NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 5 क्षितिज (भाग – 1) काव्य – खण्ड

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NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 5 क्षितिज (भाग – 1) काव्य – खण्ड

काव्य – खण्ड

निम्नांकित काव्यांशों को पढ़े और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें –

कबीर

साखियाँ

1. मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं ।
मुक्ताफल मुकता चुर्गों, अब उड़ि अनत न जाहिं ।।
(क) कवि और कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि का नाम- कबीरदास
कविता का नाम- साखियाँ ।
(ख) मानसरोवर और हंस यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुए हैं ? 
उत्तर – मानसरोवर- मन-रूपी सरोवर के लिए ।
हंस – जीवात्मा के लिए ।
(ग) मुकताफल कौन चुगता है ?
उत्तर – मुकताफल अर्थात् मुक्ति का फल केवल साधक ही चुगता है।
(घ) कबीर कहाँ ‘अनत’ न जाने की बात कर रहे हैं ?
उत्तर – कबीर के अनुसार मन द्वारा ही मुक्ति मिलती है। अतः जँगल, तीर्थ-स्थलों आदि सांसारिक जगह जाने की कोई आवश्यकता नहीं है ।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कबीर बताते हैं कि हृदयरूपी तालाब (अमृतकुंड) आत्मानंद रूपी जल से अच्छी प्रकार भरा हुआ है। इस जल में साधक क्रीड़ा करता रहता है। उसे इसी में आनंद की प्राप्ति होती है। वह साधक इसी साधना के बलबूते पर अपनी मुक्ति रूपी मोती प्राप्त करता है। अब वह पक्षी (साधक) उड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जा सकता।
2. प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलैं, सब विष अमृत होइ ।। 
(क) कवि किसको, कहाँ ढूँढता फिरा ?
उत्तर – कवि अपने प्रेमी अर्थात् परमात्मा को तीर्थों-मंदिरों में ढूँढता फिरा, पर वह उसे वहाँ नहीं मिला।
(ख) परमात्मा कहाँ मिलता है ?
उत्तर – परमात्मा का निवास हमारे अंदर ही है। वह वहीं मिलता है, उसे अन्यत्र ढूँढने की आवश्यकता नहीं है।
(ग) किससे, कौन-सा प्रेमी मिलता है और उसके मिलते ही क्या हो जाता है ? 
उत्तर – सच्चे ईश्वर प्रेमी को उसका परमात्मा मिलता है और उसके मिलते ही सभी बुराइयाँ समाप्त हो जाती हैं। सारा विष अमृत बन जाता है ।
(घ) विष के अमृत होने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – विष के अमृत होने का अर्थ दोष का गुणों और उजाले में बदल जाना है।
(ङ) प्रेमी मिलने में क्या कठिनाई आती है ?
उत्तर – सच्चे प्रभु- प्रेमी कम होते हैं। इसलिए वे आसानी से नहीं मिलते।
(च) दो प्रेमियों के मिलन पर कैसी अनुभूति होती है ?
उत्तर – दो प्रेमियों के मिलन से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य का उदय होता है । मन के मैल नष्ट हो जाते हैं और सद्भावनाएँ जाग्रत हो जाती हैं।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है कि मैं अनेक स्थानों पर अपने प्रेमी अर्थात् ईश्वर को ढूँढता फिरा, पर मुझे कहीं भी वह प्रेमी नहीं मिला। यह सत्य है कि जब ईश्वर प्रेमी को उसका प्रेमी (भगवान) मिल जाता है तब सभी प्रकार का विष अमृत हो जाता है अर्थात् मनुष्य की सभी बुराइयाँ समाप्त हो जाती हैं और उसे आनंद की प्राप्ति हो जाती है।
3. हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि ।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे क्षख मारि ।
(क) ज्ञान के अभाव में व्यक्ति क्या करता है ? 
उत्तर – ज्ञान के अभाव में व्यक्ति व्यर्थ में अपने अमूल्य जीवन का समय बर्बाद करता है।
(ख) अज्ञानी संसार को किसका प्रतीक कहा है और क्यों ?
उत्तर – अज्ञानी संसार को कुत्ते का प्रतीक कहा है, क्योंकि कुत्ता अज्ञानी बना व्यर्थ में अपना मुँह इधर-उधर मार कर पछताता है।
(ग) ‘ज्ञान’ का विलोम-रूप लिखें ?
उत्तर – ज्ञान-अज्ञान ।
(घ) कबीर ने क्या प्रेरणा दी है ?
उत्तर – कबीर ने लोकनिंदा की परवाह किए बिना प्रभु-भक्ति करने की प्रेरणा दी है।
(ङ) संसार को स्वान-रूप क्यों कहा गया है ?
उत्तर – जैसे हाथी को चलते देखकर कुत्ता अवश्य भौंकता है, वैसे ही किसी को ऊँची साधना में लगे देखकर लोग उसकी निंदा अवश्य करते हैं। इसलिए संसार को स्वान-रूप कहा गया है ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें। 
उत्तर – कबीर साधकों को संबोधित करके कहते हैं- हे साधको! तुम ज्ञान रूपी हाथी पर सहज समाधि रूपी आसन बिछाकर निश्चितता से चलते रहो। यह संसार कुत्ता का समान है, जो हाथी को चलते देखकर व्यर्थ ही भौंकता रहता है। उससे तुम्हारा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। आशय यह है कि प्रभु-साधक को दुनिया की निंदा की परवाह किए बिना साधना-पथ पर बढ़ते जाना चाहिए।
4. पखापखी के कारनै सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।।
(क) सारा संसार भ्रम में क्यों है ?
उत्तर – पक्ष-विपक्ष, तर्क-वितर्क के कारण संसार भ्रम में पड़ा हुआ है और वास्तविकता से दूर है।
(ख) संत का क्या गुण बताया है ?
उत्तर – संत व्यक्ति सदैव पक्ष-विपक्ष से परे निष्पक्ष रहता है अर्थात् वह भेद-भाव रहित सहज, सात्त्विक होता है ।
(ग) ‘हरि’ के दो भिन्नार्थक लिखें ?
उत्तर – हरि– विष्णु, बंदर
(घ) ‘संत सुजान’ से कवि का क्या आशय है ? 
उत्तर – ‘संत सुजान’ से कवि का यह आशय है कि संत कभी खंडन-मंडन के चक्कर में नहीं पड़ते। वे तो निष्पक्ष भाव से ईश्वर की स्तुति करते हैं।
(ङ) सारा संसार किस कारण किसे भूला हुआ है ?
उत्तर – सारा संसार आपसी तर्क-वितर्क और समर्थन – विरोध के कारण ईश्वर को भूला हुआ है।
(च) सच्चा संत कौन है ?
उत्तर – सच्चा संत वही है जो सभी वैर-विरोधों और संघर्षों से हटकर ईश्वर का भजन करता है।
(छ) ‘हरि-भजन’ के लिए कैसी मनोभावना चाहिए ? 
उत्तर – ‘हरि-भजन’ के लिए समर्थन-विरोध की भावना से ऊपर उठना बहुत आवश्यक है।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि के अनुसार- सारे संसार के भक्तगण सगुण एवं निर्गुण दोनों ही भक्तिधाराओं के भ्रमजाल में उलझ से गए हैं। निष्पक्ष भाव से सच्चे ब्रह्म को पहचानकर जो भक्त हरि का ( ईश्वर का ) भजन करता है, वही वास्तविक में संत व्यक्ति साबित होता है।
5. हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुवाइ। 
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकट न जाइ।। 
(क) हिंदू और मुसलमानों की कट्टरता किसमें प्रकट होती है ? 
उत्तर – हिंदू केवल राम को भगवान बताते हैं और मुसलमान केवल खुदा को मानते हैं।
इस प्रवृत्ति से उनकी कट्टरता प्रकट होती है।
(ख) इस दोहे के माध्यम से कबीर ने क्या समझाना चाहा है ?
उत्तर – इस दोहे के माध्यम से कबीर ने यह समझाना चाहा है कि राम और खुदा एक ही हैं। उनके नाम पर किसी प्रकार का भेदभाव उत्पन्न करना ठीक नहीं है।
(ग) कौन-सा व्यक्ति ‘जीवता’ है और क्यों ?
उत्तर – कबीर के अनुसार वह व्यक्ति ‘जीवता’ है जो हिंदू या कट्टर मुसलमान की बातों में नहीं आता। वह इनसे दूर रहकर ईश्वर का भजन करता है।
(घ) इस दोहे कबीर के युग का क्या संकेत मिलता है ?
उत्तर – इस दोहे से ज्ञात होता है कि कबीर के युग में हिंदू और मुस्लिम का भक्ति के संबंध में भेद-भाव पनपा हुआ था।
(ङ) कबीर ने हिंदू और मुसलमान को मृत क्यों कहा है ?
उत्तर – कबीर ने हिंदू और मुसलमान दोनों को मृत इसलिए कहा है क्योंकि वे आपसी भेदभाव में पड़कर सच्चे ईश्वर को भूल बैठे हैं।
(च) कबीर किस प्रकार का मनुष्य चाहते हैं ?
उत्तर – कबीर हिंदू-मुसलमान के भेदभाव से परे रहने वाला उदार मनुष्य चाहते हैं।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – हिन्दू लोग परमतत्त्व के लिए ‘राम राम रटते हुए और मुसलमान परमतत्त्व को ‘खुदा’ में सीमित करके नष्ट हो गए। कबीर कहते हैं कि वास्तव में वही जीता है (जीवित है) जो राम और खुदा के भेद में कभी नहीं पड़ता जो इन दोनों में व्याप्त अद्वैत तत्त्व को देखता है। जीवन की सार्थकता इस भेद-बुद्धि से ऊपर उठना है।
6. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम ।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम ।।
(क) ‘कबीरा’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – ‘कबीरा’ का अर्थ है- ज्ञानी ।
(ख) काब़ा और काशी क्या है ? उनका क्या महत्व है ?
उत्तर – काबा मुसलमानों की तथा काशी हिंदुओं का धारणानुसार धार्मिक स्थल है, जहाँ पहुँचकर व्यक्ति को मुक्ति मिलती है ।
(ग) कबीर की दृष्टि में काबा और काशी में कैसे संबंध है ?
उत्तर – कबीर की दृष्टि में काबा और काशी में आटे और मैदा का संबंध है।
(घ) मोटे आटे और मैदा के माध्यम से कवि क्या समझाना चाहता है ? 
उत्तर – कबीर मोटे आटे और मैदा के माध्यम से समझाना चाहतें हैं कि जिस प्रकार गेहूँ से आटा और उसी आटे से मैदा बनी है। उसी प्रकार उस ईश्वर के ही हम रूप हैं । अतः हम चाहे उसे राम कहें या रहीम, कोई अंतर नहीं है।
(ङ) राम रहीम क्यों हो गया ?
उत्तर – धार्मिक कट्टरता नष्ट होते ही राम और रहीम में अंतर न रहा। वे दोनों एक ही ईश्वर के रूप नजर आने लगे ।
(च) ‘मोट चून’ किसे कहा गया है ? वह ‘मैदा’ कैसे हो गया ?
उत्तर – विभिन्न धर्मों की खटकने वाली बातों को मोटा चून’ कहा गया है। अपनाने वाली अच्छी बातों को ‘मैदा’ कहा गया है । धार्मिकता कट्टरता समाप्त होने पर एक धर्म की भौंडी बात भी भली प्रतीत होने लगी।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कबीर जी कहते हैं कि- मुस्लिमों का तीर्थ-स्थल काबा और हिंदुओं के तीर्थ स्थल काशी दोनों ही एक समान हैं। यदि दोनों धर्मावलम्बी इस समानता के भाव को समझ लें तो मोटा आटा भी मैदा के समान महीन और ज्यादा प्रभावी सिद्ध हो सकता है। दोनों ही प्रसन्नतापूर्वक समान भोजन कर सकते हैं। अर्थात् दोनों को ही काबा-काशी के मतभेदों को भुलाकर एक ब्रह्म को पहचानकर जीवन के रहस्य को पहचानना होगा।
7. ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ ।।
(क) ‘ऊँचे कुल में जन्म लेने से कर्म ऊँचे नहीं होते यह व्यंग्य किस पर किया गया ?
उत्तर – ‘ऊँचे कुल में जन्म लेने से कर्म ऊँचे नहीं होते हैं में कबीर ने साधुपन का दिखावा करने वाले ढोंगियों पर व्यंग्य किया है।
(ख) कबीर की दृष्टि में कुल बड़ा है या कर्म ?
उत्तर – कबीर की दृष्टि में कर्म बड़ा है, क्योंकि निम्न कुल में उत्पन्न व्यक्ति भी अपने सु-कर्मों, उच्च-कर्मों से सज्जन कहलाता है।
(ग) प्रस्तुत दोहे में किस बात पर बल दिया गया है ?
उत्तर – प्रस्तुत दोहे में कहा गया है कि हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, जिससे हम सम्मान पा सकते हैं।
(घ) उच्च-कुलोत्पन्न होने पर भी उच्च गुणों के अभाव में उसकी महत्ता की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर – उच्च – कुलोत्पन्न होने पर भी उच्च गुणों के अभाव में उसकी महत्ता की तुलना स्वर्ण-कलश से की है ? जो विष से भरा है। ।
(ङ) कबीर मनुष्य की श्रेष्ठता किसमें मानते हैं ? 
उत्तर – कबीर मनुष्य की श्रेष्ठता उसके ऊँचे कर्मों के कारण मानते हैं ।
(च) साधू किसकी निंदा करते हैं ? 
उत्तर – साधु मदिरा-भरे स्वर्ण-पात्र की निंदा करते हैं अर्थात् वे बुराइयों में लगे मनुष्य की निंदा करते हैं चाहे वह मनुष्य कितने बड़े कुल का हो ।
(छ) सोने का कलश भी बुरा क्यों कहलाता है ? 
उत्तर – सोने का कलश तब बुरा कहलाता है, यदि उसमें मदिरा भरी हो।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – यदि मनुष्य के कार्य ऊँचे नहीं हैं तो ऊँचे कुल में केवल जन्म लेने मात्र से वह श्रेष्ठ नहीं हो सकता। जैसा सुरा (शराब) सोने के पात्र में भी रखी हो तो साधुजन (सज्जन) उसकी निंदा ही करते है; ठीक वैसे ही कुल की श्रेष्ठता का गर्व करने वाला यदि निकृष्ट (नीचे दर्जे का) कार्य करता है तो समाज में उसकी निंदा ही होती है, वहाँ कुल की श्रेष्ठता का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।

पद

1. मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में ।।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।
(क) कवि और कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि- कबीर, कविता – पद |
(ख) बंदा ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढता फिरता है ?
उत्तर – बंदा अर्थात् मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मजिस्द, काबा- कैलाश पर्वत, क्रिया-कर्म तथा योग-वैराग्य में ढूँढता फिरता है, किंतु उसे वह वहाँ नहीं मिलता।
(ग) ईश्वर को कहाँ पाया जा सकता है ?
उत्तर – ईश्वर को सच्चा खोजी व्यक्ति क्षण भर की तलाश में ढूँढ सकता है। यह सभी व्यक्तियों के अंदर साँस के रूप में विद्यमान रहता है। परमात्मा आत्मा के रूप में सभी मनुष्य के भीतर निवास करता है।
(घ) इस पद में कबीर ने किन बातों पर जोर दिया है ?
उत्तर – इस पद में कबीर ने ईश्वर को अपने अंदर ही खोजने पर बल दिया है। ईश्वर मंदिर, मस्जिद, तीर्थ, व्रत या योग-साधना में नहीं, अपितु वह तो प्रत्येक मानव के हृदय में विद्यमान है और उसको सच्ची भक्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
(ङ) इस पद में ‘मैं’ और ‘तेरे’ क्रमश: किनके लिए प्रयुक्त हुए हैं ?
उत्तर – इस पद में ‘मैं’ निराकार ब्रह्म के लिए और ‘तेरे’ मनुष्य के लिए आया है।
(च) खोजी व्यक्ति पल-भर में किसे ढूँढ़ सकता है और कहाँ ?
उत्तर – खोजी व्यक्ति परमात्मा को पल भर में ढूँढ़ सकता है। वह हर साँस में व्याप्त प्रभु को ढूँढ़ सकता है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कबीर के अनुसार प्रभु कहते हैं- अरे भक्त ! तू मुझे कहाँ-कहाँ ढूँढता फिरता है ? मैं तो तेरे समीप ही अवस्थित हूँ। मैं ना तो किसी मंदिर में निवास करता हूँ (जहाँ मुझे हिंदू बनकर तू मंदिर में ढूँढता है) ना ही किसी मस्जिद में रहता हूँ (जहाँ तू मुझे मुस्लिम बनकर ढूँढता है) ना ही मैं मुस्लिमों के तीर्थ-स्थल काबा में रहता हूँ, ना ही हिंदुओं के तीर्थ स्थल कैलाश पर्वत पर बसता हूँ। ना मैं किसी व्रत, पूजा, कर्मकाण्ड जैसे क्रिया-कर्मों में रहता हूँ ही योग साधना या वैराग्य की परंपरा में स्थित हूँ। यदि तुम मुझे खोजना ही चाहते हो और सचमुच सच्चे खोजी हो तो ढूँढो- मैं तुम्हें क्षण भर की तलाश में ही प्राप्त हो जाऊँगा क्योंकि अरे सज्जनों! मैं तो सभी की साँसों में निवास करता हूँ। तुम भी अपनी साँसों में मुझे खोजो।
2. संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे ।
भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी ।।
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर, ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा ।।
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणि ।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि जन भीनाँ ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे, उदित भया तम खीनोँ ।।
(क) कबीर किस आँधी की बात कर रहे हैं ? और क्यों ?
उत्तर – कबीर ज्ञान की आँधी की बात कर रहे हैं, क्योंकि जिससे समाज में व्याप्त अँधविश्वास, अज्ञान, बाह्याचार सब तिनके की भाँति उड़ जाएगा ।
(ख) गुरु की कृपा का कबीर के मन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – गुरु की कृपा से कबीर का मन पवित्र हो गया है। उनके हृदय से जाति-पाँति, वंश- परंपरा तथा व्यक्ति के नाम का प्रभाव समाप्त हो गया और वह समदर्शी हो गए हैं।
(ग) ज्ञान की आँधी आने पर साधक के जीवन पर क्या प्रभाव परिलक्षित होता है ?
उत्तर – ज्ञान की आँधी आने पर साधक का जीवन शांत हो जाता है। उसके मन से सब प्रकार का भ्रम दूर हो जाता है। वह मोह व माया के बंधन से मुक्त हो जाता है। लोभ आदि मानसिक विकार नष्ट हो जाते हैं तथा साधक पवित्र मन से ईश्वर का चिंतन करने लगता है। इससे ज्ञान के सूर्य का उदय होता है और अंततः अज्ञान का अँधकार तिरोहित हो जाता है ।
(घ) ईश्वर की गति जान लेने पर कवि के जीवन में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर – कवि ने जब ईश्वर की गति को जाना अर्थात् कवि के हृदय में ईश्वर के प्रेम की लौ जल गई तो उनका हृदय ज्ञान के प्रकाश से आलोकित हो गया। ज्ञान के इस आलोक में उनके शरीर (सभी इंद्रियों) से भी दोष दूर हो गए । अर्थात् कवि में कोई भी छल-कपट बाकी नहीं रहा।
(ङ) आँधी के बाद बरसने वाले जल का क्या आशय  है ?
उत्तर – आँधी के बाद बरसने वाले जल का आशय है- प्रभु-भक्ति का आनंद ।
(च) यहाँ ‘भाँन’ के प्रकट होने तथा उसके प्रभाव का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – भाँन के प्रकट होने का आशय है- प्रभु का बोध । इसका परिणाम यह हुआ कि मन में रहने वाला अंधकार और अज्ञान पूरी तरह नष्ट हो गया। 352
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें
उत्तर – हे संतो ! जब ज्ञान की आँधी आई तो भ्रम की टाटी उड़ गई। वह टाटी माया की रस्सी से ही बँधी थी । वह रस्सी भी छिन्न-भिन्न हो गई। छप्पर को रोकने के लिए जो खंभे लगे थे, वे भी आँधी के थपेड़ों से ध्वस्त हो गए। ये दो खंभे चित्त की दो अवस्थाओं-विषयासक्ति और वाह्याचार के थे। ज्ञान रूपी आँधी के थपेड़े से वे भी नष्ट हो गए। उस तृष्णा रूपी छप्पर का मुख्य आधार मोह रूपी बड़ेर (बाँस या बल्ली) भी भग्न हो गया, टूट गया । फलस्वरूप वह छप्पर धराशायी हो गया। अर्थात् तृष्णा विनष्ट हो गई। छप्पर के गिरने पर तृष्णा के नष्ट होने पर कुमति रूपी बर्तन भी टूट गए । सामान्यतः आँधी के बाद वर्षा होती है। ज्ञान की आँधी के बाद प्रेम-भक्ति रूपी जल की वर्षा हुई। इस प्रेमाभक्ति की वर्षा से प्रभु का भक्त प्रेम रस से नहा गया। कबीर कहते हैं कि ज्ञान रूपी सूर्य के उदय होने पर उसके मन में दिव्य प्रकाश छा गया और उसने अपने वास्तविक स्वरुप को पहचान लिया ।

