NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 4 सुरक्षित निर्माण पद्धतियाँ (आपदा प्रबंधन)
NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 4 सुरक्षित निर्माण पद्धतियाँ (आपदा प्रबंधन)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
सुरक्षित निर्माण पद्धतियाँ
1. भूकंप से क्या अभिप्राय हैं ?
उत्तर – भूकंप का अभिप्राय भू-पर्पटी में अचानक कंपन पैदा होने से है। अधिकांश भूकम्प आमतौर पर मामूली कंपन के रूप में शुरू होते हैं और शीघ्र ही तीव्र रूप धारण कर लेते हैं। धीरे-धीरे इनकी तीव्रता कम होती जाती है तथा कंपन बंद हो जाता है। भूमि के अन्दर भूकम्प के उद्गम स्थान को केन्द्र बिन्दु कहते हैं, केन्द्र बिन्दु ठीक ऊपर पृथ्वी के धरातल पर स्थित बिन्दु को अधिकेन्द्र कहते हैं।
2. भूकम्प से बचाव के दो उपाय बताएँ।
उत्तर – (क) भूकम्प के झटके के समय घर से बाहर निकल जाना चाहिए ।
(ख) भूकम्प वाले क्षेत्रों में भवन, कारखाना आदि का निर्माण भूकम्प सहन क्षमता के आधार पर करना चाहिए ।
3. भूकम्परोधी पच्च फिटिंग (Retrofitting) का अर्थ है ?
उत्तर – भूकम्पराधी पच्च फिटिंग एक ऐसी तकनीक है जिसका प्रयोग भूकम्प अथवा चक्रवात-रोधी मकान बनाने में किया जाता है।
4. सुरक्षित निर्माण द्वारा भूकंपीय जोखिम के शमन के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर – सुरक्षित निर्माण द्वारा भूकंपीय जोखिम के शमन के मुख्य उद्देश्य हैं –
(क) लोगों के जान-माल के नुकसान को कम-से-कम होने देना।
(ख) वास्तुशास्त्रीय योजना स्तर के साथ-साथ निर्माणगत डिजाइन स्तर का भी ध्यान रखना ।
(ग) इमारत की आकार योज आयताकार होनी चाहिए ।
(घ) लंबी दीवालों को कंक्रीट से संबलित करना चाहिए ।
5. किन्हीं दो प्राकृतिक आपदाओं के नाम लिखें ।
उत्तर – प्राकृतिक आपदाएँ अनेक हैं जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं –
(क) भूकंप – इसमें पृथ्वी में कंपन होती है जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति होती है ।
(ख) चक्रवात – समुद्र की ओर से उत्पन्न होने वाली चक्रवातीय हवाओं के साथ तेज बारिश से बड़े पैमाने पर जान-माल की क्षति होती है। सबसे अधिक जान-माल की क्षति चक्रवात के कारण होती है।
6. चक्रवात क्या है ?
उत्तर – उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के वायुमण्डल में कम दबाव व अधिक दबाव की प्रवणता वाले क्षेत्र को चक्रवात कहते हैं । चक्रवात एक प्रबल भंवर होता है जिसमें उत्तरी गोलार्द्ध में क्लाक्वाइज़ दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में एंटी क्लाक्वाइज दिशा में तेज हवाओं (कभी-कभी 300 किमी प्रति घंटे की गति से भी अधिक) के साथ-साथ मूसलाधार वर्षा होती है तथा महासागरीय लहरें उठती हैं। उष्ण सागरीय तापमान, अधिक सापेक्षिक आर्द्रता तथा वायुमंडल में अस्थिरता के कारण चक्रवातों की उत्पत्ति होती है।
7. ‘चक्रवात चेतावनी क्या है ?
