NCERT Solutions Class 9Th Social Science Chapter – 5 संस्थाओं का कामकाज (नागरिकशास्त्र – लोकतांत्रिक राजनीति)
NCERT Solutions Class 9Th Social Science Chapter – 5 संस्थाओं का कामकाज (नागरिकशास्त्र – लोकतांत्रिक राजनीति)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
संस्थाओं का कामकाज
1. अगर आपको भारत का राष्ट्रपति चुना जाए तो आप निम्नांकित में से कौन-सा फैसला खुद कर सकते हैं
(क) अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुन सकते हैं,
(ख) लोकसभा में बहुमत वाले प्रधानमंत्री को उसके पद से हटा सकते हैं,
(ग) दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर पुनर्विचार के लिए कह सकते हैं,
(घ) मंत्रिपरिषद् में अपनी पसंद के नेताओं का चयन कर सकते हैं।
उत्तर – (ग)
2. निम्नांकित में कौन राजनैतिक कार्यपालिका का हिस्सा होता है
(क) जिलाधीश,
(ख) गृह मंत्रालय का सचिव,
(ग) गृह मंत्री,
(घ) पुलिस महानिदेशक ।
उत्तर – (ग)
3. न्यायपालिका के बारे में निम्नांकित में से कौन-सा बयान गलत है
(क) संसद द्वारा पारित प्रत्येक कानून को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की जरूरत होती है,
(ख) अगर कोई कानून संविधान की भावना के खिलाफ है तो न्यायपालिका उसे अमान्य घोषित कर सकती है,
(ग) न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र होती है,
(घ) अगर किसी नागरिक के अधिकारों का हनन होता है तो वह अदालत में जा सकता है।
उत्तर – (क)
4. निम्नांकित राजनैतिक संस्थाओं में से कौन-सी संस्था देश के मौजूदा कानून में संशोधन कर सकती है
(क) सर्वोच्च न्यायालय,
(ख) राष्ट्रपति,
(ग) प्रधानमंत्री,
(घ) संसद ।
उत्तर – (घ)
5. व्यवस्थाएँ क्या हैं ?
उत्तर – एक लोकतंत्र में विभिन्न कार्यों को करने हेतु कई प्रकार के प्रबंध किए जाते हैं। इसी प्रकार के प्रबंधों को व्यवस्था कहा जाता है।
6. मंडल आयोग की सिफारिशों को मान लेने संबंधी औपचारिक निर्णय कब लिया गया था ?
उत्तर – मंडल आयोग की सिफारिशों को मान लेने संबंधी औपचारिक निर्णय 6 अगस्त, 1990 ई० को मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया । क अगले ही दिन प्रधानमंत्री श्री बी० पी० सिंह ने संसद को इस निर्णय के संबंध में सूचित किया ।
7. संसद क्या है ?
उत्तर – संसद जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों की एक सभा है जो जनता के प्रतिनिधि के रूप में सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति का उपयोग करती है। भारत में इस प्रकार की राष्ट्रीय सभा को संसद कहा जाता है।
8. कार्यपालिका क्या है ?
उत्तर – ये वे लोग हैं जो रोजमर्रा के मामलों पर फैसले लेते और उन्हें लागू करते हैं, परंतु जनता की ओर से सर्वोच्च शक्ति का उपयोग नहीं करते हैं। कार्यपालिका के दो भाग हैं— एक राजनीतिक कार्यपालिका और दूसरी स्थायी कार्यपालिका।
9. सरकार के तीन अंगों के नाम लिखें तथा उनके मुख्य कार्य बताएँ ।
उत्तर – सरकार के तीन अंग निम्नांकित हैं
(क) विधायिका, (ख) कार्यपालिका, (ग) न्यायपालिका।
विधायिका का कार्य कानून बनाना है।
कार्यपालिका कानून लागू करती है।
न्यायपालिका यह देखती है कि कानून संविधान के अनुसार है या नहीं।
10. संसद के दो सदनों के नाम लिखें तथा उनकी सदस्य संख्या बताएँ ।
उत्तर – भारतीय संसद के दो सदन हैं
(क) लोकसभा या निम्न सदन, इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 550 हैं।
(ख) राज्यसभा या ऊपरी सदन, इसकी अधिकतम सदस्य संख्या 250 है।
11. विधेयक किसे कहते हैं ? विधेयक कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर – विधेयक- प्रस्तावित कानून को विधेयक कहते हैं ।
विधेयक दो प्रकार के होते हैं –
(क) साधारण विधेयक तथा (ख) वित्त विधेयक / धन विधेयक ।
12. महाभियोग का क्या अर्थ है ?
उत्तर – यह राष्ट्रपति को उसके पद से हटाये जाने का तरीका है। आज तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग नहीं चलाया गया है। कौन करता है ?