ललद्यद

वाख

1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव ।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे ।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे ।।
(क) कवयित्री एवं कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवयित्री का नाम – ललद्यद, कविता का नाम- वाख ।
(ख) कवयित्री के ईश्वर प्राप्ति के प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर – कवयित्री माया – मोह में फँसी हुई है। उसके प्रयास स्वाभाविक रूप से कमजोर हैं कवियित्री नाशवान सहारों से ईश्वर को प्राप्त करना चाहती है। नश्वर सहारे स्थाई नहीं होते हैं, इसलिए उनके प्रयास व्यर्थ सिद्ध हो रहे है।
(ग) ‘कच्चे सकोरे’ से कवयित्री का क्या आशय है ?
उत्तर – सकोरा कच्ची मिट्टी का बना होता है, जो थोड़ी-सी ठेस लगते ही टूट जाता है। कवयित्री जिन सहारों से ईश्वर को प्राप्त करना चाहती है, वे भी कच्ची मिट्टी की तरह कमजोर हैं। इसलिए उन प्रयासों को ‘कच्चे सकोरे’ कहा है।
(घ) कवयित्री कैसे सहारों के बल पर ईश्वर प्राप्ति का प्रयास कर रही है ?
उत्तर – कवयित्री कमजोर और नाशवान सहारों के बल पर ईश्वर प्राप्ति का प्रयास कर रही है। कवयित्री के ये प्रयास सफल हों भी कैसे ? जबकि वे सहारे सांसरिक माया-मोह में उलझाने वाले हैं।
(ङ) कवयित्री के मन में रह-रहकर हूक क्यों उठ रही  है ?
उत्तर – कवयित्री इस सांसरिक मोह-माया से छुटकारा पाकर ईश्वर के पास जाना चाहती है, परंतु उसके मोक्ष प्राप्ति के सभी रास्ते बंद हैं। वह मोक्ष प्राप्ति के लिए छटपटा रही है।
(च) कवयित्री कच्चे धागे की रस्सी किसे कह रही है ?
उत्तर – कवयित्री जीवन जीने के साधनों को कच्चे धागे की रस्सी कह रही है।
(छ) ‘नाव’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर – नाव ‘प्रभु-भक्ति की प्रतीक है।
(ज) पानी टपकने का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – पानी टपकने का आशय है- जीवन रूपी रस्सी को गलाने वाला तत्त्व, अर्थात् काल ।
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवयित्री दार्शनिक भाषा में बताती है कि मैं अपनी जीवन नैया को कच्चे धागे से बनी रस्सी से खींचने का प्रयास कर रही हूँ। पता नहीं ईश्वर मेरी पुकार कब सुनेगा और जिस प्रकार कच्चे सकोरे (मिट्टी के पात्र) से पानी टपकता रहता है, उसी प्रकार मेरे सारे प्रयास बेकार हो रहे हैं। अब मेरे हृदय में रह-रहकर घर जाने की हुक उठती है अर्थात् मोक्ष पाने की इच्छा होती है। मुझे मुक्ति प्रदान करेगा।
2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी ।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की ।
(क) चीजें खाने और न खाने से क्या संभावना हो सकती है ?
उत्तर – चीजें खाने से व्यक्ति को कुछ भी हासिल नहीं होता। न खाने अर्थात् भूखा रहने से व्यक्ति अहंकारी अर्थात् घमंडी बन जाता है। उसे अपने तप पर घमंड हो जाता है।
(ख) कवयित्री क्या खाने को कहती है और क्यों ?
उत्तर – कवयित्री सम (शम) खाने को कहती है अर्थात् अंतःकरण और बाहरी इंद्रियों का निग्रह करने पर बल देती है। इससे व्यक्ति समभावी अर्थात् समानता की भावना वाला बन जाता है ।
(ग) मनुष्य समभावी कब हो सकता है ?
उत्तर – मनुष्य जब अपनी इंद्रियों और मन पर नियंत्रण कर लेता है, तब वह समभावी हो जाता है। फिर उसको माया मोह नहीं सताता है।
(घ) ‘बंद द्वार की साँकल खुलने का प्रयोग कवयित्री ने किस अर्थ में किया है ?
उत्तर – बंद द्वार की साँकल खुलने का प्रयोग कवयित्री ने चेतना व्यापक होने के अर्थ में किया है। हमारी चेतना जब व्यापक हो जाएगी तो ज्ञान के चक्षु तो खुल ही जाएँगे फिर हमारा मन माया मोह में नहीं फँसेगा ।
(ड ) खा – खाकर कुछ क्यों नहीं प्राप्त होता ?
उत्तर – भोग करने से मन ईश्वर से हटता है। मनुष्य की ईश-साधना भंग होती है। इसलिए उसे कुछ प्राप्त नहीं होता।
(च) न खाने से व्यक्ति अहंकारी कैसे बनता है ?
उत्तर – भोग पर संयम रखने से और तपस्या का जीवन जीने से मनुष्य स्वयं को बड़ा त्यागी महात्मा मानने लगता है। इससे उसके मन में अहंकार का जन्म होता है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवयित्री का कहना है कि सांसारिक वस्तुएँ खा-खाकर तुझे कुछ नहीं मिल पाएगा। न खाकर तू अहंकारी अर्थात् घमंडी बन जाएगा अर्थात् भूखा रहकर तुझे व्रत-तप का घमंड आ जाएगा। ये दोनों ही स्थितियाँ सुखद नहीं हैं। यदि तुझे खाना है तो सम खा अर्थात् अपने अंतःकरण और बाहरी इंद्रियों पर नियंत्रण कर | मनुष्य को अपनी इच्छाओं पर काबू पाना चाहिए। इसी से बंद दरवाजे की सांकल खुल पाएगी अर्थात् मोक्ष का नया रास्ता दिखाई देगा।
3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह ।
सुषुमसेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !
जेब टटोली, कौड़ी न पाई ।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?
(क) ‘सुषुम-सेतु’ किसे कहा गया है ?
उत्तर – सुषुम-सेतु सुषुम्ना नाड़ी की साधना को कहा गया है। हठयोगी सुषुम्ना नाड़ी में कुंडलिनी जाग्रत करने के लिए विभिन्न योग साधनाएँ करते हैं ।
(ख) ‘माझी’ कौन है ? उसे क्या और क्यों देना है ?
उत्तर – यहाँ ‘माझी’ ईश्वर है। वह नाविक के समान हमें इस भवसागर से पार उतारता है। नाविक को उतराई दी जाती है, पर कवयित्री के पास इस माझी (ईश्वर) को देने के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि वह हठयोग के चक्कर में पड़कर कुछ भी न अर्जित कर पाई।
(ग) ‘आई सीधी राह से, गई न सीधी राह’ से कवयित्री का क्या आशय है ?
उत्तर – कवयित्री यह कहना चाहती है कि मनुष्य जब इस संसार में आता है तो उसमें किसी भी प्रकार का छल-कपट नहीं होता। धीरे-धीरे मनुष्य छल-कपट के रास्ते अपना लेता है। इस प्रकार वह ईश्वर से दूर होता चला जाता है।
(घ) मनुष्य इस संसार में आकर किन कार्यों में लिप्त हो जाता है ?
उत्तर – मनुष्य इस संसार में आकर छल-कपट एवं अपनी स्वार्थ सिद्धि में लग जाता है। उसकी सद्कर्मों की पूँजी का हास होने लगता है।
(ङ) कवयित्री ने अपना दिन कैसे बिता दिया ?
उत्तर – कवयित्री ने अपना दिन अर्थात् अपना सारा जीवन व्यर्थ की हठयोग-साधना में बिता दिया ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवयित्री कहती है कि मैं न तो सीधे रास्ते से आई और न सीधे रास्ते से गई अर्थात् मैंने मुक्ति का सहज रास्ता नहीं अपनाया। मैं तो सुषुम्ना नाड़ी के पुल पर खड़ी रह गई और जीवन काल ऐसे ही बीत गया। जब पार उतरने के लिए माझी (नाविक) को कुछ देना चाहा तो मेरी जेब खाली थी, उसमें कुछ भी न था । माझी को नाव की उतराई देने को कुछ भी न था।
4. थल -थल में बसता है शिव ही
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां ।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान ।।
(क) ईश्वर का निवास कहाँ पर बताया है ?
उत्तर – ईश्वर को सर्व-व्यापी बताया है। वह सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है। हम अपने अज्ञान के कारण उसका साक्षात्कार नहीं कर पाते हैं ।
(ख) कौन व्यक्ति ईश्वर को जान सकता है ?
उत्तर – आत्म-ज्ञानी व्यक्ति ही ईश्वर को जान सकता है। ईश्वर को जानने के लिए मनुष्य को अपने अंतःकरण को शुद्ध करके आत्मा- लोचन करना होगा। आत्मा-ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।
(ग) मनुष्य ईश्वर को क्यों नहीं ढूँढ़ पाता है ?
उत्तर – मनुष्य अपने अज्ञान के कारण ईश्वर को ढूँढ़ नहीं पाता है । वह मनुष्य द्वारा बनाए गए धर्मों में उलझकर रह जाता है।
(घ) स्वयं को अपने जानने से ईश्वर को कैसे जाना जा सकता है ?
उत्तर – ईश्वर का निवास हमारे अंदर होता है। यदि हमें आत्मा ज्ञान हो जाएगा तो हम ज्ञान-चक्षुओं से ईश्वर के दर्शन कर सकते हैं । अतः ईश्वर को जानने से पहले हमें आत्म-ज्ञान की आवश्यकता है।
(ङ) कवयित्री अपने प्रभु को किस नाम से पुकारती है और क्यों ?
उत्तर – कवयित्री अपने प्रभु को ‘शिव’ नाम से पुकारती है । शिव का अर्थ है- कल्याणकारी । कवयित्री प्रभु को कल्याणकारी मानती है।
(च) ईश्वर की पहचान कैसे हो सकती है ?
उत्तर – अपनी आत्मा को जानने के बाद ही परमात्मा का बोध हो सकता है। अतः ईश्वर को पहचानने का मार्ग आत्मज्ञान है।
(छ) कवयित्री सांप्रदायिक भेदभाव से दूर है। कैसे ?
उत्तर – कवयित्री हिंदू और मुसलमान दोनों को ही ‘शिव’ की आराधना करने के लिए प्रेरित करती है। इसी से स्पष्ट है कि उसके मन में सांप्रदायिक भेदभाव नहीं है ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रत्येक स्थान पर निवास करने वाला शिव तत्त्व अर्थात् कल्याणकारी परमात्मा एक है। इसलिए उसी की बनाई सृष्टि में हिंदू और मुसलमान का भेद कैसा ? वस्तुतः हिन्दू और मुसलमान दोनों एक हैं, उनकी मनुष्यता एक है। ओ मानव ! यदि तेरे अंदर ज्ञान है, तो तू सबसे पहले खुद को जान ले और जिस दिन तू खुद को समझ लेगा, उसी दिन तू उस परमपिता की भी पहचान कर लेगा और उसका परिचित बन जाएगा।

रसखान

सवैये

1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरौ चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन ।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन ।।
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि- रसखान, कविता – सवैये ।
(ख) कवि ब्रजभूमि पर किस-किस रूप में जन्म लेना चाहते हैं ?
उत्तर – कवि मनुष्य रूप में, पशु रूप में, पत्थर रूप में, पक्षी रूप में । क्रमशः ग्वालों के बीच, गायों के बीच, गोवर्द्धन पर्वत पर एवं यमुना तट के कदम्ब के पेड़ पर नीड़ बनाकर आदि रूपों में जन्म लेना चाहते हैं ।
(ग) कवि मनुष्य बनने पर अपनी क्या इच्छा प्रकट करता है ?
उत्तर – कवि अगले जन्म में मनुष्य बनने पर गोकुल गाँव के ग्वालों के मध्य बसने की इच्छा प्रकट करता है ।
(घ) ‘पाहन’ से कवि का क्या तात्पर्य है ? वह कहाँ का पाहन बनना चाहता है और क्यों ?
उत्तर – ‘पाहन’ से कवि का तात्पर्य पत्थर से है । वह गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहता है क्योंकि इसे श्रीकृष्ण ने अपनी अँगुली पर उठाया था। इससे उसे भगवान कृष्ण के हाथ का स्पर्श सुख मिल जाएगा।
(ङ) कवि पक्षी के रूप में कहाँ बसना चाहता है और क्यों ?
उत्तर – कवि पक्षी के रूप में यमुना तट पर उगे कदंब के पेड़ की डाली पर बसना चाहता है। इससे वह कृष्ण की ब्रजभूमि के निकट बना रह सकेगा।
(च) इस काव्यांश में कवि का क्या भाव झलकता है ?
उत्तर – प्रस्तुत सवैये में रसखान का कृष्ण एवं ब्रजभूमि के प्रति अनन्य प्रेम झलकता है। कवि ब्रजभूमि के साथ इतना लगाव रखता है कि वह अगले जन्म में भी इसके साथ अपनी निकटता बनाए रखना चाहता है। वह हर स्थिति में ब्रज में रहना चाहता है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कृष्ण के प्रेम में इतना तल्लीन है कि उसकी इच्छा है कि यदि मैं मनुष्य के रूप में पुनः जन्म पाऊँ तो ब्रज और गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच ही रहूँ। रसखान कहते हैं कि यदि मैं पशु के रूप में जन्म लूँ तो नित्य नंद की गायों के बीच चरूँ। रसखान की इच्छा बस इतनी है कि विधाता यदि मुझे पत्थर बनाए तो उसी गोवर्धन पर्वत का, जिसे ब्रज की रक्षा के लिए इन्द्र के कारण कृष्ण ने छतरी की भाँति उठा लिया था। रसखान की कामना है कि यदि मैं पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना के तट पर स्थित वही कदंब वृक्ष हो जिसके नीचे खड़े होकर कृष्ण वंशी बजाते हैं। तात्पर्य यह है कि रसखान प्रत्येक स्थिति में कृष्ण का निकटतम सानिध्य प्राप्त करना चाहते हैं।
2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं ।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ।
रसखान कबौ इन आँखिन सौं ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं ।
कोटिक ही कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।।
(क) कवि तीनों लोकों का सुख किस पर न्यौछावर करना चाहता है ?
उत्तर – कवि कृष्ण की लकड़ी और कम्बल पर तीनों लोकों का सुख न्योछावर करने को तैयार है।
(ख) कवि नंद की गाय चराने के सुख के बदले क्या देना चाहता है ?
उत्तर – कवि नंद की गाय चराने के सुख को पाने के बदले में संसार की आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ न्यौछावर करने को तैयार है ।
(ग) करोड़ों धवल भवनों को कवि किस पर न्यौछावर करना चाहता है ?
उत्तर – कवि करोड़ों धवल भवनों को ब्रजौ के घने करील कुंजों पर न्यौछावर कर देना चाहता है।
(घ) आठ सिद्धियाँ तथा नौ निधिंयाँ कौन-कौन-सी है ?
उत्तर – आठ सिद्धियाँ – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वाशित्व ।
नौ निधियाँ- पद्य, शंख, महाशंख, कछप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व ।
(ङ) रसखान करील के कुंजों पर क्या न्योछावर कर देना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर – रसखान ब्रजभूमि के करील कुंजों पर सोने के करोड़ों महल भी न्योछावर कर देना चाहते हैं। कारण यह है कि कृष्ण की लीलाभूमि होने के कारण उन्हें इन कुंजों में कृष्ण के होने का सुखद अनुभव होता है
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कृष्ण की लकुटी और कंबल पर मैं तीनों लोकों का राज्य भी न्यौछावर कर दूँ । आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी यदि नंद की गाय चराने का अवसर मिल जाए तो भूल जाऊँ । रसखान कहते हैं कि यदि केवल एक बार भी इन आँखों से मैं ब्रजमंडल के वन-बागों को देख पाऊँ तो उन करील के कुंजों पर सोने के बने करोड़ों भवनों को न्यौछावर कर दूँ ।
3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहों, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पितेबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी ।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करोंगी।
या मुरली मुरलीघर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
(क) कौन, किसके कहने पर क्या करने को तैयार हो गई ?
उत्तर – एक गोपी दूसरी गोपी के कहने पर श्रीकृष्ण का स्वाँग भरने को तैयार हो गई।
(ख) गोपी क्या-क्या करने को तैयार हो गई ?
उत्तर – गोपी अपनी सखी के कहने पर अपने सिर पर मोर पंख रखने तथा गले में गुंज की माला पहनने को तैयार हो गई। वह श्रीकृष्ण द्वारा पहने जाने वाला पीतांबर भी ओढ़ने को तैयार हो गई। वह हाथ में लाठी लेकर अन्य ग्वालों के साथ गाएँ लेकर वन में फिरने को भी तैयार हो गई ।
(ग) गोपी क्या करने से मना कर देती है और क्यों ?
उत्तर – गोपी अपने होठों पर बाँसुरी रखने से कतई मना कर देती है। वह बाँसुरी को अपनी सौत समझती है अतः सौतिया डाहवश वह उसे कतई नहीं अपना सकती।
(घ) इस पद के माध्यम से कवि क्या दर्शाना चाहता है?
उत्तर – इस पद के माध्यम से कवि यह दर्शाना चाहता है कि ब्रज की गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम था । कृष्ण की अनुपस्थिति में स्वयं कृष्ण की वेशभूषा धारण कर लेती हैं अतः उसी सुध की अनुभूति कर लेती हैं। इसके बावजूद उनके मन में बाँसुरी के प्रति सौतिया डाह का भाव है।
(ङ) नायिका होठों पर मुरली क्यों नहीं रखना चाहती ?
उत्तर – नायिका मुरली के प्रति सौतिया डाह रखती है। कृष्ण सदा मुरली बजाने में लीन रहते हैं। इस कारण वे नायिका की ओर ध्यान नहीं देते। अतः वह मुरली से ईर्ष्या करती है। वह उसे अपने होठों से नहीं लगाना चाहती।
(च) ‘मुरलीधर’ किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – श्रीकृष्ण को मुरलीधर कहा गया है। वे यमुना-तट पर बंशी बजाया करते थे। उनके इसी रूप पर गोपियाँ मुग्ध थीं। इसलिए उन्हें मुरलीधर कहा गया है।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – हे सखी! मैं मोरपंख सिर के ऊपर रखूँगी, गुँजा की माला भी गले में पहनूँगी। लकुटी लेकर, पीतांबर ओढ़कर गायों और ग्वालों के साथ वन में भी घूमूँगी । रसखान कहते हैं कि गोपिका अपनी सखी से कहती है कि कृष्ण मुझे इतना भाते (प्यारे लगते) हैं कि मैं उनके रूप का प्रत्येक स्वांग तुम्हारे कहने से करूँगी । लेकिन शर्त यह है कि वह मुरली, जो उस कृष्ण के अधरों (हाठों) पर विराजती है (बैठी रहती है) उसको कभी अपने अधरों पर नहीं रखूँगी ।
4. काननि दे अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै ।।
टेरि कहौ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझेहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै ।।
(क) गोपियाँ कृष्ण की विभिन्न क्रियाओं से क्यों वशीभूत हैं ?
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण की विभिन्न क्रियाओं से वशीभूत हैं, क्योंकि के कृष्ण-प्रेम से आसक्त है।
(ख) गोपियों के कान में उँगली रखकर बंद करने पर भी क्या हो रहा है ?
उत्तर – गोपियों के कान में उँगली रखकर बंद करने पर भी उन्हें कृष्ण की मुरली की मधुर तान लगातार सुनाई देती है ।
(ग) लोगों के समझाने पर भी गोपियाँ समझ क्यों नहीं पाती हैं ?
उत्तर – कहा जाता है कि प्रेम अँधा होता । प्रेम मग्न व्यक्ति की सर्वइंद्रियाँ अपने ईष्ट के रूप, रंग, गुण में ही सिक्त रहना चाहती हैं। प्रेमी किसी बंधन, किसी तर्क, किसी समझ को नहीं स्वीकारता है। अतः लोगों के समझाने पर भी गोपियाँ समझ नहीं पाती हैं ।
(घ) गोपियों पर कृष्ण की मुसकान का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुसकान से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। वह मुसकान उन पर बुरी तरह छा जाती है। यह मुसकान उनसे संभाली नहीं जाती।
(ङ) कृष्ण अपनी किन-किन विशेषताओं से प्रभावित करते हैं ?
उत्तर – कृष्ण की तीन विशेषताएँ गोपी को प्रभावित करती हैं –
मुरली की मधुर तान,
लोक गीत का सुमधुर गान,
मोहक मुसकान ।
(च) गोपी अपने-आपको सँभाल क्यों नहीं पाती ?
उत्तर – गोपी कृष्ण की मधुर बंशी, सुमधुर गान तथा मोहिनी मुसकान के कारण अपने आपको सँभाल नहीं पाती।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि रसखान जी कहते हैं कि- एक गोपिका दूसरी सखी से कहती है कि- अरी सखि ! मैं भले ही कानों पर उंगली रखकर स्वयं को संयमित रखने की भरपूर कोशिश करूँ, तब भी कृष्ण की मुरली का (बजाने पर) स्वर (धीमा-धीमा ही) और भी मनमोहक लगने लगता है। मैं अपनी अटारी से उनका गोधन का अर्थात् कृष्ण का गीत और रागिनी सुनकर उस ओर ध्यान नही देना चाहती, परंतु उसी ओर ध्यान जाता है। मुझे पुकारकर सारे ब्रज के नर-नारी कितना भी समझा लें, किंतु मोहन की मोहक मुस्कान देखकर मैं उनकी ओर खिंची चली जाती हूँ। मुझसे उनके प्रति अपना यह लगाव छिपाए नहीं छिपता है। उनकी लुभावनी मुस्कान को मैं सँभाल नहीं पाती, मैं उनकी मुस्कान का मोह संवरण करने में सर्वथा असमर्थ हूँ ।

