NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 6 कृतिका (भाग – 1)

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NCERT Solutions Class 9Th Hindi Chapter – 6 कृतिका (भाग – 1)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

इस जल प्रलय में

1. बाढ़ की सही जानकारी लेने और बाढ़ का रूप देखने के लिए लेखक क्यों उत्सुक था ?
उत्तर – बाढ़ की सही जानकारी जानने और बाढ़ का भयावह रूप देखने के लिए लेखक इसलिए उत्सुक था, क्योंकि वह उसी शहर का निवासी था । वह देखना चाहता था कि शहर के किन-किन क्षेत्रों में परेशानी और भयावहता का समावेश हो चुका है। जैसे कि राजभवन, मुख्यमंत्री निवास, गोलघर, कॉफी हाउस, फ्रेजर रोड, श्री कृष्ण पुरी, पाटलीपुत्र कॉलोनी, बोरिंग रोड, इंडस्ट्रियल एरिया, भट्टाचार्जी रोड, एवं वीमेंस कॉलेज आदि। लोगों की आवाजाही और निरन्तर चर्चा के कारण ही लेखक बाढ़ की सत्यता जानने का जिज्ञासु हो गया था ।
2. नौजवान के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में कूद गया। दोनों ने किन भावनाओं के वशीभूत होकर ऐसा किया ?
उत्तर – नौजवान के द्वारा बाढ़ के पानी में उतरते ही कुत्ता भी पानी में इसलिए कूदा क्योंकि 1949 में जब महानंदा की बाढ़ से बचकर लोग नाव पर बैठ रहे थे तब रिलीफ के डॉक्टर ने बीमारों के साथ-साथ एक नौजवान को भी नाव पर चढ़ने दिया, लेकिन नाजवान का कुत्ता भी कूँई-कूँई करके उनके पीछे-पीछे आ गया तब क्रोध में आकर डॉक्टर ने कुत्ते को आने से मना कर दिया । वे डरकर बोलेआ रे ! कुकुर नहीं, कुकुर को भगाओ । बीमार नौजवान ऐसा सुनकर शीघ्र ही पानी में उतर गया और बोले- हमारा कुकुर नहीं जाएगा तो हम भी नहीं जाएगें । कुत्ता भी छपाक् से पानी में उतर गया और अपनी स्वामिभक्ति का परिचय दिया। नौजवान ने भी अपने पालतू कुत्ते के प्रति स्नेह और लगाव का परिचय दिया ।
3. ‘अच्छा है, कुछ भी नहीं । कलम थी, वह भी चोरी चली गई। अच्छा है, कुछ भी नहीं – मेरे पास ।’ – मूवी कैमरा, टेप रिकॉर्डर आदि की तीव्र उत्कंठा होते हुए भी लेखक ने अंत में उपर्युक्त कथन क्यों कहा ?
उत्तर – लेखक यात्रा वर्णन एवं रिपोर्ताज आदि का शब्द चित्रांकन करने का शौकीन था । जब उसने बाढ़ का दृश्य देखा तो उसकी बेहद इच्छा हुई कि वह उस दृश्य और स्वानुभवों को कैद करके रख ले, जिसके लिए मूवी कैमरा (चल चित्र खींचने हेतु).. टेप-रिकॉर्डर (ध्वनि कैद करके रिकॉर्ड करने हेतु ) एवं शब्दबद्ध करने हेतु कलम भी नहीं थी (कलम भी चोरी हो चुकी थी ।) यह सब सोचकर वह आश्वस्त होते हुए मन-ही-मन कहने लगा- चलो अच्छा ही है यदि ये सभी उपकरण मेरे पास होते तो मैं रिकॉर्डिंग एवं लेखन का कार्य करने बैठ जाता, किन्तु बाढ़ का दृश्य तो शब्दों से भी परे अवर्णनीय था । अतः लेखक चुपचाप मन-ही-मन संतुष्ट हो गए और सोचा कि इन सभी उपकरणों की अनुपस्थिति अब उन्हें बेचैन नहीं करेगी।
4. 1949 की महानंदा की बाढ़ के समय लेखक के साथ क्या घटना घटी ?
उत्तर – 1949 में महानंदा की बाढ़ से घिरे बापसी थाना के एक गाँव में लेखक और उसकी साथी पहुँचे। उनकी नाव पर रिलीफ के डॉक्टर साहब थे। गाँव के कई बीमारों को नाव पर चढ़ाकर कैंप में ले जाना था। एक बीमार नौजवान के साथ उसका कुत्ता भी ‘कुंई- कुंई’ करता हुआ नाव पर चढ़ आया। डॉक्टर साहब कुत्ते को देखकर ‘भीषण भयभीत’ हो गए और चिल्लाने लगे- ‘आ रे! कुकुर नहीं, कुकुर नहीं…. कुकुर को भगाओ !’ बीमार नौजवान छप-से पानी में उतर गया—“हमार कुकुर नहीं जाएगा तो हम हुँ नहीं जाएगें ।” फिर कुत्ता भी छपाक पानी में गिरा—“हमारा आदमी नहीं जाएगा तो हम हुँ नहीं जाएगें।”… परमान नदी की बाढ़ में डूबे हुए कई ‘मुसहरी’ (मुसहरों की बस्ती ) में राहत बाँटने गए। खबर मिली थी वे कई दिनों से मछली और चूहों को झुलसाकर खा रहे हैं। किसी तरह जी रहे हैं। किंतु टोले के पास जब लेखक पहुँचा तो ढोलक और मंजीरा की आवाज सुनाई पड़ी। जाकर देखा, एक ऊँची जगह ‘मचान’ बनाकर स्टेज की तरह बनाया गया है। ‘बलवाही’ नाच हो रहा था । लाल साड़ी पहनकर काला-कलूटा ‘नटुआ’ दुलहिन का हाव-भाव दिखला रहा था ।
5. पटना की बाढ़ में पिकनिक मनाने आए युवक-युवतियों के साथ कैसा बर्ताव हुआ ?
उत्तर – 1967 में पटना में भीषण बाढ़ आई । लगभग पूरा शहर डूब गया । लेखक राजेंद्र नगर में रहता था। वह भी लगभग जलमग्न हो गया। तभी कुछ मनचले युवक-युवतियों की टोली सज-धजकर एक नाव पर सवार होकर पानी में उतरी। नाव में स्टोव चल रहा था । उस पर केतली रखी थी । बिस्कुट के डिब्बे भी खुले हुए थे। एक युवती मनमोहक अदा में नैस्कैफे कॉफी का पाउडर मथ रही थी। दूसरी बेफिक्र होकर रंगीन पत्रिका पढ़ रही थी । एक युवक घुटनों पर कोहनी रखे उस लड़की के सामने डायलॉग मार रहा था। मानो वे सब किसी फिल्मी दृश्य की नकल कर रहे थे। ट्रांजिस्टर चल रहा है। ऊँची आवाज में गाना सुनाई पड़ रहा था- ‘हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का ।’
युवक-युवतियों का यह आनंद उत्सव राजेंद्र नगर के लड़कों को पसंद न आया। उन्होंने ब्लॉक की छत से इतनी किलकारियों, सीटियाँ और फब्तियों की बौछार की कि वे लज्जित हो गए। उनका उत्सा ह काफूर हो गया। लाल होंठ काले पड़ गए।
6. पटना के राजेंद्र नगर में पानी आने का दृश्य अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर – पटना के राजेंद्र नगर में पश्चिम दिशा की ओर से पानी का प्रवेश हुआ। पानी डोली की शक्ल में आगे बढ़ा। उसके मुँह पर मानो झाग – फेन था । दूर से देखने पर यों लगा मानो किल्लोल करते बच्चों की एक भीड़ उनके आगे-आगे चली आ रही हो। नजदीक आकर पता चला कि बच्चों की भीड़ नहीं थी, बल्कि मोड़ पर रुकावट पाकर पानी उछल रहा था। धीरे-धीरे चारों ओर शोर मच गया। कोलाहल, चीख-पुकार और पानी की कलकल। धीरे-धीरे पानी फुटपाथ को पार करके वेग से बहने लगा। जल्दी ही वह गोलंबर के गोल पार्क के चारों ओर घिर गया। पानी का वेग इतना तेज हो गया कि सामने की दीवार की ईंटें एक-एक करके डूबने लगीं। धीरे-धीरे बिजली के खंभे का काला भाग डूब गया। ताड़ के पेड़ का तना डूबता गया। इस प्रकार पानी बढ़ता ही गया।

