NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 3 लोकतंत्र और विविधता (नागरिकशास्त्र – लोकतांत्रिक राजनीति – 2)

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NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 3 लोकतंत्र और विविधता (नागरिकशास्त्र – लोकतांत्रिक राजनीति – 2)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

लोकतंत्र और विविधता

1. अश्वेत अमेरिकी लोग कौन हैं ?
उत्तर – वे लोग जो अफ्रीका से लाए गए दासों की संतान हैं और अब अमेरिका में रह रहे हैं, उन्हें अश्वेत अमेरिकन कहा जाता है।
2. अश्वेत अमेरिकी लोगों ने नागरिक अधिकार आंदोलन क्यों चलाया ? 
उत्तर – क्योंकि वह चाहते थे कि नस्ल के आधार पर उनसे कोई भेदभाव न किया जाए।
3. नागरिक अधिकार आंदोलन किस अश्वेत नेता की अगुवाई में चलाया गया ? 
उत्तर – मार्टिन लूथर किंग जूनियर की अगुवाई में।
4. अमेरिका में यह नागरिक अधिकार आंदोलन कितने वर्ष तक चलता रहा ? 
उत्तर – यह कोई 14-15 वर्ष, 1954 से 1968 के मध्य चलता रहा ।
5. अश्वेत शक्ति आंदोलन कब से कब तक चलता रहा ?
उत्तर – यह आंदोलन कोई 10 वर्ष तक 1966 से 1975 ई० तक चलता रहा ।
6. अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन क्यों चलाया गया और वह किन लोगों द्वारा चलाया गया ?
उत्तर – अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन (1954-1968 ) – घटनाओं और सुधार आंदोलनों का एक सिलसिला जिसका उद्देश्य एफ्रो- अमेरीकी लोगों के विरुद्ध होने वाले नस्ल आधारित भेदभाव को मिटाना था । मार्टिन लूथर किंग जूनियर की अगुवाई में लड़े गए इस आंदोलन का स्वरूप पूरी तरह अहिंसक था। इसने नस्ल आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों और व्यवहार को समाप्त करने की माँग उठाई जो अंततः सफल हुई ।
7. एफ्रो- अमेरीकी का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर – एफ्रो-अमेरीकी- एफ्रो-अमरीकन, अश्वेत अमरीकी या अश्वेत शब्द उन अफ्रीकी लोगों के वंशजों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्हें 17 वीं सदी से लेकर 19 वीं सदी की शुरूआत तक अमेरीका में गुलाम बनाकर लाया गया था।
8. अश्वेत शक्ति आंदोलन से क्या समझते हैं ? 
उत्तर – अश्वेत शक्ति आंदोलन – यह आंदोलन 1966 में उभरा और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लकर इस आंदोलन का रवैया ज्यादा उग्र था। इसका मानना था कि अमेरीका के नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है।
9. समरूप समाज का क्या अर्थ है ?
उत्तर – समरूप समाज- एक ऐसा समाज जिसमें सामुदायिक, सांस्कृतिक या जातीय विभिन्नताएँ ज्यादा गहरी नहीं होतीं।
10. जहाँ सामाजिक अन्तर एक-दूसरे से टकराते हैं, वहाँ सामाजिक विभाजन होता है। व्याख्या करें।
उत्तर – सामाजिक अन्तर सामाजिक विभाजन को जन्म देता है। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक सामाजिक अन्तर सामाजिक विभाजन का कारण बने। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर तथा बड़ी हो जाए । भारत में दलित गरीब और भूमिहीन हैं, उन्हें अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। उन्हें लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तथा उनके एवं शेष समाज के बीच बड़ा सामाजिक अन्तर है। यही सामाजिक अन्तर सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है।
11. 1968 के मेक्सिको ओलंपिक में एफ्रो-अमेरिकन खिलाड़ियों ने अपना विरोध कैसे प्रकट किया ?
उत्तर – टामी स्मिथ और जॉन कार्लोस नामक दो एफ्रो अमेरिकी खिलाड़ियों ने अमेरिका की रंगभेद की नीति के विरोध में बिना जूता पहने, सिर्फ मोजे चढ़ाए पुरस्कार लेकर यह बताने का प्रयत्न किया कि वे गरीब हैं और रंगभेद की नीति का शिकार हैं ।
12. मार्टिन लूथर किंग जूनियर कौन थे और उन्होंने एफ्रो-अमेरिकन लोगों के लिए क्या किया ?
उत्तर – मार्टिन लूथर किंग जूनियर (1929-1968) एफ्रो-अमेरिकन लोगों के महान नेता थे जिन्होंने अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन चलाकर अमेरिका की सरकार को मजबूर कर दिया कि वह एफ्रो-अमेरिकन लोगों के लिए 1964 में सिविल राइट्स एक्ट और 1965 में वोटिन राइट्स एक्ट पास करे।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