माखनलाल चतुर्वेदी

कैदी और कोकिला

1. क्या गाती हो ?
क्यों रह रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो !
क्या लाती हो ?
संदेश किसका है ?
कोकिल बोलो तो !
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना !
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन, या तम का प्रभाव गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि का नाम – माखनलाल चतुर्वेदी,
कविता का नाम- कैदी और कोकिला।
(ख) कवि किससे बात कर रहा है और कहाँ खड़ा होकर बात कर रहा है ?
उत्तर – कवि स्वाधीनता आंदोलन के समय जेल गया था । अतः वह जेल की काल-कोठरी में है और जंगले से बाहर कूकती कोयल से बात कर रहा है।
(ग) कवि कोकिला से किस संदेश की बात कर रहा है ?
उत्तर – कवि कोकिला से देश की स्वतंत्रता के लिए उठाए जा रहे कदमों के किसी संदेश की बात कर रहा है।
(घ) कवि कोकिला के समक्ष अपनी कौन-सी पीड़ा रख रहा है ?
उत्तर – कवि कोकिला के समक्ष ब्रिटिश शासन की क्रूरता का वर्णन कर भारतीयों की पीड़ा का वर्णन कर रहा है।
(ङ) यहाँ किस व्यवस्था की क्रूरता का वर्णन किया गया है ?
उत्तर – यहाँ ब्रिटिश-व्यवस्था की क्रूरता का वर्णन किया गया है। कवि बताता है कि ये सब चोर, डाकू –बटमार हैं। न यहाँ जीने देते हैं, न मरने, रात-दिन यहाँ कड़ा पहरा रहता है।
(च) कवि के अनुसार कोयल क्यों गाने लगी है ?
उत्तर – कवि के अनुसार, कोयल अंग्रेज सरकार के अत्याचारों से क्षुब्ध है । वह जेल में बंदी कैदियों के साथ हो रहे अत्याचारों को देखकर पिघल गई है। इसलिए वह जेल की दीवार के ऊपर मँडराकर गाने लगी है।
(छ) कवि को कारागृह में किन लोगों के बीच रहना पड़ा ?
उत्तर – कवि को कारागृह में डाकुओं, चोरों, राहजनों के बीच रहना पड़ा। राजनैतिक कैदी होने पर भी उसे अलग आवास नहीं मिला ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि जेल में रहकर एकाकी और उदासीन से हैं। देश प्रेम की भावना उनके हृदय में हिलोरें ले रही है। ऐसे में खिड़की की सलाखों के पीछे से बाहर लगे पेड़ पर बैठी कोयल की मधुर आवाज सुनकर कवि कोयल को सम्बोधित करके कहते हैं कि- अरी कोयल ! जरा तू बता तो सही कि तू ऐसी अँधेरी रात में भी जाग कर मीठी तान (कुहू कुहू के स्वर में) क्यों सुना रही है ? तू किसका संदेश लेकर आई है ? यहाँ जेल की ऊँची-ऊँची दीवारों के काले घने साये में डाकू, चोर लुटेरे अपना डेरा जमाए हुए हैं, यहाँ के घुटनपूर्ण वातावरण में जीने भर को भी भोजन मुअस्सर (उपलब्ध) नहीं होता है। अर्द्धमृत (अधमरा )- सा करके हर कैदी को यहाँ रहने को विवश होना पड़ता है। यहाँ हर कैदी के जीवन पर रात-दिन कठोर पहरा रहता है। ब्रिटिश शासन के अत्याचार और शोषण की कालिमा सब ओर दिखाई देती है। रात्रि में चंद्रमा भी निराश कर देता है अर्थात् चंद्रमा की चाँदनी भी शीतलता प्रदान न करके दाहकता प्रदत्त करती है। तू भी काले शरीर वाली कालिमामय परिवेश की ओर संकेत करती हुए रात्रि में क्यों कुहूक रही है ?
2. क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो !
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो !
(क) ‘मृदुल वैभव की रखवाली-सी’ किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – कोयल को मृदुल वैभव की रखवाली-सी कहा गया है। वह अपने कोमल कंठ से माधुर्य और सरसता की रक्षा करती है। वह संसार के लिए मृदुता बचाए रखती है। इसलिए उसे ‘मृदुल वैभव की रखवाली-सी कहा गया है ।
(ख) कोयल की कूक में क्या विशेषता थी ?
उत्तर – कोयल की कूक में वेदना का बोझ था ।
(ग) कवि ने कोयल की आवाज को ‘हूक’ क्यों कहा है ?
उत्तर – कोयल की आवाज में दुख और वेदान की अनुभूति थी। इसलिए उसे ‘हूक’ कहा गया है।
(घ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- हे कोयल ! तुम्हारे कंठ से वेदना के स्वर वाली ऐसी गहरी हूक क्यों निकल पड़ी ? तुमने ऐसा क्या देख लिया ? तुम्हारा क्या लुट गया ? तुम्हारा कंठ इतना कोमल और मधुर है मानो तुम्हें ईश्वर ने संसार के हर मधुर वैभव ही रक्षा करने का दायित्व सौंप रखा है। तुम बताओ, फिर तुम्हारे स्वर में इतनी वेदना क्यों है ?
3. क्या हुआ बावली ?
अर्द्ध-रात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो !
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो !
किस दावानल की
(क) कवि ने कोयल को बावली क्यों कहा है ?
उत्तर – कोयल आधी रात को जेल के आसपास हूकना बहुत अस्वाभाविक था । कवि पहले ही दुखी था। उसकी हूक ने उसके दुख को और अधिक बढ़ा दिया । अतः इस मनोदशा में उसने उसे बावली कह दिया ।
(ख) दावानल की ज्वालाएँ से क्या आशय है ?
उत्तर – दावानल की ज्वालाएँ का आशय है – बहुत भारी दुख।
(ग) कोयल किस समय चीखी ?
उत्तर – कोयल आधी रात के समय चीखी ।
(घ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कोयल से पूछता है- हे कोयल ! तुम इस तरह आधी रात को क्यों चीख रही हो ? क्या तुम पागल हो गई हो ? तुमने किस जंगली आग को देख लिया है, जिसकी ज्वाला से डरकर अचानक चीख पड़ी हो ?
4. क्या ?- देख न सकती जंजीरों का गहना ?
हथकड़ियों क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ ? – जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुँआ ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली ?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
(क) कवि हथकड़ी को क्या मानता है ?
उत्तर – कवि हथकड़ी को ब्रिटिश राज का गहना मानता है। कवि हथकड़ी को अभिशाप न मानकर आभूषण मानकर इसका स्वागत करता है। वह घबराया हुआ कतई नहीं है।
(ख) कवि के अनुसार कोयल के मन में करुणा क्यों जाग उठी है ?
उत्तर – कवि का कहना है कि कोयल के मन में करुणा भाव इसलिए जाग आया है। क्योंकि उसने कवि तथा अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को हाथों में हथकड़ियाँ पहने देखा है। इससे उनकी हिलने-डुलने तक की आजादी छिन गई है। उन्हें भारी कष्ट उठाना पड़ रहा है ।
(ग) कवि को कैदी के रूप में जेल में क्या-क्या काम करने पड़ते हैं ?
उत्तर – कवि को कैदी के रूप में जेल में अनेक कठिन कार्य करने पड़ते हैं। कभी उससे खेत में काम कराया जाता है तो कभी उसे पेट पर जूआ बाँधकर चरस खींचना पड़ता है। उसकी कमर पर मोटा रस्सा बाँधा जाता है और उसे बैल की तरह चलकर कुएँ से पानी खींचकर निकालना पड़ता है। कभी कोल्हू चलाना पड़ता है।
(घ) कवि को कोयल का संगीत कैसा प्रतीत होता है ?
उत्तर – कवि को कोयल का संगीत करुणादायक एवं आँसुओं से गीला प्रतीत होता है। यह सुनने वालों को द्रवित कर देता है। कोयल संगीत के माध्यम से विद्रोह के बीज बोती जान पड़ती है।
(ङ) कवि को किस कारण कारागृह में जाना पड़ा ? वहाँ उसे किस प्रकार की यातनाएँ मिलीं ?
उत्तर – कवि को स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान संघर्ष करते हुए कारागृह में जाना पड़ा। वहाँ उसे घोर यातनाएँ झेलनी पड़ी। उसे हथकड़ियों में कैद करके रखा गया । उसे कोल्हू चलाने के लिए बैल की जगह जोत दिया गया। उससे गिट्टियाँ तोड़वाई गईं। इस प्रकार अमानवीय कष्ट दिए गए।
(च) कवि ने ब्रिटिश अकड़ का कुआँ कैसे खाली किया ?
उत्तर – अंग्रेज ने कवि की अकड़ ढीली करने के लिए उसे अमानवीय यातनाएँ दीं। कोल्हू के बैल की जगह उसकी छाती पर जुआ बाँध दिया और कोल्हू चलवाया गया कवि ने इस यातना को भी झेल लिया। इससे अंग्रेजों की अकड़ ढीली हो गई ।
(छ) कोकिल रात्रि में आवाज क्यों कर रही है ? उससे कवि किस प्रकार प्रभावित हो रहा है ?
उत्तर – कोकिल रात के समय कवि के दुख-भरे हृदय पर मरहम लगाने आई है। वह कवि के संग-संग रोने के लिए आई है तथा उसे चुपचाप विद्रोह करते रहने के लिए प्रेरणा देने आई है। कवि को उसके सहानुभूति-भरे स्वर से संघर्ष करने की बराबर प्रेरणा मिल रही है ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – हे कोयल ! क्या तुम्हें शरीर पर पड़े जंजीरों के गहने नहीं दिखाई देते। ये हथकड़ियाँ नहीं हैं, अरे ये ही तो अंग्रेजी शासन के आभूषण (गहने) हैं। कोल्हू चलाने से निकली चरक-चूँ की आवाज ही अब हमारे जीवन की तान बन गई है, गिट्टी तोड़ते-तोड़ते अँगुलियों ने उन पर अपने गीत लिख दिए हैं। जेल के कुओं में पानी खींचने वाले मोट भी पेट पर जुआ बाँधकर हमीं चलाते हैं। और अंग्रेजों के शासन की अकड़ से भरे जलकूपों को खाली करते हैं; अर्थात् उनकी सत्ता को कमजोर बनाते हैं, हे सखी कोयल ! तुम मधुरिम तानों से आधी रात इसलिए गा रही हो, ताकि मैं इतना रोऊँ कि दिन में भी मेरे हृदय में करुणा का भाव उद्दीप्त न हो। इसीलिए तो अपनी तानों से इस शांत रात के अंधकार को बेध रही हो। कोयल, तुम क्यों रो रही हो, बोलो तो सही ! तुम इस अंधकार में चुपचाप मधुर गीतों से विद्रोह के बीज क्यों बो रही हो। तुम्हारा इस तरह कूकना ठीक नहीं। कोयल, बोलो तो !
5. काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह- श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली !
इस काले संकट- सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो !
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो !
(क) किस-किस चीज को काली बताया गया है ?
उत्तर – कोयल, रात, ब्रिटिश शासन के कारनामे, टोपी, कंबल, लोहे ही हथकड़ी आदि सभी चीजें काली है।
(ख) ये काली चीजें कैसा वातावरण निर्मित कर रही हैं ?
उत्तर – ये सभी काली चीजें निराशाजनक, आतंक और भय का वातावरण उत्पन्न कर रही हैं ।
(ग) कोकिल के स्वर को ‘चमकीले गीत’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर – कोकिल का स्वर प्रेरणामय है । वह देशभक्ति की भावना से युक्त है। उसमें ओज और संघर्ष का आह्वान है। इसलिए उसे ‘चमकीले गीत’ की संज्ञा दी गई है ।
(घ) कोयल का व्यवहार कवि को कैसा प्रतीत हो रहा है ?
उत्तर – कोयल का व्यवहार कवि को अच्छा लग रहा है। वह कोयल की बोली सुख-मिश्रित आश्चर्य के साथ स्वागत करता है। कवि को लगता है कि जिस प्रकार तूफानी लहरों वाले सागर में नौका पर चढ़कर उसे पार करने का साहस अपूर्व होता है, वैसे ही कोयल इस आतंकपूर्ण वातावरण में गीत गाकर अपूर्व साहस का परिचय दे रही है।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कोयल को संबोधित करता हुआ कहता है कि आधी रात में जबकि चारों ओर शांति ही छाई है तूं बोलती है तो लगता है जैसे शांत अंधकार को भेदती हुई रुलाई हो।
हे कोयल ! बताओं कि तुम अपने गान के माध्यम से इतनी मधुरता से शासन के प्रति विद्रोह के बीज क्यों बो रही हो, अर्थात् शासन के खिलाफ लोगों में विद्रोह की भावना जगने के भाव की सूचना दे रही हो।
रात काली है, तू भी काली है, इस शासन की करतूतें भी काली हैं लहरें भी काली, कल्पना का रंग भी काला, सिपाहियों की टोपियाँ, कैदियों के कंबल भी काले हैं, मेरी लोहे की जंजीरें भी काली हैं अर्थात् पूरा परिवेश अमानवीय है, जुल्म जलालत से भरा हुआ है। प्राणों पर भी संकट है, ऐसे में जबकि शासन इतना क्रूर और निर्दयी है, पराधीनता के इस संकट रुपी सागर में मुक्ति की आकांक्षा रुपी इन चमकीले गीतों को क्यों तैरा रही हो। मुझे स्पष्ट अपने मुख से बोलकर बताओ।
6. तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली !
रोना भी है मुझे गुनाह !
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार !
तेरे गीत कहावें वाह,
देख विषमता तेरी मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी !
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?
कोकिल बोलो तो !
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ ।
कोकिल बोलो तो।
(क) कवि और कोयल की स्थिति में क्या अंतर है ?
उत्तर – कवि को जेल की काली कोठरी मिली है जबकि कोयल को हरियाली डालों पर रहने का अवसर मिलता है। कोयल का संसार आकाश तक फैला हुआ है जबकि कवि का संसार दस फुट तक सीमित है। वह एक छोटी सी कोठरी में रहता है। कोयल कहीं भी मुक्त विचरण कर सकती है।
(ख) कोयल के गीत क्या पाते हैं और कवि की किस्मत में क्या है ?
उत्तर – कोयल के गीत लोगों की प्रशंसा पाते हैं। लोग उसके गीत सुनकर वाह-वाह कर उठते हैं। इसके विपरीत कवि के लिए हँसना तो दूर, रोना भी गुनाह है। कवि किसी भी रूप में अपने दिल का गुबार नहीं निकाल सकता।
(ग) कवि कब अपने दुख को भूल जाता है ?
उत्तर – कवि जब कोयल के स्वर में रणभेदी, युद्ध की ललकार और संघर्ष का अह्वान सुनता है तो वह अपने दुख, दुर्भाग्य और हीन भावना को भूल जाता है।
(घ) कवि क्या चाहता है ?
उत्तर – कवि मोहनदास करमचंद गाँधी के आह्वान पर देश सेवा के व्रत में जुटा है। वह इसे पूरे मन से निभाना चाहता है। कवि भी अपने गीतों की मदिरा लोगों को पिलाना चाहता है ताकि वह लोगों को बलिदान के लिए प्रेरित कर सके। वह ऐसा करने के लिए कोयल से पूछता है ।
(ङ) ‘कोकिल’ कवि के लिए प्रेरणामयी आवाज है । सिद्ध करें।
उत्तर – कोकिल की आवाज कवि के लिए प्रेरणादायी है। वह उसकी हुँकार पर कुछ भी करने को तैयार है। वह कहता है
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?
कोकिल बोलो तो!
(च) कवि गाँधीजी की प्रेरणा से प्रेरित है। सिद्ध करें।
उत्तर – कवि महात्मा गाँधी से प्रेरित है। कविता में ‘मोहन’ शब्द गाँधीजी के लिए आया है। कवि लिखता है
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
(छ) ‘नभ-भर का संचार’ से क्या आशय है ?
उत्तर – ‘नभ भर का संचार’ का आशय है- खुले आकाश में विहार करना।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है कि हे कोयल । तुम्हें तो हरियाली युक्त डाल अर्थात् सुख-सुविधाएँ मिली हुई हैं जबकि मेरे भाग्य में जेल की काली कोठरी है। तुम आकाश में विचरण करती हो, पूरा आकाश ही तुम्हारे संचरण के लिए है। जबकि मेरा संसार तो इस दस फुट की जेल-कोठरी में ही सिमट कर रह गया है। तुम्हारे गीत से तुम वाह-वाही की पात्र बनती हो जबकि मैं तो रो भी नहीं सकता। कवि अप्रत्यक्ष रुप से पराधीनता के काल में अंग्रेजों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की ओर संकेत कर रहा है। किन्तु यदि मेरी विवशता जानते हुए भी तुम मुझे अपनी स्वर रुपी रण भेरी सुना-सुनाकर मुक्ति के संग्राम के लिए प्रेरित कर रही हो तो तुम्हारी इस हुंकार के बदले तुम्हीं बताओ मैं और कृति (रचना) के माध्यम से और क्या कर दूँ । हे कोयल ! तुम्हीं बताओ कि गाँधी के देश की स्वतंत्रता के व्रत की रक्षा के लिए अपने प्राणों के रस का आसव बनाकर किस के प्राणों में भर दूँ ।

