवसर कैसे पा सका ?
उत्तर – कवि शिशु को देख पाने का अवसर उसकी माँ के कारण ही पा सका। वही दोनों के मेल का माध्यम बनी । तुम्हारी माँ ने ही बताया कि तुम मेरी संतान हो अन्यथा वह बच्चे की दंतुरित मुसकान से अपरिचित ही रह जाता।
(घ) कवि किस-किस के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है और क्यों ?
उत्तर – कवि शिशु और उसकी माँ के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता है। इसका कारण यह है कि शिशु की माँ ( कवि की पत्नी) ने ही उसे यह अवसर प्रदान किया कि वह शिशु की दंतुरित मुसकान का आनंद ले सके। इसलिए दोनों धन्यवाद के पात्र हैं।
(ङ) कवि शिशु की दंतुरित मुसकान किसके सहारे देख पाया ?
उत्तर – कवि शिशु की दंतुरित मुसकान शिशु की माँ के सहारे देख पाया। जब तक उसके लिए कवि अनजान था, वह मौन और स्थिर रहा । जब उसकी माँ ने उसे कवि से परिचित कराया तो वह सहज रूप से मुसकराने लगा। इस प्रकार कवि शिशु की माँ के सहारे शिशु की दंतुरित मुसकान को देख सका।
(च) यदि कवि की पत्नी माध्यम न बनी होती तो वह क्या नहीं देख पाता ?
उत्तर – कवि की पत्नी यदि माध्यम न बनी होती तो वह अपने बालक की मनमोहक मुसकान कभी न देख पाता ।
(छ) कवि स्वयं को ‘अन्य’ क्यों कहता है ?
उत्तर – कवि प्रायः देश के दूरस्थ भागों में घूमता रहता है। वह अपने घर बहुत समय बाद परिवार के लोगों से मिलने आता है अतः वह स्वयं को अन्य कहता है।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि अपनी ओर एकटक निहारते शिशु को देखकर कहता है- अरे ! तुम मुझे इस तरह एकटक देखे जा रहे हो । समझ गया, तुम मुझे पहचान नहीं पाए हो। परंतु क्या तुम मुझे इस तरह लगातार अपलक देखते ही रहोगे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम थक गए हो। इसलिए हिलना-डुलना छोड़कर एकटक देखने लगे हो। अच्छा, अच्छा ! क्या तुम चाहते हो कि मैं अपनी आँखें फेर लूँ। तुम्हें इस तरह न देखूँ ? कवि कहता है- कोई बात नहीं अगर तुम मुझे पहली बार में नहीं पहचान पाए, तो कोई बात नहीं। मगर यदि तुम्हारी माँ ने हम दोनों को आपस में न मिलाया होता तो आज मैं तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान न देख पाता। न ही तुम्हारी इस मनमोहक रूप-छवि के बारे में जान पाता ।
3. धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य !
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य !
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान !
(क) कवि स्वयं को क्या कहता है और क्यों ?
उत्तर – कवि स्वयं को प्रवासी कहता है, क्योंकि वह घर से लंबे समय तक बाहर रहा था | घर से दूर रहने वाला व्यक्ति प्रवासी ही कहलाता है। वह लंबे अंतराल के बाद घर लौटता है।
(ख) मधुपर्क क्या होता है ? यहाँ उसका उल्लेख क्यों हुआ है ?
उत्तर – मधुपर्क मधु (शहद), दूध, दही, घी और गंगाजल को मिलाकर बनाया जाता है । यह अत्यंत पौष्टिक पेय होता है। यह बच्चे के स्वास्थ्य के लिए उत्तम एवं पुष्टिकार होता है। बच्चे की माँ इसे अपनी उँगली से उसे चटाती है। यहाँ शिशु के पालन-पोषण के संदर्भ में इसका उल्लेख हुआ है।
(ग) शिशु किस प्रकार देखता है ? कवि को वह दृष्टि कैसी लगती है ?
उत्तर – शिशु अपने पिता को अनजान अतिथि मानकर कनखियों से निहारता है। शिशु की यह बाँकी चितवन कवि को बड़ी छविमान प्रतीत होती है। यह दंतुरित मुसकान कवि को अत्यधिक प्रफुल्लित कर देती है।
(घ) बच्चे से स्नेह पाने के लिए संपर्क की क्या भूमिका है ?
उत्तर – बच्चे उसी से स्नेह करते हैं जिसके संपर्क में रहते हैं। अतः बच्चों को अपना बनाने के लिए उनके बीच रहना आवश्यक है।
(ङ) कवि किसकी माँ को धन्य कह रहा है और क्यों ?
उत्तर – कवि नव शिशु की माँ को धन्य कह रहा है। क्योंकि इसके दो कारण हैं
(i) उसने ऐसे प्यारे शिशु को जन्म दिया। उसकी माँ बनी।
(ii) वह ऐसे सुंदर शिशु का पालन-पोषण करती है और उसकी सुंदर रूप-छवि को निहारा करती है।
(च) कवि ने स्वयं को ‘अतिथि’ क्यों कहा है ?
उत्तर – कवि प्रायः घुमक्कड़ी में व्यस्त रहता था । वह कभी-कभी अपने घर आता था। अतः वह स्वयं को अतिथि कहता है ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि नए दाँतों वाले शिशु को संबोधित करके कहता है- तुम अपनी मोहक छवि के कारण धन्य हो। तुम्हारी माँ भी तुम्हें जानकर और तुम्हारी सुंदर रूप-छवि देखने के कारण धन्य है । एक मैं हूँ, जो लगातार लंबी यात्राओं के कारण तुम दोनों से अलग कुछ पराया हो गया हूँ। मैं तुम दोनों की प्यारी दुनिया से पृथक् ‘अन्य’ व्यक्ति-सा हो गया हूँ ।
ठीक भी है प्रिय शिशु ! मुझ मेहमान से तुम्हारा संबंध-संपर्क ही कितना है! बहुत कम। यह तो तुम्हारी माँ है जो तुम्हें अपनी उँगलियों से मधुपर्क चटाती रहती और वात्सल्य भरा प्यार देती रहती है। तुम जब तिरछी नजर से मुझे देखकर अपना मुँह फेर लेते हो; और उसके बाद तुमसे आँखें मिलती हैं। तुम्हारा – मेरा स्नेह प्रकट होता है, तब तुम मुसकरा पड़ते हो। सच कहूँ, तुम्हारे उगते हुए दाँतों वाली तुम्हारी मुसकान मुझे बहुत सुंदर लगती है। मैं उस मुसकान पर मुग्ध हो जाता हूँ।

फसल

1. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम- नागार्जुन’,
कविता का नाम- फसल ।
(ख) नदियों के पानी के जादू से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – नदियों के पानी के जादू से यह तात्पर्य है कि नदियों के पानी में जीवनदायी अमृत तत्त्व मिला होता है और उसे पाकर फसलें फल-फूल कर बड़ी होती हैं । फसलों के उगने में बहुत सारी नदियों का जल अपना योगदान देती है। इन्हीं के जल से खेतों की सिंचाई होती है। यह सब जादू के समान होता है।
(ग) ‘लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों से स्पर्श की गरिमा का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – इसका आशय यह है कि फसल के उगाने में लाखों-करोड़ों किसान श्रम करते हैं । – ये मेहनतकश किसान खेतों को तैयार कर बुआई, सिंचाई करते हैं, नन्हें-नन्हें पौधों को खाद रूपी भोजन परोसते हैं। जब यह फसल हरी-भरी होकर पूरी तरह अस्तित्व में आ जाती है तब यह संसार का पोषण करके महिमा प्राप्त करती है । इस तरह इसे गौरव प्रदान करने में लाखों-करोड़ों हाथों का योगदान होता है ।
(घ) ‘हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म में किस गुण-धर्म की बात कहीं गई है ?
उत्तर – हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म हैं- मिट्टी में रचे-बसे खनिज तत्व । हर मिट्टी के गुण-धर्म अलग-अलग होते हैं। किसान मिट्टी को हल से जोतकर उसमें बीज डालता है। मिट्टी उसमें अपना रस मिलाकर अंकुरित करती है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति और सृजनात्मकता उसके गुण धर्म हैं।
(ङ) ‘एक के नहीं, दो के नहीं’ की बार-बार आवृत्ति करके क्या विश् करके क्या विशेषता उत्पन्न की गई है ?
उत्तर – कविता में इन शब्दों की बार-बार आवृत्ति की गई है। इसके माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट किया है कि फसल का उत्पादन किसी एक या दो के प्रयास से संभव नहीं है। इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। फसल के उगाने में सैकड़ों नदियों के जल, लाखों-करोड़ों लोगों के श्रम तथा हजारों प्रकार की मिट्टी का योगदान होता है ।
(च) ‘मिट्टी का गुण धर्म’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘मिट्टी का गुण धर्म’ का आशय है— मिट्टी में रचे-बसे हुए खनिज तत्त्व । हर मिट्टी के गुण अलग होते हैं। इस कारण उसका स्वाद, स्वभाव और प्रभाव हो जाता है।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि बताता है कि फसल को उगाने में पानी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कोई एक या दो नदियों का जल ही नहीं, अपितु ढेर सारी नदियों का जल फसलों को सींचता है। इस जल का फसलों पर जादुई प्रभाव लक्षित होता है। पानी का जादू फसलों के विकास में देखा जा सकता है |
इसी प्रकार फसलों के उगाने में एक-दो व्यक्तियों के हाथों का श्रम नहीं लगता, बल्कि लाखों-करोड़ों हाथों का स्पर्श इस फसल को गरिमा प्रदान करता है। ये सभी लोग मिलकर फसल को परिणाम तक पहुँचाते हैं।
फसल हजार-हजार खेतों की मिट्टी में उगती तथा फलती-फूलती है। मिट्टी का गुण-धर्म ही फसल उगाना है। इस प्रकार मिट्टी, मानव का श्रम तथा नदियों का
जल- ये सभी मिलकर फसल पैदा करने में अपना-अपना योगदान देते हैं ।
2. फसल क्या है ?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली – संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का !
(क) फसल को किसका जादू बताया गया है और क्यों ?
उत्तर – फसल को नदियों के पानी का जादू बताया गया है। इसका कारण यह है कि मिट्टी के अंदर बोया बीज भीतर ही दबा रहता है। पर जब नदियों के पानी से खेती की सिंचाई की जाती है तब वह अंकुरित होकर जादू की भाँति पृथ्वी के ऊपर पौधे की शक्ल ले लेता है।
(ख) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – हाथों के स्पर्श की महिमा का आशय यह है कि ये फसलें किसानों के हाथों का स्पर्श पाकर इतनी बड़ी हुई है। किसानों के श्रम की महिमा फसलों की वृद्धि के रूप में प्रकट हुई है। यहाँ कवि किसान के श्रम की महिमा को रेखांकित करता है। यह फसल ही मानव जाति की भूख को मिटाती है।
(ग) ‘सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का’ का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – फसलों के उगाने में हवा की थिरकन का भी पूरा योगदान होता है। ऐसा लगता है मानों हवा की थिरकन संकुचित होकर इन फसलों में सिमट गई हो, वह इन फूल-पत्तों की नसों में समा गई हो। इस प्रकार हवा का संकोच फसल के रूप में प्रकट होता है ।
(घ) सूरज की किरणों का रूपांतर का क्या आशय है ?
उत्तर – फसलों को उगाने में सूरज की किरणों का पूरा योगदान होता है। वास्तव में सूरज की किरणें ही अपना रूप बदलकर इस तरह फसलों के रूप में उग आती हैं
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि प्रश्न करता है- खेतों में उगी हुई ये फसलें आखिर क्या हैं ? वह स्वयं उत्तर देता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं, बल्कि पानी के अमृत-भरे प्रभाव से सींचकर पुष्ट हुई हैं। इनमें नदियों का जादुई प्रभाव है। ये किसानों के हाथों का स्पर्श और श्रम पाकर इतनी फली- फूली हैं। आशय यह है कि इन फसलों में किसानों की मेहनत छिपी है। ये फसलें कहीं भूरी मिट्टी से उपजी हैं, कहीं काली मिट्टी से उपजी हैं तो कहीं संदली मिट्टी से उपजी हैं। आशय यह है कि इनमें अपनी-अपनी मिट्टी का गुण, स्वभाव, स्वाद और प्रभाव छिपा हुआ है। ये फ फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं । आशय यह है कि सूरज 10 ने ही इन्हें ऊष्मा देकर इस तरह का रूपाकार प्रदान किया है। हवाओं की थिरकन सिमट कर इन फसलों में समा गई है। आशय यह है कि इन्हें बड़ा करने में वायु का भी भरपूर योगदान है।

