NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 5 जन-संघर्ष और आंदोलन (नागरिकशास्त्र – लोकतांत्रिक राजनीति – 2)
NCERT Solutions Class 10Th Social Science Chapter – 5 जन-संघर्ष और आंदोलन (नागरिकशास्त्र – लोकतांत्रिक राजनीति – 2)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
जन-संघर्ष और आंदोलन
1. आंदोलन की परिभाषा लिखें।
उत्तर – कई बार लोग बिना कोई संगठन बनाए मिलकर काम करने का प्रयास करते हैं। ये समूह अपने आपको आंदोलन का नाम देते हैं ।
2. आंदोलनों के उद्देश्य बताएँ ।
उत्तर – कई आंदोलन अपने उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं। वे अपने एक ही उद्देश्य को पाना चाहते हैं, एक निश्चित समय के अन्दर ।
3. अप्रैल, 2006 ई० में नेपाल में उठने वाले जन आंदोलन के कार्यकर्ताओं की क्या माँग थी ?
उत्तर – संसद को बदल दिया जाए, सर्वदलीय सरकार बने तथा एक नई संविधान सभा का गठन हो ।
4. नेपाल और बोलिविया के संघर्ष में दो समान बातें बताएँ।
उत्तर – (क) दोनों ही घटनाओं में जनता एक बड़े पैमाने पर लामबन्द हुई।
(ख) दोनों ही घटनाओं में राजनीतिक संगठनों की भूमिका निर्णायक रही।
5. दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति पर असर डालने के लिए कौन-कौन से ढंग अपनाते हैं ।
उत्तर – (क) सूचना अभियान चलाकर,
(ख) बैठकें आयोजित करके तथा
(ग) मीडिया को प्रभावित करके ।
6. राजनीतिक दलों और दबाव-समूहों के बीच के रिश्ते के दो रूप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर – (क) कुछ एक दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए जाते हैं।
(ख) कभी-कभी दबाव-समूह बाद में राजनीतिक दल का रूप धारण कर लेते हैं जैसे असम गण परिषद् ।
7. राजनीतिक दल और दबाव-समूह में एक बड़ा अन्तर कौन-सा है ?
उत्तर – राजनीतिक दल का मुख्य लक्ष्य देश की सत्ता पर नियन्त्रण स्थापित करना होता है जबकि दबाव-समूह का ऐसा कोई लक्ष्य नहीं होता। उसकी सत्ता में हिस्सेदारी करने की कोई इच्छा नहीं होती।
8. दबाव-समूह और आंदोलन किन दो बातों में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर – (क) जन साधारण के हित-समूह और आंदोलन सरकार को धनी लोगों और ताकतवर लोगों के अनुचित दबाव से बचाते हैं ।
(ख) विभिन्न दबाव-समूहों और आंदोलनों के माध्यम से सरकार इस बात को जान लेती है कि समाज के विभिन्न तबके क्या चाहते हैं ।
9. नेपाल के कौन से राजा ने जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया ?
उत्तर – राजा ज्ञानेंद्र ने फरवरी 2005 को जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया ।
10. 2006 की अप्रैल में नेपाल में जो आंदोलन उठ खड़ा हुआ उसका क्या लक्ष्य था ?
उत्तर – इस आंदोलन का लक्ष्य था कि शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर दोबारा जनता के हाथ में सौंप दी जाए ।
11. बोलिविया का देश कहाँ स्थित है ?
उत्तर – बोलिविया लातीनी अमेरिका का एक गरीब देश है।
12. बोलिविया में कब और क्यों जन आंदोलन शुरू किया गया ?
उत्तर – बोलिविया में जन-आंदोलन सन् 2000 में शुरू किया गया जब वहाँ की सरकार ने कोचबम्बा नामक नगर की जलापूर्ति का अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को सौंप दिया।
13. अल्पकालीन आंदोलन कौन-से होते हैं ?
उत्तर – वे ऐसे आंदोलन होते हैं जो थोड़े समय तक सक्रिय रह पाते हैं और जिनका लक्ष्य किसी मुद्दे को पाना होता है वे अल्पकालीन आंदोलन कहलाते हैं।
14. दीर्घकालीन आंदोलन किन्हें कहते हैं ?
उत्तर – ऐसे आंदोलन लम्बे समय तक चलते हैं और जिनमें एक से अधिक मुद्दे होते हैं।
15. बोलिविया के लोगों ने अपनी सरकार के विरुद्ध जन आंदोलन क्यों छेड़ दिया ?
उत्तर – क्योंकि वहाँ की सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए पानी का निजीकरण कर दिया और कोचाबम्बा शहर में जलापूर्ति का अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को बेच दिया। इससे पानी चार गुणा महंगा हो गया और गरीब आदमी प्यासे मरने लगे।
16. 2000 ई० में बोलिविया में जन संघर्ष कैसे शुरू हुआ ?
उत्तर – पानी के निजीकरण के विरुद्ध अनेक संस्थाओं जैसे- श्रमिकों, मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं आदि ने एक गठबंधन स्थापित करके आम हड़ताल कर दी। जब इससे भी कुछ नहीं बना तो फिर से जन-आंदोलन शुरू किया गया। बहुराष्ट्रीय कंपनी के अधिकारियों को शहर छोड़कर भागना पड़ा। यह आंदोलन बोलिविया के जनयुद्ध के नाम से प्रसिद्ध है।
17. जनहित समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – वे सामूहिक रूप से काम करते हैं न कि चुने हुए लोगों का ।
18. हित समूह के कुछ उदाहरण दें ।
उत्तर – जो लोग बंधुआ मजदूरी के विरुद्ध लड़ाई लड़ते हैं न कि अपने लिए। जो लोग बंधुआ मजदूर होते हैं, उसके हितों के लिए ।
19. BAMCEF (वामसेफ) का पूरा स्वरूप लिखें।
उत्तर – वैकवर्ड एंड मायनॉरिटी कम्युनिटी एम्पलाइज फेडरेशन |
20. NAPM का पूर्ण रूप लिखें ।
उत्तर – नेशनल अलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट ।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
जन-संघर्ष और आंदोलन
1. दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं ?
उत्तर – जब कुछ लोग अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठित होते हैं तो उनके इस संगठनों को हित-समूह कहा जाता है। ऐसे दबाव-समूह स्वयं राजनीति से किनारा रखते हैं क्योंकि या तो उनके मन में राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की इच्छा ही नहीं होती, या जरूरत ही नहीं होती या उनमें राजनीतिक कौशल का अभाव होता है। वे तो राजनीतिक दलों और सरकार पर दबाव डालकर अपनी माँगों को मनवाना चाहते हैं और इस प्रकारे वे अनेक प्रकार से राजनीति को प्रभावित करते हैं ।
(क) विभिन्न दबाव-समूह और आंदोलन अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए जनता की सहानुभूति और समर्थन प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे में वे बैठकें करते हैं, जुलूस निकालते हैं और सूचना अभियान चलाते हैं। केवल जनता को ही नहीं ऐसे दबाव-समूह मीडिया को भी प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं ताकि मीडिया उनके मसलों पर ध्यान दे और ऐसे में सरकार और जनता का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो ।
(ख) ऐसे दबाव-समूह केवल सूचना अभियान तक ही सीमित नहीं रहते वरन् वे धरना भी देते हैं हड़तालें भी करते हैं और सरकारी कामकाज में बाधा भी डालते हैं ताकि सरकार उनकी माँगों को जल्दी से माने, बहुत से मजदूर संगठन, कर्मचारी संघ आदि ऐसे ही तरीकों को अपनाते हैं ताकि सरकार पर दबाव बना रहे।
(ग) कुछ दबाव समूह अपनी बात को लोगों तक पहुँचाने और सरकार को जगाने और सोए हुए को जगाने के लिए महंगे विज्ञापनों का सहारा भी लेते हैं।
(घ) कुछ दबाव-समूह विपक्ष के नेताओं को भी अपने पक्ष में लाने का प्रयत्न करते हैं और उनसे भाषणबाजी तक करवा देते हैं। अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल भी इन दबाव-समूह को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं ।
2. दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्धों का स्वरूप कैसा होता है ? वर्णन करें।
उत्तर – दबाव-समूह किसी विशेष उद्देश्य को लेकर संगठित हो जाते हैं और उस उद्देश्य की पूर्ति के पश्चात् अपने आप ही शांत हो जाते हैं। साधारणतया उनका अपना कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं होता और न वे देश की सत्ता पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। उनका दायरा और उद्देश्य भी सीमित होता है। इसके विपरीत राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य देश की सत्ता पर अधिकार जमाना होता है। उनके उद्देश्य भी विस्तृत होते हैं और उनका आकार भी विशाल होता है। दबाव-समूह और राजनीतिक दलों का आपसी रिश्ता कई स्वरूप धारण कर सकता है। जिनमें से कुछ प्रत्यक्ष होते हैं तो कुछ अप्रत्यक्ष ।
(क) कुछ मामलों दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए जाते हैं। जिनका नेतृत्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में राजनीतिक दलों के नेता ही संभालते हैं।
(ख) कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में काम करते हैं, जैसे भारत के अधिकतर मजदूर संगठन, छात्र संगठन आदि । ऐसे संगठन या तो राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं या फिर उनकी समबन्धता राजनीतिक दलों से होती हैं ध्यान से देखने से पता चल जाता है कि ऐसे दबाव-समूह की बागडोर किसी न किसी राजनीतिक दल के किसी न किसी नेता या कार्यकर्ता के हाथ में होती है ।
(ग) कई बार दबाव-समूह और आंदोलन स्वयं राजनीतिक दल का एक रूप अख्तियार कर लेते हैं। जैसे- असम में विदेशियों के विरुद्ध चलाया गया ‘असमय आंदोलन’ अपनी समाप्ति पर ‘असम गणपरिषद्’ के नाम से राजनीतिक दल में परिणित हो गया। इसी प्रकार तमिलनाडु के दो प्रमुख राजनीतिक दलों डी० म० के० और ए० आई० ए० डी० प० वे० की जड़े वहाँ शुरू हुए समाज सुधार आंदोलन में ढूँढ़ी जा सकती है ।
(घ) कई बार कुछ दबाव-समूहों और आंदोलनों और राजनीतिक दलों में टकरावों की स्थिति बनी रहती है। विरोधी पक्ष लेने पर भी इन दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों में आपसी संवाद होता रहता है और आपसी बातचीत चलती रहती है।
(ङ) कई बार राजनीतिक दलों के नेता इन दबाव-समूहों से ही आते हैं, जैसेभारतीय जनता पार्टी के नेता अरूण जेटली कभी छात्र संगठन के पदाधिकारी थे। इसी प्रकार अजय माकन भी छात्र संघ के नेता थे।
3. दबाव-समूह क्या है ? कुछ उदाहरण बताएँ ।
उत्तर – जब कुछ लोग अपनी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठन बनाते हैं तो ऐसे संगठनों को दबाव-समूह या हित-समूह का नाम दिया जाता है। ऐसे लोगों का उद्देश्य राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी का नहीं होता। शायद ऐसे लोगों को राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सेदारी की इच्छा ही न हो अथवा उन्हें ऐसा करने की कोई जरूरत महसूस न होती हो या उनके पास किसी जरूरी कौशल का अभाव हो ।
ऐसे दबाव-समूह थोड़े समय के लिए अस्तित्व में आते हैं और अपने सीमित उद्देश्यों की पूर्ति के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं। जैसे वोलीविया में सन् 2000 में पानी के प्रश्न पर कुछ लोगों का दबाव-समूह बना और उनके आंदोलन करने पर सरकार को आंदोलनकारियों की सभी मांग माननी पड़ी और जैसे ही बहुराष्ट्रीय कंपनी के साथ किया गया करार रद्द कर दिया वैसे ही यह जल के प्रश्न पर बनाया गया दबाव-समूह भी समाप्त हो गया ।
किसी भी लोकतंत्रीय सरकार में ऐसे दबाव-समूह बनते रहते हैं। कभी वकील लोग़, कभी अध्यापक लोग और कभी दुकानदार अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए दबाव-समूह बनाते रहते हैं, राजनीतिक दलों और सरकार पर दबाव डालकर अपने हितों के पक्ष में प्रदर्शन भी करते हैं और जैसे ही मांगे पूरी हो जाती है वे कपूर की भांति गायब हो जाते हैं। निरंतर बने रहना न उनकी इच्छा होती है और न उनका सामर्थ्य ।
4. दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है ?
उत्तर – दबाव-समूह और राजनीतिक दल में अंतर
(क) दबाव-समूह और राजनीतिक दल में पहला अंतर यह है कि राजनीतिक दल अनेक राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं और देश की सत्ता पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं जबकि दबाव-समूहों का राजनीतिक गतिविधियों में घुसने का कोई उद्देश्य नहीं होता और न ही उन्हें देश की सत्ता सम्भालने का कोई लालच होता है ।
(ख) राजनीतिक दल एक विस्तृत संस्था होती है जिसके सदस्यों की संख्या हजारों में नहीं वरन् लाखों में होती है और उसके फैलाव का क्षेत्रफल भी काफी बड़ा होता है। इनमें कुछ राजनीतिक दलों का आधार लगभग समस्त देश में होता है जबकि हाल में कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल भी अस्तित्व में आए हैं ।
इसके विपरीत दबाव-समूह के सदस्यों की संख्या राजनीतिक दलों के मुकाबले बहुत कम होती है और उसका विस्तार भी सीमित होता है। जैसेनर्मदा बचाओं आंदोलन एक सीमित क्षेत्र और सीमित लोगों तक महदूद हैं।
(ग) राजनीतिक दलों के सामने अनेक उद्देश्य होते हैं जो जीवन के हर पहलू राजनीतिक, समाजिक, धार्मिक, आर्थिक आदि को छूते हैं वहीं दबाव-समूहों
का उद्देश्य सीमित होता है और वे उस उद्देश्य से हटकर परे देखने का प्रयत्न नहीं करते। वकीलों के दबाव-समूह का अध्यापकों के दबाव-समूह से कोई सरोकार नहीं सब अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग बोलते हैं।
5. नेपाल और बोलिविया के आंदोलन किस बात में आपस में मिलते-जुलते हैं ? अथवा, सिद्ध करें कि लोकतंत्र की जीवंतता से जन-संघर्ष का अन्दरूनी
रिश्ता है।
उत्तर – नेपाल और बोलिविया के जन आंदोलन में काफी मेल पाया जाता है। दोनों स्थानों पर लोगों ने सरकार के अन्यायपूर्ण कार्यों के विरुद्ध जन-संघर्ष शुरू किया। नेपाल में आंदोलन प्रजातंत्र की बहाली के लिए छेड़ा गया। वहाँ सात पार्टियों ने सप्तदलीय गठबन्धन बनाया और वहाँ के शासक ज्ञानेन्द्र को मजबूर किया कि वह संसद को बहाल करे, सर्वदलीय सरकार का निर्माण करे और नई संविधान सभा का गठन करे।
बोलिविया में यह आंदोलन श्रमिकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं द्वारा बनाए गए एक गठबन्धन ने शुरू किया ताकि पानी का ठेका किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी को न दिया जाए। ऐसे में पानी चार गुणा महंगा हो गया और गरीब लोगों के प्यासे मरने की नौबत आ गई। अंत में यह आंदोलन नेपाल की भाँति सफल हुआ और सरकार के अन्यायपूर्ण कार्य का अंत हुआ।
6. किस तरह से वर्गीय हित समूह भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ?
उत्तर – यह पूर्णतः सत्य है कि एक वर्गीय हित समूहें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोई भी अकेला समूह पूरे समाज पर नहीं छा सकता है। यदि एक समूह सरकार पर दबाव डालता है कि सरकारी नीतियाँ उसके पक्ष में हों तो दूसरा समूह प्रयास करता है कि नीतियाँ पहले समूह के अनुकूल न हों। ऐसे स्थिति में सरकार सोचने के लिए विवश हो जाती है कि विभिन्न वर्गों के लोगों की क्या इच्छा है ? इससे एक शक्ति संतुलन तथा आपस में लड़ने वाले समूहों को शांत किया जा सकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
जन-संघर्ष और आंदोलन
1. किस तरह से नेपाली लोगों का संघर्ष पूरे विश्व के लोकतांत्रिक विचार रखने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है ?
उत्तर – (क) नेपाल में अप्रैल 2006 में एक प्रसिद्ध आंदोलन चला। इसका उद्देश्य नेपाल में लोकतंत्र की फिर से बहाली था, जैसा कि पहले सत्ता की बागडोर चुने हुए प्रतिनिधियों के पास थी और राजा संवैधानिक प्रमुख था। 2001 में राजा और परिवारजनों की रहस्यमय हत्या के बाद नया राजा ज्ञानेन्द्र बना। उसे लोकतांत्रिक सरकार पसन्द नहीं थी। अतः उसने कमजोर लोकतांत्रिक व्यवस्था का फायदा उठाया।
(ख) फरवरी 2005 में राजा ने प्रधानमंत्री को हटा दिया और लोकसभा भंग कर दी। इस पर जनता भड़क उठी और लोकतंत्र की पुनः बहाली के लिए अप्रैल 2006 में भीषण आंदोलन चल पड़ा ।
(ग) सभी प्रमुख राजनैतिक दलों ने Seven Party Alliance (SPA) का गठन किया। साथ ही काठमांडु में चार दिन की हड़ताल हो गई। इसमें माओवादियों सहित कई दलों ने भाग लिया। लाखों लोग इकट्ठा होकर प्रदर्शन करने लगे। लोग अपनी माँगों पर अड़े हुए थे कि संसद को फिर से बहाल किया जाए। सत्ता की बागडोर दी जाए।
(घ) 24 अप्रैल 2006 को जब लोगों द्वारा दी गई चेतावनी का अंतिम दिन आया, राजा ने सभी माँगे मान ली । SPA ने गिरिजा प्रसाद कोइराला को नया प्रधानमंत्री बनाया। संसद द्वारा राजा के सभी विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए। SPA और माओवादियों ने नई संविधान एसेम्बली को चुना। इस आंदोलन को नेपाल की स्वतंत्रता प्राप्ति का दूसरा आंदोलन कहते हैं ।
2. दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती है ?
अथवा, दबाव समूहों के पक्ष तथा विपक्ष में दलीलें दें ।
उत्तर – नकारात्मक पक्ष- कुछ आलोचकों ने दबाव-समूहों के नकारात्मक पक्ष को ही सामने रखकर इनकी खूब आलोचना की है। अपने विचार के पक्ष में उन्होंने अनेक दलीले दी हैं –
(क) विभिन्न दबाव-समूहों का लक्ष्य बड़ा संकुचित सा होता है जो कई बार अन्य लोगों के हितों से टकराता है। इस टकराव से कई बार ईर्ष्या-द्वेष की भावनाएँ पैदा होती है ।
(ख) लोकतंत्र में सब के भले की बात सोचनी चाहिए परन्तु यह हित समूह अपनी डफली और अपना राग अलापते हैं ।
(ग) कई दबाव-समूह अपने पैसे के बल पर मीडिया को भी अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं और कुछ पैसे के बल पर राजनेताओं को भी अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करते हैं ।
सकारात्मक पक्ष- परन्तु बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो ऊपर की आलोचनाओं से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार विभिन्न दबाव-समूह अपने ही ढंग से लोकतंत्र की सेवा करते हैं और उसकी जड़ें मजबूत करते हैं। उनकी ऐसी सोच का मुख्य आधार निम्नांकित तर्कों पर आधारित है –
(क) शासकों के ऊपर दबाव डालना लोकतंत्र में कोई बुरी बात नहीं मानी जाती, यदि इस दबाव से दूसरे वर्गों का अहित न होता हो ।
(ख) सरकार कई बार कुछ थोड़े से धनी और सशक्त लोगों के प्रभाव में आ जाती है। जनसाधारण के हित समूह तथा आंदोलन सरकार को इस अनुचित दबाव से मुक्त कराने के महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(ग) ये विभिन्न दबाव-समूह सरकार को आम नागरिकों की कठिनाइयों और आवश्यकताओं से अवगत कराते हैं।
(घ) विभिन्न दबाव-समूहों के प्रतिरोध और विरोध से सरकार को यह पता चलता रहता है कि जनता क्या चाहती है। इस प्रकार दबाव-समूहों को जनता की आकांक्षाओं · का बैरोमीटर कहा जा सकता है, जिसे देखकर सरकार ठीक मार्ग चुन लेती है।
3. वर्ग विशेष के हित-समूह और जन सामान्य के हित-समूह में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – वर्ग विशेष के हित समूह और जन सामान्य के हित समूह में अंतर –
(i) वर्ग हित-समूह अमूमन समाज के किसी खास हिस्से अथवा समूह के हितों को बढ़ावा देना चाहते हैं जबकि जनसामान्य के हित-समूह किसी खास की बजाए सामूहिक हित का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
(ii) वर्ग विशेष के हित-समूह का उदाहरण मजदूर संगठन, व्यावसायिक संघ और पेशेवरों (वकील, डॉक्टर, शिक्षक आदि) के समूह आदि हैं जबकि जन सामान्य के हित-समूह का उदाहरण बामसेफ है।
(iii) वर्ग विशेष के हित-समूह वर्ग विशेषी होते हैं क्योंकि ये समाज के किसी खास तबके जैसे कि मजदूर, कर्मचारी, व्यवसायी, उद्योगपति, धर्म विशेष के अनुयायी अथवा किसी खास जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि जनसामान्य के हित-समूह का लक्ष्य अपने सदस्यों का नहीं बल्कि सर्वसामान्य की मदद करना होता है।
(iv) वर्ग विशेष के हित-समूह का मुख्य सरोकार पूरे समाज का नहीं बल्कि अपने सदस्यों की बेहतरी और कल्याण करना होता है, जबकि सामान्य के हित-समूह जन सामान्य के हित के लिए संघर्ष करते हैं तथा इसके लिए सरकार पर दबाव बनाते हैं ।
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