मेरे संग की औरतें

1. आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी ?
उत्तर – पाठ को पढ़कर लगता है कि लेखिका की परदादी ने भी अपने समय में लड़की के साथ होने वाले अपमान और तिरस्कार को जाना-समझा होगा । उसे मन-ही-मन लगता होगा कि देवी का रूप होने पर भी लड़की का इतना तिरस्कार क्यों होता है? कब उसका सम्मान होना शुरू होगा ? शायद इसीलिए उसने अपनी इस भावना को घर में ही फलते-फूलते देखना चाहा होगा। उसने समाज में यह भाव भरना चाहा होगा कि यहाँ लड़कियों का सम्मान होता है। अतः तुम भी उन्हें सम्मान दो । परदादी ने यह भी सोचा होगा कि अगर लड़कियों का सम्मान होगा तो वे आत्मविश्वास, सम्मान और साहस से भरकर शक्तिशाली बन सकेंगी।
2. डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है – पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दें ।
उत्तर – इस पाठ से स्पष्ट है कि मनुष्य के पास सबसे प्रभावी अस्त्र है – अपना दृढ़ विश्वास और सहज व्यवहार । यदि कोई सगा-संबंधी गलत राह पर हो तो उसे डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव देने की बजाय सहजता से व्यवहार करना चाहिए। लेखिका की नानी ने भी यही किया। उन्होंने अपने पति की अंग्रेज-भक्ति का न तो मुखर विरोध किया, न समर्थन किया। वे जीवन भर अपने आदर्शों पर टिकी रहीं। परिणामस्वरूप अवसर जाने पर वह मनवांछित कार्य कर सकीं ।
लेखिका की माता ने चोर के साथ जो व्यवहार किया, वह तो सहजता का अनोखा उदाहरण है। उसने न तो चोर को पकड़ा, न पिटवाया, बल्कि उससे सेवा ली और अपना पुत्र बना लिया। उसके पकड़े जाने पर उसने उसे उपदेश भी नहीं दिया, न ही चोरी छोड़ने के लिए दबाव डाला । उसने इतना ही कहा- अब तुम्हारी मर्जी- चाहे चोरी करो या खेती। उसकी इस सहज भावना से चोर का हृदय परिवर्तित हो गया। उसने सदा के लिए चोरी छोड़ दी और खेती को अपना लिया ।
3. पाठ के आधार पर लिखें कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है ?
उत्तर – पाठ में बताया गया है कि निम्नांकित प्रकार के इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता हैं ।
(क) जो सदा सच बोलते हैं ।
(ख) जो किसी की गोपनीय बातों को दूसरों पर प्रकट न करते हों।
(ग) जो अपने इरादों में मजबूत हों।
(घ) जो दूसरों के साथ सहज व्यवहार करते हों ।
(ङ) जो हीन-भावना के शिकार न हों।
4. ‘सच, अकेलेपन का मजा ही कुछ और है- इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त करें।
उत्तर – लेखिका की बहन रेणु अपनी इच्छा की स्वामिनी थी । वह जो कुछ ठान लेती थी उसे करके रहती थी। एक बार बहुत तेज वर्षा हुई । कोई वाहन सड़क पर नहीं निकला । रेणु की स्कूल बस उसे लेने नहीं आई तो वह पैदल चली गई। स्कूल बंद था, पर उसे इसका मलाल नहीं था । वह वापस दो मील चलकर घर पहुँच गई । लेखिका इस घटना को सुनकर रोमांचित हो उठी। उसे भी लगा कि अकेलेपन का मजा ही कुछ और है। अपनी धुन में मंजिल की ओर चलते चले जाना।
5. लेखिका ने अपनी माँ को कैसा पाया ?
उत्तर – लेखिका ने अपनी माँ को कभी भारतीय माँ जैसा नहीं पाया । न उन्होंने कभी उन्हें लाड़ किया, न उनके लिए खाना पकाया और न अच्छी पत्नी-बहू होने की सीख दी। कुछ अपनी बीमारी के चलते भी, वे घरबार नहीं संभाल पाती थीं पर उसमें ज्यादा हाथ उनकी अरुचि का था। उनका ज्यादा वक्त किताबें पढ़ने में बीतता था, बाकी वक्त साहित्य चर्चा में या संगीत सुनने में और वे ये सब बिस्तर पर लेटे-लेटे किया करती थीं फिर भी, जैसा लेखिका ने पहले कहा था, हमारें परंपरागत दादा-दादी या उनकी ससुराल के अन्य सदस्य उन्हें नाम धरते थे, न उनसे आम औरत की तरह होने की अपेक्षा रखते थे। उनमें सबकी इतनी श्रद्धा क्यों थी, जबकि वह पत्नी, माँ और बहू के किसी प्रचारित कर्तव्य का पालन नहीं करती थीं ? साहबी खानदान के रोब के अलावा लेखिका की समझ में दो कारण आए हैं— (क) वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और (ख) वे एक की गोपनीय बात को दूसरे पर जाहिर नहीं होने देती थीं ।
पहले के कारण उन्हें घरवालों का आदर मिला हुआ था; दूसरे के कारण बाहरवालों की दोस्ती ।
6. लेखिका की परदादी के व्यक्तित्व के विशेषताओं पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – लेखिका की एक परदादी भी थीं, जिन्हें कतार से बाहर चलने की शौक था । उन्होंने व्रत ले रखा कि अगर खुदा के फजल से उनके पास दो से ज्यादा धोतियाँ हो तो वे तीसरी दान कर देंगी। जैन समाज में अपरिग्रह की सनक, बिरादरी बाहर हरकत नहीं मानी जाती, इसलिए वहाँ तक तो ठीक था । पर उनका असली जलवा तब देखने को मिला, जब लेखिका की माँ पहली बार गर्भवती हुईं । परदादी ने मंदिर में जाकर मन्नत माँगी कि उनकी पतोहू का पहला बच्चा लड़की हो । यह र रवायती मन्नत माँगकर ही उन्हें चैन नहीं पड़ा। उसे भगवान और अपने बीच पोशीदा रखने के बजाय, सरे आम उसका ऐलान कर दिया। लोगों के मुँह खुले के खुले रह गए। उनके फितूर की कोई वाजिब वजह ढूँढे न मिली ।

