NCERT Solutions Class 10Th Hindi Chapter – 6 कृतिका (भाग – 2)

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NCERT Solutions Class 10Th Hindi Chapter – 6 कृतिका (भाग – 2)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

माता का अँचल

1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर – पाठ में यह तो पता चलता है कि बच्चे का अपने पिता के साथ अधिक जुड़ाव था । वह पिता के साथ ही बाहर बैठक में सोया करता था। पिता ही उसे नहलाया-धुलाया करते थे तथा उसे तैयार करके अपने पास पूजा में बिठाते थे। उन्होंने उसका नाम ‘भोलानाथ’ प्यार में रखा था । इन सब बातों से बच्चे का पिता के प्रति जुड़ाव का पता चलता है।
विपदा के समय बच्चा पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। पाठ के अंतिम भाग में बताया गया है कि एक बार साँप के भय से बच्चा गिरता-पड़ता घर पहुँचा। उसकी सारी देह लहूलुहान हो चुकी थी। पैरों का तलवा काँटों से छलनी हो गया था । तब वह पिता के पास न जाकर माँ की गोद में समा गया था। उसने बच्चे की चोटों पर हल्दी पीसकर लगाई। बच्चा मैया के आँचल में छिपा जाता था। पिता ने उसे अपनी गोद में लेना चाहा, पर उसने माँ की गोद नहीं छोड़ी।
2. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन करें जो आपके दिल को छू गए हों ? 
उत्तर – पाठ का सबसे रोचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते-पड़ते भागते हैं और माँ की गोद में छिपकर सहारा लेते हैं – यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीतर तक हिला देता है । इस पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे भोज, शादी या खेती का खेल खेलते हैं, बच्चे का पिता बच्चा बनकर उनमें शामिल हो जाता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों को गुदगुदा देता है।
3. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं ?
उत्तर – बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ प्रेम रखते हैं। वे इसकी अभिव्यक्ति अपने ढंग से करते हैं ।
(क) बच्चे माता-पिता के साथ सोते हैं ।
(ख) बच्चे अधिक से अधिक समय माता-पिता के साथ गुजारना चाहते हैं।
(ग) बच्चे पिता के कंधों पर चढ़कर सुख की अनुभूति करते हैं।
(घ) बच्चे अपने क्रिया कलापों को माता-पिता को दिखाना चाहते हैं।
(ङ) दुख की घड़ी में वे माता-पिता की शरण में जाकर स्वयं को सुरक्षित अनुभव करते हैं। बच्चे माँ चिपटकर अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं।
4. माता का अँचल पाठ में माता-पिता का बच्चे के प्र प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखें। 
उत्तर – इस पाठ में माता-पिता का बच्चे के प्रति वात्सल्य अनेक स्थलों पर व्यक्त हुआ है
पिता – 
(क) पिता बच्चे को अपने पास सुलाते हैं, उसे नहलाते-धुलाते हैं तथा अपने पूजा पर बिठाते हैं। वे बच्चे को प्यार से ‘भोलानाथ’ कहकर पुकारते हैं, वे रास्ते में झुके हुए पेड़ों की डालों पर बिठाकर झूला झूलाते हैं।
(ख) कभी-कभी वे बच्चे के साथ कुश्ती लड़कर उसका उत्साह बढ़ाते हैं। वे बच्चे को चूमते हैं, उसे खट्टा-मीठा चुम्मा माँगते हैं। बच्चे द्वारा मूँछे नोंचने पर भी हँसते हैं ।
(ग) पिता बच्चे को अपने हाथ से भात खिलाते हैं।
माता – 
(क) माता बच्चे को भरपेट खाना खिलाना चाहती है। वह थाली में दही-भात मिलाती है और अलग-अलग तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि बनावटी नामों से कौर बनाकर बच्चे को खिलाती है जिससे खाने में उसकी रुचि बनी रहे।
(ख) माता बच्चे को अपने ढंग से सजाती-सँवारती है ।
(ग) पाठ के अंत में जब बच्चा घायल अवस्था में घर लौटता है तब माँ का वात्सल्य चरम सीमा पर प्रकट होता है। वह बच्चे को अपने अँचल में छिपाकर सुरक्षा प्रदान करती है। उसे अंग भरकर दबाती है, चूमती है। फिर वह बच्चे के घावों पर पिसी हल्दी लगाती है । वह बच्चे की दशा देखकर रोने लगती है और लाड़ से गले लगा लेती है ।

जॉर्ज पंचम की नाक

1. सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है। 
उत्तर – सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता और बदहवासी दिखाई देती है, उससे उनकी गुलाम मानसिकता का बोध होता है। इससे पता चलता है कि वे आजाद होकर भी अंग्रेजों के गुलाम हैं। उन्हें अपने उस अतिथि की नाक बहुत मूल्यवान प्रतीत होती है जिसने भारत को गुलाम बनाया और अपमानित किया। वे नहीं चाहते कि वे जॉर्ज पंचम जैसे लोगों के कारनामों को उजागर करके अपनी नाराजगी प्रकट करें। वे उन्हें अब भी सम्मान देकर अपनी गुलामी पर मोहर लगाए रखना चाहते हैं।
इस पाठ में ‘अतिथि देवो भव की परम्परा पर भी प्रश्नचिह्न लगाया गया है। लेखक कहना चाहता है कि अतिथि का सम्मान करना ठीक है, किन्तु वह अपने सम्मान की कीमत पर नहीं होना चाहिए ।
2. प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए है जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी हैं। ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ ताका ।’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखें।
उत्तर – पाठ में आए ऐसे अन्य कथन –
(क) ‘इंग्लैंड के अखबारों की कतरने हिंदुस्तानी अखबारों में दूसरे दिन चिपकी नजर आती थीं।
(ख) किसी ने किसी से नहीं कहा, किसी ने किसी को नहीं देखा पर सड़कें जवान हो गई, बुढ़ापे की धूल साफ हो गई । इमारतों ने नाजनीनों की तरह शृंगार किया ।
(ग) हिंदुस्तान में जगह-जगह ऐसी नाकें खड़ी थीं और जिन तक लोगों के हाथ पहुँच गए उन्हें शानों शौकत के साथ उतारकर अजायबघरों में पहुँचा दिया गया।
(घ) हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात रहे । गश्त लगती रही और लाट की नाक चली गई।
3. नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है ? लिखें ।
उत्तर – यह बिल्कुल सही है कि नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की द्योतक है। ‘नाक’ से जुड़े कई मुहावरे भी हैं— नाक ऊँची रखना, नाक कटना आदि ।
इस व्यंग्य-रचना में नाक सम्बन्धी यह भाव अनेक स्थलों पर उभरकर सामने आया है –
(क) जॉर्ज पंचम की नाक का गायब होना ब्रिटिश सत्ता की नाक अर्थात मान-प्रतिष्ठा का धूल में मिलना है।
(ख) जॉर्ज पंचम की नाक पुनः लगाने के प्रयास बिटिश सत्ता के सम्मान की वापसी का प्रयास है।
(ग) भारतीय नेताओं की नाक का बड़ा होना यह दर्शाता है कि समाज में उनका मान-प्रतिष्ठा ब्रिटिश सत्ताधीशों से बढ़कर थी। जॉर्ज पंचम उनकी तुलना में नहीं ठहरते थे ।
(घ) बिहार में 1942 के आंदोलन में शहीद होने वाले बच्चों की नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलना, उनके मान-सम्मान को अधिक दर्शाता है।
4. आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों का दौर चल पड़ा है। इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं ? इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है ? 
उत्तर – आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों के वर्णन की प्रवृत्ति को हम अच्छा नहीं मानते। पत्रकारिता का ध्यान देश की तरक्की संबंधी बातों एवं ज्वलंत समस्याओं की ओर होना चाहिए। व्यक्तिपरक पत्रकारिता चापलूसी की द्योतक है। ऐसी पत्रकारिता किसी व्यक्ति विशेष को महिमा मंडित करती है ।
इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव डालती है। युवा पीढ़ी चर्चित हस्तियों के खान-पान और पहनावे को अपना आदर्श मान बैठती है और अन्य जरूरी बातों से उसका ध्यान हट जाता है। यह प्रवृत्ति उसके विकास को अवरुद्ध करती है। आम जनता को इस प्रकार के वर्णनों में कोई रुचि नहीं होती ।
5 “नई दिल्ली में सब था….सिर्फ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि नई दिल्ली की दिखावटी शान शौकत तो बरकरार थी सिर्फ ब्रिटिश सत्ता के प्रति लोगों का आदर-सम्मान का भाव नहीं था। रानी एलिजाबेथ के भारत आगमन के अवसर पर नई दिल्ली को दुलहिन की तरह सजाया गया था। नई दिल्ली पहले से भी ठीक-ठाक थी, इस मौके पर उसे खूब सजाया-सँवारा गया। पर समस्या यह थी कि जॉर्ज पंचम की नाक गायब थी । जॉर्ज पंचम की लाट ब्रिटिश सत्ता की प्रतीक थी । उससे नाक का गायब होना ब्रिटिश सत्ता की नाक कट जाने के बराबर थी । इस कथन के द्वारा भी लेखक यही कहना चाहता है कि मूर्तियों से मान-सम्मान नहीं मिलता, अच्छे कामों से जनता उन्हें आदर देती है।
6. ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक निबंध का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक निबंध स्वाभिमानशून्य भारतीय शासकों पर व्यंग्य है। लेखक ने आजाद भारत के उन शासकों का उपहास उडाया है जो अपने आत्मसम्मान को भूल चुके हैं। वे अतीत में हुए अपने अपमान को भूलकर अत्याचारियों का सम्मान करने में लगे हुए हैं। उन्हें भारतीय महापुरुषों, शहीदों और संघर्षों की कोई चिंता नहीं है। चिंता है तो इंग्लैंड की महारानी का मान रखने की। वे भूल चुके हैं कि इसी महारानी के देश ने ही उन्हें कभी गुलाम बनाया था।
इस निबंध में सरकारी कार्य प्रणाली पर भी व्यंग्य है। सरकारी काम सरसरी तौर पर किया जाता है । सब अफसर अपनी जिम्मेदारी दूसरे पर डालने की कोशिश करते हैं। अंत में गाज गिरती है क्लर्क या आम कर्मचारी पर। वह भी मौके पर क्षमा माँगकर सारी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।