सुमित्रानंदन पंत

ग्राम श्री

1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक !
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें ।
उत्तर – कवि का नाम- सुमित्रानंदन पंत,
कविता का नाम – ग्राम श्री ।
(ख) कवि ने खेतों में फैली हरियाली का वर्णन किस रूप में किया है ?
उत्तर – कवि ने खेतों में फैली हरियाली का वर्णन मखमल के रूप किया है। जिसमें सूर्य का प्रकाश अपना जाल फैलाए हैं ।
(ग) हरियाली पर सूर्य की किरणें कैसी लग रही हैं ?
उत्तर – हरियाली पर सूर्य की किरणें फैल रही हैं। ये किरणें चाँदी के समान उज्ज्वल एवं चमकीली हैं। ये किरणें चाँदी की जाली सी लगती हैं ।
(घ) आकाश के बारे में कवि ने क्या बताया है ?
उत्तर – यह नीला निर्मल आकाश भूमितल पर झुका हुआ प्रतीत हो रहा है। वह परदे के समान झुका हुआ लगता है।
(ङ) ‘हिल हरित रुधिर है रहा झलक’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – इसका आशय यह है कि घास के हरे-हरे तिनकों पर ऐसी ताजगी और उज्ज्वलता है कि लगता है मानो उनकी नसों में हरा खून दौड़ रहा है।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – गाँव के चारों ओर हरे-भरे खेत हैं उनमें मखमल जैसी कोमल और नरम हरियाली फैली हुई है। उस पर सूरज की किरणें पड़ रही है। वे किरणें चाँदी के समान उज्ज्वल और चमकीली हैं। घास के तिनकों के शरीर पर जैसी हरियाली खून के समान हिल और चमक रही है। इस प्रकार सारी धरती हरी-भरी है। उस पर नीला आकाश एक परदे के समान झुका हुआ दिखाई दे रहा है। कवि का भाव यह है कि गाँव के आस-पास का वातावरण हरा-भरा है और वह आँखों को बहुत अच्छा लग रहा है ।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ है शोभशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
(क) इस समय धरती कैसी लग रही है ?
उत्तर – इस समय धरती रोमांचित-सी लग रही है । ‘रोमांचित’ होने का अर्थ है- शरीर के रोएँ (रोंगटे) खड़े हो जाना। यह प्रसन्नता एवं आश्चर्य के कारण होता है। गेहूँ के पौधे बालियों के आने पर रोमांचित हो रहे हैं ।
(ख) अरहर सनई की किंकिणियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर – अरहर सनई की फलियाँ सूख जाती हैं तब हवा के चलने से वे घुँघरुओं की तरह बजने लगती हैं। इसी प्रकार सोने की किंकिणियाँ (करधनियाँ) बजती हैं। दोनों में समानता है।
(ग) हवा में कैसी गंध तैर रही है और यह कहाँ से आ रही है ?
उत्तर – हवा में तैलीय गंध तैर रही है। यह गंध फूली हुई पीली-पीली सरसों से आ रही हैं।
(घ) वसुधा अपना रोमांच किस प्रकार प्रकट कर रही है ?
उत्तर – वसुधा गेहूँ और जौ की बालियों को उगाकर अपना रोमांच प्रकट कर रही है । उसने अपनी कमर पर सन और अरहर रूपी घुँघरू – वाली करधनी धारण कर ली है। उसके वस्त्र पीले और नीले हैं। उसके तन से सुगंध विकीर्ण हो रही है ।
(ङ) सरसों की फसल से क्या प्रभाव उत्पन्न हुआ है ?
उत्तर – सरसों की फसल से निम्नांकित दो प्रभाव उत्पन्न हुए हैं –
खिला-खिला-सा पीला रंग,
सुगंधित वातावरण।
(च) तैलाक्त गंध का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘तैलाक्त गंध’ का आशय है- तेल की गंध से युक्त हवाएँ ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- यों लग रहा है मानो धरती प्रसन्नता से रोमांचित हो उठी हो । रोमांच के रूप में उसके तन से गेहूँ और जौ की बालियाँ उग आई हैं। अरहर और सन की सुनहरी फलियाँ ऐसी सुशोभित हैं मानों वे वसुधा की कमर पर बँधी हुई सुंदर किंकिणियाँ हों और मधुर ध्वनि कर रही हों । सरसों की पीली-पीली फसलें फूल उठी हैं। उनसे निकलने वाली गंध में मानों तेल की महक है। लो इस हरी-भरी धरती की सुंदरता को निहारने के लिए नीलम की कलियों के समान तीसी नामक नीले फूल झाँकने लगे हैं।
3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी।
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !
(क) कवि ने मटर की फलियों को किस रूप में चित्रित किया है ?
उत्तर – कवि ने मटर की फलियों का मानवीकरण किया है। उन्हें सखियों के साथ हँसते हुए दर्शाया गया है।
(ख) मटर की लटकती फलियाँ कैसी लग रही हैं ?
उत्तर – मटर की लटकती फलियाँ मखमली पेटियों के समान लग रही हैं। इनमें बीज छीपे हुए हैं।
(ग) तितलियाँ कहाँ फिर रही हैं ?
उत्तर – रंग-बिरंगी तितलियाँ रंग-बिरंगे फूलों पर फिर रही हैं। वे बड़ी सुंदर लग रही हैं ।
(घ) फूलों की क्या दशा हो रही हैं?
उत्तर – फूल भी एक डाली से दूसरी डाली पर गिरकर फूले नहीं समा रहे हैं अर्थात् वे बहुत प्रसन्न हैं।
(ङ) फूल स्वयं क्यों वृंतों पर उड़ते-फिरते प्रतीत होते हैं ?
उत्तर – फूल स्वयं एक वृंत से दूसरे वृंत पर मँडराते प्रतीत होते हैं। कारण यह है कि उड़ती हुई तितलियाँ फूलों के समान रंगीन हैं। वे भी फूल जैसी प्रतीत होती हैं। इसलिए जब वे उड़कर एक वृंत से दूसरे वृंत पर जाती हैं तो यों लगता है मानो फूल ही इधर-उधर उड़ रहे हों।
(च) छीमियाँ किन्हें कहा गया है ?
उत्तर – छीमियाँ का आशय है- मटर की फलियाँ |
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- खेतों में चारों ओर विविध रंगों के फूल खिले हुए हैं। उनके बीच उनसे सटी हुई मटर की फसलें यों खड़ी हँस रही हैं मानो कोई सखी सजी-धजी सखियों को देखकर प्रसन्नता से हँस रही हो। कहीं मखमली पेटियों के समान छीमियाँ लटक रही हैं जिनमें बीजों की लड़ी सुरक्षित हैं। विविध रंगों के सुंदर फूल सजे हैं और उन पर तरह-तरह के रंगों की तितलियाँ फिर रही हैं उन्हें देखकर यों लगता है मानों फूल ही प्रसन्नतापूर्वक उड़-उड़कर एक वृंत पर डोल रहे हों।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली !
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाड़िम,
आलू गोभी, बैंगन, मूली !
(क) वसंत के आने पर आम के वृक्षों की शोभा कैसी हो जाती है ?
उत्तर – वसंत ऋतु उत्तरके आने पर आम के पेड़ बौर से लद जाते हैं । आम का बौर ऐसे लगता है मानो वृक्ष पर सोना-चाँदी बिखेर दिया हो । आम के पेड़ पर बैठकर कोयल जब पंचम स्वर में गाती है तो वह सबके मन को मोह लेती है।
(ख) इस काव्यांश में किन-किन पेड़ फूलों एवं सब्जियों का वर्णन किया है ?
उत्तर – इस काव्यांश में आम, ढाक, पीपल, कटहल, जामुन, झरबेरी, आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी एवं बैंगन का वर्णन हुआ है।
(ग) कोयल के मतवाली होने का क्या कारण है ?
उत्तर – जब आम के वृक्षों पर बौर आता है तो सारा वातावरण मदहोश कर देने वाली खुशबू से महक उठता है । इस वातावरण में कोयल अपने को रोक नहीं पाती है। वह मतवाली होकर पंचमस्वर में गाने लगती है।
(घ) वसंत ऋतु में किन-किन पेड़ों पर फूल आते हैं ?
उत्तर – वसंत-ऋतु में आम, कटहल, जामुन, आडू, नींबू अनार आदि के पेड़ों पर फूल आ जाते हैं।
(ङ) आम के पेड़ों का वर्णन अपने शब्दों में करें ।
उत्तर – आम के पेड़ों की डालियाँ सुनहरी उजली मंजरियों से लद गई हैं। डालों पर ढेर सारी मंजरियाँ उग आई हैं।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – गाँव की धरती केवल फसलों से सौंदर्य पूर्ण नहीं हैं, बल्कि बाग-बगीचों में उगे आम की डालियाँ भी जो अब बौरों से लद सी गई हैं, उसकी शोभा बढ़ा रही हैं। वसंती मौसम आने के कारण ढाक और पीपल के पुराने पत्ते झड़कर नव किसलयों को विकसित होने का अवसर दे रहे हैं । आम्र वन की रजत स्वर्ण मंजरियों को देखकर कोयल कूक रही है और मतवाली सी हो गई है। कटहल फल आने के कारण महक उठे हैं और जामुन के पेड़ों पर भी जामुन के गुच्छे मुकुलित होने (निकलने) लगे हैं। जैसे बगीचे में इन वृक्षों में फल आ गए हैं वैसे ही जंगल में झरबेरी के पेड़ों में झरबेरी के गुच्छे फलकर लटक रहे हैं। आडू, नीबू और अनार के पेड़ों में फल के पूर्व आने वाले फूल लग गए हैं। इन सबकी तरह ही सब्जियाँ जैसे आलू, गोभी, बैंगन और मूली भी अपने विकास को प्राप्त कर रहे हैं ।
5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी
पक गए सुनहले मधुर बेर
आँवली से तरु की डाल जड़ी।
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
(क) अमरूदों के बारे में क्या कहा गया है ?
उत्तर – अब तक अमरूद पीले और मीठे थे। अब उनमें लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं।
(ख) बेर और अँवली के बारे में क्या कहा गया है ?
उत्तर – सुनहले मीठे बेर अब पूरी तरह पक गए हैं। अब वे खाने योग्य हो गए हैं। पेड़ की डाली भी आँवलों से पूरी तरह लद गई हैं।
(ग) पालक, धनिया, सेम और मिरचों की किस विशेषता का वर्णन किया गया है ?
उत्तर – पालक, धनिया, सेम तथा मिरचों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये बहुत अधिक मात्रा में फले-फूले हैं। पालक की फसल लहलहा रही है। लौकी और सेम की फलियाँ दूर तक फैल गई हैं। मिरचा की थैलियों-सी उग आई हैं।
(घ) लहलह और महमह के आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – ‘लहलह’ का आशय है- लहलहाना, अर्थात् अधिक मात्रा में उड़कर झूमना । ‘महमह’ का आशय है- महकना, अर्थात् धनिये की महक का चारों ओर फैल जाना ।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- अमरूद पीले और मीठे हो गए हैं। उन पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। बेर भी पककर मीठे तथा सुनहरे हो गए हैं। आँवलों से पेड़ की डालें लद गई हैं। पालक की खेती लहलहाने लगी है। धनिया महमह करके महकने लगा है। लौकी और सेम की फलियाँ उगकर चारों ओर फैल गई हैं। टमाटर मखमल की तरह लाल हो गए हैं। मिरचों के गुच्छे एक बड़ी हरी थैली के समान उग आए हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती:
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई !
(क) गंगा की रेत को किस रूप में दर्शाया गया है ?
उत्तर – गंगा के तट की रेत सतरंगी दर्शाया गया है। इस रेत के कण चमकते हैं । इस रेत पर जब प्रातःकाल सूर्य किरणें पड़ती हैं तब इसकी शोभा देखते ही बनती है रेत पर पड़ी आड़ी तिरछी रेखाएँ साँपों जैसी लगती हैं।
(ख) गंगा तट पर किसकी खेती सुंदर लग रही है ?
उत्तर – गंगा तट पर तरबूजों की खेती बड़ी सुंदर लग रही है ।
(ग) बगुले क्या कर रहे हैं ?
उत्तर – जब बगुले अपने पाँव की उँगलियों को सिर पर मारते हैं तब ऐसा लगता है कि वे अपनी उँगलियों के सिर की कलगी सजा रहे हैं ।
(घ) गंगा के जल की शोभा कैसी है ?
उत्तर – गंगा के जल में चकवे तैर रहे हैं। किनारे पर मगरौठी (जलमुर्गी) तथा अन्य पशु-पक्षी सोए रहते हैं।
(ङ) सुरखाब और मगरौठी गंगा के तट पर किस प्रकार आनंद लेते हैं ?
उत्तर – सुरखाब अर्थात् चक्रवाक पक्षी गंगा के बहते जल पर तैर रहा है और मगरौठी किनारे की ठंडक पर सोई हुई है। इस प्रकार वे आनंदमग्न हैं।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि बताता है कि प्रातःकालीन सूर्य की किरणें पड़ने के कारण गंगा नदी की रेत सात रंगों में चमकने लगती है। इस रेत में आड़ी-तिरछी पड़ी रेखाएँ टेढी चाल चलने वाले साँप के समान दिखाई देती हैं। गंगा के किनारों पर दूर-दूर तक लगातार छाई तरबूजों की खेती बड़ी सुंदर प्रतीत होती है। बगुले अपने पाँव की उँगलियाँ सिर पर मारते हैं। इन्हें देखकर कवि को लगता है कि बगुले अपनी अँगुलियों से सिर पर कलगी सजा रहे हैं। गंगा के पानी में चकवे तैर रहे हैं। गंगा के तट पर मगरौठी (जलमुर्गी) तथा अन्य पक्षी सोए रहते हैं।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए- से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
(क) कवि ने गाँव की तुलना किससे की है और क्यों ?
उत्तर – कवि ने गाँव की तुलना मरकत-मणि के डिब्बे से की है, क्योंकि मरकत-मणि का रंग हरा होता है और उसका सौंदर्य अद्वितीय होता है। इसी प्रकार गाँव भी हरा-भरा है। हरियाणी गाँव सौंदर्य में वृद्धि कर रही है।
(ख) कवि ने हरियाली को हँसमुख क्यों कहा है ?
उत्तर – हरियाली को देखने पर ऐसा लगता है जैसे यह हँस रही है। इसको देखकर लोगों के चेहरों पर भी प्रसन्नता दौड़ने लगती है। इसलिए कवि ने हरियाली को हँसमुख कहा है ।
(ग) अँधेरी रात्रि में तारे किस प्रकार दिखाई दे रहे हैं ?
उत्तर – अँधेरी रात्रि में तारे स्वप्नों में खोए से लग रहे हैं। ओस के कारण अँधियारी रात भीगी-भीगी लग रही है ।
(घ) जन-मन को कौन हर रहा है?
उत्तर – ग्राम का अद्भूत सौंदर्य लोगों के मन को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। हरियाली और खिले हुए फूलों के कारण गाँव के सौंदर्य की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। वह निरुपम है ।
(ङ) तारों-भरी रात का वर्णन अपने शब्दों में करें ।
उत्तर – ठंडी रात है। वातावरण में ओस है। लगता है अँधेरा भीग गया है। इधर आकाश में तारे ऐसे टिमटिमा रहे हैं मानों सपनों में खोए हुए हों।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि बताता है कि गाँव के आस-पास के प्राकृतिक वातावरण में हँसते हुए मुख के समान हरियाली, सर्दियों की धूप जैसी मस्ती और आलस्य में भरकर सो रही है। ओस से भीगी रात के अँधेरे में तारे सपनों में खो रहे हैं। सारा गाँव मरकत (हरे रंग की मणि) के डिब्बे-जैसा खुला दिखाई दे रहा है। इसी प्रकार गाँव का सारा सौंदर्य भी साफ स्पष्ट है। ऊपर नीला आकाश एक शमियाने के समान प्रतीत हो रहा है। इस प्रकार गाँव का सुंदर वातावरण सर्दियों के बीत जाने के बाद, बसंत ऋतु में अपनी शोभा से सभी लोगों के मन को हर लेता है।

