NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 4 व्याकरण

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NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 4 व्याकरण

विशेषण

वे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं। जैसे— लम्बा आदमी, गोरे लोग इत्यादि । यहाँ पर ‘लम्बा’ से आदमी की और ‘गोरे’ से लोग की विशेषता का पता चलता है। अतः ‘लम्बा’ और ‘गोरे’ शब्द विशेषण हैं।
विशेष्य- जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताई जाती है, उसे ‘विशेष्य’ कहते हैं ।
जैसे- पीली सरसों में पीली विशेषण सरसों की विशेषता प्रकट कर रहे हैं। अतः ये शब्द विशेष्य हैं ।
विशेषण के प्रकार
(क) गुणवाचक विशेषण
जो विशेषण किसी पदार्थ के गुण, दोष आदि बतलाता है, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- सुन्दर (चित्र), अच्छा (मकान) आदि ।
यहाँ गुण का अर्थ केवल अच्छाई न होकर किसी भी विशेषता से है। अतः गुणवाचक में नीचे लिखी सभी विशेषताएँ आ जाती हैं ।
गुण- अच्छा, बुरा, सरल, योग्य, वीर ।
दोष- कुटिल, दुष्ट, पापी, कपटी, कायर ।
रंग-रूपक- लाल, पीला, हरा, नीला, भूरा।
आकार-प्रकार- गोल, टेढ़ा, नुकीला, लम्बा, पतला, गोल, चौरस ।
अवस्था— बलवान, रोगी, अमीर, भारी, गीला ।
स्वाद – मीठा, खट्टा, कड़वा, कसैला, चटपटा ।
दिशा- पूर्वी, पश्चिमी उत्तरी, दक्षिणी ।
देश-काल- भारतीय, जापानी, बनारसी, भावी, पंजाबी।
गन्ध- सुगन्धित, बदबूदार, गन्धहीन ।
स्पर्श – कोमल, कठोर, नर्म, खुरदरा ।
भार- हल्का, भारी, वजनी ।
शारीरिक दोष- अन्धा, लँगड़ा, लूला ।
(ख) संख्यावाचक विशेषण
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या सम्बन्धी विशेषता का बोध कराए, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- एक, दो, चार ।
संख्यावाचक विशेषण में वस्तुओं आदि की गणना, क्रम, समूह, आवृत्ति का समावेश पाया जाता है। जैसे
गणना – एक, दो, चार, छह ।
क्रम- पहला, दूसरा, चौथा, पाँचवाँ
समूह– दोनों, चारों, सैकड़ों, हजारों ।
आवृत्ति – दुगना, तिगना, चौगुना।
प्रत्येक सूचक- हरघड़ी, प्रत्येक प्रति व्यक्ति, प्रतिवर्ष।
(i) निश्चित संख्यावाचक विशेषण- जिन शब्दों से किसी निश्चित संख्या का ज्ञान होता है, उन्हें निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसेएक पुत्र । पाँच इन्द्रियाँ । दसवाँ भाग |
(ii) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण- जिन शब्दों से किसी निश्चित संख्या का ज्ञान नहीं होता। जैसे- दो-चार छात्रों को बुला लो। ज्यादा पैसे खर्च मत करना ।
(ग) परिमाणवाचक विशेषण
किसी वस्तु की माप-तौल सम्बन्धी विशेषता बताने वाले शब्दों को परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे
माप – चार मीटर कपड़ा, दस एकड़ जमीन ।
तौल- दो किलो दूध, एक क्विटल गेहूँ।
परिमाणवाचक विशेषण के भी दो प्रकार हैं
(i) निश्चित परिमाणवाचक- जिससे किसी वस्तु की निश्चित माप-तौल आदि का ज्ञान होता है ।
जैसे- आधा किलो बादाम, दो बीघा जमीन ।
(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक- जिससे किसी वस्तु की निश्चित मापतौल आदि का ज्ञान नहीं होता है।
जैसे- बहुत-से सेब | थोड़ी-सी जमीन | अधिक भार। कुछ दूध।
(घ) संकेतवाचक विशेषण / सार्वनामिक विशेषण
जो शब्द संज्ञा शब्दों से पहले आकर उनकी ओर निर्देश (संकेत) करते हैं, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे- यह लड़का परिश्रमी है। वह पुस्तक उपयोगी है।
सार्वनामिक विशेषण के भी चार प्रकार हैं – 
(i) निश्चयवाचक या संकेतवाचक सार्वनामिक विशेषण- जो विशेषण संज्ञा की ओर निश्चयार्थी संकेत करते हैं, उसे संकेतवाचक या निश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं ।
जैसे- यह पुस्तक राम की है।
उस कलम को उठा लाओ ।
(ii) अनिश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण- जो विशेषण संज्ञा की ओर अनिश्ययार्थी संकेत करते हैं उसे अनिश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
जैसे- सज्जन आए हैं।
घर में कुछ भी खाने को नहीं है।
(iii) प्रश्नवाचक सार्वनामिक विशेषण- जो सर्वनामिक विशेषण संज्ञा की प्रश्नात्मक विशेषता को प्रकट करें, उसे प्रश्नवाचक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं ।
जैसे- कौन व्यक्ति पुकार रहा है ?
किस लड़के ने उसे मारा है ?
(iv) संबंधवाचक सार्वनामिक विशेषण- जहाँ सर्वनाम का प्रयोग संज्ञा से पहले हुआ हो तो वह सार्वनामिक विशेषण होगा। यदि अकेले प्रयुक्त होगा तो सर्वनाम कहलाएगा।
जैसे – यह पुस्तक अभी आई है।
यह अभी आई है।
सर्वनाम और सार्वनामिक विशेषण में अन्तर
जब सर्वनाम (यह, वह, इतना, उतना कोई, कितना आदि) शब्द अकेले आते हैं, अर्थात् संज्ञा शब्दों के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं तो सर्वनाम कहलाते हैं, और जब इनके साथ संज्ञा आती हैं अर्थात् ये संज्ञा शब्द से पहले आकर उनकी ओर संकेत करते हैं, तब सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं ।
जैसे- यह लड़का सुशील है, किन्तु वह दुष्ट है
इन छात्रों में कोई भी फेल होने वाला छात्र नहीं है
इन वाक्यों में पहले प्रयोग में आए यह, इन, क्रमशः लड़का तथा छात्रों के साथ प्रयुक्त हुए हैं, अतः सार्वनामिक विशेषण हैं और बाद में प्रयुक्त वह, कोई, अकेले आए हैं, अतः सर्वनाम हैं।
प्रविशेषण
विशेषण की विशेषता प्रकट करने वाले शब्दों को प्रविशेषण कहते हैं। जैसे- तुमने बहुत अच्छा काम किया। इस वाक्य में ‘अच्छा’ विशेषण है और ‘काम’ विशेष्य । ‘बहुत’ शब्द ‘विशेषण की विशेषता’ बता रहा है। अतः वह प्रविशेषण है।

लिंग और वचन का विशेषण पर प्रभाव

(क) लिंग
शब्द के जिस रूप से यह पता चले कि वह पुरुष जाति का है अथवा स्त्री जाति का, उसे व्याकरण में लिंग कहते हैं ।