उत्तर – उपग्रह की सहायता से संचालित रडारों से चक्रवात की गति तथा उसके बढ़ने की दिशा का पता चलता है। प्रभावित हो सकने वाले क्षेत्र के लोगों को विभिन्न माध्यमों से इसकी अग्रिम सूचना देना ‘चक्रवात चेतावनी’ कहलाता है।
8. सुरक्षित निर्माण विधियों के उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर – गलत स्थान, गलत सामग्रियों तथा गलत संरचना के कारण भवनों पर आपदाओं का गंभीर प्रभाव पड़ता है। इससे आपदा के जोखिम में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। अतः सुरक्षित निर्माण विधियों द्वारा आपदाओं के जोखिम को कम करने का प्रयास किया जाता है ।
9. सूखे के प्रभाव से लोगों की आर्थिक स्थिति किस प्रकार बिगड़ती है ?
उत्तर – सूखे के कारण पेयजल व घरेलू कार्यों के लिए सतही जल की अत्यधिक कमी हो जाती है। कम वर्षा के कारण तालाबों, कुओं तथा भूमिगत जल स्त्रोतों का जल उपलब्ध नहीं होता, कृषि कार्यों के लिए पानी की कमी हो जाती है, नमी कम होने से मृदा शुष्क हो जाती है तथा भूमि अनुत्पादक हो जाती है। कृषि उत्पादन में भारी कमी आती है। खेतों में काम करने के लिए कम मजदूरों की आवश्यकता होती है और बेरोजगारी बढ़ती है।
10. किस विभाग द्वारा बाढ़ के खतरे की चेतावनी दी जाती है ?
उत्तर – केन्द्रीय जल आयोग तथा सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग द्वारा चेतावनी दी जाती है।
11. तकनीकी वैध व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – नई नीति का यह अत्यधिक महत्वपूर्ण पक्ष है और एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसे पहले व्याख्यायित किया गया है। इस प्रावधान के तहत आपदा की तैयारी में वृद्धि करने के लिए सुरक्षित निर्माणों की तकनीकों और कानूनों को महत्त्व देना चाहिए। आपदारोधी निर्माणात्मक तकनीकों के प्रयोग को सभी घरों एवं मकानों को बनाने में अनिवार्य कर देना चाहिए तथा इसे कानूनी रूप से भी लागू कर देना चाहिए। आपदा अवरोधी संहिता और दिशा-निर्देशों को आवासीय निर्माण में अनिवार्य कर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त सुरक्षित निर्माणात्मक संरचना के लिए दूसरे उपायों को भी अपनाया जाना चाहिए ।
12. बाढ़ क्या है ?
उत्तर – जब जल अपने सामान्य स्तर से ऊपर उठकर या अपने नियमित मार्ग से हटकर बहता है तो बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस कारण लोगों और सम्पत्ति को होने वाले खतरे को “बाढ़ का संकट” कहते हैं। नदी का जल स्तर बढ़ने के कारण किनारे के मैदानों में पानी फैल जाता है, इसे नदी तटीय बाढ़ कहते हैं।
13. प्रतिधारक दीवार किसे कहते हैं ? यह भूस्खलन को किस प्रकार रोकती है ?
उत्तर – प्रतिधारक दीवार – ऐसी दीवार जो मृदा को खिसकने से रोकने के लिए ढालूदार क्षेत्रों में बनाया जाता है, प्रतिधारक दीवार कहा जाता है।
प्रतिधारक दीवार की संरचनाएँ ऐसी होती हैं कि ये भू-पृष्ठ संचलन के बल को सह लेता है और भूस्खलन होने से रोकता है।
14. आपदा संहिता क्या है ?
उत्तर – वर्तमान निर्माण संहिता एवं सहायता संहिता का कानूनी रूप ही आपदा संहिता कहलाता है। प्रत्येक कोर समूह से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बी० आई० एस० संहिता का पालन करते हुए कानूनी रूप से आपदा अवरोधी आवासों का निर्माण आपदा संभावित क्षेत्रों में करें।
15. आश्रय पट्टिका वन रोपण कार्यक्रम क्या है ?