गिरिजाकुमार माथुर

छाया मत छूना

1. छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन- सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी ।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण –
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
(क) कवि और कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि का नाम- गिरिजाकुमार माथुर,
कविता का नाम- छाया मत छूना ।
(ख) कवि अपने मन से क्या कहता है ?
उत्तर – कवि अपने मन से यह कहता है कि अतीत की स्मृतियों को कुरेदने का प्रयास मत करना क्योंकि इससे वर्तमान का दुःख गहरा हो जाता है ।
(ग) अतीत की स्मृतियाँ कैसी थीं ?
उत्तर – अतीत की स्मृतियों को सुगंधित एवं सुहावनी बताया गया है अर्थात् बीते दिनों की यादें सुखी थीं ।
(घ) कवि ने छाया को छूने से क्यों मना किया है ?
उत्तर – कवि ने छाया छूने अर्थात् पुरानी मीठी यादों में जीने से इसलिए मना किया है क्योंकि इससे हमारे अभाव फिर से हरे हो जाते हैं। हमें पुराने लोग, पुराने क्षण वापस मिलते तो नहीं, हाँ वे एक हूक-सी अवश्य छोड़ जाते हैं। हमें अपना वर्तमान और अधिक खाली प्रतीत होने लगता है।
(ङ) कवि को अभी तक किसकी याद बनी हुई है ?
उत्तर – कवि को प्रिय-मिलन की मधुर स्मृतियाँ अभी तक स्मरण हैं। कवि को अपनी प्रिया के बालों में लगे पुष्पगुच्छ अभी तक याद आते हैं। उसे प्रिया की छुअन का भी अहसास होता है ।
(च) ‘सुरंग सुधियाँ’ से क्या आशय है ?
उत्तर – ‘सुरंग सुधियों’ का आशय है- रंग-बिरंगी यादें अर्थात् प्रेम, सद्भाव और आनंद देने वाले पुराने क्षणों की यादें ।
(छ) चाँदनी को देखकर कवि को किसकी याद आती है और क्यों ?
उत्तर – चाँदनी को देखकर कवि को अपनी प्रिया के केशों में गुँथे हुए फूलों की याद आती है। इस प्रकार उसे अपने प्रेम के सुहाने दिनों की याद आ जाती है। इस उक्ति में जीवन के व्यर्थ में बीतने की निराशा व्यक्त हुई है।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि अपने मन से कहता है- हे मन ! तू कल्पनाओं के जगत में विचरण मत कर। पिछली स्मृतियाँ तुझे भ्रमित करेंगी और इनको याद करके तेरे मन का दुःख दुगुना हो जाएगा । यथार्थ से भागना व्यर्थ है, इससे निराशा ही हाथ लगती है। कवि बताता है कि जीवन रंग-बिरंगी स्मृतियों से भरा पड़ा है। वे यादें सुहावनी प्रतीत होती हैं। प्रिय-मिलन की मधुर स्मृतियाँ मन को भरमाती रहती हैं। केवल देह गंध ही यादों में शेष रह जाती है, रात गुजर जाती है अर्थात् समय बीत जाता है। कवि को अपनी प्रिया के बालों में लगे पुष्प गुच्छ याद आते हैं जो आज भी चाँदनी बनकर उसके मन को भ्रमित किए हुए हैं। प्रिया की छुअन का अहसास होता है, पर वह पाता है कि यह सब सपना बनकर रह गया है ।
उन स्मृतियों की छाया को छूना भी कष्टदायक प्रतीत होता है क्योंकि अब वे क्षण लौटकर आने वाले नहीं हैं। उनके स्मरण से मन का दुःख दुगुना ही होगा, कम नहीं होगा।
2. यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया ।
प्रभुता का शरण -बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है ।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
(क) कवि अपने जीवन में किस-किस से वंचित रहा ?
उत्तर – कवि अपने जीवन में यश, वैभव, मान-सम्मान, धन-दौलत आदि सभी से वंचित रहा। इन चीजों के पाने को वह जितना दौड़ा, उतना ही वह भ्रमित हुआ ।
(ख) प्रभुता का शरण बिंब से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर – प्रभुता का शरण बिंब भी एक मृगतृष्णा के समान है अर्थात् बड़प्पन पाने की कल्पना एक विडंबना ही है। आदमी इसी के चक्कर में भटकता रह जाता है ।
(ग) कवि ने छाया’ को छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर – ‘छाया’ काल्पनिक सुख है, स्मृतियाँ हैं। इन्हें याद करने से ही मन का दुख दुगुना होगा। यथार्थ से भागना व्यर्थ है, उससे निराशा ही मिलती है।
(घ) कठिन यथार्थ को पूजने से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – कठिन यथार्थ को झेलने को तैयार रहना चाहिए। जीवन के कटु यथार्थ को स्वीकार करना चाहिए। कल्पनाएँ – सपने मनुष्य को भ्रमित ही करते हैं।
(ङ) कवि यश, वैभव, मान और सरमाया को क्यों अस्वीकार कर रहा है ?
उत्तर – कवि के अनुसार यश, वैभव, मान और पूँजी गहरी संतुष्टि नहीं दे पाते। ये बाहरी सुख तो देते हैं, किन्तु मन को प्रसन्न नहीं करते ।
(च) ‘दौड़ने’ का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट करते हुए बताएँ कि दौड़ना भरमाना क्यों है ?
उत्तर – ‘दौड़ने’ का सांकेतिक अर्थ है- संसार के सुखों को पाने के लिए पागल होना । यह दौड़ मनुष्य को उसके लक्ष्य से भटका देती है। इससे कोई गहरी संतुष्टि नहीं मिल पाती।
(छ) ‘हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘हर चंद्रिका में छिपी एक कृष्णा’ का तात्पर्य है- हर ‘चाँदनी रात’ अर्थात् सुख के बाद ‘कृष्णा रात’ अर्थात् दुख अवश्य आता है। सुख-दुख जीवन के अनिवार्य अंग हैं।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- इस संसार में न यश का कोई मूल्य है, न धन-वैभव का । न तो मान-सम्मान से कोई संतुष्टि मिलती है, न पूँजी से। मनुष्य इन सबके पीछे जितना दौड़ता है, उतना ही भटकता है। बड़प्पन होने का अहसास भी एक छल है, भ्रम है हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात आती है। आशय यह है कि हर सुख के पीछे एक दुख छिपा रहता है। इसलिए कल्पनाओं और छायाओं में सुख खोजने की बजाए जीवन की कठोर सच्चाइयों का सामना कर उन्हें ही सच मानकर अपना । उन्हें ही स्वीकार करके उनके बीच से जीने का रास्ता निकाल। गलती से भी छायाओं को मत छूना । कल्पनाओं के संसार में मत भटकना। उससे तो दुगुना दुख होगा। मन में अभाव ही अभाव जाग उठेंगे।
3. दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं ।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस- वसंत जाने पर ?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना
(क) कवि किस मनःस्थिति में रहता है ?
उत्तर – कवि मन में साहस रखते हुए हुए भी दुविधाग्रस्त स्थिति में रहता है। वह हर समय असमंजस की दशा में रहता है।
(ख) देह सुखी होने पर भी मन की क्या दशा रहती है ?
उत्तर – कवि की देह अर्थात् शरीर सुखी भले ही रहता हो पर उसके मन के दुःख का अंत नहीं है। वह अनंत है। उसके मन का द्वंद्व और भी बढ़ जाता है। उसके आगे बढ़ने का मार्ग नहीं सूझता।
(ग) कवि ने शरद् ऋतु और वसंत का उदाहरण देकर क्या कहना चाहा है ?
उत्तर – शरद् ऋतु की पूर्णिमा को पूरा चंद्र खिलता है और वसंत ऋतु में फूलों की बहार आ जाती है । यदि ये काम समय पर न हों तो इनका बाद में होना व्यर्थ ही रहता है। समय पर बात या चीज की शोभा होती है। यौवन काल में प्रिय का सामीप्य चाहिए था, वह तब न मिला तो बाद में उसकी क्या उपयोगिता है ?
(घ) ‘दुविधा-हत साहस’ का क्या आशय है ?
उत्तर – ‘दुविधा-हत साहस’ का आशय है- सफलता-असफलता, शुभ-अशुभ, गलत ठीक के भ्रम के कारण मन में साहस का न जग पाना। जब मनुष्य का मन सही निर्णय पर नहीं पहुँचता तो उसका साहस काफूर हो जाता है।
(ङ) पंथ क्यों नहीं दिखाई देता ?
उत्तर – रास्ता इसलिए नहीं दिखाई देता क्योंकि मन में दुविधाएँ रहती हैं। मन यह निर्णय नहीं कर पाता कि क्या ठीक है और क्या गलत । इसलिए वह किसी एक दिशा में चल नहीं पाता ।
(च) ‘मन के दुख’ से क्या आशय है ?
उत्तर – ‘मन के दुख’ का आशय है- निराशा, असफलता, व्यर्थता, खोखलापन, अपमान आदि से होने वाले कष्ट । मन के अनुकूल काम न होने के कारण उत्पन्न उदासी ।
(छ) छाया छूने से दुख क्यों पहुँचता है ?
उत्तर – छाया छूने से दुख इसलिए पहुँचता है क्योंकि ये हमारे मन को अभावों के अहसास से भर देते हैं। हमें हमारा वर्तमान और भी अधिक खाली और उदास प्रतीत होने लगता है।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि मन में साहस रहते हुए भी दुविधाग्रस्त रहता है। वह असमंजस की स्थिति से घिरा रहता है । मन अदम्य कामना जनित साहस होने पर भी उसका द्वंद्व और बढ़ जाता है। उसे साहसपूर्ण कदम उठाने का मार्ग नहीं सूझता । संघर्षपूर्ण जीवन के पथ का कहीं कोई अंत नहीं है। दुःख अनंत है। यदि शरद् ऋतु की रात में चाँद न खिले और वसंत ऋतु आने पर फूल न खिले तो बाद में इनके खिलने से क्या लाभ ? यौवन काल में प्रिय का सामीप्य मिलना चाहिए था, तब वह न मिला। बाद में उसका मिलना और भी दुःख पहुँचाता है। अतः व्यक्ति को जो नहीं मिला, उसे भूलकर वर्तमान में जीना चाहिए और भविष् भविष्य की सुध लेनी चाहिए। मनुष्य को कल्पना लोक में विचरण छोड़ देना चाहिए। इससे कुछ मिलता नहीं, बल्कि मन का दुःख दुगुना हो जाता है।