रीढ़ की हड्डी

1. एकांकी के आधार पर गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तर – गोपाल प्रसाद का चरित्र चित्रण –
(क) चतुराई भरा व्यक्तित्व- शंकर के पिता गोपाल प्रसाद जब रामस्वरूप जी के घर लड़की देखने आते हैं तो उनका आगमन होते ही उनके चेहरे से चालाकी दिखाई देती है।
(ख) खाने के शौकीन बातों-बातों में गोपाल प्रसाद बताते हैं कि स्कूली जीवन में वे दर्जनों कचौड़ियाँ उड़ा जाते थे।
(ग) डींगे मारने वाले शख्स – बातों-बातों में कभी तो वे अपने अंग्रेजी ज्ञान की शेखी बघारते हैं तो कभी खिलाड़ी होने की ।
(घ) खूबसूरती का कायल – गोपाल जी लड़की की खूबसूरती के कायल हैं ।
(ङ) रूढ़िवादी – गोपाल जी पुराने विचारों के व्यक्ति हैं। वे लड़की का ज्यादा पढ़ा-लिखा होना सही नहीं मानते हैं। उनके अनुसार अनपढ़ लड़की दबी हुई-सी सभी घरेलू काम ठीक से करती है
(च) विनोदी – वे हँसमुख और विनोदप्रिय हैं ।
(छ) नर-नारी में अंतर मानने वाले- गोपाल जी नर-नारी में भेद मानकर नए जमाने के प्रतिकूल विचार प्रस्तुत करते हैं। वे मर्दों को ही दुनिया में श्रेष्ठ मानते
 हैं ।
(ज) दहेज के लोभी- गोपाल जी दहेज के लोभी बनकर ही उमा देखने आते हैं।
2. एकांकी के आधार पर रामस्वरूप की चारित्रिक विशेषताएँ बताएँ ।
उत्तर – रामस्वरूप का चरित्र चित्रण
(क) शालीन एवं गंभीर स्वभाव वाले – रामस्वरूप जी गंभीर स्वभाव वाले साधारण से दिखने वाले शालीन स्वभाव वाले व्यक्ति हैं ।
(ख) जिम्मेदार पिता- रामस्वरूप जी अपनी बेटी उमा को पढ़ा-लिखाकर पैरों पर खड़ा करते हैं। लड़के को दिखाते समय वे बेटी के साथ ही रहते हैं ।
(ग) अंधविश्वासों के विरोधी- शंकर के पिता द्वारा बेटी की जन्मपत्री के बारे में पूछने पर वे अनभिज्ञता दर्शाकर उसे जरूरी नहीं मानते।
(घ) मिथ्यावादी – उमा के पिता के रूप में उनके चरित्र में एक कमी यह है कि वे बेटी के अनपढ़ होने की झूठी खबर देकर शंकर के पिता को खुश करना चाहते है।
(ङ) डरपोक स्वभाव वाले – रामस्वरूप जी कहीं-कहीं कई प्रसंगों कायर स्वभाव वाले नजर आते हैं, जैसे कि- उमा द्वारा क्रोधित होकर दहेज के लालची वरपक्ष के लोगों को भाग देने के प्रसंग में वे बेटी को ऐसा करने से मना करते हैं क्योंकि उनको डर है कि कहीं बेटी कुँवारी ही न रह जाए।
3. इस एकांकी का क्या उद्देश्य है ? लिखें।
उत्तर – ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के माध्यम से लेखक ने समाज में व्याप्त मध्यम वर्ग में बेटी की शादी की समस्या को उजागर करने के साथ उन स्वार्थी, अवसरवादी, व्यवहारवादी लोगों पर व्यंग्य करना है, जो पैसों के बल पर, पुरुष प्रधान समाज के बल पर सब कुछ खरीदने का झूठा भ्रम रखते हैं। ऐसे लोगों को सबक सिखाने के उद्देश्य से ही यह एकांकी लिखी गई है।
4. ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी के आधार पर शंकर का चरित्र-चित्रण करें। ‘ हास्य- एकांकी है ?
उत्तर – शंकर ‘रीढ़ की हड्डी’ एकांकी का वह पात्र है जिसके शरीर में रीढ़ की हड्डी नहीं है। वह आवारा किस्म का युवक है। वह मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हुए पर पढ़ाई पर कम और लड़कियों के पीछे मँडराने पर अधिक ध्यान देता है। इसलिए उसकी खूब पिटाई होती है। यहाँ तक कि उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जाती है। इसलिए वह हमेशा झुककर चलता है । वह तन कर बैठा नहीं पाता।
शंकर की सबसे बड़ी कमजोरी है- उसका व्यक्तित्वहीन होना । उसके अपने विचार नहीं हैं। न ही मन में इतनी शक्ति है कि कुछ सोच सके या सत्य पर डटा रह सके। उसके लिए न कुछ ठीक है, न गलत । वह पिता का पाला हुआ चूहा है, जो जब कभी चूँ-चूँ करता रहता है और उनकी फूहड़ बातों पर हीं-हीं करता रहता है। वास्तव में वह युवक न होकर बूढ़ा है। उसमें किसी भी बात पर अडिग रहने की शक्ति नहीं है। यदि वह व्यक्तित्व संपन्न होता तो एकांकी का नायक कहलाता, अब वह एक अकिंचन अर्थात् बेचारा पात्र बनकर रह गया है।
5. सिद्ध करें कि ‘रीढ़ की हड्डी’ हास्य- एकांकी है ?
उत्तर – ‘रीढ़ की हड्डी’ हास्य-एकांकी है। इसमें हास्य और व्यंग्य के दोनों तत्त्व विद्यमान हैं। एकांकी का आरंभ हल्के-फुल्के दृश्य से होता है। मालिक और नौकर की नोंक-झोंक विनोदपूर्ण है। नौकर की मूर्खतापूर्ण बातें और रामस्वरूप के करारे उत्तर हँसी पैदा करते हैं। नौकर का अपनी मूर्खता पर खुद हँसना, मालिक के आदेश का गलत अर्थ लेना, बिछाने की चादर की बजाय मालिक की धोती माँगना ऐसे दृश्य हैं जो पाठक को हँसने पर मजबूर कर देते हैं ।
हँसी के तत्त्व एकांकी के मुख्य प्रसंग में भी हैं। गोपाल प्रसाद जानबूझकर मनोरंजक प्रसंग उठाता है। वह दर्जनों कचौड़ियाँ उड़ाने की बात करता है । खूबसूरती पर टैक्स लगाने का सुझाव देता है। नर-नारी की असमानता पर फूहड़ तर्क देता है। ये सभी संवाद हँसी उत्पन्न करते हैं ।
रामस्वरूप और उसकी पत्नी प्रेमा के प्रसंग भी हास्यजनक हैं। पति का पत्नी को बार-बार मूर्ख कहना, ग्रामोफोन कहना, पत्नी का स्वयं को मूर्ख मान लेना हास्यजनक प्रसंग हैं ।
एकांकी का अंत व्यंग्य से होता है। जब उमा गोपाल प्रसाद तथा शंकर को आड़े हाथों लेती है तो हँसी व्यंग्य की चोट में बदल जाती है। इस प्रकार हम इस एकांकी को हास्य एकांकी कह सकते हैं।