जैसे- लड़का पढ़ रहा है।
पंखा चल रहा है।
लड़की पढ़ रही है।
घड़ी चल रही है ।
‘लड़का’, ‘पंखा’ शब्द पुरुषवाची हैं तथा ‘लड़की’, ‘घड़ी’ शब्द स्त्रीवाची हैं। हिंदी में लिंग के दो भेद हैं –
(क) पुल्लिंग, (ख) स्त्रीलिंग
पुरुष जाति का बोध कराने वाले शब्द ‘पुल्लिंग’ और स्त्री जाति का बोध कराने वाले शब्द ‘स्त्रीलिंग’ कहलाते हैं ।
लिंग-निर्णय के कुछ नियम–
पुल्लिंग –
(क) आकारांत शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे— कपड़ा, लोटा, लोहा, दरवाजा आदि।
(ख) देशों के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे— चीन, भारत, अमेरिका, इंग्लैंड आदि ।
(ग) पर्वतों के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं
जैसे- हिमालय, कैलास, अरावली, हिंदुकुश आदि ।
(घ) ग्रहों के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- मंगल, शनि, सूर्य, चंद्र, ध्रुव, शुक्र आदि ।
(ङ) धातुओं के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- सोना, पीतल, ताँबा, लोहा (चाँदी अपवाद)
(च) वारों के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- सोम, मंगल, बुध, रवि, शनि आदि
(छ) समुद्रों के नाम प्रायः पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- हिंद महासागर, अरब महासागर आदि ।
(ज) प्रायः बहुमूल्य पदार्थों के नाम पुल्लिंग होते हैं ।
जैसे- हीरा, मोती, माणिक्य आदि ।
स्त्रीलिंग –
(क) ईकरांत शब्द प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं ।
जैसे- नदी, रोटी, बेटी, चिट्ठी आदि ।
(ख) भाषाओं के नाम प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं ।
जैसे- हिंदी, अंग्रेजी, चीनी, उर्दू आदि ।
(ग) नदियों के नाम प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं ।
जैसे- गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, सरस्वती आदि ।
(घ) जिन शब्दों में ता, आई, आवट, इया, आहट, प्रत्यय लगे हों, वे प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं।
जैसे- सुन्दरता, बुराई, सजावट, लुटिया, घबराहट आदि ।
(ङ) प्रायः शस्त्रों के नाम स्त्रीलिंग में होते हैं ।
जैसे- बंदूक, तलवार, तोप, कृपाण आदि ।
लिंग का विशेषण पर प्रभाव
अच्छा – पुल्लिंग – अच्छा लड़का , स्त्रीलिंग – अच्छी लड़की
बुरा – पुल्लिंग – बुरा आदमी , स्त्रीलिंग – बुरी स्त्री
नियम – 
(क) आकारांत विशेषण के स्त्रीलिंग रूप ‘ई’ लगाने से बनते हैं। जैसे- अच्छा अच्छी, मोटा-मोटी ।
(ख) कुछ फारसी विशेषण तथा ‘इया’ शब्द उर्दू शैली में स्त्रीलिंग रूप (इकारांत रूप) नहीं लेते हैं ।
जैसे- ताजा फल (पुल्लिंग) ताजा रोटी (स्त्रीलिंग) ।
गुणवाचक- (पुल्लिंग – स्त्रीलिंग रूप )
प्यारा- प्यारी, थोड़ा- थोड़ी, न्यारा- न्यारी, ठंडा- ठंडी, ऊँचा- ऊँची, मीठा- मीठी ।
संख्यावाचक विशेषण पर लिंग का प्रभाव नहीं पड़ता है ।
जैसे- दो आम, दो लीची, बहुत स्त्रियाँ, बहुत पुरुष ।
अनिश्चयवाचक परिमाणवाचक विशेषण पर लिंग का प्रभाव पड़ता है।
जैसे- थोड़ा दूध (पुल्लिंग), थोड़ा चीनी (स्त्रीलिंग)। निश्चयवाचक विशेषण में प्रभाव नहीं पड़ता।
जैसे- दो किलो आलू (पुल्लिंग), दो किलो चीनी (स्त्रीलिंग) ।
(ख) वचन
संज्ञा के जिस रूप से एक अथवा अनेक का बोध होता है, उसे वचन कहते हैं। जैसे- कुत्ता कुत्ते, संत-संतों, पुरुष-पुरुषों ।
वचन के भेद – हिन्दी में वचन दो प्रकार के होते हैं
(क) एकवचन – शब्द के जिस रूप से उसके (संज्ञा) एक होने का बोध होता है, उसे एकवचन कहते हैं । जैसे-लड़की, मेज, कलम, गाय आदि ।
(ख) बहुवचन – शब्द के जिस रूप से उसके (संज्ञा) अनेक होने का बोध होता है, उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे- लड़कियाँ, मेजें, कलमें, गाएँ, आदि ।
वचन के संबंध में जानने योग्य कुछ आवश्यक बातें
1. सम्मान प्रकट करने के लिए कभी-कभी एकवचन के लिए भी बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे
(क) हमारे प्रधानाचार्य बहुत परिश्रमी हैं।
(ख) राणा प्रताप बहुत वीर थे।
(ग) माता जी पहुँच गईं होंगी। (इसे ‘आदरार्थ’ प्रयोग कहा जाता है)
2. निम्नांकित शब्दों को सदैव बहुवचन में प्रयोग किया जाता हैआँसू, दर्शन, हस्ताक्षर, होश आदि
3. कुछ शब्दों का प्रयोग सदैव एकवचन में ही होता है। जैसे- जनता, सेना, चाय, घी आदि ।
4. अभिमान, बड़प्पन, अधिकार जताने के लिए प्रायः बहुवचन का प्रयोग करते हैं। जैसे- हम जा रहे हैं। हमें शांति चाहिए।
5. भाववाचक संज्ञाएँ एकवचन में प्रयुक्त होती हैं। जैसे- (क) प्रेम किया नहीं जाता, हो जाता है। (ख) आमों में मिठास है।
6. धातुओं का बोध कराने वाली द्रव्यवाचक संज्ञाएँ एकवचन में प्रयुक्त होती हैं। जैसे— (क) लोहा बहुत मजबूत होता है । (ख) सोना खरीदा गया ।

परसर्ग ‘ने’ का क्रिया पर प्रभाव

क्रिया
क्रिया वह शब्द (पद) है, जिससे किसी कार्य के करने का या किसी प्रक्रिया में अथवा किसी स्थिति में होने का बोध होता है ।
जैसे –
(क) लड़कियाँ गाना गा चुकी हैं।
(ख) वह हँस रहा है।
(ग) अब आप जा सकते हैं ।
मूल क्रिया अथवा धातु
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे- लिख, जा, रो, पढ़ आदि ।
नाम धातु क्रिया
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों से जो क्रिया धातुएँ प्रत्यय लगा कर बनायी जाती है, उन्हें नाम धातु कहते हैं। जैसे— हाथ से हथियाना, अपना से अपनाना, लालच से ललचाना आदि ।
क्रिया के प्रकार – मुख्य रूप से क्रिया दो प्रकार की होती हैं –
(1) अकर्मक
(2) सकर्मक
1. अकर्मक क्रिया – वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की आवश्यकता नहीं होती है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-दौड़ना, सोना, हँसना, रोना, उठना