केदारनाथ अग्रवाल

चंद्र गहना से लौटती बेर

1. देख आया चंद्र गहना ।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस ख़त की बैठा अकेला ।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सज कर खड़ा है।
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें ?
उत्तर – कवि का नाम- केदारनाथ अग्रवाल,
कविता का नाम- चंद्र गहना से लौटती बेर ।
(ख) चने के पौधे को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है ?
उत्तर – कवि जब गुलाबी फूलों से सजे धजे-चने के पौधे को देखता है तो कवि को लगता है कि यह सज-धज कर अपनी प्रेयसी से मिलने जा रहा है।
(ग) चंद्र गहना देखकर कवि ने क्या कल्पना की है ?
उत्तर – कवि चंद्र गहना देखकर लौटते हुए खेतों के बीच खेत की मेड़ पर बैठ जाता है। ग्राम का अद्भुत सौंदर्य कवि के किसान-मन को बरबस अपनी ओर खींच लेता है। कवि प्रकृति के सौंदर्य में खो जाता है।
(घ) ‘ठिगना’ से क्या आशय है ?
उत्तर – ‘ठिगना’ से यहाँ आशय है- छोटे-छोटे पौधे ।
(ङ) खेत की मेड़ किसे कहा गया है ?
उत्तर – खेत के बीच से जाने के लिए बनाया गया उठा हुआ रास्ता ।
(च) चने ने किस चीज का मुरैठा पहना हुआ है ?
उत्तर – चने के पौधे पर गुलाबी फूल इस तरह सुशोभित हैं मानो किसी दूल्हे ने रंगीन पगड़ी पहनी हो ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि चंद्र गहना नामक गाँव से लौटकर आया है। लौटते हुए उसने प्रकृति के मनोरम दृश्यों का अवलोकन किया। वे दृश्य उसकी आँखों के सामने तैरते हैं। वह एक खेत की मेंड पर अकेला बैठा है। वहीं चने का एक ठिगना-सा पौधा दिखाई देता है। वह बालिश्त भर का है तथा हरे रंग का है। उसके ऊपरी भाग पर गुलाबी फूल हैं। उसे देखकर लगता है कि ठिगने चने ने मानो अपने सिर पर साफा (पगड़ी) बाँध रखा है और वह सज-धजकर खड़ा है।
2. पास ही मिल कर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर
कह रही है, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको ।
(क) अलसी का पौधा कैसा होता है ?
उत्तर – अलसी का पौधा दो-तीन फिट लंबा होता है। उसकी टहनियाँ एकदम पतली होती. हैं। अलसी पर नीले फूल आते हैं। अलसी के बीजों से भरी उसकी कली छोटे से कलश जैसी नजर आती है।
(ख) अलसी को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है ?
उत्तर – अलसी को देखकर कवि ने कल्पना की है जैसे यह कोई पतली एवं लचकदार कमर वाली कोई जिद्दी लड़की हो और इसने नीले फूलों वाला दुपट्टा ओढ़ रखा हो और इसकी जिद्द है कि जो उससे आकर प्रणय- निवेदन करेगा, उससे ही वह अपना हृदय दे देगी।
(ग) अलसी को हठीली, पतली और लचीली कहने का क्या आशय है ?
उत्तर – अलसी का पौधा बहुत पतला होता है। इसलिए वह हवा के हल्के-से झोंके के साथ ही लहरा उठता है। इस कारण कवि ने उसे लचीला कहा है । यह पौधा बार-बार झुकने के बाद भी फिर खड़ा होकर झूमने लगता है, मानो उसने झूलने-झूमने का हठ कर लिया हो। इसलिए उसे हठीला कहा है।
(घ) हृदय का दान करने का आशय स्पष्ट करें ?
उत्तर – हृदय का दान करने का आशय है- प्रेम करना ।
(ङ) अलसी को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है ?
उत्तर – कवि ने अलसी को प्रमातुर अल्हड़ नायिका के रूप में प्रस्तुत किया है। यह देह से पतली, लचीली और अल्हड़ है। उसने नीले रंग के फूल धारण किए हुए हैं और वह स्वयं को किसी प्रियतम पर न्योछावर करने को तैयार है ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – दूसरा दृश्य अलसी के पौधे का है। वह भी चने के पौधे के पास ही उगी हुई है। अलसी हठीली नायिका के समान है। वह दुबली-पतली है तथा उसकी कमर लचीली है अर्थात् वह कमनीय नायिका के समान है। उसके सिर पर नीले रंग के फूल हैं। कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह कह रही है कि जो मुझे छुएगा, मैं उसे अपना दिल दे दूँगी अर्थात् पूर्ण समर्पण हेतु प्रस्तुत है।
3. और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
(क) सरसों को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है ?
उत्तर – खेतों में खिली हुई सरसों को देखकर कवि को ऐसा लगा जैसे यह अब यौवन को प्राप्त हो गई है और यह पीले हाथ करके स्वयंवर में पधार रही है।
(ख) इन पंक्तियों में किस माह का वर्णन है ? आप यह किस आधार पर कह सकते हैं?
उत्तर – इन पंक्तियों में फाल्गुन मास का वर्णन है। सरसों इस महीने में ही फलती-फूलती है। फाल्गुन मास को मधुमास भी कहते हैं।
(ग) कवि ने सरसों को सयानी क्यों कहा है ?
उत्तर – सयानी का अर्थ होता है समझदार या जवान, क्योंकि सरसों पर फूल आ गए हैं, उसको जितना बढ़ना था वह बढ़ चुकी । अब वह अपनी यौवनावस्था में है। इसलिए कवि ने सरसों को सयानी कहा है ।
(घ) कवि ने इस प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर इस भूमि को प्रेम की प्रिय भूमि क्यों कहा है ?
उत्तर – जो व्यक्ति इस प्राकृतिक दृश्य को देख लेता है उसके हृदय में प्रकृति के प्रति तथा सारे जन-मानस के प्रति प्यार उमड़ने लगता है। इसलिए कवि ने इसे प्रेम की प्रिय भूमि कहा है।
(ङ) कवि ने विवाह का वातावरण कैसे निर्मित किया है ?
उत्तर – कवि ने विवाह का वातावरण तैयार करने के लिए निम्नांकित क्रियाएँ दिखाई हैं
लड़की (सरसों) का सयानी होना ।
हाथ पीले करना।
ब्याह – मंडप रचाना ।
शादी के गीता गाना ।
(च) हाथ पीले करने के दो अर्थ हैं। उन्हें स्पष्ट करें।
उत्तर – इसके दो अर्थ हैं
पीले फूल उग आना ।
शादी रचाना।
(छ) कवि किस स्वयंवर की बात कर रहा है ?
उत्तर – खेतों में सरसों, अलसी और चने की रंगबिरंगी फसलें इस तरह सुशोभित खड़ी हैं मानो शादी का वातावरण हो। सरसों दुलहिन के रूप में ब्याह मंडप में बैठी हो और चना दूल्हे के रूप में लाल फूल सजाए खड़ा हो ।
(ज) प्रकृति के अनुराग अंचल से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – कवि को प्रकृति का आँचल अनुराग-भरा प्रतीत होता है। उसे लगता है कि चना दूल्हा है, सरसों दुलहिन है और अलसी अल्हड़ नायिका है। इस तरह तीनों प्रेम के आनंद में मग्न हैं । अतः यहाँ प्रकृति का आँचल प्रेममय है ।
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – अब कवि की दृष्टि सरसों के पौधे पर जाती है। कवि को वह विवाह योग्य प्रतीत होती है। वह सयानी हो गई है। उसके हाथ पीले हैं, लगता है वह विवाह-मंडप में ब्याह हेतु पधारी है। कवि को लगता है कि आज यहाँ स्वयंवर का – सा वातावरण उपस्थित हो रहा है। प्रकृति का प्रेम भरा अंचल हिल रहा है। कवि गाँव के बाहर खुले वातावरण का चित्रण करते हुए कहता है कि यहाँ सुनसान है, कोई भी अन्य व्यक्ति नहीं है। यह स्थान व्यापारिक गतिविधियों से सर्वथा दूर है। यहाँ शहरी कोलाहल नहीं है। यह तो प्रेम पैदा करने वाली भूमि है।
4. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठी रही इसमें लहरियाँ
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ ।
एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता ।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुप-चाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी !
(क) काव्यांश के आधार पर पोखर के सौंदर्य का वर्णन करें ?
उत्तर – पोखर का जल एकदम स्वच्छ है । पोखर में हवा के चलने से छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। पोखर के तल में भूरे रंग की घास उगी हुई है। जब पोखर में लहरें उठती हैं तो पोखर की घास लहराती है ।
(ख) कवि ने चाँदी का-सा गोल खम्भा किसे कहा है और क्यों ?
उत्तर – कवि ने चाँदी का-सा गोल खम्भा जल में पड़ रहे सूर्य के प्रतिबिम्ब को कहा है। जब सूर्य का प्रतिबिम्ब जल में पड़ता है तो वह एक खम्भे के समान लम्बा दिखाई देता है। सूर्य की किरणों के जल में पड़ने पर उसकी चमक के कारण आँखें भी चौंधिया जाती हैं ।
(ग) पोखर के किनारे पड़े पत्थरों को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है ?
उत्तर – पोखर के किनारे पानी को स्पर्श करते हुए पत्थर ऐसे लग रहे हैं जैसे ये चुप-चाप पोखर से पानी पी रहे हों और ये निरंतर पानी पिए ही जा रहे हैं। पता नहीं इनकी प्यास कब बुझेगी ?
(घ) ‘नील तल’ से क्या आशय है ?
उत्तर – नील तल से आशय है- सरोवर में से झाँकता हुआ नीले रंग का तल ।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि प्रकृति का वर्णन करता हुआ कहता है कि पास ही में एक पोखर में लहरें उठ रही हैं, लहराते हुए जल की सतह के किनारे नीले हुए जल-तल में उगी भूरी घास भी जल के साथ लहरा रही है। पानी में पड़ता सूर्य का हिलता प्रतिबिंब चाँदी के गोल किन्तु बड़े खंभे के समान हो गया है और वह आँखों में चमक कर उन्हें चमका दे रहा है। किनारे के पत्थर चुपचाप जैसे पानी पी रहे हैं, उन्हें देखकर कवि कल्पना करता है कि उनकी यह लंबी प्यास कब तक बुझ सकेगी।
5. चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले के डालता है !
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पँखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में ।
(क) काले माथ वाली चिड़िया की चतुराई का वर्णन करें ।
उत्तर – काले माथ वाली चिड़िया बड़ी चतुर है। वह नदी की सतह पर जैसे ही एक सुंदर मछली को देखती है, झपट पड़ती है और उसे अपनी पीली चोंच में दबाकर उड़ जाती है। वह काम बड़ी तेजी के साथ करती है ।
(ख) बगुला दिखाई कैसा देता है और हरकत क्या करता है ?
उत्तर – बगुला नदी के जल में टाँग डुबोए हुए बड़ा ध्यानमग्न – सा दिखाई देता है। वह चुपचाप खड़ा रहता है। पर जैसे ही कोई मछली उसे दिखाई देती है वह ध्यान-नींद त्यागकर एकदम उसे अपनी चोंच में दबा लेता है और निगल जाता है वह मछली की ताक में ही रहता है ।
(ग) ‘ध्यान-निद्रा’ का व्यंग्य स्पष्ट करें ?
उत्तर – ‘ध्यान-निद्रा’ का व्यंग्य है- आँखें बंद-सी किए हुए मछली की तलाश में खड़ा बगुला ।
(घ) ‘चटुल’ विशेषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – बहुत चुस्त ।
(ङ) बगुला क्या देखकर ध्यान-निद्रा त्याग देता है ?
उत्तर – बगुला सरोवर में तैरती मछली को देखकर ध्यान-निद्रा त्याग देता है ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – जल में एक टाँग पर खड़े बगुले को देखकर कवि कहता है कि जैसे यह योगी की भाँति ध्यान-साधना कर रहा है जो अपनी आहार चंचल मछलियों को जब-जब देखता है तब-तब उसकी समाधि टूट जाती है। और वह बगुला भगत जल्दी से चोंच से उसे दबाकर अपने गले के नीचे उतार लेता है। कवि कहता है कि ठीक बगुले की ही तरह काले सिर और सफेद पंखों वाली चिड़िया उजली मछली को अपने पंखों से झपट्टा मारकर अपनी पीली चोंच में दबा दूर आकाश में उड़ जाती है ।
6.  औं यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है ।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
(क) रेल की पटरी के आसपास की भूमि कैसी है ?
उत्तर – रेल की पटरी के आसपास की भूमि सामान्य धरती से कुछ ऊँची है।
(ख) कवि क्यों स्वच्छंद है ?
उत्तर – कवि इसलिए स्वच्छंद है क्योंकि गाड़ी का समय नहीं हुआ है तथा उसे अन्य कहीं जाना नहीं है।
(ग) चित्रकूट की भूमि को बाँझ क्यों कहा गया है ?
उत्तर – चित्रकूट की धरती पर कोई फसल नहीं उगती है। केवल अपने-आप उग आए कुछ झाड़-झँखाड़ खड़े हैं ।
(घ) रींवा के पेड़ों के लिए कौन-कौन से विशेषण प्रयुक्त हुए हैं हैं ?
उत्तर – रींवा के पेड़ों के लिए दो विशेषणों का प्रयोग हुआ है- काँटेदार, कुरूप ।
(ङ) चित्रकूट की पहाड़ियों का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर – चित्रकूट की पहाड़ियाँ ऊँची-नीची हैं। परंतु वे बहुत अधिक ऊँची नहीं हैं। वे ऊबड़ – खाबड़ हैं। दूर-दूर तक फैली उन पहाड़ियों पर काँटेदार कुरूप पेड़ खड़े हैं।
(च) अनगढ़ का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – अनगढ़ का आशय है- ऊबड़-खाबड़ और अव्यवस्थित ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – खेतों के बाद की जमीन ऊँची है और वहाँ से रेल की पटरी गई हुई है। कवि कहता है कि मुझे कोई चिंता नहीं है। ट्रेन का टाइम नहीं है, ऐसा कहकर कवि नगरीय जीवन की भाग-दौड़ और अस्त व्यवस्तता की ओर संकेत करना चाहता है। परिवेश का वर्णन करते हुए वह कहता है कि इस तरफ चित्रकूट की कम ऊँची अनगढ़ चौड़ी पहाड़ियाँ दूर-दूर तक फैली हुई हैं ।
जमीन पथरीली और बाँझ है, फिर भी कहीं-कहीं रींवा के काँटेदार पौधे फैले हुए हैं। जिसमें न तो हरियाली है, न बैठकर ताप मिटाने योग्य छाया है।
7. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
(क) वनस्थली में गूँजती ध्वनियों का वर्णन अपने शब्दों में करें ?
उत्तर – कवि को वनस्थली में कहीं तोते का टें- टें-टें स्वर सुनाई पड़ता है तो कहीं टिरटों-टिरटों स्वर सुनाई पड़ता है।
(ख) सुग्गे का स्वर कैसा है ?
उत्तर – सुग्गे का स्वर मीठा है । वह टें-टें-टें-टें करता हुआ मानो रस बरसा रहा है।
(ग) ‘वनस्थली का हृदय चीरता’ से क्या आशय है ?
उत्तर – इसका आशय है – जंगल को पूरी तरह गुंजाता हुआ ।
(घ) ‘सारस’ के स्वर की विशेषता बताइए?
उत्तर – सारस का ‘टिरटों-टिरटों’ स्वर कभी ऊँचा उठता है तो कभी धीमा हो जाता है ।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – पोखर के किनारे से तोते की टें-टें-टें-टें की बार-बार आती हुई आवाज सुनाई दे रही है। तोते की यह आवाज मेरे मन को बहुत ही भा रही है। कवि कहता है कि यह आवाज कानों में मानो मीठा-मीठा रस टपका रही है, जिसे सुनते ही गाने को मन कर रहा है। दूसरी ओर, कहीं से सारस के जोड़े की टिरटों-टिरटों ध्वनि सुनाई दे रही है। सारस के जोड़े की यह ध्वनि सारे जंगल में दूर-दूर तक गूँज रही है। सारस का यह स्वर कभी तीव्र होता है, कभी मंद पड़ता है। इस प्रकार सारस के स्वर से मानो जंगल का हृदय बिद्ध गया है ।
8. मन होता है
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे ।
(क) कवि का मन क्या होता है ?
उत्तर – कवि का मन होता है कि वह उड़ कर सारस के साथ वहाँ चला जाए जहाँ उसकी युगल जोड़ी रहती है।
(ख) कवि को कौन-सा स्थान अधिक प्रिय है और क्यों ?
उत्तर – कवि को व्यापारिक नगर की तुलना में ग्रामीण उन्मुक्त वातावरण अधिक प्रिय है। यह वातावरण प्रेम को बढ़ाने वाला है। शहरी वातावरण में बनावट अधिक है। यहाँ प्राकृतिक वातावरण है।
(ग) सारस का प्रेमी जोड़ा कहाँ रहता है ?
उत्तर – हरे-भरे खेतों में ।
(घ) पक्षियों का मनमोहक स्वर सुनकर कवि के मन में क्या विचार आता है?
उत्तर – तोते और सारसों के मनमोहक स्वर सुनकर कवि के मन में आता है कि वह भी इन्हीं के संग आकाश में उड़ जाए और इनका प्रेम-भरा संसार देखे। वह इनके प्रेममय संसार को देखकर धन्य होना चाहता है।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – मेरा मन होता है कि मैं भी सारस के साथ पंख बाँधकर उन हरे खेतों में उड़ जाऊँ, जहाँ सारस और सारसी (सारस का जोड़ा) रहते हैं; और उनकी सच्ची प्रेम कहानी अपने कानों से सुन लूँ। कहने का आशय यह है कि कवि को नगरीय जीवन की व्यापारिक, चकाचौंध और ऊब भी संस्कृति से घृणा तथा ग्रामीण प्रकृति परिवेश से सहज ही लगाव उत्पन्न हो गया तथा इसी सौंदर्य और प्रेमयुक्त वातावरण के सम्मोहन में बंधा हुआ वह कहता है कि प्रेम मानव जीवन से हटकर प्रकृति और प्राकृतिक सहारों पर जीने वाले जीवों में केंद्रित हो गया है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

मेघ आए

1. मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के ।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।
(क) कवि और कविता का नाम लिखें ?
उत्तर – कवि का नाम – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,
कविता का नाम- मेघ आए ।
(ख) गाँव में मेघों का किस प्रकार स्वागत किया जाता है और क्यों ?
उत्तर – गाँव में मेघों का मेहमान की तरह स्वागत किया जाता है। जिस प्रकार गाँव में मेहमान के आने से हर्ष उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार बादल भी हर्ष का कारण है, क्योंकि किसान के लिए बादलों एवं वर्षा का महत्त्व सर्वविदित है।
(ग) हवा बादलों का स्वागत किस प्रकार करती है ?
उत्तर – हवा चलने से बादल आगे ही आगे उड़ते चले जाते हैं, ऐसा आभास होता है, जैसे हवा बादलों के आगे नृत्य करती हुई चल रही हो ।
(घ) मेघों का पदार्पण किस प्रकार हो रहा है ?
उत्तर – मेघों का गाँव में पदार्पण दामाद की तरह पूरी सज-धज के साथ हो रहा है। वे पूरे साजो शृंगार के साथ बरसने के लिए आए हैं।
(ङ) इस काव्यांश में किस-किस का मानवीकरण किया गया है ?
उत्तर – इस काव्यांश में बादलों और हवा का मानवीकरण किया गया है। हवा नाच- गाकर बादलों का स्वागत कर रही है तथा बादल दामाद की तरह सज-धज कर आए हैं ।
(च) इस पद्यांश का मुख्य विषय क्या है ?
उत्तर – कवि कहता है— लो, बादल बड़े सज-धज के और सुंदर वेश धारण करके आ गए हैं। उनके आगे-आगे नाचती- गाती हुई हवा चल पड़ी है। मनोरम मेघों को देखने के लिए गली-गली में दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगे हैं। ऐसा लगता है, जैसे गाँव में शहर के मेहमान सज-धज कर आए हों । बादल इस प्रकार बन-सँवर कर आ गए हैं
(छ) लोगों ने किसलिए अपनी खिड़कियाँ-दरवाजे खोल लिए ?
उत्तर – लोगों ने वर्षा रूपी शहरी मेहमान को सज-धज देखने के लिए अपनी खिड़कियाँ – दरवाजे खोल दिए ।
(ज) ‘पाहुन’ किसे कहते हैं ?
उत्तर – पाहुन अतिथि को कहते हैं ।
(झ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- देखो, कैसे बन ठनकर और सज-धज कर आकाश में बादल घिरे चले आ रहे हैं। उनके आगे-आगे, उनके आगमन की खुशी में हवा बहने लगी है। उसकी आवाज से और नाचने-गाने से गली के हर घर की खिड़िकियाँ खुलने लग गई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि शहर का कोई मेहमान गाँव में आ गया हो । शहरी मेहमान के आगमन का समाचार सुनकर भी घरों की खिड़कियाँ उसे देखने के लिए खुल जाती हैं। शहरी मेहमान का गाँव में भरपूर स्वागत किया गया है। मेघ भी मेहमान की तरह बन ठन कर अर्थात् सज-सँवर कर आए हैं ।
2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके,
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।
(क) पेड़ झुककर क्यों झाँकने लगे ?
उत्तर – पेड़ तेज हवा के कारण गर्दन आगे कर झाँकते प्रतीत होते हैं। ऐसा लगता है कि वे मेघ रूपी मेहमान का झुककर स्वागत कर रहे हों।
(ख) आँधी और नदी पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – आँधी का मानवीकरण करके उसे घाघरा उठाकर भागती दर्शाया गया है जबकि नदी की धारा तेज हवा के कारण तिरछी हुई प्रतीत होती है। ऐसा लगता है कि वह ठिठक गई है और उसका लहर रूपी घूँघट थोड़ा सरक गया है।
(ग) नदी का घूँघट क्यों सरक गया ?
उत्तर – नदी का घूँघट बादल-रूपी मेहमान को देखने के लिए सरक गया। गाँव में मेहमान के आने पर स्त्रियाँ उसको चोरी – छिपे देखने का प्रयास करती हैं ।
(घ) इस काव्यांश में कवि ने किस-किस का मानवीकरण किया है ?
उत्तर – इस काव्यांश में कवि ने पेड़, धूल, नदी और मेघ का मानवीकरण किया है।
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य विषय क्या है ?
उत्तर – इसमें वर्षा से पहले धूल-आँधी चलने और नदी के उमड़ने का वर्णन है।
(च) आँधी किसकी प्रतीक है ? वह कैसे दौड़ी ?
उत्तर – आँधी का स्वागत करने वाली किशोरी कन्या की प्रतीक है । वह उत्साह के कारण अपना घाघरा उठाकर दौड़ पड़ी।
(छ) ‘घाघरा’ से क्या आशय है ?
उत्तर – घाघरा ग्रामीण स्त्रियों का एक परिधान है जिसे कमर पर बाँधा जाता है ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है कि बादल आ गए हैं। यह जानकर पेड़ गरदनें उचका-कर मानों बादलों को झाँक कर देख से रहे हैं। प्रसन्नता के अतिरेक से आँधी जैसी हवा चलने लगी है और धूल रूपी युवती अपना उड़ता हुआ घाघरा संभालते हुए लाज के मारे भागती जा रही है। नदी अपनी बाँकी आँखों से प्रियतमा की भाँति चोरी-चोरी बादलों को देख लेती है, लेकिन अनजाने में ही उसका घूँघट सरक गया है, और इसे जानकर वह सहम- सी गई है, रूक सी गई है। इस तरह सबके मन को लुभाते-चुराते बादल प्रकृति-परिवेश के ऊपर छा गए हैं। कहने का आशय यह है कि समूची प्रकृति प्रसन्नता और उल्लास से भर सी गई है।
3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के ।
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के |
(क) तालाब ने किस प्रकार मेघों का स्वागत किया ?
उत्तर – तालाब बादलों का स्वागत इस प्रकार करता है जैसे कोई घर का सदस्य मेहमान के हाथ-पैर धुलवाने के लिए परात में पानी लाया हो। कहने का भाव यह है कि अब तक तालाब सूखे पड़े थे। बादलों के बरसने से तालाबों में भी पानी भर गया । पानी से भरे तालाब प्रसन्नतापूर्वक बादलों का स्वागत कर रहे हैं।
(ख) इस काव्यांश में पीपल को किसके प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है ?
उत्तर – इस काव्यांश में पीपल को घर के बुजुर्ग सदस्य के रूप में प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार घर का बड़ा सदस्य आगे बढ़कर स्वागत करके अपने बड़े होने का परिचय देता है, इसी प्रकार पीपल को भी सभी वृक्षों में बड़ा माना गया है।
(ग) लता किसलिए व्याकुल थी ?
उत्तर – लता इसलिए व्याकुल थी, क्योंकि काफी दिनों से मेघ नहीं बरसे थे । मेघ के वियोग में लता इतनी दुःखी हुई कि उसके पत्ते मुरझाकर पीले पड़ने लगे थे | इतने दिन बाद बादलों को देखकर वह उनको उलाहना देती है।
(घ) ‘किवाड़ की ओट में होकर किसने क्या कहा ?
उत्तर – किवाड़ की ओट में होकर लता ने क्रोध से कहा कि तुमने बहुत दिनों बाद हमारी सुध ली।
(ङ) इस पद्यांश का मुख्य विषय क्या है ?
उत्तर – इसमें वर्षाकाल में मेघ छाने पर दिखाई देने वाले प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन है।
(च) इसमें नव-वधू का प्रतीक कौन है ?
उत्तर – इसमें अकुलाई लता नव-वधू की प्रतीक है।
(छ) ‘हरसाया ताल’ से क्या आशय है ?
उत्तर – हरसाया ताल का आशय है- सरोवर का जल चमक उठा।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर बादलों से विनती की, कि वर्षों बाद आए। कहने का तात्पर्य यह है कि पीपल का पेड़ जंगलों, और वनों में उगता है, बादल के आने पर ही उसे पानी प्राप्त होता है और पीपल वर्षों तक जीवित रहने वाला पेड़ है, उसकी आयु अधिक होती है। इस कारण कवि उसे बूढ़ा कहकर संबोधित कर रहा है। लता किवाड़ की ओट से लजाती हुई सी बोली कि कितनी देर लगा दी। ताल अपने आकार रुपी परात में पानी भर कर लाया । मेघ रुपी पाहुन इस प्रकार धरती के प्रकृति परिवेश को प्रसन्नता से भरते हुए आ गए हैं।
4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके
मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।
(क) कौन-सी गाँठ खुल गई ?
उत्तर – अब तक यह भ्रम था कि मेघ (बादल) आएँगे अथवा नहीं। इसी प्रकार नायिका को यह भ्रम था कि उसका प्रिय आएगा या नहीं। मेघ रूपी प्रिय के आगमन के साथ ये सारे भ्रम स्वयं समाप्त हो गए और गाँठ खुल गई अर्थात् स्थिति स्पष्ट हो गई ।
(ख) मिलन का दृश्य कैसा था ?
उत्तर – नायक-नायिका के मिलन के अवसर पर दोनों के सब्र का बाँध टूट गया और मिलन की खुशी में आँसू बहने लगे । वर्षा की बूँदें बरसने लगीं।
(ग) बादलों के आने पर क्षितिज कैसा लगने लगा ?
उत्तर – जैसे ही बादल क्षितिज पर छाए, उनमें से बिजली रह-रहकर चमकने लगी। यह दृश्य ऐसा लगने लगा मानो बादल-रूपी मेहमान क्षितिज-रूपी अटारी पर आकर ठहर गया और नायिका रूपी बिजली से बादल – रूपी मेहमान का शरीर दमकने लगा।
(घ) बादलों के क्षितिज पर छाने से पहले क्या भ्रम बना हुआ था ?
उत्तर – बादलों के क्षितिज पर छाने से पहले यह भ्रम बना हुआ था कि शायद ये बादल बिना बरसे ही आगे निकल जाएँगे। यह निश्चित नहीं था कि वर्षा होगी या नहीं। परंतु जैसे ही बादल बरसने लगे, वैसे ही यह भ्रम दूर हो गया।
(ङ) भ्रम की गाँठ खुलने का क्या आशय है ?
उत्तर – लोगों को भ्रम था कि शायद बादल नहीं बरसेंगे। परंतु बादल जोर से बरसे। इसलिए उनका यह भ्रम टूट गया
(च) ‘क्षितिज अटारी गहराई’ का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – इसका आशय है – आकाश में बादलों का जमघट ऐसे लग गया जैसे महल की छत पर लोगों की भीड़ जमा हो गई हो।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि बताता है – इसके बाद क्षितिज रूपी भवन गहरा उठा अर्थात् आकाश में बादल छा गए। अटारी पर पहुँचे मेहमान की भाँति क्षितिज पर बादल छा गए। वहाँ बिजली भी चमकने लगी और तन-मन आभा से दमक उठा। अब भ्रम की गाँठ खुल गई। बादल नहीं बरसेगा, यह भ्रम टूटा गया। साथ ही यह भ्रम भी टूट गया कि प्रियतम अपनी प्रियतमा से मिलने नहीं आएगा। उसकी बात सुनकर बादलों के सब्र का बाँध भी टूट गया। फिर क्या था, वर्षा के रूप में उसकी आँखों से मिलन के समय की प्रसन्नता के आँसू बूँदों के रूप में निक पड़े अर्थात् होने लगी।