साना साना हाथ जोड़ि….

1. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है ?
उत्तर – लेखिका अपने ड्राइवर-कम-गाइड जितेन नार्गे के साथ यूमथांग की ओर जा रही थी। वहाँ पहाड़ी रास्तों पर एक जगह उन्होंने एक कतार में लगी सफेद पताकाएँ फहराती हुई देखीं। ये श्वेत बौद्ध पताकाएँ शांति और अहिंसा की प्रतीक थीं। इन पर मंत्र लिखे हुए थे। श्वेत पताकाएँ तब फहराई जाती हैं जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है। उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर 108 श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं ।
रंगीन पताकाओं का फहराया जाना किसी नए कार्य की शुरूआत की ओर संकेत करता है। इन पताकाओं को उतारा नहीं जाता। ये अपने आप नष्ट हो जाती हैं।
2. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखें ।
उत्तर – जितेन नार्गे ने लेखिका को निम्नांकित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं –
(क) यूमथांग जाते हुए सारे रास्ते हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।
(ख) ‘कवी लोंग स्टॉक’ नामक स्थान पर ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग पूरी हुई थी तथा वहाँ एक संधि-पत्र पर हस्ताक्षर भी हुए थे ।
(ग) कुटिया के भीतर प्रेयर व्हील को घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।
(घ) पहाड़ों पर रास्ता बनाना बड़ा दुस्साहस कार्य है। इसमें जान भी चली जाती है।
(ङ) पहाड़ी बच्चों का जीवन भी अत्यंत कठोर है।
(च) कटाओं में एकदम ताजा बर्फ देखने को मिलती है।
(छ) युमथांग की घाटी फूलों से इस कदर भर जाती है कि लगता है कि फूलों की सेज रखी हो ।
3. जितेन नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखें कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ?
उत्तर – जितेन नार्गे सिक्किम-यात्रा के समय लेखिका का गाइड था । वह उस क्षेत्र से भली-भाँति परिचित था । अतः वह पूरे रास्ते की सटीक जानकारी लेखिका को दे रहा था। वह नेपाल का निवासी था । अभी वह कुछ दिन पूर्व ही नेपाल से आया था। उसे नेपाल और सिक्किम की पूरी जानकारी थी । एक कुशल गाइड में निम्नांकित गुण होते हैं –
(क) उसे देश-दुनिया की प्रमुख घटनाओं एवं स्थानों की जानकारी होती है।
(ख) वह अपने भ्रमण-स्थल के बारे में पूरी तरह जानता है। वहाँ के इतिहास और भूगोल से पूर्णतः भिज्ञ होता है।
(ग) वह अपने से सम्बन्धित भ्रमणकर्ता की रुचि को बनाए रखता है। वह रहस्यमयी बातों का उद्घाटन करके यात्रा को रोचक बना देता है।
(घ) वह भ्रमणकर्ता के साथ आत्मीयता का सम्बन्ध बना लेता है। इससे उसकी बातें अधिक विश्वसनीय बन जाती है।
(ङ) गाइड की वाणी प्रभावशाली होनी चाहिए। वह लच्छेदार बातें करना जानता हो।
4. “साना साना हाथ जोड़ि….. यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के निम्नांकित रूपों का चित्रण किया है
(क) लेखिका को हिमालय बड़ा होते-होते विशालकाय प्रतीत होने लगा। वादियाँ चौड़ी लगने लगीं। हिमालय की असीम सुंदरता का मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।
(ख) लेखिका जीप की खिड़की से सिर निकाल-निकाल कर आसमान को छूते पर्वतों के शिखर को देखकर अभिभूत हो रही थी।
(ग) लेखिका ने हिमालय को नगपति विशाल मानकर उसे सलामी देना चाह रही थी। शिखरों के ऊपर शिखर से गिरता फेन उगलता झरना भी था। उसका नाम था— सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल ।
5. प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है ?
उत्तर – प्रकृति के अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को अनुभूति हुई कि उसके भीतर कुछ बूँद-बूँद कर पिघल रहा है। वह किसी अभिशप्त राजकुमारी-सी नीचे बिखरे भारी-भरकम पत्थरों पर बैठकर झरने के संगीत के साथ अपनी आत्मा का संगीत भी सुनने लगी। जब उसने बहती जलधारा में पाँव डुबोया तो वह भीतर तक भींग गई। उसका मन काव्यमय हो गया । सत्य और सौंदर्य को छूने लगा। जीवन की अनंतता के प्रतीक उस झरने में लेखिका को जीवन की शक्ति का अहसास होने लगा। उसके भीतर की सारी तामसिकताएँ और दुष्ट वासनाएँ इसकी निर्मल धारा में बहती जान पड़ी । वह चाहने लगी कि वह अनंत काल तक ऐसे ही बहती रहे, सुनती रहे।
6. प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए ?
उत्तर – प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को निम्नांकित दृश्य झकझोर गए ?
(क) सितारों भरी रात का दृश्य लेखिका में सम्मोहन जगा रही थी तब उसके भीतर-बाहर सिर्फ शून्य था और वह अतींद्रियता में भी डूबी हुई थी ।
(ख) हिमालय का विशालकाय रूप और उसकी वादियों में खिले रंग-बिरंगे फूलों का दृश्य ।
(ग) ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ झरने का दृश्य उसे आत्मा का संगीत सुनाने लगा। वह उसमें पूरी तरह से डूब गई ।
(घ) दो विपरीत दिशाओं से आनेवाले छाया- पहाड़ का दृश्य। ये छाया पहाड़ अपने श्रेष्ठतम रूप में थे। चारों ओर जन्नत बिखरी हुई थी। नजरों के छोर तक खूबसूरती ही खूबसूरती। यही चलायमान सौंदर्य जीवन का आनंद प्रतीत होता था।
7. आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर – आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ निम्न रूपों में खिलवाड़ किया जा रहा है –
(क) वृक्षों को अंधाधुंध रूप में काटा जा रहा है। इससे पहाड़ नंगे हो रहे हैं। इसका पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण का खतरा निरंतर बढ़ता चला जा रहा है।
(ख) नदियों के जल को प्रदूषित करने में भी आज की पीढ़ी आगे है। इन नदियों में कल-कारखानों की गंदगी डाली जाती है, नगरों-शहरों का कूड़ा तथा गंदगी को बहा दिया जाता है। अब गंगा तक पवित्र नदी नहीं रह गई है।
इसे रोकने के लिए हमारी भूमिका निम्न होनी चाहिए – 
(क) वृक्षों को काटने से रोकें ।
(ख) नए वृक्ष लगाएँ तथा उनकी देखभाल करें।
(ग) नदियों की पवित्रता को बनाए रखें। उनमें गंदगी और मुर्दों आदि को न बहाएँ।
8. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है ? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं ? लिखें।
उत्तर – सिक्कमी नवयुवक ने लेखिका को बताया कि प्रदूषण के चलते स्नोफॉल में लगातार कमी होती जा रही है।
प्रदूषण के और भी कई दुष्परिणाम सामने आए हैं –
(क) वायु प्रदूषण के कारण हमें साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु नहीं मिल पा रही है, जिससे साँस और हृदय रोग बढ़ते जा रहे हैं।
(ख) जल-प्रदूषण के कारण हमें अस्वच्छ जल पीना पड़ रहा है। इससे पेट के रोग और त्वचा के रोग बढ़ रहे हैं।
(ग) ध्वनि प्रदूषण के परिणामस्वरूप बहरेपन का रोग तथा हृदय के रोग बढ़ रहे हैं।

एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !

1. हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है ?
उत्तर – भारत की आजादी की लड़ाई में हर धर्म और हर वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। यही एकता भारतवासियों की सच्ची ताकत थी । प्रस्तुत कहानी एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !’ कहानी भी एक गौनहारिन ( गाना गाने तथा नाचकर लोगों का मनोरंजन करने वाली) दुलारी के मूक योगदान को रेखांकित करती है। टुन्नू से प्रेरित होकर दुलारी भी रेशम छोड़कर खद्दर धारण कर लेती है। वह अंग्रेज सरकार के मुखबिर फेंकू सरदार की लाई विदेशी धोत्तियों का बंडाल विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए दे देती है। दुलारी का यह कदम क्रांति का सूचक है। यदि दुलारी जैसी समाज में उपेक्षित मानी जाने वाली महिला, जो पैसे के लिए तन का सौदा करती है, वह ऐसा कदम उठाती है तो इसका कैसा व्यापक प्रभाव हुआ होगा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लेखक ने इस कहानी में बड़ी कुशलता से इस योगदान को उभारा है।
2. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा ? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख करें ।
उत्तर – खोजवाँ बाज़ार में तीज के अवसर पर कजली दंगल का अ आयोजन किया गया था। इस दंगल में दुलारी को खड़ा करके खोजवाँ वालों ने अपनी जीत सुनिश्चित समझ ली थी। इस प्रकार के दंगल में काव्यात्मक शैली में प्रश्न उत्तर किए जाते थे। कजरी दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन मनोरंजन के लिए किया जाता होगा। कई बार ये दंगल प्रतिष्ठा के प्रश्न भी बन जाते थे। इनसे गाँव की प्रतिष्ठा जुड़ जाती थी । हार-जीत की भावना इस प्रकार के दंगल को रोचक बना देती होगी। इस प्रकार के दंगल में ही लोक कलाकार उभरकर सामने आते होंगे।
कुछ और परंपरागत लोक आयोजन –
(क) कुश्ती का दंगल,
(ख) स्वांग (लोक नाट्य),
(ग) पशु मेले,
(घ) पशुओं की दौड़,
(ङ) तमाशा |
3. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखें।
उत्तर – दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक सांस्कृतिक दायरे से बाहर है, फिर भी वह अति विशिष्ट बनी हुई है। यही उसके जीवन का विरोधाभास है। एक ओर तो वह शिष्ट समाज की उपेक्षा का शिकार है, पर वह अपने गुणों के आधार पर विशिष्ट बनी हुई है। गायन के क्षेत्र में उसकी विशेष धाक है।
दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ – 
बाह्य व्यक्तित्व- दुलारी मजबूत कद-काठी वाली स्त्री है । वह डटकर व्यायाम करती है। उसके भुजदंड पहलवानों के समान हैं। वह व्यायाम करके प्याज के टुकड़े और हरी मिर्च के साथ भिगोए चने खाती है।
प्रसिद्ध गायिका- दुलारी को दुक्कड़ पर गानेवालियों में विशेष ख्याति प्राप्त है। पद्य में सवाल-जवाब करने में उसे अद्भुत क्षमता प्राप्त है। कजली गाने में बड़े-बड़े विख्यात शायरों की उससे कोर दबती थी। उसके सामने गाने में लोग घबराते थे।
कठोरता एवं भावुकता का अद्भुत संगम- दुलारी के व्यक्तित्व में कठोरता एवं भावुकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। वह टुन्नू के सामने प्रत्यक्षतः तो कठोरता का प्रदर्शन करती है पर हृदय से उसके प्रति लगाव रखती है।
देशभक्त महिला- दुलारी की देशभक्ति की भावना भी उसे अतिविशिष्ट बना देती है। उसके अंतर्मन में जन्मभूमि के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता के जूए को उतार फेंकने की उत्कट लालसा आजादी की लड़ाई में उसके योगदान को रेखांकित करती है। वह अपनी विदेशी साड़ियों का मोह त्यागकर जलाने के लिए नीचे फेंक देती है।
4. दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था- ‘तैं सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट ?..! दुलारी के इस आपेक्ष में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर – टुन्नू के गायन का जवाब देते हुए दुलारी ने कहा था- तै सरबउला बोल जिंदगी में कब देखले लोट….। इसका भाव था कि सिरफिरे ने जिंदगी में नोट कहाँ कि तुझ स देखे हैं। यहाँ नोट के दोनों अर्थ सही हैं कि न तो सोलह-सत्रह वर्ष की कच्ची उम्र में टुन्नू ने परमेश्वरी लोट (प्रॉमिसरी नोट) ही देखे हैं और न ही नोट आदि धन-माया। टुन्नू के पिता गरीब पुरोहित थे, जो जैसे-तैसे कौड़ी-कौड़ी जोड़कर गृहस्थी चला रहे थे।
दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए यही संदेश निहित है कि उन्हें सपनों की हसीन दुनिया से निकल कर कठोर यथार्थ का सामना करना चाहिए।
5. ‘मन पर किसी का बस नही; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा ?
उत्तर – टुन्नू एक किशोर था और दुलारी की आयु उसकी माँ से भी बड़ी थी । टुन्नू दुलारी के प्रति आकर्षित था। यह किशोर जन्य प्रेम था जो रूप या उमर का बंधन स्वीकार नहीं करता । टुन्नू होली के अवसर पर दुलारी के लिए एक साड़ी लाया था जिसे दुलारी ने अस्वीकार कर उसे फटकार दिया था – “अभी तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे और मजनूपन सिर पर सवार हो गया। बाप दिन भर घाट अगोर कौड़ी-कौड़ी जुटाकर गृहस्थी चलाता है और बेटा आशिकी के घोड़े पर सवार सरपट दौड़ रहे हैं। तुम्हारे भले के लिए ही कहती हूँ। यह गली तुम जैसों के लिए नहीं है । और फिर आशिक भी होने चले तो मुझपर जो शायद तुम्हारी माँ से भी उमर में बरस भर बड़ी है ।” टुन्नू ने दुलारी का यह भाषण सुनकर केवल इतना ही कहा- “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।”
टुन्नू के विवेक ने इस प्रेम को देशप्रेम की दिशा में मोड़ दिया। वह देश-प्रेम के आंदोलन के साथ जुड़ गया और अंत में उसने अपना बलिदान तक दे दिया ।
6. ‘एही ढैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !’ का प्रतीकार्थ समझाइए ।
उत्तर – एही ढैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा ! में ‘यथार्थ और आदर्श, दंतकथा और इतिहास, मानव मन की कमजोरियाँ और उदात्ताओं की अभिव्यक्ति है और यह सब अभिव्यक्त हुआ है अपने विशिष्ट भाषागत प्रयोग एवं शैली शिल्प की नवीनताओं में। यह कहानी गीत-संगीत के माध्यम से एक अलग तरह की प्रेम कहानी को अंजाम देती है।
बनारस में चार-पाँच के समूह में गानेवालियों की एक परम्परा रही है- गोनहारिन परम्परा। दुलारी बाई उसी परम्परा की एक कड़ी है। उसका परिचय एक संगीत कार्यक्रम में 15 वर्षीय टुन्नू से होता है। जो संगीत में उसका प्रतिद्वंद्वी था। अपने सारे अंतर्विरोध के साथ पलता दुलारी और टुन्नू का व्यक्तिगत प्रेम का अंततः  देश-प्रेम में परिणत हो जाना ही इस कहानी को एक नया स्वर देता है। लेखक ने यहाँ तथाकथित समाज की मुख्य धारा से बहिष्कृत और उपेक्षित समझे जाने वाले वर्ग के अंतर्मन में व्याप्त जन्मभूमि के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता के जूए तो उतार फेंकने की उत्कट लालसा और आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को रेखांकित किया है। कहानी एक साथ ही कई उद्देश्यों को लेकर चलती है। जिसमें सच न छापने वाले संपादक का दोहरा चरित्र भी सामने आता है ।
7. भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया ?
उत्तर – स्वाधीनता आंदोलन में विदेशी वस्त्रों का बॉयकाट करने का निर्णय किया गया था। इसके लिए विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। इसके लिए युवकों का जुलूस निकल रहा था। दुलारी ने भी अपने घर की खिड़की खोलकर अपनी मैनचेस्टर तथा लंकाशायर की मिलों में बनी बारीक सूत की मखमली किनारी वाली नई कोरी धोतियों का बंडल उन लड़कों के जुलूस की चादर पर फेंक दिया। इस प्रकार दुलारी में भी स्वाधीनता आंदोलन में योगदान दिया।