13. राष्ट्रपति का चुनाव
उत्तर – राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है । वह निर्वाचक मण्डल, जो राष्ट्रपति को चुनता है, उसमें संसद अर्थात् लोकसभा तथा राज्यसभा के चुने हुए सदस्यों तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्य शामिल होते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है।
14. लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल बताएँ।
उत्तर – लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष तथा राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
15. भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर – भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
16. संसद जिन साधनों द्वारा मंत्रिपरिषद् पर नियन्त्रण करती है, उनमें से किन्हीं तीन साधनों को स्पष्ट करें ।
उत्तर – (क) संसद के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं,
(ख) वह काम रोको प्रस्ताव भी पास कर सकते हैं,
(ग) वह अविश्वास प्रस्ताव भी पास कर सकते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
संस्थाओं का कामकाज
1. देश की मुख्य नीति संबंधी निर्णय किसके द्वारा लिए जाते हैं ?
उत्तर – निम्नांकित व्यक्ति प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मुख्य नीति संबंधी निर्णयों में शामिल होते हैं –
(क) राष्ट्रपति देश का मुखिया होता है अतः सभी निर्णय उसके नाम पर ही लिए जाते हैं ।
(ख) प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है अतः, सभी नीतियों का निर्धारण अपने मंत्रीमंडलीय सहयोगियों की सहायता से करता है।
(ग) जब भी कभी कोई मुख्य नीति संबंधी निर्णय लेना होता है तब प्रधानमंत्री को लोकसभा का समर्थन चाहिए होता है।
2. द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग क्या था ?
उत्तर – द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग
(क) इस आयोग की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा वर्ष 1979 में श्री बी० पी० मंडल की अध्यक्षता में की गई थी। अतः इस आयोग को मंडल आयोग कहा गया ।
(ख) इस आयोग को भारत में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को चिन्हित करने हेतु मानदंड निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया था ।
(ग) इसे इन वर्गों के विकास हेतु उपाय सुझाने का कार्य दिया गया था।
(घ) आयोग ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1980 में सरकार को सौंप दी और सामाजिक शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों हेतु सरकारी प्रशासनिक रिक्तियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की।
3. आरक्षण विवाद क्या था ? इसे किसने निपटाया ?
उत्तर – सरकार के आरक्षण संबंधी एक आदेश के विरुद्ध कुछ व्यक्ति व संगठनों ने न्यायालय से अपील की कि ऐसे आदेश को विधि-विरुद्ध ठहरा कर इसके कार्यान्वयन को रोकें । भारत के उच्चतम न्यायालय ने ऐसी सभी याचिकाओं को एक समूह में ग्रंथित किया । यह मामला इन्दिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ का था। उच्चतम न्यायालय के ग्यारह न्यायाधीशों वाली खंड पीठ ने इस मामले की सुनवाई की तथा दोनों ओर से प्रस्तुत तर्कों को सुना गया। 1992 में अभिसंख्यक न्यायाधीशों ने यह घोषणा की भारत सरकार का उक्त मामले पर दिया गया आदेश विधिमान्य नहीं है। इसी समय उच्चतम न्यायालय ने सरकार को अपने आदेश में संशोधन करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि पिछड़े वर्ग के संभ्रांत लोगों को आरक्षण की सुविधा पाने से अलग रखा जाए। इसके अनुपालन में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के 8 सितम्बर, 1993 को एक अन्य कार्यालय-ज्ञापन दिया। इस प्रकार विवाद समाप्त हुआ और इस नीति का फैसले की तारीख से लगातार अनुसरण किया गया।
4. हमें संसद की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर – (क) प्रत्येक देश के कानूनों का निर्माण करने वाला अंतिम प्राधिकरण संसद है। कानून निर्माण का यह कार्य इतना निर्णायक है कि इन सभाओं को व्यवस्थापिक कहा जाता है। समूचे विश्व के देशों में संसद ही कानून बनाती है, विद्यमान कानूनों में संशोधन करती है अथवा उनका निरीक्षण करती है एवं उनके स्थान पर नए कानून बनाती है।
(ख) समूचे विश्व की संसदें सरकार चलाने वालों / कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती हैं। भारत जैसे देशों में यह सीधा और अंतिम नियंत्रण रखती है। संसद का समर्थन रहने तक ही सरकार चलाने वाले / कार्यपालिका निर्णयों को ले सकते हैं।
(ग) सरकारी कोष पर संसद का ही नियंत्रण रहता है। सभी देशों में संसद की स्वीकृति मिलने के बाद ही सरकार कोष से किसी धन को किसी सार्वजनिक कार्य में खर्च किया जा सकता है।
(घ) संसद ही प्रत्येक देश के सरकारी मामलात और राष्ट्रीय नीति पर बहस और वार्त्ता करने वाला सर्वोच्च मंच है। संसद किसी भी मामले पर जानकारी माँग सकती है।
5. मंत्री को अपने मंत्रालय के मामलात में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार क्यों रहना चाहिए ?