लोकतंत्र और विविधता

1. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं 
उत्तर – भारत जैसे एक बड़े देश में सामाजिक अंतरों को पाया जाना स्वभाविक ही है। हम अपने आस-पास देखते हैं कि चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष, छोटा हो या बड़ा हर एक की चमड़ी का रंग अलग-अलग है। उनकी शारीरिक समताएँ तथा अक्षमताएँ अलग-अलग हैं। जन्म के अतिरिक्त इस सामाजिक अंतर का आधार अलग-अलग पेशा, पढ़ाई के विषय, खेल या सांस्कृतिक गतिविधियों का चुनाव हो सकता है जो जन्म पर नहीं वरन् लोगों की अपनी पसन्द पर निर्भर करता है। इन्हीं सामाजिक अंतरों के कारण सामाजिक बनते हैं।
परन्तु जब किसी सामाजिक समूह के साथ कोई घोर अन्याय किया जाता है तो यह सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं। जैसे- अमेरिका में दोनों श्वेत जातियों के लोग अमेरिका के नागरिकों के रूप में रहते हैं | परन्तु यदि अश्वेत-अमेरिकनों से नस्लवाद के आधार पर भेद-भाव किया जाता है तो सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजन भी बदल जाते हैं, जिसका परिणाम भयंकर हो सकता है। जैसे- एफ्रो-अमेरिकनों का आंदोलन पहले तो नागरिक अधिकार आंदोलन के रूप में 1954 से 1968 ई० तक शान्तिमय ढंग से चलता रहा। परंतु जब इस मसले को हल करने में देरी की गई तो उसने उग्र रूप धारण कर लिया और 1966 से 1975 तक उसने अश्वेत शक्ति आंदोलन का रूप ले लिया ।
2. 1968 में मैक्सिकों ओलम्पिक खेलों में कौन-सी घटना घटी ? 
उत्तर – 1968 में मैक्सिकों में होने वाली ओलम्पिक खेलों में 200 मीटर की दौड़ में दो एफ्रो-अमेरिकी धावकों टामी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने क्रमशः स्वर्ण और कांस्य पदक जीते। परन्तु उन्होंने पदक समारोह में पदक लेते समय अमेरिका की रंगभेद की नीति का अपने ही ढंग से विरोध किया ।
उन्होंने बिना जूते पहने हुए, सिर्फ मोजे चढ़ाए हुए पुरस्कार लेकर यह जताने का यत्न किया कि अश्वेत अमेरिकी लोग गरीब हैं। राष्ट्रगान बजते समय सिर झुकाए हुए और मुट्ठी ताने हुए खड़े रहने का तात्पर्य था कि वे असहाय हैं परन्तु वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे।
काले दस्ताने और बन्धी हुए मुट्ठियाँ अश्वेत शक्ति का प्रतीक थी ।
स्मिथ ने अपने गले में एक काला मफलर पहन रखा था और कार्लोस ने अपने गले में काले मनकों की माला पहनी हुई थी जो विरोध के साथ-साथ एफ्रो-अमेरिकन लोगों के आत्म गौरव को प्रदर्शित करते थे।
इन प्रतीकों और तौर-तरीकों से उन्होंने अमेरिका में होने वाले रंगभेद के प्रति अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान खींचने का प्रयत्न किया ।
3. क्या सभी सामाजिक अन्तर सामाजिक विभाजन में बदल जाते हैं ?
उत्तर – नहीं, हर एक सामाजिक अन्तर सामाजिक विभाजन में तबदील नहीं होता। जैसे एक ही राजनीतिक दल में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग होते हैं परन्तु एक ही उद्देश्यों या नीतियों से प्रेरित होकर वे एक साथ मिलकर रहते हैं और इकट्ठे मिलकर खाते-पीते हैं एक साथ यात्रा करते हैं ।
परन्तु यदि एक ही पार्टी के सदस्य अन्दर ही अन्दर एक दूसरे की बात काटने लगें, एक-दूसरे के हितों को ठेस पहुँचाना शुरू कर दें, चुनावों में अन्दर ही अन्दर से दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों की सहायता करने लगें तो ऐसे में सामाजिक अन्तर सामाजिक विभाजन में बदल जाते हैं ।
सद – व्यवहार, सह-विचार, ईमानदारी और वफादारी से कई बार सामाजिक विभाजन भी भाईचारे और प्रेम में बदल जाते हैं। स्मिथ और कार्लोस एफ्रो- अमेरिका के रहने वाले थे और उधर नार्मन श्वेत जाति से थे और रहने वाले भी वह किसी अन्य देश आस्ट्रेलिया के थे परन्तु फिर भी उसने अश्वेत लोगों का साथ दिया क्योंकि उनके साथ अन्याय हो रहा था ।
इस प्रकार सामाजिक अन्तर तो हर समाज में रहेंगे परन्तु हमें अपनी मूर्खता, कठोरता, अन्यायपूर्ण व्यवहार से उन्हें सामाजिक विभाजन में बदल नहीं लेना चाहिए।
4. “हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। एक उदाहरण लिखें ।
उत्तर – हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती । सामाजिक विभिन्नताएँ लोगों के बीच बँटवारे का एक बड़ा कारण होती जरूर है लेकिन यही विभिन्नताएँ कई बार अलग-अलग तरह के लोगों के बीच पुल का काम भी करती है। विभिन्न सामाजिक समूहों के लोग अपने समूहों की सीमाओं से परे भी समानताओं का अनुभव करते हैं। इसका एक उदाहरण कार्लोस और स्मिथ का जो दोनों एक हिसाब से एफ्रो अमेरिकी थे जो समान थे जबकि नार्मन श्वेत थे, पर इन तीनों में एक समानता थी कि वे सभी नस्ल आधारित भेदभाव के खिलाफ थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