उत्तर – चक्रवात की तीव्रता को कम करने के उद्देश्य से एक पंक्ति में वृक्षों को उगाना आश्रय पट्टिका वनरोपण कार्यक्रम कहलाता है।
16. आश्रय पट्टिका वन रोपन कार्यक्रम के दो उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर – आश्रय पट्टिका वन रोपण कार्यक्रम के निम्नांकित प्रमुख उद्देश्य हैं –
(क) इन वृक्षों के कारण तेज हवा की प्रबलता कम होगी और मृदा अपरदन एवं आश्रय स्थल के भीतर रेत का अपवाह भी नियंत्रित होगा।
(ख) ऐसी आश्रय पट्टिकाओं से मकानों एवं कृषि क्षेत्र की रक्षा होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
सुरक्षित निर्माण पद्धतियाँ
1. सुरक्षित भवन निर्माण कार्य में कौन-सी बात ध्यान में रखी जाती है ?
उत्तर – सुरक्षित भवन निर्माण कार्य में निम्नांकित बात ध्यान में रखी जाती है –
(क) स्थान- गाँवों के लिए स्थान तथा वहाँ इमारत का निर्माण सुरक्षित स्थान पर करना चाहिए ।
(ख) स्थान की अवस्थिति का महत्व – उदाहरणस्वरूप यदि हम हिमालयी क्षेत्र को लें, तो वहाँ ढाल दक्षिण की ओर होता है। इस क्षेत्र में पूरब – पश्चिम मकान बनने से उनको न केवल अधिक देर तक सूर्य की रोशनी मिलेगी वरन् ये आपदा-रोधी भी साबित होंगे।
(ग) इमारती सामग्री इमारत बनाने में स्थानीय सामग्री का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इससे दो लाभ हैं- पहला यह कि इसकी लागत कम आती है, जिसको आसानी से वहन किया जा सकता है। इस सामग्री से मरम्मत कार्य आसान हो जाता है।
(घ) डिजाइन – आवश्यकतानुकूल अभियांत्रिकीय संरचना उपयुक्त सुविस्तृत डिजाइन एवं निर्माणत्मक घटकों पर आधारित होनी चाहिए ।
(ङ) कारण कार्य का संबंध स्थान से संबंधित कारण कार्य संबंध का अध्ययन, इमारती सामग्री और स्थानीय प्राकृतिक वातावरण को बनाएञरखना चाहिए तथा उसे प्रचारित भी करना चाहिए ।
(च) भवन निर्माण संहिता- हाल के वर्षों में भारत की राज्य सरकारों ने अभियांत्रिकीय संरचना हेतु कुछ निश्चित भवन निर्माण संबंधी संहिता अपनाए जाने के लिए कहा है। इन नियमों एवं संहिताओं को निश्चित रूप से लागू किया जाना चाहिए ।
2. भूकंप के प्रभावों का वर्णन करें ।
उत्तर – भूकंप के प्रभाव निम्नांकित है –
(क) कीचड़ का बहाव – प्राय: बड़ी-बड़ी इमारतों के नीचे पानी बहता रहता है । भूस्खलन, हलचल आदि के कारण भूजलस्तर ऊपर तक आ जाता है, जिससे भयंकर रूप से कीचड़ का बहाव होता है।
(ख) कँपकँपाहट– भूकंप आने पर धरती थर्राने लगती है। इससे इमारतों की नींव हिलने लगती है और परिणामतः वह नेस्तनाबूत हो जाती है।
(ग) टूट-फूट- यह चटकन, क्षतिपूर्ण दीवाल की नींव का खिसकना, समायोजन आदि यहाँ सामान्य रूप से पूरे भूकंपीय क्षेत्र में होता है।
(घ) ज्वारी लहरें / सुनामी- समुद्रतटीय क्षेत्रों में सुनामी का भूकंप आता है। जो तटीय क्षेत्रों में इमारतों आदि की भारी तबाही मचाता है।
3. पहले भूकंप के बाद भी और झटके क्यों लगते हैं ?