उत्तर – लोकतंत्र में जनादेश सर्वोपरि है । मन्त्री को जनता ही चुनती है और वह जनमत के पक्ष में जनता की इच्छा की इच्छानुसार कार्य करने के लिए अभिकृत है। वह अपने निर्णय के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी है। यही कारण है कि अंतिम निर्णय मन्त्री द्वारा ही लिए जाते हैं। मन्त्री की नीतिगत उद्देश्यों और उसके संपूर्ण ढाँचे पर विचार करता है । मन्त्री से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि उसको अपने मंत्रालय के सभी मामलात में दक्षता प्राप्त हो । वह सभी प्राविधिक मामलों के विशेषज्ञों की सलाह लेता है। बहुधा ये विशेषज्ञ भिन्न-भिन्न विचार प्रकट करते हैं या उसके सामने एकाधिक विचारों को रखते हैं। ऐसी दशा में उद्देश्य का सर्वोपरि स्वरूप क्या है, इसको मंत्री ही तय करता है ।
वस्तुतः, प्रत्येक बड़े संगठन में ऐसा होता है। समूचे परिवेश की जानकारी रखने वाला ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण निर्णयों को लेता है, केवल एक मामला विशेष की विशिष्ट जानकारी रखने वाला ऐसा नहीं कर सकता है।
6. लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र और शक्तिशाली न्यायपालिका का रहना आवश्यक क्यों समझा जाता है ?
उत्तर – देश के विभिन्न राज्यों, जिलों एवं केन्द्र में विद्यमान न्यायालय संयुक्त रूप से न्यायपालिक कहे जाते हैं। भारत के न्यायालय और स्थानीय स्तर की छोटी अदालतें सम्मिलित रहती हैं। भारत की एक अखंड न्यायपालिका है। इसका अर्थ यह है कि उच्चतम न्यायालय देश की कानूनी व्यवस्था को सँभालता है। इसके फैसले देश के सभी अन्य न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं। यह निम्नांकित सभी तरह के विवादों की सुनवाई करने में समर्थ है । (क) देश के नागरिकों के बीच, (ख) नागरिक और सरकार के बीच, (ग) दो या दो से अधिक सरकारों के बीच, (घ) संघ और राज्य स्तर की सरकारों के बीच ।
उच्चतम न्यायालय सिविल और फौजदारी के मामलों का सर्वोच्च न्यायालय है । यह उच्च न्यायालयों के फैसले के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करने में भी समर्थ है।
7. न्यायपालिका की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है ?
उत्तर – न्यायपालिका की स्वतंत्रता का यह अर्थ है कि वह विधायिका या कार्यपालिका के अधीन नहीं हैं। न्यायाधीश सरकार के निर्देश या सत्ताधारी दल की इच्छाओं के अनुसार कार्य नहीं करते हैं। यही कारण है कि सभी आधुनिक लोकतंत्रों के न्यायालय हैं जो कि विधायिका और कार्यपालिका के नियंत्रण से सर्वथामुक्त है। भारत इस स्थिति को प्राप्त कर लिया है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री तथा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की सलाह लेकर की जाती है। व्यवहार में इसका यह अर्थ है कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश इसके नए न्यायधीशों का चयन करते हैं और उच्च न्यायालयों के न्यायधीश का चयन भी यही करते हैं। इसमें राजनैतिक कार्यपालिका का किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं रहता है। उच्चतम न्यायालय का सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायधीश उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश अथवा उच्च न्यायलय का न्यायधीश नियुक्त किया जाता है और उसको अपने पद से नहीं निकाला जा सकता है। उसको पदच्युत करने की उतनी ही कठिन कार्यविधि है जितनी देश के राष्ट्रपति का पदच्युत करने की रहती है। संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित महाभियोग से ही न्यायधीश का पदच्युत किया जा सकता है। ऐसा भारतीय लोकतंत्र में आज तक कभी भी नहीं हुआ।
8. भारत के राष्ट्रपति से संबंधित प्रधानमंत्री के किन्ही चार कार्यों का विवेचन करें।
उत्तर – भारत का प्रधानमंत्री सम्पूर्ण शासन की धुरी है। प्रधानमंत्री के राष्ट्रपति से संबंधित तीन कार्य निम्नांकित हैं –
(क) राष्ट्रपति को सम्पूर्ण शासन प्रक्रिया की गतिविधियों की जानकारी देना।
(ख) राष्ट्रपति व संसद को जोड़ना क्योंकि प्रधानमंत्री ही वह कड़ी है जो राष्ट्रपति को संसद व संसद को राष्ट्रपति से जोड़ता है।
(ग) राष्ट्रपति को संकटकालीन घोषणा करने के लिए सलाह देना, क्योंकि संविधान में प्रधानमंत्री को ही राष्ट्रपति का सलाहकार घोषित किया गया है।
(घ) वह सांसदों की भावना की कद्र करता है। संसद सत्रों को बुलाने एवं स्थगन करने के बारे में निर्णय लेता है । वह संसद से विधेयक पास कराता है । वह संसद के सामने अपनी नीति रखता है।
9. संसद द्वारा धन-विधेयक पारित करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का वर्णन करें ।
उत्तर – संविधान में धन विधेयक को विशेष रूप से परिभाषित किया गया है। उसके लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है। राष्ट्रपति की सहमति के बिना कोई भी धन विधेयक प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। यह विधेयक पहले लोक सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं, इसका निर्णय लोक सभा का अध्यक्ष करता है। जब धन विधेयक लोक सभा से पारित हो जाता है तो राज्य सभा के पास भेजा जाता है। अपनी सिफारिशों के साथ राज्य सभा को विधेयक 14 दिन के अंदर लौटा देना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करती तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाएगा और राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाएगा।
10. लोकसभा का गठन कैसे किया जाता है ? लोकसभा का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं ?