लोकतंत्र और विविधता

1. सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणाम तय करने वाले तीन कारकों की चर्चा करें ।
उत्तर – (क) सर्वप्रथम सभी परिणाम इस बात पर निर्भर करते हैं कि लोग किस तरह से उनकी पहचान को स्वीकार करते हैं। अगर लोग उनकी पहचान को एक तथा विशेष समझते हैं तो समायोजन कठिन होगा। जब तक आयरलैंड के लोग स्वयं को केवल कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट समझते रहे, तब तक उनके मतभेदों का हल निकालना कठिन था । यह आसान है कि यदि लोग समझते हैं कि उनकी पहचान बहुमुखी है तथा राष्ट्रीय पहचान की पूरक है। बेल्जियम के अधिकांश लोग डच या जर्मन भाषा बोलने वाले हैं। इससे उन्हें साथ-साथ रहने में मदद मिलती है। हमारे देश के लोग किस तरह से अपनी पहचान देखते हैं ? वे सब अपने आपको भारतीय समझते हैं जो एक राज्य या एक भाषा समूह या सामाजिक या धार्मिक समुदाय से जुड़े हुए हैं।
(ख) यह निर्भर करता है कि राजनैतिक दल के नेता किस ढंग से किसी समुदाय की मांगे उठाते हैं। उन मांगों को मानना आसान है जो संवैधानिक दायरे में आती हैं तथा जो दूसरे समुदाय के दम पर नहीं हैं। “सिंहली लोगों के लिए ” की गई मांग तमिल समुदाय के हितों के बदले है, जो श्रीलंका में रहती है। यूगोस्लाविया में विभिन्न नस्लवादी समुदायों के नेताओं ने इस ढंग से अपनी मांगें रखी कि इनको किसी भी एक देश में समायोजित नहीं किया जा सकता था ।
(ग) यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार विभिन्न समुदायों की मांगों पर किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करती है ? जैसा कि हमने श्रीलंका और बेल्जियम के उदाहरणों में देखा, यदि प्रशासक सत्ता में सहभागिता चाहते हैं तथा अल्पसंख्यक समुदाय की जायज माँगें मान लेती है, तो सामाजिक बँटवारा देश के लिए कम खतरनाक हो सकता है। परंतु यदि इस तरह की मांग को देश की एकता के नाम पर कुचलती है, तो परिणाम उल्टा हो सकता है। इस तरह जबरदस्ती थोपी गई राष्ट्रीय एकता अक्सर बिखराव के बीज बोती है ।
2. सामाजिक विभाजन किस तरह से राजनीति को प्रभावित करते हैं ? दो उदाहरण भी दें ।
अथवा बताएँ किस-किस प्रकार सामाजिक विभाजनों ने आयरलैंड और युगोस्लाविया की राजनीति को प्रभावित किया ।
उत्तर – सामाजिक विभाजन हर छोटे-बड़े देश में विद्यमान हैं। हर राजनीतिक दल ने क्योंकि चुनाव जीतने होते हैं तो वे किसी न किसी सामाजिक विभाजन को साथ लेने का प्रयत्न करते हैं। जैसे भारतीय जनता पार्टी हिन्दू वर्ग को, अकाली दल सिख वर्ग को और बहुजन समाज पार्टी समाज के निम्न वर्गों को अपनी ओर खींचने के उद्देश्य से उनके हितों को पूरा कराने का प्रयत्न करते हैं। दूसरी पार्टियाँ भी ऐसा ही करती है और अनेक वर्गों की नुमाइंदगी करने का प्रयत्न करती है ।
परन्तु यदि सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन बन जाए तो इनका परिणाम बड़ा भयंकर सिद्ध हो सकता है। परन्तु यदि ये सामाजिक विभाजन या उनसे जुड़े हुए राजनीतिक दल राष्ट्रीय दायरे में रहें, संविधान की मर्यादाओं को देखते हुए अन्य किसी समाजिक विभाजन को नुकसान पहुँचाने की न सोचे और सरकार भी सभी सामाजिक विभाजनों को सत्ता की भागीदारी के नियमों पर चलते हुए प्रशासनिक ढाँचे में सबको साथ ले तो सामाजिक विभाजन सदा ही हानिकारक साबित नहीं होते।