माटी वाली

1. पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजों को हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।’- मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त करें।
उत्तर – आज के भौतिकतावादी युग में व्यक्ति निरंतर आगे बढ़ने की दौड़ में लगा हुआ है। सभ्यता के विकास में वह संस्कृति और मूल्यों को छोड़ रहा है। आज वह बाहरी, खोखली चमक के लिए अपने आधारभूत शाश्वत खत्म और उससे जुड़ी चीजों को छोड़ रहा है। अतः मालकिन के इस कथन कि “पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजों का हराम के भाव बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।” इससे हमें यह संदेश मिलता है कि हमें खोखली चमक और क्षणिक सुख के लिए अपनी परंपरागत, ठोस, मूल्यवान चीजों का त्याग नहीं करना चाहिए, अन्यथा हमारी पहचान ही धीरे-धीरे धूमिल हो जायेगी।
2. ‘आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी । – इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर – माटी वाली बुड्ढे को मजबूरी में ही रोटियाँ खिलाती है। जब भी संभव होता है, वह उसके लिए साग का भी इंतजाम करती है। वह माटी बेचने से हुई आमदनी में से एक पाव प्याज खरीद लेती है ताकि वह उसे कूटकर तथा तलकर सब्जी बना दे और बूढ़े को रोटियों के साथ परोस दे। उसकी इस सोच से उसके हृदय में अपने बूढ़े पति के प्रति प्रेम की भावना का पता चलता है। वह अपने बूढ़े पति का बहुत खयाल रखती है। उसे भरपेट खाना खिलाना चाहती है।
3. विस्थापन की समस्या पर एक अनुच्छेद लिखें ।
उत्तर – विस्थापन की समस्या – नदियों पर बड़े-बड़े, ऊँचे-ऊँचे बाँध बनाए जा रहे हैं । नर्मदा नदी पर भी ऐसा ही बाँध बनाया जा रहा है। इन बाँधों के बनाए जाने के परिणामस्वरूप सैंकड़ों हजारों परिवारों को अपनी जमीन गँवानी पड़ती है। वे उजड़ जाते हैं। अब समस्या आती है – उनके विस्थापन की। सरकार उनकी जमीन तथा रोजी-रोटी तो छीन लेती है, पर विस्थापन की ओर ध्यान नहीं देती । थोड़ा-बहुत मुआवजा उनके हाथ में थमाकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मान लेती है। देश का सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों ने भी इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। विस्थापन का प्रबंध किया जाना जरूरी है। उनकी माँगों को लेकर आंदोलन तो चलते हैं, पर किसी-न-किसी दबाव के फलस्वरूप वे बीच में ही दम तोड़ देते हैं । इस समस्या को गंभीरता से लिया जाना चाहिए ।
4. ‘माटी वाली’ के आधार पर माटी वाली का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर – पति-परायण- माटीवाली पति-परायण स्त्री है । वह स्वयं बहुत गरीब और लाचार है। नारी होने के नाते उसे किसी सहारे की आवश्यकता होनी चाहिए, परंतु वह स्वयं बूढ़े पति का सहारा बनकर जीती है। दो रोटी पाने पर वह पहले एक रोटी कर देगी। वह उसके लिए प्याज की पकौड़ियाँ बनाने का भी प्रबंध करती है । उसकी यह पारिवारिक भावना प्रशंसनीय है ।
कर्मठ एवं साहसी- माटी वाली दिन-रात मिट्टी खोदने और उसे बेचने के काम में लगी रहती है। उसे वापस लौटते-लौटते अँधेरा हो जाता है। फिर वह अकेले जंगली इलाके में आती-जाती है। वह साहसी स्त्री है। लोकप्रिय- माटी वाली का स्वभाव इतन कोमल विनम्र है कि सब लोग उसे स्वयं चाय-रोटी दे देते हैं। वह सबकी चहेती है। वह सबको बहुत कम दाम पर मिट्टी दे जाती है।