उत्तर – लोकसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने गए प्रतिनिधियों से बनती है। इसमें 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं हो सकते। इनमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों तथा 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्येक राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेश को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है और प्रत्येक क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है। चुने हुए सदस्यों के अतिरिक्त लोकसभा में मनोनीत सदस्य भी होते हैं। यदि लोकसभा में ऐंग्लो-इंडियन समुदाय को प्रतिनिधित्व न मिला हो तो राष्ट्रपति इस समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत करता है। अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए भी कुछ सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।
सभी भारतीय नागरिकों को, जिनकी आयु 18 वर्ष अथवा उससे अधिक है, मत देने का अधिकार है। यही नागरिक लोकसभा के सदस्यों को चुनते हैं।
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नांकित योग्यताएँ होनी चाहिए –
(क) भारत का नागरिक हो,
(ख) कम से कम 25 वर्ष की आयु का हो, तथा
(ग) वह सभी योग्यताएँ रखता हो जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अंतर्गत निर्धारित की जाएँ ।
11. राष्ट्रपति को उसके पद से कैसे हटाया जाता है ?
अथवा, राष्ट्रपति पर महाभियोग कैसे लगाया जाता है ?
उत्तर – राष्ट्रपति को उसके पद से हटाये जाने की विशेष प्रक्रिया है। उस पर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगाकर उस पर महाभियोग चलाया जाता है। महाभियोग की प्रक्रिया किसी भी सदन में, एक-चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षरों के पश्चात् शुरू की जा सकती है। पहले राष्ट्रपति को इस विषय में नोटिस भेजा जाता है और इसके 14 दिन पश्चात् उसी सदन में महाभियोग के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श किया जाता है। इस प्रस्ताव को पास करने के लिये उस सदन के कुल सदस्यों को दो-तिहाई मतों की आवश्यकता होती है। तत्पश्चात् दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोपों की जाँच करता है। इस सदन में राष्ट्रपति अपना बचाव स्वयं या अपने किसी प्रतिनिधि द्वारा कर सकता है। यदि दूसरा सदन भी अपने दो-तिहाई मत से इस प्रस्ताव को पास कर देता है तो राष्ट्रपति को अपने पद से हटना पड़ता है। याद रहे, अभी तक भारत के किसी भी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा नहीं हटाया गया है ।
12. भारत के राष्ट्रपति के पद के लिए व्यक्ति में क्या योग्यताएँ अपेक्षित हैं ?
उत्तर – राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के लिए निम्नांकित योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं
(क) वह भारत का नागरिक हो ।
(ख) वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो ।
(ग) वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो ।
(घ) वह संघ सरकार या राज्य सरकार में किसी लाभप्रद पद पर नहीं हो।
(ङ) वह संसद या विधानमंडल का सदस्य नहीं हो ।
13. वे तीन परिस्थितियाँ कौन-सी हैं जिनमें राष्ट्रपति अपनी आपातकालीन शक्तियों का प्रयोग कर सकता है ?
उत्तर – संविधान द्वारा राष्ट्रपति को कुछ संकटकालीन शक्तियाँ सौपी गई है। इन संकटकालीन शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकटों का सामना करने के लिए करता है । संविधान में तीन प्रकार की संकटकालीन शक्तियों का वर्णन किया गया है
(क) युद्ध तथा बाह्य आक्रमण के समय राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
(ख) राज्यों में संविधानिक तंत्र के असफल होने पर संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
(ग) भारत में वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर वह संकटकाल की घोषणा कर सकता है। इन शक्तियों के प्रयोग से भारतीय संविधान का स्वरूप ही बदल जाता है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
14. संघ की मंत्रि-परिषद् के गठन का वर्णन करें।
उत्तर – गठन – सर्वप्रथम, राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करना है। उसके बाद अन्य मंत्री प्रधानमंत्री की सिफारिश के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। भारत में मंत्री तीन स्तरों के होते हैं –
(क) मंत्रिमंडलीय मंत्री – ये उच्च श्रेणी के मंत्री होते हैं और शासन के महत्त्वपूर्ण विभागों के अध्यक्ष होते हैं। ये मंत्री ही देश की नीति का निर्माण करते हैं तथा शासन संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।
(ख) राज्य मंत्री– मंत्रिपरिषद् के दूसरे स्तर के मंत्रियों को राज्य मंत्री कहा जाता है। इन मंत्रियों के पास प्रायः स्वतंत्र विभाग होते हैं, परन्तु कई बार उन्हें मंत्रि-मंडलीय मंत्री की सहायता के लिए भी नियुक्त किया जाता है। साधारणतः वे मंत्रिमंडल की बैठकों में भाग नहीं लेते। यदि मंत्रिमंडल की किसी बैठक में उनके विभाग से संबंधित किसी विषय पर विचार होना होता है तो उस विषय से संबंधित विभाग के राज्य मंत्री को उस बैठक में बुला लिया जाता है।
