अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना कैसे हुई? इसके प्रारंभिक उद्देश्य क्या थे ? अथवा, हिन्द-चीन, उपनिवेश की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?

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प्रश्न – अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना कैसे हुई? इसके प्रारंभिक उद्देश्य क्या थे ? अथवा, हिन्द-चीन, उपनिवेश की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?

उत्तर – भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की शुरुआत 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में “भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस” की स्थापना से माना जाता है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आधुनिक शिक्षा के प्रसार एवं समाचार पत्रों के विकास से भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना का विकास हो रहा था। इसी परिप्रेक्ष्य में कई संगठन भी स्थापित हो रहे थे। ऐसा ही एक संगठन इंडियन एसोसिएशन था जो राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट करता था। 1884 ई॰ में एक रिटायर्ड ब्रिटिश अधिकारी ए.ओ. ह्यूम ने इसी उद्देश्य से “भारतीय राष्ट्रीय संघ” की स्थापना की। ह्यूम भारतीय नेता एवं वायसराय से लगातार विचार-विमर्श करते रहे। इन्हें ब्रिटिश पार्लियामेन्ट्री कमिटी का समर्थन भी प्राप्त था। 25-28 दिसम्बर, 1885 ई० में पूना में भारतीय राष्ट्रीय संघ की बैठक प्रस्तावित थी। परंतु वहाँ प्लेग फैलने के कारण इस बैठक का स्थान परिवर्तित कर दिया गया और यह बैठक गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय, मुम्बई में 28 दिसम्बर, 1885 ई० को हुआ। यहाँ इस संगठन का नाम बदलकर “अखिल भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस” कर दिया गया। इस प्रकार भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना हुई।
अथवा,
फ्रांस द्वारा हिन्द- चीन को अपना उपनिवेश बनाने का प्रारंभिक उद्देश्य व्यापारिक सुरक्षा था। फ्रांस को डच एवं ब्रिटिश कम्पनियों के व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता था। भारत में फ्रांसीसी कमजोर पड़ रहे थे। चीन में उनका व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी अंग्रेज थे। अतः व्यापारिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से फ्रांसीसियों के लिए हिन्द-चीन अधिक सुरक्षित था, क्योंकि यहाँ से वे भारत और चीन दोनों जगहों को संभाल सकते थे ।
दूसरा उद्देश्य यह था कि औद्योगीकरण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति उपनिवेशों से होती थी तथा उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार भी उपलब्ध होता था। यद्यपि वियतनाम एक कृषि प्रधान देश था, परन्तु चीन से सटे राज्यों में खनिज संसाधन जैसे – कोयला, टिन, जस्ता, क्रोमियम आदि मिलते थे। इनका उपयोग फ्रांसीसी अपने उद्योगों में करना चाहते थे। वियतनाम में चावल और रबर का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होता था। फ्रांसीसियों का तीसरा उद्देश्य हिन्द – चीन में यूरोपीय सभ्यता का प्रचार-प्रसार कर वहाँ के लोगों को सभ्य बनाना था।

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