मैं क्यों लिखता हूँ ?

1. लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया ?
उत्तर – लेखक अपनी जापान यात्रा के अवसर पर हिरोशिमा भी गया । यहाँ विश्वयुद्ध में अणु बम बरसाए गए थे। रेडियम पदार्थ से आहत लोगों ने लंबे समय तक कष्ट भोगा। लेखक उनसे मिला भी । इस प्रकार उसे प्रत्यक्ष अनुभव भी हुआ, पर यह अनुभव पर्याप्त नहीं है, अनुभूति होनी आवश्यक है। वह गहरी चीज है। यह अनुभूति ही होती है जो संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात कर लेती है जो लेखक के साथ वास्तव में घटित नहीं हुआ होता ।
लेखक ने एक दिन हिरोशिमा में एक जले हुए पत्थर पर लंबी उजली छाया को देखा । विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा । रेडियोधर्मी पदार्थ की किरणों ने पत्थर को झुलसा दिया, व्यक्ति को भाप बनाकर उड़ा दिया। इस प्रकार समस्त ट्रेजडी जैसे पत्थर पर लिखी हो । उस छाया को देखकर लेखक को एक थप्पड़ सा लगा। इतिहास जैसे उसके भीतर जलते हुए सूर्य-सा उग आया था । उस क्षण लेखक स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया था ।
2. हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंतः व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं ?
उत्तर – लेखक स्वयं हिरोशिमा गया और वहाँ अस्पताल में अणु-विस्फोट से घायल लोगों को देखा। इस प्रकार उसे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ, पर अभी अनुभूति का होना शेष था और अनुभूति अनुभव की अपेक्षा ज्यादा गहरी चीज है। एक दिन जब उसने हिरोशिमा की सड़क पर घूमते हुए एक झुलसे पत्थर को देखा तब उस पर अंतः दबाव पड़ा। पहला प्रभाव बाह्य था। जब दोनों प्रभाव संयुक्त हुए तब लेखक के तर भीतर की आकुलता जागी। यह बुद्धि (बाह्य) के क्षेत्र से बढ़कर संवेदना (अंतः) क्षेत्र में आ गई कवि इससे अपने को अलग न कर सका और अचानक एक दिन ‘हिरोशिमा’ कविता का जन्म हो गया। यह कविता उसने जापान में नहीं, भारत लौटकर रेलगाड़ी में बैठे-बैठे लिखी ।
3. हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। आपकी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग कहाँ-कहाँ और किस तरह से हो रहा है। 
उत्तर – हिरोशिमा की घटना विज्ञान का भयानकतम दुरुपयोग है। इस अणु विस्फोट ने सारी मानवता को झकझोर कर रख दिया। इसने विज्ञान की कुरूपता को उजागर कर दिया। इसी घटना के बाद विज्ञान को अभिशाप माना जाने लगा। इसने विज्ञान की शक्ति का दुरुपयोग किया।
हमारी दृष्टि में विज्ञान का दुरुपयोग निम्नांकित क्षेत्रों में हो रहा है – 
(क) विज्ञान ने टी०वी० का दुरुपयोग बढ़ाया है। अब टी०वी० शिक्षा एवं स्वस्थ मनोरंजन का माध्यम न रहकर सेक्स एवं हिंसा परोसने का माध्यम बनता जा रहा है।
(ख) विज्ञान का नवीनतम आविष्कार है- रंगीन मोबाइल फोन जो फोटो भी खींचता है। इस प्रकार के फोन का दुरुपयोग निरंतर बढ़ता चला जा रहा है।
(ग) विज्ञान ने लोगों की मानसिक शांति छीन ली है । विज्ञान का सम्बन्ध केवल बुद्धि से ही है, हृदय से
नहीं ।
(घ) विज्ञान की सहायता से अनेक स्टिंग आपरेशन चलाए गए हैं। कई बार तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया गया, जिससे कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों की छवि धूमिल हुई है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