(ग) उप-मंत्री- मंत्रिपरिषद् में तीसरी श्रेणी के मंत्री उप-मंत्री होते हैं। ये किसी विभाग के स्वतंत्र रूप से अध्यक्ष नहीं होते। ये मंत्रिमंडलीय मंत्रियों तथा राज्य-मंत्रियों के सहायकों के रूप में नियुक्त किए जाते हैं ।
मंत्रिपरिषद् एक बड़ी संस्था है जिसमें तीनों प्रकार के मंत्री – मंत्रिमंडलीय मंत्री, राज्य मंत्री तथा उप-मंत्री शामिल होते हैं। इसके विपरीत मंत्रिमंडल एक छोटी संस्था है जिसमें केवल प्रथम श्रेणी के अर्थात् मंत्रिमंडलीय मंत्री ही शामिल होते हैं। दूसरे शब्दों में मंत्रिमंडल मंत्रिपरिषद् का एक भाग है।
15. भारत के राष्ट्रपति की साधारण विधेयक को मंजूरी देने सम्बन्धी शक्तियों का उल्लेख करें ।
उत्तर – भारत के राष्ट्रपति के पास साधारण विधेयक की मंजूरी के लिए निम्नांकित तीन शक्तियाँ होती हैं
(क) वह इसे मंजूरी दे सकता है।
(ख) वह इसे सुझाव के लिए वापस भेज सकता है।
(ग) इसे स्वीकृति न देकर पुनर्विचार के लिए कह सकता है। राष्ट्रपति साधरण विधेयक को केवल एक बार ही वापस भेज सकता है। संसद दोबारा, परिवर्तन के बिना या परिवर्तन के साथ, वापस भेजने पर राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है।
16. वित्त विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति की क्या शक्तियाँ हैं ?
उत्तर – वित्त विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद के निचले सदन में रखा जा सकता है। संसद द्वारा विधेयक पास होकर राष्ट्रपति के पास आता है और राष्ट्रपति इसे अपनी स्वीकृति दे देता है। चूँकि यह उसकी पूर्वानुमति से ही लोकसभा में रखा जाता है, अतः उसको वापिस भेजने का अधिकार राष्ट्रपति के पास नहीं होता है।
17. राज्यसभा की रचना का वर्णन करें।
उत्तर – राज्यसभा संसद का उच्च सदन हैं। इसे संसद का द्वितीय सदन भी कहा जाता है। इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है। इनमें 238 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं। राज्यों की विधानसभा के सदस्य गुप्त मतदान तथा एकल संक्रमणीय प्रणाली द्वारा उनका चुनाव करते हैं। 2 सदस्य द्वारा मनोनीत किये जाते हैं जो कला, साहित्य, विज्ञान अथवा समाज सेवा के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त होते हैं ।
18. भारतीय संघ को केन्द्रीकृत क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – भारत को राज्यों का संघ अर्थात् भारतीय संघ कहा जाता है जिसमें 28 राज्य तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। लेकिन भारतीय संघ केन्द्रीयकृत हैं क्योंकि भारतीय संविधान ने केन्द्र को बहुत अधिक शक्तिशाली बनाया है। आपातकाल में राज्यों की समस्त शक्तियाँ केन्द्र के हाथों में आ जाती है। संघ सूची व समवर्ती सूची दोनों पर केन्द्र सरकार का अधिकार है और राज्यसूची पर भी वह कानून बनाती रहती है। इसीलिए भारत केन्द्रीयकृत है।
19. लोकसभा, राज्यसभा से किस प्रकार अधिक शक्तिशाली हैं? तीन कारण बताएँ ।
उत्तर – लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है । यह निम्नांकित विवेचना से स्पष्ट हो जाता है
(क) वैधानिक मामलों में लोकसभा राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली हैं।
(ख) वित्तीय मामालों में लोकसभा से शक्तिशाली है।
(ग) लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पास करके मंत्रियों को हटा सकती है। राज्यसभा को कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
संस्थाओं का कामकाज
1. लोकसभा तथा राज्यसभा की तुलना करें ।
उत्तर – लोकसभा तथा राज्यसभा की तुलना निम्नांकित रूप से की जा सकती है
लोकसभा-
(क) लोकसभा के सदस्यों का चुनाव सीधा जनता द्वारा होता है 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं ।
(ख) लोकसभा (निम्न सदन) का कार्यकाल 5 वर्ष है। इससे पूर्व राष्ट्रपति इसे भंग कर सकता है।
(ग) लोकसभा सदस्य की आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए ।
(घ) लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 हो सकती है।
(ङ) ये अपना अध्यक्ष चुनते हैं ।
(च) लोकसभा द्वारा पास अविश्वास प्रस्ताव पर मंत्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है।
राज्यसभा-
(क) राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों के विधानसभा सदस्य करते हैं। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं ।
(ख) राज्यसभा (उच्च सदन) एक स्थायी सदन है। प्रत्येक दो वर्ष बाद 1/3 सदस्य रिटायर होते रहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदन को 6 वर्ष काम करने का अवसर मिल सकता है ।
(ग) कम से कम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए ।
(घ) राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है ।
(ङ) इसका पदेन सभापति, भारत का उप-राष्ट्रपति होता है।
(च) राज्यसभा के ऐसे अविश्वास प्रस्ताव पर मंत्रिपरिषद् त्याग पत्र नहीं देती है।
2. भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे किया जाता है ?
उत्तर – राष्ट्रपति का चुनाव- राष्ट्रपति देश का मुखिया होता हैं उसका चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है। इसमें-
(क) संसद के दोनों सदस्यों के चुने हुए सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्य भाग लेते हैं। इन सदस्यों का एकमत नहीं होता। बल्कि उनके कई मत होते हैं। ध्यान रहे कि लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के मनोनीत सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं होता।
(ख) राष्ट्रपति का चुनाव समानुपातिक चुनाव प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होता है। इस प्रणाली में मतदाता अपना वोट अपनी पसन्द के क्रम से देता है। इस प्रकार इसमें कोई भी वोट व्यर्थ नहीं जाता।
(ग) मतदान गुप्त पर्ची द्वारा होता है।
(घ) राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है, और संसद सदस्यों के वोटों में बराबरी होती है।
(ङ) जीतने वाले प्रत्याशी का एक न्यूनतम कोटा प्राप्त करना होता है, जो निम्नांकित ढंग से निकाला जाता है
न्यूनतम कोट = डाले गये मतों का जोड़ / रिक्त स्थान +1+1 +1
3. प्रधानमंत्री की शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर – प्रधानमंत्री की मुख्य शक्तियाँ तथा कार्य निम्नांकित –
(क) मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना- प्रधानमंत्री का मुख्य कार्य मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना है। प्रधानमंत्री मंत्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति इस सूची के अनुसार ही मंत्रियों को नियुक्त करता है। प्रधानमंत्री ही विभिन्न मंत्रियों के बीच विभागों का बँटवारा करता है।
(ख) मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता – प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठकें बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता है। इन बैठकों का कार्यक्रम भी प्रधानमंत्री द्वारा तैयार किया जाता है ।
(ग) मंत्रियों का हटाना – यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री की नीति से असहमत होता है, तो प्रधानमंत्री उसे त्याग-पत्र देने के लिए कह सकता है। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से कहकर उसे पद से हटवा सकता है।
(घ) राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच कड़ी – प्रधानमंत्री राष्ट्रपति तथा मंत्रिमंडल के बीच कड़ी का काम करता है । वह राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में सूचित करता है तथा राष्ट्रपति की बात को मंत्रिमंडल के पास पहुँचता है। मंत्री प्रधानमंत्री की पूर्व स्वीकृति से ही राष्ट्रपति से मिल सकते हैं।
(ङ) नीति निर्धारण करना- देश की आन्तरिक तथा बाहरी (विदेश) नीति के निर्धारण में प्रधानमंत्री बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(च) नियुक्तियाँ – राष्ट्रपति सभी उच्च सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही करता है।
(छ) राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार प्रधानमंत्री राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार होता है। राष्ट्रपति अपने सभी कार्य प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही करता है ।
(ज) संसद का नेता- प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही राष्ट्रपति द्वारा संसद का अधिवेशन बुलाया जाता है तथा स्थगित किया जाता है। संसद में सरकार की ओर से सभी महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ प्रधानमंत्री द्वारा ही की जाती है।
(झ) योजना आयोग का अध्यक्ष – प्रधानमंत्री योजना आयोग, जो देश के आर्थिक विकास के लिए नीतियों का निर्माण करता है, का अध्यक्ष होता है।
(ञ) राष्ट्र का नेता- प्रधानमंत्री राष्ट्र का भी नेता है । जब देश पर किसी भी प्रकार का कोई संकट आता है, तो समस्त देश प्रधानमंत्री की और देखता है। प्रधानमंत्री से ही यह आशा की जाती है कि वह देश को उस संकट से मुक्ति दिलाएगा । इस प्रकार प्रधानमंत्री ही देश का वास्तविक शासक होता है।
4. प्रधानमंत्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? भारत सरकार में प्रधानमंत्री की स्थिति का विवेचना करें ।
उत्तर – प्रधानमंत्री का निर्वाचन अथवा नियुक्ति- लोकसभा के आम चुनाव के बाद जिस राजनैतिक दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है उसी दल के नेता को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नियुक्त कर देता है । संविधान के अनुसार प्रधानमन्त्री का कार्यकाल लोकसभा में उसके बहुमत पर निर्भर करता है।
भारत के प्रधानमंत्री की स्थिति – हमारे देश में प्रधानमन्त्री की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह न केवल मन्त्रिपरिषद् का ही नेता होता है बल्कि लोकसभा और सारे राष्ट्र का नेता होता है। भारतीय प्रधानमन्त्री के पद को इतना शक्तिशाली बनाया गया है कि उसकी तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति से की जा सकती है। संविधान सभा में बोलते हुए प्रो० टी० के० शाह ने कहा था, “प्रधानमंत्री की शक्तियों को देखकर मुझे ऐसा लगता है कि यदि वह चाहे तो किसी भी समय देश का अधिनायक बन सकता है। प्रधानमन्त्री ही अपने मन्त्रिमंडल के सहयोग से देश के लिए प्रशासनिक और आर्थिक नीतियाँ तैयार करता है। वह ही वैदेशिक नीति भी तैयार करता है । वह विभिन्न प्रशासकीय विभागों में सामंजस्य स्थापित करता है वह विदेशों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेता है। भारत के राष्ट्रपति की सभी शक्तियों का प्रयोग भी प्रधानमन्त्री ही करता है ।
5. भारत के राष्ट्रपति की कार्यपालिका तथा विधायी शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर – राष्ट्रपति की प्रशासकीय या कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ-
(क) देश का शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है। देश के सभी निर्णय राष्ट्रपति के नाम पर लिए जाते हैं। वह सरकार की कार्यविधि के संबंध में नियम बनाता है।
(ख) वह बड़ी-बड़ी नियुक्तियाँ करता है। जैसे- प्रधानमंत्री, मंत्रियों, राज्यपालों, राजदूतों तथा न्यायधीशों आदि की नियुक्ति ।
(ग) वह तीनों सेनाओं का प्रधान होता है और वह युद्ध व संधियों की घोषणा करता है।
(घ) वह दूसरे देशों के राजदूतों का स्वागत करता है और उनके द्वारा उनकी सरकारों से अपने देश के संबंधों को सुनिश्चित करता है।
(ङ) वह विभिन्न राज्य सरकारों को निर्देश देता है और उन पर नियंत्रण रखता है।
(च) वह संघ क्षेत्रों और सीमावर्ती प्रदेशों के प्रबन्ध को भी देखता है।
राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ-
(क) राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन बुलाता है और उसे स्थगित करता है। वह लोकसभा भंग कर सकता है। परन्तु इन शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति प्रधान मंत्री की सलाह पर करता है ।
(ख) आम चुनाव के बाद संसद के दोनों सदनों के पहले अधिवेशन या वर्ष के पहले अधिवेशन का आरम्भ राष्ट्रपति के अभिभाषण से होता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि राष्ट्रपति का यह अभिभाषण मंत्रिमंडल द्वारा ही तैयार किया जाता है।
(ग) कोई भी विधेयक उसके हस्ताक्षरों के बिना कानून नहीं बन सकता। संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता हैं । यदि कोई विधेयक धन-विधेयक न हो, तो राष्ट्रपति एक बार पुनर्विचार के लिए उसे संसद के पास भेज सकता है, परन्तु यदि संसद उस विधेयक को उसी रूप में राष्ट्रपति के पास भेज दे तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं।
(घ) राष्ट्रपति अध्यादेश भी जारी कर सकता है जो तुरन्त ही कानून का रूप धारण कर लेता है ।
परन्तु संसद का अधिवेशन शुरू होने के छः सप्ताह के बाद यह अध्यादेश समाप्त हो जाता है। यदि संसद चाहे तो वह इस अवधि से पहले भी इसे रद्द कर सकती
6. भारत के राष्ट्रपति के न्यायिक और वित्तीय शक्तियों का वर्णन करें ।
उत्तर – राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ –
(क) वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीशों की नियुक्ति करता है।
(ख) वह किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकता है ।
(ग) वह किसी भी अपराधी की सजा को कम या बिल्कुल हटा सकता है। वह मृत्यु-दण्ड को भी माफ कर सकता है।
(घ) उस पर किसी भी न्यायालय में कोई भी मुकदमा नहीं चल सकता ।
(ङ) कोई भी न्यायालय उसे अपने सामने नहीं बुला सकता ।
राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियाँ –
(क) वित्त विधेयक को लोकसभा में पेश करने की अनुमति देता है।
(ख) केन्द्रीय सरकार का बजट राष्ट्रपति की अनुमति से ही वित्तमंत्री लोकसभा में रखता है। इन सभी शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति अपनी इच्छा से नहीं करता बल्कि मंत्रिमंडल की सलाह से करता है ।
(ग) वह हर पाँच वर्ष के बाद या इससे पहले जब ऐसी आवश्यकता अनुभव हो, वित्तीय कमीशन की नियुक्ति करता है।
(घ) वह आयकर की राशि को केन्द्र और राज्यों में बाँटता है।
7. किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है ? राष्ट्रपति शासन लागू करने के क्या प्रभाव होते हैं ?
उत्तर – यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिर्पोट मिलने पर या अन्यथा, संतुष्ट हो कि किसी राज्य की शासन व्यवस्था संविधान के अनुसार नहीं चलाई जा सकती तो वह उस राज्य के शासन के सभी या कुछ काम स्वयं सँभाल सकता है। इसलिए आम तौर पर इसे “राष्ट्रपति शासन लागू करना कहा जाता है।
इस घोषणा की अवधि दो माह होती है। यदि इसे दो माह के बाद जारी रखना हो तो संसद की स्वीकृति आवश्यक होती है। संसद द्वारा घोषणा की पुष्टि कर दिए जाने पर भी यह घोषणा जारी होने की तिथि से छह महीने बाद समाप्त हो जाएगी । तथापि, इसे और छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार राष्ट्रपति शासन सामान्यतः एक वर्ष तक चल सकता है। एक वर्ष के बाद इसे केवल दो परिस्थितियों के अंतर्गत बढ़ाया जा सकता है, अर्थात् (क) जब संपूर्ण भारत में या राज्य के किसी भाग में आपात स्थिति की घोषणा लागू हो, और (ख) चुनाव आयोग प्रमाणित कर दे कि उस राज्य की विधानसभा के चुनाव कराना कठिन है। किंतु ऐसी कोई भी घोषणा तीन वर्ष से अधिक समय तक लागू नहीं रहेगी ।
राष्ट्रपति शासन लागू करने के प्रभाव – राष्ट्रपति शासन लागू करने के निम्नांकित परिणाम होते हैं-
(क) राज्य विधानमंडल को भंग किया जा सकता है या निलंबित । राज्य विधानमंडल की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी।
(ख) राष्ट्रपति कार्यपालिका संबंधी सभी काम राज्यपाल को सौंप सकता है ।
8. उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – उच्चतम न्यायालय संविधान के संरक्षक के रूप में –
यह उच्चतम न्यायालय का कर्त्तव्य है कि वह संविधान की गरिमा को बचाए रखे। अगर कोई सरकार मनमाने ढंग से संविधान में संशोधन कर दे या उसे तोड़-मरोड़ दे तो उच्चतम न्यायालय का यह परम कर्त्तव्य होगा कि जनहित को ध्यान में रखकर उस पर अंकुश लगाए या संविधान की मर्यादा बनाए रखने के लिए मनमाने संशोधन उनमें न होने दे। वह किसी केन्द्रीय या प्रान्तीय सरकार द्वारा पास किए गए कानून की वैधिकता का परीक्षण भी कर सकती है। यदि कोई संसद या राज्य विधान मण्डल ऐसा कोई कानून पास कर दे जो संविधान की धाराओं के विरुद्ध हो तो उच्चतम न्यायालय ऐसा कानून को अवैध घोषित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भारतीय नरेशों के प्रिवी-पर्स के मामले में सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों को अवैध घोषित कर दिया था। यू०एस०ए० में उच्चतम न्यायालय अपने आप ही कानूनों की वैधिकता अवैधिता की परख करता रहता है परन्तु भारत में ऐसा नहीं है – यहाँ उच्चतम न्यायालय तभी दखल देता है जब कोई पीड़ित व्यक्ति अपनी पीड़ा निवारण करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ऐसा कोई निवेदन-पत्र देता है ।
1976 ई० में 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में संशोधन किए जाने पर सर्वोच्च न्यायालय के पुनर्निरीक्षण के अधिकार को समाप्त कर दिया गया था। ऐसे में परन्तु शीघ्र ही इस 42वें संशोधन अधिनियम के रद्द किये जाने पर उच्चतम न्यायालय को दोबारा संविधान के संरक्षण का अधिकार मिल गया । इस अधिकार द्वारा उच्चतम न्यायालय नागरिकों को किसी भी सरकार के मनमाने कार्यों से बचा सकती है।
9. न्यायपालिका को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रखने के लिए क्या-क्यां प्रावधान किए गए हैं ?
अथवा, हम कैसे कह सकते हैं कि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र हैं ?
उत्तर – न्यायपालिका को स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रखने के लिए निम्नांकित कदम उठाए गए हैं –
(क) सरकार अथवा कार्यपालिका के नियंत्रण से बाहर- न्यायपालिका अपने कार्यों के लिए न तो कार्यपालिका पर निर्भर है और न उसके प्रति उत्तरदायी। इस प्रकार वह निष्पक्ष तथा स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।
(ख) न्यायाधीशों की नियुक्ति – न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, परंतु राष्ट्रपति उनको उनके पद से हटा नहीं सकता। उनको उनके पद से हटाया जाना कोई आसान काम नहीं है। अतः वे निडर होकर अपना कार्य करते हैं ।
(ग) न्यायाधीशों को पद से हटाया जाना- न्यायाधीशों को पद से हटाना एक कठिन प्रक्रिया के बाद संभव है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए संसद के एक सदन में एक प्रस्ताव पारित करना होता है कि न्यायाधीश ने कोई ऐसा कार्य किया है जो संविधान के अनुसार गलत है। यह प्रस्ताव दोनों सदनों के 2/3 सदस्यों के द्वारा पारित होना चाहिए । ऐसा होने पर राष्ट्रपति उस न्यायाधीश को पद से हटा सकता है। यह एक कठिन प्रक्रिया है। आज तक किसी न्यायाधीश को इस प्रक्रिया द्वारा उसके पद से नहीं हटाया गया है।
(घ) वेतन तथा अन्य सुविधाएँ- न्यायाधीशों को अच्छे वेतन तथा अन्य सुविधाएँ दी जाती हैं ताकि वे अपना काम ठीक ढंग से कर सकें। उन्हें आय के अन्य साधनों की जरूरत नहीं रहती जिससे वे बिना प्रलोभन के कार्य कर सकते हैं।
(ङ) न्यायाधीश पर उनके दिए गए निर्णयों के लिए कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। उनकी आलोचना भी नहीं हो सकती। अतः न्यायापालिका स्वतंत्र तथा निष्पक्ष कार्य कर सकती है।
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