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

1. लेखक ने बच्चन जी के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है ?
उत्तर – लेखक ने बच्चन जी के व्यक्तित्व के कई रूपों को उभारा है –
(क) बच्चन जी मित्रता का निर्वाह करना जानते थे। वे अपने मित्रों की मदद किया करते थे। उन्होंने लेखक की एम०ए० की पढ़ाई के खर्च का जिम्मा स्वयं ले लिया था ।
(ख) बच्चन जी एक सहृदय कवि थे। उनकी कविताएँ धूम मचा रही थीं। वे कवि सम्मेलनों में भी जाया करते थे ।
(ग) बच्चन जी अपना काम स्वयं करने में झिझकते नहीं थे। एक बार भारी वर्षा के कारण कुली न मिलने पर बिस्तर अपने कंधे पर रखकर स्टेशन तक चले
गए ।
(घ) बच्चन जी उभरते कवियों को प्रेरणा देते थे। उनका मार्गदर्शन भी करते थे।
2. लेखक ने अपने जीवन में किन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखें ।
उत्तर – लेखक ने जीवन में कुछेक कठिनाइयाँ झेलकर ही जीवन जीना सीखा। ये कठिनाइयाँ इस प्रकार हैं
(क) घर से दिल्ली जाकर अपरिचित जगहों पर भटकना, कनॉट प्लेस आदि में भटकना। उकील आर्ट्स स्कूल में दाखिला लिया ।
(ख) इलाहाबाद में बच्चन जी के घर पर रहकर ही एम०ए० किया। देहरादून जाकर पेंटिंग क्लास खोली। उसके जल्दी ही बंद होने पर ससुराल की कैमिस्ट्स दुकान पर कंपाउंडरी सीखी। बच्चन जी के साथ इलाहाबाद रहकर पढ़ाई की। हिंदू बोर्डिंग हाउस के कॉमन हुए में इंडियन प्रेस के अनुवादक की नौकरी मिल गई । फिर हिन्दी काव्य रचनाएँ लिखते हुए, साहित्यकारों की संगत में रहकर हंस, चाँद आदि में छपवाईं ।
3. ‘तुम यहाँ रहोगे तो मर जाओगे….. तुम इलाहाबाद जाएगा तो मर जाएगा …. इन कथनों के संदर्भ में लेखक का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर – कवि हरिवंशराय बच्चन ने शमशेर बहादुर सिंह को कहा- “अगर तुम यहाँ (देहरादून में) रहोगे तो मर जाओगे।” उनका आशय यह था कि देहरादून में रहकर उन्हें अपनी मृत पत्नी की यादें आती रहेंगी। दूसरे, देहरादून में कलाभिव्यक्ति के साधन और माध्यम नहीं हैं। अतः शमशेर अपनी भावनाओं को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाएँगे। न ही कला के अभाव में जी पाएँगे। न उन्हें कला के बिना अपना जीवन सार्थक प्रतीत होगा । अतः वे यहाँ घुट-घुट कर जिएँगे । देहरादून के प्रसिद्ध डॉक्टर ने उन्हें कहा- ‘तुम इलाहाबाद जाएगा तो मर जाएगा।’ इसका आशय यह था कि वहाँ तुम्हारा अकेलापन बाँटने वाला कोई नहीं होगा। अतः पत्नी तथा प्रियजनों की याद में तुम्हारा जीना कठिन हो जाएगा।
4. शमशेर बहादुर सिंह हिंदी की तरफ क्यों मुड़े ?
उत्तर – शमशेर बहादुर सिंह हिंदी से पहले अंग्रेजी तथा उर्दू में निपुण थे। उन्हें हिंदी की तरफ मोड़ने वाले थे – कवि हरिवंशराय बच्चन | बच्चन जी 1930 के आसपास बहुत लोकप्रिय थे। एक बार उन्होंने शमशेर बहादुर सिंह के एक सॉनेट की बहुत प्रशंसा की। इससे शमशेर बच्चन के नजदीक हो गए। बच्चन जी शमशेर को इलाहाबाद ले गए। वहाँ हिंदी का वातावरण बहुत प्रेरक तथा प्रभावी था। निराला तथा पंत जी की रचनाओं ने उन्हें हिंदी में लिखने के लिए प्रेरित किया। शमशेर पंत जी के संपर्क में आए । पंत जी ने उनकी कुछ कविताओं में सुधार भी किया । निराला ने भी उनकी एक कविता पर अच्छी टिप्पणी की। बच्चन जी ने तो उन्हें लिखने के लिए एक नया छंद भी समझाया । इस प्रकार शमशेर बहादुर सिंह हिंदी की तरफ मुड़ गए ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