यहाँ क्रिया का फल ( प्रभाव) सीधे कर्ता पर पड़ता है। जैसे
(क) राम दौड़ रहा है । (ख) बच्चा हँस रहा है । (ग) गीतिका रोती है।
2. सकर्मक क्रिया- सकर्मक क्रिया के प्रयोग में कर्म की आवश्यकता होती है उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। सकर्मक क्रिया कर्म के बिना अपना भाव पूरा नहीं कर पाती । जैसे-पढ़ना, लिखना, देखना, खाना पीना
आदि ।
जैसे – (क) मैं पुस्तक पढ़ रहा हूँ। (पुस्तक- कर्म)
(ख) रवि ने निशांत को बुलाया । (निशांत- कर्म)
(ग) वह चित्र बनाता है। (चित्र – कर्म)
> अकर्मक क्रिया के भेद –
(क) स्थित्यर्थक / अवस्था बोधक (पूर्ण) अकर्मक क्रियाएँ- ये क्रियाएँ अकर्मक होती हैं अर्थात् इनमें कर्म की आवश्यकता नहीं होती। ये अपूर्ण (पूरक के बिना अपूर्ण लगने वाली) नहीं है। ये कर्ता की अवस्था को बताती हैं । जैसे- सोना, हँसना, रोना, खिलना आदि ।
अस्तित्ववादी क्रिया होना’ भी इसी का उपभेद है; जैसे- ईश्वर है।
(ख) गत्यर्थक (पूर्ण) अकर्मक क्रियाएँ- यह क्रिया भी बिना कर्म के पूर्ण होती है। इन क्रियाओं को करते समय करने वाला गतिमान रहता है। जैसेजाना, आना, दौड़ना, भागना आदि ।
(i) रमेश मुंबई जा रहा है।
(ii) चिड़िया आकाश में उड़ रही है।
(ग) अपूर्ण (पूरक की आकांक्षा करने वाली) अकर्मक क्रियाएँ- अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ वे अकर्मक क्रियाएँ हैं, जिनके प्रयोग के समय अर्थ की पूर्णता के लिए कर्ता से संबंध रखने वाले किसी शब्द विशेष की आवश्यकता पड़ती है। ‘होना’ इस कोटि की सबसे प्रमुख क्रिया है, अन्य क्रियाएँ हैं—बनना, निकलना आदि।
जैसे- मैं बीमार हूँ इसलिए आ न सकूँगा । सोहन बहुत होशियार है।
सकर्मक क्रिया के भेद-
(क) पूर्ण एककर्मक (सकर्मक) क्रियाएँ- ये वे क्रियाएँ हैं जिसमें एक कर्म की आवश्यकता होती है ।
जैसे- रीना खाना खा रही है । (खाना- कर्म)
दरजी कपड़ा सिल रहा है। (कपड़ा- कर्म)
(ख) पूर्ण द्विकर्मक क्रियाएँ- ये वे क्रियाएँ हैं जिन्हें दो कर्मों की आवश्यकता होती है।
जैसे- मैं राम को पत्र लिखूँगा । (राम और पत्र- दो कर्म)
विनोद ने अशोक को अपनी कार बेच दी। (अशोक, कार- कर्म)
(ग) अपूर्ण सकर्मक क्रियाएँ (कर्म पूरकांक्षी सकर्मक क्रियाएँ)- ये वे क्रियाएँ हैं, जिनमें कर्म रहते हुए भी अर्थ का पूरा बोध नहीं होता और उसे पूरा करने के लिए कर्म से संबंध रखने वाले एक अन्य शब्द की आवश्यकता होती है।
जैसे – चुनना, मानना, समझना आदि ।
अमित श्याम को बिल्कुल (मूर्ख) समझता है ।
मैं तुम्हें अपना (भाई) मानती हूँ ।
अकर्मक-सकर्मक में परिवर्तन ( अंतरण) – क्रियाओं का अकर्मक अथवा सकर्मक होना, धातु के अर्थ से सीधे न होकर प्रयोग पर निर्भर करता है। इसी कारण कभी-कभी अकर्मक क्रियाएँ सकर्मक प्रयोग में और सकर्मक क्रियाएँ अकर्मक प्रयोग में मिलती हैं ।
जैसे – पढ़ना (सकर्मक ) – मैं पुस्तक पढ़ रहा हूँ
पढ़ना (अकर्मक) – वह आजकल दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है।
इसके विपरीत हँसना, लड़ना अकर्मक क्रियाएँ हैं, पर सजातीय कर्म लगने से वे सकर्मक रूप में मिलती हैं ।
जैसे – बाबर ने बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ीं ।
वह बड़ी मस्तानी चाल चल रहा है।
समापिका एवं असमापिका क्रियाएँ – 
1. समापिका क्रिया- ये क्रियाएँ वाक्य के अंत में लगकर वाक्य को समाप्त करती हैं ।
जैसे – चिड़िया आकाश में उड़ती है।
हिमालय की बर्फ पिघल रही थी ।
मैं उठकर जा रहा हूँ ।
2. असमापिका क्रिया – जो क्रियाएँ वाक्य के अंत में न लगकर वाक्य में अन्यत्र कहीं प्रयुक्त होती हैं, उन्हें असमापिका क्रिया कहते हैं। इन्हें क्रिया का कृदंती रूप भी कहा जाता है।
जैसे- डाल पर चहचहाती हुई चिड़िया कितनी सुंदर है।
क्रिया के कुछ अन्य भेद- उपर्युक्त भेदों के अतिरिक्त क्रिया के कुछ अन्य रूप भी हैं—
1. सहायक क्रिया,
2. संयुक्त क्रिया,
3. प्रेरणार्थक क्रिया,
4. पूर्वकालिक क्रिया
1. सहायक क्रिया– कई बार वाक्य में मूल क्रिया के अतिरिक्त अन्य क्रियाएँ (क्रियापद) भी प्रयुक्त की जाती हैं, इन्हें सहायक क्रिया कहते हैं।
जैसे-” (क) चोर भाग गया।
(ख) हम यह पुस्तक पढ़ चुके हैं।
(ग) वह स्त्री रोने लगी ।
2. संयुक्त क्रिया – दो स्वतंत्र अर्थ देने वाली क्रियाएँ जब मुख्य क्रिया और रंजक क्रिया के रूप में एक साथ मिल जाती हैं तब उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं ।
जैसे— (क) उसे मोहन आता दिखाई दिया । (देना- पूर्णता का भाव)
(ख) तुम यहाँ आकर बैठ जाओ। (जाना- पूर्णता का भाव)
(ग) वर्षा के कारण वह बीच में चला आया। (आना- अनायासता का भाव)
3. प्रेरणार्थक क्रिया – जिन क्रियाओं का कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को प्रेरित करके काम करवाए, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं । प्रेरणार्थक क्रिया मूलतः सकर्मक क्रिया होती है।
जैसे – मोहन सोहन से काम कराता है।
उपर्युक्त वाक्य में ‘काम करने का कार्य मोहन नहीं कर रहा है वरन् मोहन की प्रेरणा से सोहन काम करता है अर्थात् मोहन सोहन के द्वारा काम कराता है।
4. पूर्वकालिक क्रिया – मुख्य क्रिया से पहले आने वाली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया’ कहलाती है।
जैसे- (क) वह नहाकर पढ़ेगा ।
(ख) बच्चा दूध पीकर सो गया ।
(इसी प्रकार की क्रियाओं में ‘कर’ का प्रयोग होता है ।
परसर्ग ‘ने’ का क्रिया पर प्रभाव
अकर्मक क्रिया में संज्ञा का प्रत्यक्ष रूप आता है और सकर्मक क्रिया में कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग लगता है ।
जैसे –  राम गया। (अकर्मक क्रिया)
राम ने पत्र लिखा (सकर्मक क्रिया)
‘ने’ परसर्ग का उपयोग हिंदी, पंजाबी, गुजराती आदि भाषाओं की विशेषता है। अन्य भाषाएँ बोलने वाले इसे छोड़ देते हैं ओर क्रिया की अन्वितकर्ता से करते
 हैं ।
जैसे- हम खाना खाए। (हमनें खाना खाया )
‘ने’ के प्रयोग संबंधी विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं-
‘लाना’, ‘भूलना’ को छोड़कर अन्य सकर्मक क्रियाओं के पूर्ण पक्ष (क्रिया) रूप में जाने पर कर्ता में ‘ने’ लगता है और कर्म के साथ क्रिया की अन्विति होती है।
जैसे- (क) राम ने ही यह काम किया / किया है / किया था / किया होगा |
(ख) सुषमा ने ही यह गलती की / की है / की थी / की होगी । ‘ने’ वाले वाक़्यों में कर्म में ‘को’ जुड़ जाए तो क्रिया हमेशा पुल्लिंग एकवचन में होगी।
जैसे- मैंने एक लड़के को देखा ।
मैंने एक लड़की को देखा ।
मैंने कुछ लड़कों को देखा ।
मैंने कुछ लड़कियों को देखा।
खाँसना, छींकना, खखारना, फुफकारना आदि सहज भौतिक व्यापार वाली क्रियाओं के साथ ‘ने’ का प्रयोग होता है।
जैसे – उसने जोर से छींका |
पिताजी ने खाँसा ।
भूल जाना, समझ जाना आदि क्रियाओं में रंजक क्रिया ‘जाना’ के कारण अकर्मक हैं और इनके साथ ‘ने’ नहीं लगता।
जैसे – हँस देना, रो देना ।

वाक्य – रचना (सरल और संयुक्त वाक्य)

‘शब्दों के उस समूह को वाक्य कहते हैं, जिससे वक्ता का आशय स्पष्ट हो जाए’ । वाक्य के अंग (घटक)
वाक्य के दो अंग या घटक होते हैं- (1) उद्देश्य और (2) विधेय । इनसे मिलकर ही वाक्य का स्वरूप बनता है।
1. उद्देश्य 
वाक्य में जिस वस्तु या व्यक्ति के विषय में कुछ कहा (या विधान किया) जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं। वास्तव में वाक्य के कर्ता को ही ‘उद्देश्य’ कहा जाता है।
जैसे- बुढापा जीवन का अभिशाप है।
आत्मा अमर है।
बच्चों ने टेलीविजन देखा ।
विद्वान् सर्वत्र पूजे जाते हैं।
इन वाक्यों के पहले खंड में लिखे शब्द बुढ़ापा, आत्मा, बच्चों ने और विद्वान् उद्देश्य हैं, क्योंकि इन सबके विषय में कुछ कहा गया है।
2. विधेय
वाक्य में उद्देश्य अथवा कर्ता के विषय में जो कुछ कहा (या विधान किया ) जाता है उसे विधेय कहते
हैं ।
जैसे – राम ने रावण को मारा ।
आशा खाना पका रही है।
झूठ बोलना पाप है।
कुश्तियाँ चल रही हैं।
इन वाक्यों के दूसरे खण्ड में लिखे समस्त वाक्यांश विधेय हैं, क्योंकि ये क्रमशः राम ने, आशा, झूठ बोलना और कुश्तियाँ – इन उद्देश्यों के विषय किए गए विधान या कथन हैं।
वाक्य के भेद
वाक्यों का वर्गीकरण निम्नांकित दो आधारों (दृष्टि) पर किया जाता है – (अ) रचना की दृष्टि से और (ब) अर्थ की दृष्टि से ।
(अ) रचना की दृष्टि से वाक्य के भेद
रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद हैं
(i) सरल वाक्य,
(ii) संयुक्त वाक्य,
(iii) मिश्र वाक्य |
सरल वाक्य
जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय अर्थात् एक समापिका-क्रिया होती है; उसे ‘साधारण- वाक्य’ या ‘सरल वाक्य’ कहते हैं ।
जैसे- (क) राम ने रावण को मारा था
(ख) हनुमान् ने सारी लंका जलाकर राख कर दिया था
(ग) लड़के मैदान में खेल रहे हैं ।
उक्त वाक्यों में क्रमशः ‘मारा था’; ‘कर दिया था’ तथा ‘खेल रहे हैं, समापिका-क्रियाएँ हैं।
संयुक्त वाक्य
जिस वाक्य में दो या से अधिक ‘सरल’ या ‘मिश्रित’ वाक्य निरपेक्ष भाव (स्वतंत्र रूप) से योजक-शब्दों से जुड़े होते हैं, उसे ‘संयुक्त-वाक्य’ कहते हैं ।
जैसे- (क) आप चाय लेंगे या आपके लिए (मैं) कॉफी लाऊँ ।
(ख) वर्षा भी हो रही है और धूप भी निकल रही है।
(ग) अभिमन्यु कल प्रातः पानीपत गया था और वह शाम को ही लौट आया था ।
उक्त उदाहरणों के प्रत्येक वाक्य में दो-दो वाक्य हैं, जो (‘या’, ‘और’, ‘और’) योजक- शब्दों से जुड़े हैं।
याद रखें संयुक्त वाक्य में जुड़े वाक्यों में पहला वाक्य ‘प्रधान-वाक्य’ तथा अन्य वाक्य ‘समानाधिकरण वाक्य’ कहलाते हैं ।
उपवाक्य
जो दो या अधिक छोटे-छोटे वाक्य अपना पूर्ण अर्थ या भाव प्रकट करते हुए मिलकर एक बड़ा वाक्य बनाते हैं, ऐसे प्रत्येक वाक्य को ‘उपवाक्य’ कहते हैं । जैसे— यह आवश्यक नहीं है जो परिश्रमी, सच्चे और ईमानदार होते हैं, वे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें ही ।
इस वाक्य में तीन उपवाक्य हैं – 
(क) ‘यह आवश्यक नहीं है’ ।
(ख) ‘जो परिश्रमी, सच्चे और ईमानदारी होते हैं ।
(ग) ‘वे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें ही ।
> उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं –
(क) प्रधान उपवाक्य,
(ख) स्वतंत्र या समानाधिकरण उपवाक्य,
(ग) आश्रित उपवाक्य |
वाक्य – परिवर्तन
एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में बदलने की प्रक्रिया को ‘वाक्य-परिवर्तन’ कहा जाता
है ।
(क) सरल वाक्य में बदलें –
1. दिन निकला और अँधेरा दूर हो गया ।
सरल वाक्य- दिन निकलने पर अँधेरा दूर हो गया ।
2. बलराम आया और खाना खाने लगा ।
सरल वाक्य- बलराम आकर खाना खाने लगा।
3. शशी गा रही है और नाच रही है।
सरल वाक्य- शशी गा और नाच रही है ।
4. सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट जाओ ।
सरल वाक्य – सुबह की पहली बस पकड़कर शाम तक लौट आओ ।
5. भाई अपनी बहन के घर गया था, पर वह उसको वहाँ मिली नहीं ।
सरल वाक्य- भाई को बहन के घर जाने पर वहाँ नहीं मिली ।
6. बिल्ली का बच्चा वहाँ बैठ गया और चारों ओर देखने लगा ।
सरल वाक्य- बिल्ली का बच्चा वहाँ बैठकर चारों ओर देखने लगा।
7. वह घर गया और काम में लग गया।
सरल वाक्य- घर जाते ही वह काम में लग गया ।
8. मैंने गौरा को देखा और उसे पालने का निश्चय किया ।
सरल वाक्य- मैंने गौरा को देखकर उसे पालने का निश्चय किया।
9. प्याला नीचे गिरा और टूट गया ।
सरल वाक्य- नीचे गिरने से प्याला टूट गया ।
10. मैं उसके घर पहुँचा और मैंने उसके साथ देर तक बातचीत की।
सरल वाक्य- उसके घर पहुँच कर मैंने उसके साथ देर तक बातचीत की ।
(ख) संयुक्त वाक्य में बदलें –
1. वह फल खरीदने के लिए बाजार गया ।
संयुक्त वाक्य – वह बाजार गया और फल खरीद कर लाया ।
2. मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलवाई।
संयुक्त वाक्य- मैंने उसे पहले पढ़ाया और फिर नौकरी दिलवाई।
3. मोहन कल यहाँ आया और राम से बातें कीं । वह चला गया ।
संयुक्त वाक्य- मोहन कल यहाँ आया और राम से बातें करके चला गया।
4. प्रातःकाल होने पर चिड़ियाँ चहचहाने लगीं।
संयुक्त वाक्य – प्रातःकाल हुआ और चिड़िया चहचहाने लगीं।
5. रिश्वतखोर होने के कारण वह पकड़ा गया।
संयुक्त वाक्य- वह रिश्वतखोर था इसीलिए पकड़ा गया ।
6. अपराधी होने के कारण उसे सजा हुई ।
संयुक्त वाक्य- वह अपराधी था इसलिए उसे सजा हुई।
7. वह खाना खाकर सो गया
संयुक्त वाक्य- उसने खाना खाया और सो गया ।
8. आलसी होने के कारण वह विफल हुआ।
संयुक्त वाक्य – वह आलसी था इसीलिए विफल हुआ।
9. आप द्वार पर बैठकर ही उसकी प्रतीक्षा करें ।
संयुक्त वाक्य- आप द्वार पर बैठ जाएँ और उसकी प्रतीक्षा करें।
10. सुषमा बीमार होने के कारण आज स्कूल नहीं गई।
संयुक्त वाक्य- सुषमा बीमार है इसलिए आज स्कूल नहीं गई ।
वाक्य-संश्लेषण
एक से अधिक वाक्यों से एक वाक्य बनाने की प्रक्रिया को वाक्य-संश्लेषण कहते हैं ।
वाक्य-संश्लेषण करना
1. वह देर रात तक जागा सुबह देर से उठा। विद्यालय भी देर से ही पहुँचा। वाक्य-संश्लेषण- देर रात तक जागने के कारण, वह देर से उठा और विद्यालय भी देर से ही पहुँचा।
2. अध्यापक विद्यालय पहुँचा। रजिस्टर उठाया । कक्षा में जाकर हाजिरी ली। वह पढ़ाने लगा।
वाक्य-संश्लेषण- अध्यापक ने विद्यालय पहुँचकर रजिस्टर उठाया, कक्षा की हाजिरी ली और पढ़ाने लगा।
3. छात्र ने कापियाँ लीं। बैग में डालीं। छात्र पढ़ने चला गया ।
वाक्य-संश्लेषण- बैग में कापियाँ डालकर छात्र पढ़ने चला गया ।
4. वह घर गया। सामान उठाया ।  वह कोलकाता चला गया।
वाक्य – संश्लेषण- घर से समान उठाकर वह कोलकाता चला गया ।
5. घंटी बजी। छात्रों ने बस्ते उठाए । छात्र घर चले गए।
वाक्य-संश्लेषण – घंटी बजते ही छात्र बस्ते उठाकर घर चले गए ।
6. मजदूरों ने काम किया। मजदूरों ने पैसे लिए। मजदूर घर गए ।
वाक्य – संश्लेषण – काम करके मजदूरों ने पैसे लिए और घर चले गए।
7. घायल सैनिक उठा। शस्त्र उठाया । शत्रुओं से लड़ने लगा।
वाक्य-संश्लेषण- घायल सैनिक ने उठकर शस्त्र उठाया और शत्रुओं से लड़ने लगा।
8. शेखर के पिता विद्यालय आए । प्रधानाचार्य से मिले । चले गए ।
वाक्य-संश्लेषण- शेखर के पिता विद्यालय में प्रधानाचार्य से मिलकर चले गए।
9. प्रज्ञा ने पुस्तकें फाइल में रखीं। फाइल उठाई। कॉलिज पढ़ने चली गई ।
वाक्य-संश्लेषण- पुस्तकें फाइल में रखकर और उसे उठाकर प्रज्ञा कॉलिज पढ़ने चली गई।
10. वह सुबह उठा। उसने भोजन किया। वह काम पर चला गया।
वाक्य-संश्लेषण- सुबह उठकर भोजन करके वह काम पर चला गया।
11 वहाँ एक घर था । वह घर छोटा-सा था। घर के चारों ओर फूल थे।
वाक्य-संश्लेषण- वहाँ एक छोटा-सा घर था, जिसके चारों ओर फूल थे ।
12. मोहन मुझसे मिला । बहुत देर तक मुझसे बातचीत करता रहा। थोड़ी देर बाद उसने खाना खाया
वाक्य-संश्लेषण- मोहन ने मुझ से मिलकर बातचीत की और बाद में खाना खाया ।
13. हम खाने नहीं आए हैं। हम आपसे मिलने आए हैं ।
वाक्य-संश्लेषण- हम खाने नहीं आपसे मिलने आए हैं।
14. घंटी बजी। छात्र-छात्राएँ मैदान में आए । कुछ ही देर में प्रार्थना सभा आरम्भ हो गई।
वाक्य-संश्लेषण– घंटी बजते ही छात्र-छात्राएँ मैदान में आए और प्रार्थना सभा आरम्भ हो गई ।
15 सभा समाप्त हुई । वह घर लौटा । वह सो गया।
वाक्य-संश्लेषण- सभा समाप्त होते ही वह घर लौटकर सो गया ।
वाक्य – विश्लेषण
किसी वाक्य के सभी अंगों को अलग-अलग करके उनके पारस्परिक सम्बन्ध दिखलाने की प्रक्रिया को वाक्य-विश्लेषण या वाक्य-विग्रह कहते हैं ।
सरल वाक्य का विश्लेषण
सरल वाक्य के विश्लेषण में पहले उद्देश्य और विधेय को पृथक्-पृथक् किया जाता है। उद्देश्य में कर्ता और कर्ता का विस्तार होता है।
विधेय पूरक, पूरक के विस्तार; कर्म, कर्म के विस्तार; करण, करण के विस्तार; सम्प्रदान, सम्प्रदान के विस्तार; अपादान, अपादान के विस्तार अधिकरण, अधिकरण के विस्तार, सम्बोधन, सम्बोधन के विस्तार; क्रियाविशेषण तथा पूर्वकालिक क्रिया हो सकते हैं।
जैसे- उद्देश्य – मोहन सुन्दर है । (विधेय ‘है’)
उद्देश्य का विस्तार – (पूरक द्वारा) मोहन बहुत सुन्दर है ।
कर्म – मैंने रोटी खाई ।
कर्म का विस्तार – मैंने मोटी रोटी खाई।
करण- राम ने रावण को तीर से मारा ।
करण का विस्तार- राम ने रावण को तीखे तीर से मारा ।
सम्प्रदान – मैंने भिखारी को पैसे दिए ।
सम्प्रदान का विस्तार – मैंने बूढ़े भिखारी को पैसे दिए ।
अपादान- पेड़ से पत्ते गिरते हैं ।
अपादान का विस्तार – लम्बे पेड़ से पत्ते गिरते हैं ।
अधिकरण- मैं घर में रहता हूँ ।
अधिकरण का विस्तार – मैं साफ घर में रहता हूँ ।
सम्बोधन- ओ मोहन ! शीघ्र आओ ।
सम्बोधन का विस्तार – ओ मूर्ख मोहन ! शीघ्र आओ
क्रियाविशेषण- अरुण बड़ी तेजी से चल रहा है।
पूर्वकालिक क्रिया – कृष्ण खाकर आया है।
सरल वाक्य-विश्लेषण के उदाहरण
(क) गाँव के बच्चे अपने-अपने पिता के साथ ईदगाह जा रहे थे।
गाँव के बच्चे- उद्देश्य,
बच्चे– मूल उद्देश्य,
गाँव के उद्देश्य का विस्तार,
अपने-अपने पिता के साथ ईदगाह जा रहे थे – विधेय,
जा रहे थे – मूल विधेय (क्रिया),
अपने-अपने पिता के साथ – विधेय का विस्तार,
ईदगाह- कर्म,
अपने-अपने पिता के साथ – क्रिया का विस्तार (क्रियाविशेषण पदबन्ध)।
(ख) भारतीय नेताओं ने देश की आजादी के लिए महान् संघर्ष किया था।
भारतीय नेताओं ने उद्देश्य ।
नेताओं ने – मूल उद्देश्य (कर्ता )
भारतीय- उद्देश्य का विस्तार |
किया था – मूलविधेय ( क्रिया)
देश की आजादी के लिए महान् संघर्ष – विधेय का विस्तार ।
महान् संघर्ष – पूरक ।
संघर्ष कर्म ।
महान्– कर्म का विस्तार (विशेषण)
देश की आजादी के लिए- क्रिया का विस्तार (संज्ञा पदबंध ) ।

मुहावरे

जब कोई वाक्य या वाक्यांश अपने साधारण अर्थ को छोड़कर किसी विशिष्ट अर्थ को प्रकट करे, तब वह मुहावरा कहलाता है।
मुहावरे- अर्थ और वाक्य – प्रयोग
1. अंग – अंग ढीला होना ( थक जाना) – दिन-भर परिश्रम करने के बाद अंग-अंग ढीला पड़ जाता है।
2. अँधेरे घर का उजाला ( इकलौता पुत्र) – महाशय, यही तो हमारे अँधेरे घर का उजाला है ।
3. अक्ल पर पत्थर पड़ना (समझ में न आना ) – तुम्हें कितनी बार समझाया कि बस में बिना टिकट सफर नहीं करना चाहिए, किन्तु तुम्हारी अक्ल पर तो पत्थर, पड़ गए हैं, किसी की सुनते ही नहीं ।
4. अपना उल्लू सीधा करना (अपना काम निकालना ) – अपना उल्लू सीधा करने के लिए लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं ।
5. अपना-सा मुँह लेकर रह जाना (असफलता से लज्जित होना) – बड़ी डींग मार रहे थे कि ‘स्वाति’ की प्रत्येक कविता की व्याख्या कंठस्थ है, किन्तु जब एक पद्य का अर्थ पूछा गया तो अपना-सा मुँह लेकर रह गए।
6. आँख के अंधे गाँठ के पूरे (धनवान्, किन्तु मूर्ख) बेईमान व्यापारी आँख के अन्धे गाँठ के पूरे खरीददार से ही रोटी-रोजी कमाते हैं ।
7. आँखें खुलना (ज्ञान होना / चौकन्ना हो जाना ) – (क) स्वामी रामकृष्ण परमहंस के उपदेश से विवेकानन्द की आँखें खुल गई। (ख) जब कुसंगति से पूरी तरह बरबाद हो गया, तब उपेन्द्र की आँखें खुलीं ।
8. आँखों में धूल झोंकना (धोखा देना)- आतंकवादी पुलिस की आँखों में धूल झोंककर जेल से भाग गए।
9. आँखें पथरा जाना ( आँखों का जड़ बनना, पलकें न झुकना) – पति की प्रतीक्षा करते बेचारी की आँखें पथरा गई।
10. आँखें फेरना ( पहले जैसा प्रेम या व्यवहार न रखना) – प्रिंसपल बने ही बालमुकुन्द ने मित्रों से आँखें फेर लीं ।
11. आकाश-पाताल एक करना (अत्यधिक प्रयत्न करना) – परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए उसने आकाश-पाता एक कर दिया |
12. आग में घी डालना ( क्रोध को बढ़ावा देना) – धनुष-भंग के कारण परशुराम पहले ही क्रोधित थे, लक्ष्मण के कठोर वचनों ने आग में घी डाल दिया ।
13. आड़े हाथों लेना ( खरी-खोटी सुनाकार निरुत्तर और लज्जित करना) – पंजाब समस्या पर विपक्ष ने संसद् में प्रधानमंत्री की आड़े हाथों लिया ।
14. आपे से बाहर होना (अत्यधिक क्रोध करना) – पुत्र के द्वारा जरा – सी बात कहने पर आपे से बाहर होना घर की बरबादी है।
15. आसमान सिर पर उठाना ( बहुत शोर करना) – अध्यापक की अनुपस्थिति में विद्यार्थी आसमान सिर पर उठा लेते हैं ।
16. ईंट से ईंट बजाना (नष्ट-भ्रष्ट कर देना ) – हनुमान ने लंका जाकर उसकी ऐसी ईंट-से-ईंट बजाई कि लंकावासियों को छठी का दूध याद आ गया।
17. ईद का चाँद होना ( बहुत दिनों बाद दिखाई देना) — चुनाव जीतने के बाद प्रतिनिधि मतदाताओं के लिए ईद का चाँद हो जाते हैं ।
18. उँगलियों पर नचाना ( वश में करना ) – स्वार्थी और धूर्त नौकरशाह मन्त्रियों को उँगलियों पर नचाते हैं ।
19. उड़ती चिड़िया पहचानना ( बहुत अनुभवी होना) – इस पुलिस अधिकारी को कोई ॐ धोखा नहीं दे सकता, यह तो उड़ती चिड़िया पहचानता है ।
20. उल्लू बनाना (मूर्ख बनाना )- राजनीतिज्ञों को उल्लू बनाना आसान नहीं, वे बड़े-बड़ों के कान काटते हैं।
21. एक पंथ दो काज ( एक ही कार्य से दो लाभ) – अध्ययन में मन लगाने का अर्थ है एक पंथ दो काज-परीक्षा में अंक अधिक और बुरी संगत से बचाव।
22. एड़ी चोटी का जोर लगाना (कठोर परिश्रम करना) – दसवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा ।
23. ऐंठ- ऐंठ कर रह जाना (दिल मसोस कर रह जाना )- कश्मीर की दुर्दशा को देखकर सच्चे राष्ट्रभक्त ऐंठ-ऐंठ कर रह जाते हैं, कर कुछ नहीं पाते ।
24. ऐसी – तैसी करना (इज्जत नष्ट करना) – किसी की ऐसी-तैसी कर देना समाज-द्रोही तत्त्वों का स्वभाव है ।
25. औने – पौने करना (जो कुछ मिले उसी में बेच डालना) – सब्जी वाले सायंकाल तक बची हुई सब्जी को औने-पौने करके खत्म करने की चेष्टा करते हैं।
26. कंचन बरसना ( बहुत अधिक धन प्राप्ति या लाभ होना ) – वह नगर निगम पार्षद् क्या बना, घर में कंचन बरसने लगा।
27. कफन सिर पर बाँधना ( मरने को तैयार होना )- वीर सैनिक देश – रक्षार्थ सदा कफन सिर पर बाँधे रहते हैं ।
28. कमर सीधी करना (थकावट मिटाना ) – परिश्रम के उपरान्त थोड़ी देर के लिए कमर सीधी करना, स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है।
29. कलई खुलना (रहस्य प्रकट होना) – कलई खुलने पर मानव-हृदय को ठेस पहुँचती है।
30. कलेजा छलनी होना ( कड़वी बातों से कष्ट पहुँचना) – बॉस की बातें सुनते-सुनते क्लर्क का कलेजा छलनी हो गया ।
31. कलेजा ठंडा होना (सन्तोष होना ) – तुझे दर-दर की ठोकरें खाते देखकर ही मेरा कलेजा ठंडा होगा।
32. कलेजा मुँह को आना (दिल घबराना ) – उस भीषण टक्कर को देखकर मेरा तो कलेजा मुँह को आ गया |
33. काँटे बिछाना ( कार्य में बाधा उपस्थित करना) – किसी की सफलता के मार्ग में काँटे बिछाना दुष्कर्म है।
34. कान कतरना या कान काटना ( बहुत चतुर होना ) – आज की युवा पीढ़ी माता-पिता के कान कतरती है।
35. कान पर जूँ न रेंगना ( बार-बार कहने पर भी ध्यान न देना ) – भ्रष्ट प्रशासन में कितनी भी शिकायतें कीजिए, अधिकारियों के कान पर जूँ न रेंगेगी।
36. कोल्हू का बैल ( हर समय काम करने वाला) – चौबीस घण्टे कोल्हू का बैल बने रहने से स्वास्थ्य चौपट हो जाता है ।
37. खटाई में पड़ना ( काम में अड़चन आना ) – लालफीताशाही के कारण मेरी पेंशन का निर्णय खटाई में पड़ा हुआ है।
38. खरी – खोटी सुनाना ( दुर्वचन कहना ) – पाश्चात्य सभ्यता का ही प्रभाव कहिए कि आज की पुत्रवधू सास को खरी खोटी सुनाने से बाज नहीं आती।
39. खाक में मिलना (नष्ट हो जाना ) – मेरी सारी कमाई खाक में मिल गई।
40. खाक में मिलाना (नष्ट कर देना) – दुर्व्यसन आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति को भी खाक में मिला देते हैं ।
41. खून का प्यासा (मारने की इच्छा करने वाला)- आतंकवादी किसी के भी खून का प्यासा हो सकता है ।
42. गले पड़ना (इच्छा के विरुद्ध सम्बद्ध होना) – पुलिस की जाँच हो या इन्कमटैक्स का विवरण, एक बार गले पड़ जाए तो जान मुसीबत में फँस जाती है।
43. गागर में सागर भरना (थोड़े शब्दों में बहुत अधिक भाव मारना) – कवि बिहारी गागर में सागर भरने में निपुण थे।
44. गुदड़ी का लाल (गुणी व्यक्ति, किन्तु देखने में फटेहाल और जिसका गुण प्रकट न हो ) – लालबहादुर शास्त्री वास्तव में गुदड़ी के लाल थे। भारत-पाक युद्ध में उनकी सूझ-बूझ देखने योग्य थी ।
45. गोबर – गणेश ( काम न करने वाला व्यक्ति ) – तुम गोंबर- गणेश बने बैठे रहोगे तो काम कौन करेगा ?
46. घाव पर नमक छिड़कना अथवा जले पर नमक छिड़कना (दुःखी को दुःख देना) – सुरेन्द्र परीक्षा में असफल होने के कारण ही दुःखी है, तु जली-कटी बातें सुनाकर क्यों उसके घावों पर नमक छिड़क रहे हो ?
47. घाव हरे होना (बीते दुःखों की याद आना ) – मृत पुत्र के चित्र को देखकर उसकी याद आने के कारण माता के घाव हरे हो गए ।
48. घी के दिए जलाना (खुब खुशियाँ मनाना ) – जब श्रीराम बनवास से अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने घी के दिए जलाए थे ।
49. घुटने टेकना ( हार मानना) – निर्बल व्यक्ति जरा-सी धमकी में घुटने टेक देता है।
50. घोड़े बेचकर सोना (निश्चिन्त सोना) – परीक्षा का भूत सिर से उतरने पर परीक्षार्थी घोड़े बेचकर सोता है ।
51. चादर से बाहर पैर निकालना (आय से अधिक व्यय करना) – चादर से बाहर पैर पसारने वाले परिवार दुःखी रहते हैं।
52. चिकना घड़ा (किसी बात का कुछ असर न होना ) – राजनीति में सफल होना, तो चिकना घड़ा बनिए ।
53. चैन की वंशी बजाना ( आनन्द से रहना ) – चैन की वंशी बजानी है तो काम-क्रोध, लोभ, मोह तथा ईर्ष्या द्वेष को दूर से नमस्कार कीजिए ।
54. चोर की दाढ़ी में तिनका (अपराधी का स्वयं ही भयभीत रहना ) – ‘जिस किसी ने मेरे रुपए उठाए हैं, उसका सत्यानाश हो’, यह अभिशाप सुनकर नौकरानी झगड़ने लगी। ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’, स्पष्ट हो गया कि चोरी उसी ने की है।
55. छक्के छुड़ाना (परास्त करना) – देशभक्त सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए ।
56. छठी का दूध याद आना (घोर विपत्ति में पड़ना) – बंगला देश के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को छठी का दूध याद आ गया था।
57. छाती पर मूँग दलना ( बहुत दुःख देना) – नववधू की छाती पर मूँग दलना किसी भी सास के लिए श्रेयस्कर नहीं है।
58. छोटा मुँह बड़ी बात (अपनी हैसियत से बढ़कर बात करना) – गाँधी जी के सम्बन्ध में अपमानजनक बातें कहना तुम जैसे आदमी के लिए छोटे मुँह बड़ी बात हैं।
59. छिपे रुस्तम (देखने में साधारण वास्तव में विशेष) – प्रिंसिपल साहब लगते हैं भोले-भाले, किन्तु हैं छिपे रुस्तम, शिक्षा अधिकारी भी इनके नाम से काँपते हैं।
60. जमीन पर पैर न पड़ना (बहुत घमंड करना)- अच्छा घर और वर मिलने पर वधू के पैर जमीन पर नहीं पड़ते।
61. जान पर खेलना (मृत्यु की भी परवाह न करना) – लोगों ने जान पर खेलकर भी बाढ़ में फँसे परिवारों को निकाला ।
62. जिसकी लाठी उसकी भैंस (शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है ) – मिल-मालिक ने मजदूर की झोंपड़ी उखाड़कर फेंक दी और जमीन पर कब्जा कर लिया। मजदूर ने शोर मचाया, तो उसको पिटवा दिया। ठीक ही कहा है- ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस ।’
63. जिन्दगी के दिन पूरे करना (जैसे-तैसे जीवन के शेष दिन बिताना) – क्या बताऊँ ? लड़का कोई मदद नहीं करता । इस बुढ़ापे में मजदूरी करके जिन्दगी के दिन पूरे कर रहा हूँ।
64. टका – सा जवाब देना ( साफ इंकार करना) – वक्त पड़ने पर मित्र से आर्थिक सहायता माँगी, किन्तु उसने टका-सा जवाब दे दिया।
65. टाँग अड़ाना (बेकार दखल देना) – दूसरों के बनते काम में टाँग अड़ाना शोभनीय नहीं ।
66. टाँय-टाँय फिस होना (आरंभ शानदार, अन्त भद्दा) – प्रायः पत्रिकाओं का उद्घाटन और प्रचार तो बहुत होता है, किन्तु 4.5 अंक निकलने के बाद ही टाँय-टाँय फिस हो जाती हैं।
67. टेढ़ी उँगली से घी निकालना (चालबाजी से काम निकालना) – कार्य की सफलता के लिए टेढ़ी उँगली से घी निकालने में भी कोई बुराई नहीं है।
68. टेढ़ी खीर ( कठिन काम)- प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना विद्यार्थी के लिए सहज कार्य नहीं, टेढ़ी खीर है ।
69. ठोकरें खाना ( भूल करके नुकसान उठाना ) – यदि पढ़ने में मन लगाया होता, तो आज ठोकरें न खानी पड़तीं ।
70. ठोडी में हाथ लगाना ( खुशामद करके मनाना ) – वृद्ध आदमी ने युवा अफसर की ठोडी में हाथ लगाकर काम निकलवाने को चेष्टा की।
71. डूबते को तिनके का सहारा (संकट में अकस्मात् सहायता मिलना)- अकाल में सरकार की थोड़ी-सी भी सहायता अकाल-पीड़ित जन के लिए डुबते को तिनके का सहारा सिद्ध हुई।
72. डेढ़ चावल की खिचड़ी (पृथक्-पृथक् राय ) – नेताओं द्वारा अपनी-अपनी डेढ़ • चावल की खिचड़ी पकाने के कारण जनता- सरकार का पतन हुआ ।
73. ढाक के तीन पात (पहले जैसी बुरी स्थिति होना) – आपात्काल में भयंकर कष्ट झेलकर कांग्रेस विरोधी नेताओं में एकता हुई थी, किन्तु सत्ता में आते ही फिर वही ढाक के तीन पात हो गए।
74. तिल का ताड़ बनाना (छोटी बात को बड़ी बनान)– बच्चे झगड़े में मत पड़ो | क्यों तिल का ताड़ बना रहे हो ?
75. तूती बोलना (अधिक प्रभाव होना) – आज तो भारत में नौकरशाही की तूती बोलती है।
76. थाली का बैंगन (लालच के कारण एक पक्ष से दूसरे पक्ष में चले जाना)- जो राजनीतिज्ञ थाली के बैंगन की तरह लुढ़कते रहते हैं, उनसे राष्ट्र का भला होना संदेहास्पद है।
77. थोथा चना बाजे घना (काम कम करना और बातें अधिक करना ‘सार कम, बातें अधिक)– थोथा चना बाजे घना वाली प्रवृत्ति के मनुष्य का कहीं सम्मान नहीं होता।
78. दर – दर की ठोकरें खाना (दुर्दशाग्रस्त होना) – बी० ए० होते हुए भी नौकरी पाने के लिए उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं।
79. दाँत खट्टे करना (बुरी तरह हराना ) – वीर शिवाजी ने युद्ध में शत्रुओं के कई बार दाँत खट्टे किए ।
80. दाँतों तले अँगुली दबाना (आश्चर्यचकित होना या प्रकट करना)- मंत्रियों के कारनामे प्रकट होने पर बड़े-से-बड़े सत्ता-भक्त भी दाँतों तले अंगुली दबा लेते हैं ।
81. दाल भात में मूसलचंद (व्यर्थ टाँग अड़ाना) – तुम हर जगह दाल-भात में मूसलचंद क्यों बन जाते हो ?
82. दाल में कुछ काला होना (संदेहास्पद बात) – सामने के मकान में कुछ अजनबी से लोग घुसते देखा पड़ोसियों को दाल में कुछ काला लगा और वे सावधान हो गए।
83. दिन दूनी रात चौगुनी ( अधिक से अधिक ) – गुरु ने शिष्य को आर्शीवाद देते हुए कहा, ‘दिन दूरी रात चौगुनी उन्नति करो।’
84. धज्जियाँ उड़ाना (निन्दा रना, बेइज्जत करना) – सार्वजनिक स्थान पर परिवार जनों की धज्जियाँ उड़ाना अन्ततः हानिकारक सिद्ध होता है।
85. धुएँ का महल (कोरी कल्पना) – धुएँ का महल खड़ा करके यश नहीं कमाया जा सकता ।
86. धूप में बाल सफेद करना (अनुभवहीन) – इस वृद्धावस्था में भी तुम षड्यन्त्र में फँस गए, लगता है धूप बाल सफेद किए हैं ।
87. नाक कटवाना ( इज्जत नष्ट करना) – अरे नालायक, चोरी के केस में फँसकर तूने हमारी नाक कटवा दी।
88. नाक में दम करना ( बहुत परेशान करना) – जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों ने प्रशासन की नाक में दम कर रखा है।
89. नाकों चने चबाना ( खूब तंग करना ) – शिवाजी ने औरंगजेब की सेना को नाकों चने चबवा दिए थे।
90. नाम पर धब्बा लगना ( बदनामी करना) – कुपूत की करतूतें तो पिता के नाम पर धब्बा लगाती ही हैं ।
91. नौ दो ग्यारह होना ( बहुत तेज भागना) – पुलिस को देखते ही जुआरी नौ दो ग्यारह हो गया ।
92. पगड़ी उतारना ( इज्जत खराब करना) – दुष्प्रवृत्ति के लोगों को सभ्य नागरिकों की पगड़ी उतारने में देर नहीं लगती।
93. पत्थर की लकीर (पक्की बात) – ईमानदार व्यक्ति का वचन पत्थर की लकीर होती है ।
94. पर निकलना (स्वच्छंदतापूर्ण आचरण करने में प्रवृत्त होना) – कॉलेज स्टूडेंट बनते ही प्रायः छात्र-छात्राओं के पर निकलने लगते हैं।
95. फूंक-फूंक कर कदम रखना (बड़ी सावधानी से काम करना) – पुस्तक व्यवसाय में प्रकाशक को फूँक-फूँककर कदम रखना पड़ता है।
96. फूटी आँख न सुहाना (जरा भी अच्छा न लगना) – सौत के बच्चे तो प्रायः नारियों को फूटी आँख नहीं सुहाते।
97. फूला न समाना ( बहुत प्रसन्न होना) – चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी फूला नहीं समाता ।
98. बगल में छुरी मुँह में राम-राम (मित्रता का दिखावा करना ) – बगल में छुरी मुँह में राम-राम करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिए ।
99. बहती गंगा में हाथ धोना ( अवसर’ का लाभ उठाना ) – बहती गंगा में हाथ धोने वाले जीवन में अवश्य सफल होते हैं ।
100. बाएँ हाथ का खेल (अति सुगम काम) – कक्षा में नियंत्रण रखना अनुभवी अध्यापक के लिए बाएँ हाथ का खेल है।
101. बाल भी बाँका न होना (जरा भी कष्ट न होना) – ‘जाको राखे साइयाँ, मारि सकैन हिं कोय / बाल न बाँका करि सकै जो जग बैरी होय ।
102. भनक पड़ना (सुनाई पड़ना, ध्यान देना)– ‘कबहूँ तो दीनदयाल के भनक पड़ेगी कान।’
103. भाड़ झोंकना (व्यर्थ समय खोना) – तुम्हें जरा-सा भी शिष्टाचार नहीं आता। पब्लिक स्कूल में क्या भाड़ ही झोंकते रहे हो ?
104. भीगी बिल्ली बनना ( दबकर रहना) – मालिक के आगे भीगी बिल्ली बने रहने में ही कुशलता है।

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