ऋतुराज

कन्यादान

1. कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम – ऋतुराज,
कविता का नाम- कन्यादान |
(ख) किसका दुख प्रामाणिक था और क्यों ?
उत्तर – विवाह के अवसर पर माँ द्वारा अपनी कन्या को दान में देना उसके लिए प्रामाणिक दुख था। उसे यह लग रहा था कि वही उसकी अंतिम पूँजी है। इसके चले जाने के बाद वह खाली हो जाएगी। तब वह किसके साथ अपना दुख बाँट पाएगी।
(ग) माँ किसे अंतिम पूँजी समझती है और क्यों ?
उत्तर – माँ अपनी बेटी को अंतिम पूँजी मानती है। क्योंकि वह अपने गहरे दुखों को, नारी-जीवन के दुख-दर्द को केवल अपनी बेटी के साथ बाँट सकती है। विवाह से पहले वह अपनी माँ के साथ दुख बाँट सकती थी। वह पूँजी भी चली गई ।
(घ) लड़की के सयाने न होने का क्या आशय है
उत्तर – लड़की के सयाने न होने का आशय है- उसका दुनियादारी को न समझना । उसका भोला और सरल होना । प्यार के छलावे में आकर उसका स्वयं छले जाना। ससुराल में दबकर रह जाना और मनमाने अत्याचार सहना।
(ङ) ‘धुँधले प्रकाश की पाठिका’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर – अभी उसने पूरी दुनिया की रोशनी नहीं देखी थी। वह केवल धुँधले को पढ़ सकती थी अर्थात् थोड़े-छोटे सुखों से उसका परिचय था । वह केवल तुकबंदी वाली कविताएँ और लयवाली पंक्तियाँ पढ़ना-समझना जानती थी । टेढ़ी बातें उसे नहीं आती थीं ।
(च) विवाह के समय कन्या की मनोदशा क्या होती है ?
उत्तर – विवाह के समय प्रायः कन्या सुखों की काल्पनिक दुनिया में जीती है। वह आगे मिलने वाले कष्टों के बारे में न सोच पाती है, न उससे बचने के उपाय कर पाती है। वह सरलता और भोलेपन से जीती है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – इसमें कवि कहता है- कन्यादान करते समय लड़की की माँ का दुख ही वास्तविक था। वह सचमुच दुखी थी क्योंकि उसकी कन्या ही उसकी एकमात्र पूँजी थी। उसी से वह सुख-दुख बाँट सकती थी ।
उसकी लड़की अभी भोली और सरल थी। उसे दुनिया के स्वार्थी व्यवहार की समझ नहीं थी। उसे ससुराल पक्ष की कठोर सच्चाइयों का और पुरुष प्रधान समाज के बंधनों का ज्ञान नहीं था। उसे विवाह के सुखों का कुछ-कुछ अहसास तो था, किंतु वैवाहिक जीवन के झंझटों और दुखों का ज्ञान नहीं था। उसे सुख में छिपे दुखों की समझ नहीं थी। उसे तो बस वैवाहिक जीवन के एक अस्पष्ट से प्रकाश का अहसास था। अर्थात् सुखों की एक अस्पष्ट सी कल्पना थी । वह तुकों और लय से बँधी काव्य-पंक्तियों को पढ़ना जानती थी । आशय यह है कि उसे विवाह के केवल सुरीले और मोहक पक्ष का पता था । वह काल्पनिक सुखों में जीती थी ।
2. माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ।
(क) माँ ने चेहरे के बारे में क्या समझाया ?
उत्तर – माँ ने बेटी को समझाया कि पानी में झाँककर जब अपना चेहरा देखो तब उसके रूप-सौंदर्य पर रीझ मत जाना अर्थात् स्वयं को रूप – सुंदरी मान लेने का भ्रम मत पाल लेना । यदि यह भ्रम पालोगी तो जीवन कष्टमय हो जाएगा ।
(ख) आग के बारे में माँ ने क्या कहा ?
उत्तर – आग के बारे में माँ ने यह कहा कि आग पर रोटियाँ सेंकी जाती हैं, स्वयं को जलाया नहीं जाता । वह यह समझाना चाहती हैं कि आग लगाकर जल मरने की भूल मत करना । संघर्ष करना, आत्महत्या मत करना ।
(ग) स्त्री-जीवन में वस्त्र- आभूषणों का क्या महत्त्व  है ?
उत्तर – स्त्री-जीवन में वस्त्र आभूषणों को जरूरी भले ही माना जाए, पर ये भ्रम की तरह हैं। ये स्त्री को भ्रमित रखते हैं। ये चीजें स्त्री जीवन के लिए बंधन हैं। ये उसे एक सीमा में बाँध देते हैं ।
(घ) माँ ने अंत में क्या शिक्षा दी ?
उत्तर – माँ ने अंत में कहा तुम लड़की भले ही हो, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना अर्थात् लड़की की जैसी आदर्शवादी छवि बना दी गई है, वैसी दिखाई मत देना अन्यथा सभी तुम्हें दबाकर रखेंगे और सदैव शोषण की शिकार बनी रहोगी।
(ङ) ‘लड़की जैसी दिखाई देने क्या आशय है ? कवि ने उसे उसके लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर – लड़की जैसी दिखाई देने का आशय है- प्रकट रूप से भोली, सरल और समर्पणशील दिखाई देना। लड़की की माँ नहीं चाहती कि उसके ससुराल वाले उसकी सरलता और भोलेपन का शोषण करे, उसे दबाकर रखे, उसे कामों के बोझ के नीचे पीस डाले ।
(च) माँ ने आग के विषय में लड़की से क्या कहाँ ?
उत्तर – माँ ने बेटी से कहा कि वह जीवन में ससुराल वालों से परेशान होकर कभी स्वयं को जलाने का प्रयास न करे। उसे आग का प्रयोग रोटियाँ सेंकने के लिए ही करना चाहिए।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कन्या की माँ ने कन्यादान करते हुए अपनी बेटी को सीख दी- बेटी, तू ससुराल में जाकर अपने सौंदर्य पर मुग्ध होकर न रहना। दर्पण में अपना चेहरा देखकर उस पर ही प्रसन्न न रहना। गूढ़ आशय यह है कि ससुराल में लोग तेरी सुंदरता की प्रशंसा करेंगे। तुम उनकी आँखों में सुंदरता देखकर अपने पर मोहित न वरना यही मुग्धता तेरे बंधन का कारण बन जाएगी।
बेटी ! आग से बचकर रहना। यह रोटियाँ सेंकने के लिए है, जल मरने के लिए नहीं। अतः तू सावधानी से निर्वाह करना। घर-गृहस्थी के काम जरूर सँभालना किंतु किसी अत्याचार को न सहना । तुझे जो सुंदर-सुंदर वस्त्र और गहने मिलेंगे, उनके छलावे में न रहना । ये बहू को घर-गृहस्थी के बंधन में बाँधने के मोहक अस्त्र होते हैं। जैसे शब्द जाल से वास्तविकता का भ्रम खड़ा हो जाता है, उसी प्रकार कपड़ों-गहनों से यह भ्रम हो जाता है कि ससुराल के लोग तुझसे बहुत प्यार करते हैं। वास्तव में वे ऐसा करके तुझे कोल्हू में पेरते हैं। इसलिए अपनी बेड़ियों को अच्छी तरह समझ लेना ।
माँ ने अपनी लड़की को सलाह दी। तू मन से लड़की की तरह भोली, सरल और निश्छल रहना परंतु लोकव्यवहार में सावधान रहना। अपनी सरलता प्रकट न होने देना, वरना लोग तुझे मूर्ख बनाकर तेरा शोषण करेंगे।