माता का अँचल

1. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है ?
उत्तर – घर में माँ बच्चे के लाख छटपटाने पर भी उसे पकड़कर उसके सिर में चुल्लू भर कड़वा तेल डाल देती थी । वह सिर को तेल से सराबोर करके ही छोड़ती थी। फिर माथे पर काजल की बिंदी लगाती और फूलदार लट्टू बाँधकर कुरता-टोपी पहना देती। इस प्रकार माँ के हठ से तंग आकर बच्चा सिसकने लगता था। तब वे बाबूजी की गोद में सिसकते बाहर आते । पर बाहर आते ही उनकी प्रतीक्षा करता बालकों का झुंड मिला जाता था। तब वह अपने खेल के साथियों को देख़कर सिसकना भूल जाता था । हमारे विचार से वह खेलने का अवसर पाकर सिसकना भूल जाता था।
2. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर – आज जमाना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। वे उसे गली-मुहल्ले में बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। जबसे निठारी जैसे कांड होने लगे हैं, तब से बच्चे भी डरे-डरे रहने लगे हैं। अब न तो हुल्लड़बाजी शरारतें और तुकबंदियाँ हो रही हैं; न ही नंगधड़ंग घूमते रहने की आजादी । अब तो बच्चे प्लास्टिक और इलेक्ट्रोनिक्स के महँगे खिलौनों से खेलते हैं। बरसात में बच्चे बाहर रह जाएँ तो आज माँ-बाप की जान निकल जाती है। आज न कुँए रहे, न रहट, न खेती का शौक । इसलिए आज का युग पहले की तुलना में आधुनिक, बनावटी और रसहीन हो गया है।
3. माता का अँचल पाठ में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर – आज की ग्रामीण संस्कृति में अनेक परिवर्तन हो चुके हैं। आज कुओं से सिंचाई होने की प्रथा प्रायः समाप्त हो गई है। उसकी जगह ट्यूबवैल आ गए हैं। अब बैलों की जगह ट्रैक्टर आ गए हैं। आजकल पहले की तरह बूढ़े दूल्हे भी नहीं दिखाई देते। आज धीरे-धीरे ग्रामीण अंचल मौज-मस्ती और आनंद मनाने की चाल को भूलता जा रहा है। वहाँ भी भविष्य, प्रगति और पढ़ाई-लिखाई का भूत सिर पर चढ़कर बोलने लगा है।
4. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाएँ । 
उत्तर – ‘माता का अँचल’ शीर्षक बिल्कुल उपयुक्त है। बच्चे माँ के अँचल में छिपकर सुरक्षित महसूस करते हैं। इस पाठ का बच्चा भी घायलावस्था में माँ के अँचल में दुबक कर राहत महसूस करता है। इस पाठ में माँ की महत्ता का बखान हुआ है, अतः यह शीर्षक पाठ की भावना को अभिव्यक्त करने में समर्थ है।
अन्य शीर्षक- ‘मेरा बचपन’ ।
क्योंकि इस पाठ में लेखक ने अपने बचपन की घटनाओं का वर्णन किया है। अतः यह शीर्षक भी उपयुक्त रहेगा।
5. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है यह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है ?
उत्तर – इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई वह 1930 के आस-पास की है। तब बच्चे साधारण सी चीजों से खेलने का काम चला लेते थे। वे प्रकृति की गोद में रहकर खुश रहते थे।
आज हमारी दुनिया पूरी तरह से भिन्न है। अब हमें ढेर सारी चीजें चाहिए। खेल की सामग्री भी बदल गई है। खाने-पीने की चीजों में भी काफी बदलाव आया है। हमारी दुनिया टी०वी०, कोल्ड ड्रिंक, पीजा, चॉकलेट के इर्द-गिर्द घूमती है।
6. माता बाबूजी को क्या उलाहना देते हुए बच्चे को क्या कहकर खिलाती थी ? 
उत्तर – मइयाँ (माता) बाबूजी को उलाहना देती – आपको बच्चों को खिलाना भी नहीं आता। आप तो चार-चार दाने के कौर बच्चे के मुँह में देते जाते हैं, इससे वह थोड़ा खाने पर भी यह समझ लेता है कि वह बहुत खा गया है। आप खिलाने का ढंग भी नहीं जानते। बच्चे को भर- मुँह कौर खिलाना चाहिए।
इसके बाद वह विभिन्न पक्षियों के नाम से कौर बनाकर यह कहकर खिलाती कि जल्दी खा लो, नहीं तो उड़ जाएँगे।
7. मूसन तिवारी कौन थे ? उससे सम्बन्धित घटना का संक्षेप में वर्णन करें। 
उत्तर – मूसन तिवारी बूढ़ा था । उसे कम दिखाई देता था । लेखक के साथ बैजू ने उसे चिढ़ाया- ‘बूढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा’ । मूसन तिवारी ने बच्चों को बेतहाशा खदेड़ा। जब बच्चे भाग निकले तो मूसन तिवारी उनकी शिकायत करने पाठशाला चले गए। वहाँ गुरुजी के सिपाही उनपर टूट पड़े। बैजू तो भाग गया और लेखक पकड़ा गया। गुरुजी ने उसकी खूब खबर ली। बाबूजी गुरुजी की चिरौरी करके उसे घर ले गए।
8. लड़के मकई के खेत में क्या कर रहे थे कि बाबूजी और गाँव के लोग हँस रहे थे ? 
उत्तर – सभी लड़के मकई के खेत में दौड़-दौड़कर झुंड में चिड़ियों को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे जबकि एक भी चिड़िया उनके हाथ नहीं आई। फिर वे खेत से अलग खड़े होकर गाने लगे- ‘रामजी की चिरई, रामजी का खेत, खा लो चिरई, भर-भर पेट’। इस तमाशे को कुछ दूरी पर खड़े बाबूजी और गाँव लोग देख रहे थे और हँस रहे थे- ‘चिड़िया की जान जाए, लड़कों का खिलौना l