इस जल प्रलय में

1. बाढ़ की खबर सुनकर लोग किस तरह की तैयारी करने लगे ?
उत्तर – बाढ़ की खबर सुनकर लोग सावधानी बरतने के संदर्भ में आवश्यक वस्तुओं का संग्रह करने लगे, जैसे— खाने-पीने का सामान, रोजमर्रा की वस्तुएँ, ईंधन, गैस एवं कैरोसिन, मोमबत्ती, पीने का पानी, कंपोज की गोलियाँ, आलू, दियासलाई, सिगरेट आदि ।
2. सबकी जबान पर एक ही जिज्ञासा- ‘पानी कहाँ तक आ गया है ?’ – इस कथन से जनसमूह की कौन-सी भावनाएँ व्यक्त होती हैं ?
उत्तर – सबकी जबान पर यही जानने की इच्छा थी, कि- पानी कहाँ तक आ गया है ? चूँकि हर व्यक्ति बाढ़ से होने वाली विभीषिकाओं और विपदाओं से परिचित था उसे डर था कि पानी उनके निवास स्थान तक तो नहीं पहुँच रहा है ? ऐसा होने पर वे कोई-न-कोई अपना प्रबन्ध नियम अपना सकते हैं ।
3. ‘मृत्यु का तरल दूत’ किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – मृत्यु का तरल दूत कॉफी हाउस के पास सड़क के किनारे से एक मोटी डोरी की शक्ल में गेरुआ-झाग-फेन में उलझे मोटीधार वाले पानी को कहा गया है। वह देखने में भयावह, मोटीधार वाला, तेज प्रवाह युक्त पानी बाढ़ की भयावहता की सूचना दे रहा था ।
4. आपदाओं से निपटने के लिए अपनी ओर से कुछ सुझाव दें।
उत्तर – बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है । यह नदी में जल अत्यधिक मात्रा में भर आने अथवा लगातार मूसलाधार वर्षा के कारण उपस्थित होती है। इससे निपटने के लिए दीर्घकालिक और तात्कालिक उपाय बरते जाने की आवश्यकता है। पानी की निकासी की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए । बाढ़ आने पर नावों एवं बचाव कार्यों का प्रबंध किया जाना भी जरूरी है। पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री का भंडार बनाना भी जरूरी है। दवाइयों का भंडारण भी होना चाहिए ।
5. खरीद-बिक्री बंद हो चुकने पर भी पान की बिक्री अचानक क्यों बढ़ गई थी ?
उत्तर – बाढ़ आने के कारण दुकानों में हड़बड़ी का वातावरण उपस्थित हो गया था । नीचे के सामान ऊपर होने लगे थे, अतः खरीद-बिक्री बंद हो चुकी थी। हाँ, पानवालों की बिक्री की दुकानों पर रेडियो-ट्रांजिस्टर पर बाढ़ के समाचार सुनने के लिए एकत्रित हो रहे थे। वे वहाँ खड़े होकर पान भी खरीदकर खा रहे थे ।
6. ईह! जब दानापुर डूब रहा था तो पटनियाँ बाबू लोग उलटकर देखने भी नहीं गए अब बूझो !’ इस कथन द्वारा लोगों की किस मानसिकता पर चोट की गई है?
उत्तर – इस कथन द्वारा शहरी लोगों की स्वार्थी मानसिकता पर चोट की गई है। जब ग्रामीण क्षेत्र बाढ़ में डूबता है तब शहर के बाबू लोग उनकी दशा देखने तक नहीं आते।
7. जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने क्या-क्या प्रबंध किए ?
उत्तर – जब लेखक को यह अहसास हुआ कि उसके इलाके में भी पानी घुसने की संभावना है तो उसने एक सप्ताह की खुराक लेने का प्रबंध किया। उसने किताबों के अलावा गैस की स्थिति के बारे में पत्नी से जानकारी ली। उसने ईंधन, आलू, दियासलाई, सिगरेट पीने का पानी और नींद की गोलियों का प्रबंध किया |
8. बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में कौन-कौन-सी बीमारियों के फैलने की आशंका रहती है ?
उत्तर – बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में अनेक बीमारियाँ फैलने की आशंका रहती है, जैसे-हैजा, पीलिया, डायरिया (आंत्र शोथ), दस्त, कै, पेट के रोग (कृमि-जन्य) आदि ।
9. आपने भी देखा होगा कि मीडिया द्वारा प्रस्तुत की गई घटनाएँ कई बार समस्याएँ बन जाती हैं, ऐसी किसी घटना का उल्लेख करें ।
उत्तर – मीडिया जहाँ समस्याओं की ओर हमारा ध्यान खींचकर उनका हल प्रस्तुत करता है, वहीं कई बार समस्याओं को बढ़ा भी देता है। उदाहरणतया, गुजरात में गोधरा नामक स्टेशन पर एक रेल- बोगी में कुछ सांप्रदायिक ताकतों ने आग लगा दी। इस घटना को मीडिया ने इस ढंग से मसाले लगा-लगाकर प्रस्तुत किया कि वहाँ सांप्रदायिक दंगा लावे की तरह फूट पड़ा । मिडिया ने सनसनी फैलाने के उद्देश्य से उत्तेजक दृश्य दिखाए, परिणामस्वरूप पूरा गुजरात उत्तेजित हो उठा।
10. अपनी देखी-सुनी किसी आपदा का वर्णन करें ।
उत्तर – अभी हाल में ही सुनामी की आपदा बेहद भयानक रही। समुद्र तट पर बसे अंडमान निकोबार के अनेकों घर तबाह हो गए। लोग बीमारियों के शिकार हो गए। अभी तक सुनामी पीड़ितों की दर्दनाक दास्तान रोंगटे खड़े कर देती है। इनकी मदद हेतु संस्थाएँ, स्कूल एवं सरकार भी सहायक रही । भविष्य में किसी प्रकार विपदा से बचने हेतु सतर्क रहना जरूरी है।

मेरे संग की औरतें

1. लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थी ?
उत्तर – लेखिका की नानी भारतीय संस्कृति और रहनसहन के परिवेश में ढली हुई थी । विलायती रीतिरिवाजों में रह रहे पति का भी (नाना जी) उन पर कोई असर नहीं पड़ा था। देश की आजादी से जुड़े देश-प्रेमी सिपाहियों के प्रति लेखिका की नानी का विशेष लगाव भी उनके गहन प्रभाव का सूचक है।
2. लेखिका की नानी की आजादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही ?
उत्तर – लेखिका की नानी का आजादी से जुड़े सिपाहियों से विशेष लगाव था, यही कारण है कि पर्दानशीं, शर्मीली, संकोची एवं घरेलू नारी होकर भी नानी ने अचानक ही मरते समय अपनी बेटी के लिये आजादी का सिपाही ढूँढ़कर उसके हाथ पीले करने की बात कहकर अपने देशप्रेम का परिचय दिया। उनकी अंतिम इच्छानुसार ही लेखिका की माँ की शादी एक होनहार, पढ़े-लिखे, गाँधीवादी देश प्रेमी से हुई थी। इसीलिए कह सकते हैं कि नानी की भागीदारी आजादी के आंदोलन में रही है।
3. ‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है-इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख करें।
उत्तर – लेखिका मानती थी कि शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेखिका जब कर्नाटक के एक छोटे कस्बे बागलकोट में थी वहाँ कोई ढंग का स्कूल न था । उसने कैथोलिक बिशप से स्कूल खोलने की प्रार्थना की, पर वे इसलिए स्कूल नहीं खोलना चाहते थे क्योंकि वहाँ क्रिश्चियन बच्चों की संख्या कम थी । लेखिका सभी की शिक्षा की पक्षपाती थी। उसने अपने प्रयासों से एक ऐसा स्कूल खोलकर दिखा दिया जिसमें बच्चों को अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ तीनों भाषाएँ पढ़ाई जाती थीं। इससे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिला दी।
4.  लेखिका की माँ ने चोर के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उत्तर – लेखिका की माँ ने चोर के साथ जैसा आत्मीय व्यवहार किया, वह अनुकरणीय है। इसे अनोखा उदार व्यवहार कह सकते हैं। यह महान आत्माओं के योग्य व्यवहार है, वास्तविक दुनिया में न तो ऐसे कोमल हृदय वाले चोर मिलते हैं, न उदार हृदय वाले मालकीन । अतः इसे हम एक विशेष घटना कह सकते हैं।
5. स्वतंत्रता की दीवानी होती हुई भी लेखिका 15 अगस्त, 1947 का स्वतंत्रतासमारोह देखने क्यों न जा सकी ?
उत्तर – लेखिका बचपन से ही स्वतंत्रता की दीवानी थी। परंतु जिस दिन स्वतंत्रता-समारोह होना था, उस दिन वह बीमार थी। उसे टाइफाइड हो गया था। उन दिनों इसे जानलेवा रोग माना जाता था । अतः डॉक्टर ने उसे समारोह पर जाने से कठोरतापूर्वक मना कर दिया ।
6. चित्रा के व्यक्तित्व की विशेषता बताएँ ।
उत्तर – चित्रा मुँहफट, दबंग और समाजसेवी स्वभाव की लड़की थी । वह पढ़ाई के दौरान भी स्वयं पढ़ने की बजाय औरों को पढ़ाने में लगी रहती थी। इस कारण उसके अंक कम आते थे। वह जो भी सोचती थी, उसे पूरा करके दम लेती थी। उसने जिस लड़के को पसंद किया, उसी से विवाह किया। उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने लड़का भी शीघ्र झुक गया ।