मंगलेश डबराल

संगतकार

1. मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार
मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम- मंगलेश डबराल,
कविता का नाम- संगतकार ।
(ख) संगतकार की आवाज कैसी है ?
उत्तर – संगतकार की आवाज मीठी, कमजोर तथा कंपन-युक्त है। वह भारी-भरकम आवाज को कोमलता प्रदान करती है ।
(ग) संगतकार का काम क्या है ?
उत्तर – संगतकार का काम है- मुख्य गायक की गरजदार की गरजदार आवाज में अपनी गूँज मिलाना। इस प्रकार उसके स्वर को और अधिक बल देकर ऊपर उठाना।
(घ) संगतकार कौन हो सकता है ?
उत्तर – संगतकार मुख्य गायक का छोटा भाई, उसका शिष्य अथवा दूर से चलकर आने वाला रिश्तेदार हो सकता है।
(ङ) संगतकार प्राचीनकाल से क्या काम करता आया है ?
उत्तर – संगतकार प्राचीनकाल से मुख्य गायक के स्वर में अपनी गूँज मिलाता आया है। गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में भटक जाता है तब संगतकार उसे सही रास्ता दिखाता है ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- जब गायक-मंडली का मुख्य गायक चट्टान जैसी भारी-भरकम आवाज में गाता था तो उसका संगतकार सदा उसका साथ देता था। संगतकार की आवाज बहुत सुंदर, कमजोर तथा काँपती हुई होती थी। वह संगतकार ऐसा जान पड़ता है मानो मुख्य गायक का छोटा भाई हो, या उसका कोई शिष्य हो, या कोई दूर का ऐसा रिश्तेदार हो जो पैदल चलकर उसके पास गीत सीखने आता हो। आशय यह है कि संगतकार मुख्य गायक का कोई बहुत प्रिय अनुज है। ऐसा उनके व्यवहार से जान पड़ता है। यह संगतकार बहुत लंबे समय से मुख्य गायक की गरज में अपनी गूँज मिलाता आया है।
2. गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था
(क) संगतकार क्या काम करता है ? उसकी भूमिका क्या है ?
उत्तर – संगतकार मुख्य य गायक की गरज उसकी भ प्राचीनकाल से अपनी गूँज मिलाता चला आया है। गायक जब अपने गायन के क्षेत्र में या तो खो जाता है या भटक जाता है तब संगतकार ही उसे सँभालता है। उसे भटकन से बाहर निकालता है।
(ख) संगतकार किसकी, क्या याद दिलाता है ?
उत्तर – संगतकार मुख्य गायक को उसका बचपन याद दिलाता है। गायक के छूटे हुए सामान को समेटने में उसका यह रूप उभरता है ।
(ग) अंतरे की जटिल तानों का जंगल किसे कहा गया है ?
उत्तर – इसका अर्थ है— किसी गीत के चरण को गाते हुए उसके स्वरों और आलापों की बहुत कठिन और उलझी हुई तानें ।
(घ) सरगम को लाँघने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – सरगम को लाँघने का तात्पर्य है- गीत के मुख्य स्वर की मर्यादा को भूलकर अधिआलापों में खो जाना या स्वर को अधिक ऊँचे उठा देना।
(ङ) स्थायी को सँभाले रखने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – स्थायी को सँभाले रखने का तात्पर्य है- किसी गीत की नया टेक के मुख्य पंक्ति मूल स्वर को गाते रहना। उसके स्वर को बिखरने या बदलने से बचाना। उसकी गति, उठान या लय को कम-अधिक न होने देना।
(च) संगतकार मुख्य गायक को उसके बचपन की याद कैसे दिलाता है ?
उत्तर – संगतकार मुख्य गायक की तरह साधे हुए स्वर में नहीं गाता । उसके संगीत में परिपक्वता नहीं होती। इस प्रकार वह मुख्य गायक को उसके बचपन की याद दिलाता है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – जब मुख्य गायक किसी गीत की मुख्य पंक्ति को गाने के बाद गाने के चरण को गाने लगता है। जब वह उस चरण के टेढ़े-मेढ़े स्वरों की कठिन तानों में उलझकर खो जाता है, अर्थात् मुख्य स्वर से भटक कर कहीं और लीन हो जाता है या, अपने निश्चित स्वरों की सीमा को पार करके गहरी संगीत साधना में लीन हो जाता है। असीम मस्ती में डूब जाता है। तब संगतकार ही स्थायी पंक्ति के स्वर को अलापता रहता है और उसे सँभाले रखता है। वह मुख्य गायक को मूल स्वर में वापस लौटा लाता है। मानो वह मुख्य गायक के पीछे छूटे हुए सामान को सँभालने में लगा हो । मानो वह मुख्य गायक को उसके बचपन के दिनों की याद दिला रहा हो, जब वह नया-नया संगीत सीख रहा था और अकसर मूल स्वर को भूल जाया करता था ।
3. तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर
कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग
(क) संगतकार मुख्य गायक की प्रारंभिक अवस्था में क्या काम करता था ?
उत्तर – जब प्रारंभिक अवस्था में मुख्य गायक नौसिखिया था और जब उसका उत्साह गिरने के कारण उसका स्वर गिरने लगता था तब संगतकार ही उसे ढाँढ़स बँधाता था । वह उसकी हिम्मत बढ़ाता था ।
(ख) संगतकार कभी-कभी मुख्य गायक को अपना स्वर क्यों दे देता है ?
उत्तर – संगतकार कभी-कभी मुख्य गायक को अपना स्वर इसलिए दे देता था कि उसे यह अहसास रहे कि वह (मुख्य गायक) अकेला नहीं है और गाए हुए को फिर से गाया जा सकता है।
(ग) तारसप्तक किसे कहते हैं ?
उत्तर – ऊँचे स्वर में गाए गए सरगम को तारसप्तक में गाना कहते हैं।
(घ) किस कारण गायक की प्रेरणा साथ छोड़ने लगती है ?
उत्तर – ऊँचे स्वर में गाते रहने के कारण जब मुख्य गायक का गला बैठने लगता है, आवाज डूबने लगती है तो उसकी प्रेरणा उसका साथ छोड़ने लगती है।
(ङ) मुख्य गायक का स्वर जब धीमा पड़ता है तो संगतकार क्या करता है ?
उत्तर – मुख्य गायक का स्वर जब धीमा पड़ता है तो संगतकार उसका साथ देता है । इससे मुख्य गायक को बहुत सहारा मिलता है ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- जब कवि तारसप्तक में गाता है, अर्थात् ऊँचे गाता है, अर्थात् ऊँचे स्वर में गाता है। उसका गला बोलते-बोलते बैठने लगता है। गाने की इच्छा समाप्त हो जाती है । उत्साह भी मंद होने लगता है। आवाज डूबने लगती है। तब संगतकार का स्वर मुख्य गायक को तसल्ली देता है। वह उसके गले को शक्ति देता है। उसके डूबते हुए स्वर और उत्साह को बढ़ाता है |
कभी-कभी आवश्यकता न होने पर भी वह उसका साथ यों ही दे देता है । वह मानो मुख्य गायक को कहना चाहता है कि तुम अकेले नहीं हो। मैं भी साथ हूँ। वह मानो मुख्य गायक को कहना चाहता है कि तुम गाए जा चुके गाने को फिर से गा सकते हो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
4. और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
(क) संगतकार की आवाज में हिचक क्यों सुनाई देती है
उत्तर – संगतकार की आवाज में हिचक इसलिए सुनाई देती है क्योंकि वह अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा नहीं होने देना चाहता। वह गायन का महत्व मुख्य गायक को ही देना चाहता है ।
(ख) संगतकार अपने स्वर को ऊँचा क्यों नहीं उठने देता ?
उत्तर – संगतकार अपने स्वर को ऊँचा इसलिए नहीं उठने देता क्योंकि वह मुख्य गायक के स्वर को ऊँचाई और बल देने की भूमिका निभाता है। मुख्य गायक से अधिक ऊँचे स्वर में गाना उसके लक्ष्य के विरुद्ध है।
(ग) कवि किसे मनुष्यता मानता है ?
उत्तर – कवि संगतकार द्वारा अपने स्वर को मुख्य गा मनुष्यता गायक के स्वर से कम रखना म मानता है। अपने आपको पीछे रखकर किसी दूसरे के महत्त्व को बढ़ाना निश्चित रूप से मनुष्यता की निशानी है।
(घ) इस अनुच्छेद में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – इस अनुच्छेद में कवि कहना चाहता है कि मुख्य गायक के सहयोगी गायक भी महानता में शामिल हैं। वे मुख्य गायक को ऊँचा उठाने की कोशिश में स्वयं के स्वर को नीचे रखते हैं। उनका यह त्याग उन्हें महान बनाता है।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (व्याख्या) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है- संगतकार जब मुख्य गायक के पीछे-पीछे गाता है तो उसकी आवाज में स्पष्ट रूप से एक हिचक सुनाई देती है। वह कोशिश करके अपनी आवाज को कभी मुख्य गायक की आवाज से ऊँचा नहीं उठने देता। उसकी इस कोशिश को उसकी असफलता नहीं मानना चाहिए। यह तो उसकी मनुष्यता कि वह शक्ति और प्रतिभा के रहते हुए स्वयं को ऊँचा नहीं उठाता, बल्कि अपने और स्वामी को महत्त्व देने की कोशिश करता है ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