उत्तर – पहले भूकंप के बाद भी और झटके के निम्नांकित दो कारण हैं –
(क) प्लेटों का एक खास दिशा में विस्थापित होना – 26 दिसंबर 2004 के दृष्टांत में भारतीय प्लेट खिसककर म्यानमारी प्लेट के नीचे चली गई थी । भूकंप का उद्गम केंद्र इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में स्थित आची से 300 कि०मी० दूर था। नीचे धँसी भारतीय प्लेट हिन्द महासागर के अन्दर की उन पर्वतमालाओं की स्थितियों को निर्धारित करती है, जिनको रिज कहते हैं। इनकी एक शाखा दक्षिण-पूर्व एशिया में चली गई है। इसलिए बाद के झटकों का होना एकदम स्वाभाविक बात थी ।
(ख) प्लटों के विवर्तन- प्लेटों के विवर्तन के सिद्धांत के आधार पर दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्र में बाद के झटकों के कारण के बारे में यह कहा जा सकता है कि हिन्द महासागर की तलहटी का 8 सेमी प्रतिवर्ष के हिसाब से प्रसार हो रहा है। इस प्रसार गति की दिशा भी उत्तर की ओर है। इसलिए 26 दिसम्बर 2004 के दिन के बाद भूकंप के झटके अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में अनुभव किया गया।
4. भूस्खलन के कौन-कौन से कारक है ?
उत्तर – भूस्खलन, मौसम तथा भू-वैज्ञानिक प्रक्रियाओं, दोनों से ही संबंधित होते हैं। मानव निर्मित कारकों से भी भूस्खलन होते हैं। वे कारक इस प्रकार हैं –
भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ –
(क) भूकंप,
(ख) तेज अथवा खड़े ढाल,
(ग) गुरूत्व में निर्मित मृदा की परतें।
मौसम संबंधी प्रक्रियाएँ –
(क) भारी वर्षा,
(ख) भारी हिमपात,
(ग) छिदरी मिट्टी,
(घ) घटिया जल-निकास,
(ङ) चट्टानों की अत्यधिक अपक्षीण परतें ।
मानव निर्मित कारक –
(क) मृदा अपरदन तथा वनों की कटाई,
(ख) खुदाई तथा उत्खनन,
(ग) भूस्थल का अनियोजित प्रयोग,
(घ) झूमिंग,
(ङ) जंगलों में सड़कों का निर्माण,
(च) अभियांत्रिक नियमों को अनदेखा करते हुए निर्माण 1
5. भूस्खलन ग्रस्त क्षेत्रों में सुरक्षित भवन निर्माण में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर – भूस्खलन ग्रस्त क्षेत्रों में सुरक्षित भवन निर्माण में निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
रक्षात्मक क्रियाएँ – विकास संबंधी तथा सशक्त भवन निर्माण तकनीकों को अपनाकर भूस्खलन की संभाव्यता तथा नाशात्मक अपरदन पर बहुत सीमा तक नियंत्रण किया जा सकता है या कम किया सकता है।
संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा –
(क) संवेदनशील क्षेत्रों से जल अपवाह (नालियों) को दूर रखा जाए।
(ख) जल अपवाह तीव्र ढाल, मुलायम मृदा तथा वनस्पति विहीन धरातल से दूर रखना आवश्यक है जिससे इन क्षेत्रों का अपरदन नहीं होगा।
(ग) छत के पानी को सीधे पाइपों में ले जाना चाहिए।
धरातलीय जल पर रोक –
(क) धरातलीय पानी के बहने के पास ही ढालू गड्ढा खोदा जाए तथा उसमें पानी को रोका जाना चाहिए।