जॉर्ज पंचम की नाक

1. रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था ? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे ?
उत्तर – रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का कारण यह था कि रानी हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल की पर कब क्या ड्रेस पहनेंगी ? आखिर रानी ने एक ऐसे नीले रंग का सूट बनवाया जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से मँगाया गया था। इस सूट पर करीब 400 पौंड (पाँच हजार रुपए) खर्च हुए थे।
हम दरजी की परेशानी को इस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे क्योंकि उसके ऊपर नहीं। रानी की वेशभूषा की जिम्मेदारी थी। वह कोई मामूली हस्ती तो थी नहीं l
2. ‘और देखते ही देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा- नई दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे ?
उत्तर – नई दिल्ली के काया पलट के लिए निम्नांकित प्रयत्न किए गए होंगे –
(क) सड़कों को फिर से बनाया गया होगा तथा उन्हें चौड़ा किया गया होगा।
(ख) सड़कों के किनारे हरे-भरे वृक्ष लगाए गए होंगे।
(ग) पार्कों में फूलदार पौधे लगाए गए होंगे।
(घ) सड़कों तथा सरकारी भवनों पर रोशनी का इंतजाम किया गया होगा।
3. जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है। 
उत्तर – जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चों की नाक फिट न होने की बात से लेखक इस ओर संकेत करना चाहता है कि भारतीय नेता और बलिदानी भारतीय बच्चों का सम्मान जॉर्ज पंचम से कहीं बढ़कर है। हमारे देश में उस व्यक्ति की नाक ऊँची होती है अर्थात् सम्मान का हकदार बनता है जो देश के लिए त्याग-बलिदान करता है। निर्दयी शासकों को कभी भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया ।
4. अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया ? 
उत्तर – अखबार वालों ने जिंदा नाक लगने की खबर को अखबारों ने इस प्रकार प्रस्तुत किया- “जॉर्ज पंचम के जिंदा नाक लगाई गई है….यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती।” इसके अलावा अखबारों ने कोई और खबर नहीं छापी। सब अखबार खाली थे। कहीं कोई समारोह होने की खबर नहीं छपी थी। यह उनके विरोध करने का एक ढंग था।
5. जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे ? 
उत्तर – जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार इसलिए चुप थे क्योंकि उन्हें यह सब अच्छा नहीं लग रहा था । वे इसका विरोध चुप रहकर कर रहे थे। यही कारण था कि किसी स्वागत समारोह का कोई समाचार और चित्र अखबारों में नहीं छपा था।
6. रानी के दौरे के समय क्या मुश्किल खड़ी हो गई थी ? 
उत्तर – रानी के भारत दौरे के समय यह मुश्किल खड़ी हो गई थी कि नई दिल्ली में इंडिया गेट पर जो जॉर्ज पंचम की लाट थी, उसकी नाक गायब थी। यह नाक, ब्रिटिश शासन के लिए सम्मान का प्रश्न था। जॉर्ज पंचम की मूर्ति पर नाक का होना आवश्यक है।
7. जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए ?
उत्तर – जॉर्ज पंचम की लाट क की क को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने निम्नांकित यत्न किए –
(क) मूर्तिकार ने उस पत्थर की काफी तलाश की जिस पत्थर से जॉर्ज पंचम की लाट बनाई गई थी। उसमें वह असफल रहा।
(ख) उसने देश के नेताओं की मूर्तियों से नाक हटाकर जॉर्ज की मूर्ति पर नाक लगाने का असफल प्रयास किया। उन नेताओं की नाक उससे बड़ी थी।
(ग) बिहार सेक्रेटरिएट के सामने 1942 में शहीद होने वाले बच्चों की मूर्तियों की नाक लगाने का प्रयास किया, पर उनकी नाकें भी बड़ी पड़ीं।
(घ) अंत में उसने जिंदा आदमी की नाक लगाने का यत्न किया। ऐसा बताया गया कि वह इसमें सफल हो गया ।
8. नई दिल्ली का कायापलट क्यों होने लगी ?
उत्तर – नई दिल्ली में इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति-सहित दौरा करनेवाली थीं। भारत के शासक उनका शाही सम्मान करना चाहते थे। इसलिए नई दिल्ली को पूरी तरह राजसी सज-धज से सँवारा जाने लगा। यहाँ तक कि उसकी कायापलट हो गई ।
9. ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ नामक पाठ में मूर्तिकार पर क्या व्यंग्य किया गया है ?
उत्तर – इस पाठ में मूर्तिकार पर गहरा व्यंग्य है । लेखक का पहला वाक्य देखें- मूर्तिकार यों तो कलाकार था पर जरा पैसे से लाचार था।’ इसमें दो-दो व्यंग्य हैं। व्यंग्य – मूर्तिकार यों तो कलाकार था अर्थात् सच मायनों में कलाकार नहीं था। वह व्यवसाय से ही कलाकार था। दूसरा व्यंग्य है- ‘जरा पैसे से लाचार था ! इसमें गहरा कटाक्ष है। उसे हमेशा सरकारी पैसे की इच्छा रहती है। वह चाहता है कि सरकारी धन का भरपूर दुरुपयोग करे । वह सरकारी खर्चे पर पूरा देश एक नहीं दो-दो बार घूमे। अंत में समस्या को यों ही लटकाए रखे। अंत में भी मजबूरी के नाम पर सरकार से मुँह माँगी मदद माँगे । इस प्रकार वह कला के नाम पर सरकार का जमकर शोषण करता है।
10. मूर्तिकार को बिहार के शहीद बच्चों की नाक भी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी क्यों लगी ?
उत्तर – मूर्तिकार ने अनुभव किया कि भारत के मान-सम्मान के मामले में बिहार के शहीद बच्चे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनके बलिदान का मूल्य जॉर्ज पंचम के मान-सम्मान से अधिक महत्त्वपूर्ण है। जॉर्ज पंचम ने देश को गुलाम बनाया, जबकि उन बच्चों ने गुलामी की जंजीरें तोड़ीं।

साना साना हाथ जोड़ि….

1. रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह  सितारों की रो सम्मोहित कर रहा था ?
उत्तर – झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को रहस्यमयी और जादू भरा प्रतीत हो रहा था। सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर सी बना रहे थे। इस वातावरण का जादू लेखिका पर छाता चला जा रहा था। उसके आस-पास सिर्फ शून्य था।
2. गंतोक को ‘मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया ? 
उत्तर – गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर इसलिए कहा गया है क्योंकि इसे मेहनतकश लोगों ने इतना सुंदर बनाया है। यहाँ प्रकृति ने तो सौंदर्य बिखेरा ही है, इसके साथ यहाँ के लोगों ने कड़ी मेहनत करके इसे और भी सुंदर बना दिया है।
3. लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी ? 
उत्तर – सिक्किम में एक जगह का नाम है – ‘कवी लोंगस्टॉक’। कहा जाता है कि यहाँ ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी। वहीं एक कुटिया के भीतर एक चक्र घूमता रहता है। इसे ‘प्रेयर व्हील’ या धर्मचक्र कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। इस स्थिति को देखकर लेखिका को लगता है कि धार्मिक आस्थाओं और अंध-विश्वासों के बारे में सारे भारत में एक जैसी मान्यताएँ हैं। लोग पाप-पुण्य की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं। पापों से छुटकारा पाने के लिए वे किसी-न-किसी अंधविश्वास का सहारा लेते हैं।
4. “कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं। इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है ? 
उत्तर – देश की आम जनता श्रमिक के रूप में है। यह जनता बहुत कम लेती है अर्थात् इन्हें काम के बदले बहुत कम पैसे मिलते हैं। ये अपने श्रमसाध्य कार्य के माध्यम से समाज को बहुत अधिक लौटा देती है।
आम जनता देश की आर्थिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। इन्हीं के श्रम के बलबूते पर देश में आर्थिक समृद्धि आती है। यदि आम जनता काम न करे तो देश की आर्थिक प्रगति नहीं हो सकती।
5. सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें। 
उत्तर – सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में निम्नांकित लोगों का योगदान होता है –
(क) गाईड का,
(ख) स्थानीय निवासियों का,
(ग) ड्राइवर का,
(घ) संगी-साथियों का ।
6. ‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त करें। 
उत्तर – ‘कटाओ’ टूरिस्ट टस्पॉट नहीं था। इसी कारण यहाँ एक भी दुकान नहीं थी। वहाँ दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में हमारी रायहमारी दृष्टि में कटाओ में दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। दुकान के वहाँ न होने से उस स्थान का व्यावसायीकरण नहीं हो पाया है। वह स्थान स्विटजरलैंड की तरह सुंदर बना हुआ है। हिंदुस्तान का यह स्थान स्विटजरलैंड से भी अधिक ऊँचाई पर है और अधिक सुंदर है। यदि यहाँ एक भी दुकान खुली तो फिर दुकानों की लाइन लग जाएगी और सैलानियों की अंधाधुंध आवक शुरू हो जाएगी। इससे यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो जाएगा ।
7. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है ?
उत्तर – प्रकृति के हिमशिखर जल-स्तंभ की तरह हैं। प्रकृति सर्दियों में यहाँ बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में जब चारों ओर जल के लिए त्राहि-त्राहि मचती है तब ये बर्फ पिघलकर नदियों में जल धारा के रूप में बहकर हमारी प्यास को बुझाती है। इस प्रकार प्रकृति ने जल संचय की बहुत उत्तम व्यवस्था कर रखी है।
8. देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं ? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए ?
उत्तर – देश की सीमा पर बैठे फौजी अत्यंत विषम परिस्थितियों में देश की रक्षा का काम करते हैं। वे भयंकर सर्दी को झेलते हैं। उनके लिए खाने-पीने की चीजों का भी अभाव रहता है। वहाँ पौष-माघ के महीने में पेट्रोल के सिवाय सबकुछ जम जाता है। उनके प्रति हमारा यह उत्तरदायित्व बन जाता है कि हम उनके परिवार की सुख-सुविधाओं का पूरा ख्याल रखें।
9. रात्रि में गंतोक के सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में करें। 
उत्तर – गंतोक रात के समय और भी खूबसूरत लगता है। यदि किसी ऊँची स्थान से गंतोक शहर को देखें तो ऐसा लगता है मानो आसमान उलटा पड़ा हो और तारे कबिखरकर टिमटिमा रहे हों। किसी ढलान पर रोशनियाँ सितारों के गुच्छों-सी और सड़क के किनारे की रोशनियाँ सितारों की झालर – सी लगती हैं। गंतोक का यह रात्रिकालीन सौंदर्य देखने वाले पर सम्मोहक प्रभाव छोड़ता है।
10. पताकाएँ बौद्ध संस्कृति का अंग किस प्रकार हैं ?
उत्तर – जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए मंत्र- लिखी एक सौ आठ पताकाएँ नगर से बाहर किसी निर्जन स्थान पर लगा दी जाती हैं। उन्हें कभी उतारा नहीं जाता। किसी शुभ कार्य के आरंभ में रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इस प्रकार पताकाएँ बौद्ध संस्कृति की एक पहचान हैं, उसका अभिन्न अंग हैं ।
11. कटाओ के अनुपम सौंदर्य से अभिभूत लेखिका क्या सोच रही थी ? 
उत्तर – कटाओं का सौंदर्य जादू-जैसा असर कर रहा था । लेखिका को लगा कि वह प्रकृति को अपनी संपूर्णता में देख रही है । वह एक संपूर्णता को अपने भीतर भी अनुभव कर रही थी। उसे लगा कि विभोर कर देने वाली उस दिव्यता के बीच ही हमारे ऋषियों ने वेदों की रचना की होगी। जीवन के सत्यों को खोजा होगा। ‘सर्वे सन्तु सुखिन: का महामंत्र पाया होगा

एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा !

1. कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी ? 
उत्तर – दुलारी को कठोर हृदय य समझा जाता थ था। वैसे भी वह जिस पेशे में थी, हृदयहीन होना उसका एक गुण माना जाता है, कमजोरी नहीं। वही कठोर दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो उठती है क्योंकि उसके मन में टुन्नू का एक अलग ही स्थान था। उसने जान लिया था कि टुन्नू उसके शरीर नहीं बल्कि उसकी आत्मा अर्थात् उसकी गायन कला का प्रेमी था। शरीर से हटकर उसकी आत्मा को प्रेम करने वाले टुन्नू की मृत्यु पर गौनहारिन दुलारी का विचलित हो उठना स्वाभाविक था।
2. दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ ? 
उत्तर – दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय तीज के अवसर पर आयोजित ‘कजली दंगल’ में हुआ था। इस कजली दंगल का आयोजन खोजवाँ बाजार में हो रहा था। दुलारी खोजवाँ वालों की ओर से प्रतिद्वंद्वी थी तो दूसरे पक्ष यानि बजरडीहा त वालों ने टुन्नू को अपना प्रतिद्वंद्वी बनाया था। इसी प्रतियोगिता में दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय हुआ था l
3. दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी ? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है ? 
उत्तर – दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे वासना नहीं थी, बल्कि उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम आत्मा का था। इसमें शारीरिक प्रेम की गंध नहीं थी ।
यह प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक दो प्रकार से पहुँचाता है –
(क) दुलारी विदेशी वस्त्रों का मोह त्यागकर टुन्नू की लाई खद्दर की साड़ी को पहनती है।
(ख) वह टुन्नू की हत्या पर अत्यंत दुःखी होती है क्योंकि वह देश-प्रेम की खातिर मरा था । वह उस स्थान पर गई जहाँ टुन्नू का रक्त बह रहा था ।
4. जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है ?
उत्तर – देश-प्रेमी विदेशी वस्त्रों की होली जलाने का जो जुलूस निकाल रहे थे, उसमें पकड़ी गई चादर में लोगों की खिड़कियों से जो विदेशी वस्त्र फेंके गए थे, वे अधिकांश फटे-पुराने थे लेकिन दुलारी ने विदेशी वस्त्रों का जो बंडल नीचे फेंका था उसमें विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियाँ थीं। अभी तक उन साड़ियों की तह तक न खुली थी ।
दुलारी के द्वारा कोरी साड़ियों का इस तरह फेंका जाना उसकी इस मानसिकता को दर्शाता है कि अब वह बदलती जा रही है। अब उसका मोह विदेशी वस्त्र से समाप्त हो चला है। उसके मन में देश-प्रेम की लौ जग गई है ।
5. दुलारी कौन थी ? उसका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर – दुलारी ढलती उम्र की एक गौनहारिन थी। गाना-बजाना उसका पेशा था। कजली गाने में उसे विशेष महारत हासिल थी। वह पद्य में ही सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता रखती थी। कजली गाने वाले बड़े-बड़े शायर भी उससे दबते थे। प्रायः उसके सामने गाने की हिम्मत कम लोग ही कर पाते थे। दुक्कड़ (एक विशेष वाद्य यंत्र) पर गाने में उसे खूब ख्याति मिल चुकी थी।
6. ‘टुन्नू ने अपने पद्य में दुलारी की तुलना कोयल से करके एक-साथ दो तीर चलाए थे कैसे ?
उत्तर – टुन्नू ने दुलारी की तुलना कोयल से करते हुए एक तरफ तो उसके मधुर कंठ की प्रशंसा कर दी लेकिन साथ ही उसके काले रंग पर आक्षेप भी कर दिया। उसने आगे यह भी आक्षेप जड़ा कि जिस प्रकार कोयल का पोषण कौए की मादा करती है, उसी प्रकार तुम्हारा पोषण भी दूसरों द्वारा हुआ है। इस प्रकार टुन्नू ने दुलारी की तुलना कोयल से करके एक ही कमान से दो तीर चला दिए, जो निशाने पर लगे ।
7. होली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाले आंदोलनकारी किस बात से हैरान थे ?
उत्तर – होली पर जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह करते आंदोलनकारी गली-गली घूम कर विदेशी वस्त्र एकत्र कर रहे थे। लोग उनके द्वारा फैलाई चादर पर धोती, कुरता, कमीज, साड़ी आदि डाल रहे थे। लेकिन ये सभी वस्त्र इस्तेमाल किए हुए या फटे-पुराने थे। नया वस्त्र कोई भी न था । तभी किसी ने उनकी फैलाई चादर पर नई धोतियों का बंडल फेंका। बंडल की धोतियाँ एकदम नई थीं। उनकी तह भी न खुली थी। इसी बात ने विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रहे आंदोलनकारियों को आश्चर्य में डाल दिया।

मैं क्यों लिखता हूँ ?

1. लेखक ‘अज्ञेय’ के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों ?
उत्तर – लेखक की मान्यता है कि सच्चा लेखन भीतरी विवशता से पैदा होता है । यह विवशता मन के अंदर से उपजी अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं जागती। जब तक कवि का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदित नहीं होता और उसमें अभिव्यक्त होने की पीड़ा नहीं अकुलाती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता ।
2. मैं क्यों लिखता हूँ ? के आधार पर बताएँ कि किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं ? 
उत्तर – किसी रचनाकार के प्रेरणास्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए उसके भीतर अनुभूति की विवशता जगा सकते हैं। इससे उत्साहित होकर वह लिखने के लिए विवश हो जाता है।
3. कुछ रचनाकारों के लिए आत्मानुभूति / स्वयं के अनुभव के साथ-साथ बाह्य दबाव भी महत्त्वपूर्ण होता है। ये बाह्य दबाव कौन-कौन से हो सकते हैं ?
उत्तर – ये बाह्य दबाव निम्नांकित हो सकते हैं –
(क) प्रकाशकों का आग्रह ।
(ख) संपादकों का आग्रह ।
(ग) आर्थिक लाभ ।
(घ) किसी विषय पर प्रचार-प्रसार करने का दबाव ।
4. मैं क्यों लिखता हूँ ? के आधार पर बताएँ कि लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं ?
उत्तर – लेखक को निम्नांकित बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं –
(क) आम्यांतर विवशता से मुक्ति पाने की लालसा।
(ख) ख्याति मिल जाने के बाद बाहरी विवशता के कारण।
(ग) संपादक का आग्रह ।
(घ) प्रकाशक का तकाजा ।
(ङ) आर्थिक आवश्यकता।
5. क्या बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित करते हैं या अन्य क्षेत्रों से जुड़े कलाकारों को भी प्रभावित करते हैं, कैसे ? 
उत्तर – बाहरी दबाव सभी प्रकार के कलाकारों को प्रेरित करते हैं। उदाहरणतया अधिकतर अभिनेता, गायक, नर्तक, कलाकार अपने दर्शकों, आयोजकों, श्रोताओं की माँग पर कला-प्रदर्शन करते हैं। अमिताभ बच्चन को बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक अभिनय करने का आग्रह न करें तो शायद अब वे आराम करना चाहें । इसी प्रकार लता मंगेशकर भी पचास साल से गाते-गाते थक चुकी होंगी, अब फिल्म निर्माता, संगीतकार और प्रशंसक ही उन्हें गाने के लिए बाध्य करते होंगे l
6. एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में  आपकी क्या भूमिका है ?
उत्तर – मैं एक संवेदनशील युवा नागरिक हूँ। मैं सारी दुनिया को नहीं बदल सकता । परन्तु स्वयं को बदल सकता हूँ। मैं विज्ञान के जिस भी यंत्र की बुराइयों के बारे में जानता हूँ, उनसे दूर रहने का प्रयत्न करता हूँ। मैं प्लास्टिक थैलों तथा वस्तुओं का कम-से-कम प्रयोग करता हूँ। बाजार में उपलब्ध कोक या सॉफ्ट ड्रिंक नहीं पीता। पीजा-बर्गर आदि भी नहीं खाता। मैंने संकल्प किया है कि कभी भी लिंग-भेद का विचार मन में नहीं आने दूँगा। मैं भूलकर भी भ्रूण हत्या जैसा दुष्कर्म नहीं करूँगा ।
7. जापान जाने का अवसर मिलने पर लेखक कहाँ गया और उसने क्या देखा ? 
उत्तर – जापान जाने पर लेखक हिरोशिमा भी गया। वहाँ उसने वह अस्पताल भी देखा जहाँ रेडियम पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट पा रहे थे, हिरोशिमा पर अणु बम गिराने से ये लोग घायल हुए थे।
8. हिरोशिमा पर कविता लिखते समय लेखक की मनःस्थिति क्या थी ?
उत्तर – लेखक जापान में नहीं लिख सका। उसने भारत की रेलगाड़ी में बैठकर कविता लिखी। उस समय उसके मन में विवशता जागी। उसके भीतर की अकुलाहट बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर संवेदना के क्षेत्र में आ गई। फिर उसने हिरोशिमा पर कविता लिख
डाली ।
9. हिरोशिमा का हाल देखकर भी लेखक तत्काल क्यों नहीं लिख सका ? 
उत्तर – हिरोशिमा में सब कुछ देखकर भी लेखक तत्काल इसलिए नहीं लिख सका क्योंकि अभी अनुभूति प्रत्यक्ष की कसर थी। जब एक दिन उसने जले हुए पत्थर पर झुलसी छाया को देखा तब सारी ट्रेजडी साकार हो गई। इसके बाद लेखक के अंदर की विवशता जगी और उसने एक कविता लिख डाली जो कि अनुभूति-प्रसूत थी।
10. लेखक और कृतिकार में क्या अंतर बताया गया है ? 
उत्तर – अज्ञेय ने लेखक और कृतिकार में अंतर किया है। उनके अनुसार, कुछ भी लिखना लेखन नहीं होता। सच्चा लेखन वही होता है जो आंतरिक दबाव से लिखा जाए, मन की छटपटाहट को व्यक्त करने के लिए लिखा जाए। ऐसा लेखन ही ‘कृति’ कहलाता है। ऐसा लेखक कृतिकार कहलाता है। इसके विपरीत जिस लेखन में धन, यश आदि की प्रेरणा रहती है, वह सामान्य लेखन कहलाता है।
11. बाहरी दबाव भीतरी उन्मेष किस प्रकार बनता है ?
उत्तर – कई बार प्रकाशक, संपादक या धन के आग्रह से लिखा गया साहित्य भी मन की आंतरिक अनुभूति को जगा देता है। तब प्रकाशक का तकाजा या संपादक का आग्रह या धन की इच्छा प्रमुख नहीं रहती। वह केवल सहायक यंत्र का काम करती है। उसके बहाने लेखक के मन में किसी भावना या सच्चा उन्मेष हो जाता है और वह अच्छी कृति की रचना कर लेता है।
12. अज्ञेय जी के लेखन के लिए बाहरी दबावों का कितना महत्त्व है ?
उत्तर – अज्ञेय जी अपने लेखन के लिए प्रकाशक, संपादक या धन प्राप्ति आदि की प्रेरणा को आवश्यक नहीं मानते। वे इन प्रेरणाओं के अभाव में लिखते हैं। परंतु यदि ये प्रेरणाएँ उन पर दबाव बनाएँ तो भी इसमें उन्हें कोई बाधा नहीं प्रतीत होती । उन्हीं के शब्दों में मुझे इस सहारे की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन कभी उससे बाधा भी नहीं होती।
13. अज्ञेय जी ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंकने और हिरोशिमा के विस्फोट में कौन-सी समानता देखते हैं ?
उत्तर – अज्ञेय जी ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंकने और हिरोशिमा के विस्फोट में व्यर्थ जीव-नाश की समानता देखते हैं। सैनिकों को थोड़ी सी मछलियों की आवश्यकता होती थी। इसके लिए वे ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंककर हजारों मछलियों को व्यर्थ में मार डालते थे। यह जीवों का सरासर अपव्यय था। इसी प्रकार हिरोशिमा में व्यर्थ ही लाखों मानवों को मार डाला गया ।

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