सूरदास

पद

1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ? 
उत्तर – गोपियाँ उद्धव को ‘अति बड़भागी’ अर्थात् भाग्यवान कहती हैं। यह बात वे सामान्य ढंग से न कहकर व्यंग्य में कहती हैं। इस कथन में यह व्यंग्य निहित है कि उद्धव श्री कृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम से अलिप्त हैं। वे कृष्ण-प्रेम के बंधन में नहीं पड़े । यदि वे इसमें पड़े होते तो उनकी दशा भी गोपियों के समान हो जाती । वे कृष्ण-प्रेम के प्रति निर्लिप्त बने रहने में सफल रहे हैं अतः भाग्यशाली हैं। वे उद्धव की स्तुति के बहाने निंदा कर रही हैं ।
2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ?
उत्तर – उद्धव के व्यवहार की तुलना दो चीजों से की गई है –
(क) वे कमल के पत्ते के समान अलिप्त हैं। जिस प्रकार कमल जल में रहता है पर उसके पत्ते जल से ऊपर रहते हैं। उन पर जल का प्रभाव नहीं पड़ता। इसी प्रकार उद्धव पर भी कृष्ण प्रेम का प्रभाव नहीं पड़ सका है।
(ख) उद्धव की दशा उस तेल की गागर के समान है जो जल में रहती हैं, पर उस पर पानी की एक बूँद भी नहीं टिक पाती। इसी प्रकार उद्धव कृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम से अछूते हैं ।
3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ? 
उत्तर – गोपियों ने निम्नांकित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं
(क) वे कृष्ण के आने की इंतजार में ही जी रही थीं, किन्तु कृष्ण स्वयं न आकर योग-संदेश भिजवा दिया। इससे उनकी विरह-व्यथा और अधिक बढ़ गई है।
(ख) वे कृष्ण से अपेक्षा करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को रखेंगे। वे उनके प्रेम का बदला प्रेम से देंगे। किन्तु उन्होंने योग-संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा ही तोड़ डाली ।
4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर – ब्रज की गोपियाँ इस प्रतीक्षा में बैठी थीं कि देर-सवेर कृष्ण उनसे मिलने अवश्य आएँगे, या अपना प्रेम-संदेश भेजेंगे। इसी से वे तृप्त हो जाएँगी । इसी आशा के बल पर वे वियोग की वेदना सह रही थीं। परन्तु ज्यों ही उनके पास कृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश पहुँचा, वे तड़प उठीं उनकी विरह-ज्वाला तीव्रता से भड़क उठी। उन्हें लगा कि अब कृष्ण उनके पास नहीं आएँगे। वे योग-संदेश में ही भटकाकर उनसे अपना पीछा छुड़ा लेंगे। इस भय से उनकी विरहाग्नि भड़क उठी।
5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है ? 
उत्तर – अभी तक गोपियाँ मर्यादा का पालन करते हुए चुपचाप कृष्ण-वियोग की पीड़ा को झेल रही थीं। अब जबकि कृष्ण ने उद्धव के माध्यम से योग का संदेश भिजवा दिया है तब सारी मर्यादा समाप्त हो गई। अब वे भला किस मर्यादा का पालन करें ? अब तो उनकी मान-मर्यादा जाती रही ।
6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ? 
उत्तर – गोपियों ने के प्रति अपने अनन्य प्रेम को निम्नांकित युक्तियों से व्यक्त किया है –
(क) वे स्वयं को कृष्ण रूपी गुड़ पर लिपटी हुई चींटी कहती हैं ।
(ख) वे स्वयं को हारिल पक्षी के समान कहती हैं जिसने कृष्ण प्रेम रूपी लकड़ी को दृढ़ता से थामा हुआ है।
(ग) वे मन, वचन और कर्म से कृष्ण को मन में धारण किए हुए हैं।
(घ) वे जागते-सोते, दिन-रात और यहाँ तक कि सपने में भी कृष्ण का नाम रटती रहती हैं।
(ङ) वे कृष्ण से दूर ले जाने वाले योग-संदेश को सुनते ही व्यथित हो उठती हैं।
7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है ? 
उत्तर – गोपियों ने उद्धव को कहा है कि वे योग की शिक्षा ऐसे लोगों को दें जिनके मन स्थिर नहीं हैं। जिनके हृदयों में कृष्ण के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। जिनके मन में भटकाव है, दुविधा है, भ्रम है और चक्कर हैं।
8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत पदों के आधार पर कहा जा सकता है कि गोपियाँ योग-साधना को अपने लिए अनुपयुक्त और अव्यावहारिक मानती हैं। वे तो कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से प्रेम-भक्ति रखती हैं अतः उनके लिए इसका कोई उपयोग नहीं है ।
गोपियों की दृष्टि में योग-साधना कड़वी ककड़ी के समान है, जिसे निगला नहीं जा सकता । योग-साधना एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में उन्होंने न कभी पहले सुना और न देखा । हाँ, यह योग-साधना उनके लिए उपयोगी हो सकती है जिनका चित्त अस्थिर रहता है ।

देव

सवैया, कवित्त

1. कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है ?
उत्तर – कवि देव ने ‘श्री ब्रजदूलह’ शब्द का प्रयोग श्रीकृष्ण के लिए किया है। वे समस्त ब्रज के प्रिय हैं अतः उनका स्थान दूलह के समान है। Aat यह समस्त संसार एक मंदिर के समान है। इस संसार रूपी मंदिर में श्रीकृष्ण दीपक के समान प्रकाश करने वाले हैं। उन्हीं के कारण इस संसार रूपी मंदिर में चमक आती है।
2. कवि देव के सवैया में से उन पंक्तियों को छाँट कर लिखें जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। 
उत्तर – ‘करि किकिनि कै अनुप्रास अलंकार ।
3. कवि देव की कविता के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है ? 
उत्तर – परंपरागत वसंत में इसे प्रमोद्दीपन के रूप में चित्रित किया जाता है। इसे नायक-नायिका के संदर्भ में वर्णन किया जाता है ।
यहाँ ऋतुराज वसंत के बाल रूप का वर्णन हैं उसे एक शिशु के रूप में चित्रित किया गया है। इस बाल-वर्णन के बहाने वसंत ऋतु में प्रकृति में आए परिवर्तनों का सुंदर चित्रण हुआ है। इस शिशु को पालने में झुलाने, बतियाने, नजर उतारने, जगाने आदि का काम प्रकृति के विभिन्न उपादान कर रहे हैं। इस बहाने से प्रकृति के मनोहारी रूप का वर्णन स्वयं हो गया है। वसंत का बाल रूप वर्णन अत्यंत प्रभावी बन पड़ा है।
4. ‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै- इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करें। 
उत्तर – इस पंक्ति का भाव यह है कि वसंत ऋतु में प्रातःकाल गुलाब चटक कर खिलता है। यह चटकना गुलाब की चुटकी बजाने जैसा लगता है। जिस प्रकार माँ चुटकी बजाकर बालक को जगाती है उसी प्रकार गुलाब चटक कर बालक को जगाता-सा मालूम पड़ता है। कवि ने दोनों की क्रियाओं का आपस में सम्बन्ध जोड़ दिया है।
5. चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है ?
उत्तर – चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने निम्नांकित रूपों में देखा है
(क) यह सुंदरता एक स्फटिक (संगमरमर) से बने मंदिर के रूप में है।
(ख) चाँदनी रात की सुंदरता में आकाश स्वच्छ निर्मल दिखाई देता है।
(ग) फर्श दूध के झाग के समान प्रतीत होता है ।
(घ) एक तारा-सी तरुणी मोतियों की माला पहने खड़ी दिखाई दे रही है। (मानवीकरण)
(ङ) चाँद राधा के प्रतिबिंब के समान लगता है।
6. ‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर – कवि चंद्रमा की कांति में प्यारी राधा का प्रतिबिंब देख लेता है। वैसे चाँद एक परंपरागत उपमान है। मुँह की उपमा चाँद से दी गई है। यहाँ व्यतिरेक अलंकार है। इसमें राधा के प्रतिबिंब को अधिक महत्व दिया गया है।
7. तीसरे कवित्त के आधार पर बताएँ कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है ? 
उत्तर – चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए कवि ने निम्नांकित उपमानों का प्रयोग किया है
(क) स्फटिक शिला का,
(ख) दही के समुद्र का,
(ग) दूध का सा फेन ।
8. पठित कविताओं के आधार पर कवि ‘देव’ की काव्यगत विशेषताएँ बताएँ। 
उत्तर – पठित कविताओं के आधार पर कवि ‘देव’ की निम्नांकित काव्यगत विशेषताएँ उभरती हैं –
(क) कवि दरबारी कवि थे अतः उनकी कविता में आश्रयदाता की प्रशंसा मिलती है।
(ख) देव की कविता में वैभव-विलास का चित्रण हुआ है।
(ग) उनके काव्य में जीवन के विविध दृश्य नहीं मिलते।
(घ) देव ने शृंगार के उदात्त रूप का चित्रण किया है।
(ङ) देव अनुप्रास अलंकार के प्रयोग द्वारा ध्वनि-चित्र खींचने में कुशल हैं।
(च) देव के काव्य में ध्वन्यात्मकता एवं चित्रात्मकता के गुण विद्यमान हैं।
9. वसंत ऋतु का चित्रण मन में किस भाव को जगाता है ?
उत्तर – वसंत ऋतु का चित्रण मन में प्रकृति के प्रति सौंदर्य का भाव जगाता है। कवि देव का वसंत चित्रण एक शिशु के रूप में है यह सांगरूपक है। प्रकृति के विविध उपादान इस शिशु को झूला झुलाते हैं, बातें करते हैं, खिलाते हैं तथा इसकी नजर उतारते हैं। गुलाब इसे चुटकी बजाकर जगाता है। सभी क्रियाओं में प्रकृति-सौंदर्य के मनोहारी रूप दिखाई देते हैं। इनसे हमारे मन में प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है ।
10. निम्नांकित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें – 
पांयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई । 
सांवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उत्तर – श्रीकृष्ण के पैरों में सुंदर पाजेब हैं और उनका बजना बड़ा सुन्दर प्रतीत होता है। कृष्ण की कमर की तगड़ी की ध्वनि भी मधुरता उत्पन्न कर रही है । श्रीकृष्ण की साँवले शरीर पर पीतांबर की शोभा और गले में वनमाला की शोभा देखते ही बनती है। श्रीकृष्ण का यह रूप अत्यंत मोहक है।
– ‘कटि किंकिनि’, ‘पट पीत’ ‘हिय हुलसै’ आदि स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा देखते ही बनती है।
– ब्रज भाषा का माधुर्य छलकता प्रतीत होता है।
– सवैया छंद प्रयुक्त है।