(ख) यहाँ से इसे उन क्षेत्रों को ले जाया जाए जहाँ इसकी जरूरत है – सिंचाई में तथा वनस्पति युक्त क्षेत्रों को ।
ढालों को कठोर किया जाना चाहिए –
(क) घास तथा पेड़-पौधे लगाकर ढालों को कठोर, दृढ़ बनाया जाना चाहिए।
(ख) घास, पेड़-पौधों युक्त ढालों को नहीं छोड़ना चाहिए।
(ग) मिट्टी की एक इंच तक की गहराई में घास, लकड़ी की चिप तथा झाल का प्रयोग करके मृदा अपरदन को रोकना चाहिए ।
(घ) मृदा स्थायीकरण के लिए कुछ समय के लिए कपड़ा फैलाकर मृदा को ढक देना चाहिए। जब तक झाड़ियाँ उस मृदा पर न उगायी जाएँ। कपड़े के फैलाने से मृदा को पानी मिल जाता है तथा पौधे इस मृदा में खूब उगते हैं और मृदा दृढ़ हो जाती है ।
6. बाढ़ का भवनों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – बाढ़ का भवनों पर निम्नांकित प्रभाव पड़ता है
(क) अधिकांशतः बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में बाढ़ का पानी मकानों के भीतरी हिस्सों में घुस जाता है। दोनों ओर से आघात लगने पर दीवारें तथा नींव ढीली पड़ जाती है ।
(ख) घास-फूस के मकान, मिट्टी के मकान, झोपड़ियाँ तथा हल्के-फुल्के बाँस की छत वाले मकान बाढ़ से बह जाते हैं। इससे पानी में मलबे का बहाव बढ़ जाता है, जिसके कारण जान-माल की हानि होती है ।
(ग) जो मकान छिदरी मिट्टी पर बने हों तथा कमजोर नींव वाले हों, वे पानी में तैरने लगते हैं। मकानों के इस प्रकार तैरने से भी मनुष्य, पशुओं तथा मनुष्यों की संपत्ति को नुकसान होता है।
(घ) पानी का स्तर बढ़ने से मकान जलमग्न हो जाते हैं, जिसके कारण मकानों का भीतरी हिस्सा खराब हो जाता है और वे रहने लायक नहीं रहते।
(ङ) पानी के वेग से मकानों को नीचे से प्रघात लगता है और वस्तुएँ पानी में तैरने लगती हैं।
(च) भूमि की सतह का क्षरण, मलबे का जमाव, गीली सतह आदि मकानों को हाने वाले कुछ अन्य नुकसान हैं।
7. बाढ़ की हानि से सुरक्षा के लिए शमन की चार रणनीतियों का वर्णन करें।
उत्तर – बाढ़ की हानि से सुरक्षा के लिए शमन की चार रणनीतियों निम्नांकित है –
(क) मार्ग को सीधा बनाना – बाढ़ के दौरान जल सीधी धारा में तेजी से बहता है। टेढ़ी-मेढ़ी धारों में बाढ़ की संभावना रहती है।
(ख) भित्तिबंध और तटबंध – ये विशेष दशाओं में जल के प्रवाह को मोड़ने के लिए बनाए गए कृत्रिम बंध हैं।
(ग) बाँध से संरक्षण- इसमें निम्नांकित उपाय शामिल हैं
(a) बाढ़-संभावी क्षेत्रों में कृत्रिम जलाशय । इनमें किसी विशेष दिशा में बाढ़ के जल को मोड़ने के लिए जलकपाट लगे होते हैं ।
(b) किसी विशेष दिशा में जल का प्रवाह रोकने के लिए रेत के थैलों का उपयोग l
(c) नीची भूमि जिसे उत्तार कहते हैं। यह बाढ़ के पानी को किसी विशेष दिशा में बहा ले जाता है, या उसे धरती के अंदर रिसने देता है या एक समुद्र या झील में भी पहुँचा देता है।