उत्तरी आयरलैंड और यूगोस्लाविया के उदाहरण- आयरलैंड के उत्तरी भाग में 53% प्रोटेस्टैंट लोग रहते हैं और 44% लोग रोमन कैथोलिक रहते हैं। काफी समय तक यहाँ इस बात पर झगड़ा चलता रहा कि दक्षिण आरलैंड के साथ मिलाप किया जाए कि ग्रेट ब्रिटेन के साथ, क्योंकि दक्षिण आरलैंड की अधिकतर आबादी रोमन कैथोलिकों की थी जबकि ग्रेट ब्रिटेन के लोगों की अधिकतर आबादी प्रोटेस्टेंट की थी। अनेकों लोग आपसी संघर्ष में इस बात पर मारे गए। इस प्रकार सामाजिक विभाजन ने आयरलैंड की राजनीति को काफी समय तक बड़ी गहराई से प्रभावित किया क्योंकि दो वर्गों के हित आपस में टकराते रहे। हितों के टकराव से बर्बादी के सिवाय कुछ न मिला। अंत में जब दोनों पक्षों में 1998 ई० में समझौता हुआ तो हिंसक आंदोलन समाप्त हुआ ।
युगोस्लाविया में सामाजिक विभाजनों का अंत कोई सुखद न हुआ क्योंकि वहाँ राजनीतिक दल अपनी होड़ में बहुत आगे बढ़ गए और अंत में वह देश छः भागों में बंट कर रह गया । न किसी ने वहाँ राष्ट्रीय दायरे के अंतर रखने का प्रयत्न किया, न किसी ने देश के संविधान का ध्यान रखा और न ही वहाँ की सरकार ने सभी वर्गों को सत्ता की भागीदारी में साथ लेने का प्रयत्न किया ।
3. गुथी हुई विभिन्नताएँ और बिखरी हुई विभिन्नताएँ क्या है ?
उत्तर – जब सामाजिक विभिन्नताएँ एक दूसरे में गुथ जाती है तो एक गहरे सामाजिक विभाजन की भूमिका तैयार होने लगती है जैसा कि उत्तर आरलैंड में हुआ । वहाँ के लोग प्रोटेस्टैंट और रोमन कैथोलिक के खेमे में बंटे हुए हैं। परन्तु जब यह धार्मिक अन्तर प्रोटेस्टैंट और रोमन कैथोलिक तक सीमित न रहकर अमीर और गरीब वर्ग के साथ गुथ गया तो गहरे सामाजिक विभाजन की नीति पड़ गई। प्रोटेस्टैंट प्रायः अमीर थे जबकि कैथोलिक प्रायः गरीब । इस प्रकार धर्म और वर्ग के इस गहरे मेल या गुत्थने ने खाई को गहरा कर दिया और परिणाम यह हुआ कि उत्तरी आरलैंड के प्रोटेस्टैंटो और रोमन कैथोलिक में काफी समय तक संघर्ष चलता रहा।
परन्तु जहाँ ये सामाजिक विभिन्नताएँ गुत्थने नहीं पातीं और एक साथ कई समुदायों में विद्यमान होती हैं तो वहाँ उन्हें एक साथ सम्भालना आसान हो जाता है। यदि एक-सी सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना कठिन हो जाता है। यदि कुछ समूहों में एक मुद्दे पर विचारधारा और अन्तर होता है तो अनेक अन्य मुद्दों पर मेल और सहमति भी हो जाती है। कहीं सहमती और कहीं असहमति वातावरण को उग्र नहीं होने देती, जैसे नीदरलैंड में भी उत्तरी आयरलैंड की भांति प्रोटेस्टैंट ओर कैथोलिक लोग रहते हैं। परन्तु वहाँ धर्म और वर्ग में कोई मेल दिखाई नहीं देता। वहाँ प्रोटेस्टैंट और रोमन कैथोलिकों दोनों में अमीर और गरीब हैं इसलिए वहाँ कोई संघर्ष नहीं ।
इस प्रकार जहाँ गुत्थे हुए अन्तर आपसी संघर्ष का कारण बनते हैं वहाँ बिखरे हुए अन्तर या विभिन्नताएँ आसानी से हल हो जाती हैं और कलह तक नहीं पहुँचतीं ।

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