जयशंकर प्रसाद

आत्मकथ्य

1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ? 
उत्तर – प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का आग्रह किया पर प्रसाद ज़ी इससे सहमत न थे। वे अपनी आत्मकथा लिखने से बचना चाहते थे। इसके कारण थे –
(क) कवि के मत में उनकी जीवन-कथा में ऐसा कुछ विशेष नहीं है जिससे दूसरों को कुछ मिल सके।
(ख) कवि अपने जीवन की भूलों और दूसरों द्वारा की गई प्रवंचनाओं को सार्वजनिक नहीं करना चाहता।
(ग) उनकी आत्मकथा दूसरों को सुख प्रदान नहीं कर पाएगी।
(घ) अभी आत्मकथा कहने का उचित समय नहीं आया है।
2. आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है ? 
उत्तर – कवि को ऐसा लगता है कि अभी अपनी आत्मकथा कहने का उपयुक्त समय नहीं आया है। किसी भी बात को कहने का उचित समय होना चाहिए। अभी उसकी कथा मन के कोने में शांत पड़ी है। उसकी व्यथा दबी हुई है। कथा सुनाते समय यह उग्रं हो सकती है। वह अभी अपने बारे में कुछ कहने की मनःस्थिति में नहीं है। कवि को अभी ऐसी कोई महान उपलब्धि भी नहीं है जिसके बारे में वह सबको बताए ।
आत्मकथा कहने का समय प्रायः जीवन का उत्तरार्द्ध माना जाता है। अभी कवि उस आयु को पहुँचा भी नहीं था। अभी उसे जीवन में काफी कुछ अनुभव होने शेष थे। तभी आत्मकथा कहना अधिक उपयुक्त होता है।
3. स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का है ? 
उत्तर – स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का यह आशय है कि जीवन में जो थोड़े बहुत मधुर क्षण आए थे अर्थात् जब उसका मिलन प्रिय के साथ हुआ था, उन क्षणों की स्मृति ही जीवन का सहारा है। उसी स्मृति के सहारे वह जी रा अब, जबकि वह चलते-चलते थक गया है तब उसके मार्ग में यही सहारा रह गया है कि वह पुरानी स्मृतियों को संजोए रहे।
4. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’- कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहता है कि उसका अतीत अत्यंत मोहक रहा है। तब वह अपनी प्रेयसी के साथ मधुर चाँदनी में बैठकर खूब बातें करता था तथा खिलखिलाकर हँसता था। अब उस गाथा को सुना पाना उसके लिए संभव नहीं है। कवि के वे क्षण न जाने कहाँ चले गए ?
5. ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखें ।
उत्तर – ‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
(क) इस कविता की भाषा खड़ी बोली है। इसमें तत्सम शब्दों का भरपूर प्रयोग है। उदाहरणार्थ- मलिन, उपहास, दुर्बलता, उज्ज्वल, स्मृति आदि ।
(ख) इस कविता पर छायावादी काव्यशैली का स्पष्ट प्रभाव लक्षित होता है‘उज्जवल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चाँदनी रातों की
(ग) इस कविता की काव्यभाषा में प्रतीकात्मकता का समावेश है- ‘मधुप गुनगुनाकर’
(घ) लाक्षणिकता ने कविता को विशिष्टता प्रदान की है- ‘मुरझाकर गिर रही
(ङ) इस कविता की काव्यभाषा में अलंकारों का समावेश है। उदाहरणार्थ –
रूपक – यह गागर रीति (जीवन रूपी गागर), मधुप (मन रूपी भौंरा)
अनुप्रास- पथिक की पंथा ।
6. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर – कवि ने अपने जीवन में सुख का स्वप्न देखा था। कवि ने कल्पना की थी कि वह प्रिय के साथ बैठकर हँसने के कुछ क्षण पा सकेगा। उसकी प्रिय के अरुण कपोलों पर लालिमा दौड़ जाएगी। वह भी मधुर चाँदनी रातों का आनंद उठा सकेगा। प्रिय उसके आलिंगन में आएगा और वह सुखानुभूति कर सकेगा।
7. ‘आत्मकथ्य’ कविता का संदेश क्या है ? 
उत्तर – ‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित है। इस कविता का संदेश यह है कि जीवन में दुख बहुत अधिक हैं। इस जीवन में सुख के क्षण बहुत कम आते हैं। हमें उनको पकड़कर रखने का प्रयास करना चाहिए। सुख के क्षणों की स्मृति जीवन का सहारा होती है। जीवन में व्यक्ति स्वयं तो भूला करता ही है, इसके साथ-साथ उसके अपने लोग भी भी उसको धोखा देते हैं, पर इन प्रर्वचनाओं को कहने का कोई लाभ नहीं हैं ।
8. ‘आत्मकथ्य’ कविता में जो जीवन मूल्य उभर कर आते हैं, उनका उल्लेख करें। 
उत्तर – ‘आत्मकथ्य’ में निम्नांकित जीवन-मूल्य उभरकर आते हैं –
(क) जीवन में सुख-दुख दोनों आते हैं अतः दोनों को सहने के लिए तैयार रहना चाहिए।
(ख) दूसरों की प्रवंचनाओं का उल्लेख करना व्यर्थ है।
(ग) अपने मन की व्यथा को मन में ही छिपाकर रखना चाहिए। इसे दूसरों के सामने कहने का कोई ई लाभ नहीं है।
(घ) अपने बारे में बढ़-चढ़कर बोलने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है।
(ङ) हमें दूसरों की हँसी नहीं उड़ानी चाहिए।
9. इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की यह झलक मिलती है –
– प्रसाद जी के जीवन में वेदना-पीड़ा थी। वे सुख ख की कल्पना ही करते रह गए।
– इस कविता में उनकी निराशा और पलायनवादी प्रवृत्ति झलकती है।
– प्रसाद जी अपने बारे में कुछ कहने में झिझकते हैं।
10 ‘भोली आत्मकथा के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह कहना चाहता है कि उसने पूरा जीवन और सरलता और भोलेपन में जिया है। उसके जीवन में छल-कपट, चतुराई से है। देने की शक्ति नहीं है ।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

उत्साह

1. कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों ?
उत्तर – कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर गरजने के लिए इसलिए कहता है। क्योंकि
(क) ‘बादल का गरजना’ क्रांति आने का सूचक है। कवि समाज में परिवर्तन लाने के लिए क्रांति की आवश्यकता बताना चाहता है।
(ख) बादल के गरजने के बाद जल तो स्वयं बरसता ही है अर्थात् क्रांति का सुखद परिणाम तो सभी को मिलता ही है।
2. कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ क्यों रखा गया है ?
उत्तर – इस कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ इसलिए रखा गया है क्योंकि कवि के मन में बादल को लेकर उत्साह है। बादल मन में में उत्साह की भावना जगाता है। यह उत्साह क्रांति आने के प्रति भी है।
3. कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है ? 
उत्तर – कविता में बादल निम्नांकित अर्थों की ओर संकेत करता है
(क) बादल पीड़ित-प्यासे जनों की प्यास को बुझाने वाला है।
(ख) बादल क्रांति के अर्थ की ओर भी संकेत करता है। यह क्रांति लोगों की इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम बनेगी।
(ग) बादल ललित कल्पना की ओर भी संकेत करता है।
(घ) बादल जन-जन की आकांक्षा को पूरा करने वाला है।
(ङ) बादल नवजीवन के अर्थ की ओर संकेत करता है।
(च) बादल ‘नूतन कविता’ के अर्थों की ओर भी संकेत करता है।
4. ‘उत्साह’ कविता का संदेश क्या है ? 
उत्तर – ‘उत्साह’ प्रतीकात्मक कविता है। इसमें बादल को उत्साह के प्रतीक रूप में प्रकट किया गया है। कवि बादल से निवेदन करता है कि वह सारे गगन को घेर कर छा ले। वह बच्चों के घुँघराले केशों-सा आकाश में फैल जाए। वह किसी संघर्षशील कवि के समान जन-जीवन में नया उत्साह भर दे । वह अपनी विद्युत शक्ति से समाज में गरजे, बरसे और जोश का संचार करे । जब सारा संसार पीड़ा और ताप से दुखी हो। लोग व्याकुल और अनमने हों। तब ये बादल शीतल जल की धारा बनकर जन-जीवन को शांति दें।

अट नहीं रही है

1. कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है ? 
उत्तर – फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। उसका रूप-सौंदर्य रंग-बिरंगे फूलों, पत्तों और हवाओं में प्रकट हो रहा है । फागुन के कारण मौसम इतना सुहाना हो गया है कि उस पर से आँख हटाने का मन नहीं करता ।
2. ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?
उत्तर – कवि ने प्रकृति की सुंदरता की व्यापकता का वर्णन अनेक प्रकार से किया है। उसे हर जगह छलकता हुआ दिखाया गया है। घर-घर में फैला हुआ दिखाया है। कवि ने जान-बूझकर उसे किसी एक दृश्य में नहीं बाँधा है, बल्कि असीम दिखाया है। ‘कहीं साँस लेते हो’ का आशय है कि कहीं मादक हवाएँ चल रही हैं। घर-घर में भरने के भी अनेक रूप हैं। शोभा का भरना, फूलों का भरना, खुशी और उमंग का भरना। ‘उड़ने को पर-पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है जिसके विस्तृत अर्थ हैं। यह वर्णन पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है।
3. फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर – फागुन में मादकता का प्रभाव विशेष रूप से होता है। यह मादकता उसे अन्य ऋतुओं से अलग कर देती है । फागुन में वसंत का मोहक सौंदर्य देखते ही बनता है। फागुन के महीने में निर्जीव प्रतीत होने वाले प्राणियों तथा प्रकृति में भी जान पड़ जाती है। इस ऋतु में उत्साह का संचार हो होता है। फागुन मास मौज-मस्ती लेकर आता है।
4. इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखें । 
उत्तर – इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की निम्नांकित विशेषताएँ उभरती हैं –
(क) निराला जी का शब्द चयन अनूठा है। वे कम शब्दों में अधिक बात कह देते हैं।
(ख) निराला जी प्रकृति का चित्रण अत्यंत कुशलता के साथ करते हैं l
(ग) छायावादी कविता में कल्पना की उड़ान है।
(घ) निराला जी प्रकृति का मानवीकरण करने में अत्यंत कुशल हैं।
(ड.) उन्होंने खड़ी बोली का प्रयोग किया है ।
(च) तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है ।
(छ) उनकी कविता में प्रतीकात्मकता एवं लाक्षणिकता का समावेश है।