(घ) चबूतरों और भित्तियों का निर्माण- सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान बाढ़ों से सुरक्षा के लिए मकान ऊँचे चबूतरों पर बनाए जाते थे। अनेक नार्दिक देशों में, जो समुद्र के स्तर से भी नीचे हैं, आज भी ऐसे चबूतरे बनाए जाते हैं। इन्हीं चबूतरों पर बस्तियाँ बसाई जाती हैं ।
8. चक्रवात पर विजय पाने के लिए शमन की प्रमुख रणनीतियों का वर्णन करें।
उत्तर – चक्रवात पर विजय पाने के लिए शमन की प्रमुख रणनीतियाँ निम्नांकित है –
(क) चक्रवातरोधी ढाँचे- हवाओं और मूसलाधार वर्षा को झेल सकने वाले चक्रवातरोधी ढाँचे अनेक प्रकार के होते हैं। लेकिन तटीय क्षेत्रों की जनता की निर्धनता के कारण ये ढाँचे हमेशा कारगर साबित नहीं हुए हैं। फिर भी नीचे दर्ज कुछ सावधानियाँ बरती जा सकती है।
(a) तटीय क्षेत्रों में फूस की छतों वाले कच्चे घर बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसकी बजाय निवासियों को निश्चित विशेषताओं वाले मकान बनाने के लिए ऋण और समुचित मार्गदर्शन दिए जाने चाहिए । मकान ऊँचे टीलों या बल्लियों पर बनाए जाने चाहिए।
(b) संभावित क्षेत्रों में सरकार को चक्रवात शरणस्थलों की व्यवस्था करनी चाहिए। उड़ीसा में ऐसे शरणस्थल पहले ही बनाए जा चुके हैं।
(ख) हरित शरणपट्टियाँ- अमेरिका के प्रेयरी क्षेत्र की जनता द्वारा स्थापित उदाहरण चक्रवातों और पवनों के वेग को तोड़ने की सबसे कारगर रणनीति साबित हुआ है। वायु के आने के मार्ग में ऐसे पेड़ लगाए जाने चाहिए जिनकी जड़ें मजबूत हों तथा पत्तियाँ सुई जैसी हों। अगली कुछ पंक्तियों के पेड़ों को उखड़ने से बचाने के लिए उनके चारों और बाड़े लगाई जाती हैं। ऐसी शरणपट्टियाँ पूरे तटीय क्षेत्र में बनाई जा सकती हैं।
(ग) अन्य रणनीतियाँ- ये बाढ़ – संभावी क्षेत्रों में अपनाई जानेवाली रणनीतियों जैसी ही हैं। जैसे- हरित पट्टी का विस्तार करना, समुद्र से निकली भूमि पर पेड़ लगाना, बाँध और तटबंध बनाना ।
9. भवनों को तूफानी चक्रवात से बचाने के उपायों का वर्णन करें ।
उत्तर – भवनों को तूफानी चक्रवात से बचाने के निम्नांकित उपाय हैं –
छत की संरचना –
(क) छत के निकले बारही हिस्सों को 500 मि०मी० तक कम करना चाहिए।
(ख) पिरामिड के आकार की छतें अन्य छतों से बेहतर होती हैं ।
(ग) हल्की ए० सी०सी० चादरें तथा टीन चादरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। छत को पर्लिन तथा कड़ियों से मजबूती से बाँधा जाना चाहिए ।
नींव की बनावट –
(क) ठोस मिट्टी तथा कंक्रीट की नींव- चक्रवाती क्षेत्रों में बाढ़ आना आम बात है साथ ही साथ ज्वारी लहरें भी लगातार आती रहती हैं। अधिकतर, पानी का रिसाव जमीन के नीचे होता है जिसके कारण इमारतों की नींव कमजोर पड़ जाती है। इसलिए ठोस मिट्टी तथा पुनर्बलित कंक्रीट की नींव बनाई जानी चाहिए।
(ख) अवस्तंभ – दोनों दिशाओं में सही तरह से कसे हुए सीमेंट के पुनर्बलित अवस्तंभों पर भी विचार किया जाना चाहिए । अवस्तंभ हवा तथा पानी को मार्ग प्रदान करते हैं ।
दीवारें तथा पट्टियाँ –