रीढ़ की हड्डी

1. रामस्वरूप और गोपालप्रसाद बात-बात पर एक हमारा जमाना था…’ कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है ?
उत्तर – रामस्वरूप और गोपालप्रसाद पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें अपना पुराना जमाना ही अच्छा प्रतीत होता है। यही कारण है कि वे बात-बात पर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। हमारी दृष्टि में यह तुलना कतई भी ठीक नहीं है। समय परिवर्तनशील है। अतः कभी एक बात या स्थिति नहीं रहती। उसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता है। हमें इस परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए।
2. रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है ?
उत्तर – रामस्वरूप ने बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाई, पर विवाह के लिए उसे छिपाना उसकी मजबूरी है। लड़के के पिता को लड़के और उसके पिता की इच्छा के अनुसार चलना पड़ता है। गोपाल प्रसाद उच्च शिक्षित बहू नहीं चाहते और रामस्वरूप उनके लड़के से अपनी बेटी का रिश्ता तय करना चाहता है। अतः वह बेटी की उच्च शिक्षा को छिपाता है। वह विवशतावश ऐसा करता है।
3. अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं वह उचित क्यों नहीं है ?
उत्तर – अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप अपनी बेटी उमा से इस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे थे कि वह सीधी-सादी, चुप रहने वाली, कम पढ़ी-लिखी लगने वाली लड़की की तरह व्यवहार करें। उनका ऐसा सोचना उचित नहीं है। लड़की कोई भेड़-बकरी या मेज-कुर्सी नहीं है। उसका भी दिल होता है। उसका उच्च शिक्षा पाना कोई अपराध नहीं है। वह पढ़ी-लिखी लड़की जैसा ही व्यवहार करेगी।
4 “…… आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं….” उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है ?
उत्तर – रीढ़ की हड्डी ही शरीर का वह अंग है, जो सबसे मजबूत होता है। वास्तव में सारे शरीर का ढाँचा इसी पर टिका होता है। यहाँ भी जब गोपाल प्रसाद और उनका बेटा शंकर उमा को अस्वीकार करके जाते हैं, तब उमा गोपाल प्रसाद से कहती है कि “आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ हड्डी भी है या नहीं” उमा यह कहकर बताना चाहती है कि शंकर में व्यक्तित्व की कमी है। वह कमजोर है, कायर है, स्वार्थी कठपुतली है।
5. गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं ? अपने विचार लिखें।
उत्तर – गोपाल प्रसाद अपने बेटे का विवाह करने आए हैं, लेकिन वे इसे ‘बिजनेस’ का नाम देते हैं अर्थात् यहाँ वे संबंधों, मानवीयता को एक तरफ रख देते हैं। दूसरी ओर रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को छिपाकर स्वार्थी, लालची और समाज को विकृत करने वाली बुराइयों को बढ़ावा देते हैं। अतः दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं।
6. रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर – पाठ का नाम ‘रीढ़ की हड्डी’ पूर्णतः सार्थक एवं सटीक है, क्योंकि रीढ़ की हड्डी’ शरीर का अभिन्नत और अनिवार्य हिस्सा होती है। यदि रीढ़ की हड्डी न हो तो व्यक्ति कमजोर कहलाता है। पाठ में भी शंकर एक कमजोर व्यक्तित्व वाला व्यक्ति है, जो स्वयं निर्णय लेने में कमजोर है। वह अपने बल पर कुछ करने की क्षमता ही नहीं रखता है।
7. शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की-समाज को कैसे व्यक्तित्व की जरूरत है ? तर्क सहित उत्तर दें ।
उत्तर – शंकर के व्यक्तित्व को समझने के बाद कहा जा सकता है कि उसे ऐसी लड़की चाहिए, जो अनपढ़ हो, गंवार हो लेकिन खूबसूरत हो । जो उसकी दासी बनकर रह सके। जो अपनी हाँ-में-हाँ मिलाए। वहीं उमा को एक ऐसा लड़का चाहिए, जो पढ़ा-लिखा, सभ्य, समझदार सबल व्यक्तित्व वाला हो, जो स्त्री को पूरा सम्मान दे । जो उसे पाँव की जूती या दासी न समझकर उसे जीवनसंगिनी माने।
8. कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों ?
उत्तर – कथावस्तु के आधार पर हम शंकर को ही एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं, क्योंकि उसके कमजोर व्यक्तित्व के आधार पर ही एकांकी का नामकरण किया गया है। समाज में व्याप्त शंकर जैसे बिना रीढ़ की हड्डी वालों को ही उजागर करना लेखक का उद्देश्य रहा है। ऐसे लोगों को ही सबक सिखाने के लिए लेखक ने इस समस्या को रूप प्रदान किया है ।
9. समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं ?
उत्तर – वर्तमान समाज चाहे कितना ही शिक्षित हो जाए, लेकिन स्त्रियों के मामले में उनके विचार अभी भी पिछड़े हुए, दकियानूसी हैं । शिक्षा के नाम पर उन्हें एक तरफ रख दिया जाता है। ऐसे समाज में उन्हें गरिमा दिलाने के लिए मैं स्त्रियों की शिक्षा, रोजगार, सम्मान के लिए कार्य करूँगा । विकास के सभी क्रम में उनका साथ दूँगा ।

माटी वाली

1. ‘शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।’ आपकी समझ से वे कौन से कारण रहे होंगे, जिनके रहते ‘माटी वाली’ को सब पहचानते थे ?
उत्तर – ‘शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं। लेखक के इस कथन से स्पष्ट है कि माटी वाली का स्वरूप सधा हुआ था उसकी पहचान उसके ऊपर से कटे कनस्तर से ही थी । शहर वाले उसे इसलिए अच्छी तरह पहचानते थे, क्योंकि शहर वालों को रोज दीवारें-चूल्हा-चौका लीपने के लिए मिट्टी की आवश्यकता पड़ती थी और इस क्षेत्र में केवल वही एक बुढ़िया मिट्टी ढोकर लाती थी । वास्तव में शहरवासियों की जरूरत ही बुढ़िया को याद रखती थी ।
2. ‘भूख मीठी कि भोजन मीठा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – भूख मीठी कि भोजन मीठा ?” से लेखक का यह अभिप्राय है कि कोई भी भोजन अच्छा खराब नहीं होता है। कोई भोजन मीठा या कड़वा नहीं होता है। वास्तव में भूख ही भोजन को मीठा या कड़वा, बासी या ताजा, अच्छा या खराब बनाती है । भूखे के लिए रोटी ही प्रधान होती है। चाहे वह किसी को घर की हो, चाहे कैसी भी हो। भोजन की अपेक्षा भूख मीठापन लाती है। हो । भोजन की अपेक्षा भूख मीठापन लाती है। जिनके पेट भरे होते हैं, जिन्हें भूख नहीं लगती उन्हें पकवान भी कड़वे लगते हैं। अतः भोजन नहीं भूख मीठी होती है।
3. माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था ?
उत्तर – माटीवाली का कोई बच्चा नहीं था । परिवार के नाम पर एक बूढ़ा, बीमार पति था । उसका कोई घर भी नहीं था मिट्टी ही उसका एकमात्र सहारा थी। उसका कोई प्रतिद्वंद्वी तक भी नहीं था। उसके लिए दो समय की रोटी ही प्रधान थी । अतः उसके पास अच्छे-बुरे सोचने का समय ही नहीं था ।
4. माटीवाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है ?
उत्तर – माटीवाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी घोर दरिद्रता को प्रकट करता है। उसके सामने अपना तथा अपने बूढ़े पति के पेट भरने का सवाल हर समय उपस्थित रहता है । वह रोटियाँ तब जुटाने में असमर्थ रहती है। उसे जहाँ से भी रोटियाँ मिलती हैं, उनमें से कुछ रोटियाँ बचाकर बूढ़े के लिए रख लेती है ताकि दोनों पेट भरता रहे, चाहे अधूरा ही भरे ।
5. ‘गरीब आदमी का शमशान नहीं उजड़ना चाहिए।’ इस कथन का आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – टिहरी बाँध की सुरंगों के बंद होने से शहर में पानी भर गया। लोगों के घर तो बाढ़ में डूबे ही, साथ में सारे शमशान घाट तक डूब गए। इस पर माटी वाली औरत का कहना है – “गरीब आदमी का शमशान नही उजड़ना चाहिए ।” इस कथन का आशय यह है कि बाढ़ जैसी आपदाओं से गरीब का झोंपड़ा नष्ट नहीं होना चाहिए। उनके आवास तो वैसे ही शमशान की तरह हैं जहाँ वे रोज मर-मर कर जीते हैं। इनके उजड़ जाने पर भला उन्हें कहाँ शरण मिलेगी ।

किस तरह आखिरकार में हिंदी में आया

1. वह ऐसी कौन सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया ?
उत्तर – लेखक के घरवालों ने लेखक की नाकामी, निठल्लेपन, मुफ्त की रोटी तोड़ने वाला, घरघुरसू, कामचोर आदि के लिए ताने मारे होंगे, तभी लेखक के दिल पर अहम् पर जो चोट लगी होगी, उसी के परिणामस्वरूप वह घर छोड़कर दिल्ली जाने के लिए बाध्य हुआ होगा।
2. लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने का अफसोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर – लेखक अंग्रेजी और उर्दू में कविता लिखता था। बाद में उसे यह बात समझ में आई कि उसे हिंदी कविता गंभीरता से लिखनी है और उससे उसका रिश्ता लगभग छूट चुका था। उस समय तक हिंदी भाषा और उसका शिल्प अजनबी हो चला था । लेखक घर में खालिस उर्दू के वातावरण में पला था । गजल उसकी भावुकता थी। हिंदी उससे छूट चुकी थी । अभिव्यक्ति का माध्यम या तो अंग्रेजी थी या उर्दू । बाद में लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने के लिए अफसोस हुआ।
3. अपनी कल्पना से लिखें कि बच्चन ने लेखक के लिए ‘नोट’ में क्या लिखा होगा ?
उत्तर – एक बार बच्चन लेखक से मिलने स्टूडियों में आए, पर तब तक क्लास खत्म हो चुकी थी अतः यह भेंट न हो सकी। बच्चन लेखक के लिए एक नोट लिखकर छोड़ गए। वह एक अलग किस्म का अच्छा-सा नोट था । लेखक ने स्वयं को कृतज्ञ महसूस किया। उस नोट की विषयवस्तु की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने लेखक से मिलने के लिए कहा होगा। लेखक की रचनाओं के बारे में भी पूछा होगा।
4. बच्चन जी के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला ?
उत्तर – लेखक को बच्चन जी के अतिरिक्त कई अन्य लोगों का सहयोग मिला ।
(क) सबसे पहले लेखक को उकील आर्ट स्कूल में गुरूवर शारदाचरण जी का सहयोग मिला। उन्होंने लेखक को फ्री दाखिला दे दिया ।
(ख) पंत जी के सहयोग से लेखक को इंडियन प्रेस से अनुवाद का काम मिलने लगा।
(ग) पंत एवं निराला के प्रोत्साहन से लेखक को कविता लिखने की प्रेरणा मिली।
5. लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन करें ।
उत्तर – 1937 में देहरादून में डॉ० ब्रजमोहन गुप्त एवं बच्चन से प्रेरित होकर लेखक ने काव्य रचनाएँ लिखीं- बच्चनजी द्वारा देहरादून से लेखक को इलाहाबाद ले जाया गया। एम०ए० भी उन्होंने ही कराया। लेखक हिंदू बोर्डिंग हाउस में इंडियन प्रेस में अनुवादक बन गए । सरस्वती, चाँद में गंभीरता से रची रचनाएँ छपवाईं। निराला, पंत से भी लेखक ने साहित्यिक सोच ली। ‘निशा निमंत्रण’ का लेखक पर गहरा प्रभाव पड़ा । रचना करने के चक्कर में लेखक पढ़ाई पर भी कम ध्यान देने लगे थे। ‘हंस’ के कहानी स्तंभ में भी लेखक लगातार लिखने लगे थे।
6. लेखक ने कवि बच्चन के पत्नी – वियोग को किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर – लेखक के अनुसार, हरिवंशराय बच्चन अपनी पत्नी के वियोग से बहुत अधिक व्यथित थे। उनकी पत्नी उनके जीवन में उतनी महत्त्वपूर्ण थी जितनी कि मस्त नृत्य करते शिव के जीवन में उमा । अतः पत्नी के वियोग से जैसे भगवान शिव अपनी पार्वती को गोदी में लिए लिए संसार में भटके थे, उसी प्रकार बच्चन भी पत्नी के वियोग के दुख को लेकर पीड़ित रहे। उनकी पत्नी उनकी सच्ची संगिनी थीं। वे उनके भावुक सपनों, उत्साहों और संघर्षों की प्रेरणा थीं। बच्चन जी मक्खन के समान हृदय से कोमल थे । अतः वे पत्नी के प्रति बहुत समर्पित थे ।

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