ननगार्जु 

यह दंतुरित मुसकान

1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। वह बच्चे का मुसकराता चेहरा देखकर पुलकित हो उठता है। उस बच्चे को देखकर कवि के मन में पितृत्व की भावना जागृत होती है। कवि के मन में बच्चे को देखकर तरह-तरह की कल्पनाएँ आती हैं ।
2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है ? 
उत्तर – बच्चे की मुसकान सहज एवं निश्छल होती है। उसकी मुसकान उसके हृदय की प्रसन्नता को अभिव्यक्त करती है। बड़े व्यक्ति की मुसकान में प्रायः बनावटीपन होता है। वह अवसर देखकर मुसकराता है। उसमें निश्छलता की झलक नहीं होती।
3. कवि नागार्जुन ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर – कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नांकित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है –
(क) बच्चे की मुसकान से मृतक में भी जान आ जाती है
(ख) यों लगता है मानो झोपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों ।
(ग) यों लगता है मानों चट्टानें पिघलकर जलधारा बन गई हों।
(घ) यों लगता है मानो बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों ।
4 “छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात ।” इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – इसका भावार्थ है- दाँत निकालते शिशु का धूल-से सना शरीर और उसकी निश्छल मुस्कान देखकर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है। ऐसे लगता है मानो उसकी झोंपड़ी में ही कमल के फूल खिल उठे हों। आशय यह है कि म है कि मन में बहुत उल्लास होता है।
5. “छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल 
बाँस था कि बबूल ?” 
इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें। 
उत्तर – कवि कहता है- नव-शिशु की छुअन में रोमांच-भरी प्रसन्नता होती है। उसे छूते ही यों लगता है मानो बबूल और बाँस के पेड़ से शेफालिका के फूल झरने लगे हों। आशय यह है कि को छूने मात्र से रूखे और कठोर लोग भी सरसता अनुभव करने लगते हैं ।
6. ‘यह दंतुरित मुसकान’ का प्रतिपाद्य स्पष्ट करें।
उत्तर – इस कविता में बच्चों के दाँतों के मध्य से व्यक्त होने वाली निश्छल मुसकान का अत्यंत मोहक वर्णन है। बच्चों की मुसकान कठोर हृदय व्यक्तियों में भी जान डाल देती है। छोटे बालक की छवि में खिलते कमल की झलक मिलती है। बच्चा प्रथम बार अपने पिता को देखता है अतः जिज्ञासावश एकटक निहारता रह जाता है। कवि बच्चे की थकान को ध्यान करके स्वयं अपनी आँखे पीछे हटा लेता है। कवि का मन ममता एवं वात्सल्य से भर उठता है। बच्चे की माँ ने ही उसका पालन-पोषण किया और उसका परिचय पिता (कवि) से कराया । अतः कवि उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है। कवि को बच्चे की मुसकराहट बहुत भाती है।
7. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। स्पष्ट करें।
उत्तर – मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं । मुसकान भली प्रतीत होती है। यह मन की प्रसन्नता की सूचक है ।
क्रोध व्यक्ति के असंतोष को झलकाता है । क्रोध का भाव किसी को अच्छा प्रतीत नहीं होता ।
8. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाएँ और तर्क सहित उत्तर दें । 
उत्तर – बच्चे की उम्र दो-तीन वर्ष रही होगी। इसी आयु में बच्चे के नए-नए दाँत आते हैं तथा वह इन दाँतों से मुसकराता मोहक प्रतीत होता है। यही दंतुरित मुसकान कवि के मन को भा गई ।
9. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों है में लिखें।
उत्तर – बच्चे से कवि की मुलाकात का शब्दचित्र मोहक है । बच्चा पहली बार अपने पिता को देखता है । वह व्यक्ति बच्चे के लिए अजनबी है क्योंकि इससे पहले उसकी मुलाकात उस व्यक्ति से नहीं हुई थी ।
बच्चा एकटक निहारता रहता है। वह आगंतुक को जानना चाहता है। वह मोहक मुसकान से उस व्यक्ति का मन हर लेता है । कवि भी बच्चे को देखकर आनंदित हो उठता है।

फसल

1. कवि के अनुसार फसल क्या है ?
उत्तर – कवि के अनुसार फसल पानी, मिट्टी, धूप, हवा एवं मानव-श्रम का मिला-जुला रूप away है। इसमें सभी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ है। कवि के अनुसार फसल नदियों के पानी का जादू, मनुष्य के हाथों के स्पर्श की महिमा, भूरी-काली मिट्टी का गुण-धर्म, सूरज की किरणों का रूपांतरण तथा हवा की थिरकन का सिमटा हुआ संकोच है। इस प्रकार फसल प्रकृति और मनुष्य के परस्पर सहयोग की सृजनात्मक परिणति है।
2. कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर – कविता में वर्णित आवश्यक तत्त्व हैंर नदियों का पानी, मानव-श्रम, खेतों की विभिन्न प्रकार की मिट्टी, सूरज की किरणें, हवा ।
3. फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ?
उत्तर – कवि ने फसल को हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहा है।
ऐसा कहकर कवि यह भाव व्यक्त करना चाहता है कि फसल के उपजाने में मनुष्य के परिश्रम का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। मनुष्य अपने हाथों से श्रम करके खेत जोतता है, बीज बोता है और सिंचाई करता है। फसल का फलना-फूलना किसान के श्रम की गरिमा और महिमा का ही परिणाम है। फसल को जो गरिमा और महिमा प्राप्त होती है वह मनुष्य के हाथों किए गए श्रम के कारण ही संभव हो पाती है।
4. ‘फसल’ शीर्षक कविता का संदेश स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘फसल’ शीर्षक कविता में कवि ने यह संदेश देना चाहा है कि फसल के उत्पादन में प्राकृतिक तत्वों के साथ-साथ मानव के श्रम का भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। फसल उपजाने में किसी एक व्यक्ति, एक नदी या एक खेत की मिट्टी को श्रेय नहीं दिया जा सकता। अनेक नदियों का जल, अनेक प्रकार की मिट्टियाँ, करोड़ों किसानों का श्रम और सूरज की किरणें तथा हवा का योगदान फसलें उगाता है। इसलिए फसलों पर सभी का प्राकृतिक अधिकार है। इस कविता में कवि यह रेखांकित करना चाहता है कि प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही सृजन संभव है।

गिरिजाकुमार माथुर

छाया मत छूना

1. कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है ?
उत्तर – कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि इसी से हमारा जीवन चलता है। विगत जीवन से चिपके रहना और वर्तमान से पलायन करना व्यर्थ है। हमें जीवन के कठोर यथार्थ से रू-ब-रू होना ही चाहिए । यही हमारे जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए । इसलिए कवि कठिन यथार्थ के पूजन की बात कहता है। इसे स्वीकार करने में ही भलाई है। व्यक्ति को जीवन के यथार्थ को ही पूजना चाहिए ।
2. भाव स्पष्ट करें
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, 
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है ।
उत्तर – बड़प्पन का अहसास, महान होने का सुख भी एक छलावा है। मनुष्य बड़ा आदमी होकर भी मन से प्रसन्न हो, यह आवश्यक नहीं। हर सुख के साथ एक दुख भी जुड़ा रहता है। जैसे हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात भी लगी रहती है, पूर्णिमा के बाद अमावस भी आती है, उसी तरह सुख के पीछे दुख भी छिपे रहते हैं ।
3. ‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है ? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है ?
उत्तर – इस कविता में ‘छाया’ शब्द भ्रम या दुविधा की स्थिति के लिए प्रयुक्त हुआ है यहाँ ‘छाया’ शब्द पुरानी स्मृतियों के लिए भी है। कवि छाया को छूने से इसलिए मना करता है क्योंकि यह वास्तविकता से दूर होती है। यह यथार्थ स्थिति नहीं होती है। इसके पीछे भागना अपने दुःख को बढ़ाना है। विगत स्मृतियों की छाया के सहारे जीवन नहीं जिया जा सकता । वर्तमान में जीना होगा ।
4. ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ? 
उत्तर – ‘मृगतृष्णा’ अयथार्थ की ओर भटकने को कहते हैं । रेगिस्तान की धूप पर अब सूरज की किरणें चमकती हैं तो वहाँ जल होने का भ्रम पैदा हो जाता है और हिरन उसे पाने को दौड़-दौड़कर पागल-सा हो जाता है। उसकी प्यास नहीं बुझती।
इस कविता में मृगतृष्णा की स्थिति वहाँ है जहाँ हम वासनाओं, कामनाओं और लालसाओं के पीछे भागते हैं, पर अतृप्ति के सिवाय हाथ कुछ नहीं लगता। व्यक्ति इस भटकाव में उलझकर रह जाता है। इसमें वास्तविकता कुछ नहीं होती केवल छलावा होता है ।
5. ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है ?
उत्तर – पंक्ति है- जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण ।
6. कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट करें। 
उत्तर – कविता में व्यक्त दुख के कारण निम्नांकित हैं –
(क) यथार्थ से मुँह मोड़ते हैं और कल्पना में जीते हैं।
(ख) हम पुरानी स्मृतियों से पीछा नहीं छुड़ा पाते। उन्हें याद करके हमारा दुख और भी बढ़ जाता है ।
(ग) हम सुख की मृगतृष्णा में उलझकर भटकते रहते हैं।
(घ) हम सदा दुविधाग्रस्त मनःस्थिति में रहते हैं।
(ङ) हम समयानुकूल आचरण करना नहीं जानते।
7. ‘छाया मत छूना’ कविता हमें क्या संदेश देती है ? 
उत्तर – यह कविता हमें यह संदेश देती है कि जीवन के यथार्थ का सामना करो, यादों के पीछे भागना व्यर्थ है। हमें खोखले आदर्शों और कल्पनाओं के जाल में नहीं उलझना चाहिए। भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागना मृगतृष्णा मात्र है। अप्राप्य के पीछे भागना छोड़कर वर्तमान में जीना चाहिए तथा भविष्य की सुध लेनी चाहिए। व्यक्ति को पूरी कर्मठता के साथ जीवन संघर्ष में लग जाना चाहिए। इस कविता का दूसरा संदेश यह है कि यश, धन, मान-सम्मान, बड़प्पन, सब छलावा है। इनमें वास्तविक सुख नहीं है। हर सुख के पीछे एक दुख छिपा रहता है।
8. ‘क्या हुआ जो खिला फूल रस वसंत जाने पर ?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। लेकिन कभी-कभी समय बीतने पर उपलब्धि उपादेयता नहीं रहती। इस पर अपनी राय लिखें। 
उत्तर – मेरी राय यह है कि समय बीत जाने पर उपलब्धि की कोई उपादेयता नहीं रहती। जब हमें किसी चीज की आवश्यकता होती है तभी उपयोगी लगती है। समय का चक्र चलता रहता है । समय निकल जाने पर वह चीज हमें कोई खुशी नहीं देती, बल्कि कई बार यह दुःख का कारण बन जाती है।