(क) छत के स्तर के नीचे कोई खुली जगह नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे हवा तथा पानी मकान के भीतर आकर अधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं।
(ख) दरवाजे तथा खिड़कियाँ बहुत अधिक चौड़े नहीं होने चाहिए।
(ग) दरवाजे तथा खिड़कियों पर शीशे की पट्टी नहीं लगानी चाहिए क्योंकि हवा तथा पानी के दबाव से शीशे टूट जाएँगे और इमारत में हवा तथा पानी का प्रवेश तथा अन्य नुकसान भी होगा ।
(घ) यदि शीशे की पट्टी का प्रयोग आवश्यक है तो उसका आयाम कम से कम होना चाहिए अथवा उसके स्थान पर प्लास्टिक की पट्टी का प्रयोग करना चाहिए ।
(ङ) इन पट्टियों पर धातु का फ्रेम चढ़ाना चाहिए ।
10. चक्रवात के कारणों एवं प्रभावों का वर्णन करें ।
उत्तर – चक्रवात के कारण
(क) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के वायुमंडल में कम एवं अधिक दबाव का क्षेत्र बनना।
(ख) सागरीय तापमान ।
(ग) अधिक सापेक्षित आर्द्रता ।
(घ) वायुमंडल में अस्थिरता ।
प्रभाव –
(क) 300 किमी० प्रतिघंटे की गति से तेज हवाओं का प्रचालन ।
(ख) मूसलाधार वर्षा ।
(ग) महासागरीय लहरों का उठना ।
(घ) तटीय इलाकों में व्यापक हानि ।
11. उपग्रह अनुवर्तन की व्याख्या करें। यह चक्रवात की आपदा से किस प्रकार बचाव करता है ?
उत्तर – चक्रवात में किसी निम्न दाब वाले क्षेत्र के परितः चक्कर खाती हुई तेज हवाएँ चलती हैं। उपग्रह अनुवर्तन द्वारा चक्रवात के संभावित पथ का पूर्वानुमान लगाकर उसके आने की संभावना से किसी क्षेत्र विशेष के लोगों को समय रहते अवगत कराया जा सकता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग लोगों को मौसम के बिगड़ने या खतरनाक रूप लेने के बारे में चेतावनी देता है। चक्रवातं में तेज गति से चल रही हवा के प्रभाव से कम वजनी संरचनाएँ नष्ट हो जाती हैं, संचार व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है, खड़ी फसलें बरबाद हो जाती हैं और इससे जान-माल की भी भारी हानि होती है ।
12. सूखा प्रभावी क्षेत्र में लोगों द्वारा अपनाये जाने वाले किन्हीं दो वैकल्पिक व्यवसायों का उल्लेख करें ।
उत्तर – सूखा क्षेत्र में लोग निम्नांकित वैकल्पिक व्यवसाय अपनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं
(क) पशुपालन – पशुपालन एक प्रमुख वैकल्पिक व्यवसाय है जिससे मनुष्य को आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। पशुओं से दूध, माँस, चमड़े तथा खेती के लिए बछड़े मिलते हैं। सूखा की स्थिति में इससे होने वाली आय उनकी आजीविका का प्रमुख साधन बनता है ।
(ख) अन्य लघु व्यवसाय – आजीविका व्यवसाय से उन व्यवसाय की पहचान की जाती है जो सूखे द्वारा कम से कम प्रभावित होते हैं। इसमें कृषि से हटकर अन्य रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना और पशुपालन, बढ़ईगीरी, चटाई, झाडू तथा अन्य व्यवसाय के अवसर प्रदान करना शामिल है।
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