चंद्रकांत देवताले

यमराज की दिशा

1. माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बरदाश्त करने के
रास्ते खोज लेती है।
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम – चंद्रकांत देवताले,
कविता का नाम- यमराज की दिशा ।
(ख) कवि की माँ ईश्वर से की गई बातचीत के बारे में क्यों जताती थी ?
उत्तर – ईश्वर भय का दूसरा नाम है। जब हम कुछ गलत करते हैं तो ईश्वर नामक सत्ता-भय के रूप में हमें उस गलत काम करने से रोकता है। अतः माँ जो साक्षात् ईश्वर का रूप होती है। वह अपने बच्चे को सही मार्ग पर लाने और उसे विश्वास दिलाने के लिए यह जताती है कि उसकी ईश्वर से सीधे बात होती है। जिससे बच्चा उसकी बात मान जाए।
(ग) माँ की सलाह क्या काम करती है ?
उत्तर – माँ अनजाने में ही सही अपने बच्चों के लिए जो काम करती है, जो सलाह देती है जो निर्णय लेती है वे सही होते हैं । अतः माँ की सलाह बच्चे को जिंदगी जीने और दुःख सहन करने की शक्ति देती है।
(घ) ईश्वर से माँ को क्या सलाह मिलती थी ?
उत्तर – ईश्वर से माँ को जिंदगी जीने और दुःख बरदाश्त करने की सलाह मिलती थी।
(ङ) कवि की माँ का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – आस्तिक भावना से पूर्ण ।
(च) कवि को किस बात का भरोसा नहीं है और  क्यों ?
उत्तर – कवि ने कभी माँ को ईश्वर से बातचीत करते हुए नहीं देखा। न ही उसका ईश्वर पर इस तरह का विश्वास है कि वह लोगों की समस्याओं पर बात करने के लिए उनके यहाँ आया करता है।
(छ) कवि की माँ क्या जताती थी ?
उत्तर – कवि की माँ विश्वासपूर्वक यह बतलाती थी कि उसकी ईश्वर से बातचीत होती रहती है। ईश्वर उसे जिंदगी के बारे में और दुख सहन करने के बारे में सलाह देते रहते हैं ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि के अनुसार उसकी माँ बिल्कुल सीधी-सादी है, वह ईश्वर में बहुत आस्था रखती है और उसे भी वह प्रभु द्वारा बताए गए नेकी और ईमानदारी के मार्ग पर सदा चलने की सलाह देती रहती है। वह हमें बार-बार बताती है कि ईश्वर चाहता है कि हम सभी श्रम करते हुए निष्ठा से जीवन-पथ पर आगे बढ़े, तभी उत्तम रहेगा जीवन के सभी दुःखों को सहन करने की शक्ति कोई यदि दे भी सकता है तो वह भी ईश्वरीय ताकत है। अतः सुमार्ग पर चलें।
2. माँ ने एक बार मुझसे कहा था
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था –
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में
(क) माँ ने बच्चे को क्या सलाह दी और क्यों ?
उत्तर – माँ ने बच्चे को दक्षिण दिशा में पैर करके सोने को मना किया, क्योंकि माँ की धारणा थी कि दक्षिण में यमराज का घर है।
(ख) यमराज कौन है और उसका घर कहाँ है ?
उत्तर – यमराज मृत्यु का देवता है और हिन्दू-मान्यतानुसार उसका निवास दक्षिण दिशा में है।
(ग) कवि की दृष्टि में दक्षिण दिशा और मृत्यु का क्या संबंध हो सकता है ?
उत्तर – कवि की दृष्टि में दक्षिण दिशा का प्रतीकार्थ हो सकता है— दक्षिणपंथी विचारधारा। उसके अनुसार यह विचारधारा मनुष्य की शत्रु है। यह मनुष्यता को विनाश की ओर ले जाती है ।
(घ) यमराज का घर दक्षिण दिशा में होने का क्या आशय है ?
उत्तर – यमराज का घर दक्षिण दिशा में होने का आशय है – दक्षिणपंथी विचाराधारा से मौत के दरवाजे खुलते हैं, मनुष्यता का सर्वनाश होता है।
(ङ) यमराज को क्रुद्ध करने का क्या आशय है ?
उत्तर – यमराज को क्रुध करने का आशय है- अपनी मृत्यु या विनाश को निमंत्रण देना ।
(च) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि की माँ ने एक बार कवि को चेतावनी देते हुए कहा था- बेटा! कभी भी दक्षिण दिशा में पैर करके मत सोना। वह मृत्यु की दिशा है। इससे यमराज को क्रोध आ जाता है। अतः दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना । यमराज को क्रुद्ध करने में कोई समझदारी नहीं है ।
उन दिनों कवि छोटा था। उसने माँ से यमराज के घर का पता पूछा। माँ ने बताया- तुम जहाँ भी रहोगे, वहाँ से जो दक्षिण दिशा होगी, वही यमराज का घर होगा।
आशय यह है कि दक्षिणपंथी विचारधारा मृत्यु की दिशा है। इसके प्रवर्तक यमराज के समान हैं। अतः जो भी व्यक्ति इस विचारधारा की ओर अपने पैर फैलाएगा और निश्चित हो जाएगा, उसकी मृत्यु निश्चित है।
3. माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना सम्भव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता
(क) बड़े होने पर कवि क्या यमराज का घर देख पाया ? क्यों ?
उत्तर – नहीं, बड़े होने पर भी कवि यमराज का घर नहीं देख पाया, क्योंकि वह दक्षिण के किनारे-किनारे घूम आया, पर वह दक्षिण को लाँघ न सका।
(ख) इन पंक्तियों के आधार पर कवि के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – पंक्तियों से स्पष्ट है कि कवि जिज्ञासु और कर्मठ है।
(ग) माँ की सलाह का बच्चे पर क्या प्रभाव था ?
उत्तर – माँ की सलाह से बच्चा दक्षिण दिशा को पहचानने में अभ्यस्त हो गया ।
(घ) कवि दक्षिण दिशा में पैर करके क्यों नहीं सोया ?
उत्तर – कवि दक्षिण दिशा में पैर करके इसलिए नहीं सोया क्योंकि उसकी माँ ने उसे बताया था कि ऐसा करने से यमराज क्रुद्ध हो जाते हैं तथा मृत्यु का संकट छा जाता है।
(ङ) दक्षिण को लाँघ लेना संभव क्यों नहीं है ?
उत्तर – कवि के अनुसार, दक्षिण को लाँघ लेना संभव इसलिए नहीं है, क्योंकि इसका कोई अंत नहीं है, कोई अंतिम किनारा नहीं है ।
(च) कवि को कब माँ की याद आई और क्यों ?
उत्तर – जब कवि दक्षिण दिशा के खतरों को जानने के लिए दूर-दूर तक गया तो उसने देखा कि वहाँ सचमुच विनाश के सब षडयंत्र थे। तब उसे माँ की वह सीख बहुत याद आई जिसमें उसने कहा था कि कभी दक्षिण दिशा में पैर करके मत सोओ। उसे लगा कि माँ ने बचपन में ही इन खतरों के प्रति सावधान कर दिया था ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – कवि कहता है- माँ के बार-बार समझाने के बाद मैं कभी भी दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोया। इस बात का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि मुझे दक्षिण दिशा को पहचानने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई। मैं दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक गया। वहाँ मैंने जो-जो देखा, उसे देखकर हमेशा माँ की याद आती रही। मैं दक्षिण दिशा को कभी लाँघ नहीं सका । कारण यह था कि उसका कोई अंत नहीं था, किनारा नहीं था। परंतु यदि सचमुच उसका कोई किनारा होता तो मैं यमराज का घर अवश्य देख लेता, क्योंकि यमराज का घर दक्षिण दिशा के छोर पर है।
4. पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल है
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही
जो माँ जानती थी ।
(क) कवि को सब तरफ यमराज क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर – कवि वर्तमान-युग में व्याप्त त्रास, हिंसा, मृत्यु के वातावरण से अवगत हैं और यह वातावरण ही यमराज का साक्षात् प्रतिरूप है । अतः कवि को हर ओर वही यमराज दिखाई देता है।
(ख) ‘आलीशान महल’ में निहित-व्यंग्य पर विचार करें ?
उत्तर – ‘आलीशान महल’ बड़े-बड़े नेताओं, भ्रष्टाचारी अफसरों, दहशतगर्दों, हिंसकों, अमानवीय ताकतों और पूँजीपतियों के घर का प्रतीक है।
(ग) माँ के समय और वर्तमान में क्या अंतर आ चुका है ?
उत्तर – माँ के समय में केवल एक ही दिशा दक्षिण थी। शेष दिशाएँ भी थीं, जहाँ कोई खतरा नहीं था। अब समय बदल चुका है। अब सारी दिशाएँ दक्षिण हो चुकी हैं । आज शोषण और विनाश की शक्तियाँ सब ओर फैल चुकी हैं।
(घ) सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल होने का क्या आशय है ?
उत्तर – ‘यमराज के आलीशान महल’ का अर्थ है- शोषणकर्ताओं की स्थापित व्यवस्था । कवि कहना चाहता है कि आज जीवन के सभी क्षेत्रों में शोषणकर्ताओं ने अपना जाल फैला लिया है। आम आदमी शोषण से बच नहीं सकता।
(ङ) माँ के समय और वर्तमान में क्या अंतर आ चुका है ?
उत्तर – माँ के समय में केवल एक ही दिशा दक्षिण थी। शेष दिशाएँ भी थीं, जहाँ कोई खतरा नहीं था। अब समय बदल चुका है। अब सारी दिशाएँ दक्षिण हो चुकी हैं। आज शोषण और विनाश की शक्तियाँ सब ओर फैल चुकी हैं ।
(च) दहकती आँखें क्या व्यक्त करती हैं ?
उत्तर – दहकती आँखें क्रोध, हिंसा और शोषण की कठोरता को व्यक्त करती हैं ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहता है- मेरी माँ के समय की स्थितियों में और आज की स्थिति में काफी अंतर आ चुका है। आज ‘दक्षिण दिशा’ का अर्थ वहीं नहीं रहा, जो कि एक दिशा तक सीमित था। अब उसका विस्तार हो चुका है। अब जहाँ भी देखो, दक्षिण दिशा छा गई है। मनुष्य जिधर भी पैर करके सोता है, वहीं दक्षिण दिशा दिखाई देने लगती है। सभी दिशाओं में यमराज ने अपने शानदार महल बना लिए हैं। उन सभी में दहकती आँखों वाले यमराज बैठे हैं जो मनुष्यों को खा जाने के लिए तैयार हैं । अब मेरी माँ नहीं रही। उसी के साथ दक्षिण दिशा का अर्थ-विस्तार भी वही नहीं रहा, जिसे माँ जानती थी । इस नए युग में दक्षिण दिशा अर्थात् यमराज का घर अर्थात् शोषण और विनाश की शक्तियाँ सब ओर साम्राज्य फैला चुकी हैं ।

राजेश जोशी

बच्चे काम पर जा रहे हैं ।

1. कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
उत्तर – कवि का नाम – राजेश जोशी,
कविता का नाम – बच्चे काम पर जा रहे हैं ।
(ख) ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं इस पंक्ति को कवि ने अपने समय की सबसे भयानक पंक्ति क्यों कहा है ?
उत्तर – ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ इस पंक्ति को कवि ने अपने समय की सबसे भयानक पंक्ति इसलिए कहा है, क्योंकि इस पंक्ति में जो दृश्य प्रस्तुत किया गया है, वह हमारे समाज की विषमता की पीड़ा को दर्शा रहा है ।
(ग) काम पर जाते बच्चों का वर्णन अपने शब्दों में करें ?
उत्तर – बच्चे जिनका बचपन काम के लिए ही बना दिया गया है वे कड़कती सर्दी में अपनी मजदूरी का सामान उठाए काम पर जा रहे हैं। जिन्हें न भूख का पता है न सर्दी का एहसास है।
(घ) ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?’ वाक्य को प्रश्नात्मक रूप में क्यों प्रस्तुत किया गया ?
उत्तर – ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?’ वाक्य को प्रश्नात्मक रूप में इसलिए प्रस्तुत किया गया है, क्योंकि वाक्य में जो समस्या पूछी गई है वह मानव-भविष्य की गंभीर समस्या से जुड़ी हुई है और आज उस समस्या का कारण नहीं ढूँढ़ा गया तो फिर हमें अपनी गलती सुधारने का भी मौका नहीं मिलेगा।
(ङ) कवि किस असामान्य घटना की ओर ध्यान आकर्षित करता है ?
उत्तर – कवि बच्चों को विपरीत परिस्थितियों में भी काम करने की विवशता की समस्या की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। सरदी का मौसम है, सड़क कोहरे से ढकी है। लोग घरों में दुबके हैं, पर इन बच्चों को सुबह-सुबह काम पर जाना पड़ रहा है।
(च) विवरण की तरह लिखे जाने को भयानक क्यों माना गया है ?
उत्तर – विवरण की तरह लिखे जाने का अर्थ है- सामान्य – सी बात, रुटीन जीवन की बात। लेखक इस बात को बहुत भयानक मानता है कि लोग बाल-मजदूरी की समस्या सुनकर चौंकते नहीं, चिंतित नहीं होते। वे इसे सामान्य-सी बात कहकर नजरों से ओझल कर देते हैं
(छ) सवाल की तरह लिखे जाने का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – सवाल की तरह लिखे जाने का आशय है- समस्या की गहराई में जाना, उसके कारणों को जानना तथा समाधान के उपाय करना ।
(ज) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि बताता है कि भयंकर सरदी का मौसम है। सुबह का समय है। सड़क कोहरे से ढकी है और इस विषम मौसम में भी बच्चे अपने काम पर जाने को विवश हैं। यह हमारे समाज की विडंबना को दर्शाता है। कवि का कहना है कि इसे भयानक विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए बल्कि इसे एक सवाल के रूप में लिखा जाना चाहिए। विवरण लिख देने से इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित नहीं किया जा सकता। इस पर प्रश्न उठाने होंगे।
2. क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
(क) गेंदों, किताबों, खिलौनों आदि के अभाव के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – गेंदों, किताबें, खिलौनों आदि के अभाव से कवि यह बताना चाहता है कि क्या बच्चों के मनोरंजन के शिक्षा के, खेल-कूद आदि के साधन समाप्त हो गए हैं, जो कि वे कड़ी सर्दी में काम करने जा रहे हैं ।
(ख) कवि ने इन पंक्तियों में इतने प्रश्न क्यों छिपाए हुए हैं ?
उत्तर – कवि ने बच्चों को काम पर जाते देखा, उनकी विवशता का कारण जानने के लिए इतने प्रश्न छिपाए हैं।
(ग) कवि की हताशा और निराशा का क्या कारण है ?
उत्तर – कवि की हताशा और निराशा का कारण है- बच्चों का मन मारकर बाल मजदूरी करना। इसलिए वह हताशा में गेंदों, रंगीन पुस्तकों, खिलौनों, मदरसों, मैदानों, बगीचों पर झल्लाता है ।
(घ) कवि गेंदों के खत्म होने का प्रश्न उठाकर क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कवि गेंदों के खत्म होने का प्रश्न उठाकर यह कहना चाहता है कि बाल मजदूरों की अभी खेलने की आयु है। इन्हें अभी से काम-काज में नहीं डालना चाहिए! वह समाज को इस चिंता से परिचित कराना चाहता है कि बच्चों को उनका सहज बचपन लौटाया जाना चाहिए ।
(ङ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें ।
उत्तर – क्या दुनिया भर की सारी गेंदें अंतरिक्ष में गिर गई हैं, क्या सारी रंग-बिरंगी किताबें दीमक खा गए। क्या सारे खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए | क्या भूकंप ने गिरा दिया सारे स्कूलों की इमारतों को। क्या सारे घरों के आँगन, बगीचे और खेल के मैदान एकाएक इस दुनिया से लापता हो गए ? कवि समाज से पूछता है कि ऐसा क्या हुआ कि जो बच्चे स्कूलों में, घरों में खेल के मैदानों में दिखाई पड़ने चाहिए; जिनके हाथों में किताबें, गेंदें और खिलौने होने चाहिए उनके हाथों में काम पकड़ा दिया गया और वे जाड़े की सर्दी में ठिठुरते हुए, काम पर जाते हुए, सड़क पर दिखाई देते हैं
3. तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं
(क) भयानक स्थिति क्या है ?
उत्तर – बच्चों का काम पर जाना तो भयानक स्थिति है ही, पर इससे भी अधिक भयानक यह है कि संसार में सभी वस्तुएँ मौजूद होते हुए भी इन बच्चों के लिए नहीं हैं । वे इनसे वंचित हैं ।
(ख) कवि की पीड़ा क्या है ?
उत्तर – कवि की पीड़ा यह है कि इन बच्चों का बचपन जबरदस्ती छीना जा रहा है। इन्हें खेलने और पढ़ने का अवसर नहीं दिया जा रहा है और काम पर जाने को विवश किया जा रहा है।
(ग) ‘हस्बमामूल’ कहकर कवि क्या कहना चाह रहा है ?
उत्तर – ‘हस्बमामूल’ अर्थात् सारी वस्तुएँ वैसी हैं, जैसी होनी चाहिए। संसार में चीजों का अभाव नहीं है, पर ये चीजें इन बच्चों को नहीं दी जातीं। इन्हें इनसे वंचित किया जाता है। यह एक भयानक एवं विडंबनापूर्ण स्थिति है।
(घ) कवि बच्चों के काम पर जाने पर चिंतित क्यों है ?
उत्तर – कवि बच्चों के काम पर जाने के कारण चिंतित है। उसे लगता है कि बच्चों को खेल-कूद और पढ़ाई-लिखाई में मस्त रहना चाहिए। बचपन अपने सुख और विकास के लिए होता है। बच्चों पर रोजी-रोटी कमाने का बोझ नहीं डालना चाहिए।
(ङ) ‘तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय है – अगर नन्हें बच्चों को बचपन की सारी सुविधाएँ न मिलें तो वह जीवन निरर्थक है। ऐसा जीवन आनंदपूर्ण नहीं हो सकता।
(च) ‘भयानक होता अगर ऐसा होता’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहना चाहता है कि यदि सचमुच बच्चों के लिए सारी सुविधाएँ नष्ट हो गई होती; गेंदें, रंगीन पुस्तकें, खिलौने, विद्यालय, मैदान, आँगन, बाग-बगीचे नष्ट हो गए तो यह बच्चों के लिए बहुत भयानक संकट होता। तब सारी दुनिया बदरंग हो जाती ।
(छ) उद्धृत काव्यांश का आशय (भावार्थ) स्पष्ट करें
उत्तर – कविता की इन पंक्तियों में कवि कहता है कि जिस समाज व्यवस्था (उसका अभिप्राय दुनिया से यही है) ने बचपन को ही मार दिया हो तो उसके पास बचेगा ही क्या ? लेकिन वस्तु स्थिति यह नहीं है। वह कहता है कि दुख इस बात का है कि दुनिया भर की सारी चीजें वैसे ही पड़ी हुई हैं, सुरक्षित हैं लेकिन उन्हें अर्थात् उन बच्चों को जिन्हें इन चीजों की जरुरत है नहीं मिल सकती। क्योंकि वे इन्हें पाने के आर्थिक सामर्थ्य से शायद वंचित हैं और यही कारण है कि सबकुछ रहने के बावजूद हजारों सड़कों पर बहुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। जैसे, दुनिया ने रोटी और रूपये की तलाश में श्रम करना ही उनकी नियति बना दी हो ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