ऋतुराज

कन्यादान

1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना ?
उत्तर – हमारे विचार से माँ ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि लड़की जैसी दिखाई देने पर उसे सजावटी गुड़िया मान लिया जाता है। उसके ऊपर आदर्शवाद का मुलम्मा चढ़ा दिया जाता है। जब लड़की लड़की जैसी ही दिखाई देती है तब प्रायः उसका शोषण होने लगता गता है। माँ अपनी ल माँ अपनी लड़की को इस स्थिति से बचाना चाहती है।
2. ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर – इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की दशा के बारे में दो बातें बताई गई हैं –
(क) वह ससुराल में घर-गृहस्थी का काम सँभालती है। घर-भर के लिए रोटियाँ पकाती है।
(ख) काम में खटने के बावजूद उस पर अत्याचार किए जाते हैं। कई बार उसे जला डाला जाता है।
3. ‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है,
उसे शब्दबद्ध करें।
उत्तर – इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की छवि कल्पना लोक में विचरण करने वाली की बनती है। अभी वह पूरी तरह से तो सुख नहीं पा सकी थी, पर इसका थोड़ा-थोड़ा अहसास उसे अवश्य हो रहा था। अभी वह यौवनावस्था की दहलीज पर थी और मोहक कल्पनाओं की सुखानुभूति कर रही थी ।
4. माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा ?
उत्तर – माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी इसलिए समझा क्योंकि सभी लड़कियाँ शादी के समय खुशहाली के सपने देखती हैं। परन्तु वे सभी सपने झूठे सिद्ध होते हैं। वास्तव में बहुओं को प्यार के नाम पर घर-गृहस्थी के कठोर बंधनों में बाँधा जाता है। यदि वह इससे इनकार करे तो उसे जला भी दिया जाता है। परन्तु विवाह के समय भोली कन्या को इस दुर्दशा का अहसास नहीं होता। इसलिए वह उससे बचने का कोई उपाय भी नहीं करती।
5. माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी
उत्तर – माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी-जीवन के दुखों को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परंतु अब उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भी ससुराल चली जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी ।
6. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी ?
उत्तर – माँ ने बेटी को निम्नांकित सीख दी
(क) कभी अपने रूप-सौंदर्य पर गर्व मत करना।
(ख) आग का सदुपयोग करना। आग रोटी सेंकने के काम आती है। जलने के लिए नहीं ।
(ग) वस्त्र आभूषण पाकर भ्रमित न हो जाना। ये स्त्री जीवन के बंधन हैं।
(घ) लड़की होने पर भी लड़की जैसी मत दिखना अर्थात् साहसी एवं निडर बनकर रहना ।
7. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है ?
उत्तर – हमारी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कतई उचित नहीं है। कन्या को दान में नहीं दिया जा सकता। कन्या का अपना अस्तित्व है। उस पर किसी का अधिकार नहीं है, बल्कि वह अपनी मालिक स्वयं है। कन्या को दान में देने की बात करना उसकी अस्मिता पर चोट करना है।
8. ‘कन्यादान’ कविता का प्रतिपाद्य लिखें ।
उत्तर – ‘कन्यादान’ शीर्षक कविता स्त्री की अस्मिता का झंडा बुलंद करती है। इस कविता में स्त्री के परंपरागत आदर्श रूप से हटकर यथार्थ रूप का बोध कराया गया है। स्त्री पर आदर्श का मुलम्मा चढ़ा दिया जाता है। बेटी को अंतिम पूँजी बताया गया है क्योंकि वह माँ के सबसे अधिक निकट होती है। कविता में कोरी भावुकता नहीं है, बल्कि इसमें माँ के संचित अनुभवों का सार है। कविता स्त्री को S उसकी वास्तविकता से अवगत कराती है। स्त्री की कमजोरियों को भी यह कविता उजागर करती है। उसे वस्त्र, आभूषण एवं रूप-सौंदर्य के मोह से बचने की चेतावनी देती जान पड़ती है। यह कविता स्त्री को निरीहता का चोला उतार फेंकने की प्रेरणा देती है। लड़की को लड़की जैसी दिखाई न देने का संदेश देती है ।

मंगलेश डबराल

संगतकार

1. संगतकार के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है ?
उत्तर – संगतकार के माध्यम से कवि उन लोगों की ओर संकेत करना चाह रहा है जो मुख्य व्यक्तियों की छवि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। वे स्वयं तो पीछे रहते हैं, पर अपने मुख्य गायक, नेता को ऊँचा उठने में मदद करते हैं। इनकी भूमिका रचनात्मक होती है। ये लोग अपने आदर्श व्यक्ति की छवि को निखारते हैं, मुसीबत में साथ देते हैं तथा ढाँढ़स बँधाते हैं।
2. संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं ?
उत्तर – संगतकार जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा इन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं—
(क) नाटक के क्षेत्र में
(ख) नृत्य के क्षेत्र में
(ग) शिक्षा के क्षेत्र में
(घ) राजनीति के क्षेत्र में
(ङ) धर्म के क्षेत्र में
3. संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं ?
उत्तर – संगतकार मुख्य गायक-गायिकाओं के स्वर में अपना स्वर मिलाकर उनकी मदद करते हैं।
(क) संगतकार संगीत के वाद्य यंत्र बजाकर गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं। इनकी सहायता से उनके स्वर में उभार आ जाता है ।
(ख) प्रायः सभी गायक-गायिकाओं के साथ अपने साजिन्दे होते हैं। वे गायक-गायिकाओं का रंग जमाने में मदद करते हैं ।
4. किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पाने वाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर कथन पर अपने विचार लिखें ।
उत्तर – सभी क्षेत्रों में ऐसे लोग मिल जाते हैं जो अपना नाम पीछे रखकर अन्य व्यक्ति को सारा श्रेय देते हैं। उस व्यक्ति की प्रसिद्धि में इस प्रकार के व्यक्ति का योगदान रहता है ।
प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना उमा शर्मा को इस क्षेत्र में प्रसिद्धि दिलाने में उसके साथ संगीत के विविध वाद्य बजाने वाले संगीतकारों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। शास्त्रीय नृत्य के पीछे गायन करने वाले कलाकार भी महत्त्वपूर्ण होते हैं, पर उनके बारे में जानते तक नहीं। ये सभी लोग मिलकर उमा शर्मा को ही प्रसिद्धि में सहयोग करते हैं ।
5. कभी-कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नजर आता है उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट करें ।
उत्तर – जब मुख्य गायक गीत गाते-गाते अपने स्वर को बहुत ऊँचाई पर ले जाता है, तो कभी-कभी उसका स्वर बिखरने लगता है। उत्साह मंद पड़ने लगता है। रुचि और शक्ति समाप्त होने लगती है। तब संगतकार उसके पीछे मुख्य धुन को दोहराता चलता है। वह अपनी आवाज से उसके बिखराव को सँभाल लेता है। उसके उत्साह को वापस लौटा लाता है। इस प्रकार संगतकार की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह मुख्य गायक का सहायक ही नहीं, संरक्षक, बलवर्द्धक और आनंददायक साथी है ।
6. सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाते हैं तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं ?
उत्तर – जब कोई व्यक्ति सफलता के चरम शिखर पर पहुँचकर अचानक लड़खड़ा जाता है तो उसके सहयोगी ही उसे बल, उत्साह, शाबासी और साथ देकर सँभालते हैं वे अपनी शक्ति उसके लिए लगा देते हैं। वे उसकी कमी को पूरा करने का भरसक प्रयास करते हैं ।
7. ‘संगतकार’ कविता में किस जीवन-मूल्य को उभारा गया है ?
उत्तर – ‘संगतकार’ कविता में संगतकार के माध्यम से निस्वार्थ सहयोगियों की त्याग भावना को उभारा गया है। ये लोग अपने प्रिय अथवा आदर्श कलाकार की सफलता में ही अपनी सफलता मानकर संतुष्ट हो जाते हैं। दूसरों के लिए स्वयं को गुमनामी में खो देने वाले कलाकार ( संगतकार ) कम महत्वपूर्ण नहीं होते। उनके जीवन में परोपकार एवं त्याग के जीवन-मूल्य दृष्टिगोचर होते हैं। भारतीय संस्कृति में ये जीवन-मूल्य अनुकरणीय माने गए हैं। इस कविता में संगतकारों के माध्यम से इन्हीं जीवन-मूल्यों को उभारा गया है।
8. किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या शीर्ष स्थान पर क्यों नहीं पहुँच पाते होंगे ?
उत्तर – किसी भी क्षेत्र में संगतकार की पंक्ति वाले लोग प्रतिभावान होते हुए भी मुख्य या । शीर्ष स्थान पर इसलिए नहीं पहुँच पाते क्योंकि वे मुख्य कलाकार के सहयोगी होते हैं और उससे वे विश्वासघात नहीं करना चाहते है । वे अपने प्रिय कलाकार की सफलता में ही अपनी सफलता देखते हैं। उनमें प्रसिद्धि के शीर्ष स्थान पर पहुँचने की ललक नहीं होती। वे प्रतिभावान भी होते हैं, पर वे अपनी प्रतिभा का उपयोग दूसरों को चमकाने में करते हैं। ऐसे लोग परोपकारी, त्यागी एवं शुभेच्छु होते हैं। उनकी इस भावना की प्रशंसा की जानी चाहिए । इन लोगों की संगत के कारण मुख्य गायक का महत्व बना रहता है ।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *