NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 1 अपठित गद्यांश
NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 1 अपठित गद्यांश
साहित्यिक गद्यांश
धोलिखित अपठित अवतरण को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर लिखें –
1 मंगर का स्वभाव रूखा और बेलौस रहा है, किसी से लल्लो-चप्पो नहीं, लाई-लपटाई नहीं। दो टूक बातें, दो टूक व्यवहार । तो भी न जाने क्यों, मंगर, मुझे शुरू से ही स्नेह की नजर से देखता रहा है। शायद इसलिए कि मेरे बाबूजी उसे बहुत मानते थे | अब भी कहता है- मालिक थे हमारे मंझले बाबू, मरे, मेरी तकदीर फूटी । और वह शायद इसलिए भी कि मैं बचपन से ही टुअर हूँ । माँ मर गई, पिताजी चल बसे तभी तो उसने अपना पवित्र कंधा मुझे दिया और जब कुछ बड़ा हुआ मैं ननिहाल जाने-आने और रहने लगा तो याद आता है, मंगर ही मुझे वहाँ पहुँचाता। मैं एक छंटी घोड़ी पर सवार, मंगर ही पर सौगात की चीजें और मेरी किताबें लिये, घोड़ी की लगाम पकड़े आगे-आगे । जहाँ नीच-ऊँच जमीन होती, कहीं मैं घोड़ी से गिर न जाऊँ, बगल में आकर एक हाथ से मुझे पकड़ भी लेता। उसके बलिष्ठ हाथों के उस कोमल स्पर्श का अनुभव आज भी कर रहा हूँ ।
ज्यों-ज्यों बड़ा होता गया, घर से मेरा संबंध टूटता गया । बकौल मंगर मैं तो अपने ही घर का मेहमान बन गया। लेकिन जब-जब दो-चार दिनों के लिए घर जाता, मंगर को उसी रूप और उसी पेशे में देखता ।
कपड़ों से मंगर को बैर रहा है। हमेशा कमर में भगवा ही लपेटे रहता। उसे धोतियाँ मिली हैं। गोवर्धन पूजा के दिन, हर साल, एक नई धोती लिये बिना वह बैल के सींगों में लटकन बाँधता क्या ? यों भी बाबा और चाचा साल में जब-तब धोतियाँ दिया करते। घर में शादी-ब्याह होने पर उसे लाल धोतियाँ भी मिली हैं। मेरी शादी में मंगर के लिए नया कुर्ता भी बना दिया था। लेकिन, धोतियाँ हमेशा उसके सिर का सिंगार रहीं, जिन्हें वह मुरैठे की तरह लपेटे रहता और कुर्ता, जब मेरी किसी कुटमैती में वह संदेश लेकर जाता, तभी उसकी देह ढँकती। यों साधारणतः वह हमेशा नंग-धड़ंग रहता । और मैं कहूँ, मुझे उसका शरीर उस रूप में, बहुत ही अच्छा लगा । आज एक कलाकार की दृष्टि से कहता हूँ, मंगर को खूबसूरत शरीर मिला था ।
काला-कलूटा फिर भी खूबसूरत ? सौन्दर्य को रंगसाजी और नक्कासी का मजमूआ समझने वालों की रुचि मैं समझ नहीं पाता, यह कहने की गुस्ताखी के लिए आज भी मैं माफी माँगने को तैयार नहीं । मंगर का वह काला कलूटा शरीर, एक संपूर्ण सुविकसित मानव-पुतले का उत्कृष्ट नमूना । लगातार की मेहनत ने उसकी मांसपेशियों को स्वाभाविक ढंग से उभाड़ रखा था। पहलवानों की तरह उसमें अस्वाभाविक उभाड़ नहीं आई थी । जाँघें, छाती, भुजाएँ सब में जहाँ जितनी जैसी गढ़न और उभाड़ चाहिए, बस उतनी ही । न कही मांस का लौदा, न कहीं सूखी काठ । एक सुडौल शरीर पर स्वाभाविक ढंग से रखा एक साधारण सिर । मंगर के शरीर का ख्याल आते ही मुझे प्राकृतिक व्यायाम के हिमायती मिस्टर मूलर की आकृति का स्मरण हो जाता है। सैन्डों के शैदाई उससे कुछ निराश हों तो आश्चर्य नहीं ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- मंगर : एक हलवाहा ।
(ख) मंगर का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – मंगर का स्वभाव रूखा और बेलौस था । वह अपनी बात स्पष्ट रूप से कहता था, चाहे किसी को बुरा लग जाए ।
(ग) लेखक के प्रति मंगर का क्या भाव था ?
उत्तर – लेखक के प्रति मंगर शुरू से ही स्नेह करता था । वह लेखक को कंधे पर बिठाकर ले जाता था ।
(घ) लेखक ननिहाल किस प्रकार जाता था ?
उत्तर – लेखक को ननिहाल मंगर ही पहुँचाता था । लेखक एक घोड़ी पर सवार होता और मंगर के सिर पर सौगात की चीजें तथा किताबें होती थीं । वह सावधानीपूर्वक घोड़ी की लगाम पकड़े रहता था ।
(ङ) बड़े होने पर लेखक में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर – बड़े होने पर लेखक का संबंध घर से टूटता चला गया। वह एक प्रकार से मेहमान ही बन गया था ।
(च) ‘कपड़ों से मंगर को बैर रहा’ स्पष्ट करें।
उत्तर – मंगर कम कपड़े पहना करता था । वह कमर में भगवा लपेटे रहता था। वह कुरता कभी-कभी ही पहनता था ।
(छ) वह अपने को मिली धोतियों का क्या करता था ?
उत्तर – वह अपने को मिली धोतियों को सिर पर मुरैठे की तरह बाँध लेता था ।
(ज) लेखक को मंगर कैसा लगता था ?
उत्तर – लेखक को मंगर बहुत अच्छा लगता था। नंग-धड़ंग, काला कलूटा शरीर भी लेखक की कलाकार दृष्टि को खूबसूरत प्रतीत होता था ।
(झ) मंगर के शारीरिक सौन्दर्य के बारे में क्या बताया गया है ?
उत्तर – मंगर शारीरिक सौन्दर्य के बारे में यह बताया गया है कि काला कलूटा होते हुए भी सुंदर लगता था। उसका शारीरिक सौष्ठव बहुत अच्छा था। कहीं भी माँस सीमा से अधिक न था ।
(ञ) इस वाक्य को सरल वाक्य में लिखें-
मालिक थे हमारे मंझले बाबू, मरे, मेरी तकदीर फूटी ।
उत्तर – सरल वाक्य- हमारे मालिक मंझले बाबू के मरने से मेरी तकदीर फूट गई।
(ट) इस गद्यांश में से उर्दू के दो शब्द छाँटकर लिखें ।
उत्तर – उर्दू शब्द- तकदीर, खूबसूरत ।
(ठ) दो देशज शब्द चुनकर लिखें ।
उत्तर – देशज शब्द – बेलौस, लल्लो-चप्पो । ।
2. हिमालय में कभी-कभी नाटे बने हुए मनुष्यों और जानवरों को देखकर दुःख होता है और उनका सारा विषम जीवन क्रम मेरी नजर के सामने से गुजरता है। लेकिन यह तो उनको देखता हूँ तब तक ही । बाकी समय तो पेड़-पत्तों से और उनके बीच से रास्ता निकालने वाले झरनों से अपनी आत्मीयता जागती है और फिर जीवन का विचार करते वर्षों की गिनती नहीं, बल्कि शताब्दियों से गिनती चलती है। देहरादून के पास गुच्छूपानी और सहस्रधारा देखने गया था, वे प्रसंग किसी तरह भुलाए नहीं जा सकते । हजारों साल का उनका चरित समझने का प्रयत्न करते मुझे मुश्किल नहीं होती और वहाँ के अनेक चिन्दी वाले पत्थरों को हाथ में लेते ही भूगर्भविद्या की मदद से उनकी जन्मकथा के साथ भी मैं समरस होता था। पाँच-सात हजार फुट की ऊँचाई पर मसूरी जाने के बाद लगता है कि यहाँ के जंगलों पर साम्राज्य का उपभोग करने वाले बादल ही मेरे समकक्षी हैं। कभी-कभी एकाध पक्षी को एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक की घाटी लाँघकर जाते हुए देख मुझे भी लगा है कि पक्षी होकर नहीं, लेकिन बादल होकर इन शिखरों के बीच में व्योम-विहार जरूर करें ।
इन चिर हिमशिखरों में और इन पर विहार करने वाले बादलों में मनुष्य को महान् सूचना देने की शक्ति है, इसीलिए उनके दर्शन को तरसता हूँ। ये बादल देखते ही देखते अपना आकार, अपना स्वरूप और अपना गठन भी बदलते रहते हैं। बादल आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, दसों दिशाओं में दौड़ते हैं, फूलते हैं और पिघल जाते हैं । क्षण में सफेद, क्षण में श्याम और क्षण में वर्णविहीन । ये बादल कहते हैं, “परिवर्तन से न अकुलाना हमारा व्रत है परिवर्तन का आनंद लेना और बाद में उससे परे होना ही हमारी जीवन-साधना है।” यह कहते-कहते ये बादल बारिश बन गए और उन्होंने हमें नखशिखांत भिगो दिया ।
वास्तव में हम सब प्रकृति के बालक हैं। शहरी जीवन और कृत्रिम दुनिया में खड़ी करके हम प्रकृति से बिछुड़ गए हैं, अन्यथा पेड़-पौधों के बिना हमसे रहा ही नहीं जाता । शहर में बलिश्त-भर जमीन में कृत्रिम बगीचा बनाकर, दो-चार पौधे उगाकर हम मानते हैं कि प्रकृति के साथ हमने मेल साध लिया है । यह तो सवा रुपये या चार आने ब्राह्मण को देकर गोदान का समाधान मानने जैसा हुआ । कुदरत के बीच जब हम बालक जैसे दिखाई दें, तभी कहा जा सकता है कि हमने कुदरत के सथ संपर्क साधा।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- प्रकृति-सौन्दर्य ।
(ख) लेखक को किस बात को देखकर दुख होता है ?
उत्तर – लेखक को हिमालय में कभी-कभी नाटे मनुष्यों और जानवरों को देखकर दुख होता है। तब उनका विषम जीवन क्रम उसकी नजरों के सामने से गुजरता है।
(ग) लेखक की आत्मीयता किनके साथ जागती है ?
उत्तर – लेखक की आत्मीयता पेड़-पत्तों से तथा उनके बीच से रास्ता निकालने वाले झरनों से जागती है ।
(घ) लेखक को कहाँ का प्रसंग भुलाए नहीं भूलता ?
उत्तर – लेखक को देहरादून के पास गुच्छूपानी और सहस्रधारा देखने के प्रसंग भुलाए नहीं भूलते।
(ङ) लेखक को मसूरी जाने के बाद क्या लगता है ?
उत्तर – लेखक को मसूरी जाने के बाद लगता है कि यहाँ के जंगलों पर साम्राज्य का उपभोग करने वाले बादल ही उसके समकक्षी हैं ।
(च) बादलों की क्या-क्या विशेषताएँ बताई गई हैं ?
उत्तर – बादलों की विशेषताएँ बताते हुए कहा गया है कि ये देखते-देखते अपना आकार, अपना गठन तथा स्वरूप बदल लेते हैं। ये बादल दसों दिशाओं में दौड़ते हैं, फूलते हैं और पिघल जाते हैं। ये पल-पल में अपना रंग बदलते रहते हैं।
(छ) बादल क्या कहते हैं ?
उत्तर – बादल कहते हैं कि परिवर्तन से न अकुलाना हमारा व्रत है। परिवर्तन का आनंद लेना और बाद में उससे परे होना ही हमारी जीवन-साधना है।
(ज) वास्तव में हम सब क्या हैं ?
उत्तर – वास्तव में हम सब प्रकृति के बालक हैं। शहरी वातावरण में उलझकर हम प्रकृति से बिछुड़ गए हैं।
(झ) शहरों में क्या स्थिति है ?
उत्तर – शहरी जीवन में कृत्रिमता है। यहाँ जगह का भारी अभाव है । शहरी लोग थोड़ी-सी ‘ जगह में दो-चार पौधे उगाकर प्रकृति के साथ मेल साधने का दावा कर लेते हैं ।
(ञ) शब्दार्थ लिखें- कृत्रिम, अकुलाना, व्योम-विहार, समकक्षी ।
उत्तर – कृत्रिम – बनावटी,
अकुलाना- बेचैन होना,
व्योम-विहार- आकाश-भ्रमण,
समकक्षी- बराबरी का ।
(ट) विलोम शब्द लिखें- विषम, कृत्रिम
उत्तर – विषम- सम,
कृत्रिम – प्राकृतिक ।
(ठ) दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखे – पहाड़, बादल ।
उत्तर – पहाड़ – पर्वत, भूधर,
बादल – पयोद, जलद ।
3. व्यक्ति का आचरण या चाल-चलन चरित्र कहलाता है। शक्ति का कार्यकारी रूप बल है। आचरण और व्यवहार में शुद्धता रखते हुए दृढ़ता से कर्त्तव्य-पथ पर बढ़ते रहना चरित्र-बल है। व्यक्तित्व की निश्छल-स्वाभाविक प्रस्तुति चरित्र-बल है। यूनानी साहित्यकार प्लूटार्क के शब्दों में ‘चरित्र-बल केवल सुदीर्घकालीन स्वभाव की शक्ति है।’
चरित्र-बल ही मानवीय गुणों की मर्यादा है। स्वभाव और विचारों की दृढ़ता का सूचक है। तप, त्याग और तेज का दर्पण तथा सुखमय सहज जीवन जीने की कला है। आत्म-शक्ति के विकास का अंकुर है। सम्मान और वैभव प्राप्ति की सीढ़ी है। चरित्र-बल अजेय है, भगवान् को परम प्रिय है और है संकट का सहारा। उसके सामने ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ तक तुच्छ हैं। वह ज्ञान, भक्ति और वैराग्य से परे है। विद्वत्ता उसके मुकाबले कम मूल्यवान् है। चरित्रवान् की महत्ता व्यक्त करते हुए शेक्सपियर लिखते हैं, ‘उसके शब्द इकरारनामा हैं। उसकी शपथें आप्तवचन हैं। उसका प्रेम निष्ठापूर्ण है। उसके विचार निष्कलंक हैं। उसका हृदय छल से दूर है, जैसे स्वर्ग पृथ्वी से।’
चरित्र – बल जन्मजात नहीं होता, यह तो मानव की स्वयं की निर्मित है। सैमुअल स्माइल्स की धारणा है कि ‘आत्म-त्याग, प्रेम तथा कर्त्तव्य से प्रेरित किए गए बड़े-बड़े कार्यों से ही चरित्र-बल का निर्माण होता है।’ स्वामी शिवानन्द का मत है, विचार वे ईंटें हैं, जिनसे चरित्र -बल का निर्माण संसार के भीषण कोलाहल में होता है।’
चरित्र में जब मानवीय गुणों- प्रेम, दया, उपकार, सेवा, विनय, कर्त्तव्य और शील के अंकुर उत्पन्न होते हैं तो चरित्र – बल की नींव पड़ती है। ज्ञान जब आचरण में व्यक्त होता हुआ स्थायित्व ग्रहण करता है तो चरित्र – बल का निर्माण होता है। जीवन की आकस्मिक और अवांछित घटनाएँ मानव-हृदय को जब आन्दोलित करती हैं तो उनके प्रतिशोध, प्रतिरोध में जो संकल्प-तत्त्व स्वतः स्फुरित होता है, उससे चरित्र-बल का निर्माण होता है ।
सचाई तो यह कि अन्य गुणों का विकास एकान्त में भली-भाँति संभव है, पर चरित्र-बल के उज्ज्वल विकास के लिए सामाजिक जीवन-चाहिए। सामाजिक जीवन ही उनके धैर्य, क्षमा, यम-नियम, अस्तेय, पवित्रता, सत्य एवं इन्द्रिय-निग्रह की परीक्षा भूमि है। कठिनाइयों को जीतने, वासनाओं का दमन करने और दुःखों को सहन करने से चरित्र-बल शक्ति सम्पन्न होगा। उस शक्ति से दीप्त हो चरित्र-बल अपने व्यक्तित्व का रूप उज्ज्वल प्रस्तुत करेगा।
चरित्र – बल के उज्ज्वल पक्ष को प्रस्तुत करने के लिए ‘दिनकर’ जी कहते हैं, ‘नर का गुण उज्ज्वल चरित्र है, नहीं वंश, धन धाम । ‘वसुदेव ने नहीं, उनके पुत्र वासुदेव कृष्ण ने चरित्र – बल पर महाभारत के युद्ध में पाँडवों को विजयश्री प्राप्त कराई। राजा शुद्धोदन ने नहीं, उनके पुत्र गौतम ने बुद्ध बनकर अपने चरित्र – बल से संसार को झुकाया। माता-पिता से परित्यक्त, पत्नी से प्रताड़ित धनहीन गोस्वामी तुलसीदास स्वनिर्मित चरित्र-बल से श्रीराम का सानिध्य प्राप्त कर हिन्दू धर्म के पथ-प्रदर्शक बने। डॉ० केशवराव बलिराम हेडगेवर वंश-धन और धाम से ऊपर उठकर स्वनिर्मित चरित्र बल पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे विशाल हिन्दू-संघटन का निर्माण कर सके । महर्षि दयानन्द चरित्र – बल से ही भारत में पुनः वैदिक धर्म की पताका फहरा सके।
जीवन में आई आपदाओं- विपदाओं, कष्ट-क्लेशों, रोग-शोक को सरलता, सुगमता और बिना मनोबल गिराये विजय प्राप्ति का महान् गुर है चरित्र-बल। गर्भवती भगवती सीता ने चरित्र – बल पर ही अपना विपत्काल सहर्ष काटा। छत्रपति शिवाजी ने औरंगजेब की जेल में रुदन नहीं किया। दो आजीवन कारावासी स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अंडमान की जेल में काव्य-सृजन कर चरित्र बल की तेजस्विता से कष्ट-क्लेश को पछाड़ा।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- चरित्र – बल ।
(ख) ‘चरित्र’ और ‘चरित्र – बल’ से क्या तात्पर्य है
उत्तर – व्यक्ति का आचरण या चाल-चलन चरित्र कहलाता है तथा आचरण और व्यवहार में शुद्धता रखते हुए दृढ़ता से कर्त्तव्य पथ पर बढ़ते रहना चरित्र-बल है।
(ग) चरित्र का विकास कहाँ होता है ?
उत्तर – चरित्र-बल के विकास के लिए सामाजिक जीवन में चरित्र के गुणों सत्य, धैर्य और क्षमा की परीक्षा होती है ।
(घ) बालक का चरित्र निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर – ज्ञान जब आचरण में व्यक्त होता हुआ स्थायित्व ग्रहण करता है तो चरित्र – बल का निर्माण होता है।
(ङ) चरित्र-बल शक्ति सम्पन्न कैसे होता है ?
उत्तर – कठिनाइयों को जीतने, वासनाओं का दमन करने और दुखों को सहन करने से चरित्र – बल शक्ति सम्पन्न होगा।
(च) चरित्र – बल की नींव कैसे पड़ती है ?
उत्तर – चरित्र में जब मानवीय गुणों-प्रेम, दया, उपकार, सेवा, विनय के अंकुर उत्पन्न होते हैं तो चरित्र – बल की नींव पड़ती है।
(छ) सैमुअल स्माइल्स की चरित्र – बल के संबंध में क्या विचार थे ?
उत्तर – सैमुअल स्माइल्स की धारणा के अनुसार आत्म-त्याग, प्रेम तथा कर्त्तव्य से प्रेरित किए गए बड़े-बड़े कार्यों से चरित्र – बल का निर्माण होता है ।
(ज) स्वामी शिवानन्द के अनुसार चरित्र का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर – स्वामी शिवानन्द की धारणा है कि चरित्र बल का निर्माण उन विचारों से होता है जो संसार के भीषण कोलाहल में उत्पन्न होते हैं।
(झ) चरित्र – बल के बारे में लेखक के क्या विचार हैं ?
उत्तर – लेखक के अनुसार चरित्र – बल अजेय है। भगवान् को परम प्रिय है इसके सामने संसार की सभी वस्तुएँ तुच्छ हैं।
(ञ) तुलसीदास कैसे हिन्दुओं के पथ प्रदर्शक बनें ?
उत्तर – तुलसीदास जी स्वनिर्मित चरित्र-बल से श्रीराम का सानिध्य प्राप्त करके हिन्दुओं के पथ प्रदर्शक बने ।
(ट) दिनकर जी ने चरित्र – बल के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर – दिनकर जी कहते है कि नर का गुण उज्ज्वल चरित्र है, वंश, धन, धाम नहीं।
(ठ) इतिहास में अनेक महापुरुषों ने किस प्रकार महानता प्राप्त की ?
उत्तर – इतिहास में अनेक महापुरुषों जैसे शिवाजी, औरंगजेब और वीर सावरकर ने अपने चरित्र – बल के आधार पर महानता हासिल की।
4. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आंतरिक तत्त्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकास मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत निकृष्ट आचरण है। भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परन्तु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
हुआ यह है कि इस देश के कोटि-कोटि दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए ऐसे अनेक कायदे-कानून बताए गए हैं जो कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारु बनाने के लक्ष्य से प्रेरित हैं, परन्तु जिन लोगों को इन कार्यों में लगना है, उनका मन सब समय पवित्र नहीं होता। प्रायः ही वे लक्ष्य को भूल जाते हैं, और अपनी ही सुख-सुविधा की ओर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं।
व्यक्ति, चित्त सब समय आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता। जितने बड़े पैमाने पर इन क्षेत्रों में मनुष्य की उन्नति के विधान बनाए गए, उतनी ही मात्रा में लोभ, मोह जैसे विकार भी विस्तृत होते गए । लक्ष्य की बात भूल गए। आदर्शों को मजाक का विषय बनाया गया और संयम को दकियानूसी मान लिया गया । परिणाम जो होना था, वह हो रहा है। यह कुछ थोड़े से लागों के बढ़ते हुए क्षोभ का नतीजा है, परन्तु इससे भारतवर्ष के पुराने आदर्श और भी अधिक स्पष्ट रूप से महान् और उपयोगी दिखाई देने लगे हैं ।
भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अन्तर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है। यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरु हैं, वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते ।
यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी
परन्तु ऊपर-ऊपर जो कुछ दिखाई दे रहा है, वह बहुत ही हाल की मनुष्य निर्मित नीतियों की त्रुटियों की देन है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- जीवन-मूल्यों में आ रहा परिवर्तन ।
(ख) भारतवर्ष में किसको अधिक महत्त्व दिया गया है ?
उत्तर – भारतवर्ष में भौतिक वस्तुओं के संग्रह के स्थान पर भीतर के आंतरिक तत्त्व को अधिक महत्त्व दिया गया है। उसी को पाना मनुष्य का लक्ष्य है।
(ग) किसे निकृष्ट आचरण कहा गया है ?
उत्तर – लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकारों को प्रधानशक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उनके इशारे पर छोड़ देना बहुत ही निकृष्ट आचरण है।
(घ) भारतवर्ष ने विकारों के बारे में क्या प्रयत्न किया है ?
उत्तर – भारतवर्ष ने इन विकारों को कभी भी उचित नहीं माना तथा उन्हें सदा संयम से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है
(ङ) कायदे-कानूनों का सही पालन क्यों नहीं हो पाता ?
उत्तर – कायदे-कानून बनाए तो मनुष्य की भलाई के लिए गए थे, पर उनका सही पालन इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि इस कार्य में लगे लोगों का मन पवित्र नहीं होता। वे अपने लक्ष्य को भूल जाते हैं ।
(च) व्यक्ति के चित्त के बारे में क्या कहा गया है ?
उत्तर – व्यक्ति के चित्त के बारे में यह कहा गया है कि वह हर समय आदर्शों द्वारा चालित नहीं होता। लोगों ने आदर्शों को मजाक का विषय बना लिया है।
(छ) लोग किस बात को भूल गए ?
उत्तर – लोग अपने लक्ष्य को भूल गए हैं। वे लोभ-मोह जैसे विकारों से ग्रस्त हो गए हैं।
(ज) धर्म और कानून में क्या अन्तर है ?
उत्तर – धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जबकि कानून को दिया जा सकता है। धर्मभीरु लोग कानून की त्रुटियों का लाभ उठाने से नहीं चूकते।
(झ) इन दिनों कैसा माहौल बना है ?
उत्तर – इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी और मेहनत को मूर्खता समझा जाने लगा है। मेहनत करने वाले पिस रहे हैं।
(ञ) ईमानदारी और सच्चाई बारे में क्या धारणा बनी है ?
उत्तर – ईमानदारी और सच्चाई के बारे में यह धारणा बनी है कि ये तो केवल डरपोक और विवश लोगों के लिए हैं ।
(ट) विलोम शब्द लिखें- उन्नत, निकृष्ट ।
उत्तर – उन्नत- अवनत,
निकृष्ट- उत्कृष्ट ।
(ठ) इन शब्दों के अर्थ लिखें- भीरु, संकोच ।
उत्तर – भीरु- डरपोक, कायर,
संकोच – झिझक ।
5. साहित्य समाज का दर्पण होता तो संसार को बदलने की बात न उठती । कवि का काम यथार्थ जीवन को प्रतिबिंबित करना ही होता तो वह प्रजापति का दर्जा न पाता। वास्तव में प्रजापति ने जो समाज बनाया है, उससे असंतुष्ट होकर नया समाज बनाना कवि का जन्मसिद्ध अधिकार है। यूनानी विद्वानों के बारे में कहा जाता है कि वे कला को जीवन की नकल समझते थे और अफलातून ने असार संसार को असल की नकल बताकर कला को नकल की नकल कहा था । लेकिन अरस्तू ने ट्रेजडी के लिए जब कहा था कि उसमें मनुष्य जैसे है उससे बढ़कर दिखाए जाते हैं, तब नकल नवीस कला का खंडन हो गया था । और जब वाल्मीकि ने अपने चरित्र – नायक के गुण गिनाकर नारद से पूछा कि ऐसा मनुष्य कौन है ? तब नारद ने पहले यही कहा – “बहवो दुर्लभाश्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणाः”। दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में दिखाकर आदि कवि ने समाज को दर्पण में प्रतिबिंबित न किया था वरन् प्रजापति की तरह नई सृष्टि की थी ।
कवि की यह सृष्टि निराधार नहीं होती। हम उसमें अपनी ज्यों-की-त्यों आकृति भले ही न देखें, पर ऐसी आकृति जरूर देखते हैं जैसी हमें प्रिय है, जैसी आकृति हम बनाना चाहते हैं। जिन रेखाओं और रंगों से कवि चित्र बनाता है, वे उसके चारों ओर यथार्थ जीवन में बिखरे होते हैं और चमकीले रंग और सुघर रूप ही नहीं, चित्र के पार्श्वभाग में काली छायाएँ भी वह यथार्थ जीवन से ही लेता है। राम के साथ वह रावण का चित्र न खीचें तो गुणवान, वीर्यवान, कृतज्ञ, सत्यवाक्य, दृढ़व्रत, चरित्रवान, दयावान, विद्यवान, समर्थ और प्रियदर्शन नायक का चरित्र फीका हो जाए और वास्तव में उसके गुणों के प्रकाशित होने का अवसर ही न आए ।
कवि अपनी रुचि के अनुसार जब विश्व को परिवर्तित करता है तो वह भी बताता है कि विश्व से उसे असंतोष क्यों है, वह यह भी बताता है कि विश्व में उसे क्या रुचता है जिसे वह फलता-फूलता देखना चाहता है। उसके चित्र के चमकीले रंग और पार्श्व-भूमि की गहरी काली रेखाएँ- दोनों ही यथार्थवादी जिसके पाँव वर्तमान की धरती पर हैं और आँखें भविष्य के क्षितिज पर लगी हुई हैं।
इसलिए मनुष्य साहित्य में अपने सुख-दुःख की बात ही नहीं सुनता, वह उसमें आशा का स्वर भी सुनता है। साहित्य थके हुए मनुष्य के लिए विश्रांति ही नहीं है, वह उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित भी करता है।
यदि समाज में मानव-संबंध भी वही होते जो कवि चाहता है, तो शायद उसे प्रजापति बनने की जरूरत न पड़ती। उसके असंतोष की जड़ ये मानव-संबंध ही हैं। मानव-संबंध से परे साहित्य नहीं है। कवि जब विधाता पर साहित्य रचता है, तब उसे भी मानव-संबंध की परिधि में खींच लाता है। इन मानव-संबंध की दीवार से ही हैमलेट की कवि सुलभ सहानुभुति टकराती है और शैक्सपियर एक महान ट्रैजडी की सृष्टि करता है। ऐसे समय जब समाज के बहुसंख्यक लोगों का जीवन इन मानव संबंध के पिंजड़े में पंख फड़फड़ाने लगे, सींकचे तोड़कर बाहर उड़ने के लिए आतुर हो उठे, उस समय कवि का प्रजापति रूप और भी स्पष्ट हो उठता है। वह समाज के द्रष्टा और नियामक के मानव-विहग से क्षुब्ध और रुद्धस्वर को वाणी देता है । वह मुक्त-गगन के गीत गाकर उस विहग के परों में नई शक्ति भर देता है। साहित्य जीवन का प्रतिबिम्ब रहकर उसे समेटने से संगठित करने और उसे परिवर्तित करने का अजेय अस्त्र बन जाता है । साहित्य ने यही भूमिका पूरी की थी।
पंद्रहवीं – सोलहवीं सदी में हिन्दी पिंजड़े में बंद मानव-जीवन की मुक्ति के लिए उसने वर्ण और धर्म के सींकचों पर प्रहार किए थे। कश्मीरी ललदेद, पंजाबी नानक, हिंदी सूर-तुलसी-मीरा- कबीर, बंगाली चंडीदास, तमिल तिरुवल्लुवर आदि-आदि गायकों ने आगे-पीछे समूचे भारत उस जीर्ण मानव-संबंध के पिंजड़े को झकझोर दिया था। इन गायकों की वाणी ने पीड़ित जनता के मर्म को स्पर्श कर उसे नए जीवन के लिए बटोरा, उसे आशा दी, उसे संगठित किया और जहाँ-तहाँ जीवन को बदलने के लिए संघर्ष के लिए आमंत्रित भी किया ।
सत्रहवीं और बीसवीं सदी में बंगाली रवींद्रनाथ, हिन्दी भारतेंदु, तेलगु वीरेशलिंगम्, तमिल भारती, मलयाली वल्लतोल आदि-आदि ने अंग्रेजी राज और सामंती अवशेषों के पिजड़े पर फिर प्रहार किया। एक बार फिर उन्होंने भारत की दुःखी पराधीन जनता को बटोरा, उसे संगठित किया, उसकी मनोवृत्ति बदली, उसे सुखी स्वाधीन जीवन की तरफ बढ़ने के लिए उत्साहित किया ।
साहित्य का पाञ्चजन्य समर-भूमि में उदासीनता का राग नहीं सुनाता । वह मनुष्य को भाग्य के आसरे बैठने और पिंजड़े में पंख फड़फड़ाने की प्रेरणा नहीं देता। इस तरह की प्रेरणा देने वालों के वह पंख कतर देता है। वह कायरों और पराभव प्रेमियों को ललकारता हुआ एक बार उन्हें भी समर भूमि में उतरने के लिए बुलावा देता है । भरत मुनि से लेकर भारतेंदु तक चली आती हुई हमारे साहित्य की यह गौरवशाली परंपरा है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- कवि- समाज निर्माता ।
(ख) नारद के अनुसार, वाल्मीकि ने कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य किया था ?
उत्तर – नारद के अनुसार, वाल्मीकि ने दुर्लभ गुणों को एक ही पात्र में इकट्ठा दिखाकर विधाता की भाँति एक नए चरित्र की सृष्टि की।
(ग) कवि को प्रजापति बनने की जरूरत क्यों पड़ती है ?
उत्तर – कवि मानव-संबंध में कमी देखकर उसे अपनी कल्पना और रचना शक्ति से ठीक करना चाहता है। इसलिए उसे प्रजापति बनने की आवश्यकता पड़ती है।
(घ) प्राचीन संत कवियों ने कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य किया ?
उत्तर – प्राचीन संत कवियों ने मानव-संबंध में आई जड़ता को तोड़ा तथा पीड़ित जनता को संघर्ष के लिए प्रेरित किया ।
(ङ) कवि अपनी कविता द्वारा क्या करना चाहता है ?
उत्तर – कवि अपनी कविता द्वारा नया और सुंदर समाज बनाना चाहता है।
(च) राम के साथ रावण का चरित्र दिखाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर – सद्गुणों को और अधिक प्रकाशित करके दिखाने के लिए राम के साथ रावण का चरित्र दिखाना भी आवश्यक है।
(छ) रवींद्रनाथ, भारतेंदु आदि कवियों ने किस पर चोट की ?
उत्तर – रविंद्रनाथ, भारतेंदु आदि कवियों ने अंग्रेजी राज और सामंती प्रथा पर चोट की ।
(ज) बीसवीं सदी के साहित्यकारों ने समाज को किसलिए उत्साहित किया ?
उत्तर – बीसवीं सदी के साहित्यकारों ने समाज को स्वाधीनता के लिए उत्साहित किया ।
(झ) साहित्य समाज का दर्पण है’ -आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – इसका आशय है – साहित्य में समाज का सच्चा रूप झलकता है।
(ञ) ‘बहुसंख्यक समाज’ से क्या आशय है?
उत्तर – ‘बहुसंख्यक समाज’ का आशय है- ऐसा समाज जिसकी संख्या समाज के अन्य समुदायों से अधिक होती है।
(ट) ‘पंख कतरना का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – किसी उत्साही के उत्साह को नष्ट कर देना ।
(उ) प्रजापति के दो पर्यायवाची लिखें ।
उत्तर – विधाता, रचयिता ।
6. तुम्हें क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर तुम्हीं को देना होगा, दूसरा कोई नहीं दे सकता। कैसा भी विश्वास पात्र मित्र हो, तुम्हारे इस काम को वह अपने ऊपर नहीं ले सकता। हम अनुभवी लोगों की बातों को आदर के साथ सुनें, बुद्धिमानों की सलाह को कृतज्ञतापूर्वक मानें, पर इस बात को निश्चित समझकर कि हमारे कामों से ही हमारी रक्षा व हमारा पतन होगा, हमें अपने विचार और निर्णय की स्वतंत्रता को दृढतापूर्वक बनाए रखना चाहिए। जिस पुरुष की दृष्टि सदा नीची रहती है, उसका सिर कभी ऊपर न होगा। नीची दृष्टि रखने से यद्यपि रास्ते पर रहेंगे, पर इस बात को न देखेंगे कि यह रास्ता कहाँ ले जाता है। चित्त की स्वतंत्रता का मतलब चेष्टा की कठोरता या प्रकृति की उग्रता नहीं है। अपने व्यवहार में कोमल रहो और अपने उद्देश्यों को उच्च रखो, इस प्रकार नम्र और उच्चाशय दोनों बनो। अपने मन को कभी मरा हुआ न रखो। जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ही ऊपर रखता है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।
संसार में ऐसे-ऐसे दृढ़ चित्त मनुष्य हो गए हैं जिन्होंने मरते दम तक सत्य की टेक नहीं छोड़ी, अपनी आत्मा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया। राजा हरिश्चंद्र के ऊपर इतनी-इतनी विपत्तियाँ आईं, पर उन्होंने अपना सत्य नहीं छोड़ा। उनकी प्रतिज्ञा यही रही –
“चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार ।
पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र कौ, टरै न सत्य विचार ।। “
महाराणा प्रतापसिंह जंगल-जंगल मारे-मारे फिरते थे, अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखते थे, परन्तु उन्होंने उन लोगों की बात न मानी जिन्होंने उन्हें अधीनतापूर्वक जीते रहने की सम्मति दी, क्योंकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिंता जितनी अपने को हो सकती है उतनी दूसरे को नहीं। एक इतिहासकार कहता है— “प्रत्येक मनुष्य का भाग्य उसके हाथ में है। प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन- निर्वाह श्रेष्ठ रीति से कर सकता है। यही मैंने किया है और यदि अवसर मिले तो यही करूँ । इसे चाहे स्वतंत्रता कहो, चाहे आत्म-निर्भरता कहो, चाहे स्वावलंबन कहो, जो कुछ कहो, यह वही भाव है जिससे मनुष्य और दास में भेद जान पड़ता है, यह वही भाव जिसकी प्रेरणा से राम-लक्ष्मण ने घर से निकल बड़े-बड़े पराक्रमी वीरों पर विजय प्राप्त की, यह वही भाव है जिसकी प्रेरणा से हनुमान ने अकेले सीता की खोज की, यह वही भाव जिसकी प्रेरणा से कोलंबस ने अमरीका समान बड़ा महाद्वीप ढूँढ़ निकाला । चित्त की इसी वृत्ति के बल पर कुंभनदास ने अकबर के बुलाने पर फतेहपुर सीकरी जाने से इनकार किया और कहा था
“मोको कहा सीकरी सों काम । “
इस चित्त-वृत्ति के बल पर मनुष्य इसलिए परिश्रम के साथ दिन काटता है और दरिद्रता के दुख को झेलता है। इसी चित्त-वृत्ति के प्रभाव से हम प्रलोभनों का निवारण करके उन्हें सदा पद-दलित करते हैं, कुमंत्रणाओं का तिरस्कार करते हैं और शुद्ध चरित्र के लोगों से प्रेम और उनकी रक्षा करते हैं ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- आत्मनिर्भरता की महिमा |
(ख) नीची दृष्टि रखने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर – नीची दृष्टि का लाभ यह है कि इससे मनुष्य सदा सही रास्ते पर चलता रहता है
(ग) कोलंबस और हनुमान ने किस गुण के बल पर महान कार्य किए ?
उत्तर – आत्मनिर्भरता के बल पर । ?
(घ) मनुष्य किस आधार पर प्रलोभनों को पद-दलित कर पाते हैं
उत्तर – आत्मनिर्भरता के आधार पर ।
(ङ) मन को मरा हुआ रखने का क्या आशय है ?
उत्तर – मन का उत्साहहीन, निराश, उदास और पराजित बनाए रखना ।
(च) किसका तीर ऊपर जाता है और क्यों ?
उत्तर – जिसका लक्ष्य जितना ऊँचा होता है, उसका तीर उतना ही ऊपर जाता है। लक्ष्य ऊँचा रखने से ऊपर-ही- ऊपर बढ़ने के अवसर प्राप्त होते हैं ।
(छ) लेखक नीची दृष्टि न रखने की सलाह क्यों देता है ?
उत्तर – नीची दृष्टि रखने से मनुष्य न तो उन्नति कर पाता है और न ही उच्च दिशा की ओर पाँव रख पाता है।
(ज) ‘टेक’ के लिए किस पर्यायवाची शब्द का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर – प्रतिज्ञा।
(झ) ‘विश्वासपात्र’ तथा ‘पतन’ के विलोम शब्द लिखें ।
उत्तर – विश्वासपात्र – विश्वासघाती, पतन- उत्थान ।
(ञ) ‘सिर ऊपर होने का किसी वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर – अच्छे चरित्र के लोगों का सिर सदा ऊपर रहता है।
(ट) ‘सम्मति’ में कौन-सा उपसर्ग है ?
उत्तर – सम् ।
(ठ) ‘आत्म-निर्भरता’ का पर्यायवाची शब्द खोजें।
उत्तर – स्वावलंबन, स्वतंत्रता ।
7. मानव के लिए विचार अथवा अनुभव में जो कुछ भी श्रेष्ठ है, उदात्त है, वह इसका अथवा उसका नहीं है, जातिगत अथवा वंशगत नहीं है, वह सबका है, सारे विश्व का है। समस्त ज्ञान, विज्ञान और सभ्यता सारी मानवता की विरासत है। भले ही एक विचार का जन्म किसी अन्य देश में भिन्न भाषा-भाषी लोगों के द्वारा हुआ हो, वह हमारा भी है, सबका है। पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के भेद अक्षांश और देशांतर का भेद तथा जलवायु और भौगोलिक सीमा के भेद सर्वथा निराधार हैं। संप्रदाय, समुदाय और जाति के नाम पर आदर्शों, मूल्यों की प्रस्थापना करना संकीर्णता के वातावरण में मानवता का दम घोंटना-सा है। जो कुछ भी उपलब्धि है, वह चाहे जिस भू-भाग की उपज हो, मानव की है, सभी की है। महापुरुष विरोधी नहीं होते हैं, एक-दूसरे के पूरक होते हैं। महापुरुषों में अपने देश की विशेषताएँ होती हैं। विवेकशील मनुष्य नम्रतापूर्वक महापुरुषों से शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को प्रकाशित करने का प्रयत्न करता है। समस्त मानवता उसके प्रति कृतज्ञ है। किन्तु अब हमें उनसे आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि ज्ञान की इतिश्री नहीं होती है तथा किसी का शब्द अंतिम नहीं होता है। संसार एक खुली पाठशाला है, जीवन एक खुली पुस्तक है। सदैव सीखते रहना चाहिए तथा सीखना ही आगे बढ़ने के लिए नए रास्ते खोलता है। विकास की क्रिया के मूल में मानव की पूर्ण बनने की अपनी प्रेरणा है। विकास के लिए समन्वय का भाव होना परम आवश्यक होता है। यदि हम विभिन्न विचारधाराओं एवं उनके जन्मदाता महापुरुषों का पूर्ण खंडन अथवा पूर्ण मंडन करें तो विकास पथ अवरुद्ध हो जाएगा। अतएव समन्वयं की भावना से युक्त होकर सब ओर से सार वस्तुओं को ग्रहण करते हुए हम उनका लाभ उठा सकते हैं। किसी धर्म विशेष या मान्यता के खूँटे के साथ संकीर्ण भाव से बँधकर तथा परम्पराओं और रूढ़ियों से जकड़े हुए हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं ।
मानव को मानव रूप में सम्मानित करके ही हम जातीयता, प्रांतीयता, क्षुद्र राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता के भेद को तोड़ सकते हैं। आज मानव, मानव से दूर हटता जा रहा है। वह भूल चुका है कि देश, धर्म और जाति के भिन्न होते हुए भी हम सर्वप्रथम मानव हैं और समान हैं तथा सभी की भावनाएँ और लक्ष्य एक ही हैं। आज धर्म, सत्ता, धन आदि का भेद होने से एक मानव दूसरे मानव को मानव ही नहीं मानता है। कभी-कभी स्वधर्मी विधर्मी को, स्वदेशी-विदेशी को, अफसर चपरासी को, धनी निर्धन को तथा विद्वान निरक्षर को इंसान ही नहीं समझता है और भूल जाता है कि दूसरे को भी समान रूप से इच्छानुसार भूख और प्यास सताते हैं तथा उसे भी प्रेम और आदर चाहिए। वह भूल जाता है कि दूसरे में भी स्वाभिमान का पुट है, उसे भी विश्राम की आवश्यकता है और उसे भी अपने बच्चे प्रिय हैं अथवा वह भी अपनी संतान के लिए कुछ करना चाहता है। सत्ताधारी मनुष्य दूसरों को कुचलकर सुख-सुविधाओं पर एकाधिकार कर लेना चाहता है। लेकिन एक आकाश के नीचे रहने वाले इंसान तो सब एक हैं, भले ही कोई कुदाल लेकर श्रमिक का कार्य करता हो, कोई कलम लेकर दफ्तर का, किन्तु लक्ष्य एक है- समाज का अभ्युदय । कार्य भेद होते हुए भी सब इंसानी बिरादरी के एक से हकदार हैं। सब भाई-भाई ही तो हैं, सब अपने-अपने स्थान पर विशेष हैं। मानव का नाता ही श्रेष्ठ नाता है। नौकर कहकर पुकारना मानो मानव का अपमान है। “सहयोगी” “सहायक” अथवा सस्नेह उसके नाम से संबोधित करना मधुर । अपराधी को जेल में डालने और फाँसी का विधान मानवता का कलंक है। दंड पशु के लिए है, मानव के लिए नहीं एक सीमा तक दंड भी आवश्यक होता है लेकिन दंड का आतंक समाज को पंगु बना देता है। हमें अपराध वृत्ति का शमन करके अपराधी को शिष्ट एवं सभ्य मानव बनाना चाहिए। किन्तु वह आदर्श स्थिति है और धीरे-धीरे ही इसकी उपलब्धि सम्भव है। दया मानवता का सार है दया छोड़कर सत्य भी सत्य नहीं है । दया प्रेरित असत्य भी व्यावहारिक सत्य है । दया धर्म मानव धर्म है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- मानव धर्म ।
(ख) सत्ताधारी से क्या आशय है ? वह क्या चाहता है ?
उत्तर – शासन की बागडोर सँभालने वाले को सत्ताधारी कहते हैं । वह दूसरों को कुचलकर सुख-सुविधा पाना चाहता है।
(ग) लेखक ‘नौकर’ नाम से पुकारने को अपमान क्यों मानता है ?
उत्तर – लेखक के अनुसार किसी को नौकर बनाकर रखना दूसरे को छोटा बनाना है। अतः यह उसका अपमान है।
(घ) विकास के लिए किस गुण का होना आवश्यक है ?
उत्तर – विकास के लिए समन्वय अर्थात तालमेल का होना आवश्यक है।
(ङ) ‘समन्वय’ से क्या आशय है ?
उत्तर – तालमेल; भिन्नता रखने वालों में मेल बैठाना ।
(च) विरासत का क्या अर्थ है ? इसका पर्यायवाची शब्द लिखें।
उत्तर – माता-पिता या परम्परा से मिली सम्पत्ति या संस्कारों को विरासत कहते हैं। इसका पर्यायवाची है – उत्तराधिकार
(छ) संसार को खुली पाठशाला कहकर लेखक क्या प्रेरणा देना चाहता है ?
उत्तर – संसार को खुली पाठशाला कहकर लेखक जीवन भर नया कुछ सीखने की प्रेरणा देना चाहता है।
(ज) मनुष्य किस प्रेरणा से विकास करता है ?
उत्तर – मनुष्य स्वयं को पूर्ण बनाने की प्रेरणा से विकास करता है ।
(झ) ‘महापुरुष विरोधी नहीं, एक-दूसरे के पूरक होते हैं – आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – महापुरुष एक-दूसरे का विरोध नहीं करते। वे एक-दूसरे की कमियों को पूरा करने की चेष्टा करते हैं ।
(ञ) ‘निरक्षर’ में कौन-सा समास है ?
उत्तर – जिसे अक्षर का ज्ञान नहीं; नञ् तत्पुरुष ।
(ट) ‘नौकर’ के दो पर्यायवाची शब्द लिखें।
उत्तर – भृत्य, दार
(ठ) ‘भू-भाग’ का विग्रह करके समास का नाम लिखें ।
उत्तर – भू का भाग; तत्पुरुष समास ।
8. कश्मीर का नाम प्रत्येक भारतीय को लुभाता है। किसी ने यहाँ तक कहा है कि पृथ्वी पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं है। हिन्दी कवियों को हिमालय एवं कश्मीर मोहते रहते हैं। श्रीधर पाठक की कविता ‘कश्मीर सुषमा इसका अच्छा प्रमाण है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ कश्मीर के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालती है। कहा जाता है कि आज जहाँ घाटी है, वहाँ पहले सतीसर झील थी, जो कि पर्वतों की बर्फ के पिघलने से बनी थी। महाभारत काल से ही कश्मीर-शासकों की गाथा मिलती है। आगे प्राम इतिहास के युग में सम्राट अशोक ने कश्मीर में अनेक बौद्ध विहार एवं स्तूप बनवाए थे । इतिहास की लंबी परंपरा में सम्राट ललिता-दित्य का नाम विशेष उज्ज्वल रहा, जिसका साम्राज्य बहुत ही समृद्धिशाली था । वे स्वयं साहित्यकार और कलाप्रेमी थे ।
जम्मू (जम्मू तवी) के पर्वतीय नगर से कश्मीर की बस में बैठते समय मन जोशीला था। प्रभाती पवन में चुभन भरी शीतलता थी। सोचा कि पाँच-छह घंटे की यात्रा होगी। मगर बारह घंटे की यात्रा की बात सुनकर पहले कुछ घबराया । जब सुना कि एक ही चालक पूरे बारह घंटे चलाएगा, तब तो और भी सकपकाया । एक तरफ ऊँचे पहाड़ों के भारी पत्थरों के लुढ़ककर गिरने की संभावना, दूसरी तरफ जरा-सा फिसलने पर पाताल में बहती झेलम की तीव्र धारा में गिर जाने का भय । चढ़ाई और उतराई, उतराई और चढ़ाई का बारी-बारी से अनुभव करते और जहाँ-तहाँ थोड़ा-सा विश्राम, नाश्ता करते हुए हम शाम को साढ़े चार बजे बनिहाल रेस्ट हाउस के सामने पहुँचे। स्थानीय भूगोल की जानकारी के अभाव में कैसे पता लगता कि हम कितनी ऊँचाई पर हैं ? यहाँ जलपान और विश्राम में पहले से अधिक समय लगा, तो कुछ देर चहलकदमी करता रहा। बगल की दुकान पर मंगलोर की बनी बीड़ियों का बंडल देखकर कौतूहल हुआ। छोटी-छोटी जरूरी चीजें सारे देश को कैसे एकतामय कर देती हैं। खोजने पर केरल का बना साबुन भी शायद मिल जाता।
जब हम डल झील पहुँचे तब साँझ हो गई थी। अतएव सैर करने वालों की भीड़ छँट चुकी थी । इक्के-दुक्के शिकारे तालगति पर चप्पू मारते भिन्न-भिन्न दिशाओं में भटक रहे थे। एक शिकारे का मल्लाह हमें घुमाने को तैयार हो गया। सिर पर कश्मीरी टोपी, दुबला-पतला तन, छोटी-पतली दाढ़ी, साधारण कपड़े। वह डांड मारने लगा और चंद मिनट ही बीतें होंगे कि साथियों को आवाज दे-देकर कुछ बताने लगा।
नये शिकारे का मल्लाह युसूफ किशोर था। उसके हाथ बड़ी फुर्ती से चप्पू चला रहे थे, मेरे साथी भी साथ दे रहे थे। मौज में मल्लाह के गले से सुरीली आवाज आने लगी । शास्त्रीय संगीत थोड़े ही था । ठेठ कश्मीरी लोकगीत और ठेठ देहाती कंठ। दो-चार पंक्तियाँ ही थीं उन्हीं को बार-बार दुहरा रहा था। कश्मीर की मिट्टी में ही प्यार-मुहब्बत की महक है। वहाँ की प्रकृति ने जिस प्रकार मिठास और मोहक रंग सेब और केसर में भर दिए हैं, उसी प्रकार की मिठास और रंग यहाँ के किशोर और किशोरियों को भी दिल खोलकर प्रदान किए हैं।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- कश्मीर धरती का स्वर्ग ।
(ख) कश्मीर के बारे में क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर – कश्मीर के बारे में यह जानकारी मिलती है कि आज जहाँ घाटी है, वहाँ पहले सतीसर झील थी, जो पर्वतों की बर्फ पिघलने से बनी थी। महाभारत काल से ही कश्मीर के शासकों की गाथा मिलती है। सम्राट अशोक ने भी कश्मीर में अनेक बौद्ध विहार और स्तूप बनवाए ।
(ग) सम्राट ललितादित्य का नाम क्यों उल्लेखनीय है ?
उत्तर – सम्राट ललितादित्य का नाम इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उनका साम्राज्य बहुत ही समृद्धिशाली था । वे साहित्यकार और कला – प्रेमी थे।
(घ) पृथ्वी पर स्वर्ग किस स्थान को कहा गया है ?
उत्तर – कश्मीर को पृथ्वी पर स्वर्ग कहा गया हैं यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य सभी को लुभाता है।
(ङ) कौन-सी पुस्तक कश्मीर के इतिहास पर प्रकाश डालती है ?
उत्तर – कल्हण की पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ कश्मीर के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालती है ।
(च) लेखक किस बात को सुनकर घबराया था ?
उत्तर – लेखक बारह घंटे की यात्रा की बात सुनकर घबराया। जब उसे पता चला कि एक ही ड्राइवर पूरे बारह घंटे बस चलाएगा तो वह और भी सकपका गया।
(छ) लेखक कब बनिहाल रेस्ट हाउस के सामने पहुँचा ?
उत्तर – लेखक चढ़ाई-उतराई करते, जहाँ-तहाँ थोड़ा-सा विश्राम करते और नाश्ता करते हुए शाम को साढ़े चार बजे बनिहाल रेस्ट हाउस के सामने पहुँचा।
(ज) लेखक को किस बात से कौतूहल हुआ ?
उत्तर – जब लेखक ने बनिहाल रेस्ट हाउस के बगल की दुकान पर मंगलौर की बनी बीड़ियों के बंडल देखे तो उसे कौतूहल हुआ। इससे एकता का वातावरण बनता है।
(झ) डल झील पर कैसा वातावरण था ?
उत्तर – डल झील पर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई थी । तब तक सैर करने वालों की भी भीड़ छँट गई थी। इक्के-दुक्के शिकारी इधर-उधर भटक रहे थे।
(ञ) मल्लाह कौन था तथा उसके गले से कौन-सा गीत फूट रहा था ?
उत्तर – मल्लाह यूसुफ किशोर था । वह मौज में सुरीली आवाज में गा रहा था । ठेठ कश्मीरी लोकगीत उसके कंठ से फूट रहा था।
(ट) प्रकृति ने यहाँ क्या-क्या प्रदान किया है ?
उत्तर – प्रकृति ने यहाँ मोहक रंग के सेब और केसर दिए हैं । यहाँ के किशोर-किशोरियों को दिल भी खोलकर प्रदान किए हैं।
(ठ) दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखेंपवन, सम्राट |
उत्तर – पवन – वायु, हवा ।
सम्राट – राजा, शासक ।
9. अठारह वर्ष से चालीस वर्ष तक की वय का सारा जनसमुदाय युवा पीढ़ी या युवा-वर्ग है। उद्यमपूर्वक किया हुआ कार्य, कृति का उचित प्रस्तुतीकरण, कार्य का ठीक अनुष्ठान करना, ध्यानपूर्वक कार्य का उपाय करना या युक्ति लगाना तथा किसी चीज का अच्छी तरह और सुन्दर रूप में निर्माण करना रचनात्मक कार्य है युवकों द्वारा अपने को देश की भावी पीढ़ी के न्यासी मानते हुए समाज, धर्म तथा राष्ट्र हित में उद्यमपूर्वक श्रेष्ठ एवं सुन्दर निर्माण करना, उनका रचनात्मक कार्य है। युवा पीढ़ी और रचनात्मक कार्य का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । इंग्लैंड के प्रसिद्ध प्रधानमंत्री डिजराइली तो यह मानते हैं कि प्रायः प्रत्येक महान् कार्य युवकों द्वारा किया गया है। ‘कारण, यह पीढ़ी भावनाओं का पुंज है। इसके हृदय से उदारता, कर्मण्यता, सहिष्णुता, अदम्य साहस और अखिल उत्सव-स्रोत पूर्ण वेग से बहता है, जो अपने ताप और तप से रचनात्मक कार्य की सिद्धि करता है।
युवा पीढ़ी अपने अन्दर मानवीय गुणों को ग्रहण कर स्वच्छ सामाजिक जीवन अपनाकर, धार्मिक छल-प्रवंचना, अंधविश्वास, सम्प्रदायवाद से बचकर राजनीतिक मुखौटों को हटाकर, ‘स्व’ का विकास करे तो यही उसका महान् रचनात्मक कार्य होगा। कारण, हृदय की पवित्रता तथा चरित्र की उज्ज्वलता उसे रचनात्मक कार्य के प्रति समर्पण तथा कुछ कर गुजरने की महत्त्वाकांक्षा को शक्ति प्रदान करेगी। परिणामतः वह विघटनकारी कार्यों से बचेगा, भ्रष्ट आचरण से घृणा करेगा। उग्रवाद का डटकर मुकाबला करेगा। निराशाजनित अकर्मण्यता से दूर रहेगा। रचनात्मक कार्य घर से आरम्भ होता है। घर का कूड़ा बाहर न फेंकना, थूक और पीक से सड़कों को न सड़ाना, फलों के छिलके और चाट-पकौड़ी के दोने सड़क गली में न फेंकना, पड़ोस में ताक-झाँक न करना, उनके व्यक्तिगत जीवन में दखल न देना पारिवारिक दृष्टि से रचनात्मक कार्य हैं।
घर से निकल कर हम समाज में प्रवेश करते हैं। बसों तथा अन्य वाहनों में प्रवेश के समय तथा मेलों-उत्सवों तथा सिनेमा के टिकट घर पर ठेलमठेल न करना, बस में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर महिला को उपलब्ध कराना, जेबकतरे को पकड़ने में सहयोग तथा स्त्रियों से छेड़छाड़ और उनके उत्पीड़न का विरोध करना, सामाजिक रचनात्मक कार्य हैं। इसी प्रकार रेडियो और टी० वी० के स्वर को मन्द रखकर पड़ोसियों के लिए सिर दर्द उत्पन्न न करना भी रचनात्मक कार्य है। पड़ोस या मोहल्ले में किसी दुस्साहसी असामाजिक तत्त्व घूमने, चोरी-लूटपाट या मारने-पिटने की भनक मिल जाने पर तुरन्त पुलिस को टेलिफोन करने या शोर मचाकर जनता को इकट्ठा करके असामाजिक तत्त्वों से निबटना भी रचनात्मक कार्य है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- युवा पीढ़ी और रचनात्मक कार्य ।
(ख) रचनात्मक कार्य का प्रारम्भ कहाँ से होता है और क्यों ?
उत्तर – रचनात्मक कार्य का प्रारम्भ घर से होता है क्योंकि घर का कूड़ा बाहर न फेंकना और किसी के व्यक्तिगत कार्य में दखल न देना रचनात्मक कार्य है ।
(ग) युवा वर्ग का रचनात्मक कार्य में क्या संबंध है ?
उत्तर – युवा पीढ़ी का रचनात्मक कार्य में घनिष्ठ संबंध है क्योंकि विश्व का प्रत्येक महान् कार्य युवकों द्वारा ही किया गया है। ।
(घ) युवा पीढ़ी को भावनाओं का पुंज क्यों कहा गया है ?
उत्तर – क्योंकि युवाओं में उदारता, कर्मण्यता, अदम्य साहस और सहिष्णुता के गुण हैं। इसलिए इन्हें भावनाओं का पुंज कहा जाता है।
(ङ) किन गुणों से युवक महान कार्य कर सकते हैं ?
उत्तर – युवक अपने अंदर मानवीय गुणों को ग्रहण कर स्वच्छ सामाजिक जीवन अपनाकर महान् रचनात्मक कार्य कर सकते हैं।
(च) किस आयु वर्ग के लोगों को युवा कहते हैं ?
उत्तर – अठारह वर्ष से चालीस वर्ष तक की आयु का सारा जनसमुदाय युवा वर्ग कहलाता है।
(छ) रचनात्मक कार्य किसे कहते हैं ?
उत्तर – किसी वस्तु का अच्छी तरह तथा सुन्दर रूप में निर्माण करना तथा मेहनत से कोई काम करना रचनात्मक कार्य कहलाता है।
(ज) सामाजिक जीवन में किस प्रकार रचनात्मक कार्य कर सकते हैं ?
उत्तर – बस में महिलाओं को आरक्षित सीट उपलब्ध करवाना, जेबकतरे को पकड़ने में सहयोग, इत्यादि कामों को कर सार्वजनिक जीवन में रचनात्मक कार्य कर सकते हैं।
(झ) अपने आस-पड़ोस में हम कैसे रचनात्मक कार्य कर सकते हैं ?
उत्तर – घर में टी० वी० की आवाज मंद रखकर, मोहल्ले में चोर घुसने पर पुलिस को सूचित कर आदि कार्य कर हम अपने आस-पड़ोस में रचनात्मक कर सकते हैं।
(ञ) धर्म की रक्षा करना कैसे रचनात्मक कार्य है ?
उत्तर – धर्म के अंधविश्वासों और पाखंड़ों का विरोध करना, पूजा स्थलों के प्रति पवित्र भावना और व्यवहार रचनात्मक कार्य है ।
(ट) उद्योगों में युवा वर्ग कैसे रचनात्मक सहयोग कर सकता है ?
उत्तर – अपने उद्योगों में निष्ठापूर्वक उत्पादन करके तथा उत्पादनों को विदेशों में निर्यात करके युवा-वर्ग रचनात्मक सहयोग कर सकता है।
(ठ) युवा वैज्ञानिक कैसे रचनात्मक कार्य का सकता है ?
उत्तर – युवा वैज्ञानिक समाज और राष्ट्र के हित के लिए नए-नए अनुसंधान कर तथा आविष्कारों को जन-जन तक पहुँचा कर रचनात्मक कार्य कर सकता है।
10. पश्चिमी सभ्यता का एक नया आदर्श-पश्चिमी सभ्यता मुख मोड़ रही है। वह एक नया आदर्श देख रही है। अब उसकी चाल बदलने लगी है। वह कलों की पूजा को छोड़कर मनुष्यों की पूजा को अपना आदर्श बना रही है। इस आदर्श को दर्शाने वाले देवता रस्किन और टाल्स्टॉय आदि हैं। पाश्चात्य देशों में नया प्रभात होने वाला है। वहाँ के गंभीर विचार वाले लोग इस प्रभात का स्वागत करने के लिए उठ खड़े हुए हैं। प्रभात होने के पूर्व ही उसका अनुभव कर लेने वाले पक्षियों की तरह इन महात्माओं को इस नए प्रभात का पूर्व ज्ञान हुआ है। और, हो क्यों न? इंजनों के पहिए के नीचे दबकर वहाँ वालों के भाई-बहन- नहीं उनकी सारी जाति पिस गई; उसके जीवन के धुरे टूट गए, उनका समस्त धन घरों से निकलकर एक ही दो स्थानों में एकत्र हो गया । साधारण लोग मर रहे हैं, रहे हैं, मजदूरों के हाथ-पाँव फट रहे हैं, लहू चल रहा है ! सरदी से ठिठुर रहे हैं। एक तरफ दरिद्रता का अखंड राज्य है, दूसरी तरफ अमीरी का चरम दृश्य । परंतु अमीरी भी मानसिक दुःखों से विमर्दित है। मशीनें बनाई तो गई थीं मनुष्यों का पेट भरने के लिए-मजदूरों को सुख देने के लिए – परंतु वे काली-काली मशीनें ही काली बनकर उन्हीं मनुष्यों का भक्षण कर जाने के लिए मुख खोल रही हैं। प्रभात होने पर ये काली-काली बलाएँ दूर होंगी। मनुष्य के सौभाग्य का सूर्योदय होगा।
शोक का विषय है कि हमारे और अन्य पूर्वी देशों में लोगों को मजदूरी से तो लेशमात्र भी प्रेम नहीं, पर वे तैयारी कर रहे हैं पूर्वोक्त काली मशीनों का आलिंगन करने की । पश्चिम वालों के तो ये गले पड़ी हुई बहती नदी का काली कमली हो रही हैं। वे छोड़ना चाहते हैं, परंतु काली कमली उन्हें नही छोड़ती। देखेंगे पूर्व वाले इस कमली को छाती से लगाकर कितना आनंद अनुभव करते हैं। यदि हममें से हर आदमी अपनी दस उँगलियों की सहायता से साहसपूर्वक अच्छी तरह काम करे तो हम मशीनों की कृपा से बढ़े हुए परिश्रम वालों को वाणिज्य के जातीय संग्राम में सहज ही पछाड़ सकते हैं। सूर्य तो सदा पूर्व ही से पश्चिम की ओर जाता है। पर, आओं पश्चिम में आने वाली सभ्यता के नए प्रभात को हम पूर्व से भेजें।
इंजनों की वह मजदूरी किस काम की जो बच्चों, स्त्रियों और कारीगरों को ही ॐ भूखा- नंगा रखती है, और केवल सोने, चाँदी, लोहे आदि धातुओं का ही पालन करती है। पश्चिम को विदित हो चुका है कि इनसे मनुष्य का दुःख दिन-पर- दिन बढ़ता है। भारतवर्ष जैसे दरिद्र देश में मनुष्य के हाथों की मजदूरी के बदले कलों से काम लेना काल का डंका बजाना होगा। दरिद्र प्रजा और भी दरिद्र होकर मर जाएगी। चेतन से चेतन की वृद्धि होती है। मनुष्य को तो मनुष्य ही सुख दे सकता है। परस्पर की निष्कपट सेवा ही से मनुष्य जाति का कल्याण हो सकता है। धन एकत्र करना तो मनुष्य जाति के आनंद-मंगल का एक साधारण-सा और महातुच्छ उपाय है। धन की पूजा करना नास्तिकता है, ईश्वर को भूल जाना है, अपने भाई-बहनों तथा मानसिक सुख और कल्याण कर देने वालों को मारकर अपने सुख के लिए शारीरिक राज्य की इच्छा करना है, जिस डाल पर बैठे हैं उसी डाल को स्वयं की कुल्हाड़ी से काटना है। अपने प्रियजनों से रहित राज्य किस काम का ? प्यारी मनुष्य जाति का सुख ही जगत के मंगल का मूल साधन है ! बिना उसके सुख के अन्य सारे उपाय निष्फल हैं। धन की पूजा से ऐश्वर्य, तेज, बल और पराक्रम नहीं प्राप्त होने का । चेतत्व आत्मा की पूजा से ही ये पदार्थ प्राप्त होते हैं । चैतन्य – पूजा ही से मनुष्य का कल्याण हो सकता है। समाज का पालन करने वाली दूध की धारा जब मनुष्य के प्रेममय हृदय, निष्कपट मन और मित्रतापूर्ण नेत्रों से निकलकर बहती है तब वही जगत में सुख के खेतों को हरा-भरा और प्रफुल्लित करती है और वही उनमें फल भी लगाती है। आओ, यदि हो सके तो टोकरी उठाकर कुदाली हाथ में लें, मिट्टी खोदें और अपने हाथ से उसके प्याले बनावें । फिर एक-एक प्याला घर-घर में, कुटिया-कुटिया में रख आएँ और सब लोग उसी में मजदूरी का प्रेमामृत पान करें ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- मजदूरी की महिमा ।
(ख) मनुष्यों की पूजा’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – मनुष्यों की पूजा का आशय है- मनुष्य के श्रम तथा शक्ति को महत्त्व देना ।
(ग) पश्चिमी देशों को नए प्रभात का ज्ञान क्यों हुआ है ?
उत्तर – मशीनों और इंजनों के क्रुर शोर तथा उत्पात को देखकर उन्हें नए प्रभात की बात सूझी।
(घ) इंजनों के पहियों के नीचे पिसने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – मशीनीकरण के दुखों से पीड़ित होना ।
(ङ) मशीनीकरण से भारत में क्या हानि होने की संभावना है ?
उत्तर – मशीनीकरण से भारत की जनता और अधिक दरिद्र होकर मर जाएगी।
(च) पश्चिमी सभ्यता किससे मुँह मोड़ रही है ?
उत्तर – पश्चिमी सभ्यता मशीनीकरण से मुँह मोड़ रही है।
(छ) पश्चिमी देशों में धन के कारण कौन-सी बुराई सामने आई ?
उत्तर – पश्चिमी देशों में धन की वृद्धि के कारण अमीर और गरीब की खाई बहुत चौड़ी हो गई । गरीब भूखे तड़पने लगे और अमीर मानसिक दुखों से पागल होने लगे।
(ज) ‘अमीरी मानसिक दुःखों से विमर्दित है – इसका आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – अमीर लोग मानसिक तनावों के कारण बेहद दुखी हैं।
(झ) ‘चरम दृश्य’ का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – सबसे अधिक बढ़ा हुआ दृश्य ।
(ञ) लेखक किसे शोक का विषय मानता है?
उत्तर – लेखक भारत द्वारा मशीनीकरण को अपनाने को शोक का विषय मानता है।
(ट) ‘काली कमली किस चीज की प्रतीक है?
उत्तर – काली कमली गले में पड़ी हुई दुखदायी वस्तु की प्रतीक है। यहाँ मशीनीकरण काली कमली है।
(ठ) लेखक भारत में उत्पादन को किस प्रकार बढ़ने का पक्षधर है ?
उत्तर – लेखक भारत में मानवीय परिश्रम के सहारे उत्पादन को बढ़ाने का पक्षधर है ।
11. वन-महोत्सव का दिन था । नन्ही-नन्ही फुहारें रिमझिम बरस रही थीं। आज का दिन कजरारे बादलों के साथ कितना सुंदर कितना मोहक लग रहा था। मेरी आँखें कभी आकाश में उड़ने वाले काले बादलों पर जमतीं और कभी सहसा इंद्रधनुषी पुल पर | इसी समय रश्मिकांत दौड़ता हुआ आया, “आज डबली बाबू ने हमें ट्रस्ट के बगीचे में बुलाया है। वे हमें चंपा, गुलाब, कनेर, चमेली आदि के बहुत से पौधे देने वाले हैं। उनका लड़का आया है। जाऊँ ?” आकाश से आँखे धरती पर आ गईं और मैंने कहा, “जाओ, जरूर जाओ।” मैं सोचने लगा, ट्रस्ट के बगीचे में बाबू का नाम डबली ? अजीब है। मैं उसे देखना चाहूँगा। दूसरे ही क्षण मैंने रश्मिकांत से कहा, “और देखो, लौटते वक्त डबली बाबू से कहना कि आपको पिताजी ने बुलाया है। भूलना मत ।”
हुए कुछ समय बाद देखता हूँ, कनेर, गुलाब, रातरानी, चमेली, चंपा और न जाने कौन-कौन से पौधे लिए स्वयं डबली बाबू बच्चों के आगे-आगे सारस – सी डगें धरते चले आ रहे हैं। मैंने देखा, उनका कद न ऊँचा, न ठिगना, मजे से मझोले आदमी हैं। न मोटे हैं, न पतले । आँखे भी मझोली ही हैं, कपोलों में धँसी हुई पीली-पीली सी। दाँत विरल हैं। उनका कत्थई रंग पान और तम्बाकू के अतिरेक की शहादत दे रहा है। धोती बाबुआना ढंग की पहने हुए हैं, पर मैल खने से बादामी हो गई है। पैरों में कोंकणी चप्पलें हैं, जो काफी मोटी और मजबूत हैं। और हाँ, काले धारीदार कुरते ऊपर बटन विहीन खाकी रंग का कोट भी पहने हैं। दाहिने हाथ में एक छड़ी झुलाते हुए वे चले आ रहे हैं। डबली आबू के अहाते में आने के पहले ही रश्मिकांत दौड़ता हुआ आया और कहने लगा, “यह देखिए, डबली बाबू आ गए।”
” नमस्कार डबली बाबू। आपने बड़ा कष्ट किया। किसी माली को भेज देते,” मैंने कहा । नहीं, एक तो आपने बुलाया और दूसरे मैं भी बहुत दिनों से आपसे मिलने वाला था, आपके कॉलेज में प्रोफेसर……जी से मेरा बड़ा घरोबा था। मेरे बगीचे में वे अक्सर आया करते, सैर करते, बड़ा मजा आता था। मैंने सुना आप मेरे मकान के पास ही आ गए हैं तो मुझे बड़ी खुशी हुई। ऐसा लगा जैसे…… जी ही आ गए,” डबली बाबू बोलते ही गए ।
डबली बाबू को हमने चाय पिलाई। पान खिलाया। उनके नेत्र कृतज्ञता से आर्द्र हो उठे। कहने लगे, “बाबूजी आपका बगीचा मैं अच्छी तरह लगवा दूँगा ।” फिर उन्होंने अहाते का बारीकी से सर्वेक्षण किया। यहाँ आम, यहाँ लीची, यहाँ संतरा, यहाँ जामुन, यहाँ पपीता…..” कहते गए और हाथ की छड़ी से उनके लगाने के स्थानों पर गोलाकार निशान भी बनाते गए। “अच्छा, तो मैं जाता हूँ । नर्सरी में लोग पौधे लेने आए होंगे वन महोत्सव है न ।”
चार दिन बाद सवेरे मैंने देखा, ट्रस्ट की लॉरी खड़ी है। फाटक खुलवाने का आग्रह कर रही है ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- डबली बाबू ।
(ख) इस गद्यांश में किस उत्सव का वर्णन है ?
उत्तर – इस गद्यांश में वन महोत्सव का वर्णन है । इस उत्सव में वृक्षारोपण किया जाता है ।
(ग) उस समय का मौसम कैसा था ?
उत्तर – उस समय रिमझिम फुहारें पड़ रही थीं। आकाश में कजरारे बादल थे। सारा मौसम बड़ा खुशगवार था।
(घ) रश्मिकांत कौन है और वह कहाँ जाना चाहता है ?
उत्तर – रश्मिकांत लेखक का बेटा है। वह डबली बाबू के बुलावे पर ट्रस्ट के बगीचे में जाना चाहता है ताकि वह विभिन्न फूलों के पौधे ला सके ।
(ङ) डबली बाबू कौन हैं ?
उत्तर – डबली बाबू ट्रस्ट के बगीचे में बाबू हैं। वे बगीचे की देखभाल करते हैं ।
(च) डबली बाबू के व्यक्तित्व के बारे में बताएँ ।
उत्तर – डबली बाबू मँझले कद वाले व्यक्ति थे। उनकी आँखें पीली और गालों में धँसी हुई थीं। दाँतों पर कत्थई रंग की परत जमा थी। धोती मैली थी और हाथ में छड़ी ।
(छ) लेखक ने डबली बाबू से औपचारिकतावश क्या कहा ?
उत्तर – लेखक ने औपचारिकतावश डबली बाबू से यह कहा – आपने बड़ा कष्ट किया। किसी माली को ही पौधे लेकर भेज देते।
(ज) डबली बाबू ने लेखक को क्या उत्तर दिए ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर – डबली बाबू ने अपने उत्तर में लेखक से मिलने की उत्सुकता दर्शाई। उन्होंने लेखक के कॉलेज के एक अन्य प्रोफेसर का उल्लेख कर उनके साथ घ घनिष्ठता दर्शाई थी।
(झ) डबली बाबू का सत्कार किस प्रकार किया गया ?
उत्तर – लेखक ने डबली बाबू को चाय पिलाई तथा पान खिलाकर उनका सत्कार किया।
(ञ) जाते हुए डबली बाबू क्या कह गए ?
उत्तर – जाते हुए डबली बाबू ने लेखक के बगीचे का बारीकी से निरीक्षण किया। उन्होंने अपनी छड़ी से कई जगह पर गोलाकार चिह्न बनाए तथा वहाँ लीची, सन्तरा, जामुन और पपीते के वृक्ष लगाने का वादा किया ।
(ट) विशेषण- विशेष्य छाँटकर लिखें-
(i) कजरारे बादलों वाला दिन था।
(ii) उनकी चप्पलें काफी मोटी और मजबूत हैं।
उत्तर – विशेषण
विशेष्य
कजरारे
बादल
काफी मोटी और मजबूत
चप्पलें
(ठ) रेखांकित अंश में प्रयुक्त कारक बताएँ –
(i) दाहिने हाथ में छड़ी झुलाते आ रहे हैं
(ii) हमने डबली बाबू को चाय पिलाई।
उत्तर – (i) हाथ में – अधिकरण कारक,
(ii) डबली बाबू को- कर्मकारक ।
वर्णनात्मक गद्यांश
अधोलिखित अपठित अवतरण को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर लिखें –
1. नैतिक शिक्षा व्यक्ति में सहज मानवीय गुणों को उजागर करने में निश्चय ही बहुत अधिक सहायक हो सकती है। वह संयम, अनुशासन, चारित्रिक दृढ़ता निर्भरता, अटूटता आदि का संचार कर सकती है । नैतिक शिक्षा ही हमें यह सिखा सकती है कि जीवन और समाज में किस व्यक्ति का क्या स्थान और महत्त्व है। समाज में सामूहिक और वैयक्तिक स्तर पर कब कहाँ हमारा आचरण-व्यवहार कैसा रहना चाहिए। कहाँ हमें झुकना है और कहाँ हर मूल्य पर अड़ या डट जाना चाहिए । यह एक निर्भ्रान्त सत्य है कि जीवन, समाज देश और राष्ट्र व्यक्तियों के आचरण और व्यवहार से ही बनता है। समाज में व्यक्ति अपने आचरण से ही पहचाना जाता है, साथ ही यह भी निर्भ्रान्त और परीक्षित सत्य है कि व्यक्ति के सद्द्धचरण और व्यवहार का निर्माण उसकी प्रत्यक्ष परोक्ष शिक्षा के द्वारा ही होता है। शिक्षा भी ऐसा तभी कर सकती है कि जब उसके कुछ अपने नैतिक मान और मूल्य हों। कोश से शब्द ज्ञान करा देना या कुछ विषय रटा देना ही तो शिक्षा नहीं है न उसका वास्तविक प्रयोग ही आदमी में आदमीपन का विकास करना है। यह विकास ही नैतिकता की प्रतिष्ठा है, जिसके अभाव में सुशिक्षा भी कुशिक्षा ही है।
नैतिक शिक्षा व्यक्ति को सद्व्यवहार, सदाचार का आधार तो प्रदान करती है, उसे मन और आत्मा की उज्ज्वलता भी प्रदान करती है। यह उज्ज्वलता ही व्यक्ति को वह प्रकाश देती है जिसकी छाया में वह अपने साथ-साथ सभी का हित-साधन कर सकता है। नैतिक शिक्षा व्यक्ति को जीवन की स्वस्थ परम्पराओं के प्रति आस्थावान बनाती है, उसकी जीवन-दृष्टि को उज्ज्वलता और विशालता प्रदान करती है। मानव की सहज संवेदना को जगाकर जीवन को सही दृष्टि से देखने की प्रेरणा देती है। वह व्यक्ति को संसार के व्यर्थ के झमेलों से दूर रखती है । वह नैतिक शिक्षा ही है जिसके प्रकाश में व्यक्ति कुरीतियों, आडंबरों, पाखंडों अनैतिकताओं आदि का ज्ञान प्राप्त कर इन सभी अराजक और विरोधी तत्त्वों के सामने डटकर खड़ा हो सकता है। नैतिक शिक्षा व्यक्ति को व्यक्ति के सुख-दुःख के साथ अपनत्व का संचार तो करती ही है, अपने देश की मिट्टी की सोंधी सुगंध के साथ जोड़कर राष्ट्रीयता की भावना को भी उजागर करती है। इस प्रकार नैतिक शिक्षा ही मनुष्य को मनुष्यत्व का ज्ञान कराकर सच्चा मनुष्य बना सकती है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- नैतिक शिक्षा ।
(ख) नैतिक-शिक्षा व्यक्ति में किन-किन गुणों का संचार कर सकती है ?
उत्तर – नैतिक शिक्षा व्यक्ति में संयम, अनुशासन, चारित्रिक दृढ़ता, निडरता एवं अटूटता आदि गुणों का संचार कर सकती है।
(ग) समाज में व्यक्ति किस गुण से पहचाना जाता है ?
उत्तर – समाज में व्यक्ति अपने सदाचरण एवं सद्गुणों से ही पहचाना जाता है।
(घ) लेखक ने किसे शिक्षा नहीं माना है ?
उत्तर – लेखक ने कोशगत शब्द ज्ञान कराने और कुछ विषयों को रटा देने को शिक्षा नहीं माना है।
(ङ) नैतिक शिक्षा व्यक्ति में कौन-सी शक्ति उत्पन्न करती है ?
उत्तर – नैतिक शिक्षा व्यक्ति में कुरीतियों, आडम्बरों, पाखण्डों, अनैतिकताओं आदि विरोधी तत्त्वों के सामने डटकर खड़े होने की शक्ति प्रदान करती है।
(च) ‘नैतिक’ और ‘गुण’ का विलोम शब्द लिखें ।
उत्तर – नैतिक- अनैतिक,
गुण- अवगुण, दुर्गुण ।
(छ) ‘सुशिक्षा’ और ‘अनुशासन’ का उपसर्ग अलग करें।
उत्तर – सुशिक्षा – सु.
अनुशासन – अनु ।
(ज) ‘निर्भ्रान्त’ और ‘आस्था’ का शब्दार्थ लिखें ।
उत्तर – निर्भ्रान्त – सन्देह (भ्रांति) रहित, आस्था – विश्वास ।
2. भारत के वनों में जितने दुर्लभ और विविध प्रकार के प्राणी मिलते हैं उतने अन्य किसी देश में नहीं। लेकिन खेद की बात है कि कुछ प्राणी ऐसे हैं जो दुर्लभ हो गए हैं और उनके लोप होने का भय है । जंगल का राजा सिंह सचमुच आज लुप्त होने की प्रक्रिया में है। यदि इस बचे-खुचे सिंहों को बचाने के उपाय नहीं किए गए तो हम सिंह नाम के शाही जानवर को देखने के लिए तरस जाएँगे । इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सरकार ने विरल और लुप्त होते जाने वाले प्राणियों की रक्षा के लिए कानून बनाए हैं। सभी जंगलों में शिकार खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया है और ऐसे सुरक्षित वन घोषित कर दिए हैं, जहाँ प्राणी बंद बाड़ों में नहीं, बल्कि खुले और प्राकृतिक वातावरण में निर्भय और बेरोक-टोक आजादी से घूम सकते हैं। ऐसे विशेष क्षेत्रों को ‘अभयारण्य’ या ‘राष्ट्रीय प्राणी उद्यान’ नाम दिया गया है। ऐसे शरणवन या उद्यान अपने देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित किए गए हैं ।
अफ्रीका के सिंह और भारतीय सिंह में थोड़ा-सा अंतर है, जो उनकी स्थानीय परिस्थितियों और जलवायु के कारण है। भारतीय सिंह की अधिकतम लंबाई लगभग तीन मीटर है और अफ्रीकन सिंह की लंबाई इससे लगभग बीस सेंमी०, अधिक होती है। भारतीय सिंह का अयाल पतला और छोटा, किन्तु अधिक चमकीला होता है।
सिंह पंचतंत्र, हितोपदेश आदि कथाओं और जंगल के रंगमंच का नायक है। चुस्त, चतुर, शक्तिशाली और निडर होने के कारण सिंह को वनराज कहा जाता है। अपनी रौबीली आकृति, शांत एवं गंभीर प्रकृति, राजसी शानवाली चाल और गर्जना के कारण यह अद्भुत है और इसकी तुलना अन्य किसी भी प्राणी से नहीं की जा सकती, क्योंकि सिंह बस ‘सिंह’ है। |
सिंह पहले उत्तरी भारत में काफी बड़े क्षेत्र तक और दक्षिण में नर्मदा नदी तक पाए जाते थे, लेकिन अब ये गुजरात के सौराष्ट्र के गिरवन क्षेत्र में ही रह गए हैं। पश्चिमी भारत का यह स्थल पहले भूतपूर्व जूनागढ़ रियासत के शासकों का प्रसिद्ध आखेट स्थल था । शिकारियों की हवस, सिर और खाल के शौक, वनों की कटाई, आबादी की बढ़ोत्तरी, खेती के लिए भूमि के अधिकाधिक उपयोग आदि कारणों से सिंह विनाश की अवस्था में पहुँच गए हैं।
सिंह को केसरी, नाहर और बबर शेर भी कहते हैं। सिंह-शावक जनवरी और फरवरी के बीच पैदा होते हैं। ये तीन से लेकर पाँच वर्ष में युवक हो जाते हैं। बच्चे शुरू के पाँच-छ: महीनों तक माता-पिता की देखरेख में पलते हैं। इन मांसाहारी प्राणियों के बच्चे बिना देखरेख के जीवित नहीं रह पाते। इसीलिए इनमें मृत्यु दर अधिक है। सिंहनी लंबी और खुरदरी जीभ से बच्चों को चाट-पोंछकर साफ रखती है और उनके लिए शिकार करके लाती है। थोड़ा बड़ा होते ही उन्हें शिकार करने की विधि सिखाने के लिए ले जाती है। इनकी शिक्षिका माँ होती है। सिंहों की आयु बारह से बीस वर्ष के बीच होती है लेकिन कोई-कोई तीस वर्ष तक भी जीवित रहते हैं।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- जंगल का राजा शेर ।
(ख) किस बात का भय उत्पन्न हो गया है ?
उत्तर – भारत में कुछ दुर्लभ प्राणियों के लुप्त हो जाने का भय उत्पन्न हो गया है। जंगल का राजा सिंह भी लुप्त होने की प्रक्रिया में है।
(ग) किन क्षेत्रों को ‘अभयारण्य’ नाम दिया गया है ?
उत्तर – जिन क्षेत्रों में प्राणी (पशु) बाड़ों में बंद न रखकर, खुले प्राकृतिक वातावरण में घूमते हैं, उन क्षेत्रों को ‘अभयारण्य’ या ‘राष्ट्रीय उद्यान’ नाम दिया गया है। ऐसे स्थल विभिन्न राज्यों में स्थापित किए गए हैं ।
(घ) अफ्रीका के सिंह और भारतीय सिंह में क्या अंतर है ?
उत्तर – अफ्रीका के सिंह और भारतीय सिंह में परिस्थितियों और जलवायु के कारण थोड़ा सा अंतर है। भारतीय सिंह की अधिकतम लंबाई तीन मीटर होती है जबकि अफ्रीकी सिंह की लंबाई इससे 20 सेंमी० अधिक होती है। भारतीय सिंह का अयाल पतला और छोटा किन्तु चमकीला होता है।
(ङ) सिंह को वनराज क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – सिंह को ‘वनराज’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह जंगल का राजा होता है। वह अन्य जानवरों से अधिक चुस्त, चतुर, शक्तिशाली और निडर होता है। इसकी तुलना का कोई अन्य जानवर नहीं होता। इसकी चाल राजसी शान वाली होती है।
(च) सिंह को किन-किन नामों से जाना जाता है ?
उत्तर – सिंह को केसरी, नाहर, और बबर शेर भी कहते हैं
(छ) विलोम शब्द लिखें- दुर्लभ, सुरक्षित।
उत्तर – दुर्लभ – सुलभ, सुरक्षित – असुरक्षित ।
(ज) ‘ईय’ प्रत्यय के योग से बने दो शब्द छाँटकर लिखें ।
उत्तर – ईय प्रत्यय वाले शब्द – स्थानीय, भारतीय ।
3. जुलूस शहर की मुख्य सड़कों से गुजरता हुआ चला जा रहा था। दोनों ओर छतों पर, छज्जों पर, जंगलों पर वृक्षों पर दर्शकों की दीवारें-सी खड़ी थी। बीरबल सिंह को आज उनके चेहरों पर एक नई स्फूर्ति, एक नया उत्साह, एक नया गर्व झलकता हुआ मालूम होता था। स्फूर्ति थी वृद्धों के चेहरे पर, उत्साह युवकों के और गर्व रमणियों के। यह स्वराज्य के पथ पर चलने का उल्लास था। अब उनकी का लक्ष्य अज्ञात न था, पथभ्रष्टों की भाँति इधर-उधर भटकना ना था, दलितों की भाँति सिर झुकाकर रोना न था। स्वाधीनता का सुनहला शिखर सुदूर आकाश में चमक रहा था। ऐसा जान पड़ता था कि लोगों को बीच के नालों और जंगलों की परवाह नहीं है। सब उस सुनहरे लक्ष्य पर पहुँचने के लिए उत्सुक हो रहे हैं।
ग्यारह बजते-बजते जुलूस नदी के किनारे जा पहुँचा, जनाजा उतारा गया और लोग शव को गंगा स्नान कराने के लिए ले चले। उसके शीतल, शांत पीले मस्तक पर लाठी की चोट साफ नजर आ रही थी। रक्त जमकर काला हो गया था सिर के बड़े-बड़े बाल खून जम जाने किसी चित्रकार की तूलिका की भाँति चिमट गए थे। कई हजार आदमी इस शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए खड़े हो गए। बीरबल सिहं पीछे घोड़े पर सवार खड़े थे। लाठी की चोट उन्हें भी नजर आई। उनकी आत्मा ने जोर से धिक्कारा । वह शव की ओर न ताक सके। मुँह फेर लिया। जिस मनुष्य के दर्शनों के लिए, जिसके चरणों की रज मस्तक पर लगाने के लिए लाखों आदमी विकल हो रहे हैं, उसका मैंने इतना अपमान किया। उनकी आत्मा इस समय स्वीकार कर रही थी कि उस निर्दय प्रहार में कर्तव्य के भाव का लेश भी न था, केवल स्वार्थ था, कारगुजारी दिखाने की हवस और अफसरों को खुश करने की लिप्सा थी। हजारों आँखें क्रोध से भरी हुई उनकी ओर देख रही थी; पर वह सामने ताकने का साहस न कर सकते थे।
एक कांस्टेबल ने आकर प्रशंसा की- हुजूर का हाथ गहरा पड़ा था। अभी तक खोपड़ी खुली हुई है। सबकी आँखें खुल गई ।
बीरबल ने उपेक्षा की- मैं इसे अपनी जवाँमर्दी नहीं, अपना कमीनापन समझता हूँ।
कांस्टेबल ने फिर खुशामद की- बड़ा सरकश आदमी था हुजूर!
बीरबल ने तीव्र भाव से कहा- चुप रहो! जानते भी हो, सरकश किसे कहते हैं ? सरकश वे कहलाते हैं, डाके मारते हैं, चोरी करते हैं, खून करते हैं, उन्हें सरकश नहीं कहते, जो देश की भलाई के लिए अपनी जान हथेली पर लिए फिरते हों।
हमारी बदनसीबी है कि जिनकी मदद करनी चाहिए, उनका विरोध कर रहे हैं। यह घमंड करने और खुश होने की बात नहीं है, शर्म करने और रोने की बात है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- बीरबल सिंह का हृदय-परिवर्तन ।
(ख) बीरबल सिंह किस बात को बदनसीबी कहते हैं?
उत्तर – बीरबल सिंह सरकारी नौकरी के कारण स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की बजाय उन्हें कुचलते हैं। अपनी इस मजबूरी को वे बदनसीबी कहते हैं।
(ग) जुलूस में उत्साह क्यों था?
उत्तर – गौरवशाली बलिदान के कारण जुलूस में उत्साह था।
(घ) बीरबल सिंह को ग्लानि क्यों अनुभव हुई ?
उत्तर – बीरबल सिंह ने ही शहीद को अपनी लाठी से मारा था, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। इस अपराध-बोध के कारण उसे ग्लानि अनुभव हुई ।
(ङ) बीरबल सिंह किस बात को कमीनापन मानता है?
उत्तर – वीरबल सिंह स्वतंत्रता सेनानी पर प्रहार करने को अपना कमीनापन मानता है
(च) ‘कारगुजारी दिखाना’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – कारनामा दिखाई, अपनी शक्ति का प्रभाव दिखाना ।
(छ) ‘जान हथेली पर लिए फिरता का तात्पर्य स्पष्ट करें।
उत्तर – बलिदान के लिए तैयार रहना ।
(ज) ‘हवस’ के लिए कौन-सा पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त हुआ है।
उत्तर – लिप्सा ।
4. खेल मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी हैं। विशेषकर विद्यार्थी जीवन में खेलों का महत्त्व है। खेलकूद से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है, चरित्र निर्माण भी होता है । खेल के मैदान में हमें अनेक अच्छी बातें सीखने को मिलता हैं । परस्पर सहयोग एवं सहनशीलता खेलों की सबसे बड़ी देन है। इसी को ‘खेल-भावना’ कहा जाता है। खेल भावना के विकास लिए भिन्न-भिन्न स्तरों पर मैच ( प्रतियोगिता) का दृष्य बड़ा ही आकर्षक और प्रसन्नताप्रद होता है। लीजिए एक अन्तर्विद्यालयीय हॉकी मैच का आनन्द ।
इस वर्ष ‘सीनियर-सेकेण्डरी स्कूल हॉकी टूर्नामेंट’ का फाइनल मैच गवर्नमेंट वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय और डी० ए० वी० वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के बीच वसन्त पंचमी के दिन हुआ। स्थान था, शिवाजी हॉकी स्टेडियम । मैच सायंकाल 5 बजे से आरम्भ होना था ।
साढ़े चार बजे से ही लोगों का आना शुरू हो गया था। पौने पाँच बजे दिल्ली के शिक्षा मंत्री महोदय पधारे। आज के मैच की विशेष अतिथि वही थे। समय पर मैदान भर चुका था। ठीक पाँच बजे से पाँच मिनट पूर्व दोनों स्कूलों के खिलाड़ी मैदान में उतरे। गवर्नमेंट स्कूल के खिलाड़ी सफेद कमीज और खाकी निक्कर पहने थे तथा डी० ए० वी० स्कूल के खिलाड़ियों का गणवेश था पीली जर्सी और नीली निक्कर । पहले दोनों ओर के खिलाड़ियों ने पंक्तिबद्ध खड़े होकर माननीय मुख्य अतिथि को बालचर-प्रणाम किया और उसके बाद उन्होंने खेल के मैदान में अपनी पोजीशन ले ली।
ठीक पाँच बजे निर्णायक (रेफरी) की सीटी की आवाज पर दोनों ओर के कप्तान उपस्थित हो गए। निर्णायक ने दिशाओं का निर्णय करने के लिए टॉस किया, जिसमें डी० ए० वी० स्कूल जीता। दिशा-निर्णय होने पर दोनों ओर के खिलाड़ी यथा-स्थान खड़े हो गए। निर्णायक की दूसरी सीटी बजते ही दोनों स्कूलों के अग्रसरों ने परस्पर तीन बार हॉकी छुआकर खेल प्रारम्भ किया।
खेल आरम्भ हुए पाँच मिनट भी नहीं बीते थे, कि डी० ए० वी० स्कूल के खिलाड़ियों ने अकस्मात् गवर्नमेंट स्कूल पर एक गोल कर दिया। बस, विद्यार्थियों में हलचल मच गई। डी० ए० वी० स्कूल के विद्यार्थी लगे ताली बजाने। कुछ उछल-उछलकर अपने स्कूल की जय-जयकार कर रहे थे।
गोल होने के बाद पुनः खेल शुरू हुआ तो गवर्नमेंट स्कूल के विद्यार्थी अधिक सतर्क और सक्रिय थे। उन्होंने गोल करने की बार-बार कोशिश की, किन्तु सफलता न मिली। इस भाग-दौड़ में निर्णायक की सीटी बज गई और मध्यावकाश हो गया। मध्यावकाश का दृष्य दर्शनीय था! डी० ए० वी० स्कूल के विद्यार्थी अपने खिलाड़ियों को शाबाशी दे रहे थे और गवर्नमेंट स्कूल के विद्यार्थी अपने खिलाड़ियों को डाँट रहे थे, किन्तु उनके शिक्षक महोदय कह रहे थे- ‘घबराने की कोई बात नहीं। हिम्मत से काम लोगे तो एक की क्या बात है, दो गोल कर दोगे।’
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- हॉकी मैच का आँखों देखा हाल ।
(ख) ‘खेल भावना’ किसे कहते है?
उत्तर – खेल के मैदान की अनेक अच्छी बातें तथा परस्पर सहयोग एवं सहनशीलता को खेल भावना कहा जाता है ।
(ग) हॉकी टूर्नामेंट का फाइनल मैच किस-किस के बीच होना था ?
उत्तर – फाइनल मैच राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय और डी० ए० वी० माध्यमिक विद्यालय के बीच होना था ।
(घ) मैच के प्रमुख अतिथि कौन थे ?
उत्तर – दिल्ली के शिक्षा मंत्री को मैच का प्रमुख अतिथि बनाया गया था ।
(ङ) दोनों टीमों की क्या यूनिफॉर्म थी?
उत्तर – राजकीय विद्यालय के खिलाड़ी सफेद कमीज और खाकी निक्कर पहने थे तथा डी० ए० वी० के खिलाड़ी पीली जर्सी और नीली निक्कर पहने हुए थे ।
(च) मध्यावकाश का दृश्य कैसा था?
उत्तर – मध्यावकाश में डी० ए० वी० के छात्र अपने खिलाड़ियों को शाबाशी दे रहे थे और राजकीय स्कूल के अपने खिलाड़ियों को डाँट रहे थे।
(छ) किस टीम ने पहला गोल किया और छात्रों में इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर – डी० ए० वी० के खिलाड़ियों ने पहला गोल किया। डी० ए० वी० के छात्रों के चेहरे खिल उठे जबकि दूसरे स्कूल के छात्रों के चेहरे उदास हो गए।
(ज) मैच के फाइनल का स्थान कहाँ था? मैच कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर – मैच के फाइनल का स्थान शिवाजी हॉकी स्टेडियम था और मैच शाम के ठीक पाँच बजे शुरू हो गया था ।
5. अब हम शिलंग की तरफ लौट रहे हैं । आते समय सड़क के उस पार जो पहाड़ कोहरे में छिपे हुए थे, वे अब साफ दिखाई दे रहे हैं। कोहरा छँट रहा है। पहाड़ों से बहते हुए एक के बगल एक दर्जन-भर झरने नजर आ रहे हैं । झरनों में गिरते पानी का संगीत चारों ओर गूँज रहा है। इस संगीत और दिल्ली, मुंबई की सड़कों के शोर में अंतर है। संगीत और शोर में तो अंतर होती ही है। पर यदि सैकड़ों फुट ऊपर से गिरते पानी की आवाज को शोर भी कहा जाए तो इस शोर और दिल्ली, मुंबई की सड़कों पर भागते वाहनों के शोर में अंतर है। मन करता है, झरनों के इस शोर और संगीत में सदा-सदा के लिए खो जाए लेकिन चाहते हुए भी यह संभव नहीं है। अगले दिन दिल्ली लौटना है। एक महानगर, जो महानगर कम और महाकस्बा अधिक है जिसे हम रोज जाने कितनी बार कोसते हैं लेकिन wwse अपने ही फैलाए जाल में फँसकर जहाँ रहने के लिए हम अभिशप्त हैं। अकेला मैं ही नहीं, तमाम लोग, जो देश के कोने-कोने से आकर दिल्ली की भीड़ में खो गए हैं, अपनी पहचान गँवा बैठे हैं। उनके पास कहने को बस केवल अपना ‘नाम’ ही है। धरती और आकाश से, प्रकृति और उसके आश्चर्यों से उनका संपर्क मानो भंग हो गया है।
हम लोग फिर वहीं ऊँची-नीची, सर्पाकार सड़कों पर हैं। दोनों तरफ कभी पहाड़ आते हैं तो कभी सपाट, हरी-भरी जमीन खासी पहाड़ के लोगों की जमीन जिस पर उन्होंने खेती की हुई है।
कुछ आगे बढ़कर संगमा ने जीप रुकवा दी है। हम सभी नीचे उतर गए हैं। सामने दिखाई पड़ रहा है नोहशंगथियांग प्रपात जो माँसमाई प्रपात के नाम से लोकप्रिय है। पास की एक पर्यटक बस खड़ी है। उससे उतरकर कुछ दक्षिण भारतीय इस अद्भुत प्रपात को निहार रहे हैं। ऊँचे पहाड़ से सैकड़ों फुट नीचे पानी लगातार, बेरोकटोक गिर रहा है। लगातार लगातार गिरता चला जा रहा है- जाने कब से, कितने सदियों से, इस प्रपात से पानी निरंतर झरता रहता है और कलकल करता हुआ बंगला देश की ओर चला जाता है।
“वाह देखिए, सामने रहा बंगला देश ।” संगमा के साथियों में से एक कहता है । हालाँकि सामने हल्का कोहरा है लेकिन पानी में डूबा हुआ-सा बंगला देश का कुछ मैदानी भाग नजर आ जाता है ।
अभी-अभी जब जीप से उतरे थे, हल्की धूप थी और क्षण-भर बाद ही, बादल घिरे और हल्की-हल्की वर्षा होने लगी। मैं संगमा के आगे अपना पुराना सवाल दोहराता हूँ, “क्या साल-भर यहाँ वर्षा होती रहती है ?”
संगमा हँसते हुए कहते हैं, “पंत साहब, यह चेरापूँजी है।”
हाँ, ख्याल आया यह चेरापूँजी है- समुद्र की सतह से कोई तेरह सौ मीटर ऊपर, जो विश्व में अत्यधिक वर्षा वाले स्थान के लिए प्रसिद्ध है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- हमारी.मेघालय यात्रा ।
(ख) शिलंग की तरफ लौटते हुए क्या साफ दिखाई देने लगा ?
उत्तर – शिलंग की ओर लौटते हुए सड़क के पार वे पहाड़ साफ दिखाई देने लगे जो कोहरे में छिपे हुए थे।
(ग) लेखक को कौन-सा संगीत भाता है ?
उत्तर – लेखक को झरनों से गिरते पानी का संगीत भाता है
(घ) दिल्ली में रहने का क्या दुष्प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर – दिल्ली जैसे महानगर में रहने का यह दुष्प्रभाव पड़ा है कि हम यहाँ की भीड़ में खोकर अपनी पहचान तक गँवा बैठे हैं।
(ङ) यहाँ किस प्रपात का उल्लेख है
उत्तर – इस गद्यांश में नोहशंगथियांग प्रपात का उल्लेख है जो माँसमाई प्रपात के नाम से लोकप्रिय है।
(च) बंगला देश किस रूप में नजर आता है ?
उत्तर – बंगलादेश कोहरे में पानी में डूबा हुआ-सा नजर आता है। उसका कुछ मैदानी भाग भी नजर आता है ।
(छ) चेरापूँजी की क्या विशेषता है ?
उत्तर – चेरापूँजी की यह विशेषता है कि यह समुद्र की सतह से 1300 मीटर ऊपर है और विश्व के अत्यधिक वर्षा वाले स्थान के रूप में प्रसिद्ध है।
(ज) प्रत्यय अलग करें- भारतीय, मैदानी ।
उत्तर – भारतीय – ईय,
मैदानी – ई |
6. भिन्न-भिन्न देशों में भ्रमणार्थ की जाने वाली यात्रा या पर्यटन देशाटन है। विभिन्न देशों के महत्त्वपूर्ण स्थल देखने तथा मन बहलाव के लिए वहाँ के विस्तृत भू-भाग में किया जाने वाला भ्रमण देशाटन है।
मनुष्य में जिज्ञासा की भावना बड़ी प्रबल है । वह अपने पास-पड़ोस, नगर, राष्ट्र, विश्व के बारे में जानना चाहता है। यही जिज्ञासा उसे पर्यटन या देशाटन करने को विवश करती है। विभिन्न जीवन पद्धतियों के अध्ययन से नाना प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों को देखने से, विभिन्न राष्ट्रों के विकास साधनों एवं वैज्ञानिक उन्नति के परिचय से मानव को आन्नद, उत्साह तथा ज्ञान प्राप्त होता है ।
पुस्तकें आनन्द, उत्साह और ज्ञानवर्धन का साधन हैं, किन्तु पुस्तक के अध्ययन से किसी देश का परिचय प्राप्त करने और उनके साक्षात् दर्शन में अन्तर है । महान् घुमक्कड़ डॉ० राहुल सांकृत्यायन का कथन है, ‘जिस तरह फोटो देखकर आप हिमालय के देवदारु के गहन वनों और श्वेत हिम-मुकुटित शिखरों के सौन्दर्य, उसके रूप, उनकी गंध का अनुभव नहीं कर सकते, उसी तरह यात्रा-कथाओं से आपको उस सौंदर्य से भेंट नहीं हो सकती, जो कि एक घुमक्कड़ (देशाटक) को प्राप्त होता है।’
संसार एक रहस्य है। इसका जीवन रहस्यमय है। देशाटन-दुस्साहिसियों ने उस रहस्य को चीरने का प्रयास किया है। जिससे विश्व बंधुत्व का मार्ग प्रशस्त हुआ है। कोलम्बस की घुमक्कड़ी ने अमरीका का पता लगाया । वास्कोडिगामा का भारत से परिचय हुआ । ह्वेनसांग, फाहियान आदि चीनी यात्री भारत में बौद्ध धर्म ग्रंथों की खोज में आए । पुर्तगाली, डच, फ्राँसीसी और अंग्रेजों ने भारत में व्यापार का आरम्भ किया। भारतीय घुमक्कड़ों ने लंका, बर्मा, मलाया, यवद्वीप, स्याम, कम्बोज, चम्पा, बोर्नियो और सैलीबीज ही नहीं, फिलिपाइन तक का पता लगाया। बुद्ध के शिष्यों ने पश्चिम में मकदुनिया तथा मिस्त्र से पूर्व में जापान तक, उत्तर में मंगोलिया से लेकर दक्षिण में बाली के द्वीपों तक को रौंद कर बृहत्तर भारत के निर्माण में अपूर्व योग दिया।
धर्म और संस्कृति के प्रचार और प्रसार का श्रेय देशाटन को ही है। प्राचीन धर्म-भिक्षु तो ‘कर तल भिक्षा, तरु तल वास:’ का आदर्श सामने रखते थे। कबीर, बुद्ध महावीर जीवन भर घुमक्कड़ रहे । आद्य शंकराचार्य ने तो भारत के चारों कोनों का भ्रमण किया और दे गए चार मठ । वास्कोडिगामा के भारत पहुँचने से बहुत पहले शंकराचार्य के शिष्य मास्को तथा यूरोप में पहुँच चूके थे। गुरु नानक ने ईरान और अरब तक धावा बोला। स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामतीर्थ तथा उनके शिष्यों ने विश्व में वेदान्त का झंडा गाड़ा एवं महर्षि दयानन्द और उनके शिष्यों ने विश्व में वेदों की ध्वजा फहराई । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों ने ‘भरतीय स्वयंसेवक संघ’ तथा ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ के माध्यम से विश्व में फैले हिन्दुओं को संघटित करने का प्रयत्न कर भारतीय संस्कृति और हिन्दुत्व के गौरव को बल दिया। ईसाई धर्म प्रचारक सेवा के माध्यम से ईसाइयत का प्रचार करने के लिए विश्वभर में फैले हुए हैं। हिप्पियों ने विश्व के युवकों में (खाओ, पीओ और मौज मनाओ) का भौतिकवादी संदेश फूँका ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक- देशाटन |
(ख) देशाटन के द्वारा धर्म और संस्कृति का प्रचार कैसे होता है ?
उत्तर – प्राचीनकाल से ही कबीर, महावीर और शंकराचार्य जैसे महापुरुषों ने भारत के चारों कोनों का भ्रमण करके धर्म और संस्कृति का प्रचार किया ।
(ग) घुमक्कड़ी ने कौन-कौन से रहस्य खोले हैं ?
उत्तर – घुमक्कड़ी से ही अमरीका का पता कोलम्बस ने लगाया, वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की तथा अनेक प्राचीन ग्रंथों का पता चला।
(घ) कौन – सी वस्तु व्यक्ति को देशाटन के लिए विवश करती है ।
उत्तर – अपने पास-पड़ोस, नगर, राष्ट्र और विभिन्न जीवन पद्धतियों के अध्ययन से नाना प्रकार की वस्तुओं को जानने की जिज्ञासा व्यक्ति को देशाटन के लिए विवश करती है ।
(ङ) पुस्तकें पढ़ने और घूमने में क्या अंतर है ?
उत्तर – पुस्तकें पढ़ने से किसी देश या जगह का परिचय कर सकते हैं लेकिन घूमने से उस जगह का वास्तविक आनंद उठा सकते हैं।
(च) देशाटन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – विभिन्न देशों के महत्त्वपूर्ण स्थल देखने तथा मन बदलाव के लिए किया जाने वाला भ्रमण देशाटन कहलाता है।
(छ) स्वयंसेवकों ने किस प्रकार लोगों को संघटित किया ?
उत्तर – स्वयंसेवकों ने धर्म और संस्कृति का प्रचार करके लोगों को संघटित किया।
(ज) भारतीय घुमक्कड़ों ने किन-किन देशों का पता लगाया ?
उत्तर – भारतीय घुमक्कड़ों ने लंका, बर्मा, मलाया, यवद्वीप कम्बोज और चम्पा इत्यादि देशों का पता लगाया |
7. जैसे-जैसे विश्व की जनसंख्या बढ़ती जा रही हैं, समस्याएँ उससे अधिक तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं। उन समस्याओं से जूझना और उनका समुचित हल निकालना मानव के लिए चुनौती रहा है। ऐसी ही एक समस्या गणित है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक कार्य पद-पद गणित की जरूरत है। गणित के जोड़, घटाव, गुणा और भाग में संसार का चक्र घूम रहा है । कैलकुलेटर के बस की बात नहीं ।
बढ़ती जनसंख्या और जटिल समस्याओं को हल करने में आदमी असहाय है। कारण उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति सीमित है । वह हर बात को रट नहीं सकता, मस्तिष्क में संग्रह नहीं कर सकता। आलस्य, थकान, पक्षपात और प्रमाद उसकी स्वाभाविक प्रवृत्तियाँ हैं। कार्य में व्यवधान आने और भटकने की संभावनाएँ बनी रहती हैं। इनसे समय की अवधि लम्बी होती है और परिणाम शुद्धि भी संदेहास्पद रहती है ।
स्कूल बोर्ड को लाखों परीक्षार्थियों का परीक्षा परिणाम तैयार करना होता है, उसमें सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले परीक्षार्थियों के नाम निकालने होते हैं। अनुमान लगाइए कि कितनी श्रम शक्ति और समय लगेगा? फिर, मानव श्रम में आलस्य, प्रमाद और उपेक्षा के कारण परिणाम की शुद्धता में संदेह बना रहेगा।
आज का व्यक्ति समय और श्रम की बचत तथा काम में आधा माशा पाव रत्ती ‘एक्युरेसी’ (पूर्णता और शुद्धता ) चाहता है। इसलिए उसे जरूरत पड़ी स्वचालित ‘कलों की, ताकि मेधा और हाथों का काम इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा हो जाए कम्प्यूटर इस मानव इच्छा का साकार रूप है। यह चौबीसों घंटे काम करते थकता नहीं, विश्राम के लिए रुकता नहीं। दूसरे, उसका मस्तिष्क देवी-मस्तिष्क है। उससे गलती, भूल या अशुद्धि की संभावना नहीं हो सकती। रही बिलम्ब की बात, यह शब्द तो उसके शब्द-कोश में है ही नहीं । चट मँगनी पट विवाह कम्प्यूटर का बटन दबाइए, उत्तर आपके सामने प्रस्तुत है। 6-6 अंकों का जोड़ घटा, गुणा, भाग एक सेकेण्ड में लीजिए | आप चाहें तो 30 लाख संक्रियाएँ एक साथ कर सकते हैं । एक विशेषता और, कम्प्यूटर ने जटिलतम गणनाओं का हल ही नहीं निकाला, उनका संग्रह और विश्लेषण भी किया ।
हिसाब करने की शक्ति, सही तथ्य खोजने का सामर्थ्य और अत्यल्प समय में बहुत अधिक काम सकने के कारण कम्प्यूटर को ‘इलेक्ट्रानिक मस्तिष्क’ भी कहते है। सच्चाई ऐसी है नहीं। कम्प्यूटर तो एकत्रित आँकड़ों का इलेक्ट्रॉनिक विश्लेषण प्रस्तुत करने वाली मशीन है। सुपर कम्प्यूटर अर्थात् सर्वाधिक तेज गति से गणनाएं और विश्लेषण करने वाली इलेक्ट्रॉनिक मशीन |
भारतीय ‘परम 10000 कम्प्यूटर तो एक सेकेण्ड में एक सौ अरब गणनाएँ कर सकता है। इसकी मैमोरी ( स्मरणशक्ति) इतनी अधिक होती है कि वह अपनी गणनाओं के परिणाम तत्काल डिस्प्ले स्क्रीन पर दिखा सकता है।
इन्सेट एक उपग्रह है। यह मौसम की जानकारी ही नहीं देता, दूरदर्शन, दूरभाष प्रसारण में सहयोग भी करता है । यह सब कम्प्यूटर की कृपा का परिणाम है । अतः कम्प्यूटर के सहयोग के अभाव में इन्सेट या अन्य कोई भी उपग्रह न तो अंतरिक्ष में पहुँच सकता है और न ही वहाँ परिक्रमा कर सकता है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- कम्प्यूटर की उपयोगिता ।
(ख) आज के युग में कम्प्यूटर की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर – आज के युग में समय और श्रम की बचत के लिए कम्प्यूटर की आवश्यकता हुई।
(ग) गणित में कम्प्यूटर का क्या योगदान है ?
उत्तर – कम्प्यूटर द्वारा गणित के बड़े-बड़े से प्रश्न व अंकों से संबंधित जटिल गणनाओं को कुछ ही क्षणों में हल कर सकते हैं तथा आँकड़ों का संग्रह और विश्लेषण भी कर सकते हैं।
(घ) मौसम की जानकारी हमें कैसे मिलती है?
उत्तर – कम्प्यूटर की मदद से ही उपग्रह मौसम की आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराता है।
(ङ) गणित की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर – गणित की आवश्यकता जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जोड़ घटा और गुणा संबंधित समस्या का हल निकालने के लिए पड़ती है ।
(च) मनुष्य किन समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं है ?
उत्तर – जटिल समस्याओं को हल करने में मनुष्य सक्षम नही है क्योंकि मनुष्य हर चीज को रट नहीं सकता। उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति सीमित है।
(छ) कम्प्यूटर को इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क क्यों कहते हैं?
उत्तर – गणना करने कि शक्ति, सही तथ्य खोजने का सामर्थ्य और कम समय में अधिक काम के कारण इसे इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क कहते हैं ।
(ज) भारतीय कम्प्यूटर ‘परम’ की क्या विशेषता है?
उत्तर – भारतीय कम्प्यूटर ‘परम’ एक सेकेण्ड एक सौ अरब गणनाएँ कर सकता है। उसकी मैमोरी इतनी अधिक होती है कि वह अपनी गणनाओं को तत्काल डिस्प्ले स्क्रीन पर दिखा सकता है।
8. शास्त्री जी की एक सबसे बड़ी विशेषता थी कि वे एक सामान्य परिवार में पैदा हुए थे, सामान्य परिवार में ही उनकी परवरिश हुई और जब वे देश के प्रधानमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर पहुँचे, तब भी वह सामान्य ही बने रहे।’ विनम्रता सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व में एक विचित्र प्रकार का आकर्षण पैदा करती थी । इस दृष्टि से शास्त्री जी का व्यक्तित्व बापू के अधिक करीब था और कहना न होगा कि बापू से प्रभावित होकर ही सन् 1921 में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ी थी । शास्त्री जी पर भारतीय चिंतकों, डॉ० भगवानदास तथा बापू का कुछ ऐसा प्रभाव रहा कि वह जीवन-भर उन्हीं के आदर्शों पर चलते रहे तथा औरों को इसके लिए प्रेरित करते रहे। शास्त्री जी के सम्बन्ध में मुझे बाइबिल की वह उक्ति बिल्कुल सही जान पड़ती है कि विनम्र ही पृथ्वी के वारिस होंगे।
शास्त्री जी ने हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में तब प्रवेश किया था, जब वे एक स्कूल में विद्यार्थी थे और उस समय उनकी उम्र 17 वर्ष थी। गाँधीजी के आह्वान पर वे स्कूल छोड़कर बाहर आ गए थे। इसके बाद काशी विद्यापीठ में उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। उनका मन हमेशा देश की आजादी और सामाजिक कार्यों की ओर लगा रहा। परिणाम यह हुआ कि सन् 1926 में वे ‘लोक सेवा मंडल’ में शामिल हो गए, जिसके वे जीवन-भर सदस्य रहे । इसमें शामिल होने के बाद से शास्त्रीजी ने गाँधीजी के विचारों के अनुरूप अछूतोद्धार के काम में अपने आपको लगाया । यहाँ से शास्त्रीजी के जीवन का एक नया अध्याय प्रारम्भ हो गया । सन् 1930 में जब ‘नमक कानून तोड़ो आंदोलन शुरू हुआ, तो शास्त्रीजी ने उसमें भाग लिया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जेल जाना पड़ा । यहाँ से शास्त्रीजी की जेल – यात्रा की जो शुरूआत हुई वह सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन तक निरंतर चलती रही। इन 12 वर्षों के दौरान वे सात बार जेल गए। इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके अंदर देश की आजादी के लिए कितनी बड़ी ललक थी। दूसरी जेल यात्रा उन्हें सन् 1932 में किसान आंदोलन में भाग लेने के लिए करनी पड़ी। सन् 1942 की उनकी जेल यात्रा 3 वर्ष की थी, जो
सबसे लम्बी जेल- यात्रा थी ।
इस दौरान शास्त्रीजी जहाँ एक ओर गाँधीजी द्वारा बताए गए रचनात्मक कार्यों में लगे हुए थे, वहीं दूसरी ओर पदाधिकारी के रूप में जनसेवा के कार्यों में भी लगे रहे। इसके बाद के 6 वर्षों तक वे इलाहाबाद की नगरपालिका से किसी-न-किसी रूप से जुड़े रहे। लोकतंत्र की इस आधारभूत इकाई में कार्य करने के कारण वे देश की छोटी-छोटी समस्याओं और उनके निराकरण की व्यावहारिक प्रक्रिया से अच्छी तरह परिचित हो गए थे। कार्य के प्रति निष्ठा और मेहनत करने की अदम्य क्षमता के कारण सन् 1937 में वे संयुक्त प्रांतीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित हुए। सही मायने में यहीं से शास्त्रीजी के संसदीय जीवन की शुरूआत हुई, जिसका समापन देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने में हुआ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें।
उत्तर – शीर्षक– कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री ।
(ख) शास्त्रीजी के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी ?
उत्तर – शास्त्रीजी के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता यह थी- उनकी सादगी और सरलता ।
(ग) शास्त्रीजी के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाले गुण कौन-कौन से थे ?
उत्तर – शास्त्रीजी के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाले गुण थे – विनम्रता, सादगी और सरलता।
(घ) शास्त्रीजी 1942 में किस सिलसिले में जेल गए ?
उत्तर – भारत छोड़ों आंदोलन के सिलसिले में ।
(ङ) शास्त्रीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने की शुरूआत कब से की ?
उत्तर – 14 वर्ष की उम्र में विद्यार्थी जीवन से ।
(च) शास्त्रीजी ने जनसेवक के रूप में किस नगर की सेवा की ?
उत्तर – इलाहाबाद नगरपालिका की ।
(छ) ‘ललक’ के दो पर्यायवाची लिखें।
उत्तर – उत्सुकता, व्यग्रता ।
(ज) ‘अछूतोद्धार’ का विग्रह करके समास का नाम लिखें।
उत्तर – अछूतों का उद्धार; तत्पुरुष समास ।
9. जब पृथ्वी की सतह अचानक हिलती या कंपित हो उठती है, तो उसे भूकंप कहते है। गगनभेदी गड़गड़ाहट और धरा के ऊपरी सतह के कंपन के साथ प्रकृति सर्वनाश करने वाला जो प्रकोप प्रकट करती है, उसी को भूकंप की संज्ञा देते हैं । उत्तरोत्तर संचित हो रहे विवर्तनिक प्रतिबलों से उत्पन्न तनाव जब भू के लिए असह्य हो जाते हैं तो दरारें खिल जाती हैं, धड़धड़ा कर भूपटल फट जाता है। भूपटल का फटना भूकंप का लक्षण है। ज्वालामुखी के उद्गार भी भूकंप का कारण बनते हैं। भूमि की चट्टानों के असंतुलन से भी भूचाल आ सकते हैं। भूकंप की उत्पत्ति यह सिद्ध करती है कि यह मानवीय शक्ति की उद्भावना नहीं हो सकती। यह निसर्ग की देन है। सृष्टि के एकमात्र उत्पादन शक्ति की करामत है। मानव की विज्ञान – बुद्धि जब बर्दाश्त के बाहर प्रकृति से छेड़छाड़ करती है तो प्रकृति भूकंप के रूप में अपना क्षोभ व्यक्त करती हैं प्रकृति का माया रूपी हृदय जब डोलता है तो वह अपनी चंचलता (प्रकोप) प्रकट करता है। उसकी चंचलता भूकंप, भूचाल या अर्थक्वेक रूप में प्रकट होती है।
प्रकृति भी परिवर्तन – प्रेमी है, क्योंकि वह क्रियाशील है। जिस प्रकार जीवन में परिवर्तन स्वाभाविक है, उसी प्रकार प्रकृति में परिवर्तन भी नैसर्गिक है। प्रकृति जब प्रसन्नवदना होती है तो नाना रूपों में सौन्दर्य प्रकट कर मानव को आकर्षित करती है और जब रुष्ट होती है जल-प्लावन, ज्वालामुखी विस्फोट, आकाशीय विद्युत् प्रताड़न और भूकम्प के रूप में अपना विनाशकारी रूप दर्शाकर सृष्टि को भयभीत और प्रकंपित करती है। अन्तर इतना ही है कि प्रकृति की प्रसन्नता दीर्घ समय तक रहती है और प्रकोप क्षणिक रहता है।
प्रश्न उठता है कि प्रकृति विज्ञान-प्रेमियों से रुष्ट क्यों होती है, क्यों उसे अपना प्रकोप प्रकट करना पड़ता है? आज पहाड़ों में सड़कों का जाल बिछाने के लिए उत्खनन कार्यों तथा पत्थर निकासी ने पहाड़ों को बौना बना दिया है। बारूदी धमाकों ने पहाड़ों को कमजोर कर दिया, उनमें दरारें डाल दीं। चट्टानों फट गई परिणामतः भूस्खलन के संकट को आमंत्रित कर दिया ।
जिस प्रकार जल-प्रलय प्रकृति का विनाशक ताण्डव है, उसी प्रकार भूकंप उससे भी भयानक विनाशक प्रक्षोभ है। मौसम विज्ञानी समुद्री तूफान की सूचना दे सकते हैं, पर भूकंप के आगमन की सूचना पाने में वैज्ञानिक अशक्त हैं। दो-चार सेकेण्डों भूकम्प से छोटे भवन, दीर्घ प्रसाद और उच्च अट्टालिकाएँ- काँपती हुई पृथ्वी के चरण चूमने लगती हैं। मनुष्य जैसे को तैसा, जहाँ का तहाँ भूकम्प के झटके की चपेट में आकर परलोक को गमन करता है या घायल होकर चीख-पुकार मचाता है। पशुओं को रंभाने का अवसर नहीं मिलता। गाँव के गाँव नष्ट हो जाते हैं। शवों के ढेर लग जाते हैं। लोगों की जीवन भर की गाढ़ी कमाई और सम्पदा क्षणभर में नष्ट हो जाती है। चीख-पुकार से आहत नर-नारी, आबाल वृद्ध आसमान सिर पर उठा लेते हैं। 20 अक्तूबर 1991 को उत्तरकाशी में आए भूकम्प से 15,000 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हुई और सहस्त्रों लोग घायल हुए। दूसरी ओर, 30 अक्तूबर, 1993 के लाटूर एवं उस्मानाबाद क्षेत्रों के विनाशकारी भूकम्प का कहर 81 गाँवों पर बरपा जिसमें 25 से ज्यादा गाँवों ने श्मसान की शांति ओढ़ ली और 12 सहस्त्र व्यक्ति क्षणभर में जीवन से हाथ धो बैठे। इतना ही नहीं लाटूर से 500 किलोमीटर दूर विदर्भ के क्षेत्रों में भी अनेक भवनों के दरारें पड़ गई।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- भूकम्प |
(ख) प्रकृति अपना प्रकोप विज्ञान प्रेमियों पर क्यों प्रकट करती है ?
उत्तर – विज्ञान प्रेमियों ने विकास की आड़ में पहाड़ों को खोखला बना दिया है। इससे पहाड़ कमजोर हो गए हैं। और ये भूकम्प और भू-स्खलन का कारण बनते हैं।
(ग) भारत में कौन-कौन से स्थानों पर कब-कब भूकम्प आए ?
उत्तर – 20 अक्तूबर 1991 को उत्तरकाशी में, 30 अक्तूबर 1993 को लातुर व उस्मानाबाद में तथा विदर्भ के क्षेत्रों में भूकम्प आए ।
(घ) भूकम्प किसे कहते हैं ?
उत्तर – जब पृथ्वी की सतह अचानक हिलती या कंपित हो उठती है, तो उसे भूकम्प कहते हैं।
(ङ) प्रकृति अपनी प्रसन्नता और दुख कैसे प्रकट करती है ?
उत्तर – प्रकृति प्रसन्न अवस्था में नाना रूपों में सौंदर्य प्रकट कर मानव को आकर्षित करती है, और ज्वालामुखी, भूकम्प और जल-प्लावन के रूप प्रकृति अपना दुःख प्रकट करती है।
(च) भूकम्प की पूर्व सूचना देना क्यों संभव नहीं है ?
उत्तर – भूकम्प के बारे में अभी तक विश्वसनीय जानकारी देने वाले यंत्रों की कमी है, इसलिए इसकी पूर्व सूचना देने सम्भव नहीं है।
(छ) भूकम्प की उत्पति क्या सिद्ध करती है ?
उत्तर – भूकम्प की उत्पति सिद्ध करती हैं कि यह सृष्टि के एकमात्र उत्पादक शक्ति की करामात है। मानव जब भी प्रकृति से छेड़-छाड़ करती है। प्रकृति भूकम्प के रूप में अपना गुस्सा प्रकट करती है।
(ज) भूकम्प आने से कैसा विनाश होता है ?
उत्तर – भूकम्प के आने से छोटे-बड़े सभी भवन, अट्टालिकाएँ एक क्षण में गिर जाती हैं। पशुओं और मानवों को भारी क्षति पहुँचती है और सार्वजनिक सम्पति को भी भारी नुकसान होता है।
10. मैं एक दिन स्कूल से आ रहा था कि रास्ते में घंटी बजने की आवाज आई। उस घंटी की आवाज को सुनकर लोग कह रहे थे- ‘हट जाओ, हट जाओ, सड़क खाली कर दो। ‘एक मिनट बाद सामने से लाल रंग का तीन-चार मोटरें गुजरीं । लोग मोटरें के साथ-साथ उसी दिशा में भाग रहें थे। मैं समझ गया कि अवश्य ही कही आग लगी है। मेरी भी इच्छा आग को देखने की हुई। मैं भी जिधर मोटरें गईं थीं, उस ओर चल पड़ा ।
आधा फर्लांग भी नहीं चला था कि दाहिनी ओर की गली से भयंकर शोर सुनाई दिया और आग की लपटें नजर आईं। आग देखकर मेरी तो आँखें फटी ही रह गईं। ऐसी आग मैंने पहले कभी न देखी थी। आग एक तीन मंजिले मकान में लगी हुई थी।
आग मकान की तीसरी मंजिल पर लगी थी, किन्तु मंजिल के लोग जल्दी-जल्दी अपना सामान निकाल रहे थे। दूसरी मंजिल पर कुछ सामान बाकी था, किन्तु उसे निकालना खतरे से खाली न था। तीसरी मंजिल में भीषण आग लगी हुई थी। मकान के चारों और 100-150 गज तक पुलिस ने घेरा डाला हुआ था ।
जिस मकान में आग लगी थी, उसकी लपटें हवा के प्रकोप के कारण साथ वाले मकान पर धावा बोल रही थीं। साथ वाले मकान में ही हाहाकार मचा था । वे
बाल्टी में पानी भर-भर कर आग की ओर फेंक रहे थे तथा अपना सामान बचाने में व्यग्र थे। पड़ोसी उनकी सहायता कर रहे थे।
उधर आग बुझाने वाले लोगों का बुरा हाल था। उन्होंने आग को तीन तरफ से घेर रखा था, किन्तु आग काबू में नहीं आ रही थी । वे एक स्थान से आग बुझाते, उधर दूसरी खिड़की जल उठती । इस प्रकार वे निरन्तर आग से जूझ रहे थे। इसी बीच एक दर्दनाक घटना घटी। दूसरी मंजिल पर रहने वाली एक स्त्री को ध्यान आया कि उसका चार वर्षीय पुत्र अन्दर सोता हुआ रह गया है। फिर क्या था? उसने चिल्ला-चिल्लाकर आसमान सिर पर उठा लिया। उसकी चीत्कार से पिघलकर आग झाने वाले इंस्पेक्टर ने उसी स्त्री से वह कमरा, जिसमें उसका बालक सो रहा था । पूछा और ढाढस बँधाया, परन्तु स्त्री को तसल्ली कब होने वाली थी ।
इंस्पेक्टर ने अपने लोगों को समझाया कि वे कमरे के ऊपर की आग को बुझायें और यह ध्यान रखें कि इस कमरे तक आग न पहुँचने पाए। आग बुझाने वाले आदमियों ने बड़ी हिम्मत और बहादुरी से उस सारी आग पर काबू पा लिया। काबू पाते ही उन्होंने अपनी सीढ़ी लगाई और ऊपर चढ़ गए। बच्चा चारपाई पर पड़ा हुआ था, किन्तु कमरे में धुआँ भरा होने के कारण कुछ नजर नहीं आ रहा था? फिर भी इंस्पेक्टर ने उसे ढूँढ़कर उठाया और कन्धे से लगा कर बाहर निकाल लाया। किस्मत का धनी इंस्पेक्टर बाल-बाल बच गया, जैसे ही वह बच्चे को लेकर नीचे उतरा, वैसे ही उस कमरे की छत नीचे गिर पड़ी बच्चा बेहोश था, उसे तुरन्त अस्पताल भेज दिया गया ।
जब आग बुझ गई तो, आग बुझाने वाली मोटरें घंटा बजाती हुई वापस चली गईं। मैं भी इस भयंकर तांडव का विनाशंक दृश्य देख भारी मन से घर लौट आया।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक – जलते भवन का दृश्य ।
(ख) घंटी की आवाज सुनकर लोग हट क्यों रहे थे ?
उत्तर – क्योंकि आग बुझाने वाली गाड़ियां घंटी के द्वारा लोंगो को हटाने का इशारा कर रही थीं।
(ग) मकान को पुलिस ने क्यों घेरा हुआ था ?
उत्तर – आग लगने के कारण पुलिस ने मकान को घेरा हुआ था ताकि लोग आग की लपटों से बचे रहें ।
(घ) आग मकान में कहाँ लगी थी ?
उत्तर – आग एक मकान की तीसरी मंजिल में लगी थी।
(ङ) आग बुझाने वाले कर्मचारियों को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था ?
उत्तर – आग बुझाने वालों का बुरा हाल था और आग काबू में नहीं आ रही थी वे एक स्थान से बुझाते तो आग दूसरी जगह लग जाती ।
(च) आग के दौरान क्या घटना घटी ?
उत्तर – आग के दौरान एक चार वर्षीय बालक अन्दर कमरे में सोता हुआ रह गया था।
(छ) शोर सुनकर लेखक की आँखें फटी की फटी क्यों रह गई ?
उत्तर – शोर सुनकर जब लेखक ने एक तीन मंजिलें मकान में आग लगी देखी तो उसकी आँखें फटी रह गई ।
(ज) आग बुझाने वाले कर्मियों ने बच्चे को कैसे बचाया ?
उत्तर – आग बुझाने वाले कर्मियों ने आग पर काबू पाकर सीढ़ी लगाई और बड़ी हिम्मत और साहस जुटाकर बच्चे को बचाकर ले आए ।
11. पृथ्वी की खनिज संपदा का पता लगाने के लिए भूविज्ञानी बड़े ध्यान से चट्टानों का अध्ययन करते हैं। वे जमीन की सतह में छेद करके या बरमा चलाकर भीतर छिपी खनिज संपदा का पता लगाने की चेष्टा करते हैं। अब खनिजों का पता लगाने के लिए विमान द्वारा भू-सर्वेक्षण किए जा रहे हैं। सर्वेक्षण करने वाले विमानों में अति सुग्राही, चुंबकीय विद्युत चुंबकीय और रेडियोधर्मी यंत्र लगे होते हैं। हवाई उड़ानों के समय एकत्र किए गए आँकड़ों के आधार पर ये यंत्र भूमि के भीतर गहराई में दबी चट्टानों की प्रकृति, संघटन, घनत्व आदि के बारे में जानकारी देते हैं। इनकी सहायता से भूमि के भीतर तरह-तरह के खनिजों का अनुमान लगाना सरल होता है। ऐसे सर्वेक्षणों ने हमारे देश में ताँबा जैसे खनिजों के संभावित विशाल भंडारों को खोज निकालने में सहायता की है।
“विश्व में ताँबा कहाँ सबसे ज्यादा पाया जाता है ?”
यह संयुक्त राज्य अमेरिका में, खासकर वहाँ के मिशीगन, एरीजोना और उटाह राज्यों में सबसे ज्यादा पैदा किया जाता है। इसके बाद चिली, जांबिया, जायरे, सोवियत रूस, स्पेन और मैक्सिको में उत्पन्न किया जाता है।
“ और भारत में इसके भंडार कहाँ-कहाँ हैं ?”
भारत में इसकी प्रमुख खानें राजस्थान के खेतड़ी, कोलिहन, चाँदमारी, दरीब में, झारखंड के सिंहभूम, राखा, मोसाबनी, घाटशिला, धोबनी, बेदिया, केंदाडीह और हजारीबाग में, आंध्रप्रदेश के अग्निगुंडला और अनंतपुर क्षेत्र में तथा कर्नाटक के हासन और चित्रदुर्ग क्षेत्र में हैं । मलंजखंड (मध्यप्रदेश) में भी ताँबा मिला है। इनके अतिरिक्त अन्य जगहों में भी ताँबे के भंडार मिलने की संभावना है।
जिस प्रकार दक्षिण भारतीय रसोइए चावल और उड़द की दाल को रगड़े में डालकर पीसते-रगड़ते हैं उसी तरह यहाँ की विशालकाय मशीन बड़े-बड़े पत्थरों को मिनटों में चूरा बना देती है। उस चूरे को कन्वेयर बेल्ट की सहायता से बड़े-बड़े झन्नों (चलनियों) में डालकर चाला जाता है जैसे कि कोई विशाल चलनी आटा या दलिया को चालती हो । पत्थरों के आकार के हिसाब से अलग-अलग मशीनों में उन्हें पीसकर सीमेंट के गारे की शक्ल प्रदान की जाती है। विशालकाय होजों में गारे जैसी लेई दाल की भाँति पकती है जैसे कि दही मथकर मक्खन निकाला जा रहा हो। इस प्रक्रिया के बाद ही ताँबा मिट्टी से अलग हो पाता है। और इस मिट्टी में सामान्यतः केवल दो प्रतिशत ताँबा होता है। कहीं की मिट्टी में
तो केवल देढ़ प्रतिशत ताँबा ही है। इस ताँबे को सहेज पर बाकी पछोरन मिट्टी को फेंक देते हैं ।
प्रति वर्ष 19 लाख टन वजन वाली इस पछोरन मिट्टी को फेंकने के लिए मलंजखंड में जो व्यवस्था है, वैसी भारत में अन्यत्र कहीं नहीं है ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखें ।
उत्तर – शीर्षक- ताँबे की खानें ।
(ख) संसार में ताँबा कहाँ-कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर – संसार में ताँबा संयुक्त राज्य अमेरिका, चिली, जांबिया, सोवियत रूस, स्पेन और मैक्सिको में पाया जाता है।
(ग) मशीनें बड़े-बड़े पत्थरों को कैसे पीसती हैं ?
उत्तर – मशीनें बड़े-बड़े पत्थरों को ऐसे पीसती हैं जैसे रसोइया चावल और उड़द की दाल को रगड़ता-पीसता है।
(घ) विशालकाय हौजों में क्या होता है ?
उत्तर – विशालकाय हौजों में सीमेंट के गारे जैसी लेई दाल की भाँति पकती है। ऐसा भी लगता है कि दही मथकर मक्खन निकाला जा रहा हो । इस प्रक्रिया के बाद ही ताँबा अलग होता है ।
(ङ) खनिज संपदा का पता कैसे लगाया जाता है ?
उत्तर – खनिज संपदा का पता लगाने के लिए पहले तो चट्टानों का अध्ययन करते हैं फिर जमीन की सतह में बरमा से छेद करके भीतर छिपी संपदा का पता लगाते हैं ।
(च) सर्वेक्षण करने वाले विमानों में कौन-कौन से यंत्र लगे रहते हैं ?
उत्तर – भू-सर्वेक्षण करने वाले विमानों में अतिसुग्राही, चुंबकीय, विद्युत चुंबकीय और रेडियोधर्मी यंत्र लगे रहते हैं ।
(छ) मिट्टी में सामान्यतः कितना ताँबा होता है ?
उत्तर – मिट्टी में सामान्यतः केवल दो प्रतिशत ही ताँबा होता है। कहीं की मिट्टी में यह डेढ़ प्रतिशत ही होता है।
(ज) मलंजखंड में क्या व्यवस्था है ?
उत्तर – मलंजखंड में प्रतिवर्ष 19 लाख टन वजन वाली पछोरन मिट्टी को फेंकने की व्यवस्था है।
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