कबीर

साखियाँ

1. ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर – मानसरोवर से कवि का आशय मन-रूपी सरोवर से है । भाव यह है कि जिस प्रकार हँस मानसरोवर में निवास कर मोती चुगता है, उसी प्रकार जीवात्मा मन-रूपी सरोवर से मुक्ति-रूपी मुक्ता चुगती है।
2. कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ?
उत्तर – कवि ने सच्चे प्रेमी की कसौटी बताते हुए कहा है कि जब सच्चा प्रेमी अपने प्रियतम से मिलता है तो उसके मन का वियोग रूपी विष मिलन-सुख से उत्पन्न अमृत के रूप में बदल जाता है।
3. इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर – जो निष्पक्ष भाव से ईश्वर को भजता है वही सच्चा संत है ।
4. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से तर्क सहित उत्तर दें ।
उत्तर – कबीरदास ने बताया कि मनुष्य की पहचान उसके कुल की श्रेष्ठता से होती है। लेकिन ऊँचे श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने मात्र से वह श्रेष्ठ नहीं हो सकता है। उसके कर्म भी श्रेष्ठ होने चाहिए। यदि सोने के पात्र में शराब रखी हो तो सज्जन उसकी निंदा ही करेंगे।
अतः कुल और कर्म की श्रेष्ठता के बल पर ही मनुष्य श्रेष्ठ बन सकता है।
5. काबा और काशी में कबीर की दृष्टि में कैसा संबंध है ?
उत्तर – कबीर का कहना है कि एक ही अनाज से मोटा चून और फिर मैदा पीसा जाता है। इसी प्रकार हिंदुओं का तीर्थ और मुसलमानों का तीर्थ में कोई अंतर नहीं है हिंदू और मुसलमान एक ही परम पिता परमात्मा का संतान है।
6. संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर – कबीर अपनी साखियों में कहते हैं कि मनुष्य को पक्ष-विपक्ष अर्थात् जातिगत भेदभाव से दूर रहना चाहिए। सबको हिंदू-मुसलमान आदि के झगड़ों से दूर रहना चाहिए। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि जो निष्पक्ष होकर हरि का ध्यान करता है, वही ज्ञानी संत कहलाता है। वे हिंदू और मुसलमान दोनों की कट्टरता को फटकारते हुए कहते हैं-हिंदू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ ।
कहै कबीर जो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ।
7. कबीर हिंदू-मुसलिम भेदभाव से ऊपर थे। सिद्ध करें।
उत्तर – कबीर ने हिंदू और मुसलमान दोनों को फटकार लगाई हैहिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
इसी भाँति वे काबा और काशी को तथा राम रहीम को एक समान कहते हैं। उनके अनुसार, सच्चा संत हिंदू-मुसलमान और राम-रहीम के भेदभाव से ऊपर होता है।

सबद (पद)

1. मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूढ़ता फिरता है ?
उत्तर – मनुष्य ईश्वर को देवालयों, मस्जिदों, काबा, कैलाश विभिन्न क्रिया-कर्मों और योग तथा वैराग्य में ढूँढ़ता फिरता है।
2. कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है ?
उत्तर – कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए देवालयों में जाने मस्जिदों में जाने, काबा और काशी की यात्रा करने, विभिन्न कर्मकांड करने और योग वैराग की साधना करने के विश्वास का खंडन किया है।
3. कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है ?
उत्तर – कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस’ इसलिए कहा है क्योंकि ईश्वर सभी के अंदर साँस के रूप (आत्मा) विद्यमान है। जब तक साँस है तब तक ईश्वर हमारे अंदर मौजूद रहता है।
4. कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से क्यों की ?
उत्तर – कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न करके आँधी से इसलिए की है क्योंकि सामान्य हवा से स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता । आँधी जब आती है तब वह सबको उड़ा ले जाती है। आँधी की रफ्तार बहुत तेज होती है। ज्ञान की आँधी की रफ्तार भी बहुत तेज है वह अज्ञान को जड़ से उखाड़ फेंकती है। अज्ञान की जड़ें बहुत गहरी होती हैं। उसे उखाड़ने के लिए ज्ञान की आँधी की ही आवश्यकता होती है।
5. ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – ज्ञान की आँधी आने पर अज्ञान का नाश होने लगता है। संदेह रूपी फूस का छप्पड़ उड़ जाता है। दुविधा से ग्रस्त चित्त के दोनों आधार स्तंभ गिर पड़ते हैं, मोह का खंभा भी गिर जाता है। तृष्णा रूपी छप्पड़ उड़कर धरती पर आ गिरता है। दुर्बुद्धि का भाँडा फूट जाता है। आँधी के पश्चात् जो जल बरसता है उससे जीवात्मा का तन भीग जाता है। ज्ञान का प्रकाश उदित होते ही मन में प्रकाश हो जाता है और अज्ञान मिट जाता है।
6. “हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए विषयासक्ति और बाह्याचार का त्याग करना होगा और सांसारिक मोह से भी विरक्त होना पड़ेगा।
7. “आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ” का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद आनन्द और प्रेम की अनुभूति होती है और इसे वही व्यक्ति अनुभव कर सकता है जो ईश्वर का सच्चा भक्त है।
8. ‘मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे’ के आधार पर बताएँ कि प्रभु-प्राप्ति का उपाय क्या है ?
उत्तर – कबीर अपने पदों में कहते हैं कि प्रभु हर मनुष्य की साँस में समाया हुआ है। उसे पाने के लिए बाहर भटकने की आवश्यकता नहीं है। उसे पाने के लिए खोजी-दृष्टि चाहिए। तलाश करने की धुन चाहिए। उसे पाने के लिए सतगुरु के वचनों का पालन करना चाहिए। मन से सांसारिक आकर्षणों को दूर करना चाहिए। वैराग्य का भाव मन में लाना चाहिए। योग-साधना या पूजा-पाठ के बाहरी दिखावों को छोड़कर अपने अनुभवों पर ध्यान देना चाहिए। साधक का जागरूक मन तुरंत ही अपने हृदय में उसका साक्षात्कार कर सकता है
9. ‘मैं तो तेरे पास में’ में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर – कबीर ‘मैं तो तेरे पास में’ के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि ईश्वर हर प्राणी के हृदय में समाया हुआ है । वह हर क्षण उसके साथ लगा रहता है। बस उसे पहचानने की आवश्यकता है।

ललद्यद

वाख

1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है ?
उत्तर – रस्सी शब्द यहाँ जीवात्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है और वह रस्सी साँसों के कच्चे धागे की है जो जीवन रूपी नौका को संसार रूपी सागर खींच रहा है ।
2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर – कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास इसलिए व्यर्थ हो रहे हैं, क्योंकि कवयित्री एक जीवात्मा के रूप में ईश्वर प्राप्ति के लिए जिन साधनों को अपना रही हैं, वे सांसारिक, नश् और कमजोर है।
3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – कवयित्री जीवात्मा का रूप है और जीवात्मा अपने शाश्वत परमात्मा के घर जाने की इच्छा कर रही है। वह सांसारिक आकर्षण से मुक्ति पाकर अपने घर जाना चाहती है।
4. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललाद ने क्या उपाय सुझाया है ?
उत्तर – आत्मा में व्याप्त भेद बुद्धि को नष्ट कर समभाव की प्राप्ति करके मनुष्य जब अपने अहंकार को नष्ट कर लेगा तो आत्मा के बंद दरवाजों की साँकल खुल जाएगी ।
5. ‘ज्ञानी’ से कवियित्री का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – ‘ज्ञानी’ से कवयित्री ललद्यद ऐसे भक्त मनुष्य से मानती हैं, जो कि परमात्मा का निवास कण-कण में जानकर अपने भीतर ही उसके प्रकाश को देखता है, तथा उस ईश्वर की स्थिति को जानकर ‘आत्मज्ञानी’ बन जाता है। सर्वव्यापक को जानने का इससे अच्छा कोई उपाय नहीं है ।
6. ” जेब टटोली कौड़ी न पाई” का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का अभिप्राय यह है कि मनुष्य संसार में स्वार्थ सिद्ध करने के प्रयास में अपना लक्ष्य भूल जाता है और जीवन का महत्त्वपूर्ण समय व्यतीत हो जाने के बाद उसे कुछ करने की असमर्थता की पीड़ा व्याकुल कर देती है।
7. “खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं” का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि सबको धार्मिक रूढ़ियों और आडम्बरों से ऊपर उठकर समभाव को अपनाना होगा और अहंकार का त्याग करना होगा।
8. कवयित्री ने परमात्मा प्राप्ति का क्या उपाय बताया है ?
उत्तर – कवयित्री के अनुसर, परमात्मा-प्राप्ति के लिए दिल में ‘हूक’ उठना आवश्यक है । दूसरे, जीवन में त्याग और भोग के बीच सहज जीवन जीना आवश्यक है। न भोग में आसक्ति, न त्याग का आग्रह और न हठयोग । इनसे कुछ हाथ नहीं आता। परमात्मा को जानने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य पहले मन को टटोले, अपने आपको जाने, आत्मज्ञान प्राप्त करे ।

रसखान

सवैये

1. ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर – कवि का ब्रजभूमि के प्रति प्रेम प्रथम सवैये में इस प्रकार प्रकट हुआ हैकवि ब्रजभूमि पर ही मनुष्य रूप में ग्वाला और चरवाहा बनकर, पशु के रूप में नंद बाबा के पशुओं के मध्य गाय बनकर, पत्थर के रूप में गोवर्धन पर्वत का अंग बनकर एवं पक्षी के रूप में यमुना तट पर लगे कंदब के वृक्ष पर घोंसला बनाकरजन्म लेना चाहता है। जिससे उनका ब्रजभूमि से स्नेह- संबंध दिखाई देता रहे।
2. कवि का ब्रज के वन, बाग़ और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं ?
उत्तर – कवि रसखानी ब्रजभूमि पर अवस्थित वन, बाग-बगीचे और तालाब आदि को बार-बार इसलिए निहारना चाहता है, क्योंकि ये सभी (प्रकृति के अंग ) उस भूमि पर बने हैं, जहाँ पर कवि के आराध्य और स्नेहपात्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ है ।
3. एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर – एक लकुटी (लाठी) और कम्बल (छोटा कंबल) पर कवि रसखान जी तीन लोकों का राज्य वैभव भी न्यौछावर करने को तैयार हैं, क्योंकि वह लाठी ग्वाले और चरवाहे के रूप में सदैव ही कृष्ण के कर-कमलों में रहती है, दूसरी ओर कम्बल भी कृष्ण के कंधों पर ही दिखाई देता है। श्रीकृष्ण द्वारा प्रयुक्त दोनों ही वस्तुओं से कवि का विशेष लगाव है।
4. सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया ? अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर – सखी ने गोपी से सिर के ऊपर मोर पंख और गले में गुंजा की माला धारण किए शरीर पर पीतांबर ओढ़े और हाथ में गायों को चराने की लकुटी लिए ग्वाल-बालों के साथ वन में विचरण करते हुए कृष्ण का रूप धारण करने का आग्रह किया था ।
5. आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में कृष्ण का सानिध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर – कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम एवं आसक्ति के कारण तथा उनकी अधिकाधिक कृपा का पात्र बनने के लिए कवि पशु पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सानिध्य प्राप्त करना चाहता है ।
6. गोपियाँ अपने आपको क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर – गोपियाँ स्वयं को कृष्ण की मुरली की मंद-मंद धुन को सुनकर अपने आपको विवश पाती हैं। वे मुरली की धुन और कृष्ण की मुस्कान को संभाल नहीं पाती हैं। वे इनके आगे विवश हो जाती हैं ।
7. ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर – ‘कालिंदी कूल बदंब की डारन’ में अनुप्रास अलंकार है।
8. “कोटि ए कलघौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौ का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – इस काव्य पंक्ति का भाव यह है कि करील के वृक्षों वाले कुंज वन करोड़ों महलों से भी बढ़कर हैं । अर्थात् जहाँ कृष्ण रास रचाया करते थे वे करील की काँटेदार झाड़ियों का सुख करोड़ों महलों से अधिक है। इन महलों को उन पर न्यौछावर किया जा सकता है ।
9. “माई री वा सुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै’ का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – इस काव्य-पंक्ति का भाव यह है कि कृष्ण के मुख पर जो मनोहारी मुस्कान है, वह अनोखी है। गोपियाँ उस मुस्कान पर न्यौछावर हो रही हैं। उनसे यह मुस्कान संभाली नहीं जा रही है ।
10. रसखान के पठित सवैयों के आधार पर बताएँ कि सच्चे प्रेम के क्या लक्षण होते हैं ?
उत्तर – सच्चे प्रेम में गहरी तल्लीनता होती है। प्रेमी प्रिय के जीवन में समा जाना चाहता है। उसे प्रिय की हर वस्तु, उसका पहनावा, उसका रहन-सहन, उसका काम, उसकी कला प्रिय प्रतीत होती है। वह किसी न किसी बहाने प्रिय के संग बना रहना चाहता है। यहाँ तक कि वह प्रिय का गुलाम भी बनने को तैयार हो जाता है। वह उसके लिए अपना सब कुछ त्यागने को तत्पर हो जाता है। प्रेम में एकांतता का भाव होता है। प्रेमी प्रिय के संग अकेला जीना चाहता है। किसी अन्य का संग उसे अप्रिय जान पड़ता है।
11. सखी के कहने पर गोपी क्या-क्या स्वाँग करने को तैयार है ?
उत्तर – सखी के कहने पर गोपी कृष्ण का पीतांबर धारण करने को तैयार है। वह कृष्ण के समान सिर पर मोरमुकुट धारण करने तथा गले में गुंजों की माला धारण करने को तैयार है। वह कृष्ण के समान हाथों में लाठी लेकर गायों और ग्वालों के संग वन-वन घूमने को तैयार है।
12. गोपी कृष्ण की मुरली को अपने अधरों से क्यों नहीं लगाना चाहती ?
उत्तर – गोपी कृष्ण की मुरली से ईर्ष्या करती है। कारण यह है कि कृष्ण सदा मुरली बजाने में खोए रहते हैं। वे गोपी की ओर ध्यान नहीं देते। इस कारण गोपी को मुरली पर गुस्सा आता है। अतः वह मुरली को अपने अधरों से नहीं लगाना चाहती ।
13. सारे ब्रजवासी किस पर न्योछावर हो गए ?
उत्तर – सारे ब्रजवासी कृष्ण के ग्वाल-रूप और सुमधुर वंशी-वादन पर न्योछावर हो गए। जब से कृष्ण ने नंद की गाएँ चराईं और उनके बीच बैठकर मधुर वंशी बजाई, तब से सब ब्रजवासी उन पर मोहित हो गए ।

माखनलाल चतुर्वेदी

कैदी और कोकिला

1. कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी ?
उत्तर – कोयल की कूक सुनकर कवि को लगा कि जैसे वह किसी का संदेश लाई है, इसलिए कवि उससे कहता है कि तुम चुप क्यों हो जाती (रह-रह जाती) हो । कोयल! स्पष्ट बोलो ।
2. कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई ?
उत्तर – कवि ने संभावना जताई है कि कोयल शायद कोई संदेश लाई हो, अथवा किसी दावानल की ज्वाला उसने देखी है या मधुर विद्रोह-बीज बोने के लिए वह बोल उठी है या फिर अंग्रेजी शासन से मुक्ति की रणभेरी बजा रही हो ।
3. किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई और क्यों ?
उत्तर – अंग्रेजी शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है। क्योंकि अंधेरा काला होता है, और उसके प्रभाव के कारण कुछ नहीं सूझता । अंग्रेजों की गुलामी के शासन से मुक्ति का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। इसी कारण कवि ने अंग्रेजों के शासन की तुलना तम के प्रभाव से की है।
4. कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन करें ।
उत्तर – पराधीन भारत की जेलों में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को अनेकों दारुण कष्ट दिए जाते थे। उन्हें सामान्य रूप से अवांछनीय तत्वों के साथ रखा जाता था, पेट भर खाना न देना, कठिन श्रम से मोट खिंचवाना, कोल्हू चलवाना, श्रमिक की भाँति दिन-भर कार्य कराना और किसी से मिलने-जुलने की इजाजत न देना आदि अनेक अवर्णनीय कष्ट दिये जाते थे।
5. अर्द्ध रात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है ?
उत्तर – अर्द्ध-रात्रि में कोयल की चीख से कवि को अंदेशा है कि भारत में क्रांति का आह्वान हो गया है। देश अपनी गुलामी से मुक्त होने के लिए तत्पर हो रहा है।
6. कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है ?
उत्तर – क्योंकि कवि को महसूस होता है कि कोयल तो हरी-भरी डाली पर बैठी है, किंतु वह काल-कोठरी में कैद है। कोयल दूर गगन में उड़ सकती है किन्तु वह अंदर ही कैद है। कोयल मीठा बोलकर वाहवाही लूटती है, जबकि कवि कैदी होकर रो भी नहीं सकता।
7. कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन-सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है ?
उत्तर – मोहनदास करमचंद गाँधी जी के व्रत पर प्राणों का आसव भरपूर मात्रा में कवि के हृदय में समाहित है। वह अपनी रचनाओं में कोयल की मीठी आवाज से प्रभावित होकर अनेक अनुभव लिखता है, जो कि सकारात्मक हैं, किन्तु वही कोयल अब कैदी कवि की वेदना को अधिक बढ़ाकर अपनी काली शक्ल सूरत सा अनुचित और कालिमापूर्ण काम कर रही है।
8. हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है ?
उत्तर – स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे सेनानी हथकड़ियों को ही अपना आभूषण मानते थे। इसलिए भी इन्हें गहना कहा गया है तथा गहने शरीर की शोभा बढ़ाते हैं, और चूँकि हथकड़ियाँ भी शरीर पर ही झूल रही है, अतः इन्हें गहना कहा गया है।
9. “मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो” का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – इस पंक्ति में कवि कोकिला से संवाद के माध्यम से ब्रिटिश व्यवस्था पर व्यंग्य कर रहा है। वह ब्रिटिश शासन व्यवस्था को मृदुल वैभव कहकर व्यंग्य करना है कि ब्रिटिश-व्यवस्था कितनी कूर है ?
10. हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ कूँआ का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि इस पंक्ति के माध्यम से ब्रिटिश शासन-व्यवस्था में मिलने वाली जेल-यंत्रणा को बताने के साथ-साथ अपने आक्रोश को भी अभिव्यक्त कर रहा है कि मुझ जैसे स्वतंत्रता सेनानी (कैदी) किस प्रकार उनके शोषण का मूकता से जवाब देते हैं और उनके खोखले दंभ को चोर पहुँचाते हैं।
11. कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा लेकिन उसने कोकिला की ही बात क्यों की है ?
उत्तर – कोकिल का मार्मिक स्वर उसके मन को छू गया। उसकी कोमल भावनाओं को झंकृत कर गया । इसलिए उसने कोकिल से ही बात की।
12. आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा ?
उत्तर – ब्रिटिश सरकार भारत की स्वतंत्रता के विरोध में थी । वह क्रांतिकारियों को दबाना चाहती थी। इसलिए वह उन्हें शारीरिक तथा मानसिक रूप से पीड़ित करती थी । उन्हें मानसिक रूप से तोड़ने के लिए उन्हें चोरों, अपराधियों, बटमारों के साथ रखती थी तथा आम अपराधियों जैसा दुर्व्यवहार करती थी ।
13. कवि को कोकिल का बोलना क्यों अखरता है ?
उत्तर – कोकिल प्रायः दिन में गाती है। अँधेरी रात में उसका गान सुनकर कवि की चेतना आंदोलित हो उठती है। वह चिरकाल से ब्रिटिश शासन का बंदी है। उसका मन कारागृह की यातनाओं से दुखी है। उस दुखी मन को कोयल का मधुर स्वर बहुत अखरता है, क्योंकि उसका स्वर अप्रासंगिक हो उठता है। दूसरे, कोय का स्वर सुनकर लेखक को अपनी बंदी दशा का बोध हो उठता है। स्वयं पराधीन रहकर किसी स्वाधीन जीवन को देखना अखरने का स्वाभाविक कारण है।
14. कवि ने कोयल के स्वर को शंखनाद क्यों कहा  है ?
उत्तर – कवि कारागृह में अत्यंत निराश है। तभी उसे कोयल का मधुर स्वर सुनाई पड़ता है। उसे प्रतीत होता है कि मानो कोयल उसे संघर्ष की प्रेरणा देने आई है। कवि उसे देश को जगाने वाली ‘माँ काली’ की संज्ञा देता है। इसलिए उसे कोयल का स्वर ‘शंखनाद’ जैसा प्रतीत होता है जिसे सुनकर उसके मन में संघर्ष की ज्वाला भभक उठती है।
15. कवि ने अपनी हथकड़ियों को ‘ब्रिटिश राज का गहना’ क्यों कहा है ? तर्क के साथ उत्तर दें ।
उत्तर – कवि ने अपनी हथकड़ियों को ब्रिटिश राज का गहना कहा है। कवि ने चोरी, डकैती जैसे अपमानजनक कार्य के लिए नहीं, अपितु राष्ट्रभक्ति जैसे महान उद्देश्य के लिए हथकड़ियाँ स्वीकार की। अतः उन्हें अपने बंदी होने पर भी गौरव था । कवि ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए संघर्ष किया, ब्रिटिश शासन से टक्कर ली । ब्रिटिश शासन ने उन पर देशद्रोह और राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें कारावास का दंड दिया । क्रांतिकारी स्वतंत्रता संघर्ष को अपना गौरव और सम्मान समझते थे। समाज भी उन्हें श्रद्धापूर्वक सम्मानित करता था। इसलिए ब्रिटिश शासन द्वारा पहनाई गई हथकड़ियों को कवि ने ‘ब्रिटिश राज का गहना’ कहा है।
16. ‘काली तू….. ऐ आली – इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन करें ।
उत्तर – यहाँ अनुप्रास और यमक दोनों अलंकार हैं। वर्णों की आवृत्ति से अनुप्रास है तथा काली-काली में पहले कालिमा का अर्थ रंग और दूसरी का अर्थ कुव्यवस्था है।

सुमित्रानंदन पंत

ग्राम श्री

1. कवि ने गाँव को ‘हरता जन-मन’ क्यों कहा है ?
उत्तर – गाँव का सौंदर्य अद्वितीय है। गाँव में चारों ओर हरियाली छाई है। कहीं फलदार वृक्ष हैं तो कहीं फूलों से लदे पेड़ पौधे । गाँव में प्रदूषण नहीं है, इसलिए आकाश भी निर्मल है। गाँव में प्रकृति ने अपना सम्पूर्ण खजाना लूटा रखा है। कवि ने इसलिए गाँव को जन-मन हरता कहा है, क्योंकि जो भी गाँव को देखता है। गाँव का सौंदर्य उसके मन को अपनी ओर खींच लेता है।
2. कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है ?
उत्तर – कविता में सर्द ऋतु के अंतिम दिनों एवं वसंत ऋतु के आगमन का वर्णन है।
3. गाँव को ‘मरकत डिब्बे-सा खुला क्यों कहा गया है ?
उत्तर – मकरत एक प्रकार का कीमती रत्न होता है। मरकत का विशेष हरा रंग होता है। इसे ‘पन्ना’ के नाम से जाना जाता है। गाँव में चारों ओर खूब हरियाली छाई हुई है। इस हरियाली के कारण ही कवि ने इसकी तुलना मरकत-मणि अर्थात् पन्ने से की है। गाँव भी अपने में सारा सौंदर्य समेटे है ‘गाँव चारों ओर से खु है।
4. अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं ?
उत्तर – अरहर और सनई के खेत कवि को चित्तार्षक लग रहे हैं । अरहर और सनई की फलियाँ स्वर्ण-जड़ित-सी लग रही हैं।
5. बालू के साँपों से अंकित, गंगा की सतरंगी रेती का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – कवि कहना चाहता है कि गंगा नदी के किनारे रेत स्वतः ही ऐसा बन गया है मानो इस पर किसी ने साँप का चित्र अंकित कर दिया हो । हवा के चलने से रेत पर आड़ी तिरछी रेखाएँ नजर आने लगती हैं, जिनको देखकर चलते हुए साँप की आकृति का आभास होता है।
6. “हँसमुख हरियाली हिम आतप, सुख से अलसाए से सोए का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – सर्दी की धूप में हरियाली का सौंदर्य अद्भूत होता है, वह सुखपूर्वक अलसाई-सी नजर आती है। भाव यह है कि सर्दी की धूप सुखदायक होती है।
7. इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है ?
उत्तर – इस कविता में गंगा के तट पर बसे गाँव का चित्रण हुआ है ।
8. कवि ने किस प्रकार वसुधा को रोमांचित-सा दिखाया है ?
उत्तर – कवि ने वसुधा को रोमांचित नायिका के समान दिखाया है। खुशी के मारे गेहूँ और जौ में बालियाँ उग आई हैं। अरहर और सनई की सुनहरी फलियाँ घुँघरुओं वाली करधनी के रूप में सज गई हैं। रंगबिरंगे फूलों पर मँडराती तितलियों से वसुधा का रोमांच पूरी तरह प्रकट हो गया है।
9. शिशिर ऋतु में सूर्य की किरणों का प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – शिशिर ऋतु में सूर्य की किरणों में हरियाली में चमक आ जाती है। वह और अधिक कोमल तथा मखमली प्रतीत होने लगती है। ऐसा लगता है मानो हरियाली पर उजली चाँदनी छा गई हो। तिनके ऐसे सजीव हो उठते हैं मानो उनकी नसों में हरा खून बह रहा हो।

केदारनाथ अग्रवाल

चंद्र गहना से लौटती बेर

1. ‘इस विजन में अधिक है- पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति का क्या आक्रोश है और क्यों ? .
उत्तर – इन पंक्तियों में कवि का आक्रोश नगरीय जीवन और संस्कृति के प्रति यह है कि वहाँ प्रेम और सौंदर्य, सरलता और मानवता जैसी चीजें मर गई हैं इसका कारण यह है कि आगे बढ़ने की होड़ ने मनुष्य को शहरी जीवन में अपने तक सीमित अर्थात् आत्म केंद्रित कर दिया है, वह वास्तविक, सुख, शांति, प्रेम और प्रकृति को भूलकर निरुद्देश्य आपा-धापी में उलझ गया है ।
2. अलसी की चंचलता का वर्णन करें।
उत्तर – कवि अलसी का चंचल चित्र खींचते हुए कहता है कि वह कह रही है कि जो भी मुझे छुएगा, मैं उसी को अपना हृदय दान कर दूँगी।
3 . सरसों को ‘सयानी’ कहकर कवि क्या कहना चाहता होगा ?
उत्तर – सयानी होने से तात्पर्य यह है कि सरसों के पौधे हो गये हैं और उनमें फूलों और फलियों का विकास होने लगा है। दूसरी ओर कवि इस परंपरा की ओर भी इशारा करता है कि सयानी होने पर लड़कियों के विवाह कार्य संपन्न होते हैं। इसीलिए आगे चलकर वह सरसों के स्वयंवर की भी बात कहता है ।
4. अलसी के लिए ‘हठीली’ विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है ?
उत्तर – अलसी के पौधों को देखकर कवि उसे हठीली इसलिए कहता है कि अलसी चने के पास उससे सट कर उगी है और दोनों के विकास में प्रतिस्पर्धा का भाव है। वह चने के बीच-बीच में उगने का हठ कर रही है।
5. ‘चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है ?
उत्तर – सूर्य के जल में हिलते प्रतिबिंब की छाया लहरा – लहरा कर कवि को चाँदी के बड़े गोल खंभे का आभास देती है ।
6. कविता के आधार पर ‘हरे चने’ का सौंदर्य अपने शब्दों में चित्रित करें।
उत्तर – हरा चना, एक बीते का है, ठिंगना है, सिर पर गुलाबी फूल का पगड़ी (मुरेठा ) बाँधकर सजकर खड़ा है।
7. कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया  है ?
उत्तर – कवि ने चने, सरसों, अलसी, फागुन के मौसम, बगुले, तथा तालाब के जल और वनस्थली तथा सारस के वर्णन – प्रसंगों में प्रकृति का मानवीकरण किया है।
8. इस कविता में प्रकृति के सुंदर ही नहीं कुरूप दृश्यों का भी वर्णन हुआ है। सिद्ध करें ।
उत्तर – ‘चंद्र गहना से लौटती बेर’ में प्रकृति के कोमल, सुंदर और रंगीन दृश्यों का वर्णन तो हुआ ही है, उसमें कुरूप और अनगढ़ दृश्य भी चित्रित हुए हैं। चने, अलसी और सरसों के दृश्य बहुत सुंदर और रंगीन हैं। उनमें कवि-कल्पना का विलास दिखाई देता है। परंतु जहाँ चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियों और काँटेदार कुरूप पेड़ों का वर्णन हुआ है, वहाँ वर्णन यथार्थ के स्तर पर हुआ है।
9. पोखर के सौंदर्य का वर्णन इस कविता के आधार पर करें ।
उत्तर – कवि ने इस कविता में पोखर का वर्णन किया है। उसके जल में वायु के स्पर्श से लहरें उठ रही हैं। उसके तल में भूरी घास भी उन लहरों के साथ हिल रही है। सूर्य का प्रतिबिंब पोखर के जल में पड़कर चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा – सा दिखाई देता है। उसके किनारे पड़े हुए पत्थरों से पोखर का पानी छूता है तो ऐसा लगता है मानो वे प्यासे पत्थर पानी पी रहे हैं। उस पोखर के जल में चिकनी और चमकीली मछलियाँ हैं। जिन्हें अवसर मिलते ही जल में खड़े बगुले खा रहे हैं। उसी जल के ऊपर टिटहरी नामक काले सिर, सफेद पंख और पीली चोंच वाली चिड़ियाँ मँडरा रही हैं। मछलियाँ दिखने पर वे झपट्टा मारकर उन्हें जल से पकड़ लेती हैं और चोंच में दबाकर ऊपर आकाश में उड़ जाती हैं ।
10. प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है’ किसके लिए कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – यह कथन गाँव की एकांत प्रेममयी धरती के लिए कहा गया है। क्योंकि गाँव में दूर-दूर तक फैले खेत हैं। उनमें प्रकृति रंगबिरंगे फूलों से सजकर प्रेम प्रकट कर रही है। मानो प्रकृति शृंगार किए खड़ी है और स्वयंवर रचा जा रहा है। यह धरती न केवल प्रेमपूर्ण है, बल्कि उपजाऊ भी है। इसलिए कवि ने यह कथन कहा है।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

मेघ आए

1. बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखें ।
उत्तर – बादलों के आने पर ठंडी वायु नाचती गाती युवती के समान बहने लगी, पेड़ स्वागतार्थ अपनी टहनियाँ और पत्तों सहित झुककर मेघों का अभिवादन करने लगे। नदी तिरछी नजर से बहती हुई आश्चर्य से मोहित हो गई, लता हरी-भरी सी होकर गदगद हो गई एवं तालाब जल का प्रवाह विस्तारित करते हुए आनन्दमग्न हो गया।
2. लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों ?
उत्तर – लता ने बादल रूपी मेहमान को वर्ष भर इंतजार के बाद बरसने ( आने) पर उलाहना देकर अपने हल्के-फुल्के क्रोधमिश्रित अटूट प्रेम का प्रदर्शन किया। उससे अपनी खुशी और गम दोनों ही प्रदर्शित किए ।
3. मेघ-रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए ?
उत्तर – मेघ-रूपी मेहमान के आने से वातावरण सजीव हो गया । हवा तेज गति से चलने लगी | हवा के कारण पेड़ कभी झुकने कभी सीधे होने लगे। सूखी नदी में भी जल की धारा प्रवाहित होने लगी । जीव-जगत तथा सम्पूर्ण वनस्पति जगत में मानो प्राणों का संचार होने लगा ! एक वर्ष का इंतजार समाप्त हो गया ।
4. मेघों के लिए बन ठन के सँवर के आने की बात क्यों कही गई है ?
उत्तर – मेघों की तुलना गाँव में आए मेहमान ( दामाद ) से की है । दामाद जब ससुराल जाता है तो बन-ठन के जाता है। इसी प्रकार बादल भी एक वर्ष बाद बरसने के लिए आए हैं। इसलिए उनके लिए बन ठन से सँवर कर आने की बात कही हैं ।
5. कविता में आए मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण लिखें ।
उत्तर – कविता में मेघों का, बयार का, पेड़ों का, धूल का, नदी का, पीपल के वृक्ष का, लता का ताल का, बिजली का मानवीकरण किया गया है। तथा क्षितिज अटारी में रुपक अलंकार है ।
6. कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है ?
उत्तर – पीपल की आयु बहुत अधिक होती है। वे लंबे समय तक बने रहते हैं। अन्य पेड़ों की तुलना में वे बुजुर्ग ही ठहरते हैं। कई बार सौ-सौ वर्ष की आयु वाले पीपल के पेड़ पाए जाते हैं अतः उन्हें बड़ा बुजुर्ग कहना बिल्कुल सही है।
7. कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन करें।
उत्तर – (क) भारतीय संस्कृति के आदर्श वाक्य ‘अतिथि देवो भव’ के अनुसार प्रस्तुत कविता में कवि श्री सक्सेना जी ने ग्रामीणों द्वारा शहरी मेहमान का स्वागत करने का उत्साहयुक्त जोश दिखाकर इस परंपरा का निर्वाह किया है।
(ख) स्वागतार्थ नमन करना ( पत्ते, डालियाँ झुकना), नाचना – गाना (धूल द्वारा लहँगा सँभालकर नाचना चलना) एवम् सभी की प्रसन्नता का प्रदर्शन किया है।
(ग) बुजुर्गों द्वारा भी पढ़े-लिखे मेहमान को सम्मान देना ।
(घ) किसी विशेष अतिथि के आगमन पर रीति-रिवाजों के अनुसार उसके चरण पखारना ।
(ङ) संकोच, शर्म और लाज का समाहार करते हुए नायिका द्वारा हर्ष की अभिव्यक्ति ।
8. कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान के (दामाद) आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखें ।
उत्तर – ‘मेघ आए’ कविता में कवि सर्वेश्वर दयाल ने बताया है कि आकाश में बादल अपने नये रंग-रूप के साथ इस प्रकार छा गए हैं जैसे कोई शहरी दामाद बड़ा सज-धजकर अपनी ससुराल जाता है। मेघ रूपी मेहमान के आने पर पूरा गाँव उल्लास से भर उठता है। ठण्डी हवा मेहमान के आगे नाचती-गाती हुई चलती है। सभी ग्रामीणों ने पाहुन के दर्शन करने के लिए खिड़की-दरवाजे खोल लिए हैं। पेड़ एड़ियाँ उठा-उठा कर उसे देख रहे हैं। नदी तिरछी नजरों से मेघ की सज-धज को देख रही है और हैरान हो रही है। गाँव के पुराने पीपल ने मानो झुककर अभिवादन किया हो । लता संकोच के मारे दरवाजे की ओट में सिकुड़ गई है। तालाब मेहमान के चरण पखारने के लिए पानी लेकर आता है। ऊँचें भवनों पर लोग खड़े हैं। बिजली भी चमकने लगी। इस तरह सम्पूर्ण गाँव खुशी से झूम उठा।
9. ” क्षमा करो, गाँठ खुल गई अब भरम की” का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रिया को यह संदेह था कि वर्ष भर बाद भी जाने प्रिय आएंगे भी या नहीं किन्तु बादलों के बरसने पर लता रूपी मुरझाई व्याकुल प्रियतमा हरी-भरी होकर प्रसन्न हो गई और उसने अपनी शंकाजनित भावना के लिए माफी भी मांगी।
10. “बाँकी चितवन उठा नदी ठिठकी, घूँघट सरके का भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर – नदी ने भी वियोग से व्याकुल एवं अधीर दशा को प्रदर्शित न करने का भरसक प्रयत्न किया और वर्षा के मेघों के ( मेहमान के) दर्शन करने के लिए तिरछी नजर से उन्हें देखा, घूँघट सरकाया एवं आल्हादित होकर विस्मित-सी रह गई। उसे खुशी थी कि अब वह पानी से लबालब भर जाएगी।
11. गली-गली में दरवाजे-खिड़कियाँ क्यों खुलने लगे?
उत्तर – मेघ और वर्षा के स्वागत में, दूसरे शब्दों में वर्षा का आनंद लूटने के लिए गली-गली में दरवाजे-खिडकियाँ खुलने लगे।

चंद्रकांत देवताले

यमराज की दिशा

1. कवि को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई ?
उत्तर – माँ के द्वारा यह बताए जाने पर कि मृत्यु के देवता यमराज का घर दक्षिण दिशा में है, लेखक को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई।
2. कवि ने ऐसा क्यों कहा कि दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था ?
उत्तर – चूँकि दक्षिण की दिशा मृत्यु की दिशा है और मृत्यु को समझ पाना उसके लिए हर बार असंभव सा रहा इसलिए कवि ने ऐसा कहा कि दक्षिण को लाँघ पाना संभव नहीं था ।
3. कवि के अनुसार आज हर दिशा दक्षिण दिशा क्यों हो गई है ?
उत्तर – सभ्यता के अंधाधुंध विकास की होड़ में मनुष्य के भीतर व्याप्त चेतना मर सी गई है। चारों तरफ युद्ध और विनाश- लीलाएँ हो रही हैं। मृत्यु अब चतुर्दिक अपने पाँव पसारे हुए है । इसलिए कवि ने कहा है कि आज हर दिशा दक्षिण दिशा हो गई है।
4. कभी-कभी उचित-अनुचित निर्णय के पीछे ईश्वर का भय दिखाना आवश्यक हो जाता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर – मानव-मन में शुभ-अशुभ दोनों भाव हैं। कभी-कभी उसका अशुभ मनोभाव बहुत अधिक जाग्रत हो उठता है । तब वह खून, हत्या जैसे घिनौने कार्य भी कर बैठता है। इस स्थिति से बचाने के लिए ईश्वर का भय दिखाना बहुत आवश्यक होता है। ईश्वर से भयभीत व्यक्ति मन से ही मर्यादित हो जाता है। वह अहिंसक, निष्पाप और भला इनसान बन जाता है।

राजेश जोशी

बच्चे काम पर जा रहे हैं

1. सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं ?
उत्तर – सामाजिक-आर्थिक विडंबना के कारण बच्चे सुविधा और मनोरंजन से वंचित हैं। क्योंकि इसी विडंबना ने उनके हाथों में कलम की जगह काम पकड़ा दिया है ।
2. आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है ?
उत्तर – हमने दिल्ली जैसे शहर में कारखानों, घरों में चलाए जाने वाले छोटे-मोटे घरेलू उद्योगों में जैसे- पटाखे, फुलझडियाँ बनाना, चमड़े का काम, डाई का काम, होटलों में बर्तन धोने, सफाई, भोजन बनाने और परोसने, झाडू लगाने के अतिरिक्त विवशतावश भीख माँगने जैसे काम भी बाल श्रमिकों को करते हुए देखा है। कभी-कभी फुटपाथ पर भी छोटे-छोटे बच्चे बूट पालिश करते हुए, ठेलियों पर पानी बेचते, खाने पीने के सामान बेचते, खिलौने आदि बेचते दिख जाते हैं। रेड लाइट और चौराहों पर भी छोटे बच्चे अखबार एवं पत्रिकाएँ बेचते हुए मिल जाते हैं ।
3. बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है ?
उत्तर – बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं? यह एक भयानक तथा ज्वलन्त प्रश्न इसलिए भी है, क्योंकि बालकों का उज्ज्वल भविष्य कायम रखने के लिए उनके बचपन से खिलवाड़ करना अनुचित अपराध है। बच्चों को उनके मौलिक अधिकार (खेलने कूदने, पढ़ने एवम् खुली हवा में साँस लेने) न देकर हम उन्हें बेगार और मजदूरी के शोषण चक्र में फँसने हेतु मजबूर कर रहे हैं। यह बात सर्वथा अनुचित पूर्ण है। अतः कह सकते हैं कि प्रश्न भयानक होता जा रहा है ।
4. दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रही है / देख रहा है, फिर किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर – दिन-प्रतिदिन के जीवन के जीवन में हर किसी को काम पर जाते बच्चों को देखकर अटपटा नहीं लगता । इस उदासीनता का कारण यह हो सकता है कि आज आवश्यकताएँ बढ़ती जा रही हैं और आय के साधन कम होते जा रहे हैं। साथ ही निम्न वर्ग निरन्तर आर्थिक तंगी का सामना करता आ रहा है।
5 . आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए ?
उत्तर – मेरे विचार से बच्चों को काम पर बिलकुल नहीं भेजा जाना चाहिए। कारण यह है कि बच्चों की उम्र कच्ची होती है। मन भावुक होता है । यह उनके खेलने-खाने और सीखने की उम्र होती है। उन्हें पर्याप्त कोमलता और संरक्षण की आवश्यकता होती है। बच्चों को पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने, घूमने-फिरने और मनोरंजन करने के भरपूर अवसर मिलने चाहिए।
6. ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ कविता में कवि ने समाज को किस प्रकार जगाने का प्रयत्न किया है ?
उत्तर – इस कविता में कवि ने समाज को जगाने के लिए दो प्रकार के प्रयत्न किए हैं। पहले उन्होंने सुबह-सुबह कोहरे में काम पर जाते बच्चों का चित्र प्रस्तुत किया है । इससे पाठकों के हृदय में करुणा उपजाने का प्रयास किया है। दूसरे, उन्होंने संवेदनाशून्य समाज पर व्यंग्य किया है। समाज के लोग बाल मजदूरी को देखकर चिंतित नहीं होते। वे इसे सामान्य बात कहकर टाल देते हैं । कवि ने इस भावनाशून्यता को ‘भयानक’ कहा है । इस प्रकार उन्होंने सफलतापूर्वक समाज को जगाने का प्रयत्न किया है।
7. ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं। यह एक भयानक प्रश्न क्यों बनता है ?
उत्तर – बच्चों का रोजी-रोटी के लिए काम करना निश्चित रूप से भयानक बात है। इस कारण उनका बचपन मारा जाता है। खुशियाँ नष्ट होती हैं। यहाँ तक पूरा जीवन कुम्हला जाता है। इसलिए उनका काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है।

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